ठगी के रंग हजार

ठगी एक ऐसा शब्द है जो हमारे जेहन में हैं मगर इसके  बावजूद हम और हमारे आसपास के लोग अक्सर ठगी का शिकार हो जाते हैं ठगी की दुनिया में एक पहलू मोबाइल टावर लगाने का भी है विगत एक दशक में जाने कितनी बार यह समाचार सुर्खियों में आता रहा है मगर टावर के नाम पर लोग निरंतर ठगे जा रहे हैं इसके गिरोह निरंतर मजबूत होते जा रहे हैं इसी की बानगी छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल रही है और पुलिस ने इस पर नकेल लगाने  में एक बड़ी सफलता प्राप्त की है.

 

छत्तीसगढ़ की दुर्ग जिला पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया है जो दिल्ली में बैठकर छतीसगढ़ के विभिन्न नगर कस्बों  में मोबाइल टावर लगाने के नाम पर लोगों को ठगी का शिकार बना चुका हैं. एक सनसनीखेज मामले में एक महिला से आरोपी  62 लाख रूपए ऐंठ चुके थे. पुलिस ने गिरोह के सात सदस्यों को गिरफ्तार किया है, जबकि अभी भी आठ आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. जिनकी तलाश पुलिस द्वारा सरगर्मी से की जा रही है.

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ठगी की अनंत कथाएं

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के  खुर्सीपार की एक बुजुर्ग महिला से इस गिरोह ने लाखों की ठगी की है. पिछले तीन साल में अलग-अलग कहानी व किस्से गढ़ते हुए बुजुर्ग महिला से इस गिरोह ने 62 लाख 2500 रुपए मोबाइल टावर लगाने के नाम पर  भारी रकम ठग ली .सन 2015 से शुरू हुआ यह प्रकरण दिसंबर  2019 तक चला . कभी बीमा पॉलिसी के रुपए निकालने, तो कभी चालान बनाने तो कभी रुपए जारी कराने के नाम पर बुजुर्ग महिला से ठगी होती रही.

इस मामले में पीड़िता महिला  पुलिस अधीक्षक दुर्ग के समक्ष जुलाई माह में शिकायत की. शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस काफी सजगता के साथ अलग-अलग शहरों से सात आरोपियों को गिरफ्तार  करके छत्तीसगढ़ लाई है. वहीं 8 आरोपी अब भी फरार हैं जिनकी तलाश पुलिस द्वारा सरगर्मी से की जा रही है. इस तरह छत्तीसगढ़ में भी मोबाइल टावर के नाम पर ठगी की घटनाएं घटित हो चुकी हैं जिनमें हाल ही में घटित हुई हैं वह यह है-

पहला प्रकरण- आदिवासी जिला कोरबा के पसान थाना अंतर्गत लैगा में मोबाइल टावर लगाने के नाम पर डेढ़ लाख रुपए ठग लिए गए मामला अंततः थाना पहुंचा.

दूसरा प्रकरण -छत्तीसगढ़ के मुंगेली  मोबाइल ठगी के नाम पर अलग-अलग तीन जगहों पर 3 के मामले सामने आए.

तीसरा  प्रकरण- जगदलपुर के थाना क्षेत्रों में चार मामले मोबाइल टावर ठगी के दर्ज हुए कुछ गिरफ्तारियां भी हुई. छत्तीसगढ़ के विभिन्न जगहों पर मोबाइल टावर के नाम पर लोगों को ठगा गया है इसके बावजूद जागृति की कमी की वजह से लोग आज भी निरंतर ठगे जा रहे हैं.

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हाईटेक चुके हैं ठग!

पुलिस अधिकारी ने अजय यादव ने हमारे संवाददाता को बताया कि दिल्ली के यह  ठग दरअसल मानो  पूरी कंपनी चला रहे थे. आरोपियों के पास से बड़ी संख्या में लैंड लाइन फोन, मोबाइल फोन, बीमा प्लान, एटीएम कार्ड, आईकार्ड, मोबाइल डेटा व लेखाजोखा जब्त किया गया. आरोपियों ने बुजुर्ग महिला मनोरमा जैन के अलावा 500 लोगों को अलग-अलग मोबाइल नंबरों से कॉल किया और इनसे भी लाखों रुपए  की रकम ठगी की है.

आरोपियों को पकड़ने के लिए साइबर सेल की टीम लगातार काम कर रही थी. बेहद समझदारी के साथ पीड़िता को आरोपियों के संपर्क में रखा  और उनके द्वारा किए जा रहे कॉल को ट्रेस करती रही. जिसके बाद अंततः पुलिस की टीम आरोपियों तक पहुंची. पुलिस ने आरोपियों को गिफ्ट में लेकर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया है.

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मकड़जाल में फंसी जुलेखा: भाग 2

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लेखक- अलंकृत कश्यप

मनमाफिक माहौल न पा कर वहां से जुलेखा का मन ऊबने लगा. देर रात तक कंपनी के औफिस के काम को निपटाना और रोजाना देर से घर पहुंचना उस की आदत सी हो गई थी. इस दिनचर्या से वह तंग आ चुकी थी.

जुलेखा की परेशानी अवधेश यादव से छिपी न रह सकी. एक दिन अवधेश ने संजय यादव के साले गुड्डू से जुलेखा को एकांत में बुलवा कर समझाया, ‘‘जुलेखा, तुम यहां कंप्यूटर टाइपिंग का जो काम करती हो, इस से तुम्हारा कैरियर नहीं बन पाएगा. तुम्हें बंधीबंधाई जो सैलरी मिलती है, उस से तुम क्याक्या कर सकती हो. यह बात तो तुम जानती ही हो कि रियल एस्टेट के काम में अच्छा पैसा है. तुम यहां कंपनी के प्लौट बुक कराने शुरू कर दोगी तो अच्छा कमीशन मिलेगा. साथ ही देर रात तक चलने वाले कंप्यूटर के काम से निजात मिल जाएगी.’’

इस के बाद कंपनी के मालिक संजय यादव ने भी जुलेखा को प्लौट बुकिंग से मिलने वाले कमीशन के बारे में बताया. संजय यादव की बात जुलेखा की समझ में आ गई. उस ने कंपनी के कई प्लौट बुक कराए. जब एक महीने में पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई हुई तो जुलेखा और ज्यादा मेहनत करने लगी.

जुलेखा ने काफी मेहनत से काम किया. वह हर महीने 2-3 प्लौट बिकवा देती थी, जिस से उस का अच्छा कमीशन बन जाता था.

जुलेखा को संजय यादव की रियल एस्टेट कंपनी में काम करते हुए लगभग एक साल हो चुका था. इसी बीच अगस्त, 2019 में फेसबुक के माध्यम से उस की श्रेयांश त्रिपाठी से दोस्ती हुई. बाद में उन की दोस्ती बढ़ी तो मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. इस के बाद श्रेयांश भी जुलेखा के काम में हाथ बंटाने लगा.

वह भी प्लौट खरीदने वाले जरूरतमंदों को जुलेखा के पास लाता था. इस काम में संजय यादव उस की काफी मदद करता था. धीरेधीरे संजय यादव से जुलेखा के घनिष्ठ संबंध हो गए, जो अवैध संबंधों तक पहुंचे.

संजय यादव पर जुलेखा के करीब 25 लाख रुपए हो गए. यह रकम प्लौट की कमीशन की थी. जुलेखा जब भी उस से पैसे मांगती, वह टाल देता था. आशनाई की आड़ में वह जुलेखा की कमीशन की रकम हड़पना चाहता था.

संजय यादव के इरादे भांप कर जुलेखा अपने 25 लाख रुपए जल्द देने की जिद पर अड़ गई तो संजय परेशान हो गया. उस ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जबकि जुलेखा उस पर एक पाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी. इस बात को ले कर उस का संजय यादव से काफी विवाद हुआ.

पैसे का विवाद बना बड़ा कारण

उसी समय अवधेश यादव वहां आ गया. उस के कहने पर संजय यादव ने 3 लाख रुपए का चैक बना कर जुलेखा को दे दिया. उस के 22 लाख रुपए बाकी रह गए थे. विरोध जताते हुए जुलेखा ने वह चैक लौटा दिया और उस से पूरी रकम देने को कहा.

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झगड़ा बढ़ने पर संजय यादव ने उसे धमकी दी कि जो पैसे मिल रहे हैं, उन्हें रख लो नहीं तो मुझे केवल 3-4 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे. फिर तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा कि कहां गई.

संजय यादव से हुए इस विवाद के बाद जुलेखा ने दूसरी कंपनी जौइन करने का मन बना लिया. उस ने संजय को धमकी दी कि वह कोर्ट के माध्यम से अपने पैसे ले कर रहेगी.

जुलेखा की इस धमकी से संजय यादव परेशान हो गया. उस ने अवधेश यादव, अजय यादव और अपने साले गुड्डू यादव के साथ मिल कर इस समस्या पर विचारविमर्श किया. इन लोगों ने फैसला लिया कि जुलेखा को हमेशा के लिए ही निपटाना सही रहेगा, वरना यह आगे चल कर परेशानी खड़ी करती रहेगी.

योजना के अनुसार 3 अगस्त, 2019 को अवधेश यादव ने जुलेखा से कहा, ‘‘संजय पर तुम्हारे जो 25 लाख रुपए बकाया हैं, वह मैं तुम्हें दिलवा दूंगा. लेकिन तुम यहां से नौकरी छोड़ कर मत जाओ.’’

अवधेश यादव के बुलाने पर जुलेखा घर से कंपनी औफिस जाने को निकली. उस ने रास्ते में अपने दोस्त श्रेयांश त्रिपाठी को फोन कर के बाइक से बारह विरवा बुला लिया. उस की बाइक पर बैठ कर जुलेखा अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाने के लिए नहर से नीचे मुड़ी ही थी, तभी सामने से अजय यादव कार से आता दिखाई दिया. कार अजय यादव चला रहा था और पीछे की सीट पर अवधेश यादव बैठा था.

उसे देखते ही संजय ने कार रोक दी. अवधेश ने बाइक पर बैठी जुलेखा से कहा कि वह कार में बैठ जाए, जिस से वह संजय से उस का हिसाब करा सके.

लालच में जुलेखा कार में पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उस ने अपने दोस्त श्रेयांश से कह दिया कि इन लोगों से बात करने के बाद वह बड़ी बहन रूबी के पास चली जाएगी. कुछ दूर तक श्रेयांश बाइक से कार के पीछेपीछे गया, तभी कार में बैठी जुलेखा ने उसे जाने का इशारा किया तो श्रेयांश अपने घर लौट गया.

कार में बैठी जुलेखा अवधेश से बात कर रही थी. उसी समय रास्ते में अचानक बंगला बाजार पकरी के पास संजय यादव का साला गुड्डू यादव मिल गया. कार रुकते ही वह भी कार में बैठ गया. उसे देख कर वह भड़क गई. वह कार से उतर रही थी, तभी अवधेश ने उसे समझा कर रोक लिया. फिर गुड्डू भी जुलेखा के बगल में बैठ गया. वह अवधेश से अपने पैसों के बारे में बातें कर रही थी.

लाश लगा दी ठिकाने

उन की बातों में गुड्डू भी कूद पड़ा. बातों के दौरान गुड्डू और जुलेखा का वाकयुद्ध शुरू हो गया. अजय ने कार रोक दी, फिर अजय और गुड्डू ने जुलेखा के बाल पकड़ कर सीट पर झुका दिया और जुलेखा के ही दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मृत्यु हो गई.

जुलेखा की लाश को ले कर वे तीनों रायबरेली के निकट हरचंद्रपुर में साई नदी के पास पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. गुड्डू यादव और अजय यादव ने अवधेश के सहयोग से जुलेखा की लाश नदी में फेंक दी. उस के बाद टोल प्लाजा होते हुए वह लखनऊ लौट आए.

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जुलेखा की हत्या के बाद गुड्डू यादव, अवधेश यादव व अजय यादव पूरी तरह से निश्चिंत थे कि पुलिस उन तक नहीं पहुंचेगी. लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ ही गए.

गुड्डू यादव का कहना था कि जुलेखा ने उस के बहनोई संजय यादव से अवैध संबंध बना लिए थे, जिस की वजह से उस की बहन का घरपरिवार उजड़ रहा था.

दिनरात घर में कलह होती थी. इसी वजह से वह उस के दिमाग में खटक रही थी. इस बात को ले कर वह जुलेखा से रंजिश रखने लगा था. 3 अगस्त, 2019 को कार में हुए विवाद में जुलेखा की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

अभियुक्त गुड्डू यादव और अजय यादव से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 147, 364, 302, 201, 376, 34 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को सिपाही कृष्ण बंसल एवं हलका एसआई सुभाष सिंह के द्वारा सूचना मिली कि मुख्य आरोपी संजय यादव न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए पहुंचा है, तो थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम ने 13 अगस्त, 2019 को संजय यादव को न्यायालय परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में संजय ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उसे भी पुलिस ने कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. अब एक अभियुक्त अवधेश यादव शेष बचा है. उस के ठिकानों पर भी पुलिस ने दबिश दी. जब वह 28 अगस्त को कोर्ट में आत्मसमर्पण करने जा रहा था, पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसे भी जेल भेज दिया गया.

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कुंवारा था, कुंवारा ही रह गया: भाग 2

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लेखक- आर.के. राजू

उन्होंने बाहर आ कर देखा तो सब सुनसान था. उन्होंने नीचे कमरे में सो रहे अपने ससुर वीरू सैनी को जगाते हुए कहा कि मेनगेट खुला पड़ा है, क्या कोई बाहर गया हुआ है?

दुलहन पूजा ने खेला खेल

वीरू सैनी ने संजय के कमरे में आवाज दी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. फिर उन्होंने संजय को जोरजोर आवाजें लगाईं तो संजय तो नहीं उठा लेकिन पिता की आवाज से ऊपर के कमरे में सोया उन का छोटा बेटा प्रदीप जरूर जाग गया.

वह नीचे उतर कर आया और संजय के कमरे में जा कर देखा, संजय बेसुध अवस्था में सोया हुआ था. उस ने उसे उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. वह बेहोशी की हालत में था.

घर से नईनवेली दुलहन पूजा व उस की मौसी आशा गायब थीं. दूसरे कमरे में संजय की बहनें व भांजेभांजियां भी बेहोशी की हालत में थे. इस के बाद तो पूरे घर में कोहराम मच गया. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग भी जाग गए थे.

उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई.

पुलिस वालों को मामला समझने में देर नहीं लगी और वे घर में बेहोशी की हालत में पड़े संजय, उस की बहनें मंजू व लक्ष्मी तथा उन के बच्चों चंचल व अंकित को अपनी गाड़ी से दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए.

अस्पताल में भरती सभी 5 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई थी. डाक्टर उन के इलाज में जुटे थे. सूचना पा कर थाना सिविल लाइंस के प्रभारी शक्ति सिंह व क्षेत्राधिकारी राजेश कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अगले दिन उन्हें होश आया तो थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की.

संजय सैनी ने उन्हें बताया कि उस की नईनवेली पत्नी पूजा ने उसे खाना खिलाया. खाना खाने के बाद उसे बेहोशी सी छाने लगी थी. इस के बाद उसे पता नहीं रहा. आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया. तब घर वालों ने बताया कि पूजा और उस की मौसी घर का कीमती सामान ले कर लापता हो चुकी हैं.

इस के बाद संजय के बहनोई और मोहल्ले के लोग पूजा और उस की मौसी को ढूंढने के लिए रेलवे स्टेशन, बसअड्डा आदि जगहों पर चले गए. लेकिन उन दोनों में से कोई भी नहीं मिला. निराश हो कर वे घर लौट आए.

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पुलिस ने जब वीरू सैनी से गायब सामान के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि दुलहन पूजा और उस की मौसी घर से 16 हजार रुपए नकद, सोने की चेन, सोने के कुंडल, पेंडल समेत अन्य जेवर और कीमती कपड़े ले गई हैं.

वीरू सैनी की तहरीर पर पुलिस ने पूजा और उस की मौसी आशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आ गई.

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने लुटेरी दुलहन और उस के गैंग के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (सिटी) अंकित मित्तल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शक्ति सिंह, हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा आदि को शामिल किया गया.

राजपाल नाम के जिस बिचौलिए के मार्फत संजय की शादी कराई गई थी, पुलिस ने उस का फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. साथ ही पूजा की मौसी का फोन भी नहीं लग रहा था.

इसी बीच थानाप्रभारी शक्ति सिंह का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह इंसपेक्टर नवल मारवाह ने थाने का कार्यभार संभाला. वह इस केस की जांच में जुट गए. पुलिस ने आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. इस के अलावा मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

इस काररवाई के आधार पर पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला महादेवपुरा से अभियुक्त पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूजा के घर से पुलिस को एक अन्य युवती भी मिली. उस का नाम जयंती था.

जयंती से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जिला ऊधमसिंह नगर के कस्बा सितारगंज के शक्ति फार्म की निवासी है. वह एक बेटी की मां है. अपने पति को उस ने छोड़ रखा है. उस ने बताया कि वह भी पूजा की तरह शादी करने के बाद लोगों को लूटती है. यह काम वह मौसी आशा के इशारे पर करती है. पुलिस पूजा और जयंती को गिरफ्तार कर मुरादाबाद ले आई.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो जयंती ने बताया कि मौसी आशा ने जन्माष्टमी से 2 दिन पहले 22 अगस्त, 2019 को अरुण नामक युवक से मंदिर में उस की शादी करवाई थी. इस शादी के बदले आशा ने उसे 10 हजार रुपए देने का वादा किया था.

शादी के बाद घूमने के बहाने वह और उस का कथित पति अरुण व मौसी आशा के साथ ऊधमसिंह नगर के एक होटल में आ कर ठहरे थे. वहां पर आशा ने अरुण से और पैसों की मांग की. अरुण के पास उस समय पैसे नहीं थे. उस ने कहा कि वह पैसे कल दे देगा. जब अरुण सो गया तो आशा मौसी और वह उसे सोता छोड़ कर भाग गए थे.

जयंती भी शामिल थी इस गिरोह में

जयंती ने बताया कि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. उस की शादी एक जेल वार्डन के बेटे से हुई थी. समस्या यह थी कि ससुराल में नौनवेज कोई नहीं खाता था, जबकि जयंती मीट, मछली खाने की शौकीन थी. यह बात उसने अपने पति से बताई तो उस ने भी कह दिया कि यहां नौनवेज खाना तो दूर, पकाने तक पर भी प्रतिबंध है.

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ऐसी हालत में जयंती का वहां रहना मुश्किल था, लिहाजा वह वहां से रिश्ता तोड़ कर चली आई और किसी के जरिए आशा मौसी के संपर्क में आई. फिर आशा ने उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया.

जयंती के पास से पुलिस को 2 जोड़ी पाजेब, नाक का एक फूल, सोने की एक अंगूठी मिली. अभियुक्त पूजा उर्फ कविता की शादी पीलीभीत में हुई थी. पूजा का 6 साल का एक बेटा भी है, जो पिता के पास ही रहता है.

पुलिस छानबीन में पता चला कि उक्त गिरोह में 6 लोग शामिल हैं, जोकि लोगों को ठगी का शिकार बनाने के लिए अलगअलग शहरों में किराए का मकान ले कर ऐसे परिवारों के सदस्य का पता लगाते थे, जिस की शादी नहीं हो पा रही हो.

ये लोग ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसा कर पहले लड़की दिखाते हैं. लड़की पसंद आने के बाद इस गिरोह का मास्टरमाइंड बरेली का एक कथित ठेकेदार राम सिंह एडवांस में मोटी रकम ऐंठ लेता है. वही शादी की तारीख देता है. तय समय में शादी हो जाती थी.

जब बहू विदा हो कर ससुराल जाती थी तो इन की कथित मौसी आशा बहू के साथ रह जाती थी. वही कन्यादान भी करती थी. रात के खाने में नशीला पदार्थ मिला कर परिवार के लोगों को खिलाया जाता. फिर जब सब नशे में बेहोश हो जाते तो दोनों जेवर, रुपए व कीमती कपड़े ले कर फरार हो जातीं.

अभी तक पुलिस को इस गिरोह के 6 लोगों का पता चला है. पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को दोनों लुटेरी दुलहनों पूजा उर्फ कविता और जयंती को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

मामले की विवेचना मौजूदा थानाप्रभारी नवल मारवाह कर रहे हैं. कथा लिखने तक पुलिस अन्य आरोपियों की सरगरमी से तलाश रही थी.

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मकड़जाल में फंसी जुलेखा: भाग 1

लेखक- अलंकृत कश्यप

जुलेखा लखनऊ के आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. नाम की रियल एस्टेट कंपनी में नौकरी करती थी. वह रोजाना की तरह 3 अगस्त,

2019 को भी हंसखेड़ा स्थित अपने घर से ड्यूटी के लिए निकली, लेकिन शाम को निर्धारित समय पर घर नहीं पहुंची तो मां शरबती को चिंता हुई.

भाई नफीस ने जुलेखा के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब जुलेखा से फोन पर संपर्क नहीं हो सका तो उस ने मां शरबती को समझाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, हो सकता है कंपनी के काम में ज्यादा व्यस्त होने की वजह से जुलेखा ने अपना फोन बंद कर लिया हो. आप परेशान न हों, देर रात तक घर लौट आएगी.’’

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कभीकभी औफिस में ज्यादा काम होने पर जुलेखा को घर लौटने में देर हो जाती थी. तब वह घर पर फोन कर के सूचना दे दिया करती थी. लेकिन उस दिन उस ने देर से लौटने की कोई सूचना घर वालों को नहीं दी थी, इसलिए सब को चिंता हो रही थी.

जुलेखा का एक दोस्त था श्रेयांश त्रिपाठी. नफीस ने सोचा कि कहीं वह उस के साथ तो नहीं है, इसलिए उस ने बहन के बारे में जानकारी लेने के लिए श्रेयांश को फोन किया. लेकिन उस का फोन भी बंद मिला.

देर रात तक नफीस, उस की मां शरबती और पिता शरीफ अहमद जुलेखा के लौटने का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटी. सुबह होने पर नफीस ने पिता से कहा कि हमें यह सूचना जल्द से जल्द पुलिस को दे देनी चाहिए.

लेकिन मां शरबती ने कहा, ‘‘इस मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है. थाने जाने से पहले उस के औफिस जा कर कंपनी के मालिक संजय यादव से पूछताछ कर ली जाए कि उन्होंने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर तो नहीं भेजा है.’’

नफीस के दिमाग में बात आ गई. उस ने बहन के औफिस जा कर कंपनी मालिक संजय यादव से संपर्क किया तो उस ने बताया कि जुलेखा कल वृंदावन कालोनी स्थित किसी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंटरव्यू देने गई थी. वह तेलीबाग के चौराहे तक उसे अपनी कार में ले गया था और वहां पास ही स्थित वृंदावन कालोनी के गेट पर कार से उतर गई थी. उस के बाद वह कहां गई, उसे पता नहीं है. वह वृंदावन सोसायटी में रहने वाली बड़ी बहन रूबी के पास जाने को भी कह रही थी.

‘‘वह रूबी के यहां नहीं पहुंची.’’ नफीस बोला.

‘‘हो सकता है वह कहीं और चली गई हो. उस के आने का इंजजार करो. हो सकता है 2-4 दिन में लौट आए.’’

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संजय से भरोसा मिलने के बाद नफीस घर लौट आया. लेकिन उस का मन कई प्रकार की आशंकाओं से भर उठा.

नफीस और उस के मातापिता 3 दिन तक जुलेखा के घर आने का इंतजार करते रहे. जब वह नहीं आई तो 5 अगस्त, 2019 को नफीस थाना पारा पहुंचा और थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिल कर जुलेखा के बारे में उन्हें विस्तार से बताया.

थानाप्रभारी की टालमटोल

अमित इंफ्रा हाइट्स कंपनी का नाम सुन कर थानाप्रभारी टालमटोल करते हुए बोले कि 2 दिन और देख लो. 2 दिन बाद भी वह न आए तो थाने आ जाना.

थानाप्रभारी के आश्वासन पर नफीस घर चला गया. 2 दिन बाद भी जुलेखा नहीं आई तो 7 अगस्त, 2019 को नफीस फिर से थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिला और रिपोर्ट दर्ज कर बहन को तलाश करने की मांग की. लेकिन उन्होंने उसे समझाबुझा कर अगले दिन आने को कह दिया. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

इस के बाद नफीस 9 अगस्त, 2019 को एसएसपी कलानिधि नैथानी से मिला और जुलेखा के गायब होने की बात बताते हुए कहा कि जुलेखा आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी में काम करने वाले संजय यादव, अवधेश यादव, गुड्डू यादव और अजय यादव के संपर्क में रहती थी.

इन दिनों पैसों के लेनदेन को ले कर जुलेखा का कंपनी मालिक संजय यादव से मनमुटाव चल रहा था. उसे शक है कि इन लोगों ने उस की बहन को कहीं गायब कर दिया है.

नफीस का दुखड़ा सुनने के बाद एसएसपी ने पारा के थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को आदेश दिया कि जुलेखा वाले मामले में जांच कर दोषियों के खिलाफ काररवाई करें. कप्तान साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी हरकत में आ गए. उन्होंने सब से पहले नफीस और उस के मातापिता से बात की. इस के बाद जुलेखा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

काल डिटेल्स से पता चला कि जुलेखा ने अंतिम बार श्रेयांश त्रिपाठी को फोन किया था. त्रिपाठी ने उसे कंपनी में काम करने के बारे में बुला कर बात की थी. चौकी हंसखेड़ा के प्रभारी सुभाष सिंह ने श्रेयांश त्रिपाठी को बुला कर जुलेखा के बारे में उस से पूछताछ की.

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इस के बाद थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह एसआई रामकेश सिंह, सुभाष सिंह, धर्मेंद्र कुमार, सिपाही मयंक मलिक, आशीष मलिक और राजेश गुप्ता को साथ ले कर आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस पहुंचे. वहां कंपनी मालिक संजय यादव का साला गुड्डू यादव निवासी बिजनौर तथा आलमबाग आजादनगर के रहने वाले एक दरोगा का बेटा अजय यादव मिला.

पुलिस सभी को थाने ले आई. सीओ आलमबाग लालप्रताप सिंह की मौजूदगी में उन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जुलेखा की हत्या कर के उस की लाश हरचंद्रपुर में साई नदी के किनारे फेंक दी थी.

यह सुनने के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम आरोपियों को साथ ले कर हरचंद्रपुर में साई नदी के पास उस जगह पहुंच गई, जहां जुलेखा के शव को ठिकाने लगाया था.

पुलिस को नदी किनारे कीचड़ में एक शव मिला. शव एक युवती का था और पूरा गल गया था. हड्डियों के अलावा वहां लेडीज कपड़े मिले. जुलेखा के भाई नफीस और मां शरबती ने कपड़ों से उस की शिनाख्त जुलेखा के रूप में की. पिता शरीफ अहमद ने बताया कि जुलेखा के ये कपड़े उन्होंने ईद पर खरीद कर दिए थे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर जुलेखा के कंकाल को पोस्टमार्टम व डीएनए जांच के लिए भिजवा दिया. जुलेखा की हत्या और अपहरण में मुख्य आरोपी संजय यादव के साले गुड्डू यादव व अजय यादव से जुलेखा के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जुलेखा का अपहरण कर उस की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह बड़ी सनसनीखेज थी-

शरीफ अहमद अपने परिवार के साथ लखनऊ के थाना पारा के अंतर्गत आने वाली कांशीराम कालोनी नई बस्ती में रहता था. बुद्धेश्वर चौराहे पर उस की आटो पार्ट्स की दुकान थी. परिवार में उस की पत्नी शरबती के अलावा 2 बेटियां रूबी व जुलेखा और एक बेटा नफीस था. बड़ी बेटी रूबी का पास के ही वृंदावन में विवाह हो चुका था.

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नफीस पिता के काम में हाथ बंटाता था. सन 2013 में उस ने छोटी बेटी जुलेखा की शादी मुंबई के रहने वाले एक युवक से कर दी थी. जुलेखा महत्त्वाकांक्षी थी. वह आत्मनिर्भर रह कर जीना चाहती थी. शादी के 2 साल बाद जुलेखा ने एक बेटे को जन्म दिया.

जुलेखा ने भरी उड़ान

बेटे के जन्म के बाद जुलेखा अपने मन की कमजोरी को छिपा कर न रख सकी क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने की आदी थी, जबकि उस का शौहर उस की आदतों के खिलाफ था. अंतत: एक दिन पति से लड़झगड़ कर वह अपने मायके आ गई. सन 2019 में पति ने भी जुलेखा को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह एकदम आजाद हो गई थी.

जुलेखा चारदीवारी में बैठने के बजाए नौकरी कर के आत्मनिर्भर होना चाहती थी, जिस से अपने बेटे की ढंग से परवरिश कर सके. पढ़ीलिखी होने के साथसाथ उसे कंप्यूटर की जानकारी थी. लिहाजा उस ने प्राइवेट कंपनियों में नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 15 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर कंप्यूटर औपरेटर की नौकरी मिल गई.

यह कंपनी राजधानी के बारह विरवा में काकोरी निवासी संजय यादव की थी. कुछ दिनों तक वह कंपनी में डाटा एंट्री का काम करती रही. इस दौरान वह संजय यादव के साले सरोजनीनगर निवासी गुड्डू यादव और आलमबाग आजादनगर के रहने वाले दरोगा के बेटे अजय यादव और अवधेश यादव के संपर्क में आई.

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कुंवारा था, कुंवारा ही रह गया: भाग 1

लेखक- आर.के. राजू

वीरू सैनी अपनी पत्नी शारदा और बच्चों के साथ मुरादाबाद के मोहल्ला झांझनपुर में रहते थे. उनके परिवार में 2 बेटों संजय कुमार और प्रदीप कुमार के अलावा 2 बेटियां थीं. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. वैसे वीरू सैनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के ही जिला संभल के शहर चंदौसी के रहने वाले थे, जो करीब 30 साल पहले काम की तलाश में मुरादाबाद आ गए थे.

वह एक अच्छे कुक थे, इसलिए मुरादाबाद दिल्ली रोड पर पीएसी के सामने स्थित त्यागी ढाबे पर उन की नौकरी लग गई थी. कुछ साल पहले उन के बड़े बेटे संजय की भी शहर की आशियाना कालोनी स्थित एक होटल में नौकरी लग गई थी.

घर में सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच उन की पत्नी शारदा की तबीयत खराब हो गई और फिर मौत हो गई. पत्नी की मृत्यु के बाद घर में खाना बनाने की परेशानी होने लगी. इसलिए वीरू ने संजय की शादी करने की सोची.

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वैसे भी एकदो साल बाद उस की शादी करनी ही थी. बेटे की जल्द शादी कराने के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया. उन्होंने कह दिया कि लड़की चाहे गरीब परिवार से हो, लेकिन घर के कामकाज करने वाली होनी चाहिए.

एक दिन वीरू सैनी के दूर के रिश्ते का भांजा राजपाल उन के यहां आया. वह संभल के सरायतरीन मोहल्ले में रहता था. वीरू ने उस से संजय के लिए कोई लड़की बताने को कहा तो राजपाल ने बताया, ‘‘मामाजी, बरेली में एक ठेकेदार मेरे जानकार हैं. उन्होंने मुझ से एक लड़की की चर्चा की थी. लड़की अपनी ही जाति की है. उस के मांबाप नहीं हैं और अपनी मौसी के साथ रहती है. गरीब लोग हैं. चाहो तो उसे देख लो. बात बन गई तो आप को ही दोनों तरफ की शादी का खर्च उठाना होगा.’’

वीरू ने सोचा कि लड़की गरीब घर की है तो वह जिम्मेदारी के साथ घर को संभाल लेगी. लिहाजा उन्होंने लड़की देखने की हामी भर दी. उन्होंने यह भी पूछा कि लड़की की मौसी को शादी के लिए कितने पैसे देने होंगे. तब राजपाल ने कहा कि केवल 35 हजार दे देना. उसी में वह काम चला लेगी. क्योंकि शादी तो मंदिर में होनी है. इन पैसों से तो वह केवल लड़की के लिए कपड़े वगैरह खरीदेगी. और हां, लड़की पसंद आ जाए, पैसे तभी देना. वीरू इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद 27 जुलाई, 2019 को वीरू, उन के चारों बच्चे, दोनों दामाद और बहन लड़की देखने के लिए राजपाल के साथ बरेली पहुंच गए. तय हुआ कि पुराने किले के पास स्थित हनुमान मंदिर के नजदीक लड़की दिखा दी जाएगी. लिहाजा वे सभी हनुमान मंदिर के पास पहुंच गए. कुछ देर बाद एक महिला और एक आदमी लड़की के साथ वहां पहुंचे. राजपाल ने बताया कि लड़की का नाम पूजा है और साथ में उस की मौसी आशा है.

सब को लड़की आ गई पसंद

वीरू और उन के बच्चों, दोनों दामादों ने लड़की को देखते ही पसंद कर लिया. चूंकि वीरू को राजपाल ने पहले ही बता दिया था कि लड़की पसंद आने पर शादी के लिए 35 हजार रुपए उन्हें ही देने होंगे, इसलिए वीरू ने 35 हजार रुपए उसी समय राजपाल को दे दिए. राजपाल ने वह रकम लड़की पूजा की मौसी आशा को दे दी.

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इस के बाद राजपाल ने कहा कि इस की मौसी जल्द से जल्द पूजा की शादी करना चाहती हैं, इसलिए आप पंडित से बात कर के शादी की तारीख निकलवाओ. वीरू को तो शादी की वैसे भी जल्दी थी. वह चाह रहे थे कि पूजा जल्द ही बेटे की बहू बन कर घर आ जाए.

मुरादाबाद लौटने के बाद वीरू ने पंडितजी को बेटे संजय और पूजा की कुंडली दिखाई तो दोनों की कुंडली मिल गई. पंडित ने शादी के लिए 2 अगस्त, 2019 की तारीख बताई. यह खबर उन्होंने राजपाल के माध्यम से लड़की की मौसी आशा तक भिजवा दी. उन्होंने यह भी कह दिया कि शादी झांझनपुर, मुरादाबाद के बालाजी मंदिर के प्रांगण में होगी.

शादी की तारीख निश्चित हो जाने के बाद वीरू बेटे की शादी की तैयारी में जुट गए. धीरेधीरे वह तारीख भी आ गई, जिस का उन्हें इंतजार था. झांझनपुर स्थित बालाजी मंदिर के प्रांगण में वीरू ने पंडाल लगा कर शादी की सारी व्यवस्था कर ली थी. 2 अगस्त की सुबह ही बरेली से आशा पूजा को ले कर बालाजी मंदिर पहुंच गई थी.

मंदिर प्रांगण में हिंदू रीतिरिवाज से पूजा और संजय सैनी का विवाह हो गया. वहीं पर वीरू ने अपने मोहल्ले वाले व अन्य लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की थी. कन्यादान पूजा की मौसी आशा ने किया था.

शादी की सभी रस्में पूरी होने के बाद संजय सैनी पत्नी पूजा को विदा करा कर अपने घर ले आया. पूजा की मौसी भी बरेली वापस जाने के बजाए वीरू के यहां आ गई. उस ने कहा कि वह 2 दिन बाद चली जाएगी.

नईनवेली दुलहन के घर आने से खुशी का माहौल था. शादी का घर था, संजय के रिश्तेदार, बहन, भांजीभांजे भी घर पर थे.

अगले दिन यानी 3 अगस्त को घर में शादी के बाद की रस्में शुरू हो गईं. अगली सुबह नईनवेली दुलहन पूजा ने घर पर रुके सभी रिश्तेदारों के लिए खाना बनाया. उस ने आलू बड़ी की सब्जी व कचौड़ी बनाई थी. उस के बनाए खाने की घर में रुके सभी रिश्तेदारों ने तारीफ की.

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दिन में बहू की मुंहदिखाई की रस्म भी हुई. इस रस्म में पूजा के पास कई हजार रुपए इकट्ठे हो गए थे, जो उस ने अपने पास ही रखे. 3 अगस्त की शाम को पूजा ने खाना बनाया. शाम के खाने में उस ने कढ़ीचावल और रोटी बनाई. सभी ने हंसीखुशी खाना खाया.

पूजा की मौसी आशा ने कढ़ीचावल नहीं खाए. वह बोली कि मैं कढ़ी नहीं खाती. इसलिए उस ने सुबह की बची कचौड़ी व आलू बड़ी की सब्जी खाई.

वीरू सैनी जिस ढाबे पर काम करते थे, अपना खाना वह वहीं से पैक कर के ले आए थे. उन्होंने घर पर शराब के 2 पैग ले कर खाना खाया. खाना खा कर वह अपने कमरे में जा कर सो गए. खाना खा कर घर के अन्य सदस्य व मेहमान भी अलगअलग कमरों में जा कर सो गए.

उस रात संजय की सुहागरात थी, इसलिए वह मारे खुशी के फूले नहीं समा रहा था. वह भी अपने कमरे में पहुंच गया, जहां उस की पत्नी उस का पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रही थी.

पूरे घर में केवल एक ही बाथरूम था, जो ग्राउंड फ्लोर पर था. संजय के बहनोई विनोद कुमार पहली मंजिल पर स्थित कमरे में बच्चों के साथ सोए थे. उन्हें रात 3 बजे के करीब लघुशंका के लिए जब पहली मंजिल से नीचे आना पड़ा तो उन्होंने देखा कि घर का मुख्य दरवाजा खुला है.

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पैसों की बेजा मांग, स्कूल संचालक की हत्या!

महत्वपूर्ण तथ्य उभर कर आया है कि कैसे  एक  शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्षरत नवयुवक को जब पैसों के लिए परेशान हलाकान किया गया तब, एक नाबालिग  मित्र  के साथ मिलकर उन्होंने  दो लोगों की नृशंस हत्या कर दी. जिसे उजागर करने में पुलिस के भी पसीने छूट गए.

यह भी  की एक करार (एग्रीमेंट)  कब, कितना भारी पड़ जाता है, यह इस हत्याकांड से समझा जा सकता है. वहीं हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को नंगा करता   यह हत्याकांड, यह सवाल भी हमारे बीच छोड़ जाता है कि आज की शिक्षा व्यवस्था पैसों को लेकर कितनी बदतर हालात मे हैं.

परीक्षा में पास करा, मांगते थे पैसे

दरअसल, इस सनसनीखेज हत्या में स्कूल संचालक और आरोपी के बीच 10 वीं कक्षा  में उत्तीर्ण कराने के एवज में पैसे का करार  कारण बना. आरोपी से मृतक द्वारा लगातार पैसे की मांग की जा रही था. जिससे  हालाकान होकर आरोपी ने वारदात को अंजाम दे दिया. पुलिस ने मामले में मुख्य आरोपी व उसके नाबालिग साथी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है.

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यह मामला छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के अंडा थाना क्षेत्र के विनायकपुर व रनचिरई थाना क्षेत्र  का है,जहां  मिले शव की शिनाख्त पुलिस द्वारा एक निजी श्रेया पब्लिक स्कुल के संचालक विजय नंदा वानखेड़े व उनके साथी एकाउंटेंट आनंद बीबे के रूप में की गई. एसएसपी अजय यादव ने हमारे संवाददाता को  बताया कि मुख्य आरोपी पुरेन्द्र साहू (21 वर्ष) स्कूल संचालक व उसके साथी से परेशान और भयभीत हो चला था.

इस घटनाक्रम में महत्वपूर्ण तथ्य है कि मृतको द्वारा आरोपी पुरेन्द्र साहू को दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण कराने के एवज में 20 हजार रुपए मांगा जा रहा था. इसके लिए वे उसे बेहद परेशान करते थे.  दोनों से बचने के लिए आरोपी ने पैसे देने के बहाने से दोनों  को बुलाकर आरोपी  ने अपने एक नाबालिक साथी के साथ मिलकर हत्या की घटना कारित की.

और कर दी हत्या!

इस मामले में शव मिलने के बाद पहले मृतकों की शिनाख्त अंडा थाना  क्षेत्र में तस्दीक की गई. पुलिसिंग पूछताछ में मृतकों के  दो लड़कों के साथ देखे जाने की जानकारी सामने  आई. पुलिस ने दोनों  को हिरासत में लेकर जब  पूछताछ की तो  आरोपियों ने हत्या  को अंजाम देने स्वीकार किया. पुलिस ने आरोपियों के पास से घटना में इस्तेमाल हथियार,  बाईक व दस्तावेज बरामद किया है.

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पुलिस के अनुसार आरोपी पुरेन्द्र साहू 10 वीं कक्षा में  अनुत्तीर्ण हो गया था. जिसके बाद 2018 में विजयनंदा वानखेड़े व आनंद बीबे से संपर्क में आया. दोनों ने पुरेन्द्र को पत्राचार के माध्यम से पास कराने का भरोसा देते हुए पैसे का सौदा किया.  मृतकों के मार्गदर्शन में पुरेन्द्र  साहू ने पत्राचार से परीक्षा दी और  परिणाम स्वरूप उत्तीर्ण हो गया. लेकिन बाद  मे आरोपी द्वारा करार  किये गये  पैसे  नहीं देने पर स्कूल संचालक एवं अकाउंटेंट आरोपी से  20 हजार रुपए देने के लिए लगातार मांगते रहे.

लेकिन आरोपी पैसे देने में असमर्थ था. और  जब दोनों  द्वारा लगातार फोन करके व उनके घर दबिश देकर  20 हजार के लेने के लिए धमकियां  देते थे. लगातार धमकियों से परेशान आरोपी ने हत्या की योजना बनाई. इसके लिए उसने अपने एक नाबालिग दोस्त के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया.  आरोपियों ने 2 दिसम्बर को मृतकों को पैसे देने के लिए बुलाया फिर   को मिलते ही  स्कूल संचालक विजय नंदा वानखेड़े को हथौड़ी से सर पर वारकर और उनके साथी आनंद बीबे का हथौड़ी व पत्थर से चहेरे-सिर पर वार व पत्थर से गला दबाकर कर हत्या कर दी.

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डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 3

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जीवज्योति के मना करने के बाद राजगोपाल का इशारा पा कर उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने शांताकुमार को जबरन एक कार में बिठाया और राजगोपाल के के.के. नगर स्थित पुराने गोदाम में ले गए.

जीवज्योति की आंखों के सामने उस के पति का अपहरण हुआ था. वह इसे कैसे सहन कर सकती थी. उस ने के.के. नगर थाने में राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ शांताकुमार के अपहरण की नामजद तहरीर दी. लेकिन पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज नहीं किया.जीवज्योति कई दिनों तक थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन उस का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. इस बीच वह अपने स्तर पर पति का पता लगाती रही लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पति को ले कर जीवज्योति निराश हो गई थी. वह सोचती थी कि पता नहीं राजगोपाल के आदमियों ने शांताकुमार के साथ कैसा सुलूक किया होगा. उस ने पति के जीवित होने की आशा छोड़ दी थी. बस वह यही प्रार्थना करती थी कि वह जहां भी हो, सहीसलामत रहे.

अपहरण के 14वें दिन यानी 12 अक्तूबर, 2001 को शांताकुमार अपहर्ताओं के चंगुल से बच निकला और सीधे पुलिस कमिश्नर के औफिस पहुंच गया. उस ने अपनी आपबीती कमिश्नर को सुना दी.

पुलिस ने बात तो सुनी पर नहीं की ठोस काररवाई

शांताकुमार की पूरी बात सुन कर पुलिस कमिश्नर हतप्रभ रह गए. उन्होंने के.के. नगर थाने के थानेदार को जम कर फटकार लगाई और पीडि़त शांताकुमार का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. इस के बाद पुलिस को राजगोपाल के खिलाफ मुकदमा लिखना ही पड़ा.

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पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद शांताकुमार और जीवज्योति को यकीन हो गया था कि पुलिस दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई करेगी. इस के बाद वे दोनों अपनी तरफ से यह सोच कर थोड़ा लापरवाह हो गए थे कि मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद राजगोपाल की हेकड़ी कम हो जाएगी, वह दोबारा कोई ओछी हरकत नहीं करेगा.

लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद पी. राजगोपाल और भी आक्रामक हो गया था. एक अदना सी औरत उस से टकराने की जुर्रत कर रही थी, यह उसे यह बरदाश्त नहीं था. उस ने सोच लिया कि जीवज्योति को इस की सजा मिलनी चाहिए.

2-4 दिन तक जब राजगोपाल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो शांताकुमार और जीवज्योति को लगा कि अब मामला सुलझ जाएगा.

लेकिन यह उन का भ्रम था. 6 दिन बाद 18 अक्तूबर, 2001 को एक बार फिर से शांताकुमार का अपहरण हो गया. अपहरण राजगोपाल ने ही करवाया था.

शांताकुमार का अपहरण करवाने के बाद पी. राजगोपाल फिर से जीवज्योति पर शादी के लिए दबाव डालने लगा. उस ने फिर से फोन करना शुरू कर दिया. जीवज्योति ने भी साफ कह दिया कि वह मर जाएगी लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं होगी.

14 दिनों बाद 31 अक्तूबर, 2001 को कोडैकनाल के टाइगर चोला जंगल में शांताकुमार की डेडबौडी मिली. पति की लाश बरामद होने के बाद जीवज्योति ने थाने जाने के बजाय अदालत की शरण लेना बेहतर समझा. उस का पुलिस से भरोसा उठ चुका था, इसलिए उस ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट का फैसला जीवज्योति के पक्ष में आया और अदालत ने केस दर्ज करने का आदेश दे दिया.

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन के खिलाफ अपहरण, हत्या की साजिश और हत्या का केस दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस राजगोपाल की तलाश में जुट गई.

आखिर झुकना पड़ा कानून के सामने

अंतत 23 नवंबर, 2001 को राजगोपाल ने चेन्नई पुलिस के समने सरेंडर कर दिया. उस के सरेंडर करने से पहले पुलिस पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. करीब डेढ़ साल तक जेल में रहने के बाद 15 जुलाई, 2003 को पी. राजगोपाल को जमानत मिल गई.

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पी. राजगोपाल के जमानत पर बाहर आते ही जीवज्योति फिर से कोर्ट पहुंच गई. उस समय शांताकुमार का केस बहुचर्चित केस था, सो मामला स्पैशल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.

सन 2004 में सेशन कोर्ट का फैसला आ गया. कोर्ट ने अपहरण, हत्या की कोशिश और हत्या के मामले में पी. राजगोपाल और 5 दूसरे लोगों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई.

जीवज्योति इस सजा से खुश नहीं थी. उस ने हाईकोर्ट में अपील कर दी. करीब 5 साल तक मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और फिर मार्च, 2009 में हाईकोर्ट का फैसला भी आ गया.

19 मार्च, 2009 को हाईकोर्ट के जस्टिस बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने इसे हत्या और हत्या की साजिश का मामला करार देते हुए सभी दोषियों को मिली 10-10 साल की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. साथ ही पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया, जिस में से 50 लाख रुपए जीवज्योति को दिए जाने थे.

जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि राजगोपाल को 7 जुलाई, 2019 तक सरेंडर करना होगा.

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पी. राजगोपाल का पासा पलट गया था. अब उस का साथ न तो वक्त दे रहा था और न ही ज्योतिषी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद राजगोपाल की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया. लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था.

उस ने नया पैंतरा चला. पी. राजगोपाल 4 जुलाई को अस्पताल में दाखिल हो गया. 7 जुलाई को सरेंडर करने की तारीख बीत गई तो उस ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उस ने कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है. उसे थोड़ी और मोहलत दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर उस की दलीलों का कोई असर नहीं हुआ.

जस्टिस एन.वी. रमन्ना की खंडपीठ ने कहा कि उसे हर हाल में कोर्ट में सरेंडर करना ही होगा. क्योंकि उस ने केस की सुनवाई के दौरान अपनी बीमारी का जिक्र नहीं किया था. इस के बाद 9 जुलाई, 2019 को वह मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. एक एंबुलेंस उसे कोर्ट ले कर गई थी. नाक में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. कोर्ट के आदेश पर पी. राजगोपाल को जेल भेज दिया गया. 10 दिन जेल में रह कर उस की हालत सचमुच बिगड़ गई.

उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां 19 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल का निधन हो गया. राजगोपाल के निधन के बाद केस की काररवाई बंद कर दी गई. बाकी पांचों आरोपी जेल में सजा काट रहे हैं.  – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 2

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हर काम ज्योतिषी से पूछ कर करने वाले राजगोपाल ने उसी ज्योतिषी से सलाह ली. ज्योतिषी ने उसे तीसरी शादी का सुझाव दिया. राजगोपाल ने उस का सुझाव मान लिया. अब सवाल यह था कि तीसरी शादी किस से की जाए, क्योंकि तब तक राजगोपाल की आयु 50-55 बरस हो चुकी थी. इस उम्र में कोई उसे अपनी बेटी क्यों देता.

राजगोपाल की तीसरी शादी की बात बरबादी के रूप में आई. शादी के चक्कर में उस का टकराव जीवज्योति से हुआ. बात सन 2000 के शुरुआत की है. जीवज्योति पी. राजगोपाल से कुछ पैसे उधार लेने के लिए आई. वह उन्हीं की कंपनी में काम करने वाले असिस्टेंट मैनेजर रामास्वामी की बेटी थी.

जीवज्योति का पति शांता कुमार ट्रैवल एजेंसी शुरू करना चाहता था, जिस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी. इसीलिए पति के कहने पर वह राजगोपाल के पास गई. उस के पिता रामास्वामी बेटी को अकेला छोड़ कर थाइलैंड चले गए थे. वह होते तो यह रकम वह अपने पिता से ले सकती थी.

राजगोपाल ने जब बला की खूबसूरत जीवज्योति को पहली बार देखा तो वह देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती आंखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली थी. उस समय जीवज्योति की उम्र 27-28 साल रही होगी. वह राजगोपाल के दिल में उतर गई. उस ने जीवज्योति को तीसरी पत्नी बनाने की ठान ली.

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लेकिन यहां राजगोपाल गलत था, क्योंकि वह प्रिंस शांताकुमार की पत्नी थी. जीवज्योति ने शांताकुमार से बहुत पहले ही लव मैरिज कर ली थी. यह बात राजगोपाल को पता भी चल गई थी. फिर भी वह जीवज्योति की खूबसूरती पर मर मिटा.

दरअसल शांताकुमार प्रोफेसर था. वह रामास्वामी की बेटी जीवज्योति को मैथ्स पढ़ाने के लिए उस के घर आता था. वह स्मार्ट और गबरू जवान था, चेन्नई के वेल्लाचीरी का रहने वाला. पढ़ातेपढ़ाते शांताकुमार का दिल जीवज्योति के लिए धड़कने लगा. जीवज्योति का भी हाल कुछ ऐसा ही था.

दोनों को इस बात का अहसास तब होता था, जब ट्यूशन के बाद दोनों अलग होते थे. जीवज्योति ने अपने गुरु की आंखों में अपने प्रति पलते प्यार को देख लिया था. जीवज्योति का दिल भी शांताकुमार के लिए बेकरार था. अंतत: दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. फिर दोनों ने चुपचाप मंदिर में जा कर शादी भी कर ली.

यह बात सन 1999 की है. जीवज्योति ने भले ही अपने प्यार और शादी के राज को दबाए रखा, लेकिन उस का यह राज उस के पिता रामास्वामी के सामने आ ही गया. रामास्वामी को जब यह राज पता चला तो उन्हें धक्का लगा. उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी, क्योंकि शांताकुमार क्रिश्चियन था और जीवज्योति ब्राह्मण.

तमाम विरोधों के बावजूद जीवज्योति और शांताकुमार ने अपनी राह चुन ली थी

घर वालों ने इस शादी का घोर विरोध किया. परिवार वालों के विरोध के चलते जीवज्योति अपने मांबाप का घर छोड़ कर प्रेमी से पति बने शांताकुमार के घर चली गई. बेटी के इस कदम से आहत हो कर रामास्वामी थाइलैंड चले गए और वहीं बस गए.

शादी के कुछ समय बाद शांताकुमार की नौकरी छूट गई और वह बेरोजगार हो गया. उस ने अपना व्यवसाय करने के बारे में सोचा. जीवज्योति पी. राजगोपाल को जानती थी, क्योंकि उस के पिता की वजह से राजगोपाल उसे बेटी कहता था और मानता भी खूब था.

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पति शांताकुमार ने ही जीवज्योति को सुझाया था कि वह राजगोपाल के पास जा कर कुछ रकम उधार मांगे. जब बिजनैस से पैसा आएगा, तो उस की रकम लौटा देंगे. पति के सुझाव पर जीवज्योति राजगोपाल के पास पैसा मांगने गई. पी. राजगोपाल ने जीवज्योति को उतनी रकम दे दी, जितनी उसे जरूरत थी. इस रकम से शांता कुमार ने ट्रैवलिंग एजेंसी शुरू भी कर दी.

लेकिन दूसरी ओर जीवज्योति को देख कर राजगोपाल की नीयत खराब हो गई थी. उसे जीवज्योति इतनी पसंद आई कि वह उस से तीसरी शादी करने की योजना बनाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने जीवज्योति को महंगेमहंगे गिफ्ट भेजने भी शुरू कर दिए.

राजगोपाल की इस मेहरबानी को न तो जीवज्योति समझ पाई थी और न ही उस का पति शांताकुमार. लेकिन जल्द ही दोनों उस की नीयत को समझ गए कि उस के दिमाग में कितनी गंदगी भरी हुई है. तभी तो बेटी कहने वाला राजगोपाल उस पर नजर गड़ाए हुए था.

दरअसल, राजगोपाल ने एक दिन जीवज्योति को अपने औफिस बुलाया. औफिस में उस की खूब आवभगत की और उस के सामने अपने दिल की बात रख दी कि वह अपने पति शांताकुमार को छोड़ कर उस से शादी कर ले.

उस की बात सुन कर जीवज्योति बुरी तरह भड़क गई और उसे खूब खरीखोटी सुना कर घर लौट आई. इस के बाद राजगोपाल ने पतिपत्नी के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश शुरू कर दी.

पी. राजगोपाल अपने बुरे इरादों में कामयाब नहीं हो पाया. फिर भी उस ने जीवज्योति को फोन करना और महंगे तोहफे भेजना बंद नहीं किया. जब से राजगोपाल ने जीवज्योति से शादी की बात की थी, तभी से वह राजगोपाल पर भड़की हुई थी. ऊपर से उस का रोज फोन आना और महंगे तोहफे भेजना, इस सब से वह परेशान हो गई थी. जब उस ने देखा कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है तो वह उस के प्रति और सख्त हो गई.

पी. राजगोपाल के फोन करने और महंगे तोहफों से परेशान हो कर जीवज्योति ने उस की शिकायत पुलिस में करने की धमकी दी. लेकिन इस धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ. इस के बावजूद वह जीवज्योति को रोज फोन करता और महंगे तोहफे भेजता.

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जीवज्योति का पति शांताकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि पी. राजगोपाल रसूखदार इंसान है. उस की ऊपर तक पहुंच है. उस से पंगा लेना आसान नहीं होगा. काफी सोचविचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि इस शहर को ही छोड़ दिया जाए.

प्रिंस शांताराम और उस की पत्नी चेन्नई छोड़ पाते, उस से पहले ही 28 सितंबर, 2001 को पी. राजगोपाल अपने 5 साथियों के साथ उन के घर जा पहुंचा. उस ने जीवज्योति से धमकी भरे लहजे में कहा कि 2 दिन के अंदर वह अपने पति से रिश्ता तोड़ दे और उस से शादी कर ले नहीं तो इस का बहुत बुरा अंजाम होगा. जीवज्योति डरी नहीं, उस ने उस के मुंह पर ही कह दिया कि वह अपने पति से किसी भी तरह अलग नहीं हो सकती, चाहे वह जो भी कर ले.

जीवज्योति के मुंह से न सुनते ही पी. राजगोपाल आगबबूला हो उठा. वह न सुनने का आदी नहीं था. वह ऐसा शख्स था, जिस चीज पर उस का दिल आ जाता था, उसे साम, दाम, दंड, भेद चारों नीति अपना कर उसे हासिल कर लेता था, चाहे इस के लिए उसे भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

जब बीच रास्ते दुल्हन को लूटा

40 साल पहले सन 1979 में बौलीवुड की एक हौरर थ्रिलर फिल्म आई थी ‘जानी दुश्मन’. निर्देशक राजकुमार कोहली की इस फिल्म में उस जमाने के फिल्मी सितारों की पूरी फौज थी. ‘जानी दुश्मन’ में संजीव कुमार, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, विनोद मेहरा, अमरीश पुरी और प्रेमनाथ के अलावा 4 हीरोइनें थीं रीना राय, रेखा, नीतू सिंह और योगिता बाली.

इस सुपरहिट फिल्म में सस्पेंस भी था और भयावह दृश्य भी. कहानी के अनुसार फिल्म में ज्वाला प्रसाद का करेक्टर प्ले करने वाले रजा मुराद ने अपने सपनों की शहजादी से शादी की थी. लेकिन उस दुल्हन ने सुहागरात को ही ज्वाला प्रसाद को जहर मिला दूध पिला कर उस की जान ले ली.

मृत्यु के बाद ज्वाला प्रसाद ने दैत्य का रूप धारण कर लिया. उसे लाल जोड़े में सजी दुल्हनों से नफरत हो गई. वह दूसरों के शरीर में समा कर लाल जोड़े में सजी दुलहनों को डोली से उठा ले जाता था. इस फिल्म का गीत ‘चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की ऋतु आई…’ आज भी शादियों में दुल्हन की विदाई के समय बजाया जाता है.

जानी दुश्मन नाम से बाद में भी कई फिल्में बनीं. राजकुमार कोहली ने ही 2002 में ‘जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी’ नाम से फिल्म बनाई. इस में राज बब्बर, सनी देओल, रजत बेदी, शरद कपूर, मनीषा कोइराला, आदित्य पंचोली, अमरीश पुरी आदि कलाकार थे. लेकिन यह फिल्म 1979 वाली फिल्म जैसी कामयाबी हासिल नहीं कर सकी.

फिल्म ‘जानी दुश्मन’ का जिक्र हम ने इसलिए किया क्योंकि इस कहानी का घटनाक्रम भी काफी कुछ ऐसा ही है. दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की यह कहानी राजस्थान के सीकर जिले की है.

बीते 16-17 अप्रैल की आधी रात के बाद सात फेरे लेने के बाद ढाई पौने 3 बजे नागवा गांव में गिरधारी सिंह के घर से 2 बेटियों की बारातें विदा हुईं. ये बारातें मोरडूंगा गांव से आई थीं. मोरडूंगा निवासी भंवर सिंह की शादी गिरधारी सिंह की बड़ी बेटी सोनू कंवर से हुई थी और राजेंद्र सिंह की शादी छोटी बेटी हंसा कंवर से.

दोनों दुल्हनें और उन के दूल्हे एक सजी-धजी इनोवा कार में सवार थे. कार में दूल्हों के रिश्तेदार कृष्ण सिंह, शानू और दुल्हन का भाई करण सिंह भी थे. ये लोग धोंद हो कर मोरडूंगा जा रहे थे. बारात में आए अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग पहले ही दूसरे वाहनों से जा चुके थे. केवल दूल्हादुल्हन और उन के 3 रिश्तेदार ही वैवाहिक रस्में पूरी कराने के लिए रुके रहे थे.

दूल्हादुल्हन विदा हो कर नागवा गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर ही आए थे, तभी रामबक्सपुरा स्टैंड के पास एक बोलेरो और पिकअप में आए बदमाशों ने अपनी गाडि़यां दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार के आगेपीछे लगा दीं. इनोवा में सवार दोनों दूल्हे और उन के रिश्तेदार कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बोलेरो और पिकअप से 7-8 लोग लाठीसरिए ले कर उतरे. इन्होंने इनोवा कार को घेर कर तोड़फोड़ शुरू कर दी.

कार से दुल्हन का अपहरण

मायके से विदा होने पर जैसा कि होता है दोनों बहनें घूंघट में सुबक रही थीं. उन्होंने तोड़फोड़ की आवाज सुन कर अपने चेहरे से घूंघट उठाया, लेकिन अंधेरा होने की वजह से उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. इनोवा कार के अंदर जल रही मद्धिम रोशनी में बाहर कुछ नजर नहीं आ रहा था. तोड़फोड़ होती देख दोनों दुल्हन बहनें सहम कर अपनेअपने दूल्हों के हाथ पकड़ कर बैठ गईं.

इनोवा के शीशे तोड़ने के बाद हमलावरों में से एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर हवा में लहराते हुए कहा, ‘‘कोई भी हरकत की तो गोली मार देंगे.’’ इस के बाद वे कार में बैठे पुरुषों से मारपीट करने लगे. दोनों दूल्हों भंवर सिंह और राजेंद्र सिंह ने बदमाशों से मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन हथियारबंद बदमाशों के आगे उन के हौसले पस्त हो गए.

इस बीच एक बदमाश ने इनोवा का दरवाजा खोल कर दुल्हन हंसा कंवर को बाहर खींच लिया. हंसा चीखनेचिल्लाने लगी. यह देख हंसा की बहन सोनू ने बदमाशों से उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन वह उन से मुकाबला नहीं कर सकी. बदमाशों ने नईनवेली दुल्हन सोनू कंवर से भी मारपीट की.

दूल्हों के रिश्तेदार मौसेरे भाई करण सिंह ने मोबाइल निकाल कर फोन करने की कोशिश की तो बदमाशों ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. बदमाशों ने हंसा कंवर को अपनी गाड़ी में बैठाया और दूल्हों व दुल्हन सोनू कंवर के साथ उन के रिश्तेदारों को पिस्तौल दिखा कर धमकी दी. बदमाशों ने इनोवा कार की चाबी भी निकाल ली थी. इस के बाद बदमाश अपनी दोनों गाडि़यां दौड़ाते हुए वहां से चले गए.

यह सब मुश्किल से 10 मिनट के अंदर हो गया. बदमाशों के जाने के बाद दूल्हों ने मोबाइल फोन से नागवा गांव में अपनी ससुराल वालों को सूचना दी. कुछ ही देर में नागवा के कई लोग मोटरसाइकिलों पर वहां पहुंच गए. पुलिस को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर बाद धोद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने आसपास के इलाके में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का कोई पता नहीं चला.

दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की खबर कुछ ही घंटों में आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जिस ने भी इस वारदात के बारे में सुना, सहम गया. ससुराल पहुंचने से पहले ही दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की ऐसी वारदात किसी ने न तो देखी थी और न सुनी थी. अलबत्ता लोगों ने फिल्मों में ऐसी घटनाएं जरूर देखी थीं.

इस घटना को ले कर 17 अप्रैल को सुबह से ही राजपूत समाज के लोगों में आक्रोश छा गया. नागवा गांव के कृष्ण सिंह ने धोद पुलिस थाने में अपने ही गांव के अंकित सेवदा और भड़कासली गांव के रहने वाले मुकेश रेवाड़ को नामजद करते हुए 5-6 अन्य लोगों के खिलाफ हंसा कंवर के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में कहा गया कि हंसा कंवर ने करीब 5 लाख रुपए के गहने पहन रखे थे, साथ ही उस के पास कन्यादान के 20 हजार रुपए नकद भी थे. आरोपी हंसा कंवर के साथ उस के गहने और नकदी भी ले गए. डोली से दुल्हन को उठा ले जाने का मामला गंभीर था. पुलिस ने नामजद आरोपियों के परिजनों से पूछताछ की. उन से कुछ जानकारियां मिलने पर पुलिस ने 2 टीमें बना कर जयपुर और गाजियाबाद के लिए रवाना कर दीं.

पूरा राजपूत समाज एक साथ खड़ा हो गया

पुलिस की टीमें अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गईं. मुख्य आरोपी चूंकि नागवा गांव का था, इसलिए गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ताकि कोई अनहोनी न हो. इस बीच यह मामला सीकर से ले कर जयपुर तक गरमा गया. दुल्हन के अपहरण की सूचना मिलने पर उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा सीकर के राजपूत छात्रावास आ गए. वहां राजपूत समाज के प्रमुख लोगों की बैठक हुई.

इस के बाद लोगों ने सीकर कलेक्टर सी.आर. मीणा को ज्ञापन दे कर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी का अल्टीमेटम दे कर कहा कि अगर काररवाई नहीं हुई तो पूरा राजपूत समाज कलेक्ट्रैट के सामने धरने पर बैठ जाएगा. साथ ही लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.

बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने सीकर में कलेक्टर और एसपी के बंगले के सामने प्रदर्शन किया. लोगों ने कहा कि 18 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस आरोपियों का पता नहीं लगा सकी है. प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर जाम लगा कर नारेबाजी की. इस दौरान उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने पैट्रोल छिड़क कर आत्मदाह करने का प्रयास किया. लेकिन समाज के लोगों ने विधायक को बचा लिया.

सूचना मिलने पर डीएसपी सौरभ तिवाड़ी, कोतवाल श्रीचंद सिंह और उद्योग नगर थानाप्रभारी वीरेंद्र शर्मा मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने विधायक को समझाया. राजपूत समाज के लोगों ने सीकर कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन की शर्त पुलिस को भी बता दी कि अगर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो कलेक्ट्रैट के बाहर धरनाप्रदर्शन किया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के समझाने के बाद लोगों ने जाम हटाया और प्रदर्शन समाप्त कर दिया.

दुल्हन के अपहरण का मामला तूल पकड़ता जा रहा था. लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान हुई इस वारदात ने पुलिस के सामने चुनौती खड़ी कर दी थी. पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि पूरा राजपूत समाज इस घटना को ले कर लामबंद होने लगा था.

पुलिस के सामने एक समस्या यह भी थी कि दुल्हन के अपरहण का कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. इस तरह की वारदात किसी पुरानी रंजिश, लूट, दुष्कर्म या प्रेम प्रसंग के लिए की जाती हैं.

लेकिन इस मामले में स्पष्ट रूप से ऐसा कारण उभर कर सामने नहीं आ रहा था. पुलिस को जांचपड़ताल में इतना जरूर पता चला कि आरोपी अंकित सेवदा और दुल्हन हंसा कंवर के परिवार के खेत आसपास हैं. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग जैसा कोई सबूत सामने नहीं आया.

वारदात का तरीका भयावह था. पुलिस ने कई जगह दबिश दे कर 2-4 लोगों को हिरासत में लिया. दरजनों लोगों से पूछताछ की गई. इस के अलावा आरोपी अंकित सेवदा के मोबाइल नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

18 अप्रैल को सीकर में सुबह से ही भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. अपहृत दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने से नाराज राजपूत समाज के लोगों ने सुबह 10 बजे सड़क पर जाम लगा दिया और नारेबाजी करते हुए कलेक्टर के बंगले के बाहर एकत्र हो गए.

सुबह से शाम तक करीब 7 घंटे प्रदर्शन जारी रहा. प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे राजपूत समाज के नेता पहले बैरीकेड्स पर चढ़ कर अपनी मांग करते रहे. बाद में वे जेसीबी मशीन पर चढ़ कर लोगों को संबोधित करने लगे. एकत्र लोग सड़क पर बैठ गए. एडीएम जयप्रकाश और एडीशनल एसपी देवेंद्र शास्त्री व तेजपाल सिंह ने उन्हें समझायाबुझाया.

इस दौरान जिला प्रशासन और पुलिस ने राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बात कर के आरोपियों को पकड़ने और दुल्हन को बरामद करने के लिए 3 दिन का समय मांगा.

प्रदर्शन में उदयपुरवाटी के विधायक

राजेंद्र गुढ़ा, राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत समाज के अनेक गणमान्य लोग शामिल रहे.

हालात पर नजर रखने के लिए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर पहुंच गए थे. वे रानोली थाने में बैठ कर प्रदर्शनकारियों की गतिविधियों पर नजर रखते रहे. बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने राजपूत छात्रावास के पास टेंट लगा कर धरना देना शुरू कर दिया.

पुलिस पूरी कोशिश में जुटी थी

राजपूत समाज के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने दुल्हन की बरामदगी के प्रयास तेज कर दिए. पुलिस की 5 टीमें 3 राज्यों में भेजी गईं. इस बीच पुलिस ने दुल्हन का अपहरण करने के मामले में एक नामजद आरोपी भड़कासली निवासी मुकेश जाट के अलावा नेतड़वास के महेंद्र सिंह जाट, दुगोली निवासी राजेश बगडि़या उर्फ धौलिया और भड़कासली निवासी अशोक रेवाड़ को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में पता चला कि दुल्हन का अपहरण करने के बाद वे लोग अंकित और उस के साथियों से अलग हो गए थे. ये चारों धोद में छिपे थे. पुलिस ने इन से मुख्य आरोपी अंकित सेवदा के छिपने के संभावित ठिकानों के बारे में पूछताछ की. इसी के आधार पर पुलिस की टीमें विभिन्न स्थानों पर भेजी गईं.

19 अप्रैल को भी पुलिस अपहृत दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर राजपूत समाज के आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए. सीकर शहर के सभी प्रवेश मार्गों पर सशस्त्र पुलिस तैनात की गई.

पुलिस को जांचपड़ताल में यह बात साफ हो गई थी कि दुल्हन हंसा कंवर के अपहरण की साजिश उसी के गांव नागवा के अंकित ने रची थी. उस ने हंसा और उस की बड़ी बहन की शादी के दिन 16 अप्रैल की शाम अपने दोस्तों मुकेश रेवाड़, विकास भामू, महेंद्र फौजी, राजेश व अशोक आदि को तलाई पर बुलाया था. वहां उस ने सभी दोस्तों को शराब पिलाई.

योजनानुसार अंकित ने अपने एक साथी को गिरधारी सिंह के घर के बाहर बैठा दिया था. वह मोबाइल पर अंकित को शादी के हर कार्यक्रम की जानकारी दे रहा था. फेरे लेने के बाद रात ढाई पौने 3 बजे जैसे ही सोनू कंवर और हंसा कंवर अपने दूल्हों के साथ घर से विदा हुईं तो अंकित के साथी ने मोबाइल पर उसे यह खबर दे दी.

इस के बाद तलाई पर बैठे अंकित और उस के दोस्तों ने बोलेरो और पिकअप से दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार का पीछा किया. रामबक्स स्टैंड पर इन लोगों ने उन की इनोवा को आगेपीछा गाड़ी लगा कर घेर लिया गया. अंकित ने हंसा को बाहर निकाला और वे सभी साथी बोलेरो में उस का अपहरण कर ले गए.

जांच में पुलिस को पता चला कि हंसा का अपहरण करने के बाद अंकित के दोस्त रास्ते में उतरते गए. अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू हंसा को साथ ले कर नागौर जिले के जायल गांव गए. वहां से वे छोटी खाटू पहुंचे. फिर उन्होंने एक व्यक्ति से हिमाचल प्रदेश जाने के लिए इनोवा गाड़ी किराए पर मांगी.

लेकिन उस दिन ज्यादा शादियां होने के कारण इनोवा नहीं मिली. इस के बाद हंसा कंवर को साथ ले कर अंकित और विकास भामू छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर चले गए. महेंद्र फौजी बोलेरो ले कर नागवा आ गया था.

पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार चारों आरोपियों मुकेश रेवाड़, महेंद्र सिंह, राजेश बगडि़या और अशोक रेवाड़ को अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया.

बिना लड़े आमनेसामने थे

राजपूत समाज के नेता और पुलिस दुल्हन के अपहरण की घटना को ले कर राजपूत समाज तीसरे दिन भी आंदोलित रहा. कलेक्टर के बंगले के सामने लगातार दूसरे दिन भी राजपूत समाज के लोग धरना देते रहे. समाज के नेताओं ने कहा कि धरना आरपार की लड़ाई तक जारी रहेगा.

विधायक राजेंद्र गुढ़ा के अलावा राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत महासभा व करणी सेना के तमाम नेता धरने पर बैठे रहे. उधर दुल्हन के अपहरण को ले कर नागवा गांव और उस की ससुराल मोरडूंगा में दोनों परिवारों में घटना के बाद से ही सन्नाटा पसरा रहा. दोनों परिवारों की शादियों की खुशियां काफूर हो गई थीं. नागवा में दुल्हन के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. दुल्हन की मां बारबार बेहोश हो जाती थी.

पूरे परिवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया. दुल्हन के पिता गिरधारी सिंह ने संदेह जताया कि आरोपी उस की बेटी की हत्या कर सकते हैं. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारियों ने नागवा में पीडि़त परिवार से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया और दोषियों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिया.

इस बीच एक हिस्ट्रीशीटर कुलदीप झाझड़ ने दुल्हन के अपहरण के मामले में एक वीडियो जारी कर प्रशासन को धमकी दे डाली. कई आपराधिक मामलों में फरार कुलदीप ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती है. अगर पुलिस आरोपियों को नहीं पकड़ सकती तो वह खुद उन्हें तलाश कर गोली मार देगा. उस के कई साथी आरोपियों की तलाश कर रहे हैं.

राजपूत समाज के आक्रोश को देखते हुए कानूनव्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने 20 अप्रैल को सीकर में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं. हालांकि इस की सूचना मीडिया के माध्यम से पुलिस व प्रशासन ने एक दिन पहले ही दे दी थी. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन के अधिकारी राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बराबर संपर्क में रहे.

इंटरनेट बंद होने से दिन भर बवाल मचता रहा. पुलिस ने राजपूत छात्रावास की बिजली बंद करा दी. इस से माइक बंद हो गया तो राजपूत युवा भड़क गए. इस के बाद विधायक गुढ़ा ने कलेक्टर आवास में घुस कर वहां कब्जा करने की चेतावनी दे दी. इस से पुलिस के हाथपैर फूल गए.

पुलिस ने वहां घेराबंदी कर बड़ी तादाद में सशस्त्र बल तैनात कर दिया. इस बीच विधायक गुढ़ा युवाओं के साथ मौन जुलूस निकालने लगे तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सख्ती से रोक दिया. दिन भर आंदोलनकारी और पुलिस आमनेसामने होते रहे.

आईजी एस. सेंगाथिर ने मोर्चा संभाल कर प्रदर्शनकारियों को बताया कि जयपुर से एटीएस और एसओजी सहित 11 टीमें जांच में जुटी हुई हैं. पुलिस अपराधियों के निकट पहुंच चुकी है और जल्द से जल्द हंसा कंवर को बरामद कर लिया जाएगा.

चौथे दिन 20 अप्रैल की शाम तक यह सूचना सीकर पहुंच गई कि पुलिस ने देहरादून से दुल्हन हंसा कंवर को बरामद कर लिया है और 2 आरोपी पकड़े गए हैं. इस के बाद राजपूत समाज ने आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दी.

दुल्हन हंसा को देहरादून से बरामद करने की कहानी बड़ी रोचक है. हंसा का अपहरण कर अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू जायल हो कर छोटी खाटू पहुंचे. वहां वे आरिफ से मिले. आरिफ किराए पर गाडि़यां चलाता है.

अंकित ने आरिफ से देहरादून जाने के लिए किराए की गाड़ी मांगी, लेकिन उस समय उस की सभी गाडि़यां शादियों की बुकिंग में गई हुई थीं. आरिफ ने अंकित को शादी के रजिस्ट्रेशन के बारे में बताया था. पुलिस को आरिफ से ही यह सुराग मिला कि अंकित दुल्हन हंसा को ले कर देहरादून जा सकता है.

अंकित अपने दोस्त विकास भामू और दुल्हन हंसा के साथ छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर पहुंचा और जयपुर से सीधे देहरादून चला गया. देहरादून में ये लोग एक गेस्टहाउस में रुके. ये लोग गेस्टहाउस पर बाहर से ताला लगवा देते थे.

जानकारी मिलने पर सीकर से सबइंसपेक्टर सवाई सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम देहरादून पहुंच गई. पुलिस दोनों आरोपियों और दुल्हन हंसा की फोटो ले कर होटल और गेस्टहाउसों में तलाश कर रही थी. 19 अप्रैल को पुलिस उस गेस्टहाउस पर भी पहुंची, जहां अंकित और विकास ने हंसा को ठहरा रखा था, लेकिन वहां बाहर ताला लगा देख कर पुलिस लौट गई.

कैसे पता लगा हंसा कंवर का

इस बीच पुलिस टीम ने हाथों में मेहंदी लगी लड़की के दिखाई देने पर सूचना देने की बात कह कर काफी लोगों को अपने मोबाइल नंबर दिए. 20 अप्रैल को एक वकील ने पुलिस टीम को फोन कर बताया कि एक युवती के हाथों में मेहंदी लगी हुई है और उस के साथ 2 युवक हैं.

पुलिस टीम ने वाट्सऐप पर वकील को दुल्हन और आरोपियों की फोटो भेजी, तो कंफर्म हो गया कि हंसा उन्हीं युवकों के साथ है. वकील ने बताया कि ये लोग कोर्ट के पास हैं और एक वकील उन की शादी के कागजात बनवाने गया है.

सीकर से गई पुलिस टीम ने एक मिनट की देरी करना भी उचित नहीं समझा. वे गाड़ी ले कर पूछते हुए कोर्ट की तरफ भाग लिए. लेकिन रास्ते में निकलती एक शोभायात्रा की वजह से सीकर पुलिस की गाड़ी जाम में फंस गई. इस पर पुलिसकर्मी मोटरसाइकिलों पर लिफ्ट ले कर कोर्ट के पास पहुंचे.

वहां सादे कपड़ों में गए पुलिसकर्मियों ने अंकित और उस के साथी विकास भामू को फोटो से पहचान कर दबोच लिया. दुल्हन हंसा कंवर भी वहीं मिल गई. इस पर देहरादून के वकील एकत्र हो कर सीकर पुलिस से बहस करने लगे. हाथ में आई बाजी पलटती देख सबइंसपेक्टर सवाई सिंह ने जयपुर आईजी सेंगाथिर को फोन पर सारी बात बताई. जयपुर आईजी ने राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) बी.एल. सोनी से बात की. सोनी ने देहरादून के पुलिस अधिकारियों से फोन कर बात कर पूरी घटना बता दी.

इस के करीब डेढ़ घंटे बाद देहरादून पुलिस वहां पहुंची. देहरादून पुलिस ने वकीलों को दुल्हन हंसा के अपहरण की घटना के बारे में बताया. इस के बाद सीकर पुलिस हंसा और दोनों आरोपियों को कोर्ट से बाहर ले आई.

देहरादून से 20 अप्रैल की रात को पुलिस दल तीनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हुआ. पुलिस को आरोपियों पर हमले या दुल्हन के दोबारा अपहरण की आशंका थी इसलिए कई रास्ते बदल कर और कई जगह एस्कार्ट ले कर पुलिस टीम 21 अप्रैल को उन्हें ले कर सीकर पहुंची.

सीकर में पुलिस ने दुल्हन हंसा कंवर से पूछताछ के आधार पर अंकित सेवदा और उस के दोस्त विकास भामू को गिरफ्तार कर लिया. दुल्हन हंसा कंवर ने पुलिस और मजिस्ट्रैट को दिए बयान में मां के साथ बुआ के घर जाने की इच्छा जताई.

इस के बाद हंसा को उस के घर वालों को सौंप दिया. हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथी उस का अपहरण कर ले गए थे. अंकित देहरादून में उस से जबरन शादी करना चाहता था. इसीलिए वह कोर्ट पहुंचा था और वकील के माध्यम से कागजात तैयार करवा रहा था. पुलिस ने 22 अप्रैल को आरोपी अंकित और विकास का मैडिकल कराया. इस के बाद दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

सच्चाई नहीं आई सामने

बरामद दुल्हन हंसा ने प्रारंभिक बयानों में अंकित और उस के साथियों पर जबरन अपहरण कर ले जाने का आरोप लगाया है. गिरफ्तार हुए मुख्य आरोपी अंकित सेवदा ने भी पुलिस को हंसा के अपहरण का स्पष्ट कारण नहीं बताया.

पुलिस की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि हंसा और अंकित एक ही गांव के हैं और उन के खेत भी आसपास हैं. गांव के नाते अंकित पहले से ही हंसा को जानता था. अंकित मन ही मन हंसा से प्यार करता था. यह उस का एकतरफा प्यार था. न तो उस ने कभी हंसा से यह बात कही और न ही हंसा ने कभी इस बारे में सोचा. अंकित जबरन उस से शादी करना चाहता था.

एक कारण और सामने आया. इस में अंकित के विदेश में रहने वाले दोस्त गंगाधर से बातचीत के दो औडियो वायरल हो रहे हैं. इस में कहा गया है कि अंकित का हंसा के परिवार से कुछ समय पहले झगड़ा हुआ था. इसलिए अंकित बदला लेना चाहता था. बदला लेने के लिए उस ने हंसा का अपहरण करने की योजना बनाई.

अंकित का मकसद लूट का भी हो सकता है, क्योंकि हंसा या अंकित के पास से पुलिस को कोई भी जेवर या नकदी नहीं मिले हैं. पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक हंसा ने शादी में विदाई के समय 5 लाख रुपए के जेवर पहन रखे थे. उस के पास 20 हजार रुपए नकद भी थे.

हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथियों ने उस के जेवर व रुपए ले लिए थे. पुलिस के सामने भी यह बात आई है कि अपहरण में शामिल अंकित के दोस्तों ने हंसा के जेवर बेच दिए.

पुलिस इन गहनों को खरीदने वालों की तलाश कर उन्हें बरामद करने का प्रयास कर रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी कडि़यों को जोड़ कर हंसा के अपहरण के असली मकसद का पता लगाने में जुटी थी.

चाहे पुलिस हो, चाहे हंसा के परिवार वाले या फिर अंकित सेवदा, इस मामले का सच अभी तक सामने नहीं आया है. आएगा ऐसा भी नहीं लगता. अगर आम आदमी की तरह सोचें तो एक इज्जतदार परिवार और उस परिवार की लड़की के लिए ऐसे किसी भी सच का सामने आना ठीक नहीं है, जो उन्हें प्रभावित करे.

हां, यह जरूर कह सकते हैं कि अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर जो किया, वह बड़ा अपराध तो है ही.

इसी बीच जाट समुदाय के लोगों ने गिरफ्तार किए गए लड़कों को छोड़ने और अपहरण की सच्चाई को सामने लाने के लिए 25 अप्रैल को कलक्टे्रट पर धारना दिया.

डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 1

चेन्नई के वेल्लाचीरी के बहुचर्चित प्रिंस शांता कुमार हत्याकांड की गवाही पूरी हो चुकी थी. 29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. साथ ही आदेश दिया कि प्रिंस शांताकुमार के हत्यारे पी. राजगोपाल, डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 7 जुलाई, 2019 तक कोर्ट में सरेंडर करना होगा.

दरअसल, 19 मार्च, 2009 को चेन्नई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने प्रिंस शांताकुमार की हत्या और हत्या की साजिश करार देते हुए इस केस के सभी दोषियों को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. साथ ही हत्याकांड के मुख्य आरोपी और डोसा किंग के नाम से मशहूर पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया था, जिस में से 50 लाख रुपए मृतक की पत्नी जीवज्योति को दिए जाने थे. शेष रकम कोर्ट में जमा करानी थी.

हाईकोर्ट ने जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका सिरे से खारिज कर दी और हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए 7 जुलाई, 2019 तक हाईकोर्ट, चेन्नई में सरेंडर करने का आदेश दिया था.

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पी. राजगोपाल ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए एक चाल चली. सरेंडर करने की आखिरी तारीख से 3 दिन पहले यानी 4 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल नाटकीय ढंग से तमिलनाडु के वाडापलानी स्थित विजया अस्पताल में जा कर भरती हो गया.

अस्पताल में उसे औक्सीजन मास्क लगा दी गई. समाचार पत्रों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया को इस बात का पता तब चला जब उस की औक्सीजन मास्क लगी फोटो सामने आई. खबर थी कि प्रिंस शांताकुमार का हत्यारा डोसा किंग पी. राजगोपाल गंभीर रूप से बीमार होने की वजह से विजया अस्पताल में भरती है.

पी. राजगोपाल ने ये चाल जेल जाने से बचने के लिए चली थी ताकि कोर्ट को उस पर दया आ जाए और उसे जेल जाने से बचा ले. अस्पताल में भरती होने के 4 दिन बाद यानी 9 जुलाई, 2019 को वह मास्क लगाए एंबुलेंस से चेन्नई हाईकोर्ट में सरेंडर करने जा पहुंचा.

कोर्ट ने उसे 7 जुलाई तक की मोहलत दे रखी थी, लेकिन दिमाग का शातिर राजगोपाल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए जानबूझ कर 2 दिन बाद कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचा था, जबकि उस के पांचों साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने पहले ही सरेंडर कर दिया था.

पी. राजगोपाल के वकील ने उसे बचाने के लिए कोर्ट के सामने उस के गंभीर रूप से बीमार होने के दस्तावेज पेश किए. लेकिन हाईकोर्ट ने उस की एक नहीं सुनी. न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट को उस के बीमार होने की कोई सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए उसे जेल जाना होगा.

जेल से अस्पताल पहुंचा राजगोपाल

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल को हिरासत में ले कर पुजहाल जेल भिजवा दिया. ऐसा करना कोर्ट की विवशता थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. जेल जाने के 10 दिनों बाद पी. राजगोपाल की तबीयत सचमुच बिगड़ गई.

18 जुलाई को उसे जेल से निकाल कर सरकारी अस्पताल स्टेनली मैडिकल कालेज, चेन्नई में भरती कराया गया. तबीयत में कोई सुधार न होता देख राजगोपाल के बेटे ने अधिकारियों से इजाजत ले कर उसे इलाज के लिए उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया. अगले दिन इलाज के दौरान सुबह करीब 10 बजे पी. राजगोपाल ने दम तोड़ दिया. राजगोपाल की मौत के साथ शांताकुमार के एक हत्यारे की कहानी का अंत हो गया.

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प्रिंस शांताकुमार कौन था? पी. राजगोपाल ने उस की हत्या क्यों की या करवाई, वह हत्यारा कैसे बना? इन सवालों से साइड बाई साइड निकली कहानी रोचक और रोमांचक है. प्याज उगाने वाले एक मामूली किसान का बेटा पी. राजगोपाल पिता की कर्मस्थली से भाग कर कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचा, इस कहानी को जानने के लिए हमें पी. राजगोपाल के शुरुआती जीवन के पन्नों को पलटना होगा.

राजगोपाल मूलरूप से तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पुन्नाइयादी का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. उस के पिता प्याज की खेती करते थे. इस कहानी की शुरुआत होती है 1973 से. पिता की ख्वाहिश थी कि राजगोपाल खेती में उन का हाथ बंटाए ताकि प्याज का पुश्तैनी कारोबार चलता रहे. प्याज की पैदावार ही उन के परिवार के भरणपोषण का एकमात्र साधन थी.

राजगोपाल मांबाप का एकलौता बेटा था. उसे पिता के साथ खेती करना मंजूर नहीं था. वह गांव छोड़ कर चेन्नई (तब मद्रास) चला आया. चेन्नई के के.के. नगर में उस ने किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

करीब 8 साल तक उस ने किराने की दुकान चलाई. इसी दौरान उस की दुकान पर एक ज्योतिषी आया. ज्योतिषी ने बताया कि अगर वह किराने की दुकान के बजाए रेस्टोरेंट खोले तो ज्यादा मुनाफा होगा.

राजगोपाल ने ज्योतिषी की बात मान ली. उस ने किराने की दुकान बंद कर के उसी जगह पर छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया. उस ने रेस्टोरेंट को नाम दिया— सर्वना भवन. अपने रेस्टोरेंट में उस ने डोसा, इडली, पूड़ी और वड़ा बेचना शुरू किया.

वह दौर ऐसा था, जब अधिकांश भारतीय बाहर खाने के बारे में सोचते तक नहीं थे, लेकिन राजगोपाल ने रिस्क लिया. उस ने डोसा, पूड़ी, वड़ा और इडली बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना शुरू किया. साथ ही मसाले भी अच्छी क्वालिटी के लगाए.

कीमत रखी प्रति थाली सिर्फ 1 रुपया. नतीजा यह हुआ कि उसे एक महीने में 10 हजार रुपए का घाटा हो गया. लेकिन वह न तो कारोबार में हुए घाटे से पीछे हटा और न ही गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता किया.

पी. राजगोपाल की मेहनत रंग लाई. बीतते वक्त के साथ कुछ ऐसा हुआ कि चेन्नई में अगर किसी का बाहर खाने का मन होता तो उस की पहली पसंद सर्वना भवन ही होती थी. उस के स्टाफ में जितने भी कर्मचारी थे, सब को अच्छी सैलरी देनी शुरू कर दी.

निचले स्तर के कर्मचारियों को उस ने मैडिकल की सुविधा भी देनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि उस का स्टाफ उसे अन्नाची (बड़ा भाई) कहने लगा. पी. राजगोपाल के अच्छे व्यवहार से उस के कर्मचारी उसे दिल से चाहते थे. अगर उसे छींक भी आ जाती तो वे तड़प उठते थे.

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अरबपति बनने की राह पर

राजगोपाल की मेहनत और निष्ठा से उस का कारोबार चल निकला. नतीजा यह निकला कि राजगोपाल का ज्योतिषी पर भरोसा बढ़ गया. बहरहाल, जो भी हो वक्त के साथ कारोबार इतना बढ़ा कि राजगोपाल ने रेस्टोरेंट की चेन शुरू कर दी. धीरेधीरे लोग राजगोपाल का नाम भूल गए और उसे डोसा किंग के नाम से जानने लगे.

ज्योतिषी की सलाह पर राजगोपाल ने रंगीन कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. वह झक सफेद पैंट और शर्ट पहनने लगा. साथ ही माथे पर चंदन का बड़ा टीका भी लगाता.

इतना ही नहीं, उस ने अपने रेस्टोरेंट में अपने ज्योतिषी की तसवीर भी लगवा दी. जीवन में आए इस बदलाव की वजह से उस ने ज्योतिषी को भगवान का दरजा दे दिया. ज्योतिषी जो कहता, राजगोपाल वही करता था.

20 साल के अंदर राजगोपाल का सर्वना भवन देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर हो गया. सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हौंगकौंग, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, कुवैत, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली और रोम में भी राजगोपाल के आउटलेट्स खुल गए.

डोसा किंग पी. राजगोपाल की किस्मत आसमान में तारे की तरह चमक रही थी. कारोबार में नोट बरस रहे थे. डोसे की कमाई से उस के पास इतने पैसे आ गए कि वह नोटों के बिस्तर पर सोने लगा. उसी दौरान पी. राजगोपाल ने एक नहीं, 2-2 शादियां कीं. लेकिन दोनों पत्नियां उस के साथ नहीं टिकीं और हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चली गईं.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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