मुक्त : बेवफाई की राह पर सरोज

आज मंगलवार है और राज के आने का दिन भी. सरोज कल रात से ही अपनी आंखों में अनगिनत सपनों को संजोए सो नहीं पाई थी. राज के नाम से ही उस के जिस्म में एक अनछुई हलचल हिलोरें मार रही थी. वह अपनेआप को 18 बरस की उस कमसिन कली सा महसूस कर रही थी, जिसे पहली बार किसी लड़के ने छुआ हो.

सरोज ने आज बहुत ही जल्दी काम निबटा लिया था. विकास को भी टिफिन दे कर बहुत ही अच्छे मन से विदा किया था. विकास के साथ सरोज की शादी 10 साल पहले हुई थी. उन्होंने सरोज को 2 प्यारेप्यारे बच्चे उस उपहार के रूप में दिए थे, जिस का मोल वह कभी नहीं चुका सकती थी.

विकास बहुत ही सीधे स्वभाव के इनसान हैं. वे सरोज की हर बात में सिर्फ और सिर्फ अपनी रजामंदी ही देते हैं. कभी भी उन्होंने सरोज के फैसले पर अपने फैसले की मुहर नहीं लगाई है. सच कहें, तो सरोज अपने गरीबखाने की महारानी है.

इस सब के बावजूद बस एक यही बात सरोज को बेचैन कर देती है कि विकास को तो बच्चे हो जाने के बाद उस से दूर होने का बहाना मिल गया था. वह जब भी रात में उन के करीब जा कर अपनी इच्छा जाहिर करने की कोशिश करती, तो वे ‘आज नहीं’, ‘बच्चे उठ जाएंगे’, ‘फिर कभी’ कह कर सरोज को बड़ी ही सफाई से मना कर देते थे. वह भी अपने अंदर उठते ज्वारभाटे के तूफान को दबाते हुए आंखों में आंसुओं का सैलाब ले कर सोने का नाटक करती थी.

इसी तरह महीने, फिर साल बीतने लगे. सरोज उस मछली सा तड़पने लगी, जिस के पास समुद्र तो है, फिर भी वह प्यासी ही है. इसी प्यास को अपने गले में भर कर सरोज भी नौकरी करने लगी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा और वह और ज्यादा प्यास से तड़पने लगी.

राज सरोज के सीनियर थे और अपनी हर बात उस से शेयर करने लगे थे. वह भी जैसे उन के मोहपाश में बंध कर अपनी सीमाओं को पार कर उन के साथ चलते हुए सात घोड़े के रथ पर सवार आकाश में बिन पंख के उड़ने लगी थी.

धीरेधीरे राज और सरोज कब एक होने को उतावले हो गए, सच में पता ही नहीं चला और आखिरकार आज वह दिन भी आ गया, जब राज को अपने घर आने का न्योता देते हुए उस ने अपनी आंखों से रजामंदी भी दे दी थी.

आज सरोज ने छुट्टी ले ली थी और राज आधे दिन की छुट्टी ले कर उस के घर आ जाएंगे. बस उसी पल के इंतजार में वह न जाने कितनी बार खुद को आईने में निहारती रही. उसे आज एक अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी.

सरोज आज उस कुएं में खुद को विलीन करने जा रही थी, जिस के पनघट पर उस का कोई हक नहीं था. पर वह आज जी भर कर उस कुएं का पानी पीना चाहती थी. बस यही सोचते हुए वह एकएक पल गिन रही थी.

अचानक दरवाजे की घंटी ने सरोज का ध्यान हटा दिया. आज अपने बैडरूम से मेन दरवाजा खोलने तक का सफर उसे कई मीलों सा लग रहा था. उस के कदम शरीर का साथ नहीं दे रहे थे. वे उस के दिल में उठे उस तूफान को शांत करने में लगे थे, जो उस के और राज के बीच एक कमजोर से धागे को बांध कर उस से विश्वास की मजबूती की चाहत करने की सोच रहे थे.

बड़ी ही जद्दोजेहद से सरोज दरवाजे तक पहुंच पाई. आज पहली बार दरवाजे को खोलने में वह अपनी नजरों को नीचे किए हुए थी. वह पापपुण्य के बीच अपनी उस प्यास को महसूस कर रही थी, जिस की बेचैनी उसे जीने नहीं दे रही थी.

सरोज ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला. देखा कि सामने विकास हाथ में गजरा लिए मुसकराते हुए खड़े थे.

‘‘क्या सरोज, इतनी देर से घंटी बजा रहा था. क्या कर रही थी?’’

सरोज कुछ बोल पाती, इस के पहले ही विकास ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस के बालों को गजरे से सजातेसजाते वे धीरे से कानों में फुसफुसाने लगे, ‘‘अच्छा हुआ, जो तुम ने आज छुट्टी कर ली. मैं कल से ही तुम्हें सरप्राइस देने की सोच चुका था. आज मैं पूरा दिन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे मुताबिक जीना चाहता हूं और तुम्हारी सारी शिकायतें भी तो दूर करनी हैं.’’

सरोज सपनों की दुनिया से बाहर आ गई और अपने उस फैसले पर पछताने लगी, जो आज उस के और विकास के विश्वास को तोड़ते हुए उसे उस पलभर के सुख के बदले आत्मग्लानि के अंधे और सूखे कुएं में गिराने वाला था.

सरोज विकास की बांहों से खुद को मुक्त कर के उस अंधेरे को फोन करने जाने लगी, जो उसे अपने खुशहाल परिवार की रोशनी से दूर करने वाला था और वह अंधकार भी सरोज ने ही तो चुना था.

हाय हैंडसम: प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

प्यार आजाद है, उम्र नहीं देखता. यह किसी भी उम्र में, किसी से भी हो सकता है.  कमसिन उम्र की गौरी दिल लगा बैठी थी अपनी उम्र से ढाईगुना बड़े व्यक्ति से. प्रेम में दीवानी गौरी का यह महज बचपना था या वाकई उस के प्यार में कोई अलग बात थी?

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मु?ो अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मु?ा से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मु?ो आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मु?ो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं ?ोंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मु?ो बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मु?ो ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मु?ो अपना नंबर दो न, मु?ो आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मु?ो मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मु?ो तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या सम?ा था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने ?ां?ालाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?ि?ाक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मु?ो फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मु?ो नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मु?ो उस को सम?ाना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मु?ो मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से ?ाठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

अगले दिन सुबह मैं बस में बैठ कर जा रहा था. मन किसी अनजाने भय से भयांकित था. सोच रहा था, पता नहीं क्या होगा? मेरे साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए. अगर ऐसा कुछ हो गया तो पत्नी और बच्चों को कैसे सम?ाऊंगा? मैं तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा, मेरी इज्जत का ढिंढोरा बीच बाजार पिट जाएगा? एक मन कह रहा था, मैं गौरी से न मिलूं, तो एक मन कह रहा था, मिल लो, मिलने से स्थिति साफ हो जाएगी. यही सब सोचते हुए मैं मुरादाबाद पहुंच गया. कपूर कंपनी चौराहे पर बस रुकी. मैं बस से उतरा ही था, गौरी मेरे सामने आ कर बोली, ‘हाय हैंडसम.’ मैं उसे देख कर सकपका गया.

‘जनाब, पूरे 9 बजे से यहां खड़ी आप का इंतजार कर रही हूं,’ उस ने जताया.

मैं ने बस, उस से इतना ही कहा, ‘तुम ने मु?ो पहचान लिया?’

‘हां तो, इस में चौंकने की क्या बात है. बौडीशौडी तो बिलकुल फोटो जैसी है. बस, सिर के बाल ही तो थोड़े सफेद हुए हैं.’

मैं खामोश ही रहा.

‘हम चलें?’ उस ने सड़क किनारे खड़ी अपनी लाल रंग की बड़ी कार की तरफ इशारा कर के कहा.

‘हम कार से चलेंगे?’

‘हां कार भी हमारी, रैस्त्रां भी हमारा और लस्सी भी हमारी होगी, आप हमारे मेहमान जो हो.’

मैं उस की कार में बैठ गया. कार वही चला रही थी. हम मुरादाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर बिजनौर रोड पर एक रैस्टोरैंट में आ कर बैठ गए. उस ने 2 कुल्हड़ वाली लस्सी और 2 सैंडविच का और्डर दे दिया. वहां बैठे लोग मु?ो और उस को अजीब निगाहों से घूरने लगे. मु?ो अजीब लगा, तो मैं ने अपने हावभाव ऐसे कर लिए जैसे मैं उस का कोई रिश्तेदार हूं. वह बहुत उतावली हो रही थी. टेप रिकौर्डर की तरह पटरपटर बोले जा रही थी. वह क्या बोल रही थी, मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था क्योंकि मेरा दिलोदिमाग उस की बातों में नहीं लग रहा था. मैं, बस, उसे देखे जा रहा था. फिर उस ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों में अपने दोनों गालों को रोका और कुहनियों को मेज पर टिका कर हसरत से मु?ो ऐसे देखने लगी जैसे कोई अनोखी चीज देख रही हो. फिर मुसकराने लगी.

मैं ने कहा, ‘अरे, ऐसे क्यों देख रही हो मु?ो?’

वह उसी तरह मुसकराते हुए बोली, ‘एक बात बोलूं हैंडसम, मेरे दिल ने आप को चाह कर कोई गलती नहीं की. आप तो कल्पना से भी अधिक स्मार्ट और हैंडसम हैं. दिन में 10 बार देखते हैं आप की तसवीर को.’

‘अच्छा, ऐसा क्या है उस तसवीर में?’ मेरे कहते ही वह अपने महंगे मोबाइल फोन पर मेरा फेसबुक अकाउंट खोल कर मेरी डीपी को मु?ो दिखाते हुए बोली, ‘‘हमारी निगाहों से देखिए अपनी इस तसवीर को. कैसे अपने दोनों हाथों को ऊपर कर के मंदमंद मुसकरा रहे हैं. इसी मुसकराहट ने हमारी जान ले ली.’’

मैं कभी अपनी फोटो देख रहा था, तो कभी उस को.

‘आप की लस्सी गरम हो रही है, पीजिए इसे,’ उस ने अधिकार से कहा.

मैं ने लस्सी का कुल्हड़ उठाया और एक घूंट भर कर कहा, ‘गौरी, तुम ने कहा था तुम मु?ा से मिलना चाहती हो, तो मैं तुम से मिल लिया. तुम ने यह भी कहा था मिलने के बाद मैं जो कहूंगा, तुम उस को मानोगी?’

‘तो कहिए न, हम आप की बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी,’ वह तपाक से बोली.

मैं ने कहा, ‘अब तुम न तो मु?ो कभी फोन करोगी और न ही फेसबुक पर मु?ो कोई मैसेज करोगी.’

‘आप से प्यार तो करूंगी या वह भी नहीं करूंगी. सुनिए हैंडसम, हम आप को अब न फोन करेंगे, न आप से फेसबुक पर चैट करेंगे लेकिन एक शर्त पर, एक बार, बस, एक बार आप हम से मुसकरा कर आई लव यू कह दीजिए.’

मैं ने मन में सोचा, यह लड़की बहुत जिद्दी है. ऐसे मानने वाली नहीं है. इस के लिए कुछनकुछ तो करना ही पड़ेगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम से सचमुच प्यार करने लगूंगा, तुम्हें आई लव यू भी बोलूंगा, लेकिन तब जब तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई करोगी और फर्स्ट डिवीजन से अपनी इंटर की परीक्षा पास कर लोगी. उस से पहले, न तुम मु?ो फोन करोगी और न ही मु?ा से चैट करोगी.’

‘ओके हैंडसम, हमें आप की शर्त मंजूर है. अब हम खूब जम कर पढ़ाई करेंगे. हालांकि, यह सब करना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा क्योंकि जो शर्त आप ने हमारे सामने रखी है वह हमारे लिए किसी सजा से कम नहीं है. फिर भी हम इस सजा को आप की मोहब्बत का तोहफा सम?ा कर स्वीकार कर लेते हैं, पर आप हमें भूल मत जाना.’

मेरे ड्राइवर ने मु?ो फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मु?ो अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मु?ो बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मु?ो यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मु?ो उस की भूल को सुधारना होगा.

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मु?ो याद आया, गौरी ने मु?ा से कहा था, अगर मु?ो जिंदा देखना चाहते हो तो मु?ो कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मु?ो थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से ?ाठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम सम?ा गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मु?ो गौरी से बात कर के उसे सम?ा देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मु?ो बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मु?ो किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मु?ो बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मु?ा से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत सम?ा लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मु?ा से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

क्रेजी कल्चर : टीचर की अनकहीं कहानी

इंदौर की एक सरकारी कालोनी के पास वाला मैदान. शाम का समय. एक घने पेड़ के नीचे बैठे हुए बाबा.तभी ‘बचाओबचाओ’ की आवाज आने लगी. एक पेड़ के नीचे ट्यूशन पढ़ते हुए बच्चे और टीचर घबरा गए. बाबा भी घबरा गए. उन्होंने लड़खड़ाते हुए कुरसी से उठने की कोशिश की, तो हड़बड़ा कर गिर गए. बाबा का एक पैर घुटनों के नीचे से कटा जो हुआ था.देखा तो सामने से एक लड़की जलती हुई ‘बचाओबचाओ’ की आवाज लगाते हुए मैदान में यहांवहां भाग रही थी.

खुले मैदान में चलती तेज हवा ने उस आग को भड़का दिया था.मैदान में बचाव का कोई साधन नहीं था. बाबा जोरजोर से चिल्लाने लगे, ‘‘कोई मेरी बैसाखी लाओ रे…

’’टीचर वहीं पास में खड़े थे. उन्होंने बाबा को बैसाखी पकड़ाई. इसी बीच बाबा चिल्लाने लगे, ‘‘कोई मेरी बेटी को बचाओ… बेटी आशु… मेरी बेटी आशु…’’

और वे बैसाखी के सहारे बदहवास से इधरउधर भागने लगे.तभी मैदान के किनारे बने पुलिस थाने से कुछ लोग दौड़ते हुए आए, तब तक आशु जमीन पर गिर चुकी थी.

किसी पुलिस वाले ने उस पर कंबल डाल कर आग बुझाने की कोशिश की…लंबी सुरंग… घुप अंधेरा… मां की हंसी की आवाज… रोने की आवाज… ‘मेरी आशु’… मां की आवाज फिर गूंज रही थी… ‘अगर हम से कोई भूल हुई है और हम उसे बताते नहीं हैं, अगर सुधारते नहीं हैं, तो यह उस से भी बड़ी भूल है…‘ईशा… तुम ऐसी भूल कभी मत करना बेटी. ईशा… सुनो बेटी, मेरी बेटी ईशा…’‘मां…’ मां अचानक उस के नजदीक आईं, फिर एकदम से दूर होती चली गईं.

तभी बाबा की बैसाखी की ‘ठकठक’ नजदीक आती गई. ‘ठकठक’ बढ़ने लगी… और बढ़ने लगी. इतनी बढ़ने लगी कि उस के दिमाग में उस की आवाज गूंजने लगी.‘‘बाबा…’’ ईशा चिल्लाई… चारों तरफ घुप अंधेरा.‘‘मां…’’ ईशा जोर से चिल्लाई.‘‘क्या हुआ ईशा?’’

ईशा की नींद खुल गई. वह पूरी तरह पसीने से भीगी हुई थी. सांसें तेजतेज चल रही थीं. सामने देखा तो बाबा कुरसी पर बैठे थे. उन की बैसाखी पास ही दीवार के सहारे रखी थी. मां ईशा का सिर अपनी गोद में ले कर बैठी थीं. मां घबरा गईं और पूछा, ‘‘क्या हुआ ईशा?

कोई बुरा सपना देखा था क्या, जो डर गई हो?’’ईशा ने देखा कि सुबह के 7 बज रहे थे. मतलब, रात को सपने में वही देख रही थी… आशु को.‘‘मां… मां…’’

कहते हुए ईशा ने मां को कस कर पकड़ लिया और जोरजोर से रोने लगी.मां ने उसे रोने दिया. जब रो कर मन थोड़ा हलका हुआ तो ईशा बोली, ‘‘मां, मैं आशु को नहीं भूल पाती हूं. आज भी रात को मुझे सपने में वह सब दिखा… जलती हुई आशु…’’ ईशा बोली.‘‘ईशा, आशु तेरी बहन थी. हम उसे कैसे भूल सकते हैं… मेरी बेटी थी, तेरी बड़ी बहन थी. उस का दर्द,

उस की तकलीफ हम सब ने अपनी आंखों से देखी है… बाबा को देखो, कैसे हिम्मत से काम लिया उन्होंने. बाबा तो वहीं थे मैदान में.’’तभी ईशा का बड़ा भाई गजेंद्र चाय ले कर आ गया. प्यार से सब उसे गज्जू कहते थे.‘‘नहीं भैया, अभी चाय का मूड नहीं है,’’ ईशा बोली.‘‘चाय पी लोगी, तो मन अच्छा रहेगा. थकीथकी लग रही हो, फ्रैश हो जाओगी,’’ कह कर गज्जू ने चाय का कप ईशा को पकड़ा दिया. ईशा चाय पीने लगी.‘‘ईशा, आज कालेज जाओगी न?

अगर घर पर रैस्ट करने का मूड हो तो रैस्ट करो,’’ मां ने कहा.‘‘जाऊंगी मां…’’ ईशा ने चाय खत्म कर ली थी, ‘‘आज ऐक्स्ट्रा क्लास भी है.’’‘‘तो ठीक है, तू नहा कर तैयार हो जा. मैं तेरे लिए नाश्ता बनाती हूं,’’ कह कर मां किचन में चली गईं.ईशा के गजेंद्र भैया उर्फ गज्जू पुलिस में थे.

नजदीकी थाने में उन की पोस्टिंग थी. वे तैयार हो कर वहां के लिए निकल गए थे.ईशा के बाबा भी पुलिस में थे, पर एक हादसे में एक पैर कटने से उन की नौकरी नहीं रही थी. प्रशासन ने उन के बेटे को पुलिस में नौकरी दे दी थी, इसलिए जो सरकारी मकान बाबा के नाम अलौट था,

वह अब गज्जू के नाम हो गया था.नाश्ता कर के ईशा अपनी सरकारी कालोनी पार कर सड़क पर आटोरिकशा का इंतजार कर रही थी. तकरीबन 18 साल की ईशा देखने में खूबसूरत थी. कदकाठी भी अच्छी थी. रंग गेहुंआ था और उस की मुसकान बड़ी प्यारी थी.

ईशा में एक और बात खास थी, जो उस की खूबसूरती में चार चांद लगाती थी और वह थी उस की घुटनों तक लंबी चोटी. ईशा के बाल बड़े ही काले और घने थे..

ईशा उन का बड़ा ध्यान रखती थी. उसे जींसटीशर्ट पहनना कम पसंद था, जबकि सूटसलवार चाहे रोज पहनवा लो.ईशा जावरा कंपाउंड के देवी अहिल्या गर्ल्स कालेज में पढ़ती थी. कालेज में उस की सहेली मारिया उस का इंतजार का रही थी. वे दोनों बीएससी की पढ़ाई कर रही थीं.लैक्चर खत्म होने के बाद ईशा मारिया के साथ कालेज के गार्डन मे आ गई.

‘‘चल ईशा, कैंटीन में कुछ खाते हैं…’’ मारिया बोली.‘‘नहीं यार, मैं घर से नाश्ता कर के आई हूं. पेट में बिलकुल भी जगह नहीं है,’’ ईशा बोली.‘‘तेरी मां वक्त की बड़ी पाबंद हैं… रोज टाइम पर नाश्ता,’’ मारिया ने कहा.‘‘मां मेरा बहुत ध्यान रखती हैं.’’

‘‘अच्छा, चाय तो पी सकती है न मेरा साथ देने के लिए?’’ मारिया ने पूछा.‘‘ठीक है, चाय पी लेंगे,’’ ईशा ने कहा और मारिया के साथ कालेज की कैंटीन में आ गई. 2 चाय और एक सैंडविच का टोकन ले कर मारिया काउंटर पर पहुंची. और्डर आने पर ईशा ने उस के हाथ से चाय का गिलास ले लिया.ईशा चाय पीने में बिजी हो गई और मारिया सैंडविच खाने में.

थोड़ी देर बाद मारिया बोली, ‘‘यार ईशा, एक बात पूछूं, अगर बुरा नहीं मानेगी तो?’’‘‘बुरा क्यों मानूंगी…’’ ईशा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा.‘‘तेरे घर में सब इतना ध्यान रखते हैं तेरा, पर मेरे घर वालों को फुरसत ही नहीं है. मम्मी किटी पार्टियों में ज्यादा बिजी रहती हैं और डैड अकसर टूर पर.

घर का नाश्ता मिले तो महीनों बीत जाते हैं. नौकरों के हाथ का नाश्ता खाखा कर बोर हो जाती हूं…’’‘‘तू पूछ रही है या बता रही है?’’ ईशा ने टोका.‘‘मेरा मतलब यह था कि तेरे घर वाले इतने अच्छे हैं, फिर तेरी बहन आशु ने सुसाइड क्यों किया था? क्या प्रौब्लम थी? लोग बातें बनाते हैं…’’‘‘देख मारिया, इस टौपिक पर बात मत कर… मुझे पसंद नहीं…’’ कहते हुए ईशा चिढ़ गई.‘‘नहीं यार, तू मेरी फ्रैंड है, इसलिए सोचा कि सीधे तेरे से ही पूछ लूं. इधरउधर की बातों से बेहतर है,’’ मारिया थोड़ी सहम गई.ईशा ने कुछ नहीं कहा और कैंटीन से उठ कर कालेज के मैदान में एक पेड़ के नीचे रखी बैंच पर जा कर बैठ गई.

मारिया ने उस के जख्मों को कुरेदना ठीक नहीं समझा और वह वहीं रह गई.ईशा को आशु के साथ बिताए पल याद आने लगे. फास्ट फूड की तरह आशु ने अपनी जिंदगी को भी फास्ट फूड जैसा बना लिया था. उसे हर बात में जल्दी होती है. उसे हर चीज तुरंत चाहिए होती थी.

सीढ़ी दर सीढ़ी मिली कामयाबी में उसे यकीन नहीं था. पर चूंकि वह एक मिडिल क्लास परिवार की थी, तो सब से बड़ी कमी पैसे की थी.कालेज में अमीर घरों की लड़कियों को कार से आतेजाते देख कर आशु को अपनी किस्मत पर बहुत गुस्सा आता था.

उसे महंगे रेश्मी कपड़े पहनना और महंगे ब्यूटी पार्लर में जाना पसंद था. इन खर्चों को पूरा करने के लिए उस ने सेल्स गर्ल का काम चुन लिया था, वह भी घर पर बताए बिना.एक दिन आशु अपने प्रोडक्ट ले कर एक घर में गई. एक अधेड़ आदमी ने बाहर आ कर पूछा,

‘‘बोलो बेबी, क्या काम है?’’‘‘जी अंकल, मेरे पास किचन में काम आने वाले कुछ प्रोडक्ट हैं… आप देखिए न प्लीज और आंटीजी को भी दिखाइए,’’ आशु ने कहा.‘‘आओ… अंदर आ जाओ…’’ वह अधेड़ बोला, ‘‘अरे, सुनती हो…’’ जैसे उस ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई हो.आशु ने जैसे ही घर के ड्राइंगरूम के अंदर कदम रखा, उस आदमी ने दरवाजा बंद कर दिया… आशु घबरा गई और वहां से जाने को हुई कि तभी वह आदमी बोला, ‘‘कहां जा रही हो, प्रोडक्ट तो दिखाओ…’’जब अंदर से उस आदमी की पत्नी वहां आई, तो आशु की जान में जान आई और वह तुरंत सोफे पर बैठ गई.तभी वह आदमी भी आशु के पास सोफे पर आ कर बैठ गया और उस ने आशु के गले में अपनी बांहें डाल दीं.

‘‘अंकल, यह क्या कर रहे हैं आप?’’ आशु एकदम से उठने की कोशिश करने लगी.‘‘बैठी रहो चुपचाप…’’ उस आदमी की पत्नी चिल्लाई. तब तक अंकल ने आशु को जकड़ कर उस पर चुम्मों की बरसात कर दी थी. वे बहुत देर तक आशु के शरीर को यहांवहां टटोलते रहे और आंटी अपने मोबाइल फोन से फोटो खींचती रहीं.‘‘चलो, उठो अब यहां से,’’

आंटी आशु से बोलीं.आशु तुरंत उठ गई.‘‘रुको… प्रोडक्ट कितने के हुए?’’ अंकल ने पूछा.घबराई आशु ने धीरे से कहा, ‘‘2,000 रुपए के.’’‘‘ये लो 5,000 पकड़ो… 2,000 तुम्हारे प्रोडक्ट के, 3,000 तुम्हारी टिप… जो चुम्मे दिए अंकल को…’’ आंटी बोलीं, ‘‘क्योंकि ये चुम्मा लेने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते… नामर्द हैं… उम्र हो गई है… ठीक है न…’’

कह कर आंटी ने ‘भड़ाक’ से दरवाजा बंद कर दिया.आशु सोचती रह गई, पर जब वह वापस घर पहुंची तो बड़ी खुश थी. उस के पास 3,000 रुपए जो थे.

उसे याद आया कि कालेज में एक रईसजादा उस पर लाइन मारता है, पर वह उसे भाव नहीं देती है. अगर वह चुम्मे के बदले उस से पैसे वसूले तो… यह सब सोचते हुए आशु को रात को नींद नहीं आई.

उस ने फैसला किया कि पैसे की कमी में वह उन अंकल के पास भी कभीकभी चली जाएगी, लेकिन कल उस कार वाले रईसजादे से ‘हैलो’ से शुरुआत की जाए.

अगले दिन जब आशु कालेज से बाहर निकली तो कार वाला लड़का गेट के बाहर खड़ा था. आशु ने उसे देख कर एक मुसकराहट उछाली. कार वाला लड़का उस के पास पहुंचा और हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘‘हैलो, मैं नीरज…’’‘‘और मैं आशु,’’ कह कर उस ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.नीरज ने कहा, ‘‘अगर फ्री हो, तो कहीं चल कर कौफी पी जाए?’’

आशु ने ‘हां’ कर दी, तो नीरज ने कार का दरवाजा खोला. आशु ने कार के अंदर बैठ कर खुद को राजकुमारी सा महसूस किया. वह पहली बार किसी लड़के के साथ कार में बैठी थी.कौफी पीने के दौरान नीरज ने बताया कि उस के पापा के कई पैट्रोल पंप हैं और वह एकलौता लड़का है. उस ने यह भी बताया कि वह गुजराती साइंस ऐंड कौमर्स कालेज का स्टूडैंट है.

आशु बड़ी प्रभावित हुई. नीरज ने आशु को पहला गिफ्ट एक मोबाइल फोन दिया. कुछ महीने तक मिलनेमिलाने का सिलसिला चलता रहा.

कभीकभी कार चलाते चलाते सूने रास्तों पर नीरज ने उस के कई बार चुम्मे लिए थे.आशु ने अपने घर पर बताया था कि दोनों बहनों ने बचत कर के यह मोबाइल फोन खरीदा था. इस तरह से ईशा भी उस का राज जान गई थी.एक दिन नीरज आशु को अपने घर ले गया.

उस समय वहां कोई नहीं था. उस ने आशु के लिए एक नाइटी खरीदी थी. पहले तो आशु झिझकी, पर नीरज की अमीरी उस पर हावी थी. वह जैसे ही नाइटी पहन कर बैडरूम में गई, नीरज ने मौके का फायदा उठा कर आशु की इज्जत तारतार कर दी.नीरज ने अपनी हवस का वीडियो बनाया और बोला, ‘‘मेरी जान, हमारे प्यार की याद अमर बनाने के लिए यह वीडियो जरूरी है.

तुम डिजिटल लड़की हो…’’ इस के बाद नीरज के साथसाथ उस के कई दोस्तों ने आशु को अपनी हवस का शिकार बनाया.इधर ईशा को आशु पर शक होने लगा कि वह कुछ गलत कर रही है, क्योंकि रात में जब आशु कपड़े चेंज कर के नाइटी डाल कर बिस्तर पर आती थी, तो उस के गले, पीठ और छाती पर काटने के लाल निशान दिखते थे. धीरेधीरे ईशा को आशु के क्रेजी होने पर नफरत सी होने लगी.एक दिन ऐसा आया कि अचानक आशु ने खुदकुशी कर ली.

सरकारी कालोनी में बाथरूम घर में नहीं बने हो कर, घर के बाहर बने थे. आशु ने बाथरूम में जा कर कैरोसिन छिड़क कर खुद को आग के हवाले कर लिया था… जब सहन नहीं हुआ तो वह बाहर चिल्लाती हुई मैदान में भागने लगी, पर उस की जान नहीं बच पाई.

तभी अचानक ईशा अपनी यादों से बाहर निकल आई. वह पसीने से तरबतर थी. वह तेजी से कालेज से बाहर भागी और सड़क पर आटोरिकशा का इंतजार करने लगी.जब तक ईशा घर पहुंची, तब तक उस का बदन तपने लगा था. वह सीधी अपने बिस्तर में जा घुसी.

‘‘यह कौन सा समय है सोने का…’’ कहते हुए मां ने ईशा के चेहरे से कंबल हटाया, ‘‘चल उठ ईशा, चाय पी ले.’’ईशा ने कोई जवाब नहीं दिया.मां ने जैसे ही ईशा के माथे पर हाथ रखा, तो वे घबरा गईं और तुरंत ही गज्जू को आवाज लगाई. गज्जू और बाबा दोनों कमरे में आ गए.घर से कुछ ही दूर एक क्लिनिक था. गज्जू ईशा को वहीं ले गया. कुछ मैडिसिन ले कर ईशा गज्जू के साथ वापस आ गई.दवा लेने के बाद भी ईशा का बुखार कम नहीं हो रहा था.

आखिर में किसी ने मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह दी और कहा कि शायद ईशा पर किसी घटना का बुरा असर पड़ा है और वह उस बात को भुला नहीं पा रही है.मां बड़ी मुश्किल से राजी हुईं. शहर के मशहूर मनोचिकित्सक डाक्टर रमन जैन के पास ईशा को ले जाया गया.

डाक्टर रमन जैन ने ईशा के बारे में नौर्मल जानकारी ली और ईशा के लंबे बालों की जम कर तारीफ की. उन्होंने ईशा से कहा, ‘‘मेरी बेटी ने तो मौडर्न बनने के चक्कर में अपने बालों को छोटा करवा दिया है. कुछ टिप्स मेरी बेटी को भी देना, ताकि उस के बाल भी लंबे और खूबसूरत हो जाएं.’’

‘‘जी डाक्टर साहब,’’ इतनी देर से चुपचाप ईशा के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट आ गई.‘‘अगली मुलाकात में अपनी बेटी से तुम्हारी बात करवाऊंगा,’’ डाक्टर रमन जैन बोले.जब ईशा घर पहुंची, तो उसे हलकापन महसूस हो रहा था. मां प्यार से उस का सिर सहलाने लगीं. रात को खाना खाने के बाद ईशा ने दवा ली और सो गई. उसे सपने में आशु नहीं दिखी, क्योंकि उस ने नींद आने की दवा भी खाई थी. यह सिलसिला 10 दिनों तक चलता रहा. पूरा परिवार ईशा की देखभाल करता रहा. उसे अकेला नहीं छोड़ा गया.

आज 11वें दिन फिर डाक्टर के पास जाना था.‘‘आज पता है ईशा क्या हुआ?’’ डाक्टर रमन जैन ने कहा.‘‘क्या हुआ…’’ ईशा ने पूछा.‘‘जब मैं क्लिनिक आ रहा था, तब एक डौगी मेरी गाड़ी के नीचे आतेआते बचा…’’ डाक्टर रमन जैन बोले.‘‘ओह…’’ ईशा के मुंह से निकला.

‘‘वह भूखा और कमजोर लग रहा था. मैं ने गाड़ी रोक कर उसे चाय की गुमटी से दूधब्रैड खिलाया…’’‘‘बेचारा…’’ ईशा बोली.‘‘उस को कहीं चोट भी लगी थी… पैर के पास ऊपर,’’ डाक्टर रमन जैन बोले, ‘‘लेकिन, उस का मुंह घाव तक जा सकता था, इसलिए वह चाटचाट कर उसे ठीक कर लेगा.’’‘‘कितने परेशान हो जाते हैं डौगी बेचारे…’’

ईशा के मुंह से निकला.‘‘बिलकुल. लेकिन, वे सुसाइड नहीं करते,’’ डाक्टर रमन जैन ने बात बदली.‘‘मतलब…?’’ ईशा चौंक गई.‘‘मतलब यह कि बहुत से जानवर गाड़ी के नीचे आ कर हाईवे पर कुचले जाते हैं, पर क्या कभी खुद जानवर किसी गाड़ी के नीचे जाते हैं मरने के लिए?’’ डाक्टर रमन जैन ने पूछा.‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ ईशा बोली.भैया और मां चुपचाप देख रहे थे.‘‘तो क्या हम जानवरों से भी गएगुजरे हैं, जो संघर्ष को छोड़ कर मौत को गले लगा लें?’’

डाक्टर रमन जैन ने पूछा.‘‘पर, वह आशु…’’ ईशा की आंखों में आंसू भरने लगे.‘‘वह संघर्ष नहीं कर पाई अपने विचारों से और गलत राह पर चलने लगी. अगर किसी टैंशन में रहने लगी थी तो मातापिता से शेयर करती. समाधान जरूर मिलता,’’ डाक्टर रमन जैन ने कहा.‘‘लेकिन, सुखसुविधाओं की उम्मीद करना क्या बुरी बात है?’’ ईशा ने पूछा.‘‘कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन आशु का तरीका गलत था. जितने भी महान लोग हुए हैं, उन सब ने संघर्ष किया है. अच्छा यह बताओ कि जब से तुम बीमार हुई हो, परिवार ने कोई कमी की देखभाल करने में? मां के प्यार में कमी लगी? भैया ने कमी की?’’ डाक्टर रमन जैन ने पूछा.

‘‘नहींनहीं, सब प्यार करते हैं मुझे,’’ कह कर ईशा रोने लगी. मां उठने ही वाली थीं कि डाक्टर ने इशारे से मना कर दिया.थोड़ी देर के बाद डाक्टर रमन जैन फिर बोले, ‘‘कई बच्चे ऐसे भी होते हैं, जिन के जीवन में मातापिता का साया ही नहीं रहता. तुम्हारे साथ ऐसा नहीं है ईशा…

तुम्हारी कालेज की फीस, तुम्हारे दूसरे खर्चों में कोई कमी…?’’‘‘भैया ध्यान रखते हैं मेरा,’’ ईशा बोली.‘‘तो बेटा, परिवार का हक पहले है तुम पर. जिंदगी अनमोल है

. क्या हमारा शरीर आत्महत्या करने के लिए है?’’ डाक्टर रमन जैन ने पूछा.‘‘जी नहीं, बात तो ठीक है आप की,’’ ईशा बोली.‘‘सुधा चंद्रन, तसलीमा नसरीन, महाश्वेता देवी… सभी की जिंदगी में उतारचढ़ाव आए, पर इन्होंने संघर्ष का रास्ता अपनाया,’’ डाक्टर रमन जैन ने आगे बात बढ़ाई.‘‘पढ़ाई के अलावा ऐसा क्या करूं, जिस से मुझे सुकून मिले?’’ ईशा ने पूछा.‘‘तुम्हारी हौबी क्याक्या हैं?’’ डाक्टर रमन जैन ने पूछा.‘‘मतलब…?’’

ईशा बोली.‘‘तुम्हारे बाल खूबसूरत हैं. इन्हें हैल्दी रखने के टिप्स के वीडियो बनाओ और सोशल मीडिया पर अपलोड करो. पैसा भी मिल सकता है आगे जा कर…’’‘‘क्यों नहीं..’’ भैया बोले, ‘‘अब तुम्हारा गिफ्ट नया मोबाइल इंतजार कर रहा है घर पर…’’ यह सुन कर मां भी मुसकराईं.‘‘खूबसूरत बालों के टिप्स सब से पहले मैं सीखूंगी,’’ अंदर से आवाज आई और परदा हटा कर एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई.‘‘मेरी बेटी… तुम्हारी पहली कस्टमर,’’ डाक्टर रमन जैन बोले.ईशा मुसकराने लगी. उस की जिंदगी से अंधेरा दूर हो रहा था और उम्मीदों की किरण जगमगाने लगी थी.

विवाह से पहले मेरा किसी से फिजिकल संबंध नहीं था, कैसे साबित करूं ?

सवाल
मैं 42 वर्षीय महिला हूं. मेरे विवाह को अभी 4 साल हुए हैं. मेरी परेशानी यह है कि हमारी सैक्सुअल लाइफ सही नहीं चल रही है. मेरे पति को लगता है कि मेरे देरी से विवाह का कारण मेरा विवाह से पूर्व कोई लव अफेयर है. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है. विवाह से पूर्व मेरा किसी के साथ कोई प्रेम संबंध नहीं था. क्या ऐसा कोई टैस्ट है जिस से मैं अपने पति को साबित कर सकूं कि विवाह से पूर्व मेरा किसी के साथ कोई शारीरिक संबंध नहीं था. मैं अपना वैवाहिक रिश्ता कैसे सुधारूं?

जवाब
आप के पति को ऐसा क्यों लगता है कि विवाह पूर्व आप के किसी के साथ शारीरिक संबंध थे. कहीं ऐसा तो नहीं उन्होंने आप से विवाह किसी पारिवारिक दबाव में मजबूरीवश किया हो और वे आप से दूरी बनाने के लिए आप पर आरोप लगा रहे हों?

जहां तक आप के पति के सामने आप के वर्जिन साबित करने वाले टैस्ट की बात है तो यह टैस्ट होता है लेकिन इस टैस्ट का कोई औचित्य नहीं है. इसे टू फिंगर टैस्ट भी कहा जाता है. इस टैस्ट में जांच की जाती है कि महिला की हाइमन झिल्ली बरकरार है या नहीं. लेकिन वास्तव में यह झिल्ली इतनी लचीली होती है कि मात्र खेलतेकूदते समय ही यह टूट जाती है.

इस के अलावा हाइमनोप्लास्टी द्वारा भी आर्टिफिशियल हाइमन की तरह के टिशूज भी बनाए जा सकते हैं. इसलिए इस टैस्ट के कोई माने नहीं हैं.

वैवाहिक रिश्ते विश्वास पर चलते हैं न कि टैस्ट पर. इस बात की क्या गारंटी है कि आप के वर्जिनिटी टैस्ट में पास होने के बाद भी वे आप पर शक नहीं करेंगे और आप के संबंध सुधर जाएंगे और यह भी हो सकता है कि टैस्ट में पता चले कि आप की झिल्ली खेलकूद या किसी शारीरिक गतिविधि के कारण टूट गई हो तो उन का शक और गहरा हो जाएगा. इसलिए कोई टैस्ट वर्जिनिटी को साबित नहीं कर सकता.

अगर आप अपने पति के साथ वैवाहिक रिश्ते को सुधारना चाहती हैं तो उन के मन से शक का बीज हटा कर विश्वास की जड़ें पैदा करें. अपनी सैक्सुअल लाइफ को बेहतर बनाने के लिए नएनए तरीके अपनाएं. उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खुद को फिट रखें. लेटेस्ट फैशन व ब्यूटी अपडेट्स के लिए पत्रिकाएं पढें.

सबको साथ चाहिए: क्या सही था माधुरी का फैसला

सुधीर के औफिस के एक सहकर्मी रवि के विवाह की 25वीं वर्षगांठ थी. उस ने एक होटल में भव्य पार्टी का आयोजन किया था तथा बड़े आग्रह से सभी को सपरिवार आमंत्रित किया था. सुधीर भी अपनी पत्नी माधुरी और बच्चों के साथ ठीक समय पर पार्टी में पहुंच गए. सुधीर और माधुरी ने मेजबान दंपती को बधाई और उपहार दिया. रविजी ने अपनी पत्नी विमला से माधुरी का और उन के चारों बच्चों का परिचय करवाया, ‘‘विमला, इन से मिलो. ये हैं सुधीरजी, इन की पत्नी माधुरी और चारों बच्चे सुकेश, मधुर, प्रिया और स्नेहा.’’  ‘‘नमस्ते,’’ कह कर विमला आश्चर्य से चारों को देखने लगी. आजकल तो हम दो हमारे दो का जमाना है. भला, आज के दौर में 4-4 बच्चे कौन करता है? माधुरी विमला के चेहरे से उन के मन के भावों को समझ गई पर क्या कहती.

तभी प्रिया ने सुकेश की बांह पकड़ी और मचल कर बोली, ‘‘भैया, मुझे पानीपूरी खानी है. भूख लगी है. चलो न.’’

‘‘नहीं भैया, कुछ और खाते हैं, यह चटोरी तो हमेशा पहले पानीपूरी खिलाने ही ले जाती है. वहां दहीबड़े का स्टौल है. पहले उधर चलो,’’ स्नेहा और मधुर ने जिद की.

‘‘भई, पहले तो वहीं चला जाएगा जहां हमारी गुडि़या रानी कह रही है. उस के बाद ही किसी दूसरे स्टौल पर चलेंगे,’’ कह कर सुकेश प्रिया का हाथ थाम कर पानीपूरी के स्टौल की तरफ बढ़ गया. मधुर और स्नेहा भी पीछेपीछे बढ़ गए.

‘‘यह अच्छा है, छोटी होने के कारण हमेशा इसी के हिसाब से चलते हैं भैया,’’ मधुर ने कहा तो स्नेहा मुसकरा दी. चाहे ऊपर से कुछ भी कह लें पर अंदर से सभी प्रिया को बेहद प्यार करते थे और सुकेश की बहुत इज्जत करते थे. क्यों न हो वह चारों में सब से बड़ा जो था. चारों जहां भी जाते एकसाथ जाते. मजाल है कि स्नेहा या मधुर अपनी मरजी से अलग कहीं चले जाएं. थोड़ी ही देर में चारों अलगअलग स्टौल पर जा कर खानेपीने की चीजों का आनंद लेने लगे और मस्ती करने लगे.

सुधीर और माधुरी भी अपनेअपने परिचितों से बात करने लगे. किसी काम से माधुरी महिलाओं के एक समूह के पास से गुजरी तो उस के कानों में विमला की आवाज सुनाई दी. वह किसी से कह रही थी, ‘‘पता है, सुधीरजी और माधुरीजी के 4 बच्चे हैं. मुझे तो जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ. आजकल के जमाने में तो लोग 2 बच्चे बड़ी मुश्किल से पाल सकते हैं तो इन्होंने 4 कैसे कर लिए.’’

‘‘और नहीं तो क्या, मैं भी आज ही उन लोगों से मिली तो मुझे भी आश्चर्य हुआ. भई, मैं तो 2 बच्चे पालने में ही पस्त हो गई. उन की जरूरतें, पढ़ाई- लिखाई सबकुछ. पता नहीं माधुरीजी 4 बच्चों की परवरिश किस तरह से मैनेज कर पाती होंगी?’’ दूसरी महिला ने जवाब दिया.

माधुरी चुपचाप वहां से आगे बढ़ गई. यह तो उन्हें हर जगह सुनने को मिलता कि उन के 4 बच्चे हैं. यह जान कर हर कोई आश्चर्य प्रकट करता है. अब वह उन्हें क्या बताए? घर आ कर चारों बच्चे सोने चले गए. सुधीर भी जल्दी ही नींद के आगोश में समा गए. मगर माधुरी की आंखों में नींद नहीं थी. वह तो 6 साल पहले के उस दिन को याद कर रही थी जब माधुरी के लिए सुधीर का रिश्ता आया था. हां, 6 साल ही तो हुए हैं माधुरी और सुधीर की शादी को. 6 साल पहले वह दौर कितना कठिन था. माधुरी को बड़ी घबराहट हो रही थी. पिछले कई दिनों से वह अपने निर्णय को ले कर असमंजस की स्थिति में जी रही थी.

माधुरी का निर्णय अर्थात विवाह का निर्णय. अपने विवाह को ले कर ही वह ऊहापोह में पड़ी हुई थी. घबरा रही थी. क्या होगा? नए घर में सब उसे स्वीकारेंगे या नहीं.

विवाह को ले कर हर लड़की के मन में न जाने कितनी तरह की चिंताएं और घबराहट होती है. स्वाभाविक भी है, जन्म के चिरपरिचित परिवेश और लोगों के बीच से अचानक ही वह सर्वथा अपरिचित परिवेश और लोगों के बीच एक नई ही जमीन पर रोप दी जाती है. अब इस नई जमीन की मिट्टी से परिचय बढ़ा कर इस से अपने रिश्ते को प्रगाढ़ कर यहां अपनी जड़ें जमा कर फलनाफूलना मानो नाजुक सी बेल को अचानक ही रेतीली कठोर भूमि पर उगा दिया जाए.

लेकिन माधुरी की घबराहट अन्य लड़कियों से अलग थी. नई जमीन पर रोपे जाने का अनुभव वह पहले भी देख चुकी थी. उस जमीन पर अपनी जड़ें जमा कर खूब पल्लवित हो कर नाजुक बेल से एक परिपक्व लताकुंज में परिवर्तित भी हो चुकी थी, लेकिन अचानक ही एक आंधी ने उसे वहां से उखाड़ दिया और उस की जड़ों को क्षतविक्षत कर के उस की जमीन ही उस से छीन ली.

2 वर्ष पहले मात्र 43 वर्ष की आयु में ही माधुरी के पति की हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. कौन सोच सकता था कि रात में पत्नी और बच्चों के साथ खुल कर हंसीमजाक कर के सोने वाला व्यक्ति फिर कभी उठ ही नहीं पाएगा. इतना खुशमिजाज, जिंदादिल इंसान था प्रशांत कि सब के दिलों को मोह लेता था, लेकिन क्या पता था कि उस का खुद का ही दिल इतनी कम उम्र में उस का साथ छोड़ देगा.

माधुरी तो बुरी तरह टूट गई थी. 18 सालों का साथ था उन का. 2 प्यारे बच्चे हैं, प्रशांत की निशानी, प्रिया और मधुर. मधुर तो तब मात्र 16 साल का हुआ ही था और प्रिया अपने पिता की अत्यंत लाडली बस 12 साल की ही थी. सब से बुरा हाल तो प्रिया का ही हुआ था.

एक खुशहाल परिवार एक ही झटके में तहसनहस हो गया. महीनों लगे थे माधुरी को इस सदमे से बाहर आ कर संभलने में. उम्र ही क्या थी उस की. मात्र 37 साल. वह तो उस के मातापिता ने अपना कलेजा मजबूत कर के उसे सांत्वना दे कर इतने बड़े दुख से उबरने में उस की मदद की. प्रिया और मधुर के कुम्हलाए चेहरे देख कर माधुरी ने सोचा था कि अब ये दोनों ही उस का जीवन हैं. अब इन के लिए उसे मजबूत छत बनानी है.

साल भर में ही वह काफी कुछ स्थिर हो गई थी. जीवन आगे बढ़ रहा था. मधुर मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. प्रिया भी पढ़ने में तेज थी. स्कूल में अव्वल आती, लेकिन माधुरी की सूनी मांग और माथा देख कर उस की मां के कलेजे में मरोड़ उठती, इतना लंबा जीवन अकेले वह कैसे काट पाएगी?

‘अकेली कहां हूं मां, आप दोनों हो, बच्चे हैं,’ माधुरी जवाब देती.

‘हम कहां सारी उम्र तुम्हारा साथ दे पाएंगे बेटा. बेटी शादी कर के अपने घर चली जाएगी और मधुर पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में न जाने कौन से शहर में रहेगा. फिर उस की भी अपनी दुनिया बस जाएगी. तब तुम्हें किसी के साथ की सब से ज्यादा जरूरत पड़ेगी. यह बात तो मैं अपने अनुभव से कह रही हूं. अपने निजी सुखदुख बांटनेसमझने वाला एक हमउम्र साथी तो सब को चाहिए होता है, बेटी,’ मां उदास आवाज में कहतीं.  माधुरी उस से भी गहरी उदास आवाज में कहती, ‘मेरी जिंदगी में वह साथ लिखा ही नहीं है, मां.’

माधुरी का जवाब सुन कर मां सोच में पड़ जातीं. माधुरी को तो पता ही नहीं था कि उस के मातापिता इस उम्र में उस की शादी फिर से करवाने की सोच रहे हैं. 3 महीने पहले ही उन्हें सुधीर के बारे में पता चला था. सुधीर की उम्र 45 वर्ष थी. 2 वर्ष पूर्व ही ब्रेन ट्यूमर की वजह से उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. 2 बच्चे 19 वर्ष का बेटा और 15 वर्ष की बेटी है. घर में सुधीर की वृद्ध मां भी है. नौकरचाकरों की मदद से पिछले 2 वर्षों से वह 68 साल की उम्र में जैसेतैसे बेटे की गृहस्थी चला रही थीं.

माधुरी की मां ने सुधीर की मां को माधुरी के बारे में बता कर विवाह का प्रस्ताव रखा. सुधीर की मां ने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया. वयस्क होती बेटी को मां की जरूरत का हवाला दे कर और अपने बुढ़ापे का खयाल करने को उन्होंने सुधीर को विवाह के लिए मना लिया.

‘मैं बूढ़ी आखिर कब तक तेरी गृहस्थी की गाड़ी खींच पाऊंगी. और फिर कुछ सालों बाद तेरे बच्चों का ब्याह होगा. कौन करेगा वह सब भागदौड़ और उन के जाने के बाद तेरा ध्यान रखने को और सुखदुख बांटने को भी तो कोई चाहिए न. अपनी मां की इस बात पर सुधीर निरुत्तर हो गए और वही सब बातें दोहरा कर माधुरी की मां ने जैसेतैसे उसे विवाह के लिए तैयार करवा लिया.

‘बेटी अकेलापन बांटने कोई नहीं आता. यह मत सोच कि लोग क्या कहेंगे? लोग तो अच्छेबुरे समय में बस बोलने आते हैं. साथ देने के लिए आगे कोई नहीं आता. अपना बोझ आदमी को खुद ही ढोना पड़ता है. सुधीर अच्छा इंसान है. वह भी अपने जीवन में एक त्रासदी सह चुका है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह तेरा दुख समझ कर तुझे संभाल लेगा. तुम दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकोगे.’

माधुरी ने भी मां के तर्कों के आगे निरुत्तर हो कर पुनर्विवाह के लिए मौन स्वीकृति दे दी. वैसे भी वह अब अपनी वजह से मांपिताजी को और अधिक दुख नहीं देना चाहती थी.

लेकिन तब से वह मन ही मन ऊहापोह में जी रही थी. सवाल उस के या सुधीर के आपस में सामंजस्य निभाने का नहीं था. सवाल उन 4 वयस्क होते बच्चों के आपस में तालमेल बिठाने का है. वे आपस में एकदूसरे को अपने परिवार का अंश मान कर एक घर में मिलजुल कर रह पाएंगे? सुधीर और माधुरी को अपना मान पाएंगे?

यही सारे सवाल कई दिनों से माधुरी के मन में चौबीसों घंटे उमड़तेघुमड़ते रहते. जैसेजैसे विवाह के लिए नियत दिन पास आता जा रहा था ये सवाल उस के मन में विकराल रूप धारण करते जा रहे थे.

माधुरी अभी इन सवालों में उलझी बैठी थी कि मां ने उस के कमरे में आ कर सुधीर की मां के आने की खबर दी. माधुरी पलंग से उठ कर बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि सुधीर की मां स्वयं ही उस के कमरे में चली आईं. उन के साथ 14-15 साल की एक प्यारी सी लड़की भी थी. माधुरी को समझते देर नहीं लगी कि यह सुधीर की बेटी स्नेहा है. माधुरी ने उठ कर सुधीर की मां को प्रणाम किया. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘मैं समझती हूं माधुरी बेटा, इस समय तुम्हारी मनोस्थिति कैसी होगी? मन में अनेक सवाल घुमड़ रहे होंगे. स्वाभाविक भी है.

‘मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि अपने मन से सारे संशय दूर कर के नए विश्वास और पूर्ण सहजता से नए जीवन में प्रवेश करो. हम सब अपनीअपनी जगह परिस्थिति और नियति के हाथों मजबूर हो कर अधूरे रह गए हैं. अब हमें एकदसूरे को पूरा कर के एक संपूर्ण परिवार का गठन करना है. इस के लिए हम सब को ही प्रयत्न करना है. मेरा विश्वास है कि इस में हम सफल जरूर होंगे. आज मैं अपनी ओर से पहली कड़ी जोड़ने आई हूं. एक बेटी को उस की मां से मिलाने लाई हूं. आओ स्नेहा, मिलो अपनी मां से,’ कह कर उन्होंने स्नेहा का हाथ माधुरी के हाथ में दे दिया.

स्नेहा सकुचा कर सहमी हुई सी माधुरी की बगल में बैठ गई तो माधुरी ने खींच कर उसे गले से लगा लिया. मां के स्नेह को तरस रही स्नेहा ने माधुरी के सीने में मुंह छिपा लिया. दोनों के प्रेम की ऊष्मा ने संशय और सवालों को बहुत कुछ धोपोंछ दिया.

‘बस, अब आगे की कडि़यां हम मां- बेटी मिल कर जोड़ लेंगी,’ सुधीर की मां ने कहा तो पहली बार माधुरी को लगा कि उस के मन पर पड़े हुए बोझ को मांजी ने कितनी आसानी से उतार दिया.

जल्द ही एक सादे समारोह में माधुरी और सुधीर का विवाह हो गया. माधुरी के मन का बचाखुचा भय और संशय तब पूरी तरह से दूर हो गया, जब सुधीर से मिलने वाले पितृवत स्नेह की छत्रछाया में उस ने प्रिया को प्रशांत के जाने के बाद पहली बार खुल कर हंसते देखा. अपने बच्चों को ले कर माधुरी थोड़ी असहज रहती, मगर सुधीर ने पहले दिन से ही मधुर और प्रिया के साथ एकदम सहज पितृवत व स्नेहपूर्ण व्यवहार किया. सुधीर बहुत परिपक्व और सुलझे हुए इंसान थे और मांजी भी. घर में उन दोनों ने इतना सहज और अनौपचारिक अपनेपन का वातावरण बनाए रखा कि माधुरी को लगा ही नहीं कि वह बाहर से आई है. सुधीर का बेटा सुकेश और मधुर भी जल्दी ही आपस में घुलमिल गए. कुछ ही महीनों में माधुरी को लगने लगा कि जैसे यह उस का जन्मजन्मांतर का परिवार है.

माधुरी के मातापिता भी उसे अपने नए परिवार में खुशी से रचाबसा देख कर संतुष्ट थे. दिन पंख लगा कर उड़ते गए. सुधीर का साथ पा कर माधुरी के मन की मुरझाई लताफिर हरी हो गई. ऐसा नहीं कि माधुरी को प्रशांत की और सुधीर को अपनी पत्नी की याद नहीं आती थी, लेकिन उन दोनों की याद को वे लोग सुखद रूप में लेते थे. उस दुख को उन्होंने वर्तमान पर कभी हावी नहीं होने दिया. उन की याद में रोने के बजाय वे उन के साथ बिताए सुखद पलों को एकदूसरे के साथ बांटते थे.  सोचतेसोचते माधुरी गहरी नींद में खो गई. इस घटना के 10-12 दिन बाद ही सुधीर ने माधुरी को बताया कि रविजी और उन की पत्नी उन के घर आने के इच्छुक हैं. माधुरी उन के आने के पीछे की मंशा समझ गई. उस ने सुधीर से कह दिया कि वे उन्हें रात के खाने पर सपरिवार निमंत्रित कर लें. 2 दिन बाद ही रविजी अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर डिनर के लिए आ गए. विमला माधुरी की हैल्प करवाने के बहाने किचन में आ गई और माधुरी से बातें करने लगी. माधुरी ने स्नेहा से कहा कि प्रिया को बोल दे, डायनिंग टेबल पर प्लेट्स लगा कर रख देगी.

‘‘उसे आज बहुत सारा होमवर्क मिला है मां. उसे पढ़ने दीजिए. मैं आप की हैल्प करवा देती हूं,’’ स्नेहा ने जवाब दिया.

‘‘पर बेटा, तुम्हारे तो टैस्ट चल रहे हैं. तुम जा कर पढ़ाई करो. मैं मैनेज कर लूंगी,’’ माधुरी ने स्नेहा से कहा.

‘‘कोई बात नहीं मां. कल अंगरेजी का टैस्ट है और मुझे सब आता है,’’ स्नेहा प्लेट पोंछ कर टेबल पर सजाने लगी. तभी सुकेश और मधुर बाजार से आइसक्रीम और सलाद के लिए गाजर और खीरे वगैरह ले आए. सुकेश ने तुरंत आइसक्रीम फ्रीजर में रखी और मां से बोला, ‘‘मां, और कुछ काम है क्या?’’

‘‘नहीं, बेटा. अब तुम आनंद और अमृता को अपने रूम में ले जाओ. वे लोग बाहर अकेले बोर हो रहे हैं,’’ माधुरी ने कहा तो सुकेश बाहर चला गया.

‘‘ठीक है मां, कुछ काम पड़े तो बुला लेना,’’ स्नेहा भी अपना काम खत्म कर के चली गई. अब किचन में सिर्फ मधुरी और विमला ही रह गईं. अब विमला ज्यादा देर तक अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाई और उस ने माधुरी से सवाल किया, ‘‘हम तो 2 ही बच्चों को बड़ी मुश्किल से संभाल पा रहे हैं. आप ने 4-4 बच्चों को कैसे संभाला होगा? चारों में अंतर भी ज्यादा नहीं लगता. स्नेहा और मधुर तो बिलकुल एक ही उम्र के लगते हैं.’’  माधुरी इस सवाल के लिए तैयार ही थी. वह अत्यंत सहज स्वर में बोली, ‘‘हां, स्नेहा और मधुर की उम्र में बस 8 महीनों का ही फर्क है.’’

‘‘क्या?’’ विमला बुरी तरह से चौंक गई, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

तब माधुरी ने बड़ी सहजता से मुसकराते हुए संक्षेप में अपनी और सुधीर की कहानी सुना दी.  अब तो विमला के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.

‘‘तब भी आप के चारों बच्चों में इतना प्यार है जबकि वे आपस में सगे भी नहीं हैं. मेरे तो दोनों बच्चे सगे भाईबहन होने के बाद भी आपस में इतना झगड़ते हैं कि बस पूछो मत. एक मिनट भी नहीं पटती है उन में. मैं तो इतनी तंग आ गई हूं कि लगता है इन्हें पैदा ही क्यों किया? लेकिन आप के चारों बच्चों में तो बहुत प्यार और सौहार्द दिखता है. चारों आपस में एकदूसरे पर और आप पर तो मानो जान छिड़कते हैं,’’ विमला बोली.

तभी सुधीर की मां किचन में आईं और विमला से बोलीं, ‘‘बात सगेसौतेले की नहीं, प्यार होता है आपसी सामंजस्य से. दरअसल, हम सब अपने जीवन में कुछ अपनों को खोने का दर्द झेल चुके हैं इसलिए हम सभी अपनों की कीमत समझते हैं. इस दर्द और समझ ने ही मेरे परिवार को प्यार से एकसाथ बांध कर रखा है. चारों बच्चे अपनी मां या पिता को खोने के बाद अकेलेपन का दंश झेल चुके थे, इसलिए जब चारों मिले तो उन्होंने जाना कि घर में जितने ज्यादा भाईबहन हों उतना ही मजा आता है. यही राज है हमारे परिवार की खुशियों का. हम दिल से मानते हैं कि सब को साथ चाहिए.’’

विमला उन की बातें सुन कर मुग्ध हो गई, ‘‘सचमुच मांजी, आप के परिवार के विचार और सौहार्द तो अनुकरणीय हैं.’

समय बीतता गया. सुकेश पढ़लिख कर इंजीनियर बना तो मधुर डाक्टर बन गया. मधुर ने एमडी किया और सुकेश ने बैंगलुरु से एमटेक. प्रिया और स्नेहा ने भी अपनेअपने पसंदीदा क्षेत्र में कैरियर बना लिया और फिर उन चारों के विवाह, फिर नातीपातों का जन्म, नामकरण मुंडन आदि की भागदौड़ में बरसों बीत गए. फिर एकएक कर सब पखेरू अपनेअपने नीड़ों में बस गए. सुकेश और प्रिया दोनों इंगलैंड चले गए. जहां दोनों भाईबहन पासपास ही रहते थे. मधुर बेंगलुरु में सैटल हो गया और स्नेहा मुंबई में. मांजी और माधुरी के मातापिता का निधन हो गया.

अब इतने बड़े घर में सुधीर और माधुरी अकेले रह गए. जब बच्चे और नातीपोते आते तो घर भर जाता. कभी ये लोग बारीबारी से सारे बच्चों के पास रह आते, लेकिन अधिकांश समय दोनों अपने घर में ही रहते. अपनी दिनचर्या को उन्होंने इस तरह से ढाला कि सुबह की चाय बगीचे की ताजी हवा में साथ बैठ कर पीते, साथ बागबानी करते. साथसाथ घर के सारे काम करने में दिन कब गुजर जाता, पता ही नहीं चलता. दोनों पल भर कभी एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते. अब जा कर माधुरी और सुधीर को एहसास होता कि अगर उन्होंने उस समय अपने मातापिता की बात न मान कर विवाह नहीं किया होता तो आज जीवन की इस संध्याबेला में दोनों इतने माधुर्यपूर्ण साथ से वंचित हो कर बिलकुल अकेले रह जाते. जीवन की सुबह मातापिता की छत्रछाया में गुजर जाती है, दोपहर भागदौड़ में बीत जाती है मगर संध्याबेला की इस घड़ी में जब जीवन में अचानक ठहराव आ जाता है तब किसी के साथ की सब से अधिक आवश्यकता होती है. सुधीर के कंधे पर सिर टिकाए हुए माधुरी यही सोच रही थी. सचमुच, बिना साथी के जीवन अत्यंत कठिन और दुखदायक है. साथ सब को चाहिए.

छैंया छैंया एक्ट्रैस मलाइका अरोड़ा के पापा ने छत से कूदकर की आत्महत्या

बौलीवुड की आइटम गर्ल एक्ट्रैस मलाइका अरोड़ा के चाहने वालों  के लिए बुरी खबर है. मलाइका अरोड़ा के पापा अनिल अरोड़ा अब इस दुनिया में नहीं रहे. एक्ट्रैस समेत पूरा परिवार और बौलीवुड शोक में है. उनके पिता ने घर की छत से कूद कर आत्महत्या कर ली है. एक्ट्रैस के पिता ने ऐसा कर सबको हैरानी में डाल दिया है. ये खबर सभी के लिए चौंकाने वाली थी.

 

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यह  दुर्घटना बुधवार को सुबह 9 बजे घटी है. खबर सुनते ही मलाइका अफरा तफरी में घर पहुंची. साथ एक्स हसबैंड अरबाज खान भी उनके घर पर दिखाई दिए.  इसके अलावा बौयफ्रेंड अर्जुन कपूर भी दुख शरीक होने घर पहुंचे.

खबर है कि अनिल ने बांद्रा वाले सातवीं मंजिल से अपने घर की छत से कूद कर जान दे दी. लेकिन अभी यह पता नहीं चल पाया है कि आखिर अनिल अरोड़ा ने ऐसा क्यों किया. हालांकि इस मौके पर मलाइका की बहन और अनिल कपूर की छोटी बेटी अमृता अरोड़ा का वीडियो सामने आया है, वह भी रोती हुई घर के अंदर जाती हुई नजर आई.

मलाइका को जब पिता के निधन की खबर मिली तब वो पुणे में थीं और इस घटना जानकारी मिलते ही वो तुरंत मुंबई के लिए रवाना हो गईं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस को शुरुआती जांच में घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. उनकी बौडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है. खबर है कि अनिल अरोड़ा का शव भाभा हौस्पिटल में रखा गया है.

एक्स हसबैंड भी पहुंचे मलाइका के घर

एक्स वाइफ मलाइका अरोड़ा के इस मुश्किल वक्त में अरबाज खान भी साथ खड़े नजर आए . वह तुरंत मलाइका के घर पहुंचे. उन्हें मलाइका की मां के घर के बाहर देखा गया. एक्टर के अलावा पुलिस भी मौके पर पहुंची.

बौयफ्रेंड अर्जुन कपूर भी नजर आए

बता दें दुख के मौके पर मलाइका के बौयफ्रेंड अर्जुन कपूर भी उनके साथ नजर आएं. वे दौड़तेदौड़ते मलाइका के घर पहुंचे. अर्जुन कपूर को कोने में खड़े होकर नम आंखों से रोते हुए देखा गया.

अनिल अरोड़ा थे मर्चेंट नेवी ओफिसर

अनिल अरोड़ा पंजाबी हिंदू परिवार से थे. उनका परिवार बौर्डर पर बसे फाजिल्का जिले का रहने वाला था. अनिल अरोड़ा ने भारतीय मर्चेंट नेवी में नौकरी की. अनिल अरोड़ा ने जौयस पोलीकार्प से शादी की थी, जो मलयाली क्रिश्चियन परिवार से हैं. कपल के दो बच्चे मलाइका और अमृता हैं. मलाइका जब 11 साल की थीं तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया था. तब से ही दोनों अलग रह रहे थे. मलाइका ने अपने पैरेंट्स के अलग होने का दर्द भी शेयर किया था. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था जब वे 11 साल की उम्र में पेरेंट्स के सेपरेशन ने मुझे अपनी मां को नए चश्मे से देखने की राहें खोल दीं. मलाइका ने कहा था कि उन्होंने मां को खूब काम करते हुए देखा है. उन्होंने कहा कि उनसे उन्होंने वर्क एथिक सीखा और ये भी सीखा कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें आएं, सुबह सबकुछ भूलकर कैसे उठा जाता है.

बौलीवुड में इन सेलेब्स ने किया था सुसाइड

सुशांत सिंह राजपूत

बौलीवुड के होनहार एक्टर सुशांत सिंह राजपूत 14 जून 2020 को बांद्रा के घर में फांसी पर लटके पाए गए थे. माना गया था कि वे काफी वक्त से डिप्रेशन के शिकार थे. उनके पास कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला था. मुंबई पुलिस के मुताबिक, उनके घर से कुछ एंटीडिप्रेसेंट गोलियां भी मिली थीं. इसे सुसाइड माना गया था. हलांकि इस सुसाइड केस को लेकर कई तरह की थ्योरी दी गई.

जिया खान

जिया एक ब्रिटिश अमेरिकी एक्ट्रेस और सिंगर थीं. 3 जून 2013 को जिया अपने घर में फांसी लगा कर मर गई थी. मौत के कुछ दिनों बाद जिया के घर से छह पन्नों का सुसाइड नोट भी मिला था. उस लेटर में जिया के बौयफ्रेंड सूरज पंचोली का नाम था. बताया गया था कि वह काफी समय से डिप्रेशन में थीं. जिया ने अमिताभ बच्चन के साथ अपनी पहली फिल्म निशब्द की थी. इससे इंडस्ट्री में वह काफी पौपुलर हो गई थी. जिया खान को आमिर खान की फिल्म गजनी में देखा गया. जिया खान के सुसाइड को लेकर काफी तरह की बातें की गई, लोगों ने कहा कि उन्हें सुसाइड के लिए उकसाया गया.

दुबई में दीपिका पादुकोण की बेटी के लिए टौयज खरीदने पहुंची राखी सावंत, शेयर की वीडियो

Deepveer Baby Girl: बौलीवुड़ में एक बार फिर खुशी की लहर छा गई है. आज की ड्रीम गर्ल एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण मां बन गई है. इस बात की जानकारी सभी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) और रणवीर सिंह (Ranveer Singh) एक बेटी के पैरेंट्स बन गए है. दोनों खुशी से झूम उठे है. दोनों के घर एक नन्ही परी ने जन्म लिया है. जहां दोनों परिवारों में खुशी की किलकारियां गूंजने लगी हैं.

 

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जैसे ही ये खुशखबरी सामने आई, फैंस के बीच खुशी की लहर दौड़ने लग गई. बंधाइयों का तांता लग गया है. इसी बीच ड्रामा क्वीन कहे जानें वाली और बिग बौस फेम एक्ट्रेस राखी सावंत ने भी बधाईयों की बौछार लगा दी है. इतना ही नहीं, एक्ट्रेस ने वीडियो शेयर कर दोनों की बेटी के लिए प्यार भरी वीडियो भी शेयर की है.

ये वीडियो राखी ने इंस्टा पर शेयर किया है. इस वीडियो में राखी खुद को मौसी बता रही है कि वे मौसी बन गई है और दीपिका की बेटी के लिए डौल्स खरीद रही है. दरअसल, राखी ने वीडियो शेयर कर बताया है कि वे दुबई में अपनी प्यारी भांजी के लिए खूब सारी डौल्स खरीद रही है. दुबई के मौल की वीडियो डौल्स के साथ शेयर की है. जो वीडियो अब धड़ल्ले से वायरल हो रहा है.

वीडियो में Rakhi Sawant खुशी से झूमती नजर आ रही हैं. वो रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण को फ्लाइंग किस देती हैं और कहती हैं, ‘मैं मासी (मौसी) बन गई आखिर. दीपिका याद है, हमने साथ में डांस क्लास किया. साथ में करियर स्टार्ट किया. आप बड़ी स्टार बन गईं. बीवी बन गईं, अब तो मां बन गईं.’

इसके बाद राखी सावंत ने एक गुड़िया खरीदी और दीपिका पादुकोण से कहा, ‘मैं आपकी बेटी के लिए ये डौल ले रही हूं.’ इसके बाद उन्होंने ढेर सारे खिलौने खरीदे.वो इन्हें दिखाते हुए पूछती भी हैं कि ये कैसे लग रहे हैं. वही, अब इस वीडियो पर फैंस जमकर कमेंट्स कर रहे है क्योंकि ऐसा हो नहीं सकता कि राखी वीडियो शेयर करें और फैंस उसपर कमेंट्स ने करें उनके कमेंट्स भी राखी की तरह ही मजेदार होते है.

एक ने लिखा, ‘जबरन के रिश्ते, बड़े ही सस्ते.’ दूसरे ने कौमेंट किया, ‘इन्हें कोई मात नहीं दे सकता, उर्फी भी नहीं.’ एक और ने लिखा, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना.’

इन सेलेब्स ने भी दी बधाई

अर्जुन कपूर (Arjun Kapoor)

दीपिका-रणवीर सिंह को एक्टर अर्जुन कपूर ने भी बधाई दी उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “लक्ष्मी आई है! क्वीन आ गई है.”

प्रियंका चौपड़ा (Priyanka Chopra)

इंटरनेशनल एक्ट्रेस प्रियंका चौपड़ा ने भी कमेंट कर विश किया और कहा कि बधाई हो.

श्रद्धा कपूर (Shradha Kapoor)

इन सेलेब्स के अलावा बौलीवुड एक्ट्रैस श्रद्धा कपूर ने भी कपल को सोशल मीडिया पर बधाई दी.

अंबानी ने भी दी बधाई

मुकेश अंबानी

रियांलस इंडस्ट्री के मालिक और देश के अमीर शख्सियत मुकेश अंबानी भी दीपिका पादुकोण को बधाई देनें अस्पताल पहुंचे थे. मुकेश अंबानी दीपिका की बेटी से भी मिले और बधाई दी. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल हो रहा है.

बता दें कि अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट से दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने एक पोस्ट शेयर किया. इस पोस्ट पर लिखा है, “वेलकम बेबी गर्ल, 8.9.2024″. इस पोस्ट के बाद कमेंट में बधाईयों की बौछार लग गई.

मालूम हो कि बीते रविवार को दीपिका ने बेटी को जन्म दिया था. दोनों ने साल 2018 में शादी की थी और 6 साल बाद उनके घर पर खुशी की किलकारी गूंजी है.

पहचान: मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल

बाढ़ राहत शिविर के बाहर सांप सी लहराती लंबी लाइन के आखिरी छोर पर खड़ी वह बारबार लाइन से बाहर झांक कर पहले नंबर पर खड़े उस व्यक्ति को देख लेती थी कि कब वह जंग जीत कर लाइन से बाहर निकले और उसे एक कदम आगे आने का मौका मिले.

असम के गोलाघाट में धनसिरी नदी का उफान ताडंव करता सबकुछ लील गया है. तिनकातिनका जुटाए सामान के साथ पसीनों की लंबी फेहरिस्त बह गई है. बह गए हैं झोंपड़े और उन के साथ खड़ेभर होने तक की जमीन भी. ऐसे हालात में राबिया के भाई 8 साल के अजीम के टूटेफूटे मिट्टी के खिलौनों की क्या बिसात थी.

खिलौनों को झोंपड़ी में भर आए बाढ़ के पानी से बचाने के लिए अजीम ने न जाने क्याक्या जुगतें की, और जब झोंपड़ी ही जड़ से उखड़ गई तब उसे जिंदगी की असली लड़ाई का पता मालूम हुआ.

राबिया ने 20 साल की उम्र तक क्याक्या न देखा. वह शरणार्थी शिविर के बाहर लाइन में खड़ीखड़ी अपनी जिंदगी के पिछले सालों के ब्योरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

राबिया अपनी मां और छोटे भाई अजीम को पास ही शरणार्थी शिविर में छोड़ यहां सरकारी राहत कैंप में खाना व कपड़ा लेने के लिए खड़ी है. परिवार के सदस्यों के हिसाब से कंबल, चादर, ब्रैड, बिस्कुट आदि दिए जा रहे थे.

2 साल का ही तो था अजीम जब उस के अब्बा की मौत हो गई थी. उन्होंने कितनी लड़ाइयां देखीं, लड़ीं, कब से वे भी शांति से दो वक्त की रोटी को दरबदर होते रहे. एक टुकड़ा जमीन में चार सांसें जैसे सब पर भारी थीं. कौन सी राजनीति, कैसेकैसे नेता, कितने छल, कितने ही झूठ, सूखी जमीन तो कभी बाढ़ में बहती जिंदगियां. कहां जाएं वे अब? कैसे जिएं? लाखों जानेअनजाने लोगों की भीड़ में तो बस वही चेहरा पहचाना लगता है जो जरा सी संवेदना और इंसानियत दिखा दे.

पैदा होने के बाद से ही देख रही थी राबिया एक अंतहीन जिहाद. क्यों? क्यों इतना फसाद था, इतनी बगावत और शोर था?

अब्बा के पास एक छोटी सी जमीन थी. धान की रोपाई, कटाई और फसल होने के बाद 2 मुट्ठी अनाज के दाने घर तक लाने के लिए उन्हें कितने ही पापड़ बेलने पड़ते. और फिर भूख और अनाज के बीच अम्मी की ढेरों जुगतें, ताकि नई फसल होने तक भूख का निवाला खुद ही न बन जाएं वे.

इस संघर्ष में भी अम्मी व अब्बा को कभी किसी से शिकायत नहीं रही. न तो सरकार से, न ग्राम पंचायती व्यवस्था से और न जमाने से. जैसा कि अकसर सोनेहीरों में खेलने वाले लोगों को रहती है. शिकायत भी क्या करें? मुसलिम होने की वजह से हर वक्त वे इस कैफियत में ही पड़े रहते कि कहीं वे बंगलादेशी घुसपैठिए न करार दे दिए जाएं. अब्बा न चाहते हुए भी इस खूनी आग की लपटों में घिर गए.

वह 2012 के जुलाई माह का एक दिन था. अब्बा अपने खेत गए हुए थे. खेत हो या घर, हमेशा कई मुद्दे सवाल बन कर उन के सिर पर सवार रहते. ‘कौन हो?’ ‘क्या हो?’ ‘कहां से हो?’ ‘क्यों हो?’ ‘कब से हो?’ ‘कब तक हो?’

इतने सारे सवालों के चक्रव्यूह में घिरे अब्बा तब भी अमन की दुआ मांगते रहते. बोडो, असमिया लोगों की आपत्ति थी कि असम में कोई बाहरी व्यक्ति न रहे. उन का आंतरिक मसला जो भी हो लेकिन आम लोग जिंदगी के लिए जिंदगी की जंग में झोंके जा चुके थे.अब्बा खेत से न लौटे. बस, तब से भूख ने मौत के खौफ की शक्ल ले ली थी. भूख, भय, जमीन से बेदखल हो जाने का संकट, रोजीरोटी की समस्या, बच्चों की बीमारी, देशनिकाला, अंतहीन अंधेरा. घर में ही अब्बा से या कभी किसी पहचान वाले से राबिया ने थोड़ाबहुत पढ़ा था.

पागलों की तरह अम्मी को कागज का एक टुकड़ा ढूंढ़ते देखती. कभी संदूकों में, कभी बिस्तर के नीचे, कभी अब्बा के सामान में. वह सुबूत जो सिद्ध कर दे कि उन के पूर्वज 1972 के पहले से ही असम में हैं. नहीं मिल पाया कोई सुबूत. बस, जो था वह वक्त के पंजर में दफन था. अब्बा के जाने के बाद अम्मी जैसे पथरा गईर् थीं. आखिरकार 14 साल की राबिया को मां और भाई के लिए काम की खोज में जाना ही पड़ा.

कभी कहीं मकान, कभी दुकान में जब जहां काम मिलता, वह करती. बेटी की तकलीफों ने अम्मी को फिर से जिंदा होने को मजबूर कर दिया. इधरउधर काम कर के किसी तरह वे बच्चों को संभालती रहीं.

जिंदगी जैसी भी हो, चलने लगी थी. लेकिन आएदिन असमिया और अन्य लोगों के बीच पहचान व स्थायित्व का विवाद बढ़ता ही रहा. प्राकृतिक आपदा असम जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए नई बात नहीं थी, तो बाढ़ भी जैसे उनकी जिंदगी की लड़ाई का एक जरूरी हिस्सा ही था. राबिया अब तक लाइन के पहले नंबर पर पहुंच गई थी.

सामने टेबल बिछा कर कुरसी पर जो बाबू बैठे थे, राबिया उन्हें ही देख रही थी.

‘‘कार्ड निकालो जो एनआरसी पहचान के लिए दिए गए हैं.’’

‘‘कौन सा?’’ राबिया घबरा गई थी.

बाबू ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, ‘‘एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का पहचानपत्र, वह दिखाओ, वरना सामान अभी नहीं दिया जा सकेगा. जिन का नाम है, पहले उन्हें मिलेगा.’’

‘‘जी, दूसरी अर्जी दाखिल की हुई है, पर अभी बहुतों का नाम शामिल नहीं है. मेहरबानी कर के सामान दे दीजिए. मैं कई घंटे से लाइन में लगी हूं. उधर अम्मी और छोटा भाई इंतजार में होंगे.’’

मिलने, न मिलने की दुविधा में पड़ी लड़की को देख मुहरवाले कार्डधारी पीछे से चिल्लाने लगे और किसी डकैत पर टूट पड़ने जैसा राबिया पर पिल पड़ते हुए उसे धकिया कर निकालने की कोशिश में जुट गए. राबिया के लिए जैसे ‘करो या मरो’ की बात हो गई थी. 2 जिंदगियां उस की राह देख रही थीं. ऐसे में राबिया समझ चुकी थी कि कई कानूनी बातें लोगों के लिए होते हुए भी लोगों के लिए ही तकलीफदेह हो जाती हैं.

बाबू के पीछे खड़े 27-28 साल के हट्टेकट्टे असमिया नौजवान नीरद ने राबिया को मुश्किल में देख उस से कहा, ‘‘आप इधर अंदर आइए. आप बड़े बाबू से बात कर लीजिए, शायद कुछ हो सके.’’

राबिया भीड़ के पंजों से छूट कर अंदर आ गई थी. लोग खासे चिढ़े थे. कुछ तो अश्लील फब्तियां कसने से भी बाज नहीं आ रहे थे. राबिया दरवाजे के अंदर आ कर उसी कोने में दुबक कर खड़ी हो गई.

नीरद पास आया और एक मददगार की हैसियत से उस ने उस पर नजर डाली. दुबलीपतली, गोरी, सुंदर, कजरारी आंखों वाली राबिया मायूसी और चिंता से डूबी जा रही थी. उस ने हया छोड़ मिन्नतभरी नजरों से नीरद को देखा.

नीरद ने आहिस्ते से कहा, ‘‘सामान की जिम्मेदारी मेरी ही है, मैं राहत कार्य निबटा कर शाम को शिविर आ कर तुम्हें सामान दे जाऊंगा. तुम अपना नाम बता दो.’’

राबिया ने नाम तो बता दिया लेकिन खुद की इस जिल्लत के लिए खुद को ही मन ही मन कोसती रही.

नीरद भोलाभाला, धानी रंग का असमिया युवक था. वह गुवाहाटी में आपदा नियंत्रण और सहायता विभाग में सरकारी नौकर था. नौकरी, पैसा, नियम, रजिस्टर, सरकारी सुबूतों के बीच भी उस का अपना एक मानवीय तंत्र हमेशा काम करता था. और इसलिए ही वह मुश्किल में पड़े लोगों को अपनी तरफ से वह अतिरिक्त मदद कर देता जो कायदेकानूनों के आड़े आने से अटक जाते थे.

उस ने राबिया से कहा, ‘‘अभी मैं तुम्हें यहां से सामान दे दूं तो नैशनल रजिस्टर में नाम दर्ज का अलग ही बखेड़ा खड़ा होगा. तुम्हारे परिवार का नाम छूटा है इस पहचान रजिस्टर में.’’

‘‘क्या करें, हम भी उन 40 लाख समय के मारों में शामिल हैं, जिन के सरकारी रजिस्टर में नागरिक की हैसियत से नाम दर्ज नहीं हैं. अब्बा नहीं हैं. जिंदगी जीने के लाले पड़े हुए हैं. नाम दर्ज करवाने के झमेले कैसे उठाएं?’’

‘‘ठीक है, तुम लोग पास ही के सरकारी स्कूल में बने शरणार्थी शिविरों में रह रहे हो न. मैं काम खत्म कर के 6 बजे तक सामान सहित वहां पहुंच जाऊंगा. तुम फिक्र न करो, मैं जरूर आऊंगा?’’

शिविर में आ कर राबिया की आंखें घड़ी पर और दिल दरवाजे पर अटका रहा. 2 कंबल, चादर और खानेपीने के सामान के साथ नीरद राबिया के पास पहुंच चुका था.

अम्मी तो धन्यवाद करते बिछबिछ जाती थीं. राबिया ने बस एक बार नीरद की आंखों में देखा. नीरद ने भी नजरें मिलाईं. क्या कुछ अनकहा सा एकदूसरे के दिल में समाया, यह तो वही जानें, बस, इतना ही कह सकते हैं कि धनसिरी की इस बाढ़ ने भविष्य के गर्भ में एक अपठित महाकाव्य का बीज ला कर रोप दिया था.

शरणार्थी शिविर में रोज का खाना तो दिया जाता था लेकिन नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स में जिन का नाम नहीं था, बिना किसी तकरार के वे भेदभाव के शिकार तो थे ही, इस मामले में आवाज उठाने की गुंजाइश भी नहीं थी क्योंकि स्थानीय लोगों की मानसिकता के अनुरूप ही था यह सबकुछ.

बात जब गलतसही की होती है, तब यह सुविधाअसुविधा और इंसानियत पर भी रहनी चाहिए. लेकिन सच यह है कि लोगों की तकलीफों को करीब से देखने के लिए हमेशा एक अतिरिक्त आंख चाहिए होती है.

बेबसी, अफरातफरी, इतिहास की खूनी यादें, बदले की झुलसाती आग, अपनेपरायों का तिकड़मी खेल और भविष्य की भूखी चिंता. राबिया के पास इंतजार के सिवा और कुछ न था.

नीरद जबजब आ जाता, राबिया, अजीम और उन की अम्मी की सांसें बड़ी तसल्ली से चलने लगतीं, वरना वही खौफ, वही बेचैनी.

राबिया नीरद से काफीकुछ कहना चाहती, लेकिन मौन रह जाती. हां, जितना वह मौन रहती उस का अंतर मुखर हो जाता. वह रातरातभर करवटें लेती. भीड़ और चीखपुकार के बीच भी मन के अंदर एक खाली जगह पैदा हो गई थी उस के. राबि?या के मन की उस खाली जगह में एक हरा घास का मैदान होता, शाम की सुहानी हवा और पेड़ के नीचे बैठा नीरद. नीरद की गोद में सिर रखी हुई राबिया. नीरद कुछ दूर पर बहती धनसिरी को देखता हुआ राबिया को न जाने प्रेम की कितनी ही बातें बता रहा है. वह नदी, हां, धनसिरी ही है. लेकिन कोई शोर नहीं, बदला नहीं, लड़ाई और भेदभाव नहीं. सब को पोषित करने वाली अपनी धनसिरी. अपनी माटी, अपना नीरद.

आज शाम को किराए के अपने मकान में लौटते वक्त आदतानुसार नीरद आया. नीरद के यहां आते अब महीनेभर से ऊपर होने को था.

राबिया एक  कागज का टुकड़ा झट से नीरद को पकड़ा उस की नजरों से ओझल हो गई.

अपनी साइकिल पर बैठे नीरद ने कागज के टुकड़े को खोला. असमिया में लिखा था, ‘‘मैं असम की लड़की, तुम असम के लड़के. हम दोनों को ही जब अपनी माटी से इतना प्यार है तो मैं क्या तुम से अलग हूं? अगर नहीं, तो एक बार मुझ से बात करो.’’

नीरद के दिल में कुछ अजीब सा हुआ. थोड़ा सा पहचाना, थोड़ा अनजाना. उस ने कागज के पीछे लिखा, ‘‘मैं तुम्हारी अम्मी से कल बात करूंगा?’’ राबिया को चिट्ठी पकड़ा कर वह निकल गया.

चिट्ठी का लिखा मजमून पढ़ राबिया के पांवों तले जमीन खिसक गई. ‘‘पता नहीं ऐसा क्यों लिखा उस ने? कहीं शादीशुदा तो नहीं? मैं मुसलिम, कहीं इस वजह से वह गुस्सा तो नहीं हो गया? क्या मैं ने खुद को असमिया कहा तो बुरा मान गया वह? फिर जो भी थोड़ाबहुत सहारा था, छिन गया तो?’’

राबिया का दिल बुरी तरह बैठ गया. बारबार खुद को लानत भेज कर भी जब उस के दिल पर ठंडक नहीं पड़ी तो अम्मी के पास पहुंची. उन्हें भरसक मनाने का प्रयास किया कि वे तीनों यहां से चल दें. जो भी हो वह नीरद को अम्मी से बात करने से रोकना चाहती थी.

अम्मी बेटी की खुद्दारी भी समझती थीं और दुनियाजहान में अपने हालात भी, कहा, ‘‘बेटी, बाढ़ से सारे रास्ते कटे पड़े हैं. कोई ठौर नहीं, खाना नहीं, फिर जिल्लत जितनी यहां है, उस से कई गुना बाहर होगी. जान के लाले भी पड़ सकते हैं. नन्हे अजीम को खतरा हो सकता है. तू चिंता न कर, मैं सब संभाल लूंगी.’’

शाम को कुछ रसद के साथ नीरद हाजिर हुआ और सामान राबिया को पकड़ा कर अम्मी के पास जा बैठा. अम्मी का हाथ अपने हाथों में ले कर उस ने कहा, ‘‘राबिया की वजह से आप से और अजीम से जुड़ा. अब मैं सचमुच यह चाहता हूं कि आप तीनों मेरे साथ गुवाहाटी चलें. जब मेरा यहां का काम खत्म हो जाए तब मैं आप सब से हमेशा के लिए बिछुड़ना नहीं चाहता. गुवाहाटी में मैं राबिया को एक एनजीओ संस्था में नौकरी दिलवा दूंगा. अजीम का दाखिला भी स्कूल में हो जाएगा. आप सिलाई वगैरह का कोई काम देख लेना. और रहने की चिंता बिलकुल न करिए. वहां हमारा अपना घर है. आप को किसी चीज की कोई चिंता न होने दूंगा.’’

राबिया की तो जैसे रुकी हुई सांस अचानक चल पड़ी थी. बारिश में लथपथ हवा जैसे वसंत की मीठी बयार बन गई थी. अम्मी ने नीरद के गालों को अपनी हथेलियों में भर कर कहा, ‘‘बेटा, जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. अब तुम्हें हम सब अपना ही नहीं, बल्कि जिगर का टुकड़ा भी मानते हैं.’’

अजीम यहां से जाने की बात सुन नीरद की पीठ पर लद कर नीरद को दुलारने लगा. नीरद ने राबिया की ओर देखा. राबिया मारे खुशी के बाहर दौड़ गई. वह अपनी खुशी की इस इंतहा को सब पर जाहिर कर शर्मसार नहीं होना चाहती थी जैसे.

महीनेभर बाद वे गुवाहाटी आ गए थे. नीरद के दोमंजिला मकान से लगी खाली जगह में एक छोटा सा आउटहाउस किस्म का था, शायद माली आदि के लिए. छत पर ऐसबेस्टस था. लेकिन छोटा सा 2 कमरे वाला हवादार मकान था. बरामदे के एक छोर पर रसोई के लिए जगह घेर दी गई थी. वहां खिड़की थी तो रोशनी की भी सहूलियत थी. पीछे छोटा सा स्नानघर आदि था. एक अदद सूखी जमीन पैर रखने को, एक छत सिर ढांपने को, बेटी राबिया की एनजीओ में नौकरी, अजीम का सरकारी स्कूल में दाखिला और खुद अम्मी का एक टेलर की दुकान पर सिलाई का काम कर लेना- इस से ज्यादा उन्हें चाहिए भी क्या था.

पर बात यह भी थी कि उन के लिए इतना पाना ही काफी नहीं रहा. नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का सवाल तलवार बन कर सिर पर टंगा था. अगर जी लेना इतना आसान होता तो लोग पीढ़ी दर पीढ़ी एक आशियाने की तलाश में दरबदर क्यों होते? क्यों लोग अपनी कमाई हुई रोटी पर भी अपना हक जताने के लिए सदियों तक लड़ाई में हिस्सेदार होते? नहीं था इतना भी आसान जीना.

अभी 3-4 दिन हुए थे कि नीरद की मां आ पहुंची उन से मिलने. राबिया की मां ने सोचा था कि वे खुद ही उन से मिलने जाएंगी, लेकिन नीरद ने मना कर दिया था. जब तक वे दुआसलाम कर के उन के बैठने के लिए कुरसी लातीं, नीरद की मां ने तोप के गोले की तरह सवाल दागने शुरू किए.

‘‘नीरद ढंग से बताता कुछ नहीं, आप लोग हैं कौन? धर्मजात क्या है आप की? आप की बेटी रोज कहां जाती है? नीरद ने किराया कुछ बताया भी है या नहीं? हम ने यह घर माली के लिए बनवाया था. अब जब तक आप लोग हो, मेरा बगीचा फिर से सही कर देना. वैसे, हो कब तक आप लोग?’’

अम्मी ने हाथ जोड़ दिए, कहा, ‘‘दीदी, नीरद बड़ा अच्छा बच्चा है. बाढ़ में हमारा घरबार सब डूब गया. समय थोड़ा सही हो जाए, चले जाएंगे.’’

सिर से पांव तक राबिया की अम्मी को नीरद की मां ने निहारा और कहा, ‘‘घरवालों के सीने में मूंग दल कर बाहर वालों पर रहमकरम कर रहा है, अच्छा बच्चा तो होगा ही.’’

नीरद की मां का इस तरह बोल कर निकल जाना अम्मी को काफी मायूस कर गया. अब चोरों की तरह अपनी ही नजरों से खुद को छिपाना भारी हो गया था. हमेशा बस यही डर कि किसी को पता न लग जाए कि वे सरकारी लिस्ट के बाहर के लोग हैं. जाने कितनी पुश्तों से इस माटी में रचेबसे अब अचानक खुद को घुसपैठिए सा महसूस करने लगे हैं. जैसे धरती पर बोझ. जैसे चोरी की जिंदगी छिपाए नहीं छिप रही.

भरोसा उन्हें इस अनजान धरती पर भले ही नीरद का था, लेकिन काम के सिलसिले में वह भी तो अकसर शहर से बाहर ही रहता. इस घटना को अभी 4-5 दिन बीते होंगे. नीरद अभी भी शहर से बाहर ही था और दूसरे दिन आने वाला था. राबिया ने शाम को अपनी रसोई की खिड़की से एक साया सा देखा. वह साया एक पल को खिड़की के सामने रुक कर तुरंत हट गया.

उस रात थोड़ा डर कर भी वह शांत रह गई, किसी से कुछ नहीं कहा. नीरद दूसरे दिन घर वापस आया और उन से मिला भी, लेकिन बात आईगईर् हो गई. नीरद 3 दिनों बाद फिर शहर से बाहर गया. शाम को रसोई की खिड़की के बाहर राबिया ने फिर एक आकृति देखी. एक पल रुक कर वह आकृति सामने से हट गई. राबिया दौड़ कर बाहर गई. कोई नहीं था. राबिया पसोपेश में थी. अम्मी खामख्वाह परेशान हो जाएंगी. यह सोच कर वह बात को दबा गई.

हां, राबिया को इन सब से छुट्टी नहीं मिली. खिड़की, एक आकृति, इन सब का डर और फिर बाहर झपटना और कुछ न देख पाना. राबिया मानसिक रूप से लगातार टूट रही थी.

अगले हफ्ते नीरद वापस आया तो उसे सारी बातें बताने की सोच कर भी वह डर कर पहले चुप रह गई.

दरअसल, राबिया का डर लाजिमी था. एक तो नीरद ने उन दोनों के आपसी रिश्ते पर अब तक बात नहीं की थी, दूसरे, अम्मी और अजीम की जिंदगी राबिया की किसी गलती की वजह से अधर में न लटक जाए. दरअसल, राबिया तो अब तक नीरद की चुप्पी देख खुद के एहसासों को भी खत्म कर लेने का जिगर पैदा कर चुकी थी.

खिड़की पर रोजरोज किसी का दिखना कोई छोड़ा जाने वाला मसला नहीं लगा राबिया को और उस ने हिम्मत कर ही ली कि नीरद को सारी बातें बताई जाएं.

नीरद समझदार था. उसे अंदेशा हुआ कि हो न हो कोई राबिया के लिए ही आता हो. गिद्दों की नजर पड़ने में देर ही कहां लगती है. एक परिवार को वह खुद के भरोसे उन की जमीन से उखाड़ लाया है. क्या वह राबिया के लिए कोई जिम्मेदारी महसूस करता है? क्या यह सिर्फ जिम्मेदारी ही है?

अजीम बाहर खेल रहा था, और अम्मी टेलर की दुकान से अभी तक नहीं लौटी थीं. नीरद को यह सही वक्त लगा. उस ने राबिया से कहा, ‘‘राबिया, मैं तुम से एक बात पूछना चाहता हूं.’’

राबिया की धड़कनें धनसिरी के उफानों से भी तेज चलने लगीं. आशानिराशा के बीच डोलती उस की आंखों की पुतलियां भरसक स्थिर होने की कोशिश में लगीं नीरद की आंखों से जा टकराईं.

नीरद ने कहा, ‘‘राबिया, तुम्हारा नाम मुझे लंबा लगता है, मैं तुम्हें ‘राबी’ कह कर बुलाना चाहता हूं. इजाजत है?’’

‘‘है, है, सबकुछ के लिए इजाजत है.’’

राबिया का दिल खुशी के मारे मन ही मन बल्लियों उछल पड़ा. मगर शर्मीली राबिया बर्फ की मूरत बनी एक ही जगह शांत खड़ी रही और जमीन की ओर देखती स्वीकृति में बस सिर ही हिला सकी.

नीरद ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हारी पसंद में कोई लड़का है जिस से तुम शादी कर सको? मुझे बता दो, यहां मैं ही तुम सब का अपना हूं?’’

‘इस की बातें किसी पराए की तरह चुभती हैं. कभी इस ने मेरे मन को टटोलने की कोशिश नहीं की. जबकि मैं न जाने इसे कब से अपना सबकुछ…’ राबिया आक्रोश पर काबू नहीं रख सकी और नीरद के सामने अपनेआप को जैसे पूरा खोल कर रख दिया अचानक, ‘‘चूल्हे में जाए

तुम्हारा अपनापन. आठों पहर दिल में कुढ़ती हूं, आंखों का पानी अब तेजाब बन गया है. अब सब्र नहीं मुझ में.’’

नीरद नजदीक आ कर उस की दोनों बांहें पकड़ उस की आंखों की गहरी झील में उतरता रहा. कितनी सीपियां यहां मोती छिपाए पड़ी हैं. वह कितना बेवकूफ था जो झिझकता ही रह गया.

राबिया प्रेम समर्पण और लज्जा से थरथरा उठी. धीरेधीरे वह नीरद के बलिष्ठ बाजुओं के घेरे में खुद को समर्पित कर उस के सीने से जा लगी.

नीरद ने उस पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए पूछा, ‘‘शादी करोगी मुझ से?’’

‘‘पर कैसे? तुम कर पाओगे? मेरा तो कोई नहीं, लेकिन तुम्हारा परिवार और समाज?’’

‘‘तुम प्यार करती हो न मुझ से?’’

‘‘क्या अब और भी कुछ कहना पड़ेगा मुझे?’’

‘‘फिर तुम मेरी हो चुकी, राबी. कोईर् इस सच को अब झुठला नहीं सकता.’’

नीरद के मन की हूर अब नीरद के लिए सच बन कर जमीन पर उतर चुकी थी. लेकिन इस सच को परिवार और समाज की जड़बुद्धि को कुबूल करवाना कोई हंसीखेल नहीं था.

असम के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ का प्रकोप कुछ कम हुआ तो एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन्स का प्रकरण फिर शुरू हुआ.

राबिया का परिवार अपना घरबार, जमीन खो कर जड़ से कट चुका था. अभी के हालात में दो जून की रोटी और अमन से जीने की हसरत इतनी माने रखती थी कि अम्मी और राबिया फिर से उसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थीं.

इधर, नीरद चाहता था कि एनआरसी की दूसरी लिस्ट में उन का नाम आ जाए. अभी नीरद इसी मामले में बात कर अपने घर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा ही था, और बाहर तक उसे छोड़ने आई राबिया अपने घर की तरफ मुड़ी ही थी, कि शाम के धुंधलके वाले सन्नाटे में कोई राबिया का मुंह झटके से अपने हाथों में दबा, तेजी से पीछे जंगल की ओर घसीट ले गया. वह इतनी फुरती में था कि राबिया को संभलने का मौका न मिला.

राबिया के घर के पीछे घनी अंधेरी झाडि़यों में ले जा कर उस ने राबिया को जमीन पर पटक दिया और उस के सीने पर बैठ गया. उस के चेहरे के पास अपना चेहरा ले जा कर अपना मोबाइल औन कर के उस ने अपना चेहरा दिखाया और शैतानी स्वर में पूछा, ‘‘पहचाना?’’

राबिया घृणा और भय से सिहर उठी. उस ने अपना चेहरा राबिया के चेहरे के और करीब ला कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘जो सोचा भी नहीं जा सकता वह कभीकभी हो जाता है. अब तुम्हारे सामने 3 विकल्प हैं. पहला, तुम रोज रात को इसी जगह मेरी हसरतें पूरी करो चाहे नीरद से रिश्ता रखो. दूसरा, अपने परिवार को ले कर चुपचाप यहां से चली जाओ, किसी से बिना कुछ कहे, नीरद से भी नहीं. अंतिम विकल्प, मुझ से बगावत करो, इसी घर में रहो, नीरद को फांसो और अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो.

‘‘वैसे, अंजाम भी सुन ही लो. 3 जिंदगियां खतरे में होंगी. नीरद, अजीम और तुम्हारी अम्मी की. हां, तुम्हें आंच नहीं आने दूंगा जानेमन. तुम तो मेरी हसरतों की आग में घी का काम करोगी.’’

सन्नाटे पर चोट सी पड़ती उस की खूंखार आवाज से बर्फ सी ठंडी पड़ चुकी राबिया दहल गई थी. उस के शरीर को अश्लील तरीके से छूता हुआ वह परे हट बैठा और अपनी कठोर हथेली में उस के गालों को भींच कर बोला, ‘‘देखा, मैं कितना शानदार इंसान हूं. मैं तुम्हें आसानी से हासिल कर सकता था, लेकिन मैं चाहता हूं तुम खुद को खुद ही मुझे सौंपो. जैसे सौंपोगी नीरद को. उफ, वह क्या मंजर होगा. तुम मेरी आगोश में होगी- और वह पल, नीरद के साथ धोखा… कयामत आएगी उस पर.

‘‘लगेहाथ यह भी बता दूं, नीरद की शादी तय हो गई है, खानदानी लड़की से, सरकारी लिस्ट वाली.’’

राबिया बेहोशी सी हालत में घर पहुंची तो यथासंभव खुद को संभाले रही और नीरद के साथ बाहर चले जाने का बहाना बना दिया. लड़की जात ही ऐसी होती है, ड्रामेबाज. कभी मां से, कभी प्रेमी, पति, भाई या पिता से झूठ बोलती ही रहती है. अपना दर्द छिपाती है, डर छिपाती है ताकि अपने निश्चित रहें, शांत और खुश रहें.

सुबह हुई तो राबिया को फिर शाम का डर सताने लगा. इतने में नीरद आ गया. उस का व्यवहार उखड़ा सा था. आते ही वह कह पड़ा, चलो, अब और नहीं रुकूंगा. रजिस्ट्री मैरिज के लिए आज ही आवेदन दे दूंगा.’’

राबिया सकते में थी. ‘‘इतनी जल्दी? सब मानेंगे कैसे?’’ फिर रजिस्ट्री होगी कैसे? वह तो सब की नजर में घुसपैठिया है.

कागज का टुकड़ा जाने कब कहां किस बाढ़ में बह गया. वे तो बेगाने ही हो गए. नीरद ने अम्मी के पांव छू लिए. कहा, ‘‘अम्मी, आप बस आशीर्वाद दे दो, बाकी मैं संभाल लूंगा. रात को घर में मां और भाई ने खूब हंगामा किया.

‘‘मां ने मेरी शादी एक नामी खानदानी परिवार में तय कर रखी है. मोटी रकम देंगे वे. मुझे कल रात यह बात पता चली. मेरे पिता की मृत्यु के बाद से मैं ही घर की जिम्मेदारी उठा रहा हूं. पिता की पैंशन से मां मनमाना खर्च करती हैं और 32 साल के मेरे निकम्मे बड़े भाई को दे देती हैं. बड़ा भाई पहली शादी से तलाक ले कर आवारागर्दी करता है. पार्टी से जुड़ा है और पार्टी फंड के नाम पर उगाही कर के जेब गरम करता है. अब इन दोनों का मेरी निजी जिंदगी में दखल मैं कतई बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

राबिया के दिल में तूफान उठा. वह अपने साथ हुए उस भयानक हादसे को जेहन में रोक कर न रख सकी. आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा, ‘‘नीरद,’’ कहते हुए उस की हिचकियां बंध गईं. अम्मी अजीम को ले कर बाहर चली गईं.

नीरद पास आ गया था. उस की आंखों में बेइंतहा प्रेम और हाथों में अगाध विश्वास का स्पर्श था. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है, राबी? बताओ मुझे. शायद कहीं मेरा अंदेशा तो सही नहीं? तुम ही बताओ राबी?’’

‘‘तुम्हारा बड़ा भाई,’’ सिर झुकाए हुए आंसुओं की धार में राबिया के सारे मलाल बाहर निकल आए. नीरद को गुस्से में होश न रहा, चिल्ला कर पूछा, ‘‘क्या कर दिया कमजर्फ ने?’’

राबिया सकते में आ गई. नीरद के हाथ पकड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘कुछ कर नहीं पाया, मगर जंगल में खींच कर ले गया था मुझे.’’ बाकी बातें सुनते ही नीरद आपे से बाहर हो गया, कहा, ‘‘चलो थाने, रिपोर्ट लिखाएंगे.’’

‘‘आप के परिवार की इज्जत?’’

‘‘तुम्हारे दुख से बड़ी नहीं. क्या तुम ने उस का चेहरा देखा था? उस ने जैसा तुम्हें धमकाया था, वैसा वाकई कर दिखाया?’’

‘‘साफसाफ देखा मैं ने उसे. वह खुद चाहता था कि मैं उसे पहचानूं, खौफ खाऊं.’’

नीरद उन तीनों को ले कर थाने तो गया लेकिन वहां उन की नागरिकता के प्रश्न पर उन्हें जलील ही होना पड़ा. पुलिस वालों ने कहा, ‘‘तब तो पहले एनआरसी में नाम दर्ज करवाओ, फिर यहां आओ. जब हमारे यहां के नागरिक हो ही नहीं, तो हमें क्या वास्ता?’’

न्याय, अन्याय और सुखदुख की मीमांसा अब इंसानियत के हाथों में नहीं थी. बाध्य हो कर नीरद ने अपने कद्दावर दोस्त माणिक का सहारा लिया. वह एक सामाजिक संस्था का मुखिया था और समाज व राजनीतिक जीवन में उस की गहरी पैठ थी.

उस ने उन लोगों को शरण भी दी और देखभाल का जिम्मा भी लिया. नीरद भी कुछ दिन माणिक के घर से औफिस आनाजाना करता रहा.

इस बीच, नीरद ने अपने बड़े भाई की हरकतों का उस की ही पार्टी के राज्य हाईकमान से शिकायत की और उसे काबू में रखने का इशारा करते हुए उन की पार्टी की बदनामी का जिक्र किया. हाईकमान को बात समझ आ गई. उसी शाम जब वह फिर राबिया को तहसनहस करने के मंसूबे बांध उस के खाली घर के पास बिना कुछ जाने मंडरा रहा था. पार्र्टी हाईकमान के गुर्गों ने राबिया के घर के पीछे की झाडि़यों में ले जा कर उस की सारी हसरतें पूरी कर दीं. साथ ही, हाईकमान का आदेश भी सुना दिया, ‘पार्टी बदनाम हुई तो वह जिंदा नहीं बचेगा.’

इधर, यह कहानी यहां रुक तो गई, लेकिन नीरद की जिंदगी की नई कहानी कैसे शुरू हो? रजिस्ट्री तो तब होगी जब राबिया खुद को असम की लड़की साबित कर पाएगी.

पर क्या नीरद का प्रेम इन बातों का मुहताज है? जब उस ने धर्मजाति नहीं देखी तो अब नागरिकता पर अपने प्रेम की बलि चढ़ा दे?

प्रेम तो मासूम तितली सा नादान, दूसरों के दर्द, दूसरों की खुशी का वाहक  है जैसे परागकणों को तितलियां ले जाती हैं एक से दूसरे फूलों में.

नीरद ने अपना तबादला दिसपुर कर देने की अर्जी लगाई. भले ही वहां काम ज्यादा हो, लेकिन राबिया को नजदीक पाने के लिए वह कुछ ज्यादा भी मेहनत कर लेगा.

सच कहते हैं, भला मानुष कभी अकेला नहीं पड़ता. चार दुश्मन अगर उस के हों भी, सौ दोस्त भी उस के हर सुखदुख में साथ होते हैं. नीरद भी ऐसा ही था. ज्यादातर वह लोगों से मदद लेता कम था, देता अधिक था. औफिस के सारे स्टाफ वाले उस की अच्छाई के कायल थे. इसलिए कानून भले ही अड़ंगा था, मगर इंसानों ने इंसानियत का तकाजा अपने कंधों पर संभाल लिया था. नीरद और राबिया के प्यार की मासूमियत को सभी दिल से महसूस कर रहे थे और औफिस में फाइलें आगे बढ़ाते हुए उस के दिसपुर स्थानांतरण की राह प्रशस्त कर दी थी.

दिसपुर पहुंच कर नीरद और नीरद की राबी ने गुवाहाटी और दिसपुर के कुछ लोगों के सामने एकदूसरे को अपना बना लिया.

देश अभी भी बड़ी अफरातफरी में था. इंसानों पर जाति, धर्म और नागरिकता के टैग लगाने की बड़ी रेलमपेल लगी थी. इधर, नीरद और राबी ने दुनिया की रीत पर लिख दी अपने प्यार की पहचान. इंसान की सब से बड़ी पहचान राबी और उस के परिवार को मिल गई थी.

क्या आप भी इस वजह से सेक्स करते हैं

प्रेमी युगल या दंपति के बीच ज्यादा सेक्स उन्हें अधिक खुशी नहीं देता, क्योंकि ज्यादा सेक्स से उनमें इसके प्रति अरुचि पैदा होने लगती है और उन्हें सेक्स में ज्यादा आनंद भी नहीं आता. कार्नेज मेलन विश्वविद्यालय (सीएमयू) के शोधकर्ताओं की एक टीम, जिसमें एक भारतीय मूल के शोधकर्ता भी हैं, ने इसका खुलासा किया. पहली बार सेक्स करने के बाद इससे मिलने वाले आनंद और सेक्स करने की इच्छा में गिरावट शुरू हो जाती है.

सीएमयू के इंजिनीयरिंग एवं लोकनीति विभाग के वैज्ञानिक एवं इस अध्ययन के शोधकर्ता तमर कृष्णमूर्ति के अनुसार, “बार-बार सेक्स करने की बजाय युगल को ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जो उनकी इच्छाओं को जगाए. साथ ही उन्हें सेक्स को ज्यादा मजेदार बनाना चाहिए.”

सेक्स करने की बारंबारता और खुशी के बीच संबंध की जांच करने के उद्देश्य से अनुसंधानकर्ताओं ने 128 दंपतियों को अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक बार सेक्स करने के लिए कहा.

इसके बाद शोधकर्ताओं ने दोनों समूहों के बीच तीन महीने की अवधि के बाद खुशी का स्तर परखा. जिस समूह के दंपतियों को अधिक बार सेक्स करने की सलाह दी गई थी, उनमें खुशी में इजाफा होने की बजाय थोड़ी कमी ही हुई.

इस समूह वाले दंपतियों ने सेक्स की इच्छा में कमी और सेक्स के दौरान मिलने वाले आनंद में भी कमी की बात कही.

कृष्णमूर्ति ने कहा, “हालांकि ऐसा नहीं है कि इसकी वजह सीधे-सीधे अधिक सेक्स करना है, बल्कि इसका कारण यह है कि उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया, न कि उन्होंने खुद से ऐसा किया.”

शोध के परिणामों के विपरीत शोधकर्ताओं का मानना है कि कुछ दंपति अपनी भलाई सोचकर बहुत कम सेक्स करते हैं और मानते हैं कि सही दिशा में सेक्स की बारंबारता बढ़ाना लाभदायी हो सकता है.

शोध पत्रिका ‘इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गेनाइजेशन’ में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि इसकी बजाय खुश रहने वाले लोगों में सेक्स की दर बढ़ सकती है या स्वस्थ रहने वाले लोगों में खुशी और सेक्स की दर दोनों में इजाफा हो सकता है.

प्यार दोबारा भी होता : संजना ने राजीव को देखकर क्या महसूस किया

सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

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