औक्सफोर्ड से पढ़ी दिल्ली की लड़की कैसे पहुंची सीएम की कुर्सी तक, आतिशी की कहानी

अब से दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी होंगी. खुद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद के लिए आतिशी के नाम का प्रस्ताव दिया है. विधायकों ने भी आतिशी के नाम का समर्थन किया है. जिस दिन से अरविंद केजरीवाल ने ये बयान दिया था कि मैं जनता के बीच में जाऊंगा..गली-गली में जाऊंगा..घर-घर जाऊंगा और जब तक जनता अपना फ़ैसला न सुना दे कि केजरीवाल ईमानदार है तब तक मैं सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगातब से दिल्ली के सीएम कौन होंगे इसके कयास लगाएं जा रहे थे और अब सबको अपना नया सीएम मिल गई है. लेकिन कैसे आतिशी राजनीति तक पहुंची और अरविंद केजरीवाल से मिली. दिल्ली की लड़की आतिशी की कहानी सभी जानना चाहते है.

 

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आतिशी बनीं दिल्ली की तीसरी महिला सीएम

आपको बता दें, कि दिल्ली में अभी तक सात मुख्यमंत्री रहे है. जिसमें से दो महिला सीएम ने कुर्सी संभाली है. आतिशी ऐसी तीसरी महिला होंगी जो दिल्ली की सीएम की कुर्सी पर बैठेंगी और आठवीं सीएम बनेंगी जो दिल्ली का कार्यकाल संभालेंगी.

इनसे पहले भाजपा की ओर से सुषमा स्वराज और कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. सबसे लंबा कार्यकाल शीला दीक्षित का रहा है.

सुषमा स्वराज- 12 अक्टूबर 1998 – 3 दिसम्बर 1998 (52 दिन तक दिल्ली की सीएम रहीं)

शीला दीक्षित – नई दिल्ली सीट- 3 दिसम्बर 1998 – 28 दिसम्बर 2013 (15 साल, 25 दिन तक दिल्ली की सीएम रहीं)

आतिशी की पढ़ाई और राजनीति

आतिशी 8 जून 1981 में दिल्ली में जन्मीं है. इनकी स्कूली पढ़ाई नई दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल में हुई हैं. फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कौलेज से साल 2001 में ग्रैजुएशन की है. फिर आगे की पढ़ाई के लिए आतिशी इंग्लैंड चली गई. आतिशी ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की स्टीजिज की. इशके बाद आतिशी पढ़ाई करके भारत वापस लौटी, कुछ दिन आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल में काम किया. इतना ही नहीं, एक गैर-सरकारी संगठन संभावना इंस्टीट्यूट औफ पब्लिक पौलिसी के साथ भी जुड़ी रहीं. इतनी पढ़ाई करने बाद आतिशी को स्कूलों और संगठनों से जुड़ना पड़ा. लेकिन किसे पता था कि दिल्ली विश्व विद्यालय के प्रोफेसर विजय सिंह और तृप्ता सिंह के घर की लड़की एक दिन दिल्ली की सीएम पद पर बैठेंगी और राजनीति में अपनी वर्चस्व अपनाएंगी.

राजनीति में कब और कैसें पहुंची आतिशी

राजनीतिक सफर की बात करें तो आम आदमी पार्टी की स्थापना के समय से ही आतिशी इस पार्टी से जुड़ गई थी. आम आदमी पार्टी ने 2013 में पहली बार दिल्ली के विधानसभा से चुनाव लड़ा था और तभी से आतिशी पार्टी की घोषणा पत्र मसौदा समिति की प्रमुख सदस्य थीं. आतिशी आप प्रवक्ता भी रहीं. उन्होंने जुलाई 2015 से अप्रैल 2018 तक दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया के सलाहकार के तौर पर काम किया और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का लेवल सुधारने के लिए कई योजनाओं पर काम किया.

पार्टी के गठन के शुरुआती दौर में इसकी नीतियों को आकार देने में भी आतिशी की अहम भूमिका रही है. बाद में साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आतिशी को पूर्वी दिल्ली से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. मुकाबला बीजेपी के प्रत्याशी गौतम गंभीर से था. चुनाव में आतिशी गौतम गंभीर से 4.77 लाख मतों से हार गईं थी.

साल 2020 के दिल्ली चुनाव में उन्होंने कालकाजी क्षेत्र से चुनाव लड़ा और बीजेपी प्रत्याशी धर्मवीर सिंह को 11 हजार से अधिक वोट से मात दी. इसके बाद से ही आतिशी का सियासी ग्राफ तेजी से बढ़ा. 2020 के चुनाव के बाद उन्हें आम आदमी पार्टी की गोवा इकाई का प्रभारी बनाया गया.

केजरीवाल ने गिरफ्तारी का संकट मंडराने से पहले अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया और 9 मार्च 2023 को आतिशी को कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. दिल्ली शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आतिशी की भूमिका और भी जरूरी हो गई. केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान के बाद से ही आतिशी के नाम की चर्चा तेज थी और आज विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग गई और वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गई.

आतिशी के नाम को लेकर हुई थी कंट्रोवर्सी

आपको बता दें कि सबसे पहले आतिशी सरनेम में सिंह का यूज करती थीं. उनके पिता विजय सिंह है. इसलिए वे अपने नाम के पीछे सिंह लगाती थी. बाद में लेफ्ट आइडियोलौजी वाले पैरेंट्स के चलते उन्होंने नया सरनेम यूज करना शुरू किया है, जो कि मार्क्स और लेनिन के नाम से मिलकर बना है. यह था मार्लेना, लेकिन इसे भी बाद में उन्हे हटाना पड़ा. क्योंकि इस सरनेम पर विरोधी दल के लोगों ने उन्हे ईसाई धर्म का कहना शुरु कर दिया. जिसके बाद उन्होंने ये भी हटा दिया.

आतिशी की जिनसे शादी हुई है, वह भी सिंह हैं. ऐसे में उनका नाम आतिशी मार्लेना सिंह भी हुआ. हालांकि, यह नाम भी बहुत दिनों तक नहीं चला. आतिशी को विवाद के चलते मार्लेना सरनेम हटाना पड़ा.

ऐसा कहा जाने लगा कि दिल्ली के कालकाजी में बड़ी संख्या में पंजाबी आबादी रहती है. हो सकता है कि यह उनका रणनीतिक कदम हो, जिसके जरिए वह उस वोटबैंक को साइलेंटली लुभाना चाहती हों. लेकिन मौजूदा समय में वह सिर्फ आतिशी लिखती हैं. नाम के साथ कोई सरनेम यूज नहीं करती हैं.

माता पिता अफजल गुरु के समर्थन में लड़े थे

आतिशी एक बाद तब भी कंटोवर्सी में आई थी जब आतिशी के माता-पिता आतंकी अफजल गुरु को बचाने के लिए लड़े थे. इसी पर हाल में स्वाति मालीवाल ने एक्स पर पोस्ट मे लिखा है, ‘दिल्ली के लिए आज बहुत दुखद दिन है. आज दिल्ली की मुख्यमंत्री एक ऐसी महिला को बनाया जा रहा है जिनके परिवार ने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु को फांसी से बचाने की लंबी लड़ाई लड़ी. उनके माता पिता ने आतंकी अफ़ज़ल गुरु को बचाने के लिए माननीय राष्ट्रपति को दया याचिकाऐं लिखी. उनके हिसाब से अफ़ज़ल गुरु निर्दोष था और उसको राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाया गया था. वैसे तो आतिशी मार्लेना सिर्फ़ ‘Dummy CM’ है, फिर भी ये मुद्दा देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. भगवान दिल्ली की रक्षा करे!’ 

एंटरनटेनमेंट से भरपूर आने वाली है अक्षय की स्काइ फोर्स जैसी और फिल्में, जानें यहां

इन दिनों ओटीटी का क्रेज बढ़ गया है. पब्लिक ओटीटी प्लैटफोर्म ज्यादा देखती है. चाहे घर बैठे या ट्रैवल करते हुए. ओटीटी पर फिल्म और वेब सीरीज के शौकीन बस अब यही जानना चाहते है कि ओटीटी पर जल्द कौन सी फिल्म और वेब सीरीज आने वाली है. जिसमें मनोरंजन का डब्ल डोज होने वाला है. जैसे कि थांगलान और पंचायत तमिल का रीमेक इसी के साथ कुछ इंग्लिश फिल्में भी देखने का मौका मिलेगा. लेकिन इसके अलावा हिंदी मूवी की बात करें तो एंटरटेनमेंट से भरपूर कई फिल्में आने वाली है. जो कि सिनेमा की सभी सीटें भर देंगी.  तो जानिए जल्द आने वाली एंटरटेनमेंट से भरपूर फिल्में.

 

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अक्टूबर महीना फिल्म लवर्स के लिए रोमांचक होने वाला है, क्योंकि इस महीने अलग अलग तरह की कई फिल्में रिलीज़ होने वाली हैं. अपकमिंग रिलीज़ में एक्शन, रोमांस, थ्रिलर और सस्पेंस से भरपूर फिल्में शामिल हैं.

स्काई फोर्स 2

“स्काई फोर्स 2” 2 अक्टूबर, 2024 को पर्दे पर आने वाली है. फिल्म में अक्षय कुमार होंगे, उनके साथ कई ओर एक्टर और एक्ट्रेस देखने को मिलेंगी.

फिल्म की कहानी…

अक्षय कुमार की फ़िल्म ‘स्काई फोर्स’ की कहानी भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 में हुई जंग के बैकग्राउंड पर है. इस फ़िल्म में अक्षय कुमार एयर फ़ोर्स पायलट का रोल अदा करेंगे. इस फ़िल्म में अक्षय कुमार के साथ निमरत कौर, वीर पहाड़िया, और सारा अली खान भी हैं. निरेन भट्ट ने इस फ़िल्म की कहानी लिखी है. अमर कौशिक इसके सहनिर्माता हैं.

जिगरा फिल्म

11 अक्टूबर को, आलिया भट्ट और वेदंग रैना फिल्म “जिगरा” में नज़र आएंगे. इस फिल्म से अपनी अनोखी कहानी और कलाकारों के प्रदर्शन से दर्शकों को एंटरटेन करेंगी.

फिल्म की कहानी…

जिगरा एक बहन की कहानी पर बनीं फिल्म है जिसमें जिगरा’ एक ऐसी बहन है, जो भाई (वेदांग रैना) को मुसीबत में देखकर हथियार तक उठाने में डरती नहीं है. उसका भाई जेल में बंद भाई है और उसे बाहर निकालने के लिए वो अपनी जान पर खेल जाती है.

निकिता रौय एंड द बुक औफ डार्कनेस

एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा “निकिता रौय एंड द बुक औफ़ डार्कनेस” में नज़र आएंगी, जो 23 अक्टूबर को रिलीज़ होने वाली है. फैंस इस अपकमिंग फिल्म में सिन्हा की एक आकर्षक कहानी. जिसमें फूल एंटरटेनमेंट भरा हुआ है. ये फिल्म सोनाक्षी सिन्हा के भाई ‘कुश एस सिन्हा’ के निर्देशन में बनीं फिल्म है. इस फिल्म में सोनाक्षी लीड रोल में है.

इसके अलावा कुछ तमिल फिल्में इंग्लिश फिल्में भी ओटीटी पर आने वाली है. जिन्हे आप सिनेमा न जाकर कहीं भी अपने फोन में देख सकते है.

थलाइवेटियां पलायम (Thalaivettiyaan Paalayam)

पौपुलर वेब शो ‘पंचायत’ का तमिल रीमेक अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम होगा. इस सीरीज में ग्रामीण जीवन और क्षेत्र के आसपास की राजनीतिक झलकियां दिखाई जाएंगी. यह सीरीज 20 सितंबर से प्राइम वीडियो पर रिलीज होगी.

लाल सलाम (Lal Salaam)

रजनीकांत एक्टरर यह फिल्म क्रिकेटरों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिन्हें टैलेंटेड होने के बावजूद टीम से गलत तरीके से बाहर निकाल दिया गया. इसमें विष्णु विशाल, विक्रांत, अनंथिका सानिलकुमार और धन्या बालकृष्ण प्रमुख भूमिकाओं में हैं. फिल्म 20 सितंबर को सन एनएक्सटी पर स्ट्रीम होगी.

थंगालान (Thangalan)

चियान विक्रम की तमिल मूवी कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड्स में रहने वाले लोगों के जीवन पर आधारित है. फिल्म में पार्वती थिरुवोथु, मालविका मोहनन, डैनियल कैल्टागिरोन और मुथु कुमार प्रमुख भूमिकाओं में है. थंगालान 20 सितंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने को तैयार है.

अगाथा औल अलोंग (Agatha All Along)

अमेरिकी मिनी-सीरीज 18 सितंबर को हौटस्टार पर दो एपिसोड के साथ स्ट्रीम होने के लिए तैयार है. अन्य एपिसोड 30 अक्टूबर से स्ट्रीम होंगे. शो में कुल नौ एपिसोड हैं.

ट्वाइलाइट औफ द गौर्ड्स (Twilight Of The Gods)

एनिमेटेड वेब सीरीज 19 सितंबर क नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली है. इस शो में 9 एपिसोड हैं. इसमें लॉरेन कोहन, स्टुअर्ट मार्टिन, सिल्विया होक्स, राहुल कोहली और पिलौ असबेक मुख्य भूमिकाओं में हैं.

17 टुकडें कर ली जान, साऊदी से इंडिया लौटे प्रेमी को मिला मौत का तोहफा

26 वर्षीय मोहम्मद वसीम अंसारी अपनी 17 वर्षीया गर्लफ्रेंड नरगिस से मिलने के लिए बेताब था. उस से मिलने की खातिर वह सऊदी अरब से इंडिया आया. यहां उस की 17 टुकड़ों में कटी लाश पुलिस ने बरामद की. आखिर किस ने और क्यों की वसीम अंसारी की हत्या?

पहली नजर में दिल दे बैठा वसीम

वसीम और नरगिस की मुलाकात करीब 2 साल पहले बिलासपुर से रांची जाते हुए ट्रेन में हुई थी. वसीम अपनी एक रिश्तेदारी में बिलासपुर आया था. वहां से लौटते हुए ट्रेन की भीड़भाड़ वाले कोच में जिस सीट पर वह बैठा था, उस के सामने ही एक गोरीचिट्टी कमसिन लड़की बैठी थी. लड़की अपनी मां के साथ थी. वसीम की निगाह उस पर से हट नहीं रही थी. हालांकि उस की मां से नजरें बचा कर वसीम लड़की को बीचबीच में गहरी निगाह से घूर लेता था.

वसीम अकेला था. यह कहें कि वसीम की निगाह लड़की के चेहरे से हट नहीं पा रही थी. थोड़ी ही देर बाद लड़की मां से बोली, ”मुझे प्यास लग रही है.’’  उन के पास पानी नहीं था. इस कारण उस की मां इधरउधर देखने लगी. वसीम ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और आगे बढ़ा दी. लड़की ने बोतल को थाम लिया. पानी पीने के बाद बोतल वापस करती हुई मुसकरा कर बोली, ‘थैंक यू!

इस पर वसीम ने सिर हिलाते हुए उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ”कोई बात नहीं, पानी ही तो है.’’ लड़की की मां भी झेंपती हुई लड़की से बोली, ”पानी वाला आएगा, तब एक बोतल खरीद लेना.’’ ”अम्मा, ट्रेन में पानी वाला नहीं आएगा, अगले स्टेशन से लेना होगा. कोई बात नहीं, मैं जा कर ला दूंगा.’’ ”हांहां…’’ लड़की बीच में ही बोल पड़ी. इस तरह से वसीम और उस लड़की के बीच बातचीत भी शुरू हो गई.

वसीम ने बातों ही बातों में उस से पूछ लिया, ”क्या नाम है आप का? पढ़ती हो?’’ ”मैं नरगिस सुलतान हूं. पढ़ाईलिखाई छूट गई है.’’ ”नरगिस सुलतान. वाह! कितना प्यारा नाम है. मगर पढ़ाई छूट गई, यह तो गलत बात हुई. अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है? भला क्यों छूटी पढ़ाई?’’ इस पर नरगिस चुप हो गई, लेकिन उस की मां सकुचाती हुई बोली, ”घर में गमी हो गई थी बेटा, इस के बाद सब कुछ तहसनहस हो गया था…’’ यह कहतेकहते वह अपनी आंखें पोंछने लगी.

”ओह..! सौरी अम्मीजान, मैं ने आप का दिल दुखा दिया.’’ वसीम बोला. थोड़ी देर उन के बीच चुप्पी बनी रही. वसीम गाड़ी के बाहर भागते पेड़ों और खेतों को देखने लगा. नरगिस भी दूसरी खिड़की से बाहर देखने लगी थी. उसी ने चुप्पी तोड़ी. अनायास बोल पड़ी, ”अम्मी, देखो तो बाहर कितनी अच्छी हवा बह रही है.’’ ”हां, बिलकुल सही कह रही हो. मौसम सुहावना बना हुआ है.’’ 

वसीम ने हां में हां मिलाई. उस के बाद उन के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इस बार वे दूसरी बातें करने लगे. तुम क्या करते हो बेटा, काफी पढ़ेलिखे मालूम देते हो!’’ नरगिस की अम्मी बोली. ज्यादा नहीं.’’ वसीम बोला. काम क्या करते हो?’’ नरगिस ने पूछा. मैं बहुत जल्द सऊदी अरब जाने वाला हूं, वहीं नौकरी करूंगा. मुझे खूब रुपएपैसे कमाने हैं.’’ वसीम बोला. इस पर नरगिस आश्चर्य से वसीम को देखने लगी. मजाकिया लहजे में नरगिस बोल पड़ी, ”मेरे लिए भी वहां कोई काम मिल सकता है क्या?’’

क्यों नहीं?…वहां तो हर किसी के लिए कुछ न कुछ काम होता है.’’ वसीम बोला. अच्छा… मुझ जैसी अनपढ़ को भी!’’ नरगिस की आंखें आश्चर्य से फैल गईं. बातोंबातों में वसीम और नरगिस ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. कुछ घंटे बाद दोनों अपनेअपने स्टेशनों पर उतर गए. वसीम और नरगिस अलगअलग शहरों में रहते हुए एकदूसरे से मोबाइल के जरिए जुड़े हुए थे. वसीम रांची का रहने वाला था, जबकि नरगिस बिलासपुर की थी.  एक बार उस ने नरगिस को बताया कि वह सऊदी जा चुका है. उसे बहुत सारा पैसा कमाना है. 

जब नरगिस के पाई कौल 

सऊदी अरब से कोरबा के पाली गांव की रहने वाली नरगिस के पास एक काल आई, ”हैलो…हैलो नरगिस, मैं वसीम बोल रहा हूं. कैसी हो?’’ काल का जवाब नरगिस शिकायती लहजे में देते हुए बोली, ”मैं कैसी हूं, यह पूछ रहे हो? बस, समझो जिंदा हूं.’’

”ऐसा क्यों कह रही हो नरगिस?’’ आश्चर्य से वसीम बोला. नरगिस कुछ नहीं बोली. वसीम ही दोबारा बोला, ”ऐसा मत कहो.’’ नरगिस का जवाब फिर शिकायत के साथ नाराजगी भरा था, ”इतने दिनों बाद तुम्हें मेरी याद आ रही है. मैं तो हमेशा तुम्हें याद करती हूं तुम्हें… नंबर भी दिया था, मगर?’’ बात पूरी किए बगैर चुप हो गई. इस पर वसीम ने कहा, ”नाराज मत हो नरगिस, जिस दिन से यहां आया हूं, सच कहो तो मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाया. यहां दम्मन, सऊदी अरब में इतना काम है कि मत पूछो…’’  वसीम मानो हाथ जोड़ कर के मनुहार कर रहा हो.

अच्छा, वहां काम में ही मन लगा रहता है, यह बात है. सिर्फ काम और पैसा ही तुम कमाते रहो और मैं तुम से बात भी नहीं करूं.’’  इतराती हुए नरगिस बोली. अरे, ऐसा नहीं है यार! मैं तो 24 घंटे तुम्हें याद करता रहता हूं. तुम्हारी सूरत मेरी आंखों के सामने घूमती रहती है. मैं संकोच में था कि फोन तुम उठाओगी या नहीं. हमें भूल तो नहीं गई होगी?’’ वसीम सहजता से बोला.

अच्छा! सीधा कहो न कि रुपयों से प्यार है, जो इतना दूर चले गए हो. तुम से तो प्यार करना फिजूल है.’’ नरगिस का ताना मारना वसीम पर असर कर गया.  वह बोला, ”अच्छा, मैं बहुत जल्दी तुम से मिलने आ रहा हूं… बस कुछ और रुपए और जोड़ लूं!’’ रुपए जोडऩा तो अच्छी बात है, तुम मेरे लिए क्या लाओगे?’’ नरगिस उस से जानना चाहती थी. अरे नरगिस, मैं आ रहा हूं यह क्या कम है. …और रुपएपैसे की क्या बात है. यहां जो मैं कमाता हूं वो घर भी भेज देता हूं. तुम्हारे लिए मैं ऐसी चीज लाऊंगा कि तुम खुश हो जाओगी! …और हां, अभी एक गिफ्ट मैं यहां से तुम्हें भेज रहा हूं. अब तो खुश हो जाओ.’’

यह सुन कर के नरगिस बड़ी खुशी से बोली, ”देखो, कोई अच्छी सी गिफ्ट भेजना, नहीं तो मैं वापस भेज दूंगी वहीं, सऊदी अरब.’’ वसीम और नरगिस के बीच होने वाली ये बातें कोई पहली बार नहीं हो रही थीं. वे अकसर काफी देर तक रोजाना मोबाइल पर बात करते थे. एक दिन भी इस में चूक होने पर नरगिस शिकायती लहजे में ताना भी मार देती थी. तब वसीम माफी मांगता और फिर दोनों फोन पर ही जीनेमरने की कसमें खाने लगते. एक दिन फेसबुक लाइव में बातों ही बातों में नरगिस बोली, ”वसीम, तुम्हारी बहुत याद आ रही है.’’

इसी के साथ उस ने अपने बदन को अधखुला कर दिया. इस का असर वसीम पर भी हुआ…और देखते ही देखते दोनों बेपरदा हो गए. एकदूसरे को देख शर्मसार भी हुए…

हजारों किलोमीटर की दूरी से इस अनुभूति का दोनों ने वीडियो कालिंग को थैंक्स बोला. छूटते ही वसीम ने नरगिस को फेसबुक, इंस्टाग्राम के लिए रील बनाने की सलाह दे डाली.

वसीम ने गर्लफ्रेंड को दी खुशखबरी

बात 26 जून, 2024 की है. शाम के वक्त नरगिस के मोबाइल पर वसीम की काल आई, ”रेहाना, मैं अगले महीने 2 जुलाई को आ रहा हूं.’’ सच विश्वास नहीं हो रहा, लेकिन तुम कहां आओगे? मेरे पास ही न!’’ हां, मैं रांची प्लेन से आ रहा हूं, उस के बाद सीधा तुम्हारे पास आ जाऊंगा, तुम मिलोगी न!’’ कैसी बात करते हो, तुम इतनी दूर से आ रहे हो और मैं भला नहीं मिलूंगी. तुम ने मेरे लिए इतने सारे गिफ्ट भेजे हैं, साडिय़ां भेजी हैं… क्या मैं तुम्हें भूल सकती हूं. लेकिन यह तो बताओ कि तुम अब वहां से मेरे लिए क्या बेशकीमती चीज ला रहे हो?’’ नरगिस मचलती हुई बोली.

कुछ सेकेंड तक वसीम चुप रहा, फिर धीरे से बोला, ”तुम दिल छोटा न करो… सऊदी अरब से आ रहा हूं, कुछ अच्छा ही लाऊंगा तुम्हारे लिए. तुम्हें तो मालूम है कि यहां पैसा ही पैसा है. हवा में उड़ता है पैसा, कोई पकडऩे वाला होना चाहिए. मैं यहां पैसे कमाने ही तो आया हूं और तुम्हारी दुआ से मैं यहां बहुत खुश हूं, मगर तुम्हारे प्यार के कारण आ रहा हूं.’’ इस के बाद वसीम ने अपने घरपरिवार के बारे में बातें कीं. बातों ही बातों में उस ने बताया कि उस के परिवार वाले उस के निकाह की तैयारी कर रहे हैं. लड़की तलाश रहे हैं. यह सुन कर नरगिस रुआंसी हो गई.

वसीम ने बताया कि वह पहले उस से मिलने के लिए आ रहा है, उस के बाद ही वह अपने घर रांची, झारखंड जाएगा. इस पर नरगिस सुलतान ने कहा, ”ठीक है, जैसे ही रांची से रवाना होना, मुझे बताना. मैं बिलासपुर आ जाऊंगी.  और फिर हम वहां से चैतमा आ जाएंगे.’’ 2 जुलाई, 2024 नरगिस को वसीम ने फोन किया, ”रेहाना, मैं इंडिया आ चुका हूं और शाम तक रांची हमारा प्लेन लैंड करने वाला है.’’

यह सुन कर के नरगिस बहुत खुश हो गई. वसीम भी नरगिस से मिलने की बात सोच कर बहुत ही प्रसन्न था. नरगिस ने भी कह दिया, ”मैं बिलासपुर आ रही हूं और वहां से हम लोग आगे का प्लान बना लेंगे.’’  वसीम ने संशय से कहा, ”तुम फिजूल ही क्यों आ रही हो, मैं गाड़ी ले कर के तुम से मिलने आ जाऊंगा.’’ ”अरे नहीं, मेरे एक मुंहबोले भाई हैं न बादशाह, उन के पास गाड़ी है. घूमतेफिरते आ जाएंगे. रांची से सिर्फ 50 किलोमीटर ही तो है बिलासपुर.’’

”तब ठीक है. मैं शाम को 3 बजे के आसपास बिलासपुर पहुंच जाऊंगा. तुम्हारा इंतजार रहेगा. नरगिस, तुम से मिलने के लिए मैं कितना बेताब हूं, इस का तुम्हें शायद अंदाजा नहीं है… कब होगी मुलाकात और कब मैं तुम्हें अपनी बांहों में भरूंगा. हरदम इसी कल्पना में खोया रहता हूं.’’ ”अच्छा, अब मैं फोन रखती हूं.’’ इठलाते हुए नरगिस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

17 टुकड़ों में मिली लाश

बुधवार के दिन 10 जुलाई, 2024 को छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा के थाना पाली में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गोपालपुर डैम के पास एक पिट्ठू बैग में कोई संदिग्ध चीज है. बैग के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही हैं और तेज बदबू फैल रही है. यह सूचना मिलते ही एसएचओ चमन लाल सिन्हा कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर गोपालपुर डैम के पास पहुंच गए. उन्होंने जब वह बैग खुलवाया तो किसी युवक की टुकड़ों में कटी लाश निकली. उस का सिर और कुछ अंग गायब थे. 

पुलिस की प्रारंभिक जांच में पाया गया कि बरामद लाश को धारदार हथियार से टुकड़ों में काटा गया था. एसएचओ ने यह जानकारी कोरबा के एसपी सिद्धार्थ तिवारी के साथसाथ कोटघरा शहर की एडिशनल एसपी नेहा वर्मा और एसडीओपी पंकज ठाकुर को भी दे दी गई. एफएसएल यूनिट प्रभारी सत्यजीत कोसरिया और थाना पाली, चौकी चैतमा सहित साइबर टीम को सूचना दे दी गई. एसपी के निर्देश पर उपरोक्त अधिकारियों की टीम मौके पर गई. वहां की गई सूक्ष्म जांच के सिलसिले में गोताखोरों ने डैम में दोपहर तक मृतक का सिर व अन्य लापता अंगों से भरी एक बोरी तलाश ली. बरामद बैग में लाश के टुकड़ों के साथ एक आधार कार्ड, पासपोर्ट एवं एक फ्लाइट टिकट भी मिली.

उन दस्तावेजों की जांच के आधार पर मृतक की पहचान मोहम्मद वसीम अंसारी पुत्र मोहम्मद जमीर अंसारी के रूप में हुई. उस की उम्र 26 साल थी और वह कांता तोला, रांची, झारखंड का निवासी था. वहीं से उस के भाई का फोन नंबर भी मिल गया. पुलिस ने उन के बड़े भाई मोहम्मद तहसीन से फोन पर बात की. उन्हें घटना की जानकारी दे कर कोरबा बुलाया गया. फोन पर ही तहसीन ने बताया कि उस का भाई मोहम्मद वसीम पिछले 2 सालों से सऊदी अरब में सुरक्षा अधिकारी की नौकरी कर रहा था. वह वहां से कब आया, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

वसीम की नृशंस तरीके से की गई हत्या कोरबा से ले कर रांची तक में चर्चा का विषय बन गई. आम और खास लोग यह जानने को उत्सुक थे कि आखिर किस ने और क्यों इस तरह मासूम नौजवान वसीम अंसारी को मार डाला? उस से किस की क्या दुश्मनी थी, जो उस के सऊदी से लौटते ही हत्या हो गई? क्या कोई पहले से ही घात लगाए बैठा था?

लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे. इधर समय बीता जा रहा था. चौतरफा सनसनी बढ़ती जा रही थी. पुलिस जांच टीम तत्परता से बड़ी सतर्कता के साथ काम कर रही थी.  कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस जांच को आगे बढ़ा रही थी. जुड़े पहलुओं की जांच पर यह तथ्य उजागर हुआ कि मृतक की सोशल मीडिया के माध्यम से बांसटाल चैतमा, थाना पाली की एक अवयस्क बालिका नरगिस से कई बार बातचीत हुई है. उन के बीच बातचीत इंटरनैशनल वीडियो काल, वाट्सऐप काल से हुई थी. बरामद मोबाइल में संयोग से उन दोनों की बातचीत के रिकार्डिंग क्लिप्स भी थे.

क्यों की गई वसीम की हत्या

पुलिस ने जब नरगिस के बारे में खोजबीन की, तब वह अपने घर से गायब मिली. उस के बारे में यह भी पता चला कि वह अपने किसी राजा खान उर्फ बादशाह नाम के प्रेमी के साथ फरार है. पुलिस नरगिस के साथसाथ राजा खान की भी तलाश करने लगी. जल्द उन का पता चल गया. वे ओडिशा के राउरकेला में एक होटल से पकड़े गए. उन्हें कोरबा ला कर पूछताछ शुरू की गई. नरगिस सुलतान के चेहरे से मासूमियत झलक रही थी, जो शायद कमसिन उम्र का तकाजा था. चेहरे की ताजगी बता रही थी कि वह बेकुसूर है. वह डरीसहमी थी. उस ने वसीम के साथ किसी तरह की जानपहचान होने से साफसाफ इनकार कर दिया. बड़े सामान्य ढंग से उस ने पुलिस को बताया कि वह मोहम्मद वसीम नाम के किसी व्यक्ति से मिली ही नहीं है.

मगर पुलिस के पास उस की और वसीम की बातचीत के सबूत थे. पुलिस जांच टीम के एक सदस्य ने सख्ती के साथ पूछताछ की और मोबाइल ट्रेस की जानकारी सामने रखी तो वह टूट गई. इस के बाद उस ने जो घटनाक्रम बयान किया, उस से वसीम की हत्या की तसवीर भी सामने आ गई.  महज 17 साल की नरगिस ने बताया कि वह राजा से मोहब्बत करती है और अपने परिवार को छोड़ चुकी है. दोनों साथ रहते हैं. इसी के साथ उस ने बताया कि उस ने पैसों के लालच में प्रेमी के साथ मिल कर वसीम की हत्या की.

नरगिस के इस बयान के बाद पुलिस ने राजा खान के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज कर ली. आरोपी राजा खान उर्फ बादशाह 20 साल का नवयुवक था. वह बांसटाल चैतमा थाना पाली, जिला कोरबा का निवासी है. उस ने पुलिस से नरगिस के बारे में जो भी बातें बताईं, उस से यह साबित हो गया था कि वह और नरगिस एकदूसरे को बेइंतहा चाहते हैं.  दोनों अपनी मरजी से साथसाथ रह रहे थे. उस ने यह भी बताया कि नरगिस से उसे वसीम के बारे में जानकारी मिली थी और उस के कहने पर ही उस की योजना में शामिल हो गया था.

राजा खान ने बताया कि नरगिस ने उसे  मोहम्मद वसीम के सऊदी अरब से वापस आने की जानकारी दी थी. नरगिस ने उसे यह भी बताया था कि वसीम उस के रूपजाल पर लट्टू है और उसे दिलोजान से चाहता है. उस ने 2 सालों के भीतर सऊदी में रह कर बहुत पैसा कमाया है. उन पैसों को वह साथ ले कर आने वाला है. इसी लालच में उस ने वसीम को अपने जाल में फंसा लिया था. नरगिस उस से प्रेम का दिखावा करती थी.

नरगिस के कहने पर ही राजा खान ने बोलेरो गाड़ी किराए पर ली थी. उस पर सवार हो दोनों बिलासपुर गए थे. वसीम से मिलने पर नरगिस ने राजा का परिचय मुंहबोले भाई के रूप में दिया था. उस के बाद वे तीनों राजा के घर चैतमा आ गए. उस रोज मोहम्मद वसीम बहुत खुश था. राजा ने बताया कि वसीम ने बातों ही बातों में उस से कहा था कि उस की जिंदगी का खुशनुमा दिन आया है. उस ने यह भी कह डाला कि नरगिस से वह बेइंतहा मोहब्बत करता है. आज की रात वह उस के साथ गुजारेगा. उस वक्त घर में राजा और नरगिस के अलावा कोई नहीं था. नरगिस भी खुश नजर आ रही थी. वसीम ने आते ही उसे एक अच्छा गिफ्ट का पैकेट पकड़ा दिया था. इस पर नरगिस बोली थी, ”मैं आज तुम लोगों के लिए खाने में चिकन बना देती हूं.’’

इस तरह से की गई वसीम की हत्या

थोड़ी देर बाद रात होने पर सभी ने एक साथ खाना खाया था. उस के बाद राजा खान बाहर चला गया. नरगिस ने वसीम को बताया कि राजा अपने दोस्त के घर गया है, सुबह आएगा. वसीम यह सुन कर खुश हो गया. उसे नरगिस के साथ एकांत में रात गुजारने का मौका मिल गया था. दोनों खुशी से बातें करने में मशगूल हो गए. तभी पीछे के दरवाजे से राजा खान अचानक घर में आ घुसा. वसीम नरगिस से बातें करते हुए उस के काफी करीब आ चुका था.

नरगिस को वह अपनी बांहों में कसना ही चाहता था कि राजा खान ने मुरगी काटने वाले छुरे से वसीम अंसारी की गरदन पर पीछे से वार कर दिया. अचानक हुए वार से वसीम तिलमिला गया. वह बुरी तरह जख्मी हो गया और तड़पता हुआ कभी नरगिस को तो कभी राजा खान को देखने लगा. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उस के साथ यह क्या हो रहा है? हंसते हुए राजा खान बोला, ”तुम नरगिस को चाहते हो, मेरी नरगिस को, हाहाहा… नरगिस सिर्फ मेरी है. नरगिस, बताओ इस बेवकूफ को जो तुम्हें पाने के लिए यहां आ गया है.’’

राजा की बातों में हां में हां मिलाते हुई बोली, ”तुम्हारा सारा पैसा अब हमारा होगा, हम दोनों जिंदगी भर ऐश करेंगे. हाहाहा.’’  नरगिस की इस हरकत पर वसीम तड़पता हुआ बोला, ”धोखा! मेरे साथ धोखा कर रही हो, ठीक नहीं होगा.’’ यह सुनना था कि राजा ने वसीम पर छुरे से लगातार 3-4 ताबड़तोड़ वार कर दिए. नरगिस ने तड़पते वसीम के पैर दबोच लिए थे. राजा खान ने ताबड़तोड़ वार कर उस का सिर धड़ से अलग कर दिया.  उस के बाद दोनों ने मिल कर वसीम के हाथों और पैरों को धड़ से अलग कर दिया. शव को 17 टुकड़ों में काट डाला. इस के लिए राजा ने पहले से ही छुरे के अलावा आरी ब्लेड ला कर घर में छिपा कर रख दिया था. वसीम की लाश के कटे टुकड़ों को उन्होंने प्लास्टिक की बोरी में भर लिया.

नरगिस और राजा ने बोरी को पिट्ठू बैग और एक ट्रौली बैग में बांध कर बाइक पर रख डैम में फेंकने की योजना बनाई. यह सब करतेकरते सवेरा हो गया था. शव के कुछ टुकड़े बच गए थे. वो उन्होंने घर के फ्रिज में छिपा कर रख दिए. अगले रोज 3 जुलाई, 2024 की रात में करीब लगभग 11 बजे स्पलेंडर बाइक से गोपालपुर डैम में फेंक कर दोनों घर वापस आ गए. वसीम की पहनी हुई सोने की चेन और अन्य सामान घर में छिपा दिया. 

नरगिस ने बातोंबातों में वसीम के मोबाइल का पासवर्ड पता कर लिया था. मोबाइल से यूपीआई आईडी चैक किया तो दोनों के होश उड़ गए. कारण, उन्होंने सोचा था कि सऊदी अरब में नौकरी करने के कारण कम से कम 50 लाख रुपए तो उस के एकाउंट में होंगे ही. मगर मिले सिर्फ 3 लाख रुपए. यह देख कर दोनों निराश हो गए. कुछ पैसे ही अपने खातों में ट्रांसफर कर पाए. आरोपी नरगिस सुलतान और राजा खान उर्फ बादशाह को पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल छुरा, बाइक आदि सामान जब्त कर लिया गया. 

राजा खान को 12 जुलाई, 2024 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर दूसरी आरोपी नरगिस सुलतान को नाबालिग होने के कारण किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया गया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया. उक्त अपराध का खुलासा करने वाले एसपी (सिटी) दर्री नगर रविंद्र कुमार मीना के मार्गदर्शन में एसएचओ (पाली) चमन लाल सिन्हा, चौकीप्रभारी चैतमा चंद्रपाल खांडे, विमलेश भगत, एसआई पुरुषोत्तम उइके, कांस्टेबल अनिल कुर्रे, आशीष साहू तथा साइबर टीम के हैडकांस्टेबल राजेश कंवर, चंद्रशेखर पांडेय, आर. रवि चौबे, डेमन ओग्रे, बिरकेश्वर प्रताप सिंह, आलोक टोप्पो, सुशील यादव, लेडी कांस्टेबल सुषमा डहरिया एवं चौकी चैतमा के इंचार्ज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नरगिस परिवर्तित नाम है.

इन 7 टिप्स से जाने कुछ ऐसे काम, कि बन जाए आप की शाम

यह बहुत पुराना सवाल है. आप जो चाहती हैं, उसे कैसे पाएं? और वो भी इस तरह कि वे यह सोचने पर मजबूर हो जाएं कि ये तो उनका ही विचार था. यही तो हम बता रहे हैं.

मोमबत्तियां जली हुई हैं, हवा में इत्र की सौम्य गंध पसरी है, बिस्तर पर सिल्क की चादर बिछी है और आप गाउन उतार रही हैं. ‘‘ओह! सौरी,’’ वे दरवाजे की ओर मुंह कर हकलाते हुए कहते हैं,‘‘तुम कपड़े बदल रही हो. मैं बाद में आता हूं.’’ आप सही समझ रही हैं, उन्हें लुभाने में आप असफल हो गई हैं.

क्या आप चाहती हैं कि वे यह सोचें कि आप जो चाहती हैं, उसे आप नहीं, बल्कि वे चाहते हैं और जो आपकी योजना है, वह वास्तव में उनकी है. और यह भी कि वह आपसे ज़्यादा चालाक हैं? पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाओं ने यह सच्चाई महसूस कर ली है और अपनी रणनीतियों को बेहतरीन परिणाम पाने के लिए बदल लिया है. अब वे ध्यान रखती हैं कि हमें जो चाहिए और जब चाहिए, हमारा साथी ठीक तभी और वैसा ही करे.

ऐसा करने के लिए हमें इस पूरी प्रक्रिया को संजीदगी से संभालना होता है. फिर चाहे बात शुरुआत की हो, पहला क़दम बढ़ाने की, अच्छी से अच्छी या बुरी से बुरी हो. जब आपकी इच्छा हो, लेकिन वह आगे न बढ़ रहे हों तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?

  1. किसने की पहल?

शोध आश्चर्यजनक रूप से बताते हैं कि रोमैंटिक मिलाप में 90 प्रतिशत बार तो महिलाएं ही पहल करती हैं-लेकिन जैसे आप सोच रही हैं, वैसे नहीं. महिलाएं अपनी आंखों, चेहरे और शरीर से हल्के संकेत देंगी. और बदलाव की प्रक्रिया तो यही कहती है कि जो सोता है, वह खोता है. जो पुरुष इन संकेतों को अच्छी तरह समझ पाते हैं, वे पहल करते हुए पहला कदम बढ़ाते हैं.

दुर्भाग्यवश, बहुत सारे पुरुष इन हल्के इशारों को समझ नहीं पाते, बायोलौजी के कारण. पुरुषों में १० से २० गुना ज्यादा टेस्टोस्टेरौन होता है, जो उन्हें संकेतों को गलत ढंग से समझाता है. और सच कहें तो इसमें महिलाओं का भी हाथ है: वे विरोधाभासी संकेत देते हैं. जो असमंजस पैदा करते हैं, वे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं और आपको झल्लाहट होती है. तो आप इसे रोकने के लिए क्या कर सकती हैं? बहुत कुछ.

2. पहला कदम : मादक नजरें

उन भूरी आंखों को दांव पर लगाएं और हो सकता है कि वे आपके हो जाएं. जरनल औफ रिसर्च इन पर्सनैलिटी के एक अध्ययन के मुताबिक दो मिनट तक एकटक एक-दूसरे की आंखों में देखने से प्यार के जुनून का एहसास बढ़ जाता है. यदि आप अजनबी हैं तो लगभग तीन सेकेंड्स उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए काफी है. एक बार आप दोनों की नजरें मिल गईं तो वे आपको बार-बार पलटकर देखेंगे कि आप उन्हें अब भी देख रही हैं या नहीं. और उन्हें यह जताने के लिए कि आप उनमें रुचि ले रही हैं, ऐसा तीन बार कर सकती हैं. आपको क्या लगता है ‘एक नज़र में प्यार’ कहावत यूं ही बन गई है?

3. दूसरा कदम : शारीरिक हावभाव

मुस्कान से शुरुआत करें; यदि आप अब भी आश्वस्त नहीं हैं तो आधी मुस्कान दें. हम पर विश्वास करें, वह आधी मुस्कान भी, रहस्मयी निगाहों के साथ आपके मन की पूरी बात कह सकती है. कैनेडियन रिसर्चर्स द्वारा साल 2011 में 1000 से ज्यादा पुरुषों पर किए गए एक अध्ययन में पुरुषों ने कहा कि वे मुस्कुराती हुई महिलाओं की तस्वीरों की ओर ज़्यादा आकर्षित होते हैं.

पौश्चर पर ध्यान दें, शरीर सीधा रखें, कटावों को उभरने दें और पैरों को क्रौस कर लें. ये अदा तो हम महिलाओं को सदियों से आती है. अगर आप खड़ी हैं तो कुछ ऐसे खड़ी हों कि आपके फिगर की सुंदरता बढ़ी हुई नज़र आए. बहुत महिलाएं फ्लर्ट करते हुए सिर को टेढ़ा कर लेती हैं, ताकि सुडौल गर्दन साफ नज़र आए, अपने आउटफिट से छेड़खानी करती हैं, बालों से खेलती हैं, यहां तक कि अपने होंठों को जीभ से छूती हैं.

4. तीसरा कदम : स्पर्श सब कह देता है

साल 2007 के सोशल इन्फलुएंस के अध्ययन के अनुसार तीन प्रकार के स्पर्श होते हैं. एक होता है हल्का, ‘दोस्ताना’ स्पर्श, शुरुआत करनेवालों के लिए या जब आप उस व्यक्ति को नहीं जानतीं. दूसरा होता है ‘स्वीकार्य-अस्वीकार्य’ स्पर्श; करीब-करीब आकस्मिक स्पर्श, तुम बहुत मजाकिया हो, ओह! क्या तुम वर्कआउट करते हो कहते हुए कलाई, कंधे और पीठ पर हाथ लगाना. और अंतत: ‘न्यूक्लियर’ स्पर्श. जहां आप उनके माथे से बालों को हल्के-से पीछे करती हैं. या दोनों के हाथों को एक साथ जोड़ती हैं. या अपना सिर उनके कंधे पर रखती हैं या उनकी हथेली पर कोई आकार बनाती हैं.

5. कुछ काम नहीं आ रहा? इन्हें आजमाएं

यदि इनमें से कुछ भी काम नहीं कर रहा और आप अब भी उनके हाथों में हाथ डालकर बैठी हैं तो समय आ गया है अपनी कोशिशों को एक कदम आगे ले जाने का. अबला नारी की तरह लड़खड़ाएं और सहारा पाने के लिए उन्हें पकड़ लें. हां, हम जानते हैं कि यह हमें उनके सामने झुका देगा, पर मन की इच्छा तो पूरी हो जाएगी…

सबसे बेहतर है उनकी गोद में गिर जाएं. या हौरर मूवी शुरू करें और कांपते हुए उनसे सट जाएं. जब भी उनसे मिले उन्हें लंबे समय तक के लिए गले लगाएं. हेलो और थैंक यू कहने के लिए किस करें. यह चुंबन जितना हल्का हो, बेहतर होगा. यदि आप आश्वस्त नहीं हैं तो उनके गालों पर किस करें; यह निश्चित रूप से उन्हें बाक़ी जगहों पर किस करने के लिए प्रोत्साहित करेगा.

6. निश्चित तौर पर कारगर

नकल करना: यह क्लासिक फार्मूला असफल नहीं होगा. उनकी गतिविधियों को हूबहू दोहराएं, फिर चाहे वे आपके हाथ छू रहे हों या पैर क्रौस कर रहे हों.

7. सुरक्षित कदम

डांस करना! चाहे उनके साथ या फिर अकेले ही. उन्हें एक सेक्सी शो दिखाएं या कामुक साल्सा मूव्स, जैसे-हिप-टू-हिप, चेस्ट-टू-चेस्ट में उन्हें शामिल करें. और उन्हें अपना नियंत्रण खोने दें.

मैं अपने कौलेज में पढ़ने वाले युवक से प्यार करती हूँ ,प्यार का इज़हार कैसे करूँ ?

सवाल
एक युवक जो मेरे ही कालेज में थर्ड ईयर का छात्र है कई बार मुझ से टकराता है और एकटक देखता रहता है. कभी उस ने मुझ से बात करने की हिम्मत नहीं दिखाई. कभीकभी वह अपने दोस्तों, जिन में युवतियां भी होती हैं, संग भी होता है और मुझे देखने के बाद उन से कट लेता है. मैं भी मन ही मन उसे प्यार करती हूं, पर समझ नहीं पा रही कि उस का बारबार मुझ से टकराना मेरे प्रति आकर्षण के कारण है या इत्तफाकन. मैं कैसे उस से प्रेम की बात करूं?

जवाब
वह आप से बारबार टकराता है अर्थात जहां भी आप जाती हैं वहीं आप से मिलने पहुंच जाता है यानी आप के मन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है. उस का एकटक आप को देखना और दोस्तों के साथ होने पर कटना व आप की तरफ आना बताता है कि वह आप के प्रति आकर्षित है और बारबार मिलने की चाह से जहां आप जाती हैं वहां पहुंच कर ऐसे जताता है जैसे इत्तफाक से यह मिलन हुआ है.

इधर आप के मन में भी उस के प्रति सौफ्ट कौर्नर पनप रहा है. हो सकता है डर, झिझक या कहीं आप मना न कर दें, के कारण वह आप को ‘आई लव यू’ न कह पा रहा हो और मिलतेमिलते प्यार हो जाएगा का फार्मूला अपना रहा हो. आप भी उस से मिलिए. वह आप का सीनियर है तो पढ़ाई में सहायता, किताब मांगने आदि से शुरू कर उस का मोबाइल नंबर ले लीजिए. फिर दिल की बात बिना कहे व्हाट्सऐप आदि से शेयर कर सकती हैं. यकीन मानिए, प्यार की आग इधर भी है उधर भी, बस इजहारे इश्क की चिनगारी जलाने की देर है.

साधना कक्ष : क्या मां बन पाई अंजलि

अंजलि की शादी को 5 साल बीत चुके थे, लेकिन उसे मां बनने का सुख अब तक नहीं मिल पाया था. उस ने अपने पति मोहन से डाक्टर के पास चल कर चैकअप कराने के लिए कई बार कहा, लेकिन वह कन्नी काटता रहा.

बच्चा न ठहरने के चलते अंजलि को अकसर मोहन के ताने भी सुनने पड़ रहे थे इसलिए वह कुछ दिनों के लिए मायके में अपनी मां के पास चली आई.

मां को जब इस की वजह पता चली तो उस ने अंजलि से कहा कि वह एक पहुंचे हुए बाबा को जानती है जो बहुत सी औरतों की गोद हरी कर चुके हैं.

अंजलि झाड़फूंक करने वाले बाबाओं और पीरफकीरों पर जरा भी यकीन नहीं करती थी इसलिए उस ने मां को साफ मना कर दिया.

मां ने उस से कहा कि अगर वह बाबा के पास नहीं जाना चाहती है तो अपने पति के घर वापस लौट जाए.

जब अंजलि ने मोहन से बात की तो उस ने कहा कि वह उस से तलाक लेना चाहता है क्योंकि उसे बच्चा नहीं हो रहा है. ऐसे में अंजलि के पास मां की बात मानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा था.

एक दिन जब अंजलि मां के साथ बाबा के आश्रम पहुंची तो पता चला कि उस आश्रम में मर्दों के आने की मनाही थी. उस आश्रम में उस बाबा को छोड़ उस के तीमारदारों में सिर्फ औरतें ही शामिल थीं.

बाबा की शिष्याओं ने अंजलि से एक कागज के टुकड़े पर बिना किसी को दिखाए अपनी मनपसंद मिठाई का नाम लिखने को कहा.

अंजलि को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन वह मां की इच्छा रखने के लिए सबकुछ करती गई.

अंजलि ने उस कागज पर मनपसंद मिठाई का नाम लिख कर उसे एक डब्बे में रख दिया जिस में बाबा की शिष्याओं ने ताला लगा कर अंजलि को यह कहते हुए उस के हाथ में थमा दिया कि वह इस डब्बे को ले कर साधना कक्ष में जाए.

बाबा अपनी चमत्कारी ताकतों की बदौलत यह जान गए होंगे कि उस ने इस कागज में क्या लिखा है.

साधना कक्ष में पहुंचने पर उसे वही मिठाई खाने को मिलेगी, जो उस ने इस कागज पर लिखी है.

अंजलि जब बाबा के पास साधना कक्ष में जाने लगी तो उस की मां भी उस के साथ हो ली.

बाबा ने अंजलि को वही मिठाई खाने को दी जो उस ने उस कागज पर लिखी थी तो वह हैरान रह गई, क्योंकि अंजलि के सिवा किसी को भी यह नहीं पता था कि उस ने उस कागज पर क्या लिखा है. उस ने बहुत दिमाग दौड़ाया लेकिन गुत्थी सुलझ नहीं.

समस्या जान कर बाबा ने अंजलि से कहा, ‘‘अगर तुम पेट से होना चाहती हो तो तुम्हें रातभर इस कमरे में अकेले ही रहना होगा क्योंकि यह मेरा साधना कक्ष है. इस कक्ष में सोने से तुम्हारी गोद यकीनन हरी हो जाएगी.’’

अंजलि को इस कमरे में अकेले रात बिताने पर एतराज था. इस पर बाबा ने कहा, ‘‘इस कमरे में कोई और दरवाजा नहीं है और तुम अकेली ही रहोगी. तुम इस कमरे में अपने साथ लाए गए ताले को लगा लेना, जिस की एक चाबी तुम्हारी मां के पास रहेगी. कमरे में किसी के घुसने का सवाल ही नहीं उठता है.’’

अंजलि बेमन से कमरे में रात बिताने को तैयार हुई. बाबा और उस की मां जब कमरे से बाहर निकलने लगे तो बाबा बोला, ‘‘अंजलि, जो प्रसाद मैं ने तुम्हें दिया है, उसे अभी खा लो.’’

अंजलि ने मिठाई खा ली. बाबा ने बाहर निकलने के बाद कमरे में ताला लगा कर चाबी अंजलि की मां को दे दी.

उधर मिठाई खाने के बाद अंजलि पर अजीब सी खुमारी छाने लगी थी. वह अपनी सुधबुध खोने लगी थी और उस की नींद तब खुली, जब दूसरे दिन की सुबह उस की मां ने बंद कमरे का दरवाजा खोला.

अंजलि कमरे से बाहर निकलते समय सोच रही थी कि उस मिठाई में ऐसा क्या था, जिसे खाने के बाद उसे अजीब सी खुमारी छा गई और इस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं चला. लेकिन वह बेफिक्र भी थी, क्योंकि उस कमरे की चाबी उस की मां के पास थी और कमरे में घुसने का कोई दूसरा दरवाजा भी नहीं था.

अंजलि को बाबा के आश्रम से लौटे 2 महीने बीत चुके थे कि एक दिन अचानक उसे उलटियां होने लगीं. उस ने अपने डाक्टर दोस्त रमेश से जब चैकअप कराया तो पता चला कि वह पेट से है.

डाक्टर रमेश की बात का अंजलि को यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि उसे पति से अलग हुए 5 महीने से ऊपर बीत चुके थे, फिर वह पेट से कैसे हो सकती है?

अंजलि ने डाक्टर रमेश से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, आप एक बार फिर से रिपोर्ट देख लीजिए. कहीं ऐसा न हो कि जांच रिपोर्ट में कोई खामी हो.’’

लेकिन डाक्टर रमेश ने कहा कि उस की रिपोर्ट बिलकुल सही है और वह पेट से है.

घर पहुंचने पर अंजलि ने अपनी मां से पेट से होने की बात बताई तो मां की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन जब अंजलि बोली कि वह मोहन से 5 महीने से मिली ही नहीं है, तो ऐसा कैसे हो सकता है.

अंजलि बोली, ‘‘मां, बाबा के आश्रम में मेरे साथ रेप किया गया है. कहीं तुम ने बाबा के साधना कक्ष की चाबी किसी को दी तो नहीं थी?’’

मां बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ने सारी रात चाबी अपने पास ही रखी थी और सुबह दरवाजा भी मैं ने ही खोला था.’’

अंजलि यह बात मानने को तैयार न थी. उस का कहना था कि बाबा के आश्रम में ही रेप हुआ है, जिस के चलते वह पेट से हुई है. लेकिन उस की मां बाबा के खिलाफ एक बात सुनने को राजी न थी. वह तो इसे बाबा का चमत्कार मान रही थी.

अंजलि ने यह बात जब मोहन को फोन कर के बताई तो उस ने उस पर ही चरित्रहीन होने का लांछन लगा दिया और कभी भी फोन न करने की बात कह कर फोन काट दिया.

उधर अंजलि को अब पूरा यकीन हो चुका था कि उस रात बाबा के आश्रम में उस के साथ कोई तो हमबिस्तर हुआ था. हो न हो, उस कमरे में कोई गुप्त दरवाजा है जिस के रास्ते कोई उस कमरे में घुसता है और साधना कक्ष में पेट से होने के लालच में रात बिताने वाली औरतों के साथ रेप करता है.

अंजलि ने अब निश्चय कर लिया था कि वह उस पाखंडी बाबा की हकीकत दुनिया के सामने ला कर रहेगी.

अंजलि ने अपने मन की बात मां को बताई तो मां बाबा के खिलाफ जाने को तैयार न हुई, पर जब अंजलि ने अपनी जान देने की बात कही तो मां उस का साथ देने को तैयार हो गई.

अंजलि इस बार फिर बाबा के आश्रम पहुंची और उस ने बाबा को बताया कि वह उन के चमत्कार से पेट से तो हो गई है, लेकिन उस का पति उस से तलाक लेकर दूसरी शादी करने जा रहा है. ऐसे में वह नहीं चाहती है कि वह पेट से हो, इसलिए वह चमत्कार कर के उसे पेट से होने से रोक लें.

बाबा ने अंजलि को एक पुडि़या दे कर कहा, ‘‘तुम इस चमत्कारी भभूत का सेवन करो. इस से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और पेट में पल रहा बच्चा भी अपनेआप छूमंतर हो जाएगा.’’

अंजलि बाबा के आश्रम से घर आई और उस बाबा द्वारा दी गई भभूत को डाक्टर रमेश के पास ले गई.

डाक्टर रमेश ने उस भभूत को लैब में टैस्ट के लिए भेजा तो उस में बच्चा गिराने की दवा निकली.

अब अंजलि को पूरा यकीन हो चुका था कि बाबा के आश्रम में औरतों के साथ जबरदस्ती सैक्स संबंध बनाने का खेल खेला जा रहा है.

अंजलि दोबारा उस बाबा के आश्रम में पहुंची और बाबा से बोली, ‘‘बाबा, आप की चमत्कारी भभूत के चलते पेट में पल रहा मेरा बच्चा अपनेआप छूमंतर हो गया है. मेरे पति मुझे अपनाने को तैयार हो गए हैं. उन्होंने एक शर्त रखी है कि इस बार मुझे वे तभी वापस ले जाएंगे, जब मैं वहां जाने पर पेट से हो जाऊं.

‘‘मैं चाहती हूं कि आप के चमत्कार से एक बार फिर मैं पेट से हो जाऊं, क्योंकि इस बार अगर मैं पेट से न हुई तो वे मुझे हमेशा के लिए छोड़ देंगे.’’

बाबा ने कहा, ‘‘तुम दोबारा पेट से हो सकती हो. बस, एक रात साधना कक्ष में गुजारनी होगी.’’

अंजलि साधना कक्ष में रात गुजारने को तैयार हो गई, पर इस बार उस ने पुलिस से मिल कर उस बाबा की असलियत बता दी थी. लेकिन पुलिस बिना सुबूत उस बाबा पर हाथ नहीं डाल सकती थी इसलिए पुलिस ने अंजलि को सुबूत इकट्ठा करने के लिए फिर से बाबा के पास जाने को कहा था.

इस बार अंजलि पूरी तैयारी के साथ बाबा के आश्रम में आई थी और बोली कि उस की माहवारी आने के बाद का 13वां दिन है.

साधना कक्ष में बैठा बाबा अंजलि के साथ आई दूसरी औरत को देख कर चौंक गया और पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

अंजलि ने बताया, ‘‘ये मेरी मौसी हैं. आज मां की तबीयत खराब होने के चलते मौसी के साथ आना पड़ा.’’

हकीकत तो यह थी कि अंजलि के साथ आई वह औरत पुलिस वाली थी. बाबा के आश्रम में महिला पुलिस भी श्रद्धालुओं के रूप में फैली हुई थी.

बाबा ने अंजलि को फिर वही मिठाई खाने को दी जो उस ने परची पर लिखी थी. लेकिन इस बार अंजलि को जरा भी हैरानी नहीं हुई क्योंकि उसे यह पता चल चुका था कि बाबा को परची पर लिखी गई हर बात पता चल जाती है. इस के पीछे कोई न कोई राज जरूर था, जिस से आज परदा उठने वाला था.

अंजलि इसी सोच में डूबी थी कि बाबा की आवाज उस के कानों में गूंजी, ‘‘अब तुम रात बिताने को तैयार हो. जाओ और मिठाई खा कर आराम करो.’’

इतना कह कर बाबा बाहर चला आया और अंजलि के साथ आई मौसी से साधना कक्ष में ताला लगवा कर अपनी आरामगाह में चला गया.

साधना कक्ष में बंद अंजलि ने इस बार बाबा की दी हुई मिठाई नहीं खाई. वह बाबा का हर राज जान लेना चाहती थी. उस ने जब कमरे को बारीकी से देखा तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया जिस से उस कमरे में आने के दूसरे रास्ते के बारे में पता चल पाए.

तभी अंजलि की नजर बाबा के साधना कक्ष के कोने में रखी अलमारी पर गई. उस ने जैसे ही अलमारी के दरवाजे का हैंडल पकड़ कर खोला तो दरवाजा खुल गया.

यह देख कर अंजलि चौंक गई, क्योंकि वह नाममात्र की अलमारी थी. इस कमरे में घुसने का एक खुफिया दरवाजा था, जो दूसरे कमरे में जा कर खुलता था. बगल वाले कमरे में एक बड़ी सी स्क्रीन लगी हुई थी जो पूरे आश्रम का नजारा दिखा रही थी.

तभी अंजलि की नजर एक छोटी सी स्क्रीन पर गई. उस ने उस स्क्रीन पर चल रहे नजारों में जो देखा, उस के बाद उसे परची पर लिखी हर बात के बारे में बाबा को पता चल जाने का सारा राज सम?ा में आ गया था, क्योंकि जहां पर बैठ कर औरतें अपनी मनपसंद मिठाई का नाम लिखती थीं, वहां आसपास छिपा हुआ कैमरा लगा था.

बाबा इस कमरे में बैठ कर जान लेता था कि किस ने कौन सी मिठाई का नाम लिखा है, फिर उस में वह बेहोशी की दवा मिला कर खुफिया दरवाजे से साधना कक्ष में आ जाता था.

अंजलि को उस कमरे में तरहतरह की मिठाइयां एक फ्रिज में रखी हुई भी मिल गई थीं. तभी उसे बगल के कमरे से कुछ खटपट की आवाज सुनाई दी. वह समझ गई कि इस कमरे में बाबा के आने का समय हो गया है. वह बड़ी सावधानी से साधना कक्ष में लौट आई. वह अपने साथ आई महिला पुलिस को फोन करना नहीं भूली.

अंजलि साधना कक्ष के बिस्तर पर बेहोशी का नाटक कर के पड़ी थी. बाबा साधना कक्ष में आ चुका था.

अंजलि सबकुछ कनखियों से देख रही थी. बाबा अपने कपड़े उतार चुका था. वह अंजलि के ऊपर झांकने ही वाला था कि अंजलि का झन्नाटेदार थप्पड़ बाबा के कान पर पड़ा.

बाबा खुद को संभालते हुए अंजलि पर झपटा लेकिन अंजलि का पैर बाबा के अंग वाले हिस्से पर पड़ा और वह गश खा कर गिर गया.

अंजलि जोर से चिल्लाई. इसी के साथ कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुल गया और एकसाथ कई पुलिस वाले कमरे में धड़धड़ाते हुए घुस आए.

बाबा खुद को संभालते हुए खुफिया दरवाजे की तरफ लपका. पुलिस वाले भी उसे पकड़ने के लिए उस तरफ लपके, लेकिन तब तक बाबा कहां छूमंतर हो गया, पता ही नहीं चला.

पुलिस चारों तरफ से आश्रम को घेर चुकी थी लेकिन बाबा आश्रम में कहीं नहीं मिला. तभी आश्रम की एक साध्वी ने जो बताया, उस से पुलिस वाले भी चौंक गए.

उस साध्वी ने बताया, ‘‘मेरी बहन भी इस बाबा के चक्कर में पड़ कर इस की शिष्या बन गई थी. लेकिन वह एक दिन बाबा का राज जान गई और उस ने बाबा की सारी करतूतों का वीडियो भी बना लिया था. तभी बाबा को यह बात पता चल गई और उस ने मेरी बहन को गायब करा दिया.

‘‘तब से मैं अपनी बहन की खोज में यहां पर बाबा की शिष्या बन कर उस के खिलाफ सुबूत इकट्ठा कर रही हूं. इसी दौरान आश्रम में बनाए गए खुफिया ठिकानों के बारे में भी मुझे पता चला.

‘‘बाबा ने आश्रम के अंदर एक खुफिया कमरा बना रखा है जिस में वह खुद के खिलाफ जाने वालों को न केवल कैद करता है बल्कि उन की हत्या कर के उन्हें वहीं दफना भी देता है.’’

उस शिष्या ने पुलिस वालों को आश्रम के पीछे झड़झखाड़ में बने एक गुप्त रास्ते से उस खुफिया कमरे तक पहुंचा दिया. वहां छिपा बाबा धर दबोचा गया. उस कमरे से पुलिस को भारी मात्रा में हथियार और कैद की गई औरतें भी मिलीं. उस कमरे में कई कब्रें भी थीं जिन की खुदाई से कई औरतों की अस्थियां बरामद हुईं.

अंजलि की सूझबूझ से पाखंडी बाबा के साधना कक्ष में औरतों के पेट से होने का राज खुल चुका था.

ऐसा कोई सगा नहीं : संतोषीलाल का परिवार क्यां फूला नहीं समाया

संतोषीलाल के घर पर आज उत्सव का सा माहौल था. हो भी क्यों न, एक साधारण परिवार की एकलौती लड़की को उन के समाज के जानेमाने और लगातार 4 बार विधानसभा चुनाव जीत कर इतिहास रचने वाले बबलूराम ने अपने एकलौते बेटे के लिए पसंद जो किया है. बबलूराम खुद चल कर शादी का प्रस्ताव लाए हैं.

इतने बड़े घर में संबंध होने की बात से संतोषीलाल का परिवार फूला नहीं समा रहा था.

चूंकि 2 साल पहले ही बबलूराम की पत्नी की मौत हो चुकी थी, इसलिए घर में सासननद नाम का कोई झंझट नहीं था. यह दूसरी बड़ी बात थी. यह भी तय ही था कि शादी के बाद उन की लड़की गोपी ही घर की सर्वेसर्वा रहेगी. ऐसे प्रस्ताव को नकारना बेवकूफी ही होगी.

बबलूराम पर कई हत्याओं के आरोप थे और विरोधी भी उन के करैक्टर पर उंगलियां उठाते रहते थे, पर संतोषीलाल ने अपने घर वालों का मुंह यह कह कर बंद कर दिया था, ‘‘देखो, राजनीति में विरोधियों का काम ही आरोप लगाना है. ऐसा कोई नेता नहीं, जिस पर आरोप न लगे हों. अभी कोर्ट में भी कुछ साबित नहीं हुआ है.

‘‘हो सकता है कि बबलूराम ने आगे बढ़ने के लिए कुछ गलत किया हो, पर हम शादी तो उन के एकलौते लड़के दीपक से कर रहे हैं, जिस का राजनीति से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. वह अपनी फैक्टरी चलाता है और उस का राजनीति में आने का अभी कोई इरादा भी नहीं है.

‘‘फैक्टरी से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है. अगर कल को बबलूराम को सजा हो भी जाती है तो भी गोपी महफूज रहेगी.’’

गोपी 19 साल की एक खूबसूरत लड़की थी जो कालेज के आखिरी साल का इम्तिहान दे रही थी.

एक शादी समारोह में अच्छी तरह से सजीसंवरी गोपी बेहद ही आकर्षक लग रही थी, वहीं पर बबलूराम ने गोपी को देखा और अपने बेटे दीपक के लिए चुन लिया था.

दीपक की उम्र भी 24 साल है. बबलूराम ने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा के बल पर उस के लिए एक फैक्टरी डलवा दी है जो अच्छीखासी चलती है. उस शादी में दीपक भी था और उसे भी गोपी बहुत अच्छी लगी थी.

बबलूराम ने दीपक की शादी को तड़कभड़क से दूर रखा था. परिवार के अलावा कुछ चुनिंदा लोगों को ही शादी में बुलाया गया था.

शादी होने के साथ ही आए हुए रिश्तेदार भी अपनेअपने घर को चले गए थे. अब घर में वे तीनों ही रह गए थे और कुछ घरेलू नौकर थे, जो समयसमय पर आते थे.

शुरूशुरू में तो गोपी को सब अच्छा लगा, पर जल्दी ही घर पर अकेलापन उसे खलने लगा.

एक दिन गोपी ने दीपक से कहा, ‘‘मैं घर में अकेले बोर हो जाती हूं. क्यों न मैं भी तुम्हारे साथ फैक्टरी चलूं?’’

‘‘अरे नहीं, कारखाने में कई मजदूर हैं और मजदूरों की सोच तो तुम्हें मालूम ही है. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे बारे में कोई अनापशनाप बोले…’’

दीपक उसे समझाने लगा, ‘‘और वैसे भी पिताजी के आनेजाने का समय तय नहीं है, इसलिए तुम घर पर ही रहो तो बेहतर रहेगा.’’

शादी के 2 साल पूरे होतेहोते गोपी ने एक बेटे को जन्म दे दिया, जिस का नाम राजन रखा गया.

अब गोपी का ज्यादातर समय राजन के साथ ही बीत जाता और उस के बोर होने की शिकायत दूर हो गई.

राजन अब 4 साल का हो गया था और प्रीनर्सरी स्कूल में जाने लगा था.

अब गोपी की पुरानी समस्या फिर से सिर उठाने लगी थी. एक दिन नाश्ते की टेबल पर जब तीनों बैठे थे, तभी गोपी ने दीपक से कहा, ‘‘मुझे भी फैक्टरी ले जाया करो. मैं यहां अकेली घर पर बोर हो जाती हूं.’’

‘‘देखो गोपी, यह मुमकिन नहीं है. मैं तरहतरह के लोगों से मिलता हूं. सभी लोगों से बात करने का लहजा भी अलग होता है. ऐसे में तुम्हारे वहां बैठने से मुझे भी परेशानी होगी और तुम भी सहज नहीं रह पाओगी,’’ दीपक गोपी को समझते हुए बोला.

‘‘तब तो पापाजी आप ही मुझे राजनीति में शामिल करवा लीजिए. इस बहाने कुछ समाजसेवा भी हो जाएगी और मेरा अकेलापन भी दूर हो जाएगा…’’ गोपी बबलूराम से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘वैसे भी आप सीएम के बाद दूसरे नंबर की पोजीशन पर हैं, इसीलिए आप के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है.’’

‘‘वह तो ठीक है गोपी, पर राजनीति कई तरह के बलिदान मांगती है. हो सकता है, राजनीति में आने के बाद तुम अपने परिवार… मेरा मतलब है कि दीपक व राजन को पूरा समय न दे पाओ. कभी सुबह जल्दी जाना तो रात में देर से घर आना पड़ सकता है. कई उलटेसीधे काम भी करने पड़ सकते हैं,’’ बबलूराम हंसते हुए बोले.

‘‘अरे पापाजी, घरपरिवार का तो आप को मालूम ही है. दीपक तो महीने में 15 दिन तो टूर पर रहते हैं और मैं घर पर अकेली.

‘‘राजन डे बोर्डिंग में जाता है तो शाम को ही घर आ पाता है. आप खुद भी ज्यादातर बाहर ही रहते हैं, इसलिए मेरे अकेले रहने को तो परिवार नहीं कह सकते न,’’ गोपी बोली.

‘‘पापा ठीक कह रहे हैं गोपी. राजनीति बहुत ज्यादा समर्पण मांगती है,’’ दीपक बोला.

‘‘आप तो रहने ही दो. न फैक्टरी जाने देते हो और न समाजसेवा के लिए राजनीति में. जब तक पापाजी मेरे साथ हैं, मुझे कोई डर नहीं,’’ गोपी बनावटी गुस्से से बोली.

‘‘ठीक है, अगले साल नगरनिगम के चुनाव हैं. हम कोशिश करेंगे कि इस में अच्छा पद पाने की, पर इस के लिए अभी से मेहनत करनी पड़ेगी,’’ बबलूराम बोले.

नाश्ता कर के सभी अपनेअपने कामों में लग गए.

उस शाम बबलूराम जल्दी घर आ गए. तकरीबन 15 मिनट बाद गोपी जब चाय देने के लिए कमरे में गई तो यह देख कर हैरान रह गई कि बबलूराम के कमरे में एक गुप्त अलमारी लगी हुई थी जिस में कई तरह की विदेशी शराब रखी हुई थी.

उसे कमरे में देख कर बबलूराम बोले, ‘‘यह राजनीति का पहला सबक है. एक नेता को अपने चेहरे पर कई चेहरे लगाने पड़ते हैं, इसलिए राजनीति में जो जैसा दिखता है, जैसा बोलता है, वैसा होता नहीं. समझ?’’

‘‘जी, पापाजी,’’ गोपी कुछ घबरा कर बोली.

‘‘अच्छा, ऐसा करो, इस हरे रंग की बोतल में से एक पैग बना कर मुझे दे दो. उस के बाद फ्रिज में से निकाल कर एक क्यूब बर्फ भी डाल दो और चली जाओ. जब दीपक आ जाए तो मुझ भी खाने पर बुला लेना. और हां, राजन आ गया क्या?’’ बबलूराम ने पूछा.

‘‘जी, आ गया वह,’’ कह कर गोपी ने पैग बना कर बबलूराम को दे दिया.

तकरीबन डेढ़ घंटे बाद दीपक फैक्टरी से आ गया और सभी खाने की टेबल पर इकट्ठा हो गए.

बबलूराम दीपक से बोले, ‘‘आज से गोपी की राजनीतिक तालीम शुरू हो गई है. आज मैं ने उसे समझाया है कि राजनीति में हर आदमी के एक से ज्यादा चेहरे होते हैं.’’

यह सुन कर सभी हंस दिए. खाना खाते समय दीपक ने बताया कि उसे परसों पूना निकलना पड़ेगा. फैक्टरी का कुछ काम है, इसलिए एक हफ्ते तक वहीं रुकना पड़ेगा.

तय कार्यक्रम के अनुसार दीपक सुबह जल्दी पूना के लिए निकल गया.

नाश्ता करते समय बबलूराम ने गोपी से कहा, ‘‘आज दोपहर 12 बजे तुम पार्टी दफ्तर आ जाना. मैं तुम्हें यहां का नगर अध्यक्ष बनवा दूंगा, ताकि चुनाव लड़ने में कोई दिक्कत नहीं आए.’’

गोपी समय पर पार्टी दफ्तर पहुंच गई, जहां पर बबलूराम ने उसे पार्टी की महिला मोरचे की अध्यक्ष अपने गुरगों के जरीए बनवा दिया. दिनभर जुलूस व रैली का कार्यक्रम चलता रहा. शाम को गोपी घर आ गई, पर बबलूराम पार्टी दफ्तर में ही रुक गए.

रात तकरीबन 9 बजे तक इंतजार करने के बाद गोपी ने खाना खा लिया. बबलूराम तकरीबन 11 बजे घर लौटे और गोपी की तरफ देख कर बोले, ‘‘अब तो तुम खुश हो न?’’

‘‘जी पापाजी, मैं बहुत खुश हूं. आप के लिए खाना लगा दूं क्या?’’ गोपी ने बडे़ ही अपनेपन से पूछा.

‘‘नहीं, मुझे भूख नहीं है. लेकिन मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है. तुम थोड़ी मालिश कर दोगी क्या?’’ बबलूराम ने गोपी से पूछा.

‘‘जी हां, क्यों नहीं,’’ गोपी बोली. ‘‘मैं चेंज कर के आती हूं,’’ गोपी ने गाउन पहन रखा था.

‘‘अरे, नहींनहीं, इस की क्या जरूरत है. 10 मिनट में तो मेरी मालिश हो ही जाएगी. फिर तुम क्यों परेशान होती हो. आ जाओ ऐसे ही,’’ बबलूराम ने कहा.

गोपी सकुचाते हुए बबलूराम के कमरे में चली गई.

बबलूराम अपने बैड पर लेट गए और गोपी हलके हाथ से उन की मालिश करने लगी.

धीरेधीरे बबलूराम का सिर गोपी की गोद में आ गया. गोपी समझ कि शायद बबलूराम को नींद लग गई है और ऐसा हो गया है, पर ऐसा नहीं था. यह सबकुछ जानबूझ कर हो रहा था.

धीरेधीरे बबलूराम ने गोपी को अपनी तरफ खींच लिया. गोपी कुछ समझ पाती, उस के पहले ही वह सब हो गया, जो नहीं होना चाहिए था.

सुबह राजन अपने स्कूल चला गया. गोपी अभी अपने कमरे में ही पड़ी हुई थी, तभी बबलूराम उस के कमरे में आए और बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें समझाया था कि राजनीति में तुम्हें काफी बलिदान करना पड़ेगा और यह तुम्हारा बलिदान ही है.

‘‘यह भी याद रख लो, इस घटना का जिक्र दीपक या किसी और से किया तो उस आदमी का इस धरती पर वह आखिरी दिन होगा.

‘‘दीपक की मां को भी हम ने ही स्वर्ग में स्थान दिलवाया है, क्योंकि उसे सब पता चल चुका था.

‘‘इस के अलावा जो लोग हमारे विरोध में बोलते थे, उन को भी हम ने ही मुक्ति दिलवाई है. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम कैसी जिंदगी चाहती हो. सुख से भरी हुई या एक मैली साड़ी वाली घरवाली की.’’

‘‘पर, यह गलत है. और गलत बात एक न एक दिन सामने आ ही जाती है,’’ गोपी रोते हुए बोली.

‘‘पता तो तब चलेगा न, जब हम दोनों में से कोई बताएगा.

‘‘रही बात गलत होने की, तो प्यार, जंग और राजनीति में सबकुछ जायज है. यही तो रहस्य नीति मतलब राजनीति है.

‘‘अगर तुम आगे बढ़ना चाहती हो तो दोपहर 12 बजे पार्टी दफ्तर पहुंच जाना. अपने सपनों को पूरा करने का सुनहरा मौका तुम्हारे सामने है,’’ बबलूराम समझने के अंदाज में धमका कर चले गए.

काफी देर तक रोनेधोने और काफी सोचनेसमझने के बाद गोपी दोपहर 12 बजे पार्टी दफ्तर पहुंच गई.

अगले साल होने वाले नगरनिगम के चुनाव में गोपी को अध्यक्ष पद का टिकट दे दिया गया और बबलूराम ने अपने गुरगों के प्रभाव से उसे अच्छे वोटों से जितवा भी दिया.

बबलूराम की सलाह पर दीपक ने कारखाने में एक मैनेजर रख दिया और वह खुद को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने के लिए दुबई चला गया.

अब दीपक 3-4 महीनों के बाद ही घर आ पाता है. राजन को भी दूर के पहाड़ी स्कूल में अच्छी तालीम के लिए भेज दिया गया है.

अब गोपी विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. उस का प्रमोशन जारी है. अब वह अकसर प्रदेश अध्यक्ष की गाड़ी से देर रात में उतरती है तो बबलूराम उसे एक पैग बना कर पिला देते हैं, ताकि थकान दूर हो जाए.

झूठ बोले कौआ काटे : एक अदद घर की तलाश

प्रेम नेगी काफी चिंतित था. शहर में नौकरी तो मिल गई, मगर मकान नहीं मिल रहा था. कई जगह भटकता रहा. उसे कभी मकान पसंद आता, तो किराया ज्यादा लगता. कहीं किराया ठीक लगता, तो बस्ती और माहौल पसंद नहीं पड़ता था. कहीं किराया और मकान दोनों पसंद पड़ते, तो वह अपने कार्यस्थल से काफी दूर लगता. क्या किया जाए, समझ नहीं आ रहा था. आखिर कब तक होटल में रहता. उसे वह काफी महंगा पड़ रहा था.

यों ही एक महीना बीतने पर उस की चिंता और ज्यादा बढ़ गई. एक दोपहर लंच के समय उस ने अपने सीनियर सहकर्मचारियों से अपनी परेशानी कह दी. उस की परेशानी सुन कर वे हंस पड़े.

“बेचारा आशियाना ढूंढ़ रहा है,” एक बुजुर्ग बोल पड़े.

आखिर क्लर्क के ओहदे पर कार्यरत एक शख्स उस की मदद में आया. ओम तिवारी नाम था उस का. लंबा कद. घुंघराले बाल. मितभाषी. वह पिछले 6 साल से यहां कार्यरत था.

“शाम को मेरे साथ चलना,” वह बोला.

उस शाम ओम तिवारी उसे अपनी बाइक पर बिठा कर निकल पडा.  20 मिनट राइड करने के बाद दोनों एक भीड़भाड़ गली से गुजर कर संकरी गली में आए, जिस के दोनों ओर कचोरी, समोसे और गोलगप्पे लिए ठेले वाले खड़े थे और युवक, युवतियां और बच्चे खड़ेखड़े खाने में व्यस्त थे.

कुछ पल के बाद वे एक खुले से मैदान में आए, जहां कुछ मकान दिखाई पड़े. ट्रैफिक के शोरगुल से दूर वहां शांति थी. कुछ मकान को पार करते हुए वे एक डुप्लैक्स के सामने आ कर रुके. बरांडे का गेट खोल कर अंदर प्रवेश किया.

डोर बेल बजाते ही दरवाजा खुला और एक अधेड़ उम्र के आदमी ने उन्हें देखते ही स्वागत किया, “अरे ओम, तुम यहां…”

“चाचाजी, ये मेरे दोस्त हैं प्रेम नेगी,” उस ने तुरंत काम की बात कर डाली, “ये हाल ही में दफ्तर में कैशियर के ओहदे पर नियुक्त हुए हैं. इन्हें किराए पर मकान चाहिए. और मुझे याद आया कि आप का मकान खाली है,“ फिर प्रेम नेगी की तरफ मुड़ कर वह बोला, “ये मेरे चाचाजी हैं, कमल शर्मा. हाल ही में हाईकोर्ट में क्लर्क के ओहदे से रिटायर हुए हैं.“

चाचा कमल शर्मा ने उस छोरे को सिर से पांव तक निरखा और फिर अपने भतीजे की ओर देख कर बोला, “ठीक है, मगर एक शर्त है. आप शादीशुदा हैं तो ही मैं अपना मकान किराए पर दूंगा. वरना मेरा तजरबा है कि कई कुंवारे छोरे यहां बाजारू लड़कियों को लाना शुरू कर देते हैं.“

“लेकिन, मैं तो शादीशुदा हूं,” प्रेम नेगी तुरंत बोल पड़ा और फिर अपने दोस्त ओम तिवारी की तरफ देख कर बोला, “मैं मकान मिलते ही अपनी घरवाली को ले आऊंगा.”

“ठीक है, आइए और मकान देख लीजिए.”

मकान मालिक कमल शर्मा ने उठ कर उन्हें अपने साथ ले कर बगल में जो खाली मकान था, वह दिखा दिया. मकान में 2 कमरे, रसोई और आगे आलीशान बरांडा था. कमरों में अटैच टौयलेट बाथरूम भी थे. उसे मकान पसंद आया.

“किराया 5,000 रुपए प्रति माह,” मकान मालिक कमल शर्मा ने प्रेम नेगी को किराया बता दिया.

फिर चाचा ने अपने भतीजे की तरफ देख कर कहा, “वैसे तो 6 महीने का किराया एडवांस लेने का दस्तूर है, लेकिन क्योंकि तुम्हें मेरा भतीजा ले कर आया है, मैं तुम से सिर्फ 3 महीने का एडवांस लूंगा. बोलो, है मंजूर?”

“मंजूर है,“ प्रेम नेगी खुशी से बोल पडा.

वह अगले ही दिन किराए के मकान में रहने आ गया. उसे मकान तो मिल गया, लेकिन झूठ बोल कर. वह शादीशुदा नहीं था. मकान मालिक से उस ने झूठ बोला था. यहां तक कि ओम तिवारी भी समझ रहा था कि वह शादीशुदा था.

2 सप्ताह यों ही बीत गए, फिर एक रोज मकान मालिक कमल शर्मा ने उस से पूछ ही लिया, “कब ला रहे हो अपनी बीवी को?”

यह सुन कर वह चौंक गया. दिनरात उपाय सोचने लगा. क्या किया जाए? बीवी को कहां से लाए?

एक दोपहर लंच के समय वह खाना खा कर अपनी केबिन में आराम से कुरसी पर आंखें मूंदे बैठा था कि उसे एक लड़की की आवाज सुनाई पड़ी.

“क्या आप ही प्रेम नेगी हैं?” अपनी आंखें खोलते ही वह हैरान रह गया.

एक अत्यंत खूबसूरत लंबे कद वाली, गोल चेहरे पर बड़ी आंखें और कमर तक झुके हुए लंबे बाल, गुलाबी सलवार और हलके हरे कमीज पर सफेद दुपट्टा ओढ़े हुए लड़की उस के सामने थी.

“जी,” वह बोल पड़ा, “कहिए, क्या काम है?”

“मैं रितू कश्यप हूं. 2 दिन पहले ही औडिट सैक्शन में कंप्यूटर औपरेटर की हैसियत से ज्वौइन किया है. मैं ने सुना है कि आप ने हाल ही में अपने लिए मकान ढूंढ़ा है. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं मकान ढूंढ़ने में?”

“जी,” वह एकदम से हड़बड़ा गया, ”आ… आप को मकान चाहिए?” इतना कह कर वह गहरी सोच में डूब गया.

उस के भीतर से आवाज आने लगी. यही मौका है, हां कर दे. इसे ही अपने साथ कमरे में रख ले झूठमूठ अपनी पत्नी बना कर. मगर क्या वह इस के लिए राजी होगी?

“शाम को दफ्तर से छूटते ही मुझे मिलना. मैं जरूर आप की मदद कर दूंगा,” उस ने लड़की को आश्वस्त करते हुए कहा.

शाम को दफ्तर से छूटते ही वह रितू को औटोरिकशा में अंबेडकर पार्क ले आया. दोनों एक बेंच पर बैठे. उस ने थोड़ी देर सोचा. बात कहां से शुरू की जाए. फिर वह बोला, “देखिए रितूजी, मैं आप से झूठ नहीं बोलूंगा. सच ही कहूंगा. मैं ने किराए का मकान झूठ बोल कर लिया है. सरासर झूठ…”

“कैसा झूठ…?“ रितू ने पूछा.

“यही कि मैं शादीशूदा हूं. वैसे, मैं अभी कुंवारा हूं.”

“लेकिन, इस से मुझे क्या…?” रितू ने पूछ लिया.

“यदि तुम्हें मेरे मकान का एक कमरा चाहिए, तो तुम्हें मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा, वरना मुझे भी वो मकान खाली करना पड़ेगा.”

“पत्नी बन कर…” वह आश्चर्यचकित रह गई. फिर लड़के को घूरती रही. दिखने में तो अच्छा है. भला भी लगता है. वह सोचने लगी. फिर कालेज में तो बहुत नाटक किए हैं. कई स्मार्ट लडकों को अपने पीछे लट्टू बना कर घुमाया है. एक और नाटक सही. देखते हैं कि कहां तक सफलता हासिल होती है.

“मंजूर है,” वह आत्मविश्वास के साथ बोली.

“क्या…?” वह हक्काबक्का सा रह गया. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई लड़की इतनी जल्दी इतना बड़ा निर्णय ले सकती है.

“क्या तुम भी मेरे साथ झूठ बोल कर रहोगी?”

“बिलकुल,” वह बोली, ”चलिए, मकान दिखाइए.”

“देखिए रितूजी, ये झूठ सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा. हमारा मकान मालिक और दफ्तर का कोई भी इस राज को जान न पाए, ध्यान रहे… ये सिर्फ नाटक है,” उस ने चेतावनी दे कर कहा.

“आप बेफिक्र रहिए. चलिए, मकान देखते हैं.“

अगले दिन सवेरेसवेरे रितू अपना सूटकेस ले कर प्रेम के घर चली आई. उस ने मकान के कमरों का निरीक्षण किया. दोनों कमरे अलगअलग थे और दोनों में अटैच बाथरूम और टौयलेट देख कर वह हंस पड़ी.

“वाह, कमरे तो बिलकुल अलग हैं. हम दोनों आराम से अलगअलग रह सकते हैं.”

प्रेम ने मकान मालिक को बुला कर रितू का परिचय अपनी बीवी के तौर पर करवा दिया.

“रितू को यहां एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिली है. उस का समय भी दफ्तर की तरह ही 11बजे से 5 बजे है. हम दोनों साथ ही काम पर जाएंगे और लौटेंगे.”

“ठीक ही हुआ. तुम जल्दी ही अपनी बीवी को ले आए,” मकान मालिक ने भी खुश होते हुए कहा.

और फिर नाटक शुरू हो गया.

प्रेम और रितू एकसाथ मकान में रहने लगे, मियांबीवी की तरह. दोनों का प्रवेश द्वार एक ही था, लेकिन बरांडा पार करते हुए दोनों अलगअलग कमरे में दाखिल हो जाते. दोनों साथसाथ दफ्तर जाते और छूटने के बाद बाजार में घूम कर रैस्टोरैंट में शाम का खाना खा कर ही घर लौटते. एकाध महीने बाद ही प्रेम अपने गांव से बाइक भी ले आया. फिर दोनों हमेशा बाइक पर एकसाथ नजर आने लगे. दफ्तर में किसी को जरा सा भी शक नहीं हुआ. यहां तक कि ओम तिवारी को भी नहीं.

दिन तो व्यस्तता में गुजर जाता, लेकिन रात को दोनों अलगअलग कमरे में बिस्तर में लेटे सोचने लगते. प्रेम सोचता, “क्या अजीब परिस्थिति है? कुंवारा होते हुए भी शादीशुदा होने का नाटक करना पड़ रहा है, वह भी एक खूबसूरत लड़की के साथ.”

रितू कभीकभार रात में कुछ आहट सुनते ही जाग उठती. कहीं वह बंदा मेरे कमरे में आने की कोशिश तो नहीं कर रहा? क्या भरोसा? मौका मिलते ही पतिपत्नी के नाटक को सही बना दे. वाह रितू, तू ने भी बड़ी हिम्मत की है. मर्द के साथ रात बिता रही है. यदि कोई अनहोनी हो गई तो…?

व्यस्त दुनिया में कोई क्या कर रहा है, कैसे जी रहा है, यह सोचने की किसी को तनिक भी फुरसत नहीं होती. लेकिन जहां किसी लड़केलड़की के संदिग्ध संबंधों की बात आती है, वहां झूठ ज्यादा देर तक छुपा नहीं रहता और सच सिर चढ़ कर बोलता है. भूख, बीमारी, गरीबी व गंदगी सहन करने वाला समाज यदि कोई अनैतिक संबंधों के बारे में पता चल जाए तो फिर उसे कतई सहन नहीं कर सकता. फिर यदि कुंवारे लड़कालड़की हों, तो फिर बात ही क्या है?

दफ्तर में ओम तिवारी को भी भनक लग गई.

“रितू को नकली बीवी बना कर बड़े मजे लूट रहे हो यार… कभीकभार हमें भी मौका दे दिया करो. आखिर मकान तो हम ने ही दिलवाया है. खाली भी करवा सकते हैं. समझे?“

यह सुन कर प्रेम नेगी के पांव तले जमीन सरक गई.

शाम को उस ने रितू से कहा, “हमारा झूठ पकड़ा गया है. ओम तिवारी को इस का पता चल गया है. वह हमारे मकान मालिक को जरूर बता देगा.”

रितू के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएं उभर आईं.

उस रात प्रेम नेगी को नींद नहीं आई. उसे यकीन हो गया कि उस का झूठ अब ज्यादा चलने वाला नहीं था. फिर उसे डर था कि उस की इस मजबूरी का फायदा उठाते हुए कहीं ओम तिवारी उस के घर आ कर रितू के साथ जबरदस्ती न करने लगे. उस की नीयत ठीक नहीं थी. उसे रात भयानक लगने लगी थी. उस ने तय कर लिया कि सवेरे सबकुछ मकान मालिक को सहीसही बता देगा. उस ने अपने सेलफोन की घड़ी में देखा तो रात के साढ़े बारह बज चुके थे, तभी किसी ने उस का दरवाजा खटखटाया.

“नेगी… दरवाजा खोलो. मैं हूं शर्मा… मकान मालिक.”

“इतनी रात… मकान मालिक,“ वह हड़बड़ा गया.

कुछ पल वह सोचता रहा कि दरवाजा खोले या नहीं. खटखटाहट दोबारा हुई.

बिस्तर से उठ कर उस ने दरवाजा खोला.

“नेगीजी… बड़े मजे लूट रहे हो यार,” ओम तिवारी ने कुछ बहक कर कहा. उस ने शराब पी रखी थी और मकान मालिक कमल शर्मा मुसकरा रहा था. वह बोला, “आज की रात ओम यहीं सोएगा, तुम्हारे साथ.”

फिर वे दोनों बेझिझक अंदर घुस आए. ओम तिवारी के हाथ में शराब की बोतल थी और वह नशे में था. मकान मालिक कमल शर्मा के मुंह से भी बदबू आ रही थी. मेज पर बोतल रख कर ओम तिवारी सोफे पर बैठ गया और बहकी हुई आवाज में बोला, “कहां है तुम्हारी नकली बीवी? महबूबा… आज तो हमें उस से ही मिलना है.”

“ तिवारीजी….देखिए रितू बीमार है और अपने कमरे में सो रही है,” वह गिड़गिड़ाने लगा.

फिर उस ने मकान मालिक कमल शर्मा के सामने अत्यंत दीन हो कर कहा, “माफ कीजिए. मैं ने झूठ बोला था. रितू मेरी बीवी नहीं, बल्कि मेरे ही दफ्तर में कार्यरत है. उसे भी मकान की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे यहां ले आया. गलती मेरी है. मैं ने झूठ बोला था. आप कहें तो हम कल ही मकान खाली कर देंगे.”

“छोड़ यार… मकान खाली करने को कौन कहता है?” ओम तिवारी नशे में बोल पड़ा, “मुझे तो सिर्फ रितू चाहिए. तुम अकेलेअकेले मजे लूटते हो. आज हमें भी उस का स्वाद चखने दो.”

ओम तिवारी लड़खड़ाता हुआ अंदर के किवाड़ की तरफ आगे बढ़ा, जहां पर रितू सोई हुई थी. उस ने जोर से धक्का दे कर दरवाजा खोलने की कोशिश की.

“दरवाजा खोल जानेमन, हम भी प्रेम के जिगरी दोस्त हैं.”

“नहीं तिवारी, तुम ऐसा नहीं कर सकते,” चीख कर प्रेम उस की ओर लपका और उसे धक्का दे कर दरवाजे से दूर धकेल दिया. मकान मालिक कमल शर्मा ने तभी उस की तरफ लपक कर उसे अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया, फिर वहीं पर दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई.

प्रेम नेगी ने मकान मालिक कमल शर्मा को 2-3  घूंसे जड़ दिए. उधर ओम तिवारी ने जोर से दरवाजे पर लात मारी और दरवाजा खुल गया. कमरे में अंधेरा था. ओम तिवारी ने प्रवेश किया.

“ओह,” अंदर घुसते ही वह जोर से चीखा, जैसे उस पर किसी ने करारा वार किया हो. कमल शर्मा की गिरफ्त से छूटने की कोशिश करते हुए प्रेम चिल्लाया, “रितू, यहां से भाग निकल.” तभी कमरे में लाइट जली और हाथ में टूटा हूआ गुलदस्ता लिए रितू कमरे से बाहर आई.

“छोड़ दे बदमाश, वरना इसी गुलदस्ते से तेरा भी सिर फोड़ दूंगी.”

मकान मालिक कमल शर्मा की तरफ आंखें तरेर कर रितू ने  देखा. कमल शर्मा ने सहम कर देखा, कमरे में ओम तिवारी बेहोश पड़ा हुआ है. उस ने झट से प्रेम को छोड़ दिया.

“रितू, तुम ठीक तो हो,” प्रेम उस की ओर दौड़ आया.

तभी वहां आंगन में पुलिस की जीप आ कर रुकी और तुरंत 2 पुलिस वाले और एक महिला अफसर अंदर आ पहुंचे.

“रितू कश्यप आप हैं?” महिला अफसर ने रितू की तरफ देख कर पूछा.

“ जी मैडम, ये मेरे मकान मालिक हैं- कमल शर्मा और वो जो कमरे में शराब के नशे में धुत्त पड़ा है, वो ओम तिवारी मेरे ही दफ्तर में काम करता है. इन दोनों ने हमारे घर में घुस कर मेरे पति को पीटा और मुझ पर बलात्कार करने की कोशिश की. इन्हें गिरफ्तार कीजिए. कल सुबह हम दोनों थाने आ कर रिपोर्ट लिखवा देंगे.“

“मैं… मैं बेकुसूर हूं,”  बोलतेबोलते मकान मालिक कमल शर्मा की घिग्घी बंध गई. 2 पुलिस वाले बेहोश ओम तिवारी को उठा कर ले गए और महिला अफसर ने मकान मालिक कमल शर्मा को धक्का दे कर कमरे से बाहर धकेल किया.

पुलिस की जीप के जाते ही प्रेम और रितू ने एकदूसरे की ओर बड़े प्यार से देखा.

“रितू… ये पुलिस, तुम ने बुलाई थी?” वह आश्चर्यचकित हो उठा.

“बिलकुल…” रितू ने कहा, “खतरा भांप कर मैं ने ही महिला सुरक्षा हेल्पलाइन पर अपने मोबाइल से फोन कर दिया था.”

“तुम सचमुच बहादुर हो,” कह कर प्रेम ने उस का हाथ चूम लिया.

“तुम भी तो बड़े प्यारे हो, जो मेरी खातिर अपनी जान जोखिम में डाल उन बदमाशों से भिड़ गए,” रितू ने भी प्रेम के गालों पर हलकी सी चुम्मी ले ली.

“मगर, तुम ने झूठ क्यों बोला?” प्रेम ने मुसकरा कर पूछा, “हम पतिपत्नी तो हैं नहीं, फिर कल थाने में रिपोर्ट कैसे लिखवाएंगे?”

“कोई बात नहीं,” रितू खुशी से बोल पड़ी, “कल सुबह 11 बजे हम शादी पंजीकरण के लिए अदालत जाएंगे, फिर कानूनी तौर पर पतिपत्नी बन कर पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाएंगे. आखिर कब तक झूठ बोलते रहेंगे? वह कहावत है न, झूठ बोले कौआ काटे. बोलो है मंजूर?”

“मंजूर है, मंजूर… बीवीजी,” प्रेम ने उसे आलिंगन में जकड़ लिया.

जीवन संघर्ष : एक मां की दर्दभरी दास्तान

आज मेरे यूट्यूब चैनल की पहली पेमेंट आई थी. मैं बहुत खुशी थी. जिंदगी में पहली बार अपनी कमाई को अपने हाथों में लेने का सुख अलग ही था.आज मैं ने खीर बनाई. अपने ढाई साल के बेटे मेहुल को खिलाई. फिर उसे पलंग पर सुला दिया. मैं भी उस के पास लेट गई.

इतने में श्रेया का फोन आया.श्रेया मेरे बड़े जेठ की बेटी थी और मुझ से 3 साल बड़ी. मेरे लिए वह मेरी सहेली और बड़ी बहन से कम नहीं थी.श्रेया ने मुझे पहली पेमेंट आने पर बधाई दी. मैं ने उसे धन्यवाद दिया. बात होने के बाद मैं फिर मेहुल के पास लेट गई.मैं ने जोकुछ भी किया, अपने बेटे के लिए किया. मैं बेटे को सहलाते हुए यादों की गलियों में खो गई.मेरे घर में मेरे पिता, मां और बड़े भाई राहुल समेत मैं यानी रितिका 4 ही लोग थे. मेरे पापा हलवाई थे. हमारे घर का खर्चा आराम से चलता था.

मैं 7 साल की थी, जब पिताजी हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए. मैं अपने पिता के बहुत करीब थी. मैं बहुत रोई थी. मां का भी रोरो कर बुरा हाल था. भैया भी बहुत उदास थे. वे 13 साल के थे और 7वीं क्लास में पढ़ते थे.धीरेधीरे हम सब ने खुद को संभाला. मम्मी सिलाई का काम कर के हम दोनों भाईबहन को पालने लगीं. मेरे भाई का पढ़ने में मन नहीं लगता था.

वह किसी होटल में बरतन धोने का काम करने लगा. मेरी पढ़ने में दिलचस्पी थी. मेरी जिद देख कर मम्मी ने मुझे पढ़ने भेजा.समय तेजी से बीता. मेरे भैया की शादी रीना नाम की लड़की से हो गई. कुछ दिन तो घर का माहौल अच्छा रहा, पर बाद में रीना भाभी ने अपने लक्षण दिखाने शुरू कर दिए.रीना भाभी हर वक्त घर में कलह बनाए रखतीं. मेरी पढ़ाई को ले कर मुझे ताने देती रहतीं.

इन्हीं तानों के चलते मेरा मन भी पढ़ाई से ऊब गया.रीना भाभी के जब पहला बच्चा हुआ, तो उस की देखभाल के बहाने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी गई.इतने में मेरा मुंहबोला मामा मेरी मां के पास आया. उस ने मां को मेरे लिए गुजरात के किसी परिवार में रिश्ता बताया. तब मैं खुद भी शादी कर के परिवार के इस माहौल से निकलना चाहती थी. वे लोग बिना दहेज के शादी करने को तैयार थे.

बदले में एक लाख रुपए देने के लिए तैयार थे. मम्मी व भैया शादी के लिए तैयार हो गए.मैं ने अपने होने वाले पति को कभी नहीं देखा था. मामा ने एक लाख में से 50,000 रुपए मम्मी को थमा दिए. बाकी के 50,000 शादी की तैयारी में खर्च हो गए.

मंदिर में हमारी शादी हुई. मैं तब भी अपने पति का चेहरा ठीक से देख नहीं पाई. घूंघट और रीतिरिवाज आड़े आए. न ही मायके वालों ने चेहरा देखने की जहमत उठाई.मैं शादी कर के अपनी ससुराल गुजरात आ गई. जब मैं ने अपनी ससुराल में कदम रखा, तब मेरी उम्र 16 साल की थी. मेरे गृहप्रवेश के बाद शादी की सारी रस्में की गईं. मैं कुछ डरी सी, सहमी सी, शरमाती हुई घर की कुछ औरतों के साथ अपने कमरे में चली आई.मुझे उन्हीं औरतों से पता चला कि मेरे आदमी की उम्र 39 साल है.

मेरे सासससुर की उम्र मेरे दादादादी जितनी है. मेरे जेठ और जेठानी मेरे मम्मीपापा की उम्र के हैं. मेरे जेठ के बच्चे मेरी उम्र के हैं. मैं ने तो अभी ठीक से जाना ही नहीं था कि उन औरतों में से किस के साथ मेरा कौन सा रिश्ता है? बातों से ही समझ में आया उन में से एक मेरी ननद और एक मेरी जेठानी थी. मेरा दिल अंदर से कांप उठा.थोड़ी देर बाद मेरे पति कमरे में आए.

मैं ने उन्हें ध्यान से देख. उम्र के इस दौर में वे जवान तो नहीं लगते थे. मैं इसे घर वालों के साथ धोखा भी नहीं मानती थी. रुपयों की चमक ने उन्हें अंधा कर दिया था. उन्होंने इन्हें देखने की जहमत ही नहीं उठाई थी. देखते तो पता चल जाता कि वे 22 साल के नहीं हैं, बल्कि अधेड़ हैं. मेरे पिताजी होते तो वे ऐसा कभी नहीं होने देते. यह बेमेल ब्याह था.मेरी सुहागरात का समय आया. मैं पीरियड में थी. पीरियड के समय दर्द से बेहाल थी. मुझे रोना आ रहा था. मैं ने अपने पति को बताया भी, लेकिन उन्होंने जबरदस्ती मुझ से संबंध बनाया. उन्हें मेरे शरीर के दर्द और पीरियड होने से कोई मतलब नहीं था.

मैं मुरदा सी हो गई थी. पति संतुष्ट हो कर सो गए, लेकिन मैं नहीं सो पाई. मेरी आंखों में बहुत सारा पानी था, जो तकिए के साथ मेरी पूरी जिंदगी को भिगो कर चला गया. मैं पूरी रात बैठी रोती रही.अगली सुबह मैं ने सुना कि ससुराल वालों ने मुझे 2 लाख रुपए में खरीदा था. डेढ़ लाख मेरे मुंहबोले मामा ने रख लिए और 50,000 मेरी मां को दे दिए.

यह कैसी मां और कैसे मामा हैं?पति आते और एक मुरदा के साथ सैक्स कर के सो जाते. मुझे घर की सारी औरतें मुरदा लगीं. बहुत बार मरने का खयाल मन में आया, लेकिन मैं मरने की हिम्मत न जुटा पाई.धीरेधीरे मुझे पता चला कि इस घर में सब से ज्यादा मेरी ननद की चलती है.

ननद के 3 बेटियां हैं. बूढ़े सासससुर हैं. पति भी हैं, जो पेंटिंग का काम करते हैं, फिर भी मेरी ननद ज्यादातर अपने मायके में पड़ी रहती है. मेरी इस ननद की उम्र 41 साल है. लड़के की चाहत में वह लड़कियों की सेना तैयार कर रही है.मैं ने अपनी ब्याही गई सखियों से सुना था कि जब घर में बहू आ जाती है, तो सभी औरतें घर में काम करने की हड़ताल कर लेती हैं.

मेरे साथ भी ऐसा हुआ. मेरी मेहंदी भी नहीं उतरी थी कि पूरे घर के काम की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी. मैं पूरे घर का काम कर के खाना खाती थी. थोड़ी सी गलती हो जाती, तो ननद मुझ पर चिल्लाती. मैं पीड़ा से भर जाती. मन में अनेक तीखे सवाल उठते.

उन में से एक यह भी था कि यही बात प्यार से भी तो समझाई जा सकती थी?मुझे खरीदा भी गया है तो इस के पैसे मेरे ससुर और पति ने दिए होंगे? ननद का मुझ पर इस तरह चिल्लाने का कोई हक नहीं है. पर एक दिन कुछ अलग हुआ. मैं रो रही थी कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा. मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो हैरान रह गई कि यह अनजान लड़की कौन है? अपना परिचय दिया तो पता चला कि वह मेरे जेठ की बेटी श्रेया थी. उस दिन हम पहली बार मिले थे.

श्रेया इस बेमेल ब्याह से खुश नहीं थी, इसीलिए वह मेरे ब्याह में भी नहीं आई थी. केवल टैलीफोन पर बात होती थी.श्रेया ने कहा, ‘‘जो हुआ उसे मैं बदल नहीं सकती हूं. रिश्ते में तो आप मेरी चाची लगती हैं, मेरी मां जैसी, लेकिन हम दोस्त बन कर रहेंगी. दोस्त के साथ बहन की तरह,’’ इतना हौसला दे कर श्रेया चली गई.मेरे पति ने मुझे मोबाइल फोन दिलवा दिया था.

उन के मन में डर था कि मैं कहीं भाग न जाऊं. बुढ़ापे की शादी में आमतौर पर असंतुष्ट हो कर लड़कियां भाग जाती हैं. वे हमेशा मेरे टच में रहना चाहते थे. मेरी शादी को मुश्किल से 15 दिन हुए थे कि मुझे उलटी आई. अगले 15 दिन भी यही हालत रही. मेरी सासू मां ने अंदाजा लगा लिया कि उन के घर में पोता आने वाला है. पोती क्यों नहीं आ सकती? बस, इसी सवाल का जवाब नहीं मिलता है.

किसी ने मुझे डाक्टर के पास ले जाना जरूरी नहीं समझा. मैं इस हालत में भी मैं पूरे घर का काम करती रही, बिना किसी की हमदर्दी के. पति भी मेरे शरीर को नोचते और सो जाते. उन्हें अपनी संतुष्टि से मतलब था. केवल श्रेया सब से छिपा कर कभी चौकलेट, कभी कुल्फी, कभी कोल्ड ड्रिंक, तो कभी फल ला कर देती. वह कहती,

‘‘समय पर खाना खाया करो. जल्दी सोया करो. कुछ खाने का मन करे तो चाचाजी को बोल दिया करो. मैं दे जाया करूंगी.’’मैं रात को जल्दी सोने लगी.

पति रात को आते और सो जाते. 3 दिन तक यही चला रहा. तीसरे दिन वे उखड़ेउखड़े लगे. वजह मुझे पता नहीं चली. रात को पति ने कंधा पकड़ कर खड़ा किया. मैं हड़बड़ा कर उठ गई. उन्होंने कहा, ‘‘3 दिन से मैं तुम्हारा नाटक देख रहा हूं. तुम रोज जल्दी सो जाती हो. यह सब मुझे बरदाश्त नहीं है. हमारे यहां सभी रात के 10 बजे सोते हैं.’’मैं पति का यह रूप देख कर डर गई.

मैं रोते हुए बोली, ‘‘मुझे दिन में बहुत थकान महसूस होती है. सिरदर्द होता है. मैं सारे घर का काम कर के खुद खाना खा कर सोती हूं.’’पति ने कहा, ‘‘वह मैं कुछ नहीं जानता. कल से 10 बजे के बाद सोना.’’मैं समझ ही नहीं पाई कि यह कैसा पति है, जो अपनी पत्नी की तकलीफ को समझ ही नहीं पा रहा है. मेरे पास सहने के अलावा कोई चारा नहीं था.

मैं 10 बजे के बाद सोने लगी. मैं दिन में सो कर अपनी नींद पूरी कर लेती. इस हालत में मेरा अलगअलग चीजें खाने का दिल करता. कभी वे ला देते, कभी कहते कि पैसे नहीं हैं. इन चीजों में पैसे लगते हैं, फ्री में कुछ नहीं मिलता है.कभीकभार जब ननद अपनी ससुराल जाती तो पति मेरे लिए पानीपुरी, रसगुल्ले, मिर्ची बड़ा, फल वगैरह ला देते थे. पर ननद को पता चलता तो भी मुझे, कभी मेरे पति को डांटती रहती, ‘‘इतना सब खर्च करने की क्या जरूरत थी? खाएगी तो उलटी कर देगी.

पैसे बचाओगे तो काम आएंगे.’’मेरा मन गुस्से से भर जाता. मैं किचन में काम कर रही होती. मन होता कि हाथ की कड़छी ननद के सिर पर दे मारूं.धीरेधीरे मेरी डिलीवरी का समय नजदीक आने लगा. मुझे इस हालत में खाना खाने को नहीं मिलता था. एक दिन मुझे भयंकर दर्द हुआ. मेरे पति स्कूटर पर अस्पताल ले कर गए. इतना भी नहीं हुआ कि वे मुझे आटोरिकशा में ले जाते.डाक्टर को पता चला तो उन्होंने पति को जबरदस्त डांट लगाई,

‘‘इतनी तो समझ होनी चाहिए थी कि पत्नी को आराम से लाते हैं. बस, बच्चे पैदा करने आते हैं.’’मेरे पति कुछ बोल नहीं पाए थे. बोलते भी क्या? फिर धीरे से बोले, ‘‘मेरे घर में गाड़ी नहीं है.’’‘‘तो किराए की ले लेते. हालत देखी है इस की? कुछ हो जाता तो कौन जिम्मेदार होता?’’

डाक्टर ने फिर डांटा.डिलीवरी हुई. लड़का हुआ था. वह टुकुरटुकुर मेरी तरफ देख रहा था. यह देख कर मेरी छाती से दूध बह निकला. मैं करवट ले कर दूध पिलाने लगी.डिलीवरी के बाद मेरा बड़ा मन था कि अपने बच्चे को गुड़ या शहद चटाने की रस्म मैं करूं.

लेकिन मैं बेहोश थी. होश में आई तो ननद यह रस्म पूरी कर चुकी थी. मैं बहुत रोई. मेरे मन के भीतर की चाह सपना बन गई थी.मैं ने पति से कहा, ‘‘आप को इतना तो पता होना चाहिए था कि बच्चे को गुड़ या शहद चटाने की रस्म उस की मां करती है?’’पहली बार पति को मेरे भीतर के गुस्से का सामना करना पड़ा था. काफी देर तक वे बोल नहीं पाए थे, फिर कहा, ‘‘अब पूरी कर लो यह रस्म.

गुड़ भी है और शहद भी है.’’मैं डिलीवरी के बाद घर आई. मुश्किल से अभी 15 दिन हुए थे कि ननद घर में काम करने का गुस्सा छोटीछोटी बच्चियों पर निकालने लगी. एक वजह यह भी थी कि मेरे पहला ही बेटा हो गया था. इस में किसी का क्या कुसूर था?मेरी ननद मेरा सब से बड़ा सिरदर्द थी. उस की 3 लड़कियां थीं और लड़के की चाहत में लड़कियों की फौज इकट्ठी कर ली थी. उस की ससुराल में सासससुर थे, तो अकसर बीमार रहते थे. पति अच्छाखासा कमाता था.

पर मेरी ननद में इतनी बुद्धि नहीं थी कि लड़कियों की अच्छी देखभाल करे, पढ़ाई करवाए, सासससुर की सेवा करे. पति थकाहारा आए तो उस के लिए खना बनाए. मायके में भी आए तो हंसतेखेलते शांति से आए. 41 साल की हो गई थी. इतनी अक्ल तो होनी चाहिए थी न.

न ही मेरे सासससुर उसे कुछ कहते थे.मुझे ठीक से खाना न मिलने के चलते छाती में दूध ठीक से नहीं आता था. मैं भी अपनी भूख को बरदाश्त कर लेती, लेकिन जब मेरा मेहुल छाती को मुंह में डालता, तो उस में कुछ नहीं आता. यह मैं बरदाश्त नहीं कर पाती. मैं छाती को जोर से दबाती तो कुछ दूध आता. मैं खुश हो जाती, लेकिन फिर वह भूख के चलते अपनी उंगली मुंह में डाल कर चूसता रहता.

मैं ने पति को भी इस के बारे बताया, लेकिन वे कुछ नहीं बोले. उन्हें भी मेरा शरीर नोचने के अलावा और कोई मतलब नहीं था.मेरे लिए सब से बड़ी समस्या मेरी ननद थी. मैं ने उसे घर से निकालने की ठान ली. मैं बीमार होने का बहाना करने लगी. घर का सारा काम ननद को करना पड़ता.

मेहुल के लिए श्रेया ने ऊपर का फीड देने के लिए फैरेक्स ला दिया था. मैं उसे दूध में मिला कर देती रही. मन में तसल्ली थी कि बच्चे का पेट भर रहा है. मैं भी चुपचाप खाना चोरी कर के अपने कमरे में ला कर खा लेती. सीधी उंगली से घी न निकले, तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है.

ननद भी रोजरोज घर का काम करने से तंग आ गई थी. उस ने आव देखा न ताव अपना सामान पैक किया और अपनी ससुराल चली गई. जब तक यहां रही वह ताने देती रही. मेहुल रोता था तो मैं दौड़ कर उसे संभालने चली जाती. गोद में उठाती, फैरेक्स देती और खेलने के लिए अपने साथ ले आती. मेरी सास और ननद मुझे सुना कर आपस में बातें करतीं, ‘यह बच्चे को बिगाड़ रही है.

हम ने भी बच्चे पैदा किए हैं. हम ने कभी ऐसा नहीं किया.’मैं ने बहुत कोशिश की कि एक कान से सुनूं और दूसरे कान से निकाल दूं, लेकिन शब्द इतने तीखे होते कि सीधे दिल पर लगते.मेहुल 5 महीने का हो गया था. एक दिन मैं कमरे में बैठी रो रही थी. इतने में श्रेया आई.

उस ने बातोंबातों में मेरे हुनर के बारे पूछा. ‘‘मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूं,’’ मैं बोली.उस ने यूट्यूब पर अपने वीडियो अपलोड करने के लिए कहा. इस से आमदनी बढ़ेगी. हाथ में चार पैसे होंगे. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.उस ने मुझे मोबाइल पर काम कैसे करना है, सब समझाया. मैं अपने पति और सास से छिप कर काम करने लगी और बिजी रहती. मेहुल को ठीक से देख नहीं पाती थी.मेहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, अच्छी खुराक मिलने से प्यारा लगने लगा.

सभी उसे प्यार करने लगे. ससुरजी उस के लिए खिलौने ले कर आने लगे. ननद को पता चला तो उस ने अपने पिता को बुरी तरह डांटा, ‘‘बच्चे पर इतना पैसा बरबाद करने की कोई जरूरत नहीं है.’’उस के बाद ससुरजी ने कुछ भी लाना छोड़ दिया. मैं ने अपनी सास को अपनी कमाई के बारे में बताया. वे परेशान तो हुईं, लेकिन पैसा आने से खुश भी हो गईं. मैं ने एक दिन बैंक से पैसा निकाला. अपनी सास के लिए एक जोड़ी पायल, अपने मेहुल के लिए अच्छेअच्छे कपड़े लिए.

अपने पति के लिए 2 शानदार कमीजें लीं और रात को पहनने के लिए पाजामाकुरता भी लिया. अपने और इन के लिए अंडरगारमैंट भी लिए.घर आ कर सभी को दिखाया, तो वे बहुत खुश हुए. उन्हें एहसास होने लगा कि बहू समझदार है. पति, सासू मां, ससुरजी को एहसास होने लगा कि खुद की बेटी की भी ससुराल है. उस का अपना घर है. उसे यहां हमारे घर में बोलने का कोई हक नहीं है.

एक दिन किसी बात पर ननद ने मुझे ले कर झगड़ा किया, तो न केवल मेरे पति ने, बल्कि सासू मां और ससुरजी ने साफ शब्दों में समझा दिया कि उसे हमारे घर में बोलने की जरूरत नहीं है. वह ऐसी रूठी कि फिर लौट कर नहीं आई.मेरे पति और सासू मां मुझे सहयोग करने लगे.

मेहुल का खयाल रखा जाने लगा. मेरी माली हालत अच्छी होने लगी, लेकिन मैं अपने मन के भीतर की इस टीस को कभी नहीं भूल पाई कि मेरी मां और मामा ने मुझे बेच दिया है. बीच में दलाली खाई है. यह भी कि मेरा पति अधेड़ उम्र का है. जब मैं जवान होऊंगी तो यह बूढ़ा हो जाएगा.

मेरी जवान हसरतों और उमंगों का क्या होगा? मन के भीतर की इच्छाओं को कैसे दबाऊं कि मुझे रात को बूढ़े मर्द की नहीं, बल्कि जवान मर्द की जरूरत होगी? इस हालत को कैसे संभाल पाऊंगी? इन सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं. मैं जिंदगी के आखिरी पलों तक संघर्ष करती रहूंगी.

रात में कम खाना चाहिए, Weight Loss के ऐसे मिथ्स आप तो फौलो नहीं करते है

फिटनेस को लेकर आज हर शख्स काफी सख्त रहता है. कोई अपने शरीर का वेट कम करना चाहता है तो कोई वजन बढ़ाना चाहता है लेकिन इससे जुड़े कई तरह के मिथ है जिनपर लोग आंख बंद करके विश्वास कर लेते हैं.

अमूमन आपने लोगों से सुना होगा कि आगर आपको वेट कम करना है तो आप रात का खाना कम कर दो. यह एक तरह का मिथ है जो कि कभी नहीं अपनाना चाहिए. फिटनेस से जुड़े लोग भले ही इसे न मानते हो लेकिन एक्सपर्ट के मुताबिक यही कहा जाता है कि वेट कम करने के लिए यह जरूरी नहीं कि आप रात को खाना कम कर दें.

मिथ 1 : रात में खाना खाने से वजन कम नहीं होता

ऐसा रिसर्च में पाया गया है कि रात का खाना छोड़ देने से वजन बढ़ जाता है. इसकी जगह जिन लोगों ने हल्की डाइट ली उनका वजन कम हुआ. तो ये दोनों फैक्ट पूरी तरह गलत है कि रात में खाना न खाने से या हल्का खाना से, आपका वजन कम होगा. इसलिए हमेशा अपनी ओवरऔल कैलोरी इंटेक पर ध्यान दें.  आप सोचिए कुछ लोग 5 मील में 1500 कैलोरी लेते हैं तो कुछ 2 मील में भी 1500 कैलोरी लेते हैं. साइंस भी इस बात को नहीं मानता कि रात में खाना खाने से वजन बढ़ता है. हां, कुछ हद तक इसे सही ठहराया जा सकता है इस बात को जरूर सच मानते हैं कि जल्दी खाना खाने से डाइजेस्ट सही होता है और मेटाबौलिज्म भी बढ़ सकता है.

मिथ 2 : रात में कार्बोहाइड्रेट नहीं खाना चाहिए

आजकल सभी युवाओं में जिम का क्रेज है अपनी फिटनेस के लिए जिम ट्रेनर को जरूर हायर कर लेते हैं लेकिन कुछ ट्रेनर आपका सच में गाइड करते हैं, तो  कई बार वह भी गलती कर बैठते हैं. कई बार वह गलत सलाह देते हैं कि वह वजन कम करना है, तो  रात में कार्बोहाइड्रेट खाना छोड़ देना चाहिए क्योंंकि रात में  कार्बहाइड्रेट खाने से बौडी में फैट बढ़ जाता है.
लेकिन इस बात की सच्चाई यह है कि जब आप कोई बाहर का काम कर रहे होते हैं, तो आपको अपनी एनर्जी को पूरा करने के लिए कार्बोहाइड्रेट की जरूरत होती है. इस एनर्जी के लिए रोटी, ओट्स, चावल को खाने में शामिल करना जरूरी हो जाता है. इसलिए एक खास समय के बाद कार्बोहाइड्रेट न खाने की सलाह देना गलत होता है. रात में रोटी का सेवन किया जा सकता है, लेकिन ऐसे कार्ब का सेवन करें जो जल्दी डाइजेस्ट हो जाए.

मिथ 3 : रात का खाना जल्दी खाएं

कई बार वेटलौस करने के लिए ये भी टिप्स दिए जाते हैं कि आप रात का खाना जल्दी खाएं. हालांकि एक हैल्दी लाइफ के लिए भी यह माना जाता है कि आप रात का खाना शाम के 7 बजे तक ही कर लें.

लेकिन आजकल रात में देर तक मोबाइल देखने की लाइफस्टाइल की वजह से ज्यादातर लोग रात 11.00 बजे से पहले नहीं सोते हैं. ऐसे में रात का खाना अगर जल्दी कर लिया हो, तो  देर तक जागने के कारण उन्हें जल्दी भूख लग जाती है. लेट सोने की वजह से रात के खाने और सोने के समय के बीच इतना लंबा गैप रखने से अकसर भूख लग ही जाती है और देर रात को मंचिंग की नौबत आ जाती है. जिस वजह से लोगों का वजन बढ़ जाता है. इसलिए हैल्दी डाइट को लेकर यह एक तरह का मिथ है कि रात का खाना जल्दी खाने से आपका वजन कम होगा. बल्कि आपको फिर से जल्दी भूख लगेगी. जिससे वजन बढ़ जाएगा.

मिथक 4 : रात का खाना हल्का होना चाहिए

रात का खाना हल्का होना चाहिए, इसका वजन कम करने से कोई रिलेशन नहीं होता है. बल्कि इससे होता है कि हल्का खाना जल्दी डाइजेस्ट होता है और जल्दी से पचने के बाद पेट भरा हुआ महसूस कराता है.आपने देखा होगा ज्यादातर लोग रात के खाने में सिर्फ सूप या सलाद खाते हैं लेकिन ऐसा करने से आपको जल्दी भूख लग सकती है. इसलिए सूप और सलाद के साथ कुछ कौम्प्लेक्स कार्ब और प्रोटीन फूड को भी अपने डिनर में शामिल करें.

वेट लौस के लिए बेस्ट फूड्स

  1. अंडे (Eggs)
  2. हरी पत्तेदार सब्जियां (Leafy greens)
  3. मछली (Fish)
  4. क्रूसीफेरस सब्जियां (Cruciferous vegetables)
  5. चिकन ब्रेस्ट (Chicken Breast)
  6. आलू और अन्य कंद सब्जियां (Potatoes And Other Root Vegetables)
  7. बीन्स और दालें (Beans And Legumes)
  8. सूप(Soups)
  9. लाल मिर्च (Red Chillis)
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