मुरादनगर श्मशान घाट हादसा: भ्रष्टाचार पर जीरो टौलरैंस की अंत्येष्टि

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ईटैंडरिंग योजना पर अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि ठेके देने की पारदर्शी व्यवस्था बन सकेगी, जिससे भ्रष्टाचार खत्म होगा, पर सरकार के दूसरे तमाम दावों की तरह यह दावा भी खोखला निकला. मुरादनगर हादसा ‘श्मशान में दलाली’ का सबसे बड़ा सुबूत है. यह योगी सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टौलरैंस नीति के सच को भी सब के सामने ला रहा है. भ्रष्टाचार करने वालों ने श्मशान की दीवारों पर तमाम ‘सूक्ति वाक्य’ लिखवाए जरूर थे, पर उन पर खुद अमल नहीं किया.

साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी, तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उन की सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टौलरैंस की नीति पर काम करेगी. पर भ्रष्टाचार कहीं भी कम नहीं हुआ, उलटे जब लोगों ने भ्रष्टाचार की शिकायत की तो उनकी बात सुनी नहीं गई. जिसने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की उसके ही खिलाफ सरकार ने मुकदमे तक कायम करा दिए. सरकारी स्कूल में मिड डे मील घोटाले और लापरवाही की शिकायत करने पर मिर्जापुर जिले में पत्रकार के खिलाफ मुकदमा कायम कर के जेल भेज दिया गया.

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नगरनिगम में आयुक्त और मेयर के बीच का विवाद भी भ्रष्टाचार के ही चलते था. मेयर की शिकायत के बाद आयुक्त का तबादला किया गया था. सरकार इन मामलों को गंभीरता से नहीं ले रही थी.

गाजियाबाद के मुरादनगर में श्मशान घाट के 70 फुट लंबे गलियारे की एक महीने पहले बनी छत (लिंटर) पहली ही बारिश में गिरी तो उस के नीचे 25 आदमी दब कर मर गए और 15 घायल हुए.

एक कहावत है कि ‘गंदगी को कितना भी दबाने की कोशिश कीजिए वह बाहर आ ही जाती है’. मुरादनगर श्मशान घाट हादसे में भी यही हुआ. इस हादसे ने योगी सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टौलरैंस नीति का खुलासा कर दिया. सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि सरकार बनने के 3 साल बाद भी भ्रष्टाचार खत्म क्यों नहीं हुआ? सरकार अब मरने वालों को 10 लाख रुपए का नकद मुआवजा और रहने के लिए घर देने का दिखावा कर के अपने अपराध को कम करने की कोशिश कर रही है. सरकार के पास अब यह कहने का मौका नहीं है कि उत्तर प्रदेश भ्रष्टाचार मुक्त राज्य है.

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ऐसे मिलता है ठेका

मुरादनगर नगरपालिका के चेयरमैन विकास तेवतिया हैं. मुरादनगर के उखलारसी अंत्येष्टि स्थल के निर्माण का ठेका ठेकेदार अजय त्यागी को दिया गया था. अजय त्यागी को चेयरमैन विकास तेवतिया का करीबी माना जाता है. अजय त्यागी ने जिले के दूसरे अफसरों से भी अच्छे संबंध बनाए हैं. इस के दम पर ही उसे मुरादनगर उखलारसी अंत्येष्टि स्थल के निर्माण ठेके के साथसाथ शहर में दूसरी जगह काम करने का ठेका भी मिला हुआ है.

एक साल पहले उखलारसी अंत्येष्टि स्थल के निर्माण का ठेका 55 लाख रुपए में दिया गया था. इस के निर्माण में 60 लाख रुपए की लागत आई थी. अक्तूबर महीने में अंत्येष्टि स्थल पर बने भवन और गलियारे पर छत (लिंटर) डाली गई थी. दिसंबर महीने में निर्माण का काम पूरा हो गया था. निर्माण के बाद जांच अधिकारी ने भवन की जांच कर के क्वालिटी रिपोर्ट में सभी मानको को दुरुस्त बताया था. क्वालिटी रिपोर्ट सही पाए जाने के बाद भवन को खोल दिया गया था. अभी इस का लोकार्पण नहीं किया गया है.

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3 जनवरी, 2021 को अंत्येष्टि स्थल ढह गया. 60 लाख रुपए का निर्माण जनता के लिए खोले जाने के बाद 15 दिन में ही ढह गया. मंडलायुक्त अनीता मेश्राम के निर्देश पर मुरादनगर नगरपालिका की अधिशासी अधिकारी निहारिका चौहान, ठेकेदार अजय त्यागी, जेई सीपी सिंह, सुपरवाइजर आशीष के खिलाफ गैरइरादतन हत्या, भ्रष्टाचार और लापरवाही का मुकदमा आईपीसी 1860 की धारा 304, 337, 338, 427 और 409 के तहत अपराध संख्या 0006 में कायम किया गया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका के तहत मुकदमा कायम करने का आदेश दिया गया है. सरकार ने लिखापढ़ी में जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम कराया, पर जिन लोगों के इशारे पर ठेके दिए जाते हैं, उन के खिलाफ कुछ भी नहीं किया गया.

शोकसभा में हुआ हादसा

मुरादनगर के बंबारोड संगम विहार के बाशिंदे 70 साल के जयराम की मौत रविवार, 3 जनवरी, 2021 को हो गई थी. जयराम के बेटे दीपक ने गाजियाबाद के मुरादनगर थाने मे दी गई अपनी तहरीर में बताया कि वह अपने पिता का अंतिम संस्कार करने उखलारसी अंत्येष्टि स्थल आया था. साथ में गांवमहल्ले के कुछ लोग और रिश्तेदार भी थे. इन में से कुछ लोग बरसात से बचने के लिए श्मशान घाट में नए बने भवन के नीचे खड़े थे. वहीं पर शोक सभा होने लगी थी.

दोपहर के तकरीबन 12 बजे थे. इसी बीच बरसात के चलते वहां बना लिंटर भरभरा कर गिर गया, जिस में कई लोगों की मौत हो गई और बहुत से लोग घायल हो गए. कई वाहन भी इस मलबे में दब गए. दीपक ने पुलिस से जांच करने और इंसाफ दिलाने की मांग की.

घटिया निर्माण पहले भी होता रहा है, पर यह पहली बार हुआ है जब नई बनी इमारत एक महीने में ही ढह गई और उस के नीचे आ कर 25 लोगों की मौत हो गई. मुरादनगर श्मशान घाट पर जब यह निर्माण हो रहा था, उसी समय घटिया निर्माण की शिकायत की गई थी. पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष रेखा अरोड़ा के पति समाजसेवी राधे अरोड़ा और सभासद दिनेश कुमार शर्मा ने नगरपालिका के अधिकारियों को निर्माण कार्य में घटिया सामान इस्तेमाल किए जाने की शिकायत की थी.

ठेकेदार अजय त्यागी को राजनीतिक सिफारिश के बाद ठेका मिला था. इस वजह से नगरपालिका के अफसर घटिया निर्माण की शिकायत के बाद भी खामोश रहे.

दलाली की जांच

मुरादनगर श्मशान घाट हादसे में घटिया निर्माण की जांच का काम भी वहीं के अफसरों को दिया गया है, जिससे साफ है कि मामले में कोई फंसेगा नहीं. कुछ दिन बाद मामला निपटा दिया जाएगा. सरकार ने अपना दामन बचाने के लिए कड़े कदम उठाने का दावा करते हुए इस घटना के जिम्मेदार छोटे कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा कायम करने, रासुका लगाने और सरकारी पैसे को उन से वसूलने का बड़ा वादा किया है, पर इस के बाद भी भ्रष्टाचार खत्म होगा, यह नहीं कहा जा सकता. जब तक ठेकों में राजनीतिक दखलअंदाजी नहीं बंद होगी, तब तक यह सब चलता रहेगा. सरकारी कर्मचारियों को मोहरा बना कर नेता मोटी कमाई करते रहेंगे.

श्मशान घाट हादसे में घटिया निर्माण की जांच के लिए जिले के डीएम अजय शकर पांडेय ने जीडीए और पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर की अध्यक्षता में जांच कमेटी का गठन किया है. जांच के 2 बिंदु हैं कि क्या निर्माण के सामान की क्वालिटी घटिया थी और जब इस बात की शिकायत मिली थी, तब उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया.

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वैसे, सरकार की तरफ से अब बड़ेबड़े दावे किए जा रहे हैं कि कोई भी जिम्मेदार बचने नहीं पाएगा. सांसद और केंद्रीय मंत्री रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ने कहा कि जांच में किसी को बचाया नहीं जा सकेगा. कमिश्नर और एडीजी स्तर के अधिकारी जांच कर रहे हैं.

आम आदमी पार्टी के सांसद और उत्तर प्रदेश के प्रभारी संजय सिंह कहते हैं, ‘भाजपा श्मशान में दलाली वाले काम कर रही है. मुरादनगर की घटना ने यह बात साफतौर पर साबित कर दी है. अभी तक भाजपा इस बात को नहीं मान रही थी. वह उत्तर प्रदेश की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को मानने के लिए तैयार नहीं थी. मुरादनगर की घटना ने सुबूत दे दिया है. केवल कर्मचारियों की नहीं, बल्कि सरकार की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए.’

किसान आंदोलन जातीयता का शिकार

पिछले 2 लोकसभा चुनावों में किसानों में ऊंची जातियों के बड़े वर्ग ने जाति और धर्म के असर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सब से ज्यादा समर्थन दिया, जिस के बाद केंद्र की मोदी सरकार को यह लगा कि कृषि कानूनों के जरीए खेती के निजीकरण का यही सब से सही समय है. जाति और धर्म में फंसा किसान कृषि कानूनों के गूढ़ रहस्यों को समझ नहीं पाएगा. कुछ किसान अगर विरोध पर उतरे भी तो उन की आवाज को दबाना मुश्किल नहीं होगा.

अंगरेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का पालन करते हुए केंद्र सरकार खेती में निजीकरण की आड़ में ईस्ट इंडिया वाले कंपनी राज की वापसी के लिए कदम बढ़ा चुकी है.

केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन जातीय राजनीति का शिकार हो गया. कृषि कानून पूरे देश में लागू होंगे. इस का असर पूरे देश के किसानों पर पड़ेगा, पर किसान आंदोलन में हिस्सा लेने वाले किसानों को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कृषि कानूनों का असर केवल पंजाब व हरियाणा के किसानों पर पड़ेगा.

समझने वाली बात यह है कि हरियाणा और पंजाब के किसानों ने ही इस आंदोलन में पूरी मजबूती से हिस्सा क्यों लिया? बाकी देश के किसानों की हाजिरी केवल दिखावा मात्र रही.

8 दिसंबर, 2020 को किसान आंदोलन के पक्ष में भारत बंद उन राज्यों में कामयाब रहा, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं थी. जिन राज्यों में भाजपा की सरकार रही, वहां यह आंदोलन ज्यादा कामयाब नहीं रहा.

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कृषि कानूनों में जो सब से बड़ा डर छिपा है, वह एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का है. निजी मंडियों के आने से सरकारी मंडियों के बंद हो जाने का खतरा किसानों को दिख रहा है, जिस से यह लग रहा है कि सरकार एमएसपी को धीरेधीरे बंद करने की योजना में है.

नीति आयोग ने साल 2016 में  11 राज्यों में किसानों के बीच एमएसपी को ले कर एक सर्वे किया था, जिस में यह पता चला कि एमएसपी की जानकारी भले ही 81 फीसदी किसानों को हो,  पर इस का फायदा देशभर के केवल 6 फीसदी किसानों को ही मिलता है.

उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में 100 फीसदी किसानों को एमएसपी का पता था. एमएसपी का सब से ज्यादा फायदा पंजाब और हरियाणा के किसानों को ही मिलता रहा है.

1965-66 में जब एमएसपी योजना शुरू  हुई थी, तब यह केवल धान और गेहूं की फसल पर मिलती थी. धीरेधीरे अब 23 फसलों की खरीद पर एमएसपी मिलने लगी है. इन फसलों में ज्वार, कपास, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन और तिल जैसी फसलें शामिल हैं.

एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का मतलब यह होता है कि अगर फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाए, तब भी सरकार तय एमएसपी पर ही किसानों से फसल खरीदेगी, जिस से किसान को नुकसान न हो.

सरकार के कानून इसलिए फेल नहीं होते कि वे गलत तरह से बने होते हैं, बल्कि वे इसलिए फेल होते हैं, क्योंकि उन का क्रियान्वयन गलत तरह से किया जाता है. एमएसपी और मंडियों के साथ भी यही हो रहा है. सरकार को इस में सुधार करना चाहिए था, न कि इस को बंद करने की दिशा में काम करना चाहिए था.

जातपांत है हावी

राजनीतिक विश्लेषक और जन आंदोलन चलाने वाले प्रताप चंद्रा कहते हैं, ‘‘लोकसभा के 2 चुनावों साल 2014 और 2019 में किसानों ने बड़ी तादाद में भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया था. अगर जातीय आधार पर देखें, तो इन में ऊंची जातियों के किसानों का वोट फीसदी सब से अलग था.

‘‘भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने जब यह सम?ा लिया कि बहुसंख्यक किसान उस के पक्ष में हैं, तो उस ने खेती को प्रभावित करने वाले

3 कानून लागू करने का फैसला कर लिया. उसे यह पता था कि केवल हरियाणा और पंजाब के किसान आंदोलन को लंबे समय तक नहीं चला पाएंगे. इस वजह से यह समय कृषि कानूनों को लागू करने के लिए सब से मुफीद लगा.’’

साल 2014 के लोकसभा चुनावों में पंजाब के किसानों ने भाजपा की अगुआई वाले राजग को 52 फीसदी वोट दिए. ये वोट भी भाजपा की जगह उस के सहयोगी अकाली दल के चलते मिले थे.

साल 2019 के लोकसभा चुनावों में ये वोट घट कर 32 फीसदी रह गए. हरियाणा के किसानों ने राजग यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को साल 2014 में 31 फीसदी वोट दिए और साल 2019 में ये वोट बढ़ कर 59 फीसदी हो गए.

बात केवल पंजाब और हरियाणा की नहीं है, बाकी देश के प्रमुख राज्यों में भी किसानों का सब से बड़ा समर्थन राजग को ही मिला.

बिहार में साल 2014 में 37 फीसदी से बढ़ कर 50 फीसदी हो गया. इसी तरह से उत्तर प्रदेश में 42 फीसदी से  54 फीसदी, गुजरात में 55 फीसदी से  62 फीसदी, राजस्थान में 54 फीसदी से 60 फीसदी, उत्तराखंड में 60 फीसदी से 65 फीसदी, मध्य प्रदेश में 55 फीसदी से 59फीसदी, महाराष्ट्र में साल 2014 और 2019 के चुनावों में 54 फीसदी वोट मिले, छत्तीसगढ़ में साल 2014 के लोकसभा चुनावों में किसानों के राजग को 52 फीसदी वोट मिले और 2019 में वे वोट घट कर 46 फीसदी रह गए.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ‘किसान सम्मान निधि’ के असर से किसानों ने राजग को ज्यादा वोट दिए. इस के साथ ही भाजपा के पक्ष में ऊंची जातियों के होने से राजग को किसानों के वोट ज्यादा मिले.

भारत के ज्यादातर किसान बेहद गरीब हैं. उन के लिए सालाना 6,000 रुपए की बहुत अहमियत होती है.

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पंजाब की किसान राजनीति

भाजपा को पंजाब के किसानों ने कभी भी समर्थन नहीं दिया. राजग के सहयोगी अकाली दल को पंजाब के किसान समर्थन देते थे. भाजपा की केंद्र सरकार ने जब 3 कृषि कानून बनाए तो उस के विरोध में अकाली दल कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री हरसिमरत कौर ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

पंजाब में अकाली दल को केवल किसानों का समर्थन ही हासिल नहीं है, बल्कि अकाली दल प्रमुख प्रकाश सिंह बादल का परिवार खेती से ही अपना कारोबार चलाता है. किसानों को अकाली दल का समर्थन इस वजह से मिलता था कि वह किसानों की परेशानियों को हल करने की ताकत रखता था.

भाजपा अब पंजाब में अकाली दल को कमजोर करना चाहती है. ऐसे में वह अकाली दल की बातें नहीं मानना चाहती है. किसान आंदोलन के समझते से बाहर होने के बाद अकाली दल की कीमत किसानों में घट जाएगी.

भाजपा पूरे देश के किसानों को यह संदेश देने में कामयाब रही कि कृषि कानूनों का विरोध केवल पंजाब के किसान ही कर रहे हैं. ऐसे में पूरे देश के किसानों को एकजुट होने से रोक लिया गया.

ऊंची जातियों के किसानों का समर्थन भाजपा के साथ होने से यह बात सम?ाने में भाजपा को आसानी रही. जिन थोड़ेबहुत किसान संगठनों ने आंदोलन को समर्थन देने का काम किया भी, उन को कई तरीकों से दबाव में ले लिया गया.

केंद्र की मोदी सरकार ने पूरे किसानों के मुद्दे को अपने प्रचार तंत्र के बल पर केवल पंजाब व हरियाणा के किसानों तक में सीमित कर के रख दिया. इस वजह से किसान आंदोलन पूरे देश के किसानों का आंदोलन नहीं बन सका.

किसान नेता केवल अपनी जाति और बिरादरी के बीच ही अपना असर रखते हैं. उन का कोई देशव्यापी संगठन नहीं है. किसान नेता राजनीतिक दलों के पिछलग्गू बन कर ही अपनी राजनीति चमकाने का काम करते हैं. 3 कृषि कानूनों के खिलाफ भी केवल 30-40 किसान दल ही एकजुट हुए, तब आंदोलन कर पाए. ज्यादातर किसान दलों की अपनीअपनी राजनीतिक विचारधारा है. ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार को इन के बीच तोड़फोड़ करना आसान हो जाता है.

आंदोलन से डरी सरकार

जब किसानों ने एकजुट हो कर सरकार से लड़ाई लड़ी थी, तब फैसला भी किसानों के पक्ष में आया था. तब राष्ट्रीय राजनीति में किसान और किसान नेताओं का मजबूत दखल होता था. कोई भी सरकार इन को नाराज नहीं करना चाहती थी.

चौधरी चरण सिंह ऐसे नेताओं में सब से प्रमुख थे. वे देश के प्रधानमंत्री भी बने थे. उन्होंने साल 1967 में भारतीय क्रांति दल बनाया था और साल 1974 में वे भारतीय लोकदल के नेता बने थे.

ऊंची जातियों के किसानों पर उन की मजबूत पकड़ थी. किसान राजनीति में वही किसान नेता कामयाब रहा है, जिस की पकड़ ऊंची जातियों के किसानों पर रही है.

चौधरी चरण सिंह ने ही साल 1978 में भारतीय किसान यूनियन यानी बीकेयू का गठन किया था. उन की मौत के बाद किसान राजनीति दरकिनार हो गई.

साल 1987 में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन को फिर से संगठित किया. उन्हें पता था कि इस संगठन को राजनीति से दूर रखना है. इस वजह से भारतीय किसान यूनियन गैरराजनीतिक संगठन के तौर पर काम करती रही.

किसान यूनियन की ताकत 80 के दशक में पूरे देश ने देखी थी. देश की राजधानी को बिजली की बढ़ी दरों को वापस लेना पड़ा था. किसानों की उस समय की तमाम मांगों को मान लिया गया था.

पर किसान यूनियन की ताकत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ ही खत्म हो गई. उत्तर प्रदेश में ही भारतीय किसान यूनियन का असर नहीं रहा. किसान आंदोलन में जब तक पूरे देश के हर वर्ग के किसान शामिल नहीं होंगे, तब तक उस का कामयाब होना मुश्किल है.

भारत के 2 बड़े राज्यों बिहार और उत्तर प्रदेश के किसानों के पास सब से कम मात्रा में खेत हैं. बिहार में प्रति किसान औसत 0.4 हैक्टेयर जमीन है. उत्तर प्रदेश के किसान के पास औसत 0.7 हैक्टेयर जमीन है.

इन 2 राज्यों से लोकसभा की  120 सीटें हैं. नए कृषि कानूनों का असर सब से ज्यादा इन दोनों राज्यों के किसानों  पर पड़ने वाला है. नए कृषि कानूनों में अमीर किसान और चंद उद्योगपतियों को फायदा होगा.  किसानों को बेहद नुकसान होगा.

देश में इन की संख्या 86 फीसदी है. जातीयता की बिसात पर उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान सरकार का विरोध करने से बच रहे हैं.

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उदासीन होता छोटा किसान

किसी भी कृषि सुधार कानून का फायदा छोटे किसानों को नहीं मिलता. ऐसे में वह सोचता है कि ऐसे कानून उस के लिए नहीं हैं और वह इस से उदासीन हो जाता है. हरित क्रांति हो या श्वेत क्रांति, दोनों का फायदा बड़े किसानों को हुआ.

इस के बाद की जनगणना साल 1971 में हुई थी, तो पता चला कि उन में भूमिहीन किसानों की तादाद बढ़ गई. कौंट्रैक्ट फार्मिंग का बुरा असर भी छोटे किसानों पर पड़ेगा. जिन लोगों के पास जमीन है, वे अपनी खेती कौंट्रैक्ट फार्मिंग करने वाले लोगों को दे देंगे तो छोटे किसान मजदूर कहां जाएंगे?

देशभर के किसान अभी भले ही कृषि कानूनों का विरोध नहीं कर पा रहे हों या उन को दिक्कतें सम?ा न आ रही हों, पर आने वाले दिनों में वे इस का विरोध जरूर करेंगे.

देश की माली हालत को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि खेती की बेहतरी के साथसाथ किसानों की बेहतरी का भी ध्यान रखा जाए. पंजाब और हरियाणा के किसान महंगे मोबाइल फोन और गाडि़यों को इस वजह से अपने साथ रखते हैं, क्योंकि वे अपने खेतों से कमाई करते हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान मजदूर इन के खेतों पर काम करते हैं.

पंजाब और हरियाणा के किसानों की तरह उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान तब तक जागरूक नहीं होंगे, जब तक उन्हें उन का हक नहीं मिल सकेगा.

कृषि कानूनों का फायदा पूरे देश के किसानों को हो, इस बड़ी सोच के साथ ऐसे कानून बनाने होंगे. कानूनों में सुधार की बात को नाक का सवाल नहीं बनाना चाहिए, तभी देश और देश की आर्थिक व्यवस्था में सुधार हो सकेगा. किसान और खेती को अलगअलग देखने से किसी तरह के सुधार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

उत्तर प्रदेश: गुस्सा जाहिर करती जनता

त्रेता युग के रामराज में सरकार के लोग वेशभूषा बदल कर जनता के दुखदर्द को राजा तक पहुंचाने का काम करते थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रामराज में जनता अब गुस्सा जाहिर करने लगी है. गुस्सा जाहिर करने के लिए जनता अपनी जान को भी दांव पर लगाने से परहेज नहीं कर रही है.

अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए लोग विधानसभा भवन और भाजपा कार्यालय के सामने आत्मदाह करने लगे हैं. आत्मदाह की आधा दर्जन घटनाएं इस का सुबूत हैं.

अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद प्रदेश में रामराज बनाने का दावा फेल हो चुका है. जनता की बात नहीं सुनी जा रही, जिस से भड़के लोग आत्मदाह का रास्ता चुन रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा भवन, लोकभवन और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय के बीच 200 मीटर की लंबी सड़क आत्मदाह का केंद्र बन गई है. हाई सिक्योरिटी जोन में विधानसभा के चारों तरफ 650 वर्गमीटर का विशेष निगरानी घेरा बनाया गया है. यहां के चप्पेचप्पे पर अत्याधुनिक साधनों से लैस पुलिस लगाई गई है.

पुलिस को गच्चा देने के लिए पीडि़त पक्ष ने आत्मदाह की जगह वहीं पर बड़ी मात्रा मे नींद की गोलियां खा कर जान देने की कोशिश शुरू कर दी. अक्तूबर महीने में विधानसभा भवन के सामने इस तरह की 6 घटनाएं घट चुकी हैं.

4 मामलों में आग लगा कर जान देने की कोशिश की गई, जिस में 2 औरतों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय अपनी दुखभरी दास्तान कहने के लिए हौट स्पौट बन गया है.

विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह की घटनाएं अनलौक 2 के बाद से तेज हुईं. 17 जुलाई को अमेठी की रहने वाली सोफिया और उस की बेटी ने खुद को आग लगा ली. सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान सोफिया की मौत हो गई.

13 अक्तूबर को महाराजगंज जिले की रहले वाली अंजलि तिवारी उर्फ आयशा ने भाजपा प्रदेश कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. जली अवस्था में पुलिस ने सिविल अस्पताल में भरती कराया, जहां उस की मौत हो गई.

19 अक्तूबर को लखनऊ के ही हुसैनगंज इलाके के रहने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती ने आत्मदाह करने की कोशिश की. इसी दिन बाराबंकी का रहने वाला परिवार भी आत्मदाह के इरादे से विधानसभा भवन के सामने पहुंचा था. उसे पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया था.

22 अक्तूबर को बेबी खान नामक औरत नींद की गोलियां खा कर बदहवास हालत में विधानसभा गेट के सामने पहुंची, पर पुलिस ने उस को भी पकड़ लिया था.

कोई नहीं सुनता दर्द

जैसेजैसे सरकार ने जनता की आवाज को सुनना बंद कर दिया है, वैसेवैसे इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. फिल्म ‘शोले’ में पानी की टंकी के ऊपर चढ़ कर बसंती से मिलने की जिद को सभी ने देखा था. अखिलेश सरकार में परेशान एक नौजवान विधानसभा भवन के सामने पेड़ पर चढ़ कर फांसी लगाने की जिद कर रहा था.

आत्मदाह करने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती डायमंड डेरी कालोनी में जावेद के घर में किराए के मकान में रहता था. वह फोटोकौपी मशीन का कारोबार करता था. साल 2013 से मकान के किराए को ले कर विवाद चल रहा था.

‘तालाबंदी’ के दौरान बेरोजगारी बढ़ने से सुरेंद्र बेहद परेशान था. ऐसे में जब मकान मालिक ने उस का सामान घर से निकाल कर सड़क पर फेंक दिया, तब आर्थिक तंगी में उसे विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का रास्ता ही सम झ आया.

लखनऊ के सिविल अस्पताल में भरती सुरेंद्र चक्रवर्ती ने बताया, ‘मेरा किराएदारी का मुकदमा चल रहा था. ऐसे में मेरे सामान को जब घर से बाहर फेंक दिया गया, तो मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था. पुलिस भी मेरी बात सुन नहीं रही थी. वह मकान मालिक के दबाव में थी. मैं कब तक चुप रहता.

‘मु झे लगा कि अब जान की कीमत पर ही सही पर गूंगेबहरे प्रशासन के सामने अपनी बात कहनी है. मेरे घर से विधानसभा की दूरी एक किलोमीटर थी. मु झे लगा कि अगर सरकार के सामने अपनी आवाज उठाई जाए तो शायद वह मेरी पीड़ा सुन सकेगी. ऐसे में विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का फैसला किया.’

बाराबंकी का रहने वाला नसीर और उस का परिवार भी विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने पहुंचा था, पर पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया. नसीर सरकारी जमीन पर दुकान लगाता था. नगरनिगम ने दुकान तोड़ दी. परेशान नसीर को कुछ सम झ नहीं आया, तो सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उस ने यह रास्ता चुना था.

लखनऊ के राजाजीपुरम की रहने वाली बेबी खान का भाई अपराधी था. पुलिस उसे पकड़ने घर जाती थी. जब वह नहीं मिलता था, तो पुलिस घर वालों के साथ गालीगलौज और बदतमीजी करती थी. पुलिस की इस हरकत से बचने के लिए उस ने यह कदम उठाया.

लखनऊ के ही सिविल अस्पताल में भरती बेबी खान ने बताया, ‘मेरे भाई को पुलिस परेशान कर रही थी. उसे पुराने मुकदमों की धमकी दे कर जेल भेजने के लिए पकड़ने की कोशिश कर रही थी. भाई का मेरे घर किसी भी तरह से कोई आनाजाना नहीं था. इस के बाद भी हर दूसरेतीसरे दिन पुलिस हमारे घर पहुंच जाती थी. पुलिस अकसर रात को घर जाती थी.

‘हम जिस महल्ले में रहते हैं, वहां बदनामी होती थी. हम ने कई बार पुलिस को सम झाने की कोशिश की कि हम से उस का कोई मतलब नहीं है. ऐसे में उलटे पुलिस हमें ही धमकी दे रही थी. ऐसी बदनामी से बचने के लिए ही हम ने विधानसभा और भाजपा के औफिस के सामने जान देने का संकल्प ले लिया था.’

महाराजगंज की रहने वाली अंजलि तिवारी उर्फ आयशा छत्तीसगढ की रहने वाली थी. महाराजगंज के अखिलेश के साथ उस की शादी हुई. इस के बाद दोनों में विवाद हो गया और वे अलग हो गए.

अंजलि ने मोहम्मद आलम के साथ निकाह किया और आयशा बन कर उस के साथ रहने लगी. कुछ दिन के बाद मोहम्मद आलम नौकरी करने अरब चला गया, तो उस के घर वालों ने आयशा को ससुराल से निकाल दिया.

अंजलि ने पुलिस में शिकायत की, तो पुलिस ने सुनी नहीं. लिहाजा, उस ने आत्मदाह करने का फैसला लिया.

युद्ध सी तैयारी

आत्मदाह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस को युद्ध की सी तैयारी करनी पड़ी है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के सामने आत्मदाह और जान देने की घटनाओं को रोकने के लिए हर 10 कदम पर पुलिस लगा दी गई है.

पुलिस कमिश्नर सुजीत कुमार पांडेय बताते हैं, ‘इस क्षेत्र में आनेजाने वालों पर नजर रखी जा रही है. पुलिस के साथ अग्निशमन वाहन, आग बु झाने के उपकरण, कंबल और एंबुलैंस का इंतजाम किया गया है. इस के साथ ही सभी थानों को हाई अलर्ट भेजा गया है, जिस में आत्मदाह की धमकी देने वालों की सूचनाएं जमा करने और जरूरी कार्यवाही करने के लिए कहा गया है.’

विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह जैसी घटनाओं को रोकने के लिए 18 पुलिस टीमों को तैनात किया गया है. इस के अलावा 50 कंबल, 15 अग्निशमन उपकरण, 4 दोपहिया वाहन, 3 चारपहिया वाहन, एक अग्निशमन वाहन और एक एंबुलैंस वाहन तैनात किया गया है.

विधानसभा भवन लखनऊ के चारबाग से हजरतगंज मुख्य मार्ग पर बना है. मुख्य सड़क मार्ग होने के चलते यहां पर यातायात खूब रहता है. अब यह मार्ग रात के समय बंद कर दिया गया है. सुबह 6 बजे से यह मार्ग यातायात के लिए खोला जाता है. शनिवार और रविवार को यह रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया गया है.

बढ़ रहा है असंतोष

वरिष्ठ पत्रकार योगेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘सभी घटनाओं की विवेचना करें तो एक बात साफतौर पर दिखती है कि व्यवस्था के प्रति जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है. लोगों को सम झ नहीं आ रहा है कि वह किस से अपनी बात कहे. थानों में पुलिस अपनी मनमानी करती है. कई बार वह आरोपी के साथ मिल कर पीडि़त के ऊपर ही दबाव बनाने लगती है. अपराध की तमाम घटनाओं में यह बात सामने आती है.

‘उन्नाव के चर्चित रेप कांड, जिस में भाजपा के विधायक रहे कुलदीप सेंगर पर आरोप था, में भी जब उन्नाव की पुलिस ने लड़की की बात नहीं सुनी, तो लड़की ने मुख्यमंत्री आवास के पास आत्मदाह करने की कोशिश की थी. उस के बाद उस के मामले में पुलिस ने सुनवाई शुरू की थी.

‘ये घटनाएं देखदेख कर दूसरे परेशान लोगों को भी यही रास्ता आसान लगता है, जिस से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं.’

4 पीएम अखबार के संपादक संजय शर्मा कहते हैं, ‘पुलिस नहीं सुनती तो लोग अपने जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों, सांसद और विधायक के पास फरियाद ले कर जाते हैं. पिछले दिनों पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग के 2 फोन ओडियो वायरल हुए, जिन में उन्होंने पीडि़तों की बात नहीं सुनी. उन्हें बुराभला कहा. वे पीडि़त दोनों मामलों में अपने परिजनों के अस्पताल में भरती होने का दर्द बता कर मदद मांगने गए थे.

‘जब पीडि़त जनता की बात नहीं सुनी जाती तो उसे अपनी बात सुनवाने के लिए यह रास्ता ही दिखता है, जिस की वजह से इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं.’

मनोविज्ञानी समाजसेवी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘इस तरह के मामलों में जिस तरह से मीडिया रिपोर्टिंग करने लगी है, उस में भी संवदेनशीलता की जरूरत है. मीडिया का समाज पर बहुत असर पड़ता है. इन घटनाओं को देख कर लगता है कि अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का यह सब से आसान रास्ता है.

‘अगर लोगों को शुरुआती लैवल पर सुन लिया जाए और परेशानी को दूर कर दिया जाए, तो लोग ऐसे कदम कम उठाएंगे.’

लोकतंत्र से गैंगरेप

हाथरस में गैंगरेप की घटना को प्रदेश सरकार के हठ ने देश के सामने ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ सा बना दिया. लड़की की चिता की राख भले ही बुझ गई हो, पर इस से भड़का विरोध ठंडा नहीं पड़ेगा. कोर्ट से ले कर बिहार के चुनाव तक तमाम सवाल भाजपा को सपने में भी डराते रहेंगे.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ‘ठाकुरवाद’ को ले कर पक्षपात करने का आरोप गहरा होता चला जा रहा है. कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद के बाद हाथरस कांड में यह साबित हो गया है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठे रहना भाजपा के लिए नुकसानदायक होगा.

उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक एससी समाज की लड़की के साथ दंबगों द्वारा बाजरे के खेत में सुबहसुबह किया गया गैंगरेप भले की समाज की आंखों के सामने नहीं हुआ, पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने सब की आंखों के सामने लड़की की लाश को जबरन जला कर ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ किया है.

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गैंगरेप की शिकार हाथरस की रहने वाली 20 साल की उस लड़की को गंभीर हालत में 28 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती कराया गया था जहां अगले दिन उस की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने मौत के इस राज को दफन करने के लिए लड़की की लाश उस के घर वालों को नहीं सौंपने का फैसला किया. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल से ही लड़की की लाश को अपने कब्जे में ले लिया. घर वालों को इस बात का डर पहले से हो रहा था. इस वजह से उन्होंने मीडिया में यह शिकायत करनी शुरू कर दी थी कि उत्तर पुलिस इंसाफ नहीं कर रही है.

उस लड़की के साथ 14 सितंबर को गैंगरेप से ले कर 28 सितंबर तक अस्पताल में जिस तरह से उस के साथ लापरवाही की जा रही थी, उस से लड़की के परिवार वालों को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर भरोसा नहीं रह गया था. यही वजह थी कि वे हाथरस से 200 किलोमीटर दूर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लड़की को इलाज के लिए ले कर गए. उन को पता था कि अगर हाथरस से 400 किलोमीटर दूर लखनऊ जाएंगे तो वहां उन के हालात को किसी के सामने नहीं आने दिया जाएगा.

दिल्ली में मीडिया की चर्चा में आने के बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरी तानाशाही की. लाश को ले कर एंबुलैंस सीधे लड़की के गांव के लिए निकल गई. अस्पताल में ही उस के परिवार वालों को लडकी की लाश देखने तक नहीं दी गई. लड़की के परिवार के साथ मीडिया की कुछ गाड़ियों ने एंबुलैंस का पीछा किया.

लड़की के भाई संदीप ने कहा, ‘हम लोगों को चेहरा तक नहीं दिखाया. उलटा भारी पुलिस बल उन्हें रोकने के लिए लगा दिया. पुलिस ने जानवर का रूप ले लिया था और वह दरिंदों के साथ खड़ी हो गई. मां अपनी बेटी की लाश देखना चाहती थी और वह पुलिस से गिड़गिड़ाती रही, पर पुलिस ने मुंह तक नहीं देखने दिया. मां आंचल फैला कर भीख मांगती रही पर पुलिस ने संवेदनहीनता की सारी हदें पार दीं.’

और भी दर्द दिया

हाथरस तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पुराने रास्ते का इस्तेमाल किया, जबकि लड़की के परिवार वाले और मीडिया दूसरे रास्ते से गांव पहुंच रहे थे. एंबुलैंस में लाश ले कर पुलिस जब लड़की के घर के सामने से गुजर रही थी तो वहां मौजूद उस के घर वालों ने गाड़ी को बीच में रोक लिया.

लड़की की मां और उस की भाभी गाड़ी के ऊपर ही सिर पीटपीट कर रो रही थीं. मां का कहना था, ‘हम बेटी की अंतिम क्रिया से पहले उस को नहला कर नए कपड़े पहना कर हलदी लगाने की रस्म अदा करने के बाद अंतिम संस्कार करेगे.’

पर पुलिस यह बात मानने को तैयार नहीं थी. यही नहीं पुलिस लड़की की भाभी की इस बात को भी सुनने को तैयार नहीं थी कि लड़की के पिता और भाई दिल्ली से आ जाएं तब कोई फैसला हो. पुलिस ने लड़की के घर वालों की बात तो सुनी ही नहीं, बल्कि वह घर वालों को जबरन साथ ले जाना चाहती थी कि किसी तरह से वे उस का अंतिम संस्कार कर दें.

घर वाले जब इस के लिए तैयार नहीं हुए तो पुलिस लाश को ले कर सीधे गांव के बाहर श्मशान ले गई. अभी तक आधी रात का समय बीत रहा था और लड़की के पिता और मीडिया वहां तक नहीं पहुंचे थे. जो लोग पहुंचे थे उन को पुलिस ने गांव के बाहर ही रोक लिया था. गांव के अंदर आने वाली कच्ची सड़क को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था.

गांव में 13 थाने का पुलिस बल और बाकी अफसर तैनात कर दिए गए थे. पूरा गांव एक तरह से छावनी में बदल दिया गया था.

पैट्रोल से जला दी लडकी

हिंदू धर्म के रीतिरिवाजों में किसी  की अंतिम क्रिया से पहले लाश को नहलाया जाता है. इस के बाद उस को नए कपड़े पहना कर चिता पर लिटाया जाता है. चिता को लकड़ी से तैयार किया जाता है. किसी करीबी परिजन जैसे पिता, पति या भाई द्वारा चिता को अग्नि दी जाती है.

हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है कि अंतिम क्रिया विधिवत करने से मरने वाले की आत्मा को मुक्ति मिलती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदू धर्म के ब्रांड एंबैसेडर माने जाते हैं. इस के बाद भी योगी की पुलिस ने धर्म, रीतिरिवाज, मानवाधिकार, कानून किसी का भी साथ नही दिया.

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लड़की की लाश को जंगल के बीच रख कर उसे गोबर के उपलों और कुछ लकड़ियों से ढक दिया गया. पैट्रोल और मिट्टी का तेल छिड़क कर रात के तकरीबन ढाई बजे आग लगा दी गई. इस के बाद वहां किसी तरह पहुंचे मीडिया वालों को पुलिस ने यह नहीं बताया कि क्या जल रहा है?

अंतिम संस्कार को ले कर पीड़िता के चाचा और बाबा ने बताया कि जब पुलिस जबरन दाह संस्कार कर रही थी, तब उन्हें वहां जाने नहीं दिया गया. जो भी किया पुलिस ने किया था. जब कुछ देर के लिए पुलिस वहां नहीं थी, तो वे 2-4 उपले डालने के लिए गए थे. तभी पुलिस वालों ने उनकी फोटो खींच ली. अब इसी को पुलिस बता रही है कि परिवार वाले अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे.

कोर्ट ने लिया संज्ञान

लड़की की लाश जलने के साथ ही साथ उस की अस्थियां और चिता की राख तक को समय पर नहीं विसर्जित किया जा सका. बुलगढी गांव के बाहर सड़क किनारे चिता की राख का ढेर, अधजले उपले, बिखरी अस्थियां तीसरे दिन तक पड़ी रहीं. हिंदू रीतिरिवाजों के मुताबिक तीसरे दिन तक इन का विसर्जन हो जाना चाहिये. गुरुवार को अस्थियां विसर्जित नहीं की जाती हैं, पर शुक्रवार शाम तक अस्थियां विसर्जित नहीं की गई थीं. ऐसे में साफ है कि न केवल लड़की के जिंदा रहते उस की बेइज्जती की गई, बल्कि मरने के बाद भी कदमकदम पर उस का अपमान किया गया.

पुलिस ने दावा किया किया कि लड़की का अंतिम संस्कार रात 2 बजे के आसपास परिवार वालों की रजामंदी से पुलिस बल की मौजूदगी में किया गया. पुलिस की इस बात पर किसी को भरोसा नहीं हो पा रहा था. चारों तरफ पुलिस और योगी सरकार की आलोचना शुरू हो गई. यही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रात में लड़की की लाश को जलाने के मामले में मौलिक अधिकारों का मुददा मान कर खुद संज्ञान में लिया. जस्टिस राजन राय और जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा कि रात के ढाई बजे अंतिम संस्कार बेहद क्रूर और असभ्य तरीके से किया गया. यह कानून और संविधान से चलने वाले देश में कतई स्वीकार्य नही है.

कोर्ट ने सरकार और अफसरों को सुनने के साथ ही साथ लडकी के परिवार को भी सुनने का फैसला किया. पहली बार कोर्ट ने खुद रजिस्टार को आदेश दिया कि वह इस संबंध में पीआईएल दाखिल करे.

तानाशाह बनी सरकार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बरताव कोे जो लोग जानते हैं वे कहते है कि योगी गुस्से में किसी बात की परवाह नहीं करते हैं. नागरिकता कानून विरोध के समय विरोध करने वालों को ‘ठीक से समझाने‘ का संदेश उन्होंने दिया था. अपराधियों से निबटने के लिए उन्हें ‘ठोंक दो’ के अलावा कानपुर कांड में विकास दुबे के घर को गिराना हो, डाक्टर कफील और आजम खां को जेल भेजना हो उन का गुस्सा हर जगह देखने को मिला.

उत्तर प्रदेश के अपराधियों में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के घर को गिराने का मामला ऐसा ही था. हाथरस कांड में भी मुख्यमंत्री पर अपराधियों को बचाने का आरोप लगा. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा कि आरोपी ठाकुर बिरादरी के हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री योगी उन को बचाने के लिए हर गलत काम करने को तैयार हैं.

विरोधी दल ही नहीं भाजपा की नेता उमा भारती ने भी इस बात का विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि इस से पार्टी की छवि खराब हुई है. मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे लड़की के परिवार से मीडिया और विपक्ष के लोगों को मिलने दे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का प्रयास किया पर उन को रोक दिया गया. बाद में मिलने की मंजूरी दी गई. बसपा नेता मायावती ने बयान दे कर विरोध दर्ज कराते हुए मुख्यमंत्री योगी से अपने पद से इस्तीफा देने को कहा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे प्रदेश में धरनाप्रदर्शन किया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआईटी यानी स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया और उस की रिपोर्ट पर पुलिस महकमे के कुछ अफसरों को निलंबित कर दिया. सभी पक्षों के नार्को टेस्ट कराने का भी आदेश दिया. बाद में जांच सीबीआई को सौंपने की बात कही.

इस के बावजूद हाथरस की आग को विपक्ष बुझने नहीं देगा. बिहार चुनाव में इस को मुददा बनाने की तैयारी हो रही है. ऐसे में बिहार में भाजपा की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी योगी सरकार की आलोचना की है. जद(यू) नेता केसी त्यागी ने कहा, ‘क्या देश में दलित वंचितों के साथ दुष्कर्म के मामले में न्याय के लिए प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ेगा हाथरस में जो हुआ वह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए शर्मनाक है. यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए डूब मरने जैसी बात होगी.’

बस लिखापढ़ी करती रही पुलिस

हाथरस जिले से आगरामथुरा नैशनल हाईवे 93 पर 14 किलोमीटर दूर चंदपा कसबा है. यह बेहद छोटा सा कसबा है. यहां के लोग खरीदारी करने हाथरस ही जाते है. चंदपा कसबे से 2 किलोमीटर दूर बूलगढ़ी गांव है. यह भी बेहद गरीब गांव है. यहां पहुंचने के कच्चे रास्ते हैं. इस गांव में विभिन्न जातियों के 300 परिवार रहते हैं. इस गांव में एससी तबके और ठाकुर जाति के परिवार भी रहते हैं.

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14 सितंबर की सुबह 9 बजे के करीब गांव में रहने वाले ओम प्रकाश की बेटी 20 साला मनीषा अपनी मां रमा देवी और भाई सत्येंद्र के साथ घास काटने खेतों में गई थी. घास का एक बोझ ले कर लड़की का भाई उसे रखने घर चला आया था और मां और बेटी वहीं खेतों में घास काटने लगीं.

कुछ देर में मां ने बेटी के चिल्लाने की आवाज सुनी तो बेटे को आवाज देती लड़की की तरफ गई. तब मां ने देखा कि बेटी खेत में अंदर की तरफ बेहोश पड़ी थी. उस के गले और शरीर पर चोट के निशान थे.

मां ने आवाज लगाई तो गांवघर के लोग वहां आ गए. पुलिस को सूचना दी गई. घायल बेटी को घर पर रखने के कुछ देर बाद चंदपा थाने ले आए.

मनीषा के भाई सत्येंद्र ने लिखित तहरीर में पुलिस को बताया कि मनीषा और मां घास काट करे थे तभी गांव का ही रहने वाला संदीप वहां आया और मनीषा को खींच कर खेत में ले गया. उस का गला दबा कर हत्या करने की कोशिश की गई. मनीषा ने शोर मचाया तो मां और भाई को आता देख आरोपी संदीप भाग गया.

पुलिस ने इसी तहरीर पर आरोपी संदीप पुत्र गुड्डू के खिलाफ धारा 307 और एसएसीएसटी ऐक्ट में मुकदमा कायम कर लिया. कोतवाली चंदपा के प्रभारी दारोगा डीके वर्मा ने तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर के आरोपी की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस की सूचना पा कर सीओ सिटी राम शब्द मौका ए वारदात पर पहुंचे और मनीषा की खराब हालत देख कर उसे इलाज के लिए हाथरस के जिला अस्पताल भेज दिया. इन दोनों पक्षों के बीच पहले भी रंजिश हो चुकी थी. मुकदमा कायम था और मामला कोर्ट में दाखिल था. ऐसे में पुलिस ने मामले की विवचेना शुरू कर दी.

19 सितंबर को पुलिस ने आरोपी संदीप को पकड़ा और सीओ सिटी ने जांच के बाद मुकदमे में छेड़खानी की धारा 354 को बढ़ा भी दिया. 20 सितंबर  को सीओ सादाबाद के रूप में ब्रह्म सिंह ने चार्ज लिया. सीओ सिटी की जगह अब वे मुकदमे की विवेचना देखने लगे.

22 सितंबर को ब्रह्म सिंह ने लड़की से बातचीत के आधार पर मुकदमे में धारा 376 डी को बढ़ाया. लडकी ने 22 तारीख को दिए अपने बयान में आरोपी संदीप के साथ कुछ और लोगों का नाम लिया था और गैंगरेप की बात कही थी.

गैंगरेप के आरोप में पुलिस ने इसी गांव के 3 और आरोपियों लवकुश पुत्र रामवीर, रवि पुत्र अतर सिंह, रामकुमार पुत्र राकेश का नाम भी मुकदमे में शामिल कर लिया. पुलिस ने 23 सितंबर को लवकुश को पकड लिया. 25 सितंबर को रवि और 26 सितंबर को रामकुमार को पकड़ लिया. मुख्य आरोपी संदीप को पहले की पकड़ लिया गया था.

मामले में ढिलाई बरतने के आरोप में कोतवाली निरीक्षक चंदपा को लाइन हाजिर कर दिया गया था. 28 सितंबर को लड़की को बेहद नाजुक हालत में अलीगढ़ मैडिकल कालेज से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेज दिया गया. 29 सितंबर को दिल्ली में लड़की की मौत हो गई. मौत के बाद लड़की की लाश के साथ जो हुआ वह किसी तरह के गैंगरेप से कम नहीं था.

पिसते दलित परिवार

ठाकुर बिरादरी में 2 गुट हैं. इन की आपसी लड़ाई में दलित परिवार पिसते रहते हैं. 1996 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी. बाल्मीकि समाज के लोगों से ठाकुर परिवार का झगड़ा हुआ था. झगड़े की वजह गांव के बाहर कूड़ा डालने की जगह थी. एससी परिवार का कहना था कि उन की जगह पर कूड़ा डाला जा रहा है. इस को ले कर दोनों ही परिवारों में झगड़ा हुआ था, जिस में एससी परिवार के लोगों ने दलित ऐक्ट, मारपीट और सिर फोड़ने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में ठाकुर परिवार को जेल जाना पड़ा था. इनब्के बीच साल 2006 में आपसी मारपीट का मुकदमा लिखा गया था. कुछ समय के बाद इन के बीच आपसी समझौता भी हुआ, पर आपस में दुश्मनी बनी रही.

जब भी ये लोग आपस में सुलह की बात करते थे ठाकुर बिरादरी का ही दूसरा पक्ष किसी न किसी बहाने मामले को उलझा देता था. कुछ समय से लड़की और आरोपी संदीप के परिवार के बीच की 19 साल की दुश्मनी कम होने लगी थी. परिवार के लोग आपस में भले ही नहीं बोलते थे, पर संदीप और लड़की में बातचीत होने लगी थी. यह बात उन दोनों के परिवार वालों को पसंद नहीं थी. घटना के कुछ दिन पहले लड़की के परिवार वालों ने इस बात की शिकायत भी की थी, जिस से संदीप के पिता ने अपने लड़के की पिटाई भी की थी. ऐसे में आपसी विवाद में एक एससी परिवार तबाह हो गया.

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बलात्कार का सच

उत्तर प्रदेश पुलिस इस बात का दावा कर रही है कि लड़की के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई. कानून के जानकार कहते हैं कि पुलिस के दावे से कोई बचाव नहीं होगा. लड़की का बयान ही अंतिम माना जाएगा. 14 सितंबर को लड़की के साथ बलात्कार हुआ, मैडिकल नहीं हुआ. लड़की के अंदर के अंगों से छेड़छाड़ हुई.

कानून कहता है कि रेप साबित करने के लिए केवल 4 दिन का ही समय होता है. स्पर्म केवल 4 दिन तक ही अंग पर दिखते हैं. नाजुक अंगों पर नाखून के निशान, आधा नंगा या पूरा नंगा पाया जाना भी रेप माना जाता है. रेप की पुष्टि के लिए स्पर्म मिलना अनिवार्य नहीं होता है.

किसी महिला के नाजुक अंग पर पूरी तरह से या बिलकुल न के बराबर मर्द के अंग का स्पर्श भी बलात्कार माना जाता है. 14 दिन के बाद रेप के सुबूत नहीं मिलते, लेकिन अंगों पर चोट के निशान मिल जाते हैं. अस्पताल में एडमिट होने के समय अंगों से बहने वाला खून भी सुबूत होता है. उस समय यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि यह क्यों हो रहा है. ऐसे में रेप की पुष्टि कानून की नजर में कोई बड़ा मसला नहीं है. ऐसे हालात ही सुबूत के तौर पर पेश हो सकते हैं.

CAA PROTEST: यूपी में हिंसा के बाद 15 लोगों की मौत, 705 गिरफ्तारियां

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. बिल पास होने तक ये विद्रोह पूर्वोत्तर के राज्यों तक ही सीमित था लेकिन अब ये देश के ज्यादातर हिस्सों तक फैल चुका है. यूपी में प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई. फिलहाल अभी तक यूपी के कई हिस्सों में रह रहकर प्रदर्शनकारी सड़कों पर आ रहे हैं और पत्थरबाजी और आगजनी कर रहे हैं. पुलिस प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस, वाटर कैनन जैसे प्रसाधनों से उन पर काबू पाने की कोशिश कर रही है.

शनिवार को कानपुर और रामपुर में प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई. रामपुर में एक की मौत हो गई. अन्य जिलों में छिटपुट घटनाएं हुई हैं. पुलिस के मुताबिक, विरोध प्रदर्शनों के दौरान 11 दिनों के भीतर 15 लोगों की मौत हो चुकी है और 705 गिरफ्तारियां हुई हैं. 4500 लोगों को हिरासत में लिया गया है.

आईजी (कानून व्यवस्था) प्रवीण कुमार के मुताबिक, “पूरे प्रदेश में 10 दिसंबर से लेकर अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है. हिंसक प्रदर्शनों में 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू कर दी गई है. पुलिस हिंसाग्रस्त इलाकों में गश्त कर लोगों से शांति की अपील कर रही है.”

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अब लखनऊ समेत 15 जिलों में सोमवार को दोपहर 12 बजे तक इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद रहेंगी. मोबाइल ऑपरेटरों को गृहमंत्रालय द्वारा आदेश भेजे गए हैं. लखनऊ, सहारनपुर, मेरठ, शामली, मुजफरनगर, गाजियाबाद, बरेली, मऊ, संभल, आजमगढ़, आगरा, कानपुर, उन्नाव, मुरादाबाद, प्रयागराज शामिल हैं. अन्य जिलों में भी इंटरनेट सेवाओं को बंद रखने का फैसला वहां के डीएम पर छोड़ा गया है. स्थितियों के अनुरूप वे इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित कर सकते हैं.

शनिवार को लखनऊ की एसएसपी कलानिधि नैथानी ने बताया कि 250 लोगों को वीडियो फुटेज और फोटो के आधार पर चिन्हित कर गिरफ्तार किया गया है. फिलहाल बाकी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी जारी है. प्रशासन इन आरोपियों पर रासुका और संपत्ति कुर्क की कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है. उधर, गोरखपुर में भी प्रदर्शन करने वालों के पुलिस ने स्केच जारी किए हैं.

शनिवार को कानपुर के यतीमखाना में जुलूस निकाला गया. इस दौरान बड़ी संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसूगैस के गोले भी छोड़े. इसमें 12 से अधिक लोगों के घायल होने की जानकारी है. सपा के विधायक अमिताभ बाजपेयी और हाजी इरफान सोलंकी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है.

दूसरी ओर, रामपुर में प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के बावजूद उलेमाओं ने बंद बुलाया. इस दौरान हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए. ईदगाह के पास इकट्ठा होकर लोगों ने जमकर नारेबाजी की. इस दौरान पुलिस और भीड़ बिल्कुल आमने-सामने हो गई. प्रदर्शन के दौरान भीड़ इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने एक पुलिस जीप के अलावा अन्य आठ वाहनों को भी फूंक दिया. इस हिंसक प्रदर्शन के दौरान एक शख्स की मौत हो गई. हालांकि पुलिस ने कहा कि उसकी ओर से कोई फायरिंग नहीं की गई है.

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मुजफ्फरनगर के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में कच्ची सड़क के पास केवलपुरी में शनिवार को दो पक्षों के बीच पथराव हो गया. इस दौरान दोनों पक्षों की ओर से पथराव किया गया. मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकारकर भीड़ को वहां से खदेड़ दिया. तनाव को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है.

झांसी में सोशल मीडिया की निगरानी कर रही पुलिस ने भड़काऊ पोस्ट वाली 300 फेसबुक आईडी ब्लॉक कर दी हैं. इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की तैयारी हो रही है. शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने बढ़ती हिंसा के बीच कहा कि मुस्लिम समुदाय से शांति बनाए रखने की अपील की. पुलिस महानिदेशक सिंह ने कहा, “हिंसा करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा. हिंसा में बाहरी लोगों का हाथ है। उन्होंने आशंका जताई कि हिंसा में एनजीओ और राजनीतिक लोग भी शामिल हो सकते हैं. हम किसी निर्दोष को गिरफ्तार नहीं करेंगे.”

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रवीण कुमार ने बताया कि सीएए को लेकर लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों में अब तक 124 एफआईआर दर्ज की गई हैं. 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वहीं 4500 लोगों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें हिरासत में लिया गया है. आईजी के अनुसार, पथराव व आगजनी में 263 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, जिनमें से 57 पुलिसकर्मियों को गोली लगी है.

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उन्होंने बताया कि हिंसा में 15 लोगों की मौत हुई है. पुलिस ने 405 खोखे बरामद किए हैं. आईजी ने बताया कि सोशल मीडिया के 14,101 आपत्तिजनक पोस्टों से संबंधित लोगों पर कार्रवाई की गई है. इनमें ट्विटर की 5965, फेसबुक की 7995 और यूट्यूब की 142 आपत्तिजनक पोस्टों पर कार्रवाई की गई है. इनमें 63 एफआईआर दर्ज की गई हैं, वहीं 102 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, इनके अलावा 442 पाबंद किए गए हैं.

दिल्ली-लखनऊ में हिंसा आर या पार, नागरिकता बिल पर बवाल

19 दिसंबर की दिल्ली की ये हिंसा इस कदर हावी हो गई की लोगों के मन में डर बैठ गया है. लोग सहम रहे हैं. इस हिंसा को देख तो यही लगता है कि अब तो दिल्ली की ये हिंसा आर या पार. इस बढ़ती हिंसा के चलते राजधानी दिल्ली के कई मेट्रो स्टेशनों को बंद कर दिया गया, जिसमें भगवान दास, राजीव चौक, जनपथ, वसंत विहार, कल्याण मार्ग, मंडी हाउस, खान मार्केट, जामा मस्जिद, लालकिला, जामिया विश्वनिद्याल, मुनेरका, केंदीय सचिवालय, चांदनी चौक, शाहीन बाग ये सभी मेट्रो स्टेशन शामिल हैं.

लालकिला, मंडीहाउस समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं दिल्ली के जहां पर गुरुवार को उग्र प्रदर्शनकारियों ने जमकर प्रदर्शन किया और जगह-जगह पर आगजनी, तोड़-फोड़, पथराव किया. पुलिस को लाठीचार्ज करनी पड़ी, आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. ऐसा नहीं है कि इस प्रदर्शन में केवल विद्यार्थी ही शामिल हैं बल्कि इस प्रदर्शन में कुछ नेता भी शामिल हैं. एक खबर के मुताबिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा और बेंगलुरु में लेखक को तो हिरासत में लिया गया साथ ही योगेंद्र यादब, उमर खालिद, संदीप दीक्षित, प्रशांत भूषण जैसे नेताओं को भी हिरासत में लिया गया है.

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ये सभी नेता नागरिकता बिल को लेकर प्रदर्शन में शामिल है. मेंट्रो के बंद हो जाने के कारण आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि लोगों को आवाजाही में दिक्कत हो रही है. तो वहीं राजधानी दिल्ली में कई इलाकों में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया है. कालिंग सुविधा बंद कर दी गई है. एसएमएस तक पर रोक लगा दी गई है. ताकि हिंसा को बढ़ावा देने वाले कुछ अवांछनीय तत्व जो अफवाह फैला रहे हैं वो ना कर पाए. लेकिन ऐसे में उन क्षेत्रों में रहने वाले आम नागरिक परेशानी उठा रहे हैं.

इधर जामिया हिंसा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस पर सुनवाई अब चार फरवरी को होगी. एक तरफ दिल्ली में हिंसा उग्र होती जा रही है तो वहीं गुरुवार को लखनऊ में भी हिंसा अपने चरम पर पहुंचता हुआ नजर आया. वहां पर प्रदर्शनकारी उग्र हो उठे. कई जगहों पर आगजनी, तोड़फोड़ की और इतना ही नहीं बल्कि एक ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. कई गाड़ियां धू-धू कर जल रहीं थीं. रोडवेज बसों को भी आग के हवाले कर दिया.

हालांकि जहां पर भी सार्वजनिक संपत्ति को प्रदर्शनकारियों ने नुकसान पहुंचाया है वहां पर सरकार कड़ा रुख अपनाते हुए सख्त कार्रवाई करेगी. लखनऊ के डालीगंज इलाके में हिंसा इतनी तेज हो गई कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़ें. लखनऊ के इस बढ़ती हिंसा में दो पुलिस बूथ भी बुरी तरह से स्वाहा हो गए. वहां पर इस हिंसा को देखते हुए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. हिंसा का ये रूप देखकर कोई भी सहम जाए. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच में झड़प हो रही है. प्रदर्शनकारी पुलिस पर उल्टा पथराव करने पर उतारू हैं.

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खबरों के मुताबिक सीएम योगी इन सब को देख कर काफी नाराज हैं और उन्होंने कहा है कि जो भी उपद्रवी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं उन सबको भरपाई करनी पड़ेगी. उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने इस इस पर चर्चा के लिए बैठक भी बुलाई है. शायद ये कड़ा रुख अपनाना जरूरी भी था. उपद्रवीयों ने लखनऊ में 20 बाइक, 10 कार व 3 बसों को जला डाला. इतना ही नहीं कवर करने के लिए गई चार मीडियो ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. ना जाने ये प्रदर्शन कब तक चलेगा और देश को कब तक इसमें जलना पड़ेगा, क्योंकि ये हिंसा बहुत ही खतरनाक रूप लेती जा रही है और सरकार को जल्द ही इस पर कोई कड़ा रूख अपनाना होगा.

शर्मनाक : मजदूरों के साथ कहर जारी

गुजरात के साबरकांठा जिले में 28 सितंबर, 2018 को एक 14 महीने की बालिका के साथ हुई रेप की वारदात के साथ भड़की हिंसा की वजह से लोग वहां से भागने को मजबूर हो गए.

इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों के साथ योजना बना कर मारपीट की घटनाएं घटने लगीं. बिहार व उत्तर प्रदेश के लाखों मजदूर अपनेअपने घरों को लौटने लगे. टे्रन व बसों में पैर रखने तक की जगह नहीं थी.

यह है गुजरात का विकास मौडल जिस की असलियत अब खुल कर सामने आ रही है. पूरे मामले की जड़ में एक बच्ची से हुई रेप की घटना है और आरोपी को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. लेकिन उस के बाद यह मामला गुजरात बनाम बाहरी में तबदील कर दिया गया और उत्तर भारतीय मजदूरों को चुनचुन कर निशाना बनाया गया. इसे ही कहते हैं सब का साथ सब का विकास.

बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के साथ यह पहली घटना नहीं है. असम के तिनसुकिया इलाके में 2015 में संदिग्ध उल्फा आतंकवादियों द्वारा हिंदीभाषी उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को टारगेट करते हैं. महाराष्ट्र की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को बाहर का होने के नाम पर उन के साथ ज्यादती करती रहती है.

अहमदाबादपटना ऐक्सप्रैसट्रेन से लौट रहे इन मजदूरों की आपबीती सुन कर हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि यह वही विकास मौडल का सब्जबाग दिखाने वाला गुजरात प्रदेश है, जिस का बखान करते देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं अघाते हैं.

गुजरात में काम कर रहे ये वही मजदूर हैं जो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना वोट देने और मोदी का गुणगान करने गुजरात से अपने राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में आए थे.

साबरमती ऐक्सप्रैसट्रेन से लौट रहे मजदूरों ने बताया कि कंपनी मालिक और ठेकेदार ही बोल रहे हैं कि वे हिफाजत की गारंटी नहीं ले सकते. मार दिए जाओगे. घर लौट जाओ. ट्रेन में जगह नहीं थी, फिर भी लोग एकदूसरे पर लदे किसी तरह अपने गांव लौट रहे थे.

औरंगाबाद, बिहार के राजू ने दुखी मन से बताया, ‘‘हम लोग तो हर जगह पीटे जाते हैं. हम इसलिए पीटे जाते हैं कि हम बिहार के हैं. लेकिन अपने राज्य में रोजगार न मिलने से मजबूरी में यहां आए हैं.’’

10 सालों से लगातार काम कर रहे विजय ने बताया, ‘‘घर में काफी सामान हो गया था. सारा सामान छोड़ कर आना मुश्किल लग रहा था लेकिन मकान मालिक ने साफ कह दिया कि 24 घंटे के अंदर घर खाली कर दो, नहीं तो हम तुम्हारी जिंदगी का रिस्क नहीं लेंगे.

‘‘मकान मालिक, जिन्हें मैं काकाऔर उन की पत्नी को काकीबोला करता था, से सालों का संबंध मटियामेट हो गया. एक बड़े बैग में कितना सामान लाता. मन मसोस कर सारा सामान वहीं छोड़ कर इसलिए चले आए कि इस के चक्कर में कहीं जान न चली जाए.’’

शंकर मोहन राजनंदन कहता है, ‘‘सभी लोगों की एक ही दास्तान है. हम लोग शौक से गुजरात या दूसरे राज्यों में कमाने के लिए थोड़े ही जाते हैं. बिहार में ज्यादा उद्योगधंधे नहीं हैं. परिवार और अपना पेट पालने के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. अगर बिहार और उत्तर प्रदेश के सारे मजदूर गुजरात से चले आएंगे तो वहां की सारी कंपनियां बंद हो जाएंगी.

‘‘देशभर में बिहार और उत्तर प्रदेश के नौजवानों की मेहनत से ही ये कंपनियां चल रही हैं और मालिक मजे कर रहे हैं. यहां काम नहीं है और पेट चलाने की मजबूरी हम लोगों के साथ है.’’

दिलीप, जो गया जिले के बथानी इलाके का रहने वाला है, ने बताया, ‘‘जिस लड़के ने रेप किया उसे फांसी दे दो. अगर हम लोग उस के बचाव में खड़े होते तो हम लोग कुसूरवार थे. एक आदमी ने गलत किया तो क्या उस राज्य के सारे लोग बलात्कारी हैं? एक बिहारी रेप करे तो सारे बिहारी रेपिस्ट हो गए 4 गुजराती देश का पैसा ले कर भाग गए तो इस का मतलब हर गुजराती चोर हैं?’’

बिहार के शेखपुरा के तहत एक गांव मेहसौना है जहां के तकरीबन हर घर से 1-2 नौजवान गुजरात के मेहसाना में काम करते हैं. इस गांव के तकरीबन 70 नौजवान वहां काम करते हैं. जब से गुजरात में हालात खराब हुए हैं, तब से यहां कई घरों में चूल्हे नहीं जले हैं.

नीरज 12 लड़कों के साथ गुजरात से सारा सामान छोड़ कर किसी तरह जान बचा कर अपने गांव आया है. ब्रह्मदेव चौहान के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला. उन के 4 बेटे गुजरात में फंसे हुए थे. उन के मोबाइल फोन पर उन की बात भी नहीं हो पा रही थी.

किसी एक के किए की सजा पूरे उत्तर भारतीयों को मिले, यह सोच ठीक नहीं है. जिन बिहारियों और उत्तर प्रदेश की मेहनत से गुजरात अमीर है, उन के साथ इस तरह का बरताव कहीं से भी ठीक नहीं है.

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रिकौर्ड के मुताबिक, साल 2017 में जहां पूरे देश में बलात्कार के मामलों में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो क्या ये इतने बड़े हुए बलात्कार बिहार के लोगों ने ही किए?

इसी तरह कुछ साल पहले बंगाल बंगालियों का नारा लगा कर, असम में बोडो उग्रवादियों द्वारा, महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लोगों द्वारा उत्तर भारतीय लोगों के साथ कभी भाषा के नाम पर, तो कभी बाहरी के नाम पर मारपीट, हिंसा और गालीगलौज की जाती रही है.

नेता व विधायक रह चुके राजाराम सिंह का कहना है कि यह देश सभी लोगों का है. यहां के संसाधनों पर सभी लोगों का बराबर का हक है. किसी के साथ धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव किया जाना गलत बात है.

सब से बड़ी बात यह है कि गुजरात की सरकार और पार्टी इन बिहारियों के बचाव में आ कर खड़ी नहीं हुई क्योंकि ये लोग हैं तो पिछड़ी जातियों के ही.

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