भाजपा महामंत्री : भाग 3 – पति के निशाने पर नेता/पत्नी

जिस दिन से बंटी गुर्जर ने मुनेश गोदारा को देखा था उसी दिन से उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. बंटी गुर्जर के दिल में उस के लिए एक साफ्ट कार्नर बन गया था. जबकि इस के विपरीत मुनेश उस का दिल से सम्मान करती थी क्योंकि उसी की बदौलत उसे राजनीति में बड़ा कद और पद मिला था.

उस के इसी सम्मान को वह अपने लिए प्यार समझने की भूल कर बैठा था. बंटी को मुनेश से जब भी बात करने की तलब होती थी, वह कर लेता था.

पार्टी में धीरेधीरे ये बात फैल गई थी कि नेताजी बंटी गुर्जर और जिलाध्यक्ष मुनेश गोदारा के बीच मोहब्बत की मीठी आंच पर प्यार की खिचड़ी पक रही है. उन के बीच में ईलूईलू चल रहा है. मुनेश अभी भी इस बात से अंजान थी कि नेताजी के मन में उसे ले कर क्या खिचड़ी पक रही है. फिजाओं में तैरती हुई मोहब्बत का यह पैगाम मुनेश के शौहर सुनील गोदारा तक जब पहुंचा तो वह आगबबूला हो गया था.

पहली बात तो यह थी कि उसे बीवी का राजनीति में जाना गवारा नहीं था. दूसरे जब उस ने सुना कि उस का अफेयर किसी नेता के साथ चल रहा है तो उस के तनबदन में आग लग गई.

बीवी को उस ने समझाया था कि वह अपना ध्यान घरगृहस्थी और बच्चों के बीच में लगाए. ये राजनीति की दुनिया शरीफों के लिए नहीं है, उस का चक्कर छोड़ दे.

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राजनीति के जिस मुकाम तक मुनेश पहुंच चुकी थी वहां से वापस लौटना शायद उस के लिए उतना आसान नहीं था जितना आसान उस का पति समझता था. सालों का लंबा सफर तय कर के वह जिलाध्यक्ष से प्रदेश महिला मोर्चा की महामंत्री बन चुकी थी. यही नहीं, वह एक स्टार प्रचारक के रूप में विख्यात हो चुकी थी. दिल्ली विधानसभा के चुनाव में मुनेश ने कई प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था. अपनी असीम महत्त्वाकांक्षा की वजह से ही वह राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के निकट तक पहुंच चुकी थी. इसी के बाद उसे भाजपा किसान मोर्चा का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया था.

राजनीति की ऊंचाई पर पहुंची मुनेश ने पति से दो टूक कह दिया था कि राजनीति से वापस लौटना उस के लिए आसान नहीं होगा. वह सियासत में रह कर ही अपना घरसंसार और बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से कर सकती है. लेकिन राजनीति से अलग होने के लिए उस पर दबाव न डाले.

दोनों के बीच में यहीं से विवाद की नींव पड़ी थी. सुनील गोदारा एक सैनिक था. उस के रगों में भी एक आर्मी पिता का खून दौड़ रहा था. भला वो बीवी के इंकार को कैसे सहन कर सकता था. उस ने बीवी को समझाया कि अभी भी समय है, कुछ नहीं बिगड़ा है, वापस घर लौट आओ. सब कुछ ठीक हो जाएगा. मुनेश ने साफ मना कर दिया कि वह सियासत के बिना नहीं रह सकती.

इस दौरान मुनेश ने अपने नाम पर भिवानी के बाढड़ा इलाके में 2 फ्लैट खरीदे थे. पति को इस की जानकारी दे दी थी. पतिपत्नी के बीच बंटी गुर्जर के प्रेमसंबंधों को ले कर तूफान खड़ा हो चुका था. मुनेश ने पति को सफाई भी दी थी कि उन के बीच ऐसा कोई नाजायज रिश्ता नहीं है जिस से समाज में उन की हंसाई हो. उन के बीच के रिश्ते गंगा जल की तरह पवित्र हैं लेकिन सुनील इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं था कि बीवी जो कह रही है वो सच है. उस के मन में दोनों के बीच अनैतिक संबंधों को ले कर शक का बीज अंकुरित हो चुका था.

मुनेश और सुनील के शांत और सुखद जीवन में बंटी को ले कर तूफान आ चुका था. बातबात पर पतिपत्नी दोनों के बीच तूतू, मैंमैं होती रहती थी. स्वर्ग जैसा घर नरक का अखाड़ा बन चुका था. इस बीच मुनेश ने समझदारी का परिचय दिया.

उस ने ससुर की सहमति पर चरखी दादरी वाला घर छोड़ दिया और परिवार सहित गुरुग्राम में स्पेस सोसाइटी के सैक्टर-93 में फ्लैट ले कर किराए पर रहने लगी. सासससुर चरखी दादरी में ही रहते थे. उन का जब बच्चों से मिलने का मन होता था, वे बच्चों के पास सेक्टर-93 आ जाते थे और उन से मिल कर वापस चरखी दादरी चले जाते थे.

बात सन 2018 की है. सुनील गोदारा रिटायर हो कर घर आ गया था. रिटायर के बाद खाली बचे समय में उस ने एक सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी जौइन कर ली थी ताकि उस का समय अच्छे से बीते और 2 पैसों के लिए मोहताज न रहे. वैसे भी पतिपत्नी के बीच सालों से अनबन चलती चली आ रही थी.

उन के बीच मतभेद पराकाष्ठा पर थे. दोनों के प्यार के बीच नफरत ने जगह ले ली थी. ऐसे में उन के बीच एक और सर्पकाल कुंडली मार कर बैठ गया था जिस की आग में सुनील भड़क उठा था.

दरअसल, मुनेश अपने नाम से भिवानी में लिए गए दोनों फ्लैट को बेच कर एक क्रेटा कार खरीदना चाहती थी, जिस से वह पार्टियों में शिरकत कर सके. हालांकि पति सुनील के पास उस की अपनी खुद की एसेंट कार थी लेकिन खराब रिश्तों के कारण मुनेश पति की कार में न तो बैठती थी और न ही उस कार को ले कर कहीं जाती थी.

भिवानी के बाढड़ा वाले फ्लैट बेचने को ले कर दोनों के बीच झगड़े होने लगे. पति सुनील कीमती फ्लैट बेचने को तैयार नहीं था जबकि मुनेश अपनी ही जिद पर अड़ी हुई थी कि वो फ्लैट बेच कर क्रेटा कार खरीदेगी तो खरीदेगी. उसे कार खरीदने से कोई नहीं रोक सकता.

मुनेश की इस जिद ने सुनील के गुस्से को और भड़का दिया. उस ने भी बीवी से कह दिया कि देखता हूं तुम कैसे फ्लैट बेचती हो. इस बात को ले कर घर में पतिपत्नी के बीच महासंग्राम छिड़ गया था.

सुनील की जिंदगी कड़वाहट से भर गई थी. एक तो बीवी के अफेयर को ले कर वह पहले से परेशान था. दूसरे करोड़ों रुपए के फ्लैट बीवी औनेपौने दामों में बेचने जा रही थी. बीवी की करतूतों से सुनील बुरी तरह से आजिज आ चुका था. जिंदगी को थोड़ा सूकून देने के लिए उस ने शराब को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था. वह शराब पीने लगा था.

इसी शराब के नशे में धुत हो कर 8 फरवरी, 2020 की रात 9 बजे के करीब सुनील घर लौटा तो कमरे में पत्नी को न पा कर उस ने दोनों बेटियों से उस के बारे में पूछा. बड़ी बेटी प्रीति ने पापा से कहा, ‘‘मां रसोई में खाना पका रही हैं.’’ बेटी का जवाब सुन कर सुनील लड़खड़ाता हुआ किचन की ओर हो लिया.

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उस समय मुनेश वीडियो कौल पर अपनी छोटी बहन मनीषा से हंसहंस कर बातें कर रही थी. सुनील समझा कि वह अपने प्रेमी बंटी गुर्जर से हंसहंस कर बातें कर रही है. फिर क्या था? सुनील शक की आग में धधक उठा.

उस ने आपा खो दिया और ईर्ष्या की आग में जलते हुए अपनी सर्विस रिवाल्वर से 2 गोलियां मुनेश के पेट और सीने में दाग दीं. गोली लगते ही मुनेश फोन को हाथ में पकड़े हुए फर्श पर जा गिरी और बहन से आखिरी बार कहा, ‘‘बहन…तेरे जीजा ने गोली मार दी है.’’ उस के बाद मुनेश का गरम जिस्म आहिस्ताआहिस्ता ठंडा पड़ने लगा. उस के प्राण पखेरू उड़ चुके थे.

सुनील पुलिस से बचने के लिए अपनी एसेंट कार में सवार हो कर अपने एक दोस्त के घर जा कर छिप गया था. अगली सुबह 9 फरवरी को जब मुनेश गोदारा हत्याकांड ने तूल पकड़ा तो सुनील वहां से भी कार ले कर फरार हो गया था और कई दिनों तक यहांवहां छिपता रहा. आखिरकार 7 दिनों की लुकाछिपी के बाद यानी 15 फरवरी, 2020 को पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.

बहरहाल, गिरफ्तारी के बाद सुनील गोदारा ने बीवी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सुनील की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर भी बरामद कर लिया गया. बीवी की हत्या कर उस ने रिवौल्वर अपनी कार में छिपा कर रखी थी. उसे बीवी की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं था.

उस ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा था, ‘‘बीवी का अफेयर बंटी गुर्जर के साथ चल रहा था. मैं ने उसे समझाने की बारबार कोशिश भी की थी लेकिन वह नहीं मानी तो मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. मुझे बीवी की हत्या का कोई अफसोस नहीं है.’’

कथा लिखे जाने तक पुलिस फरार चल रहे आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. मृतका के ससुर चंद्रभान ने बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु के खिलाफ इस लिए मुकदमा दर्ज कराया था कि इन्हीं दोनों की वजह से उन की होनहार बहू असमय काल के गाल में जा समाई थी. तीनों आरोपी सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर जेल की सलाखों के पीछे सजा काट रहे थे.   द्य

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

भाजपा महामंत्री : भाग 2 – पति के निशाने पर नेता/पत्नी

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दी. मृतका के ससुर चंद्रभान गोदारा ने बहू की हत्या के लिए अपने बेटे सुनील गोदारा और भाजपा नेता बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु गुर्जर के खिलाफ लिखित शिकायत थानेदार संजय कुमार को दी.

उन की तहरीर पर पुलिस ने तीनों आरोपियों सुनील गोदारा, बंटी गुर्जर और अनु गुर्जर के खिलाफ  भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के उन की तलाश शुरू कर दी. ये बात 8 फरवरी, 2020 की है.

अगले दिन आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने सड़क जाम कर दी थी. वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. मामला तूल पकड़ने लगा था. पुलिस बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु को गिरफ्तार करने उस के घर कादरपुर गई तो दोनों पतिपत्नी मौके से फरार थे. आरोपियों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी.

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जांचपड़ताल में पुलिस को इतना पता चला था कि सुनील गोदारा और उस की बीवी मुनेश गोदारा के बीच रिश्ते काफी समय से खराब चल रहे थे. पत्नी मुनेश के भाजपा नेता बंटी गुर्जर से मधुर संबंध थे. यह बात बंटी गुर्जर की बीवी अनु को भी पता थी. लेकिन पति सुनील ये बात पसंद नहीं करता था. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच आए दिन विवाद होता रहता था. ये बात किसी से छिपी नहीं थी.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मुनेश की हत्या प्रेम संबंधों की वजह से हुई है. मुनेश की कालडिटेल्स में बंटी के साथ लंबीलंबी बातचीत करना पाया गया था. यही हत्या की मूल वजह मान कर पुलिस ने अपनी जांच की दिशा आगे बढ़ाई.

आरोपी सुनील गोदारा को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बहुत दूर था. ऐसा नहीं था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई थी. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल भी बिछा रखा था. सुनील की खोजबीन में मुखबिर जुट गए थे.

बात 15 फरवरी, 2020 की है. दोपहर का वक्त था. थानेदार संजय कुमार थाने में मौजूद थे. तभी एक चौंका देने वाली खबर उन के खास मुखबिर ने दी. उस ने बताया कि मुनेश का हत्यारा सुनील गोदारा हयातपुर चौक पर घूमता हुआ देखा गया है. जल्दी करें तो पकड़ा जा सकता है. फिर क्या था? संजय कुमार मुखबिर की सूचना पर उस के द्वारा बताई गई जगह पर आवश्यक पुलिस बल के साथ पहुंच गए.

उन्होंने चौक को चारों ओर से घेर लिया ताकि आरोपी मौके से भाग न सके. सभी पुलिस वाले सादा पोशाक में थे, ताकि आरोपी उन्हें आसानी से पहचान न सके और हुआ भी यही. सुनील गोदारा गिरफ्तार कर लिया गया. उसे पुलिस थाना सेक्टर-10 ए पूछताछ के लिए ले कर आई.

हत्यारे पति सुनील गोदारा के गिरफ्तार होने की सूचना थानेदार संजय कुमार ने पुलिस अधिकारियों को दे दी. तब एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह सूचना पा कर थाना सेक्टर- 10ए पूछताछ के लिए पहुंच चुके थे. उन्होंने सुनील से पूछताछ करनी शुरू की तो उस ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर किया कि उसी ने बीवी की हत्या की थी.

हत्या की वजह उस ने बीवी का नैतिक पतन बताई थी. उस ने उन्हें बताया कि उस के लाख मना करने के बाद भी वह अपने आशिक से नैनमटक्का करने से बाज नहीं आ रही थी. जिस के कारण परिवार टूट रहा था, इस के बाद उस ने घटना की पूरी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया. वहां से जेल भेज दिया गया. सुनील के अलावा दोनों आरोपी बंटी गुर्जर और उस की बीवी अनु अभी भी पुलिस की पकड़ से दूर थे. मुनेश गोदारा हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

35 वर्षीय मुनेश गोदारा मूल रूप से  हरियाणा की रहने वाली थी. उस के घर में मांबाप और 4 भाई बहनें थीं. सब से बड़ा भाई सुनील कुमार जाखड़, उस के बाद खुद मुनेश, उस से छोटा विमलेश और छोटी बहन मनीषा थी. बचपन से ही मुनेश कुशाग्र और प्रखर बुद्धि की थी. पढ़नेलिखने से ले कर बातचीत के कौशल तक सब कुछ अलग था. जिस काम को करने की एक बार वह ठान लेती थी अपनी हिम्मत और साहस के बदौलत उसे कर के ही दम लेती थी.

समय के साथ जवान हुई मुनेश की शादी साल 2001 में चरखी दादरी (हरियाणा) के चंपापुरी में रहने वाले पूर्व फौजी चंद्रभान गोदारा के इकलौते बेटे सुनील गोदारा से हुई थी.

चंद्रभान की इलाके में बड़ी पहचान थी. नियम और उसूल के पक्के चंद्रभान ने सालों तक आर्मी में नौकरी करते हुए शराब को पीना तो दूर की बात, कभी हाथ तक नहीं लगाया था. न ही ऐसे लोगों को वह पसंद करते थे.

वह इकलौते बेटे सुनील को भी अपनी तरह देखना चाहते थे. उन्होंने बेटे को अच्छी तालीम दिलाई और सीख भी दी कि जीवन में आगे बढ़ना है तो कभी शराब मत पीना. अपने को उस का गुलाम कभी मत बनने देना. यदि एक शराब ने अपना गुलाम बना लिया तो जीवन भर उस की गुलामी करते रहोगे. पिता की नसीहत को गांठ बांध कर सुनील ने अपने दिमाग में बैठा ली थी.

तब सुनील आर्मी में जाने की तैयारी कर रहा था. उसी दौरान बहू के रूप में मुनेश गोदारा परिवार में साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. बीवी के आने के बाद सुनील के बंद भाग्य के दरवाजे खुल गए थे. उस की आर्मी की नौकरी पक्की हो गई थी. ससुर चंद्रभान बहू मुनेश को साक्षात लक्ष्मी मानते थे. उस के शुभ कदमों से घर में खुशियों ने अपने पांव पसार दिए थे.

इसीलिए चंद्रभान उसे बहू कम बेटी ज्यादा मानते थे. रही बात सुनील की, तो वह परिवार से मिलने बीचबीच में घर आता रहता था. इस बीच मुनेश ने 2 बेटियों प्रीति और मोंटी को जन्म दिया. बाद के दिनों में चंद्रभान गोदारा रिटायर हो कर घर आ गए.

आर्मी से रिटायर चंद्रभान गोदारा का घरसंसार बड़े हंसीखुशी से चल रहा था. पैसों की घर में कोई कमी नहीं थी. बेटा कमा रहा था, ससुर की अच्छीखासी पेंशन थी और क्या चाहिए था. प्रीति और मोंटी बड़ी हो रही थीं. बेटियां बड़ी और समझदार हुईं तो मुनेश गृहस्थ आश्रम से बाहर निकल कर समाज के लिए कुछ करने के लिए लालायित होने लगी थी.

मुनेश की सहेली अनु गुर्जर भारतीय जनता पार्टी में काफी दिनों से जुड़ी हुई थी. उस के पति बंटी गुर्जर भाजपा के पुराने सिपाही थे. सहेली को देख कर ही मुनेश के मन में खयाल आया था कि वह भी राजनीति में कदम रखे और गरीबबेसहारों के लिए एक मजबूत कदम बने. उन की बुलंद आवाज बने.

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लेकिन यह मुनेश के लिए आसान नहीं था. वह यही सोच रही थी कि पता नहीं पति इस के लिए तैयार होंगे या नहीं. उन का साथ मिलेगा या नहीं. पति की मरजी के बिना राजनीति में कदम रखा तो घर में तूफान खड़ा हो सकता है. क्या करे? किस से सलाह मशविरा ले? उसी समय उस के मन में एक विचार कौंधा और उस की आंखों के सामने ससुर का चेहरा तैरने लगा. उसे विश्वास था कि ससुरजी उस की बातों को कभी नहीं टाल सकते. वह जरूर उस की भावनाओं को समझेंगे.

एक दिन समय और अवसर देख कर मुनेश ने ससुरजी के सामने अपने मन के भाव प्रकट कर दिए. उस ने कहा कि उस की इच्छा है वह राजनीति में जाना चाहती है. इस के लिए आप की इजाजत और आशीर्वाद दोनों की जरूरत है. अगर आप इजाजत दें तो मैं अपने कदम आगे बढ़ाऊं.

ससुर चंद्रभान बहू की बात सुन कर असमंजस में पड़ गए. उन्होंने बहू की बातों पर विचार किया. काफी सोचने और समझने के बाद उन्होंने बहू को राजनीति में जाने की हरी झंडी दिखा दी. ससुर की ओर से मिली हरी झंडी से मुनेश के हौसले बुलंद हुए और उस ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. ये सब उस की सहेली अनु और उस के पति बंटी गुर्जर के द्वारा संभव हुआ था. इसलिए वह दोनों की अहसानमंद थी. ये बात साल 2013 की है.

यहीं से मुनेश गोदारा के बुरे दिन शुरू हो गए. जिस के चलते उस के जीवन में उठापटक होने लगी. मुनेश ने कभी सोचा नहीं था कि जिस राजनीति की चकाचौंध में उस के पांव बढ़ते जा रहे हैं, इसी राजनीति के कारण एक दिन उस का हंसताखेलता घर तिनकातिनका बिखर जाएगा और उस की सांसों की डोर उस के जिस्म से जुदा हो जाएगी.

अपनी मेहनत और लगन की बदौलत मुनेश गोदारा ने कम समय में राजनीति के महारथियों के बीच अच्छीखासी जगह बना ली थी. जल्द ही उसे चरखी दादरी की जिलाध्यक्ष बना दिया गया. ये सब बंटी गुर्जर की मेहरबानियों की बदौलत संभव हुआ था. बंटी गुर्जर पार्टी का बड़ा नेता माना जाता था. पार्टी में उस की ऊंची पकड़ थी. बड़ेबड़े नेताओं से अच्छे संबंध थे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

भाजपा महामंत्री : भाग 1 – पति के निशाने पर नेता/पत्नी

हरियाणा प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा की प्रदेश महामंत्री 35 वर्षीय मुनेश गोदारा उभरती हुई एक राजनेत्री थी. इतने बड़े पद पर रहते हुए भी वह अपना काम स्वयं करने में यकीन रखती थी. चाहे वह घरेलू काम हो अथवा रसोई के, जब तक वह खुद से नहीं करती थी उसे चैन नहीं आता और बच्चे भी अधीर रहते थे.

गुरुग्राम (हरियाणा) के सेक्टर-10ए, स्पेस सोसाइटी के 8वीं मंजिल पर रहने वाली मुनेश गोदारा कुछ ही देर पहले बड़े भाई सुनील कुमार जाखड़ के घर से हो कर आई थी. दरअसल, छोटे भाई के बेटे की तबीयत खराब थी, उसे ही देखने मुनेश अकेली मायके आई थी. उस के मायके वाले सेक्टर-83 में रहते थे जो कि उस के फ्लैट से थोड़ी दूरी पर स्थित था.

उस समय रात के लगभग 8 बज रहे थे. रात गहराती चली गई तो बड़े भाई सुनील जाखड़ ने मुनेश से कहा भी था कि आज रात वह वहीं रुक जाए और सुबह होते ही वह उसे घर पहुंचा देंगे. लेकिन मुनेश वहां रुकने के लिए तैयार नहीं हुई थी.

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उस ने बड़े भाई से कहा, ‘‘भैया, भतीजे को देखने आई थी, सो देख लिया. तुम तो मेरी दोनों बेटियों की आदत को जानते ही हो, घर नहीं पहुंची तो दोनों सिर पर पहाड़ उठा कर तांडव करने लगेंगी और बगैर कुछ खाएपीए भूखे ही सो जाएंगी. इसलिए मुझे जाना ही पड़ेगा.

फिर कल सुबह मोंटी के दाखिला के लिए आर्मी स्कूल जाना होगा. तुम तो जानते हो भैया, आर्मी स्कूल है, वहां का नियमकानून बहुत सख्त होता है. जरा सी लापरवाही हुई तो बेटी का दाखिला होने से रुक भी सकता है और फिर भैया, आप ही बताओ किस लड़की को अपना मायका प्यारा नहीं होता.

अपना मायका सभी लड़कियों को प्यारा होता है. उन का बस चले तो जीवन भर यहीं रुक जाएं. इसलिए आज मत रोको. लेकिन मैं जल्दी ही आऊंगी तुम से मिलने, समझे.’’

बहन की शरारत भरी बातों को सुन कर सुनील खिलखिला कर हंस पड़े तो मुनेश से भी अपनी हंसी नहीं रोकी जा सकी. वह भी ठहाका मार कर हंसने लगी. फिर वहां से उठी और निजी वाहन से सेक्टर-93 स्थित अपने घर लौट आई. मायके से घर पहुंचने में मुश्किल से 20 मिनट का समय लगा था.

उस समय रात के 9 बज रहे थे. मुनेश की दोनों बेटियां अपने कमरे में बैठी पढ़ रही थीं. फटाफट कपड़े बदल कर मुनेश सीधे रसोई में जा पहुंची और खाना पकाने में जुट गई थी. वह जान रही थी कि बेटियों के पेट में चूहों ने अपना करतब दिखाना शुरू कर दिया होगा. जरा सी और देर हुई तो उन दोनों से भूख सहन नहीं होगी.

उस समय तक उस का पति सुनील गोदारा अपनी ड्यूटी से लौटा नहीं था. वह एक सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी करता था. यहां एक बात साफ कर देना चाहता हूं मुनेश के पति और उस के भाई दोनों का ही नाम सुनील था. फर्क सिर्फ इतना कि मुनेश के पति के नाम के आगे गोदारा लगा हुआ था जबकि भाई के नाम के आगे जाखड़ था.

मुनेश ने रोटियां बना ली थीं. गैस के दूसरे चूल्हे पर कड़ाही चढ़ा सब्जी के लिए तड़का लगाने जा रही थी. तभी उस के फोन की घंटी बजी. मुनेश ने स्क्रीन पर नजर डाली तो वह वीडियो काल थी. उस की छोटी बहन मनीषा ने काल की थी. मुनेश गैस बंद कर बहन से बात करने में मशगूल हो गई थी. उसी समय पति सुनील गोदारा ड्यूटी से घर लौट आया.

करीब 16 साल सेना में नौकरी करने के बाद वह वहां से रिटायर हो गया था. रिटायर होने के बाद से वह सुरक्षा एजेंसी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. खैर, कमरे में घुसते ही सुनील गोदारा ने बेटियों से उन की मां के बारे में पूछा तो बड़ी बेटी प्रीति ने बता दिया मां रसोई में है, खाना पका रही है.

बेटी का जवाब सुन कर सुनील जिस हालत में था, उसी हालत में रसोई की ओर बढ़ गया. सुनील का मजबूत जिस्म हवा में लहरा रहा था. उस के पांव यहांवहां पड़ रहे थे. उस ने रोज की तरह उस दिन भी जम कर शराब पी रखी थी.

सुनील किचन के दरवाजे के पास पहुंचा तो देखा कि पत्नी दरवाजे की ओर अपनी पीठ कर के फोन पर किसी से हंसहंस कर बातें करने में व्यस्त थी. उसे पति के आने का आभास भी नहीं हुआ. ये देख कर सुनील का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

सुनील ने बीवी को एक भद्दी सी गाली दी. गाली की आवाज कान के पर्दों से टकराते ही मुनेश बुरी तरह से चौंक गई. उस के हाथ से फोन गिरतेगिरते बचा. फिर उस ने पलट कर देखा सामने पति सुनील खड़ा था. उस ने रोजाना की तरह आज भी जम कर शराब पी रखी थी. उस के पैर डगमगा रहे थे.

मुनेश कुछ कहती इस के पहले ही सुनील उस पर चीखा, ‘‘हरामजादी, कुतिया… हजार बार मैं ने तुझे मना किया था कि तू अपनी आदत सुधार ले. उस कमीने से अपने रिश्ते तोड़ ले और अपनी घरगृहस्थी और बच्चों को संभालने में लग, लेकिन तू है कि तेरी मोटी बुद्धि में मेरी कोई बात आसानी से घुसती ही नहीं.

लाख समझाता हूं, तेरे भेजे में घुसता ही नहीं. तेरे कारण मैं ने जिंदगी नर्क बना ली है. तुझ से मैं तंग आ चुका हूं. रोजरोज की किचकिच से आज मैं किस्सा ही मिटा देता हूं. कहते ही नशे में चूर सुनील गोदारा ने होलेस्टर से अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाली और 2 गोलियां बीवी के पेट और सीने में दाग दीं.

गोली लगते ही मुनेश हाथ में फोन लिए फर्श पर धड़ाम से गिर गई और उस के मुंह से आखिरी शब्द निकला, ‘‘बहन… तेरे जीजा सुनील ने गोली मार दी है.’’ इतना कहते ही मुनेश की सांसें थम गईं.

गोली की आवाज सुनते ही प्रीति और मोंटी दौड़ीभागी रसोई में पहुंची तो देखा मां चित अवस्था में फर्श पर पड़ी अपने ही खून में सनी दम तोड़ चुकी हैं. उस के पापा सुनील गोदारा वहां नहीं थे. दोनों को समझते देर न लगी कि पापा ने मम्मी की गोली मार कर हत्या कर दी और फरार हो गए. प्रीति और मोंटी को कुछ सूझ नहीं रहा था कि ऐसे में वे क्या करें? मां की लाश के पास दोनों खड़ी जोरजोर से चीखचिल्ला रही थीं.

अचानक गोदारा के घर से रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी वहां जमा हो गए थे. हंसमुख मुनेश की हत्या की खबर सुन कर सभी हतप्रभ रह गए थे. इधर तब तक मनीषा ने बहन की हत्या की खबर बड़े भाई सुनील कुमार जाखड़ को दे दी थी. बहन की हत्या की खबर सुनते ही उन्हें जैसे काठ मार गया हो, ऐसे हो गए थे. सुनील आननफानन में अपने निजी वाहन से मुनेश के घर सेक्टर-93, स्पेस सोसाइटी पहुंच गए. इस बीच प्रीति अपने बाबा चंद्रभान गोदारा को मां की हत्या की खबर फोन से दे चुकी थी. वो चरखी दादरी में दादी के साथ रहते थे. बहू की हत्या की खबर सुनते ही पिता की बूढ़ी आंखे पथरा सी गईं. उन के पांव लड़खड़ा से गए और वो बिस्तर पर जा गिरे. उन्हें बेटे की घिनौनी करतूत पर घिन आ रही थी.

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खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है वो तो हो कर रहता है. बहू की हत्या की जानकारी होते ही ससुर चंद्रभान गोदारा आननफानन में सेक्टर-93 पहुंचे. अब तक यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे गुरुग्राम में फैल चुकी थी. मुनेश कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं थी.

वह भाजपा किसान मोर्चा की प्रदेश महामंत्री थी. हरियाणा राज्य में तेजी से उभरती हुई राजनेत्री थी. राजनीति में उस ने अपना अच्छा मुकाम बना लिया था. बड़ेबड़े नेताओं से उस के अच्छे संबंध थे. इन्हीं के बल पर वह मजलूमों और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ती थी.

प्रदेश महामंत्री मुनेश गोदारा की हत्या की खबर मिलते ही सेक्टर-93 में धीरेधीरे भाजपा कार्यकर्ताओं और उस के शुभचिंतकों का जमावड़ा होने लगा था. ससुर चंद्रभान ने थाना सेक्टर-10 ए के थानेदार संजय कुमार को फोन कर के घटना की जानकारी दी. घटना की सूचना मिलते ही थानेदार संजय कुमार आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय रात के 11 बज रहे थे.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए थानेदार संजय ने घटना की सूचना कमिश्नर मोहम्मद आकिल, डीसीपी (ईस्ट) चंद्र मोहन, डीसीपी (वेस्ट) सुमेर सिंह और एसीपी (सिटी) राजिंदर सिंह को दे दी थी. इधर भाजपा कार्यकर्ता हत्यारे पति सुनील गोदारा को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. मौके पर नारेबाजी कर रहे भाजपा कार्यकर्ताओं को उन्होंने समझाबुझा कर शांत किया और उन्हें भरोसा दिया कि जल्द से जल्द हत्यारा पकड़ लिया जाएगा. कानून को अपना काम करने दें. पुलिस अधिकारियों के आश्वासन के बाद वे शांत हुए.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. लाश चित अवस्था में थी. मृतका के हाथ में मोबाइल फोन था. पुलिस ने सब से पहले मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. फिर किचन की तलाशी ली. तलाशी के दौरान मौके से कारतूस के 2 खोखे बरामद हुए.

पुलिस ने मृतका मुनेश की दोनों बेटियों प्रीति और मोंटी से हत्या के बारे में पूछताछ की. दोनों ने पिता के ऊपर आरोप लगाते हुए मां को गोली मारने की बात कही थी. मतलब साफ था कि पति सुनील गोदारा ने ही मुनेश की गोली मार कर हत्या की थी. घटना को अंजाम देने के बाद वह मौके से अपनी एसेंट कार में बैठ कर फरार हुआ था.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

भाजपा महामंत्री : पति के निशाने पर नेता/पत्नी

हत्या आत्महत्या में उलझी मौत की गुत्थी : भाग 2

घटनास्थल पर जांचपड़ताल तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारी सर्वोदय नगर स्थित रीजेंसी अस्पताल पहुंचे, जहां मृतक सुनील जोशी का शव रखा था. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पाया कि सुनील ने दाईं कनपटी में पिस्टल सटा कर गोली मारी थी, जो बाईं कनपटी से पार हो गई थी.

मृतक सुनील की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट थे. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सुनील के शव का पंचनामा भरवा कर तथा सीलमोहर करा कर पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारी इस मामले पर आपस में गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुनील जोशी ने आत्महत्या ही की है. कारण उन पर करोड़ों रुपए का स्क्रैप बेचने तथा रुपयों का जमा खर्च का हिसाब न देने का आरोप कंपनी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने लगाया था. इसी की जवाबदेही के लिए कानपुर में बैठक बुलाई गई थी.

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सुनील गेस्टहाउस आ गए, लेकिन वह बैठक में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और खुदकुशी कर ली. फिर भी मृतक के घर वाले यदि कोई तहरीर देते हैं, तो रिपोर्ट दर्ज कर जांच की जाएगी.

पुलिस जांच से इस रहस्यमयी आत्महत्या की जो घटना प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है—

कानपुर महानगर का एक पौश इलाका है स्वरूप नगर. स्वरूप नगर में ज्यादातर बंगले औद्योगिक घरानों के हैं. क्षेत्र में कई अपार्टमेंट भी हैं, जिन में संपन्न परिवार रहते हैं. स्वरूप नगर में ही रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट है. इस अपार्टमेंट के भूतल पर कानपुर फर्टिलाइजर के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मेनका जोशी के अलावा एक बेटा और बेटी हैं.

मेनका के पिता अनिल कुमार शर्मा कानपुर शहर के संपन्न और सम्मानित व्यक्ति थे. वह कानपुर के पूर्व मेयर रह चुके थे. मेनका के बाबा रतन लाल शर्मा भी मेयर रह चुके थे. पितापुत्र के कार्यकाल को आज भी लोग याद करते हैं.

अनिल कुमार शर्मा ने अपनी बहन की शादी जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के साथ की थी, जबकि बेटी मेनका की शादी डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी के साथ की थी. इस तरह रिश्ते में मनोज गौर मेनका के फूफा थे.

कानपुर के औद्योगिक क्षेत्र पनकी में फर्टिलाइजर कंपनी की स्थापना कब और कैसे हुई, इस के लिए अतीत की ओर जाना होगा. विदेशी कंपनी आईसीआई ने पनकी में उर्वरक कारखाना लगाया था. इस का उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 6 दिसंबर, 1969 को किया था. उस समय यह देश का पहला यूरिया बनाने वाला कारखाना था, जो नेप्था से चलता था.

वर्ष 1993 में विदेशी कंपनी आईसीआई ने कारखाना गोयनका गु्रप को बेच दिया. तब इस का नाम डंकन्स फर्टिलाइजर लिमिटेड किया गया. घाटे के कारण वर्ष 2002 में गोयनका ने कारखाना बंद कर दिया. इस के बाद जनवरी, 2012 में जेपी गु्रप के चेयरमैन जे.पी. गौर व मनोज गौर ने डंकन्स को खरीद लिया और नाम रखा कानपुर फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल लिमिटेड.

यह उत्तर भारत का सब से बड़ा संयंत्र है. इस की उत्पादक क्षमता 2200 टन प्रति दिन है. कारखाने में 1000 कुशल श्रमिक कार्य करते है. प्लांट में ऊर्जा संरक्षण का पूरा सिस्टम लगाया गया है तथा प्लांट को गेल से सीधे प्राकृतिक गैस सप्लाई होती है.

सुनील कुमार जोशी कानपुर फर्टिलाइजर के ही डायरेक्टर नहीं थे, बल्कि 9 अन्य कंपनियों के भी डायरेक्टर थे. उन का जीवन हर तरह से खुशहाल था.

उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से और डायरेक्टर जैसे पदों पर रह कर खूब दौलत कमाई. सुनील को लग्जरी कारों और आलीशान घर का बहुत शौक था. वह हर साल लग्जरी कारों पर करोड़ों रुपए खर्च करते थे. उन्होंने दिल्ली और कानपुर में 2 आलीशान बंगले बनवाए थे. उन के शौक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दिल्ली वाले बंगले का रेनोवेशन कराने के नाम पर ही 5 करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया था.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को फिल्मों में भी दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्होंने बौलीवुड में भी निवेश किया था. उन्होंने बौलीवुड हस्तियों के मैनेजर रहे अनिदा सील के साथ मिल कर एक कंपनी बनाई, जिस में उन की पत्नी मेनका जोशी निदेशक थीं.

कंपनी की पहली फिल्म में गोविंदा का लीड रोल था. लेकिन फिल्म बौक्स औफिस पर औंधे मुंह गिरी. पहली ही फिल्म में हुए घाटे को ले कर उन का विवाद भी हुआ था. जिसे खत्म करने के लिए गोविंदा कई दिन कानपुर में रहे.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी और जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के बीच दूरियां तब बढ़ीं, जब सुनील जोशी ने सतना के एक ठेकेदार के मार्फत कंपनी का 10 करोड़ का स्क्रैप बेच दिया. स्क्रैप बेचे जाने की जानकारी उन्होंने चेयरमैन मनोज गौर को भी नहीं दी और न ही यह बताया कि रुपया कब, कहां और कैसे खर्च किया.

कानपुर फर्टिलाइजर कंपनी में जब स्क्रैप बेचने को ले कर स्थितियां स्पष्ट हुईं तो सुनील जोशी और मनोज गौर के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई. कंपनी की माली हालत को ले कर चेयरमैन मनोज गौर पहले से ही तनाव में थे ऊपर से करोड़ों का स्क्रैप बिक जाने के मामले ने आग में घी का काम किया. हालात यहां तक आ गए थे कि मनोज गौर, सुनील जोशी से स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानना चाह रहे थे. मगर दोनों के बीच बात नहीं हो पा रही थी.

इसी तनाव के बीच जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने फर्टिलाइजर कंपनी को बंद करने का फैसला कर लिया. दरअसल कंपनी को यूरिया खाद बनाने के एवज में सरकार से सब्सिडी मिलती है, तभी कम दाम पर किसानों तक खाद पहुंचती है.

पिछले 8 महीने से करीब 1200 करोड़ की सब्सिडी सरकार ने रोक दी थी, जिस से कंपनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और 1000 कामगारों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया था. यद्यपि कंपनी में उत्पादन ठीक हो रहा था.

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स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानने तथा कंपनी में तालाबंदी को लेकर ही जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने 18 मार्च को बैठक बुलाई थी. चूंकि सुनील जोशी को मीटिंग में स्क्रैप बिक्री का हिसाब देना था. साथ ही वह तालाबंदी भी नहीं चाहते थे, अत: वह परेशान हो उठे. जैसेजैसे बैठक की तारीख नजदीक आती जा रही थी, उन की उलझन बढ़ती जा रही थी.

18 मार्च, 2020 की सुबह सुनील जोशी जल्दी ही उठ गए. उन्होंने रात में ही निश्चय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. उलझन के चलते वह बैठक में जाने को तैयार हुए, फिर बिना खाएपिए ही अपनी कार से गेस्टहाउस के लिए निकल गए.

सुबह 9:20 पर वह गेस्टहाउस के रूम में पहुंच गए. उन्होंने कर्मचारी से पानी मांगा, लेकिन पानी पिए बिना ही वह बाथरूम में चले गए. फिर उन्होंने कंपनी गु्रप पर एक मैसेज डाला, जिस में उन्होंने लिखा—

‘डियर आल, जिंदगी ने बीते 30 सालों में मुझे बहुत कुछ सिखाया. इस दौरान बहुत से उतारचढ़ाव देखे. जिंदगी में बहुत से अच्छेबुरे लोग भी आए. हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी कुछ बुरा नहीं दिखाएगी. व्यापारिक परिवेश में पैदा होने के कारण हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी ऐसे ही उतारचढ़ाव के साथ ही चलती है. पर जब हमारे पास परिवार होता है, तो जिंदगी के उतार बहुत परेशान करते है. बहुत सारे लोगों ने मुझे प्यार व इज्जत दी है. मैं ने हमेशा संतुलित जीवन जीने का प्रयास किया है. आज मेरे लिए रास्ते बंद हो चुके हैं और इस अंधेरी गुफा में मुझे कोई रोशनी दिखाई नहीं दे रही है. मेरे पास संसाधन नहीं है कि मेरा परिवार मेरे बगैर जिंदगी गुजार सके. एक घर दिल्ली में और एक घर कानपुर में ही है.

मैं श्री मनोज गौर से निवेदन करना चाहता हूं कि वह मेरा कर्ज चुकाने में मेरे परिवार की मदद करें. इस के लिए वह दिल्ली वाला मकान बेच दें. जो पैसा बचे उसे वह एफडी करा दें, जिस से मेरा परिवार जीवनयापन कर सके. इतना सब करने के लिए 12 माह का समय लगेगा. इतने समय के लिए कंपनी के निदेशकों से निवेदन है कि अगले 15 माह के लिए मेरा वेतन मुझे मिलता रहे. मेरे बच्चे अभी छोटे हैं और उन्हें अभी बहुत सारा समर्थन चाहिए. यह मेरे परिवार की गलती नहीं कि मैं जीवन में फेल हो गया. सभी को प्रेम और समर्थन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.

लव यू आल. सुनील जोशी.’

इस मैसेज को भेजने के बाद सुनील जोशी ने अपनी लाइसैंसी इंग्लिश पिस्टल निकाली और दाईं कनपटी में सटा कर गोली दाग दी. गोली उन की बाईं कनपटी को पार कर बाहर निकल गई और वह फर्श पर गिर पड़े. बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया.

जांचपड़ताल के दौरान मृतक सुनील की पत्नी मेनका, साले सोनू और परिवार के एक अन्य सदस्य ने पुलिस को दिए बयान में सुनील जोशी द्वारा आत्महत्या किए जाने की बात को नकार कर उन की हत्या की आशंका जताई थी. साथ ही रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही थी. लेकिन हफ्ता 2 हफ्ता बीत जाने के बाद भी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई. अत: पुलिस इस मामले को आत्महत्या मान कर फाइल बंद करने की तैयारी पूरी कर चुकी थी.

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– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हत्या आत्महत्या में उलझी मौत की गुत्थी : भाग 1

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर ने कंपनी के उच्चाधिकारियों की एक अहम बैठक बुलाई थी. यह बैठक कानपुर (कैंट) स्थित कंपनी के आलीशान गेस्टहाउस में दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी.

बैठक में शामिल होने के लिए चेयरमैन मनोज गौर के अलावा वाइस चेयरमैन ए.के.जैन, प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन, डायरेक्टर स्तर के पदाधिकारी रमेश चंद्र तथा वीरेंद्र सिंह गेस्टहाउस आ चुके थे. वे सब मीटिंग की तैयारी में व्यस्त थे.

इसी अहम बैठक में जेपी गु्रप की कंपनी कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड कैमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी शामिल होना था. जोशी स्वरूपनगर स्थित रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट के प्रथम तल पर अपने परिवार के साथ रहते थे.

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मीटिंग को ले कर वह सुबह से ही उलझन में थे. पति को परेशान देख उन की पत्नी मेनका ने पूछा भी पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया. हां, इतना जरूर कहा कि आज वह एमडी से बात कर ही लेंगे.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने उलझन के कारण नाश्ता भी नहीं किया और प्रात: 9 बजे अपनी निजी कार से गेस्टहाउस के लिए रवाना हो गये. 20 मिनट बाद वह कैंट स्थित कंपनी के गेस्टहाउस पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद कर्मचारी से मनोज गौर के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि चेयरमैन साहब रात को ही गेस्टहाउस आ गए थे. इस समय वह बाथरूम में हैं. मीटिंग 12 बजे के बाद शुरू होगी.

इस के बाद सुनील कुमार जोशी कमरे में चले गए. उन्होंने कर्मचारी गौतम राजपूत से पानी लाने को कहा. गौतम पानी लेने चला गया, लेकिन उस के आने से पहले ही वह बाथरूम चले गए. कुछ देर बाद ही बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई.

आवाज सुन कर किचन में नाश्ता तैयार कर रहे बुद्धराम कुशवाहा, गौतम राजपूत व जितेंद्र रूम में आ गए. उन तीनों ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उन के होश गुम हो गए. बाथरूम के अंदर सुनील कुमार जोशी खून से लथपथ मरणासन्न स्थिति में पड़े थे.

कर्मचारियों ने तुरंत जा कर प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन को घटना की जानकारी दी.

मामला गंभीर देख कर अनिल मोहन फौरन वहां जा पहुंचे, जहां सुनील कुमार जोशी खून के सैलाब में डूबे पड़े थे. उन की हालत गंभीर थी. अनिल मोहन ने कर्मचारियों की मदद से उन्हें कार में बिठाया और कानपुर के चर्चित अस्पताल रीजेंसी ले गए.

चूंकि सुनील कुमार जोशी की हालत नाजुक थी, अत: उन्हें गहन चिकित्सा यूनिट में भरती किया गया. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए.

सुनील जोशी द्वारा खुदकुशी की कोशिश किए जाने की जानकारी मिलते ही उन की पत्नी मेनका जोशी तत्काल रीजेंसी अस्पताल पहुंचीं. लेकिन वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि उन के पति की मृत्यु हो गई है. इस सदमे को बरदाश्त कर पाना मेनका जोशी के लिए बहुत मुश्किल था.

परिवार की महिलाओं व कंपनी के बड़े अधिकारियों ने जैसेतैसे उन्हें धैर्य बंधाया. इस के बाद मेनका अस्पताल से घटनास्थल गेस्टहाउस को रवाना हो गईं.

इधर प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ने डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी द्वारा गोली मार कर आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना कैंट पुलिस को दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आदेश चंद्र पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी इस घटना के बारे में सूचित कर दिया था.

थाने से कंपनी का गेस्टहाउस दो किलोमीटर दूर था. अत: पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. चूंकि गेस्टहाउस में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक थी, अत: भीड़ ज्यादा नहीं थी. गेस्टहाउस के कर्मचारी, पदाधिकारी तथा मृतक के परिजन ही वहां मौजूद थे.

थानाप्रभारी आदेशचंद्र घटनास्थल पर पहुंचे ही थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा डीएसपी अरविंद कुमार चतुर्वेदी भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. अधिकारियों की उपस्थिति में फोरैंसिक टीम ने जांच शुरू की. कमरे से अटैच बाथरूम में खून फैला हुआ था. वहीं पिस्टल भी पड़ी थी.

जांच से पता चला कि डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने .30 बोर की इंग्लिश पिस्टल से खुद को गोली मारी थी. टीम ने जांच के लिए ब्लड सैंपल और पिस्टल से फिंगरप्रिंट ले लिए. पास ही कारतूस का खोखा पड़ा था. टीम ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. फोरैंसिक टीम ने पिस्टल से मैगजीन निकाली तो उस में 5 गोलियां मौजूद थीं. सभी बरामद वस्तुओं को टीम ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें कमरे में मृतक सुनील कुमार जोशी का मोबाइल फोन रखा मिल गया. एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल ने मोबाइल फोन खंगाला तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली.

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मृतक सुनील कुमार जोशी ने प्रात: 9 बज कर 26 मिनट पर एग्जीक्यूटिव कमेटी के वाट्सऐप गु्रप में जो मैसेज किया, उस से साफ जाहिर था कि उन की मनोदशा ठीक नहीं थी. मैसेज में उन्होंने लिखा था कि 30 साल से कंपनी की सेवा कर रहा हूं. अच्छे और बुरे दिन देखे. लेकिन अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं है.

घटनास्थल (गेस्टहाउस) पर जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि घटना के वक्त वह अपने रूम के बाथरूम में थे. इसी दौरान अनिल मोहन सुनील को अस्पताल ले जा चुके थे. गेस्टहाउस कर्मचारियों से उन्हें घटना की जानकारी हुई तो वह अवाक रह गए.

उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बताया कि फर्टिलाइजर कंपनी में करोड़ों का स्क्रैप बेचा गया था, जिसे बिना किसी लिखापढ़ी तथा कंपनी के अधिकारियों को जानकारी दिए बिना उठवा दिया गया था. इसी को ले कर कंपनी में विवाद की स्थिति थी.

मनोज गौर ने बताया कि इस मामले को ले कर उन्होंने कई बार सुनील जोशी से बात करने की कोशिश की, मगर वह उन का फोन ही नहीं उठाते थे और बात करने से बचते थे.

स्क्रैप बिक्री घोटाले को ले क र ही उन्होंने आज कानपुर स्थित कंपनी के गेस्टहाउस में मीटिंग रखी थी. शायद वह इस मीटिंग को फेस करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. गेस्टहाउस आए जरूर पर उन्होंने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

गेस्टहाउस में ही मनोज गौर का सामना सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी से हो गया जो रिश्ते में उन की भतीजी लगती थी. गमगीन भतीजी को देख कर चेयरमैन मनोज गौर भावुक हो गए और बोले, ‘‘सुनील से गलती हो गई थी, तो मुंह छिपाने से क्या फायदा था. कंपनी के जिम्मेदार पद पर हो कर भी फोन नहीं उठा रहे थे. सामने आ कर स्थितियां स्पष्ट करते तो कोई रास्ता निकाला जाता.’’

मेनका जोशी ने अपने फूफा मनोज गौर की बात को गौर से सुना जरूर, पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. जाने वाला हमेशा के लिए जा चुका था. अब कुछ कहनेसुनने से क्या फायदा था. वह चुपचाप सुबकती रही और आंखों से आंसू बहाती रहीं.

एसएसपी अनंत देव तिवारी इस हाईप्रोफाइल मामले पर पैनी नजर रखे हुए थे और बड़ी बारीकी से जांच में जुटे थे. इसी कड़ी में उन्होंने प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन से पूछताछ की.

उन्होंने बताया कि घटना के समय वह अपने रूम में थे. तभी 3 कर्मचारी बदहवास हालत में उन के रूम में आए और बताया कि डायरेक्टर सुनील जोशी ने बाथरूम में खुद को गोली मार ली है. वह लहूलुहान बाथरूम में पड़े हैं.

यह सुनते ही वह अवाक रह गए. फिर वह सुनील जोशी को कार से रीजेंसी अस्पताल ले गए और भरती कराया. उस के बाद थाना छावनी पुलिस तथा सुनील की पत्नी मेनका को इस घटना के बारे में सूचना दी.

अनंत देव तिवारी ने गेस्टहाउस के कर्मचारियों से पूछताछ की तो गौतम राजपूत, बुद्धराम कुशवाहा तथा जितेंद्र ने बताया कि वे तीनों रसोइया हैं. उस वक्त वे किचन में नाश्ता तैयार कर रहे थे. जब बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई तो उन लोगों ने वहां पहुंच कर देखा कि सुनील जोशी तड़प रहे थे. शायद उन्होंने खुद को गोली मार ली थी. वे तीनों घबरा गए और तुरंत जा कर अनिल मोहन को जानकारी दी. फिर वही घायल सुनील जोशी को अस्पताल ले गए.

कंपनी के गेस्टहाउस (घटनास्थल) में मृतक सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी, उन का साला सोनू तथा परिवार के अन्य लोग मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने जब मेनका जोशी से पूछताछ की तो वह बोलीं कि उन के पति ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उन की हत्या की गई है. वह रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग करेंगी.

पुलिस अधिकारियों ने जब उन से सुनील की पिस्टल के संबंध में पूछा तो मेनका ने बताया कि इंगलिश पिस्टल लाइसेंसी है तथा उन के पति सुनील की है.

मृतक सुनील जोशी के साले सोनू का आरोप था कि जिस बाथरूम में सुनील को गोली लगी थी, वहां खून की मोटी परत जमी थी. इस से जाहिर है कि गोली लगने के बाद वह काफी देर तक फर्श पर पड़े रहे और खून निकलता रहा. उन्हें तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया.

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सोनू ने यह भी आरोप लगाया कि जब गेस्टहाउस में आधा दर्जन से अधिक उच्चपदस्थ अधिकारी मौजूद थे तब गोली लगने के बाद सुनील को अस्पताल ले जाने के लिए अकेले प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ही आगे आए. बाकी अस्पताल में उन्हें देखने तक नहीं गए. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग की जाएगी.

सुनील जोशी के परिवार के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि कंपनी का निदेशक मंडल अपने कारनामों को सुनील पर थोप कर बचने का प्रयास कर रहा था. किस ने गलत किया है, इस का फैसला करने के लिए ही बैठक बुलाई गई थी. अपने ऊपर लगे आरोपों से सुनील बेहद नाराज थे. मीटिंग से पहले आत्महत्या की बात गले नहीं उतर रही. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर जांच की मांग करेंगे.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

 

लाखों रुपए कैश वैन से लूटा, चुटकियों में गए ऐसे पकड़े

छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी कहे जाने वाली रायगढ़ सिटी में दिनदहाड़े केवडाबाडी स्टेट बैंक के मुख्य शाखा से पैसे लेकर निकले कर्मचारी नवरतन रात्रे, गनमैन विनोद पटेल, चालक अरविन्द पटेल एवं भीषण कुमार रात्रे के साथ कैश वेन क्रमांक CG 04 JD 0613 में एटीएम  में रुपये  डालते हुए किरोड़ीमल भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम  1.45 बजे पहुंचे. नवरत्न रात्रे पेटी से 13,00,000 रुपए निकालकर एटीएम  में रुपये  डालने के लिए हुड को खोला ही था उसने देखा  दो नकाबपोश सामने खड़े हैं.

उन्होंने शटर  उठाकर गोली चलाई  और बड़े ही आराम से बैग में  13,00,000 रुपए और एटीएम से बची रकम 1,50,000 रुपए, इस तरह कुल14,50,000 रुपए लूटकर वैन के चालक अरविन्द पटेल और गनमैन विनोद पटेल को गोली मारकर मोटर साइकिल से भाग गए. शुक्रवार 3 जुलाई 2020 का यह घटनाक्रम सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया और देखते ही देखते देशभर में वायरल भी होता चला गया. लोगों ने देखा किस तरह सड़क पर बड़े ही दुस्साहस तरीके से लूट को अंजाम दिया गया और फायरिंग करते हुए लुटेरे आराम से भाग खड़े हुए.

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इस घटनाक्रम के पश्चात छत्तीसगढ़ पुलिस की यह जिम्मेदारी हो गई की कैसे भी हो, इस घटनाक्रम को अंजाम देने वाले लोगों को पकड़ कर कानून के हवाले करना होगा और निसंदेह एक चुनौती पूर्ण कार्य था. यहां यह जानना भी जरूरी है कि इस दुस्साहस से लूट कांड में चालक अरविंद पटेल की मौत हो गई, वहीं गनमैन गंभीर रूप से घायल हो गया.

पुलिस हो गई “अलर्ट”

रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार सिंह हमारे संवाददाता को बताते हैं की लूट की घटना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ी थी. हमें जनता को विश्वास दिलाना था कि कानून के हाथ लंबे होते हैं.

लूट की यह वारदात की खबर छत्तीसगढ़ से निकल का देश भर में आग की तरह फैलती चली . इधर घटनास्थल  पर जिले के  वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ शहर के  थाना व चौकी प्रभारी के साथ सायबर टीम आ  पहुंची. खबर मिलते ही  बिलासपुर रेंज आईजी दिपांशु काबरा और  पुलिस अधीक्षक  संतोष कुमार सिंह ने पूरे जिले को सील कराकर जिले के अंदर 50 नाकेबंदी पाइंट बनवा रातभर वाहनों एवं आने–जाने वालों की सघन तलाशी अभियान चलाया.  सरहदी जिले कोरबा, रायपुर सहित   सरहदी राज्य उड़ीसा  में नाकेबंदी करा अंतर्राज्यीय जिलों के पुलिस अधीक्षकों से तालमेल बिठाया गया.   लुटेरे आरोपियों  को जल्द से जल्द दबोचने के लिए आठ टीमों को  मुस्तैद किया गया.

पुलिस कन्ट्रोल रूम, जिंदल कम्पनी और शहर के सैकड़ों सीसीटीवी  कैमरों के फुटेज को चेक करने के बाद आरोपियों का अंतिम लोकेशन केराझर गांव के पास मिल गई. इसी बीच पुलिस अधीक्षक को मुखबिर से सूचना मिली की केराझर गांव में दो संदिग्ध देखे गए हैं, तब केराझर एवं पास के दो गांवों को पुलिस की टीमें टारगेट कर आर्म्स लिए हुए 50 जवान की टीम गांव को  घेरते हुए आगे बढ़ी, कुछ जवान नगर पुलिस अधीक्षक  अविनाश सिंह ठाकुर के साथ हथियार लैस होकर एक–एक कर घरों की तलाशी ले रहे थे. पुलिस पार्टी को एक कमरे के अंदर दो संदिग्ध मिले, जिसमें एक युवक ने पुलिस पार्टी पर पिस्टल तान दी, लेकिन जान जोखिम में डाल पुलिसवालों ने झूमाझटकी कर हथियार पकड़े युवक को पकड़ उससे हथियार छीनकर दोनों को हिरासत में ले लिया . और इस तरह पुलिस का ऑपरेशन सफल हुआ.

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आरोपी बिहार प्रांत के निकले

और जैसा कि छत्तीसगढ़ पुलिस को एहसास था दोनों आरोपी दीगर राज्य बिहार के निवासी निकले .

पहला आरोपी 23 वर्षीय सुधीर कुमार सिंह पिता झूलन राय बिहार के जिला सिवान के ग्राम खम्हौरी का है. वही  दूसरा आरोपी 18 वर्षीय पिन्टु वर्मा उर्फ विराट सिंह उर्फ छोटू बिहार के जिला कैमूर के थाना रामगढ़ का  रहवासी  है. पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि सुधीर सिंह के पिता एवं भाई रायगढ़ में ही रहते हैं. सुधीर जब भी रायगढ़ आता तो कैश वैन को देख कर उसे लूटने का मन बनाकर अपने साथी पिन्टु वर्मा को प्लान में शामिल किया. लूट की प्लान के साथ 2 पिस्टल, 2 देसी कट्टा, 3 मैगजीन में 26 राउंड, 2 जिंदा कारतूस, 2 बटन चाकू के साथ प्री–प्लानिंग कर कैश वैन को लूटने आए, और 15 दिनों की रैकी करने के बाद लूट की घटना को अंजाम दिया. छत्तीसगढ़ पुलिस की तत्परता की कारण  आज जेल के सीखचों में पहुंच गए हैं.

हत्या आत्महत्या में उलझी मौत की गुत्थी

खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजतेबजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में  लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर,राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

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पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

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वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहेसहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

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पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधीसच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफसाफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

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मौकामुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरीडकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

 पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छेखासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदरबाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

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10 टीमें जुटीं जांच में
दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

 राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ाफसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

 कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जीमंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए,कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

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इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मंदिर में बाहुबल : भाग 1

उत्तर प्रदेश के औरैया शहर के मोहल्ला नारायणपुर में 15 मार्च, 2020 को सुबहसुबह खबर फैली कि पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक ब्रह्मलीन हो गए हैं. जिस ने भी यह खबर सुनी, पुजारी के अंतिम दर्शन के लिए चल पड़ा.

देखते ही देखते उन के घर पर भीड़ बढ़ गई. चूंकि पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखरेख एमएलसी कमलेश पाठक करते थे और उन्होंने ही अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था, अत: पुजारी के निधन की खबर सुन कर वह भी लावलश्कर के साथ नारायणपुर पहुंच गए. उन के भाई रामू पाठक और संतोष पाठक भी आ गए.

अंतिम दर्शन के बाद एमएलसी कमलेश पाठक और उन के भाइयों ने मोहल्ले वालों के सामने प्रस्ताव रखा कि पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक इस मंदिर के पुजारी थे, इसलिए इन की भू समाधि मंदिर परिसर में ही बना दी जाए.

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यह प्रस्ताव सुनते ही मोहल्ले के लोग अवाक रह गए और आपस में खुसरफुसर करने लगे. चूंकि कमलेश पाठक बाहुबली पूर्व विधायक, दरजा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में वह समाजवादी पार्टी से एमएलसी थे. औरैया ही नहीं, आसपास के जिलों में भी उन की तूती बोलती थी, सो उन के प्रस्ताव पर कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

नारायणपुर मोहल्ले में ही शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा चौबे रहते थे. उन का मकान मंदिर के पास था. कमलेश पाठक व मुनुवा चौबे में खूब पटती थी, सो मंदिर की चाबी उन्हीं के पास रहती थी. पुजारी उन्हीं से चाबी ले कर मंदिर खोलते व बंद करते थे.

मोहल्ले के लोगों ने भले ही भय से मंदिर परिसर में पुजारी की समाधि का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था किंतु शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे व उन के अधिवक्ता बेटे मंजुल चौबे को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मंजुल भी दबंग था, मोहल्ले में उस की भी हनक थी.

दरअसल, पंचमुखी हनुमान मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती जमीन बाजार से सटी हुई थी. शिवकुमार चौबे व उन के बेटे मंजुल चौबे को लगा कि कमलेश पाठक दबंगई दिखा कर पुजारी की समाधि के बहाने जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. चूंकि इस कीमती भूमि पर मुनुवा व उन के वकील बेटे मंजुल चौबे की भी नजर थी, सो उन्होंने भू समाधि का विरोध किया.

मंजुल चौबे को जब मोहल्ले वालों का सहयोग भी मिल गया तो कमलेश पाठक ने विरोध के कारण भू समाधि का विचार त्याग दिया. इस के बाद उन्होंने धूमधाम से पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक की शवयात्रा निकाली और यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया.

शाम 3 बजे अंतिम संस्कार के बाद कमलेश पाठक वापस मंदिर परिसर आ गए. उस समय उन के साथ भाई रामू पाठक, संतोष पाठक, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, सरकारी गनर अवनीश प्रताप, कथावाचक राजेश शुक्ल तथा रिश्तेदार आशीष दुबे, कुलदीप अवस्थी, विकास अवस्थी, शुभम अवस्थी और कुछ अन्य लोग थे. इन में से अधिकांश के पास बंदूक और राइफल आदि हथियार थे. कमलेश पाठक ने मंदिर परिसर में पंचायत शुरू कर दी और शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे को पंचायत में बुलाया.

मुनुवा चौबे का दबंग बेटा मंजुल चौबे उस समय घर पर नहीं था. अत: वह बड़े बेटे संजय के साथ पंचायत में आ गए. पंचायत में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे से मंदिर की चाबी देने को कहा, लेकिन मुनुवा ने यह कह कर चाबी देने से इनकार कर दिया कि अभी तक मंदिर में तुम्हारा पुजारी नियुक्त था. अब वह मोहल्ले का पुजारी नियुक्त करेंगे और मंदिर की व्यवस्था भी स्वयं देखेंगे.

मुनुवा चौबे की बात सुन कर एमएलसी कमलेश पाठक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दोनों के बीच विवाद होने लगा. इसी विवाद में कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे के गाल पर तमाचा जड़ दिया. मुनुवा का बड़ा बेटा संजय बीचबचाव में आया तो कमलेश ने उसे भी पीट दिया. मार खा कर बापबेटा घर चले गए. इसी बीच कुछ पत्रकार भी आ गए.

मंदिर परिसर में विवाद की जानकारी हुई, तो नारायणपुर चौकी के इंचार्ज नीरज त्रिपाठी भी आ गए. थानाप्रभारी एमएलसी कमलेश पाठक की दबंगई से वाकिफ थे, सो उन्होंने विवाद की सूचना औरैया कोतवाल आलोक दूबे को दे दी. सूचना पाते ही आलोक दूबे 10-12 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर परिसर में आ गए और कमलेश पाठक से विवाद के संबंध में आमनेसामने बैठ कर बात करने लगे.

उधर अधिवक्ता मंजुल चौबे को कमलेश पाठक द्वारा पिता और भाई को बेइज्जत करने की बात पता चली तो उस का खून खौल उठा. उस ने अपने समर्थकों को बुलाया फिर भाई संजय,चचेरे भाई आशीष तथा चचेरी बहन सुधा को साथ लिया और मंदिर परिसर पहुंच गया. पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक और मंजुल चौबे के बीच तीखी बहस होने लगी.

इसी बीच मंजुल चौबे के समर्थकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. एक पत्थर एमएलसी कमलेश पाठक के पैर में आ कर लगा और वह घायल हो गए. कमलेश पाठक के पैर से खून निकलता देख कर उन के भाई रामू पाठक, संतोष पाठक का खून खौल उठा.

उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग शुरू कर दी. उन के अन्य समर्थक भी फायरिंग करने लगे. कमलेश पाठक का सरकारी गनर अवनीश प्रताप व ड्राइवर छोटू भी मारपीट व फायरिंग करने लगे. संतोष पाठक की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक गोली मंजुल की चचेरी बहन सुधा के सीने में लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी. चंद मिनटों बाद ही सुधा ने दम तोड़ दिया.

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चचेरी बहन सुधा को खून से लथपथ पड़ा देखा तो मंजुल चौबे उस की ओर लपका. लेकिन वह सुधा तक पहुंच पाता, उस के पहले ही एक गोली उस के माथे को भेदती हुई आरपार हो गई. मंजुल भी धराशाई हो गया. फायरिंग में मंजुल गुट के कई समर्थक भी घायल हो गए थे और जमीन पर पड़े तड़प रहे थे. फिल्मी स्टाइल में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से इतनी दहशत फैल गई कि पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने को भाग खड़े हुए. मीडियाकर्मी भी जान बचा कर भागे. जबकि तमाशबीन घरों में दुबक गए. खूनी संघर्ष के बाद एमएलसी कमलेश पाठक अपने भाई रामू, संतोष तथा अन्य समर्थकों के साथ फरार हो गए.

खूनी संघर्ष के दौरान घटनास्थल पर कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी मय पुलिस फोर्स के मौजूद थे. लेकिन पुलिस नेअपने हाथ नहीं खोले और न ही किसी को चेतावनी दी.

हमलावरों के जाने के बाद कोतवाल आलोक दूबे ने निरीक्षण किया तो 2 लाशें घटनास्थल पर पड़ी थीं. एक लाश शिवकुमार चौबे के बेटे मंजुल चौबे की थी तथा दूसरी उस की चचेरी बहन सुधा की. घायलों में संजय चौबे, अंशुल चौबे, अंकुर शुक्ला तथा अजीत एडवोकेट थे. सभी घायलों को कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया.

कोतवाल आलोक दूबे ने डबल मर्डर की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित, सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव तथा डीएम अभिषेक सिंह भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कोतवाल आलोक दूबे से जानकारी हासिल की. डीएम अभिषेक सिंह ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया जबकि एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

चूंकि डबल मर्डर का यह मामला अति संवेदनशील था और कातिल रसूखदार थे. इसलिए एसपी सुश्री सुनीति ने घटना की जानकारी आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर आसपास के थानों की पुलिस फोर्स तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

डबल मर्डर से चौबे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा मंदिर परिसर में बेटे की लाश के पास गुमसुम बैठे थे. वहीं संजय भाई की लाश के पास  बैठा फूटफूट कर रो रहा था. आशीष चौबे भी अपनी बहन सुधा के पास विलाप कर रहा था. संजय चौबे व उन की बहन रागिनी एसपी सुश्री सुनीति के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि हमलावरों को जल्दी गिरफ्तार करो वरना वे लोग इस से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं.

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जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

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