ये घर बहुत हसीन है- भाग 2: उस फोन कॉल ने आन्या के मन को क्यों अशांत कर दिया

लेखक- मधु शर्मा कटिहा

वान्या का मुंह खुला का खुला रह गया. इस से पहले कि वह कुछ और बोलती आर्यन बाथरूम से आ बाहर आ गया. ‘‘किस का फोन है?’’ पूछते हुए उस ने वान्या के हाथ से मोबाइल ले लिया और तोतली आवाज में बातें करने लगा.

निराश वान्या कपड़े हाथ में ले कर बाथरूम की ओर चल दी. ‘किस ने किया होगा फोन? आर्यन भी जुटा हुआ है उस से बातें करने में. क्या आर्यन की पहले शादी हो चुकी है? हां, लगता तो यही है. तलाक हो चुका है शायद. मुझे बताया भी नहीं… यह तो धोखा है.’ वान्या अपनेआप में उलझती जा रही थी.

आधुनिक सुखसुविधाओं से लैस कमरे के आकार का बाथरूम जिस के वह सपने देखती थी, उस की निराशा को कम नहीं कर रहा था. एअर फ्रैशनर की भीनीभीनी खुशबू, हलकी ठंड और गरम पानी से भरा बाथटब, जी चाह रहा था कि अभी आर्यन आ जाए और अठखेलियां करते हुए उसे कहे कि ‘फोन उस के लिए नहीं था, किसी और आर्यन का नंबर मिलाना चाहता था वह बच्चा. मुझे पापा कब बनना है, यह तो तुम बताओगी…’ वान्या फूटफूट कर रोने लगी.

बाहर आई तो डायनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए आर्यन उस की प्रतीक्षा कर रहा

था. ऊंची बैक वाली गद्देदार काले रंग की कुरसियां वान्या को कोरी शान लग रही थीं. वान्या के बैठते ही आर्यन उस के बालों से नाक सटा कर लंबी सांस लेता हुआ बोला, ‘‘कौन सा शैंपू लगाया है? कहीं यह खुशबू तुम्हारे बालों की तो नहीं? महक रहा हूं अंदर तक मैं.’’

वान्या को आर्यन की शरारती मुसकान फिर से मोहने लगी. सब कुछ भूल वह इस पल में खो जाना चाहती थी. ‘‘जल्दी से खा लो. अभी प्रेमा सफाई कर रही है. उसे जल्दी से वापस भेज देंगे… अपना बैडरूम तो तुम ने देखा ही नहीं अब तक. कब से इंतजार कर रहा है मेरा बिस्तर तुम्हारा,’’ आर्यन का नटखट अंदाज वान्या को मदहोश कर रहा था.

नाश्ता कर वान्या बैडरूम में पहुंच गई. शानदार कमरे में कदम रखते ही रोमांस की खुमारी बढ़ने लगी. ‘‘मुझे जरूर गलतफहमी हुई है, आर्यन के साथ कोई हादसा हुआ होता तो वह प्यार के लम्हों को जीने के लिए इतना बेताब न दिखता. उस का इजहार तो उस आशिक जैसा लग रहा है, जिसे नईनई मोहब्बत हुई हो.’’ सोचते हुए वान्या बैड पर लेट गई. फोम के गद्दे में धंसेधंसे ही मखमली चादर पर अपना गाल रख सहलाने लगी. प्रेमा और नरेंद्र के जाते ही आर्यन भी कमरे में आ गया. खड़ेखड़े ही झुक कर वान्या की आंखों को चूम मुसकराते हुए उसे अपने बाहुपाश में ले लिया.

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‘‘कैसा है यह मिरर? कुछ दिन पहले ही लगवाया है मैं ने?’’ बैड के पास लगे विंटेज कलर फ्रेम के सात फुटिया मिरर की ओर इशारा करते हुए आर्यन बोला.

दर्पण में स्वयं को आर्यन की बाहों में देख वान्या के चेहरे का रंग भी आईने के फ्रेम सा सुर्ख हो गया.

प्रेमासिक्त युगल एकाकार हो एकदूसरे की आगोश में खोएखोए कब नींद की आगोश में चले गए, पता ही नहीं लगा.

शाम को प्रेमा ने घंटी बजाई तो उन की नींद खुली. ग्रीन टी बनवा कर अपनेअपने हाथों में मग थामे दोनों घर के पीछे की ओर बने गार्डन में रखी बेंत की कुरसियों पर जा कर बैठ गए. वहां रंगबिरंगे फूल खिले थे. कतार में ऊंचेऊंचे पेड़ों की शाखाएं हवा चलने से एकदूसरे के साथ बारबार लिपट रहीं थीं. सभी पेड़ों पर भिन्न आकार के फल टक रहे थे, रंग हरा ही था सब का. वान्या की उत्सुक निगाहों को देख आर्यन बताने लगा, ‘‘मेरे राइट हैंड साइड वाले 4 पेड़ आलूबुखारे के और आगे वाले 3 खुबानी के हैं. अभी कच्चे हैं, इसलिए रंग हरा दिख रहा है. दीदी की बेटी को बहुत पसंद हैं कच्ची खुबानी. हमारी शादी में नहीं आ सकी, वरना खूब ऐंजौय करतीं.’’

‘‘अपने बच्चों को साथ क्यों नहीं लाईं दीदी? वे दोनों आ गए तो बच्चे भी आ सकते थे. दीदी की बेटी का नाम वंशिका है न? सुबह इसी नाम से कौल आई तो मैं ने अटेंड कर ली, पर वह तो किसी और का था. किस बच्चे का साथ बात कर रहे थे तुम?’’ वान्या का मस्तिष्क फिर सुबह वाली घटना में जा कर अटक गया.

‘‘तुम्हें देखते ही शादी को मन मचलने लगा था मेरा. दीदी से कह दिया था कि कोई आ सकता है तो आ जाए, वरना मैं अकेले ही चला जाऊंगा बारात ले कर. सब को लाना पौसिबल नहीं हुआ होगा तो जीजू को ले कर आ गईं देखने कि वह कौन सी परी है जिस पर मेरा भाई लट्टू हो गया.’’

आर्यन का मजाक सुन वान्या मुसकरा कर रह गई.

‘‘एक मिनट… शायद प्रेमा ने आवाज दी है, वापस जा रही होगी, मैं दरवाजा बंद कर अभी आया.’’ वान्या की पूरी बात का जवाब दिए बिना ही आर्यन दौड़ता हुआ अंदर चला गया.

कुछ देर तक जब वह लौट कर नहीं आया तो वान्या उस बच्चे के विषय में सोच

कर फिर संदेह से घिर गई. व्याकुलता बढ़ने लगी तो बगीचे से ऊपर की ओर जाती हुई सफेद रंग की घुमावदार लोहे की सीढि़यों पर चढ़ गई. ऊपर खुली छत थी, जहां से दूर तक का दृश्य साफ दिखाई दे रहा था. ऊंचीऊंची फैली हुई पहाडि़यों पर पेड़ों के झुरमुट, सर्प से बलखाते रास्ते और छोटेबड़े मकान, मकानों की छतों का रंग अधिकतर लाल या सलेटी था. सभी मकान एकदूसरे से कुछ दूरी पर थे. ‘क्या ऐसी ही दूरी मेरे और आर्यन के बीच तो नहीं? साथ हैं, लेकिन एक फसाला भी है. क्या राज है उस फोन का आखिर?’ वान्या सोच में डूबी थी. सहसा दबे पांव आ कर आर्यन ने अपने हाथों से उस की आंखें बंद कर दीं.

‘‘तुम भी न आर्यन… कब आए छत पर?’’

‘‘हो सकता है यहां मेरे अलावा कोई और भी रहता हो और तुम्हें कानोंकान खबर भी न हो.’’ आर्यन शरारत से बोला.

‘‘और कौन होगा?’’ वान्या घबरा उठी.

‘‘अरे कितनी डरपोक हो यार… यहां कौन हो सकता है?’’ वान्या की आंखों से हाथों को हटा उस की कमर पर एक हाथ से घेरा बना कर आर्यन ने अपने पास खींच लिया. ‘‘चलो, छत पर और आगे. तुम्हें यहां से ही कुछ सुंदर नजारे दिखाता हूं.’’

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आर्यन से सट कर चलते हुए वान्या को बेहद सुकून मिल रहा था. उस की छुअन और खुशबू में डूब वान्या के मन में चल रही हलचल शांत हो गईं. दोनों साथसाथ चलते हुए छत की मुंडेर तक जा पहुंचे. देवदार के बड़ेबड़े शहतीरों को जोड़ कर बनाई गई मुंडेर की कारीगरी देखते ही बनती थी. ‘काश, इन शहतीरों की तरह मैं और आर्यन भी हमेशा जुड़े रहें,’ वान्या सोच रही थी.

मेरी खातिर- भाग 1: झगड़ों से तंग आकर क्या फैसला लिया अनिका ने?

‘‘निक्कीतुम जानती हो कि कंपनी के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं. मैं छोटेछोटे कामों के लिए बारबार बौस के सामने छुट्टी के लिए मिन्नतें नहीं कर सकता हूं. जरूरी नहीं कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ चलूं. तुम अकेली भी जा सकती हो न. तुम्हें गाड़ी और ड्राइवर दे रखा है… और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

‘‘चाहती? मैं तुम्हारी व्यस्त जिंदगी में से थोड़ा सा समय और तुम्हारे दिल के कोने में अपने लिए थोड़ी सी जगह चाहती हूं.’’

‘‘बस शुरू हो गया तुम्हारा दर्शनशास्त्र… निकिता तुम बात को कहां से कहां ले जाती हो.’’

‘‘अनिकेत, जब तुम्हारे परिवार में कोई प्रसंग होता है तो तुम्हारे पास आसानी से समय निकल जाता है पर जब भी बात मेरे मायके

जाने की होती है तो तुम्हारे पास बहाना हाजिर होता है.’’

‘‘मैं बहाना नहीं बना रहा हूं… मैं किसी भी तरह समय निकाल कर भी तेरे घर वालों के हर सुखदुख में शामिल होता हूं. फिर भी तेरी शिकायतें कभी खत्म नहीं होती हैं.’’

‘‘बहुत बड़ा एहसान किया है तुम ने इस नाचीज पर,’’ मम्मी के व्यंग्य पापा के क्रोध की अग्निज्वाला को भड़काने का काम करते थे.

‘‘तुम से बात करना ही बेकार है, इडियट.’’

‘‘उफ… फिर शुरू हो गए ये दोनों.’’

‘‘मम्मा व्हाट द हैल इज दिस? आप लोग सुबहशाम कुछ देखते नहीं… बस शुरू हो जाते हैं,’’ आंखें मलते हुए अनिका ने मम्मी से कहा.

‘‘हां, तू भी मुझे ही बोल… सब की बस मुझ पर ही चलती है.’’

पापा अंदर से दरवाजा बंद कर चुके थे, इसलिए मुझे मम्मी पर ही अपना रोष डालना पड़ा था.

अनिका अपना मूड अच्छा करने के लिए कौफी बना, अपने कमरे की खिड़की के पास जा खड़ी हो गई. उस के कमरे की खिड़की सामने सड़क की ओर खुलती थी, सड़क के दोनों तरफ  वृक्षों की कतारें थीं, जिन पर रात में हुई बारिश की बूंदें अटकी थीं मानो ये रात में हुई बारिश की चुगली कर रही हों. अनिका उन वृक्षों के हिलते पत्तों को, उन पर बसेरा करते पंछियों को, उन पत्तियों और शाखाओं से छन कर आती धूप की उन किरणों को छोटी आंखें कर देखने पर बनते इंद्रधनुष के छल्लों को घंटों निहारती रहती. उसे वक्त का पता ही नहीं चलता था. उस ने घड़ी की तरफ देखा 7 बज गए थे. वह फटाफटा नहाधो कर स्कूल के लिए तैयार हो गई. कमरे से बाहर निकलते ही सोफे पर बैठे चाय पीते पापा ने ‘‘गुड मौर्निंग’’ कहा.

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‘‘गुड मौर्निंग… गुड तो आप लोग मेरी मौर्निंग कर ही चुके हैं. सब के घर में सुबह की शुरुआत शांति से होती पर हमारे घर में टशन और टैंशन से…’’ उस ने व्यंग्यात्मक लहजे में अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘चलिए बाय मम्मी, बाय पापा. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’

‘‘पर बेटे नाश्ता तो करती जाओ,’’ मम्मी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाते हुए बोली.

‘‘सुबह की इतनी सुहानी शुरुआत से मेरा पेट भर गया है,’’ और वह चली गई.

अनिका जानती थी अब उन लोगों के

बीच इस बात को ले कर फिर से बहस छिड़

गई होगी कि सुबह की झड़प का कुसूरवार

कौन है. दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने पर तुल गए होंगे.

शाम को अनिका देर से घर लौटी. घर जाने से बेहतर उसे लाइब्रेरी में बैठ कर

पढ़ना अच्छा लगा. वैसे भी वह उम्र के साथ बहुत एकांतप्रिय और अंतर्मुखी बनती जा रही थी. घर में तो अकेली थी ही बाहर भी वह ज्यादा मित्र बनाना नहीं सीख पाई.

‘‘मम्मी मेरा कोई छोटा भाईबहन क्यों नहीं है? मेरे सिवा मेरे सब फ्रैंड्स के भाईबहन हैं और वे लोग कितनी मस्ती करती हैं… एक मैं ही हूं… बिलकुल अकेली,’’ अनगिनत बार वह मम्मी से शिकायत कर अपने मन की बात कह चुकी थी.

‘‘मैं हूं न तेरी बैस्ट फ्रैंड,’’ हर बार मम्मी यह कह कर अनिका को चुप करा देतीं. अनिका अपने तनाव को कम करने और बहते आंसुओं को छिपाने के लिए घंटों खिड़की के पास खड़ी हो कर शून्य को निहारती रहती.

घर में मम्मीपापा उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. दरवाजे की घंटी बजते ही दोनों उस के पास आ गए.

‘‘आज आने में बहुत देर कर दी… फोन भी नहीं उठा रही थी… कितनी टैंशन हो गई थी हमें,’’ कह मम्मी उस का बैग कंधे से उतार कर उस के लिए पानी लेने चली गई.

‘‘हमारी इन छोटीमोटी लड़ाइयों की

सजा तुम स्वयं को क्यों देती हो,’’ ?पापा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘किस के मम्मीपापा ऐसे होंगे, जिन के बीच अनबन न रहती हो.’’

‘‘पापा, इसे हम साधारण अनबन का नाम तो नहीं दे सकते. ऐसा लगता है जैसे आप दोनों रिश्तों का बोझ ढो रहे हो. मैं ने भी दादू, दादी, मां, चाची, चाचू, बूआ, फूफाजी को देखा है पर ऐसा अनोखा प्रेम तो किसी के बीच नहीं देखा है,’’ अनिका के कटाक्ष ने पापा को निरुत्तर कर दिया था.

‘‘बेटे ऐसा भी तो हो सकता है कि तुम अतिसंवेदनशील हो?’’

पापा के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय उस ने पापा से पूछा, ‘‘पापा, मम्मी से शादी आप ने दादू के दबाव में आ कर की थी क्या?’’

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पापा को 20 साल पहले की अपनी पेशी याद आ गई जब पापा, बड़े पापा और घर के अन्य सब बड़े लोगों ने उन के पैतृक गांव के एक खानदानी परिवार की सुशील और पढ़ीलिखी कन्या अर्थात् निकिता से विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. घर वालों ने उन का पीछा तब तक नहीं छोड़ा था जब तक उन्होंने शादी के लिए हां नहीं कह दी थी.

पापा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं है… 19-20 की जोड़ी थी पर ठीक है. आधी जिंदगी निकल गई है आधी और कट ही जाएगी.’’

‘‘वाह पापा बिलकुल सही कहा आपने… 19-20 की जोड़ी है… आप उन्नीस है और मम्मा बीस… क्यों पापा सही कहा न मैं ने?’’

सजा- भाग 5: तरन्नुम ने असगर को क्यों सजा दी?

शाम को असगर के आने से पहले तरन्नुम ने खूब शोख रंग के कपड़े, चमकदार गहने पहने, गहरा शृंगार किया, असगर उसे तैयार देख कर हैरान रह गया. यह पहरावा, यह हावभाव उस तरन्नुम के नहीं थे जिसे वह सुबह छोड़ कर गया था.

‘‘आप को यों देख कर मुझे लगा जैसे मैं गलत कमरे में आ गया हूं,’’ असगर ने चौंक कर कहा.

‘‘अब गलत कमरे में आ ही गए हो तो बैठने की गलती भी कर लो,’’ तरन्नुम ने कहा, ‘‘क्या मंगवाऊं आप के लिए, चाय, ठंडा या कुछ और,’’ तरन्नुम ने लहरा कर पूछा.

‘‘होश में तो हो,’’ असगर ने कहा.

‘‘हां, आंखें खुल गईं तो होश में ही हूं,’’ तरन्नुम ने जवाब दिया, ‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का बहुत कीमती दिन है. आज मैं ने अपनी हिम्मत से तुम्हारे शहर में बहुत अच्छा घर ढूंढ़ लिया है. उस की खुशी मनाने को मेरा जी चाह रहा है. अब तो अनुबंध की प्रति भी है मेरे पास. देखो, तुम इतने महीने में जो न कर सके वह मैं ने 6 दिन में कर दिया,’’ अपना पर्स खोल कर तरन्नुम ने कागज असगर की तरफ बढ़ाए.

असगर ने कागज लिए. तरन्नुम ने थरमस से ठंडा पानी निकाल कर असगर की तरफ बढ़ाया. असगर के हाथ कांप रहे थे. उस की आंखें कागज को बहुत तेजी से पढ़ रही थीं. उस ने कागज पढ़े और मेज पर रख दिए. तरन्नुम उस के चेहरे के उतारचढ़ाव देख रही थी लेकिन असगर का चेहरा सपाट था कोरे कागज सा.

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‘‘असगर, तुम ने पूछा नहीं कि मैं ने कागजात में खाविंद का नाम न लिख कर वालिद का नाम क्यों लिखा?’’ बहुत बहकी हुई आवाज में तरन्नुम ने कहा.

असगर ने सिर्फ सवालिया नजरों से उस की तरफ देखा.

‘‘इसलिए कि मेरे और निकहत कुरैशी के खाविंद का एक ही नाम है और अलबम की तसवीरें कह रही हैं कि हम दोनों बिना जाने ही एकदूसरे की सौतन बना दी गईं. निकहत बहुत प्यारी शख्सियत है मेरे लिए, बहुत सुलझी हुई, बेहद मासूम.’’

‘‘तरन्नुम,’’ असगर ने कहा.

‘‘हां, मैं कह रही थी वह बहुत अच्छी, बहुत प्यारी है. मैं उन का मन दुखाना नहीं चाहती, वैसा कुछ भी मैं नहीं करूंगी जिस से उन का दिल दुखी हो. इसलिए मैं वह घर किराए पर ले चुकी हूं और वहां रहने का मेरा पूरा इरादा है लेकिन उस घर में मैं अकेली रहूंगी. पर एक सवाल का जवाब तुम्हारी तरफ बाकी है, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया?’’

‘‘मुझे तुम बेहद पसंद थीं,’’ असगर ने हकलाते हुए कहा.

‘‘तो?’’

‘‘जब तुम्हें भी अपनी तरफ चाहत की नजर से देखते पाया तो सोचा…’’

‘‘क्या सोचा?’’ तरन्नुम ने जिरह की.

‘‘यही कि अगर तुम्हारे घर वालों को एतराज नहीं है तो यह निकाह हो सकता है,’’ असगर ने मुंह जोर होने की कोशिश की.

‘‘मेरे घर वालों को तुम ने बताया ही कहां?’’ तरन्नुम गुस्से से तमतमा उठी.

‘‘देखो, तरन्नुम, अब बाल की खाल निकालना बेकार है. शकील को सब पता था. उसी ने कहा था कि एक बार निकाह हो गया तो तुम भी मंजूर कर लोगी. तुम्हारी अम्मी ने झोली फैला कर यह रिश्ता अपनी बेटी की खुशियों की दुहाई दे कर मांगा था. वैसे इसलाम में 4 शादियों तक भी मुमानियत नहीं है.’’

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‘‘देखिए, मुझे अपने ईमान के सबक आप जैसे आदमी से नहीं लेने हैं. आप की हिम्मत कैसे हुई निकहत जैसी नेक बीवी के साथ बेईमानी करने की और मुझे धोखा देने की,’’ तरन्नुम ने तमतमा कर कहा.

‘‘धोखाधोखा कहे जा रही हो. शकील को सब पता था, उसी ने चुनौती दे रखी थी तुम से शादी करने की.’’

‘‘वाह, क्या शर्त लगा रहे हैं एक औरत पर 2 दोस्त? आप को जीत मुबारक हो, लेकिन यह आप की जीत आप की जिंदगी की सब से बड़ी हार साबित होगी, असगर साहब. मैं आप के घर में किराएदार बन कर जिंदगी भर रहूंगी और दिल्ली आने के बाद अदालत में तलाक का दावा भी दायर करूंगी. वैसे मेरी जिंदगी में शादी के लिए कोई जगह नहीं थी. शकील ने शादी के बहुत बार पैगाम भेजे, मैं ने हर बार मना कर दिया. उसी का बदला इस तरह वह मुझ से लेगा, मैं ने सोचा भी नहीं था. आज पंचशील पार्क जा कर मुझे एहसास हुआ कि क्यों दिल्ली में घर नहीं मिल रहे? क्यों तुम उखड़ाउखड़ा बरताव कर रहे थे? देर आए दुरुस्त आए.’’

‘‘पर मैं तुम्हें तलाक देना ही नहीं चाहता,’’ असगर ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें अपनी बीवी बनाया है. मैं तुम्हारे लिए दूसरी जगह घर बसाने के लिए तैयार हूं.’’

बहुत खुले दिमाग हैं आप के, लेकिन माफ कीजिए. अब औरत उस कबीली जिंदगी से निकल चुकी है जब मवेशियों की गिनती की तरह हरम में औरत की गिनती से आदमी की हैसियत परखी जाती थी. बच्चों से उन का बाप और निकहत से उस का शौहर छीनने का मेरा बिलकुल इरादा नहीं है और वैसे भी एक धोखेबाज आदमी के साथ मैं जी नहीं सकती. हर घड़ी मेरा दम घुटता रहेगा लेकिन तुम्हें बिना सजा दिए भी मुझे चैन नहीं मिलेगा. इसीलिए तुम्हारे घर के ऊपर मैं किराएदार की हैसियत से आ रही हूं.’’

फिर तेज सांसों पर नियंत्रण करती हुई बोली थी तरन्नुम, ‘‘मैं सामान लेने जा रही हूं. तुम निकहत को कुछ बताने का दम नहीं रखते. तुम बेहद कमजोर और बुजदिल आदमी हो. हम दोनों औरतों के रहमोकरम पर जीने वाले.’’

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असगर के चेहरे पर गंभीरता व्याप्त थी. तरन्नुम अपनी अटैची बंद कर रही थी. वह मन ही मन सोच रही थी…अम्मीअब्बू की खुशी के लिए उसे वहां कोई भी बात बतानी नहीं है. यह स्वांग यों ही चलने दो जब तक वे हैं.’’

जीने की राह- भाग 6: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Writer- संध्या 

‘‘आप जैसा ठीक समझें, पापा,’’ उस ने आत्मीयता से कहा. मैं ने बड़े भैया को रोके की रस्म के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘भैया, मैं सुमन को ले कर मार्केट से हो कर आता हूं.’’ बड़े भैया ने कहा, ‘‘बेटा मन, मुझे भी तो शगुन के रूप में सोनू को कुछ देना है. मुझे भी मार्केट ले चल, या तू ही लेता आ. हां, पैसे मैं दिए देता हूं.’’ मैं ने भैया को रोकते हुए कहा, ‘‘भैया, कुछ लाने की जरूरत नहीं है सोनू के लिए, क्योंकि नीता, रिया के लिए कुछ न कुछ गहने बनवाती रहती थी, अभी जो नया सैट बनवाया था वह घर में ही रखा है, इसी तरह उस ने रिया के लिए साडि़यां भी खरीद रखी थीं. सो सोनू को आप वह ही दे दीजिए.’’ बड़े भैया खुश होते हुए बोले, ‘‘चल, यही ठीक है, तू ने तो एक मिनट में ही मेरी उलझन सुलझा दी. जब घर में सब है ही, तब तू क्यों मार्केट जा रहा है?’’ मैं ने कहा, ‘‘भैया, आप की बहू के लिए तो शगुन का इंतजाम हो गया, किंतु मुझे अपने दामाद के लिए भी तो अंगूठी, चैन, कपड़े लेने हैं. फिर मिठाई, नारियल, पान, सुपारी आदि भी तो लाना है.’’ बड़े भैया बोले, वे बेहद आश्चर्यचकित थे, ‘‘मन बेटा, यह सुमन, तेरा दामाद कैसे हो गया? तू तो इस का छोटा पापा है न?’’ ‘‘भैया, सोनू का कन्यादान मैं करूंगा, वह मेरी रिया है. सोनू के रूप में मुझे मेरी रिया मिल गई है. इस रिश्ते से सुमन मेरा दामाद ही हुआ न. वैसे भैया, उस का छोटा पापा तो मैं सदैव रहूंगा ही.’’ मार्केट जाते समय उत्तम एवं भाभीजी से तय हो गया कि वे दोनों भी आ जाएंगे एवं सोनू को भाभीजी तैयार कर देंगी. हम शाम को सोनू के घर पर पहुंच गए. सोनू को भाभीजी ने बहुत सुंदर ढंग से तैयार किया था. वह आसमान से उतरी परी सी लग रही थी. सुमन भी ब्लू सूट में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था. दोनों की जोड़ी बड़ी प्यारी लग रही थी. सारे कार्यक्रम बड़े ढंग से हो जाने के बाद बड़े भैया ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा, ‘‘सोनू के पापा, मैं आप की बेटी सोनू को जल्दी से जल्दी अपनी बहू बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. इसलिए आप जल्दी से जल्दी शादी का मुहूर्त निकलवाइए.’’

मैं ने भी बड़ी नाटकीयता से जवाब दिया, ‘‘सुमन के पापा, आप एकदम सही फरमा रहे हैं. मैं भी अपनी बेटी सोनू को अपने बेटे सुमन की बहू बना कर जल्दी से जल्दी अपने घर ले आना चाहता हूं,’’ और हम सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े. अच्छी बात यह भी रही कि एक हफ्ते बाद का ही मुहूर्त निकल आया. एक छोटे से कार्यक्रम में सोनू और सुमन की शादी कर दी गई. सोनू का कन्यादान मैं ने ही किया. हम दोनों बेहद भावविह्वल हो रहे थे. मुझे सोनू के रूप में बेटी मिल गई थी. उसे उस के मांपापा के स्थान पर मैं मिल गया था. यह घड़ी ही ऐसी थी जिस में हमें अपने नए रिश्ते के साथ, अपने बिछड़े रिश्ते भी बहुत याद आ रहे थे. सोनू मुझ से गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. मैं ने उसे संभालते हुए कहा, ‘‘बेटा, खुद को संभालो, अपनी भावनाओं पर काबू रखो, यह रोने का नहीं बल्कि खुशी का समय है. आज हम ने अपने रिश्ते को सार्थक नाम दिया है तथा आज हमारे अपने, जिन्हें हम ने खो दिया है, बेहद खुश होंगे. आज हम ने उन के सपनों को साकार कर उन्हें सही अर्थों में याद किया है, श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं.’’ वह कस कर मेरे गले से लग गई, ठीक रिया की तरह. रिया भी जब बेहद भावुक होती थी, ऐसा ही करती थी. वह धीरे से बोली, ‘‘पापा, आप बहुत अच्छे इंसान हैं, मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं, जो आप मुझे मिले.’’

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सोनू बहू बन कर मेरे घर क्या आई मानो मेरे सूने घर में बहार आ गई. ऐसा महसूस होता मानो मरुस्थल में रिमझिमरिमझिम बारिश हो रही हो. बड़े भैया हमेशा कहते, ‘‘मन बेटा, तू ने मेरा दिल जीत लिया. तू ने मेरे ऊपर इतना बड़ा उपकार किया है, मुझे तू ने इतनी अच्छी बहू दी है, यह एहसान मैं तेरा कैसे चुकाऊंगा.’’ मैं कहता, ‘‘कैसी बातें करते हैं भैया, भला अपनोें पर कोई एहसान करता है. फिर सुमन, जैसा आप का बेटा वैसे ही मेरा भी तो बेटा है. मैं ने अपना भला किया है.’’ वे कहते, ‘‘सच कहता हूं मन, इतनी सुंदर, संस्कारी बहू मुझे मिलेगी, कभी सोचाभी नहीं था.’’ मैं, भैया को छेड़ते हुए कहता, ‘‘भैया, आप को बहू अच्छी मिली है तो मुझे भी लाखों में एक दामाद मिला है. मैं इस रिश्ते से बहुत खुश हूं.’’ वे मेरे साथ खुल कर हंस देते.

घर के बदले हुए वातावरण से मैं काफी उत्साहित था. एकाएक मेरे दिमाग में एक अद्भुत विचार आया, जिस से मेरा मनमयूर नाच उठा.  मैं ने भैया को टटोलते हुए कहा, ‘‘हालांकि मैं ने कोई एहसान नहीं किया है फिर भी आप कहते हैं न कि आप मेरा एहसान कैसे चुकाएंगे. आज मैं आप को सरलतम उपाय बताता हूं जिस से आप मेरे एहसान से उऋण हो जाएंगे. पहले वादा कीजिए ‘न’ नहीं करेंगे.’’ उन्होंने तत्परता से कहा, ‘‘बोल, मन बेटा, जो कहेगा, करूंगा, यह लाला का वादा है. जो कहेगा, दे दूंगा.’’ मैं ने उन की नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा, ‘‘भैया, अब यहीं रह जाइए, हम सब साथ रहेंगे.’’ भैया, प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखने लगे. मैं ने कहा, ‘‘आप सोच रहे होंगे, बड़ा लालची निकला, स्वयं अकेला पड़ जाएगा, इसलिए हम सब को यहां रोक लेना चाहता है. ‘‘यह विचार मुझे पहले आया नहीं, वरना मैं आप से अवश्य चर्चा करता. शायद आप दोनों का साथ एवं सोनू की विदाई के भय से मेरे दिमाग में यह विचार उपजा. कहा भी जाता है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, सभी के साथ की लालसा ने शायद इस विचार को जन्म दिया.’’

‘‘मन बेटा, तू बहुत नेकदिल इंसान है. तुझे लालची तो मैं समझ नहीं सकता हूं, तू बोल रहा है तो जरूर सब का हित इस में होगा तभी रुकने को कह रहा है. मैं सोच रहा हूं, सुमन की नौकरी और मेरे घर का क्या किया जाए?’’ मैं ने कहा, ‘‘भैया, मैं ने सब के बारे में सोच लिया है. देखिए भैया, सुमन तो कभी भी नौकरी करना नहीं चाहता था, उस का सपना तो हमेशा से कोचिंग इंस्टिट्यूट रहा है. वह ऐसा कोचिंग इंस्टिट्यूट खोलना चाहता है जिस में शिक्षा का उत्तम स्तर होगा तथा वह व्यापार के उद्देश्य से नहीं खोला जाएगा. उस की गुणवत्ता के चलते, इतने स्टूडैंट्स आएंगे कि कम फीस में भी हमारा खर्चा आराम से निकल आएगा. आप की प्यारी बहू नीता भी ट्यूशन चलाती थी, वह छोटे स्तर पर ही यह काम कर रही थी, किंतु इन क्लासेस में उस की जान बसती थी. मैं उस के द्वारा चलाई गई इन क्लासेस को आप लोगों के सहयोग से बड़ा रूप देना चाहता हूं. ‘‘भैया, मैं और उत्तम 6 माह आगेपीछे रिटायर होने वाले हैं. हम दोनों भी इंस्टिट्यूट से जुड़ जाएंगे. पहले कालेज में पढ़ाते रहे हैं, अब कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाएंगे. समझिए कि रिटायर होते हुए भी रिटायर नहीं होंगे. आप भी रिटायर्ड प्रोफैसर हैं, आप को भी पढ़ाने में लगना होगा. अपनी सोनू भी अध्यापिका है वह भी गणित की, वह भी साथ हो जाएगी तथा आवश्यकतानुसार बाहर से शिक्षक ले लेंगे. मैं कई अच्छे प्रोफैसर को जानता हूं, जो खुशीखुशी हमारे साथ जुड़ जाएंगे.’’

भैया बोले, ‘‘मन बेटा, तू ने सोचा तो बहुत सही है. इस तरह सुमन का सपना भी पूरा होगा व मेरी बहू नीता का सपना भी साकार होगा तथा सब से बड़ी बात है कि हम सब एकसाथ रह भी सकेंगे. सच कहूं तो इस बुढ़ापे में तेरे साथ ही रहना चाहता हूं.’’ कोचिंग इंस्टिट्यूट की बात सुन कर सोनू और सुमन बेहद खुश हो गए. सुमन ने कहा, ‘‘छोटे पापा, कल ही तो मैं ने सोनू को अपने दिल की बात बताई थी. उस ने कहा भी था कि आप जब भी इंस्टिट्यूट खोलना चाहेंगे, वह भी उस में पूरा सहयोग करेगी किंतु यह सपना इतनी जल्दी साकार होगा, यह मैं ने नहीं सोचा था.’’ सब ने मिलबैठ कर यही तय किया कि सुमन और सोनू दिल्ली जा कर मकान एवं सुमन की नौकरी का काम निबटा लें. इस बहाने इन का हनीमून भी हो जाएगा तथा घर का काम भी निबट जाएगा. सुमन ने हंसते हुए कहा, ‘‘पापा, हनीमून पर अपनी नौकरी से इस्तीफा देने वाला मैं इकलौता बंदा ही होऊंगा.’’ सुमन की बात को बढ़ाते हुए सोनू ने जोड़ दिया, ‘‘हनीमून पर अपने मकान के लिए किराएदार ढूंढ़ने वाले भी हम पहले नवविवाहित जोड़ा बन जाएंगे.’’

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उन दोनों की चुहलबाजी पर हम सभी हंस पड़े. सोनू और सुमन की शादी को 5 वर्ष हो चुके हैं. हमारे द्वारा खोले गए इंस्टिट्यूट को भी लगभग 5 वर्ष हो रहे हैं. सोनू की सलाह पर इंस्टिट्यूट का नाम नीता इंस्टिट्यूट रखा गया. शहर में नीता इंस्टिट्यूट का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है. बड़े भैया, मैं व उत्तम के साथसाथ मेरे कुछ मित्र भी इस में शामिल हुए हैं. नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के संयुक्त योगदान का अच्छा प्रतिफल विद्यार्थियों को मिल रहा है. सोनू और सुमन की 3 साल की प्यारी सी बिटिया है, जिस का नाम सोनू ने रिया रखा है. आज सोनू और सुमन के सहयोग से मेरे चौबीस घंटे नीता (इंस्टिट्यूट) और रिया (पोती) के साथ व्यतीत होते हैं. मेरा और सोनू का अनोखा रिश्ता हम दोनों के ही जीवन का मजबूत संबल बना रहा. इस कथन पर पूरी तरह विश्वास सा हो गया है कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, उम्मीद का एक रास्ता अवश्य खुलता है. हिम्मत करे तो मनुष्य उस के सहारे निराशा से आशा की ओर उन्मुख हो सकता है.     

प्रेम गली अति सांकरी: भाग 6

Writer- जसविंदर शर्मा 

उस ने आहिस्ताआहिस्ता मेरे बदन को यों सहलाया जैसे मैं इस दुनिया की सब से नायाब और कीमती चीज हूं. वह मुझे दीवानगी और कामुकता के उच्च शिखर तक ले गया और फिर वापस लौट आया. मैं इस दुनिया में कहीं बहुत ऊपर तैर रही थी. वह बड़े सधे ढंग से इस खेल का निर्देशन कर रहा था. खुद पर उस का नियंत्रण लाजवाब था. ठीक वक्त पर वह रुका. हम दोनों एकसाथ अर्श पर पहुंचे.

पापा ने मेरी बहन को तो कभी कुछ नहीं कहा मगर जब मेरे लवर से संबंध बने और वह जब अकसर घर आने लगा तो पापा ने एक दिन मुझे आड़े हाथ लिया. बहस होने लगी. मैं विद्रोह की भाषा में बोल पड़ी. पापा की मिस्ट्रैस को ले कर मैं ने कुछ उलटासीधा कह दिया. पापा ने मेरी खूब धुनाई कर दी. प्यार करने वाले तो पहले ही इतने पिटे हुए होते हैं कि उन्हें तो एक हलका सा धक्का ही काफी होता है उन की अपनी नजर से नीचे गिराने के लिए. पापा ने जब मुझे पीटा तब भी मां कुछ नहीं बोलीं. अब वे पूरी तरह से गूंगी हो चुकी थीं. कई बार मैं ने सोचा कि उन्हें किसी बढि़या ओल्डऐज होम में भरती करवा दूं. मां को पैसे की किल्लत न थी.

इस कशमकश में कब मेरे बालों में सफेदी उतर आई, पता ही नहीं चला. मां के गुजर जाने के बाद घर में मैं अकेली ही रह गई. सब लोगों ने अपनेअपने घोंसले बना लिए थे. सब लोग आबाद हो गए थे. एक मेरी और पापा की नियति में दुख लिखे थे.

पापा काफी वृद्ध हो गए थे. अपनी मिस्ट्रैस और उस से हुई बेटी से उन की कम ही बनती थी. पापा कभीकभार हमारे घर आते. अपने औफिस की एक अन्य बूढ़ी औरत के घर में रहते थे. मां के गुजर जाने के बाद पापा की वित्तीय स्थिति काफी मजबूत हो गई थी. मां को जो खर्च देते थे वह भी बच जाता था.

फिर एक दिन पापा भी इस दुनिया से कूच कर गए. मेरी बहन विदेश चली गई थी. पापा की मौत के बारे में सुन कर 1 साल बाद आई. हम ने एकदूसरे को सांत्वना दी. भाई ने तो बरसों पहले ही हम लोगों से नाता तोड़ रखा था. वह बहुत पहले घर को बेचना चाहता था. मगर मैं यहां रहती थी. उस ने सोचा था कि मैं इस मकान को अकेले ही हड़प लूंगी.

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मैं भला मां को छोड़ कर कहां जाती. अपने मकान में मैं जैसी भी थी, सुख से रहती थी. मेरी नौकरी कोई खास बड़ी नहीं थी. दरअसल, अपने इश्क की खातिर मैं ने यह शहर नहीं छोड़ा था, इसलिए मेरी तरक्की के साधन सीमित थे यहां.

मैं अजीब विरोधाभास में थी. अपने आशिक के घर में जा कर नहीं रह सकती थी. मेरे जाने के बाद मां की हालत खराब हो जाती. वह पापा के कारण यहां आने से कतराता था. फिर भी हम ने कहीं दूसरी जगह मिलने का क्रम जारी रखा. हमारे प्यार की इन असंख्य पुनरावृत्तियों में हमेशा एक नवीनता बनी रही. हम ने एकदूसरे से शादी के लिए कोई आग्रह नहीं किया. हमारे इश्क में शिद्दत बनी रही क्योंकि हमारे प्यार की अंतिम मंजिल प्यार ही थी.

उस के सामने मेरी कैफियत उस बच्चे के समान थी जो नंगे हाथों से अंगार उठा ले. उस ने मेरे विचारों, मेरी मान्यताओं और मेरी समझ को उलटपलट कर रख दिया था, जैसे बरसात के दौरान गलियों में बहते पानी का पहला रेला अपने साथ गली में बिखरे तमाम पत्ते, कागज वगैरह बहा ले जाता है.

मैं भी एक पहाड़ी नदी की तरह पागल थी, बावरी थी, आतुर थी. मुझे बह निकलने की जल्दी थी. मुझे कई मोड़, कई ढलान, कई रास्ते पार करने थे. मुझे क्या पता था कि तेजी से बहती हुई नदी जब मैदानों में उतरेगी तो समतल जमीन की विशालता उस की गति को स्थिर कर देगी, लील लेगी. उस के साथ रह कर मुझे लगा कि मैं फिर से जवान हो गई हूं. मेरी उम्र कम हो गई है. फिर उस की उम्र देख कर बोध होता कि मैं गलत कर रही हूं. प्यार तो समाज की धारा के विरुद्ध जा कर ही किया जा सकता है.

मैं डर गई थी समाज से, पापा से, अपनेआप से. कहीं फंस न जाऊं, हालांकि उस से जुदा होने को जी नहीं चाहता था मगर उस के साथ घनिष्ठ होने का मेरा इरादा न था या कहें कि हिम्मत नहीं थी.

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मैं तो उसे दिल की गहराइयों से महसूस कर के देखना चाहती थी. मगर वह तो मेरे प्यार के खुमार में दीवानगी की हद तक पागल था. तभी तो मैं डर कर अजीब परस्पर विरोधी फैसले करती थी. कभी सोचती आगे चलूं, कभी पीछे हटने की ठान लेती. एक सुंदर मौका, जब मैं किसी को अपने दिल की गहराइयों से प्यार करती थी, मैं ने जानबूझ कर गंवा दिया.

मैं ने उसे अपमानित किया. उसे बुला कर उस से मिलने नहीं गई. वह आया तो मैं अधेड़ उम्र के सुरक्षित लोगों से घिरी बतियाने में मशगूल रही. उस की उपेक्षा की. आखिरकार, मैं ने अपनेआप को एक खोल में बंद कर लिया, जैसे अचार या मुरब्बे को एअरटाइट कंटेनरों में बंद किया जाता है. अब मुझे इस उम्र में जब मैं 58 से ऊपर जा रही हूं, उन क्षणों की याद आती है तो मैं बेहद मायूस हो जाती हूं. मैं सोचती हूं कि मैं ने प्यार नहीं किया और अपनी मूर्खता में एक प्यार भरा दिल तोड़ दिया.

अब मैं समझ गई हूं- भाग 3: रिमू का परिवार इतना अंधविश्वासी क्यों था

रिमू की बेबुनियादी बातें सुन कर मैं लगभग ?ां?ाला सा गया था. वास्तव में इस प्रकार की बातों को ले कर कई बार हम दोनों में बहस हो जाया करती थी. मेरा क्रोध देख कर वह शांत तो हो गई परंतु ऐसा लग रहा था मानो उस के मन में कोई अंर्तद्वंद्व चल रहा है.

एक दिन जैसे ही मैं औफिस से लौटा, रिमू बड़ी मस्ती में गुनगुनाती हुई खाना बना रही थी. आमतौर पर हैरानपरेशान रहने वाली रिमू को इतना खुश देख कर मैं हैरान था, सो पूछा, ‘‘क्या बात है, बड़ी खुश नजर आ रही हो?’’

‘‘आज मम्मी आ रही हैं कुछ दिनों के लिए मेरे पास रहने.’’

‘‘तब तो तुम मांबेटी की ही तूती बोलेगी आज से इस घर में, मैं बेचारा एक कोने में पड़ा रहूंगा.’’

‘‘ऐसा क्यों कहते हो, मेरी मां क्या तुम्हारी मां नहीं है,’’ हलकी सी नाराजगी जताते हुए रिमू ने कहा.

‘‘अरे नहीं बाबा, मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था. तुम चायनाश्ता लगाओ, मैं फ्रैश हो कर आता हूं,’’ कह कर मैं चेंज करने चला गया.

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2 दिनों बाद रीमा की मां हमारे घर आ गईं. यह कहने में अवश्य अजीब लगेगा परंतु सचाई यही थी कि 60 की उम्र में भी उन्होंने अपनेआप को बहुत फिट रखा था, जिस से वे रीमा की मां कम, बड़ी बहन अधिक लगती थीं. एक से एक आधुनिक परिधान धारण करती थीं वे.

आते ही उन्होंने रीमा को अपना लाइफस्टाइल बदलने और हैल्दी डाइट प्लान बनाने को कहा ताकि उस के दिन पर दिन बढ़ते कमर के घेरे को कम किया जा सके. घर के बदलते रंगढंग को देख कर मैं भी बड़ा खुश था. पर एक दिन जब सुबह मैं औफिस जाने को तैयार हो रहा था तो मांबेटी को एकसाथ तैयार हो कर जाते देख पूछ लिया.

‘‘अरे, इतनी सुबहसुबह कहां जा रही हैं आप दोनों, चलिए कहां जाना है, मैं छोड़ देता हूं?’’

‘‘कहीं नहीं बेटा, यहीं पास के ही मंदिर में जा रहे हैं. पैदल जाएंगे तो वौक भी हो जाएगी. आप औफिस जाइए,’’ सासुमां ने कहा तो मैं आश्वस्त हो कर औफिस रवाना हो गया.

इन दिनों पहले की अपेक्षा रिमू कुछ अधिक शांत और खुश नजर आने लगी थी. मैं इसे मां के आने की खुशी सम?ा रहा था. कुछ दिनों के बाद मु?ो औफिस के काम से ग्वालियर जाना पड़ा. मेरा काम एक दिन पूर्व ही समाप्त हो गया. सो, मैं एक दिन पूर्व ही घर आ गया. जैसे ही घर के द्वार पर पहुंचा तो घर से पंडितों के मंत्रोच्चार की ध्वनि आ रही थी. अंदर जा कर देखा तो रिमू और उस की मां 4 पंडितों से घिरी हवन करवा रही थीं. क्रोध से मेरी आंखें ज्वाला बरसाने लगीं, परंतु मौके की नजाकत को सम?ा कर मैं शांत रहा और अंदर चला गया.

कुछ ही देर में रिमू घबराती हुई मेरे लिए चायनाश्ता ले कर आई तो मैं लगभग चीखते हुए बोला, ‘‘यह सब क्या हो रहा था, जबकि तुम्हें पता है कि मैं इन सब अंधविश्वासों और ढकोसलों को नहीं मानता?’’

‘‘अरे बेटा, जन्मकुंडली का दोष शांत करवाने के लिए यह पूजा करवाना अत्यंत आवश्यक था. अब देखना तुम्हारा गृहस्थ जीवन बहुत अच्छे से चलेगा. बहुत पहुंचे हुए पंडितजी हैं और उन्होंने पूजा भी बहुत अच्छी करवाई है,’’ रिमू के बोलने से पूर्व ही उस की मां ने अपनी सफाई दी.

‘‘मांजी, यह सब मन का वहम है. क्या कमी है आप की बेटी को बताइए, जन्ममृत्यु, हारीबीमारी ये सब तो जीवन के एक हिस्से हैं. आज दुख है तो कल सुख भी आएगा. यदि पंडितजी इतने ही पहुंचे हुए हैं तो क्यों नहीं कोई अच्छी सी नौकरी प्राप्त कर ली, क्यों यजमान ढूंढ़ते फिरते हैं अपनी जीविका को चलाने के लिए.

‘‘आप की और पापाजी की कुंडली में तो 30 गुण मिले थे पर फिर भी आप दोनों हमेशा लड़ते?ागड़ते और एकदूसरे को अपमानित करते रहते हैं. आप तो इतनी आधुनिका हैं, फिर आप अपनी सोच को आधुनिक क्यों नहीं बना पाईं. गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाना पतिपत्नी के हाथ में होता हैं न कि किसी पंडित के हाथ में. जो काम मु?ो पसंद नहीं हैं वे मेरी पत्नी मेरी अनुपस्थिति में करेगी तो कैसे गृहस्थी सुखद हो सकेगी.’’

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मु?ो नहीं पता कि मेरी बातों का उन पर क्या असर हुआ परंतु उस समय उन्होंने वहां से चले जाने में ही अपनी भलाई सम?ा. इस घटना के 2 दिनों बाद जब रीमा की मम्मी को हम स्टेशन छोड़ने गए तो उन में से एक पंडितजी के हमें प्लेटफौर्म पर दर्शन हुए. बढि़या सिगरेट के कश खींचते हुए वे जींसटौप में किसी गुंडा टाइप आदमी के साथ बातचीत कर रहे थे.

मैं ने रिमू से कहा, ‘‘देखो ये हैं तुम्हारे पंडितजी. जिन से तुम अपनी गृहस्थी में शांति करवाने चली थीं.’’

‘‘बाप रे, ये तो सिगरेट पी रहे हैं.’’ उन्हें देख कर रीमा ने दांतों तले उंगली दबा ली. सासुमां को ट्रेन में बैठा कर जब हम घर आए तो हमारे पड़ोसी अपनी बेटी की शादी का कार्ड देने आ गए.

‘‘बेटा, आप लोग अवश्य आइएगा. बड़ी मुशकिल से तय हो पाई हमारी बेटी की शादी. जहां भी जाओ लोग जन्मकुंडली मिलाने की बात करते और न मिलने पर शादी की बात आगे ही नहीं बढ़ पाती थी, पर एक पंडित ने ही हमें इस का तोड़ बता दिया कि पहले लड़के की जन्मपत्रिका ले लो और मैं उसी के अनुसार बेटी की पत्रिका बना दूंगा. हम ने ऐसा ही किया और चट मंगनी पट ब्याह हो गया. क्या करें बेटा कई जगह विवशता में चालाकी करनी पड़ती है,’’ वे अपनी बेटी के विवाह के बारे में बताने लगे.

‘‘क्या ऐसा भी होता है? फिर कुंडली मिलवाने का क्या मतलब?’’ अब तक शांत बैठी रिमू अचरज से बोली.

‘‘हांहां भाभीजी, क्यों नहीं, आजकल सब संभव है. पंडितजी को चढ़ावा चढ़ाओ और असंभव कार्य को भी पंडितजी से संभव करवाओ. दरअसल, भाभीजी यह कुंडली कुछ होती ही नहीं है, यह सब तो पंडितों के चोंचले हैं दानदक्षिणा प्राप्त करने के.

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‘‘अब हमारा तो अंतर्जातीय विवाह हुआ है. आज 35 वर्ष हो गए हमारे दांपत्य जीवन को. हर सुखदुख को हम ने खुशीखुशी ?ोला है. 35 वर्षों में लड़ाई?ागड़ा तो छोडि़ए, किसी भी प्रकार की अनबन तक नहीं हुई हम दोनों में. एकदूसरे को इतना सम?ाते हैं हम दोनों. विवाह तो पतिपत्नी की सम?ादारी से सफल होते हैं, न कि कुंडली से.’’

इस के बाद वे तो चले गए पर रिमू की आंखें अवश्य खोल गए क्योंकि जैसे ही मैं उन्हें बाहर छोड़ कर आया, रिमू मेरे गले लग गई, बोली, ‘‘तुम सच कहते हो, यह कुंडली सिर्फ मन का वहम और पंडितजी के जीने का साधन है. अब मैं सब सम?ा गई हूं.’’

अनकहा प्यार- भाग 3: क्या सबीना और अमित एक-दूसरे के हो पाए?

लेकिन एमए पूरा होते ही सबीना के निकाह की बात चलने लगी. उस के पिता चुनाव हार चुके थे. और सारी जमापूंजी चुनाव में लगा चुके थे. बहुत सारा कर्र्ज भी हो गया था उन पर. जब सबीना ने निकाह से मना करते हुए पीएचडी की बात कही, तो उस के अब्बू ने कहा, ‘बीएड कर लो. पढ़ाई करने से मना नहीं करता. लेकिन पीएचडी नहीं. मैं जानता हूं कि पीएचडी के नाम पर पीएचडी करने वालों का कैसा शोषण होता है? निकाह करो और प्राइवेट बीएड करो. अपने अब्बू की बात मानो. समय बदल चुका है. मेरी स्थिति बद से बदतर हो गई है. अपने अब्बू का मान रखो.’ अब्बू की बात तो वह काट न सकी, सोचा, जा कर अमित के सामने ही हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार कर दे.

अमित को जब उस ने बीएड की बात बताई और साथ ही निकाह की, तो अमित चुप रहा.

‘तुम क्या कहते हो?’

‘तुम्हारे अब्बू ठीक कहते हैं,’ उस ने उदासीभरे स्वर में कहा.

‘उदास क्यों हो?’

‘दहेज न दे पाने के कारण बहन की शादी टूट गई.’ सबीना क्या कहती ऐसे समय में चुप रही. बस, इतना ही कहा, ‘अब हमारा मिलना नहीं होगा. कुछ कहना चाहते हो, तो कह दो.’

‘बस, एक अच्छी नौकरी चाहता हूं.’

‘मेरे बारे में कुछ सोचा है कभी.’

वह चुप रहा और उस ने मुझे भी चुप रहने को कहा, ‘कुछ मत कहो. हालात काबू में नहीं हैं. मैं भी पीएचडी करने के लिए दिल्ली जा रहा हूं. औल द बैस्ट. तुम्हारे निकाह के लिए.’

दोनों की आंखों में आंसू थे और दोनों ही एकदूसरे से छिपाने की कोशिश कर रहे थे. जो कहना था वह अनकहा रह गया. और आज इतने वर्षों के बीत जाने के बाद वही शख्स नागपुर में पार्क में इस बैंच पर उदास, गुमसुम बैठा हुआ है. सबीना उस की तरफ बढ़ी. उस की निगाह सबीना की तरफ गई. जैसे वह भी उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो.

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‘‘पहचाना,’’ सबीना ने कहा.

कुछ देर सोचते हुए अमित ने कहा, ‘‘सबीना.’’

‘‘चलो याद तो है.’’

‘‘भूला ही कब था. मेरा मतलब, कालेज का इतना लंबा साथ.’’

‘‘यह क्या हुलिया बना रखा है,’’ सबीना ने पूछा.

‘‘अब यही हुलिया है. 45 साल का वक्त की मार खाया आदमी हूं. कैसा रहूंगा? जिंदा हूं. यही बहुत है.’’

‘‘अरे, मरें तुम्हारे दुश्मन. यह बताओ, यहां कैसे?’’

‘‘मेरी छोड़ो, अपने बारे में बताओ.’’

‘‘मैं ठीक हूं. खुश हूं. एक बेटे की मां हूं. प्राइवेट स्कूल में टीचर हूं. पति का अपना बिजनैस है,’’ सबीना ने हंसते

हुए कहा.

‘‘देख कर तो नहीं लगता कि खुश हो.’’

‘‘अरे भई, मैं भी 40 साल की हो गई हूं. कालेज की सबीना नहीं रही. तुम बताओ, यहां कैसे? और हां, सच बताना. अपनी बैस्ट फ्रैंड से झठ मत बोलना.’’

‘‘झठ क्यों बोलूंगा. बहन की शादी हो चुकी है. मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं. मैं एक प्राइवेट कालेज में प्रोफैसर हूं. मेरा भी एक बेटा है.’’

‘‘और पत्नी?’’

‘‘उसी सिलसिले में तो यहां आया हूं. पत्नी से बनी नहीं, तो उस ने प्रताड़ना का केस लगा कर पहले जेल भिजवाया. किसी तरह जमानत हुई. कोर्ट में सम?ौता हो गया. आज कोर्ट में आखिरी पेशी है. उसे ले जाने के लिए आया हूं. अदालत का लंचटाइम है, तो सोचा पास के इस बगीचे में थोड़ा आराम कर लूं,’’ उस ने यह कहा तो सबीना ने कहा, ‘‘मतलब, खुश नहीं हो तुम.’’

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उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘खुश तो हूं लेकिन सुखी नहीं हूं.’’

जी में तो आया सबीना के, कि कह दे कालेज में जो प्यार अनकहा रह गया, आज कह दो. चलो, सबकुछ छोड़ कर एकसाथ जीवन शुरू करते हैं. लेकिन कह न सकी. उसे लगा कि अमित ही शायद अपने त्रस्त जीवन से तंग आ कर कुछ कह दे. लगा भी कि वह कुछ कहना चाहता था. लेकिन, कहा नहीं उस ने. बस, इतना ही कहा, ‘‘कालेज के दिन याद आते हैं तो तुम भी याद आती

हो. कम उम्र का वह निश्छल प्रेम, वह मित्रता अब कहां? अब तो

केवल गृहस्थी है. शादी है. और उस शादी को बचाने की हर

संभव कोशिश.’’

‘‘आज रुकोगे, तुम्हारा तो ससुराल है इसी शहर में,’’ सबीना ने पूछा.

‘‘नहीं, 4 बजे पेशी होते ही मजिस्ट्रेट के सामने समझौते के कागज पर दस्तखत कर के तुरंत निकलना पड़ेगा. 8 दिन बाद से कालेज की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं. फिर, बस खानापूर्ति के लिए, समाज के रस्मोरिवाज के लिए कानूनी दांवपेंच से बचने के लिए पत्नी को ले कर जाना है. ऐसी ससुराल में कौन रुकना चाहेगा. जहां सासससुर, बेटी के माध्यम से दामाद को जेल की सैर करा दी जा चुकी हो.’’ उस के स्वर में कुछ उदासी थी.

‘‘अब कब मुलाकात होगी?’’ सबीना ने पूछा.

इस घने अंधकार में उजाले का टिमटिमाता तारा लगा अमित. सबीना की आंखों में आंसू आ गए. आंसू तो अमित की आंखों में भी थे. सबीना ने आंसू छिपाते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, अब कब मुलाकात होगी.’’

‘‘शायद ऐसे ही किसी मोड़ पर. जब मैं दर्द में डूबा हुआ रहूं और तुम मिल जाओ अचानक. जैसे आज मिल गईं. मैं तो तुम्हें देख कर पलभर को भूल ही गया था कि यहां किस काम से आया हूं. मेरी कोर्ट में पेशी है. अपनी बताओ, तुम कैसी हो?’’

सबीना उस के दुख को बढ़ाना नहीं चाहती थी अपनी तकलीफ बता कर. हालांकि, समझ चुका था अमित कि उस की दोस्त खुश नहीं है. ‘‘बस, जिंदगी मिली है, जी रही हूं. थोड़े दुख तो सब के हिस्से में आते हैं.’’

‘‘हां, यह ठीक कहा तुम ने,’’ अमित ने कहा.

‘‘मेरे कोर्ट जाने का समय हो गया, मैं चलता हूं.’’

‘‘कुछ कहना चाहते हो,’’ सबीना ने कुरेदना चाहा.

‘‘कहना तो बहुतकुछ चाहता था. लेकिन कमबख्त समय, स्थितियां, मौका ही नहीं देतीं,’’ आह सी भरते हुए अमित ने कहा.

‘‘फिर भी, कुछ जो अनकहा रह गया हो कभी,’’ सबीना ने कहा. सबीना चाहती थी कि वह अमित के मुंह से एक बार अपने लिए वह अनकहा सुन ले.

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‘‘बस, यही कि तुम खुश रहो अपनी जिंदगी में. मैं भी कोशिश कर रहा हूं जीने की. खुश रहने की. जो नहीं कहा गया पहले. उसे आज भी अनकहा ही रहने दो. यही बेहतर होगा. झठी आस पर जी कर क्यों अपना जीना हराम करना.’’

दोनों की आंखों में आंसू थे और दोनों ही एकदूसरे से छिपाने की कोशिश करते हुए अपनीअपनी अंधेरी सुरंगों की तरफ बढ़ चले. जो पहले अनकहा रह गया था, आज भी अनकहा ही रह गया.

आखिरी मुलाकात- भाग 3: क्यों सुमेधा ने समीर से शादी नहीं की?

Writer- Shivi Goswami

अगले दिन भी वही सब. न मेरा फोन उठाया और न खुद फोन या मैसेज किया. बस अपने सर को उस ने अपनी छुट्टी के लिए एक मेल भेजा था, जिस में बस यह लिखा था कि कोई जरूरी काम है.

क्या जरूरी काम हो सकता है? मैं सोच नहीं पा रहा था.

नीलेश ने कहा, ‘तुम उस के घर के फोन पर बात करने की कोशिश क्यों नहीं करते?’

‘अगर किसी और ने फोन उठाया तो?’ मैं ने उस के सवाल पर अपना सवाल किया.

‘तो तुम बोल देना कि तुम उस के औफिस से बोल रहे हो और यह जानना चाहते हो कि कब तक छुट्टी पर है वह.’

हिम्मत कर के मैं ने उस के घर के फोन पर काल किया. पहली बार किसी ने फोन नहीं उठाया. नीलेश के कहने पर मैं ने दोबारा कोशिश की. इस बार फोन पर आवाज आई जो मैं सुनना चाहता था.

‘हैलो सुमेधा, मैं समीर बोल रहा हूं. कहां हो, कैसी हो? और तुम औफिस क्यों नहीं आ रही हो? मैं ने तुम्हारा मोबाइल नंबर कितनी बार मिलाया, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. सब ठीक तो है?’

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सुमेधा चुपचाप मेरी बातों को बस सुने जा रही थी.

‘सुमेधा कुछ तो बोलो.’

‘अब मुझे कभी फोन मत करना समीर…’ सुमेधा ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या, पर हुआ क्या यह तो बताओ?’ मैं ने बेचैन हो कर पूछा.

‘पापा को माइनर हार्ट अटैक आया था. अब उन की हालत ठीक है. मेरे लिए एक रिश्ता आया था पापा ने वह रिश्ता तय कर दिया है और उन की हालत को ध्यान में रखते हुए मैं न नहीं कर पाई.’

‘तुम्हें उन्हें मेरे बारे में तो बताना चाहिए था,’ मैं ने कहा.

‘समीर वह लड़का बिजनैसमैन है,’ सुमेधा ने एकदम से कहा.

‘ओह, तो शायद इसीलिए तुम्हारी उस से शादी हो रही है,’ मैं ने कहा.

‘तुम जो भी समझो मैं मना नहीं करूंगी. अगले महीने मेरी शादी है. मैं ने आज ही अपना रिजाइनिंग लैटर अपने सर को मेल कर दिया है. बाय समीर.’

मैं बस फोन को देखे जा रहा था और नीलेश मुझे देखे जा रहा था. उस का मेरे प्यार को स्वीकार करना जितना खूबसूरत सपने की तरह था, उतना ही आज उस का यह बोलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मैं चाहता था कि दोनों बातों में से सिर्फ एक ख्वाब बन जाए, लेकिन दोनों ही हकीकत थीं.

आज इस बात को पूरे 3 साल हो गए. उस दिन के बाद मैं ने कभी सुमेधा को न तो फोन किया और न ही उस ने मेरा हाल जानने की कोशिश की. जिस दिन उस की शादी थी उसी दिन मुझे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी से इस नौकरी का औफर आया था. यहां की सैलरी से दोगुनी सैलरी और एक फ्लैट. सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि एकदम परफैक्ट. आज जो मेरे पास है अगर वह मेरे पास 3 साल पहले होता तो शायद आज सुमेधा मिसेज समीर होती.

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वक्त बदल गया और वक्त के साथ लोग भी. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंच गया हूं शायद उस समय इन सब चीजों की कल्पना उस ने कभी की ही नहीं होगी. उस वक्त मैं सिर्फ समीर था लेकिन आज एक मल्टीनैशनल कंपनी का जनरल मैनेजर. आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी सफलता को बांटने के लिए वह नहीं है जिस के लिए शायद मैं यह सब करना चाहता था.

अचानक मेरे मोबाइल की बजी. घंटी ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकाला.

नीलेश का फोन था. सब कुछ बदल जाने के बाद भी मेरी और नीलेश की दोस्ती नहीं बदली थी. शायद कुछ रिश्ते सच में सच्चे और अच्छे होते हैं.

‘‘कब तक पहुंचेगा?’’ नीलेश ने पूछा.

‘‘निकलने वाला हूं बस,’’ मैं ने नीलेश से कहा.

‘‘जल्दी निकल यार,’’ कह कर नीलेश ने फोन रख दिया.

नीलेश की शादी है आज. शादी दिल्ली में ही हो रही थी. मुझे सीधे शादी में ही शरीक होना था. अपने सब से अच्छे दोस्त की शादी में न जाने का कोई बहाना होता भी तो भी मैं उस को बना नहीं सकता था.

मैं फटाफट तैयार हुआ. अपनी कार निकाली और चल दिया. वहां पहुंचा तो चारों तरफ फूलों की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. नीलेश बहुत स्मार्ट लग रहा था. मैं ने उस की तरफ फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है और मेरी दिल से शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.’’

नीलेश मेरे गले लग गया. और लोगों को भी उसे बधाइयां देनी थीं, इसलिए मैं स्टेज से नीचे उतर गया. उतर कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि लाल साड़ी में एक महिला मेरे पीछे खड़ी थी. उस के साथ उस का पति और बेटा भी था.

वह कोई और नहीं सुमेधा थी, जो मेरी ही तरह अपने दोस्त की शादी में शामिल होने आई थी. मुझे देख कर वह चौंक गई. वह मुझ से कुछ कहती, इस से पहले ही मेरी पुरानी कंपनी के सर ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वैल डन समीर. मुझे तुम पर बहुत गर्व है. थोड़े से ही समय में तुम ने बहुत सफलता हासिल कर ली है. मैं सच में बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए.’’

मैं बस हां में सिर हिला रहा था और जरूरत पड़ने पर ही जवाब दे रहा था. मेरा दिमाग इस वक्त कहीं और था.

सुमेधा अपने पति के साथ खड़ी थी. उस का पति एक बिजनैसमैन था, लेकिन उस की कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी. आज मेरा स्टेटस उस से ज्यादा था.

यह मैं क्या सोच रहा हूं? मेरी सोच इतनी गलत कब से हो गई? मुझे किसी की व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिंदगी से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मेरा दम घुट सा रहा था. अब इस से ज्यादा मैं वहां नहीं रुक सकता था. मैं जैसे ही बाहर जाने लगा सुमेधा ने पीछे से मुझे आवाज लगाई.

‘‘समीर…’’

उस के मुंह से अपना नाम सुनते ही मन में आया कि उस से सारे सवालों के जवाब मांगूं. पूछूं उस से कि जब प्यार किया था तो विश्वास क्यों नहीं किया? सब कुछ एकएक कर के उस की आवाज से मेरी आंखों के सामने आ गया.

लेकिन अब वह पहले वाली सुमेधा नहीं थी. अब वह मिसेज सुमेधा थी. मुझे उस का सरनेम तो क्या उस के पति का नाम भी मालूम नहीं था और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ये सब जानने की. न मैं उस का हाल जानना चाहता था और न ही अपना बताना.

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मैं ने पलट कर उस की आंखों में आखें डाल कर कहा, ‘‘क्या मैं आप को जानता हूं?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखती रही. अगर मैं पहले वाला समीर नहीं था तो वह भी पहले वाली सुमेधा नहीं रही थी.

शायद मेरा यही सवाल हमारी आखिरी मुलाकात का जवाब था. उस की चुप्पी से मुझे मेरा जवाब मिल गया और मैं वहां से चल दिया.

नई रोशनी की एक किरण- भाग 3: सबा की जिंदगी क्यों गुनाह बनकर रह गई थी

दोनों जब तक जवाब देते, सबा उठ कर सामने आ गई और उस ने बहुत नरम और सही अंगरेजी में कहा, ‘‘सर, आप सरकारी नौकर हैं. जांच और पूछताछ करना आप का फर्ज है. आप तरीके से पूछें फिर भी आप को तसल्ली न हो तो आप लिखित में नोटिस दें, हम उस का जवाब देंगे. आप की पहली इन्क्वायरी का संतोषप्रद जवाब दिया जा चुका है. आप को जो भी मालूमात चाहिए, मुझ से पूछिए क्योंकि लेजर मैं मेंटेन करती हूं पर पूछताछ में अपने लहजे और भाषा पर कंट्रोल रखिएगा क्योंकि हम भी आप की तरह संभ्रांत नागरिक हैं.’’

इतनी सटीक और परफैक्ट अंगरेजी में जवाब सुन अफसर के रवैए में एकदम फर्क आ गया. काफी देर जांच चलती रही, सबा ने बड़े आत्मविश्वास से हर शंका का बड़े सही ढंग से समाधान किया क्योंकि पिछले 4 दिनों में वह हर बात को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. सेल्सटैक्स अफसर कोई घपला न निकाल सका, इसलिए अपने साथियों के साथ वापस चला गया, पर धमकी देते गया कि उस की खास नजर इस स्टोर पर रहेगी. अकसर परेशान करने को नोटिस आते रहे जिन्हें सबा ने बड़ी सावधानी से संभाल लिया.

घर पहुंच कर नईम खुशी से पागल हो रहा था, अम्मी और बहनों को सबा की काबिलीयत विस्तार से जताते हुए बोला, ‘‘सबा का पढ़ालिखा होना, उस की गहरी जानकारी और अंगरेजी बोलना सारी मुसीबतों से टक्कर लेने में कामयाब रहे. पहले यही अफसर मुझ से ढंग से बात नहीं करता था. मेरा अंगरेजी मेें ज्यादा दखल न होने से और विषय की पकड़ कमजोर होने से मुझ पर हावी हो रहा था. अपनी जानकारी से सबा ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया है कि अब बेवजह मुझे परेशान न करेगा. मैं ने फैसला कर लिया है कि सबा हफ्ते में 2 बार आ कर हिसाबकिताब चैक करेगी ताकि आइंदा ऐसा कोई मसला न खड़ा हो.’’

एक अरसे के बाद अम्मी ने प्यार से सबा को गले लगाया. बहनें भी प्यार से लिपट गईं. सबा को लगा उस की मुश्किलों का खत्म होने का वक्त आ गया है. उन्हें हंसता देख कर नईम बोला, ‘‘अम्मी, मैं ने शादी के वक्त शर्त रखी थी कि लड़की पढ़ीलिखी होनी चाहिए तो आप सब खूब नाराज हो रहे थे पर उस वक्त पढ़ीलिखी बीवी की ख्वाहिश इसलिए थी कि मैं कम पढ़ालिखा था. उस कमी को मैं अपनी पढ़ीलिखी बीवी से पूरी करना चाहता था और मैं गर्व से अपने दोस्तों से कह सकूं कि मेरी बीवी एमएससी है.

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‘‘यह हकीकत तो अब खुली है कि इल्म सिर्फ दिखाने या नाज करने के लिए नहीं होता. इस मुश्किल घड़ी में जब मैं बेहद निराश और डिप्रैस्ड था, उस वक्त सबा ने अपनी तालीम, समझदारी व जानकारी से मामला संभाला. आज मैं अपनी ख्वाहिश की जिंदगी और कारोबार में इल्म की अहमियत को समझ गया हूं. इल्म कोई शोपीस नहीं है बल्कि हर समस्या, हर मुश्किल से जूझने का सफल हथियार है.’’

सबा ने खुशी से चमकती आंखों से नईम को शुक्रिया कहा.

सबा के स्टोर में मदद करने से एक एहसान के बोझ से दबी अम्मी उस से कुछ हद तक नरम हो गईं पर दिल में जमी ईर्ष्या और कम होने के एहसास की धूल अभी भी अपनी जगह पर थी. बहनें भी रूखीरूखी सी मिलतीं. सबा सोचने लगी, उस से कहीं गलती हो रही है. एकाएक उस के दिमाग में धमाका हुआ. उसे एहसास हुआ, कोताही उस की तरफ से भी हो रही है. अभी लोहा गरम है, बस एक वार की जरूरत है. वह पढ़ीलिखी है यह एहसास उस पर भी तो हावी रहा था. अनजाने में वह उन से दूर होती गई.

अगर वे लोग अपनी जहालत और नासमझी से उसे अपना नहीं रहे थे तो उस ने भी कहां आगे बढ़ कर कोशिश की. वह तो समझदार थी. उसे ही उन लोगों का  साथ निभाना था. उस ने अपनी बेहतरी को एक खोल की तरह अपने ऊपर चढ़ा लिया था. अब उसे इस खोल को तोड़ कर उन लोगों के लेवल पर उतर कर उन के दिलों में धीरेधीरे जगह बनानी होगी. यही तो उस की कसौटी है कि उसे अपनी तालीम को इस तरह इस्तेमाल करना है कि वे सब दिल से उस के चाहने वाले हो जाएं. उन की नफरत मुहब्बत में बदल जाए. पहल उसे ही करनी होगी. अपने गंभीर और आर्टिस्टिक मिजाज को छोड़ कर अपने घमंड के पीछे डाल कर उसे यह रिश्तों की जंग जीतनी होगी.

दूसरे दिन सबा ने गहरे रंग का रेशमी सूट पहना. झिलमिल करता दुपट्टा ओढ़ नीचे आ गई. उस की सास तख्त पर बैठी सिर में तेल डाल रही थीं. वह उन के करीब जा कर बैठ गई. उन्होंने मुसकरा कर उस के खूबसूरत जोड़े को देखा, उस ने उन के हाथ से कंघा ले कर कंघी करते हुए कहा, ‘‘अम्मी, अगर नासमझी में मुझ से कोई भूल हुई है तो माफ करें, अपनेआप को मैं आप की ख्वाहिश के मुताबिक बदल लूंगी.’’

अम्मी हैरान सी उसे देख रही थीं. आज इस चमकीले सूट में वह उन्हें बड़ी अपनी सी लग रही थी. वह उस के संजीदा व्यवहार से बदगुमान हो गई थीं. उन्हें लगा था कि तालीमयाफ्ता, होशियार बहू उन से उन का बेटा छीन लेगी, क्योंकि नईम वैसे भी उसे खूब चाहता था. कहीं बहू बेटे पर हावी न हो जाए, इसलिए उन्होंने उस के नुक्स निकाल कर उस की अहमियत कम करना शुरू कर दिया. बेटियों ने भी साथ दिया क्योंकि सबा ने भी अपने आसपास एक नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी.

आज वही दीवार, अपनेपन और मुहब्बत की गरमी से पिघल रही थी. उस ने अम्मी की चोटी गूंथते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आप मुझे रिश्तों का मान दीजिए, मुझे अपनी बेटी समझें, मुझे भी रिश्ते निभाने आते हैं. मैं आप के बेटे को कभी आप से दूर नहीं करूंगी बल्कि मैं भी आप की बन जाऊंगी. मैं मुहब्बत की प्यासी हूं. रमशा और छोटी मेरी बहनें हैं. आप उन्हीं की तरह मुझे अपनी बेटी समझें. तालीम और काबिलीयत ऐसी चीज नहीं है जो दिलों के ताल्लुक और मुहब्बत में सेंध लगाए.’’

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अम्मी को लग रहा था जैसे उन के कानों में मीठा रस टपक रहा है. वे ठगी सी काबिल बहू की बातें सुन रही थीं जो सीधे उन के दिल में उतर रही थीं. उसी ने उन के बेटे को कितनी बड़ी मुश्किल से निकाला है पर जरा सा गुरूर नहीं है. सबा ने रमशा और छोटी को दुलारते हुए कहा, ‘‘आप इन के लिए परेशान न हों, मैं इन दोनों को भी जमाने के साथ चलना सिखाऊंगी. मेरी कुछ, बहुत अच्छे घरों में पहचान है. वहां इन दोनों के लिए रिश्ते भी देखूंगी,’’ यह बात सुन कर दोनों ननदों की आंखों में नई जिंदगी के ख्वाब तैरने लगे.

शाम को नईम जब स्टोर से आया तो घर में खाने की खुशगवार खुशबू के साथ प्यार की महक भी थी. सब ने हंसतेमुसकराते खाना खाया. सबा की एक छोटी सी पहल ने सारा माहौल खुशियों से भर दिया. उस ने अपनी समझदारी से अपना अहं छोड़ कर अपना घर बचा लिया, क्योंकि कुछ पाने के लिए झुकना जरूरी है. उसे यह बात समझ में आ गई कि नीचे झुकने से कद छोटा नहीं होता बल्कि ऊंचा हो जाता है. उन सब में इल्म की कमी से एक एहसासेकमतरी था, उसे छिपाने के लिए वे सबा में कमियां ढूंढ़ते थे. आज उस ने उन के साथ कदम से कदम मिला कर उन के खयालात बदल दिए.

दरअसल, एक रंग पर दूसरा रंग मुश्किल से चढ़ता है. नया रंग चढ़ाने को पुराने रंग को धीरेधीरे हलका करना पड़ता है. दूसरी शाम नईम की पसंद के मुताबिक तैयार हो कर वह उस के दोस्त के यहां खुशीखुशी मिलने जा रही थी. यह नई जिंदगी का खुशगवार आगाज था जिस का उजाला उस के ख्वाबों में नए रंग भरने वाला था.

फूल सी दोस्ती- भाग 2: क्यों विराट की गर्लफ्रैंड उसका मजाक बनाती थी

और फिर मंजरी के ‘‘ओह…नौटी गर्ल’’ कहते ही दोनों हंस पड़े. ‘‘आप से एक बात पूछूं?… पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो हमेशा हीरोइन के पीछे भागता दिखाई देता था. क्या सच में ऐसा तब भी होता था? आजकल की लड़कियां तो अपने पीछे भगाभगा कर थका ही देती हैं. अब मुझे ही देख लीजिए,’’ कह विराट ने अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए मंजरी की ओर इस तरह देखा कि उस की मासूमियत पर स्नेह बरस पड़ा मंजरी के मन में.

‘‘विराट, यह जमाने पर नहीं व्यक्ति पर निर्भर करता है. मैं ने तो किसी को अपने पीछे भागने का मौका ही नहीं दिया कभी. शिशिर के लिए प्यार महसूस करते ही बिना समय गंवाए उसे बता दिया था मैं ने तो. जब मिलती थी तब भी पटरपटर बोलती रहती थी. वैसे शिशिर क्या मैं तो किसी के सामने छिपा ही नहीं सकती अपनी फीलिंग्स. चाहे फिर वे मेरे बच्चे हों या दोस्त,’’ थोड़ा भावुक हो कर मंजरी बोली. ‘‘वही तो, मैं भी नहीं रह सका चुप. अपरोक्ष रूप से ही सही बता ही दिया रिया को कि कितना बेताब हूं उस के लिए मैं. अब मैं भी तो सुनना चाहता हूं कि मेरे लिए वह क्या महसूस करती है?’’ बेचैन सा होता हुआ वह बोला.

‘‘मैं ने बहुत कुछ सीखा है अपने बड़बोले स्वभाव से. मैं तुम्हें बता दूंगी कि रिया से कैसे उस के दिल की बात उगलवानी है तुम्हें… ठीक?’’ ‘‘डील?’’

‘‘डील.’’ और दोनों ने हंसते हुए एकदूसरे से हाथ मिलाया. मोबाइल नंबरों के आदानप्रदान के बाद मंजरी घर की ओर चल पड़ी.

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विराट दिल्ली में स्थित एक इंटरनैशनल कंपनी में वाइस प्रैसिडैंट था. उस के मातापिता मुंबई में रहते थे. यों तो विराट बहुत बातूनी था, पर कम ही लोग उस के दिल को छू पाते थे. मंजरी के अपनेपन और दोस्ताना व्यवहार ने विराट के दिल में जगह बना ली और दोनों के बीच फोन और व्हाट्सऐप के द्वारा बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. कुछ ही दिनों में वे इतना घुलमिल गए कि अपनी रोज की बातें शेयर करने लगे. विराट जब भी मंजरी से मिलता, अपने मन में हलचल मचा रहे कई सवाल पूछ डालता. मंजरी भी आराम से उस के सवालों का जवाब देती. जब कभी वह मंजरी से अपने और रिया के संबंधों को ले कर कोई सवाल करता तो मंजरी की प्रेम के विषय में इतनी गहरी समझ देख कर हैरान रह जाता.

वह जान गया था कि 60 की उम्र के आसपास पहुंच कर भी प्यार जैसे शब्द बेमानी नहीं होते. यह अलग बात है कि उस सोच में एक परिपक्वता आ जाती है. मंजरी से मिला स्नेह और मार्गदर्शन जहां विराट को बेहद सुखद अनुभूति देता, वहीं मंजरी भी विराट के उत्साह से प्रभावित हो कर एक नई शक्ति महसूस करती. धीरेधीरे वे दोनों एक अनाम से रिश्ते में बंध गए थे. लगभग एक महीने की बिजनैस टूअर से शिशिर जब घर लौटे तो मंजरी बदलीबदली सी लगी. पहले की तुलना में वह काफी खुश दिख रही थी. लाल कैप्री के साथ क्रीम कलर का लंबा सा कुरता पहन, अपनी फैवरिट परफ्यूम लगाए घर में फुदकती हुई वह 25 साल पुरानी मंजरी लग रही थी.

शिशिर सूटकेस रखने जब अपने कमरे में पहुंचा तो बैड पर अधलेटा विराट मंजरी के लैपटौप पर कुछ करने में व्यस्त था. इस से पहले कि उन की कुछ बात होती, मंजरी सब के लिए कौफी ले कर आ गई और विराट का अपने दोस्त के रूप में शिशिर से परिचय करवा दिया.

‘‘मंजरीजी मेरी हमउम्र न सही, पर यह रिश्ता मुझे भी दोस्ती जैसा ही लगता है. आप को ऐतराज न हो तो मैं भी इन्हें अपनी दोस्त कह कर बुला सकता हूं?’’ विराट ने शिशिर से बड़ी आत्मीयता से पूछा. ‘‘सिर्फ दोस्त कह कर बुलाओगे? अरे भई, दोस्त समझो इन्हें. लगता है तुम में इन्हें एक ऐसा साथी मिल गया कि हमारी मैडम किट्टी और पड़ोस की सहेलियों से मिलने तक नहीं जा पातीं. अब बाहर जाया करूंगा तो मंजरी की चिंता नहीं होगी मुझे. वैलडन यंग मैन,’’ शिशिर ने विराट की पीठ थपथपा दी.

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कौफी की चुसकियों के साथ तीनों की बातचीत का शोर घर में सुनाई देने लगा. रिया को ले कर विराट का उतावलापन देख मंजरी कभीकभी खूब हंसती. विराट चाहता था कि रिया जल्द से जल्द उसे अपने मन की बात कह दे और यह रिश्ता किसी मंजिल तक पहुंच जाए. मंजरी ने विराट को रिया के सामने थोड़ा सीमित रहने का सुझाव दिया, ताकि रिया स्वयं को टटोलना शुरू करे. मंजरी की बात मान विराट ने अब बारबार रिया को फोन और मैसेज करना बंद कर दिया. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी वह सोचसमझ कर स्टेटस डालने लगा. अपने मन की बात मन ही में रखने से विराट को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, पर इस का परिणाम वैसा ही निकला जैसा वह चाहता था.

उस दिन कौफी शौप में विराट जानबूझ कर रिया को औफिस की बोझिल बातें सुनाने लगा. कुछ देर चुपचाप सुनने के बाद बोर होते हुए रिया बोली, ‘‘बस करो न अब… प्लीज, हमेशा की तरह अपने शौक, अपने बचपन और कालेज की शैतानियों की बात करो न.’’ ‘‘क्यों?’’ अनजान बनते हुए विराट ने पूछा.

‘‘क्यों क्या? अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में जानना.’’ ‘‘रियली… पर कुछ तो वजह होगी इस की?’’ विराट को मंजिल करीब लग रही थी.

‘‘विराट… बड़े खराब हो तुम…’’ ‘‘अरे, मुझ पर गुस्सा? ‘लव यू’ तुम से नहीं बोला जा रहा और नाराजगी मुझ पर.’’

‘‘सब बातें कहने की नहीं होतीं. क्या मैं ने कभी तुम्हें प्यार कबूलने को कहा? तुम्हारे स्टेटस से आइडिया लगा लिया न? और तुम हो कि…’’ ‘‘पर तुम तो स्टेटस भी हमेशा अपने मम्मीपप्पा की नन्ही सी गुडि़या बन कर डालती हो, एकदम बच्चों की तरह. कभी इशारा भी दिया कि मैं पसंद हूं तुम्हें?’’

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