हाथरस में गैंगरेप की घटना को प्रदेश सरकार के हठ ने देश के सामने ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ सा बना दिया. लड़की की चिता की राख भले ही बुझ गई हो, पर इस से भड़का विरोध ठंडा नहीं पड़ेगा. कोर्ट से ले कर बिहार के चुनाव तक तमाम सवाल भाजपा को सपने में भी डराते रहेंगे.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ‘ठाकुरवाद’ को ले कर पक्षपात करने का आरोप गहरा होता चला जा रहा है. कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद के बाद हाथरस कांड में यह साबित हो गया है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठे रहना भाजपा के लिए नुकसानदायक होगा.

उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक एससी समाज की लड़की के साथ दंबगों द्वारा बाजरे के खेत में सुबहसुबह किया गया गैंगरेप भले की समाज की आंखों के सामने नहीं हुआ, पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने सब की आंखों के सामने लड़की की लाश को जबरन जला कर ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ किया है.

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गैंगरेप की शिकार हाथरस की रहने वाली 20 साल की उस लड़की को गंभीर हालत में 28 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती कराया गया था जहां अगले दिन उस की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने मौत के इस राज को दफन करने के लिए लड़की की लाश उस के घर वालों को नहीं सौंपने का फैसला किया. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल से ही लड़की की लाश को अपने कब्जे में ले लिया. घर वालों को इस बात का डर पहले से हो रहा था. इस वजह से उन्होंने मीडिया में यह शिकायत करनी शुरू कर दी थी कि उत्तर पुलिस इंसाफ नहीं कर रही है.

उस लड़की के साथ 14 सितंबर को गैंगरेप से ले कर 28 सितंबर तक अस्पताल में जिस तरह से उस के साथ लापरवाही की जा रही थी, उस से लड़की के परिवार वालों को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर भरोसा नहीं रह गया था. यही वजह थी कि वे हाथरस से 200 किलोमीटर दूर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लड़की को इलाज के लिए ले कर गए. उन को पता था कि अगर हाथरस से 400 किलोमीटर दूर लखनऊ जाएंगे तो वहां उन के हालात को किसी के सामने नहीं आने दिया जाएगा.

दिल्ली में मीडिया की चर्चा में आने के बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरी तानाशाही की. लाश को ले कर एंबुलैंस सीधे लड़की के गांव के लिए निकल गई. अस्पताल में ही उस के परिवार वालों को लडकी की लाश देखने तक नहीं दी गई. लड़की के परिवार के साथ मीडिया की कुछ गाड़ियों ने एंबुलैंस का पीछा किया.

लड़की के भाई संदीप ने कहा, ‘हम लोगों को चेहरा तक नहीं दिखाया. उलटा भारी पुलिस बल उन्हें रोकने के लिए लगा दिया. पुलिस ने जानवर का रूप ले लिया था और वह दरिंदों के साथ खड़ी हो गई. मां अपनी बेटी की लाश देखना चाहती थी और वह पुलिस से गिड़गिड़ाती रही, पर पुलिस ने मुंह तक नहीं देखने दिया. मां आंचल फैला कर भीख मांगती रही पर पुलिस ने संवेदनहीनता की सारी हदें पार दीं.’

और भी दर्द दिया

हाथरस तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पुराने रास्ते का इस्तेमाल किया, जबकि लड़की के परिवार वाले और मीडिया दूसरे रास्ते से गांव पहुंच रहे थे. एंबुलैंस में लाश ले कर पुलिस जब लड़की के घर के सामने से गुजर रही थी तो वहां मौजूद उस के घर वालों ने गाड़ी को बीच में रोक लिया.

लड़की की मां और उस की भाभी गाड़ी के ऊपर ही सिर पीटपीट कर रो रही थीं. मां का कहना था, ‘हम बेटी की अंतिम क्रिया से पहले उस को नहला कर नए कपड़े पहना कर हलदी लगाने की रस्म अदा करने के बाद अंतिम संस्कार करेगे.’

पर पुलिस यह बात मानने को तैयार नहीं थी. यही नहीं पुलिस लड़की की भाभी की इस बात को भी सुनने को तैयार नहीं थी कि लड़की के पिता और भाई दिल्ली से आ जाएं तब कोई फैसला हो. पुलिस ने लड़की के घर वालों की बात तो सुनी ही नहीं, बल्कि वह घर वालों को जबरन साथ ले जाना चाहती थी कि किसी तरह से वे उस का अंतिम संस्कार कर दें.

घर वाले जब इस के लिए तैयार नहीं हुए तो पुलिस लाश को ले कर सीधे गांव के बाहर श्मशान ले गई. अभी तक आधी रात का समय बीत रहा था और लड़की के पिता और मीडिया वहां तक नहीं पहुंचे थे. जो लोग पहुंचे थे उन को पुलिस ने गांव के बाहर ही रोक लिया था. गांव के अंदर आने वाली कच्ची सड़क को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था.

गांव में 13 थाने का पुलिस बल और बाकी अफसर तैनात कर दिए गए थे. पूरा गांव एक तरह से छावनी में बदल दिया गया था.

पैट्रोल से जला दी लडकी

हिंदू धर्म के रीतिरिवाजों में किसी  की अंतिम क्रिया से पहले लाश को नहलाया जाता है. इस के बाद उस को नए कपड़े पहना कर चिता पर लिटाया जाता है. चिता को लकड़ी से तैयार किया जाता है. किसी करीबी परिजन जैसे पिता, पति या भाई द्वारा चिता को अग्नि दी जाती है.

हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है कि अंतिम क्रिया विधिवत करने से मरने वाले की आत्मा को मुक्ति मिलती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदू धर्म के ब्रांड एंबैसेडर माने जाते हैं. इस के बाद भी योगी की पुलिस ने धर्म, रीतिरिवाज, मानवाधिकार, कानून किसी का भी साथ नही दिया.

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लड़की की लाश को जंगल के बीच रख कर उसे गोबर के उपलों और कुछ लकड़ियों से ढक दिया गया. पैट्रोल और मिट्टी का तेल छिड़क कर रात के तकरीबन ढाई बजे आग लगा दी गई. इस के बाद वहां किसी तरह पहुंचे मीडिया वालों को पुलिस ने यह नहीं बताया कि क्या जल रहा है?

अंतिम संस्कार को ले कर पीड़िता के चाचा और बाबा ने बताया कि जब पुलिस जबरन दाह संस्कार कर रही थी, तब उन्हें वहां जाने नहीं दिया गया. जो भी किया पुलिस ने किया था. जब कुछ देर के लिए पुलिस वहां नहीं थी, तो वे 2-4 उपले डालने के लिए गए थे. तभी पुलिस वालों ने उनकी फोटो खींच ली. अब इसी को पुलिस बता रही है कि परिवार वाले अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे.

कोर्ट ने लिया संज्ञान

लड़की की लाश जलने के साथ ही साथ उस की अस्थियां और चिता की राख तक को समय पर नहीं विसर्जित किया जा सका. बुलगढी गांव के बाहर सड़क किनारे चिता की राख का ढेर, अधजले उपले, बिखरी अस्थियां तीसरे दिन तक पड़ी रहीं. हिंदू रीतिरिवाजों के मुताबिक तीसरे दिन तक इन का विसर्जन हो जाना चाहिये. गुरुवार को अस्थियां विसर्जित नहीं की जाती हैं, पर शुक्रवार शाम तक अस्थियां विसर्जित नहीं की गई थीं. ऐसे में साफ है कि न केवल लड़की के जिंदा रहते उस की बेइज्जती की गई, बल्कि मरने के बाद भी कदमकदम पर उस का अपमान किया गया.

पुलिस ने दावा किया किया कि लड़की का अंतिम संस्कार रात 2 बजे के आसपास परिवार वालों की रजामंदी से पुलिस बल की मौजूदगी में किया गया. पुलिस की इस बात पर किसी को भरोसा नहीं हो पा रहा था. चारों तरफ पुलिस और योगी सरकार की आलोचना शुरू हो गई. यही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रात में लड़की की लाश को जलाने के मामले में मौलिक अधिकारों का मुददा मान कर खुद संज्ञान में लिया. जस्टिस राजन राय और जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा कि रात के ढाई बजे अंतिम संस्कार बेहद क्रूर और असभ्य तरीके से किया गया. यह कानून और संविधान से चलने वाले देश में कतई स्वीकार्य नही है.

कोर्ट ने सरकार और अफसरों को सुनने के साथ ही साथ लडकी के परिवार को भी सुनने का फैसला किया. पहली बार कोर्ट ने खुद रजिस्टार को आदेश दिया कि वह इस संबंध में पीआईएल दाखिल करे.

तानाशाह बनी सरकार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बरताव कोे जो लोग जानते हैं वे कहते है कि योगी गुस्से में किसी बात की परवाह नहीं करते हैं. नागरिकता कानून विरोध के समय विरोध करने वालों को ‘ठीक से समझाने‘ का संदेश उन्होंने दिया था. अपराधियों से निबटने के लिए उन्हें ‘ठोंक दो’ के अलावा कानपुर कांड में विकास दुबे के घर को गिराना हो, डाक्टर कफील और आजम खां को जेल भेजना हो उन का गुस्सा हर जगह देखने को मिला.

उत्तर प्रदेश के अपराधियों में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के घर को गिराने का मामला ऐसा ही था. हाथरस कांड में भी मुख्यमंत्री पर अपराधियों को बचाने का आरोप लगा. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा कि आरोपी ठाकुर बिरादरी के हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री योगी उन को बचाने के लिए हर गलत काम करने को तैयार हैं.

विरोधी दल ही नहीं भाजपा की नेता उमा भारती ने भी इस बात का विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि इस से पार्टी की छवि खराब हुई है. मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे लड़की के परिवार से मीडिया और विपक्ष के लोगों को मिलने दे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का प्रयास किया पर उन को रोक दिया गया. बाद में मिलने की मंजूरी दी गई. बसपा नेता मायावती ने बयान दे कर विरोध दर्ज कराते हुए मुख्यमंत्री योगी से अपने पद से इस्तीफा देने को कहा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे प्रदेश में धरनाप्रदर्शन किया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआईटी यानी स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया और उस की रिपोर्ट पर पुलिस महकमे के कुछ अफसरों को निलंबित कर दिया. सभी पक्षों के नार्को टेस्ट कराने का भी आदेश दिया. बाद में जांच सीबीआई को सौंपने की बात कही.

इस के बावजूद हाथरस की आग को विपक्ष बुझने नहीं देगा. बिहार चुनाव में इस को मुददा बनाने की तैयारी हो रही है. ऐसे में बिहार में भाजपा की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी योगी सरकार की आलोचना की है. जद(यू) नेता केसी त्यागी ने कहा, ‘क्या देश में दलित वंचितों के साथ दुष्कर्म के मामले में न्याय के लिए प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ेगा हाथरस में जो हुआ वह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए शर्मनाक है. यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए डूब मरने जैसी बात होगी.’

बस लिखापढ़ी करती रही पुलिस

हाथरस जिले से आगरामथुरा नैशनल हाईवे 93 पर 14 किलोमीटर दूर चंदपा कसबा है. यह बेहद छोटा सा कसबा है. यहां के लोग खरीदारी करने हाथरस ही जाते है. चंदपा कसबे से 2 किलोमीटर दूर बूलगढ़ी गांव है. यह भी बेहद गरीब गांव है. यहां पहुंचने के कच्चे रास्ते हैं. इस गांव में विभिन्न जातियों के 300 परिवार रहते हैं. इस गांव में एससी तबके और ठाकुर जाति के परिवार भी रहते हैं.

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14 सितंबर की सुबह 9 बजे के करीब गांव में रहने वाले ओम प्रकाश की बेटी 20 साला मनीषा अपनी मां रमा देवी और भाई सत्येंद्र के साथ घास काटने खेतों में गई थी. घास का एक बोझ ले कर लड़की का भाई उसे रखने घर चला आया था और मां और बेटी वहीं खेतों में घास काटने लगीं.

कुछ देर में मां ने बेटी के चिल्लाने की आवाज सुनी तो बेटे को आवाज देती लड़की की तरफ गई. तब मां ने देखा कि बेटी खेत में अंदर की तरफ बेहोश पड़ी थी. उस के गले और शरीर पर चोट के निशान थे.

मां ने आवाज लगाई तो गांवघर के लोग वहां आ गए. पुलिस को सूचना दी गई. घायल बेटी को घर पर रखने के कुछ देर बाद चंदपा थाने ले आए.

मनीषा के भाई सत्येंद्र ने लिखित तहरीर में पुलिस को बताया कि मनीषा और मां घास काट करे थे तभी गांव का ही रहने वाला संदीप वहां आया और मनीषा को खींच कर खेत में ले गया. उस का गला दबा कर हत्या करने की कोशिश की गई. मनीषा ने शोर मचाया तो मां और भाई को आता देख आरोपी संदीप भाग गया.

पुलिस ने इसी तहरीर पर आरोपी संदीप पुत्र गुड्डू के खिलाफ धारा 307 और एसएसीएसटी ऐक्ट में मुकदमा कायम कर लिया. कोतवाली चंदपा के प्रभारी दारोगा डीके वर्मा ने तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर के आरोपी की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस की सूचना पा कर सीओ सिटी राम शब्द मौका ए वारदात पर पहुंचे और मनीषा की खराब हालत देख कर उसे इलाज के लिए हाथरस के जिला अस्पताल भेज दिया. इन दोनों पक्षों के बीच पहले भी रंजिश हो चुकी थी. मुकदमा कायम था और मामला कोर्ट में दाखिल था. ऐसे में पुलिस ने मामले की विवचेना शुरू कर दी.

19 सितंबर को पुलिस ने आरोपी संदीप को पकड़ा और सीओ सिटी ने जांच के बाद मुकदमे में छेड़खानी की धारा 354 को बढ़ा भी दिया. 20 सितंबर  को सीओ सादाबाद के रूप में ब्रह्म सिंह ने चार्ज लिया. सीओ सिटी की जगह अब वे मुकदमे की विवेचना देखने लगे.

22 सितंबर को ब्रह्म सिंह ने लड़की से बातचीत के आधार पर मुकदमे में धारा 376 डी को बढ़ाया. लडकी ने 22 तारीख को दिए अपने बयान में आरोपी संदीप के साथ कुछ और लोगों का नाम लिया था और गैंगरेप की बात कही थी.

गैंगरेप के आरोप में पुलिस ने इसी गांव के 3 और आरोपियों लवकुश पुत्र रामवीर, रवि पुत्र अतर सिंह, रामकुमार पुत्र राकेश का नाम भी मुकदमे में शामिल कर लिया. पुलिस ने 23 सितंबर को लवकुश को पकड लिया. 25 सितंबर को रवि और 26 सितंबर को रामकुमार को पकड़ लिया. मुख्य आरोपी संदीप को पहले की पकड़ लिया गया था.

मामले में ढिलाई बरतने के आरोप में कोतवाली निरीक्षक चंदपा को लाइन हाजिर कर दिया गया था. 28 सितंबर को लड़की को बेहद नाजुक हालत में अलीगढ़ मैडिकल कालेज से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेज दिया गया. 29 सितंबर को दिल्ली में लड़की की मौत हो गई. मौत के बाद लड़की की लाश के साथ जो हुआ वह किसी तरह के गैंगरेप से कम नहीं था.

पिसते दलित परिवार

ठाकुर बिरादरी में 2 गुट हैं. इन की आपसी लड़ाई में दलित परिवार पिसते रहते हैं. 1996 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी. बाल्मीकि समाज के लोगों से ठाकुर परिवार का झगड़ा हुआ था. झगड़े की वजह गांव के बाहर कूड़ा डालने की जगह थी. एससी परिवार का कहना था कि उन की जगह पर कूड़ा डाला जा रहा है. इस को ले कर दोनों ही परिवारों में झगड़ा हुआ था, जिस में एससी परिवार के लोगों ने दलित ऐक्ट, मारपीट और सिर फोड़ने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में ठाकुर परिवार को जेल जाना पड़ा था. इनब्के बीच साल 2006 में आपसी मारपीट का मुकदमा लिखा गया था. कुछ समय के बाद इन के बीच आपसी समझौता भी हुआ, पर आपस में दुश्मनी बनी रही.

जब भी ये लोग आपस में सुलह की बात करते थे ठाकुर बिरादरी का ही दूसरा पक्ष किसी न किसी बहाने मामले को उलझा देता था. कुछ समय से लड़की और आरोपी संदीप के परिवार के बीच की 19 साल की दुश्मनी कम होने लगी थी. परिवार के लोग आपस में भले ही नहीं बोलते थे, पर संदीप और लड़की में बातचीत होने लगी थी. यह बात उन दोनों के परिवार वालों को पसंद नहीं थी. घटना के कुछ दिन पहले लड़की के परिवार वालों ने इस बात की शिकायत भी की थी, जिस से संदीप के पिता ने अपने लड़के की पिटाई भी की थी. ऐसे में आपसी विवाद में एक एससी परिवार तबाह हो गया.

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बलात्कार का सच

उत्तर प्रदेश पुलिस इस बात का दावा कर रही है कि लड़की के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई. कानून के जानकार कहते हैं कि पुलिस के दावे से कोई बचाव नहीं होगा. लड़की का बयान ही अंतिम माना जाएगा. 14 सितंबर को लड़की के साथ बलात्कार हुआ, मैडिकल नहीं हुआ. लड़की के अंदर के अंगों से छेड़छाड़ हुई.

कानून कहता है कि रेप साबित करने के लिए केवल 4 दिन का ही समय होता है. स्पर्म केवल 4 दिन तक ही अंग पर दिखते हैं. नाजुक अंगों पर नाखून के निशान, आधा नंगा या पूरा नंगा पाया जाना भी रेप माना जाता है. रेप की पुष्टि के लिए स्पर्म मिलना अनिवार्य नहीं होता है.

किसी महिला के नाजुक अंग पर पूरी तरह से या बिलकुल न के बराबर मर्द के अंग का स्पर्श भी बलात्कार माना जाता है. 14 दिन के बाद रेप के सुबूत नहीं मिलते, लेकिन अंगों पर चोट के निशान मिल जाते हैं. अस्पताल में एडमिट होने के समय अंगों से बहने वाला खून भी सुबूत होता है. उस समय यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि यह क्यों हो रहा है. ऐसे में रेप की पुष्टि कानून की नजर में कोई बड़ा मसला नहीं है. ऐसे हालात ही सुबूत के तौर पर पेश हो सकते हैं.

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