क्या वही प्यार था : दीदी बाबा का प्यार क्या रंग लाया

दादी और बाबा के कमरे से फिर जोरजोर से लड़ने की आवाजें आने लगी थीं. अम्मा ने मुझे इशारा किया, मैं समझ गई कि मुझे दादीबाबा के कमरे में जा कर उन्हें लड़ने से मना करना है. मैं ने दरवाजे पर खड़े हो कर इतना ही कहा कि दादी, चुप हो जाइए, अम्मा के पास नीचे गुप्ता आंटी बैठी हैं. अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि दादी भड़क गईं.

‘‘हांहां, मुझे ही कह तू भी, इसे कोई कुछ नहीं कहता. जो आता है मुझे ही चुप होने को कहता है.’’

दादी की आवाज और तेज हो गई थी और बदले में बाबा उन से भी जोर से बोलने लगे थे. इन दोनों से कुछ भी कहना बेकार था. मैं उन के कमरे का दरवाजा बंद कर के लौट आई.

दादीबाबा की ऐसी लड़ाई आज पहली बार नहीं हो रही थी. मैं ने जब से होश संभाला है तब से ही इन दोनों को इसी तरह लड़ते और गालीगलौज करते देखा है. इस तरह की तूतू मैंमैं इन दोनों की दिनचर्या का हिस्सा है. हर बार दोनों के लड़ने का कारण रहता है दादी का ताश और चौपड़ खेलना. हमारी कालोनी के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे महल्लों के सेवानिवृत्त लोग, किशोर लड़के दादी के साथ ताश खेलने आते हैं. ताश खेलना दादी का जनून था. दादी खाना, नहाना छोड़ सकती थीं, मगर ताश खेलना नहीं.

दादी के साथ कोई बड़ा ही खेलने वाला हो, यह जरूरी नहीं. वे तो छोटे बच्चे के साथ भी बड़े आनंद के साथ ताश खेल लेती थीं. 1-2 घंटे नहीं बल्कि पूरेपूरे दिन. भरी दोपहरी हो, ठंडी रातें हों, दादी कभी भी ताश खेलने के लिए मना नहीं कर सकतीं. बाबा लड़ते समय दादी को जी भर कर गालियां देते परंतु दादी उन्हें सुनतीं और कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर उसी तरह ताश में मगन रहतीं. कई बार बहुत अधिक गुस्सा आने पर बाबा, दादी के 1-2 छड़ी भी टिका देते. दादी बाबा से न नाराज होतीं न रोतीं. बस, 1-2 गालियां बाबा को सुनातीं और अपने ताश या चौपड़ में मस्त हो जातीं.

एक खास बात थी, वह यह कि दोनों अकसर लड़ते तो थे मगर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. जब दोनों की लड़ाई हद से बढ़ जाती और दोनों ही चुप न होते तो दोनों को चुप कराने के लिए अम्मा इसी बात को हथियार बनातीं. वे इतना ही कहतीं, ‘‘आप दोनों में से किसी एक को देवरजी के पास भेजूंगी,’’ दोनों चुप हो जाते और तब दादी, बाबा से कहतीं, ‘‘करमजले, तू कहीं रहने लायक नहीं है और न मुझे कहीं रहने लायक छोड़ेगा,’’ और दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते.

खैर, गुप्ता आंटी तो चली गई थीं मगर अम्मा को आज जरा ज्यादा ही गुस्सा आ गया था. सो, अम्मा ने दोनों से कहा, ‘‘बस, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती. अभी देवरजी को चिट्ठी लिखती हूं कि किसी एक को आ कर ले जाएं.’’

अम्मा का कहना था कि बाबा हाथ जोड़ कर हर बार की तरह गुहार करने लगे, ‘‘अरी बेटी, तू बिलकुल सच्ची है, तू हमें ऊपर बनी टपरी में डाल दे, हम वहीं रह लेंगे पर हमें अलगअलग न कर. अरी बेटी, आज के बाद मैं अपना मुंह सी लूंगा.’’

अभी बात चल ही रही थी कि संयोग से चाचा आ गए. चायनाश्ते के बाद अम्मा ने चाचा से कहा, ‘‘सुमेर, दोनों में से किसी एक को अपने साथ ले कर जाना. जब देखो दोनों लड़ते रहते हैं. न आएगए की शर्म न बच्चों का लिहाज.’’

चाचा लड़ने का कारण तो जानते ही थे इसलिए दादी को समझाते हुए बोले, ‘‘मां, जब पिताजी को तुम्हारा ताश और चौपड़ खेलना अच्छा नहीं लगता तो क्यों खेलती हैं, बंद कर दें. ताश खेलना छोड़ दें. पता नहीं इस ताश और चौपड़ के कारण तुम ने पिताजी की कितनी बेंत खाई होंगी.

‘‘भाभी ठीक कहती हैं. मां, तुम चलो मेरे साथ. मेरे पास ज्यादा बड़ा मकान नहीं है, पिताजी के लिए दिक्कत हो जाएगी. मां, तुम तो बच्चों के कमरे में मजे से रहना.’’

आज दादी भी गुस्से में थीं, एकदम बोलीं, ‘‘हां बेटा, ठीक है. मैं भी अब तंग आ गई हूं. कुछ दिन तो चैन से कटेंगे.’’

दादी ने अपना बोरियाबिस्तर बांध कर तैयारी कर ली. अपनी चौपड़ और ताश उठा लिए और जाने के लिए तैयार हो गईं.

यह बात बाबा को पता चली तो बाबा ने वही बातें कहनी शुरू कर दीं जो दादी से अलग होने पर अम्मा से किया करते थे, ‘‘अरी बेटी, मैं मर कर नरक में जाऊं जो तू मेरी आवाज फिर सुने.’’

अम्मा के कोई जवाब न देने पर वे दादी के सामने ही गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘सुमेर की मां, आप मुझे जीतेजी क्यों मार रही हो. आप के बिना यह लाचार बुड्ढा कैसे जिएगा.’’

इतना सुनते ही दादी का मन पिघल गया और वे धीरे से बोलीं, ‘‘अच्छा, नहीं जाती,’’ दादी ने चाचा से कह दिया, ‘‘तेरे पिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं न, मैं नहीं जाऊंगी,’’ और दादी ने अपना बंधा सामान, अपना बक्सा, ताश, चौपड़ सब कुछ उठा कर खुद ही अंदर रख दिया.

चाचा को उसी दिन लौटना था अत: वे चले गए. शाम को मैं चाय ले कर बाबा के पास गई तो बाबा ने कहा, ‘‘सिम्मी बच्ची, पहले अपनी दादी को दे,’’ और फिर खुद ही बोले, ‘‘सुमेर की मां, सिम्मी चाय लाई है, चाय पी लो.’’

दादी भी वाणी में मिठास घोल कर बड़े स्नेह से बोलीं, ‘‘अजी आप पियो, मेरे लिए और ले आएगी.’’

एक बात और बड़ी मजेदार थी, जब अलग होने की बात होती तो तूतड़ाक से बात करने वाले मेरे बाबा और दादी आपआप कर के बात करते थे जो हमारे लिए मनोरंजन का साधन बन जाती थी. लेकिन ऐसे क्षण कभीकभी ही आते थे, और दादीबाबा कभीकभी ही बिना लड़ेझगड़े साथ बैठते थे. आज भी ऐसा ही हुआ था. ये आपआप और धीमा स्वर थोड़ी ही देर चला क्योंकि पड़ोस के मेजर अंकल दादी के साथ ताश खेलने आ गए थे.

बाबा की तबीयत खराब हुए कई दिन हो गए थे. दादी को विशेष मतलब नहीं था उन की तबीयत से. एक दिन बाबा की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. बाबा कहने लगे, ‘‘आज मैं नहीं बचूंगा. अपनी दादी से कहो, मेरे पास आ कर बैठे, मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

दादी की ताश की महफिल जमी हुई थी. हम उन्हें बुलाने गए मगर दादी ने हांहूं, अच्छा आ रही हूं, कह कर टाल दिया. वह तो अम्मा डांटडपट कर दादी को ले आईं. दादी बेमन से आई थीं बाबा के पास.

दादी बाबा के पास आईं तो बाबा ने बस इतना ही कहा था, ‘‘सुमेर की मां, तू आ गई, मैं तो चला,’’ और दादी का जवाब सुने बिना ही बाबा हमेशा के लिए चल बसे.

तेरहवीं के बाद सब रिश्तेदार चले गए. शाम को दादी अपने कमरे में गईं. वे बिलकुल गुमसुम हो गई थीं हालांकि बाबा की मृत्यु होने पर न वे रोई थीं न ही चिल्लाई थीं. दादी ने खाना छोड़ दिया, वे किसी से बात नहीं करती थीं. ताश, चौपड़ को उन्होंने हाथ नहीं लगाया. जब कोई ताश खेलने आता तो दादी अंदर से मना करवा देतीं कि उन की तबीयत ठीक नहीं है. अम्मा या पापा दादी से बात करने का प्रयास करते तो दादी एक ही जवाब देतीं, ‘‘मेरा जी अच्छा नहीं है.’’

एक दिन अम्मा, दादी के पास गईं और बोलीं, ‘‘मांजी, कमरे से बाहर आओ, चलो ताश खेलते हैं, आप ने तो बात भी करना छोड़ दिया. दिनभर इस कमरे में पता नहीं क्या करती हो. चलो, आओ, लौबी में ताश खेलेंगे.’’

दादी के चिरपरिचित जवाब में अम्मा ने फिर कहा, ‘‘मांजी, ऐसी क्या नफरत हो गई आप को ताश से. इस ताश के पीछे आप ने सारी उम्र पिताजी की गालियां और बेंत खाए. जब पिताजी मना किया करते थे तो आप खेलने से रुकती नहीं थीं और अब वे मना करने के लिए नहीं हैं तो 3 महीने से आप ने ताश छुए भी नहीं. देखो, आप की चौपड़ पर कितनी धूल जम गई है.’’

अब दादी बोलीं, ‘‘परसों होंगे 3 महीने. मेरा उन के बिना जी नहीं लगता. सुमेर के पिताजी, मुझे भी अपने पास बुला लो. मुझे नहीं जीना अब.’’

दादी की मनोकामना पूरी हुई. बाबा के मरने के ठीक 3 महीने बाद उसी तिथि को दादी ने प्राण त्याग दिए. यानी दादी अपने कमरे में जो गईं तो 3 महीने बाद मर कर ही बाहर आईं.

दादीबाबा को हम ने कभी प्रेम से बैठ कर बातें करते नहीं देखा था, लेकिन दादी बाबा की मौत का गम नहीं सह पाईं और बाबा के पीछेपीछे ही चली गईं. उन के ताश, चौपड़ वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं.

गोल्डन वुमन: फैशन मौडल कैसे बनी दुल्हन

दिल्ली के होटल ताज के बाहर काले रंग की एक चमचमाती कार आ कर रुकती है. लेटैस्ट मौडल की इस कार का दरवाजा खुलता है और उस में से हाई हील्स और स्टाइलिश पार्टीवियर ड्रैस में साधना बाहर निकलती है. उस के बालों में गोल्डन कलरिंग की हुई है. डायमंड जड़े सुनहरे पर्स और गौगल्स को संभालती साधना होटल के अंदर प्रवेश करती है.

रिसैप्शन एरिया में ही उस की सहेली निभा उस का इंतजार कर रही थी. साधना को गौर से देखते हुए उस ने कहा,”हाय साधना, न्यू हेयरस्टाइल. नाइस यार… तेरी तो ड्रैस भी नायाब है.”

“अरे निभा, तुझे याद नहीं पिछली दफा जब पार्टी के बाद मैं तन्वी के साथ बाजार गई थी, वहीं यह ड्रैस मुझे पसंद आ गई थी. जानती है इस के किनारों पर गोल्ड का काम है. इस ड्रैस के फ्रंट पर भी सीक्वैंस, स्टोंस, बीड्स और गोल्ड का काम किया हुआ है.”

“गौर्जियस यार. वैसे भी यू आर अ गोल्डन वूमन. गोल्ड बहुत पसंद हैं न तुझे. तेरी ज्यादातर ड्रैस में गोल्ड का काम जरूर होता है. वैसे कितने की है यह ड्रैस ?”

“ज्यादा की नहीं है यार. बस यही कोई ₹1 लाख की है. बट आई मस्ट से, इट्स वैरी कंफरटेबल. फील ही नहीं हो रहा कि कुछ पहना भी है,” कह कर साधना हंस पड़ी, फिर निभा की तरफ देखती हुई बोली,” वैसे तुम्हारी ड्रैस भी बहुत प्रिटी है यार.”इसी तरह बातें करतीं एकदूसरे का हाथ थामे दोनों आगे बढ़ गईं.

साधना अपनी 20-25 क्लोज फ्रैंड्स के साथ शाम तक शानदार पार्टी का मजा लेती रही. पार्टी साधना की तरफ से ही थी. दरअसल, साधना ने अपने बेटे अभिनव की 10वीं में बेहतरीन प्रदर्शन की खुशी में अपनी सहेलियों को दावत दी थी. दावत भी ऐसीवैसी नहीं थी. इस दावत में सर्व किए गए 1-1 प्लेट की कीमत हजारों रूपए थी.

सलाहकारों और सहयोगियों का हुजूम हमेशा उस के साथ चलता था. इधर कुछ दिनों से सुधाकर कुछ परेशान रहने लगा था. साधना समझती थी कि इस की वजह कारोबार में आ रही समस्याएं होंगी. सुधाकर कभी भी साधना से अपनी बिजनैस संबंधित समस्याएं शेयर नहीं करता था और साधना कभी उस के काम में कोई दखल देती भी नहीं थी.

साधना ने सुधाकर से लव मैरिज की थी. दरअसल, साधना एक मौडल थी और राजस्थानी परिवार से जुड़ी थी. वहीँ सुधाकर भी मूल रूप से राजस्थानी ही था. दोनों के ही परिवार वाले अब दिल्ली में बसे हुए थे. साधना का फैशन सैंस और स्टाइलिश लुक सुधाकर के मन में समा गया था.

एक फैशन शो ईवेंट के दौरान उस ने साधना से अपने दिल की बात पूरे राजस्थानी अंदाज में कही और वहीं दोनों ने एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुन लिया.

वैसे सुधाकर के घर वालों ने साधना को सहजता से स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे एक मौडल को बहू बनाने के पक्ष में नहीं थे. मगर जब उन्होंने करीब से उस के मृदुल स्वभाव और परिपक्व सोच को परखा तो तुरंत तैयार हो गए.

दोनों अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. साधना के 2 बच्चे थे. पहला बेटा अभिनव था जो 10वीं पास कर चुका था जबकि बेटी अभी छोटी थी.

साधना अपने पैशन को जिंदा रखना चाहती थी मगर शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियां देखते हुए उस ने फैशन मौडल के बजाय फैशन इंफ्लुऐंसर और फैशन मोटीवेटर के रूप में घर से ही काम करना शुरू किया था.

पार्टी खत्म कर साधना ने अपनी सभी सहेलियों से विदा ली और अपने शानदार बंगले में कदम रखा तो यह देख कर दंग रह गई की ड्राइंगरूम में बहुत से लोग मौजूद हैं. पति सामने मुंह लटकाए एक अपराधी की तरह खड़े हैं. घर के सभी नौकरचाकर भी एक कोने में दुबके हुए हुए हैं.

घबराते हुए साधना अंदर दाखिल हुई और पति के पास जाती हुई बोली,”क्या हुआ सुधाकर और ये लोग कौन हैं? ”

सुधाकर टूट गया और साधना के कंधे पर सिर रख कर रोता हुआ बोला,”सब खत्म हो गया साधना. हम कंगाल हो गए. ये बैंक वाले हैं और अपनी लोन की रकम उगाहने के लिए आए हैं. ये हमारे मकान और गाड़ियों पर कब्जा लेने के लिए खड़े हैं.”

साधना सन्न रह गई मगर पति को दिलासा देती हुई बोली,”परेशान मत हो सुधाकर, सब ठीक हो जाएगा.”

“मैं भी अब तक यही तो सोचता रहा कि सब ठीक हो जाएगा. एक के बाद एक बिजनैस डूबते रहे मगर मैं लोन लेले कर नए सपने बुनता रहा. तुम्हें भी कभी एहसास नहीं होने दिया कि आजकल हमारी कंपनियां नफा देने के बजाय नुकसान दे रही हैं. मेरे बैंक लोन इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि अब मैं सब कुछ गंवा देने की हालत में पहुंच गया हूं. बस मुझे एक साइन करना है और फिर यह बंगलागाड़ी, यह शानोशौकत सबकुछ खत्म हो जाएगा.”

“तो क्या हुआ सुधाकर, अब हम एक सामान्य जीवन जी लेंगे. सालों शानोशौकत का अनुभव किया है तो कुछ समय साधारण जीवन का भी अनुभव होना चाहिए न और कौन जाने तुम बहुत जल्द ही सब कुछ वापस खड़ा कर लोगे. मुझे पूरा विश्वास है तुम पर. कर दो साइन सुधाकर ज्यादा मत सोचो.”

मनमसोस कर सुधाकर ने सबकुछ बैंक वालों को सौंप दिया और इस तरह एक झटके में अरबपति दंपत्ति का परिवार साधारण मध्यवर्गीय परिवार में तबदील हो गया. सुधाकर और साधना ने तो फिर भी परिस्थितियों से समझौता कर लिया मगर असल मुसीबत बच्चों की थी जिन्होंने बचपन से एक लग्जीरियस लाइफ जी थी और अब अचानक आए इस बदलाव से वे हतप्रभ थे.

बेटी पायल तो इस छोटे से नए घर में आ कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. बेटा अभिनव भी समान्य नहीं रह पाया. वह अपने दोस्तों से कतराने लगा क्योंकि वे लोग उस से हजारों सवाल करने लगे थे. साधना खुद भी अंदर से बहुत परेशान थी मगर उसे पति और बच्चों को इस सदमे से उबारना था. साधना ने पहले अपने मन को समझाया और फिर शांत मन से बच्चों को समझाने में जुट गई.

बेटी को अपने पास बैठा कर साधना ने पूछा,”आप क्यों रो रहे हो?”

“मम्मा हम गरीब हो गए. अब हमें बहुत कठिन दिन गुजारने होंगे न. हम अपने मन का कुछ नहीं कर पाएंगे…”

“ऐसा क्यों कह रही हो मेरी बच्ची? अमीरीगरीबी तो जिंदगी में लगी ही रहती है. यह जिंदगी का एक हिस्सा है, एक फेज की तरह है बिलकुल वैसे ही जैसे रोज सुबह होती है, शाम होती है फिर रात हो जाती है. अगला दिन आता है और फिर से सुबह हो जाती है. यह सब तो चलता रहता है. अब देखो न, कभी ठंड, कभी गरमी और कभी बारिश. मौसम बदलते रहते हैं न. जानते हो गरमी के बाद बारिश न आए तो फसलें सूख जाएंगी और हमें खाने की चीजें नहीं मिलेंगी. इसी तरह जिंदगी भी रंग बदलती है.”

“पर मम्मा, यह फेज अच्छा नहीं है न?”

“किस ने कहा बेटे? हर फेज अच्छा होता है. हमें कुछ सिखा कर जाता है. कोशिश करो तो जिंदगी के इस फेज से बहुत कुछ सीख सकते हो.”

“देखो बेटे, जीवन में कठिनाइयां आती हैं तभी इंसान उस से लड़ना सीखता है, मजबूत बनता है. जो लोग हमेशा अमीरी में जीते हैं उन के अंदर कठिन परिस्थितियों से निबटने की ताकत नहीं आ पाती. अमीर बच्चों को सब कुछ आसानी से मिल जाता है. इसलिए उन के अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं आती. मगर साधारण लोग सबकुछ अपनी मेहनत के बल पर हासिल करते हैं. इसी में असली खुशी है.”

पायल मां को देखती रही. वह कोशिश कर रही थी कि मां के तर्कों को मान ले मगर बच्ची के मन अंदर कुछ टूट गया था. अभिनव भी काफी गुमसुम रहने लगा था.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. बच्चे अभी भी इस नई जिंदगी में सामान्य नहीं थे.

एक दिन बेटा जब स्कूल से वापस लौटा तो साधना हैरान रह गई. उस के कपड़े कई जगह से फटे हुए थे. बाल बिखरे थे और कई जगह चोट भी लगी थी. उस के साथ आए लड़के ने बताया कि स्कूल में दूसरे लड़कों से मारपीट की वजह से यह हालत हुई है. उस लड़के के जाने के बाद साधना ने जल्दीजल्दी पहले तो बेटे को नहलाया और फिर उस की मरहमपट्टी की. सिर पर ठंडे पानी की फुहारें पड़ीं तो अभिनव थोड़ा सामान्य हुआ.

अब बेटे को पास बैठा कर और उस की आंखों में देखते हुए साधना ने पूछा,”यह सब क्या है अवि? अपने दोस्तों से लड़ने की वजह क्या थी? ऐसा क्या हो गया जो तुम ने मारपीट की?”

अभिनव अचानक रोता हुआ उस की गोद में सिर रख कर लेट गया और बोला,”मां, स्कूल का एक लड़का पापा को कंगाल और दिवालिया कह रहा था. उस ने मुझे कंगला का बेटा कहा. इसी बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं सह नहीं सका और उस पर टूट पड़ा.”

“बेटे, ऐसा क्या गलत कह दिया था उस ने? और यदि गलत कहा भी तो तुम्हें क्या फर्क पड़ता है जबकि बात ही गलत है? देखो बेटा, तुम्हारे पापा दिवालिया हुए थे. उन की संपत्ति जब्त कर ली गई थी. इस की खबर न्यूज चैनल और अखबारों में भी आई थी. ऐसे में संभव है कि उस लड़के के घर में भी इस बात पर चर्चा हुई होगी. वह लड़का किसी बात पर तुम से नाराज होगा इसलिए उस ने तुम्हें उकसाने के लिए इस बात को गलत तरीके से कहा और तुम सचमुच भड़क उठे.

 

“पर मौम, वह सब के सामने ऐसी बातें कर रहा था तो मैं भला क्या करता? चुपचाप आगे बढ़ जाता?”

“या तो चुपचाप आगे बढ़ जाते या फिर मुसकरा कर कहते कि डोंट वरी हम फिर से पहले जैसे बन जाएंगे,” साधना ने समझाया.

सुन कर अभिनव को हंसी आ गई. वह मां के हाथ चूमता हुआ बोला,”मौम यू आर ग्रेट. कहां से लाते हो आप इतना पैशेंस?”

साधना ने हंस कर कहा,” यह पैशेंस अब तुम्हें भी अपने अंदर पैदा करना है बेटे. तभी तुम जिंदगी की हर जंग जीत सकोगे.”

“ओके मौम मैं ऐसा कर के दिखाऊंगा.”

बेटे का माथा प्यार से सहलाते हुए साधना एक खुशनुमा भविष्य की उम्मीद में खो गई.

2-3 साल इसी तरह बीत गए. साधना अपने बच्चों को कम में जीने का प्रशिक्षण देती रहती. जब बेटा दोस्तों को पार्टी देने की बात कर रूपए मांगता तो वह अपने दोस्तों को घर पर बुला लेने की बात करती और अपने हाथों का बना खाना खिलाती. जब वह जिम जौइन करने की बात करता तो साधना उसे घर पर ही योगा और व्यायाम कर के फिट रहने के उपाय समझाती. उसे बेवजह के स्कूल टूअर या फंक्शन में शामिल होने के बजाय उस समय का उपयोग पढ़ाई करने और भविष्य संवारने में लगाने को कहती. वह अपनी बिटिया को भी पैसे बरबाद करने के बजाय बचत करने के तरीके समझाती.

उस दिन साधना की बेटी पायल का बर्थडे था. साधना के कहने पर पायल इस बार अपनी बर्थडे पार्टी साधारण तरीके से मनाने की बात तो मान गई मगर एक खूबसूरत नई ड्रैस के लिए अड़ गई. साधना ने उस का मन रखने के लिए ड्रैस खरीद दी. 3-4 दिन बाद ही पायल फिर से एक नई ड्रैस के लिए मिन्नतें करने लगी.

“मगर क्यों? अभी तो लाई थी मैं नई ड्रैस,” साधना ने पूछा तो वह बोली,”मम्मा, मेरी बैस्ट फ्रैंड का बर्थडे है. उस के बर्थडे पर मैं अपनी बर्थडे वाली ड्रैस रिपीट कैसे करूं? इस के अलावा कोई नई ड्रैस है भी नहीं मेरे पास.”

“ओके बेटा. परेशान न हो. आप शाम को स्कूल से आओगे तब तक आप की नई ड्रैस आ चुकी होगी.”

“थैंक यू मम्मा,” कह कर पायल हंसतीमुसकराती चली गई.

पायल के जाने के बाद साधना सोचने लगी कि बेटी के लिए एक नई पार्टीवियर ड्रैस का इंतजाम कैसे किया जाए. तभी उस के दिमाग में एक आईडिया आया. उस ने बेटी की एक पुरानी ड्रैस निकाली और उस पर अपने फैशन डिजाइनर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए सितारे, स्टोंस, बीड्स और नेट आदि का काम कर और स्टाइलिश कटिंग दे कर उस ड्रैस को एक खूबसूरत पार्टीवियर ड्रैस बना दिया. शाम को जब पायल लौटी और मम्मी के हाथों में प्यारी सी ड्रैस देखी तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

रात में जब साधना ने सुधाकर को सारी बात बताई तो साधना का हाथ पकड़ कर वह बोला,”मैं हमेशा कहता था न यू आर अ गोल्डन वूमन. आज तुम ने यह साबित कर दिया. तुम्हारे गोल्डन कलर्ड हेयर, गोल्डन ड्रैस, गोल्डन ऐक्सेसरीज ही तुम्हें गोल्डन नहीं बनाते बल्कि तुम्हारा दिल भी गोल्डन है. सच सोने का दिल रखती हो तुम. मेरी जिंदगी में इतनी तकलीफें आईं मगर तुम ने अपनी समझदारी और धैर्य से न केवल मुझे हिम्मत दी बल्कि बच्चों को भी हर हाल में खुश हो कर जीना सिखा दिया. थैंक्स साधना.”

साधना ने मुसकराते हुए कहा,”मैं तुम्हारी जीवनसाथी हूं. सुख हो या दुख हो, सम्पन्नता हो या परेशानी, मुझे तुम्हारे साथ हौसला बन कर चलना है. मैं न खुद टूटूंगी और न तुम्हें टूटने दूंगी.”

सुधाकर के चेहरे पर मुसकान और आंखों में प्यार झलक उठा था.

मेरी पत्नी मेनोपौज से गुजर रही है, क्या यह सैक्स लाइफ को डिसटर्ब कर सकता है?

सवाल

मेरी पत्नी की उम्र 40 से 45 साल की है. मैंने रैग्युलर सैक्स बंद कर दिया क्या इससे मेनोपौज की परेशानी शुरू हो जाती है. क्या? क्योंकि मेरी पत्नी को अब पीरियड्स आने बंद हो गए है. मुझे लगता है कि उसे मेनोपौज की परेशानी शुरु हो गई है. इस क्या हमारी अब सैक्स लाइफ डिसटर्ब होगी?

जवाब

40 से 45 की उम्र में ज्यादातर महिलाओं में मेनोपौज होता है. अगर 6 महीने से ले कर एक साल तक पीरियड्स न आए तो हम कह सकते हैं कि उस महिला को मेनोपौज हो चुका है. मेनोपौज के बाद कई बार सैक्स का एंजौयमैंट बढ़ भी जाता है. ऐसा नहीं है सैक्स लाइफ डिसटर्ब होती है.

क्या है मेनोपौज

महिलाओं के शरीर में उम्र के साथ-साथ कई बदलाव होते हैं. शरीर में होने वाले इन बदलाव के कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. लगभग 45 से 50 साल की उम्र में महिलाओं को मेनोपौज (Menopause in Hindi) का सामना करना पड़ता है. महिलाओं में मेनोपौज एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें पीरियड्स आना बंद हो जाते हैं और इसके कारण शरीर में तमाम तरह के हार्मोनल बदलाव भी होते हैं.

दुनियाभर में महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके अच्छे जीवन को लेकर जागरूकता फैलाने और मानव जीवन में महिलाओं के योगदान को प्रेरित करने के उद्देश्य से 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज हम आपको महिलाओं की सेहत से जुड़े एक ऐसे विषय के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको लेकर महिलाओं में जागरूकता की कमी देखी जाती है.

मेनोपौज के दौरान में अपने पार्टनर के साथ सैक्स में कैसे सुधार ला सकता हूं?

मेनोपौज के दौरान, यदि आपकी सैक्स ड्राइव गिर गई है, लेकिन आपको नहीं लगता कि आपको सलाह की जरूरत है, तो आपको अभी भी सैक्स के लिए समय निकालना चाहिए.

लेकिन आप अभी भी सैक्स किए बिना अपने साथी को प्यार देना चाहते है तो उसके लिए भी टिप्स है. सैर करें, मोमबत्ती की रोशनी में रात का खाना खाएं, या एक-दूसरे को पीठ की मालिश दें. ये सब करके भी आप अपने पार्टनर को खुश कर सकते है.

क्या मेनोपौज से सभी महिलाएं कम सैक्स ड्राइव करती है?

अगर ये सवाल भी आपके दिमाग में घूम रहा है तो इसका जवाब है कि नहीं। कुछ पोस्टमेनोपौज़ल महिलाओं का कहना है कि उन्हें एक बेहतर सैक्स ड्राइव मिली है. यह गर्भावस्था के डर से जुड़ी कम चिंता के कारण हो सकता है. इसके अलावा, कई पोस्टमेनोपौज़ल महिलाओं में अक्सर कम बच्चे के पालन-पोषण की जिम्मेदारियां होती हैं, जिससे उन्हें अपने पार्टनर के साथ आराम करने और एक तरह से सैक्स करने की परमिशन मिल जाती है. बिना किसी प्रोटेक्शन के ही.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें-sampadak@delhipress.biz
सच्ची सलाह के लिए कैसी भी परेशानी टैक्स्ट या वौइस मैसेज से भेजें. मोबाइल नंबर : 8588843415.

कौन लेगा विराट कोहली और रोहित शर्मा की जगह? जानें किन दो क्रिकेटर्स का नाम आ रहा है सामने

भारतीय क्रिकेट टीम के चमकते खिलाड़ी रोहित शर्मा और विराट कोहली दो ऐसे खिलाड़ी जो सभी के दिलों पर राज करते है. दोनों खिलाड़ी ही शानदार पारी से सभी का दिल जीत लेते है. हाल ही में विराट कोहली और रोहित शर्मा ने टी-20 वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम किया. लेकिन अब इस मैच के बाद दोनों क्रिकेटरों ने टी-20 इंटरनेशनल क्रिकेट से सन्यास ले लिया है और खुद मैच से अलग कर लिया है. लेकिन अब सवाल है कि दोनों को कौन से खिलाडी है जो रिप्लेस करेंगे.

 

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जिम्बाब्वे के पूर्व कप्तान हैमिल्टन मसाकाद्जा (Hamilton Masakadza) ने इस सवाल पर रिएक्ट किया है. हैमिल्टन मसाकाद्जा ने दो ऐसे भारतीय खिलाड़ियों के नाम बताएं हैं जो टी-20 इंटरनेशनल में कोहली और रोहित की जगह ले सकते हैं. मीडिया से बात करते हुए जिम्बाब्वे के पूर्व कप्तान ने कहा है कि दोनों के टी-20 न खेलने से भारतीय क्रिकेट में बड़ा खालीपन आएगा. लेकिन टीम इंडिया के पास ऐसे खिलाड़ी हैं जो इनकी जगह भर सकते हैं.

जी हां, रोहित शर्मा और विराट कोहली को रिप्लेस करने वाले खिलाड़ी शुभमन गिल और ऋतुराज गायकवाड़ दोनों ऐसे ही खिलाड़ी है. पीयूष चावला हाल ही में शुभांकर मिश्रा के पौडकास्ट में शामिल हुए. इस दौरान होस्ट ने उनसे क्रिकेट से जुड़े कई जरूरी सवाल पूछ लिए. होस्ट ने चावला से उन खिलाड़ियों के नाम भी बताने को कहे जो कोहली और रोहित की जगह इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद लेंगे.

इस पर उन्होंने गिल के साथ गायकवाड़ का नाम लिया. जो कि वाकई चौंका देने वाला था. चावला ने माना कि गायकवाड़ के लिए ये आसान नहीं होगा, क्योंकि वो टीम में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन ये चलता रहेगा. उन्हें जब भी मौका मिलता है वो उसे भुनाने में सफल रहे हैं. वह काफी खास प्लेयर हैं.

शुभमन गिल के बारे में बोलते हुए मुंबई इंडियंस के स्पिनर ने कहा, ‘शुभमन गिल की तकनीक अच्छी है. जब अपने करियर में खराब फौर्म से गुजरते हैं, जो जिन बल्लेबाजों की तकनीक अच्छी होती है, वो खराब फौर्म से जल्दी बाहर आ जाते हैं. इस तरह के बल्लेबाज लम्बे समय तक फौर्म से बाहर नहीं रह सकते. इसलिए मैं गायकवाड़ और शुभमन का नाम लेना चाहूंगा.’

क्रिकेट की बात करें तो ऋतुराज गायकवाड़ इन दिनों दलीप ट्रौफी 2024 में खेल रहे हैं, जिसमें वो इंडिया सी की अगुवाई कर रहे हैं. वहीं, शुभमन गिल अब बांग्लादेश के विरुद्ध होने वाली आगामी दो मैच की टेस्ट सीरीज में खेलते हुए नजर आएंगे, जिसकी शुरुआत 19 सितम्बर से होगी. पहला टेस्ट चेन्नई में होगा, जिसकी तैयारी भारतीय टीम ने शुरू कर दी है.

प्रेम का मूल : लता को चोरी क्यों करनी पड़ी

लता ने कभी सोचा नहीं था कि उसे टूट कर चाहने वाला यशवंत उसे मुसीबत के समय इस कदर धोखा भी दे सकता है. प्यार की हद तक चाहने का दावा करने वाले यशवंत का प्यार तो केवल लता की मतवाली जवानी से हवस मिटाने तक ही सिमटा रह गया था.

लता कभी अस्पताल के कमरे की छत पर टंगे मकड़जाले से लिपटे खड़खड़ाते पंखे को देख रही थी, तो कभी बैड के पास टूटे स्टूल पर चिंतित बैठे अपने पति छगन को.

डाक्टर ने बताया कि इस हादसे की वजह से उस की एक टांग टूट गई है और रीढ़ की हड्डी पर भी मामूली चोट आई है, जो समय के साथसाथ ठीक हो जाएगी.

लता की दाईं टांग पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था और कमर पर चौड़ी बैल्ट बंधी थी. दर्द से उस का रोमरोम सिहर रहा था. आंखें पछतावे के आंसू बहा रही थीं. उस ने दोनों हाथों से छगन के दाएं हाथ को पकड़ा और होंठों से एक गहरा चुम्मा जड़ दिया. छगन की आंखें भी भीग गईं. उस ने दूसरे लोगों की परवाह न करते हुए लता के माथे को चूम लिया.

लता के सूखे होंठों पर बस एक कोरी मुसकान उभर गई. छत के एक किनारे पर मकड़जाले में फंसे किसी पतंगे को देख कर उसे भी अपना अतीत याद आने लगा. उस ने छगन का हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आंखें मूंदनी शुरू कर दीं. लता को यशवंत की वह पहली मुलाकात याद आने लगी, जब वह उस के चंगुल में फंस गई थी.

छगन को लगा कि लता को नींद आ गई है, तो उस ने चुपके से उस के हाथों से अपना हाथ हटाया और उस के पैर की उंगलियों पर भिनभिनाती मक्खियों को हटाने लगा.

लता शहर से गांव जाने वाले रास्ते पर बने वेटिंग रूम में बैठी थी. उस के पास 2 भारी बैग थे, जिस में महीनेभर का राशन और दूसरा जरूरी सामान था.

सूरज आकाश के बीचोंबीच आ कर शरीर को झुलसा रहा था. वह सोचने लगी कि कुछ देर बाद छगन भी दोपहर का खाना खाने के लिए घर आने वाला होगा. उसे घर पर न पा कर वह परेशान हो जाएगा.

छगन निकट ही जल महकमे में चपरासी था. लता छगन को बता कर शहर आई थी. उस ने ब्लाउज के अंदर हाथ ठूंस कर अपना मोबाइल निकाला और छगन को हालात के बारे में बता दिया.

लता अभी मोबाइल बंद कर ही रही थी कि उस के निकट एक मोटरसाइकिल सवार आ कर रुक गया. वह तिरछी निगाहों से लता को देख रहा था. लता कभी सड़क के दूसरे छोर को देख रही थी, तो कभी अपने दोनों बैगों को. वह चुपकेचुपके उस नौजवान को भी तिरछी निगाहों से देख रही थी.

काफी देर तक जब दोनों में बातचीत नहीं हुई, तो मोटरसाइकिल सवार ने पूछा, ‘‘क्या आप को नारायणकोटी गांव जाना है?’’

काफी देर तक जब लता ने कोई जवाब नहीं दिया तो, उस नौजवान ने अनमने भाव से कहा, ‘‘असल में, मैं इस गांव के लिए नया हूं. वहां मेरे रिश्तेदार रहते हैं, मुझे उन के घर जाना है. चूंकि मैं वहां पहली बार जा रहा हूं, इसलिए मुझे उन के घर के बारे में जानकारी नहीं है.

‘‘बाकी अगर आप की कुछ बोलने की इच्छा नहीं है, तो कोई बात नहीं. केवल उन के घर के बारे में ही बता दीजिए,’’ कह कर उस नौजवान ने मोबाइल निकाल कर एक पते के बारे में लता से पूछा.

यह घर तो लता के ठीक सामने वालों का था. बारबार समझाने के बाद भी जब नौजवान के पल्ले कुछ नहीं पड़ा, तो वह झंझला गई.

‘‘अगर आप को कोई तकलीफ न हो, और आप को भी नारायकणकोटी गांव जाना है, तो बुरा न मानें मेरे साथ चलिए. आप जल्दी भी पहुंच जाएंगी और मुझे पता ढूंढ़ने में दिक्कत भी नहीं आएगी. बाकी आप की इच्छा,’’ कह कर वह नौजवान मोटरसाइकिल पर किक मारने लगा.

वह नौजवान यही कोई 24 साल का रहा होगा. लंबा, छरहरा और गठीला बदन. बाल घुंघराले थे. बात करने के सलीके से ऐसा लग रहा था कि वह ठीकठाक पढ़ालिखा भी है. चेहरे पर मासूमियत टपक रही थी.

कुछ सोच कर लता ने अपने दोनों बैग संभाले और किसी तरह वह मोटरसाइकिल पर बैठ गई. कुछ देर की खामोशी के बाद दोनों में औपचारिक बातें शुरू हुईं, जिस का सार यह था कि उस नौजवान का नाम यशवंत है, जो एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. कुछ दिन की छुट्टियां बिताने के लिए वह इस गांव में जा रहा था.

अपने घर के निकट आते ही लता ने यशवंत को रुकने का इशारा किया. मोटरसाइकिल से उतर कर यशवंत ने लता के बैग उतारे और उस के घर के अहाते में रख दिए.

यशवंत का शुक्रिया अदा करते हुए लता ने उसे सामने वाले घर की ओर बढ़ने के लिए इशारा किया.

लता ने छगन को खाना खिलाया, जो भोजन कर के दोबारा अपनी ड्यूटी पर लौट गया.

कुछ देर के बाद लता कपड़े धो कर सुखाने के लिए छत पर गई. उस ने देखा कि सामने वाली छत पर यशवंत फोन पर किसी से बतिया रहा था.

लता को छत पर आता देख यशवंत ने तत्काल फोन पर बात करना बंद कर दिया और मुसकराते हुए लता की ओर देखने लगा.

जवाब में लता भी अपना निचला होंठ काट कर मुसकराने लगी. दोनों में कुछ बातें हुईं.

लता अब यशवंत के बारे में ही सोचने लगी थी. चंद दिनों में ही वे दोनों एकदूसरे के इश्क में पड़ गए. घंटों मोबाइल पर दोनों की चैटिंग होने लगी, यहां तक कि वीडियो काल के जरीए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए.

एक दिन दोपहर को छगन के ड्यूटी पर जाने के बाद लता ने यशवंत को घर आने का न्योता दे दिया. गरमी के मारे बुरा हाल था. लोग अमूमन घर में ही पंखे या कूलर की हवा ले रहे थे.

यशवंत ने तिरछी निगाहों से रास्ते के दोनों किनारों पर देखा, कोई भी नहीं था. उस ने दबे पैर लता के घर का दरवाजा खोला और अंदर आ कर कुंडी चढ़ा दी.

लता इस पल का कई दिन से इंतजार कर रही थी. उस ने गुलाबी रंग का पटियाला सूट पहना था. अभीअभी वह नहा कर बाहर आई थी. बाल खुशबूदार तेल से महक रहे थे.

यशवंत लता के बेहद करीब आ गया. इतना कि दोनों की सांसें एकदूसरे की सांसों से टकराने लगीं.

यशवंत ने लता को अपनी बांहों में ले लिया. एक आह के साथ लता यशवंत के चौड़े सीने से सट गई. दोनों की सांसें अब धौंकनी की तरह चल रही थीं.

यशवंत ने लता को उठा कर खाट पर पटक दिया और कुछ देर के लिए 2 जिस्म एक हो गए. सांसों ने रफ्तार पकड़ ली. कुछ देर बाद वे दोनों निढाल हो कर एकदूसरे की बांहों में सुस्ताने लगे.

‘‘बाबू, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता. छगन की कमाई से घर नहीं चलता. शादी के बाद से आज तक ढंग का सूट तक नहीं दिला पाया. कहीं घुमाने के लिए भी नहीं ले जाता. इस गंवार के साथ और नहीं रहा जाता,’’ कह कर लता यशवंत के सीने पर फैले बालों के साथ खेलने लगी.

‘‘पगली, अभी थोड़ा और समय दे दे. हम हमेशा के लिए इस गांव से दूर चले जाएंगे. मैं ने घर में बात कर ली है. हम दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे और मेरी कंपनी में तुम्हारे लिए एक बेहतर नौकरी भी है. इस घर में तुम्हारा रहना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. हम जल्दी यहां से निकल जाएंगे,’’ कह कर यशवंत लता के गालों को चूमने लगा.

इस के बाद बातों का सिलसिला कुछ देर तक चला. यशवंत कपड़े पहन कर बाहर निकल गया. लता को कई सालों बाद ऐसा प्यार मिला था. यशवंत के साथ कितना खुश रहेगी वह. दोनों ड्यूटी के बाद सैरसपाटे को निकलेंगे. बढि़या होटल में खाना खाएंगे. प्यार में अंधी हो चुकी लता को अब उसे टूट कर चाहने वाले छगन में कई बुराइयां दिखाई देने लगीं.

यशवंत 15 दिन गांव में रहा. इस दौरान उन दोनों के बीच कई बार जिस्मानी रिश्ता भी बना. एक दिन यशवंत लता से जल्दी शादी करने का वादा कर के वापस चला गया. उस के जाते ही लता का दिल घर के किसी भी काम में नहीं लग रहा था. छगन से भी वह कई बार बिना वजह ही बातबात पर झगड़ने लगी थी.

समय मिलते ही आएदिन यशवंत और लता घंटों फोन पर चिपके रहते थे. हवस में पागल हो चुकी लता को यशवंत कई बार शहर के होटलों में मिलने लगा था और वह लता के लिए खूबसूरत सूटसलवार और सिंगार का दूसरा सामान भी ले आता था. लता काफी खुश थी.

काफी समय गुजरने के बाद भी जब यशवंत शादी के नाम पर केवल बहाने बनाने लगा, तो लता को कुछ शक होने लगा. जब लता उस से शादी की बात करती, तो वह कहता कि अभी पैसे जोड़ रहा है. शहर में एक बढि़या सा घर भी तो बनाना है.

जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा, तो एक दिन उस ने यशवंत से झूठ कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. पहले तो यशवंत झल्ला गया, फिर उस ने बच्चा गिराने की सलाह दी, जिसे लता ने मानने से मना कर दिया.

अब लता को भी लगने लगा था कि यशवंत ने उसे बेवकूफ बना दिया है. थकहार कर उस ने यशवंत को डराने के मकसद से कड़े शब्दों में कहा कि अगर वह उस से शादी नहीं करेगा, तो वह पुलिस में उस की शिकायत दर्ज करेगी.

पुलिस का नाम सुन कर पहले तो यशवंत डर गया. फिर उस ने हालात संभालते हुए कहा कि वह लता को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है. अगर उसे थोड़ा भी शक है, तो कल वह उस से मिलने शहर आ जाए. फिर वहीं से कहीं दूर भाग कर साथ रहेंगे.

यशवंत ने लता को समझाया कि अगर घर में कुछ गहने या पैसे हैं, तो वे भी उठा कर अपने साथ ले आए, भविष्य में न जाने कैसे बुरे हालात बन जाएं, इसलिए गहने और पैसे उन के सुखद भविष्य के कुछ काम तो आएंगे.

लता अपने मांबाप के दिए कुछ गहने और छगन की जेब से चुरा कर जमा किए गए 20,000 रुपए एक बैग में रख कर शहर आ गई.

शहर में पहले से ही यशवंत लता का इंतजार कर रहा था. लता के आते ही उस ने उसे मोटरसाइकिल पर बिठाया और हाईवे से आगे बढ़ने लगा. लता उस से सट कर बैठ गई. आखिरकार उसे उस का अनमोल प्यार जो मिल गया था.

यशवंत की मोटरसाइकिल तेज रफ्तार से शहर से दूसरे रास्ते पर बढ़ने लगी. ओवर स्पीड की वजह से सामने से तेज रफ्तार से आ रहे एक ट्रक से बचने के चक्कर में मोटरसाइकिल सड़क के किनारे बनी रेलिंग से जा टकराई. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि देखते ही देखते मोटरसाइकिल के परखच्चे उड़ गए.

यशवंत मोटरसाइकिल से छिटक कर खेतों में गिर गया. उस के एक पैर में चोट आ गई थी. लता निढाल हो कर सड़क के दूसरे किनारे पड़ी थी. उस के माथे, पैरों और नथुनों से खून फूट पड़ा था.

लता को उसी हालत में छोड़ कर सड़क किनारे गिरे लता के बैग को उठा कर यशवंत लड़खड़ाते कदमों से खेतों को पार करते हुए भाग चुका था.

इस भयंकर हादसे के बाद वहां पर लोग जमा होने लगे और लता को उठा कर नजदीक के एक अस्पताल में दाखिल कर के उस के पति को बता दिया था.

लता की सोच भंग हुई. उस के जेहन में बारबार धोखेबाज यशवंत का चेहरा घूम रहा था. उस की मुट्ठियां भिंचने लगी थीं. आंखों में गुस्से का लावा जमने लगा था. वह उठने की भरसक कोशिश करने लगी, लेकिन उठ नहीं  पाई.

छगन ने लता के होंठों से जूस का गिलास लगा दिया और बोला, ‘‘अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता, मैं किस के सहारे जीता, किस के लिए नौकरी करता. मैं ने पाईपाई जोड़ कर तुम्हारे लिए सोने की नथ बनवाने को दी थी… तुम्हें नथ बहुत पसंद है न…’’ कहतेकहते उस की आंखों से आंसू निकल आए.

लता के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. वह यशवंत की हवस और छगन के प्यार को तोल रही थी. उस ने इधरउधर देखा. आसपास न तो उस का मोबाइल नजर आ रहा था और न ही उस का कीमती बैग.

पूछने पर पता चला कि कुछ स्थानीय लोगों ने लता को अस्पताल पहुंचा कर उस के पति को बुलाया था. मतलब, यशवंत ने उसे धोखे में रखा. उस के गहने और पैसे यशवंत ले गया.

लता उसी हालत में अपने पति छगन से लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उसे अपने किए पर पछतावा था, जिस का प्रायश्चित्त भी तो करना था. ठीक होने के बाद वह भगोड़े यशवंत से तो निबटेगी ही.

‘‘मुझे माफ कर देना,’’ कह कर लता रोने लगी. आज लता को पता चल चुका था कि गरीबी के दौर में भी उस के हर नखरे उठाने के बाद भी खुश रहने वाला छगन असलियत में कितना महान है. पत्नी का असल हमदर्द उस का पति ही होता है. उसे अपने गंदे शरीर से घिन सी आने लगी थी.

लता समझ चुकी थी कि प्रेम का मूल हवस नहीं है, बल्कि साथी के प्रति समर्पण, विश्वास और अपनों की खुशी है.

अविनाश साबले की दिलचस्प कहानी

हाल ही में हुए पैरिस ओलिंपिक, 2024 खेलों में भारत ने कुल 6 मैडल जीते, पर कुछ इवैंट्स में भारतीय खिलाडि़यों ने इतिहास रच दिया. आज ऐसे ही एक होनहार खिलाड़ी की बात करते हैं, जिन का नाम अविनाश साबले है. 3000 मीटर की स्टीपलचेज यानी बाधा दौड़ में वे ऐसे पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं, जिन्होंने फाइनल मुकाबले में अपनी जगह बनाई.

स्टीपलचेज एक ऐसी प्रतियोगिता होती है, जिस में खिलाडि़यों को ट्रैक पर आने वाली बाधाओं को पार करना होता है और पानी में छलांग लगानी होती है.

13 सितंबर, 1994 को जनमे अविनाश साबले महाराष्ट्र के बीड जिले में अष्टि तालुका के एक छोटे से गांव मंडवा में पलेबढ़े हैं और पैरिस ओलिंपिक तक पहुंच कर उन्होंने अपने गांव और जिले के साथसाथ पूरे देश का नाम रोशन किया है.

अविनाश साबले ने बताया कि उन का एक सामान्य परिवार में जन्म हुआ है, लेकिन ईंटभट्ठे में मजदूरी करने वाले उन के मातापिता ने हमेशा से अपने बच्चों को बेहतर तालीम दिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद माना है.

3 भाईबहनों में अविनाश बचपन से ही दौड़ में नंबर वन रहे हैं. यही नहीं, 5-6 साल की उम्र में ही अपने मातापिता की मुश्किलों को देख कर उन्होंने तय कर लिया था कि वे अपने घरपरिवार का संबल बनेंगे.

अविनाश साबले की मां गांव के ईंटभट्ठे पर मजदूरी करती थीं और खाना बना कर अविनाश के पिता के साथ काम पर चली जाती थीं. एक दफा सुबह घर से निकलने के बाद वे सब लोग उन्हें सिर्फ रात में ही मिल पाते थे. उन्हें ऐसे काम करते हुए देख कर अविनाश को उन की कड़ी मेहनत का अंदाजा नहीं था. यहीं से अविनाश को यह प्रेरणा मिली कि उन्हें कुछ बहुत बड़ा काम करना है.

अविनाश साबले के घर से स्कूल की दूरी महज 6 किलोमीटर थी. ऐसे में वे दौड़ कर स्कूल पहुंच जाते थे और धीरेधीरे दौड़ना उसे अच्छा लगने लगा. अविनाश को दौड़ते हुए स्कूल जाते देख कर मास्टरों ने उन की रेस उन से बड़ी क्लास के छात्र के साथ कराई, जिस में अविनाश के जीतने के बाद मास्टरों ने उन की इस प्रतिभा पर भी ध्यान देना शुरू किया.

इस के बाद अविनाश साबले को 500 मीटर की रेस में ले जाया गया. उस समय वे प्राइमरी स्कूल के छात्र थे और उन की उम्र तब 9 साल ही थी. इस रेस को ले कर उन्होंने कोई तैयारी भी नहीं की थी. मगर अविनाश ने मास्टरों और स्कूल को निराश नहीं किया. मजेदार बात तो यह है कि उस दिन रेस के साथसाथ अविनाश ने 100 रुपए का नकद इनाम भी जीता था, जिसे याद कर के वे आज भी खुश हो जाते हैं.

इस के बाद अविनाश साबले को स्कूल के मास्टर 2 साल धनोरा मैराथन ले गए थे. इस में भी अविनाश दोनों बार रेस में जीते. इस कारण से भी अविनाश को शिक्षकों का विशेष स्नेह मिलता था. 12वीं क्लास पास करने के बाद अविनाश सेना भरती परीक्षा में सफल हुए और पैरिस ओलिंपिक के बाद तो चर्चित चेहरे बन गए हैं.

याद रहे कि कभी अविनाश साबले बीड जिले के मंडवा गांव में राजमिस्त्री का काम किया करते थे. वहां से निकल कर आज वे भारत के सब से बेहतरीन लंबी दूरी के धावक बन कर सामने आए हैं.

साल 2017 में एक दौड़ के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार ने अविनाश साबले की तेज रफ्तार को देखा और फिर उन्हें स्टीपलचेज वर्ग में दौड़ने की सलाह दी. बता दें कि साल 2017 के फैडरेशन कप में अविनाश साबले 5वें नंबर पर रहे  थे और फिर चेन्नई में ओपन नैशनल में स्टीपलचेज नैशनल रिकौर्ड से सिर्फ 9 सैकंड दूर रहे थे.

इस के बाद भुवनेश्वर में आयोजित साल 2018 में ओपन नैशनल में अविनाश साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज में 8:29.88 का समय लेते हुए 30 साल के नैशनल रिकौर्ड को 0.12 सैकंड से तोड़ कर इतिहास रच दिया था.

मैं 22 साल की लड़की हूं, एक बार अबौर्शन करा चुकी हूं, मां को शक हो गया, क्या करूं?

सावल

मैं 22 साल की लड़की हूं. मैं पिछले 2 साल से रिलेशनशिप में हूं. लड़का 25 साल का है. हम दोनों में बहुत बार जिस्मानी रिश्ता बन चुका है. मैं एक बार बच्चा भी गिरवा चुकी हूं. पर अब मेरी मां को शक होने लगा है. वे मेरे शरीर को ले कर टोकती रहती हैं और पूछती हैं कि अगर तेरी जिंदगी में कोई लड़का है तो बता दे, हम वहीं तेरी शादी करा देंगे, पर मुझे डर लगता है.

साथ ही, लड़का अभी कुछ कमाधमा नहीं रहा है, तो मैं कैसे बता दूं उस के बारे में. लड़का भी बोल रहा है कि अभी घर पर कुछ मत बताना. इस बात से मुझे तनाव रहने लगा है. मेरी इस समस्या का हल कैसे निकलेगा? 

जवाब

आप मां को सच बता क्यों नहीं देती हैं, क्योंकि प्यार में आप काफी आगे बढ़ चुकी हैं और मौजमस्ती भी खूब कर चुकी हैं. अब जरा सीरियस हो जाइए. अपने आशिक को कहिए कि वह कोई नौकरी या कामधंधा शुरू करे, ताकि आप दोनों शादी कर के घरगृहस्थी बसा सकें.

वह लड़का क्यों चाहता है कि घर वालों से बात छिपा कर रखी जाए, जबकि वे उस से आप की शादी करवाने के लिए तैयार हैं? लड़के की नीयत बदले, इस से पहले ही कोशिश करिए कि वह आप के घर वालों से मिल ले और आइंदा सैक्स के वक्त कंडोम का इस्तेमाल करें. बारबार की प्रेग्नेंसी आप को हर तरह से नुकसान ही पहुंचाएगी.

सेक्स को बनाएं मजेदार, ऐसे करें कंडोम का इस्तेमाल

सबलोक क्लिनिक के यौन रोग विशेषज्ञ डाक्टर बिनोद सबलोक बताते हैं कि चाहे मर्द हो या औरत एचआईवी समेत यौन संक्रामक रोगों को रोकने के लिए कंडोम एक आसान और बेहतर तरीका है. कंडोम न सिर्फ असुरक्षित गर्भधारण से, बल्कि यौन रोगों से भी शरीर की हिफाजत करता है.

शर्म क्यों

बाजार में आसानी से मिलने वाला कंडोम खरीदना अब शर्म वाली बात भी नहीं रही है. कंडोम खरीदने के लिए डाक्टर की परची की जरूरत भी नहीं होती है. इस की कीमत भी बहुत कम होती है. कई सरकारी व गैरसरकारी योजनाओं के तहत कंडोम मुफ्त में भी बांटे जाते हैं.

अब तो अलगअलग फ्लेवर व कई बनावटों में मिलने वाले कंडोम सेक्स संबंध बनाने के दौरान भरपूर मजा भी देते हैं.

कंडोम का इस्तेमाल कर खुले दिमाग से सेक्स का मजा लिया जा सकता है. अब तो बाजार में ऐसे भी कंडोम हैं जिन से लंबे समय तक सेक्स किया जा सकता है.

बेहतर साथी है कंडोम

कंडोम आप के लिए इस तरह एक बेहतर साथी साबित हो सकता है:

* यह बच्चा ठहरने से रोकने का सब से आसान और महफूज तरीका है.

* कंडोम का इस्तेमाल बिना किसी झिझक के कर सकते हैं.

* कोई साइड इफैक्ट नहीं होता.

* कंडोम यौन रोगों से बचाव में कारगर हथियार है.

ऐसे बढ़ाएं रोमांच

बाजार में वनीला, स्ट्राबेरी, केला, चौकलेट, बबलगम, कौफी वगैरह फ्लेवर में भी कंडोम मिलते हैं. मुंह से सेक्स के शौकीनों के लिए ये कंडोम सेक्स के दौरान ज्यादा मजा देते हैं और कोई बीमारी भी नहीं होती है.

जो लोग सेक्स का मजा लंबे समय यानी देर तक नहीं उठा पाते हैं उन के लिए लौंग लास्टिंग कंडोम इस्तेमाल करना बेहतर रहेगा.

सेक्स बनाएं मजेदार

अगर आप सेक्स का मजा उठाना चाहते हैं तो बाजार में डौटेड कंडोम भी आते हैं. डौटेड कंडोम में अपनी साथी का जोश बढ़ाने के लिए इस की बाहरी सतह पर बिंदीनुमा छोटेछोटे उभरे हुए दाने होते हैं. यह चिकनाई वाला होता है.

इन बातों पर ध्यान दें

* कंडोम खरीदते समय उस की ऐक्सपायरी डेट जरूर देख लें.

* ज्यादा तेजी से सेक्स का मजा उठाते समय कंडोम फट भी सकता है. इस का ध्यान रखें और कंडोम को तुरंत बदल दें.

* इस्तेमाल करने से पहले कंडोम के सामने वाले भाग को चुटकी से दबा कर हवा को बाहर निकाल दें, फिर धीरेधीरे अंग पर चढ़ाएं.

* कंडोम खरीदते समय दुकानदार से खुल कर बात करें. बात करते समय जरा भी न शरमाएं.

* सेक्स कुदरत का दिया एक अनमोल तोहफा है. इस का जम कर मजा उठाएं, पर सावधानी और एहतियात भी बरतें.

राख अभी ठंडी नहीं हुई : जब लक्ष्मी की शादी किशन से हुई

लक्ष्मी के पति लक्ष्मण की चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि वह अपने प्रेमी किशन के घर में बैठ गई. सारी जातबिरादरी में उस की थूथू हो रही थी. लक्ष्मी की गोद में अभी सालभर की बेटी थी. एक बूढ़ी सास थी. परिवार में और कोई नहीं था. वह अपनी बेटी को भी साथ ले गई थी.

दरअसल, लक्ष्मी और किशन के बीच इश्कबाजी बहुत पहले से चल रही थी. जब वह लक्ष्मण से ब्याह कर आई थी, उस के पहले से ही यह सब चल रहा था. वह लक्ष्मण से शादी नहीं करना चाहती थी. एक तो लक्ष्मण पैसे वाला नहीं था, दूसरे वह शादी किशन से करना चाहती थी. वह दलित था, मगर पंच था और उस ने काफी पैसा बना लिया था. मगर मांबाप के दबाव के चलते लक्ष्मी को लक्ष्मण, जो जाति से गूजर था, के साथ शादी करनी पड़ी.

लक्ष्मी तो शादी के बाद से ही किशन के घर बैठना चाहती थी, मगर समाज के चलते वह ऐसा नहीं कर पाई थी. पर उस ने किशन से मेलजोल बनाए रखा था.

शादी की शुरुआत में तो वे दोनों चोरीछिपे मिला करते थे. बिरादरी के लोगों ने उन को पकड़ भी लिया था, मगर लक्ष्मी ने इस की जरा भी परवाह नहीं की थी.

जब लक्ष्मी ज्यादा बदनाम हो गई, तब भी उस ने किशन को नहीं छोड़ा. लक्ष्मण लक्ष्मी का सात फेरे वाला पति जरूर था, मगर लोगों की निगाह में असली पति किशन था.

जब शादी के 5 साल तक लक्ष्मी के कोई औलाद नहीं हुई, तब लक्ष्मण को बस्ती व बिरादरी के लोगों ने नामर्द मान लिया था. शादी के 6 साल बाद जब लक्ष्मी ने एक लड़की को जन्म दिया, तब समाज वालों ने इसे किशन की औलाद ही बताया था.

फिर भी लक्ष्मी लक्ष्मण की परवाह नहीं करती थी, इसलिए दोनों में आएदिन झड़पें होती रहती थीं. अब तो किशन भी उन के घर खुलेआम आनेजाने लगा था.

लक्ष्मण कुछ ज्यादा कहता, तब लक्ष्मी भी कहती थी, ‘‘ज्यादा मर्दपना मत दिखा, नहीं तो मैं किशन के घर बैठ जाऊंगी. तू मुझे ब्याह कर के ले तो आया हैं, मगर दिया क्या है आज तक? कभीकभी तो मैं एकएक चीज के लिए तरस जाती हूं. किशन कम से कम मेरी मांगी हुई चीजें ला कर तो देता है. तू भी मेरी हर मांग पूरी कर दिया कर. फिर मैं किशन को छोड़ दूंगी.’’

यहीं पर लक्ष्मण कमजोर पड़ जाता. बड़ी मुश्किल से मेहनतमजदूरी कर के वह परिवार का पेट भरता था. ऐसे में उस की मांग कहां से पूरी करे. स्त्रीहठ के आगे वह हार जाता था. अंदर ही अंदर वह कुढ़ता रहता था मगर लक्ष्मी से कुछ नहीं कहता था. मुंहफट औरत जो थी. उस की जरूरतें वह कहां से पूरी कर पाता, इसलिए किशन उस के घर में घंटों बैठा रहता था.

रहा सवाल लक्ष्मी की सास का, तो वह भी नहीं चाहती थी कि किशन उस के घर में आए.

एक दिन उस की सास ने कह भी दिया था, ‘‘बहू, पराए मर्द के साथ हंसहंस कर बातें करना, घर में घंटों बिठा कर रखना एक शादीशुदा औरत को शोभा नहीं देता है.’’

सास का इतना कहना था कि लक्ष्मी आगबबूला हो गई और बोली, ‘‘बुढि़या, ज्यादा उपदेश मत ?ाड़. चुपचाप पड़ी रह. तेरा बेटा जब मेरी मांगें पूरी नहीं कर सकता है, तब क्यों की तू ने उस के साथ मेरी शादी? अगर तेरा बेटा मेरी मांगें पूरी कर दे, तब मैं छोड़ दूंगी उसे.

‘‘एक तो मैं तेरे बेटे के साथ फेरे नहीं लेना चाहती थी, मगर मेरे मातापिता ने दबाव डाल कर तेरे बेटे से फेरे करवा दिए. अब चुपचाप घर में बैठी रह. अपनी गजभर की जबान मत चलाना, वरना मैं किशन के घर में बैठने में जरा भी देर नहीं करूंगी.’’

उस दिन लक्ष्मी ने अपनी सास को ऐसी कड़वी दवा पिलाई कि वह फिर कुछ न बोल सकी.

किशन अब बेझिझिक लक्ष्मी के घर आने लगा. लक्ष्मी की हर मांग वह पूरी करता रहा. वह बनसंवर कर रहने लगी. कभीकभी वह किशन के साथ मेला और बाजार भी जाने लगी.

शुरूशुरू में तो बस्ती वालों ने भी उन पर खूब उंगलियां उठाईं, पर बाद में वे भी ठंडे पड़ गए. बस्ती वाले अब कहते थे कि लक्ष्मी के एक नहीं, बल्कि 2-2 पति हैं. फेरे वाला असली पति और बिना फेरे वाला दूसरा पति, मगर बिना फेरे वाला ही उस का असली पति बना हुआ था.

इस तरह दिन बीत रहे थे. जब शादी के 5 साल बाद लक्ष्मी पेट से हुई तब उस का बां?ापन तो दूर हुआ, मगर एक कलंक भी लग गया. लक्ष्मी के पेट में जो बच्चा पल रहा था, वह लक्ष्मण का नहीं, किशन का था. मगर लक्ष्मी जानती थी कि वह बच्चा लक्ष्मण का ही है.

बस्ती वालों ने एक यही रट पकड़ रखी थी कि यह बच्चा किशन का ही है, मगर जहर का यह घूंट उसे पीना था. बस्ती वाले कुछ भी कहें, मगर सास को खेलने के लिए खिलौना मिल गया, लक्ष्मण पिता बन गया और नामर्दी से उस का पीछा छूट गया.

बस्ती वाले और रिश्तेदार सब लक्ष्मण को ही कोसते कि तू कैसा मर्द है, जो अपनी जोरू को किशन के पास जाने से रोक नहीं सकता. घर में आ कर किशन तेरी जोरू पर डोरे डाल रहा है, फिर भी तू नामर्द बना हुआ है. निकाल क्यों नहीं देता उसे. लक्ष्मण को तू अपनी लुगाई का खसम नहीं लगता है, बल्कि तेरी जोरू का खसम किशन लगता है.

लक्ष्मण इस तरह के न जाने कितने लांछन बस्ती वालों और रिश्तेदारों के मुंह से सुनता था. मगर वह एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता, क्योंकि लक्ष्मी किसी का कहना नहीं मानती थी.

कई महीनों से एक पुल बन रहा था. वहां लक्ष्मण भी मजदूरी कर रहा था. मगर अचानक एक दिन पुल का एक हिस्सा गिर गया. 6 मजदूर उस में दब गए. उन में लक्ष्मण भी था. हाहाकार

मच गया. पुलिस तत्काल वहां आ गई. पत्रकार उस पुल की क्वालिटी पर सवाल उठा कर ठेकेदार को घेरने लगे और फिर गुस्साई भीड़ वहां जमा हो गई.

पुल का टूटा मलबा उठाया गया. उन 6 लाशों का पुलिस ने पोस्टमार्टम कराया और उन के परिवारों को लाशें सौंप दीं.

जब लक्ष्मण की लाश उस की ?ोंपड़ी में लाई गई, तब उस की मां पछाड़ें मार कर रोने लगी. लक्ष्मी लाश पर रोई जरूर, मगर केवल ऊपरी मन से. लोकलाज के लिए उस की आंखों में आंसू जरूर थे, मगर वह अब खुद को आजाद मान रही थी.

समाज की निगाहों में लक्ष्मी विधवा जरूर हो गई थी, मगर वह अपने को विधवा कहां मान रही थी. पति नाम का जो सामाजिक खूंटा था, उस से वह छुटकारा पा गई थी.

लक्ष्मण तो मिट्टी में समा गया, मगर समाज के रीतिरिवाज के मुताबिक तेरहवीं की रस्म भी निकली थी. समाज के लोग जमा हुए. रसोई क्याक्या बनाई जाए. मिठाई कौन सी बनाई जाए, यह सब लक्ष्मण की मां से पूछा गया, तब उस ने अपनी बहू से पूछा, ‘‘बहू, कितना पैसा है तेरे पास.’’

मुंहफट लक्ष्मी बोली, ‘‘तुम तो ऐसे पूछ रही हो सासू मां जैसे तुम्हारा बेटा मुझे कारू का खजाना दे गया है.’’

‘‘तेरा क्या मतलब है?’’ सास जरा तीखी आवाज में बोली.

‘‘मतलब यह है सासू मां, मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है.’’

‘‘मगर, रस्में तो पूरी करनी पड़ेंगी.’’

‘‘तुम करो, वह तुम्हारा बेटा था,’’ लक्ष्मी ने जवाब दिया.

‘‘जैसे तेरा कुछ भी नहीं लगता था वह?’’ सवाल करते हुए सास बोली, ‘‘करना तो पड़ेगा. बिरादरी में नाक कटवानी है क्या?’’

‘‘देखो अम्मां, तुम जानो और तुम्हारा काम जाने. मैं ने पहले ही कह दिया है कि मेरे पास देने को फूटी कौड़ी नहीं है,’’ इनकार करते हुए लक्ष्मी बोली.

‘‘ऐसे इनकार करने से काम कैसे चलेगा. तेरहवीं तो करनी पड़ेगी. चाहे तू इस के लिए अपने गहने बेच दे,’’ सास बोली.

‘‘मैं गहने क्यों बेचूं, बेटा आप का भी था. आप अपने गहने बेच कर बेटे की तेरहवीं कर दीजिए,’’ उलटे गले पड़ते हुए लक्ष्मी बोली.

सासबहू के बीच लड़ाई सी छिड़ गई. दोनों इसी बात पर अड़ी रहीं. बिरादरी वालों ने देखा, दोनों जानीदुश्मन की तरह अपनीअपनी बात पर अड़ी हुई थीं. लोगों के समझाने का कोई असर

भी नहीं पड़ रहा है, तब वे ‘तुम दोनों मिल कर फैसला कर लेना’ कह कर चले गए.

सास ने कभी अपनी बहू के सामने मुंह नहीं खोला. लक्ष्मी भी कम नहीं पड़ी. एक का बेटा था, तो दूसरे का पति, मगर किसी को लक्ष्मण के मरने का गम नहीं था. तब लक्ष्मी ने एक फैसला लिया. कुछ कपड़े बैग में रखे, साथ में गहने भी और अपनी बच्ची को उठा कर वह बोली, ‘‘अम्मांजी, मैं जा रही हूं.’’

‘‘कहां जा रही है?’’ सास ने जरा गुस्से से पूछा.

‘‘मैं किशन के घर में बैठ रही हूं. आज से मेरा वही सबकुछ है.’’

‘‘बेहया, बेशरम, इतनी भी शर्म नहीं है, अपने खसम की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई और तू किशन के घर बैठने जा रही है. बिरादरी वाले क्या कहेंगे?’’ सास गुस्से से उबल पड़ी थी. आगे फिर उसी गुस्से से बोली, ‘‘जब से इस घर में आई है, न बेटे को सुख से जीने दिया और न मुझे. न जाने किस जनम का बैर निकाल रही?है मुझ से…’’

सास का बड़बड़ाना जारी था. मगर लक्ष्मी को न रुकना था, न वह रुकी. चुपचाप झोंपड़ी से वह बाहर चली गई. सारी बस्ती ने उसे जाते देखा, मगर कोई कुछ भी नहीं बोला.

प्यार की पहली किस्त : अरबपति रहमान की कहानी

बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झांका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं. तुम्हारी मजबूरी सुलतान. सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर.

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