औनलाइन मार्केट बनाम ठगी का बाजार

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के बुधवारी बाजार में निवासरत एक महिला को इनाम मे एक शानदार “कार” का  झांसा देकर उससे आठ लाख रुपये  की ठगी कर ली गई . महिला की शिकायत पर  पुलिस ने ठगी करने वाले गिरोह के सदस्यों के खिलाफ धारा 420 सहित अन्य धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध किया था पुलिस अधीक्षक जितेन सिंह मीणा के निर्देश पर  चौकी प्रभारी जितेन सिंह यादव मामले की तहकीकात कर रहे थे.

इस दौरान पुलिस अधिकारियों को सूचना मिली कि ठगी करने वाले गिरोह के सदस्य दिल्ली व नालंदा बिहार में छुपे हुए हैं जिसके आधार पर  चौकी प्रभारी सिंह यादव सहित दिल्ली व नालंदा बिहार पहुंचे और ठगी करने वाले संतोष कुशवाहा व शिव शंकर महतो  को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया . दोनों आरोपियों के कब्जे से पुलिस ने पासबुक एटीएम मोबाइल सिम कार्ड सहित अन्य सामानों को भी  जप्त कर लिया है. पुलिस अधीक्षक के मुताबिक  इस मामले का मुख्य सरगना अभी फरार है जिसकी पुलिस सरगर्मी से खोजबीन में जुटी हुई है.

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टी-शर्ट मंगा कर लूट गई

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के बांकीमोंगरा थाना क्षेत्र में शांतिनगर में रहने वाली सालिमा सोना 47 वर्ष ने अपने बेटे के लिए टी शर्ट ऑनलाइन मंगाई थी. शर्ट की कीमत मात्र छह सौ रुपए थी. डिलवरी होने के बाद महिला को शर्ट पसंद नहीं आई, तो उसने शर्ट को रिटर्न कर दिया.उसे बताया कि चार से 10 दिन के भीतर उसके खाते मेेंं राशि वापस आ जाएगी.

रकम नहीं आने पर महिला ने इंटरनेट में सर्च कर फैक्ट्री क्लब के मोबाइल नंबर  पर सम्पर्क किया। किसी राजेश कुमार ने कहा कि पैसे जल्द मिल जाएंगे. ओटीपी बताना होगा. महिला ने जैसे ही ओटीपी बताया. ओटीपी बताने के बाद अलग-अलग किस्तों मेें उसके खाते से कुल ९९ हजार 997 रुपए गायब हो गए. महिला ने बांकीमोंगरा थाने में अज्ञात आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कराया है.

 मोबाइल मंगाया और लुट गए

बेटे के लिए टी शर्ट मंगाकर ठगी का शिकार हुई  महिला वाले मामले को अभी कुछ ही दिन बीते थे की कोरबा जिला के दीपका थाना में फिर एक ठगी का मामला सामने आया . इस बार कंपनी ने सामान आर्डर करने वाले को उसका डेमो भेज दिया. अब ग्राहक उस सामान की वापसी की गुहार कंपनी से लगा रहा है. लेकिन कंपनी की तरफ से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है.

ठगी का यह पूरा मामला औनलाइन शौपिंग वेबसाइट क्लब फैक्ट्री से जुड़ा हुआ है. दीपिका के बजरंग चौक शांति नगर के रहने वाले सरफराज अंसारी में क्लब फैक्ट्री से ऑनलाइन मोबाइल का और्डर किया था. कुछ दिन बाद ही उसे मोबाइल की डिलीवरी की गई. लेकिन जब उसने पैकेट खोला तो उसके होश उड़ गए. पैकेट के भीतर डेमो मोबाइल रखा हुआ था.

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ग्राहक ने तत्काल इसकी शिकायत क्लब फैक्ट्री के कंपनी कस्टमर केयर सिटी लेकिन उनकी तरफ से सरफराज को गोलमोल जवाब दिया गया. अंततः विवश होकर उसे भी थाने की शरण लेनी पड़ी कुल मिलाकर ऑनलाइन खरीदी करने वाले अनेकों लोग खरीदी करके मानो बुरी तरह फंस गए हैं. एक तरफ औनलाइन खरीदी का मार्केट जोर पकड़ता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ मत ले ऐसे सामने आ रहे हैं जो चिंता का सबब बने हुए हैं अच्छा हो ऑनलाइन मार्केटिंग की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए कुछ पुख्ता इंतजाम किए जाएं.

2 लोगों ने की 18 सालों मे 36 हत्याएं!

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला में वर्षों से हत्या करके उसे पेशा बना लेने वाले दो आरोपी पुलिस गिरफ्त में आए हैं. यह लोग हत्या करते थे और लूट कर शव को दफना दिया करते या पानी में बहा दिया करते थे. छत्तीसगढ़ की बेमेतरा पुलिस को एक तरह से विगत 18 सालों से किलर हत्या करने वाले से दो आरोपियों को गिरफ्तार लेने में सफलता मिली है.

दोनों आरोपी भोपाल में छुपे हुए थे.वहीं मुखबिर से दोनों की जानकारी मिलने के पश्चात बेमेतरा पुलिस ने दोनों को दबोच लिया. दरअसल, बेमेतरा पुलिस दो लोगों की हत्या के मामले में आरोपी की तफ्तीश कर रही थी और जब दोनों गिरफ्त में आए तो उन्होंने यह सनसनीखेज खुलासा किया तो अब पुलिस भी सकते में आ गई . पुलिस अधिकारी राजीव शर्मा के अनुसार इन आरोपी ने अब तक छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार राज्यों में कुल 36 हत्याएं करना स्वीकार कर लिया है. पुलिस को पूछताछ में चौंकाने वाली यह जानकारी भी मिली है कि दोनों आरोपी कुछ और लोगों की हत्या करने की योजना बना रहे थे.

टारगेट थे ट्रक ड्राइवर!

पुलिस अधिकारियों के अनुसार दोनों आरोपी पहले मधुर संबंध बनाया करते थे. फिर ट्रक को लूटने के साथ कोई साक्ष्य बचा ना रह जाए इस खातिर ड्राइवर और क्लीनर की हत्या कर देते थे. तदुपरांत शव को दफना दिया करते थे और किसी पड़ोसी दूसरे राज्य मे जाकर वहां वारदात करते थे.दोनों की मानसिक बुनावट कुछ इस तरह की संज्ञान में आई है कि यह ड्राइवर को लूटा करते, उसे मार देते और ट्रक का सामान भी बेच दिया करते थे. इन दोनों ने कुल 36 हत्या करने का अपराध स्वीकार किया है जिसके बाद पुलिस मामले की गंभीरता से विवेचना करने में जुट गई है. हाल -फिलहाल बेमेतरा पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर पूछताछ कर रही है. वहीं अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ और बड़े वारदातों का भी शीघ्र खुलासा हो सकता है . पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया कि प्रोटेक्शन वारंट पर बेमेतरा पुलिस ने की कार्रवाई, 2018 में की थी यहां दो लोगों की अंधी हत्या हुई थी पुलिस इस मामले की निरंतर विवेचना कर रही थी अब जब आरोपियों ने खुलासे किए हैं तो पुलिस प्रशासन भी अवाक है.

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क्राइम

और यह है आरोपी
बेमेतरा पुलिस के अनुसार आरोपी रायसेन (मध्य प्रदेश) का रहवासी आदेश खांबरा और भोपाल निवासी जयकरण सिंह हैं. यह लोग राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह ट्रक लूट की घटना को अंजाम दिया करते थे. इन दोनों ने ओड़िशा, महाराष्ट्र और बिहार में भी हत्या और लूट की घटनाओं अंजाम दिया है .अब इनकी गिरफ्तारी के पश्चात इन राज्यों की पुलिस इन हत्याओं की कड़ियों को समग्र रुप मे जोड़ने मे लग गई है.

बेमेतरा के अनुविभागीय अधिकारी पुलिस राजीव शर्मा ने बताया कि सन 2018 में में इन दोनों हत्यारों ने ड्राइवर संजय चौरसिया की लाश को बांधकर शिवनाथ नदी पर बने नए पुल के पास फेंक दी, वहीं कंडक्टर प्रेम अनुरागी की लाश को रतनपुर (बिलासपुर) में फेंका था. हत्या के बाद लूट का ट्रक लेकर बिहार चले गए थे.ट्रक को वहां साहेब सिंह नाम के व्यक्ति के पास बेच दियागया था. साहेब सिंह ने किसी दूसरे को ट्रक बेचकर पैसा आरोपियों को दिया था. इसके बाद दोनों आरोपी चिचोला (महाराष्ट्र) चले गए, वहां भी ट्रक लूटने के लिए 3 हत्याएं की.इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव भी आए थे. इस तरह दोनों ही एक तरफ से किलर हत्यारे बन चुके हैं. सोची समझी चालाकी के साथ हत्या करते हैं और ट्रक का माल बेचकर अय्याशी करते रहे हैं .

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आरोपी आदेश खांबरा और जयकरण प्रजापति पहले ड्राइवर से दोस्ती करते. फिर रात को भोजन करने के बहाने खाने में नशीली दवा देकर ड्राइवर-कंडक्टर को बेहोश करते और फिर आसानी से उनकी हत्या कर दिया करते थे. आरोपी जयकरण ट्रकों को लूटता उनके चालकों की हत्या के पश्चात वह भोपाल में ही लूट का माल बेच दिया करता था. जबकि आदेश खांबरा ग्वालियर नेटवर्क के जरिए लूट का सामान बेचता था. सितंबर 2018 में जयकरण ने भोपाल में ही हत्या करने के बाद ट्रक समेत चोरी का शक्कर वहीं बेच दिया था.जिसके पश्चात वह पुलिस द्वारा पकड़ा गया. इस दौरान पूछताछ में अपने साथी आदेश खांबरा के बारे में पुलिस को बता चुका था. दोनों फिर कुछ और भी साथी हैं जिनकी पुलिस तलाश कर रही है वहीं यह भी तथ्य सामने आया है कि लगभग 18 वर्षों से यह दोनों हत्या करके लूट कारित करते रहे हैं.

कमेलश तिवारी हत्याकांड: किस ने बुना हत्या का जाल

17 अक्तूबर, 2019 की शाम का वक्त था. हिंदूवादी नेता 50 साल के कमलेश तिवारी लखनऊ के खुर्शेदबाग स्थित अपने औफिस में बैठे थे. औफिस के ऊपर ही उन का आवास भी था, जिस में वह पत्नी किरन और बेटे ऋषि के साथ रहते थे. घर के नीचे कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. उसी समय उन के मोबाइल पर एक फोन आया जिस पर बात करने वाले ने कहा, ‘हम लोग आप से मिलने कल आ रहे हैं.’

इस के बाद कमलेश तिवारी ने अपनी पत्नी को बुलाया और बोले, ‘‘कल गुजरात से कुछ लोग मिलने आ रहे हैं. औफिस वाला कमरा साफ कर देना. उन लोगों को चाय के साथ खाने में ‘दही वड़ा’ तैयार कर देना. कार्यकर्ता हैं, इतनी दूर से आ रहे हैं.’’

पत्नी ने कमलेश के कहे अनुसार दूसरे दिन की पूरी तैयारी कर ली.

18 अक्तूबर को करीब पौने 12 बजे 2 युवक हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए कमलेश तिवारी के घर पंहुचे. वे दोनों ही भगवा रंग के कुरते और डेनिम जींस पहने हुए थे. उन के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. दोनों की उम्र 25 साल के करीब रही होगी. उन लोगों ने हिंदू समाज पार्टी के कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह को बताया कि कमलेश तिवारी से मिलने के लिए आए हैं. सौराष्ठ ने औफिस में बैठे कमलेश तिवारी से उन्हें मिलवा दिया.

कमलेश तिवारी उस समय औफिस में ही थे. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहे थे. कमलेश तिवारी सामने कुरसी पर थे. बीच में बड़ी सी मेज थी और सामने लोगों के बैठने के लिए कुछ कुरसियां पड़ी थीं. युवकों ने आते ही कमलेश तिवारी से अयोध्या मसले पर बात करनी शुरू की और कहा, ‘‘आप को बधाई, अब जल्दी ही फैसला आ जाएगा.’’

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कमलेश ने दोनों के लिए दही वड़ा और चाय मंगवाई. इस बीच दोनों युवकों ने अपने आने का उद्देश्य बताया कि उन्हें मुसलिम लड़की और हिंदू लड़के की शादी करानी है. साथ ही यह भी साफ कर दिया कि मुसलिम लड़की को उठा कर जबरन शादी करानी है. इस पर कमलेश तिवारी ने कहा कि वह जबरन लड़की को उठाने के पक्ष में नहीं हैं. जरूरत पड़ने पर केवल मध्यस्थता करा सकते हैं.

युवकों ने बातचीत जारी रखी. कमलेश की पत्नी चाय और दही वड़ा रख गई थी. चाय वगैरह पीने के बाद कमलेश ने पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ठ को आवाज दी. वह ऊपर आया तो उन्होंने अपने लिए पान मसाला के पाउच लाने को कहा. इसी बीच दोनों युवकों ने अपने लिए सिगरेट का पैकेट लाने को कहा. सौराष्ठ सिगरेट और पान मसाला लेने चला गया.

इतने में दोनों युवक खडे़ हुए. मिठाई का डिब्बा देने के बहाने एक युवक कमलेश तिवारी के पास पहुंच गया और उस ने उन का मुंह दबा दिया. फिर बड़ी फुरती से गले पर चाकू लगा कर रेतने लगा. सामने वाले युवक ने कमलेश को पकड़ रखा था, जिस से वह हिल न सकें.

गला रेतने के बाद उस युवक ने चाकू से कमलेश की गरदन, गले, पीठ और छाती पर बेदर्दी से वार करने शुरू कर दिए. जब कमलेश गिर गए तो दूसरे युवक ने मिठाई के डिब्बे में रखी पिस्तौल गले पर सटा कर गोली चलाई. मात्र 5 मिनट में घटना को अंजाम दे कर दोनों सीढि़यों से उतर कर फरार हो गए.

कुछ देर में सौराष्ठ जब सिगरेट और मसाला ले कर ऊपर आया तो कमलेश को खून से लथपथ पड़ा देख कर आवाज लगाई. तिवारी की पत्नी किरन और बेटा ऋषि ऊपर के कमरे से नीचे आए. पति की हालत देख कर किरन दहाड़ें मार कर रोने लगी. सौराष्ठ और ऋषि कमलेश को ले कर अस्पताल गए. डाक्टरों ने उन्हें देखते ही कहा कि सांस की नली कटने से इन की मौत हो चुकी है.

राजधानी लखनऊ में दिनदहाडे़ हिंदूवादी नेता की हत्या से सनसनी फैल गई. पुलिस नेता और अन्य लोग कमलेश तिवारी के घर की तरफ दौड़े. एसएसपी कलानिधि नैथानी से ले कर छोटेबड़े सभी अफसर वहां आ गए. घटना की सूचना कमलेश तिवारी के सीतापुर स्थित गांव पहुंची तो वहां से उन की मां कुसुमा देवी और बाकी परिजन लखनऊ आ गए.

हत्या का सब से बड़ा कारण मुसलिम मौलानाओं द्वारा कमलेश का सिर काट कर लाने की धमकी को माना गया. इसी आधार पर कमलेश की पत्नी किरन ने पुलिस को एक तहरीर दी, जिस के आधार पर थाना नाका में भादंवि धारा 302 और 120बी के तहत मुकदमा कायम हुआ.

इस में मुफ्ती नवीम काजमी और इमाम मौलाना अनवारूल हक को नामजद किया गया. पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में किरन ने कहा कि 3 साल पहले इन दोनों ने उस के पति का सिर काट कर लाने वाले को डेढ़ करोड़ का ईनाम देने की बात कही थी. इन लोगों ने ही तिवारीजी की हत्या कराई है.

पुलिस ने इसी सूचना के आधार पर अपनी जांच आगे बढ़ाई तो गुजरात पुलिस से पता चला कि उस के यहां पकडे़ गए कुछ अपराधियों ने इस योजना पर काम किया था.

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लखनऊ पुलिस को घटनास्थल पर जो मिठाई का डिब्बा मिला, उस में एक बिल मिला, जिस में सूरत की मिठाई की दुकान का नाम लिखा था. यह मिठाई 16 अक्टूबर की रात करीब 9 बजे सूरत उद्योगनगर उधना स्थित धरती फूड प्रोडक्ट्स से खरीदी गई थी.

यूपी और गुजरात पुलिस ने जोड़ी कडि़यां

इस के बाद लखनऊ पुलिस ने गुजरात पुलिस से संपर्क किया तो साजिश की कडि़यां जुड़नी शुरू हुईं. कमलेश तिवारी की हत्या का आरोप जिन लोगों पर लगा, वे भी कमलेश को सोशल मीडिया से ही मिले थे.

अपनी जांच में पुलिस ने पाया कि कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने रोहित सोलंकी ‘राजू’ के नाम से अपना फेसबुक प्रोफाइल बनाया था. उस ने खुद को एक दवा कंपनी में जौब करने वाला बताया. उस की रिहाइश मुंबई थी और सूरत में काम कर रहा था.

अशफाक ने हिंदू समाज पार्टी से जुड़ने के लिए गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष जैमिन बापू से संपर्क किया था. जैमिन बापू कमलेश तिवारी के लिए गुजरात में पार्टी का काम देखते थे. जैमिन बापू के संपर्क में आने के बाद ही रोहित ने 2 फेसबुक प्रोफाइल बनाईं. इस के बाद वह कमलेश से जुड़ गया. वह फेसबुक पर हिंदुओं के देवीदेवताओं से जुड़ी पोस्ट शेयर करने लगा.

कमलेश तिवारी की फेसबुक पर मिली फोटो से पत्नी किरन और कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह ने दोनों हत्यारों की पहचान कर ली. पुलिस को अब तक दोनों का असली नाम अशफाक और मोइनुद्दीन पता चल चुका था.

जैसे ही इन दोनों के नाम खबरों में आए, तो नाका थाना क्षेत्र के ही ‘होटल खालसा इन’ के लोगों ने पुलिस को बताया कि इस तरह के 2 युवक 17 अक्तूबर को आधी रात आए थे और उन के होटल में रुके थे. सुबह होते ही वे कमरे से बाहर गए तो फिर दोपहर बाद वापस आए. उस के बाद गए तो वापस नहीं आए.

इन दोनों के बुक कराए गए कमरे को खोला गया तो वहां से खून से सने भगवा रंग के कुरते मिले. होटल में दिए गए आधार कार्ड से दोनों का एड्रैस मिल गया और पुलिस इन के पीछे लग गई.

5 दिन में ये दोनों कानपुर, शाहजहांपुर, दिल्ली होते हुए गुजरात पंहुच गए. वहां से दोनों भागने की फिराक में थे, लेकिन उस से पहले ही पुलिस ने उन्हें राजस्थान बौर्डर के शामलजी से पकड़ लिया.

पूछताछ में पता चला कि ये दोनों करीब 2 साल से कमलेश तिवारी को मारने की योजना पर काम कर रहे थे. अशफाक सूरत के ग्रीन व्यू अपार्टमेंट में रहता था और मोइनुद्दीन पठान सूरत की लो कास्ट कालोनी का रहने वाला था. अशफाक मैडिकल रिप्रजेंटेटिव और मोइनुद्दीन फूड डिलीवरी बौय का काम करता था.

पुलिस का कहना है कि ये दोनों पैसे के इंतजाम में अपने फोन से बातचीत करने लगे थे, जिस से गुजरात पुलिस को इन के ठिकाने का पता चल गया और इन्हें पकड़ लिया गया. पुलिस को अब यह पता करना बाकी है कि इन दोनों ने किस के कहने पर कमलेश तिवारी की हत्या की.

कट्टरवादी छवि थी कमलेश तिवारी की

कमलेश तिवारी खुद को हिंदू नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में थे. वह धर्म से राजनीति की तरफ जाना चाहते थे. अपनी कट्टरवादी छवि से वह पूरे देश में प्रचारप्रसार करना चाहते थे. कमलेश तिवारी ने अपने कैरियर की शुरुआत हिंदू महासभा से की. इस के वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने.

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की विधानसभा से मात्र 3 किलोमीटर दूर गुरुगोबिंद सिंह मार्ग के पास खुर्शेदबाग में हिंदू महासभा का प्रदेश कार्यालय था. खुर्शेदबाग का नाम हिंदू महासभा के कागजों पर वीर सावरकर नगर लिखा जाता है.

कमलेश तिवारी नाथूराम गोडसे को अपना आदर्श मानते थे. उन के घर पर नाथूराम गोडसे की तस्वीर लगी थी.

कमलेश तिवारी मूलरूप से सीतापुर जिले के संदना थाना क्षेत्र के गांव पारा के रहने वाले थे. साल 2014 में वह अपने गांव में नाथूराम गोडसे का मंदिर बनवाने को ले कर चर्चा में आए थे. 18 साल पहले कमलेश गांव छोड़ कर पूरे परिवार के साथ महमूदाबाद रहने चले गए थे. उन के पिता देवी प्रसाद उर्फ रामशरण महमूदाबाद कस्बे में स्थित रामजानकी मंदिर में पुजारी थे.

30 जनवरी, 2015 को तिवारी को अपने गांव पारा में गोडसे के मंदिर की नींव रखनी थी. लेकिन इसी बीच पैगंबर पर की गई टिपप्णी को ले कर वह दूसरे मामलों में उलझ गए.

महमूदाबाद में कमलेश के पिता रामशरण मां कुसुमा देवी, भाई सोनू और बड़ा बेटा सत्यम तिवारी रहते हैं. कमलेश तिवारी हिंदू महासभा के जिस प्रदेश कार्यालय से संगठन का काम देखते थे, कुछ समय के बाद वह अपने बेटे ऋषि और पत्नी किरन तिवारी और पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह के साथ इसी कार्यालय के ऊपरी हिस्से में रहने लगे थे.

लखनऊ में उन के रहने का कोई दूसरा स्थान नहीं था. हिंदू महासभा से अलग हिंदू समाज पार्टी बनाने के बाद भी वह अपने पुराने संगठन के औफिस में ही रह रहे थे.

कमलेश तिवारी ने पहली दिसंबर, 2015 को हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे, इस के लिए प्रशासन ने कमलेश तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. जेल में रहते हुए कमलेश तिवारी को इस बात का मलाल था कि हिंदू महासभा के लोग उन की मदद को नहीं आए.

अब तक कमलेश तिवारी सोशल मीडिया पर कट्टरवादी हिंदुत्व का चेहरा बन कर उभर चुके थे. सोशल मीडिया पर उन के चाहने वालों की संख्या भी बढ़ चुकी थी. जेल से बाहर आने के बाद अखिलेश सरकार ने 12-13 पुलिसकर्मियों का एक सुरक्षा दस्ता कमलेश तिवारी की हिफाजत में लगा दिया था. ऐसे में अब वह खुद को बड़ा हिंदूवादी नेता मानने लगे थे. कमलेश तिवारी का कद बढने से हिंदू महासभा में उन्हें ले कर मतभेद शुरू हो गए.

खुद को बड़ा हिंदूवादी नेता मान चुके कमलेश तिवारी ने अपनी एक अलग ‘हिंदू समाज पार्टी’ का गठन कर लिया. वह हिंदू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर पूरे देश में अपना प्रचारप्रसार करने लगे. इस का सब से बड़ा जरिया सोशल मीडिया बना. हिंदू समाज के लिए तमाम लोग उन की पार्टी को मदद करने लगे थे.

उत्तर प्रदेश के बाहर कई प्रदेशों में हिंदू समाज पार्टी के साथ काम करने वाले लोग भी मिलने लगे. हिंदू समाज पार्टी को सब से अधिक समर्थन गुजरात से मिला. वहां पर कमलेश तिवारी ने पार्टी का गठन कर के जैमिन बापू को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था.

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2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई और महंत योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ प्रदेश में हिंदुत्व का चेहरा बन कर उभरे. ऐसे में कमलेश तिवारी को लगने लगा कि हिंदुत्व की राह पर चल कर वह भी राजनीति की बड़ी पारी खेल सकते हैं.

इस के बाद कमलेश तिवारी सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयानबाजी करने लगे. कमलेश तिवारी ने खुद को राममंदिर की राजनीति से भी जोड़ लिया था. अदालत में खुद को राममंदिर का पक्षकार बनने के लिए उन्होंने प्रार्थनापत्र भी दिया था. कमलेश अब अयोध्या को अपनी राजनीति का केंद्र बनाने की तैयारी करने लगे थे. इसी राह पर चलते हुए वह राममंदिर पर भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करते थे.

कमलेश तिवारी का लक्ष्य अपने धार्मिक संगठन से राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अयोध्या से लोकसभा का चुनाव भी लडे़ थे. हालांकि वह चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन उन्हें लगता था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा का विकल्प बन सकते हैं.

एक तरफ कमलेश तिवारी राजनीति में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे तो दूसरी तरफ मुसलिम कट्टरवादी उन के कत्ल का तानाबाना बुन रहे थे. कमलेश तिवारी की सुरक्षा व्यवस्था में हुई कटौती ने मुसलिम कट्टरवादियों के मिशन को सरल कर दिया, जिस के फलस्वरूप 18 अक्तूबर को अशफाक और मोइनुद्दीन नामक 2 युवकों ने घर में घुस कर उन की गला रेत कर हत्या कर दी.

कमलेश कहते थे, ‘हिंदुओं का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने मुझे 12-13 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा दी थी. योगी सरकार ने सुरक्षा हटा दी और सुरक्षा में केवल एक सिपाही ही दिया. इस से जाहिर होता है कि मुझे मारने की साजिश में वर्तमान सरकार भी हिस्सेदार बन रही है.’

कमलेश तिवारी ने यह बयान सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. सुरक्षा वापस लिए जाने के पहले भी कमलेश तिवारी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में थे.

कमलेश तिवारी को लगता था कि भाजपा केवल हिंदुत्व का सहारा ले कर सत्ता में आ गई है. अब वह हिंदुओं के लिए कुछ नहीं कर रही. कमलेश के ऐसे विचारों का ही विरोध करते भाजपा से जुडे़ लोग कमलेश को कांग्रेसी कहते थे.

अपनी पार्टी को गति देने के लिए कमलेश तिवारी ने देश के आर्थिक हालात, पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार, बंगाल में हिंदुओं की हत्या, नए मोटर कानून में बढ़े जुरमाने का विरोध, जीएसटी जैसे मुद्दों पर भाजपा की आलोचना की. इन मुद्दों को ले कर वह राजधानी लखनऊ में प्रदर्शन भी कर चुके थे.

उत्तर प्रदेश की राजधानी में भले ही कमलेश तिवारी को बड़ा नेता नहीं माना जाता था, लेकिन सोशल मीडिया में वह मजबूत हिंदूवादी नेता के रूप में पहचाने जाते थे. वह हिंदुत्व की अलख सोशल मीडिया के जरिए जला रहे थे. फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर पर वह हिंदुत्व के पक्ष में अपने विचार देते रहते थे. आपत्तिजनक टिप्पणियों के कारण फेसबुक उन की प्रोफाइल बंद कर देता था.

उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस नेताओं को कमलेश तिवारी की हत्या कानूनव्यवस्था का मसला लगती हो, पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उन की हत्या पर सवाल उठाते कहा कि कमलेश तिवारी की हत्या सुनियोजित है या नहीं, यह उत्तर प्रदेश सरकार बताए.

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कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने फेसबुक मैसेंजर पर कमलेश तिवारी से बात करनी शुरू की थी. वह एक लड़की की शादी के सिलसिले में उन से मिलना चाहता था. कमलेश के करीबी गौरव से अशफाक ने जानपहचान बढ़ाई और उन के बारे में सारी जानकारी लेता रहा.

रोहित सोलंकी बन कर अशफाक ने जो फेसबुक प्रोफाइल बनाई थी, उस में हिंदूवादी संगठनों के 421 लोग जुडे थे. पुलिस का कहना है कि 2 साल से हत्यारोपी कमलेश तिवारी की हत्या की योजना पर काम कर रहे थे.

ड्राइवर बना जान का दुश्मन

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के दक्षिण में स्थित केंपेगौड़ा इंटरनैशनल एयरपोर्ट के पास एक गांव है कडयारप्पनहल्ली. 31 जुलाई, 2019 की बात है. इस गांव के कुछ लोग सुबहसुबह जब जंगल की ओर जा रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक युवती की लाश पड़ी देखी. उन लोगों ने इस बात की जानकारी कडयारप्पनहल्लीके सरपंच को दी. सरपंच ने बिना विलंब किए इस मामले की सूचना बेंगलुरु पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

सरपंच और कंट्रोल रूम से खबर पाते ही बेंगलुरु सिटी पुलिस हरकत में आ गई.  थानाप्रभारी ने ड्यूटी पर तैनात अफसर को इस मामले की डायरी बनाने को कहा और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

20 मिनट में पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. उस समय तक इस घटना की खबर आसपास के गांवों में फैल गई थी. देखतेदेखते घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र हो गई थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस टीम ने गांव के सरपंच से मामले की जानकारी ली और उसी के आधार पर जांच शुरू कर दी. सूचना मिलने पर बेंगलुरु (साउथ) के डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने जांच टीम को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

डीसीपी साहब के चले जाने के बाद पुलिस टीम ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका की लाश के पास से पुलिस को आईडी कार्ड या मोबाइल फोन वगैरह कुछ नहीं मिला था, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. लेकिन स्वस्थ, सुंदर युवती के कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी संपन्न और संभ्रांत परिवार से थी.

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मृतका की कलाई में टाइटन की घड़ी थी. साथ ही वह ब्रांडेड कपड़े पहने हुए थी. उस की गरदन पर बना टैटू भी इस बात का संकेत था कि उस का संबंध किसी बड़े शहर से था. हत्यारे ने उस की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी.

युवती के सीने और पेट पर चाकू के गहरे घाव थे. सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. उस का चेहरा इतना विकृत कर दिया गया था ताकि उसे पहचाना न जा सके.

घटनास्थल का निरीक्षण कर के पुलिस ने युवती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए बेंगलुरु सिटी अस्पताल भेज दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर के पुलिस टीम थाने लौट आई और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस युवती की पहचान और हत्यारे की खोज में लग गई.

पुलिस की प्राथमिकता थी युवती की पहचान करना क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे बढ़ाना मुश्किल था. युवती की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास युवती के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के अलावा कुछ नहीं था. पुलिस ने उस के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के बार कोड का सहारा लिया. बार कोड से पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि ऐसी मार्केट कहांकहां और किनकिन शहरों में हैं, जहां मृतका जैसे कपड़े और चप्पल मिलते हों.

पुलिस की मेहनत रंग लाई

गूगल पर सर्च करने के बाद पुलिस को जानकारी मिली कि ऐसी मार्केट दिल्ली और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अधिक हैं. यह पता चलते ही पुलिस ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल की फेमस दुकानों की लिस्ट तैयार कर के उन से संपर्क साधा. पुलिस ने उन दुकानों से उन ग्राहकों की पिछले 2 सालों की लिस्ट मांगी, जिन्होंने औनलाइन या सीधे तौर पर खरीदारी की थी.

इस के साथ ही बेंगलुरु सिटी पुलिस ने उस युवती की लाश के फोटो और हुलिया दिल्ली और कोलकाता के सभी पुलिस थानों को भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में किसी युवती की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बावजूद पुलिस निराश नहीं हुई.

पुलिस उच्चाधिकारियों के आदेश पर जांच के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. इन में से एक टीम को दिल्ली भेजा गया और दूसरी को कोलकाता. इस कोशिश में पुलिस को कामयाबी मिली.

पुलिस को जो जानकारी चाहिए थी, वह कोलकाता के थाना न्यू टाउन से मिली. मृत युवती की गुमशुदगी थाना न्यू टाउन में दर्ज थी. पुलिस को पता चला कि जिस युवती की लाश मिली थी, वह कोई आम युवती नहीं बल्कि सेलिब्रिटी थी, नाम था पूजा सिंह.

वह इंटरटेनमेंट चैनल स्टारप्लस के सीरियल ‘दीया और बाती हम’ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी. उस ने और भी कई धारावाहिकों में महत्त्वूपर्ण भूमिकाएं निभाई थीं. साथ ही वह एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की फ्रीलांस मौडल भी थी. पूजा सिंह अपने पति सुदीप डे के साथ कोलकाता के न्यू टाउन में रहती थी.

पता मिल गया तो बेंगलुरु पुलिस न्यू टाउन स्थित सुदीप डे के घर पहुंच गई. पता चला कि सुदीप डे और पूजा सिंह ने लव मैरिज की थी. सुदीप डे ने बताया कि पूजा 29 जुलाई, 2019 को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के बुलावे पर उन के एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने बेंगलुरु गई थी. उसे 31 जुलाई की सुबह फ्लाइट ले कर कोलकाता आना था.

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जब वह नहीं आई तो सुदीप ने उस के मोबाइल पर काल की, लेकिन पूजा का फोन बंद था. जहांजहां पूछताछ करना संभव था, उन्होंने फोन किया. लेकिन कहीं से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला. आखिर सारा दिन इंतजार करने के बाद उन्होंने थाना न्यू टाउन में पूजा की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने अपना काम किया भी, पर पूजा का कोई पता नहीं लग सका. वह खुद भी नातेरिश्तेदारों और दोस्तों से बात कर के पूजा का पता लगाते रहे.

हत्यारे ने खुद सुझाया रास्ता

इसी बीच सुदीप के मोबाइल पर एक चौंका देने वाला मैसेज आया. मैसेज पूजा सिंह के फोन से ही किया गया था. मैसेज में लिखा था कि वह हैदराबाद में है और पैसे के लिए परेशान है. इस मैसेज में एक बैंक एकाउंट नंबर दे कर उस में 5 लाख रुपए डालने को कहा गया था.

यह बात सुदीप डे को हजम नहीं हुई, क्योंकि यह संभव ही नहीं था कि पूजा सिंह पैसे के लिए परेशान हो और अगर ऐसा होता भी तो वह पति से सीधे बात कर सकती थी. जिस तरह टूटीफूटी अंगरेजी में मैसेज था, वह भी गले उतरने वाला नहीं था क्योंकि पूजा की इंग्लिश पर अच्छी पकड़ थी.

मतलब साफ था कि पूजा का मोबाइल किसी गलत व्यक्ति के हाथों में पड़ गया था. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि हैदराबाद में पूजा का कोई प्रोग्राम था ही नहीं.

सुदीप ने पुलिस हेल्पलाइन से बैंक एकाउंट नंबर का पता लगाने की रिक्वेस्ट की तो पता चला कि वह एकाउंट नंबर बेंगलुरु के किसी नागेश नाम के व्यक्ति का था और पूरी तरह फ्रौड था.

सुदीप से मिली जानकारी से पुलिस जांच को दिशा मिल गई. सुदीप डे को साथ ले कर पुलिस टीम बेंगलुरु लौट आई. मृतका की शिनाख्त के बाद पूजा सिंह की लाश सुदीप को सौंप दी गई.

दूसरी ओर पुलिस ने नागेश का बायोडाटा एकत्र करना शुरू किया. पूजा सिंह के फोन की काल डिटेल्स से नागेश का फोन नंबर पता चल गया. कुछ जानकारियां उस के बैंक एकाउंट से भी मिलीं.

नागेश के मोबाइल की लोकेशन के सहारे 10 अगस्त, 2019 को उसे टैक्सी स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया गया, वह टैक्सी ड्राइवर था. इस मामले में उस से पूछताछ डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने खुद की.

शुरू में तो नागेश ने इमोशनल ड्रामा कर के डीसीपी साहब को घुमाने की कोशिश की लेकिन जब पुलिस ने अपने हथकंडे अपनाए तो वह मुंह खोलने को मजबूर हो गया. अंतत: उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने टीवी एक्टर पूजा सिंह की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

साधारण परिवार का 22 वर्षीय एच.एम. नागेश बेंगलुरु के संजीवनी नगर, हेग्गनहल्ली का रहने वाला था. मातापिता की गरीबी की वजह से उस ने बचपन से ही काफी कष्ट उठाए थे. महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के नागेश ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी.

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जवान होते ही उस ने टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था. नागेश की शादी हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे भी थे. घरपरिवार को चलाने की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी.

शुरू में काफी दिनों तक नागेश ने किराए की टैक्सी चलाई. बाद में उस ने यारदोस्तों की मदद और बैंक से लोन ले कर खुद की टैक्सी खरीद ली, जिसे उस ने ओला कैब में लगा दिया था. लेकिन इस से भी नागेश को ज्यादा कमाई नहीं होती थी, बस जैसेतैसे काम चल जाता था.

पूजा सिंह मौत का साया नहीं देख पाईं

जिन दिनों उस की मुलाकात टीवी स्टार पूजा सिंह से हुई, उन दिनों वह आर्थिक रूप से काफी परेशान था. दरअसल, उसे हर हफ्ते बैंक को किस्त देनी होती थी. लेकिन उस की टैक्सी के 2 हफ्ते बिना पेमेंट के छूट गए थे. 2 किस्तें भरने के लिए बैंक ने लेटर भेजा था.

29 जुलाई, 2019 को पूजा सिंह जब इवेंट मैनेजमेंट के प्रोग्राम के लिए बेंगलुरु आईं तो उस ने एयरपोर्ट से नागेश की ओला कैब हायर की. पूजा उस की कैब से वरपन्ना की अग्रहारा लौज गई थीं. उस के बातव्यवहार से पूजा सिंह कुछ इस तरह प्रभावित हुईं कि उन्होंने नागेश को अपने पूरे प्रोग्राम में साथ रखने का फैसला कर लिया. होटल में फ्रैश होने के बाद पूजा अपने कार्यक्रम के लिए निकलीं तो रात लगभग 12 बजे के आसपास वापस लौटीं.

नागेश को किराया देने के लिए पूजा सिंह ने अपना पर्स खोला और किराए के अलावा उसे अच्छी टिप दी.

31 जुलाई, 2019 की सुबह साढ़े 4 बजे पूजा को कोलकाता वापस लौटना था. इस के लिए उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी, इसलिए उन्होंने नागेश को साढे़ 3 बजे एयरपोर्ट छोड़ने के लिए कहा. इस के लिए नागेश ने पूजा सिंह से 1200 रुपए मांगे, जिसे उन्होंने खुशीखुशी मान लिया. नागेश पूजा सिंह के व्यवहार से खुश था. लेकिन होनी को कौन रोक सकता है.

चूंकि सुबह 3 बजे नागेश को जल्दी आ कर पूजा सिंह को ले कर एयरपोर्ट छोड़ना था, इसलिए घर न जा कर उस ने टैक्सी होटल परिसर में ही पार्क कर दी और टैक्सी की सीट लंबी कर के सोने की कोशिश करने लगा.

लेकिन दिमागी परेशानी ने उसे आराम नहीं करने दिया. उसे बैंक की 3 हफ्ते की किस्तें देनी थीं. उसे घर के खर्च और बैंक की किस्तों की चिंता खाए जा रही थी.

पूजा सिंह ने नागेश को जब किराया और टिप दी थी तो उस की नजर नोटों से भरे पूजा के पर्स पर चली गई थी. जब उस के दिमाग में कई तरह के सवाल आ रहे थे, तब बारबार उस की आंखों के सामने पूजा सिंह का पर्स भी लहरा रहा था.

नागेश ने बनाई हत्या की योजना

सोचतेसोचते नागेश के मन में एक खतरनाक योजना बन गई और उस ने उस पर अमल करने का फैसला कर लिया. पूजा सिंह को लूट कर वह अपनी परेशानियों से पीछा छुड़ाना चाहता था. उस ने सोचा कि पूजा सिंह दूसरे शहर की रहने वाली है, किसी को पता भी नहीं चलेगा.

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मन ही मन योजना बनातेबनाते उसे नींद आ गई. उस की नींद तक टूटी जब होटल के स्टाफ का एक व्यक्ति पूजा सिंह का सामान ले कर उस के पास आया. टैक्सी में सामान रखवाने के बाद नागेश ने तरोताजा होने के लिए अपनी पानी की बोतल ले कर मुंह पर छींटे मारे. पूजा सिंह आ गईं तो उन्हें ले कर वह एयरपोर्ट की तरफ चल दिया.

जितनी तेजी से उस की टैक्सी भाग रही थी, उतनी ही तेजी से उस का दिमाग चल रहा था. काम में व्यस्त रहने के कारण पूजा ठीक से सो नहीं पाई थीं, जिस की वजह से कैब में बैठेबैठे उन्हें नींद आ गई. पूजा को नींद में देख नागेश के मन का शैतान रौद्र रूप लेने लगा. उस ने टैक्सी का रुख सुनसान निर्जन स्थान की तरफ कर दिया.

पूजा सिंह की नींद खुली तो कैब के आसपास सन्नाटा देख घबरा गईं. टैक्सी रुकवा कर वह नागेश से कुछ बात कर पातीं, इस से पहले ही नागेश ने जैक रौड से पूजा सिंह के सिर पर वार कर दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गईं.

नागेश पूजा सिंह का सारा सामान ले कर फरार हो पाता, इस के पहले ही पूजा सिंह को होश आ गया. वह अपने बचाव के लिए चीखतेचिल्लाते हुए कैब से उतर कर रोड की तरफ भागने लगीं. लेकिन वह अपनी मौत से भाग नहीं पाईं.

नागेश ने उन्हें पकड़ लिया और अपनी सुरक्षा के लिए रखे चाकू से पूजा सिंह को गोद कर मौत की नींद सुला दिया. बाद में वह पूजा सिंह के शव को वहीं छोड़ कर फरार हो गया.

पूजा सिंह को लूट कर वह निश्चिंत हो गया था, लेकिन उसे तब झटका लगा जब आशा के अनुरूप पूजा सिंह के पर्स से उस के हाथ कुछ नहीं लगा. जिस समस्या के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया था, वह पूरी नहीं हो सकी. वह कैसे या क्या करे, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

तभी पूजा सिंह का मोबाइल उस के लिए रोशनी की किरण बना. उस ने पूजा सिंह के मोबाइल से उन के पति सुदीप डे को अपना एकाउंट नंबर दे कर 5 लाख रुपए डालने का मैसेज भेज दिया. बस यही उस के गले की फांस बन गया.

एच.एम. नागेश से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जैक रौड और टैक्सी पहले ही बरामद कर ली थी.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

कानून से खिलवाड़ करती हत्याएं

लेखक- डा.अर्जिनबी यूसुफ शेख

साल 2018 की 30 जुलाई को सामाजिक कार्यकर्ता और अकोला में आम आदमी पार्टी के नेता मुकीम अहमद और उन के साथ बुलढाणा, साखरखेड़ा के शफी कादरी की हत्या कर दी गई. हत्या करने वाले ने उन्हें अपने यहां रात खाने पर बुलाया, फिर उन का अपहरण हो जाने की खबर सामने आई. 4-5 दिन बाद उन की लाश बुलढाणा जंगल में बोरी में सड़ती पाई गई.

इसी महीने के आखिर में वाडेगांव के सरपंच आसिफ खान मुस्तफा खान को एक महिला नेता द्वारा अपनी बहन के घर बुला कर अपने बेटे और उस के दोस्तों के साथ मिल कर उस की हत्या कर मोर्णा नदी में म्हैसांग पुल से लाश को फेंके जाने की खबर सामने आई.

कहा जाता है कि सरपंच आसिफ खान और उस महिला नेता के बीच नाजायज संबंधों के चलते इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया.

मई, 2019 में किसनराव हुंडी वाले की सार्वजनिक न्यास, सहायक संस्था निबंधक कार्यालय के सामने अग्निशमन यंत्र के उपकरण को इस्तेमाल कर भरी दोपहरी में हत्या कर दी गई. महापौर के पति रिटायर्ड पुलिस अफसर और उस के 3 बेटों को इस सिलसिले में गिरफ्तार किया गया.

ऐसी घटनाएं इनसानियत को शर्मसार कर रही हैं. जिस की हत्या हो जाती है, वह तो इस दुनिया से विदा हो जाता है, पीछे रह जाता है उस का तड़पता हुआ परिवार. पर सवाल यह है कि क्यों बढ़ रही हैं रोजाना ऐसी वारदातें? क्या लोगों का कानून पर से विश्वास घट गया है कि वह इंसाफ नहीं दिला पाएगा या फिर कानून के प्रति यह डर ही नहीं है कि सजा भुगतनी भी होगी? क्यों लोग कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं? क्यों किसी की जान लेना आसान खेल बन गया है? वगैरह.

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बढ़ती हत्याएं और आएदिन मौब लिंचिंग की वारदातें इशारा कर रही हैं कि इनसानियत शर्मसार हो रही है. यह वहशियाना काम करते समय करने वाले के मन में यह क्यों नहीं आता कि वह कुछ गलत कर रहा है? धर्म के नाम पर हो या किसी चोरीडकैती के मामले में शक, लोगों के साथ बहुत ही गलत बरताव किया जाता है. किसी एक की मति मारी गई हो और वह कुछ गलत काम करने पर उतारू हो जाए तो बात अलग है, पर सारी भीड़ की मति मारी जाना, सब के द्वारा बेदर्दी से किसी एक के साथ पेश आना, उसे सरेआम बेइज्जत करना या सजा देना कितना उचित है?

कुछ दिन पहले 2 वीडियो क्लिप मेरे सामने आईं, जिन्हें देख कर मैं खुद ही शर्मिंदा हो गई. एक वीडियो में किसी दूरदराज इलाके में रहने वाली 20-22 साल की लड़की और लड़के को पूरी तरह नंगा कर भीड़ लड़की से लड़के को कंधे पर बिठा कर चलने के लिए कह रही थी. जिस के दिल में जो आ रहा था, वह उन के साथ वही कर रहा था. कोई लड़के के अंग को छेड़ता, कोई उन्हें थप्पड़, तो कोई लात मारता. गुस्साई भीड़ उन्हें दौड़ा रही थी और वे बेबस हो कर सब सह रहे थे.

इसी तरह दूसरी वीडियो क्लिप में एक 55-60 साल की औरत को पूरी तरह नंगा कर भीड़ दौड़ा रही थी. उस के साथ भी वह मनमाना सुलूक कर रही थी. किसी ने उसे पीछे से जोर की लात मारी, तो वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी, फिर उठ कर बेबस हो कर दौड़ने लगी.

आखिर ऐसे क्या अपराध होंगे इन के? क्यों भीड़ को यह नहीं लगता कि इन्हें नंगा कर के वह पूरी इनसानियत को नंगा कर रही है? क्यों ऐसे घटिया काम करने वालों को पकड़ा नहीं जाता? क्यों कानून बेबसों का सहारा नहीं बन पाता? क्यों आंखें मूंद कर अंधे की तरह सब भीड़ में शामिल हो जाते हैं और किसी बेबस को ऐसी सजा देते हैं, जिस से वह जिंदा होते हुए भी मरे समान हो जाए?

अगर कोई गलत करता है तो एक इनसान होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि उसे गलत करने से रोकें और यदि न रोक पाएं, तो कम से कम उस गलत काम करने वाले का साथ न दें. एक बेकुसूर को भी अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दें. कानून पर विश्वास करें. सच हमेशा जीतता है, भले ही वह कुछ समय के लिए परेशान हो. हत्याओं के सिलसिले में भी इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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याद रखा जाना चाहिए कि किसी की हत्या कर के उस के परिवार वालों की खुशियों को लूट लेने का किसी को कोई हक नहीं है.

साधना पटेल नहीं बन पाई बैंडिट क्वीन

पिछड़े तबके के बुद्धिविलास पटेल मध्य प्रदेश के विंघ्य इलाके के चित्रकूट के गांव बगहिया पुरवा के बाशिंदे थे. उन की 3 औलादों में साधना सब से बड़ी थी. हालांकि साधना पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, लेकिन उस की ख्वाहिश जिंदगी में कुछ ऐसा करने की थी, जिस से लोग उसे याद रखें.

जिस उम्र में लड़कियां कौपीकिताबें सीने से लगाए शोहदों से बचती जमीन में आंखें धंसाए स्कूल जा रही होती थीं, उस उम्र में साधना अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ जंगल में कहीं मौजमस्ती कर रही होती थी.

जाहिर है कि बहुत कम उम्र में ही वह रास्ता भटक बैठी थी तो इस के जिम्मेदार पिता बुद्धिविलास भी थे, जिन के घर आएदिन डाकुओं का आनाजाना लगा रहता था. नामी और इनामी डाकू चुन्नी पटेल का तो उन से इतना याराना था कि जिस दिन वह घर आता था, तो तबीयत से दारू, मुरगा की पार्टी होती थी.

चुन्नी पटेल को साधना चाचा कह कर बुलाती थी और अकसर उस की उंगलियां बंदूक से खेला करती थीं.

साधना की हरकतें देख चुन्नी पटेल अकसर कहा करता था कि एक दिन यह लड़की पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी.

ऐसा हुआ भी और उजागर 18 नवंबर, 2019 को हुआ, जब सतना पुलिस ने 50,000 इनामी की इस दस्यु सुंदरी, जिसे ‘जंगल की शेरनी’ भी कहा जाता था, को कडियन मोड़ के जंगल से गिरफ्तार कर लिया.

ऐसे बनी डाकू

एक मामूली से घर की बला की खूबसूरत दिखने व लगने वाली साधना पटेल के डाकू बनने की कहानी भी उस की जिंदगी की तरह कम दिलचस्प नहीं. कम उम्र में ही साधना पटेल को सैक्स का चसका लग गया था, जिस से पिता बुद्धिविलास परेशान रहने लगे थे.

बेटी को रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने उसे अपनी बहन के घर भागड़ा गांव भेज दिया, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं हुआ. उलटे, वह यह जान कर हैरान हो उठी कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी है और उन के उस की बूआ से नाजायज संबंध हैं. तब साधना को पहली बार सैक्स को ले कर मर्दों की कमजोरी सम झ आई थी.

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लेकिन सैक्स की अपनी लत और कमजोरी से वह कोई सम झौता नहीं कर पाई. बूआ के यहां कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए उस के जिस्मानी ताल्लुकात एक ऐसे नौजवान से बन गए, जो उस का मुंहबोला भाई था.

एक दिन बूआ ने हमबिस्तरी करते दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया, तो साधना घबरा उठी.

साधना को डर था कि बूआ के कहने पर चुन्नीलाल उसे और उस के आशिक को मार डालेगा, इसलिए वह जान बचाने के लिए बीहड़ों में कूद पड़ी.

यह साल 2015 की बात है, जब उस की मुलाकात नामी डकैत नवल धोबी से हुई. नवल धोबी औरतों के मामले में बड़ा सख्त था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों की बरबादी की बड़ी वजह होती हैं, इसलिए वह गिरोह में उन्हें शामिल नहीं करता था.

कमसिन साधना पटेल को देखते ही नवल धोबी का मन डोल उठा और अपने उसूल छोड़ते हुए उस ने साधना को न केवल गिरोह में, बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया.

अब तक साधना कपड़ों की तरह आशिक बदलती रही थी, लेकिन नवल की हो जाने के बाद उस ने इसी बात में बेहतरी और भलाई सम झी कि अब कहीं और मुंह न मारा जाए. कुछ दिन बड़े इतमीनान और सुकून से कटे.

इसी दौरान साधना ने डकैती के कई गुर और सलीके से हथियार चलाना सीखा. नवल के साथ मिल कर उस ने कई वारदातों को अंजाम भी दिया.

नवल के साथ साधना का नाम भी चल निकला, लेकिन एक दिन पुलिस ने नवल को कई साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया, जिस से उस का गिरोह तितरबितर हो उठा. नवल की गिरफ्तारी साधना की बैंडिट क्वीन बन जाने की ख्वाहिश पूरी करने वाली साबित हुई.

साधना ने गिरोह के बाकी सदस्यों को ले कर अपना खुद का गिरोह बना डाला और बेखौफ हो कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सभी सदस्य हालांकि उसे ‘साधना जीजी’ कहते थे, लेकिन कई मर्दों से वह सैक्स संबंध बनाती रही.

फिर आया एक मोड़

अपना खुद का गिरोह बनाने के शुरुआती दौर में साधना रंगदारी वसूलती थी, लेकिन यह भी उसे सम झ आ रहा था कि अगर नामी डाकू बनना है और खौफ बनाए रखना है तो जरूरी है कि किसी ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाए जिस की चर्चा दूरदूर तक हो.

इसी गरज से साल 2018 में साधना ने नयागांव थाने के तहत आने वाले पालदेव गांव के छोटकू सेन को अगवा कर लिया. छोटकू सेन से वह गड़े खजाने के बारे में पूछती रहती थी. लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया तो साधना ने बेरहमी से उस की उंगलियां काट दीं.

साधना की गिरफ्त से छूट कर छोटकू ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो इस कांड की चर्चा वाकई वैसी ही हुई जैसा कि वह चाहती थी.

इस कांड के बाद साधना के नाम का सिक्का बीहड़ों में चल निकला और इसी दौरान उस की जिंदगी में पालदेव गांव का ही नौजवान छोटू पटेल आया. छोटू के पिता ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखाते समय उस के अगवा हो जाने का अंदेशा जताया था.

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कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि छोटू साधना का नया आशिक है और उसे अगवा नहीं किया गया है, बल्कि वह अपनी मरजी से साधना के साथ रह रहा है, तो पुलिस ने उसे भी डकैत घोषित कर उस के सिर 10,000 रुपए का इनाम रख दिया.

छोटू 6 अगस्त, 2019 को गायब हुआ था, लेकिन हकीकत में इस के पहले भी वह साधना से मिला करता था और दोनों जंगल में रंगरलियां मनाते थे. बाद में छोटू गांव वापस लौट आता था.

सच जो भी हो, लेकिन यह तय है कि साधना वाकई छोटू से दिल लगा बैठी थी और उस की ख्वाहिश पूरी करने के लिए कभीकभी जींसशर्ट उतार कर साड़ी भी पहन लेती थी. छोटू भी उस पर जान देने लगा था, इसलिए उस के साथ रहने लगा था.

सितंबर, 2019 में पुलिस ने नामी और 7 लाख रुपए के इनामी डाकू बबली कोल को उस के साथ व साले लवकेश को ऐनकाउंटर में मार गिराया तो राज्य में खासी हलचल मची थी.

बबली कोल गिरोह के दबदबे और चर्चों के चलते साधना को कोई भाव नहीं देता था. अब तक हालांकि उस के खिलाफ आधा दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे, लेकिन बबली के कारनामों के सामने वे कुछ भी नहीं थे.

बहरहाल, बबली कोल की मौत के बाद विंध्य के बीहड़ों में 21 साला साधना का एकछत्र राज हो गया, लेकिन जिस फुरती से पुलिस डाकुओं का सफाया कर रही थी, उस से घबराई साधना पटेल को अंडरग्राउंड हो जाना ही बेहतर लगा.

छोटू के साथ वह  झांसी और दिल्ली में रही और पूरी तरह घरेलू औरत बन कर रही. हालांकि यह जिंदगी वह 4 महीने ही जी पाई. बड़े शहरों के खर्चे भी ज्यादा होते हैं, लिहाजा जब पैसों की तंगी होने लगी, तो उस ने फिर वारदात की योजना बनाई और बीहड़ लौट आई.

पुलिस को मुखबिरों के जरीए जब यह बात मालूम हुई तो उस ने जाल बिछा कर 17 नवंबर, 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश में भी साधना पटेल कई वारदातों को अंजाम दे चुकी थी, लेकिन वहां किसी थाने में उस के खिलाफ किसी ने मामला दर्ज नहीं कराया था. इस के बाद भी पुलिस ने उस पर 30,000 रुपए के इनाम का ऐलान किया था.

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अब साधना पटेल जेल में बैठी मुकदमोें की सुनवाई और सजा के इंतजार में काट रही है, लेकिन उस की कहानी बताती है कि उस के डाकू बनने में सब से बड़ी गलती तो उस के पिता की ही है, जिन की मौत के बाद साधना बेलगाम हो गई थी.

बंगलों के चोर

लेखक- रविंद्र शिवाजी दुपारगुडे  

मुंबई शहर के मुलुंड इलाके के रहने वाले सुरेश एस. नुजाजे एक होटल व्यवसायी थे. मुंबई के अलावा उन के बेंगलुरु और दुबई में भी होटल थे. इस के अलावा ठाणे जिले की तहसील शहापुर के खंडोबा गांव में उन का एक फार्महाउस के रूप में ‘ॐ’ नाम का बंगला भी था. वैसे तो 48 वर्षीय सुरेश एस. नुजाजे अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते थे, लेकिन समय निकाल कर अपने परिवार के साथ वह ठाणे स्थित बंगले में आते रहते थे. यहां 4-5 दिन रह कर वह मुंबई लौट जाते थे.

जुलाई, 2019 के दूसरे सप्ताह में भी वह 8 दिनों के लिए परिवार के साथ अपने इस बंगले में आए थे. मुंबई पहुंचने के बाद उन्हें खबर मिली कि बंगले में रहने वाले 8 कुत्तों में से एक कुत्ता बीमार है. उस की बीमारी की खबर सुन कर वह परिवार को मुंबई छोड़ कर अकेले ही कुत्ते के इलाज के लिए फिर से अपने बंगले पर पहुंच गए.

उन्होंने अपने बीमार कुत्ते का इलाज कराया. उन के बंगले की सफाई आदि करने के लिए दीपिका नामक एक महिला आती थी. हमेशा की तरह 19 जुलाई, 2019 को भी वह सुबह करीब 7 बजे बंगले पर पहुंची. उसे सुरेश नुजाजे के बैडरूम की भी सफाई करनी थी, लिहाजा उन के बैडरूम में जाने से पहले उस ने दरवाजा खटखटाया.

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दरवाजा खटखटाने और आवाज देने के बाद भी जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह अपने साहब को आवाज देते हुए उन के कमरे में चली गई. तभी उस ने देखा कि उस के मलिक सुरेश नुजाजे बैड से नीचे पड़े थे. उन के हाथ बंधे दिखे.

दीपिका ने उन्हें गौर से देखा तो वह लहूलुहान हालत में थे. उन के हाथों के अलावा पैर भी बंधे थे और उन के पेट पर घाव थे. दीपिका ने उन्हें उठाने की कोशिश की पर वह नहीं उठे और न ही कुछ बोले. वह डर गई और बाहर की ओर भागी. वह सीधे वहां रहने वाले जगन्नाथ पवार के कमरे पर गई. उस ने जगन्नाथ पवार को यह खबर दी.

जगन्नाथ पवार ने उसी समय फोन द्वारा उपसरपंच नामदेव दुधाले और भाई रमेश पवार को बता दिया कि सुरेश नुजाजे बंगले में लहूलुहान हालत में हैं. जगन्नाथ पवार के बुलावे पर दोनों उस के पास पहुंच गए.

इस के बाद वे तीनों इकट्ठे हो कर सुरेश नुजाजे के बंगले पर दीपिका के साथ गए. जब उन्होंने बंगले में जा कर देखा तो सुरेश नुजाजे अपने बैडरूम में मृत हालत में थे. यानी किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

इस के बाद जगन्नाथ पवार ने मोबाइल फोन से शहापुर पुलिस को सूचना दे दी. हत्या की सूचना मिलने के बाद शहापुर थाने से इंसपेक्टर घनश्याम आढाव, एसआई नीलेश कदम, हवलदार बांलू अवसरे, कैलाश पाटील, कांस्टेबल सुरेश खड़के को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

खून से लथपथ मिली लाश

जब वे ‘ॐ’ बंगले में गए तब वहां उन्हें सुरेश नुजाजे की खून से लथपथ लाश मिली. लाश फर्श पर लकड़ी की मेज के पास पड़ी थी. उन के बगल में एक नीले रंग का तकिया गिरा पड़ा था. साथ ही उन के बैडरूम में लकड़ी की 2 अलमारियां उखड़ी हुई थीं.

अलमारियों का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस भी टूटा हुआ था. साथ ही बैड पर मच्छर मारने का इलैक्ट्रिक रैकेट टूटी हुई अवस्था में नजर आया. किसी ने सुरेश के दोनों पैर टावेल से मजबूती से बांधे थे और दोनों हाथ लाल रंग की शर्ट से बांधे थे.

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पुलिस को वैसे तो लग ही रहा था कि सुरेश नुजाजे की मृत्यु हो चुकी है लेकिन वहां मौजूद लोगों के अनुरोध पर पुलिस उन्हें इलाज के लिए शहापुर के सरकारी अस्पताल ले गई लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने प्रारंभिक जांच में पाया कि गंभीर रूप से घायल करने के बाद हत्यारों ने इन का गला घोंटा था.

इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने इस वारदात की खबर एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर और एसडीपीओ दीपक सावंत, क्राइम ब्रांच के इंचार्ज व्यंकट आंधले को दी. कुछ ही देर में ये सभी अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. जांच में पुलिस ने देखा कि बंगले के पीछे का गेट खुला था. इस के अलावा बंगले की खिड़की का ग्रिल भी उखड़ा हुआ था. हत्यारे ग्रिल उखाड़ कर सरकने वाली कांच की खिड़की सरका कर बैडरूम में घुसे थे.

बैडरूम की उखड़ी अलमारियों और शोकेस के टूटने पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि ये हत्यारों ने लूटपाट के इरादे से किया होगा, तभी तो अलमारियों का सामान कमरे में फैला है. इस जांच से यही पता चल रहा था कि सुरेश नुजाजे की हत्या लूट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंदर घुसने पर बंगले के मालिक सुरेश नुजाजे ने शायद बदमाशों का विरोध किया होगा, फिर बदमाशों ने हाथपैर बांधने के बाद उन की हत्या कर दी होगी.

मृतक के घर वाले भी आ चुके थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि सुरेश के हाथ की अंगूठियां, ब्रेसलेट, गले में सोने की चेन रहती थी. अलमारी में भी लाखों रुपए रखे रहते थे. ये सब गायब थे. क्राइम ब्रांच ने मौके से कई साक्ष्य जुटाए. एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर ने हत्या के इस केस को खोलने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया.

पुराने अपराधियों की हुई धरपकड़

पुलिस टीम ने पुराने अपराधियों के रिकौर्ड खंगालने शुरू किए. उन में से कुछ को पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से पूछताछ की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. कोंकण परिक्षेत्र के स्पैशल आईजी निकेत कौशिक टीम के सीधे संपर्क में थे. इस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम भी मामले की समानांतर जांच कर रही थी.

क्राइम ब्रांच की टीम में सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले, इंसपेक्टर प्रमोद गड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, गणपत सुले, शांताराम महाले, कांस्टेबल आशा मुंडे, जगताप राय, एएसआई वेले, हैडकांस्टेबल चालके, अमोल कदम, गायकवाड़ पाटी, सोनावणे, थापा आदि शामिल थे.

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पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की. जांच के दौरान एक खबरची ने पुलिस को सूचना दी कि जिन लोगों ने सुरेश नुजाजे के बंगले में वारदात को अंजाम दिया, वे भिवंडी इलाके के नवजीवन अस्पताल के पीछे स्थित एक टूटीफूटी इमारत में छिपे हुए हैं.

इस सूचना पर सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले अपनी पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए और वहां उस बिल्डिंग को चारों ओर से घेर कर उस में छिपे चमन चौहान (25 वर्ष), अनिल सालुंखे (32 वर्ष) और संतोष सालुंखे (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने सुरेश नुजाजे की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर पुलिस ने 22 जुलाई, 2019 को औरंगाबाद से उन के साथी रोहित पिंपले (19 वर्ष), बाबूभाई चौहान (18 वर्ष) व रोशन खरे (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया. ये सभी बदमाश महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि कत्लेआम के साथ डकैती करने वाली यह अंतरराज्यीय टोली दिन में गुब्बारे या अन्य चीजें बेचने का बहाना कर रेकी करती और रात में वारदात को अंजाम देती थी. इसी तरह इस टोली के सदस्यों ने सुदेश नुजाजे के बंगले की रेकी की थी.

तकिए से मुंह दबा कर घोंटा था गला

वारदात के दिन जब ये बदमाश उन के बंगले के पास गए, तब चोरों की आहट से सुरेश सतर्क हो चुके थे. फिर मौका देख कर ये किसी तरह उन के बंगले में घुस गए. सुरेश ने इन का विरोध किया, पर इतने लोगों का वह मुकाबला नहीं कर सके. बदमाशों ने उन के हाथपैर बांध कर उन पर फावड़े के हत्थे से प्रहार किया.

वहीं बैडरूम में पड़े तकिए से उन का मुंह दबा कर उन्हें मार दिया. कत्ल के बाद सुरेश के शरीर के सारे जेवरात उन्होंने उतार लिए. लकड़ी की अलमारी उखाड़ कर उन्होंने उस में रखे 28 हजार रुपए भी निकाल लिए. हत्या और डकैती की वारदात को अंजाम दे कर वे वहां से फरार हो गए.

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पूछताछ में उन्होंने उस इलाके में 17 वारदातों को अंजाम देने की बात स्वीकार की. सुरेश नुजाजे के बंगले के पास ही दूर्वांकुर और शिवनलिनी बंगले में भी इन अभियुक्तों ने दरवाजे तोड़ कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था.

पुलिस ने इन बदमाशों से बरमा, तराजू, पेचकस, एक मोटरसाइकिल एवं बोलेरो कार के साथ सोनेचांदी के जेवरात भी बरामद किए. पुलिस को पता चला कि इस टोली के साथ कुछ महिलाएं भी अपराध में शामिल रहती हैं. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के साथ की 2 महिलाओं को भी हिरासत में ले लिया.

इस अपराध में पुलिस के पास कोई भी सुराग न होने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस ने न सिर्फ मर्डर और डकैती की घटना का खुलासा किया, बल्कि 17 अन्य वारदातों को भी खोल दिया. स्पैशल आईजी निकेत कौशिक ने इस केस को खोलने वाली टीम की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन किया.

ठगी के रंग हजार

ठगी एक ऐसा शब्द है जो हमारे जेहन में हैं मगर इसके  बावजूद हम और हमारे आसपास के लोग अक्सर ठगी का शिकार हो जाते हैं ठगी की दुनिया में एक पहलू मोबाइल टावर लगाने का भी है विगत एक दशक में जाने कितनी बार यह समाचार सुर्खियों में आता रहा है मगर टावर के नाम पर लोग निरंतर ठगे जा रहे हैं इसके गिरोह निरंतर मजबूत होते जा रहे हैं इसी की बानगी छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल रही है और पुलिस ने इस पर नकेल लगाने  में एक बड़ी सफलता प्राप्त की है.

 

छत्तीसगढ़ की दुर्ग जिला पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया है जो दिल्ली में बैठकर छतीसगढ़ के विभिन्न नगर कस्बों  में मोबाइल टावर लगाने के नाम पर लोगों को ठगी का शिकार बना चुका हैं. एक सनसनीखेज मामले में एक महिला से आरोपी  62 लाख रूपए ऐंठ चुके थे. पुलिस ने गिरोह के सात सदस्यों को गिरफ्तार किया है, जबकि अभी भी आठ आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. जिनकी तलाश पुलिस द्वारा सरगर्मी से की जा रही है.

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ठगी की अनंत कथाएं

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के  खुर्सीपार की एक बुजुर्ग महिला से इस गिरोह ने लाखों की ठगी की है. पिछले तीन साल में अलग-अलग कहानी व किस्से गढ़ते हुए बुजुर्ग महिला से इस गिरोह ने 62 लाख 2500 रुपए मोबाइल टावर लगाने के नाम पर  भारी रकम ठग ली .सन 2015 से शुरू हुआ यह प्रकरण दिसंबर  2019 तक चला . कभी बीमा पॉलिसी के रुपए निकालने, तो कभी चालान बनाने तो कभी रुपए जारी कराने के नाम पर बुजुर्ग महिला से ठगी होती रही.

इस मामले में पीड़िता महिला  पुलिस अधीक्षक दुर्ग के समक्ष जुलाई माह में शिकायत की. शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस काफी सजगता के साथ अलग-अलग शहरों से सात आरोपियों को गिरफ्तार  करके छत्तीसगढ़ लाई है. वहीं 8 आरोपी अब भी फरार हैं जिनकी तलाश पुलिस द्वारा सरगर्मी से की जा रही है. इस तरह छत्तीसगढ़ में भी मोबाइल टावर के नाम पर ठगी की घटनाएं घटित हो चुकी हैं जिनमें हाल ही में घटित हुई हैं वह यह है-

पहला प्रकरण- आदिवासी जिला कोरबा के पसान थाना अंतर्गत लैगा में मोबाइल टावर लगाने के नाम पर डेढ़ लाख रुपए ठग लिए गए मामला अंततः थाना पहुंचा.

दूसरा प्रकरण -छत्तीसगढ़ के मुंगेली  मोबाइल ठगी के नाम पर अलग-अलग तीन जगहों पर 3 के मामले सामने आए.

तीसरा  प्रकरण- जगदलपुर के थाना क्षेत्रों में चार मामले मोबाइल टावर ठगी के दर्ज हुए कुछ गिरफ्तारियां भी हुई. छत्तीसगढ़ के विभिन्न जगहों पर मोबाइल टावर के नाम पर लोगों को ठगा गया है इसके बावजूद जागृति की कमी की वजह से लोग आज भी निरंतर ठगे जा रहे हैं.

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हाईटेक चुके हैं ठग!

पुलिस अधिकारी ने अजय यादव ने हमारे संवाददाता को बताया कि दिल्ली के यह  ठग दरअसल मानो  पूरी कंपनी चला रहे थे. आरोपियों के पास से बड़ी संख्या में लैंड लाइन फोन, मोबाइल फोन, बीमा प्लान, एटीएम कार्ड, आईकार्ड, मोबाइल डेटा व लेखाजोखा जब्त किया गया. आरोपियों ने बुजुर्ग महिला मनोरमा जैन के अलावा 500 लोगों को अलग-अलग मोबाइल नंबरों से कॉल किया और इनसे भी लाखों रुपए  की रकम ठगी की है.

आरोपियों को पकड़ने के लिए साइबर सेल की टीम लगातार काम कर रही थी. बेहद समझदारी के साथ पीड़िता को आरोपियों के संपर्क में रखा  और उनके द्वारा किए जा रहे कॉल को ट्रेस करती रही. जिसके बाद अंततः पुलिस की टीम आरोपियों तक पहुंची. पुलिस ने आरोपियों को गिफ्ट में लेकर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया है.

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मकड़जाल में फंसी जुलेखा: भाग 2

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लेखक- अलंकृत कश्यप

मनमाफिक माहौल न पा कर वहां से जुलेखा का मन ऊबने लगा. देर रात तक कंपनी के औफिस के काम को निपटाना और रोजाना देर से घर पहुंचना उस की आदत सी हो गई थी. इस दिनचर्या से वह तंग आ चुकी थी.

जुलेखा की परेशानी अवधेश यादव से छिपी न रह सकी. एक दिन अवधेश ने संजय यादव के साले गुड्डू से जुलेखा को एकांत में बुलवा कर समझाया, ‘‘जुलेखा, तुम यहां कंप्यूटर टाइपिंग का जो काम करती हो, इस से तुम्हारा कैरियर नहीं बन पाएगा. तुम्हें बंधीबंधाई जो सैलरी मिलती है, उस से तुम क्याक्या कर सकती हो. यह बात तो तुम जानती ही हो कि रियल एस्टेट के काम में अच्छा पैसा है. तुम यहां कंपनी के प्लौट बुक कराने शुरू कर दोगी तो अच्छा कमीशन मिलेगा. साथ ही देर रात तक चलने वाले कंप्यूटर के काम से निजात मिल जाएगी.’’

इस के बाद कंपनी के मालिक संजय यादव ने भी जुलेखा को प्लौट बुकिंग से मिलने वाले कमीशन के बारे में बताया. संजय यादव की बात जुलेखा की समझ में आ गई. उस ने कंपनी के कई प्लौट बुक कराए. जब एक महीने में पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई हुई तो जुलेखा और ज्यादा मेहनत करने लगी.

जुलेखा ने काफी मेहनत से काम किया. वह हर महीने 2-3 प्लौट बिकवा देती थी, जिस से उस का अच्छा कमीशन बन जाता था.

जुलेखा को संजय यादव की रियल एस्टेट कंपनी में काम करते हुए लगभग एक साल हो चुका था. इसी बीच अगस्त, 2019 में फेसबुक के माध्यम से उस की श्रेयांश त्रिपाठी से दोस्ती हुई. बाद में उन की दोस्ती बढ़ी तो मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. इस के बाद श्रेयांश भी जुलेखा के काम में हाथ बंटाने लगा.

वह भी प्लौट खरीदने वाले जरूरतमंदों को जुलेखा के पास लाता था. इस काम में संजय यादव उस की काफी मदद करता था. धीरेधीरे संजय यादव से जुलेखा के घनिष्ठ संबंध हो गए, जो अवैध संबंधों तक पहुंचे.

संजय यादव पर जुलेखा के करीब 25 लाख रुपए हो गए. यह रकम प्लौट की कमीशन की थी. जुलेखा जब भी उस से पैसे मांगती, वह टाल देता था. आशनाई की आड़ में वह जुलेखा की कमीशन की रकम हड़पना चाहता था.

संजय यादव के इरादे भांप कर जुलेखा अपने 25 लाख रुपए जल्द देने की जिद पर अड़ गई तो संजय परेशान हो गया. उस ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जबकि जुलेखा उस पर एक पाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी. इस बात को ले कर उस का संजय यादव से काफी विवाद हुआ.

पैसे का विवाद बना बड़ा कारण

उसी समय अवधेश यादव वहां आ गया. उस के कहने पर संजय यादव ने 3 लाख रुपए का चैक बना कर जुलेखा को दे दिया. उस के 22 लाख रुपए बाकी रह गए थे. विरोध जताते हुए जुलेखा ने वह चैक लौटा दिया और उस से पूरी रकम देने को कहा.

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झगड़ा बढ़ने पर संजय यादव ने उसे धमकी दी कि जो पैसे मिल रहे हैं, उन्हें रख लो नहीं तो मुझे केवल 3-4 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे. फिर तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा कि कहां गई.

संजय यादव से हुए इस विवाद के बाद जुलेखा ने दूसरी कंपनी जौइन करने का मन बना लिया. उस ने संजय को धमकी दी कि वह कोर्ट के माध्यम से अपने पैसे ले कर रहेगी.

जुलेखा की इस धमकी से संजय यादव परेशान हो गया. उस ने अवधेश यादव, अजय यादव और अपने साले गुड्डू यादव के साथ मिल कर इस समस्या पर विचारविमर्श किया. इन लोगों ने फैसला लिया कि जुलेखा को हमेशा के लिए ही निपटाना सही रहेगा, वरना यह आगे चल कर परेशानी खड़ी करती रहेगी.

योजना के अनुसार 3 अगस्त, 2019 को अवधेश यादव ने जुलेखा से कहा, ‘‘संजय पर तुम्हारे जो 25 लाख रुपए बकाया हैं, वह मैं तुम्हें दिलवा दूंगा. लेकिन तुम यहां से नौकरी छोड़ कर मत जाओ.’’

अवधेश यादव के बुलाने पर जुलेखा घर से कंपनी औफिस जाने को निकली. उस ने रास्ते में अपने दोस्त श्रेयांश त्रिपाठी को फोन कर के बाइक से बारह विरवा बुला लिया. उस की बाइक पर बैठ कर जुलेखा अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाने के लिए नहर से नीचे मुड़ी ही थी, तभी सामने से अजय यादव कार से आता दिखाई दिया. कार अजय यादव चला रहा था और पीछे की सीट पर अवधेश यादव बैठा था.

उसे देखते ही संजय ने कार रोक दी. अवधेश ने बाइक पर बैठी जुलेखा से कहा कि वह कार में बैठ जाए, जिस से वह संजय से उस का हिसाब करा सके.

लालच में जुलेखा कार में पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उस ने अपने दोस्त श्रेयांश से कह दिया कि इन लोगों से बात करने के बाद वह बड़ी बहन रूबी के पास चली जाएगी. कुछ दूर तक श्रेयांश बाइक से कार के पीछेपीछे गया, तभी कार में बैठी जुलेखा ने उसे जाने का इशारा किया तो श्रेयांश अपने घर लौट गया.

कार में बैठी जुलेखा अवधेश से बात कर रही थी. उसी समय रास्ते में अचानक बंगला बाजार पकरी के पास संजय यादव का साला गुड्डू यादव मिल गया. कार रुकते ही वह भी कार में बैठ गया. उसे देख कर वह भड़क गई. वह कार से उतर रही थी, तभी अवधेश ने उसे समझा कर रोक लिया. फिर गुड्डू भी जुलेखा के बगल में बैठ गया. वह अवधेश से अपने पैसों के बारे में बातें कर रही थी.

लाश लगा दी ठिकाने

उन की बातों में गुड्डू भी कूद पड़ा. बातों के दौरान गुड्डू और जुलेखा का वाकयुद्ध शुरू हो गया. अजय ने कार रोक दी, फिर अजय और गुड्डू ने जुलेखा के बाल पकड़ कर सीट पर झुका दिया और जुलेखा के ही दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मृत्यु हो गई.

जुलेखा की लाश को ले कर वे तीनों रायबरेली के निकट हरचंद्रपुर में साई नदी के पास पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. गुड्डू यादव और अजय यादव ने अवधेश के सहयोग से जुलेखा की लाश नदी में फेंक दी. उस के बाद टोल प्लाजा होते हुए वह लखनऊ लौट आए.

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जुलेखा की हत्या के बाद गुड्डू यादव, अवधेश यादव व अजय यादव पूरी तरह से निश्चिंत थे कि पुलिस उन तक नहीं पहुंचेगी. लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ ही गए.

गुड्डू यादव का कहना था कि जुलेखा ने उस के बहनोई संजय यादव से अवैध संबंध बना लिए थे, जिस की वजह से उस की बहन का घरपरिवार उजड़ रहा था.

दिनरात घर में कलह होती थी. इसी वजह से वह उस के दिमाग में खटक रही थी. इस बात को ले कर वह जुलेखा से रंजिश रखने लगा था. 3 अगस्त, 2019 को कार में हुए विवाद में जुलेखा की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

अभियुक्त गुड्डू यादव और अजय यादव से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 147, 364, 302, 201, 376, 34 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को सिपाही कृष्ण बंसल एवं हलका एसआई सुभाष सिंह के द्वारा सूचना मिली कि मुख्य आरोपी संजय यादव न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए पहुंचा है, तो थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम ने 13 अगस्त, 2019 को संजय यादव को न्यायालय परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में संजय ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उसे भी पुलिस ने कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. अब एक अभियुक्त अवधेश यादव शेष बचा है. उस के ठिकानों पर भी पुलिस ने दबिश दी. जब वह 28 अगस्त को कोर्ट में आत्मसमर्पण करने जा रहा था, पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसे भी जेल भेज दिया गया.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

कुंवारा था, कुंवारा ही रह गया: भाग 2

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लेखक- आर.के. राजू

उन्होंने बाहर आ कर देखा तो सब सुनसान था. उन्होंने नीचे कमरे में सो रहे अपने ससुर वीरू सैनी को जगाते हुए कहा कि मेनगेट खुला पड़ा है, क्या कोई बाहर गया हुआ है?

दुलहन पूजा ने खेला खेल

वीरू सैनी ने संजय के कमरे में आवाज दी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. फिर उन्होंने संजय को जोरजोर आवाजें लगाईं तो संजय तो नहीं उठा लेकिन पिता की आवाज से ऊपर के कमरे में सोया उन का छोटा बेटा प्रदीप जरूर जाग गया.

वह नीचे उतर कर आया और संजय के कमरे में जा कर देखा, संजय बेसुध अवस्था में सोया हुआ था. उस ने उसे उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. वह बेहोशी की हालत में था.

घर से नईनवेली दुलहन पूजा व उस की मौसी आशा गायब थीं. दूसरे कमरे में संजय की बहनें व भांजेभांजियां भी बेहोशी की हालत में थे. इस के बाद तो पूरे घर में कोहराम मच गया. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग भी जाग गए थे.

उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई.

पुलिस वालों को मामला समझने में देर नहीं लगी और वे घर में बेहोशी की हालत में पड़े संजय, उस की बहनें मंजू व लक्ष्मी तथा उन के बच्चों चंचल व अंकित को अपनी गाड़ी से दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए.

अस्पताल में भरती सभी 5 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई थी. डाक्टर उन के इलाज में जुटे थे. सूचना पा कर थाना सिविल लाइंस के प्रभारी शक्ति सिंह व क्षेत्राधिकारी राजेश कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अगले दिन उन्हें होश आया तो थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की.

संजय सैनी ने उन्हें बताया कि उस की नईनवेली पत्नी पूजा ने उसे खाना खिलाया. खाना खाने के बाद उसे बेहोशी सी छाने लगी थी. इस के बाद उसे पता नहीं रहा. आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया. तब घर वालों ने बताया कि पूजा और उस की मौसी घर का कीमती सामान ले कर लापता हो चुकी हैं.

इस के बाद संजय के बहनोई और मोहल्ले के लोग पूजा और उस की मौसी को ढूंढने के लिए रेलवे स्टेशन, बसअड्डा आदि जगहों पर चले गए. लेकिन उन दोनों में से कोई भी नहीं मिला. निराश हो कर वे घर लौट आए.

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पुलिस ने जब वीरू सैनी से गायब सामान के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि दुलहन पूजा और उस की मौसी घर से 16 हजार रुपए नकद, सोने की चेन, सोने के कुंडल, पेंडल समेत अन्य जेवर और कीमती कपड़े ले गई हैं.

वीरू सैनी की तहरीर पर पुलिस ने पूजा और उस की मौसी आशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आ गई.

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने लुटेरी दुलहन और उस के गैंग के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (सिटी) अंकित मित्तल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शक्ति सिंह, हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा आदि को शामिल किया गया.

राजपाल नाम के जिस बिचौलिए के मार्फत संजय की शादी कराई गई थी, पुलिस ने उस का फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. साथ ही पूजा की मौसी का फोन भी नहीं लग रहा था.

इसी बीच थानाप्रभारी शक्ति सिंह का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह इंसपेक्टर नवल मारवाह ने थाने का कार्यभार संभाला. वह इस केस की जांच में जुट गए. पुलिस ने आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. इस के अलावा मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

इस काररवाई के आधार पर पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला महादेवपुरा से अभियुक्त पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूजा के घर से पुलिस को एक अन्य युवती भी मिली. उस का नाम जयंती था.

जयंती से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जिला ऊधमसिंह नगर के कस्बा सितारगंज के शक्ति फार्म की निवासी है. वह एक बेटी की मां है. अपने पति को उस ने छोड़ रखा है. उस ने बताया कि वह भी पूजा की तरह शादी करने के बाद लोगों को लूटती है. यह काम वह मौसी आशा के इशारे पर करती है. पुलिस पूजा और जयंती को गिरफ्तार कर मुरादाबाद ले आई.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो जयंती ने बताया कि मौसी आशा ने जन्माष्टमी से 2 दिन पहले 22 अगस्त, 2019 को अरुण नामक युवक से मंदिर में उस की शादी करवाई थी. इस शादी के बदले आशा ने उसे 10 हजार रुपए देने का वादा किया था.

शादी के बाद घूमने के बहाने वह और उस का कथित पति अरुण व मौसी आशा के साथ ऊधमसिंह नगर के एक होटल में आ कर ठहरे थे. वहां पर आशा ने अरुण से और पैसों की मांग की. अरुण के पास उस समय पैसे नहीं थे. उस ने कहा कि वह पैसे कल दे देगा. जब अरुण सो गया तो आशा मौसी और वह उसे सोता छोड़ कर भाग गए थे.

जयंती भी शामिल थी इस गिरोह में

जयंती ने बताया कि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. उस की शादी एक जेल वार्डन के बेटे से हुई थी. समस्या यह थी कि ससुराल में नौनवेज कोई नहीं खाता था, जबकि जयंती मीट, मछली खाने की शौकीन थी. यह बात उसने अपने पति से बताई तो उस ने भी कह दिया कि यहां नौनवेज खाना तो दूर, पकाने तक पर भी प्रतिबंध है.

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ऐसी हालत में जयंती का वहां रहना मुश्किल था, लिहाजा वह वहां से रिश्ता तोड़ कर चली आई और किसी के जरिए आशा मौसी के संपर्क में आई. फिर आशा ने उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया.

जयंती के पास से पुलिस को 2 जोड़ी पाजेब, नाक का एक फूल, सोने की एक अंगूठी मिली. अभियुक्त पूजा उर्फ कविता की शादी पीलीभीत में हुई थी. पूजा का 6 साल का एक बेटा भी है, जो पिता के पास ही रहता है.

पुलिस छानबीन में पता चला कि उक्त गिरोह में 6 लोग शामिल हैं, जोकि लोगों को ठगी का शिकार बनाने के लिए अलगअलग शहरों में किराए का मकान ले कर ऐसे परिवारों के सदस्य का पता लगाते थे, जिस की शादी नहीं हो पा रही हो.

ये लोग ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसा कर पहले लड़की दिखाते हैं. लड़की पसंद आने के बाद इस गिरोह का मास्टरमाइंड बरेली का एक कथित ठेकेदार राम सिंह एडवांस में मोटी रकम ऐंठ लेता है. वही शादी की तारीख देता है. तय समय में शादी हो जाती थी.

जब बहू विदा हो कर ससुराल जाती थी तो इन की कथित मौसी आशा बहू के साथ रह जाती थी. वही कन्यादान भी करती थी. रात के खाने में नशीला पदार्थ मिला कर परिवार के लोगों को खिलाया जाता. फिर जब सब नशे में बेहोश हो जाते तो दोनों जेवर, रुपए व कीमती कपड़े ले कर फरार हो जातीं.

अभी तक पुलिस को इस गिरोह के 6 लोगों का पता चला है. पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को दोनों लुटेरी दुलहनों पूजा उर्फ कविता और जयंती को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

मामले की विवेचना मौजूदा थानाप्रभारी नवल मारवाह कर रहे हैं. कथा लिखने तक पुलिस अन्य आरोपियों की सरगरमी से तलाश रही थी.

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