जहरीली सब्जियां और फल!

छत्तीसगढ़ के भिलाई में सब्जियों को खतरनाक रसायनों से “सब्जी ताजा” बनाने का खेल अधिकारियों ने पकड़ा और उन्हें सिर्फ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया. यह एक गंभीर अपराध सामाजिक और कानूनी दृष्टि  दोनों से है, मगर हमारे देश का माहौल कुछ ऐसा बन चुका है कि कोई कितना ही बड़ा अपराध कर ले जुर्माना लेकर उसे छोड़ दिया जाता है और वह पुनः वही अपराध करने लगता है. इसलिए आप जब सब्जियां लेने  बाजार पहुंचे  तो  सब्जियों और फलों के “चटक रंगों” को देखकर यह न समझ ले कि यह ताजे हैं.आप जरा रुक जाइए! और पड़ताल कर लीजिए की  ये सब्जी, फल जहरीले रंगों से रंगे तो नहीं हैं.

छत्तीसगढ़ की स्टील नगरी के रूप में देश दुनिया में प्रसिद्ध भिलाई नगर  में ऐसा  एक मामला सामने आया है. नगर निगम भिलाई की एक टीम को इसकी बारंबार शिकायत मिल रही थी  और जब यह टीम  मौके पर पहुंची तो सच देखकर उसकी भी  हाथों के तोते उड़ गए . आखिरकार, टीम ने सब्जियों को रंगने का सनसनीखेज खुलासा किया है. जो छत्तीसगढ़ में अपने आप में पहला है. यहां हम बताना चाहेंगे कि छत्तीसगढ़ सहित देश की हर छोटे-बड़े शहरों में आजकल यह खेल आम हो गया है और धड़ल्ले से सिर्फ चंद रुपयों की खातिर जहरीले रसायनों के द्वारा फलों और सब्जियों को रंगा जा रहा है जो बेहद नुकसानदायक है.

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स्थिति बेहतर रूप से कुछ ऐसी त्रासदी पूर्ण हो गई है कि सुनी सुनाई खबरों के के बाद और तथ्यात्मक रूप से सच को जानने के बावजूद आम जन को इससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है. ऐसे में सरकार और न्यायालय दोनों की ओर जनता आशा से निहार रही है.

‘रंगे हाथ’ पकड़ा उड़नदस्ता ने

छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी मंडी में कहलाने वाली आकाशगंगा सब्जी मंडी में सब्जियों को  खतरनाक रंगो  रंगने का  खेल चल रहा था. सब्जी मार्केट में निरीक्षण करती हुई निगम के उड़न दस्ते की टीम अचानक “विंध्यवासिनी सब्जी भंडार” पहुंची तो उन्होंने देखा कि गाजर और मटर को रंग के बर्तन में डाला गया है. उड़न दस्ते की टीम ने पाया गया कि गाजर एवं मटर को धोकर उसे रंग के बर्तन में डालकर विक्रय हेतु आकर्षक बनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया  जा रहा है.

टीम ने रंगे हुए गाजर एवं रंग के डिब्बे को जप्त किया. और कठोर कानून नहीं होने के कारण फिर किसी अज्ञात के सर में उक्त व्यक्तियों पर मात्र 10 हजार  रुपए जुर्माना  वसूल किया गया  और उन्हें छोड़ दिया. निगम की टीम ने मौके पर पंचनामा कार्रवाई की और व्यापारी को  औपचारिक हिदायत दे दी गई कि आगे ऐसा ना हो. सामाजिक एवं गांधीवादी कार्यकर्ता शिवदास महंत कहते हैं कि आजकल यह बहुत बड़ी शिकायत हो चुकी है. ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार को मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से प्रेरणा लेनी चाहिए और खाद्य अपमिश्रण व रासायनिक पदार्थों के उपयोग करने वालों को जेल भेजना चाहिए, रासुका लगाई जानी चाहिए.

विधि विशेषज्ञ बी. के. शुक्ला इस संदर्भ में कहते हैं की रसायनों का सब्जियों और फलों में उपयोग करके बेचना सीधे-सीधे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है. होना यह चाहिए था कि नगर निगम के उड़नदस्ता टीम को खाद्य विभाग को बुलाकर इस प्रकरण को सौप देनाथा और मामला न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था जो कि नहीं किया गया है.

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स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्या सब

एक तरफ बाजारवाद की  दौड़ में फलों और सब्जियों में इस तरह के घालमेल शुरू हो गए हैं. वहीं यह भी सच है कि आम आदमी और सरकार कुंभकरणी निद्रा में है. परिणाम स्वरूप इन रासायनिक पदार्थों से चटक दार सब्जियां और फल घरों में उपयोग हो रहे हैं और सीधे-सीधे अनेक प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित किया जा रहा है.

डॉ आशीष अग्रवाल(एम डी) के अनुसार ऐसे फल और सब्जियों के उपयोग से कैंसर त्वचा हार्ट संबंधी अनेक बीमारियों से आम आदमी ग्रसित हो रहा है.

डॉक्टर गुलाबराय  पंजवानी बताते हैं कि  रासायनिक अम्लों के प्रयोग से चटक सब्जियां उपभोक्ता खरीद तो लेते हैं मगर यह सीधे-सीधे बीमारियों को आमंत्रण देना ही है.

विधि विशेषज्ञ जी पटेल बताते हैं ऐसे मामलों पर सरकार को कठोर कानून बनाकर नकेल कसनी होगी और अगर ऐसे मामले न्यायालय में आते हैं तो वहां तो उन्हें सजा मिलनी ही है.

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मां बाप की शादी की गवाह बनी बेटी

25 अक्तूबर 2017 को धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में एक शादी हो रही थी. इस शादी में हैरान करने वाली बात यह थी कि वहां न लड़की के घर वाले मौजूद थे और न ही लड़के के घर वाले. इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि जिस लड़के और लड़की की शादी हो रही थी, उन की ढाई साल की एक बेटी जरूर इस शादी में मौजूद थी.

इस शादी में लड़की के घर वालों की भूमिका बाल कल्याण समिति धौलपुर के अध्यक्ष अदा कर रहे थे तो इसी संस्था के अन्य सदस्य लड़के के घर वालों तथा बाराती की भूमिका अदा कर रहे थे. इस के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे.

दरअसल, इस के पीछे जो वजह थी, वह बड़ी दिलचस्प है. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला 19 साल का सचिन धौलपुर के कोलारी के रहने वाले अपने एक परिचित के यहां आताजाता था. उसी के पड़ोस में अनु अपने मांबाप के साथ रहती थी. लगातार आनेजाने में सचिन और अनु के बीच बातचीत होने लगी.

ऐसे परवान चढ़ा दोनों का प्यार

15 साल की अनु को सचिन से बातें करने में मजा आता था. चूंकि दोनों हमउम्र थे, इसलिए फोन पर भी उन की बातचीत हो जाती थी. इस का नतीजा यह निकला कि उन में प्यार हो गया. मौका निकाल कर दोनों एकांत में भी मिलने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी अनु सचिन पर फिदा थी. उस ने तय कर लिया था कि वह सचिन से ही शादी करेगी. ऐसा ही कुछ सचिन भी सोच रहा था. जबकि ऐसा होना आसान नहीं था. इस के बावजूद उन्होंने हिम्मत कर के अपनेअपने घर वालों से शादी की बात चलाई.

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सचिन ने जब अपने घर वालों से कहा कि वह धौलपुर की रहने वाली अनु से शादी करना चाहता है तो उस के पिता ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘कमाताधमाता कौड़ी नहीं है और चला है शादी करने. अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो शादी के लिए जल्दी मचाए है. पहले पढ़लिख कर कमाने की सोच, उस के बाद शादी करना.’’

सचिन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि पिता से बहस करता, इसलिए चुप रह गया.

दूसरी ओर अनु ने अपने घर वालों से सचिन के बारे में बता कर उस से शादी करने की बात कही तो घर के सभी लोग दंग रह गए. क्योंकि अभी उस की उम्र भी शादी लायक नहीं थी. उन्हें चिंता भी हुई कि कहीं नादान लड़की ने कोई ऐसावैसा कदम उठा लिया तो उन की बड़ी बदनामी होगी. उन्होंने अनु को डांटाफटकारा भी और समझाया भी. यही नहीं, उस पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी गई.

घर वालों की यह पाबंदी परेशान करने वाली थी, इसलिए अनु ने सारी बात प्रेमी सचिन को बता दी. उस ने कहा कि उस के घर वाले किसी भी कीमत पर उस की शादी उस से नहीं करेंगे. जबकि अनु तय कर चुकी थी कि उस की राह में चाहे जितनी भी अड़चनें आएं, वह उन से डरे बिना सचिन से ही शादी करेगी.

घर वालों के मना करने के बाद कोई और उपाय न देख सचिन और अनु ने घर से भागने का फैसला कर लिया. लेकिन इस के लिए पैसों की जरूरत थी. सचिन ने इधरउधर से कुछ पैसों का इंतजाम किया और घर से भागने का मौका ढूंढने लगा.

दूसरी ओर अनु के घर वालों को लगा कि उन की बेटी बहक गई है, वह कोई गलत कदम उठा सकती है. हालांकि उस समय उस की उम्र महज 15 साल थी, इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया. इस से पहले कि वह कोई ऐसा कदम उठाए, जिस से उन की बदनामी हो, उन्होंने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

यह बात अनु ने सचिन को बताई. सचिन अपनी मोहब्बत को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था, इसलिए योजना बना कर एक दिन अनु के साथ भाग गया. अनु को घर से गायब देख कर घर वाले समझ गए कि उसे सचिन भगा ले गया है. अनु के पिता अपने शुभचिंतकों के साथ थाने पहुंचे और सचिन के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला नाबालिग लड़की के अपहरण का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. धौलपुर के कोलारी का रहने वाला सचिन का जो परिचित था, उस से पूछताछ की गई. उसे साथ ले कर पुलिस भरतपुर स्थित सचिन के घर गई, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

पुलिस ने उस के घर वालों से भी पूछताछ की, पर उन्हें सचिन और अनु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचिन की जहांजहां रिश्तेदारी थी, पुलिस ने वहांवहां जा कर जानकारी हासिल की. सभी ने यही बताया कि सचिन उन के यहां नहीं आया है.

सचिन का फोन नंबर भी स्विच्ड औफ था. पुलिस के पास अब ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिस से उस के पास तक पहुंच पाती. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिली तो वह धौलपुर लौट आई.

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पुलिस को महीनों बाद भी न मिला दोनों का सुराग

अनु के गायब होने से उस के मातापिता बहुत परेशान थे. उन्हें चिंता सता रही थी कि उन की बेटी पता नहीं कहां और किस हाल में है. पुलिस में रिपोर्ट वे करा ही चुके थे. जब पुलिस उसे नहीं ढूंढ सकी तो उन के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वे उसे तलाश पाते. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब अनु के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो वे शांत हो कर बैठ गए.

पुलिस को भी लगने लगा कि सचिन और अनु किसी दूसरे शहर में जा कर रह रहे हैं. पुलिस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सभी थानों में दोनों का हुलिया भेज कर यह जानना चाहा कि कहीं उस हुलिए से मिलतीजुलती डैडबौडी तो नहीं मिली है.

सचिन उत्तर प्रदेश के इटावा का मूल निवासी था और उस के ज्यादातर रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में ही रहते थे. इसलिए वहां के थानों को भी सूचना भेजी गई थी. इस से भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

समय बीतता रहा और पुलिस की जांच अपनी गति से चलती रही. थानाप्रभारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने स्रोतों से दोनों प्रेमियों के बारे में पता करते रहे. एक दिन उन्हें मुखबिर से जानकारी मिली कि सचिन अनु के साथ इटावा में रह रहा है.

यह उन के लिए अच्छी खबर थी. अपने अधिकारियों को सूचित करने के बाद वह पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए इटावा वाले पते पर पहुंच गए. मुखबिर की खबर सही निकली. सचिन और अनु वहां मिल गए. लेकिन उस समय अनु 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और उन्हें धौलपुर ले आई.

पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां अनु ने अपने प्रेमी सचिन के पक्ष में बयान दिया.  अनु के मातापिता को बेटी के मिलने पर खुशी हुई थी. वे उसे लेने के लिए कोर्ट पहुंचे. बेटी के गर्भवती होने की बात जान कर भी उन्होंने अनु से घर चलने को कहा. पर अनु ने कहा कि वह मांबाप के घर नहीं जाएगी. वह सचिन के साथ ही रहेगी.

चूंकि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए न्यायालय ने उसे जेल भेजने के आदेश दे दिए थे. घर वालों के काफी समझाने के बाद भी जब अनु नहीं मानी तो कोर्ट ने उसे बालिका गृह भेज दिया. अनु 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए बालिका गृह में उस का ठीक से ध्यान रखा गया. समयसमय पर उस की डाक्टरी जांच भी कराई जाती रही. वहीं पर उस ने बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद भी अनु की सोच नहीं बदली, वह प्रेमी के साथ रहने की रट लगाए रही.

सचिन जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया था. उसे जब पता चला कि अनु ने बेटी को जन्म दिया है और वह अभी भी बालिका गृह में है तो उसे बड़ी खुशी हुई. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था. इस बारे में उस ने वकील से सलाह ली तो उस ने कहा कि जब तक उस की उम्र 18 साल नहीं हो जाएगी, तब तक शादी कानूनन मान्य नहीं होगी. अनु ने तय कर लिया था कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाएगी, वह बालिका गृह में ही रहेगी.

अनु अपनी बेटी के साथ वहीं पर दिन बिताती रही. उस के घर वालों ने उस से मिल कर उसे लाख समझाने की कोशिश की, पर वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि वह सचिन को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

बाल कल्याण समिति, धौलपुर के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार को जब अनु और सचिन के प्रेम की जानकारी हुई तो वह इन दोनों से मिले. इन से बात करने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह इन की शादी कराएंगे, ताकि इन की बेटी को भी मांबाप दोनों का प्यार मिल सके. वह भी अनु के बालिग होने का इंतजार करने लगे.

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16 अक्तूबर, 2017 को अनु की उम्र जब 18 साल हो गई तो उसे आशा बंधी कि लंबे समय से प्रेमी से जुदा रहने के बाद अब वह उस के साथ रह सकेगी. अब तक उस की बेटी करीब ढाई साल की हो चुकी थी. उसे भी पिता का प्यार मिलेगा.

सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने कराया दोनों का विवाह

अनु के बालिग होने पर धौलपुर की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार ने उन के विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. इस बारे में उन्होंने भरतपुर की बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्था प्रयत्न के पदाधिकारियों से बात की. वे भी इस काम में सहयोग करने को तैयार हो गए.

अनु धौलपुर की थी और बिजेंद्र सिंह परमार भी वहीं के थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह इस शादी में लड़की वालों का किरदार निभाएंगे. जबकि सचिन भरतपुर का था, इसलिए बाल कल्याण समिति, भरतपुर के पदाधिकारियों ने वरपक्ष की जिम्मेदारियां निभाने का वादा किया.

हैरान करने वाली इस शादी का आयोजन धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में किया गया. इस मौके पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. तमाम लोगों की मौजूदगी में सचिन और अनु की शादी संपन्न हुई. शादी में उन की ढाई साल की बेटी भी मौजूद थी.

सामाजिक संस्था प्रयत्न के एडवोकेसी औफिसर राकेश तिवाड़ी ने बताया कि उन का मकसद था कि ढाई साल के बच्चे को उस के मातापिता का प्यार मिले और अनु को भी समाज में अधिकार मिल सके.

सचिन और अनु दोनों वयस्क हैं. वे अपनी मरजी से जीवन बिताने का अधिकार रखते हैं. यह शादी सामाजिक दृष्टि से भी उचित है. अब वे अपना जीवन खुशी से बिता सकते हैं. खास बात यह रही कि इस शादी में वर और कन्या के घर का कोई भी मौजूद नहीं था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने वरवधू को आशीर्वाद दिया. शादी के बाद सचिन अनु को अपने घर ले गया. सचिन के घर वालों ने अनु को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. अनु भी अपनी ससुराल पहुंच कर खुश है.

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बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी

8-10  महीने पहले की बात है. जयपुर शहर के उनियारों का रास्ता में रहने वाले नेमीचंद सैन एक दिन अपने घर पर आराम कर रहे थे. दोपहर का समय होने वाला था, वे भोजन करने का मन बना रहे थे. इसी दौरान उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेमीचंद ने मोबाइल का स्विच औन कर के कान पर लगाया और हैलो बोलने ही वाले थे कि दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘हैलो, नेमीचंदजी बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं.’’ नेमीचंद ने सहज भाव से जवाब दिया, लेकिन पूछा भी कि आप कौन बोल रहे हैं? मैं ने आप को पहचाना नहीं.

‘‘नेमीचंदजी, हम दिल्ली से बीमा कंपनी के कस्टमर केयर से बोल रहे हैं.’’ काल करने वाले ने बताया.

‘‘हां, ठीक है, बताइए आप को क्या काम है?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, हम ने इसलिए फोन किया है कि आप को कुछ फायदा हो सके. अगर आप की इच्छा हो तो आगे बात करें.’’ दूसरी ओर से फोन करने वाले ने कहा.

‘‘मेरी समझ में नहीं आया कि तुम कैसे फायदे की बात कर रहे हो?’’ नेमीचंद ने फिर सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, आप के पास बीमा पौलिसी है. बीमा कंपनी तो आप को कुछ देगी नहीं, लेकिन हम आप का फायदा करवा सकते हैं. इस पर आप को अच्छाभला बोनस मिल जाएगा.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘ठीक है, लेकिन अभी मैं कहीं बाहर जा रहा हूं. तुम 1-2 दिन बाद फोन करना.’’ नेमीचंद ने उस समय टालने के लिहाज से कहा.

‘‘ठीक है सर, आप की जैसी इच्छा. हम 1-2 दिन में आप को फिर फोन करेंगे. तब तक आप विचार बना लेना.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कहा. इस के बाद फोन कट गया.

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नेमीचंद हाथमुंह धो कर भोजन करने लगे. भोजन करते हुए उन के मन में फोन करने वाले की बात घूमती रही कि बीमा पौलिसी पर बोनस दिलवा देंगे. नेमीचंद के पास जीवन बीमा पौलिसियां थीं. ये पौलिसियां उन्होंने अपने भविष्य के हिसाब से ले रखी थीं, ताकि जीवन में जरूरत के समय पर पैसा मिल जाए.

मोटे बोनस का लालच दे कर फंसाया नेमीचंद को

उन्हें यह तो पता था कि जब पौलिसी की समयावधि पूरी हो जाएगी तो उन्हें पूरी रकम मिल जाएगी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि पौलिसी पर कोई बोनस भी मिलता है. इसलिए फोन करने वाले ने जब बोनस दिलाने की बात कही तो उन की दिलचस्पी बढ़ गई थी.

इस बात के तीसरे दिन नेमीचंद के मोबाइल पर दिल्ली से फिर फोन आ गया. इस बार एक युवती बोल रही थी. उस ने नेमीचंद से कहा कि साहब 2 दिन पहले हमारी कंपनी के मैनेजर ने आप को फोन कर के बीमा पौलिसी पर बोनस दिलाने की बात बताई थी. उस के बारे में आप ने क्या सोचा है?

‘‘हां, फोन तो आया था लेकिन मैं ने अभी तक कुछ भी नहीं सोचा है. तुम ये बताओ, मुझे करना क्या होगा?’’ नेमीचंद ने उस युवती से सवाल किया.

‘‘पहले आप यह बताइए कि आप के पास कितनी राशि की बीमा पौलिसियां हैं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मेरे पास कोई 10-20 लाख रुपए की पौलिसियां नहीं हैं, मैं तो गरीब आदमी हूं. अपना पेट काट कर बुढ़ापे के लिए 2-3 लाख रुपए की पौलिसियां करवा रखी हैं.’’ नेमीचंद ने कहा साथ ही यह भी पूछा कि इन पर कितना बोनस मिल जाएगा?

‘‘नेमीचंदजी, अगर आप के पास 10 लाख रुपए की पौलिसी होती तो हम आप को करीब 2 लाख रुपए बोनस दिलवा देते. लेकिन आप बता रहे हैं कि 2-3 लाख रुपए की ही पौलिसियां हैं.’’ युवती ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘अगर 3 लाख रुपए की पौलिसी है तो हम आप को 50-60 हजार रुपए बोनस दिलवा देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं घर में सलाह करने के बाद 1-2 दिन बाद बताऊंगा.’’ कहते हुए नेमीचंद ने फोन काट दिया.

उसी दिन शाम को नेमीचंद ने अपने परिवार वालों से इस मुद्दे पर बात की. परिवार वालों को भी पौलिसियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने कहा कि जैसा आप ठीक समझो, कर लो. इस के 2-3 दिन बाद नेमीचंद के मोबाइल पर दिल्ली से फिर फोन आया. इस बार कोई तीसरा आदमी बोल रहा था. उस ने नेमीचंद से सीधे ही पूछा कि पौलिसी के बारे में आप ने अपने परिवार में बात कर ली होगी. अब आप ने क्या विचार बनाया है?

‘‘विचार तो हम ने बना लिया है, लेकिन मुझे करना क्या होगा?’’ नेमीचंद ने पूछा.

‘‘सर, आप अपनी पौलिसियों के नंबर, कंपनी और उन की मैच्योरिटी डेट बताइए.’’

नेमीचंद ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पौलिसी क्या मैं जेब में रख कर घूमता हूं, जो उन के नंबर और दूसरी चीजें बता दूं.’’

‘‘साहब, नाराज होने की बात नहीं है. मैं 10 मिनट बाद आप को फोन करूंगा. आप तब तक अपनी पौलिसी निकाल लें, फिर मुझे बता देना.’’

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फोन कटने के बाद नेमीचंद ने अलमारी से पौलिसी निकाल कर देखी. इतनी देर में दिल्ली से फिर उसी आदमी का फोन आ गया. उस ने जो बातें पूछीं, वह नेमीचंद ने पौलिसी देख कर बता दीं. फोन करने वाले ने सारी बातें पूछने के बाद कहा, ‘‘नेमीचंदजी, आप को 50 हजार रुपए से ज्यादा बोनस मिल जाएगा, लेकिन इस के लिए पहले आप को कंपनी के खाते में 15 हजार रुपए जमा कराने होंगे.’’

‘‘15 हजार रुपए क्यों?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, बीमा कंपनी वैसे तो पौलिसी होल्डर को सीधे तौर पर कोई बोनस नहीं देती है, लेकिन हम कंपनी के एजेंट हैं. कंपनी हमें बिजनैस प्रमोशन के नाम पर इंसेंटिव देती है. हम उस इंसेंटिव में से आप को बोनस की रकम देंगे. आप जो 15 हजार रुपए देंगे, वह पैसा कंपनी के खाते में ही जमा होगा.’’ फोन करने वाले ने नेमीचंद को संतुष्ट करते हुए कहा.

नेमीचंद को उस की बातें ज्यादा समझ नहीं आईं. फिर भी उन्होंने सोचा कि अगर 15 हजार रुपए दे कर 50 हजार रुपए बोनस मिल जाए तो क्या बुराई है. यही सोच कर उन्होंने फोन करने वाले से पूछा, ‘‘मुझे पैसे कहां जमा कराने होंगे?’’

फोन करने वाले ने नेमीचंद से कहा कि उस के मोबाइल नंबर पर एसएमएस के जरिए एक खाता नंबर भेजा जा रहा है, इसी खाते में पैसे जमा कराने हैं.

इस के बाद फोन कट गया. एक मिनट बाद ही नेमीचंद के मोबाइल पर मैसेज आ गया. मैसेज में एक खाता नंबर लिखा था. नेमीचंद ने वह खाता नंबर एक कागज पर नोट कर लिया. फिर उसे ध्यान आया कि वह पैसे तो भेज देगा, लेकिन बोनस की रकम कब और कैसे मिलेगी? यह बात तो उस ने पूछी ही नहीं.

नेमीचंद ने सोचा कि 1-2 दिन रुक जाता हूं. दोबारा फोन आएगा तो सारी बातें पूछने के बाद ही पैसा भेजूंगा. दिल्ली से फिर 2-3 दिन बाद फोन आ गया. इस बार एक युवती बोल रही थी. युवती ने कहा, ‘‘नेमीचंदजी, आप ने अभी तक कंपनी के खाते में 15 हजार रुपए नहीं भेजे. आप जितनी देर करेंगे, आप के बोनस के भुगतान में उतनी ही देर होती जाएगी. इसलिए आप तुरंत पैसे भेज दीजिए.’’

‘‘अरे भई, पैसे तो मैं आज ही भेज दूंगा, लेकिन यह बताओ कि मुझे बोनस कब और कैसे मिलेगा?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘आप को बोनस एक महीने के अंदर मिल जाएगा. बोनस की रकम सीधे आप के खाते में आएगी. जब चैक तैयार हो जाएगा, तब आप से आप का खाता नंबर पूछेंगे और उसी में रकम ट्रांसफर कर दी जाएगी.’’ युवती ने नेमीचंद की शंका का समाधान कर दिया.

बड़ी ही चालाकी से करते थे ठगी

नेमीचंद ने उसी दिन 15 हजार रुपए उस बैंक खाते में जमा करा दिए. इस के बाद कई दिन गुजर गए. इस बीच न तो नेमीचंद के पास फिर कोई फोन आया और न ही बोनस की रकम उन के खाते में आई.

एक दिन नेमीचंद ने उन नंबरों पर फोन किया, जिन से उस के पास 4-5 बार फोन आए थे. वहां बात हुई तो एक आदमी ने खुद को बिजनैस प्रमोशन मैनेजर बताते हुए कहा कि आप का चैक तैयार हो गया है. आप अपना खाता नंबर बता दीजिए. 2-4 दिन में चैक आप के खाते में जमा हो जाएगा.

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नेमीचंद ने अपना खाता नंबर बता दिया.

2-4 दिन क्या, करीब एक महीना बीत गया लेकिन खाते में कोई पैसा नहीं आया. नेमीचंद ने फिर उन्हीं नंबरों पर फोन किया, लेकिन इस बार उसे कोई रिस्पौंस नहीं मिला. नेमीचंद को मामला गड़बड़ नजर आया. उस ने अपने परिचितों से बात की तो लोगों ने ठगी की आशंका जताते हुए उसे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

नेमीचंद ने 15 सितंबर, 2017 को जयपुर कमिश्नरेट के नाहरगढ़ रोड थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने 420 व 406 आईपीसी में मामला दर्ज कर लिया. जयपुर कमिश्नरेट के विभिन्न पुलिस थानों में इस से पहले भी बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी के कई मुकदमे दर्ज हुए थे.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने साइबर अपराधों के ऐसे मामलों का खुलासा करने के लिए एडीशनल पुलिस कमिश्नर (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन व डीसीपी (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया. इस में क्राइम ब्रांच की संगठित अपराध शाखा के एसीपी राजवीर सिंह तथा सबइंसपेक्टर मनोज कुमार व तकनीकी शाखा के कर्मचारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने कई दिनों की लंबी जांचपड़ताल में पता लगाया कि अभियुक्त संगठित रूप से कालसेंटर की आड़ में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. यह बात भी पता चली कि अभियुक्त सफेदपोश बन कर अलगअलग कंपनियों की आड़ में उत्तर प्रदेश के नोएडा में कालसेंटर चलाते हैं और धोखाधड़ी के जरिए लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर रहे हैं.

एसीपी राजवीर सिंह के नेतृत्व में जयपुर पुलिस की टीम 9 अक्तूबर को नोएडा पहुंची. नोएडा पुलिस को सूचना दे कर जयपुर पुलिस की टीम ने सैक्टर-2 के मकान नंबर ए-23 पर दबिश दी. इस मकान में डेस्टिमनी सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड, एचडीएफसी तथा भारती एक्सा के नाम से कंपनियां चल रही थीं. कालसेंटर भी इसी मकान में चल रहा था. पुलिस इस कालसेंटर को देख कर चौंक गई. इस कालसेंटर में 150 से अधिक युवकयुवतियां काम करते थे.

देश के हर राज्य में फैला था ठगों का नेटवर्क

यहां से पुलिस ने एक युवती सहित 9 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में दिलशाद गार्डन, सीमापुरी, दिल्ली निवासी नेहा त्यागी, टीम लीडर हरमपुर, लोनी, गाजियाबाद निवासी गौरव त्यागी, गाजियाबाद के मुरादनगर के रहने वाले भारत सिंह, शामली के कृष्णानगर निवासी संजीव कुमार, दिल्ली के कबीरनगर निवासी यतींद्र कुमार शर्मा, दिल्ली के पांडवनगर कौंप्लेक्स निवासी नितिन शर्मा, बुलंदशहर जिले में औरंगाबाद थाना क्षेत्र के बखोरा गांव निवासी शिवराज सिंह, एटा के कैलाशगंज निवासी राम कन्हैया और बिहार के सहरसा जिले के रहने वाले अमूल्य कुमार तोमर को गिरफ्तार कर लिया. तोमर दिल्ली के जैतपुर में रह रहा था.

पुलिस ने यहां से बड़ी संख्या में मोबाइल फोन, सिम कार्ड्स, इंटरकौम फोन व वाकीटाकी सहित बड़ी संख्या में दस्तावेज बरामद किए. पुलिस ने इस कालसेंटर पर काम करने वाले युवकयुवतियों को भी हिरासत में ले लिया. गिरफ्तार किए गए 9 आरोपियों व हिरासत में लिए गए कालसेंटर के कर्मचारियों से पूछताछ में पता चला कि नोएडा के सेक्टर-2 में ही 2 साल से अभियुक्त इस कालसेंटर के जरिए लोगों को फोन कर के औनलाइन ठगी कर रहे थे. ये लोग रोजाना देश भर में बड़ी संख्या में लोगों को फोन करते थे और लाइफ इंश्योरेंस में बोनस दिलवाने के बहाने उन से अपने खातों में औनलाइन पैसे डलवा लेते थे.

गिरफ्तार आरोपी फरजी आईडी के जरिए ली गई दर्जनों सिम व मोबाइलों को ठगी की वारदातों के काम में लाते थे ताकि पुलिस उन तक न पहुंच सके. ठगी गई राशि को ये लोग खुद के और अपने परिवार के सदस्यों के नाम से खोले गए विभिन्न बैंक खातों में जमा करवाते थे.

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जांचपड़ताल में सामने आया कि आरोपियों ने एक साल के दौरान देश के लगभग 23 राज्यों में 4,755 से ज्यादा काल फरजी नंबरों से किए थे. इन में से राजस्थान में 249 काल की गई थीं. राजस्थान के 18 जिलों में इस गिरोह ने 37 लोगों से एक करोड़ 30 लाख 68 हजार 400 रुपए की ठगी की थी.

क्राइम ब्रांच ने पीडि़तों से संपर्क कर के इन तथ्यों की पुष्टि की है. गिरोह की ठगी का शिकार हुए लोग जयपुर के अलावा भीलवाड़ा, जोधपुर, अजमेर, सीकर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, उदयपुर, कोटा, जालौर, झालावाड़, नागौर, टोंक, अलवर, भरतपुर, पाली तथा श्रीगंगानगर के रहने वाले हैं. गिरोह ने सब से बड़ी ठगी 30 लाख रुपए की भीलवाड़ा के एक व्यक्ति से थी. इस का मुकदमा जयपुर के साइबर थाने में दर्ज है. इस के अलावा 16 लाख रुपए, 14 लाख रुपए, 2 लाख रुपए और 1 लाख रुपए से ले कर 3400 रुपए की धोखाधड़ी इस गिरोह ने की है.

गिरोह के संचालक कालसेंटर पर काम करने वाले युवकयुवतियों को 8-10 हजार रुपए वेतन देते थे. इस के अलावा लोगों को झांसा दे कर खाते में रकम डलवाने के लिए अलग से कमीशन देते थे. पुलिस ने हिरासत में लिए इस कालसेंटर के कर्मचारियों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

बीमा पौलिसी की ठगी करने वाले गिरोह में सीए तथा एमबीए के छात्र भी शामिल   

बीमा पौलिसी की किस्त औनलाइन जमा करवाने पर डिसकाउंट मिलने का झांसा दे कर लोगों से 50 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी करने वाले 4 बदमाशों को जयपुर पुलिस ने इसी साल मई के दूसरे सप्ताह में गिरफ्तार किया था. इन में एक सीए और एक एमबीए का छात्र था.

इसी साल 6 मई को जयपुर के प्रतापनगर थाने में हरेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि मेरी मैक्स लाइफ इंश्योरेंस पौलिसी की सालाना 49 हजार 500 रुपए किस्त जाती है. एक दिन एक अज्ञात आदमी ने मोबाइल पर काल कर के कहा कि आप पौलिसी का औनलाइन पेमेंट कर दोगे तो आप को डिसकाउंट मिलेगा. इस के लिए 45 हजार 500 रुपए जमा कराने होंगे. उस आदमी ने मुझे मोबाइल पर मैसेज भेजा. मैसेज में मोबाइल नंबर नहीं आया, बल्कि मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का नाम आया और खाता नंबर लिखा था.

एकाउंट होल्डर की जगह मैक्स लाइफ कंपनी का नाम लिखा था, जिस से हरेंद्र को भरोसा हो गया. उस ने औनलाइन बैंकिंग के जरिए 4 मई को अपने बैंक खाते से 45 हजार 500 रुपए उस खाते में ट्रांसफर कर दिए. इस के बाद हरेंद्र ने जमा कराई रकम की रसीद लेने के लिए जब मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क किया तो उसे पता चला कि वह औनलाइन ठगी का शिकार हो चुका है.

जयपुर पुलिस ने दिल्ली जा कर जांचपड़ताल की तो पता चला कि जिस खाते में हरेंद्र से रकम डलवाई गई थी, वह एसबीआई दिल्ली का खाता था. यह खाता दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी अमन छीपी का था.

बाद में पुलिस ने अमन के अलावा मूलरूप से पंजाब के मोहाली निवासी और आजकल दिल्ली में रह रहे जीत सिंह संधूजा, यूपी के पंचशील नगर निवासी और हाल दिल्ली में बादली मेट्रो स्टेशन के पास रहने वाले संदीप कुमार छीपी तथा दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी राहुल खटीक को गिरफ्तार कर लिया. इन से पुलिस ने 15 फरजी सिम कार्ड भी बरामद किए. इन में अमन छीपी सीए और जीत सिंह संधूजा एमबीए का छात्र है.

पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने लोगों को ठगने के लिए 13 बैंक खाते खुलवा रखे थे. सितंबर, 2016 से इन्होंने औनलाइन ठगी की करीब 100 वारदातें की थीं.

इन वारदातों में लोगों से 50 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी. पूछताछ में यह बात भी पता चली कि आरोपियों का मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क था.

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वे वहां कंपनी के अफसरों और कर्मचारियों से मिल कर पौलिसीधारक की डिटेल्स हासिल कर के उस की पौलिसी की किस्त आदि पता कर लेते थे. इस के बाद ये लोग पौलिसी धारकों को फोन कर के अपने जाल में फंसाते थे.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

 प्रवीण सोमानी के अपहरण के “वो 300 घंटे!”

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित प्रवीण सोमानी अपहरणकांड को सुलझाने में पुलिस को 14 दिन बाद अंततः  सफलता मिली. राजधानी रायपुर पुलिस ने उद्योगपति प्रवीण सोमानी को अंतर प्रांतीय अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ाकर सकुशल परिजनों के  सुपुर्द कर दिया है. सन 2020 की 8 जनवरी को प्रवीण सोमानी के अपहरण के बाद पुलिस की नींद हराम हो गई थी. पुलिस के अनुसार प्रवीण को सकुशल घर लाने के लिए रायपुर पुलिस ने 10 लाख फोन कॉल और 1500 सीसीटीवी कैमरे की पड़ताल की तब जाकर उत्तर प्रदेश से छुड़ाने में सफल हुई.

पुलिस के उच्च अधिकारियों के अनुसार  अपहरणकर्ता काफी शातिर हैं, इसलिए फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ रहा था. छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक  डीएम अवस्थी ने प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को बताया कि 08 जनवरी को प्रवीण सोमानी का सिलतरा क्षेत्र से अपहरण हुआ। इस घटना से प्रदेश भर में सनसनी फैल गई थी उद्योगपतियों में भय व्याप्त हो गया था और पुलिस के ऊपर दबाव बढ़ता चला जा रहा था. मामला विधानसभा में भी उठा और छत्तीसगढ़ सरकार के समक्ष एक प्रेशर बन कर सामने था कि जल्द से जल्द उद्योगपति  प्रवीण सोमानी को ओपन खतरों से छुड़ाया जाए.

यह था घटनाक्रम

छत्तीसगढ़ पुलिस को अपहरणकर्ताओं तक पहुंचने के लिए रायपुर,छत्तीसगढ़  से उत्तर-प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मध्य आनेवाले  वाले रास्तों के करीब डेढ़ हजार सीसीटीवी कैमरे खंगालने पड़े . रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, होटल, टोल नाके में लगे सीसीटीवी खंगाले . पांच लाख फोन कॉल को चार दिन तक लगातार खंगाला . सीसीटीवी कैमरे से पुलिस क्लू मिलता गया. उसके बाद पुलिस की एक टीम तुरंत उत्तर प्रदेश के लिए रवाना कर दी गई.अपहरणकर्ता इतने शातिर थे कि एक बार फोन करने के बाद दोबारा उस सिम का इस्तेमाल नहीं करते थे. वह सिम तोड़कर फेंक देते थे.इस कारण  पुलिस को ” क्लू” नहीं मिल पा रहा था.

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डीजीपी अवस्थी ने बताया कि 8 जनवरी को प्रवीण सोमानी को उठाने पप्पू समेत आठ लोग ईडी अधिकारी बनकर रायपुर आये थे. धरसींवा  सिलतरा के सरडा एनर्जी से करीब 200 मीटर पहले सोमानी की कार को रोका और  प्रवीण  सोमानी को अपने कब्जे में  ले लिया.

तत्पश्चात अपहरणकर्ता सोमानी को लगातार बेहोशी के इंजेक्शन लगाते रहे. अपहरणकर्ताओं ने चालाकी पूर्वक अपनी कार में फर्जी नम्बर लगा रखा था.जांच में यह नंबर एक ट्रैवल एजेंसी का पाया गया.अपहरणकर्ता प्रवीण को सिमगा, चिल्फी होते हुए कटनी और फिर इलाहाबाद ले गए.उसके बाद  उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में ही एक घर में बंद कर दिया और गैंग का सरगना पुलिस को छकाने के लिए खुद बिहार के वैशाली पहुंच गया. यहीं से  अपहरणकर्ता प्रवीण सोमानी के लिए फिरौती मांगने लगे और कथित रूप से 50  करोड़ रुपए फिरौती मांगी गई थी.

यहां बनाई थी अपहरण की योजना

छत्तीसगढ़ के डीजीपी अवस्थी ने बताया कि प्रवीण सोमानी के अपहरण की पूरी योजना सूरत, गुजरात  जेल में बनाई गई थी. पप्पू चौधरी गिरोह के सदस्यों ने आपस मे टारगेट तय करने के लिए बाकायदे “गूगल”  का सहारा लिया था. इस तरह हाईटेक तरीके से अपहरणकर्ताओं  द्वारा उद्योगपति की अपहरण की गहरी साजिश रची गई थी.

पुलिस का कहना था  अपहरणकर्ता इस कदर शातिर थे कि उन्होंने किडनैपिंग की इस पूरी वारदात में हर एक कदम, एक्शन के बाद अपने सिम कार्ड को बदल दिया  जाता . यह  गैंग अलग-अलग लेवल पर बंटा हुआ था. गाडिय़ों का बंदोबस्त करने की जिम्मेदारी, प्रवीण सोमानी को छुपाने की जिम्मेदारी और फिेरौती के लिए फोन करने की जिम्मेदारी गैंग के अलग-अलग लोग, दस्ते  को दी गई थी.

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और सबसे बड़ी बात इन ग्रुप्स का आपस में कोई संपर्क नहीं था. यहां तक कि जब प्रवीण सोमानी को एसएसपी ने छुड़ा लिया उसके बाद भी लगातार फिरौती के लिए फोन आते रहे. बुधवार 22 जनवरी की देर रात उद्योगपति प्रवीण को छत्तीसगढ़ ले करके आई पुलिस और रात को ही मीडिया के समक्ष सारे तथ्य उद्घाटित कर दिया जाए.

23 जनवरी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वयं प्रवीण सोमानी को अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया व अपहरण की संपूर्ण जानकारी ली. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने  छत्तीसगढ़ पुलिस के   अपहरण कांड के जांच दस्ते को इस बड़ी सफलता के लिए  पुरस्कृत करने की भी घोषणा की है.

औनलाइन मार्केट बनाम ठगी का बाजार

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के बुधवारी बाजार में निवासरत एक महिला को इनाम मे एक शानदार “कार” का  झांसा देकर उससे आठ लाख रुपये  की ठगी कर ली गई . महिला की शिकायत पर  पुलिस ने ठगी करने वाले गिरोह के सदस्यों के खिलाफ धारा 420 सहित अन्य धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध किया था पुलिस अधीक्षक जितेन सिंह मीणा के निर्देश पर  चौकी प्रभारी जितेन सिंह यादव मामले की तहकीकात कर रहे थे.

इस दौरान पुलिस अधिकारियों को सूचना मिली कि ठगी करने वाले गिरोह के सदस्य दिल्ली व नालंदा बिहार में छुपे हुए हैं जिसके आधार पर  चौकी प्रभारी सिंह यादव सहित दिल्ली व नालंदा बिहार पहुंचे और ठगी करने वाले संतोष कुशवाहा व शिव शंकर महतो  को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया . दोनों आरोपियों के कब्जे से पुलिस ने पासबुक एटीएम मोबाइल सिम कार्ड सहित अन्य सामानों को भी  जप्त कर लिया है. पुलिस अधीक्षक के मुताबिक  इस मामले का मुख्य सरगना अभी फरार है जिसकी पुलिस सरगर्मी से खोजबीन में जुटी हुई है.

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टी-शर्ट मंगा कर लूट गई

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के बांकीमोंगरा थाना क्षेत्र में शांतिनगर में रहने वाली सालिमा सोना 47 वर्ष ने अपने बेटे के लिए टी शर्ट ऑनलाइन मंगाई थी. शर्ट की कीमत मात्र छह सौ रुपए थी. डिलवरी होने के बाद महिला को शर्ट पसंद नहीं आई, तो उसने शर्ट को रिटर्न कर दिया.उसे बताया कि चार से 10 दिन के भीतर उसके खाते मेेंं राशि वापस आ जाएगी.

रकम नहीं आने पर महिला ने इंटरनेट में सर्च कर फैक्ट्री क्लब के मोबाइल नंबर  पर सम्पर्क किया। किसी राजेश कुमार ने कहा कि पैसे जल्द मिल जाएंगे. ओटीपी बताना होगा. महिला ने जैसे ही ओटीपी बताया. ओटीपी बताने के बाद अलग-अलग किस्तों मेें उसके खाते से कुल ९९ हजार 997 रुपए गायब हो गए. महिला ने बांकीमोंगरा थाने में अज्ञात आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कराया है.

 मोबाइल मंगाया और लुट गए

बेटे के लिए टी शर्ट मंगाकर ठगी का शिकार हुई  महिला वाले मामले को अभी कुछ ही दिन बीते थे की कोरबा जिला के दीपका थाना में फिर एक ठगी का मामला सामने आया . इस बार कंपनी ने सामान आर्डर करने वाले को उसका डेमो भेज दिया. अब ग्राहक उस सामान की वापसी की गुहार कंपनी से लगा रहा है. लेकिन कंपनी की तरफ से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है.

ठगी का यह पूरा मामला औनलाइन शौपिंग वेबसाइट क्लब फैक्ट्री से जुड़ा हुआ है. दीपिका के बजरंग चौक शांति नगर के रहने वाले सरफराज अंसारी में क्लब फैक्ट्री से ऑनलाइन मोबाइल का और्डर किया था. कुछ दिन बाद ही उसे मोबाइल की डिलीवरी की गई. लेकिन जब उसने पैकेट खोला तो उसके होश उड़ गए. पैकेट के भीतर डेमो मोबाइल रखा हुआ था.

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ग्राहक ने तत्काल इसकी शिकायत क्लब फैक्ट्री के कंपनी कस्टमर केयर सिटी लेकिन उनकी तरफ से सरफराज को गोलमोल जवाब दिया गया. अंततः विवश होकर उसे भी थाने की शरण लेनी पड़ी कुल मिलाकर ऑनलाइन खरीदी करने वाले अनेकों लोग खरीदी करके मानो बुरी तरह फंस गए हैं. एक तरफ औनलाइन खरीदी का मार्केट जोर पकड़ता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ मत ले ऐसे सामने आ रहे हैं जो चिंता का सबब बने हुए हैं अच्छा हो ऑनलाइन मार्केटिंग की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए कुछ पुख्ता इंतजाम किए जाएं.

कमेलश तिवारी हत्याकांड: किस ने बुना हत्या का जाल

17 अक्तूबर, 2019 की शाम का वक्त था. हिंदूवादी नेता 50 साल के कमलेश तिवारी लखनऊ के खुर्शेदबाग स्थित अपने औफिस में बैठे थे. औफिस के ऊपर ही उन का आवास भी था, जिस में वह पत्नी किरन और बेटे ऋषि के साथ रहते थे. घर के नीचे कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. उसी समय उन के मोबाइल पर एक फोन आया जिस पर बात करने वाले ने कहा, ‘हम लोग आप से मिलने कल आ रहे हैं.’

इस के बाद कमलेश तिवारी ने अपनी पत्नी को बुलाया और बोले, ‘‘कल गुजरात से कुछ लोग मिलने आ रहे हैं. औफिस वाला कमरा साफ कर देना. उन लोगों को चाय के साथ खाने में ‘दही वड़ा’ तैयार कर देना. कार्यकर्ता हैं, इतनी दूर से आ रहे हैं.’’

पत्नी ने कमलेश के कहे अनुसार दूसरे दिन की पूरी तैयारी कर ली.

18 अक्तूबर को करीब पौने 12 बजे 2 युवक हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए कमलेश तिवारी के घर पंहुचे. वे दोनों ही भगवा रंग के कुरते और डेनिम जींस पहने हुए थे. उन के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. दोनों की उम्र 25 साल के करीब रही होगी. उन लोगों ने हिंदू समाज पार्टी के कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह को बताया कि कमलेश तिवारी से मिलने के लिए आए हैं. सौराष्ठ ने औफिस में बैठे कमलेश तिवारी से उन्हें मिलवा दिया.

कमलेश तिवारी उस समय औफिस में ही थे. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहे थे. कमलेश तिवारी सामने कुरसी पर थे. बीच में बड़ी सी मेज थी और सामने लोगों के बैठने के लिए कुछ कुरसियां पड़ी थीं. युवकों ने आते ही कमलेश तिवारी से अयोध्या मसले पर बात करनी शुरू की और कहा, ‘‘आप को बधाई, अब जल्दी ही फैसला आ जाएगा.’’

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कमलेश ने दोनों के लिए दही वड़ा और चाय मंगवाई. इस बीच दोनों युवकों ने अपने आने का उद्देश्य बताया कि उन्हें मुसलिम लड़की और हिंदू लड़के की शादी करानी है. साथ ही यह भी साफ कर दिया कि मुसलिम लड़की को उठा कर जबरन शादी करानी है. इस पर कमलेश तिवारी ने कहा कि वह जबरन लड़की को उठाने के पक्ष में नहीं हैं. जरूरत पड़ने पर केवल मध्यस्थता करा सकते हैं.

युवकों ने बातचीत जारी रखी. कमलेश की पत्नी चाय और दही वड़ा रख गई थी. चाय वगैरह पीने के बाद कमलेश ने पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ठ को आवाज दी. वह ऊपर आया तो उन्होंने अपने लिए पान मसाला के पाउच लाने को कहा. इसी बीच दोनों युवकों ने अपने लिए सिगरेट का पैकेट लाने को कहा. सौराष्ठ सिगरेट और पान मसाला लेने चला गया.

इतने में दोनों युवक खडे़ हुए. मिठाई का डिब्बा देने के बहाने एक युवक कमलेश तिवारी के पास पहुंच गया और उस ने उन का मुंह दबा दिया. फिर बड़ी फुरती से गले पर चाकू लगा कर रेतने लगा. सामने वाले युवक ने कमलेश को पकड़ रखा था, जिस से वह हिल न सकें.

गला रेतने के बाद उस युवक ने चाकू से कमलेश की गरदन, गले, पीठ और छाती पर बेदर्दी से वार करने शुरू कर दिए. जब कमलेश गिर गए तो दूसरे युवक ने मिठाई के डिब्बे में रखी पिस्तौल गले पर सटा कर गोली चलाई. मात्र 5 मिनट में घटना को अंजाम दे कर दोनों सीढि़यों से उतर कर फरार हो गए.

कुछ देर में सौराष्ठ जब सिगरेट और मसाला ले कर ऊपर आया तो कमलेश को खून से लथपथ पड़ा देख कर आवाज लगाई. तिवारी की पत्नी किरन और बेटा ऋषि ऊपर के कमरे से नीचे आए. पति की हालत देख कर किरन दहाड़ें मार कर रोने लगी. सौराष्ठ और ऋषि कमलेश को ले कर अस्पताल गए. डाक्टरों ने उन्हें देखते ही कहा कि सांस की नली कटने से इन की मौत हो चुकी है.

राजधानी लखनऊ में दिनदहाडे़ हिंदूवादी नेता की हत्या से सनसनी फैल गई. पुलिस नेता और अन्य लोग कमलेश तिवारी के घर की तरफ दौड़े. एसएसपी कलानिधि नैथानी से ले कर छोटेबड़े सभी अफसर वहां आ गए. घटना की सूचना कमलेश तिवारी के सीतापुर स्थित गांव पहुंची तो वहां से उन की मां कुसुमा देवी और बाकी परिजन लखनऊ आ गए.

हत्या का सब से बड़ा कारण मुसलिम मौलानाओं द्वारा कमलेश का सिर काट कर लाने की धमकी को माना गया. इसी आधार पर कमलेश की पत्नी किरन ने पुलिस को एक तहरीर दी, जिस के आधार पर थाना नाका में भादंवि धारा 302 और 120बी के तहत मुकदमा कायम हुआ.

इस में मुफ्ती नवीम काजमी और इमाम मौलाना अनवारूल हक को नामजद किया गया. पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में किरन ने कहा कि 3 साल पहले इन दोनों ने उस के पति का सिर काट कर लाने वाले को डेढ़ करोड़ का ईनाम देने की बात कही थी. इन लोगों ने ही तिवारीजी की हत्या कराई है.

पुलिस ने इसी सूचना के आधार पर अपनी जांच आगे बढ़ाई तो गुजरात पुलिस से पता चला कि उस के यहां पकडे़ गए कुछ अपराधियों ने इस योजना पर काम किया था.

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लखनऊ पुलिस को घटनास्थल पर जो मिठाई का डिब्बा मिला, उस में एक बिल मिला, जिस में सूरत की मिठाई की दुकान का नाम लिखा था. यह मिठाई 16 अक्टूबर की रात करीब 9 बजे सूरत उद्योगनगर उधना स्थित धरती फूड प्रोडक्ट्स से खरीदी गई थी.

यूपी और गुजरात पुलिस ने जोड़ी कडि़यां

इस के बाद लखनऊ पुलिस ने गुजरात पुलिस से संपर्क किया तो साजिश की कडि़यां जुड़नी शुरू हुईं. कमलेश तिवारी की हत्या का आरोप जिन लोगों पर लगा, वे भी कमलेश को सोशल मीडिया से ही मिले थे.

अपनी जांच में पुलिस ने पाया कि कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने रोहित सोलंकी ‘राजू’ के नाम से अपना फेसबुक प्रोफाइल बनाया था. उस ने खुद को एक दवा कंपनी में जौब करने वाला बताया. उस की रिहाइश मुंबई थी और सूरत में काम कर रहा था.

अशफाक ने हिंदू समाज पार्टी से जुड़ने के लिए गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष जैमिन बापू से संपर्क किया था. जैमिन बापू कमलेश तिवारी के लिए गुजरात में पार्टी का काम देखते थे. जैमिन बापू के संपर्क में आने के बाद ही रोहित ने 2 फेसबुक प्रोफाइल बनाईं. इस के बाद वह कमलेश से जुड़ गया. वह फेसबुक पर हिंदुओं के देवीदेवताओं से जुड़ी पोस्ट शेयर करने लगा.

कमलेश तिवारी की फेसबुक पर मिली फोटो से पत्नी किरन और कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह ने दोनों हत्यारों की पहचान कर ली. पुलिस को अब तक दोनों का असली नाम अशफाक और मोइनुद्दीन पता चल चुका था.

जैसे ही इन दोनों के नाम खबरों में आए, तो नाका थाना क्षेत्र के ही ‘होटल खालसा इन’ के लोगों ने पुलिस को बताया कि इस तरह के 2 युवक 17 अक्तूबर को आधी रात आए थे और उन के होटल में रुके थे. सुबह होते ही वे कमरे से बाहर गए तो फिर दोपहर बाद वापस आए. उस के बाद गए तो वापस नहीं आए.

इन दोनों के बुक कराए गए कमरे को खोला गया तो वहां से खून से सने भगवा रंग के कुरते मिले. होटल में दिए गए आधार कार्ड से दोनों का एड्रैस मिल गया और पुलिस इन के पीछे लग गई.

5 दिन में ये दोनों कानपुर, शाहजहांपुर, दिल्ली होते हुए गुजरात पंहुच गए. वहां से दोनों भागने की फिराक में थे, लेकिन उस से पहले ही पुलिस ने उन्हें राजस्थान बौर्डर के शामलजी से पकड़ लिया.

पूछताछ में पता चला कि ये दोनों करीब 2 साल से कमलेश तिवारी को मारने की योजना पर काम कर रहे थे. अशफाक सूरत के ग्रीन व्यू अपार्टमेंट में रहता था और मोइनुद्दीन पठान सूरत की लो कास्ट कालोनी का रहने वाला था. अशफाक मैडिकल रिप्रजेंटेटिव और मोइनुद्दीन फूड डिलीवरी बौय का काम करता था.

पुलिस का कहना है कि ये दोनों पैसे के इंतजाम में अपने फोन से बातचीत करने लगे थे, जिस से गुजरात पुलिस को इन के ठिकाने का पता चल गया और इन्हें पकड़ लिया गया. पुलिस को अब यह पता करना बाकी है कि इन दोनों ने किस के कहने पर कमलेश तिवारी की हत्या की.

कट्टरवादी छवि थी कमलेश तिवारी की

कमलेश तिवारी खुद को हिंदू नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में थे. वह धर्म से राजनीति की तरफ जाना चाहते थे. अपनी कट्टरवादी छवि से वह पूरे देश में प्रचारप्रसार करना चाहते थे. कमलेश तिवारी ने अपने कैरियर की शुरुआत हिंदू महासभा से की. इस के वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने.

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की विधानसभा से मात्र 3 किलोमीटर दूर गुरुगोबिंद सिंह मार्ग के पास खुर्शेदबाग में हिंदू महासभा का प्रदेश कार्यालय था. खुर्शेदबाग का नाम हिंदू महासभा के कागजों पर वीर सावरकर नगर लिखा जाता है.

कमलेश तिवारी नाथूराम गोडसे को अपना आदर्श मानते थे. उन के घर पर नाथूराम गोडसे की तस्वीर लगी थी.

कमलेश तिवारी मूलरूप से सीतापुर जिले के संदना थाना क्षेत्र के गांव पारा के रहने वाले थे. साल 2014 में वह अपने गांव में नाथूराम गोडसे का मंदिर बनवाने को ले कर चर्चा में आए थे. 18 साल पहले कमलेश गांव छोड़ कर पूरे परिवार के साथ महमूदाबाद रहने चले गए थे. उन के पिता देवी प्रसाद उर्फ रामशरण महमूदाबाद कस्बे में स्थित रामजानकी मंदिर में पुजारी थे.

30 जनवरी, 2015 को तिवारी को अपने गांव पारा में गोडसे के मंदिर की नींव रखनी थी. लेकिन इसी बीच पैगंबर पर की गई टिपप्णी को ले कर वह दूसरे मामलों में उलझ गए.

महमूदाबाद में कमलेश के पिता रामशरण मां कुसुमा देवी, भाई सोनू और बड़ा बेटा सत्यम तिवारी रहते हैं. कमलेश तिवारी हिंदू महासभा के जिस प्रदेश कार्यालय से संगठन का काम देखते थे, कुछ समय के बाद वह अपने बेटे ऋषि और पत्नी किरन तिवारी और पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह के साथ इसी कार्यालय के ऊपरी हिस्से में रहने लगे थे.

लखनऊ में उन के रहने का कोई दूसरा स्थान नहीं था. हिंदू महासभा से अलग हिंदू समाज पार्टी बनाने के बाद भी वह अपने पुराने संगठन के औफिस में ही रह रहे थे.

कमलेश तिवारी ने पहली दिसंबर, 2015 को हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे, इस के लिए प्रशासन ने कमलेश तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. जेल में रहते हुए कमलेश तिवारी को इस बात का मलाल था कि हिंदू महासभा के लोग उन की मदद को नहीं आए.

अब तक कमलेश तिवारी सोशल मीडिया पर कट्टरवादी हिंदुत्व का चेहरा बन कर उभर चुके थे. सोशल मीडिया पर उन के चाहने वालों की संख्या भी बढ़ चुकी थी. जेल से बाहर आने के बाद अखिलेश सरकार ने 12-13 पुलिसकर्मियों का एक सुरक्षा दस्ता कमलेश तिवारी की हिफाजत में लगा दिया था. ऐसे में अब वह खुद को बड़ा हिंदूवादी नेता मानने लगे थे. कमलेश तिवारी का कद बढने से हिंदू महासभा में उन्हें ले कर मतभेद शुरू हो गए.

खुद को बड़ा हिंदूवादी नेता मान चुके कमलेश तिवारी ने अपनी एक अलग ‘हिंदू समाज पार्टी’ का गठन कर लिया. वह हिंदू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर पूरे देश में अपना प्रचारप्रसार करने लगे. इस का सब से बड़ा जरिया सोशल मीडिया बना. हिंदू समाज के लिए तमाम लोग उन की पार्टी को मदद करने लगे थे.

उत्तर प्रदेश के बाहर कई प्रदेशों में हिंदू समाज पार्टी के साथ काम करने वाले लोग भी मिलने लगे. हिंदू समाज पार्टी को सब से अधिक समर्थन गुजरात से मिला. वहां पर कमलेश तिवारी ने पार्टी का गठन कर के जैमिन बापू को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था.

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2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई और महंत योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ प्रदेश में हिंदुत्व का चेहरा बन कर उभरे. ऐसे में कमलेश तिवारी को लगने लगा कि हिंदुत्व की राह पर चल कर वह भी राजनीति की बड़ी पारी खेल सकते हैं.

इस के बाद कमलेश तिवारी सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयानबाजी करने लगे. कमलेश तिवारी ने खुद को राममंदिर की राजनीति से भी जोड़ लिया था. अदालत में खुद को राममंदिर का पक्षकार बनने के लिए उन्होंने प्रार्थनापत्र भी दिया था. कमलेश अब अयोध्या को अपनी राजनीति का केंद्र बनाने की तैयारी करने लगे थे. इसी राह पर चलते हुए वह राममंदिर पर भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करते थे.

कमलेश तिवारी का लक्ष्य अपने धार्मिक संगठन से राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अयोध्या से लोकसभा का चुनाव भी लडे़ थे. हालांकि वह चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन उन्हें लगता था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा का विकल्प बन सकते हैं.

एक तरफ कमलेश तिवारी राजनीति में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे तो दूसरी तरफ मुसलिम कट्टरवादी उन के कत्ल का तानाबाना बुन रहे थे. कमलेश तिवारी की सुरक्षा व्यवस्था में हुई कटौती ने मुसलिम कट्टरवादियों के मिशन को सरल कर दिया, जिस के फलस्वरूप 18 अक्तूबर को अशफाक और मोइनुद्दीन नामक 2 युवकों ने घर में घुस कर उन की गला रेत कर हत्या कर दी.

कमलेश कहते थे, ‘हिंदुओं का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने मुझे 12-13 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा दी थी. योगी सरकार ने सुरक्षा हटा दी और सुरक्षा में केवल एक सिपाही ही दिया. इस से जाहिर होता है कि मुझे मारने की साजिश में वर्तमान सरकार भी हिस्सेदार बन रही है.’

कमलेश तिवारी ने यह बयान सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. सुरक्षा वापस लिए जाने के पहले भी कमलेश तिवारी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में थे.

कमलेश तिवारी को लगता था कि भाजपा केवल हिंदुत्व का सहारा ले कर सत्ता में आ गई है. अब वह हिंदुओं के लिए कुछ नहीं कर रही. कमलेश के ऐसे विचारों का ही विरोध करते भाजपा से जुडे़ लोग कमलेश को कांग्रेसी कहते थे.

अपनी पार्टी को गति देने के लिए कमलेश तिवारी ने देश के आर्थिक हालात, पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार, बंगाल में हिंदुओं की हत्या, नए मोटर कानून में बढ़े जुरमाने का विरोध, जीएसटी जैसे मुद्दों पर भाजपा की आलोचना की. इन मुद्दों को ले कर वह राजधानी लखनऊ में प्रदर्शन भी कर चुके थे.

उत्तर प्रदेश की राजधानी में भले ही कमलेश तिवारी को बड़ा नेता नहीं माना जाता था, लेकिन सोशल मीडिया में वह मजबूत हिंदूवादी नेता के रूप में पहचाने जाते थे. वह हिंदुत्व की अलख सोशल मीडिया के जरिए जला रहे थे. फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर पर वह हिंदुत्व के पक्ष में अपने विचार देते रहते थे. आपत्तिजनक टिप्पणियों के कारण फेसबुक उन की प्रोफाइल बंद कर देता था.

उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस नेताओं को कमलेश तिवारी की हत्या कानूनव्यवस्था का मसला लगती हो, पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उन की हत्या पर सवाल उठाते कहा कि कमलेश तिवारी की हत्या सुनियोजित है या नहीं, यह उत्तर प्रदेश सरकार बताए.

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कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने फेसबुक मैसेंजर पर कमलेश तिवारी से बात करनी शुरू की थी. वह एक लड़की की शादी के सिलसिले में उन से मिलना चाहता था. कमलेश के करीबी गौरव से अशफाक ने जानपहचान बढ़ाई और उन के बारे में सारी जानकारी लेता रहा.

रोहित सोलंकी बन कर अशफाक ने जो फेसबुक प्रोफाइल बनाई थी, उस में हिंदूवादी संगठनों के 421 लोग जुडे थे. पुलिस का कहना है कि 2 साल से हत्यारोपी कमलेश तिवारी की हत्या की योजना पर काम कर रहे थे.

ड्राइवर बना जान का दुश्मन

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के दक्षिण में स्थित केंपेगौड़ा इंटरनैशनल एयरपोर्ट के पास एक गांव है कडयारप्पनहल्ली. 31 जुलाई, 2019 की बात है. इस गांव के कुछ लोग सुबहसुबह जब जंगल की ओर जा रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक युवती की लाश पड़ी देखी. उन लोगों ने इस बात की जानकारी कडयारप्पनहल्लीके सरपंच को दी. सरपंच ने बिना विलंब किए इस मामले की सूचना बेंगलुरु पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

सरपंच और कंट्रोल रूम से खबर पाते ही बेंगलुरु सिटी पुलिस हरकत में आ गई.  थानाप्रभारी ने ड्यूटी पर तैनात अफसर को इस मामले की डायरी बनाने को कहा और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

20 मिनट में पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. उस समय तक इस घटना की खबर आसपास के गांवों में फैल गई थी. देखतेदेखते घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र हो गई थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस टीम ने गांव के सरपंच से मामले की जानकारी ली और उसी के आधार पर जांच शुरू कर दी. सूचना मिलने पर बेंगलुरु (साउथ) के डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने जांच टीम को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

डीसीपी साहब के चले जाने के बाद पुलिस टीम ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका की लाश के पास से पुलिस को आईडी कार्ड या मोबाइल फोन वगैरह कुछ नहीं मिला था, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. लेकिन स्वस्थ, सुंदर युवती के कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी संपन्न और संभ्रांत परिवार से थी.

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मृतका की कलाई में टाइटन की घड़ी थी. साथ ही वह ब्रांडेड कपड़े पहने हुए थी. उस की गरदन पर बना टैटू भी इस बात का संकेत था कि उस का संबंध किसी बड़े शहर से था. हत्यारे ने उस की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी.

युवती के सीने और पेट पर चाकू के गहरे घाव थे. सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. उस का चेहरा इतना विकृत कर दिया गया था ताकि उसे पहचाना न जा सके.

घटनास्थल का निरीक्षण कर के पुलिस ने युवती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए बेंगलुरु सिटी अस्पताल भेज दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर के पुलिस टीम थाने लौट आई और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस युवती की पहचान और हत्यारे की खोज में लग गई.

पुलिस की प्राथमिकता थी युवती की पहचान करना क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे बढ़ाना मुश्किल था. युवती की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास युवती के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के अलावा कुछ नहीं था. पुलिस ने उस के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के बार कोड का सहारा लिया. बार कोड से पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि ऐसी मार्केट कहांकहां और किनकिन शहरों में हैं, जहां मृतका जैसे कपड़े और चप्पल मिलते हों.

पुलिस की मेहनत रंग लाई

गूगल पर सर्च करने के बाद पुलिस को जानकारी मिली कि ऐसी मार्केट दिल्ली और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अधिक हैं. यह पता चलते ही पुलिस ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल की फेमस दुकानों की लिस्ट तैयार कर के उन से संपर्क साधा. पुलिस ने उन दुकानों से उन ग्राहकों की पिछले 2 सालों की लिस्ट मांगी, जिन्होंने औनलाइन या सीधे तौर पर खरीदारी की थी.

इस के साथ ही बेंगलुरु सिटी पुलिस ने उस युवती की लाश के फोटो और हुलिया दिल्ली और कोलकाता के सभी पुलिस थानों को भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में किसी युवती की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बावजूद पुलिस निराश नहीं हुई.

पुलिस उच्चाधिकारियों के आदेश पर जांच के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. इन में से एक टीम को दिल्ली भेजा गया और दूसरी को कोलकाता. इस कोशिश में पुलिस को कामयाबी मिली.

पुलिस को जो जानकारी चाहिए थी, वह कोलकाता के थाना न्यू टाउन से मिली. मृत युवती की गुमशुदगी थाना न्यू टाउन में दर्ज थी. पुलिस को पता चला कि जिस युवती की लाश मिली थी, वह कोई आम युवती नहीं बल्कि सेलिब्रिटी थी, नाम था पूजा सिंह.

वह इंटरटेनमेंट चैनल स्टारप्लस के सीरियल ‘दीया और बाती हम’ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी. उस ने और भी कई धारावाहिकों में महत्त्वूपर्ण भूमिकाएं निभाई थीं. साथ ही वह एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की फ्रीलांस मौडल भी थी. पूजा सिंह अपने पति सुदीप डे के साथ कोलकाता के न्यू टाउन में रहती थी.

पता मिल गया तो बेंगलुरु पुलिस न्यू टाउन स्थित सुदीप डे के घर पहुंच गई. पता चला कि सुदीप डे और पूजा सिंह ने लव मैरिज की थी. सुदीप डे ने बताया कि पूजा 29 जुलाई, 2019 को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के बुलावे पर उन के एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने बेंगलुरु गई थी. उसे 31 जुलाई की सुबह फ्लाइट ले कर कोलकाता आना था.

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जब वह नहीं आई तो सुदीप ने उस के मोबाइल पर काल की, लेकिन पूजा का फोन बंद था. जहांजहां पूछताछ करना संभव था, उन्होंने फोन किया. लेकिन कहीं से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला. आखिर सारा दिन इंतजार करने के बाद उन्होंने थाना न्यू टाउन में पूजा की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने अपना काम किया भी, पर पूजा का कोई पता नहीं लग सका. वह खुद भी नातेरिश्तेदारों और दोस्तों से बात कर के पूजा का पता लगाते रहे.

हत्यारे ने खुद सुझाया रास्ता

इसी बीच सुदीप के मोबाइल पर एक चौंका देने वाला मैसेज आया. मैसेज पूजा सिंह के फोन से ही किया गया था. मैसेज में लिखा था कि वह हैदराबाद में है और पैसे के लिए परेशान है. इस मैसेज में एक बैंक एकाउंट नंबर दे कर उस में 5 लाख रुपए डालने को कहा गया था.

यह बात सुदीप डे को हजम नहीं हुई, क्योंकि यह संभव ही नहीं था कि पूजा सिंह पैसे के लिए परेशान हो और अगर ऐसा होता भी तो वह पति से सीधे बात कर सकती थी. जिस तरह टूटीफूटी अंगरेजी में मैसेज था, वह भी गले उतरने वाला नहीं था क्योंकि पूजा की इंग्लिश पर अच्छी पकड़ थी.

मतलब साफ था कि पूजा का मोबाइल किसी गलत व्यक्ति के हाथों में पड़ गया था. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि हैदराबाद में पूजा का कोई प्रोग्राम था ही नहीं.

सुदीप ने पुलिस हेल्पलाइन से बैंक एकाउंट नंबर का पता लगाने की रिक्वेस्ट की तो पता चला कि वह एकाउंट नंबर बेंगलुरु के किसी नागेश नाम के व्यक्ति का था और पूरी तरह फ्रौड था.

सुदीप से मिली जानकारी से पुलिस जांच को दिशा मिल गई. सुदीप डे को साथ ले कर पुलिस टीम बेंगलुरु लौट आई. मृतका की शिनाख्त के बाद पूजा सिंह की लाश सुदीप को सौंप दी गई.

दूसरी ओर पुलिस ने नागेश का बायोडाटा एकत्र करना शुरू किया. पूजा सिंह के फोन की काल डिटेल्स से नागेश का फोन नंबर पता चल गया. कुछ जानकारियां उस के बैंक एकाउंट से भी मिलीं.

नागेश के मोबाइल की लोकेशन के सहारे 10 अगस्त, 2019 को उसे टैक्सी स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया गया, वह टैक्सी ड्राइवर था. इस मामले में उस से पूछताछ डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने खुद की.

शुरू में तो नागेश ने इमोशनल ड्रामा कर के डीसीपी साहब को घुमाने की कोशिश की लेकिन जब पुलिस ने अपने हथकंडे अपनाए तो वह मुंह खोलने को मजबूर हो गया. अंतत: उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने टीवी एक्टर पूजा सिंह की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

साधारण परिवार का 22 वर्षीय एच.एम. नागेश बेंगलुरु के संजीवनी नगर, हेग्गनहल्ली का रहने वाला था. मातापिता की गरीबी की वजह से उस ने बचपन से ही काफी कष्ट उठाए थे. महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के नागेश ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी.

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जवान होते ही उस ने टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था. नागेश की शादी हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे भी थे. घरपरिवार को चलाने की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी.

शुरू में काफी दिनों तक नागेश ने किराए की टैक्सी चलाई. बाद में उस ने यारदोस्तों की मदद और बैंक से लोन ले कर खुद की टैक्सी खरीद ली, जिसे उस ने ओला कैब में लगा दिया था. लेकिन इस से भी नागेश को ज्यादा कमाई नहीं होती थी, बस जैसेतैसे काम चल जाता था.

पूजा सिंह मौत का साया नहीं देख पाईं

जिन दिनों उस की मुलाकात टीवी स्टार पूजा सिंह से हुई, उन दिनों वह आर्थिक रूप से काफी परेशान था. दरअसल, उसे हर हफ्ते बैंक को किस्त देनी होती थी. लेकिन उस की टैक्सी के 2 हफ्ते बिना पेमेंट के छूट गए थे. 2 किस्तें भरने के लिए बैंक ने लेटर भेजा था.

29 जुलाई, 2019 को पूजा सिंह जब इवेंट मैनेजमेंट के प्रोग्राम के लिए बेंगलुरु आईं तो उस ने एयरपोर्ट से नागेश की ओला कैब हायर की. पूजा उस की कैब से वरपन्ना की अग्रहारा लौज गई थीं. उस के बातव्यवहार से पूजा सिंह कुछ इस तरह प्रभावित हुईं कि उन्होंने नागेश को अपने पूरे प्रोग्राम में साथ रखने का फैसला कर लिया. होटल में फ्रैश होने के बाद पूजा अपने कार्यक्रम के लिए निकलीं तो रात लगभग 12 बजे के आसपास वापस लौटीं.

नागेश को किराया देने के लिए पूजा सिंह ने अपना पर्स खोला और किराए के अलावा उसे अच्छी टिप दी.

31 जुलाई, 2019 की सुबह साढ़े 4 बजे पूजा को कोलकाता वापस लौटना था. इस के लिए उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी, इसलिए उन्होंने नागेश को साढे़ 3 बजे एयरपोर्ट छोड़ने के लिए कहा. इस के लिए नागेश ने पूजा सिंह से 1200 रुपए मांगे, जिसे उन्होंने खुशीखुशी मान लिया. नागेश पूजा सिंह के व्यवहार से खुश था. लेकिन होनी को कौन रोक सकता है.

चूंकि सुबह 3 बजे नागेश को जल्दी आ कर पूजा सिंह को ले कर एयरपोर्ट छोड़ना था, इसलिए घर न जा कर उस ने टैक्सी होटल परिसर में ही पार्क कर दी और टैक्सी की सीट लंबी कर के सोने की कोशिश करने लगा.

लेकिन दिमागी परेशानी ने उसे आराम नहीं करने दिया. उसे बैंक की 3 हफ्ते की किस्तें देनी थीं. उसे घर के खर्च और बैंक की किस्तों की चिंता खाए जा रही थी.

पूजा सिंह ने नागेश को जब किराया और टिप दी थी तो उस की नजर नोटों से भरे पूजा के पर्स पर चली गई थी. जब उस के दिमाग में कई तरह के सवाल आ रहे थे, तब बारबार उस की आंखों के सामने पूजा सिंह का पर्स भी लहरा रहा था.

नागेश ने बनाई हत्या की योजना

सोचतेसोचते नागेश के मन में एक खतरनाक योजना बन गई और उस ने उस पर अमल करने का फैसला कर लिया. पूजा सिंह को लूट कर वह अपनी परेशानियों से पीछा छुड़ाना चाहता था. उस ने सोचा कि पूजा सिंह दूसरे शहर की रहने वाली है, किसी को पता भी नहीं चलेगा.

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मन ही मन योजना बनातेबनाते उसे नींद आ गई. उस की नींद तक टूटी जब होटल के स्टाफ का एक व्यक्ति पूजा सिंह का सामान ले कर उस के पास आया. टैक्सी में सामान रखवाने के बाद नागेश ने तरोताजा होने के लिए अपनी पानी की बोतल ले कर मुंह पर छींटे मारे. पूजा सिंह आ गईं तो उन्हें ले कर वह एयरपोर्ट की तरफ चल दिया.

जितनी तेजी से उस की टैक्सी भाग रही थी, उतनी ही तेजी से उस का दिमाग चल रहा था. काम में व्यस्त रहने के कारण पूजा ठीक से सो नहीं पाई थीं, जिस की वजह से कैब में बैठेबैठे उन्हें नींद आ गई. पूजा को नींद में देख नागेश के मन का शैतान रौद्र रूप लेने लगा. उस ने टैक्सी का रुख सुनसान निर्जन स्थान की तरफ कर दिया.

पूजा सिंह की नींद खुली तो कैब के आसपास सन्नाटा देख घबरा गईं. टैक्सी रुकवा कर वह नागेश से कुछ बात कर पातीं, इस से पहले ही नागेश ने जैक रौड से पूजा सिंह के सिर पर वार कर दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गईं.

नागेश पूजा सिंह का सारा सामान ले कर फरार हो पाता, इस के पहले ही पूजा सिंह को होश आ गया. वह अपने बचाव के लिए चीखतेचिल्लाते हुए कैब से उतर कर रोड की तरफ भागने लगीं. लेकिन वह अपनी मौत से भाग नहीं पाईं.

नागेश ने उन्हें पकड़ लिया और अपनी सुरक्षा के लिए रखे चाकू से पूजा सिंह को गोद कर मौत की नींद सुला दिया. बाद में वह पूजा सिंह के शव को वहीं छोड़ कर फरार हो गया.

पूजा सिंह को लूट कर वह निश्चिंत हो गया था, लेकिन उसे तब झटका लगा जब आशा के अनुरूप पूजा सिंह के पर्स से उस के हाथ कुछ नहीं लगा. जिस समस्या के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया था, वह पूरी नहीं हो सकी. वह कैसे या क्या करे, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

तभी पूजा सिंह का मोबाइल उस के लिए रोशनी की किरण बना. उस ने पूजा सिंह के मोबाइल से उन के पति सुदीप डे को अपना एकाउंट नंबर दे कर 5 लाख रुपए डालने का मैसेज भेज दिया. बस यही उस के गले की फांस बन गया.

एच.एम. नागेश से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जैक रौड और टैक्सी पहले ही बरामद कर ली थी.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

कानून से खिलवाड़ करती हत्याएं

लेखक- डा.अर्जिनबी यूसुफ शेख

साल 2018 की 30 जुलाई को सामाजिक कार्यकर्ता और अकोला में आम आदमी पार्टी के नेता मुकीम अहमद और उन के साथ बुलढाणा, साखरखेड़ा के शफी कादरी की हत्या कर दी गई. हत्या करने वाले ने उन्हें अपने यहां रात खाने पर बुलाया, फिर उन का अपहरण हो जाने की खबर सामने आई. 4-5 दिन बाद उन की लाश बुलढाणा जंगल में बोरी में सड़ती पाई गई.

इसी महीने के आखिर में वाडेगांव के सरपंच आसिफ खान मुस्तफा खान को एक महिला नेता द्वारा अपनी बहन के घर बुला कर अपने बेटे और उस के दोस्तों के साथ मिल कर उस की हत्या कर मोर्णा नदी में म्हैसांग पुल से लाश को फेंके जाने की खबर सामने आई.

कहा जाता है कि सरपंच आसिफ खान और उस महिला नेता के बीच नाजायज संबंधों के चलते इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया.

मई, 2019 में किसनराव हुंडी वाले की सार्वजनिक न्यास, सहायक संस्था निबंधक कार्यालय के सामने अग्निशमन यंत्र के उपकरण को इस्तेमाल कर भरी दोपहरी में हत्या कर दी गई. महापौर के पति रिटायर्ड पुलिस अफसर और उस के 3 बेटों को इस सिलसिले में गिरफ्तार किया गया.

ऐसी घटनाएं इनसानियत को शर्मसार कर रही हैं. जिस की हत्या हो जाती है, वह तो इस दुनिया से विदा हो जाता है, पीछे रह जाता है उस का तड़पता हुआ परिवार. पर सवाल यह है कि क्यों बढ़ रही हैं रोजाना ऐसी वारदातें? क्या लोगों का कानून पर से विश्वास घट गया है कि वह इंसाफ नहीं दिला पाएगा या फिर कानून के प्रति यह डर ही नहीं है कि सजा भुगतनी भी होगी? क्यों लोग कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं? क्यों किसी की जान लेना आसान खेल बन गया है? वगैरह.

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बढ़ती हत्याएं और आएदिन मौब लिंचिंग की वारदातें इशारा कर रही हैं कि इनसानियत शर्मसार हो रही है. यह वहशियाना काम करते समय करने वाले के मन में यह क्यों नहीं आता कि वह कुछ गलत कर रहा है? धर्म के नाम पर हो या किसी चोरीडकैती के मामले में शक, लोगों के साथ बहुत ही गलत बरताव किया जाता है. किसी एक की मति मारी गई हो और वह कुछ गलत काम करने पर उतारू हो जाए तो बात अलग है, पर सारी भीड़ की मति मारी जाना, सब के द्वारा बेदर्दी से किसी एक के साथ पेश आना, उसे सरेआम बेइज्जत करना या सजा देना कितना उचित है?

कुछ दिन पहले 2 वीडियो क्लिप मेरे सामने आईं, जिन्हें देख कर मैं खुद ही शर्मिंदा हो गई. एक वीडियो में किसी दूरदराज इलाके में रहने वाली 20-22 साल की लड़की और लड़के को पूरी तरह नंगा कर भीड़ लड़की से लड़के को कंधे पर बिठा कर चलने के लिए कह रही थी. जिस के दिल में जो आ रहा था, वह उन के साथ वही कर रहा था. कोई लड़के के अंग को छेड़ता, कोई उन्हें थप्पड़, तो कोई लात मारता. गुस्साई भीड़ उन्हें दौड़ा रही थी और वे बेबस हो कर सब सह रहे थे.

इसी तरह दूसरी वीडियो क्लिप में एक 55-60 साल की औरत को पूरी तरह नंगा कर भीड़ दौड़ा रही थी. उस के साथ भी वह मनमाना सुलूक कर रही थी. किसी ने उसे पीछे से जोर की लात मारी, तो वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी, फिर उठ कर बेबस हो कर दौड़ने लगी.

आखिर ऐसे क्या अपराध होंगे इन के? क्यों भीड़ को यह नहीं लगता कि इन्हें नंगा कर के वह पूरी इनसानियत को नंगा कर रही है? क्यों ऐसे घटिया काम करने वालों को पकड़ा नहीं जाता? क्यों कानून बेबसों का सहारा नहीं बन पाता? क्यों आंखें मूंद कर अंधे की तरह सब भीड़ में शामिल हो जाते हैं और किसी बेबस को ऐसी सजा देते हैं, जिस से वह जिंदा होते हुए भी मरे समान हो जाए?

अगर कोई गलत करता है तो एक इनसान होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि उसे गलत करने से रोकें और यदि न रोक पाएं, तो कम से कम उस गलत काम करने वाले का साथ न दें. एक बेकुसूर को भी अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दें. कानून पर विश्वास करें. सच हमेशा जीतता है, भले ही वह कुछ समय के लिए परेशान हो. हत्याओं के सिलसिले में भी इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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याद रखा जाना चाहिए कि किसी की हत्या कर के उस के परिवार वालों की खुशियों को लूट लेने का किसी को कोई हक नहीं है.

साधना पटेल नहीं बन पाई बैंडिट क्वीन

पिछड़े तबके के बुद्धिविलास पटेल मध्य प्रदेश के विंघ्य इलाके के चित्रकूट के गांव बगहिया पुरवा के बाशिंदे थे. उन की 3 औलादों में साधना सब से बड़ी थी. हालांकि साधना पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, लेकिन उस की ख्वाहिश जिंदगी में कुछ ऐसा करने की थी, जिस से लोग उसे याद रखें.

जिस उम्र में लड़कियां कौपीकिताबें सीने से लगाए शोहदों से बचती जमीन में आंखें धंसाए स्कूल जा रही होती थीं, उस उम्र में साधना अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ जंगल में कहीं मौजमस्ती कर रही होती थी.

जाहिर है कि बहुत कम उम्र में ही वह रास्ता भटक बैठी थी तो इस के जिम्मेदार पिता बुद्धिविलास भी थे, जिन के घर आएदिन डाकुओं का आनाजाना लगा रहता था. नामी और इनामी डाकू चुन्नी पटेल का तो उन से इतना याराना था कि जिस दिन वह घर आता था, तो तबीयत से दारू, मुरगा की पार्टी होती थी.

चुन्नी पटेल को साधना चाचा कह कर बुलाती थी और अकसर उस की उंगलियां बंदूक से खेला करती थीं.

साधना की हरकतें देख चुन्नी पटेल अकसर कहा करता था कि एक दिन यह लड़की पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी.

ऐसा हुआ भी और उजागर 18 नवंबर, 2019 को हुआ, जब सतना पुलिस ने 50,000 इनामी की इस दस्यु सुंदरी, जिसे ‘जंगल की शेरनी’ भी कहा जाता था, को कडियन मोड़ के जंगल से गिरफ्तार कर लिया.

ऐसे बनी डाकू

एक मामूली से घर की बला की खूबसूरत दिखने व लगने वाली साधना पटेल के डाकू बनने की कहानी भी उस की जिंदगी की तरह कम दिलचस्प नहीं. कम उम्र में ही साधना पटेल को सैक्स का चसका लग गया था, जिस से पिता बुद्धिविलास परेशान रहने लगे थे.

बेटी को रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने उसे अपनी बहन के घर भागड़ा गांव भेज दिया, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं हुआ. उलटे, वह यह जान कर हैरान हो उठी कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी है और उन के उस की बूआ से नाजायज संबंध हैं. तब साधना को पहली बार सैक्स को ले कर मर्दों की कमजोरी सम झ आई थी.

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लेकिन सैक्स की अपनी लत और कमजोरी से वह कोई सम झौता नहीं कर पाई. बूआ के यहां कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए उस के जिस्मानी ताल्लुकात एक ऐसे नौजवान से बन गए, जो उस का मुंहबोला भाई था.

एक दिन बूआ ने हमबिस्तरी करते दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया, तो साधना घबरा उठी.

साधना को डर था कि बूआ के कहने पर चुन्नीलाल उसे और उस के आशिक को मार डालेगा, इसलिए वह जान बचाने के लिए बीहड़ों में कूद पड़ी.

यह साल 2015 की बात है, जब उस की मुलाकात नामी डकैत नवल धोबी से हुई. नवल धोबी औरतों के मामले में बड़ा सख्त था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों की बरबादी की बड़ी वजह होती हैं, इसलिए वह गिरोह में उन्हें शामिल नहीं करता था.

कमसिन साधना पटेल को देखते ही नवल धोबी का मन डोल उठा और अपने उसूल छोड़ते हुए उस ने साधना को न केवल गिरोह में, बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया.

अब तक साधना कपड़ों की तरह आशिक बदलती रही थी, लेकिन नवल की हो जाने के बाद उस ने इसी बात में बेहतरी और भलाई सम झी कि अब कहीं और मुंह न मारा जाए. कुछ दिन बड़े इतमीनान और सुकून से कटे.

इसी दौरान साधना ने डकैती के कई गुर और सलीके से हथियार चलाना सीखा. नवल के साथ मिल कर उस ने कई वारदातों को अंजाम भी दिया.

नवल के साथ साधना का नाम भी चल निकला, लेकिन एक दिन पुलिस ने नवल को कई साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया, जिस से उस का गिरोह तितरबितर हो उठा. नवल की गिरफ्तारी साधना की बैंडिट क्वीन बन जाने की ख्वाहिश पूरी करने वाली साबित हुई.

साधना ने गिरोह के बाकी सदस्यों को ले कर अपना खुद का गिरोह बना डाला और बेखौफ हो कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सभी सदस्य हालांकि उसे ‘साधना जीजी’ कहते थे, लेकिन कई मर्दों से वह सैक्स संबंध बनाती रही.

फिर आया एक मोड़

अपना खुद का गिरोह बनाने के शुरुआती दौर में साधना रंगदारी वसूलती थी, लेकिन यह भी उसे सम झ आ रहा था कि अगर नामी डाकू बनना है और खौफ बनाए रखना है तो जरूरी है कि किसी ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाए जिस की चर्चा दूरदूर तक हो.

इसी गरज से साल 2018 में साधना ने नयागांव थाने के तहत आने वाले पालदेव गांव के छोटकू सेन को अगवा कर लिया. छोटकू सेन से वह गड़े खजाने के बारे में पूछती रहती थी. लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया तो साधना ने बेरहमी से उस की उंगलियां काट दीं.

साधना की गिरफ्त से छूट कर छोटकू ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो इस कांड की चर्चा वाकई वैसी ही हुई जैसा कि वह चाहती थी.

इस कांड के बाद साधना के नाम का सिक्का बीहड़ों में चल निकला और इसी दौरान उस की जिंदगी में पालदेव गांव का ही नौजवान छोटू पटेल आया. छोटू के पिता ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखाते समय उस के अगवा हो जाने का अंदेशा जताया था.

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कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि छोटू साधना का नया आशिक है और उसे अगवा नहीं किया गया है, बल्कि वह अपनी मरजी से साधना के साथ रह रहा है, तो पुलिस ने उसे भी डकैत घोषित कर उस के सिर 10,000 रुपए का इनाम रख दिया.

छोटू 6 अगस्त, 2019 को गायब हुआ था, लेकिन हकीकत में इस के पहले भी वह साधना से मिला करता था और दोनों जंगल में रंगरलियां मनाते थे. बाद में छोटू गांव वापस लौट आता था.

सच जो भी हो, लेकिन यह तय है कि साधना वाकई छोटू से दिल लगा बैठी थी और उस की ख्वाहिश पूरी करने के लिए कभीकभी जींसशर्ट उतार कर साड़ी भी पहन लेती थी. छोटू भी उस पर जान देने लगा था, इसलिए उस के साथ रहने लगा था.

सितंबर, 2019 में पुलिस ने नामी और 7 लाख रुपए के इनामी डाकू बबली कोल को उस के साथ व साले लवकेश को ऐनकाउंटर में मार गिराया तो राज्य में खासी हलचल मची थी.

बबली कोल गिरोह के दबदबे और चर्चों के चलते साधना को कोई भाव नहीं देता था. अब तक हालांकि उस के खिलाफ आधा दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे, लेकिन बबली के कारनामों के सामने वे कुछ भी नहीं थे.

बहरहाल, बबली कोल की मौत के बाद विंध्य के बीहड़ों में 21 साला साधना का एकछत्र राज हो गया, लेकिन जिस फुरती से पुलिस डाकुओं का सफाया कर रही थी, उस से घबराई साधना पटेल को अंडरग्राउंड हो जाना ही बेहतर लगा.

छोटू के साथ वह  झांसी और दिल्ली में रही और पूरी तरह घरेलू औरत बन कर रही. हालांकि यह जिंदगी वह 4 महीने ही जी पाई. बड़े शहरों के खर्चे भी ज्यादा होते हैं, लिहाजा जब पैसों की तंगी होने लगी, तो उस ने फिर वारदात की योजना बनाई और बीहड़ लौट आई.

पुलिस को मुखबिरों के जरीए जब यह बात मालूम हुई तो उस ने जाल बिछा कर 17 नवंबर, 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश में भी साधना पटेल कई वारदातों को अंजाम दे चुकी थी, लेकिन वहां किसी थाने में उस के खिलाफ किसी ने मामला दर्ज नहीं कराया था. इस के बाद भी पुलिस ने उस पर 30,000 रुपए के इनाम का ऐलान किया था.

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अब साधना पटेल जेल में बैठी मुकदमोें की सुनवाई और सजा के इंतजार में काट रही है, लेकिन उस की कहानी बताती है कि उस के डाकू बनने में सब से बड़ी गलती तो उस के पिता की ही है, जिन की मौत के बाद साधना बेलगाम हो गई थी.

बंगलों के चोर

लेखक- रविंद्र शिवाजी दुपारगुडे  

मुंबई शहर के मुलुंड इलाके के रहने वाले सुरेश एस. नुजाजे एक होटल व्यवसायी थे. मुंबई के अलावा उन के बेंगलुरु और दुबई में भी होटल थे. इस के अलावा ठाणे जिले की तहसील शहापुर के खंडोबा गांव में उन का एक फार्महाउस के रूप में ‘ॐ’ नाम का बंगला भी था. वैसे तो 48 वर्षीय सुरेश एस. नुजाजे अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते थे, लेकिन समय निकाल कर अपने परिवार के साथ वह ठाणे स्थित बंगले में आते रहते थे. यहां 4-5 दिन रह कर वह मुंबई लौट जाते थे.

जुलाई, 2019 के दूसरे सप्ताह में भी वह 8 दिनों के लिए परिवार के साथ अपने इस बंगले में आए थे. मुंबई पहुंचने के बाद उन्हें खबर मिली कि बंगले में रहने वाले 8 कुत्तों में से एक कुत्ता बीमार है. उस की बीमारी की खबर सुन कर वह परिवार को मुंबई छोड़ कर अकेले ही कुत्ते के इलाज के लिए फिर से अपने बंगले पर पहुंच गए.

उन्होंने अपने बीमार कुत्ते का इलाज कराया. उन के बंगले की सफाई आदि करने के लिए दीपिका नामक एक महिला आती थी. हमेशा की तरह 19 जुलाई, 2019 को भी वह सुबह करीब 7 बजे बंगले पर पहुंची. उसे सुरेश नुजाजे के बैडरूम की भी सफाई करनी थी, लिहाजा उन के बैडरूम में जाने से पहले उस ने दरवाजा खटखटाया.

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दरवाजा खटखटाने और आवाज देने के बाद भी जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह अपने साहब को आवाज देते हुए उन के कमरे में चली गई. तभी उस ने देखा कि उस के मलिक सुरेश नुजाजे बैड से नीचे पड़े थे. उन के हाथ बंधे दिखे.

दीपिका ने उन्हें गौर से देखा तो वह लहूलुहान हालत में थे. उन के हाथों के अलावा पैर भी बंधे थे और उन के पेट पर घाव थे. दीपिका ने उन्हें उठाने की कोशिश की पर वह नहीं उठे और न ही कुछ बोले. वह डर गई और बाहर की ओर भागी. वह सीधे वहां रहने वाले जगन्नाथ पवार के कमरे पर गई. उस ने जगन्नाथ पवार को यह खबर दी.

जगन्नाथ पवार ने उसी समय फोन द्वारा उपसरपंच नामदेव दुधाले और भाई रमेश पवार को बता दिया कि सुरेश नुजाजे बंगले में लहूलुहान हालत में हैं. जगन्नाथ पवार के बुलावे पर दोनों उस के पास पहुंच गए.

इस के बाद वे तीनों इकट्ठे हो कर सुरेश नुजाजे के बंगले पर दीपिका के साथ गए. जब उन्होंने बंगले में जा कर देखा तो सुरेश नुजाजे अपने बैडरूम में मृत हालत में थे. यानी किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

इस के बाद जगन्नाथ पवार ने मोबाइल फोन से शहापुर पुलिस को सूचना दे दी. हत्या की सूचना मिलने के बाद शहापुर थाने से इंसपेक्टर घनश्याम आढाव, एसआई नीलेश कदम, हवलदार बांलू अवसरे, कैलाश पाटील, कांस्टेबल सुरेश खड़के को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

खून से लथपथ मिली लाश

जब वे ‘ॐ’ बंगले में गए तब वहां उन्हें सुरेश नुजाजे की खून से लथपथ लाश मिली. लाश फर्श पर लकड़ी की मेज के पास पड़ी थी. उन के बगल में एक नीले रंग का तकिया गिरा पड़ा था. साथ ही उन के बैडरूम में लकड़ी की 2 अलमारियां उखड़ी हुई थीं.

अलमारियों का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस भी टूटा हुआ था. साथ ही बैड पर मच्छर मारने का इलैक्ट्रिक रैकेट टूटी हुई अवस्था में नजर आया. किसी ने सुरेश के दोनों पैर टावेल से मजबूती से बांधे थे और दोनों हाथ लाल रंग की शर्ट से बांधे थे.

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पुलिस को वैसे तो लग ही रहा था कि सुरेश नुजाजे की मृत्यु हो चुकी है लेकिन वहां मौजूद लोगों के अनुरोध पर पुलिस उन्हें इलाज के लिए शहापुर के सरकारी अस्पताल ले गई लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने प्रारंभिक जांच में पाया कि गंभीर रूप से घायल करने के बाद हत्यारों ने इन का गला घोंटा था.

इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने इस वारदात की खबर एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर और एसडीपीओ दीपक सावंत, क्राइम ब्रांच के इंचार्ज व्यंकट आंधले को दी. कुछ ही देर में ये सभी अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. जांच में पुलिस ने देखा कि बंगले के पीछे का गेट खुला था. इस के अलावा बंगले की खिड़की का ग्रिल भी उखड़ा हुआ था. हत्यारे ग्रिल उखाड़ कर सरकने वाली कांच की खिड़की सरका कर बैडरूम में घुसे थे.

बैडरूम की उखड़ी अलमारियों और शोकेस के टूटने पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि ये हत्यारों ने लूटपाट के इरादे से किया होगा, तभी तो अलमारियों का सामान कमरे में फैला है. इस जांच से यही पता चल रहा था कि सुरेश नुजाजे की हत्या लूट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंदर घुसने पर बंगले के मालिक सुरेश नुजाजे ने शायद बदमाशों का विरोध किया होगा, फिर बदमाशों ने हाथपैर बांधने के बाद उन की हत्या कर दी होगी.

मृतक के घर वाले भी आ चुके थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि सुरेश के हाथ की अंगूठियां, ब्रेसलेट, गले में सोने की चेन रहती थी. अलमारी में भी लाखों रुपए रखे रहते थे. ये सब गायब थे. क्राइम ब्रांच ने मौके से कई साक्ष्य जुटाए. एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर ने हत्या के इस केस को खोलने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया.

पुराने अपराधियों की हुई धरपकड़

पुलिस टीम ने पुराने अपराधियों के रिकौर्ड खंगालने शुरू किए. उन में से कुछ को पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से पूछताछ की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. कोंकण परिक्षेत्र के स्पैशल आईजी निकेत कौशिक टीम के सीधे संपर्क में थे. इस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम भी मामले की समानांतर जांच कर रही थी.

क्राइम ब्रांच की टीम में सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले, इंसपेक्टर प्रमोद गड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, गणपत सुले, शांताराम महाले, कांस्टेबल आशा मुंडे, जगताप राय, एएसआई वेले, हैडकांस्टेबल चालके, अमोल कदम, गायकवाड़ पाटी, सोनावणे, थापा आदि शामिल थे.

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पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की. जांच के दौरान एक खबरची ने पुलिस को सूचना दी कि जिन लोगों ने सुरेश नुजाजे के बंगले में वारदात को अंजाम दिया, वे भिवंडी इलाके के नवजीवन अस्पताल के पीछे स्थित एक टूटीफूटी इमारत में छिपे हुए हैं.

इस सूचना पर सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले अपनी पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए और वहां उस बिल्डिंग को चारों ओर से घेर कर उस में छिपे चमन चौहान (25 वर्ष), अनिल सालुंखे (32 वर्ष) और संतोष सालुंखे (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने सुरेश नुजाजे की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर पुलिस ने 22 जुलाई, 2019 को औरंगाबाद से उन के साथी रोहित पिंपले (19 वर्ष), बाबूभाई चौहान (18 वर्ष) व रोशन खरे (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया. ये सभी बदमाश महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि कत्लेआम के साथ डकैती करने वाली यह अंतरराज्यीय टोली दिन में गुब्बारे या अन्य चीजें बेचने का बहाना कर रेकी करती और रात में वारदात को अंजाम देती थी. इसी तरह इस टोली के सदस्यों ने सुदेश नुजाजे के बंगले की रेकी की थी.

तकिए से मुंह दबा कर घोंटा था गला

वारदात के दिन जब ये बदमाश उन के बंगले के पास गए, तब चोरों की आहट से सुरेश सतर्क हो चुके थे. फिर मौका देख कर ये किसी तरह उन के बंगले में घुस गए. सुरेश ने इन का विरोध किया, पर इतने लोगों का वह मुकाबला नहीं कर सके. बदमाशों ने उन के हाथपैर बांध कर उन पर फावड़े के हत्थे से प्रहार किया.

वहीं बैडरूम में पड़े तकिए से उन का मुंह दबा कर उन्हें मार दिया. कत्ल के बाद सुरेश के शरीर के सारे जेवरात उन्होंने उतार लिए. लकड़ी की अलमारी उखाड़ कर उन्होंने उस में रखे 28 हजार रुपए भी निकाल लिए. हत्या और डकैती की वारदात को अंजाम दे कर वे वहां से फरार हो गए.

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पूछताछ में उन्होंने उस इलाके में 17 वारदातों को अंजाम देने की बात स्वीकार की. सुरेश नुजाजे के बंगले के पास ही दूर्वांकुर और शिवनलिनी बंगले में भी इन अभियुक्तों ने दरवाजे तोड़ कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था.

पुलिस ने इन बदमाशों से बरमा, तराजू, पेचकस, एक मोटरसाइकिल एवं बोलेरो कार के साथ सोनेचांदी के जेवरात भी बरामद किए. पुलिस को पता चला कि इस टोली के साथ कुछ महिलाएं भी अपराध में शामिल रहती हैं. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के साथ की 2 महिलाओं को भी हिरासत में ले लिया.

इस अपराध में पुलिस के पास कोई भी सुराग न होने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस ने न सिर्फ मर्डर और डकैती की घटना का खुलासा किया, बल्कि 17 अन्य वारदातों को भी खोल दिया. स्पैशल आईजी निकेत कौशिक ने इस केस को खोलने वाली टीम की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन किया.

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