शिष्टाचार : रिकशा वाले ने सिखाया सबक

लखविंदर प्लेटफार्म से बड़ी जल्दबाजी में निकलने की फिराक में था. वह तेजतेज कदमों से सीढि़यां उतरने लगा. प्लेटफार्म की आखिरी 2 सीढ़ियों से वह कुछ जल्दी में उतर जाना चाहता था. उस की टैक्सी स्टेशन के बाहर खड़ी थी. पता नहीं, ड्राइवर रुके या न रुके, आजकल सब को जल्दी है.

बेतरतीबी में अचानक से लखविंदर 2 सीढ़ियां एकसाथ उतर गया था और गिरतेगिरते बचा था. प्लेटफार्म की आखिरी सीढ़ी पर कोई सोया हुआ था.

लखविंदर अचानक से उस पर बरस पड़ा, ‘‘तुम लोगों को सोने के लिए और कोई जगह नहीं मिलती है क्या… यह स्टेशन तुम्हारे बाप का है क्या… आखिर सीढ़ियों के पास कौन सोता है.

‘‘तुम लोग शुरू से ही जाहिल और गंवार किस्म के लोग रहे हो. तुम्हें पता नहीं है कि मेरी टैक्सी बाहर खड़ी है और मैं तुम्हारी वजह से ही अभी गिरतेगिरते बचा हूं.’’

वह नौजवान अब उठ कर बैठ गया था. मैलेकुचैले कपड़ों में वह कोई मजदूर मालूम पड़ता था. सिरहाने रखे कंबल को तह कर के वह एक ओर रखते हुए बोला, ‘‘बाबूजी, दिनभर रिकशा खींचता हूं. प्लेटफार्म के किनारे इसलिए नहीं सोता कि लोग दिनभर बैग टांग कर इस प्लेटफार्म से उस प्लेटफार्म पर भागते रहते हैं और वहां आपाधापी मची रहती है.

‘‘खैर, हम गरीबों को नींद भी कहां आ पाती है. एक ट्रेन जाती नहीं कि दूसरी आ जाती है. वैसे, कायदे से जब हम किसी से टकराते हैं या किसी को गलती से हमारा पैर लग जाता है, तो हम सामने वाले को छू कर प्रणाम करते हैं. इस को शायद मैनर्स कहा जाता है. हिंदी में शिष्टाचार, लेकिन आपाधापी में हम शिष्टाचार भूलने लगे हैं…’’

वह नौजवान थोड़ा रुका, फिर बोला, ‘‘सौरी सर, मैं आप के रास्ते में आकर प्लेटफार्म पर सो गया था. बाबूजी, एक बात बोलूं… आदमी को खाना कम मिले, चल जाता है, लेकिन नींद पूरी मिलनी चाहिए. लेकिन देखिए, हमारी जिंदगी में नींद भी ठीक से नहीं मिल पाती है.

‘‘बाबूजी, आप को कहीं लगी तो नहीं न? पैर में कुछ मोचवोच तो नहीं आ गई? लाइए, मैं आप के टखने दबा देता हूं,’’ वह लड़का लखविंदर के पैर पकड़ कर दबाने लगा.

सचमुच 2 सीढ़ियों से एकसाथ उतरने से लखविंदर की एड़ी में मोच आ गई थी.

‘‘नहीं, ठीक है. रहने दो,’’ लखविंदर जल्दी में था. उस की टैक्सी जो छूटने वाली थी.

लखविंदर टैक्सी में बैठा, तो उसे उस नौजवान की बातें याद आने लगीं. आदमी आखिर है क्या? वक्त के हाथों की कठपुतली. बातचीत के लिहाज से वह लड़का बिहारी लग रहा था. यहां चडीगढ़ में वह रिकशा खींचता होगा. स्टेशन के बाहर जहां वह सोया हुआ था, उस से थोड़ी दूरी पर एक रिकशा खड़ा था.

लखविंदर याद करने लगा अपने पुराने दिन. वह भी तो चंडीगढ़ छोड़ कर चेन्नई चला गया था, अपने काम के सिलसिले में. वहीं स्टेशन के बाहर बस डिपो के पास उस की भी तो कई रातें ऐसे ही बीती थीं.

लखविंदर के पास तो उन दिनों खाने तक के पैसे नहीं होते थे. कई दिनों तक तो कई बस कंडक्टरों और ड्राइवरों ने उसे खाना खिलाया था. तब उन लोगों ने तो ऐसा बरताव उस के साथ नहीं किया था. उस ने उस रिकशे वाले को कितना सुनाया.

आखिर कौन परदेश में परदेशी नहीं है. अपनी जगह कोई जानबूझ कर तो नहीं छोड़ता है. सब पेट के चलते ही तो देशनिकाला हो जाते हैं, नहीं तो किस को अपना मुल्क छोड़ने का जी करता है.

आज सब जल्दबाजी में हैं, एकदूसरे को कुचल कर आगे बढ़ने की फिराक में हैं. सब को जल्दी है, भले ही वे दूसरों का हक छीन लें. बंद एसी कार में भी लखविंदर को पसीना आने लगा. उस ने खिड़की खोल ली.

ड्राइवर ने कार धीमी कर दी, फिर बैक मिरर से देखते हुए लखविंदर से पूछा ‘‘सर, आप ठीक तो हैं न?’’

लखविंदर ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘सर, आप कार का शीशा बंद कर दीजिए. एसी काम नहीं करेगा.’’

लखविंदर फिर चुप रहा.

‘‘सर, क्या हुआ?’’

‘‘सुनो, कार को वापस स्टेशन की तरफ मोड़ लो,’’ लखविंदर ने कहा.

‘‘वापस क्यों सर?’’

‘‘बस, ऐसे ही.’’

‘‘सर, आप का घर अब मुश्किल से आधा किलोमीटर ही दूर है. रात बहुत हो गई है, सर. मेरे बच्चे मेरा घर पर इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘नहीं, तुम स्टेशन तक फिर से वापस चलो. एक जरूरी सामान… शायद अपना बैग मैं प्लेटफार्म 6 नंबर पर ही भूल गया हूं,’’ लखविंदर झूठ बोल गया.

‘‘ओह, लेकिन अब बैग मिलेगा नहीं, आप बेकार ही जा रहे हैं. स्टेशन पर छूटी हुई चीजें चोरी हो जाती हैं, कभी नहीं मिलतीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, फिर भी चलो.’’

‘‘भाड़ा डबल लगेगा. बोलो, आप को मंजूर है?’’ ड्राइवर ने कहा.

‘‘मंजूर है,’’ लखविंदर बोला.

रास्तेभर लखविंदर यही सोचता रहा कि किसी तरह वह लड़का उसे उसी जगह फिर से मिल जाए.

रात और खाली सड़क होने की वजह से कार हवा से बातें कर रही थी. आधेपौने घंटे बाद लखविंदर फिर से चंडीगढ़ के उसी स्टेशन पर था.

लखविंदर की बेचैनी बहुत बढ़ गई थी. उसे पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था कि वह नौजवान, जिसे उस ने अपनी गलती की वजह से बहुत बुराभला कहा था, वह उस प्लेटफार्म पर नहीं मिलेगा.

लखविंदर 6 नंबर प्लेटफार्म पर था, लेकिन सचमुच में लखविंदर ने जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही हुआ. लड़का उस प्लेटफार्म पर नहीं था, लेकिन लखविंदर भी बहुत ही आत्मविश्वासी था. वह बारीबारी से सभी प्लेटफार्म को अच्छी तरह चैक कर आया था, लेकिन लड़का नदारद था.

लखविंदर का दिल बैठ गया. वह वापस स्टेशन से बाहर निकलने को हुआ कि तभी रास्ते में उसी शक्लसूरत का एक शख्स उस से जा टकराया. यह वही लड़का था, जो 6 नंबर प्लेटफार्म के नीचे सब से आखिरी वाली सीढ़ी पर सोया था.

लखविंदर को संकोच हुआ. पता नहीं, यह वही शख्स है या कोई और है. इन कुलियों और रिकशे वाले की शक्ल भी तो एकजैसी दिखती हैं.

अपनी झिझिक को परे धकेलते हुए लखविंदर बोला, ‘‘भाई, तुम वही रिकशे वाले हो न, जिस को मेरे टखने से चोट लगी थी?’’

‘‘जी नहीं, मैं तो अभीअभी आया हूं,’’ वह नौजवान साफसाफ झूठ बोल गया. दरअसल, वह रिकशे वाला लखविंदर का इम्तिहान ले रहा था.

‘‘ओह, माफ करना भाई. आप की तरह का ही एक नौजवान रिकशे वाला था, जिसे पता नहीं मैं घंटाभर पहले बहुत भलाबुरा कह आया था. बहुत अफसोस है यार मुझे इस बात का. एक तो मैं उस के ऊपर चढ़ा और उस को ही बहुत भलाबुरा भी कह दिया.

‘‘बेचारे उस लड़के की कोई गलती नहीं थी. मैं ही शिष्टाचार भूल गया था. आप भी तो रिकशा चलाते हैं न… क्या आप जानते हैं उसे, जो 6 नंबर प्लेटफार्म पर सोता है?’’

‘‘कौन भीखू, जो 6 नंबर प्लेटफार्म पर रोज रात को सोता है? वही न? हां, मैं उसे जानता हूं.’’

‘‘आप का कुछ चुराया है उस ने क्या?’’ उस लड़के ने पूछा.

‘‘अरे नहीं भाई. वह तो बड़ा सज्जन आदमी है. अकड़ू तो मैं हूं. पता नहीं, उसे मैं गुस्से में क्याक्या कह गया.’’

‘‘ठीक है, मिलेगा तो कह दूंगा. उस को कुछ कहना है क्या? उस का नाम भीखू ही है.’’

‘‘हां, वही लड़का… भीखू.’’

‘‘भाई, इस खत में मैं ने अपना सब हाल लिख दिया है. भीखू मिले तो उसे दे देना,’’ लखविंदर ने कहा.

लखविंदर के दिमाग में इस बात का एहसास पहले से था. उस ने कार में ही अपने औफिस के पैड पर एक खत उस लड़के के नाम लिख दिया था :

प्रिय भाई,

पता नहीं, यह कैसा संयोग है कि एक अनपढ़ आदमी ने मुझ जैसे पढ़ेलिखे आदमी का घमंड चकनाचूर कर दिया है. आप जहां सोए थे, वैसी जगह पर मैं ने भी अपने गरीबी भरे दिन बिताए थे.

गुरबत के दिन मैं ने भी देखे हैं. मेरे घर में भी कईकई दिनों तक  चूल्हा नहीं जला था, लेकिन मैं अपने पुराने दिन भूल गया.

आज जब मैं आप के ऊपर गिरा, तो कायदे से मुझे आप से माफी मांगनी चाहिए थी, लेकिन यह काम भी आप ही कर गए.

आप के कहे अलफाज आज अभी मेरे दिल में कांच की किरचों की तरह चुभ रहे हैं. मैं चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक भी नहीं हूं.

खैर, आज मैं अपनी ही नजरों में जितना जलील हुआ हूं कि आप को बता नहीं सकता. हालांकि, माफी मांग लेने भर से मेरा काम खत्म नहीं हो जाता, फिर भी मैं अपने बरताव पर बहुत शर्मिंदा हूं.

फिर भी मुझे अपना बड़ा भाई समझ कर माफ कर देना. मैं अभी चंडीगढ़ में ही हूं. अगर आप को यह खत मिलता है, तो इस में मैं अपना पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर लिख कर दे रहा हूं. आप को कभी भी किसी मदद की जरूरत हो, तो बेहिचक हो कर इस पते पर या अमुक दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क करें.

मैं वैसे तो चेन्नई में काम करता हूं, लेकिन मेरे घर पर मेरे अलावा मेरे मातापिता, 2 बड़े भाई, मेरी पत्नी और बच्चे सभी लोग रहते हैं. आप को कभी काम हो या किसी चीज की जरूरत हो, तो बेझिझक हो कर मिल लेना या दिए गए मोबाइल नंबर पर फोन कर लेना.

आप का भाई लखविंदर सिंह उस लड़के ने खत अपने हाथ में रख लिया, फिर वह बोला, ‘‘अगर भीखू नहीं मिला तो…?’’

‘‘भाई, उस के पते पर डाक में डाल देना, वरना मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा या ऐसा करो कि उस का पता भी इस छोटी डायरी में लिख दो.’’

लखविंदर ने जेब से एक छोटी डायरी निकाल कर दी और उस से कहा, ‘‘इस में उस का पता लिख दो भाई.’’

उस लड़के ने डायरी हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘पता तो मैं आप को लिख कर दे रहा हूं, लेकिन उसे आप घर जा कर ही पढ़ना. ठीक है?’’

लखविंदर ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

लखविंदर स्टेशन से बाहर निकला, तो देखा कि कार का ड्राइवर कार में ही ऊंघ रहा था.

लखविंदर ने कार में बैठते ही ड्राइवर से चलने को कहा .

ड्राइवर ने पूछा, ‘‘आप का छूटा हुआ बैग प्लेटफार्म पर मिला क्या?’’

‘‘नहीं,’’ लखविंदर ने कहा.

‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था कि बैग नहीं मिलेगा. बेकार ही

हम वापस आए. इतने समय में मैं घर पहुंच गया होता.’’

लखविंदर को भी अफसोस हो रहा था कि उस के चक्कर में बेचारा ड्राइवर भी रात को परेशान हुआ.

‘‘भाई, सौरी यार. तुम्हें इतनी रात को परेशान किया.’’

‘‘अरे, कोई बात नहीं सरदारजी.’’

रास्ते में लखविंदर सोचता जा रहा था कि वह बेकार ही स्टेशन गया. उस लड़के से मुलाकात भी नहीं हो पाई.

लखविंदर को सिगरेट पीने की तलब हुई. उस ने जेब टटोल कर सिगरेट का पैकेट ढूंढ़ना शुरू किया. सिगरेट का पैकेट तो नहीं मिला, लेकिन वह डायरी मिली, जिस में उस ने भीखू का पता उस लड़के को नोट करने को दिया था. उस में पता तो नहीं था, अलबत्ता एक खत जरूर था :

बड़े भैया,

मैं आप को देखते ही पहचान गया था. आप का चेहरा देख कर मुझे लगा कि आप मुझे ही ढूंढ़ रहे हैं, लेकिन मैं डर गया था कि कहीं आप मुझे और भी भलाबुरा न कहने लगें. लिहाजा, मैं आप को अपना परिचय नहीं दे पाया.

दरअसल, मैं वही लड़का हूं, जो 6 नंबर प्लेटफार्म पर सोता हूं. मेरा ही नाम भीखू है, जो अभीअभी आप से मिला था. दूसरी बात यह भी थी कि मैं आप को अपने सामने शर्मिंदा होते नहीं देख सकता था. इसी संकोच के चलते मैं आप से कुछ न कह सका. मैं आप को छोटा नहीं दिखाना चाहता था, इसीलिए अपना परिचय छिपाया.

खैर, कभी इस लायक हुआ तो आप से मिलने आप के घर या दफ्तर जरूर आऊंगा.

आप का छोटा भाई भीखू.

खत पढ़ कर लखविंदर की आंखों से आंसू बहने लगे. सचमुच भीखू के अंदर भरे शिष्टाचार के सामने लखविंदर बहुत छोटा था.

थैंक यू मैट्रो : क्या था मनोलिसा के फोन का राज

विकास दलित था. उस का नाम विकास रखने पर गांव के दबंगों ने उस के परिवार को बहुत बड़ी सजा दी. विकास दिल्ली आ गया और यहां एक शबनम मौसी ने उसे पाला. एक दिन विकास को मैट्रो में एक खूबसूरत लड़की मिली, जो ऐसा काम करती थी, जिसे सुन कर विकास हैरान रह गया.

रोजाना सुबह औफिस के लिए मैट्रो पकड़ना और देर शाम को वापस लौटना, यही विकास की दिनचर्या थी. वह पिछले 4 साल से नोएडा में नौकरी कर रहा था. यह तो अच्छा है कि उस के औफिस से हौजखास ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए मैट्रो स्टेशन से उतर कर आटोरिकशा पकड़ कर औफिस पहुंचने में उसे बहुत ज्यादा समय नहीं लगता है.

मैट्रो में लोगों की भीड़ तो बहुत होती है, पर कोई किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करता, हालचाल भी नहीं पूछता. हर कोई अपने में ही बिजी है और शायद मस्त भी है.

ज्यादातर लोग तो अपने मोबाइल में ही बिजी रहते हैं. किसी ने कानों पर ईयरफोन लगा रखा है, तो कोई किसी से मोबाइल पर बात कर रहा है. यह सब देख कर विकास को अपने गांव की याद आ गई.

विकास एक दलित परिवार में पैदा हुआ था. उस के बाबूजी बड़े लोगों के खेतों में मजदूरी करते थे और बदले में मिले पैसों से उन का घर चलता था, पर फिर भी बाबूजी और अम्मां यही चाहते थे कि विकास गांव से निकल कर शहर जा कर कुछ पढ़ाई करे और अपनी जिंदगी अच्छी तरह से बसर करे, पर उस समय 10 साल के विकास को कुछ पता नहीं था कि पढ़ाई की अहमियत क्या होती है या पढ़ाई करने के लिए क्या करना पड़ता है.

हां, इतना जरूर याद है कि गांव के लोग अकसर उस से उस के नाम का मतलब पूछा करते थे, जिस के बदले में विकास यही कहता कि ‘बाबूजी नाम धरे हैं, मुझे नहीं पता मतलबवतलब’.

पर, उस दिन गांव के एक बड़े आदमी का बेटा, जो शहर से पढ़ कर आया था, बाबूजी को गालियां देने लगा और जब बाबूजी बाहर निकले, तो उस ने पूछा कि उन्होंने अपने लड़के का नाम विकास क्यों रखा है?

बाबूजी हाथ जोड़ते हुए बोले थे, ‘‘मालिक, जब इस की मां पेट से थी, तब नेता लोग आ कर ‘विकासविकास’ चिल्लाते थे. यह नाम अच्छा लगा तो हम ने इस का नाम विकास रख दिया.’’

बाबूजी की इस बात पर उस लड़के ने अपने साथियों के साथ उन की पिटाई कर दी. विकास की अम्मां बहुत चिल्लाईं, पर उन सब ने बाबूजी को बहुत मारा था.

बाद में विकास ने जाना कि वे लोग ऊंची जाति के थे, जो एक दलित के द्वारा ऊंची जाति जैसा नाम रख लिए जाने से नाराज थे.

उस दिन के बाद से गांव में किसी ने विकास को विकास नाम से नहीं पुकारा था.

विकास को अम्मां की याद भी है. उस दिन अम्मां जंगलपानी के लिए खेत की तरफ गई थीं, पर फिर कभी वापस नहीं आई थीं.

लोगों ने बताया कि कुछ लोगों ने विकास की अम्मां के साथ गलत काम किया है. उस के बाद विकास की अम्मां कहां गई थीं, किसी को पता नहीं चला. शायद उन्होंने खुदकुशी कर ली थी.

अम्मां के साथ हुए गलत काम और उन की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने के लिए विकास के पिता थाने गए थे, पर रिपोर्ट नहीं लिखी गई. अलबत्ता, वापस आने पर गांव के दबंगों ने विकास के पिता को तब तक पीटा था, जब तक कि वे मर नहीं गए.

विकास ने यह सब अपनी आंखों से देखा था और वह इतना डर गया था कि तुरंत ही गांव से शहर जाने वाली सड़क पर नंगे पैर भागने लगा था. सिर पर सूरज चमक रहा था, पर वह तब तक भागा, जब तक भाग सकता था और फिर बेहोश हो कर सड़क पर गिर गया था.

जब विकास को होश आया, तब वह एक घर में था. एक ऐसा घर, जहां पर अजीब से दिखने वाले लोग थे. न वे मर्द जैसे दिख रहे थे और न ही औरतों की तरह दिख रहे थे. वहां की मुखिया को लोग ‘शबनम मौसी’ कह कर बुलाते थे और उन की बहुत इज्जत करते थे.

विकास को उन्होंने अपने पास रखा, पालापोसा और पढ़ायालिखाया. इस लायक बनाया कि वह बड़े शहर में जा कर नौकरी कर सके और अपनी अम्मां और बाबूजी का सपना पूरा कर सके.

विकास आज भी शबनम मौसी को फोन करता है और उन से अपना दुखदर्द बांटता है.

मैट्रो में कभीकभी ऐसा हो जाता है कि रोजाना चढ़ने वाले लोग आप को और आप उन को पहचानने लगते हैं. भले ही एकदूसरे से बोलचाल न हो, पर एक अनकहा रिश्ता तो कायम हो ही जाता है.

पिछले एक हफ्ते से विकास देख रहा था कि एक खूबसूरत सी मौडर्न लड़की उसे अकसर मैट्रो में दिख जाती है, जो एक जगह से चढ़ती तो है, पर उस के उतरने का स्टेशन कभी फिक्स नहीं रहता. कभी वह कहीं उतरती है, तो कभी कहीं और.

आज भी वह लड़की मैट्रो के अंदर आई और तीर की तरह विकास के पास पहुंच गई. दोनों चुपचाप खड़े रहे. अगले स्टेशन पर जब बैठने की जगह बनी, तो विकास ने इशारे से उसे बैठ जाने को कहा.

‘‘थैंक यू वैरी मच,’’ उस लड़की ने बैठते हुए कहा और कुछ देर बाद अपने नाश्ते का टिफिन विकास की तरफ बढ़ा दिया. उस में कुछ कटलेट और सौस था.

विकास ने भी बेतकल्लुफी से एक टुकड़ा उठा लिया. हालांकि वह नाश्ता कर के आया था, पर लड़की के उस की तरफ टिफिन बढ़ाने में इतना प्यार झलक रहा था कि वह मना न कर सका था.

‘‘बहुत टैस्टी है. थैंक यू,’’ विकास बोला, तो बदले में वह लड़की सिर्फ मुसकरा भर दी.

इस के बाद विकास ने लड़की के चेहरे पर एक भरपूर नजर डाली. कितनी खूबसूरत थी वह. गोरा रंग, होंठ थोड़े से मोटे, पर गुलाबी चमक लिए हुए और सुराहीदार गरदन, जिस पर बाईं तरफ एक काला तिल था, जो उस की गरदन को और खूबसूरत बना रहा था.

तभी लड़की का मोबाइल बजा. वह शांत हो कर किसी से बात करने लगी और फिर अगले स्टेशन पर ही वह लड़की उतर गई.

विकास को लगा कि जाते समय वह लड़की मुसकराएगी या कुछ बोलेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था, बल्कि लड़की जब उतरी तो उस के चेहरे पर हलका सा तनाव था और जबड़े भी भिंचे हुए थे.

अगले 2 दिन तक वह लड़की मैट्रो में नजर नहीं आई. विकास को उस की कमी तो नहीं खल रही थी, पर अगर उस लड़की का नाम और मोबाइल नंबर उसे पता होता, तो फोन कर के उस का हालचाल ही पूछ लेता.

एक दिन की बात है, जब प्लेटफार्म पर ही वह लड़की विकास को दिख गई. विकास उस से बातचीत करने को बेताब था, वह लपक कर उस के पास पहुंच गया.

‘‘हैलो… तुम कहां थीं इतने दिन? बीमार थीं क्या?’’ विकास एकसाथ सबकुछ जान लेना चाहता था, पर इतने सारे सवालों के बदले में लड़की ने सिर्फ एक हलकी सी मुसकराहट के साथ उसे बताया कि वह किसी काम में बिजी थी.

‘‘क्या काम करती हो तुम? कहां है तुम्हारा औफिस और तुम ने अभी तक अपना नाम क्यों नहीं बताया?’’ विकास ने सब पूछ डाला, जिस के बदले में लड़की ने सिर्फ इतना जवाब दिया, ‘‘मेरा नाम मोनालिसा है और मेरा औफिस… यों सम?ा लो कि मैं औनलाइन काम करती हूं.’’

अब दोनों की मुलाकात हुए तकरीबन 2 महीने हो गए थे और इन 2 महीनों में विकास समझ चुका था कि उसे मोनालिसा से प्यार है, पर वह अपने बारे में कुछ और बातें साझ नहीं कर रही है, जैसे वह कहां काम करती है? कहां रहती है? उस के मांबाप कहां रहते हैं? आदि.

पर, अब विकास इन सवालों के जवाब अपने ढंग से जान कर रहेगा और उस ने यही किया. हर दिन की तरह विकास मोनालिसा से आज भी मैट्रो में मिला. मोनालिसा ने उसे नाश्ता खिलाया.

कुछ देर बाद जब मोनालिसा के मोबाइल पर फोन आया, तब वह मैट्रो से उतर कर जाने लगी.

विकास ने आज पहले से ही ठान रखा था कि वह मोनालिसा का औफिस देख कर रहेगा. वह मोनालिसा की नजर बचा कर उस का पीछा करने लगा.

मोनालिसा मैट्रो स्टेशन से बाहर निकल कर एक छाया वाली जगह पर रुक गई और फिर किसी से मोबाइल पर बात करने लगी. तकरीबन 20 मिनट के बाद वहां पर एक काले रंग की शानदार कार रुकी और मोनालिसा उस में बैठ गई.

इतनी शानदार कार में मोनालिसा को बैठते देख विकास को भी थोड़ा अचरज लगा, पर उस ने सोचा कि हो सकता है कि औफिस के किसी साथी की कार में मोनालिसा ने लिफ्ट मांग ली हो, पर अगले दिन जब मोनालिसा मैट्रो से किसी और स्टेशन पर उतर गई, तब विकास को थोड़ा शक हुआ कि किसी भी इनसान का औफिस किसी एक तय जगह पर होता है, पर मोनालिसा तो अलगअलग जगह पर उतरती है. यह कैसा काम? यह कैसा औफिस?

विकास आज भी उस का पीछा कर रहा था. पर, आज मोनालिसा किसी शानदार कार में नहीं, बल्कि एक टैक्सी में बैठ कर कहीं गई.

विकास की बेचैनी अब और भी बढ़ गई थी. उस ने तुरंत ही मोनालिसा को फोन लगाया, पर मोनालिसा ने फोन काट दिया. विकास महसूस कर रहा था कि उसे प्यार हो गया है और अब वह जल्द से जल्द शादी के बंधन में बंध जाना चाहता था, पर मोनालिसा और उस का राज गहराता जा रहा था.

रात के 9 बजे विकास ने एक बार फिर मोनालिसा को फोन लगाया, तो मोनालिसा ने उसे लड़खड़ाती आवाज में बताया कि उस ने इस समय एक महंगी वाली शराब पी हुई है, इसलिए वह उस से बात नहीं कर सकती. वह कल मैट्रो में उस से बात करेगी.

मोनालिसा शराब पीती है… पर, शराब तो आजकल सभी मौडर्न लड़कियां पीती हैं और वैसे भी विकास शराब को बुरा नहीं समझता था.

अगली सुबह जब मोनालिसा विकास से मिली, तो उस की आंखें गुलाबी हो रही थीं. यह शायद थकान के चलते था या नशे का खुमार अभी भी बाकी था.

आज वे दोनों ही एकसाथ एक ही प्लेटफार्म पर उतर गए और खाली पड़ी बैंच पर जा कर बात करने लगे.

थोड़ी देर की बातचीत के बाद मोनालिसा का कौफी पीने का मन करने लगा, इसलिए वे दोनों एक रैस्टोरैंट में गए, जहां पर कोने में खाली पड़ी टेबल पर बैठ गए.

विकास ने सीधेसीधे सवाल दागा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम शादी करोगी मुझ से?’’

मोनालिसा विकास का यह सवाल सुन कर सन्न रह गई, पर फिर उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘काश, मैं शादी कर सकती.’’

‘‘क्यों नहीं कर सकती? ’’ विकास ने पूछा.

‘‘तुम अभी मेरे बारे में कुछ नहीं जानते विकास, क्योंकि अगर जानते होते तो मुझे शादी का प्रस्ताव कभी न देते.’’

‘‘तो बताओ न अपने बारे में… कुछ बताती क्यों नहीं?’’ विकास ने तकरीबन चीखते हुए कहा.

मोनालिसा ने विकास की आंखों में देखते हुए बताना शुरू किया, ‘‘तो जान लो विकास कि मैं अपनी जिंदगी चलाने के लिए जिस्म का धंधा करती हूं… और इतना ही नहीं, मुझे एड्स भी है… बोलो, अब शादी करोगे मुझ से?’’

मोनालिसा का यह जवाब सुन कर विकास के हाथपैर सुन्न से होने लगे, उस की जबान सूख गई. इतनी खूबसूरत लड़की धंधेवाली कैसे हो सकती है? और उस के बाद यह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी… कैसे हुआ यह सब?

‘‘क्या हुआ? मेरे बारे में जान कर तुम चुप क्यों हो गए? शादी करने का नशा कहां काफूर हो गया?’’ मोनालिसा ताना मारने वाले लहजे में कह रही थी.

विकास चुप रहा और तकरीबन 2 मिनट की चुप्पी के बाद उस ने बोलना शुरू किया, ‘‘पर, रोजीरोटी के लिए और भी बहुतकुछ किया जा सकता था. तुम ने जिस्म बेचना क्यों शुरू कर दिया?’’

इस सवाल के बदले मोनालिसा ने विकास को बताया कि उस के बौयफ्रैंड ने मोनालिसा के साथ रेप किया था, जिस से उसे एड्स हो गया था. उस के बाद जिंदगी में ज्यादा कुछ बाकी नहीं रह गया था, बस वह मर्दों से बदला लेना चाहती थी और उसे यही तरीका समझ आया.

मोनालिसा की बात सुन कर विकास ने बोलना शुरू किया, ‘‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम शराब पीती हो या तुम्हें किसी मजबूरी के चलते अपना जिस्म बेचना पड़ रहा है और तुम अलगअलग लोगों के साथ सोती हो. तुम ने अपने बारे में यह सब बता कर ईमानदारी दिखाई है.

‘‘अगर तुम न बताती तो मैं कभी नहीं जान पाता. और फिर आजकल शहर तो शहर, गांव में भी सैक्स संबंध बनाना आम होता जा रहा है. मुझ प्यार है तुम से और सच्चा प्यार यह सब नहीं देखता.’’

‘‘पर, तुम ने मेरी बीमारी के बारे में नहीं सुना क्या?’’ मोनालिसा बोली.

‘‘सुना भी और समझ भी कि तुम किसी और की गलती के चलते इस बीमारी से संक्रमित हो गई हो, पर लगता है कि तुम ने मेरे प्यार को पहचाना नहीं. सच्चा प्यार सिर्फ एकदूसरे के जिस्म को भोगते रहने का नाम नहीं है, बल्कि प्यार तो आशिक की कुरबानी मांगता है. अगर तुम से शादी करने के बाद मुझे एड्स हो भी जाता है तो क्या हुआ… हम साथ जी न सकेंगे तो कोई बात नहीं, एकसाथ मर तो सकेंगे.’’

विकास मानो आगे भी बहुतकुछ कहना चाह रहा था, पर उस की इतनी बातें मोनालिसा को यह यकीन दिलाने के लिए काफी थीं कि विकास उस से बहुत प्यार करता है.

मोनालिसा की जिंदगी में बहुत से ऐसे मर्द आ चुके थे, जिन्होंने उस से शादी का वादा तो किया था, पर उस की बीमारी के बारे में जान कर उस से दूर हो गए थे.

विकास और मोनालिसा की पिछली जिंदगी दुख से भरी हुई थी, जिस में कड़वापन तो था, पर प्यार के लिए जगह नही थी. आज दोनों के खालीपन को प्यार ने लबालब भर दिया था.

मोनालिसा जानती थी कि भायानक बीमारी के चलते वह ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह पाएगी. एक दिन वह गुमनामी में मर जाएगी, पर अब मरने से पहले वह जीभर कर जी लेना चाहती थी अपने प्यार विकास के साथ.

मोनालिसा ने विकास पर नजर दौड़ाई, जो शबनम मौसी को फोन लगा कर अपने प्यार के बारे में बता रहा था.

एक मैट्रो मोनालिसा के सामने से तेजी से गुजर रही थी और यह देख उस के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, ‘‘थैंक यू मैट्रो.’’

लड़कों को गर्लफ्रैंड से भी ज्यादा प्यारी अपनी बाइक्स, ये सितारे भी हैं दीवाने

भारत में बाइक लवर्स बहुत है. बौलीवुड में भी बाइक के दीवाने एक्टर है. इनमें कुछ क्रिकेटर्स भी है जो बाइक चलाने का शौक रखते है. ऐसा हाल ही में हुआ जब बौलीवुड के किंग खान ने एक्टर जौन अब्राहम को बाइक गिफ्ट की. भारत में एक से बढ़कर एक शानदार बाइक है. जिनकी कीमत और फीचर्स बहुत ही शानदार है.

 

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किंग खान कहे जाने वाले शाहरुख खान की फिल्म पठान की सक्सेस पार्टी रखी गई थी. इस खास मौके पर पठान के सारे कास्ट और क्रू मेंबर पहुंचे थे. हालांकि फिल्म के विलेन जौन ने इस पार्टी से दूरी बनाकर रखी थी और इस वजह से किंग खान ने उन्हें आभार करते हुए एक सुपर बाइक तोहफे में दी थीं और जौन ने हाल ही में इसके बारे में एक इंटरव्यू में बताया. बता दें, कि शाहरुख खान ने 17 लाख की सुजुकी हायाबुसा बाइक गिफ्ट की. जो कि एक सुपर बाइक है. इसके फीचर भी कमाल के है. भारत में इस बाइक को चाहने वाले बहुत है. इस लिस्ट में और भी ऐसे अन्य बाइक्स है.

Hero Motors

देश-दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली मोटरसाइकल हीरो स्प्लेंडर प्लस टौप सेलिंग मोटरसाइकल है. इस बाइक का खरीदने वाले 2,50,786 है. स्प्लेंडर सीरीज मोटरसाइकल की एक्स शोरूम प्राइस 75,141 रुपये से शुरू होती है.

Honda Shine

पौपुलर कम्यूटर बाइक होंडा शाइन भी सबकी पसंद की जाने वाली बाइक है. जो बेस्ट सेलिंग बाइक रही है. जिसे 1,55,943 लोगों ने खरीदा. इसके फीचर भा काफी अच्छे है.

Bajaj Pulsar

बजाज पल्सर सीरीज बाइक्स भी सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक में से एक है और इसे 1,30,403 लोगों ने खरीदा है.

Bajaj Platina

बजाज ओटो की सस्ती और अच्छी प्लैटिना सीरीज बाइक्स को 60,607 लोगों ने खरीदा है. इसकी कीमत की शुरुआत 60,000 रुपए से होती है.

इन बाइक के अलावा क्रिकेट के जानें मानें खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी भी बाइक लवर है. धोनी गैराज में सबसे महंगी बाइक कौन्फेडरेट हेलकैट एक्स132 है. जिसकी कीमत 47 लाख रुपये है. इसके अलावा महंगी बाइक्स में Ducati 1098 जिसकी कीमत 35 लाख रुपये है. Kawasaki Ninja H2 की कीमत 36 लाख रुपये है, Harley-Davidson Fat Boy की कीमत 22 लाख रुपये है और Suzuki Hayabusa  की कीमत 16.50 लाख रुपये है.

फेसबुक के जरिए कालेज के लड़के से दोस्ती की, फिर हमने सैक्स किया, अब मैं क्या करूं?

सवाल

मैंने फेसबुक के जरिए अपने ही कालेज के 3rd ईयर के एक स्टूडेंट से दोस्ती की. फिर वह मुझे रोज विश करने लगा. कुछ समय बाद हम कालेज में भी मिलने लगे और हमारे बीच रिलेशन बन गया, मैंने उसके साथ सैक्स किया. लेकिन उस के बाद उस की दिलचस्पी मुझ में कम दिखने लगी. मैं उसे मिलने को कहूं तो पढ़ाई का बहाना बनाता है. फोन करूं तो उठाता नहीं. खुद मिलने जाऊं तो भी ज्यादा देर बात नहीं करता, जबकि मैं सब लुटा कर भी उसे नहीं पा सकी, क्या करूं समझ नहीं आता?

जवाब

आप का प्यार शुरू से ही एकतरफा रहा है, जिसे आप प्यार समझ रही हैं वह तो सिर्फ वासना है. आप ने अपनी तरफ से पहल की क्योंकि आप के मन में उस के प्रति आकर्षण था लेकिन उसे समझ नहीं पाईं कि उस के मन में क्या है. जाहिर है उस के मन में आप के शरीर के प्रति आकर्षण था जिसे आप के एकतरफा प्यार ने हवा दी. अब इसी कारण वह आप से दूर जाता रहता है. अब भी देर नहीं हुई है, संभल जाइए. अपना मन पढ़ाई में लगाइए व खुद को इस प्रेम से अलग कर लीजिए. अगर फिर भी बात न बने तो दूसरा साथी ढूंढ़िए. हां, भूल कर भी तनाव में न आएं व खुदकुशी आदि की तरफ न बढ़ें. कैरियर व कंपीटिशन की तरफ रुख करेंगी. इस ओर से ध्यान हटेगा. सुनहरा कैरियर बनेगा तो उस जैसे हजारों पलकें बिछाए खड़े मिलेंगे.

अविनाश साबले की दौड़ कर स्कूल जाने से ले कर पैरिस पहुंचने की दिलचस्प कहानी

हाल ही में हुए पैरिस ओलिंपिक, 2024 खेलों में भारत ने कुल 6 मैडल जीते, पर कुछ इवैंट्स में भारतीय खिलाड़ियों ने इतिहास रच दिया. आज ऐसे ही एक होनहार खिलाड़ी की बात करते हैं, जिन का नाम अविनाश साबले है. 3000 मीटर की स्टीपलचेज यानी बाधा दौड़ में वे ऐसे पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं, जिन्होंने फाइनल मुकाबले में अपनी जगह बनाई.

हालांकि, अविनाश साबले देश को कोई मैडल दिलाने में कामयाब नहीं हो सके, लेकिन उन की दौड़ की चर्चा आज पूरे देश में हो रही है. इतना ही नहीं, अविनाश साबले ने देश के नौजवानों को संदेश दिया है कि वे आने वाली पीढ़ी के लिए भी मार्गदर्शन करेंगे.

स्टीपलचेज एक ऐसी प्रतियोगिता होती है, जिस में खिलाड़ियों को ट्रैक पर आने वाली बाधाओं को पार करना होता है और पानी में छलांग लगानी होती है.

13 सितंबर, 1994 को जनमे अविनाश साबले महाराष्ट्र के बीड जिले में अष्टि तालुका के एक छोटे से गांव मंडवा में पलेबढ़े हैं और पैरिस ओलिंपिक तक पहुंच कर उन्होंने अपने गांव और जिले के साथसाथ पूरे देश का नाम रोशन किया है.

अविनाश साबले ने बताया है कि उन का एक सामान्य परिवार में जन्म हुआ है, लेकिन ईंटभट्ठे में मजदूरी करने वाले उन के मातापिता ने हमेशा से अपने बच्चों को बेहतर तालीम दिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद माना है. 3 भाईबहनों में अविनाश बचपन से ही दौड़ में नंबर वन रहे हैं. यही नहीं, 5 से 6 साल की उम्र में ही अपने मातापिता की मुश्किलों को देख कर उन्होंने तय कर लिया था कि वे अपने घरपरिवार का संबल बनेंगे.

अविनाश साबले की मां गांव के ईंटभट्ठे पर मजदूरी करती थीं और खाना बना कर अविनाश के पिता के साथ काम पर चली जाती थीं. एक दफा सुबह घर से निकलने के बाद वे सब लोग उन्हें सिर्फ रात में ही मिल पाते थे. उन्हें ऐसे काम करते हुए देख कर अविनाश को उन की कड़ी मेहनत का अंदाजा नहीं था. यहीं से अविनाश को यह प्रेरणा मिली कि उन्हें कुछ बहुत बड़ा काम करना है.

परिवार की कमजोर माली हालत देख कर अविनाश साबले में मन में तय कर लिया था कि वे कुछ ऐसा करेंगे कि दुनिया उन के मांबाप की तरफ गौरव के साथ देखे. लिहाजा, अविनाश ने बचपन से ही दौड़ को अपना लक्ष्य बना लिया था.

अविनाश साबले के घर से स्कूल की दूरी 6 किलोमीटर थी. ऐसे में वे दौड़ कर स्कूल पहुंच जाते थे और धीरेधीरे दौड़ना उसे अच्छा लगने लगा. अविनाश को दौड़ते हुए स्कूल जाते देख कर मास्टरों ने उन की रेस उन से बड़ी क्लास के छात्र के साथ कराई, जिस में अविनाश के जीतने के बाद मास्टरों ने उन की इस प्रतिभा पर भी ध्यान देना शुरू किया.

इस के बाद अविनाश साबले को 500 मीटर की रेस में ले जाया गया. उस समय वे प्राइमरी स्कूल के छात्र थे और उन की उम्र तब 9 साल ही थी. इस रेस को ले कर उन्होंने कोई तैयारी भी नहीं की थी. मगर अविनाश ने मास्टरों और स्कूल को निराश नहीं किया. मजेदार बात तो यह कि उस दिन रेस के साथ साथ अविनाश ने 100 रुपए का नकद इनाम भी जीता था, जिसे याद कर के वे आज भी खुश हो जाते हैं.

इस के बाद अविनाश साबले को स्कूल के मास्टर 2 साल धनोरा मैराथन ले गए थे. इस में भी अविनाश दोनों बार रेस में जीते. इस कारण से भी अविनाश को शिक्षकों का विशेष स्नेह मिलता था. 12वीं क्लास पास के बाद अविनाश सेना भरती परीक्षा में सफल हुए और पैरिस ओलिंपिक में शिरकत करने के बाद तो चर्चित चेहरे बन गए हैं.

याद रहे कि कभी अविनाश साबले बीड जिले के मंडवा गांव में राजमिस्त्री का काम किया करते थे. वहां से निकल कर आज वे भारत के सब से बेहतरीन लंबी दूरी के धावक बन कर सामने आए हैं.

साल 2017 में एक दौड़ के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार ने अविनाश साबले की तेज रफ्तार को देखा और फिर उन्हें स्टीपलचेज वर्ग में दौड़ने की सलाह दी. बता दें कि साल 2017 के फैडरेशन कप में अविनाश साबले 5वें नंबर पर रहे थे और फिर चेन्नई में ओपन नैशनल में स्टीपलचेज नैशनल रिकौर्ड से सिर्फ 9 सैकंड दूर रहे थे.

इस के बाद भुवनेश्वर में आयोजित साल 2018 ओपन नैशनल में अविनाश साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज में 8: 29.88 का समय लेते हुए 30 साल के नैशनल रिकौर्ड को 0.12 सैकंड से तोड़ कर इतिहास रच दिया था.

कीमती चीज: पैसों के लालच में सौतेले पिता ने क्या काम किया

‘‘मैडम,क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अभिनव ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी.

‘‘बताइए क्या काम है?’’  अंदर से आवाज आई.

‘‘जी मैं एक सेल्समैन हूं. हाउसवाइफ्स के लिए एक अनोखा औफर ले कर आया हूं,’’ अभिनव ने अंदर झांकते हुए कहा.

सुनैना अपने बाल समेटती कमरे में से बाहर निकली. उस समय वह नाईटी में थी. गोरे रंग और आकर्षक नैननक्स वाली सुनैना की खूबसूरती किसी को भी मोह सकती थी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में कुतूहल साफ नजर आ रहा था. अभिनव से नजरें मिलते ही दोनों कुछ पल के लिए एकदूसरे को देखते रह गए. खुद को सेल्समैन बताने वाला अभिनव अच्छी कदकाठी का सभ्रांत युवक था.

‘‘आइए बैठिए न,’’ सुनैना ने उस से बैठने का आग्रह किया और फिर खुद भी पास ही बैठ गई.

‘‘कहिए क्या बात है?’’ सुनैना ने पूछा.

‘‘जी मैं हाउसवाइफ्स के लिए एक औफर ले कर आया हूं.’’

‘‘कैसा औफर?’’ सुनैना ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पास किचन एंप्लायंसिस की एक लंबी रेंज है. आप को पसंद आए तो औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. मिक्सर ग्राइंडर जूसर की एक रेंज साथ

भी लाया हूं. फौर ए ट्रायल आप इस का प्रयोग कर के देखें. इस के साथ ही एक प्रैस बिलकुल फ्री है. हमारे पास दूसरी किसी भी कंपनी के मुकाबले कम कीमत में बैस्ट औफर्स हैं. हमारे ये प्रोडक्ट्स दूसरों से अलग हैं. मैं इन की खासीयतें 1-1 कर बताता हूं.’’

सुनैना एकटक अभिनव की तरफ देखती हुई बोली, ‘‘इन बेजुबान, बेजबान चीजों में भला क्या खासीयत हो सकती है? मुझे तो आप के बोलने के अंदाज में खासीयत लग रही है.’’

अभिनव एकदम से शरमा गया. फिर हंसता हुआ बोला, ‘‘मैडम, आप भी ऐसी बातें कर इस नाचीज की कीमत बढ़ा रही हैं.’’

‘‘मैं कीमत कहां बढ़ा रही? जिंदगी में किसी भी चीज की कीमत बढ़ाई या घटाई नहीं जा सकती. हर इंसान के लिए एक ही चीज की कीमत अलगअलग होती है. मेरे पति की नजर में ऐसी चीजें ही कीमती हैं, जो लोगों के आगे उन की शान को बढ़ाती हैं, मगर मेरे लिए ऐसी चीजें कीमती हैं, जो किसी की आंखों में मुसकान सजाती हैं.’’

अभिनव बिलकुल गंभीर हो कर बोला, ‘‘कितनी खूबसूरत सोच है आप की. काश, हर इंसान ऐसे ही सोचता. बुरा न मानें तो एक बात कहूं मैडम, आप दूसरी महिलाओं से बहुत अलग हैं.’’

‘‘मैं भी एक बात कहना चाहती हूं अभिनवजी. मुझे अपने लिए मैडम सुनना बिलकुल पसंद नहीं. आप मुझे सुनैना कह सकते हैं. मेरा नाम सुनैना है.’’

‘‘यथा नाम तथा गुण. सुनैना यानी सुंदर आंखें. वाकई आप की आंखें  बेहद खूबसूरत हैं सुनैनाजी,’’ सुनैना की आंखों में झंकते हुए अभिनव ने कहा.

सुनैना कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘पता नहीं मुझे क्यों लग रहा है जैसे आप सेल्समैन हो ही नहीं सकते. आप कुछ और ही हो.’’

अभिनव ने खुद को संभाला और जल्दी से सेल्समैन की टोन में बोला, ‘‘नो मैम मैं सेल्समैन ही हूं. हमारी कंपनी ने कुछ नए प्रोडक्ट्स लौंच किए हैं, उन से आप का परिचय करा दूं. यकीनन आप को हमारे प्रोडक्ट्स पसंद आएंगे और आप इन्हें जरूर खरीदेंगी. मैम क्या मैं डैमो दे सकता हूं?’’

‘‘औफकोर्स औफ डैमो दिखा सकते हो, मगर मैं घर में अकेली हूं. आप को किचन में कैसे ले जाऊं?’’ सुनैना ने मजबूरी बताई.

‘‘छोडि़ए फिर आप ऐसे ही फील कीजिए… यह प्रोडक्ट कितना अच्छा है,’’ कहते हुए अभिनव ने मशीन सुनैना को थमाई तो दोनों के हाथ एकदूसरे से स्पर्श हो गए.

सुनैना ने उस की तरफ देखते हुए हौले से कहा, ‘‘फील तो मैं कर रही हूं.’’

अभिनव एकदम से असहज हो उठा और कहने लगा, ‘‘प्लीज, एक गिलास पानी मिलेगा?’’

‘‘बिलकुल,’’ कह सुनैना अंदर गई और पानी ले आई.

पानी पीते हुए अभिनव बोला, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात कहूं, आप के पति और आप का कोई मैच नहीं. स्वभाव के साथ आप दोनों की उम्र में भी बहुत अंतर है.’’

‘‘मैं जानती हूं पर क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप मेरे पति को कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं नहीं जानता … आप ने बताया था न… ’’ अभिनव हकलाते हुए बोला.

‘‘अच्छा मैं चाय भी बना लाती हूं. आप थक गए होंगे.’’

‘‘धन्यवाद.’’

सुनैना 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. दोनों अजनबी थे, मगर एकदूसरे के लिए अलग तरह का आकर्षण महसूस कर रहे थे. कहीं न कहीं अभिनव सुनैना का दर्द महसूस कर रहा था. सुनैना भी समझ रही थी कि यह कोई साधारण सेल्समैन नहीं.

‘‘मेरे पति केवल पैसों से प्यार करते हैं,’’ सुनैना ने खामोशी तोड़ते हुए कहा.

‘‘जी हां पैसों के लिए वे किसी की जिंदगी से भी खेल सकते हैं,’’ अभिनव बोल पड़ा.

सुनैना ने फिर से उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा.

अभिनव ने सामने टंगी सुनैना और उस के पति के फोटो को देखते हुए कहा, ‘‘वे आप से प्यार नहीं करते?’’

‘‘नहीं उन के लिए जज्बातों की कोई कीमत नहीं. मगर मैं आप से ये सब क्यों कह रही हूं?’’

‘‘क्योंकि मेरे अंदर आप को एक दोस्त नजर आया है. यकीन मानिए मुझे जज्बातों की बहुत ज्यादा कद्र है. यदि आप ने वाकई मुझे अपना दोस्त माना तो मैं आप के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. पर यदि आप को मुझ पर जरा सा भी शक है तो मैं अभी अपना सारा सामान ले कर निकल जाऊंगा.’’

‘‘मुझे आप पर कोई शक नहीं, उलटा शक तो मुझे अपने पति पर है. जरूर उन्होंने आप के साथ कुछ गलत किया होगा, जिस का बदला लेने आप यहां आए हैं,’’ सुनैना ने अभिनव पर नजरें जमाते हुए कहा.

सुनैना के मुंह से बदला शब्द सुनते ही अभिनव चौंक  गया, ‘‘मगर यह बात आप को कैसे पता चली?’’

‘‘मैं पानी लेने गई तब और जब चाय बना रही थी तब, आप की आंखें घर में कुछ ढूंढ़ रही थीं. आप मेरे पति के स्वभाव के बारे में भी जानते हैं. यही नहीं मेरे पति की तसवीर आप ने जिस नफरत से देखी उस से भी स्पष्ट था कि आप का उन से पहले ही सामना हो चुका है. एक सवाल यह भी है कि हमारे इस मुहल्ले में आज तक तो कोई सेल्समैन आया नहीं, फिर आज आप कैसे आ गए और वह भी बीच के सारे घरों को छोड़ कर सीधा मेरे घर आ कर बैल बजाई. इन्हीं सब बातों पर गौर कर मैं ने यह निष्कर्ष निकाला कि जरूर आप के मन में कोई बात है.’’

‘‘आप तो सच में काफी ब्रिलियंट हैं. मेरे बिना कुछ बोले भी आप ने हर बात पर नजर रखी. फिर तो आप को यह भी एहसास हो गया होगा कि आप के लिए मेरी क्या फीलिंग है?’’ अभिनव की आंखों में प्यार झलक उठा.

‘‘हां एहसास तो हो गया है कि आप मुझे पसंद करने लगे हैं. मेरा स्पर्श आप को विचलित कर रहा है. हमारे बीच आकर्षण का एक सेतु बनता जा रहा है. मैं थोड़ी भी कमजोर पड़ी तो हमारे बीच कुछ भी हो सकता है.’’

अभिनव ने अचानक बढ़ कर सुनैना को बांहों में भर लिया. सुनैना ने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया. दोनों को एकदूसरे के मन की थाह मिल चुकी थी. कुछ देर इस खूबसूरत पल का आनंद लेने के बाद सुनैना अलग हो गई और अभिनव को बैठने का इशारा किया.

‘‘दिल का सौदा करने से पहले जरूरी है कि मुझे यह पता चले कि आप कौन हैं, कहां से आए हैं और क्या चाहते हैं?’’ सुनैना ने कहा.

‘‘कहानी लंबी है. शुरुआत से बतानी होगी.’’

‘‘मुझे भी कोई हड़बड़ी नहीं है. आप बताइए,’’ सुनैना ने इत्मीनान से कहा.

‘‘ऐक्चुअली मैं एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार का इकलौता कमाऊ बेटा हूं. मैं ने एमबीए किया हुआ है और एक कंपनी में जौब करता था. इस बीच हमारी कंपनी में घोटाला हुआ, जिस में करोड़ों की रकम चोरी की गई. आप के पति हमारी कंपनी में काफी सीनियर पद पर हैं. घोटाला उन्होंने किया और नाम मेरा लगा दिया. मेरे खिलाफ गवाही दे कर मुझे चोरी और धोखाधड़ी के मामले में फंसा दिया. मुझे जेल भेज दिया गया.

‘‘आप ही बताइए किसी घर के कमाऊ बेटे के साथ ऐसा किया जाए तो मांबाप  पर क्या बीतेगी. किसी तरह मैं ने अपनी बेगुनाही का सुबूत दे कर खुद को जेल से बाहर निकाला. जेल जाते समय मैं ने प्रण किया था कि दिनदहाड़े आप के पति के घर में घुस कर उन की सब से कीमती चीज चुरा कर ले जाऊंगा.’’

‘‘ओके तो आप चोरी के मकसद से आए हैं,’’  हलके से मुसकराते हुए सुनैना ने कहा.

‘‘देखिए मैं आया तो चोरी के मकसद से ही था, मगर अब आप से मिल कर ऐसा कुछ करने की इच्छा नहीं हो रही.’’

‘‘अगर आप चोरी के मकसद से आए थे तो ठीक है न. मैं कहती हूं आप को जो भी चीज कीमती लग रही है उसे ले जाइए. मैं आप को तिजोरी और अलमारी की चाभी देती हूँ. देखिए आप के साथ नाइंसाफी हुई है तो उस का बदला जरूर लीजिए. मैं जानती हूं आप सच कह रहे हैं. मेरे पति ऐसे ही हैं. वे केवल अपना लाभ देखते हैं भले किसी की जान ही क्यों न चली जाए. ये लीजिए चाबियां.’’

‘‘नहीं ऐसा मत कीजिए. आप के पति नाराज हो जाएंगे. फिर वे आप के साथ कुछ भी कर सकते हैं,’’ अभिनव ने हिचकिचाते हुए कहा.

‘‘वे खुश ही कब रहते हैं, जो आज नाराज हो जाएंगे. यह कोई बड़ी बात नहीं है. वैसे भी मैं ने उन्हें छोड़ने का मन बना लिया है. किसी भी दिन उन्हें छोड़ कर चली जाऊंगी. इसलिए आप मेरी चिंता न करें,’’ कह सुनैना ने तिजोरी और अलमारी खोल दी. तिजोरी में गहने और अलमारी में रुपयों की गड्डियां रखी थीं, मगर अभिनव ने उन की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘माना पहले तिकड़म लगा कर मैं आप के घर चोरी करने वाला था, मगर अब आप से मुलाकात के बाद मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता… बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘मैं ने कहा न आप मेरी चिंता बिलकु  न करें. यकीन मानिए पहली दफा मैं उस शख्स का साथ देना चाहती हूं, जिस का मकसद चोरी करना है, वह भी मेरे घर में. प्लीज डौंट हैजिटेट.’’

‘‘नहीं अब नहीं. मैं ने आप को दोस्त मान लिया है. एक दोस्त के घर चोरी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘पर मैं एक दोस्त के मकसद के आड़े भी कैसे आ सकती हूं? मैं कह रही हूं न अपना बदला पूरा करो.’’

‘‘ठीक है मुझे सोचने का समय दीजिए.’’

‘‘चोर बैठ कर सोचते नहीं, कर गुजरते हैं. कहीं तुम्हें यह डर तो नहीं लग रहा कि मैं तुम्हें पकड़वा सकती हूं, पुलिस बुला सकती हूं?’’  सुनैना ने पूछा.

‘‘पता नहीं क्यों पर यह डर बिलकुल नहीं है. अगर आप ने ऐसा कुछ किया भी तो मैं खुशीखुशी फिर से जेल जाने को तैयार हूं,’’ यह बात कहते हुए अभिनव सुनैना के करीब आ गया था. सुनैना ने उस की तरफ कातिलाना नजरों से देखा तो अभिनव ने फुसफुसा कर कहा,’’  ऐ हुस्न वाले, तू कत्ल भी कर दे तो कोई गम नहीं.’’

सुनैना भी शोख नजरों से देखती हुई बोली, ‘‘कमाल करते हो तुम भी. चुराने आए थे सामान और दिल चुरा कर ले गए.’’

‘‘ऐ हंसी तेरे दिल से कीमती कुछ और दिखा ही नहीं. तेरी इनायत है, जो इस नाचीज को नगीना मिल गया,’’  अभिनव ने उसी लहजे में जवाब दिया.

इस तरह शायराना अंदाज में बातें करतेकरते कब दोनों एकदूसरे के करीब  आ गए, पता ही नहीं चला. सुनैना, जिसे आज तक पति का प्यार नहीं मिला था, एक अनजान शख्स के लिए तड़प उठी थी तो वहीं अभिनव भी कहां जानता था कि जिस के घर चोरी करने और बदला लेने जा रहा है वहां अपने दिल का सौदा कर आएगा.

सुनैना ने बताया, ‘‘मेरी शादी एक धोखा थी. मेरे सौतेले पिता ने मुझे इन के कजिन का फोटो दिखाया था और कहा था कि मैं उस के साथ एक खुशहाल जिंदगी जीऊंगी, पर मुझे क्या पता था कि मेरी जिंदगी का सौदा किया गया है.

मेरे सौतेले पिता ने चंद रुपयों की खातिर मुझे अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति के हाथ बेच दिया था. ये विधुर थे. पहली पत्नी ऐक्सीडैंट में मर गई थी. मेरे साथ इन का रिश्ता पहले दिन से ही मालिक और दासी का रहा है न कि पतिपत्नी का.

मायके में सौतेले पिता के सिवा अब कोई नहीं. यहां भी इन के सिवा सिर्फ नौकरचाकर हैं. अपना दर्द किस से कहती. इसलिए परिस्थितियों से समझौता कर लिया, पर तुम से मिल कर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे जीवन में खुशियों के गुल फिर से खिलने वाले हैं. मुझे एक नई जिंदगी मिल गई है.’’

‘‘मैं ने भी प्यार के नाम पर केवल धोखे खाए हैं. इसलिए अब तक शादी नहीं की. अब समझ आता है कि इन सब के पीछे वजह क्या थी. दरअसल, तुम्हारे साथ मेरी कहानी जो पूरी होनी थी.’’

दोनों देर तक एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते रहे. फिर अचानक सुनैना को  होश आया तो घबरा कर बोली, ‘‘देखो अब तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं है. वे आते होंगे, इसलिए जल्दी से फैसला करो कि तुम्हें यहां से क्या ले जाना है.’’

‘‘यदि मैं कहूं कि मुझे तुम्हें ले जाना है तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’ हिम्मत कर के अभिनव ने अपने दिल की बात कह दी.

‘‘मेरा जवाब…’’ कहतेकहते सुनैना चुप हो गई. ‘‘बताओ सुनैना तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’  बेचैन हो कर अभिनव ने पूछा.

‘‘मेरा जवाब यही होगा कि मैं खुद इस सोने के पिंजरे में रह कर थक चुकी हूं. अब एक परिंदे की भांति खुल कर उड़ान भरना चाहती हूं. मैं अनुमति देती हूँ,  तुम मुझे  मेरे घर से चुरा कर ले चलो. मैं तैयार हूं अभिनव.’’

‘‘तो ठीक है मैं तुम्हें यानी इस घर की सब से कीमती चीज को चुरा कर ले जा रहा हूं. मेरा बदला इतना खूबसूरत रुख ले कर पूरा होगा यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ और फिर दोनों ने एकदूसरे का हाथ थामा और एक नई जिंदगी की शुरुआत के लिए निकल पड़े.

नौटंकीबाज पत्नी : क्या सागर कर पाया खुदकुशी

इसलिए सागर को अपने लिए बागबगीचे पसंद करने और मांसमछली पका लेने वाली पत्नी चाहिए थी. वह चाहता था कि उस की पत्नी घर और खेतीबारी संभालते हुए गांव में रह कर उस के मातापिता की सेवा करे, क्योंकि सागर नौकरी में बिजी रहने के चलते ज्यादा दिनों तक गांव में नहीं ठहर सकता था. ऐसे में उसे ऐसी पत्नी चाहिए थी जो उस का घरबार बखूबी संभाल सके.

आखिरकार, सागर को वैसी ही लड़की पत्नी के रूप में मिल गई, जैसी उसे चाहिए थी. नयना थोड़ी मुंहफट थी, लेकिन खूबसूरत थी. उस ने शादी की पहली रात से ही नखरे और नाटक करना शुरू कर दिया. सुहागरात पर सागर से बहस करते हुए वह बोली, ‘‘तुम अपना स्टैमिना बढ़ाओ. जो सुख मुझे चाहिए, वह नहीं मिल पाया.’’

दरअसल, सागर एक आम आदमी की तरह सैक्स में लीन था, लेकिन वह बहुत जल्दी ही थक गया. इस बात पर नयना उस का जम कर मजाक उड़ाने लगी, लेकिन सागर ने उस की किसी बात को दिल पर नहीं लिया. उसे लगा, समय के साथसाथ पत्नी की यह नासमझी दूर हो जाएगी. छुट्टियां खत्म हो चुकी थीं और उसे मुंबई लौटना था.

नयना ने कहा, ‘‘मुझे इस रेगिस्तान में अकेली छोड़ कर क्यों जा रहे हो?’’

सच कहें तो नयना भी यही चाहती थी कि सागर गांव में न रहे, क्योंकि पति की नजर व दबाव में रहना उसे पसंद नहीं था और न ही उस के रहते वह पति के दोस्तों को अपने जाल में फंसा सकती थी. मायके में उसे बेरोकटोक घूमने की आदत थी, जिस वजह से गांव के लड़के उसे ‘मैना’ कह कर बुलाते थे.

मुंबई पहुंचने के बाद सागर जब भी नयना को फोन करता, उस का फोन बिजी रहता. उसे अकसर कालेज के दोस्तों के फोन आते थे.

लेकिन धीरेधीरे सागर को शक होने लगा कि कहीं नयना अपने बौयफ्रैंड से बात तो नहीं करती है? सागर की मां ने बताया कि नयना घर का कामधंधा छोड़ कर पूरे गांव में आवारा घूमती रहती है.

एक दिन अचानक सागर गांव पहुंच गया. बसस्टैंड पर उतरते ही सागर ने देखा कि नयना मैदान में खड़ी किसी लड़के से बात कर रही थी और कुछ देर बाद उसी की मोटरसाइकिल पर बैठ कर वह चली गई. देखने में वह लड़का कालेज में पढ़ने वाला किसी रईस घर की औलाद लग रहा था. नैना उस से ऐसे चिपक कर बैठी थी, जैसे उस की प्रेमिका हो.

घर पहुंचने के बाद सागर और नैना में जम कर कहासुनी हुई. नैना ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘बौयफ्रैंड बनाया है तो क्या हुआ? मुझे यहां अकेला छोड़ कर तुम वहां मुंबई में रहते हो. मैं कब तक यहां ऐसे ही तड़पती रहूंगी? क्या मेरी कोई ख्वाहिश नहीं है? अगर मैं ने अपनी इच्छा पूरी की तो इस में गलत क्या है? तुम खुद नौर्मल हो क्या?’’

‘‘मैं नौर्मल ही हूं. लेकिन तू हवस की भूखी है. फिर से उस मोटरसाइकिल वाले के साथ अगर गई तो घर से निकाल दूंगा,’’ सागर चिल्लाया.

‘‘तुम क्या मुंबई में बिना औरत के रहते हो? तुम्हारे पास भी तो कोई होगी न? ज्यादा बोलोगे तो सब को बता दूंगी कि तुम मुझे जिस्मानी सुख नहीं दे पाते हो, इसलिए मैं दूसरे के पास जाती हूं.’’

यह सुन कर सागर को जैसे बिजली का करंट लग गया. ‘इस नौटंकीबाज, बदतमीज, पराए मर्दों के साथ घूमने वाली औरत को अगर मैं ने यहां से भगा दिया तो यह मेरी झूठी बदनामी कर देगी… और अगर इसे मां के पास छोड़ता हूं तो यह किस के साथ घूम रही होगी, क्या कर रही होगी, यही सब सोच कर मेरा काम में मन नहीं लगेगा,’ यही सोच कर सागर को नींद नहीं आई. वह रातभर सोचता रहा, ‘क्या एक पल में झूठ बोलने, दूसरे पल में हंसने, जोरजोर से चिल्ला कर लोगों को जमा करने, तमाशा करने और धमकी देने वाली यह औरत मेरे ही पल्ले पड़नी थी?’

बहुत देर तक सोचने के बाद सागर के मन में एक विचार आया और बिना किसी वजह से धमकी देने वाली इस नौटंकीबाज पत्नी नयना को उस ने भी धमकी दी, ‘‘नयना, मैं तुझ से परेशान हो कर एक दिन खुदकुशी कर लूंगा और एक सुसाइड नोट लिख कर जाऊंगा कि तुम ने मुझे धोखा दे कर, डराधमका कर और झूठी बदनामी कर के आत्महत्या करने पर मजबूर किया है. किसी को धोखा देना गुनाह है. पुलिस तुझ से पूछताछ करेगी और तेरा असली चेहरा सब के सामने आएगा. तेरे जैसी बदतमीज के लिए जेल का पिंजरा ही ठीक रहेगा.’’

सागर के लिए यह औरत सिर पर टंगी हुई तलवार की तरह थी और उसे रास्ते पर लाने का यही एकमात्र उपाय था. खुदकुशी करने का सागर का यह विचार काम आ गया. यह सुन कर नयना घबरा गई.

‘‘ऐसा कुछ मत करो, मैं बरबाद हो जाऊंगी,’’ कह कर नयना रोने लगी.

इस के बाद सागर ने नयना को मुंबई ले जाने का फैसला किया. उस ने भी घबरा कर जाने के लिए हां कर दी. उस के दोस्त फोन न करें, इसलिए फोन नंबर भी बदल दिया.

अब वे दोनों मुंबई में साथ रहते हैं. नयना भी अपने बरताव में काफी सुधार ले आई है.

पहेली: क्या ससुराल में शिखा को प्रताड़ित किया जाता था!

 मैं शनिवार की शाम औफिस से ही एक रात मायके में रुकने आ गई. सीमा दीदी भी 2 दिनों के लिए आई हुई थी. सोचा सब से जी भर कर बातें करूंगी पर मेरे पहुंचने के घंटे भर बाद ही रवि का फोन आ गया.

मैं बाथरूम में थी, इसलिए मम्मी ने उन से बातें करीं.

‘‘रवि ने फोन कर के बताया है कि तेरी सास को बुखार आ गया है,’’ कुछ देर बाद मुझे यह जानकारी देते हुए मां साफतौर पर नाराज नजर आ रही थीं.

मैं फौरन तमतमाती हुई बोली, ‘‘अभी मुझे यहां पहुंचे 1 घंटा भी नहीं हुआ है कि बुलावा आ गया. सासूमां को मेरी 1 दिन की आजादी बरदाश्त नहीं हुई और बुखार चढ़ा बैठीं.’’

‘‘क्या पता बुखार आया भी है या नहीं,’’ सीमा दीदी ने बुरा सा मुंह बनाते हुए अपने मन की बात कही.

‘‘मैं ने जब आज सुबह सासूमां से यहां 1 रात रुकने की इजाजत मांगी थी, तभी उन का मुंह फूल गया था. दीदी तुम्हारी मौज है, जो सासससुर के झंझटों से दूर अलग रह रही हो,’’ मेरा मूड पलपल खराब होता जा रहा था.

‘‘अगर तुझे इन झंझटों से बचना है, तो तू अपनी सास को अपनी जेठानी के पास भेजने की जिद पर अड़ जा,’’ सीमा दीदी ने वही सलाह दोहरा दी, जिसे वे मेरी शादी के महीने भर बाद से देती आ रही हैं.

‘‘मेरी तेजतर्रार जेठानी के पास न सासूमां जाने को राजी हैं और न बेटा भेजने को. तुम्हें तो पता ही है पिछले महीने सास को जेठानी के पास भेजने को मेरी जिद से खफा हो कर रवि ने मुझे तलाक देने की धमकी दे दी थी. अपनी मां के सामने उन की नजरों में मेरी कोई वैल्यू नहीं है, दीदी.’’

‘‘तू रवि की तलाक देने की धमकियों से मत डर, क्योंकि हम सब को साफ दिखाई देता है कि रवि तुझ पर जान छिड़कता है.’’

‘‘सीमा ठीक कह रही है. तुझे रवि को किसी भी तरह से मनाना होगा. तेरी सास को दोनों बहुओं के पास बराबरबराबर रहना चाहिए,’’ मां ने दीदी की बात का समर्थन किया.

मैं ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘मां, फिलहाल मुझे वापस जाना होगा.’’

‘‘पागलों जैसी बात न कर,’’ मां भड़क उठीं, ‘‘तू जब इतने दिनों बाद सिर्फ 1 दिन को बाहर निकली है, तो यहां पूरा आराम कर के जा.’’

‘‘मां, मेरी जिंदगी में आराम करना कहां लिखा है? मुझे वापस जाना ही पड़ेगा,’’ कह अपना बैग उठा कर मैं ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘शिखा, तू इतना डर क्यों रही है? देख, रवि ने तेरे फौरन वापस आने की बात एक बार भी मां से नहीं कही है,’’ दीदी ने मुझे रोकने को समझाने की कोशिश शुरू की.

‘‘दीदी, अगर मैं नहीं गई, तो इन का मूड बहुत खराब हो जाएगा. तुम तो जानती ही हो कि ये कितने गुस्से वाले इनसान हैं.’’

उन सब का समझाना बेकार गया और करीब घंटे भर बाद मुझे दीदी व जीजाजी कार से वापस छोड़ गए. अपनी नाराजगी दर्शाने के लिए दोनों अंदर नहीं आए.

मुझे अचानक घर आया देख रवि चौंकते हुए बोले, ‘‘अरे, तुम वापस क्यों आ गई हो?

मैं ने तुम्हें बुलाने के लिए थोड़े ही फोन किया था.’’

मेरे लौट आने से उन की आंखों में पैदा हुई खुशी की चमक को नजरअंदाज करते हुए मैं ने शिकायत की, मुझे 1 दिन भी आप ने चैन से अपने मम्मीपापा के घर नहीं रहने दिया. क्या 1 रात के लिए आप अपनी बीमार मां की देखभाल नहीं कर सकते थे?

‘‘सच कह रहा हूं कि मैं ने तुम्हारी मम्मी से तुम्हें वापस भेजने को नहीं कहा था.’’

‘‘वापस बुलाना नहीं था, तो फोन क्यों किया?’’

‘‘फोन तुम्हें सूचना देने के लिए किया था, स्वीटहार्ट.’’

‘‘क्या सूचना कल सुबह नहीं दी जा सकती थी?’’ मेरे सवाल का उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

उन के आगे बोलने का इंतजार किए बिना मैं सासूमां के कमरे की तरफ चल दी.

सासूमां के कमरे में घुसते ही मैं ने तीखी आवाज में उन से एक ही सांस में कई सवाल पूछ डाले, ‘‘मम्मीजी, मौसमी बुखार से इतना डरने की क्या जरूरत है? क्या 1 रात के लिए आप अपने बेटे से सेवा नहीं करा सकती थीं? मुझे बुलाने को क्यों फोन कराया आप ने?’’

‘‘मैं ने एक बार भी रवि से नहीं कहा कि तुझे फोन कर के बुला ले. इस मामले में मेरे ऊपर चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है, बहू,’’ सासूमां फौरन मुझ से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘इन के लिए तो मैं खाना साथ लाई हूं. आप ने क्या खाया है? मैं सुबह जो दाल बना कर…’’

‘‘मेरा मन कोई दालवाल खाने का नहीं कर रहा है,’’ उन्होंने नाराज लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो बाजार से टिक्की या छोलेभठूरे मंगवा दूं?’’

‘‘बेकार की बातें कर के तू मेरा दिमाग मत खराब कर, बहू.’’

‘‘सच में मेरा दिमाग खराब है, जो आप की बीमारी की खबर मिलते ही यहां भागी चली आई. जिस इनसान के पास इतनी जोर से चिल्लाने और लड़ने की ऐनर्जी है, वह बीमार हो ही नहीं सकता है,’’ मैं ने उन के माथे पर हाथ रखा तो मन ही मन चौंक पड़ी, क्योंकि मुझे महसूस हुआ मानो गरम तवे पर हाथ रख दिया हो.

‘‘तू मुझे और ज्यादा तंग करने के लिए आई है क्या? देख, मेरे ऊपर किसी तरह का एहसान चढ़ाने की कोशिश मत कर.’’

उन की तरफ से पूरा ध्यान हटा कर मैं रवि से बोली, ‘‘आप खड़ेखड़े हमें ताड़ क्यों रहे हो? गीली पट्टी क्यों नहीं रखते हो मम्मीजी के माथे पर? इन्हें तेज बुखार है.’’

‘‘मैं अभी गीली पट्टी रखता हूं,’’ कह वे हड़बड़ाए से रसोई की तरफ चले गए.

‘‘मैं आप के लिए मूंग की दाल की खिचड़ी बनाने जा रही….’’

‘‘मैं कुछ नहीं खाऊंगी. मेरे लिए तुझे कष्ट करने की जरूरत नहीं है,’’ वे नाराज ही बनी रहीं.

मैं भी फौरन भड़क उठी, ‘‘आप को भी मुझे ज्यादा तंग करने की जरूरत नहीं है. पता नहीं मैं क्यों आप के इतने नखरे उठाती हूं? बड़े भाईसाहब के पास जा कर रहने में पता नहीं आप को क्या परेशानी होती है?’’

‘‘तू एक बार फिर कान खोल कर सुन ले कि यह मेरा घर है और मैं हमेशा यहीं रहूंगी. तुझ से मेरे काम न होते हों, तो मत किया कर.’’

‘‘बेकार की चखचख से मेरा समय बरबाद करने के बजाय यह बताओ कि क्या चाय पीएंगी?’’ मैं ने अपने माथे पर यों हाथ मारा मानो बहुत तंग हो गई हूं.

‘‘तू मेरे साथ ढंग से क्यों नहीं बोलती है, बहू?’’ यह सवाल उन्होंने कुछ धीमी आवाज में पूछा.

‘‘अब मैं ने क्या गलत कहा है?’’

‘‘तू चाय पीने को पूछ रही है या लट्ठ मार रही है?’’

‘‘आप को तो मुझ से जिंदगी भर शिकायत बनी रहेगी,’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पा रही थी, इसलिए तुरंत रसोई की तरफ चल दी.

मैं रसोई में आ कर दिल खोल कर मुसकराई और फिर खिचड़ी व चाय बनाने में लगी.

कुछ देर बाद पीछे से आ कर रवि ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और भावुक हो कर बोले, ‘‘मां का तेज बुखार देख कर मैं घबरा गया था. अच्छा हुआ जो तुम फौरन चली आईं. वैसे वैरी सौरी कि तुम 1 रात भी मायके में नहीं रह पाई.’’

‘‘तुम ने कब मेरी खुशियां की चिंता की है, जो आज सौरी बोल रहे हो?’’ मैं ने उचक कर उन के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम जबान की कड़ी हो पर दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं. अपनी बीमार मां की सेवा कराने के लिए मेरी झूठी तारीफ करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम सचमुच दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच.’’

‘‘तो कमरे में मेरे लौटने से पहले सो मत जाना. अपने प्रोग्राम को गड़बड़ कराने की कीमत तो पक्का मैं आज रात को ही वसूल करूंगी,’’ मैं ने उन से लिपट कर फटाफट कई सारे चुंबन उन के गाल पर अंकित कर दिए.

‘‘आजकल तुम्हें समझना मेरे बस की तो बात नहीं है,’’ उन्होंने कस कर मुझे अपनी बांहों में भींच लिया.

‘‘तो समझने की कोशिश करते ही क्यों हो? जाओ, जा कर अपनी मम्मी के पास बैठो,’’ कह मैं ने हंसते हुए उन्हें किचन से बाहर धकेल दिया.

वे ठीक कह रहे हैं. महीने भर से अपने व्यवहार में आए बदलाव के कारण मैं अपनी सास और इन के लिए अनबूझ पहेली बन गई हूं.

अपनी सास के साथ वैसे अभी भी मैं बोलती तो पहले जैसा ही तीखा हूं पर अब मेरे काम हमेशा आपसी रिश्ते को मजबूती देने व दिलों को जोड़ने वाले होते हैं. तभी मैं बिना बुलाए अपनी बीमार सास की सेवा करने लौट आई.

कमाल की बात तो यह है कि मुझ में आए बदलाव के कारण मेरी सासूमां भी बहुत बदल गई हैं. अब वे अपने सुखदुख मेरे साथ सहजता से बांटती हैं. पहले हमारे बीच नकली व सतही शांति कायम रहती थी पर अब आपस में खूब झगड़ने के बावजूद हम एकदूसरे के साथ खुश व संतुष्ट नजर आती हैं.

सब से अच्छी बात यह हुई है कि अब हमारे झगड़ों व शिकायतों के कारण रवि टैंशन में नहीं रहते हैं और उन का ब्लडप्रैशर सामान्य रहने लगा है. सच तो यही है कि इन की खुशियों व विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने के लिए ही मैं ने खुद को बदला है.

‘‘मम्मी और मेरे बीच हो रहे झगड़े में कभी अपनी टांग अड़ाई, तो आप की खैर नहीं,’’ महीने भर पहले दी गई मेरी इस चेतावनी के बाद वे मंदमंद मुसकराते हुए हमें झगड़ते देखते रहते हैं.

‘‘जोरू के गुलाम, कभी तो अपनी मां की तरफ से बोला कर,’’ मम्मीजी जब कभी इन्हें उकसाने को ऐसे डायलौग बोलती हैं, तो ये ठहाका मार कर हंस पड़ते हैं.

सासससुर से दूर रह रही अपनी सीमा दीदी की मौजमस्ती से भरी जिंदगी की तुलना अपनी जिम्मेदारियों भरी जिंदगी से कर के मेरे मन में इस वक्त गलत तरह की भावनाएं कुलबुला रही हैं. सासूमां के ठीक हो जाने के बाद पहला मौका मिलते ही किसी छोटीबड़ी बात पर उन से उलझ कर मैं अपने मन की सारी खीज व तनाव बाहर निकाल फेंकूंगी.

मेरे कौलगर्ल बनने की कहानी…

वो शाम बड़ी उलझन भरी थी. उस ने मेरी ओर देखा. मेरे हाथ को अपने हाथ में ले कर बोला, ”बेहद खूबसूरत हो तुम. क्या अभी तक शादी नहीं की है तुम ने?
फिर मुझे पीछे से पकड़ कर बेतहाशा चूमने लगा. मुझे याद है मिहिर (पति) ऐसा करता था तो मेरे तनबदन में एक लहर सी दौड़ जाती थी. मगर उस दिन मुझे कुछ नहीं हो रहा था. उस ने मुझ से धीरेधीरे कपड़े उतारने को कहा और वह कांच की डिजाइनर गिलास में बियर डालते हुए मुझे अपलक निहारता रहा. वह मुझे भी बियर पिलाना चाहता था.
शाम के 7 बज गए थे और मुझे 9 बजे तक घर पहुंचने की जल्दी थी. मैं जानती हूं, पुरुष को उत्तेजित करो तो वे जल्दी ही चरम पर पहुंच जाते हैं. मैं यही सोच कर उस से लिपट गई तो वह जल्दी ही बैड पर जाने को आतुर हो उठा. शारीरिक भूख शांत होने के बाद वह काफी संतुष्ट और खुश नजर आ रहा था.
उस ने मेरे हाथ में 500-500 के 20 नोट हाथ में रखे तो मैं ने उसे धीरे से पर्स में सरका दिए. मुसकराई और ‘बाय’ कह कर विदा हो ली. मुझे घर जल्दी पहुंचना था ताकि बेटे को संभाल सकूं.

सुंदरता पर मोहित थे सब

मुझे याद है जब मिहिर से मेरी शादी हुई थी तो वह मेरी सुंदरता पर मोहित रहता था. जब मेरी शादी हुई थी तो तब मैं 21 साल की थी. बचपन में तुम बहुत खूबसूरत और अच्छी हो लोगों से सुनती तो बहुत खुश होती थी. पर मेरी सुंदरता ही मेरे राह की दुश्मन बन गई थी. 10वीं के बाद ही मेरी पढ़ाई घर वालों ने बंद करा दी थी. मांपिताजी बचपन में ही गुजर गए थे और जब तक नानानानी जीवित थे तब तक तो सब ठीक था पर उन के मरने के बाद मेरी सारी उम्मीदें खत्म हो गई थीं.
शादी के बाद लगा जिंदगी बदल जाएगी. लगा सब पटरी पर आ गया. प्यार करने वाला पति मिला, एक बेटा हुआ. पर मेरी यह खुशी भी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. एक सड़क दुर्घटना में पति की असमय मौत ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया. बेटे को पालना और पढ़ाना मेरे लिए चुनौती बन गई तो 1-2 जगह नौकरी भी की. पर कम पढीलिखी होने की वजह से 7-8 हजार रुपए महीने से ज्यादा की नौकरी नहीं मिली.
इसी बीच मेरे संपर्क में 1-2 पुरुष आए भी. पर दोनों ने एकएक कर मुझे भोगा और शादी की बात पर भाग खड़े हुए. कोई भी बेटे सहित मुझे अपनाने को तैयार नहीं था.

एक दिन मैं घर के पास वाले पार्क में बैठी थी कि तभी एक युवती आई और मेरे बगल में बैठ गई. बातचीत शुरू हुई तो बाद में घर आनाजाना और दोस्ती गहरी हो गई.

…और फिर एक दिन

एक दिन उस ने मुझे जो बताया उस से मैं हैरान रह गई. वह मुझे कौलगर्ल बनने के लिए बोल रही थी. उस की कही बात मैं कैसे भूल सकती हूं, ”देखो, तुम मुझ से भी ज्यादा स्मार्ट हो, सुंदर हो. पढीलिखी नहीं हो. मगर तुम चाहो तो महीने में 60-70 हजार रुपए कमा सकती हो. इस से तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी. बेटे का भविष्य बना पाओगी. मुझे 2-4 दिन में बता देना. सोचसमझ लो, बाकी मुझ पर छोड़ दो.”
मेरे पास कोई चारा नहीं था. रिश्तेदारी मतलब की थी. पति के मरने के बाद सब धीरेधीरे कटते गए. जो हमदर्दी दिखाते वे इस बहाने मुझे भोगना चाहते थे.
बहुत सोचने के बाद मैं ने तय किया कि मुझे पैसे कमाने हैं. 60-70 हजार महीने के किस को काटते हैं? मुझे पता है कि इस कमाई के लिए अभी उम्र है. 40-42 के बाद फिर जिस्म के खरीदार कम हो जाते हैं.

शरीफों के साथ रंगीन रातें

अब उस युवती ने मुझे पहले तो अपने साथ ब्यूटी पार्लर ले गई फिर पहनावे में भी मुझे पूरी तरह बदल दी. सलवारकुरती की जगह अब आधुनिक कपड़े ने ले लिया था. मैं सप्ताह में लगभग 4-5 दिन ग्राहकों को अपना जिस्म बेचती हूं. हर बार के मुझे कम से कम 6-8 हजार और कभीकभी तो 10 हजार रुपए तक मिल जाते हैं. मैं तथाकथित शरीफ लोगों के साथ थ्री, फोर और फाइव स्टार होटल में होती हूं. मुफ्त में खाना मिलता है, गिफ्ट मिलते हैं और पैसे भी.
वह युवती भी अब मेरे साथ एक ही फ्लैट में रहती है. हम दोनों ही पिछले 3-4 साल से यह सब कर रहे हैं.
अब पैसे रहने की वजह से बेटे का दाखिला अच्छे स्कूल में करवा दिया है. उसे ट्यूशन देती हूं. पर दिल के अंदर एक हुक सी उठती है कभीकभी.

काश, मैं पढ़ीलिखी होती

मुझे पता है मैं क्या कर रही हूं. पर मुझे इस का मलाल नहीं है. पति के मरने के बाद दरदर की ठोकरें खाई थी, अब कम से कम पास में पैसे तो होते हैं, मन की कर तो सकती हूं, बेटे को उस की पसंद के खिलौने तो दे सकती हूं, मनपसंद खापी और पहन तो सकती हूं…
कभीकभी मन दुखी होता है तो छत को निहारते हुए सोचती हूं कि औरत का जीवन भी क्या है? क्या उस का पूरा जीवन ही संघर्ष के लिए बना है?
मुझे लगता है कि अगर मैं पढ़ीलिखी होती तो शायद ये दिन नहीं देखने पड़ते.
मैं जहां रहती हूं वहां किसी को पता नहीं मैं क्या करती हूं, कहां जाती हूं. शहरी जिंदगी में तो लोग वैसे भी मतलब तक नहीं रखना चाहते.

मैं क्या करूं

मैंं तो कहूंगी कि भारतीय परिवार में बेटों से ज्यादा बेटियों को पढ़ाना चाहिए, उन्हें शिक्षित बनाना चाहिए क्योंकि कब किस के साथ क्या घटित हो जाएगा यह कौन जानता है? अपनी नजरों में मैं एक कौलगर्ल हूं, जिसे देशी भाषा में वेश्या भी कहते हैं. पर मैं कर भी क्या सकती थी? अब मेरे पास 5-7 लाख रुपए इकट्ठे हो चुके हैं. मुझे सलाह दीजिए कि अब मुझे क्या करना चाहिए? इस जिंदगी ने पैसा तो दिया पर अब आजिज आ चुकी हूं. कल को बेटे को क्या जवाब दूंगी? कृपया उचित सलाह दें.

सैक्स टौयज का बढ़ता चलन

कुछ समय पहले दिल्ली से मेरठ जाना हुआ था. बस का सफर था तो खिड़की वाली सीट यह समझ कर लपक ली कि सफर में हवा खाने का मजा उठाया जाएगा. जैसे ही कश्मीरी गेट आईएसबीटी से बस चलने को हुई कि तड़तड़ाते हरेपीले रंगों के विजिटिंग कार्ड खिड़की से अंदर आ गिरे.

कुछ कार्ड सवारियों के मुंह पर लगते हुए गोद में जा गिरे, कुछ टकरा कर बस के फर्श पर, कुछ वहीं सीट पर.

कार्ड बस के अंदर फेंकने वाला कोई 15-16 साल का लड़का ऐसे चलते बना मानो उस ने हमारे मुंह पर कार्ड मार कर कोई एहसान किया हो.

मैं ने बगल वाली सीट पर गिरे एक कार्ड को उठा कर देखा तो ऊपर पहली लाइन लिखी थी, ‘भटको चाहे जिधर, काम होगा इधर.’ अगली लाइन पढ़ कर मैं झेंप गया. लिखा था, ‘तंत्रमंत्र के सम्राट, गुप्त रोगों का इलाज, बाबा बंगाली.’

इस लाइन को पढ़ते हुए मैं ने नजर यहांवहां घुमाई, किसी का ध्यान नहीं था तो चुपके से आगे पढ़ने लगा. लिखा था, ‘शीघ्रपतन, धात, स्वप्नदोष, नामर्दी, बेऔलाद, लिंग का टेढ़ापन, छोटापन व पतलापन, शुक्राणु की कमी और स्त्री गुप्त रोगी शीघ्र मिलें.’

‘शीघ्र मिलें’ वाली बात से मुझे यह समझ आ गया कि यह समाज की एक बड़ी विकट समस्या है वरना कोई यों ही जल्दी क्यों बुलाएगा? दूसरा यह कि लोगों की इस तरह कि समस्याएं हैं वरना कोई कार्ड में क्यों छपवाएगा?

इस के अलावा कार्ड में वशीकरण, मुठकरनी, सौतन से छुटकारा, विदेश जाने में रुकावट, गृहक्लेश का इलाज शर्तिया था. इलाज शर्तिया था और इलाज का तरीका तंत्रमंत्र और भस्म बूटी से था, तो लगा देश में लोगों को बेवकूफ बनाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं. या तो ‘अच्छे दिनों’ के वादे करो या ‘अच्छी रातों’ के, और जब देश में दिन और रात अच्छे करने वाले शर्तिया लोग बैठे ही हैं, तो आम आदमी को काहे का डर.

हालांकि मैं इस तरह के इश्तिहार सड़क किनारे बने शौचालय की दीवारों, बसस्टैंड और राह चलते सरकारी खंभों पर पहले भी देख चुका था. लेकिन सटीक स्टडी पहली बार हो पाया. दरअसल, यही वे इश्तिहार हैं जिन को हम उम्मीद का हद कहते हैं, ये इश्तिहार उन लोगों की उम्मीद बनते हैं, जो खुद की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते और फिर भागेभागे फिरते हैं, इन बेसिरपैर के इश्तिहारों के पीछे.

ऐसे इश्तिहार अखबारों में भी दिख जाते हैं, जिन्हें पढ़ने से हम कतराते हैं. अखबारों में आने वाले इश्तिहार से लगता भी है कि इन के पास कस्टमर पक्के फंसते भी होंगे और कष्ट से मरते भी होंगे. तभी तो इन का इश्तिहार देने का खर्चा निकल रहा है.

अब ये लोग शर्तिया इलाज कर पाएं या न कर पाएं, पर ये एक जानकारी जरूर दिमाग में डाल जाते हैं कि आज लोगों को अपने साथी से सैक्स का सुखद अनुभव उस तरह से नहीं मिल पा रहा जैसा वे किसी पोर्न फिल्म में देख कर महसूस करते हैं. जहां मर्द अपने गठीले जिस्म और सुडौल अंग से अपनी औरत साथी को पूरी तरह से झकझोर देता है और वह औरत साथी सिसकियां लेले कर चरम सुख का मजा लेती है.

सैक्स का मनोविज्ञान

पोर्न फिल्मों में दिखाए गए ये सीन किसी आम मर्द को खुद की नजरों में और भी गिरा देने वाले होते हैं कि वह तो फलां रात को अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ बिस्तर पर ठीक से 10 सैकंड भी नहीं बिता पाया था. वह दुर्ग द्वार पर दस्तक तो दे आया, पर उसे ठीक से खटखटा नहीं पाया. ऐसे में 5 मिनट भी बिस्तर पर लगातार बने रहना किसी सपने सा ही लगता है.

महान मनोवैज्ञानिक सिंगमड फ्रायड ने अपने अनुभव में भी पाया था कि जब कोई मर्दऔरत बिस्तर पर सैक्स कर रहे होते हैं, तब उन दोनों के दिमाग के भीतर 2 और शख्स मौजूद रहते हैं.

उन का मानना था कि ये 2 शख्स उन की कल्पनाओं में तैरते हैं, जो उन की इच्छाएं दिखाते हैं. वे जिस तरह के साथी की अभिभूति चाहते हैं, उसे वे अपने दिमाग में भरना शुरू कर देते हैं. इस से समझा जा सकता है कि किसी इनसान की जिंदगी में सैक्स का ठीक से होना या न होना किस हद तक उस की जिंदगी को प्रभावित कर सकता है.

लोग चाहे कितना ही कह लें कि सैक्स गंदा है, अश्लील है, भौंड़ा है, पर असल में मर्दऔरत के बीच प्यार और लगाव का रिश्ता सैक्स के चलते पूरा होता है. यही सैक्स है, जो उस प्यार की डोर को कस कर बांधे रखता है, रिश्ते में ऊर्जा, उत्तेजना और उत्साह भरता है. यही सैक्स है, जो रिश्तों में कड़वाहट बनने और न बनने की वजह भी बनता है.

प्यार में बेवफाई

आजकल तो फिल्मों में भी सैक्स से जुड़े मुद्दों को लाने की कोशिशें होने लगी हैं. यौन सुख की कमी या खराब सैक्स संबंध को सिनेमा में भी दिखाया जा रहा है. बौलीवुड फिल्म और वैब सीरीज जैसे ‘वीरे दी वैडिंग’, ‘फोर मोर शौट्स प्लीज’, ‘लस्ट स्टोरी’ में औरतों को परदे पर सैक्स टौयज द्वारा सैक्स का मजा लेते हुए खुल कर दिखाया गया.

फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ में मर्दाना कमजोरी पर फोकस किया गया था. फिर सवाल यह उठता है कि जब यह विषय इतना गंभीर है तो इस पर चर्चा क्यों न की जाए? क्यों न मर्दऔरत के बीच बेहतर सैक्स संबंधों को बनाने के लिए हल खोजा जाए? वजह, बात सिर्फ सैक्स संबंधों की नहीं, इस के इतर आपसी रिश्ते को जोड़े रखने की भी है. अगर सैक्स संबंध ठीक से नहीं चल रहे हैं तो रिश्ते बिगड़ने और धोखेबाजी की नौबत आ जाती है.

मनोचिकित्सक इस्थर पेरेल ने सकल 2017 में छपी अपनी किताब ‘द स्टेट औफ अफैयर्स : रीथिंकिंग इनफिडेलिटी’ में बताया था कि धोखा देना या बेवफाई को पूरी दुनिया में बुरा तो माना जाता है, लेकिन फिर भी यह सभी जगह होती है. वे लिखती हैं, ‘मौजूदा वक्त में प्रेम संबंध जल्दी टूटने लगे हैं. वे ज्यादा वक्त तक साथ निभाने वाले नहीं होते और उन में नैतिकता की कमी भी होती है.’

हम पूरी दुनिया में यह खोजने निकलें कि आखिर बेवफाई का मतलब क्या होता है तो आमतौर पर सैक्स संबंधों में धोखा मिलना बेवफाई का सीधा और तीखा संकेत माना जाता है. ठीक से सैक्स न मिलना और इसे पाने के लिए किसी दूसरी जगह मुंह मारना बेवफाई कहलाती है.

सैक्स टौयज हैं औप्शन

अब इन समस्याओं को रोकने के लिए बाबा बंगाली की भस्म और तंत्रमंत्र कितने काम आते हैं, यह बातें तो गुप्त रह जाती हैं, पर एक बेहतर सैक्स के लिए सैक्स टौयज की मांग जोरों पर है, जो भारतीय समाज में अनैतिक तो मानी जा रही है, पर ये ऐसे प्रोडक्ट हैं, जिन से इस्तेमाल करने वाला खुद को संतुष्ट महसूस कर रहा है.

संस्कारी कानूनों से इतर हकीकत यह है कि भारत में सैक्स टौयज का बाजार 2 अरब रुपए के आसपास हो चला है. इस में साल 2019 में 34 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना जताई गई है. अगर इन से कानून की सख्ती हट जाती है तो यह बाजार और भी तेजी से बढ़ेगा.

सैक्स टौयज सैक्स संबंधित ऐसे उपकरण हैं, जिन का इस्तेमाल पार्टनर के न होने पर भी सैक्स का चरम सुख हासिल करने के लिए किया जाता है. इस के साथ ही अपने पार्टनर के साथ सैक्स संबंध को और मजेदार बनाने के लिए भी इन की मदद ली जाती है.

कोरोना महामारी के समय लगे लौकडाउन के दौरान लोगों ने इन सैक्स टौयज का खूब इस्तेमाल किया. उस दौरान तो इन की खरीद में 65 फीसदी का उछाल देखा गया. इन में मुख्य तौर से ‘मसाजर’ और ‘मास्टरबेटर’ यानी वाइब्रेटर की बिक्री सब से ज्यादा हुई. वहीं लोगों को इन उत्पादों से संबंधित जानकारी जानने की उत्सुकता पैदा हुई. यही वजह भी है कि बाजार में तमाम औनलाइन प्लेटफौर्म पर सैक्स टौयज के उत्पाद खुले बिकते दिखाई देते हैं.

ध्यान देने वाली बातें

जहां एक तरफ सैक्स टौयज के कुछ फायदे हैं, वहीं दूसरी तरफ इन की कुछ कमियां भी हैं. जैसे सैक्स टौय डिल्डो और बट प्लग्स मुलायम सिलिकोन के तो होते हैं, पर थोड़ेबहुत खुरदरे भी होते हैं, जिस के चलते अंग में जलन हो सकती है. ऐसे में संभल कर इस का इस्तेमाल जरूरी है.

अगर आप सैक्स टौयज को नियमित तौर पर साफ नहीं करते हैं (ऐसे टौयज, जिन्हें शरीर में अंदर डाला जाता है) तो शरीर से निकला हुआ तरल पदार्थ उन पर लगा रहता है और इस से संक्रमण होने का खतरा बना रहता है, इसलिए इंस्ट्रक्शन लेते हुए नियमित सफाई जरूर कर लें.

किसी और के साथ अपना सैक्स टौय शेयर न करें, क्योंकि इस से संक्रमण हो सकता है. हालांकि सैक्स टौयज में कुछेक प्रोडक्ट को छोड़ कर ज्यादातर बाहरी तौर पर सैक्स ऐक्टिविटी के मकसद से बनाए गए हैं, जिस के चलते ज्यादातर प्रोडक्ट को शेयर किया जा सकता है, पर फिर भी कोशिश करें कि अपने साथी के अलावा इन प्रोडक्ट को शेयर न करें.

रोहित

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