खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजतेबजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में  लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर,राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

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पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

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वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहेसहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

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पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधीसच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफसाफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

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मौकामुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरीडकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

 पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छेखासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदरबाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

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10 टीमें जुटीं जांच में
दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

 राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ाफसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

 कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जीमंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए,कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

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इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मंदिर में बाहुबल : भाग 1

उत्तर प्रदेश के औरैया शहर के मोहल्ला नारायणपुर में 15 मार्च, 2020 को सुबहसुबह खबर फैली कि पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक ब्रह्मलीन हो गए हैं. जिस ने भी यह खबर सुनी, पुजारी के अंतिम दर्शन के लिए चल पड़ा.

देखते ही देखते उन के घर पर भीड़ बढ़ गई. चूंकि पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखरेख एमएलसी कमलेश पाठक करते थे और उन्होंने ही अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था, अत: पुजारी के निधन की खबर सुन कर वह भी लावलश्कर के साथ नारायणपुर पहुंच गए. उन के भाई रामू पाठक और संतोष पाठक भी आ गए.

अंतिम दर्शन के बाद एमएलसी कमलेश पाठक और उन के भाइयों ने मोहल्ले वालों के सामने प्रस्ताव रखा कि पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक इस मंदिर के पुजारी थे, इसलिए इन की भू समाधि मंदिर परिसर में ही बना दी जाए.

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यह प्रस्ताव सुनते ही मोहल्ले के लोग अवाक रह गए और आपस में खुसरफुसर करने लगे. चूंकि कमलेश पाठक बाहुबली पूर्व विधायक, दरजा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में वह समाजवादी पार्टी से एमएलसी थे. औरैया ही नहीं, आसपास के जिलों में भी उन की तूती बोलती थी, सो उन के प्रस्ताव पर कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

नारायणपुर मोहल्ले में ही शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा चौबे रहते थे. उन का मकान मंदिर के पास था. कमलेश पाठक व मुनुवा चौबे में खूब पटती थी, सो मंदिर की चाबी उन्हीं के पास रहती थी. पुजारी उन्हीं से चाबी ले कर मंदिर खोलते व बंद करते थे.

मोहल्ले के लोगों ने भले ही भय से मंदिर परिसर में पुजारी की समाधि का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था किंतु शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे व उन के अधिवक्ता बेटे मंजुल चौबे को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मंजुल भी दबंग था, मोहल्ले में उस की भी हनक थी.

दरअसल, पंचमुखी हनुमान मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती जमीन बाजार से सटी हुई थी. शिवकुमार चौबे व उन के बेटे मंजुल चौबे को लगा कि कमलेश पाठक दबंगई दिखा कर पुजारी की समाधि के बहाने जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. चूंकि इस कीमती भूमि पर मुनुवा व उन के वकील बेटे मंजुल चौबे की भी नजर थी, सो उन्होंने भू समाधि का विरोध किया.

मंजुल चौबे को जब मोहल्ले वालों का सहयोग भी मिल गया तो कमलेश पाठक ने विरोध के कारण भू समाधि का विचार त्याग दिया. इस के बाद उन्होंने धूमधाम से पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक की शवयात्रा निकाली और यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया.

शाम 3 बजे अंतिम संस्कार के बाद कमलेश पाठक वापस मंदिर परिसर आ गए. उस समय उन के साथ भाई रामू पाठक, संतोष पाठक, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, सरकारी गनर अवनीश प्रताप, कथावाचक राजेश शुक्ल तथा रिश्तेदार आशीष दुबे, कुलदीप अवस्थी, विकास अवस्थी, शुभम अवस्थी और कुछ अन्य लोग थे. इन में से अधिकांश के पास बंदूक और राइफल आदि हथियार थे. कमलेश पाठक ने मंदिर परिसर में पंचायत शुरू कर दी और शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे को पंचायत में बुलाया.

मुनुवा चौबे का दबंग बेटा मंजुल चौबे उस समय घर पर नहीं था. अत: वह बड़े बेटे संजय के साथ पंचायत में आ गए. पंचायत में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे से मंदिर की चाबी देने को कहा, लेकिन मुनुवा ने यह कह कर चाबी देने से इनकार कर दिया कि अभी तक मंदिर में तुम्हारा पुजारी नियुक्त था. अब वह मोहल्ले का पुजारी नियुक्त करेंगे और मंदिर की व्यवस्था भी स्वयं देखेंगे.

मुनुवा चौबे की बात सुन कर एमएलसी कमलेश पाठक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दोनों के बीच विवाद होने लगा. इसी विवाद में कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे के गाल पर तमाचा जड़ दिया. मुनुवा का बड़ा बेटा संजय बीचबचाव में आया तो कमलेश ने उसे भी पीट दिया. मार खा कर बापबेटा घर चले गए. इसी बीच कुछ पत्रकार भी आ गए.

मंदिर परिसर में विवाद की जानकारी हुई, तो नारायणपुर चौकी के इंचार्ज नीरज त्रिपाठी भी आ गए. थानाप्रभारी एमएलसी कमलेश पाठक की दबंगई से वाकिफ थे, सो उन्होंने विवाद की सूचना औरैया कोतवाल आलोक दूबे को दे दी. सूचना पाते ही आलोक दूबे 10-12 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर परिसर में आ गए और कमलेश पाठक से विवाद के संबंध में आमनेसामने बैठ कर बात करने लगे.

उधर अधिवक्ता मंजुल चौबे को कमलेश पाठक द्वारा पिता और भाई को बेइज्जत करने की बात पता चली तो उस का खून खौल उठा. उस ने अपने समर्थकों को बुलाया फिर भाई संजय,चचेरे भाई आशीष तथा चचेरी बहन सुधा को साथ लिया और मंदिर परिसर पहुंच गया. पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक और मंजुल चौबे के बीच तीखी बहस होने लगी.

इसी बीच मंजुल चौबे के समर्थकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. एक पत्थर एमएलसी कमलेश पाठक के पैर में आ कर लगा और वह घायल हो गए. कमलेश पाठक के पैर से खून निकलता देख कर उन के भाई रामू पाठक, संतोष पाठक का खून खौल उठा.

उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग शुरू कर दी. उन के अन्य समर्थक भी फायरिंग करने लगे. कमलेश पाठक का सरकारी गनर अवनीश प्रताप व ड्राइवर छोटू भी मारपीट व फायरिंग करने लगे. संतोष पाठक की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक गोली मंजुल की चचेरी बहन सुधा के सीने में लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी. चंद मिनटों बाद ही सुधा ने दम तोड़ दिया.

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चचेरी बहन सुधा को खून से लथपथ पड़ा देखा तो मंजुल चौबे उस की ओर लपका. लेकिन वह सुधा तक पहुंच पाता, उस के पहले ही एक गोली उस के माथे को भेदती हुई आरपार हो गई. मंजुल भी धराशाई हो गया. फायरिंग में मंजुल गुट के कई समर्थक भी घायल हो गए थे और जमीन पर पड़े तड़प रहे थे. फिल्मी स्टाइल में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से इतनी दहशत फैल गई कि पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने को भाग खड़े हुए. मीडियाकर्मी भी जान बचा कर भागे. जबकि तमाशबीन घरों में दुबक गए. खूनी संघर्ष के बाद एमएलसी कमलेश पाठक अपने भाई रामू, संतोष तथा अन्य समर्थकों के साथ फरार हो गए.

खूनी संघर्ष के दौरान घटनास्थल पर कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी मय पुलिस फोर्स के मौजूद थे. लेकिन पुलिस नेअपने हाथ नहीं खोले और न ही किसी को चेतावनी दी.

हमलावरों के जाने के बाद कोतवाल आलोक दूबे ने निरीक्षण किया तो 2 लाशें घटनास्थल पर पड़ी थीं. एक लाश शिवकुमार चौबे के बेटे मंजुल चौबे की थी तथा दूसरी उस की चचेरी बहन सुधा की. घायलों में संजय चौबे, अंशुल चौबे, अंकुर शुक्ला तथा अजीत एडवोकेट थे. सभी घायलों को कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया.

कोतवाल आलोक दूबे ने डबल मर्डर की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित, सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव तथा डीएम अभिषेक सिंह भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कोतवाल आलोक दूबे से जानकारी हासिल की. डीएम अभिषेक सिंह ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया जबकि एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

चूंकि डबल मर्डर का यह मामला अति संवेदनशील था और कातिल रसूखदार थे. इसलिए एसपी सुश्री सुनीति ने घटना की जानकारी आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर आसपास के थानों की पुलिस फोर्स तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

डबल मर्डर से चौबे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा मंदिर परिसर में बेटे की लाश के पास गुमसुम बैठे थे. वहीं संजय भाई की लाश के पास  बैठा फूटफूट कर रो रहा था. आशीष चौबे भी अपनी बहन सुधा के पास विलाप कर रहा था. संजय चौबे व उन की बहन रागिनी एसपी सुश्री सुनीति के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि हमलावरों को जल्दी गिरफ्तार करो वरना वे लोग इस से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं.

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मंदिर में बाहुबल : भाग 2

एसपी सुनीति मृतकों के घर वालों को हमलावरों की गिरफ्तारी का भरोसा दे ही रही थीं कि सूचना पा कर एडीजी जयनारायण सिंह तथा आईजी मोहित अग्रवाल घटनास्थल पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी ली. पुलिस अधिकारी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग हुई और 2 हत्याएं हो गईं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि हमलावर कितने दबंग थे.

आईजी मोहित अग्रवाल ने घटनास्थल पर मौजूद मृतकों के घर वालों से बात की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे ने बताया कि बाहुबली कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करना चाहता था. जबकि उन का परिवार व मोहल्ले के लोग विरोध कर रहे थे. पुजारी की मौत के बाद वह मंदिर की चाबी मांगने आए थे. इसी पर उन से विवाद हुआ और पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक, उन के भाइयों तथा सहयोगियों ने फायरिंग शुरू कर दी.

मुनुवा चौबे ने आरोप लगाया कि अगर पुलिस चाहती तो फायरिंग रोकी जा सकती थी. लेकिन शहर कोतवाल आलोक दूबे एमएलसी कमलेश पाठक के दबाव में थे. इसलिए उन्होंने न तो हमलावरों को चेतावनी दी और न ही उन के हथियार छीनने की कोशिश की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे का आरोप सत्य था, अत: आईजी मोहित अग्रवाल ने एसपी सुनीति को आदेश दिया कि वह दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करें.

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आदेश पाते ही सुनीति ने कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी को निलंबित कर दिया. इस के बाद जरूरी काररवाई पूरी कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. बवाल की आशंका को भांपते हुए पुलिस ने रात में ही पोस्टमार्टम कराने का निश्चय किया. इसी के मद्देनजर पोस्टमार्टम हाउस में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी.

इस दुस्साहसिक घटना को आईजी मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह ने बेहद गंभीरता से लिया था. दोनों पुलिस अधिकारियों ने औरैया कोतवाली में डेरा डाल दिया. हमलावरों को ले कर औरैया शहर में दहशत का माहौल था और मृतकों के घर वाले भी डरे हुए थे.

दहशत कम करने तथा मृतकों के घर वालों को सुरक्षा देने के लिए पुलिस अधिकारियों ने पुलिस का सख्त पहरा लगा दिया. एक कंपनी पीएसी तथा 4 थानाप्रभारियों को प्रमुख मार्गों पर तैनात किया गया. इस के अलावा 22 एसआई व 48 हेडकांस्टेबलों को हर संदिग्ध व्यक्ति पर निगाह रखने का काम सौंपा गया. घर वालों की सुरक्षा के लिए 3 एसआई और आधा दरजन पुलिसकर्मियों को लगाया गया.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. तभी एसपी सुनीति की नजर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे 2 वीडियो पर पड़ी. वायरल हो रहे वीडियो संघर्ष के दौरान हो रही फायरिंग के थे, जिसे किसी ने मोबाइल से बनाया था. एक वीडियो में एमएलसी का गनर अवनीश प्रताप सिंह एक युवक की छाती पर सवार था और पीछे खड़ा युवक उसे डंडे से पीटता दिख रहा था.

उसी जगह कमलेश पाठक गनर की कार्बाइन थामे खड़े दिख रहे थे. दूसरे वायरल हो रहे वीडियो में कमलेश पाठक के भाई संतोष पाठक व अन्य फायरिंग करते नजर आ रहे थे. वीडियो देख कर एसपी सुनीति ने गनर अवनीश प्रताप सिंह को निलंबित कर दिया. साथ ही साक्ष्य के तौर पर दोनों वीडियो को सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर औरैया कोतवाली में हमलावरों के खिलाफ 3 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए. पहला मुकदमा मृतका सुधा के भाई आशीष चौबे की तहरीर पर भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 504, 506 के तहत दर्ज किया गया.

इस मुकदमे में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष पाठक, रामू पाठक, रिश्तेदार विकल्प अवस्थी, कुलदीप अवस्थी, शुभम अवस्थी, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, कथावाचक राजेश शुक्ला तथा 2 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया. दूसरी रिपोर्ट चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी ने उपरोक्त 9 नामजद तथा 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई. उन की यह रिपोर्ट 7 क्रिमिनल ला अमेडमेंट एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आरोपियों के खिलाफ तीसरी रिपोर्ट आर्म्स एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई.

आईजी मोहित अग्रवाल व एडीजी जयनारायण सिंह ने नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित तथा सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव की अगुवाई में 3 टीमें बनाईं. इन टीमों में तेजतर्रार इंसपेक्टर, दरोगा व कांस्टेबलों को शामिल किया गया. सहयोग के लिए एसओजी तथा क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगाया गया. हत्यारोपी बाहुबली एमएलसी कमलेश पाठक औरैया शहर के मोहल्ला बनारसीदास में रहते थे, जबकि उन के भाई संतोष पाठक व रामू पाठक पैतृक गांव भड़ारीपुर में रहते थे जो औरैया से चंद किलोमीटर दूर था.

गठित पुलिस टीमों ने आधी रात को भड़ारीपुर गांव, बनारसीदास मोहल्ला तथा विधिचंद्र मोहल्ला में छापा मारा और 6 नामजद अभियुक्तों को मय असलहों के धर दबोचा.

सभी को औरैया कोतवाली लाया गया. पकड़े गए हत्यारोपियों में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष, रामू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू तथा कथावाचक राजेश शुक्ला थे. 3 हत्यारोपी शुभम अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा कुलदीप अवस्थी विधिचंद्र मोहल्ले में रहते थे. वे अपनेअपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस के हाथ नहीं आए.

पुलिस ने पकड़े गए अभियुक्तों के पास से एक लाइसेंसी रिवौल्वर, 13 कारतूस, 4 तमंचे 315 बोर व 8 कारतूस, सेमी राइफल व 23 कारतूस, गनर अवनीश प्रताप सिंह की सरकारी कार्बाइन व उस के कारतूस बरामद किए.

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16 मार्च की सुबह मंजुल चौबे व सुधा चौबे का शव पोस्टमार्टम के बाद भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उन के नारायणपुर स्थित घर लाया गया. शव पहुंचते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. पति का शव देख कर आरती दहाड़ें मार कर रो पड़ी. आरती की शादी को अभी 2 साल भी नहीं हुए थे कि उस का सुहाग उजड़ गया था. उस की गोद में 3 माह की बच्ची थी. मंजुल चौबे की बहनें रश्मि, रागिनी व रुचि भी शव के पास बिलख रही थीं.

सुबह 10 बजे मंजुल व सुधा की शवयात्रा कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हुई. सुरक्षा की जिम्मेदारी सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव को सौंपी गई थी. अंतिम यात्रा में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था, जिसे संभालना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद शवयात्रा यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पहुंची, वहीं पर दोनों का अंतिम संस्कार हुआ.

एसपी सुनीति ने गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ की. इस पूछताछ के आधार पर इस खूनी संघर्ष की जो कहानी प्रकाश में आई, उस का विवरण कुछ इस प्रकार है—

गांव भड़ारीपुर औरैया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र में आता है. ब्राह्मण बहुल इस गांव में राम अवतार पाठक अपने परिवार के साथ रहते थे. सालों पहले भड़ारीपुर इटावा जिले का गांव था. जब विधूना तथा औरैया तहसील को जोड़ कर औरैया को नया जिला बनाया गया, तब से यह भड़ारीपुर गांव औरैया जिले में आ गया.

राम अवतार पाठक इसी गांव के संपन्न किसान थे. उन के 3 बेटे रामू, संतोष व कमलेश पाठक थे. चूंकि वह स्वयं पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को भी पढ़ायालिखाया. तीनों भाइयों में कमलेश ज्यादा ही प्रखर था. उस की भाषा शैली भी अच्छी थी, जिस से लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. कमलेश पाठक पढ़ेलिखे योग्य व्यक्ति जरूर थे, लेकिन वह जिद्दी स्वभाव के थे. अपने मन में जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा कर के ही मानते थे. यही कारण था कि 20 वर्ष की कम आयु में ही औरैया कोतवाली में उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो गया था.

कुछ साल बाद कमलेश और उन के भाई संतोष और रामू की दबंगई का डंका बजने लगा. लोग उन से भय खाने लगे. अपनी फरियाद ले कर भी लोग उन के पास आने लगे थे. जो काम पुलिस डंडे के बल पर न करवा पाती, वह काम कमलेश का नाम सुनते ही हो जाता.

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मंदिर में बाहुबल

मंदिर में बाहुबल : भाग 3

जब तक कमलेश गांव में रहे, तब तक गांव में उन की चलती रही. गांव छोड़ कर औरैया में रहने लगे तो यहां भी अपना साम्राज्य कायम करने में जुट गए. उन दिनों औरैया में स्वामीचरण की तूती बोलती थी. वह हिस्ट्रीशीटर था.

गांव से आए युवा कमलेश ने एक रोज शहर के प्रमुख चौराहे सुभाष चौक पर हिस्ट्रीशीटर स्वामीचरण को घेर लिया और भरे बाजार में उसे गिरागिरा कर मारा.

इस घटना के बाद कमलेश की औरैया में भी धाक जम गई. अब तक वह स्थायी रूप से औरैया में बस गए थे. बनारसीदास मोहल्ले में उन्होंने अपना निजी मकान बनवा लिया.

दबंग व्यक्ति पर हर राजनीतिक पार्टी डोरे डालती है. यही कमलेश के साथ भी हुआ. बसपा, सपा जैसी पार्टियां उन पर डोरे डालने लगीं. कमलेश को पहले से ही राजनीति में रुचि थी, सो वह पार्टियों के प्रमुख नेताओं से मिलने लगे और उन के कार्यक्रमों में शिरकत भी करने लगे. वैसे उन्हें सिर्फ एक ही नेता ज्यादा प्रिय थे सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव.

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सन 1985 के विधानसभा चुनाव में कमलेश पाठक को औरैया सदर से लोकदल से टिकट मिला.

इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की और 28 वर्ष की उम्र में विधायक बन गए. लेकिन विधायक रहते सन 1989 में उन्होंने लोकदल के विधायकों को तोड़ कर मुलायम सिंह की सरकार बनवा दी.

इस के बाद से वह मुलायम सिंह के अति करीबी बन गए. लोग उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहने लगे थे. वर्ष 1990 में सपा ने उन्हें एमएलसी बनाया और 1991 में कमलेश दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बने.

सन 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने कमलेश पाठक को कानपुर देहात की डेरापुर सीट से मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन के सामने थे भाजपा से भोले सिंह. यह चुनाव बेहद संघर्षपूर्ण रहा.

दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में जम कर गोलियां चलीं. इस के बाद ब्राह्मणों ने एक मत से कमलेश पाठक को जीत दिलाई. तब से उन्हें ब्राह्मणों का कद्दावर नेता माना जाने लगा.

चुनाव के बाद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह ने औरैया को जिला बनाने के नियम को रद्द कर दिया. इस पर कमलेश ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. उन्होंने जिला बचाओ आंदोलन छेड़ कर जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह औरैया में सभा करने आए तो उन्होंने गोलियां बरसा कर उन के हैलीकाप्टर को सभास्थल पर नहीं उतरने दिया. एक घंटा हेलीकाप्टर हवा में उड़ता रहा, तब कहीं जा कर मानमनौव्वल के बाद उतर सका.

इस घटना के बाद मुलायम सिंह नाराज हो गए, लेकिन दबंग नेता की छवि बना चुके कमलेश पाठक के आगे उन की नाराजगी ज्यादा दिन टिक न सकी. सन 2007 में नेताजी ने उन्हें पुन: टिकट दे दिया, लेकिन कमलेश दिबियापुर विधानसभा सीट से हार गए.

साल 2009 में कमलेश पाठक ने जेल में रहते सपा के टिकट पर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा पर हार गए. इस के बाद उन्होंने साल 2012 में सिकंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा, पर इस बार भी हार गए.

हारने के बावजूद वर्ष 2013 में कमलेश पाठक को राज्यमंत्री का दरजा दे कर उन्हें रेशम विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस के बाद 10 जून 2016 को समाजवादी पार्टी से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना कर भेजा. वर्तमान में वह सपा से एमएलसी थे. सपा सरकार के रहते कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई से अवैध साम्राज्य कायम किया.

उन्होंने ग्राम समाज के तालाबों तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे किए. उन्होंने पक्का तालाब के पास नगरपालिका की जमीन पर कब्जा कर गेस्टहाउस बनवाया. साथ ही औरैया शहर में 2 आलीशान मकान बनवाए. अन्य जिलों व कस्बों में भी उन्होंने भूमि हथियाई. जिले का कोई अधिकारी उन के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. कमलेश की राजनीतिक पहुंच से उन के भाई संतोष व रामू भी दबंग बन गए थे. दबंगई के बल पर संतोष पाठक ब्लौक प्रमुख का चुनाव भी जीत चुका था. दोनों भाइयों का भी क्षेत्र में खूब दबदबा था. सभी के पास लाइसैंसी हथियार थे.

कमलेश पाठक की दबंगई का फायदा उन के भाई ही नहीं बल्कि शुभम, कुलदीप तथा विकल्प अवस्थी जैसे रिश्तेदार भी उठा रहे थे. ये लोग कमलेश का भय दिखा कर शराब के ठेके, सड़क निर्माण के ठेके तथा तालाबों आदि के ठेके हासिल करते और खूब पैसा कमाते. ये लोग कदम दर कदम कमलेश का साथ देते थे और उन के कहने पर कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे. कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई के चलते धार्मिक स्थलों को ही नहीं छोड़ा और उन पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया. औरैया शहर के नारायणपुर मोहल्ले में स्थित प्राचीन पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी कमलेश पाठक ने अपना कब्जा जमा लिया था. साथ ही वहां अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप पाठक को पुजारी नियुक्त कर दिया था. कमलेश की नजर इस मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती भूमि पर थी.

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इसी नारायणपुरवा मोहल्ले में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास शिवकुमार उर्फ मुनुवां चौबे का मकान था. इस मकान में वह परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे संजय, मंजुल और

3 बेटियां रश्मि, रुचि तथा रागिनी थीं. तीनों बेटियों तथा संजय की शादी हो चुकी थी.

मुनुवां चौबे मोहल्ले के सम्मानित व्यक्ति थे. धर्मकर्म में भी उन की रुचि थी. वह हर रोज पंचमुखी हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते थे. पुजारी वीरेंद्र स्वरूप से उन की खूब पटती थी. पुजारी मंदिर बंद कर चाबी उन्हीं को सौंप देता था.

मुनुवां चौबे का छोटा बेटा मंजुल पढ़ाई के साथसाथ राजनीति में भी रुचि रखता था. उन दिनों कमलेश पाठक का राजनीति में दबदबा था. मंजुल ने कमलेश पाठक का दामन थामा और राजनीति का ककहरा पढ़ना शुरू किया. वह समाजवादी पार्टी के हर कार्यक्रम में जाने लगा और कई कद्दावर नेताओं से संपर्क बना लिए. कमलेश पाठक का भी वह चहेता बन गया.

मंजुल औरैया के तिलक महाविद्यालय का छात्र था. वर्ष 2003 में उस ने कमलेश पाठक की मदद से छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस के बाद मंजुल ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. उस ने अपने दर्जनों समर्थक बना लिए. अब उस की भी गिनती दबंगों में होने लगी. इसी महाविद्यालय से उस ने एलएलबी की डिग्री हासिल की और औरैया में ही वकालत करने लगा.

मंजुल के घर के पास ही उस के चाचा अरविंद चौबे रहते थे. उन के बेटे का नाम आशीष तथा बेटी का नाम सुधा था. मंजुल की अपने चचेरे भाईबहन से खूब पटती थी. सुधा पढ़ीलिखी व शिक्षिका थी. पर उसे देश प्रदेश की राजनीति में भी दिलचस्पी थी.

मंजुल की ताकत बढ़ी तो कमलेश पाठक से दूरियां भी बढ़ने लगीं. ये दूरियां तब और बढ़ गईं, जब मंजुल को अपने पिता से पता चला कि कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती भूमि पर कब्जा करना चाहता है. चूंकि मंदिर मंजुल के घर के पास और उस के मोहल्ले में था, इसलिए मंजुल व उस का परिवार चाहता कि मंदिर किसी बाहरी व्यक्ति के कब्जे में न रहे. वह स्वयं मंदिर पर आधिपत्य जमाने की सोचने लगा. पर दबंग कमलेश के रहते, यह आसान न था.

16 मार्च, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त कमलेश पाठक, रामू पाठक, संतोष पाठक, अवनीश प्रताप, लवकुश उर्फ छोटू तथा राजेश शुक्ला को औरैया कोर्ट में सीजेएम अर्चना तिवारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें इटावा जेल भेज दिया गया.

दूसरे रोज बाहुबली कमलेश पाठक को आगरा सेंट्रल जेल भेजा गया. रामू पाठक को उरई तथा संतोष पाठक को फिरोजाबाद जेल भेजा गया. लवकुश, अवनीश प्रताप तथा राजेश शुक्ला को इटावा जेल में ही रखा गया. 18 मार्च को पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा शुभम को भी गिरफ्तार कर लिया. उन्हें औरैया कोर्ट में अर्चना तिवारी की अदालत मे पेश कर जेल भेज दिया गया.

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– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी के हाथ, पति की हत्या

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक सनसनीखेज घटनाक्रम में पुलिस ने 6 माह बाद एक महिला को अपने ही पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करके जेल के सीखचों में डाल दिया. ऐसी अनेक घटनाएं अक्सर हमारे आसपास घटित होती है, जिन्हें हम देख कर भी अनदेखा कर देते हैं.उसके पीछे के सत्य को कभी समझने का प्रयास नहीं करते. आज इस रिपोर्ट में हम ऐसे कुछ घटनाक्रमों पर विशेष दृष्टिपात करते हुए आपको बताने का प्रयास करेंगे, जिससे यह संदेश देश दुनिया में पहुंच आखिरकार इसे किस तरह रोका  जा सकता है.

प्रथम प्रकरण-

छत्तीसगढ़ के जिला चांपा जांजगीर के ग्राम सिवनी में एक शख्स की मृत्यु हो गई. बाद में खुलासा हुआ कि मृत्यु के पीछे शख्स की पत्नी का हाथ है, उसने जहर दिया था.

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दूसरा प्रकरण-

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार में एक व्यक्ति की लाश कुएं में मिली. जांच में यह तथ्य सामने आया कि उसकी पत्नी ने ही अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को मौत के घाट उतार दिया.

तीसरा प्रकरण-

सरगुजा संभाग के सूरजपुर में एक 20 वर्ष की महिला ने अपने बुजुर्ग पति की हत्या अपने प्रेमी के साथ मिल करवा दी. क्योंकि उसे प्रेमी मिल जाता और साथ ही पति की नौकरी भी.

यह कहा जा सकता है कि ऐसे अनेक मामले हमारे आसपास आए दिन घटित होते रहते हैं जिसकी तह मे सीधा सीधा किसी महिला का हाथ होता है. मगर समाज में यह माना जाता है कि  पुरुष क्रूर होते हैं और महिला  पर अत्याचार करते हैं. मगर यह भी सच है कि ऐसा बेहद बेहद कम होता है .मगर यह एक सिक्के के दोनों पहलू कहे जा सकते हैं.

मामला एक सिपाही कमल  का

पत्नी द्वारा पति को मौत के घाट उतारने की यह घटना छत्तीसगढ़ के रायपुर के खमतराई थाना क्षेत्र की है. पुलिस का सिपाही, कमल बघेल अपनी पत्नी कीर्ति बंजारे और 2 बच्चों के साथ उरकुरा में रहता था. पता चला अचानक जनवरी महीने में छत से गिर गया था, तत्पश्चात उपचार के दौरान उसकी निजी अस्पताल में मौत हो गई . खमतराई थाना प्रभारी रमाकांत साहू ने हमारे संवाददाता को जो जानकारी दी उसके मुताबिक, सिपाही के पिता ने उसकी पत्नी पर हत्या का आरोप लगाया था, उच्च अधिकारियों को शिकायत के बाद इस मामले में गंभीरता से विवेचना की गई. मामले में नया खुलासा तब हुआ जब मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दम घुटने से मौत बताया गया.

इस मामले के जांच अधिकारी ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के पश्चात संबंधित चिकित्सक से क्यूरी कराने के साथ विधिक सलाह ली गई . परिस्थिति के अनुसार और पीएम रिपोर्ट के आधार पर सब कुछ धीरे-धीरे सामने आता चला गया और अंततःहत्या का अपराध दर्ज किया गया.

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वाद विवाद बना कारण

मृतक छत्तीसगढ़ की पुलिस में सिपाही था और उसका  पत्नी के साथ अक्सर वाद-विवाद होते रहता था, स्थिति इतनी विषम थी कि पत्नी की शिकायत पर पूर्व में मृतक के खिलाफ  अपराध दर्ज किया गया था. सिपाही की मौत पर हुई जांच में पत्नी द्वारा छत से धकेलना पाया गया, जिसके बाद मृतक की पत्नी कीर्ति बंजारे को गिरफ्तार कर रिमांड पर भेजा गया . इस हत्याकांड में महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि सिपाही कमल ने प्रेम विवाह किया था मगर आगे चलकर दोनों की पटी नहीं.

दरअसल,छोटी-छोटी बातों में  बात अक्सर इतनी बढ़ जाती है कि पति-पत्नी में से कोई एक अपराध का रास्ता चुन लेता है और घटना के पश्चात सारा परिवार सफर करता है.

रासलीला बहू की

रासलीला बहू की : भाग 1

रात के 10 बज रहे थे. काली चौड़ी सड़कें स्ट्रीट लाइट की दूधिया रोशनी में नहाई हुई थीं. सड़क पर इक्कादुक्का वाहनों का जानाआना जारी था. खाली पड़ी सड़क पर सफेद रंग की एक वैगनआर कार सामान्य रफ्तार से दौड़ रही थी. कार की ड्राइविंग सीट पर 35 वर्षीय कार्तिक केसरी बैठा था.

उन की बगल वाली सीट पर पत्नी प्रीति बैठी थी. पतिपत्नी दोनों बेहद खुश थे. ये लोग झारखंड की राजधानी रांची से दुर्गा पूजा का सामान खरीद कर घर लौट रहे थे. उन का घर खूंटी जिले के पिठोरिया थाना क्षेत्र के विक्टोरिया में था.

जैसे ही कार्तिक की कार खूंटी जिले के बाड़ू चौक के पास पहुंची, एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक उस की कार को ओवरटेक करते हुए सामने आ गए. उन्होंने अपनी बाइक तिरछी कर के कार के आगे खड़ी कर दी.

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बाइक सामने आने से कार्तिक ने अचानक ब्रेक लगा कर कार को रोका. उन की कार बाइक से टकरातेटकराते बची. बाइक से करीब 10 मीटर दूर सफेद रंग की एक स्कौर्पियो कार खड़ी थी.

कार्तिक कुछ समझ पाता, तब तक दोनों बाइक सवार उस के करीब पहुंच गए और गालियां देते हुए उसे कार से बाहर निकलने को कहने लगे. इतने में स्कौर्पियो से भी 2 युवक बाहर निकले. उन में से एक के हाथ में करीब 3 फीट लंबा और मोटा लोहे का रौड था.

कार्तिक समझ गया कि उन की नीयत ठीक नहीं है. पतिपत्नी बुरी तरह से डर गए थे. दोनों कातर निगाहों से एकदूसरे को देखने लगे. कार्तिक समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें?

चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा था. दूरदूर तक कोई नहीं दिख रहा था, जिसे मदद के लिए पुकारा जाता. जबकि वे चारों बारबार उसे कार से बाहर निकलने के लिए गालियां दिए जा रहे थे. कार्तिक से जब नहीं रहा गया तो वह कार का दरवाजा खोल कर बाहर आ गया.

जैसे ही वह कार से बाहर निकला, वे चारों हिंसक पशु की तरह उस पर टूट पड़े, उस पर लात और घूंसों की बारिश कर दी. इसी बीच लोहे की रौड वाले युवक ने कार्तिक के सिर के पीछे से जोरदार वार किया.

उस का वार इतना जोरदार था कि एक ही वार में कार्तिक का सिर फट गया. उस के मुंह से दर्दनाक चीख निकली और वह कटे वृक्ष की तरह हवा में लहराता हुआ जमीन पर आ गिरा. जहां वह गिरा, उस के चारों ओर खून फैलने लगा. चारों युवक जब पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि वह मर चुका है तो वे वहां से चले गए.

प्रीति देखती रही पति को पिटते हुए

डरीसहमी प्रीति आंखों के सामने पति पर हुए हमले को देखती रही. हमलावरों के जाने के बाद वह रोती हुई कार से बाहर निकली. पति को हिलाडुला कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं थी, वह मर चुका था. प्रीति जोरजोर से रोने लगी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि संकट की इस घड़ी में मदद के लिए किसे पुकारे.

रोतेरोते उसे अपनी बहन का बेटा शंकर याद आया. उस ने फोन कर के पूरी बात शंकर को बता दी. मौसी की बात सुन कर शंकर बुरी तरह घबरा गया. उस ने मौसी की हिम्मत बढ़ाई और कहा कि घबराएं नहीं, वह अभी पहुंच रहा है.

शंकर ने फोन काट दिया और घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. इस बीच प्रीति ने अपने ससुर जनार्दन केसरी और चचेरे देवर रंजीत को भी फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही कार्तिक के घर वाले वहां पहुंच गए.

शंकर ने समझदारी दिखाते हुए सब से पहले पतले, रंगीन गमछे से कार्तिक का सिर बांधा, जहां से अभी भी खून बह रहा था. फिर वहां आए लोगों ने आननफानन में कार्तिक को कार में डाला और मेडिका हास्पिटल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. उस समय रात के 12 बज रहे थे और तारीख थी 28 सितंबर, 2019.

वह इलाका कांके थाने में आता था. जैसे ही कार्तिक केसरी की हत्या की सूचना कांके थाने को मिली, थानेदार विनय कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ मेडिका हास्पिटल पहुंच गए. हास्पिटल में भारी भीड़ एकत्र थी.

मृतक कार्तिक केसरी कोई सामान्य आदमी नहीं था, वह पिठोरिया का राशन डीलर और सामाजिक कार्यकर्ता था. दूरदूर तक के लोग उस के नाम से वाकिफ थे. उस के जानने वालों को जैसे ही उस की हत्या की सूचना मिली, वे मेडिका हास्पिटल पहुंच गए.

एसओ विनय सिंह भांप गए थे कि अगर अतिरिक्त पुलिस फोर्स नहीं बुलाई गई तो वहां बड़ा हंगामा हो सकता है, इसलिए उन्होंने उसी समय एसएसपी अनीश गुप्ता, एसपी अमित रेणू और डीएसपी-1 नीरज कुमार को वस्तुस्थिति से अवगत करा कर मौके पर पुलिस फोर्स भेजने का आग्रह किया.

एसएसपी अनीश गुप्त ने स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए पिठोरिया थाने के थानेदार विनोद राम को मय फोर्स के अस्पताल भेज दिया. दोनों थानों की पुलिस ने मेडिका अस्पताल पहुंच कर स्थिति को काबू में कर लिया था.

कुछ देर बाद एसपी अमित रेणू और डीएसपी-1 नीरज कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अधिकारियों से कार्तिक के घर वाले एक ही मांग कर रहे थे कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए, अन्यथा यहां जमा भीड़ को हम नहीं रोक पाएंगे. फिर इस का जिम्मेदार खुद प्रशासन होगा. अमित रेणू ने पीडि़तों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि कानून की मदद करें. हत्यारे जल्द ही गिरफ्तार कर लिए जाएंगे. कानून को अपने तरीके से काम करने दें.

उस वक्त तो पीडि़त के घरवाले कुछ नहीं बोले, एसपी साहब की बात सुन कर खामोश रह गए और वहां एकत्र लोगों को भी समझा दिया कि कानून को अपना काम करने दें.

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पुलिस ने कार्तिक की लाश को कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. एसपी अमित रेणू ने कार्तिक के चचेरे भाई रंजीत से मृतक की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि गांव में उस के जैसा हंसमुख और मिलनसार कोई नहीं था. दुश्मनी का तो कोई सवाल ही नहीं था.

फिर उन्होंने घटना की एकमात्र चश्मदीद मृतक की पत्नी प्रीति से पूछताछ की. प्रीति ने रोतेरोते पुलिस को बताया कि कार्तिक को 4-5 लोगों ने मिल कर लाठी, डंडे और रौड से मारमार कर जख्मी कर दिया था. इस के बाद वे 2 बाइकों से पिठोरिया चौक की ओर भाग निकले थे. दूर होने की वजह से वह उन का चेहरा ठीक से नहीं देख पाई थी.

पूछताछ करने के बाद एसपी अमित रेणू वापस लौट गए. उधर थानाप्रभारी (कांके) विनय कुमार सिंह और एसओ (पिठोरिया) विनोद राम कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मृतक के घर वालों को ले कर घटनास्थल पहुंचे.

घटनास्थल पर काफी दूरी तक खून फैल कर सूख चुका था. साक्ष्य के लिए पुलिस ने खून सनी मिट्टी का नमूना ले कर रख लिया. इस के अलावा वहां पुलिस को कोई और साक्ष्य नहीं मिला. कागजी खानापूर्ति करतेकरते पुलिस को रात के करीब 2 बज गए थे. उसी रात मृतक कार्तिक के पिता जनार्दन केसरी की तहरीर पर पुलिस ने 5 अज्ञात हत्यारों के खिलाफ धारा 302, 201 भादंसं के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

पुलिस पर दबाव था हत्यारों को गिरफ्तार करने का

अगली सुबह महावीर मंडल दल के जिला अध्यक्ष कृष्णा नायक और जन वितरण प्रणाली संघ के अध्यक्ष अनिल केसरी ने अपने समर्थकों के साथ पिठोरिया चौक को जाम कर दिया और हत्यारों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करने लगे.

चौक जाम की सूचना मिलते ही एसपी अमित रेणू वहां पहुंच गए. उन्होंने आंदोलनकारियों से बात की और फिर से भरोसा दिलाया कि हत्यारे चाहे कितने ही ताकतवर क्यों न हों, कानून से बच नहीं सकते. उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा. एसपी के भरोसा दिलाने के बाद आंदोलनकारियों ने धरना समाप्त किया.

30 सितंबर को कार्तिक केसरी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक कौपी थानाप्रभारी विनय कुमार सिंह के पास थी. उन्होंने रिपोर्ट के एकएक बिंदु को गौर से पढ़ा. रिपोर्ट में मौत का कारण सिर में आई गहरी चोट और अत्यधिक रक्तस्राव बताया गया था. कार्तिक केसरी की हत्या को 3 दिन बीत चुके थे. 3 दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई थी. एसएसपी अनीश गुप्ता ने घटना के खुलासे के लिए डीएसपी-1 नीरज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की.

इस टीम में एसओ (कांके) विनय कुमार सिंह और उन के तेजतर्रार, भरोसेमंद पुलिसकर्मी शामिल थे. टीम गठित करने के बाद पुलिस ने नए सिरे से घटना की बारीकी से जांच की.

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जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

रासलीला बहू की : भाग 3

ऐसा नहीं था कि प्रीति और अंकित के प्यार की बात उन के घर वालों को पता नहीं थी. उन के घर वालों को दोनों के प्रेम संबंध के बारे में सब पता था. इसीलिए प्रीति के घर वाले बेटी की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे ताकि आवारा अंकित से बेटी का पीछा छूट जाए.

प्रीति के घरवालों ने अंकित से पीछा छुड़ाने के लिए सन 2011 में उस की शादी पिठोरिया के रहने वाले जनार्दन केसरी के एकलौते बेटे कार्तिक केसरी के साथ कर दी. प्रीति के घर वाले प्रार्थना करते रहे कि बेटी की गृहस्थी बस जाए, उस पर अंकित का बुरा साया न पड़े.

सालों तक प्रीति और अंकित का प्यार राज बना रहा. पति के काम पर जाने के बाद प्रीति अपने आशिक अंकित से फोन पर घंटों बातें करती रहती थी.

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एक बार अंकित प्रेमिका की ससुराल आया तो उस ने अपने सासससुर और पति से उस का परिचय दूर के रिश्ते के भाई के रूप में कराया. इस के बाद अंकित का वहां आनाजाना शुरू हो गया. जिस दिन पति किसी काम से शहर के बाहर गया होता, प्रीति सीधेसादे सासससुर की आंखों में धूल झोंक कर अंकित को फोन कर के बुला लेती और दिन भर उस की बांहों में झूलती.

अंकित के बारबार आने से ससुर जनार्दन को अंकित पर शक हो गया कि वह बारबार क्यों आता है? इस बात को ले कर एक दिन कार्तिक पत्नी से पूछ बैठा कि अंकित बारबार क्यों आता है? मुझे उस के लक्षण कुछ ठीक नहीं लगते. तुम उसे यहां आने से मना कर दो.

प्रीति समझ गई थी पति को उस पर शक हो गया है. उस ने यह बात फोन पर अंकित को बता दी कि कार्तिक को उस पर शक हो गया है. जब तक मैं न कहूं, तब तक यहां मत आना. प्रीति की बात सुन कर अंकित थोड़ा मायूस जरूर हुआ, पर उस ने हिम्मत नहीं हारी.

अंकित भी एक रईस परिवार से था. उस के घर में गाड़ी, नौकर और सुखसुविधा के सभी महंगे सामान थे. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं थी. वह दिन भर आवारा दोस्तों के साथ आवारागर्दी करता था. उन पर पानी की तरह पैसे लुटाता था. उस के खास दोस्तों में गांव के विशाल पांडेय, दीपक लिंडा और उज्जवल केसरी शामिल थे. विशाल पेशे से वकील था और उज्जवल केसरी उस का ड्राइवर. इन तीनों से अंकित की प्रेम कहानी छिपी नहीं थी.

प्रीति ने जब से अंकित को ससुराल आने से मना किया था, तब से उस के दिमाग में एक ही ख्याल बारबार आता था कि कार्तिक को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दे.

अंकित ने अपने मन की बात दोस्तों से शेयर की, लेकिन दोस्तों ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया. विशाल ने उसे समझाया कि बीच का कोई रास्ता निकालते है, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

सितंबर, 2019 के दूसरे हफ्ते की बात है. कार्तिक के एक रिश्तेदार के यहां पार्टी का आयोजन था. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े लोग शरीक हुए. रात का समय था. पार्टी में आए मेहमान प्लेटों में खाना लिए खाने का लुत्फ ले रहे थे.

पार्टी में कार्तिक ने प्रीति और अंकित को किया जलील

पार्टी में अंकित केसरी भी शामिल था. कार्तिक भी पत्नी को ले कर आया था. पार्टी में पत्नी को छोड़ कर कार्तिक मेहमानों और पुराने दोस्तों से मिलने चला गया. अंकित जानता था कि पार्टी में प्रीति जरूर आएगी. उसी दरमियान उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो वह खुशी से उछल पड़ा. अंकित प्लेट में खाना लिए खा रहा था, प्रीति भी उसी की बगल में खड़ी हो कर उसी की प्लेट में खाना खाने लगी. तभी वहां कार्तिक आ गया.

पत्नी को प्रेमी अंकित के साथ एक ही प्लेट में खाना खाते देख कार्तिक गुस्से से पागल हो गया. उस ने मेहमानों के सामने पत्नी और उस के आशिक को खूब झाड़ पिलाई. जो नहीं कहना था, गुस्से में आ कर वह तक कह गया. अंकित और प्रीति के सिर शर्म से झुक गए. अंकित प्रीति की खातिर उस समय अपमान का घूंट पी कर रह गया. लेकिन मन ही मन उस ने फैसला कर लिया कि जिस तरीके से कार्तिक ने भरी महफिल में उन दोनों को अपमानित किया है, उसे उस का फल तो भुगतना ही पड़ेगा. प्रीति भी खून का घूंट पी कर रह गई थी. पार्टी के बाद कार्तिक पत्नी को ले कर घर आ गया. पार्टी में उस ने पत्नी को जो डांट पिलाई थी, सो पिलाई थी, घर आ कर भी उस ने उसे खूब डांटा.

उस ने प्रीति से यहां तक कह दिया कि आज के बाद अगर अंकित से बात करने की कोशिश की या मिली तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. वह घर की इज्जत की खातिर अंकित को मार भी सकता है.

पति की धमकी से प्रीति डर गई. उस ने अंकित को फोन कर के सारी बातें बता दीं. साथ ही अंकित को कार्तिक को रास्ते से हटाने के लिए हरी झंडी भी दे दी.

माशूका की ओर से मिली हरी झंडी के बाद अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर कार्तिक की हत्या की योजना बना डाली. योजना के अनुसार, 28 सितंबर, 2019 की सुबह कार्तिक पत्नी के कहने पर उसे साथ ले कर अपनी कार से दुर्गा पूजा का सामान लेने रांची गया. दोनों ने दिन भर खरीदारी की. दुर्गा पूजा पर हर साल खरीदारी करने का जिम्मा कार्तिक का ही था. वह दुर्गा पूजा समिति का अध्यक्ष भी था.

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खैर, खरीदारी कर के रात 8 बजे वह रांची से खूंटी के लिए निकला. इसी बीच पति की आंखों में धूल झोंक कर प्रीति ने अपने आशिक अंकित को बता दिया कि वह रांची से घर के लिए लौट रहे हैं. 2 घंटे में वह खूंटी पहुंच जाएगी.

उधर अंकित ने अपनी स्कौर्पियो कार में विशाल पांडेय को बैठा लिया. विशाल उस का साथ देने के लिए पहले ही हामी भर चुका था. उस ने कार में लाठी, डंडा और लोहे का रौड छिपा दी थी. एक बाइक पर दीपक लिंडा और मुंगेश सवार हो कर अंकित के बताए स्थान कांके थानाक्षेत्र के बाड़ू चौक पर जा कर छिप गए. अंकित भी वहीं आ कर छिप गया.

रात 10 बजे कार्तिक की कार बाड़ू चौक के नजदीक पहुंची तो पहले से घात लगाए बैठे अंकित ने दीपक लिंडा को इशारा कर दिया कि शिकार किसी कीमत पर बचना नहीं चाहिए. तुम कार्तिक की कार ओवरटेक करो, हम पीछे से आते हैं.

दीपक ने वैसा ही किया, जैसा उस से करने को कहा गया. कार्तिक की कार जैसे ही बाड़ू चौक के पास पहुंची, दीपक ने अपनी मोटरसाइकिल से ओवरटेक किया और बाइक कार्तिक की कार के सामने तिरछा कर के खड़ी कर दी. तब तक पीछे से अंकित भी वहां पहुंच गया. इस के बाद अंकित और विशाल पांडेय लाठी, डंडा और रौड ले कर कार्तिक के पास पहुंचे.

कार्तिक को जबरन कार से बाहर निकलने पर मजबूर किया गया. कार से बाहर निकलते ही विशाल ने लोहे की रौड से कार्तिक के सिर पर जोरदार वार किया, जिस से कार्तिक का सिर 2 भागों में बंट गया और उस की मौके पर ही मौत हो गई. कार में बैठी प्रीति पति की पिटाई होते देख मन ही मन खुश हो रही थी कि उस की राह का कांटा हमेशा के लिए निकल गया. अब उसे और अंकित को एक होने से कोई नहीं रोक पाएगा.

बहरहाल, प्रीति ने जिस शातिराना अंदाज में शतरंज की बाजी खेली, कानून के जांबाज नुमाइंदों ने उसी चाल से उस की बाजी पलट दी और प्रीति और अंकित को जेल जाना पड़ा.

10 दिसंबर को विशाल पांडेय को गिरफ्तार किया गया. अंकित और उस के दोनों साथी फरार चल रहे थे. 6 मार्च, 2020 को दीपक लिंडा, उज्जवल केसरी और मुंगेश गिरफ्तार कर लिए गए.

फरार चल रहा अंकित अप्रैल, 2020 के दूसरे सप्ताह में गिरफ्तार हुआ. सभी आरोपियों ने कार्तिक केसरी की हत्या में अपना जुर्म कबूल कर लिया. अंकित ने हत्या में प्रयुक्त लाठी, डंडा और रौड बरामद करा दी थी. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

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– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रासलीला बहू की : भाग 2

घटना की वस्तुस्थिति जानने के लिए पुलिस टीम सब से पहले क्राइम साइट पर पहुंची. अभी तक की जांचपड़ताल में पुलिस को यही पता चला था कि घटना वाली रात पतिपत्नी दोनों रांची से दुर्गा पूजा की खरीदारी कर के घर लौट रहे थे. इसी बीच घटना घटी थी.

लेकिन इस में एक बात खटक रही थी कि हत्यारों ने घटना को लूट की नीयत से तो अंजाम दिया नहीं था. अगर लूट की नीयत से वारदात की गई होती तो कार्तिक की पत्नी के साथ जरूर लूटपाट हुई होती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

दूसरी बात यह कि पत्नी की आंखों के सामने 4-5 अपराधी लाठी, डंडे और रौड से पति पर हमला करते रहे और पत्नी ने विरोध तक नहीं किया. वह कार में बैठेबैठे पति की हत्या का नजारा देखती रही. यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

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तीसरी सब से खास बात यह, जोकि प्रीति ने पूछताछ में बताई थी कि अपराधी 2 बाइकों पर सवार हो कर पिठोरिया चौक की ओर भागे थे. उस मार्ग के सभी सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगालने पर उस रात बताए गए समय पर कोई भी बाइक से भागते हुए नहीं दिखा था. इस का मतलब था कि प्रीति झूठ बोल रही थी. पुलिस को प्रीति पर संदेह हो गया कि इस घटना में उस की कोई भूमिका जरूर है.

सच का पता लगाने के लिए पुलिस ने कार्तिक और उस की पत्नी प्रीति की काल डिटेल्स निकलवाई. प्रीति की काल डिटेल्स देख कर पुलिस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. घटना के समय प्रीति के फोन की लोकेशन मौके पर पाई गई. उस के फोन से घटना के कुछ देर पहले तक एक नंबर पर कई बार काल की गई थी. प्रीति की काल डिटेल्स ने पुलिस के इस शक को और पुख्ता कर दिया कि पति की हत्या में प्रीति का हाथ है. जांचपड़ताल से एक बात तो साफ हो गई थी कि कार्तिक की हत्या प्रेम प्रसंग के चलते हुई थी. लेकिन प्रीति को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस उस के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर लेना चाहती थी, ताकि अदालत में उस का मखौल न उड़े.

पुलिस ने प्रीति की काल डिटेल्स से नंबर ले कर उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से प्रीति की घटना के ठीक पहले कई बार बात हुई थी. वह नंबर खूंटी जिले के लोधमा कर्रा के रहने वाले अंकित केसरी उर्फ  बिट्टू का था, जिस से दोनों के बीच बातचीत हुई थी.

पुलिस ने अंकित के घर लोधमा कर्रा में दबिश दी तो वह फरार मिला. घर वालों से पूछताछ पर पता चला कि वह करीब 15 दिनों से कहीं गया हुआ है. कहां गया है, घर वालों को भी नहीं पता था.

प्रीति का प्रेमी अंकित आया संदेह के दायरे में

अंकित का घर से फरार होना पुलिस के शक को मजबूत कर रहा था. पुलिस को लग रहा था इस हत्याकांड में अंकित का हाथ अवश्य है तभी वह घटना के बाद से फरार है. कार्तिक हत्याकांड के खुलासे की एक आखिरी कड़ी मृतक की पत्नी प्रीति ही थी, जिस से पूछताछ कर के घटना से परदा उठ सकता था. वैसे भी 2 सप्ताह बीत चुके थे. घटना के खुलासे के लिए पुलिस पर दबाव था.

10 अक्टूबर, 2019 को पुलिस मृतक की पत्नी प्रीति को विक्टोरिया से हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए थाना कांके ले आई. पुलिस ने उस से कड़ाई से पूछताछ शुरू की. लेकिन प्रीति पुलिस को भरमाती रही कि वह निर्दोष है, पति की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

पुलिस ने जब उस के सामने अंकित से बातचीत की काल डिटेल्स रखी तो वह घबरा गई. खुद को फंसता देख उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उसी के कहने पर उस के प्रेमी अंकित केसरी उर्फ बिट्टू ने अपने साथियों के साथ मिल कर कार्तिक केसरी को मौत के घाट उतारा था.

इस के बाद प्रीति ने घटनाक्रम के बारे में विस्तार से बता दिया. अपने ही सिंदूर को मिटाने वाली पत्नी की करतूतों को जिस ने भी सुना, हैरत में रह गया. बहरहाल, पुलिस ने प्रीति को अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया. प्रीति से हुई पूछताछ में कई आरोपितों अंकित केसरी उर्फ बिट्टू, उज्जवल केसरी, दीपक लिंडा और विशाल कुमार पांडेय के नाम सामने आए.

पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी की कोशिश में लगी थी. घटना के बाद से ही सभी आरोपी भूमिगत हो गए थे. जब तक पुलिस जांच की प्रक्रिया आगे बढ़े, आइए जानते हैं दिल दहला देने वाली इस कहानी की पृष्ठभूमि—

35 वर्षीय कार्तिक केसरी मूलरूप से खूंटी जिले के पिठोरिया थानाक्षेत्र के विक्टोरिया का रहने वाला था. उस के पिता जनार्दन केसरी क्षेत्र के बड़े काश्तकारों में गिने जाते थे. उन के पास खेती की कई एकड़ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उन के परिवार में कुल जमा 4 सदस्य थे. 2 पतिपत्नी और 2 संतानें. एक बेटा कार्तिक और दूसरी बेटी. बेटी का विवाह हो चुका था.

पढ़लिख कर कार्तिक भी जवान हो गया था. वह पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. एकलौता होने की वजह से उन्होंने बेटे को सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं करने दिया था. उन का कहना था कि हमारे पास सब कुछ तो है, सरकारी नौकरी कर के क्या हासिल होगा.

कार्तिक भी यही सोचता था कि अगर वह नौकरी पर चला गया तो उस के बूढ़े मांबाप की सेवा कौन करेगा. उन के बुढ़ापे की एक आखिरी लाठी तो वही है, इसलिए उस ने कभी भी बाहर जाने की नहीं सोची.

कार्तिक शादी लायक हो चुका था. उस के लिए कई जगह से रिश्ते आ रहे थे. उन्हीं में एक रिश्ता लोधमा कर्रा के कुलहुट्टू से आया था. लड़की खूबसूरत, गुणी तथा संस्कारी बताई गई थी, नाम था प्रीति. जनार्दन केसरी को यह रिश्ता पसंद आ गया. उन्होंने सन 2011 में बेटे को प्रीति संग परिणय सूत्र में बांध दिया. प्रीति ससुराल विक्टोरिया आई तो वह खुश नहीं थी. उस ने जिस खूबसूरत राजकुमार के सपने संजोए थे, वे धरे का धरे रह गए थे. प्रीति के मुताबिक उस का पति भले ही अमीर था, लेकिन खूबसूरती के मामले में बेहद गरीब था. यह अलग बात है कि कार्तिक और उस के घर वाले प्रीति को पलकों पर बैठा कर रखते थे.

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आखिर वह घर की एकलौती बहू थी. कार्तिक तो हर घड़ी उस की फिक्र में रहता था. अच्छे से अच्छा खाना, मनपसंद कपड़े, गहने सब कुछ था प्रीति के पास. फुरसत मिलती तो कार्तिक मांबाप से अनुमति ले कर प्रीति को सिनेमा दिखाने भी ले जाता था. कार्तिक पत्नी को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करता था. समय के साथ प्रीति 2 बेटियों निशा (7 साल) और परी (3 साल) की मां बन गई थी.

भले ही प्रीति 2 बेटियों की मां बन गई थी, लेकिन आज भी उस का मन मायके कुलहुट्टू में ही अटका रहता था, क्योंकि वहां उस का प्रेमी दिलबर अंकित केसरी उर्फ बिट्टू रहता था.

बचपन का प्यार था दोनों का

बचपन में प्रीति और अंकित दोनों साथसाथ स्कूल जाया करते थे. वे सच्चे दोस्त थे. अगर किसी दिन प्रीति स्कूल नहीं जाती तो उस दिन अंकित भी कोई न कोई बहाना बना कर स्कूल नहीं जाता था. जिस दिन अंकित स्कूल नहीं जाता था, उस रोज प्रीति पेट दर्द का बहाना बना कर छुट्टी कर लेती थी. ऐसी दोस्ती थी दोनों के बीच. धीरेधीरे दोनों बड़े हुए. फिर पता नहीं कब उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. उन्हें प्यार का एहसास तब हुआ, जब  एक दिन भी न मिल पाते तो बेचैन हो जाते. ये बेचैनी ही उन्हें प्यार होने का एहसास दिला रही थी.

प्रीति और अंकित दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. वे एक जिस्म दो जान थे. अंकित दिल था तो प्रीति धड़कन. उस की नसनस में प्रीति खून बन कर समाई थी. वे दोनों एकदूसरे से इतना प्यार करते थे कि एकदूसरे के बिना जीने की कल्पना ही नहीं करते थे.

स्कूल के दिनों में हुआ प्यार जब कालेज तक पहुंचा तो प्रीति और अंकित संजीदा हो गए. अपने प्यार को दोनों एक खास मुकाम पर ले जाना चाहते थे. चूंकि दोनों एक ही गांव में और पासपड़ोस में रहते थे, इसलिए ऐसा संभव नहीं था.

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जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

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