विकास था विवेक और विचार का एक प्रकाश पुंज. जैसे उस के विचार, वैसे ही उस के संस्कार. जब संस्कार वैसे हों, तो उस के बरताव में झलकना लाजिमी है.

विकास की दिनचर्या नपीतुली थी. भगवत प्रेमी, शुद्ध शाकाहार. रोजाना सुबह के जरूरी काम पूरे करने के बाद मंदिर में पूजाअर्चना करना.

विकास का मनोयोग उस के मनोभोग से हमेशा ऊपर रहा, इसीलिए संतमहात्माओं के सत्संग और उन के प्रवचन सुन कर उस ने अपने संयुक्त परिवार में एकांत ध्यानयोग को चुन लिया. अपनी शांति के साथसाथ पूरी दुनिया की शांति की कामना करने वाला 7 साल का बालक आज 17 साल का हो गया.

विकास बालिग होने में एक साल दूर था, पर वह अपनी कर्तव्यनिष्ठा के लिए मशहूर था. बाहरी दुनिया से सरोकार के बगैर भीतरी दुनिया में रमा हुआ बालक रोजाना सुबह घर से मंदिर तक की दूरी पैदल ही तय करता. रास्ते में झाड़ियों से जंगल में हलकीफुलकी उठने वाली हलचल भी उस के ध्यान को नहीं भेद पाती.

वह विकास इसलिए था, क्योंकि उस ने अपनी इंद्रियों को वश में कर के ब्रहृचर्य के विकास में सबकुछ लगा दिया था. उस की निगाहें पाक हो गई थीं, विवेक जाग चुका था और मन शांत और स्वच्छ.

पर यह क्या. आज मंदिर जाने के रास्ते मे विकास की नजर चकरा क्यों गई? उस ने रुक कर  झाड़ियों की ओर देखा. एक जोड़ा इश्क में डूबा एकदूसरे का दीदार कर रहा था. उस ने यह घटना अपनी जिंदगी में पहली बार देखी थी.

विकास ने अपनी आंखों को सम झाया, ‘चलो, मुझे उधर नहीं देखना चाहिए. यह मेरी नजरों का वहम भी हो सकता है,’ ऐसा विचार कर के उस ने अपने कदम मंदिर की ओर बढ़ा दिए.

अगले दिन सुबह जब विकास घर से मंदिर की ओर चला, तो बरबस उसी जगह पर  झाड़ियों के बीच जोड़े को फुसफुसाते हुए देखा. इस बार वह अपनी नजर को न समझा पाया, क्योंकि उस पर उस की बुद्धि हावी हो चुकी थी. उस ने खुद से कहा, ‘जरा, चल कर देखते हैं.’

विकास  झाड़ी के थोड़ा पास गया, तो देखा कि एक लड़का एक लड़की के साथ जिस्मानी संबंध बना रहा था.

विकास ने दोबारा खुद को सम झाया, ‘यह क्या देख रहा हूं?’ उस का मन चुप था, पर बुद्धि बोल रही थी, ‘यही तो दुनिया है. कलियुग का प्यार है, जिस में मजा है,’ उस की बुद्धि ने विचार को कुरेदा. उस ने जैसेतैसे अपने पैरों को मंदिर की ओर बढ़ाया.

जब विकास घर लौटा, तो उस का मन चंचल हो उठा. उस की बुद्धि ने उस के विचार को आह में बदल दिया.  झाडि़यों के सीन उस की आंखों के आगे आने लगे. उस की सारी इंद्रियां ढीली पड़ने लगीं. ब्रह्मचर्य बस में न रहा.

विकास सोचने लगा, ‘क्या है इस दुनिया में? मौजमस्ती ही तो है. वह भी तो इनसान था और मैं भी तो इनसान हूं, तो यह बंधन कैसा?’

अगले दिन विकास पक्का मन कर के मंदिर की ओर चला. इस बार उस ने खुद को रोका ही नहीं और उस ओर मोड़ लिया, जहां पिछले दिन वह जोड़ा जिस्मानी संबंध बनाने में रमा था.

वह जोड़ा आज भी वहीं था. एकाएक अपने सामने विकास को देख कर दोनों अलगअलग दिशा की ओर भागे.

तभी विकास ने दौड़ कर उस लड़की का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘यह जो तुम उस लड़के के साथ मस्ती कर रही हो, क्या मेरे साथ करोगी?’’

लड़की ने हंस कर जवाब दिया, ‘‘क्यों नहीं…’’

इस के बाद वह लड़की विकास के साथ जिस्मानी संबंध बनाने लगी. विकास को इस में काफी मजा आने लगा. अब वह हर रोज घर से मंदिर की ओर निकलता, पर मंदिर न जा कर झाड़ियों में उस लड़की के साथ जिस्मानी संबंध बनाता.

लड़की पेशे से धंधेवाली थी. उसे रोज पैसे चाहिए थे और विकास को मजा.

विकास ने उस लड़की के चक्कर में घर का काफी सारा पैसा बरबाद कर दिया. संयुक्त परिवार के दूसरे सदस्यों को यह बात पसंद नहीं आई, तो उन्होंने गुस्से में विकास के मातापिता को परिवार से अलग कर दिया और मातापिता ने विकास को अपने से.

आज विकास का सबकुछ लुट चुका था. अब वह सड़क पर आ चुका था. वह लड़की तो कई लोगों से जिस्मानी संबंध बनाने के चलते एड्स की बीमारी से मर गई और विकास अब एड्स का मरीज बन कर तड़प रहा है. लोग अब उसे विकास के नाम से नहीं, बल्कि विनाश के नाम से पुकारते हैं.

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