वे तीन शब्द: क्या आरोही को अपना हमसफर बना पाया आदित्य ?

दीवाली की उस रात कुछ ऐसा हुआ कि जितना शोर घर के बाहर मच रहा था उतना ही शोर मेरे मन में भी मच रहा था. मुझे आज खुद पर यकीन नहीं हो रहा था. क्या मैं वही आदित्य हूं, जो कल था… कल तक सब ठीक था… फिर आज क्यों मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था… आज मैं अपनी ही नजरों में गुनाहगार हो गया था. किसी ने सही कहा है, ‘आप दूसरे की नजर में दोषी हो कर जी सकते हैं, लेकिन अपनी नजर में गिर कर कभी नहीं जी सकते.’

मुझे आज भी आरोही से उतना ही प्यार था जितना कल था, लेकिन मैं ने फिर भी उस का दिल तोड़ दिया. मैं आज बहुत बड़ी कशमकश में गुजर रहा हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? मैं गलत नहीं हूं, फिर भी खुद को गुनाहगार मान रहा हूं. क्या दिल सचमुच दिमाग पर इतना हावी हो जाता है? प्यार की शुरुआत जितनी खूबसूरत होती है उस का अंत उतना ही डरावना होता है.

मैं आरोही से 2 साल पहले मिला था. क्यों मिला था, इस का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, क्योंकि उस से मिलने की कोई वजह मेरे पास थी ही नहीं, जहां तक सवाल है कैसे मिला था, तो इस का जवाब भी बड़ा अजीब है. मैं एटीएम से पैसे निकाल रहा था, उस के हाथ में पहले से ही इतना सारा सामान था कि उस को पता ही नहीं चला कि कब उस का एक बैग वहीं रह गया. मैं ने फिर उस को ‘ऐक्सक्यूज मी’ कह कर पुकारा और कहा, ‘‘आप का बैग वहीं रह गया था.’’

बस, यहां हुई थी हमारी पहली मुलाकात. अपने बैग को सहीसलामत देख कर वह खुशी से ऐसे उछल पड़ी मानो किसी ने आसमान से चांद भले ही न सही, लेकिन कुछ तारे तोड़ कर ला दिए हों. लड़कियों का खुशी में इस तरह का बरताव करने वाला फंडा मुझ को आज तक समझ नहीं आया. उस की मधुर आवाज में ‘थैंक्यू’ के बदले जब मैं ने ‘इट्स ओके’ कहा तो बदले में जवाब नहीं सवाल आया और वह सवाल था, ‘‘आप का नाम?’’

मैं ने भी थोड़े स्टाइल से, थोड़ी शराफत के साथ अपना नाम बता दिया, ‘‘जी, आदित्य.’’ ‘‘ओह, मेरा नाम आरोही है,’’ उस ने मेरे से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘भैया, कनाटप्लेस चलोगे?’’ मैं ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. यह सवाल उस ने मुझ से नहीं बल्कि साथ खड़े औटो वाले से किया था.

‘‘नहीं मैडमजी, मैं तो यहां एक सवारी को ले कर आया हूं. यहां उन का 5 मिनट का काम है, मैं उन्हीं को ले कर वापस जाऊंगा.’’ ‘‘ओह,’’ मायूसी से आरोही ने कहा.

‘‘अम्म…’’ मैं ने मन में सोचा ‘पूछूं या नहीं, अब जब इनसानियत निभा रहा हूं तो थोड़ी और निभाने में मेरा क्या चला जाएगा?’ ‘‘जी दरअसल, मैं भी कनाटप्लेस ही जा रहा हूं, लेकिन मुझे थोड़ा आगे जाना है. अगर आप कहें तो मैं आप को वहां तक छोड़ सकता हूं,’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा.

उस का जवाब हां में था. यह उस की जबान से पहले उस की आंखों ने कह दिया था. मैं ने उस का बैग कार में रखा और उस के लिए कार का दरवाजा खोला.

रास्ते में हम ने एकदूसरे से काफी बातचीत की. ‘‘ क्या आप यहीं दिल्ली से हैं?’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘नहीं, यहां तो मैं अपने चाचाजी के घर आई हूं. उन की बेटी यानी मेरी दीदी की शादी है इसलिए आज मैं शौपिंग के लिए आई थी,’’ आरोही ने मुसकान के साथ कहा. ‘‘कमाल है, दिल्ली जैसे शहर में अकेले शौपिंग जबकि आप दिल्ली की भी नहीं हैं,’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, नहींनहीं, दिल्ली मेरे लिए बिलकुल भी नया शहर नहीं है. मैं दिल्ली कई बार आ चुकी हूं. मेरी स्कूल की छुट्टियों से ले कर कालेज की छुट्टियां यहीं बीती हैं इसलिए न दिल्ली मेरे लिए नया है और न मैं दिल्ली के लिए.’’ मैं ने और आरोही ने कार में बहुत सारी बातें कीं. वैसे मेरे से ज्यादा उस ने बातें की, बोलना भी उस की हौबी में शामिल है. यह उस के बिना बताए ही मुझे पता चल गया था.

उस के साथ बात करतेकरते पता ही नहीं चला कि कब कनाटप्लेस आ गया. ‘‘थैंक्यू सो मच,’’ आरोही ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘प्लीज यार, मैं ने कोई बड़ा काम नहीं किया है. मैं यहां तक तो आ ही रहा था तो सोचा आप भी वहां तक जा रही हैं तो क्यों न लिफ्ट दे दूं, और आप के साथ तो बात करते हुए रास्ते का पता ही नहीं चला कि कब क्नाटप्लेस आ गया,’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा. ‘‘चलिए, मुझे भी दिल्ली में एक दोस्त मिला,’’ आरोही ने कहा.

‘‘अच्छा, अगर हम अब दोस्त बन ही गए हैं तो मेरी अपनी इस नई दोस्त से कब और कैसे बात हो पाएगी?’’ मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए पूछा. वह कुछ देर के लिए शांत हो गई. उस ने फिर कहा, ‘‘अच्छा, आप मुझे अपना नंबर दो, मैं आप को फोन करूंगी.’’

मैं ने उसे अपना नंबर दे दिया. आरोही ने मेरा नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया और बाय कह कर चली गई.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मैं भी तो आरोही से उस का नंबर ले सकता था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो… ‘चलो, कोई बात नहीं,’ मैं ने स्वयं को सांत्वना दी.

उस दिन मेरे पास जो भी फोन आ रहा था मुझे लग रहा था कि यह आरोही का होगा, लेकिन किसी और की आवाज सुन कर मुझे बहुत झुंझलाहट हो रही थी. मुझे लगा कि आरोही सच में मुझे भूल गई है. वैसे भी किसी अनजान शख्स को कोई क्यों याद रखेगा और अगर उसे सच में मुझ से बात करनी होती तो वह मुझे भी अपना नंबर दे सकती थी.

अगले दिन सुबह मैं औफिस के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया, ‘‘हैलो, आई एम आरोही.’’ मैसेज देख कर मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस ने मुझे मैसेज किया है.

मैं ने तुरंत उसे मैसेज का जवाब दिया, ‘‘तो आखिर आ ही गई याद आप को अपने इस नए दोस्त की.’’ उधर से आरोही का मैसेज आया, ‘‘सौरी, दरअसल, कल मैं काम में बहुत व्यस्त थी और जब फ्री हुई तो बहुत देर हो चुकी थी तो सोचा इस वक्त फोन या मैसेज करना ठीक नहीं है.’’

मैं ने आरोही को मैसेज किया, ‘‘दोस्तों को कभी भी डिस्टर्ब किया जा सकता है.’’ आरोही का जवाब आया, ‘‘ओह, अब याद रहेगा.’’

बस, यहीं से शुरू हुआ हमारी बातों का सिलसिला. जहां मुझे अभी कुछ देर पहले तक लगता था कि अब शायद ही उस से दोबारा मिलना होगा. लेकिन कभीकभी जो आप सोचते हैं उस से थोड़ा अलग होता है. आरोही की बड़ी बहन की शादी मेरे ही औफिस के सहकर्मी से थी. जब औफिस के मेरे दोस्त ने मुझे शादी का कार्ड दिया तो शादी की बिलकुल वही तारीख और जगह को देख कर मैं समझ गया कि हमारी दूसरी मुलाकात का समय आ गया है.

पहले तो शायद मैं शादी में न भी जाता, लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ आरोही से दोबारा मिलने के लिए जा रहा था. मैं ने झट से उसे मैसेज किया, ‘‘मैं भी तुम्हारी दीदी की शादी में आ रहा हूं.’’

आरोही का जवाब में मैसेज आया, ‘‘लेकिन आदित्य, मैं ने तो तुम्हें बुलाया ही नहीं.’’ उस का मैसेज देख कर मुझे बहुत हंसी आई, मैं ने ठिठोली करते हुए लिखा, ‘‘तो?’’

उस का जवाब आया, ‘‘तो क्या… मतलब तुम बिना बुलाए आओगे, किसी ने पूछ लिया तो?’’ मुझे बड़ी हंसी आई, मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए उसे फोन किया, ‘‘हैलो, आरोही,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम बिना बुलाए आओगे शादी में,’’ आरोही ने एक सांस में कहा, ‘‘हां, तो मैं डरता हूं्र्र क्या किसी से, बस, मैं आ रहा हूं,’’ मैं ने थोड़ा उत्साहित हो कर कहा. ‘‘लेकिन किसी ने देख लिया तो,’’ आरोही ने बेचैनी के साथ पूछा.

‘‘मैडम, दिल्ली है दिल वालों की,’’ यह कह कर मैं हंस दिया. लेकिन मेरी हंसी को उस की हंसी का साथ नहीं मिला तो मैं ने सोचा, ‘अब राज पर से परदा हटा देना चाहिए.’ मैं ने कहा, ‘‘अरे बाबा, डरो मत, मैं बिना बुलाए नहीं आ रहा हूं, बाकायदा मुझे निमंत्रण मिला है आने का.’’

‘‘ओह,’’ कह कर आरोही ने गहरी सांस ली. ‘‘तो अब तो खुश हो तुम,’’ मैं ने आरोही से पूछा.

‘‘हां, बहुत…’’ आरोही की आवाज में उस की खुशी साफ झलक रही थी. उस दिन बरात के साथ जैसे ही मैं मेनगेट पर पहुंचा तो बस मेरी निगाहें एक ही शख्स को ढूंढ़ रही थीं. वहां पर बहुत सारे लोग मौजूद थे, लेकिन आरोही नहीं थी.

काफी देर तक जब इधरउधर देखने के बाद भी मुझे आरोही नहीं दिखाई दी तो मैं ने उस के मोबाइल पर कौल की, ‘‘कहां हो तुम…, मैं कब से तुम को इधरउधर ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने बेचैनी से पूछा. ‘‘ओह, पर क्यों… हम्म…’’ उस ने चिढ़ाते हुए कहा.

मैं ने भी उस को चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘ओह, ठीक है फिर लगता है हमारी वह मुलाकात पहली और आखिरी थी.’’ ‘‘अरे, क्या हुआ, बुरा लग गया क्या, अच्छा बाबा, मैं आ रही हूं,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘लेकिन तुम हो कहां?’’ मैं ने आरोही से पूछा. ‘‘जनाब, पीछे मुड़ कर देखिए,’’ आरोही ने हंसते हुए कहा.

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो बस देखता ही रह गया. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी में एक लड़की मेरे सामने खड़ी थी. हां, वह लड़की आरोही थी. उस के खुले हुए बाल, हाथों में साड़ी की ही मैचिंग गुलाबी चूडि़यां, आज वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. आज मुझे 2 बातों का पता चला, पहला यह कि लोग यह कहावत क्यों कहते हैं कि मानो कोई अप्सरा जमीन पर उतर आई हो, और दूसरी बात यह कि शादी में क्यों लोग दूल्हे की सालियों के दीवाने हो जाते हैं.

मैं ने उसी की तरफ देख कर कहा, ‘‘जी, आप कौन, मैं तो आरोही से मिलने आया हूं, आप ने देखा उस को.’’ उस ने बड़ी बेबाकी से कहा, ‘‘मेरी शक्ल भूल गए क्या, मैं ही तो आरोही हूं.’’

मैं ने उस की तरफ अचरज भरी निगाहों से देख कर कहा, ‘‘जी, आप नहीं, आप झूठ मत बोलिए, वह इतनी खूबसूरत है ही नहीं जितनी आप हैं.’’ आरोही ने गुस्से से घूरते हुए कहा, ‘‘ओह, तो तुम मेरी बुराई कर रहे हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, मैं तो आप की तारीफ कर रहा हूं.’’ वह दिन मेरे लिए बहुत खुशी का दिन था, मैं ने आरोही के साथ बहुत ऐंजौय किया. उस ने मुझे अपने मम्मीपापा और भाईबहन से मिलवाया. पूरी शादी में हम दोनों साथसाथ ही रहे.

जातेजाते वह मुझे बाहर तक छोड़ने आई. मैं ने आरोही की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा सुनो, मैं उस समय मजाक कर रहा था. तुम जितनी मुझे आज अच्छी लगी हो न उतनी ही अच्छी तुम मुझे उस दिन भी लगी थी जब हम पहली बार मिले थे,’’ यह सुन कर वह शरमा गई. अब हम दोनों घंटों फोन पर बातें करते. वह अपनी शरारतभरी बातों से मुझे हंसाती और कभी चिढ़ा दिया करती थी. मैं कभी बहुत तेज हंसता तो कभीकभी मजाक में गुस्सा कर दिया करता. हम दोनों के मन में एकदूसरे के लिए इज्जत और दिल में प्यार था. जिस की वजह से हम दोनों बिना एकदूसरे से सवाल किए बात करते थे. कुछ चीजों के लिए कभीकभी शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ती. आप की निगाहें ही आप के दिल का हाल बयां कर देती हैं. फिर भी वे 3 शब्द कहने से मेरा दिल डरता है.

अब मुझे रोमांटिक फिल्में देखना अच्छा लगता है. उन फिल्मों को देख कर मुझे ऐसा नहीं लगता था कि क्या बेवकूफी है. जहन में आरोही का नाम आते ही चेहरा एक मुसकान अपनेआप ओढ़ लेता था और बहुत अजीब भी लगता था, जब कोई अनजान शख्स मुझे इस तरह मुसकराता देख पागल समझता था. अपनी मुसकान को रोकने की जगह मैं उस जगह से उठ जाना ज्यादा अच्छा समझता था. ‘‘हाय, गुडमौर्निंग,’’ आज यह मैसेज आरोही की तरफ से आया.

हमेशा की तरह आज भी मैं ने आरोही को फोन किया, लेकिन आज पहली बार उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. मैं पूरे दिन उस का नंबर मिलाता रहा, लेकिन उस ने मेरा फोन नहीं उठाया. आज दीवाली है और आरोही मुझे जरूर फोन करेगी, लेकिन आज भी जब उस का कोई फोन नहीं आया तो मैं ने उस को फिर फोन किया. आज आरोही ने फोन उठा लिया.

‘‘कहां हो आरोही, कल से मैं तुम्हारा फोन मिला रहा हूं, लेकिन तुम फोन ही नहीं उठा रही थी,’’ मैं ने गुस्से में आरोही से कहा. ‘‘यह सब परवा किसलिए आदित्य,’’ आरोही ने रोते हुए पूछा.

‘‘परवा, क्या हो गया तुम्हें, सब ठीक तो है न… और तुम रो क्यों रही हो?’’ मैं ने बेचैनी से आरोही से पूछा. ‘‘प्लीज आदित्य, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कानपुर मेरी शादी की बात चल रही थी इसलिए बुलाया गया था, लेकिन तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम्हें तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा था जब मैं उस दिन रेस्तरां में तुम्हें घर वापस आने की बात कहने आई थी,’’ आरोही एक सांस में बोले जा रही थी. मानो कई दिन से अपने दिल पर रखा हुआ बोझ हलका कर रही हो.

‘‘तुम्हारे लिए मैं कभी कुछ थी ही नहीं आदित्य, शायद यह सब बोलने का कोई हक नहीं है मुझे… और न ही कोई फायदा, शायद अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे, अलविदा…’’ यह कह कर आरोही ने फोन रख दिया. मैं एकटक फोन को देखे जा रहा था, जो आरोही हमेशा खिलखिलाती रहती थी आज वही फूटफूट कर रो रही थी. इसलिए आज मैं खुद को गुनाहगार मान रहा था, लेकिन अब मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं अपनी आरोही को और नहीं रुलाऊंगा, मैं जान चुका हूं कि आरोही भी मुझे उतना ही प्यार करती है जितना कि मैं उसे करता हूं.

मैं ने फैसला कर लिया कि मैं कल सुबह ही टे्रन से कानपुर जाऊंगा. आज की यह रात बस किसी तरह सुबह के इंतजार में गुजर जाए. मैं ने अगली सुबह कानपुर की टे्रन पकड़ी. 10 घंटे का यह सफर मेरे लिए, मेरे जीवन के सब से मुश्किल पल थे. मैं नहीं जानता था कि आरोही मुझे देख कर क्या कहेगी, कैसा महसूस करेगी, इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं, मैं ने जैसे ही आरोही के घर पहुंच कर उस के घर के दरवाजे की घंटी बजाई तो आरोही ने ही दरवाजा खोला. आरोही मुझे देख कर चौंक गई.

मैं ने आरोही को गले लगा लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो आरोही… सारी मेरी ही गलती है. मुझे हमेशा यही लगता था कि अगर मैं तुम से अपने दिल की बात कहूंगा तो तुम को हमेशा के लिए खो दूंगा. मैं भूल गया था कि मैं कह कर नहीं बल्कि खामोश रह कर तुम्हें खो दूंगा.’’ आरोही की आंखों में आंसू थे. उस के घर के सभी लोग वहां मौजूद थे. मैं ने आरोही की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘कल तक मुझ में हिम्मत नहीं थी, लेकिन आज मैं तुम्हारे प्यार की खातिर यहां आया हूं, आई लव यू आरोही, बोलो, तुम दोगी मेरा साथ…’’ मैं ने अपना हाथ आरोही की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

आरोही ने अपना हाथ मेरे हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘आई लव यू टू.’’ आज आरोही और मेरे इस फैसले में उस के परिवार वालों का आशीर्वाद भी शामिल था.

अक्षरा सिंह ने ‘शातिर बलमा’ पर लचकाई कमरिया, झकास है Viral Videos  

भोजपुरी सिनेमा जगत में अपने एक्टिंग और डांसिंग से सभी के दिलों पर राज करने वाली एक्ट्रेस अक्षरा सिंह (Akshra Singh) हमेशा सुर्खियों में रहती है. उनके पौपुलर वीडियो उनके फैंस को खूब पसंद आते है. अक्षरा सिंह एक्टिंग से ज्यादा अपने डांस के लिए जानी जाती है. उनकी डांस के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)


अक्षरा सिंह अपने इंस्टा अकाउंट पर वीडियोज अपडेट करती रहती है. उनके चाहने वाले उनके डांस के लिए हमेशा ही बेताब रहते है एक्ट्रेस कई बार स्टोज शो भी करती नजर आई है. अक्षरा ने एक इवेंट के दौरान भोजपुरी गानों पर कुछ ऐसे ठुमके लगाये कि सपना चौधरी (Sapna Choudhary) का डांस भी भूल जाए.

  • भोजपुरी हीरोइन का शातिर बलमा पर हटके डांस

आपको बता दें कि हाल ही में अक्षरा का शातिर बलमा पर बनाया गया वीडियो काफी पौपुलर है, सामने आए वीडियो में अक्षरा सिंह का स्टाइलिश अंदाज वाकई में देखने लायक है. वीडियो में अक्षरा सिंह अपने नए गाने शातिर बलमा को प्रमोट करती दिख रही हैं. बता दें, कि इस गाने को बिग बौस फेम अफसाना खान ने अपनी आवाज दी है.

  • एक्ट्रेस ने ‘मेरा वाला डांस’ पर हिलाई कमरिया

अक्षरा सिंह का नया गाना ‘मेरा वाला गाना’ पर डांस भी बेहद पौपुलर है. रिलीज के साथ ही इस गानें ने फैंस के बीच धूम मचाई. इस गानें में एक्ट्रेस जमकर डांस करती हुई नजर आ रही है. उनका डांस तारीफे लायक है. डांस की वजह से अक्षरा सिंह का ये वीडियो काफी हिट हुआ है.

  • अक्षरा का भोजपुरी गानें पर पौपुलर है डांस वीडियो

भोजपुरी सिनेमा जगत में अपने एक्टिंग और डांसिंग से दर्शकों का दिल जीतने वाली अक्षरा सिंह (Akshra Singh) अपने स्टेज पर धमाकेदार जलवे दिखाने के लिए भी जानी जाती है. अक्षरा ने एक इवेंट के दौरान भोजपुरी गानों पर कुछ ऐसे ठुमके लगाये कि लोग सपना चौधरी (Sapna Choudhary) का डांस भी भूल गए. अक्षरा के डांस देखकर वहां पर मौजूद दर्शक झूम उठे और उनके डांस पर जमकर तालियां बजाईं. अक्षरा सिंह भोजपुरी इंडस्ट्री की महंगी हिरोइनों में से एक मानी जाती हैं. अक्षरा का एक वीडियो यूट्यूब पर काफी वायरल हो रहा है, हालांकि यह वीडियो 8 महीना पुराना है लेकिन फिर भी इंटरनेट पर अभी भी तहलका मचाये हुए है. वेव म्यूजिक भोजपुरी यूट्यूब चैनल पर रिलीज हुए इस स्टेज परफौर्मेंस को अभी तक 53 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

  • शाहरुख खान की मूवी के गानें पर अक्षरा का हिट है वीडियो

अक्षरा अपने फैंस को अपडेट देने के लिए समय समय पर अपनी डांस की वीडियो शेयर करती रहती है. उनका साल 2022 का वीडियो भी काफी वायरल हुआ. जब उन्होंने बौलीवुड के किगं की फिल्म ‘बाजीगर’ का गाना ‘किताबे बहुत सी पढ़ी होगी तुमने’ पर फेस एक्सप्रेशन के साथ वीडियो बनाकर शेयर की थी. ये दर्शकों को वीडियो बहुत ही पसंद आया था. इस पर फैंस ने जमकर कमेंट भी  बरसाएं थे.

मेरा एक दोस्त ओपन मैरिज में है, पतिपत्नी के रिश्ते के लिए सही या गलत है?

सवाल

अब तक शादी के बाद किया जाने वाला अफेयर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में आता था. लेकिन अब सोसाइटी में ओपन मैरिज का चलन भी देखने को मिल रहा है. जी हां, किसी का रिश्तेदार ओपन मैरिज में है, तो फिर किसी का दोस्त, पहले ये शब्द सिर्फ बौलीवुड तक सीमित थे. लेकिन अब ये ट्रेंड बनता जा रहा है. कि लोग एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को भी तव्वजो दे रह है.

अजीत नाम का एक शख्स है जो कि 32 साल का है, वह बताता है कि उसका दोस्त नीरज ओपन मौरिज की बाते करता है और बताता है कि वे दोनों पति पत्नी ओपन मैरिज में है. इस बात से अजीत काफी परेशान चल रहा है और वे पूछते है कि क्या ये करना सही है या गलत? और आम भाषा में ओपन मैरिज क्या है, ये विवाह संस्था के लिए भी कितना सही है?

जवाब

क्या है ओपन मैरिज

शादी एक ऐसा बंधन है, जो दो दिलों को जोड़ने में काफी मदद करता है. ऐसे में इन दोनों ओपन मैरिज का ट्रेंड बहुत ज्यादा बढ़ गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं ओपन मैरिज किसे कहते हैं?

जब दो शादीशुदा पति-पत्नी एक दूसरे के एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर से सहमत होते हैं, तब उसे ओपन मैरिज कहा जाता है. यानी शादी के बाद भी अगर कोई रोमांटिक अफेयर कर रहा है, तो उसे बेवफाई नहीं मानी जाएगी. दोनो आपसी सहमती से इस बात पर रहते है और एक्स्ट्रा अफेयर करते है.

हस्बैंड बना सकता है गर्लफ्रेंड

ओपन मैरिज में म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग होती है. ओपन मैरिज के अंदर दोनों पार्टनर में से किसी एक को भी एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर से परेशानी नहीं होगी. अगर आसान भाषा में समझा जाए, तो शादी के बाद हस्बैंड गर्लफ्रेंड बना सकता है, तो वही शादी के बाद वाइफ भी बौयफ्रेंड बना सकती है.

हालांकि, ये करना कितना सही है और गलत चलिए बताते है.

टूट सकता है कपल्स का विश्वास

ओपन मैरिज की वजह से कपल्स का विश्वास भी टूट सकता है और यह आगे चलकर बड़ी प्रौब्लम खड़ी कर सकता है. ओपन मैरिज में सेक्शुअल बिमारीयों का खतरा भी बढ़ जाता है और समाज में ओपन मैरिज को स्वीकार करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसकी वजह से लोगों में शादी पर से विश्वास भी उठ सकता है.

सही इस तरह से भी हो सकता है कि आप अपने साथी की भावनाओं को समझ सकते है, कि ओपन मैरिज पूरे तरीके से जोड़ों पर निर्भर करता है, क्योंकि यह रिश्ते को मजबूत और कमजोर दोनों बना सकता है. ओपन मैरिज का फैसला लेने से पहले आपको अपने साथी की भावनाओं को समझना चाहिए.

अगर आप दोनों इस तरह के रिश्ते को संभालने के लिए तैयार हैं, तो ही ओपन मैरिज का फैसला लें. अगर आप दोनों सामाजिक दबाव का सामना करने के लिए तैयार हैं, तो भी ओपन मैरिज का फैसला ले सकते हैं. इससे आप दोनो के बीच एक दूसरे को लेकर ज्यादा समझदारी कायम रह सकती है.

जानिए कैसे बनें अंदर से मजबूत

भारत में कई सालों से शिलाजीत का औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. यह दुर्लभ पदार्थ अंदरूनी ताकत बढ़ाने के साथसाथ स्मरण शक्ति बढ़ाने, गठिया के इलाज, रक्तचाप को नियंत्रित रखने इत्यादि में काफी लाभकारी माना जाता है. शिलाजीत से बनी औषधि का सेवन पुरुषों के साथसाथ महिलाओं के लिए भी फायदेमंद माना गया है. अब इस में स्वर्ण और मकरध्वज जैसे तत्वों का भी मिश्रण हो तो इस का लाभ कई गुना बढ़ जाता है. आइए, जानें इन सभी तत्वों के सेहत वाले फायदों के बारे में.
शिलाजीत: शिलाजीत को ऐस्फाल्ट या मिनरल पिच के नाम से भी जाना जाता है. यह खनिज पदार्थ की श्रेणी में आता है और चुनिंदा पर्वतों पर पाया जाता है. यों तो शिलाजीत का सेवन यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए किया जाता है, मगर इस के संपूर्ण सेहत से जुड़े कई दूसरे फायदे भी हैं. इस से बनी औषधि गठिया और ऐनीमिया की समस्याओं से राहत दिला सकती है. मूत्र विकार और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं से पीडि़त लोगों के लिए भी इस के फायदे बताए गए हैं.

इस में दिमाग को तेज करने के गुण भी मौजूद हैं. इस के सेवन से दिमाग को पोषण मिलता है जिस से तनाव घटता है और धीरेधीरे एकाग्रता बढ़ने लगती है. कोलेस्ट्रौल के बढ़ते स्तर को नियंत्रित रखने में भी इस की बड़ी भूमिका है. इन सब के अलावा शिलाजीत शरीर की कमजोर हो चुकी कोशिकाओं को मजबूत बनाने का काम भी करती है और कोशिशकाओं की मजबूती शरीर को स्फूर्ति से भर देती है.
शिलाजीत से बने किसी भी उत्पाद का सेवन करने से पहले चिकित्सकीय सलाह जरूरी है ताकि इस के सेवन की सही मात्रा और साइड इफैट्स की जानकारी आप को पहले से हो.

स्वर्ण: शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने क लिए स्वर्ण भस्म को सब से बेहतरीन तत्व माना गया है. स्वर्ण भस्म का इस्तेमाल परंपरागत चिकित्सा पद्धति में कई तरह से किया जाता है. स्वर्ण यौन शक्ति को बढ़ाने के साथसाथ मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने और मधुमेह क नियंत्रण के लिए भी जाना जाता है. इस के प्रयोग से बनी औषधि के सेवन से पहले भी चिकित्सक सलाह दे तो अच्छे ब्रैंड की स्वर्ण भस्म युक्त औषधि का ही सेवन करें.

मकरध्वज: मकरध्वज का इस्तेमाल कफ, पित्त के इलाज के साथसाथ पौरुष शक्ति बढ़ाने के लिए भी किया जाता है. इस के अलावा शुक्राणु संबंधी विकारों के इलाज के लिए भी मकरध्वज को फायदेमंद माना गया है. मधुमेह की समस्या से ग्रसित लोगों के लिए इस का सेवन फायदेमंद बताया गया है. बाजार में इस से बनी कई औषधियां उपलब्ध हैं, मगर डाक्टर की सलाह से ही और अच्छे ब्रैंड के उत्पाद का सेवन करें.

तोसे लागी लगन: क्या हो रहा था ससुराल में निहारिका के साथ

मनोविज्ञान की छात्रा निहारिका सांवलीसलोनी सूरत की नवयुवती थी. तरूण से विवाह करना उस की अपनी मरजी थी, जिस में उस के मातापिता की रजामंदी भी थी. तरूण हैदराबाद का रहने वाला था और निहारिका लखनऊ की. दोनों दिल के रिश्ते में कब बंधे यह तो वे ही जानें.

सात फेरों के बंधन में बंध कर दोनों एअरपोर्ट पहुंचे. हवाईजहाज ने जब उड़ान भरी तो निहारिका ने आंखे बंद कर लीं और कस कर तरूण को थाम लिया। स्थिति सामान्य हुई तो लज्जावश नजरें झुक गईं पर तरुण की मंद मुसकराहट ने रिश्ते में मिठास घोल दी थी.

“हम पग फेरे के लिए इसी हवाई जहाज से वापस आएंगे,” निहारिका ने आत्मियता से कहा.

“नहीं, अब आप कहीं नहीं जाएंगी, हमेशाहमेशा मेरे पास रहेंगी,” तरूण ने निहारिका के कंधे पर सिर रखते हुए कहा.

सैकड़ों की भीड़ में नवविवाहिता जोड़ा एकदूसरे की आंखों में खोने लगा था.

तरूण की मां ने पड़ोसियों की मदद से रस्मों को निभाते हुए निहारिका का गृहप्रवेश करवाया. घर में बस 3 ही
सदस्य थे. शुरू के 2-4 दिन वह अपने कमरे में ही रहती थी फिर धीरेधीरे उस ने पूरा घर देखा। पूरा घर पुरानी कीमती चीजों से भरा पङा था। एक कोने में कोई पुरानी मूर्ति रखी हुई थी. निहारिका ने उसे हाथ में उठाया ही था कि पीछे से आवाज आई,”क्या देख रही हो, चुरा मत लेना।”

आवाज में कड़वाहट घुली हुई थी. निहारिका ने पीछे मुड़ कर देखा, तरूण की मां खड़ी थीं.

“नहीं मम्मीजी, बस यों ही देख रही थी,” निहारिका ने सहम कर जबाव दिया.

ससुराल में पहली बार इस तरह का व्यवहार… उस का मन भारी हो गया. मां की याद आने लगी. रात को बातों ही बातों में तरूण के सामने दिन वाले घटना का जिक्र हो आया.

“हां वे थोड़ी कड़क मिजाज हैं… पर प्लीज, तुम उन की किसी बात को दिल पर मत लेना। वे दिल की बेहद अच्छी हैं,” तरुण अपनी तरफ से निहारिका को बहलाने लगा.

एक दिन दोपहर को जब निहारिका लेटी हुई कोई पत्रिका पढ़ रही थी तभी तरूण की मां मनोहरा देवी उस के कमरे में आईं. उन्हें देख वह उठ कर बैठ गई। उस के बाद सासबहु में इधरउधर की बातें हुईं, बातों ही बातों में निहारिका के गहनों का जिक्र हो आया तो निहारिका खुशी से उन्हें गहने दिखाने लगीं. बातों का सिलसिला चलता रहा। करीब आधे
घंटे बाद जब निहारिका गहनों को डब्बे में डालने लगीं तो सोने के कंगन गायब थे. वह परेशान हो कर उसे ढूंढ़ने लगी.

आश्चर्य भी हो रहा था उसे। सासुमां से कुछ पूछे इतनी हिम्मत कहां थी उस में. रात को तरूण से बताया तो उस ने भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

“तुम औरतें केवल पहनना जानती हो, यहीं कहीं रख कर भूल गईं होगी। मिल जाएंगे। अभी सो जाओ,” दिनभर का थका हुआ तरूण करवट बदल कर सो गया.

‘नईनवेली दुलहन का ज्यादा बोलना भी ठीक नहीं,’ यह सोच कर निहारिका चुपचाप रह गई.

लेकिन वह मनोविज्ञान की छात्रा थी। अनकहे भावों को पढ़ना जानती थी, पर कहे किस से? तरूण के बारे में सोचते ही कंगन बेकार लगने लगे. लेकिन अगले ही दिन घर में सोने की एक और मूर्ति दिखाई दिए.

“मम्मीजी, बहुत सुंदर है यह मूर्ति। कहां से खरीद कर लाईं आप?” निहारिका ने तारीफ करते हुए पूछा.

“कहीं से भी, तुम से मतलब…” मनोहरा देवी ने तुनक कर जवाब दिया.

निहारिका स्तब्ध रह गई.

15 दिन के अंदरअंदर उस के नाक की नथ कहीं गुम हो गई थी. पानी सिर के ऊपर जा रहा था. तरूण कुछ सुनने को तैयार न था। स्थिति दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी.

एक दिन दोपहर के भोजन के बाद सभी अपनेअपने कमरे में आराम करने गए। उस वक्त मनोहरा देवी पूरे गहने पहन कर स्वयं को आईने में निहार रही थीं। तरहतरह के भावभंगिमा कर रही थीं. संयोगवश उसी वक्त निहारिका किसी काम से उन के पास आना चाहती थी. अपने कमरे से निकली ही थी कि खिड़की से ही उसे वह मंजर दिख गया.

उस वक्त उन के शरीर पर वे गहने भी थे जो उस के डब्बे से गायब हुए थे. शक को यकीन में बदलते देख निहारिका सिहर उठी। उस ने चुपके से 1-2 तसवीरें ले लीं।

रात को डिनर खत्म करने के बाद…

“तरूण, मुझे कुछ गहने चाहिए थे…” निहारिका अभी वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि तरूण बोला,”मेरी खूबसूरत बीबी को गहनों की क्या जरूरत है? सच कह रहा हूं नीरू, तुम बहुत बहुत खूबसूरत हो।”

पर तरुण की बातें अभी उसे बेमानी लग रही थीं क्योंकि वह जहां पहुंचना चाहती वह रास्ता ही तरुण ने बंद कर
दिया था. हार कर निहारिका ने वे फोटोज दिखाए जिसे देखते ही तरुण उछल पड़ा। उस की आंखें आश्चर्य से फैल गईं।

“मम्मी के पास इतने गहने हैं, मुझे तो पता ही नहीं था,” तरूण ने आश्चर्य से फैली आंखों को सिकोड़ते हुए कहा.

“नहीं यह अच्छी बात नहीं है। तरूण, तुम ने शायद देखा नहीं। इन में वे गहने भी हैं जो मेरे डब्बे से गायब हुए थे,” निहारिका ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

मामला संजीदा था लेकिन उसे दबाना और भी मुश्किल स्थिति को जन्म दे
सकता था.

“मां के गहने यानी तुम्हारे गहने…” तरूण को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी तो उस ने बात को टालते हुए कहा.

“तरूण, तुम क्यों समझना नहीं चाहते या फिर…” निहारिका उस के चेहरे पर आ रहे भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगी, क्योंकि जो बात सामने आ रही थी वह अजीब सी थी.

“या फिर क्या…” तरूण ने तैश से कहा.

“यही कि तुम जानबूझ कर कुछ छिपाना चाहते हो,” निहारिका ने गंभीर आवाज में कहा.

“मैं क्या छिपा रहा हूं?”

निहारिका चुप रही।

“बोलो नीरू, मैं क्या छिपा रहा हूं?”

“यही कि मम्मी जी क्लाप्टोमैनिया की शिकार हैं…”

“क्या… यह क्या होता है?” तरुण ने कभी नहीं सुना था यह नाम.

“यह एक तरह की बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति चीजें चुराता है और भूल जाता है,” निहारिका एक ही सांस में सारी बातें कह गई.

“देखो नीरू, मैं मानता हूं मेरी मां बीमार हैं पर चोरी… तरूण बौखला गया.

“वे चोर नहीं हैं। प्लीज मुझे गलत मत समझो,” निहारिका ने अपनी सफाई दी.

“तुम्हें पग फेरे के लिए घर जाना था न, बताओ कब जाना है?” तरूण बहस को और बढ़ाना नहीं चाहता था.

निहारिका स्तब्ध रह गई.

दोनों ने करवट फेर ली लेकिन नींद किसी के आंखों में न थी. तरूण ने वापस जाने के लिए कह दिया था। सपनों में जो ‘होम स्वीट होम’ का सपना था वह टूट कर चकनाचूर हो गया था.

निहारिका ने हार नहीं मानी। उस ने अपने प्रोफैसर साहब से बात की,”सर, मुझे आप की मदद चाहिए,” निहारिका का दृढ़ स्वर बता रहा था कि वह अपने काम के प्रति कितनी संकल्पित है.

“अवश्य मिलेगी, काम तो बताओ,” प्रोफेसर की आश्वस्त करने वाली आवाज ने निहारिका को निस्संकोच हो अपनी बात रखने का हौसला दिया। इस से पहले वह अपराधबोध से दबी जा रही थी.

“सर, मेरी सासूमां यहांवहां से चुरा कर वस्तुएं ले आती हैं और पूछे जाने पर इनकार कर देती हैं,” निहारिका के आंसुओं ने अनकही बात भी कह दी थी.

“घबराओ मत, धीरज से काम लो निहारिका। सब ठीक हो जाएगा। कभीकभी जीवन का एकाकीपन इस की वजह बन जाती है। आगे तुम खुद समझदार हो,” प्रोफैसर साहब ने रिश्ते की नाजुकता को समझते हुए कहा.

“क्लाप्टोमैनिया लाइलाज बीमारी नहीं, अपनापन और लगाव से इसे दूर किया जा सकता है,” प्रोफैसर साहब के आखिरी वाक्य ने निहारिका के मनोबल को बढ़ा दिया था. वह उन के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने लगी। इलाज का पहला कदम था गाढ़ी दोस्ती…

“मम्मीजी, आज से मैं आप के कमरे में आप के साथ रहूंगी, आप के बेटे से मेरी लड़ाई हो गई है,” निहारिका ने अपना तकिया मनोहरा देवी के बिस्तर पर रखते हुए कहा.

“रहने दो, बीच रात में उठ कर न चली गई तो कहना,” मनोहरा देवी ने अपना अनुभव बांटते हुए कहा.

“कुछ भी हो जाए नहीं जाउंगी,” निहारिका ने आत्मविश्वास से कहा.

रात में उन दोनों ने एकदूसरे के पसंद की फिल्में देखीं। धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आने लगीं. मनोहरा देवी जब भी बाहर जाने के लिए तैयार होतीं तो निहारिका साथ चलने के लिए तैयार हो जाती या उन्हें अकेले जाने से रोक लेती। कभी मानमुनहार से तो कभी जिद्द से.

ऐसा नहीं था कि तरूण कुछ भी जानता नहीं था, कितनी बार उसे भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी पर मां तो आखिर मां है न… सबकुछ सह जाता था. मां को समझाने की कोशिश भी की पर बिजनैस की व्यस्तता की वजह से ध्यान बंट गया था। निहारिका की कोशिश रंग ला रही थी, यह बात उस से छिपी नहीं थी. अपनी नादानी पर शर्मिंदा भी था। अपने बीच
के मनमुटाव को कम करने के लिए निहारिका के पसंद की चौकलैट फ्लैवर वाली आइस्क्रीम लाया था जिसे अपने हाथों से खिला कर कान पकड़ कर माफी मांगी थी। उठकबैठक भी करने को तैयार था पर नीरू ने गले लगा कर रोक दिया
था.

“नीरू, तुम ने जिस तरह से मम्मी को संभाला है न उस के लिए तहेदिल से शुक्रगुजार हूं, तरूण ने नम आंखों से कहा.

“अभी नहीं, अभी हमें उन सभी चीजों की लिस्ट बनानी होगी जो मम्मीजी कहीं और से ले आई हैं, उन्हें लौटाना भी होगा,” निहारिका ने इलाज का दूसरा कदम उठाया.

“लौटाना क्यों है नीरू, इस से तो बात…” तरूण ने अपने घर की इज्जत की परवाह करते हुए कहा.

“लोगों को समझने दो। क्लापटोमेनिया एक बीमारी है, समाज को उन्हें उसी रूप में स्वीकारने दो, वे भी समाज का
हिस्सा हैं, कमरे में बंद रखना उपाय नहीं है,” निहारिका की 1-1 बात उस के आत्मविश्वास का परिचय दे रही
थी. निहारिका के रूप का दीवाना तो वह पहले से ही था पर आज अपनी मां के प्रति फिक्रमंद देख मन ही मन अपनी पसंद पर गर्व करने लगा था.
रातरात भर जाग कर दोनों ने उन सभी सामानों का लिस्ट बनाई जो घर के नहीं थे, सब को गिफ्ट की तरह रैपिंग किया। अंदर एक परची पर ‘सौरी’ लिख कर वस्तुओं को लोगों के घर तक पहुंचाया. पतिपत्नी दोनों ने
मिल कर मुश्किल काम को आसान कर लिया था. धीरेधीरे स्थिति सामान्य होने लगी थी.

मंगलवार की सुबह मम्मीजी को बाजार जाना था।

“मम्मी, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ जाते वक्त छोड़ दूंगा,” तरूण ने नास्ता करते हुए कहा,

“नहींनहीं तुम जाओ, मैं नीरू के साथ चली जाउंगी।”

निहारिका ने तरुण की ओर देख कर अपनी पीठ अपने हाथों से थपथपाई।प्रतिउत्तर में तरूण ने हाथ जोड़ने का अभिनय किया. निहारिका मुसकरा दी।

तभी निहारिका की मम्मी का फोन आया,”बेटाजी, नीरू को मायके आए हुए बहुत दिन हो गए, पग फेरे के लिए भी नहीं आए आप दोनों, हो सके तो इस इस दशहरे में कुछ दिनों के लिए उसे छोड़ जाते,” निहारिका की मां अपनी बात एक ही सांस में कह गई थीं.

“माफी चाहूंगा मम्मीजी, लेकिन मेरी मम्मी अब नीरू के बगैर एक पल भी नहीं रहना चाहतीं, ऐसे में मैं उसे वहां
छोड़ना नहीं चाहता…” तरूण ने गर्व से कहा.

“कोई बात नहीं बेटाजी, बेटी अपने घर में खुश रहे, राज करे इस से ज्यादा और क्या चाहिए,” मां ने रुंधे गले से कहा और फोन रख दिया. तरूण के स्वर ने उसे उस घर में मुख्य भूमिका में ला दिया था. निहारिका का होम स्वीट होम का सपना साकार हो रहा था.

मेरा वसंत: क्या निधि को समझ पाया वसंत

मैं ने तुम से पूछा, ‘बुरा लगा?’
‘नहीं,’ तुम्हारा यह जवाब सुन मैं स्तब्ध रह गई कि क्या मेरे बात करने न करने से तुम को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता? पर मैं जब भी तुम से नाराज़ हो कर बात करना बंद करती हूं, दिल धड़कना भूल जाता है और दिमाग सोचना. मन करता है कि तुम मुझे आवाज़ दो और मैं उस आवाज़ में खो दूं अपनेआप को. कभी लगता, क्यों न कौल कर के सुन लूं तुम्हारी आवाज़, पर है न मेरे पास भी अहं की भावना कि क्यों करूं जब तुम्हें चाहत ही नहीं मुझे सुनने की.

मैं ने कहीं सुना था- ‘ज़िंदगी को लाइटली लेने का’. लेकिन ज़िदंगी का हरेक पन्ना जब तुम से जुड़ा हो तो कैसे इस को हलके में ले लूं.

कुछ लोग कहते हैं कि प्यारव्यार कुछ नहीं होता. बस, रासायनिक क्रिया है जो दिल और दिमाग़ को बंद कर देती है और सोचनेसमझने की क्रिया समाप्त कर देती है. पर अगर ऐसा है तो किसी एक के लिए ही दिल क्यों धड़कता है. समझ के बाहर है न, यह ये प्यारव्यार…

कितना अच्छा होता न, मेरी तरह तुम्हारा भी दिल सिर्फ़ मेरे लिए धड़कता और मेरा ही नाम तुम्हारी ज़बान पर होता. पर तुम्हारे लिए तो मेरे सिवा सभी लोग ख़ास हैं और हां, काम की अधिकता भी तो कारण है न मुझ से दूर जाने का.

कुछ प्यार अधूरा ही रहता है, क्या मेरे प्यार को भी अधूरापन ही मिलेगा. पर, मैं तो तुम्हारे ही रंगों में रंगी हूं, सो, तुम्हारा द्वारा दिया हुआ अधूरापन भी स्वीकार है मुझे.

तुम खुश रहो. जानते हो, चाहती हूं कि अपनी खुशी भी तुम्हें दे दूं, पर अपनी खुशी तुम्हें नहीं दे सकती क्योंकि मैं अधूरी हो कर कभी खुश नहीं रह सकती.

जा रही हूं तुम से दूर, कुछ दूर जहां से मैं तुम्हें तो देख सकूं पर तुम मुझे न देख सकोगे. जब मुझे लगेगा कि जितनी बेक़रारी मेरे दिल में है उतनी ही तुम्हारे दिल में पनपने लगी, तब मैं वापस आ जाऊंगी. तुम्हारी बांहों की गरमाहट मुझे बेचैन करेगी. पर इस बेचैनी में भी बहुत प्यारा एहसास कैद रहेगा.

फिर से आतुर मन मिलन के लिए.

तुम्हारी,

निधि.

यह पत्र पढ़ कर मैं कुछ देर सन्न रह गया. काठ बना खड़ा चुपचाप इस खत को बारबार पढ़ता रहा. परसों रात ही तो आया था एक सप्ताह के बाद. नाराज़ निधि को मनाने में एक घंटा लग गया. उस की नाराज़गी दूर नहीं हुई. अबोलापन 2 दिन रहा घर में. आज रात ही तो इस घुटनभरे अबोलापन से छुटकारा मिला था. फिर उस ने पूछा तो था, ‘मेरे नाराज़ होने से तुम को बुरा लगता है न?’ और मैं ने सहजता से कह दिया था, ‘नहीं.’

ओह, निधि, तुम बात नहीं करती हो, तो मैं भी परेशान हो जाता हूं. लेकिन मैं दर्शाना नहीं चाहता. मुझे लगता, अगर इस बात को तुम्हारे सामने कहूंगा तो तुम और ज़्यादा रूठने लगोगी और अगर मैं कह दूं कि नहीं बुरा लगता तुम बात करो या न करो तो तुम रूठना कम कर दोगी. मैं ने अपना फ़ायदा देखा, तुम्हारी भावनाओं को नजरअंदाज किया. मुझे माफ़ कर दो, निधि. तुम आ जाओ वापस. अब मैं सबकुछ तुम्हारे हिसाब से करूंगा. मैं चाहता हूं कि तुम्हें समय दूं, पर…

मुझे पता है, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो. तभी तो इतना गुस्सा करती हो. गुस्सा भी प्यार का ही एक रूप है. पर मैं उस समय इसलिए नहीं मनाता क्योंकि तुम उस समय मेरी बात बिलकुल नहीं समझ पातीं. इंसान जब किसी से नाराज़ होता है तो वह उस समय हर हाल में गलत लगता है. तब समझाना गुस्से को बढ़ाना ही होता है. तुम समझती हो कि उन लमहों में मैं बहुत आराम से रहता हूं, तुम्हें क्या पता कि मैं हर रात जागता हूं सिर्फ तुम्हारी याद में, शायद कौल आ जाए और मैं सुन न पाऊं. लमहालमहा बेचैनी और बेक़रारी छाई रहती है. तब सिर्फ तुम खयालों में मेरे रहती हो. वक्त का पता नहीं चलता और खानापीना सब भूला रहता.

तुम सोचती हो कि मैं तुम्हें अनदेखा करता हूं पर कभी तुम खुद को मेरी जगह रख कर देखो तब समझ आएगा कि काम का कितना प्रैशर रहता है मेरे ऊपर. तब तुम कहोगी कि क्यों करते हो इतना काम. तो मेरी जान, काम नहीं करूंगा तो तुम्हारी ज़रूरतें और रोज की फ़रमाइश कौन पूरा करेगा.

ऐसा क्यों किया निधि? तुम जानती हो मैं तुम्हारे बगैर एक पल नहीं रह सकता. थोड़ी व्यस्तता थी और कभीकभी दोस्तों के पास बैठ जाता था, लेकिन मैं फिर भी समय निकालता था तुम्हारे लिए. हां, इधर कुछ ज़्यादा झगड़ा होने लगा था. लेकिन वज़ह मैं या तुम नहीं थीं. वज़ह थीं परिस्थितियां. पर क्या करता, नौकरी ही ऐसी है कि उस के लिए चौबीस घंटे भी कम ही हैं. तुम को कितनी बार समझाया- तुम नहीं समझोगी तो और कौन समझेगा, बताओ.

रोने का मन हुआ मेरा. दिल किया नौकरी छोड़ वहां भाग जाऊं जहां निधि मेरी प्रतीक्षा कर रही है. पर उस ने बताया ही नहीं कि कहां गई है. वसंत के मौसम में मेरी वसंत पता नहीं कहां चली गई? दिल ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया. कुछ पलों की जुदाई इतनी तकलीफदेह. अब समझ आ रहा है कि क्यों निधि मेरे कईकई दिनों बाद घर आने पर रूठ जाती थी. सच, अकेलापन बहुत उबाऊ होता है.

खिड़की के खुली रहने के बावजूद दम घुट रहा था. हवा ने भी जैसे मुंह मोड़ लिया हो. बाहर निकला. बागबानी की शौकीन निधि क्यारियों में एक से बढ़ कर एक पौधे लगाए हुए थी. इस पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था मेरा. मन वहां भी नहीं लगा.

आज फिर लखनऊ जाना था. मन नहीं कर रहा था. फिर भी जाना तो था ही. और फिर इस अकेलेपन से दूर भी जाना चाहता था.

चाय पीने की इच्छा हुई. किचेन में जाते ही निधि की याद आई और मैं लौट आया. आंसुओं को पोंछते हुए तैयार हुआ और निकल गया घर से. महसूस हुआ, पीठ पर किसी की आंखों का स्पर्श. पलट कर देखा, कोई न था.

लखनऊ जाने के बाद मेरा मन वापस अपने घर जाने के लिए बेचैन होने लगा. ऐसा लगता, निधि मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी.

वापस आ गया इलाहाबाद.

घर पहुंच कर जब देखा नहीं है निधि, मन झुंझलाया और निधि पर गुस्सा भी आया. क्या वह नहीं जानती कि नौकरी उसी के सुखसुविधा के लिए करता हूं. सोचता हूं कि उसे दुनिया की सारी खुशियां मिलें. मेरा मन भी करता कि उस के साथ बैठ सारी ज़िंदगी गुजार दूं. पर बैठने से सबकुछ नहीं मिल जाता- वह यह क्यों नहीं समझती है. मन खीझ आया अपनेआप पर. निकल गया घर से. निरुद्देश्य घूमता रहा सड़कों पर. बनारस जाने वाली बस दिखी. और मैं जा बैठा उसी में.

भूख से पेट में जलन उठी. प्यास भी महसूस हुई. 2 दिनों से भूखेप्यासे बेवजह चलते जा रहा था मैं.

एक जगह बस रुकी. पारले जी बिस्कुट के साथ एक कप चाय गटक लिया. दुख हो या सुख, पेट कब शांत रहा है.

गंगाघाट पर घंटों बैठा रहा. पानी को रौंदते हुए नाव, स्टीमर की आवाज़, पंक्षियों की चहचहाहट, मछलियों का बारबार उछल कर पानी की सतह पर आना, बच्चों की हंसी, प्रेमीप्रेमिकाओं की प्यारभरी बातें, प्यारेप्यारे जोड़ों की मदमस्त हंसी, बुजुर्ग की आस्थाभरी निगाह- उदासी के गर्त में मुझे धकेलने लगीं.

सब खुश है, सिवा मेरे. मेरे हिस्से दुख क्यों दे गई निधि? गंगाआरती की तैयारी शुरू हो गई. भीड़ का बढ़ता रेला और मेरा मन इस भीड़ से मुक्ति के लिए छटपटाने लगा. मन किया कि आरती देख लूं, पर आस्था-अनास्था के बीच त्रिशंकु जैसा मन डोलने लगा और मैं चुपचाप वहां से निकल गया.

मन किया एक बार निधि को फोन करूं, शायद वह मान जाए और आ जाए फिर से मेरी बांहों में. पौकेट में हाथ डाला, मोबाइल नहीं था. बेचैन मन ने सोचा, कहां छोड़ दिया मोबाइल. फिर मन ने ही समझाया कि शायद हड़बड़ी में छोड़ आया हूं घर पर.

ठंडी हवा का झोंका आया, चला गया. आसमान की ओर देखा- साफ और सफेद बादल तैर रहे थे. कुछेक तारे भी दिख रहे थे. चांद बादलों में छिप शरारत कर रहा था. यही चांद कई बार हमारे प्यार को देखा करता था जब खुले छत पर, आसमान के नीचे मैं और निधि एकदूसरे की बांहों में खोए रहते थे. निधि कभीकभी शरमा कर कहती, ‘धत, चांद मुझे देख रहा है.’

मैं हंसते हुए कहता, ‘चांद भी तुम्हारी तरह शरमा कर छिप रहा है.’

‘कहां हो गुड़िया?’ मैं यह कहता और हंसी आ जाती. जब भी उसे गुड़िया कहता, वह आंखों को गोलगोल घुमा कर कहती, ‘मैं निधि हूं, छोटी सी गुड़िया नहीं. जिसे जब चाहो, चाबी से चला लो. यहां मेरी मरजी चलती है, समझे.’

तुम्हारी मरजी ही तो चलती थी सोना. सोना कहने पर वह मूर्ति जैसी खड़ी हो जाती और कहती, ‘सोना में सजीव का लक्षण कहां से लाओगे.’

पलकों पर आंसू आ गए. क्या कभी लौट कर नहीं आएगी निधि…

रात एक ढाबे पर सो कर गुजारा. सुबह हुई. समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाऊं. आखिरकार घर जाने के लिए बस में बैठ गया. तभी ‘मूंगफली ले लो मूंगफली’ की आवाज़ आई. 9 या 10 साल के बच्चे की आवाज़ थी. मैं ने उस के चेहरे पर भोली मुसकान देखी. खरीद लिया एक पाव मूंगफली. निधि को बहुत पसंद है. जब भी हम सफ़र पर होते, वह जरूर खरीदती.

बस चलने लगी. कुछ यात्री ऊंघने लगे, कुछ बातों में मशगूल और कुछ खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने में. ऊब कर मैं भी बाहर की ओर देखने लगा. मन कहीं भी नहीं लग रहा था.

वापस घर ही जाने का मन हुआ. सोचा, वहां निधि की यादों के साथ रह लूंगा.

घर पहुंचा, लौन में लगे पौधे मुरझा रहे थे. निधि की याद इन को भी आती होगी. सुना था कि पेड़पौधे भी उस के लिए उदास होते हैं जो उन्हें प्यार से सींचते व उन की देखभाल करते हैं. प्यारभरी नजरों से उन्हें देख, मुख्य दरवाजे का ताला खोल अंदर गया. अंदर किचेन से बरतन की आवाज़ आ रही थी. देखा, निधि चाय बना रही थी. मैं पागलों की तरह उस से लिपट गया, “मेरी जान, कहां चली गई थीं, तुम जानती हो कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं रह सकता. एकएक पल एकएक बरस जैसा लग रहा था.”

निधि मुसकराई, “एहसास होना जरूरी है मेरी जान. किसी ने सच कहा है, ‘दूरियां प्यार को बढ़ाती हैं.’ मैं देख रही थी तुम्हारी बेचैनी, दिल कर रहा था, आ जाऊं तुम्हारे पास. पर कुछ देर और परेशान हाल देखने की चाहत के कारण मैं छिपी रही. तुम मुझे बहुत प्यार करते हो, राज. मैं तुम्हें छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी.”

“आज का दिन मेरे लिए खुशियोंभरा है. आज ही मेरा वसंत है और तुम मेरी बसंती,” मैं ने उसे चूमते हुए कहा.

मेरी पत्नी बेटी और बेटे में फर्क करती है, क्या करूं?

सवाल

मैं 40 साल का एक शादीशुदा मर्द हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. दोनों बेटियां हैं. इस बात से मेरी पत्नी बहुत ज्यादा परेशान रहती है और बेटा न होने की वजह मुझे समझती है. इस बात पर वह घर में कलह मचाए रखती है.

मैं ने उसे बहुत बार समझाया कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं है, पर वह मानती ही नहीं है. उस की इस बेवजह की नाराजगी से मैं परेशान रहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप की पत्नी की नाराजगी बेवजह नहीं है. दरअसल, सारा फसाद ही धर्म के दुकानदारों का खड़ा किया हुआ है कि मुक्तिमोक्ष वगैरह बेटे से ही मिलते हैं. एक औरत होने के नाते आप की पत्नी ने भी घरपरिवार और समाज में यह साफतौर पर देखा है कि औरत की जिंदगी कितनी मुश्किल होती है, उसे किसी तरह की आजादी और फैसला लेने का हक नहीं है.

जिन औरतों को बेटा नहीं होता, उन्हें ‘निपूती’ और भी न जाने क्याक्या कह कर ताने मारे जाते हैं, इसलिए वे बेटा ही चाहती हैं, फिर भले ही वह निकम्मा और आवारा निकल जाए.

आप के पास पत्नी को सम   झाते रहने के अलावा कोई रास्ता है भी नहीं. वह न माने तो कलह तो होगी ही. आप अपनी बेटियों को खूब पढ़ाएं और उन्हें काबिल बनाएं, यह न केवल पत्नी को, बल्कि पूरी दुनिया को सटीक जवाब होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

 सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ओलिंपिक में विनेश फोगाट : सरकार की चूक और देश में गुस्सा

पैरिस ओलिंपिक में सीधेसीधे पहलवान विनेश फोगाट के साथ नाइंसाफी हुई है, यह तो कोई बच्चा भी जानता है. अगर विनेश का वजन 100 ग्राम ज्यादा हो गया, तो उस की वजह क्या थी, इसे जाने बैगर ऐक्शन लेना गलत ही है न?

यह सारी दुनिया को मालूम है कि पानी की कमी की वजह से विनेश फोगाट को क्लिनिक में भरती कराया गया था. सवाल यह है कि किसी की जिंदगी बड़ी है या फिर खेल के नियम और कायदे? सचमुच, अगर वजन ज्यादा होता तो वे ओलिंपिक खेलों में क्वालिफाई ही नहीं कर पातीं. इनसानियत के नजरिए से ओलिंपिक संघ को इसे स्वयं संज्ञान में लेना चाहिए था, पर अगर नहीं लिया गया तो भारतीय ओलिंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी उषा ने याद दिलाया, मगर इस के बावजूद अगर विनेश फोगाट के साथ नाइंसाफी हुई है और उन्हें डिसक्वालिफाई कर दिया गया है तो भारत सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है.

यह सीधेसीधे भारत की बेइज्जती है. भारत की एक बेटी अगर कुश्ती के खेल में फाइनल में पहुंची है तो पूरे देश के जनजन की भावना को इज्जत करते हुए पैरिस ओलिंपिक में फाइनल में प्रदर्शन करने की इजाजत दी जानी चाहिए थी.

यह है मामला

पैरिस ओलिंपिक में महिलाओं की 50 किलोग्राम भारवर्ग कुश्ती इवैंट के फाइनल से पहले 100 ग्राम वजन ज्यादा पाए जाने के चलते बुधवार, 7 अगस्त, 2024 को विनेश फोगाट को अयोग्य घोषित कर दिया गया. इस की वजह से जहां विनेश पदक से वंचित रह गईं, वहीं 140 करोड़ भारतवासियों की उम्मीदों के साथ खिलवाड़ किया गया.

भारतीय अधिकारियों ने सौ ग्राम वजन की छूट देने के लिए गुहार लगाई, लेकिन नियम बदला नहीं जा सकता था. इस से विनेश का ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीतने का सुनहरा सफर एक झटके में खत्म हो गया.

विनेश फोगाट ने ओलिंपिक फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन कर इतिहास रचा था. मगर 7 अगस्त को सुबह वजन ज्यादा पाया. उन के शानदार प्रदर्शन से देश को लगा था कम से कम सिल्वर मैडल पक्का है, लेकिन अब वे बिना किसी मैडल के लौटेंगी.

विनेश फोगाट जब ओलिंपिक खेलगांव के एक पाली क्लिनिक में हुई घटनाओं के भावनात्मक और शारीरिक आघात से उबर रही थीं, तब देश की राजधानी नई दिल्ली में एक विवाद शुरू हो गया, जहां नेताओं ने इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार लोगों पर कटाक्ष किया. खेल और युवा मामलों के मंत्री मनसुख मांडविया ने लोकसभा में दिए बयान में विनेश फोगाट पर किए गए खर्च का जिक्र किया. इस की देशभर में निंदा हो रही है. दरअसल, कोई भी देश अपने खिलाड़ियों के प्रति इस तरह का बरताव नहीं करता कि यह बताया जाए कि हम ने फलां खिलाड़ी पर इतना इतना पैसा खर्च किया.

कुलमिला कर खेल मंत्री कहना चाहते हैं कि इतना खर्च करने के बाद भी क्या नतीजा आया? यह देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ी के ऊपर तंज ही तो है.

देश में दुख जज्बात का सैलाब

विनेश फोगाट ने ओलिंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन कर इतिहास रच दिया है, मगर जिस तरह उन्हें सिर्फ 100 ग्राम वजन, वह भी पानी की कमी होने के चलते अस्पताल में भरती होना पड़ा था, स्वाभाविक है वह सब ठीक भी हो सकता था.

दरअसल, 29 साल की विनेश फोगाट को खेलगांव में पाली क्लिनिक ले जाया गया, क्योंकि सुबह उन के शरीर में पानी की कमी हो गई थी. विनेश ने पहले ही मुकाबले में मौजूदा चैंपियन युई सुसाकी को हराया था. उन्हें फाइनल में अमेरिका की सारा एन. हिल्डब्रांट से खेलना था.

इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘विनेश फोगाट, आप चैंपियनों में चैंपियन हैं. आप भारत का गौरव हैं और हर भारतीय के लिए प्रेरणा हैं. आज की असफलता दुख देती है. काश, मैं शब्दों में उस निराशा को व्यक्त कर पाता, जो मैं अनुभव कर रहा हूं.’

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘विश्व विजेता पहलवानों को हरा कर फाइनल में पहुंचीं भारत की शान विनेश फोगाट को तकनीकी आधार पर अयोग्य घोषित किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. हमें पूरी उम्मीद है कि भारतीय ओलिंपिक संघ इस फैसले को मजबूती से चुनौती दे कर देश की बेटी को इंसाफ दिलाएगा.’

दूसरी ओर इस मामले के बाद विनेश फोगाट ने दुखी मन से कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा कर दी. इस बीच देश में जो गुस्सा और दिनेश फोगाट के प्रति जज्बात का उफान देखा जा रहा है, वह बेमिसाल है.

श्रीलंका से हारा इंडिया, 27 साल बाद गंवाई सीरीज, क्या रही वजह?

कल भारत और श्रीलंका का मैच काफी चर्चा में रहा. श्रीलंका ने तीसरे वनडे में भारत को 110 रन से करारी शिकस्त दे कर इतिहास रच दिया. चरिथ असलंका की कप्तानी में श्रीलंकाई टीम ने 3 मैचों की वनडे सीरीज 2-0 से अपने नाम कर ली. भारत ने हार का सामना किया.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)


1997 के बाद भारत के खिलाफ श्रीलंका की यह पहली वनडे सीरीज जीत है. ये मैच बुधवार को कोलंबो के आर. प्रेमदासा स्टेडियम में खेला गया. इस सीरीज के आखिरी मुकाबले में मेजबान टीम ने टौस जीत कर पहले बैटिंग करते हुए 248 रन का स्कोर बनाया. इस के जवाब में भारतीय टीम ने 138 रन बनाए. जीत श्रीलंका के नाम हुई और भारत हार गया.

दोनों टीम के खिलाड़ी दमदार थे, लेकिन जीत किसी एक की होनी थी,  मैच हार जाने के बाद अब सभी के दिमाग में एक ही बात चल रही है कि आखिर भारत मैच हारा क्यों? ऐसा क्यो हुआ? मैच हार जाने की क्या वजह रही थी?

बल्लेबाजों का खराब प्रदर्शन

भारतीय बल्लेबाजों ने पूरी सीरीज में सब को निराश करने वाला प्रर्दशन किया. रोहित शर्मा को छोड़ कर कोई भी बल्लेबाज बड़ी पारी नहीं खेल सका. विराट कोहली ने भी मैच में अच्छा नहीं खेला. उन का बल्ला भी नहीं चला. केवल 20 रन बना कर आउट हुए विराट कोहली. भारतीय टीम 26.1 ओवर में 138 रन बना कर आउट हो गई.

स्पिन के खिलाफ कमजोर रहा टीम का प्रदर्शन

भारतीय टीम को श्रीलंका के स्पिनरों का सामना करने में काफी मुश्किलें आईं. श्रीलंकाई स्पिनरों ने भारतीय बल्लेबाजों को बांधक र रखा और उन्हें खुल कर खेलने का मौका नहीं दिया.

नया कोच, गलत टीम सेलैक्शन

टीम इंडिया के नए हैड कोच गौतम गंभीर हैं. उन्होंने राहुल द्रविड़ की जगह ली है और श्रीलंका के खिलाफ हुई सीरीज से अपनी जिम्मेदारी संभाली, इसलिए उन का शायद टीम चुनने में तालमेल सही नहीं बैठा. हालांकि गौतम गंभीर को खेल का काफी अनुभव है.

जसप्रीत बुमराह पर निर्भरता भारी पड़ी

एक तरह से देखा जाए तो आज टीम तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गया है. वे जैसे ही रैस्ट मोशन पर चले जाते हैं कि टीम वहीं लड़खड़ाने लग जाती है, क्योंकि वनडे विश्व कप हो या फिर हाल में खत्म हुआ टी 20 वर्ल्ड कप, श्रीलंका के खिलाफ मैचों में टीम के तकरीबन 8 खिलाड़ियों ने गेंदबाजी की, लेकिन सब हलके पड़ गए.

रील और सैल्फी बनीं जान का खतरा, मियांबीवी को रेलवे ट्रैक पर सैल्फी लेना पड़ा भारी

डिजिटल दौर में आज फोन सब के लिए खास हो गया है. हाथ में कुछ नजर आए न आए, फोन जरूर नजर आता है, जिस से आप सोशल मीडिया पर आने के लिए क्याक्या कर बैठते हैं. आज के युवाओं को सोशल मीडिया पर लाइक और कमैंट्स पाने का गजब का चसका है, जिस के लिए वे बस रील्स और सैल्फी लेने का शौक रखते हैं. लेकिन यह शौक आज लोगों की जान का खतरा बन चुका है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)

सोशल मीडिया पर कई ऐसे हादसे हुए हैं जिन में लोगों की जान का खतरा सिर्फ रील्स और सैल्फी बने हैं. लोग सैल्फी और रील बनाने में इतने खो जाते हैं कि अपनी जान तक गंवा बैठते हैं.

ऐसा ही हाल में एक महाराष्ट्र का वीडियो वायरल हुआ है, जहां एक लड़की रील बनातेबनाते खाई में जा गिरी, जिस के बाद वह खून से लथपथ खाई से लाई गई.

रेलवे ट्रैक पर सैल्फी लेने के चक्कर में पतिपत्नी ने गंवाई जान

राजस्थान के पाली जिले से ऐसा ही एक रोंगटे खड़े कर देने वाला हादसा सामने आया. इस में रेलवे ट्रैक पर सैल्फी लेना भारी पड़ गया. बड़े ही अजीबोगरीब तरीके से ट्रेन के ब्रिज पर पतिपत्नी सेल्फी ले रहे थे. सैल्फी लेते हुए उन्हें यह भी होश नहीं रहा कि अचानक उन के सामने ट्रेन आ रही है, फिर उस के बाद जो हुआ, उस को देख कर सभी के होश उड़ गए.

दरअसल, ट्रेन को तेजी से अपनी तरफ आते हुए देख कर पतिपत्नी घबरा गए. इसी घबराहट में उन्होंने खौफनाक कदम उठा कर गहरी खाई में छलांग लगा दी. इस सीन को वहां मौजूद लोगों ने देखा, तो शोर मचाया. बाद में घायल हुए शख्स को खोज कर जोधपुर अस्पताल में भरती कराया गया.

महाराष्ट्र में रील बनातेबनाते लड़की खाई में गिरी

यह मामला महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर इलाके का है, जहां रील और सैल्फी के पागलपन में एक महिला कार बैक करते समय सीधे खाई में जा गिरी. 23 साल की श्वेता दीपक सुरवासे छत्रपति संभाजीनगर के हनुमाननगर की रहने वाली थी. वह शूलीभंजन दत्तधाम मंदिर में मोबाइल फोन पर रील बना रही थी. इस रील को बनाने के चक्‍कर में श्‍वेता ने अपनी जान खतरे में डाल दी.

दरअसल, श्वेता कार चला रही थी और गाड़ी रिवर्स गियर में थी. इस दौरान लड़की का पैर ब्रेक की जगह एक्सीलेटर पर चला गया. इस के बाद कार सीधे पहाड़ी से तकरीबन 300 फुट नीचे गिरी और इस लड़की की मौत हो गई.

सैल्फी लेते हुए गोमती नदी में गिरा था नाबालिग

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में सैल्फी के शौक में एक बच्चे ने अपनी जान गंवा दी थी. दोस्तों के साथ गोमती नदी में सैल्फी लेने के दौरान पैर फिसलने से 15 साल का देवराज रावत गहरे पानी में डूब गया था. हादसे के 4 घंटे बाद पुलिस ने गोताखोरों की मदद से उस की लाश बरामद की थी.

बता दें कि नदी में नहाने के बाद 4 लोग फोटो खिंचवाने लगे. इस दौरान देवराज अपने दोस्त के साथ पानी में खड़े हो कर सैल्फी लेने लगा. अचानक पैर फिसलने से उस का बैलेंस बिगड़ गया और वह गहरे पानी में डूब गया. जब तक उसे बचाने के कोई उपाय करते, तब तक वह पानी में गायब हो चुका था. शोर के बाद हादसे की सूचना पुलिस को दी गई. गोताखोरों की मदद से उस की लाश को रैस्क्यू किया गया.

बाइक चलाते हुए बना रहा था रील, हुआ दर्दनाक हादसा

चलती बाइक पर रील बनाने का ट्रैंड भी काफी चल रहा है. लोगों पर रील बनाने का भूत इस कदर सवार है कि वे अपनी जान जोखिम में डाल कर भी रील बना रहे हैं. लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसी कई घटनाओं के वीडियो वायरल हो हुए हैं, जिन में लोगों को रील बनाने के चक्कर में अपनी जान गंवाते देखा गया है. लेकिन फिर लोग इस से सबक नहीं ले रहे हैं और आज भी अपनी जान खतरे में डाल कर रील बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर ऐसा ही एक वीडियो सामने आया था, जहां 2 लड़कों को चलती बाइक पर रील बनाना महंगा पड़ गया.

यह घटना महाराष्ट्र के हाईवे की है. वायरल हो रहे वीडियो में देखा गया कि 2 लोग एक ही बाइक को तेज स्पीड पर चला रहे थे. बाइक के पीछे बैठा शख्स फ्रंट कैमरे से वीडियो बना रहा था और बाइक चला रहा शख्स भी राइडिंग से अपना ध्यान हटा कर कैमरे में देख रहा था. यहां तक तो ठीक था. दोनों मस्ती करते हुए बाइक पर बैठे रील बना रहे थे कि तभी इतने में बाइक हाईवे के किनारे लगी लोहे की रेलिंग से टकरा गई. बाइक सवार एक शख्स की मौके पर ही मौत हो गई और दूसरा घायल हो गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें