वो वाली दोस्त: क्या मुकेश मीनू को अपना बना पाया?

कोरोना की महामारी ने बड़ेबड़े परदेशी को गांव में आने को मजबूर किया है. आज पूरे 4 साल बाद मुकेश अपने गांव आया है या कहें मजबूरी में आया है. मुकेश बहुत ही गरीबी की जिंदगी बचपन से जिया है और अपने सपनों और घर की हालत सुधारने के लिए 10 वीं पढ़ कर मुंबई भाग गया. वहां उस ने मोटर बनाने का काम सीखा और आज अच्छा पैसा कमा रहा है.

मुकेश की उम्र अभी 24 साल है. उस पर मुंबई का सुरूर देखा जा सकता है. रंगे हुए बाल, गोरा शरीर, अच्छे कपड़े उस की शोभा बढ़ा रहे थे.

मुकेश अपने घर के बाहर बरामदे में बैठा था, तभी उस की नजर सामने लगे नल पर पड़ी, जहां एक 17 साल की नई यौवन को पाई हुई खूबसूरत गोरी सी लड़की बालटी में पानी भर रही थी.

मुकेश की नजरों को मानो कोई जादू सा लग गया हो. वह एकटक उसी को देखे जा रहा था. वह सोच रहा था कि आखिर ये लड़की, जो बिलकुल साधारण कपड़ों और बिना फैशन के ही सुंदर लग रही है. हमारे शहर में लड़कियां तो मेकअप का सहारा लेती हैं, लेकिन इतनी सुंदर और मनमोहक नहीं लगतीं. मुकेश की नजर उस का तब तक पीछा करती रही, जब तक वह पानी ले कर ओझल नहीं हुई.

मुकेश ने अपनी भाभी से पूछा, ‘‘भाभी, यह लड़की कौन है? मैं तो इसे पहचान नहीं पाया.‘‘

भाभी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे मुकेश, यह तो अपनी बगल के तिवारीजी की बिटिया मीनू है. तुम इसे भूल गए. शायद वह बड़ी हो गई है, इसीलिए इसे पहचान नहीं पाए.‘‘

मुकेश को उस का नाम जान कर न जाने क्या खुशी मिल रही थी, वह मन ही मन उस को अपना बनाने की सोचने लगा. मीनू की जवानी और खूबसूरती ने उस का दिल भेद दिया था.

अगले दिन फिर मुकेश बरामदे में बैठा उस का इंतजार करने लगा कि कब वह पानी भरने आएगी और कब वह उस का दीदार कर सकेगा.

तभी उस की नजर पीले सूट में चमकती हुई मीनू पर पड़ी और मुकेश की आंखें देखती रह गईं. पीले सूट में मीनू की खूबसूरती अलग ही इमेज बना रही थी, मानो कनेर का खूबसूरत फूल उतर आया हो.

मुकेश ने बड़ी हिम्मत की और नल तक पहुंच गया. वह मासूम बनते हुए बोला, ‘‘तुम मीनू हो न…‘‘

मीनू ने पलटते हुए जवाब दिया, ‘‘तुम्हें मेरा नाम मालूम है… हां, मैं ही मीनू हूं, और तुम मुकेश हो न. तुम तो मुंबई क्या गए, हम सब को भूल ही गए. अपने सभी दोस्तों और घर वालों को लगता है कि शहर की लड़कियां ज्यादा खूबसूरत लगती हैं.‘‘

अचानक मुकेश के मुंह से निकल गया, ‘‘नहीं मीनू, तुम से खूबसूरत कोई नहीं.’’

मीनू शरमा कर बालटी ले कर भागी और मुकेश को होश आया कि उस ने क्या कह दिया?

अगले दिन फिर वह बात करने पहुंच गया और बोला, ‘‘मीनू, मुझे माफ कर दो. मैं ने न जाने क्या बोल दिया, जो तुम भाग गई.‘‘

मीनू ने शरमाते हुए कहा, ‘‘अरे पागल, ऐसी कोई बात नहीं है.”

मुकेश ने कहा, ‘‘मुझ से दोस्ती करोगी?‘‘

मीनू ने कहा, ‘‘लेकिन, मैं और तुम तो पहले के ही दोस्त हैं बचपन से. बस, तुम्हीं भूल गए हो.‘‘

मुकेश को लगा कि आग दोनों तरफ है. उस ने बड़े प्यार से इशारों वाली बात में कहा, ‘‘वो वाली दोस्त बनोगी, गर्लफ्रैंड वाली.‘‘

मीनू ने कहा, ‘‘तुम परेशान करोगे लेकिन मैं ने देखा है फिल्मों में.‘‘

मुकेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘नहीं, प्यार करूंगा बस, परेशान कभी नहीं. तुम इतनी खूबसूरत हो, भला कौन तुम्हें परेशान करेगा.‘‘

इसी तरह दोनों की मेलमुलाकात और बातें बढ़ती गईं. कभीकभी प्यार से मीनू का हाथ मुकेश छू लेता, तब उस के शरीर मे अजब सी सिहरन दौड़ पड़ती.

मीनू मन ही मन उसे अपना दिल दे चुकी थी, बस होंठों पर इजहार लाने की देरी थी. लेकिन हर लड़की की तरह वह भी चाहती थी कि मुकेश ही इजहार करे.

एक दिन मुकेश ने बड़ी हिम्मत से अपने दिल की बात बताई

यह सुन कर मीनू खुशी से उछल पड़ी और उसे गले से लगा लिया.

गले लगते ही मुकेश को मानो क्या मिल गया, वह उस के प्यार में अधीर हो गया और पाने की ललक में व्याकुल भी.

उस के शरीर की बनावट, उस की सादगी उसे अपनी पसंद पर गुरूर दे रही थी, मानो उसे दुनिया का सब से अनमोल उपहार मिला हो.

अगले दिन मीनू उस के घर आई, तब उस की भाभी नहाने और मां बगल वाले ताऊ के यहां गई थीं. मुकेश बिस्तर पर सो रहा था. मीनू उस के समीप पहुंची और अपने होंठों से उस के गालों पर एक चुम्मा दे दी.

अचानक स्पर्श से मुकेश पलटा और दोनों के होंठ छू गए.

मुकेश उसे चूमने लगा, तभी मीनू की भी सासें गरम चलने लगीं, लेकिन खुद को संभालते हुए वह उस से झिटक कर दूर हुई और बोली, ‘‘धत्त, तुम बड़े बदमाश हो. अब कभी तुम्हें चुम्मा नहीं करूंगी.’’ लेकिन तभी मुकेश ने उठ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया, फिर मीनू ने भी खुद को समर्पित कर दिया और अपने कोमल होंठों से उस का साथ देने लगी.

मुकेश की गरम सांसें मीनू के बदन में आग डाल रही थीं और उस का यौवन पूरे उफान पर आ चुका था. मुकेश भी अपने सीने पर उसे महसूस कर रहा था.

दोनों ही बिना कुछ बोले प्यार की आग में आहुति बन रहे थे और एकदूसरे को पूरा किए दे रहे थे.

मुकेश और मीनू का प्यार था या सिर्फ खिंचाव या फिर बचपन में हुई गलती, ये समय सिद्ध करेगा. लौकबंदी के 4 महीनों में मुकेश और मीनू ने न जाने कितनी दफा आगोश में लिपटे अपने जिस्म की गरमियों से एकदूसरे को पिघलाया.

मीनू का भरता यौवन अपनी चरमसीमा पर पहुंचने पर पूर्ण तृप्ति को पाया और मुकेश ने भी अपनी बांहों में न जाने कितनी दफा मीनू को जगह दी.

अचानक कुछ ही दिनों के बाद मुकेश को शहर से फोन आ गया. वह अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदार था. घर की गृहस्थी चलाना और अब प्यार दोनों में कोई एक चुनना था. अभी उम्र कम थी और काम ज्यादा करना था. अभी तो उसे कामयाबी मिलनी शुरू हुई थी.

एक रात उस ने बाग में मीनू को बुलाया और मिलते ही मीनू ने उसे गले से लगा लिया और उस के गालों पर अपने होंठों से चूमते हुए कहा, ‘‘ मुकेश तुम से बिलकुल दूर नहीं रहा जाता. मुझे हर जगह बस तुम्हीं दिखते हो. मन करता है कि तुम्हारी बांहों में रहूं और उम्र गुजर जाए.‘‘

मीनू की प्यार भरी बातें मुकेश सुनता रहा, परंतु वो तो मीनू से आज विदा लेने आया था कि उसे फिर शहर वापस जाना है.

मुकेश ने कहा, ‘‘मीनू, मैं भी तुम से प्यार करता हूं और तुम जानती हो कि आज के जमाने में प्रेम के साथ पैसों की भी जरूरत पड़ती है. बिना पैसों के घर नहीं चलता, इसीलिए आज तुम्हें यहां बुलाया है. मुझे कल शहर जाना है, क्योंकि आज वापसी के लिए फोन आया था.”

इतना सुनते ही मीनू के सिर पर मानो गमों का पहाड़ टूट पड़ा. यह सुन कर वह रोने लगी और फिर मुकेश की बांहों में खुद को समर्पित कर दिया.

मुकेश ने उसे प्यार से चूमा और दोनों के होंठ और हाथ एकदूसरे के बदन से खेलने लगे. मुकेश ने उस को वहीं जमीन पर लिटा दिया और चूमने लगा. मीनू भी उस का बराबर साथ दे रही थी. रात के ढलते हुए पहर में वे दोनों एकदूसरे में खोते गए. न जाने कब दोनों एकदूसरे के जिस्म में समा गए और अपनी चरमसीमा के उपरांत दोनों अलग हुए.

मुकेश ने मीनू से वादा किया, ‘‘तुम जरा भी चिंता न करो. मैं जल्दी ही वापस आऊंगा और तुम्हें अपने साथ शहर ले जाऊंगा.‘‘

सुबह हुई, मुकेश तैयार हुआ और शहर जाने के लिए निकल पड़ा. मीनू छत से उसे जाते देख रही थी, जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गया.

मीनू बहुत रोई और फिर खुद को ही समझाया, परंतु रोकने की हिम्मत न हुई क्योंकि प्रेम में आप साथी को खुद से नहीं बांध सकते उस की खुशी जब तक न हो.

आज इस घटना को पूरे 3 साल हो गए. मुकेश एक बार भी शहर से न आया. पहले एक या डेढ़ साल तक उस का फोन आता था, लेकिन तब से वह भी बंद है.

मीनू अब और बड़ी हो गई और सुंदर भी. उस का यौवन अब पूरी तरह से विकसित और ज्यादा खूबसूरत हो गया, उभार और कमर की खूबसूरती लड़कों को आकर्षित करती. उस के कालेज के न जाने कितने लड़कों ने उसे प्यार के लिए मनाया, परंतु उस के मन में मुकेश के सिवा कोई नहीं. वह बस उसी का इंतजार करती रही.

एक दिन उसे खबर मिली कि मुकेश इस हफ्ते गांव आ रहा है. उस की खुशी का ठिकाना न था. उस को लग रहा था कि वह सातवें आसमान पर है.

आज वह दिन भी आ गया और मुकेश वापस आया. मीनू कालेज से वापस आते ही भागती हुई मुकेश के घर उस से मिलने पहुंची और वहां पहुंचते ही वह हैरान हो गई.

मुकेश अकेले नहीं आया था, बल्कि एक लड़की के साथ आया था, जो उस की पत्नी थी. मुकेश ने शहर में ही शादी कर ली थी.

मीनू को देखते ही मुकेश ने उसे बुलाया और अपनी पत्नी से मिलाते हुए कहा, ‘‘सुनो, ये मेरी वो वाली दोस्त है, जिस के बारे में मैं ने तुम्हें बताया था.‘‘

मीनू ने भी उस की पत्नी को गले लगाया और कहा, ‘‘तुम बहुत तकदीर वाली हो, तुम्हें सब से अच्छा लड़का मिला, जो मेरा दोस्त था.‘‘

मीनू वहां से भागती हुई आई और फूटफूट कर रोई. वह खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि वह सिर्फ वो वाली दोस्त थी.

News Kahani – आदमखोर : किन जानवरों में घिरी थी बेला

शाम के साढ़े 6 बज रहे थे. रेलगाड़ी अभी प्लेटफार्म पर आ कर रुकी ही थी. रामपुर गांव की इक्कादुक्का सवारियां ही थीं. 21 साल की बेला शहर से गांव आई थी. उस के पास ज्यादा सामान नहीं था. रेलवे स्टेशन से घर की दूरी यों तो पैदल 20-25 मिनट की ही थी, पर बेला ने रिकशे से घर जाना सही समझ. लेकिन रेलवे स्टेशन के बाहर सन्नाटा पसरा था.

एक बार को बेला ने अपने बड़े भाई मनोज को फोन कर के रेलवे स्टेशन आने को कहने की सोची, पर उसे लगा कि परिवार वालों को सरप्राइज देगी, तो बड़ा मजा आएगा. फिर उसे गांव का चप्पाचप्पा पता है, अभी कच्ची सड़क से गांव की ओर हो लेगी, तो 15-20 मिनट में ही घर पहुंच जाएगी.

कच्ची सड़क पर अंधेरा रहता था और चूंकि यह गांव जंगल से घिरा था, तो रास्ता सुनसान भी था. जंगली जानवरों का भी डर बना रहता था. लेकिन बेला बेफिक्र हो कर घर के लिए चल दी.

पर, अभी बेला कुछ ही दूर गई थी कि उसे किसी की आहट हुई. पहले तो उसे लगा कि यह उस का वहम है, पर बाद में कोई साया अचानक से बेला पर झपटा और उसे घसीटता हुआ जंगल के भीतर ले गया.

इधर बेला के साथ हुई घटना से अनजान उस के परिवार वाले दीवाली की तैयारियों में लगे हुए थे.

‘‘मनोज, बेला किसी भी दिन आ सकती है. उस के आने से पहले घर में सफेदी हो जानी चाहिए. थोड़े दीए और बिजली की झलर भी सजावट के लिए ले आना. यह तेरी बहन की इस घर में शायद आखिरी दीवाली है. फिर तो अगले साल हम उस की शादी करा देंगे. कब तक बेटी को घर पर बिठा कर रखेंगे.’’

‘‘अरे मां, तुम भी कहां बेला की शादी के पीछे पड़ गई हो. अभी 21 साल की ही तो है. करा देना 2-4 साल में उस की शादी. तुम्हारा बेटा 24 साल का हो गया है, उस की कोई फिक्र नहीं,’’ मनोज ने अपनी मां शांति देवी के गले में हाथ डालते हुए चुहलबाजी की.

‘‘तुझे बड़ा शादी करने का शौक चढ़ा है. चिंता मत कर, तेरे भी हाथ जल्दी पीले कर देंगे,’’ पड़ोस की रीता भाभी ने अचानक से घर आ कर कहा, तो मनोज शरमा गया.

‘‘भाभी, यह चीटिंग है. तुम ने छिप कर हम मांबेटे की बात सुन ली,’’ मनोज ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘अरे, छिप कर कहां सुन रही थी. तेरी पसंद की कढ़ी बनाई थी, वही देने आई थी. अगर कल तेरे भैया बताते कि आज रात को मैं ने कढ़ी बनाई थी और तु?ो नहीं दी, तो तू मेरी नाक में दम नहीं कर देता,’’ रीता भाभी ने कढ़ी का एक कटोरा मनोज को थमाते हुए कहा.

‘‘भाभी हो तो आप जैसी. काश, बेला भी यहां होती, तो हम दोनों कढ़ी खाते,’’ मनोज ने कहा.

‘‘कब आ रही है हमारी लाड़ो?’’ रीता भाभी ने पूछा.

‘‘शायद, परसों तक वह आ जाएगी. अभी पूछ लेता हूं उस से,’’ मनोज ने कहा.

मनोज ने बेला को फोन किया, पर वह आउट औफ नैटवर्क एरिया बता रहा था. ऐसा तो कभी नहीं हुआ था. मनोज के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं.

पर रीता भाभी ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं देवरजी, बाद में बेला खुद ही फोन कर लेगी,’’ इतना कह कर वह अपने घर चली गई.

पर जब देर रात तक मनोज की बेला से फोन पर बात नहीं हुई, तो उस ने बेला की सहेली प्रिया को फोन किया. प्रिया ने बताया कि बेला तो आज ही शाम की रेलगाड़ी से गांव आने वाली थी, तो मनोज के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

मनोज ने यह बात जब अपने पिताजी सूरजभान को बताई, तो वे भी चिंतित हो गए और वे दोनों शांति देवी को बिना बताए घर से बाहर चले गए.

घर से थोड़ी ही दूरी पर सूरजभान ने गांव के 4-5 पक्के दोस्तों को अपने साथ लिया और रात को ही रेलवे स्टेशन की तरफ निकल गए. मनोज के साथ उस का जिगरी दोस्त दिनेश भी था. सब के पास लाठी और टौर्च थीं.

मोटरसाइकल से उन्हें रेलवे स्टेशन पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगी. वहां के चौकीदार बनवारी ने बताया कि बेला शाम की रेलगाड़ी से आई थी और शायद कच्ची सड़क से घर की तरफ गई थी.

यह सुन कर सब के कान खड़े हो गए. दरअसल, पिछले कुछ समय से उस इलाके में किसी ऐसे अनजान हिंसक जानवर का खौफ था, जो मवेशियों के साथसाथ इनसानों पर भी हमला कर सकता था. कहीं बेला भी उसी जानवर का शिकार तो नहीं हो गई है?

‘‘मनोज बेटा, एक बार फिर से बेला का मोबाइल नंबर लगा. क्या पता, इस बार घंटी बज जाए,’’ सूरजभान ने कच्ची सड़क पर आगे बढ़ते हुए कहा.

मनोज ने तुरंत ही जेब से फोन निकाला और बेला का नंबर मिला दिया. इस बार घंटी की आवाज आई, जो नजदीक ही जंगल की ओर से आ रही थी.

वे सब घंटी की आवाज की तरफ दौड़े. सड़क के बाएं ओर जंगल के कुछ भीतर बेला का बैग पड़ा मिला. फोन उसी बैग में बज रहा था.

‘‘पापा, यह तो बेला का बैग है. मैं ने जन्मदिन पर उसे दिया था. बेला भी यहीं आसपास होगी,’’ मनोज ने कहा.

इधर बेला के घर में मनोज की मां शांति देवी को भनक लग गई थी कि उन की बेटी आज गांव आ रही थी, पर घर नहीं पहुंची. उन का रोरो कर बुरा हाल था. आसपास की औरतें उन्हें दिलासा दे रही थीं और दबी जबान में आदमखोर जानवर का जिक्र भी कर रही थीं.

‘‘दिन ढले अकेले घर आने की क्या तुक थी. अपने भाई को ही फोन कर लेती. मोटरसाइकिल से तुरंत घर ले आता,’’ पड़ोस की माया ताई ने कहा.

‘‘अब तो ऐसी बातें करने का कोई मतलब नहीं है. बच्ची सहीसलामत हो,’’ पड़ोस की रीता भाभी ने कहा.

‘‘बस, एक बार मेरी बेटी घर आ जाए और मुझे कुछ नहीं चाहिए. एक बार मनोज को फोन मिला कर देखो कोई…’’ शांति देवी रोते हुए बोलीं.

वहां जंगल के कुछ भीतर जाते ही बेला बेहोशी की हालत में पड़ी मिली. उस पर किसी के द्वारा खरोंचे जाने के निशान थे. उसे बुरी तरह घसीटा गया था.

सूरजभान अपनी बेटी बेला की ऐसी हालत देख कर आंसू नहीं रोक पाए. मनोज ने पाया कि बेला की सांसें बड़ी धीमी थीं. लगता है, जानवर उसे घसीट कर जंगल के भीतर तो ले गया था, पर बिना खाए ही भाग गया.

इतने में थोड़ी दूर से दिनेश की डरी हुई सी आवाज आई, ‘‘सब लोग इधर आओ. बृजभान पहलवान के बिगड़ैल बेटे सनी की लाश यहां पड़ी है. किसी जंगली जानवर ने बड़ी बेरहमी से इस का शिकार किया है.

‘‘मुझे लगता है कि बेला को जंगली जानवर से बचाने के लिए यह उस से भिड़ गया और अपनी जान गंवा बैठा.’’

सनी की गांव में इमेज अच्छी नहीं थी. वह हर किसी से पंगा लेता था और चूंकि गांव में उस के बाप का दबदबा था, तो हर कोई उस से बचता था. पर आज तो सनी ने अपनी जान पर खेल कर बेला की इज्जत बचाई थी.

आननफानन ही वहां पुलिस बुलाई गई. सनी की लाश का पंचनामा किया गया. बेहोश बेला और सनी की लाश को जल्दी से शहर के सरकारी अस्पताल में भेजा गया.

कुछ पुलिस वालों ने गांव के लोगों के साथ आदमखोर जंगली जानवर की तलाश की, पर निराशा ही हाथ लगी. अब तो बेला के होश में आने पर ही इस कांड की हकीकत पता लग सकती थी.

अगली सुबह इस मामले को ले कर पंचायत बैठी. पूरा गांव जुटा हुआ था. बेला और सनी के साथ हुए इस कांड ने सब को चिंतित कर दिया था. बेला को किसी भी समय होश आ सकता था, पर गांव की हिफाजत के लिए पंचायत को भी कोई कठोर फैसला लेना था.

हड्डियों का ढांचा हो गए भीखू ने खड़े हो कर पंचों को नमस्कार किया और चिंता जताई, ‘‘क्या कहें भैया, हर जगह जंगली जानवरों ने आतंक मचा रखा है. उत्तर प्रदेश में भेडि़ए के हमले की खबरें आने के बाद अलगअलग राज्यों से अलगअलग जानवरों के हमले के मामले सामने आ रहे हैं.

‘‘गुजरात में तेंदुए, तो छत्तीसगढ़ में हाथी का आतंक है. ओडिशा में सियार के हमले की खबरें सामने आई हैं. गंजाम जिले के पोलासारा इलाके के 3 गांवों

में सितंबर महीने के आखिरी दिनों में सियारों के हमले में 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए, जिस के बाद इलाके में ‘हाई अलर्ट’ जारी कर दिया गया.’’

‘‘भीखू सही कह रहा है. सरकारी अफसरों ने बताया कि ओडिशा में सियारों के हमले में हटियोटा, जेमादेईपुर और चंद्रमादेईपुर गांवों के कई बुजुर्गों के साथसाथ औरतें भी घायल हुई हैं,’’ रामदीन ने कहा.

‘‘उत्तर प्रदेश के बहराइच इलाके में जंगली भेडि़यों ने तो लोगों की नाक में दम कर रखा था, जिस ने कई बच्चों को अपना शिकार बना लिया था. वहीं, हमीरपुर जनपद में भी जंगली जानवरों का आतंक देखने को मिला था.

‘‘वहां के मौदहा इलाके में लोमड़ी ने एक औरत और बच्ची को हमला कर के घायल कर दिया था, जबकि बिवांर थाना क्षेत्र के पाटनपुर गांव में लकड़बग्घों के झंडू ने पशुबाड़े में हमला कर के 25 भेड़ें मार डाली थीं,’’ एक लड़के राजवीर ने जोश में आ कर कहा.

‘‘बरेली के नगर बहेड़ी इलाके में एक भेडि़ए ने खेत में काम कर रहे 3 लोगों पर अचानक हमला कर दिया. उन में एक औरत और 2 मर्द थे. भेडि़ए ने उन्हें घायल कर दिया. औरत को जिला अस्पताल रैफर कर दिया गया.

‘‘इस से पहले एक भेडि़ए ने मंसूरपुर इलाके में 2 औरतों पर इसी तरह हमला कर दोनों को गंभीर रूप से घायल कर दिया था. मैनपुरी के जरामई गांव में

23 साल के नौजवान पर भेडि़ए ने हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. बहराइच में 18 साल की लड़की पर भेडि़ए ने हमला कर दिया. लड़की खेत जा रही थी और भेडि़ए के हमले में घायल हो गई.

‘‘हरदोई में एक शाम को सियार ने 2 लोगों पर हमला कर दिया. हालांकि, गांव वालों ने उसे पीटपीट कर मार डाला,’’ सरपंच चेतराम ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए जंगली जानवरों के हमलों की खबरों का हवाला दिया.

‘‘अरे भाई, अब तो बाघ और तेंदुए भी आदमखोर हो रहे हैं. पीलीभीत में बाघ ने एक किसान पर हमला कर दिया. किसान की लाश गन्ने के खेत में मिली. उस की गरदन का हिस्सा गायब था. इस के अलावा मेरठ में चलती बाइक पर तेंदुए ने हमला कर दिया. वह नौजवान खेत के पास से गुजर ही रहा था कि तभी अचानक तेंदुए ने छलांग लगा दी. हालांकि, वह नौजवान बच गया.

‘‘अमरोहा के मंडी के कुआखेड़ा गांव में तेंदुए ने बकरियों को अपना निवाला बना लिया. एक रात को 2 तेंदुए रजबपुर के भी एक गांव में देखे गए.

इस के अलावा लखीमपुर में भी एक जगह पेड़ पर बैठा तेंदुआ देखा गया.’’

‘‘इन जानवरों के बढ़ते हमलों को देखते हुए जंगल महकमे ने इस को ले कर अलर्ट जारी किया है और लोगों को सचेत करते हुए कहा है कि कोई भी खेतों में अकेले किसी भी काम के लिए न निकले. निकले तो ग्रुप के साथ निकले और खेतों में काम करते समय भी लगातार आवाज करते रहे,’’ एक पंच रमेश ने अपनी बात रखी.

इसी बीच किसी ने खबर दी कि बेला को होश आ गया है और पुलिस उस का बयान दर्ज कराने के लिए जल्दी ही अस्पताल जाने वाली है.

यह सुन कर गांव के सारे पंच और कुछ खास लोग बिना देरी किए शहर के सरकारी अस्पताल की तरफ रवाना हो गए.

अस्पताल में बेला के कमरे के बाहर भीड़ जमा थी. लोकल मीडिया वाले भी वहां आए हुए थे. पुलिस बेला के घर वालों की मौजूदगी में उस का बयान दर्ज कराना चाहती थी. सनी का परिवार भी वहां मौजूद था.

बेला सहमी हुई थी और अपने घर वालों को सामने देख कर उस की रुलाई फूट पड़ी थी. कल से आज तक जोकुछ उस की जिंदगी में घटा था, वह बड़ा ही डरावना था.

‘‘बेला, कल शाम को तुम पर किस जानवर ने हमला किया था?’’ पुलिस इंस्पैक्टर राधेश्याम ने पूछा.

‘‘सर, वह कोई जानवर नहीं था, बल्कि ऐसे आदमखोर दरिंदे थे, जो मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहते थे.’’

बेला के मुंह से यह सुन कर हर कोई हैरान रह गया था. लोगों में कानाफूसी शुरू हो गई थी. यह किसी इनसान का कियाधरा था. तो क्या सनी ने अपने ही गांव की लड़की की आबरू पर हाथ डाला था? पर वह खुद कैसे मारा गया?

‘‘हमें हर बात को सिरे से बताओ कि तुम्हारे साथ कल क्या हुआ था?’’ पुलिस इंस्पैक्टर राधेश्याम ने बेला को पानी का गिलास देते हुए पूछा.

‘‘सर, कल शाम को जब मैं कच्ची सड़क से अपने गांव की तरफ जा रही थी, तो कुछ अनजान सायों ने मुझे दबोच लिया था और वे मुझे जंगल में घसीट कर ले गए थे. शायद, वे 4 लोग थे और शराब के नशे में चूर थे. अंधेरा हो गया था, तो मैं उन के चेहरे ठीक से नहीं देख पाई, पर शायद वे यहीं आसपास के ही थे.

‘‘वे चारों मेरा रेप करना चाहते थे और कामयाब भी हो जाते, पर इसी बीच एक और साया उन पर टूट पड़ा. वह सनी था और मेरा शोर सुन कर जंगल के भीतर चला आया था. पहलवान का बेटा था, तो कैसे अपने गांव की आबरू को यों लूटते देख सकता था.’’

इतना सुनते ही पहलवान बृजभान की आंखों में नमी आ गई. वह इतना ज्यादा भावुक हो गया कि उस के नथुने फूलने लगे. उस की छाती भारी हो गई.

‘‘आगे और क्या हुआ तुम्हारे साथ?’’ पुलिस इंस्पैक्टर राधेश्याम ने पूछा.

‘‘सनी के इस हमले से वे चारों बौखला गए और उन्होंने भी उस पर चौतरफा हमला कर दिया, पर सनी ने बड़ी हिम्मत से उन सब का मुकाबला किया और चारों की खूब धुनाई की. मैं घायल हालत में वहीं पड़ीपड़ी यह सब देखती रही.

‘‘सनी ने 2 लोगों को तो तुरंत वहां से भागने पर मजबूर कर दिया, पर बाकी बचे दोनों लोगों ने उस पर डंडों से वार किए और वह अकेला पड़ गया. बाद में एक डंडा उस के सिर पर पड़ा, तो वह वहीं ढेर हो गया.

‘‘इतने में किसी मोटरसाइकिल की आवाज आई, तो मैं पूरे दम से चिल्लाई. यह सुन कर वे दोनों दरिंदे वहां से भाग गए. इस के बाद मैं भी बेहोश हो गई,’’ इतना कह कर बेला रोने लगी.’’

न कोई जानवर निकला और न ही सनी ने यह कांड किया था, वे तो अनजान आदमखोर थे, जो एक अकेली लड़की को देख कर उस पर टूट पड़े थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में यही साबित हुआ कि सनी की मौत इनसानी हमले में घायल होने से हुई थी.

मीडिया ने सनी की इस साहसिक मौत को बड़ी संवेदना से लोगों के सामने पेश किया. पुलिस उन चारों दरिंदों की तलाश में जुट गई. प्रदेश सरकार ने सनी की इस बहादुरी पर ऐलान किया कि रेलवे स्टेशन से रामपुर गांव तक जाने वाली इस कच्ची सड़क को पक्का किया जाएगा, खंभों पर लाइटें लगाई जाएंगी और उस नई सड़क को ‘बहादुर सनी मार्ग’ के नाम से जाना जाएगा.

सबक : कैसा था सरकारी बाबू

सरकारी बाबू अपने नीचे काम करने वाले मुलाजिमों से अपने घरेलू काम कराने में शान समझते हैं. सरकारी बाबू जनता का काम बगैर घूस लिए नहीं करते और औफिस के सामान को अपनी निजी जागीर समझते हैं. झांसी के रेलवे वैगन मरम्मत कारखाने में तो यह बीमारी खतरनाक लैवल तक पहुंच चुकी थी. कारखाने के डायरैक्टर, रामसेवक (आरएस) उर्फ पांडेयजी, कहने को एक कर्मकांडी ब्राह्मण थे और जो गीता और उपनिषदों की बातें करते थे, लेकिन गरीब मुलाजिमों का खून पीने में उन का धर्म भ्रष्ट नहीं होता था. वैगन मरम्मत कारखाने में वैगनों को आगेपीछे करने (शंटिंग) के दौरान हुए हादसे में मनिपाल नाम के एक दलित मुलाजिम की मौत हो गई. जिस तरह किसी जानवर की मौत से गिद्धों को भोज मिलता है, वे जश्न मनाते हैं, उसी तरह कारखाने के बाबुओं की खुशी का ठिकाना नहीं था.

बीमा के पैसे और फंड निकलवाने के बदले उन्होंने मनिपाल की विधवा पत्नी राजश्री से तगड़ी रिश्वत वसूल की.  इस घटना के 2 साल बाद, 18 साल का होते ही, मनिपाल के बेटे मोहित को अपने पिताजी की जगह चपरासी की नौकरी मिल गई. पांडेयजी को मानो इसी दिन का इंतजार था.

किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई और उन्होंने मोहित को औफिस में जौइन कराने के साथ ही उसे अपने बंगले पर हमेशा के लिए बंधुआ मजदूर की तरह अपनी पत्नी और बच्चों की खुशामद में लगा दिया. वैसे, पांडेयजी ‘मनुस्मृति’ में विश्वास करते थे, वे दलित को अपने पैर की जूती समझते थे, लेकिन घरेलू काम कराने की मजबूरी में उन्होंने मोहित का उपनयन संस्कार कर, अपने मतलब भर के लिए उसे अछूत से सामान्य बना लिया. पांडेयजी की बड़ी बेटी श्वेता बहुत ही अक्खड़ थी और मोहित से गुलामों की तरह बरताव करने में उसे जातीय मजा आता था.

मोहित बेचारा हाथ जोड़े श्वेता की सेवा में खड़ा रहता था. जरा भी गड़बड़ हो जाए तो वह उस बेचारे की बहुत डांट लगाती थी. कभीकभार छड़ी से पिटाई कर देती थी. एक बार तो श्वेता ने अपने सभी दोस्तों के सामने मोहित को चांटा जड़ दिया था. पांडेयजी को अपनी परी जैसी बेटी की ऐसी हरकतें बहुत ही नादान और नटखट लगती थीं. उन्हें श्वेता के राजकुमारियों जैसे बरताव पर बहुत गर्व होता था. श्वेता के उकसाने पर पांडेयजी भी मोहित के कान तान देते थे.

मोहित के साथ श्वेता के गैरइनसानी बरताव के चलते किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि श्वेता एक दिन इसी गरीब, निचली जाति के गंवार लड़के से प्यार कर बैठेगी. मोहित भी केवल इसलिए श्वेता की गुस्ताखियों को सह रहा था, क्योंकि उसे श्वेता के निजी काम करने में अलग सा मजा आने लगा था. कोई नहीं समझ सका कि मोहित और श्वेता दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े हैं, उन्हें एकदूसरे की खुशबू खींच सकती है. मोहित बगैर कहे श्वेता के कपड़ों को साफ करता, उन को प्रैस करता, उस के जूते साफ कर देता और अपने हाथों से पहना देता.

एक दिन मोहित ने किसी बात पर श्वेता को जवाब दे दिया. इस बात पर नाराज हो कर श्वेता ने अपने बड़ेबड़े नाखूनों से मोहित को लहूलुहान कर दिया. पर कहते हैं न कि नफरत बहुत जल्दी प्यार में भी बदल जाती है, लिहाजा मोहित की मालकिन भक्ति और बगैर जवाब दिए, हंसते हुए सब सह जाने के चलते श्वेता का दिल पहले ही मोहित के प्रति नरम पड़ चुका था. जब श्वेता ने मोहित का खून निकलते देखा तो उसे भी रोना आ गया. अपने हाथों से उस ने मोहित के जख्मों पर दवा लगाई. श्वेता अब मोहित को अपने दोस्त की तरह रखने लगी थी.

वह मोहित से सिर्फ 2 साल छोटी थी और कच्ची उम्र का प्यार बहुत ही मजबूत फीलिंग पैदा कर देता है. एक सर्द दोपहर को श्वेता कंबल लपेटे हुए टैलीविजन देख रही थी. श्वेता के लिए मैगी बनाने के बाद मोहित भी उस के पास बैठ कर टैलीविजन देखने लगा. ठंड से ठिठुर रहे मोहित को श्वेता ने कंबल के अंदर बुला लिया. मोहित की पहली छुअन उसे दिल की गहराइयों तक हिला गई. श्वेता ने मोहित से उस के हाथपैरों की मालिश करने को कहा और अपने सारे कपड़े उस के सामने ढीले कर दिए.

श्वेता, जो अपनी मां के सामने कपड़े बदलने में भी हिचकिचाती थी, उसे अपने गुलाम मोहित के आगे कपड़े उतारने में जरा भी शर्म नहीं आई. श्वेता की इस अनकही हां पर मोहित उस के शरीर के नाजुक हिस्सों को सहलाने लगा. इस से श्वेता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. श्वेता को मस्ती में देख कर मोहित ने उस की ब्रा के हुक खोल दिए और उस के उभारों को सहलाता हुआ उन्हें चूमना शुरू कर दिया. अपने स्वभाव के उलट श्वेता ने इस बार मोहित को परे नहीं धकेला और न ही उस की इस हिम्मत के लिए उसे कोई सजा दी. जोश में आए मोहित को अपने पास खींच कर श्वेता ने उस पर चुमनों की बरसात कर दी. उस दिन के बाद से मोहित पांडेयजी के बंगले पर उन का सरकारी दामाद बन कर ठाठ से रहने लगा था और उधर पांडेयजी औफिस में मोहित की नौकरी की चिंता कर रहे थे.

मोहित के खाते में महीने के पहले दिन उस की सैलरी भी आ जाती थी. मोहित ने आज श्वेता बेबी की पसंद का पास्ता बनाया था. बेबी को मोबाइल फोन पर वीडियो गेम खेलने में दिक्कत न हो, इसलिए वह अपने हाथों से उसे खिला रहा था. पास्ता खत्म कर श्वेता ने अपना सिर मोहित की गोद में रख लिया, तो मोहित ने धीरे से श्वेता के उभारों को सहलाना शुरू कर दिया. आईने में अपने उभारों की गोलाइयों को देख कर इतराते हुए श्वेता सोच रही थी कि कालेज में आने के बाद उस की सहेलियां जहां अभी तक एक अदद बौयफ्रैंड नहीं ढूंढ़ पाईं, वहीं उस ने मोहित की बदौलत सैक्स में पीएचडी करना शुरू कर दी थी. श्वेता ने मोहित को ब्यूटीपार्लर का कोर्स सिखा दिया था.

मोहित घर पर ही श्वेता की वैक्सिंग, पैडीक्योर, थ्रैडिंग कर देता था. मौका मिलने पर मोहित बाथटब में श्वेता की पीठ साफ करने की नौकरी भी कर देता था. प्यारमुहब्बत से रहतेरहते बहुत जल्दी वे सारी मर्यादा तोड़ चुके थे. श्वेता को जब एक महीने का पेट ठहर गया, तब उसे गलती का अहसास हुआ. उस ने डरतेडरते मोहित को जब यह बात बताई, तब तक 2 महीने हो गए थे. परिवार वालों को जब तक पता लगा, तीसरा महीना पूरा हो गया था.  अब किसी भी तरह पेट गिराना मुमकिन नहीं था.

पांडेयजी को यकीन नहीं हो रहा था कि उन की इंगलिश स्कूल में पढ़ीलिखी बेटी को निचली जाति के गरीब लड़के से प्यार हो गया था. पांडेयजी को मनुस्मृति का मंत्र याद आ गया : अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च, वंचनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत. यानी अपने अपमान, आर्थिक नुकसान के साथ ही साथ घर के दुश्चरित्र की बाहर चर्चा करने से कोई लाभ नहीं होता, व्यक्ति का मजाक ही बनता है. इस मंत्र को दोहराते हुए पांडेयजी ने खून का घूंट पी कर मजबूरी के चलते इस बात को छिपा दिया और श्वेता और मोहित की शादी कराने का फैसला किया. मोहित आज उन के बंगले पर कानूनी दामाद बन कर रह रहा है. समाजवादियों ने पांडेयजी को उन के इस क्रांतिकारी फैसले के चलते दलित समाज के आदमी को गले लगाने की वजह से उन्हें सम्मानित किया. मंच से दलितों की बदहाली पर बोलते हुए पांडेयजी की आंखों में आंसू आ गए.

अकेलापन : क्या मोनिका दूर कर पाई नरेश की उदासी

57  साल की उम्र में भले ही नरेश की जिंदगी में अकेलापन था, पर दिल में एक गुमान भी था कि वह शरीफ है. उस ने सोच रखा था कि अकेलापन दूर करने के लिए वह किसी के साथ संबंध नहीं बनाएगा और जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी के साथ पैसे दे कर सैक्स नहीं करेगा, क्योंकि उस का मानना है कि सैक्स सिर्फ 2 जिस्मों का मिलन नहीं है, बल्कि यह तो भावनाओं से जुड़ा होता है.

रात में नरेश का अकेलापन और भी ज्यादा बढ़ जाता था. सोशल मीडिया जैसे ह्वाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम को देखतेदेखते जब मन ऊब जाता, तो उसे मोनिका का गदराया बदन याद आ जाता और मन करता कि आज वह साथ होती.

हालांकि, उन दोनों की दूसरी शादी थी, लेकिन साथ में तकरीबन 8 साल ही बिताए थे. मोनिका नरेश से 10 साल छोटी थी, लेकिन जिस्मानीतौर पर मैच्योर थी, इसलिए बिस्तर पर दोनों की बौंडिंग बहुत अच्छी थी. बिस्तर के अलावा उन दोनों ने अजनबियों की तरह 8 साल गुजार दिए थे.

शाम को जब मन में बेचैनी होती, तो नरेश शराब के 3 पैग पेट में उड़ेल देता. शराब की एकएक घूंट का मजा लेता और ह्विस्की को मुंह में भर कर पूरे मुंह में घुमाता, फिर धीरेधीरे उसे अपने गले तक उतारता.

नरेश का ह्विस्की के साथ ऐसे अठखेलियां करना भी उसे मोनिका के मांसल बदन के साथ की गई मस्ती को याद दिलाता था. उस ने मोनिका के साथ भी बिस्तर पर ह्विस्की के साथ ही अनेक प्रयोग किए थे. कभी मोनिका शराब का घूंट मुंह में ले कर नरेश के ऊपर उड़ेल देती और फिर अपनी जीभ से उस के पूरे बदन पर पड़ी शराब को साफ करती थी, तो कभी वह मोनिका की थुलथुली जांघों पर वाइन की एक घूंट डाल कर अपनी जीभ से शराब और जांघों का मजा लेता था.

हालांकि, नरेश शराब के साथ कुछ खाता नहीं था, जैसे लोग काजू, सलाद, नमकीन चखना के रूप में लेते हैं. कुछ तो सोड़ा या कोलड्रिंक के साथ शराब पीते हैं, पर नरेश सिर्फ पानी के साथ शराब लेता है. लेकिन आज शराब के पैग बनाते हुए न जाने क्यों उसे मोनिका क्यों याद आ रही है.

शादी के बंधन में बंधने के समय नरेश और मोनिका ने यह तय किया था कि वे बच्चे नहीं करेंगे… सिर्फ साथ में रहेंगे और अपने अकेलेपन को दूर करेंगे.

मोनिका को जो कहना होता, वह खुल कर कहती, ‘मु?ो भरपूर सैक्स चाहिए और तुम्हारा साथ भी. हम दोनों कभी अलग नहीं होंगे और जिंदगीभर साथ रहेंगे…’

मोनिका के जिंदगी से चले जाने के बाद नरेश की जिंदगी में 2-3 औरतें आईं भी और चली भी गईं… वह तो हर औरत में मोनिका को ढूंढ़ता रहा. कभीकभार मन करता और दोस्त भी कहा करते थे कि चाहो तो तुम रोज मोनिका जैसी औरत के साथ रात बिता सकते हो, लेकिन वह मोनिका की यादों से कभी बाहर निकल ही नहीं पाया.

अकेले आदमी की सब से बड़ी परेशानी तो यही है कि अकेले खाना बनाना, अकेले खाना. खाने के लिए खुशामद करने वाला कोई नहीं होता है. मन करता है कि काश, सुबह एक कप चाय मिल जाती. लेकिन, सुबह चाय भी खुद ही बनानी पड़ती है.

एक दिन कंप्यूटर पर काम करतेकरते अचानक नरेश की कमर में दर्द शुरू हो गया. अस्पताल जा कर डाक्टर को दिखाया. सीटी स्कैन किया तो पता चला कि किसी नस में दिक्कत है. दर्द से नजात पाने के लिए नरेश के मन में आता कि अगर मोनिका होती, तो उस की मालिश कर देती.

फिजियोथैरेपिस्ट ने ऐक्सरसाइज भी कराई, लेकिन आराम नहीं हो रहा था. ऐसे में नरेश का मन करता कि किसी मसाज सैंटर में जा कर पूरे शरीर की फुल

मसाज करा कर मजा लिया जाए. मसाज आजकल ज्यादा प्रचलित शब्द है, क्योंकि मालिश शब्द अब देहाती हो गया है. सोशल मीडिया पर मसाजपार्लर के इश्तिहार आते रहते हैं.

एक दिन नरेश ने बड़ी हिम्मत कर के एक मसाजपार्लर में फोन कर दिया.

सामने से एक लड़की की आवाज आई, ‘‘हैलो, फिटनैस मसाज सैंटर में आप का स्वागत है. मैं आप की क्या हैल्प कर सकती हूं?’’

फोन पर सारी बातचीत होने के

बाद तय हुआ कि नरेश को अगली दोपहर 12 बजे मसाज सैंटर जाना है.

अगले दिन नरेश ठीक 12 बजे मसाज सैंटर चला गया. वहां उसे एक कम रोशनी वाले कमरे में ले जाया गया. कुछ देर बाद चेहरे पर मास्क पहने एक लड़की कमरे में आई और अपनी अदाएं दिखाते हुए उस से बोली, ‘‘आप घबराइए नहीं, फुल मजा दूंगी. बौडी टू बौडी मसाज करूंगी.’’

नरेश घबराया, क्योंकि मोनिका भी बौडी से बौडी मसाज करती थी. उस लड़की ने मिनी स्कर्ट पहनी थी, जो अब वह उतार चुकी थी और नरेश के जिस्म के साथ हरकत करने लगी थी.

नरेश ने कहा, ‘‘मु?ो सिर्फ मसाज करानी है, यह सब नहीं…’’

पर वह लड़की नहीं रुकी. कुछ देर में अचानक वह लड़की खड़ी हो कर कपड़े पहनने लगी और बोली, ‘‘जल्दी से कपड़े पहनो, क्योंकि पुलिस की रेड पड़ चुकी है.’’

पुलिस आई और सब को थाने में ले गई. थाने में उस लड़की के चेहरे से नकाब हटाने पर मोनिका की नजर नरेश पर गई और रोने लगी.

नरेश ने कहा, ‘‘आखिर बेवफा कौन? तुम या मैं…? मैं तो मसाज कराने आया था. दर्द है मेरी कमर में, लेकिन तुम तो यह सब…’’

मोनिका ने अपनी आपबीती बताई और कहा, ‘‘मैं तुम से ऊब कर ऐसे आदमी के साथ चली गई थी, जिस ने वफा के सपने दिखा कर मु?ो बेवफा बनने पर मजबूर कर दिया.’’

काली कोठी : राजप्रताप सिंह की सुनसान हवेली

राजघराने भी उन गगनचुंबी इमारतों की तरह होते हैं, जिन के बनने में लाखों लोगों की खूनपसीने की कमाई ही नहीं, बल्कि उन की जिंदगी भी लगी होती है.

ये राजघराने न जाने कितने मासूमों का खून पीपी कर राक्षसों जैसे विकराल हुए हैं. इन के इतिहास के पन्नों पर जुल्मोसितम ढहाने की ढेरों कहानियां बिखरी पड़ी हैं.

इन की काली करतूतों को बड़ी होशियारी के साथ परदे के पीछे दफन कर दिया गया है और सामने रंगमंच पर सिर्फ और सिर्फ शोहरत नाच रही होती है.

आदमी कपड़े बदल सकता है, पर तन नहीं बदल सकता. ठीक ऐसे ही व्यवस्थाओं को बदला जा सकता है, लेकिन मन और सोच को नहीं.

जटपुर के राजघराने के साथ भी कुछ ऐसा ही चल रहा था. सदियां गुजर गईं, मगर राजघराने न बदले. आजादी के बाद नई व्यवस्था में राजघरानों के पास उन के महल और हवेलियां तो रह गईं, लेकिन उन की हजारोंहजारों बीघा जमीनों को सरकार ने ले लिया. फिर भी राजघरानों के वारिसों ने अपने परिवार के सदस्यों, नातेरिश्तेदारों के नाम जोत की जमीनें लिखा कर चालबाजी से अपने पास सैकड़ों बीघा जमीनें रख लीं.

जटपुर इलाके के रियासतदार राजा राजप्रताप सिंह के पास आजादी के 75 साल बाद भी राजमहल और हवेलियों के अलावा भी 300 बीघा जोत की जमीन थी. कितने ही आलीशान बंगले और तमाम प्रोपर्टी उन्होंने दिल्ली, देहरादून, शिमला, चंडीगढ़ और नैनीताल में इकट्ठी कर रखी थीं.

राजा राजप्रताप सिंह ने हरिद्वार में भी बड़ी महंगी जमीन पर एक आश्रम खोल रखा था. कितने ही बागबगीचे उन के नाम थे.

आजादी के बाद सरकारी फरमान से भले ही राजशाही का खात्मा सरकारी पन्नों में हो गया हो, लेकिन हकीकत में राजशाही न केवल जिंदा है, बल्कि बड़ी बेशर्मी के साथ वह दिन दूनी रात चौगुनी फलफूल रही है.

कितने ही नवाब और राजेरजवाड़े आज भी मूंछों पर ताव देते घूम रहे हैं. अंगरेजों के पिट्ठू ये ज्यादातर राजेरजवाड़े आज भी ऐसे ही राज कर रहे हैं जैसे पहले कर रहे थे, बल्कि और मजबूती से बेदाग हो कर, विधानसभाओं और संसद में जनता के नुमाइंदे बन कर. सरकारें भी इन से थर्राती थीं, इसलिए उन की भी हिम्मत इन से इन के महल छीनने की नहीं हुई.

राजा राजप्रताप सिंह के पुरखे भी आजादी के बाद से लोकशाही में भी कभी संसद, तो कभी विधानसभाओं में जनता की नुमाइंदगी करते आ रहे थे. उन्होंने जता दिया था कि शहंशाह तो शहंशाह ही रहता है और जनता जनता

ही रहती है. उन के खिलाफ किसी ने सिर उठाने की हिमाकत नहीं की और जिस ने की, उन के सिर कुचल दिए गए. सिर कुचलने की उन की आदत पुरानी थी.

एक बार आजादी के बाद लोकशाही के जोश में कोई जनता का रहनुमा बन कर राजा राजप्रताप सिंह के इलाके से विधायक बन गया था, तब उन के दादा वंशप्रताप ने उस विधायक को अपनी घुड़साल में उलटा लटका कर उस पर खूब हंटरों की बरसात कराई थी. बेचारे उस विधायक ने अगले ही दिन अपनी विधायकी से इस्तीफा दे दिया था.

इस मामले में शासनप्रशासन ऐसे चुप रहा था, जैसे जटपुर राजघराने का गुलाम हो. अखबारों की कलम चिल्लाई, लेकिन कब तक चिल्लाती, उसे भी चुप कर दिया गया.

राजा राजप्रताप सिंह हमेशा सत्ता के साथ रहते थे. कभी विपक्ष में भी रहना पड़ा, तो उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता था. जनप्रतिनिधि होने के नाते जिले के डीएम और एसपी सब उन के दरबार में हाजिरी लगाते थे. वजह, राजा राजप्रताप सिंह उन्हें कीमती तोहफे देते रहते थे.

अफसर भी राजमहल में अपनी हाजिरी लगाने के लिए ऐसे ही उतावले रहते थे, जैसे नईनवेली दुलहन अपने पिया के पास जाने के लिए बेताब रहती है.

ऐसे राजघरानों को कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि देश में राजशाही का खात्मा हो गया है और अब लोकशाही का दौर है. वे राजशाही में तो राजा थे ही, लेकिन लोकशाही में भी उन का वजूद राजा से कम नहीं था.

सभी राजा राजप्रताप सिंह को ‘राजा साहब’ और उन के 23 साल के बेटे सूर्यप्रताप को ‘कुंवरजी’ कह कर पुकारते थे.

राजा राजप्रताप सिंह की सुनसान जंगल में एक हवेली थी, जिसे ‘काली कोठी’ के नाम से जाना जाता था. वहां पर सभी तरह की काली करतूतों को अंजाम दिया जाता था. इस कोठी पर राजा राजप्रताप सिंह के कुछ विश्वासपात्र मुस्टंडे तैनात थे. इन में भी दिलावर और शौकीन खास थे.

काली कोठी की रातें हमेशा रंगीन हुआ करती थीं. विदेशी शराब से ले कर विदेशी हसीनाएं यहां बड़े लोगों को बड़ी शिद्दत के साथ परोसी जाती थीं.

इसी काली कोठी के पास एक बड़ी झाल थी और इस झाल में राजा राजप्रताप सिंह ने खतरनाक मगरमच्छ पाल रखे थे. अगर कोई राजा राजप्रताप सिंह के इलाके में उन के खिलाफ बोलने लगता था या फिर उन के गहरे राज जान जाता था, तो उस आदमी को ठिकाने कैसे लगाना है, इस के लिए राजा राजप्रताप सिंह के कारिंदों को बस इशारा भर चाहिए होता था.

हां, कुछ खतरनाक विरोधियों को झाल के मगरमच्छों के हवाले भी कर दिया जाता था, जिस से उन की लाश भी नहीं मिलती थी. ऐसे केस कम होते थे.

एक तरह से काली कोठी राजा राजप्रताप सिंह का हरम था. वहां वेश्याओं को पाला जाता था. सब को इस की जानकारी थी, लेकिन किसी की क्या मजाल, जो काली कोठी पर उंगली भी उठा दे. लेकिन कभीकभी एक छोटी सी चिनगारी भी बड़े जंगल को खाक कर देती है.

राजो अपनी मां विमला के साथ बचपन से ही इस काली कोठी पर आती रहती थी. वह इस के चप्पेचप्पे से वाकिफ थी. सब जानते थे कि राजो के बाप कलवा ने अपनी नईनवेली दुलहन विमला को काली कोठी पर भेजने से मना कर दिया था.

राजा राजप्रताप सिंह में उस समय जवानी का जोश था, नाफरमानी उन्हें पसंद नहीं थी.

इस नाफरमानी पर कलवा को झाल में मगरमच्छों के सामने फिंकवा दिया था. उस की लाश कभी नहीं मिली. वह पुलिस की फाइलों में आज भी लापता है. लेकिन सब जानते थे कि कलवा के साथ क्या हुआ था.

विमला राजो को हमेशा उस के बाप के बारे में बताती आई थी, ‘‘राजो, तेरा बापू झूले में गिर गया था और ?ाल के मगरमच्छों ने उसे अपना निवाला बना लिया था. उस समय तू मेरे पेट में थी. तब ‘राजा साहब’ ने ही मु?ो सहारा दिया था और काली कोठी की रसोई में मुझे काम पर लगाया था.’’

लेकिन विमला ने राजो से वह सच छिपा लिया था कि कलवा के मरने के बाद उस के साथ काली कोठी पर

क्या हुआ था. काली कोठी के हरम में राजा राजप्रताप सिंह की प्यास बुझाने के साथ उस ने कितनों की प्यास बुझाई थी और अब भी 37 साल की विमला को कभी भी काली कोठी बुला लिया जाता है.

अब राजो भी 17 साल की हो गई थी और ‘राजा साहब’ को बता दिया गया था कि उन के चखने के लिए एक कली तैयार हो रही है.

लेकिन, जैसा बाप वैसा ही बेटा भी. राजा राजप्रताप सिंह का बेटा कुंवर सूर्यप्रताप भरी जवानी में था. वह तो ऐसे मामलों में अपने बाप से भी एक कदम आगे था. उस की उम्र के हिसाब से उसे तकरीबन हर रात शराब और शबाब दोनों चाहिए होता था. वह कुछ नए खयालों का था और अपना ज्यादातर समय वह  अलगअलग शहरों में बने अपने बंगलों में गुजारता था.

कुंवर सूर्यप्रताप गोरी चमड़ी का गुलाम था और विदेशी औरतें उसे ज्यादा लुभाती थीं. रूसी औरतों का तो वह रसिया था और वे उसे आसानी से मिल भी जाती थीं.

राजो खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन जवानी की दहलीज पर हर लड़की हवस के भेडि़यों को हूर की परी ही नजर आती है. उस ने अपनी मां को सजधज कर वक्तबेवक्त काली कोठी जाते देखा था.

मां से पूछने पर उसे हमेशा यही जवाब मिलता था, ‘‘राजो, महल या काली कोठी पर सजधज कर ही जाना पड़ता है, नहीं तो ‘राजा साहब’ नाराज हो जाते हैं.’’

लेकिन अब राजो कोई छोटी बच्ची तो रह नहीं गई थी. वह इन सब बातों को खूब समझती थी और अब वह मां को रात को कहीं भी जाने से रोकती थी.

इस बात से तंग आ कर एक दिन विमला ने राजा राजप्रताप सिंह से हाथ जोड़ कर गुजारिश की, ‘‘राजा साहब, अब मुझे बख्श दो. मेरी बेटी राजो बड़ी हो गई है. अब वह रात को मुझे कहीं भी जाने से रोकती है.’’

यह सुन कर राजा राजप्रताप सिंह चहक उठे. उन्होंने सिगरेट का धुआं विमला के चेहरे पर उड़ाते हुए कहा, ‘‘वाह विमला वाह, तुम ने तो बड़ी अच्छी खुशखबरी सुनाई. तुम्हारे घर में घोड़ी जवान हो रही है और हम बूढ़ी होती घोड़ी की ही सवारी किए जा रहे हैं. आगे से तुम अपनी जगह उसे भेज दिया करना.’’

यह सुन कर विमला के तनबदन में आग लग गई. इस समय उस के हाथ में दरांती होती, तो वह राजा राजप्रताप सिंह के सीने में घोंप देती, लेकिन वह उन के स्वभाव को अच्छे से जानती थी. वह अपने पति को तो बहुत पहले खो चुकी थी, अब उस ने जरा सी भी गलती की तो बेटी को खोने का भी पूरा डर था और वह राजो को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. वह तो जी ही उस के लिए रही थी.

विमला संभल कर बोली, ‘‘अभी मेरी बेटी इतनी भी बड़ी नहीं हुई है कि वह आप को खुश कर सके. जैसे भी होगा, अभी तो मैं ही आप की सेवा में आती रहूंगी,’’ कह कर विमला राजा राजप्रताप सिंह के कमरे से बाहर आ गई.

विमला राजा राजप्रताप सिंह का न तो मुकाबला कर सकती है और न ही कुछ बोल सकती है. उस की रूह यह याद कर के ही कांप गई कि कैसे उस के आदमी कलवा को राजा राजप्रताप सिंह ने मगरमच्छों के सामने झल में फेंक दिया था.

उस दिन से विमला बहुत निराश और परेशान रहने लगी. अपनी मां की यह हालत देख कर राजो ने पूछा, ‘‘मां, क्या बात है? तुम आजकल इतनी परेशान क्यों रहती हो?’’

बेटी के मुंह से ये शब्द सुनते ही विमला फफकफफक कर रो पड़ी, फिर उस ने राजो को सारी बात बता दी.

‘‘इस का मतलब यह है कि मां, यह मेरे पिता का हत्यारा है और तुम सजधज कर उस के पास जाती हो…’’

‘‘बेटी, मैं क्या करती? तू मेरे पेट में थी. मैं तुझे बचाना चाहती थी. लेकिन, जब कोई औरत एक बार इस दलदल में गिर जाती है, तो उस का बाहर आना नामुमकिन सा हो जाता है. समाज उसे स्वीकार नहीं करता. मैं तब भी मजबूर थी और अब भी…’’

‘‘नहीं मां, हम ने अपनी कमजोरी को मजबूरी बना रखा है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.’’

राजो के तेवर देख कर विमला डर गई. वह तो सोचती थी कि पूरी कहानी सुन कर राजो डर जाएगी, लेकिन राजो तो पूरा लाल अंगारा बन गई थी.

‘‘मां देखना कि कैसे मैं राजप्रताप सिंह से अपने पिता की हत्या का बदला लेती हूं. और मां, तुम तो मजबूरी के चलते कुछ न कर सकीं, लेकिन मैं तुम्हारी बेइज्जती का बदला लूंगी. वह होगा राजा अपने घर का, लेकिन मेरी जूती की नोक पर.’’

‘‘शांत हो जा राजो, शांत हो जा. दीवारों के भी कान होते हैं. मुझे तुझे ये सब बातें नहीं बतानी चाहिए थीं.’’

‘‘मां, अगर तुम मुझे ये सब बातें नहीं बतातीं, तो मैं भी एक दिन तुम्हारी तरह काली कोठी पहुंच जाती और सारी जिंदगी के लिए उसी दलदल में फंस जाती. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. देखना, अब मैं क्या करती हूं.’’

राजो की बातें सुन कर विमला के अंदर डर और हिम्मत की भावना एकसाथ जागी. उसे लगा कि अगर इस समय राजा राजप्रताप सिंह उस के सामने होता, तो अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए वह अभी दरांती से उस का गला उड़ा देती. वह सोचने लगी कि उस के अंदर यह हिम्मत अभी तक क्यों नहीं आई थी?

आज की रात मांबेटी के लिए तूफानी रात थी. बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन विमला और राजो के मन में तूफान उमड़घुमड़ रहा था.

कुछ दिन बाद कुंवर सूर्यप्रताप शिमला से जटपुर के महल में अपना जन्मदिन मनाने के लिए आया. शाम को वह काली कोठी पहुंच गया और दिलावर से बोला, ‘‘दिलावर, मेरे जन्मदिन पर क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आप आदेश तो कीजिए…’’ कुंवर सूर्यप्रताप की मंशा भांपते हुए दिलावर ने कहा.

‘‘आज हमारा जन्मदिन है तो उपहार भी कुछ स्पैशल ही होना चाहिए,’’ कुंवर सूर्यप्रताप ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘बिलकुल कुंवरजी, आप चिंता न करें,’’ दिलावर ने राजो को अपने ध्यान में लाते हुए कहा.

कुंवर सूर्यप्रताप सिंह इन बातों को खूब समझता था. दिलावर को सब बता दिया गया कि उपहार किस समय पेश करना है.

दिलावर रात के अंधेरे में अपने साथियों के साथ जीप में बैठ कर विमला के घर गया. वह तो यह सोच रहा था कि विमला से बात कर के ही आसानी से सब काम बन जाएगा, लेकिन आज तो विमला का दूसरा ही रूप था.

दिलावर के इरादे जान कर विमला दरांती ले कर उस पर ?ापटी. लेकिन इस से पहले कि वह उस पर वार करती, दिलावर के साथ आए शौकीन ने विमला के सिर पर लाठी का वार कर दिया. इस से विमला नीचे गिर पड़ी.

राजो अपनी मां की मदद के लिए आई, तो दिलावर के आदमियों ने उसे पकड़ लिया. शिकारियों को शिकार मिल चुका था. वे बेसुध विमला को वहीं छोड़ कर राजो को उठा ले गए. रात के अंधेरे में दिलावर ने जीप काली कोठी की ओर दौड़ा दी.

राजो ने होशियारी से काम लिया. वह यह बात जान गई थी कि ताकत दिखाने और विरोध करने से कुछ नहीं होने वाला. उस ने कहा, ‘‘दिलावर चाचा, हमारा तो पेशा ही यही है. पहले मां करती थीं, अब मुझे करना है. फिर इतनी जोरजबरदस्ती भी क्यों?’’

दिलावर को यकीन ही नहीं था कि राजो इतनी आसानी से मान जाएगी. उस ने कहा, ‘‘हम ने कहां जोरजबरदस्ती की राजो, तुम ने देखा नहीं कि तुम्हारी मां कैसे मेरी तरफ दरांती ले कर दौड़ी थी?’’

‘‘दिलावर चाचा, बुरा मत मानना. तुम्हारी बेटी के साथ अगर ऐसा ही होता तो तुम क्या करते?’’

‘‘मैं तो उसे गोली से उड़ा देता,’’ दिलावर ने राजो की बात सुनते ही गुस्से में कहा.

‘‘तो फिर मेरी मां ने क्या गलत किया चाचा? अपनी बेटी के लिए इतना गुस्सा और दूसरों की बेटियों को कोठे पर ले जाने में जरा भी शर्म नहीं.’’

यह सुन कर दिलावर का चेहरा फक पड़ गया.

इस पर राजो ने कहा, ‘‘छोड़ो चाचा, इन सब बातों को और अब यह बताओ कि मुझे क्या करना है?’’

दिलावर ने राजो को सारी बातें समझ दीं और राजो को मेकअप करने के लिए काली कोठी के मेकअप रूम में भेज दिया. वहां उसे तैयार करने के लिए एक औरत पहले से ही थी. उस ने राजो को दुलहन की तरह सजाया और पहनने के लिए एक झना सा गुलाबी नाइट गाउन दिया.

तब तक कुंवर सूर्यप्रताप नशे में चूर हो चुका था. राजो को देख कर वह उतावला हो गया, लेकिन तभी राजो ने डरने का नाटक करते हुए कांपते हुए कहा, ‘‘कुंवरजी, हमें तो घबराहट हो रही है. हम ने ऐसा काम पहले कभी नहीं किया है.’’

‘‘ओह, इन नई लड़कियों के साथ यही परेशानी होती है. पहले इन्हें तैयार करना पड़ता है, नहीं तो सारा मूड खराब कर देती हैं.’’

इसी बीच राजो ने सोच लिया था कि उसे क्या करना है. उस की नजर कांच की बोतलों पर थी. उस ने मन बना लिया था कि कुंवर के नंगा होते ही वह एक बोतल को तोड़ कर उसे उस के पेट में घुसेड़ देगी और माचिस से आग लगा कर यहां से भाग जाएगी.

लेकिन तभी कुंवर सूर्यप्रताप ने कहा, ‘‘राजो, 10 मिनट मेरे साथ झील के किनारे घूमो, तुम्हारा सारा डर छूमंतर हो जाएगा.’’

‘‘जैसी आप की मरजी, हम आज आप को अपनी जिंदगी की सब से बेशकीमती चीज सौंपने जा रहे हैं. हमारा डर दूर करना आप की जिम्मेदारी है.’’

‘‘ओह, तुम तो बातें भी बहुत बनाती हो. आओ, झील के किनारे घूमने में तुम्हारे साथ खूब मजा आएगा,’’ कुंवर सूर्यप्रताप ने राजो के गले में हाथ डालते हुए कहा.

काली कोठी से नीचे उतरते ही जब वे दोनों किसी प्रेमी जोड़े की तरह आगे बढ़े, तो दिलावर और शौकीन कुंवर सूर्यप्रताप की सुरक्षा के लिए उन के पीछे चले. तभी राजो ने कहा, ‘‘कुंवरजी, ये कबाब में 2-2 हड्डी…’’

राजो का इशारा सम?ाते ही कुंवर सूर्यप्रताप ने दिलावर और शौकीन को वहीं रुकने के लिए कहा. फिर कुंवर सूर्यप्रताप और राजो एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले झील के किनारे पहुंच गए.

माहौल पूरा रूमानी था. कुंवर के पैर नशे में लड़खड़ा रहे थे और जबान फिसल रही थी.

‘‘राजो, मन तो मेरा भी यह कर रहा है कि इसी रूमानी माहौल में सबकुछ कर डालें.’’

‘‘कुंवरजी, अभी इतनी जल्दी भी क्या है?’’ राजो ने कहा.

झील के गहरे पानी को देख राजो का मन बदलने लगा. उसे अपने पिता की याद आ गई, जिन्हें कुंवर के पिता राजप्रताप सिंह ने इसी झील में मगरमच्छों के सामने फिंकवा दिया था. राजो के मन में आया कि क्यों न कुंवर सूर्यप्रताप का भी वही अंजाम किया जाए, जो उस के पिता के साथ हुआ था. इस से बेहतरीन बदला तो कोई और हो नहीं सकता.

यही सोच कर राजो कुंवर सूर्यप्रताप को बिलकुल झील के किनारे ले गई और मौका पाते ही पिछवाड़े पर लात मार कर उसे झील में मगरमच्छों के हवाले कर दिया. ‘छपाक’ की आवाज के साथ ही मगरमच्छ कुंवर सूर्यप्रताप पर टूट पड़े.

राजो ने अपने पिता की मौत का बदला ले लिया था. अब उसे अपनी मां की बेइज्जती का बदला लेना था.

राजो चिल्लाते हुए काली कोठी की ओर दौड़ी, ‘‘कुंवरजी झील में गिर गए, कुंवरजी झील में गिर गए…’’

राजो की आवाज सुन कर दिलावर और शौकीन समेत काली कोठी का पहरेदार और दूसरे लोग भी झील की तरफ दौड़े, लेकिन राजो अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए काली कोठी के अंदर गई. उस ने अपना नाइट गाउन उतार फेंका और अपने कपड़े पहने.

राजो काली कोठी के रसोईघर में गई, गैस को औन किया, माचिस की जलती तीली फेंकी. ‘भक’ से आग लगी और राजो वहां से चलती बनी. उस ने उस बदनाम काली कोठी को ही आग के हवाले कर दिया था, जहां आएदिन उस की मां की अस्मत को रौंदा जाता था.

काली कोठी ‘धूंधूं’ कर जलने लगी. झील पर पहुंचे कारिंदे अब काली कोठी की ओर दौड़े, लेकिन सिलैंडर फटने के तेज धमाकों ने उन के कदम पीछे ही रोक दिए.

तब तक विमला भी होश में आ चुकी थी. काली कोठी से उठती आग की लपटें देख वह समझ गई कि उस की बहादुर बेटी ने अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचा दिया है.

कुंवर सूर्यप्रताप के खात्मे के साथ ही राजा राजप्रताप सिंह के वंश का आखिरी चिराग बुझ गया.

राजा राजप्रताप सिंह इस सदमे को बरदाश्त न कर सके. पागलपन के एक दौरे में 3 दिन बाद उन्होंने उसी

झील में कूद कर खुदकुशी कर ली. वे अपने ही पाले हुए मगरमच्छों का शिकार बन गए.

राजो 17 साल की नाबालिग थी. उस का मामला जुवैनाइल कोर्ट में चला. उस के खिलाफ कोई सुबूत तो नहीं था, लेकिन रसूखदार की जड़ें उखाड़ने की सजा तो उसे मिलनी ही थी.

शातिर वकीलों की फौज ने जैसेतैसे उसे काली कोठी को आग लगाने के इलजाम में फंसा दिया. उसे 3 साल के लिए बाल सुधारगृह भेज दिया गया, जहां राजो ने सिलाईकढ़ाई, पढ़ाई के साथसाथ कंप्यूटर चलाना भी सीख लिया.

जेल से छूटने के समय तक राजो इस काबिल बन गई थी कि वह अपना और अपनी मां का पेट आसानी से पाल सकती थी.

इंग्लिश रोज: क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

Story in hinवह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,di

मैं ने आप के प्रस्ताव पर विचार किया. कोई भी नया रिश्ता जोड़ने से पहले एकदूसरे के बीते जीवन के बारे में जानना बहुत जरूरी है. ऐसी मेरी सोच है. 10 वर्ष पहले मेरा विवाह एक बहुत रईस घर में संपन्न हुआ. मेरी ससुराल का मेरे रहनसहन, सोचविचार और संस्कारों से कोई मेल नहीं था. वहां के तौरतरीकों के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी. वहां मुझे लगा कि मैं चूहेदानी में फंस गई हूं. मेरे पति शराब और ऐयाशी में डूबे रहते थे. शराब पी कर वे बेलगाम घुड़साल के घोड़े की तरह हो जाते थे, जिस का मकसद सवार को चोट पहुंचाना था. ऐसा हर रोज का सिलसिला था. हर रात अलगअलग औरतों से रंगरेलियां मनाते थे.

धीरेधीरे बात यहां तक पहुंच गई कि वे ग्रुपसैक्स की क्रियाओं में भाग लेने लगे. जबरदस्ती मुझ से भी औरों के साथ हमबिस्तर होने की अपेक्षा करने लगे. उन के अनुकूल उन की बात मानते जाओ तो ठीक था वरना कहते, ‘हम मर्द अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे औरतों को अपने हिसाब से रखा जाए.’ ‘‘एक साधारण सी लड़की के लिए कितना कठिन था यह. एक दिन जब मैं ने किसी और के साथ हमबिस्तर होने से इनकार किया तो मुझे घसीट कर सामने बिठा कर सबकुछ देखने को मजबूर कर दिया. उस दिन मैं ने बरदाश्त की सभी सीमाएं लांघ कर उन के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और सामान उठा कर भाई के घर चली आई. पैसे और मनगढ़ंत कहानियों के बल पर मेरा बेटा उन्होंने अपने पास रख लिया. उस दिन के बाद आज तक मैं अपने बेटे को देख नहीं पाई. अब सबकुछ जानते हुए भी आप तैयार हैं तो आप मेरे बड़े भाईसाहब अजय से बात करें.’’

‘‘आप की विधि’’

विधि का ईमेल पढ़ कर जौन नाचने लगा. तुरंत ही उस ने उत्तर दिया,

‘‘मेरी प्यारी विधि,

बस, इतनी सी बात से परेशान हो. जीवन में हादसे सभी के साथ होते हैं. मैं ने तो तुम से पूछा तक नहीं. तुम ने बता दिया तो मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत और बढ़ गई. मेरी जान, मैं ने तुम्हें चाहा है. मैं स्त्री और पुरुष की समानता में विश्वास रखता हूं. तुम मेरी जीवनसाथी ही नहीं, पगसाथी भी होगी. जिन खुशियों से तुम वंचित रही हो, मैं उन की भरपाई की पूरी कोशिश करूंगा. मैं अगली फ्लाइट से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

‘‘प्यार सहित

‘‘तुम्हारा जौन.’’

वह दिल्ली आ पहुंचा. होटल में विधि के बड़े भाईसाहब को बुला कर ईमेल दिखाते हुए उन से विधि का हाथ मांगा. भाईसाहब ने कहा, ‘‘शाम को तुम घर आ जाना.’’ पूरा परिवार बैठक में उस की प्रतीक्षा कर रहा था. जौन का प्रस्ताव सामने रखा गया. सभी हैरान थे. सन्नी तैश में आ कर बोला, ‘‘इतने बूढ़े से…? दिमाग खराब हो गया है क्या. जाहिर है विधि की उम्र के उस के बच्चे होंगे. अंगरेजों का कोई भरोसा नहीं.’’ बाकी बहनभाई भी सन्नी की बात से सहमत थे.

‘‘तुम ने क्या सोचा?’’ बड़े भाई अजय ने विधि से पूछा.

‘‘मुझे कोई एतराज नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘दीदी, होश में तो हो, क्या सचमुच सठियाए से शादी…?’’ विधि के हां करते ही अजय ने जौन को बुला कर कहा, ‘‘शादी तय करने से पहले हमारी कुछ शर्तें हैं. शादी हिंदू रीतिरिवाजों से होगी. उस के लिए तुम्हें हिंदू बनना होगा. हिंदू नाम रखना होगा. विवाह के बाद विधि को लंदन ले जाना होगा.’’ जौन को सब शर्तें मंजूर थीं. वह उत्तेजना से ‘आई विल, आई विल’ कहता नाचने लगा. पुरुष चहेती स्त्री को पाने का हर संभव प्रयास करता है. उस में साम, दाम, दंड, भेद सभी भाव जायज हैं. अच्छा सा मुहूर्त देख कर उन का विवाह संपन्न हआ. जौन लंदन से इमीग्रेशन के लिए जरूरी कागजात ले कर आया था. विधि का पासपोर्ट तैयार ही हो रहा था कि अचानक जौन के बेटे मार्क का ऐक्सिडैंट होने के कारण, जौन को विधि के बिना ही लंदन जाना पड़ा. जौन तो चला गया. विधि का मन बेईमान होने लगा. उसे घबराहट होने लगी. मन में अनेक प्रश्न उठने लगे. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती थी. 6 महीने से ऊपर हो गए. उधर जौन बहुत बेचैन था, चिंतित था. वह बारबार रेणु को ईमेल कर के पूछता. एक दिन हार कर रेणु विधि के घर आ ही पहुंची और उसे बहुत डांटा, ‘‘विधि, क्या मजाक बना रखा है, क्यों उस बेचारे को परेशान कर रही हो? तुम्हें पता भी है कितनी मेल डाल चुका है. कहतेकहते थक गया है कि आप विधि को समझाएं और कहें ‘डर की कोई बात नहीं है. मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’ ‘‘अब गुमसुम क्यों बैठी हो. कुछ तो बोलो. यह तुम्हारा ही फैसला था. अब तुम्हीं बताओ, क्या जवाब दूं उसे?’’

‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. परेशान हूं. खानापीना, उठनाबैठना बिलकुल अलग होगा. फिर उस के बच्चे…? क्या वे स्वीकार करेंगे मुझे…?’’

‘‘विधि, तुम बेकार में भावनाओं के द्वंद्व में डूबतीउतरती रहती हो. यह तो तुम्हें वहीं जा कर पता लगेगा. हम सब जानते हैं, तुम हर स्थिति को आसानी से हैंडल कर सकती हो. ऐसा भी होता है  कभीकभी सबकुछ सही होते हुए भी, लगता है कुछ गलत है. तू बिना कोशिश किए पीछे नहीं मुड़ सकती. चिंता मत कर. अभी जौन को मेल करती हूं कि तुझे आ कर ले जाए.’’ जौन को मेल करते ही एक हफ्ते में वह दिल्ली आ पहुंचा. 2 हफ्ते में विधि को लंदन भी ले गया. लंदन में घर पहुंचते ही जौन ने अंगरेजी रिवाजों के अनुसार विधि को गोद में उठा कर घर की दहलीज पार की. अंदर पहुंचते ही वह हतप्रभ रह गई. अकेले होते हुए भी जौन ने घर बहुत तरतीब और सलीके से रखा था. सुरुचिपूर्ण सजाया था. घर में सभी सुविधाएं थीं, जैसे कपड़े धोने की मशीन, ड्रायर, स्टोव, डिशवाशर और औवन…काटेज के पीछे एक छोटा सा गार्डन था जो जौन का प्राइड ऐंड जौय था. पहली ही रात को जौन ने विधि को एक अनमोल उपहार देते हुए कहा, ‘‘विधि, मैं तुम्हें क्रूर संसार की कोलाहल से दूर, दुनिया के कटाक्षों से हटा कर अपने हृदय में रखने के लिए लाया हूं. तुम से मिलने के बाद तुम्हारी मुसकान और चिरपरिचित अदा ही तो मुझे चुंबक की तरह बारबार खींचती रही है और मरते दम तक खींचती रहेगी. मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम अपने अतीत को भूल जाओगी. मैं तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत करता हूं.’’ इतना कह कर जौन ने उसे सीने से लगा लिया और यह सब सुन कर विधि की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे.

ऐसे प्रेम का एहसास उसे पहली बार हुआ था. धीरेधीरे वह जान पाई कि जौन केवल गोराचिट्टा, ऊंचे कद का ही नहीं, वह रोमांटिक, सलोना, जिंदादिल, शरारती और मस्त इंसान है जो बातबात में किसी को भी अपना बनाने का हुनर जानता है. उस का हृदय जीवन की आकांक्षाओं से धड़क उठा. जौन ने उसे इतना प्यार दिया कि जल्दी ही उस की सब शंकाएं दूर हो गईं. विधि उसे मन से चाहने लगी थी. दोनों बेहद खुश थे. वीकेंड में जौन के तीनों बच्चों ने खुली बांहों से विधि का स्वागत किया और अपने पिता के विवाह पर एक भव्य पार्टी दी. विधि अपने फैसले पर प्रसन्न थी. अब उस का अपना घर था. अलग परिवार था. असीम प्यार देने वाला पति. जौन ने घर की बागडोर उसी के हाथ में थमा दी थी. उसे प्यार करना सिखाया, उस का आत्मविश्वास जगाया यहां तक कि उसे पोस्टग्रेजुएशन भी करवा दिया. क्योंकि भीतर से वह जानता था कि उस के जाने के बाद विधि अपने समय का सदुपयोग कर सकेगी.

गरमी का मौसम था. चारों ओर सतरंगी फूल लहलहा रहे थे. दोपहर के खाने के बाद दोनों कुरसियां डाल कर गार्डन में धूप सेंकने लगे. बाहर बच्चे खेल रहे थे. बच्चों को देखते विधि की ममता उमड़ने लगी. जौन की पैनी नजरों से यह बात छिपी नहीं. जौन ने पूछ ही लिया, ‘‘विधि, हमारा बच्चा चाहिए…? हो सकता है. मैं ने पता कर लिया है. पूरे 9 महीने डाक्टर की निगरानी में रह कर. मैं तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, हमारे हैं तो सही, वो 3, और उन के बच्चे. मैं ने तो जीवन के सभी अनुभवों को भोगा है. मां बन कर भी, अब नानीदादी का सुख भोग रही हूं,’’ विधि ने हंसतेहंसते कहा. ‘‘मैं तो समझा था कि तुम्हें मेरी निशानी चाहिए?’’ जौन ने विधि को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगर बच्चा नहीं तो एक सुझाव देता हूं. बच्चों से कहेंगे मेरे नाम का एक (लाल गुलाब) इंग्लिश रोज और तुम्हारे नाम का (पीला गुलाब) इंडियन समर हमारे गार्डन में साथसाथ लगा दें. फिर हम दोनों सदा एकदूसरे को प्यार से देखते रहेंगे.’’ इतना कह कर जौन ने प्यार से उस के गाल पर चुंबन दे दिया.

विधि भी होंठों पर मुसकान, आंखों में मोती जैसे खुशी के आंसू, और प्यार की पूरी कशिश लिए जौन के आगोश में आ गई. जौन विधि की छोटी से छोटी जरूरतों का ध्यान रखता. धीरेधीरे विधि के पूरे जीवन को उस ने अपने प्यार के आंचल से ढक लिया. सामाजिक बैठकों में उसे अदब और शिष्टाचार से संबोधित करता. उसे जीजी करते उस की जबान न थकती. कुछ ही वर्षों में जौन ने उसे आधी दुनिया की सैर करा दी थी. अब विधि के जीवन में सुख ही सुख थे. हंसीखुशी 10 साल बीत गए. इधर, कई महीनों से जौन सुस्त था. विधि को भीतर ही भीतर चिंता होने लगी, सोचने लगी, ‘कहां गई इस की चंचलता, चपलता, यह कभी टिक कर न बैठने वाला, यहांवहां चुपचाप क्यों बैठा रहता है? डाक्टर के पास जाने को कहो तो टालते हुए कहता है, ‘‘मेरा शरीर है, मैं जानता हूं क्या करना है.’’ भीतर से वह खुद भी चिंतित था. एक दिन बिना बताए ही वह डाक्टर के पास गया. कई टैस्ट हुए. डाक्टर ने जो बताया, उसे उस का मन मानने को तैयार नहीं था. वह जीना चाहता था. उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘वह नहीं चाहता कि उस की यह बीमारी उस के और उस की पत्नी की खुशी में आड़े आए. समय कम है, मैं अब अपनी पत्नी के लिए वह सबकुछ करना चाहता हूं, जो अभी तक नहीं कर पाया. मैं नहीं चाहता मेरे परिवार को मेरी बीमारी का पता चले. समय आने पर मैं खुद ही उन्हें बता दूंगा.’’

अचानक एक दिन जौन वर्ल्ड क्रूज के टिकट विधि के हाथ में थमाते बोला, ‘‘यह लो तुम्हारा शादी की 10वीं वर्षगांठ का तोहफा.’’ उस की जीहुजूरी ही खत्म नहीं होती थी. विधि का जीवन उस ने उत्सव सा बना दिया था. वर्ल्ड क्रूज से लौटने के बाद दोनों ने शादी की 10वीं वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई. घर की रजिस्ट्री के कागज और एफडीज उस ने विधि के नाम करवा कर उसे तोहफे में दे दिए. उस रात वह बहुत बेचैन था. उसे बारबार उलटी हो रही थी और चक्कर आते रहे. जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे भरती कर लिया गया. जौन की दशा दिनबदिन बिगड़ती गई. डाक्टर ने बताया, ‘‘उस का कैंसर फैल चुका है. कुछ ही समय की बात है.’’

‘‘कैंसर…?’’ कैंसर शब्द सुन कर सभी निशब्द थे. ‘‘तुम्हारे डैड, जाने से पहले, तुम्हारी मां को उम्रभर की खुशियां देना चाहते थे. तुम्हें बताने के लिए मना किया था,’’ डाक्टर ने बताया. बच्चे तो घर चले गए. विधि नाराज सी बैठी रही. जौन ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से समझाया, ‘‘जो समय मेरे पास रह गया था, मैं उसे बरबाद नहीं करना चाहता था, भोगना चाहता था तुम्हारे साथ. तुम्हारे आने से पहले मैं जीवन बिता रहा था. तुम ने जीना सिखा दिया है. अब मैं जिंदगी से रिश्ता चैन से तोड़ सकता हूं. जाना तो एक दिन सभी को है.’’ एक वर्ष तक इलाज चलता रहा. कैंसर इतना फैल चुका था कि अब कोई कुछ नहीं कर सकता था. अपनी शादी की 11वीं वर्षगांठ से पहले ही जौन चल बसा. अंतिम संस्कार के बाद उस के बेटे ने जौन की इच्छानुसार उस की राख को गार्डन में बिखरा दिया. एक इंग्लिश रोज और एक इंडियन समर (पीला गुलाब) साथसाथ लगा दिए. उन्हें देखते ही विधि को जौन की बात याद आई, ‘कम से कम तुम्हें हर वक्त देखता तो रहूंगा?’ इस सदमे को सहना कठिन था. विधि को लगा मानो किसी ने उस के शरीर के 2 टुकड़े कर दिए हों. एक बार वह फिर अकेली हो गई. एक दिन उस के अंतकरण से आवाज आई, ‘उठ विधि, संभाल खुद को, तेरे पास जौन का प्यार है, स्मृतियां हैं. वह तुझे थोड़े समय में जहानभर की खुशियां दे गया है.’ धीरेधीरे वह संभलने लगी. जौन के बच्चों के सहयोग और प्यार ने उसे फिर खड़ा कर दिया. कालेज में उसे नौकरी भी मिल गई. बाकी समय में वह गार्डन की देखभाल करती. इंग्लिश रोज और इंडियन समर की कटाईछंटाई करने की उस की हिम्मत न पड़ती. उस के लिए माली को बुला लेती. गार्डन जौन की निशानी था. एक दिन भी ऐसा न जाता, विधि अपने गार्डन को न निहारती, पौधों को न सहलाती. अकसर उन से बातें करती. बर्फ पड़े, कोहरा पड़े या फिर कड़कती सर्दी, वह अपने फ्रंट डोर से जौन के लगाए पौधों को निहारती रहती. उदासी में इंग्लिश रोज से शिकवेशिकायतें भी करती, ‘खुद तो अपने लगाए परिवार में लहलहा रहे हो और मैं? नहीं, नहीं, मैं शिकायत नहीं कर रही. मुझे याद है आप ने ही कहा था, ‘यह मेरा परिवार है डार्लिंग. मुझे इन से अलग मत करना.’

उस दिन सोचतेसोचते अंधेरा सा होने लगा. उस ने घड़ी देखी, अभी शाम के 4 ही बजे थे. मरियल सी धूप भी चोरीचोरी दीवारों से खिसकती जा रही थी. वह जानती थी यह गरमी के जाने और पतझड़ के आने का संदेशा था. वह आंखें मूंद कर घास पर बिछे रंगबिरंगों पत्तों की कुरमुराहट का आनंद ले रही थी. अचानक तेज हवा के झरोखे से एक सूखा पत्ता उलटतापलटता उस के आंचल में आ अटका. पलभर को उसे लगा, कोई उसे छू कर कह रहा हो… ‘डार्लिंग, उदास क्यों होती हो, मैं यही हूं तुम्हारे चारों ओर, देखो वहीं हूं, जहां फूल खिलते हैं…क्यों खिलते हैं? यह मैं नहीं जानता. बस, इतना जरूर जानता हूं, फूल खिलता है, झड़ जाता है. क्यों? यह कोई नहीं जानता. बस, इतना जानता हूं इंग्लिश रोज जिस के लिए खिलता है उसी के लिए मर जाता है. खिले फूल की सार्थकता और मरे फूल की व्यथा एक को ही अर्पित है.’

उस दिन वह झड़ते फूलों को तब तक निहारती रही जब तक अंधेरे के कारण उसे दिखाई देना न बंद हो गया. हवा के झोंके से उसे लगा, मानो जौन पल्लू पकड़ कर कह रहा हो, ‘आई लव यू माई इंडियन समर.’ ‘‘मी टू, माई इंग्लिश रोज. तुम और तुम्हारा शरारतीपन अभी तक गया नहीं.’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

भटका हुआ आदमी : अजंता देवी की मनकही

आटा सने हाथों से ही अजंता देवी ने दरवाजा खोला. तब तक डाकिया एक नीला लिफाफा दरवाजे की दरार से गिरा चुका था. लिफाफे पर किए गए टेढ़ेमेढ़े हस्ताक्षर को एक क्षण वह अपनी उदास निगाहों से घूरती रही. पहचान की एक क्षीण रेखा उभरी, पर कोई आधार न मिलने के कारण उस लिखावट में ही उलझ कर रह गई. लिफाफे को वहीं पास रखी मेज पर छोड़ कर वह चपातियां बनाने रसोईघर में चली गई.

अब 1-2 घंटे में राहुल और रत्ना दोनों आते ही होंगे. कालिज से आते ही दोनों को भूख लगी होगी और ‘मांमां’ कर के वे उस का आंचल पकड़ कर घूमते ही रह जाएंगे. मातृत्व की एक सुखद तृप्ति से उस का मन सराबोर हो गया. चपाती डब्बे में बंद कर, वह जल्दीजल्दी हाथ धो कर चिट्ठी पढ़ने के लिए आ खड़ी हुई.

पत्र उस के ही नाम का था, जिस के कारण वह और भी परेशान हो उठी. उसे पत्र कौन लिखता? भूलेभटके रिश्तेदार कभी हालचाल पूछ लेते. नहीं तो राहुल के बड़े हो जाने के बाद रोजाना की समस्याओं से संबंधित पत्र उसी के नाम से आते हैं, लेदे कर पुरुष के नाम पर वही तो एक है.

मर्द का साया तो वर्षों पहले उस के सिर पर से हट गया था. खैर, ये सब बातें सोच कर भी क्या होगा? फिर से उस ने लिफाफे को उठा लिया और डरतेडरते उस का किनारा फाड़ा. पत्र के खुलते ही काले अक्षरों में लिखे गए शब्द रेतीली मिट्टी की तरह उस की आंखों के आगे बिखर गए. इतने वर्षों के बाद यह आमंत्रण. ‘‘मेरे पास कोई भी नहीं है, तुम आ जाओ.’’ और भी कितनी सारी बातें. अचानक रुलाई को रोकने के लिए उस ने मुंह में कपड़ा ठूंस लिया, पर आंसू थे कि बरसों रुके बांध को तोड़ कर उन्मुक्त प्रवाहित होते जा रहे थे. उस खारे जल की कुछ बूंदें उस के मुख पर पड़ रही थीं, जिस के मध्य वह बिखरी हुई यादों के मनके पिरो रही थी. उसे लग रहा था कि वह नदी में सूख कर उभर आए किसी रेतीले टीले पर खड़ी है. किसी भी क्षण नदी का बहाव आएगा और वह बेसहारा तिनके की तरह बह जाएगी.

चिट्ठी कब उस के हाथ से छूट गई, उसे पता ही नहीं चला और वह जाल में फंसी घायल हिरनी की तरह हांफती रही. अभी राहुल, रत्ना भी तो नहीं आएंगे. डेढ़ घंटे की देर है. घड़ी की सूइयां भी उस की जिंदगी सी ठहर गई हैं. चलतेचलते घिस गई हैं. एक दमघोंटू चुप्पी पूरे कमरे में सिसक रही थी. मात्र उसे यदाकदा अपनी धड़कनों की आवाज सुनाई दे जाती थी, जिन में विलीन कितनी ही यादें उस के दिल के टुकड़े कर जाती थीं.

जब वह इस घर में दुलहन बन कर आई थी, सास ने बलैया ली थीं. ननदों और देवरों की हंसीठिठोली से घरआंगन महक उठा था. वह निहाल थी अपने गृहस्थ जीवन पर. शादी के बाद 3 ही वर्षों में राहुल और रत्ना से उस का घर खिलखिला उठा था. उसे मायके गए 2 वर्ष हो गए थे. मां की आंखें इंतजार में पथरा गईं. कभी राहुल का जन्मदिन है तो कभी रत्ना की पढ़ाई. कभी सास की बीमारी है, तो कभी देवर की पढ़ाई. सच पूछो तो उसे अपने पति को छोड़ कर जाने की इच्छा ही नहीं होती. उन की बलवान बांहों में आ कर उसे अनिर्वचनीय आनंद मिलता. उस का तनमन मोगरे के फूलों की तरह महक उठता.

भाभी ही कभी ठिठोली भरा पत्र लिखतीं, ‘क्यों दीदी, अब क्या ननदोई के बिना एक रात भी नहीं सो सकतीं.’ वह होंठों के कोनों में हंस कर रह जाती.

सास कभीकभी मीठी झिड़की देतीं, ‘एक बार मायके हो आओ बहू, नहीं तो तुम्हारी मां कहेगी कि बूढ़ी अपनी सेवा कराने के लिए हमारी बेटी को भेज नहीं रही है.’

वह हंस कर कहती, ‘अम्मां, चली तो जाऊं पर तुम्हें कौन देखेगा? देवरजी का ब्याह कर दो तब साल भर मायके रह कर एक ही बार में मां का हौसला पूरा कर दूंगी.’

रात को राहुल के पिताजी ने भावभीने कंठ से कहा, ‘अंजु, साल भर मायके रहोगी तो मेरा क्या होगा? मैं तो नौकरी छोड़ कर तुम्हारे ही साथ चला चलूंगा.’

उन के मधुर हास्य में पति प्रेम का अभिमान भी मिला होता. पर उसे क्या पता था कि एक दिन यह सबकुछ रेतीली मिट्टी की तरह बिखर जाएगा. राहुल के पिताजी के तबादले की सूचना दूसरे ही दिन मिल गई थी. उन्होंने बहुत कोशिश की कि उन का तबादला रुक जाए पर कुछ भी नहीं हो सका. आखिर उन्हें कोलकाता जाना ही पड़ा.

जाने के बाद कुछ दिनों तक लगातार उन के पत्र आते रहे. सप्ताह में 2-2, 3-3. मां ने कई बार लिखा, अब तो जंवाई भी नहीं हैं, इधर ही आजा, अकेली का कैसे दिल लगेगा? वह लिखती, ‘अम्मां अकेली कहां हूं, सास हैं, देवर हैं. अब तो मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है. मेरे सिवा कौन देखेगा इन्हें,’ फिर भरोसा था कि राहुल के पिताजी शीघ्र ही बुला लेंगे.

धीरेधीरे सबकुछ खंडित हो गया, उन के विश्वास की तरह. लिफाफे से अंतर्देशीय, फिर पोस्टकार्ड और तब एक लंबा अंतराल. पत्र भी बाजार भाव की तरह महंगे हो गए थे. बच गए थे मात्र उस के सुलगते हुए अरमान. सास, देवर का रवैया भी अब सहानुभूतिपूर्ण नहीं रह गया था.

बीच में यह खबर भी लावे की तरह भभकी थी कि राहुल के पिताजी ने किसी बंगालिन को रख लिया है. पहले उसे यकीन नहीं आया था, पर देवर के साथ जा कर उस ने जब अपनी आंखों से देख लिया तो बरसों से ठंडी पड़ी भावनाएं राख में छिपी चिनगारी की तरह सुलग कर धुआं देने लगीं. भावावेश में उस का कंठ अवरुद्ध हो गया. हाथपैर कांप उठे. उस ने राहुल के पिता के आगे हाथ जोड़ दिए.

‘मेरी छोड़ो, इन बच्चों की तो सोचो, जिन्हें तुम ने जन्म दिया है. कहां ले कर जाऊंगी मैं इन्हें,’ आगे की बात उस की रुलाई में ही डूब गई.

जवाब उस के पति ने नहीं, उस सौत ने ही दिया था, ‘एई हियां पर काय को रोनाधोना कोरता है. जब मरद को सुखमौज नहीं दे सोकता तो काहे को बीवी. खली बच्चा पोइदा कोरने से कुछ नहीं होता, समझी. अब जाओ हियां से, जियादे नखरे नहीं देखाओ.’

वह एक क्षण उसे नजर भर कर देखती रही. सांवले से चेहरे पर बड़ा गोल टीका, पूरी मांग में सिंदूर, पैरों में आलता और उंगलियों में बिछुआ…उस में कौन सी कमी है. वह भी तो पूरी सुहागिन है. मगर वह भूल गई कि उस के पास एक चीज नहीं है, पति का प्यार. पर कहां कमी रह गई उस के प्यार में, पूरे घर को संभाल कर रखा उस ने. उसी का यह प्रतिफल है.

हताश सी उस की आत्मा ने फिर से संघर्ष चालू किया, ‘मैं तुम से नहीं अपने पति से पूछ रही हूं.’

‘ओय होय, कौन सा पति, वो हमारा होय. पाहीले तो बांध के रखा नहीं, अभी उस को ढूंढ़ने को आया. खाली बिहाय करने से नाहीं होता, मालूम होना चाहिए कि मरद क्या मांगता है. अब जाओ भी,’ कहतेकहते उस ने धक्का दे दिया.

रत्ना भी गिर कर चिल्लाने लगी. उसे अपनेआप पर क्षोभ हुआ. काश, वह इतनी बड़ी होती कि पति को छोड़ कर चल देती या वह इतने निम्न स्तर की होती कि इस औरत को गालियां दे कर उस का मुंह बंद कर देती और उस की चुटिया पकड़ कर घर से बाहर कर देती, पर अब तो बाजी किसी और के हाथ थी.

लेकिन उस के देवर से नहीं रहा गया. बच्चों को पकड़ कर उस ने कहा, ‘बोलो भैया, क्या कहते हो? अगर भाभी से नाता तोड़ा तो समझ लो हम से भी नाता टूट जाएगा. तुम्हें हम से संबंध रखना है कि नहीं? भैया, चलो हमारे साथ.’

‘मेरा किसी से कोई संबंध नहीं.’

दिसंबर की ठिठुरती सांझ सा वह संवेदनशील वाक्य उस की पूरी छाती बींध गया था. अचेत हो गई थी वह. होश आया तो देवर उस के सिरहाने बैठा था और दोनों बच्चे निरीह गौरैया से सहमे हुए उसे देख रहे थे.

‘अब चलो, भाभी, यहां रह कर क्या करोगी? तुम जरा भी चिंता मत करो, हम लोग हैं न तुम्हारे साथ. और फिर देखना, कुछ ही दिनों में भैया वापस आएंगे.’

बिना किसी प्रतिक्रिया के वह लौट आई. पर इसी एक घटना से उस की पूरी जिंदगी में बदलाव आ गया. कुछ दिनों तक तो घर वालों का रवैया अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण रहा. सास कुछ ज्यादा ही लाड़ दिखाने लगी थीं, पर एक कमाऊ पूत का बिछोह उन को साले जा रहा था.

देवर की नौकरी लगते ही देवर की भी आंखें बदलने लगी थीं. न तो सास के हाथों में दुलार ही रह गया था और न देवर की बोली में प्यार. बच्चे उपेक्षित होने लगे थे. देवर की शादी के बाद वह भी घर की नौकरानी बन कर रह गई थी. अपनी उपेक्षा तो वह सह भी लेती पर दिन पर दिन बिगड़ते हुए बच्चों को देख कर उस का मन ग्लानि से भर उठता. आखिर कब तक वह इन बातों को सह सकती थी. मां के ढेर सारे पत्रों के उत्तर में वह एक दिन बच्चों के साथ स्वयं ही वहां पहुंच गई.

वर्षों से बंधा धीरज का बांध टूट कर रह गया और दोनों उस अविरल बहती अजस्र धारा में बहुत देर तक डूबतीउतराती रही थीं. मां ने कुम्हलाए हुए चेहरे पर एक नजर डाल कर कहा था, ‘जो हो गया उसे भूल जा, अब इन बच्चों का मुंह देख.’

पर मां के यहां भी वह बात नहीं रह गई थी. पिताजी की पेंशन से तो गुजारा होने से रहा. भैयाभाभी मुंह से तो कुछ नहीं बोलते पर उसे लगता कि उस सीमित आय में उस का भार उन्हें पसंद नहीं. तब उस ने ही मां के सामने प्रस्ताव रखा था कि वह कहीं नौकरी कर लेगी.

मां पहले तो नहीं मानी थीं, ‘लोग क्या कहेंगे, बेटी क्या मायके में भारी पड़ गई?’

पर उस ने ही उन्हें समझाया था, ‘मां, छोटीछोटी आवश्यकताओं के लिए भैया पर निर्भर रहना अच्छा नहीं लगता. कल बच्चे बड़े होंगे तो क्या उन्हें भैया के दरवाजे का भिखारी बना कर रखूंगी.’

मां ने बेमन से ही उसे अनुमति दी थी. कहांकहां उस ने पापड़ नहीं बेले. कभी नगरपालिका में क्लर्क बनी, तो कभी किसी की छुट्टी की जगह काम किया. अंत में जा कर मिडिल स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिली. छोेटे बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते बच्चे कब बडे़ हो गए, उसे पता ही नहीं चला. और आज तो इस स्थिति में आ गई है कि अब राहुल चार पैसे का आदमी हो जाएगा तो वह नौकरी छोड़ कर निश्चिंत हो जाएगी. हालांकि आज भी वह आर्थिक दृष्टि से समृद्ध नहीं हो सकी है, लेकिन किसी का सहारा भी तो नहीं लेना पड़ा.

पर आज यह पत्र, वह क्या जा पाएगी वहां? इतने वर्षों का अंतराल?

राहुल के आने के बाद ही उस की तंद्रा टूटी. वह पत्थर की मूर्ति की तरह थी. उसे झकझोरते हुए राहुल ने चिट्ठी लपक ली.

‘‘मां, तुम्हें क्या हो गया है?’’

‘‘बेटे,’’ और वह राहुल का कंधा पकड़ कर रोने लगी, ‘‘मैं क्या करूं?’’

‘‘मां, तुम वहां नहीं जाओगी.’’

‘‘राहुल.’’

‘‘हां मां, उस आदमी के पास जिस ने आज तक यह जानने की जुर्रत नहीं की कि हम लोग कैसे जीते हैं. तुम ने कितनी मेहनत से हमें पाला है. तुम्हें न सही पर हमें क्यों छोड़ दिया? मां, तुम अगर समझती हो कि हम लोग बुढ़ापे में तुम्हारा साथ छोड़ देंगे तो विश्वास रखो, ऐसा कभी नहीं होगा. मैं शादी ही नहीं करूंगा. मां, तुम उन्हें बर्दाश्त कर सकती हो, क्योंकि वे तुम्हारे पति हैं पर हम कैसे बर्दाश्त कर लेंगे उसे, जो सिर्फ नाम का हमारा पिता है? कभी उस ने दायित्व निभाने का सोचा भी नहीं. तुम अगर जाना ही चाहती हो तो जाओ, पर याद रखो, मैं साथ नहीं रह पाऊंगा.’’

उस की आंखों से अनवरत बहते आंसुओं ने पत्र के अक्षरों को धो दिया और वह राहुल का सहारा ले कर उठ खड़ी हुई.

कौन थी मरजान जिसे गुल का प्यार नहीं मिला तो कहा अलविदा

समर गुल हत्या कर के फरार हुआ था, सरहद पार कबीले के सरदार नौरोज खान ने उसे शरण दी. लेकिन नौरोज की बेटी समर गुल और मरजाना एकदूसरे को प्यार कर बैठे, जो कबाइली परंपरा के विपरीत था. आखिर क्या हुआ उन के प्यार का अंजाम…    

मर गुल ने जानबूझ कर एक अभागे की हत्या कर दी थी. पठानों में ऐसी हत्या को बड़ी इज्जत की नजर से देखा जाता था और हत्यारे की समाज में धाक बैठ जाती थी. समर गुल की उमर ही क्या थी, अभी तो वह विद्यार्थी था. मामूली तकरार पर उस ने एक आदमी को चाकू घोंप दिया था और वह आदमी अस्पताल ले जाते हुए मर गया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए समर गुल कबाइली इलाके की ओर भाग गया था.

 जब वह वहां के गगनचुंबी पहाड़ों के पास पहुंचा तो उसे कुछ ऐसा सकून मिला, जैसे वे पहाड़ उस की सुरक्षा के लिए हों. सरहदें कितनी अच्छी होती हैं, इंसान को नया जन्म देती हैं. फिर भी यह इलाका उस के लिए अजनबी था, उसे कहीं शरण लेनी थी, किसी बड़े खान की शरण. क्योंकि मृतक के घर वाले किसी कबाइली आदमी को पैसे देकर उस की हत्या करवा सकते थे. पठानों की यह रीत थी कि अगर वे किसी को शरण देते थे तो वे अपने मेहमान की जान पर खेल कर रक्षा करते थे.

वह एक पहाड़ी पर खड़ा था, उसे एक गांव की तलाश थी. दूर नीचे की ओर उसे कुछ भेड़बकरियां चरती दिखाई दीं. उस ने सोचा, पास ही कहीं आबादी होगी. वह रेवड़ के पास पहुंच कर इधरउधर देखने लगा. गड़रिया उसे कहीं दिखाई नहीं दिया. अचानक एक काले बालों वाला कुत्ता भौंकता हुआ उस की ओर लपका. उस ने एक पत्थर उठा कर मारा, लेकिन कुत्ता नहीं रुका. उस ने चाकू निकाल लिया, तभी एक लड़की की आवाज आई, ‘‘खबरदार, कुत्ते पर चाकू चलाया तो…’’ 

उस ने उस आवाज की ओर देखा तो कुत्ता उस से उलझ गया. उस की सलवार फट गई. कुत्ते ने उस की पिंडली में दांत गड़ा दिए थे. आवाज एक लड़की की थी, उस ने कुत्ते को प्यार से अलग किया और उसे एक पेड़ से बांध दिया. समर गुल एक चट्टान पर बैठ कर अपने घाव का देखने लगा. लड़की ने पास कर कहा, ‘‘मुझे अफसोस है, मेरी लापरवाही की वजह से आप को कुत्ते ने काट लिया.’’

समर गुल ने गुस्से से लड़की की ओर देखा तो उसे देखता ही रह गया. वह बहुत सुंदर लड़की थी. उस की शरबती आंखों में शराब जैसा नशा था. लड़की ने पिंडली से रिसता हुआ खून देखा तो भाग कर पानी लाई और उस का खून साफ किया. फिर अपना दुपट्टा फाड़ कर उसे जलाया और समर के घाव पर उस की राख रखी, जिस से खून बंद हो गया. समर गुल उस लड़की की बेचैनी और तड़प को देखता रहा. खून बंद हो गया तो वह खड़ी हो गई.

  ‘‘कोई बात नहीं,’’ समर गुल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुत्ते ने अपनी ड्यूटी की और इंसान ने अपनी ड्यूटी.’’

‘‘अजनबी लगते हैं आप.’’ लड़की ने कहा तो उस ने अपनी पूरी कहानी उसे सुना दी.

‘‘अच्छा तो आप फरार हो कर आए हैं. मैं बाबा को आप की कहानी सुनाऊंगी तो वह खुश होंगे, क्योंकि काफी दिन बाद हमारे घर में किसी फरारी के आने की चर्चा होगी.’’

मलिक नौरोज खान एक जिंदादिल इंसान था. 70-75 साल की उमर होने पर भी स्वस्थ और ताकतवर जवान लड़कों जैसा. बड़ा बेटा शाहदाद खान सरकारी नौकरी में था जबकि छोटा बेटा शाहबाज खान जिसे सब प्यार से बाजू कहते थे, बड़ा ही खिलंदड़ा और नटखट था. वह बहन ही की तरह सुंदर और प्यारा था. बेटी की जुबानी समर गुल की कहानी सुन कर नौरोज ने सोचा कि इतनी कम उम्र का बच्चा हत्यारा कैसे हो सकता है. फिर भी उस के लिए अच्छेअच्छे खाने बनवाए गए. उसे घर में रख लिया गया. कुछ दिन के बाद समर गुल ने सोचा, कब तक मेहमान बन कर इन के ऊपर बोझ बनूंगा, इसलिए कोई काम देखना चाहिए. उस ने नौरोज खान से बात करना ठीक नहीं समझा. इस के लिए उसे मरजाना से बात करना ठीक लगा. हां, उस लड़की का ही नाम मरजाना था.

अगले दिन सुबह उस ने मरजाना से कहा, ‘‘बात यह है कि मुझे लकड़ी काटना नहीं आता, हल चलाना नहीं आता. मैं ने सोचा कि रेवड़ तो चरा सकता हूं. मुफ्त की रोटी खाते मुझे शरम आती है.’’

‘‘यह काम भी तुम से नहीं होगा, तुम इस काम के लिए पैदा ही नहीं हुए हो. मुझे तो हैरानी है कि तुम ने हत्या कैसे कर दी. तुम ऐसे ही रहो, तुम्हें मुफ्त की रोटी खाने का ताना कोई नहीं देगा.’’

‘‘अगर मुझे सारा जीवन फरारी बन कर रहना पड़ा तो?’’

‘‘मैं बाबा से बात करूंगी, वह भी यही कहेंगे जो मैं ने कहा है.’’ इतना कह कर वह रेवड़ ले कर चली गई और समर गुल उसे जाते हुए देखता रहा. हकीकत जान कर नौरोज ठहाका मार कर हंसा और समर से बोला, ‘‘फरारी बाबू, मैं ने तुम्हारे लिए काम ढूंढ लिया है. तुम बाजू को पढ़ाया करोगे.’’

यह काम उस के लिए बहुत अच्छा था. अगले दिन से उस ने केवल बाजू को बल्कि गांव के और बच्चों को इकट्ठा कर के पढ़ाना शुरू कर दिया. शाम के समय चौपाल लगती थी, गांव के सब बूढ़ेबच्चे इकट्ठे हो जाते. समर गुल भी चौपाल पर चला जाता था. वहां कोई कहानी सुनाता, कोई चुटकुले और कोई शेरोशायरी. यह सभा आधीआधी रात तक जमी रहती थी. रात को लौट कर समर गुल जब दरवाजा खटखटाता तो मरजाना ही दरवाजा खोलती, क्योंकि मलिक नौरोज खान ऊपर के माले पर सोता था.

समर गुल को यहां आए हुए 2-3 महीने हो गए थे, लेकिन मरजाना से उस की बात नहीं हो पाई थी, क्योंकि वह उस से डराडरा सा रहता था. वह समर से हंस कर पूछती, ‘‘ गए…’’ वह उसे सिर झुकाए जवाब देता, लेकिन एक पल के लिए भी वहां नहीं रुकता था और अपने कमरे में जा कर लेट जाता था. वह बिस्तर पर भी मरजाना के बारे में सोचता रहता थामरजाना का व्यवहार सदैव उस के प्रति प्यार भरा होता था. लेकिन अब वह उस की तरफ और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. एक रात जब वह आया तो मरजाना ने रोज की तरह कहा, ‘‘ गए…’’

वह कुछ नहीं बोला और खड़ा रहा. दोनों के ही दिल तेजी से धड़क रहे थे. दोनों ने एक अनजानी सी खुशी और डर अपने अंदर महसूस किया. मरजाना ने धीरे से कहा, ‘‘अंदर आ जाओ.’’ वह अंदर आ गया. मरजाना ने दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी. फिर भी वह वहीं खड़ा रहा. मरजाना भी वहीं खड़ी उसे निहारती रही. फिर धीरे से बोली, ‘‘जाओ, सो जाओ.’’ वह चला गया, लेकिन मरजाना वहीं खड़ी रही. उस का अंगअंग एक अनोखी मस्ती से बहक रहा था. साथ ही दिल भी एक अनजानी खुशी से भर गया था. समर गुल अपने कमरे में पहुंचा तो उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. वह बारबार होंठों ही होंठों में दोहरा रहा था, ‘‘जाओ,सो जाओ.’’

मरजाना का प्यारभरा स्वर उस की आत्मा को झिंझोड़ गया था. वह भावुक हो गया और सिसकियां ले कर रोने लगा. यह खुशी के आंसू थे. उस की हालत एक बच्चे जैसी हो गई थी. उसे यह अहसास डंक मार रहा था कि उस ने किसी की हत्या की हैवह पहली बार दिल की गहराइयों से अपने किए पर लज्जित था, उस की आत्मा पर पाप का बोझ पड़ा था. इस बोझ को उस ने पहले महसूस नहीं किया था, लेकिन प्रेम की अग्नि ने उसे कुंदन बना दिया था. आज वह किसी का दुश्मन नहीं रहा. मरजाना अपने बिस्तर पर लेट कर अंदर ही अंदर खुश हो रही थी, ऐसी खुशी उसे पहली बार मिली थी. वह सोच रही थी कि जब मैं ने दरवाजा बंद किया तो समर वहीं खड़ा रहा. वह चुपचाप था. उस की खामोशी ने मुझे अंदर तक हिला डाला. क्या इसी को प्रेम कहते हैं?

सोच रही थी कि क्या यही मीठामीठा प्रेम का दर्द है, जिस के लिए दरखुई आदम खान के लिए मर गई थी और आदम खान दरखुई के लिए मरा था. गुल मकई मूसा खान के लिए मरी और मूसा खान गुल मकई के लिएहां, ये सब प्रेम के लिए मर गए थे, लेकिन लोग प्रेम करने वालों के दुश्मन क्यों होते हैं. इतनी पवित्र चीज और खुशी से इंसानों को क्यों दूर रखा जाता है. लेकिन मेरी अंतरात्मा पवित्र है, मैं ने कोई पाप नहीं किया. वह झटके से बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. अपने आप को इस अनजानी खुशी से वंचित नहीं होने दूंगी.’’ सुबह हुई तो मरजाना ने उजाले में वह सुंदरता देखी जो उसे पहले कभी दिखाई नहीं दी थी. समर गुल जाग रहा था. वह उठा और उस ने बाहर जा कर देखा, मरजाना रेवड़ ले कर जा चुकी थी. उस की निगाहें हवेली की दीवारों पर टिक गईं, ऐसा लगा जैसे उस का बचपन यहीं गुजरा हो.

तभी बाजू पास कर बोला, ‘‘गुल लाला चलो, सब बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. आप अभी तक पढ़ाने नहीं आए.’’ उस ने बाजू को गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा. बाजू बोला, ‘‘लाला, इतना प्यार तो आप ने मुझे कभी नहीं किया.’’ उस ने कहा, ‘‘हां बाजू, मैं ने कभी इतना प्यार नहीं किया, लेकिन दिल में तुम्हारे लिए बहुत प्यार रखता था.’’ फिर वह उसे नीचे उतार कर बोला, ‘‘बाजू, जाओ आज तुम सब छुट्टी कर लो.’’ वह खुश हो कर चला गया. गुल घर में रखी रायफल ले कर जंगल चला गया. मरजाना रेवड़ के पास डलिया बुन रही थी. साथ ही धीमे स्वर में गा रही थी. समर गुल चुपके से उस के पीछे खड़ा हो कर उस का गाना सुनने लगा.

मरजाना जो गा रही थी, उस का सार कुछ इस तरह था, ‘तुम नहीं आए थे तो दिल में कोई हलचल नहीं थी, जीवन शांति से अपनी डगर पर चल रहा था. तुम आते तो यह जीवन इसी तरह कट जाता. लेकिन तुम ने अपनी सुंदर आंखों से मेरे दिल को जगमगा दिया है. तुम ने यह क्या कियापलक झपकते ही मेरी दुनिया ही बदल डाली. बाप, भाई, मां सब से नाता टूट गया, यह तुम ने क्या किया. अब तुम मेरे खून में दौड़ने लगे.’ समर गुल चुपचाप सुनता रहा. फिर धीरे से बोला, ‘‘मरजाना!’’ वह एकदम चौंक पड़ी. उस के होंठ कांपने लगे. उस की भूरी आंखें खुशी के आंसुओं से भर गईं.

समर गुल उस के आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम मुझे दूर पहाडि़यों में ढूंढ रही थी, लेकिन मैं यहां तुम्हारे दिल के पास खड़ा था.’’ ‘‘खुदा करे, मैं तुम्हें हर पल ढूंढती रहूं.’’ वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘मरजाना, मैं हत्या कर के बहुत पछता रहा हूं. लेकिन लगता है कि कुदरत ने तुम से मिलवाने के लिए मुझ से यह हत्या करवाई थी. मुझे हैरानी है कि पाप के बदले इतनी बड़ी खुशी मिली. डरता हूं कि यह खुशी छिन जाए.’’

मरजाना बोली, ‘‘तुम्हारे बिना मैं जीने की चाहत भी नहीं कर सकती. मुझे तुम पहले दिन से ही अच्छे लगने लगे थे. कुछ भी हो जाए, मुझे तुम अपने साथ ही पाओगे. मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’ ‘‘मरने की बात न करो मरजाना.’’ ‘‘मेरा नाम मरजाना है गुल, मुझे मर जाना आता है. मरने की बात क्यों न करूं?’’ ‘‘नहीं मरजाना नहीं, मैं तुम्हें बाबा से मांग लूंगा. पूरी जिंदगी की गुलामी कर लूंगा. अगर तब भी नहीं माने तो बापभाइयों से कहूंगा कि मरजाना के कदमों में पैसे का ढेर लगा दो, उसे हीरेजवाहरात में तोल दो. सब कुछ ले लो मगर मरजाना को दे दो.’’

‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन गुल यहां के कानून के मुताबिक यहां के लोग अपनी बेटियों को सरहद के पार नहीं देते. देख लेना, बाबा तुम से यही कहेगा.’’ ‘‘इस का मतलब मरजाना, मैं तुम्हें कभी नहीं पा सकूंगा?’’ ‘‘मैं ने कह तो दिया मेरा नाम मरजाना है और मुझे मरना आता है.’’ ‘‘मरने की बातें मत करो मरजाना,’’ गुल ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. अचानक कहीं से उस का कुत्ता गया और गुल के पांव चाटने लगा. गुल बोला, ‘‘देखो, एक दिन इस ने मेरी टांग पर काटा था और अब पैर चाट रहा है.’’ मरजाना बोली, ‘‘यह तुम्हारे प्रेम को समझ गया है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद दोनों घर पहुंचे तो गुल के पिता, भाई और मामा बैठे थे और चाय पी रहे थे. गुल को उन्होंने गले लगा लिया. गुल के चेहरे की रंगत और सेहत देख कर सब हैरत में पड़ गए. उन के आने से केस के बारे में पता चला, पुलिस ने दोनों पार्टियों का समझौता करा कर केस बंद कर दिया था. वे लोग गुल को लेने के लिए आए थे. रात में गुल ने बड़े भाई को सब बातें बता दीं. साथ ही अपना फैसला भी सुना दिया कि वह वापस नहीं जाएगा और अगर जाएगा तो मरजाना भी साथ जाएगी. 

उस की बातें सुन कर उस का भाई परेशान हो गया. अंत में यह तय हुआ कि मरजाना के पिता से रिश्ता मांग लिया जाए. बहुत झिझक के साथ मरजाना के बाबा से उस के रिश्ते की बात की तो उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं बहादुर आदमियों की इज्जत करता हूं. घर में शरण भी देता हूं लेकिन सरहद पार का पठान कितना भी बड़ा क्यों हो, हमारे कबीले के सरदारों का मुकाबला नहीं कर सकता. मैं किसी ऐसे आदमी को दामाद नहीं बना सकता, जो हमारे खून की बराबरी कर सके.’’

समर गुल के बाप ने मिन्नत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हजारों रुपयों का लालच दिया, लेकिन रुपयों की बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘हमें रुपयों का लालच दो, हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हम सरहद पार अपनी लड़की नहीं देंगे.’’ समर गुल ने ये बातें सुनीं तो उस की आंखों से नींद ही गायब हो गई. कुछ दिन पहले उस ने जो ख्वाब देखे थे, वे तिनके की तरह बिखर गए. इस का मतलब यह कि उसे बिना मरजाना के जाना होगा. अगली सुबह वे लोग अपने घर की ओर चल दिए. समर गुल ने आखिरी बार पीछे मुड़ कर देखा. वह रोने लगा. उस के भाई ने उसे गले से लगा लिया. उस का बाप, भाई और मामा उस के दुख को समझते थे. सब लोग चले जा रहे कि अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. वह गुल की ओर दौड़ा चला आ रहा था. उस के पीछे मरजाना दौड़ी आ रही थी.

‘‘मरजाना…’’ गुल जोर से चीखा. मरजाना उस के पास आ कर उस के सामने खड़ी हो गई. वह हांफते हुए बोली, ‘‘मैं ने कहा था न, मेरा नाम मरजाना है, मुझे मरना आता है.’’ गुल ने अपने बाप की ओर इशारा करते हुए  मरजाना से कहा, ‘‘यह मेरे बाबा हैं.’’ मरजाना उस के बाप के पैरों में गिर गई और बोली, ‘‘बाबा, मुझे भी अपनी बेटी बना लो, अब मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’ समर गुल का बाप उसे देख कर भौचक्का रह गया. उस ने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वह लड़की उस के बेटे के लिए अपना परिवार, अपना वतन सब कुछ छोड़ कर आ गई थी. लेकिन वह तुरंत संभल गया. उस ने सोचा कि यह उस आदमी की बेटी भी तो है, जिस ने मेरे बेटे पर बड़े उपकार किए हैं. 

गुल के पिता ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं. तुम ने मेरे बेटे से प्यार किया है, तुम जैसी लड़की लाखों में भी नहीं मिलेगी. लेकिन बेटी तुझे साथ ले जा कर मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा. लोग कहेंगे सरहद के पठान का क्या यही किरदार होता है कि जिस थाली में खाए उसी में छेद करे.’’ मरजाना गिड़गिड़ाई, ‘‘बाबा, मैं वापस नहीं जाऊंगी, आप के साथ ही चलूंगी. यह सब दुनियादारी की बातें हैं.’’

समर गुल के बाप ने मरजाना को गले लगा कर कहा, ‘‘बेटी, जरा सोचो तुम अपने बाप की इज्जत हो. अपने भाइयों की आन हो, जब दुनिया यह सुनेगी, नौरोज खान की बेटी घर से भाग गई है तो तुम्हारे बाप के दिल पर क्या गुजरेगी? एक बाप के लिए यह बात मरने के बराबर होगी.’’ उस ने कहा, ‘‘बाबा, रात मैं ने कसम खाई थी कि जो रास्ता मैं ने चुना है, उस से पीछे नहीं हटूंगी.’’

समर गुल ने बाप से कहा, ‘‘बाबा, मान जाइए. इस ने कसम खा ली है. अगर यह मेरी नहीं हुई तो अपनी जान दे देगी और फिर मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’’ बाप चुप हो गया और समर गुल का भाई व मामा भी चुप रहे. लगता था मोहब्बत जीत गई थी. मरजाना का कुत्ता बारीबारी से सब को सूंघ रहा था, जैसे सब को पहचानने की कोशिश कर रहा हो. समर गुल के बाप ने भीगी आंखों से मरजाना को गले लगा लिया और उस के सिर पर हाथ रख दिया.

शाम को इक्कादुक्का भेड़ें घर पहुंचीं, लेकिन उन के साथ मरजाना नहीं थी. कुत्ता भी गायब था, नौरोज का दिल बैठा जा रहा था. कुछ ही देर में पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि नौरोज की लड़की मरजाना घर से भाग गई.अगले दिन तक आसपास के कबीलों में यह खबर पहुंच गई. दोस्त या दुश्मन सब के लिए यह खबर दुख की थी. यह सवाल नौरोज के घर की इज्जत का ही नहीं, बल्कि पूरे कबीले की इज्जत का था. तक हर गांव से हथियारबंद लड़के पहुंचने शुरू हो गए. कबीले का जिरगा (कबीले की संसद) बुलाया गया और यह तय किया गया कि हर गांव से एक जवान चुना जाए और ये जवान चारों ओर फैल जाएं. इन्हें हर हाल में मरजाना को ले कर आना होगा. जो जवान खाली हाथ सरहद पर वापस आता दिखाई दे, उसे तुरंत गोली मार दी जाए. इसलिए 25 जवानों का दस्ता मालिक नौरोज के नेतृत्व में रवाना हो गया.

समर गुल के बाप ने अपने गांव पहुंचते ही समर गुल और मरजाना का निकाह करा दिया. अभी उन की शादी को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि उन के गांव को चारों ओर से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. गांव के लोग भी चुप नहीं थे. एक कबीले के सरदार की बेटी उन की बहू बनी थी, इसलिए गोली का जवाब गोली से दिया गया. 2 दिन तक फायरिंग होती रही, दोनों ओर से कई लोग घायल भी हुए लेकिन फायरिंग बंद नहीं हुई. मरजाना के हाथों की मेहंदी का रंग अभी ताजा था, उस में अभी तक महक थी. तीसरे दिन पुलिस की भारी कुमुक पहुंच गई और बहुत मुश्किल से फायरिंग पर काबू पाया गया. लेकिन नौरोज घेरा तोड़ने को तैयार नहीं हुआ. पुलिस औफीसर ने सोचा अगर इन पर सख्ती की गई तो यह कबीला मरनेमारने पर तैयार हो जाएगा. पुलिस अधिकारी ने समझदारी से काम लेते हुए दोनों ओर के 4-4 जवानों को चुना और उन की मीटिंग बैठा दी.

समर गुल के बाप ने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, मुझे उस का खेद है. हम पहले से ही मरजाना के पिता के सामने आंख उठा कर नहीं देख सकते. मैं उस से माफी मांगने के लिए भी पीछे नहीं हटूंगा. यह मैं किसी दबाव में नहीं कह रहा हूं बल्कि यह मेरे दिल की आवाज है. नौरोज ने हमारे ऊपर उपकार किया है, हम नौरोज से दगा करने वाले लोग नहीं हैं. अगर वह चाहे तो मरजाना के बदले मैं अपनी बेटी उस के बेटे से ब्याह सकता हूं. और अगर खून बहाना हो तो मेरे बेटे के बदले मैं अपना खून दे सकता हूं. मैं उन के साथ सरहद पर जा सकता हूं. वे मेरी हत्या कर के अपने दिल की भड़ास निकाल लें. जहां तक मरजाना का सवाल है, मेरा बेटा उसे भगा कर नहीं लाया है. हम ऐसा कर ही नहीं सकते. अब वह मेरी बहू बन चुकी है और उसे मैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करूंगा. बहू परिवार की इज्जत होती है.’’

जिरगे में मौजूद नौरोज खान ने कहा, ‘‘मुझे समर गुल के बाप का खून नहीं चाहिए. उस से मेरी प्यास नहीं बुझ सकती और ही उस की लड़की का रिश्ता चाहिए. उस से मेरी तसल्ली नहीं होगी. मुझे हीरेजवाहरात भी नहीं चाहिए, उन से मेरे घाव नहीं भर सकते. भागी हुई बेटी बाप की आत्मा में जो घाव लगा देती है, दुनिया की कोई दवा उसे ठीक नहीं कर सकती. थप्पड़ के बदले थप्पड़, हत्या के बदले हत्या की जा सकती है, लेकिन मैं दिल वालों से पूछता हूं, भागी हुई बेटी का बदला कोई किस तरह ले? मुझे समझाओ, मैं यहां क्या लेने आया हूं? समर के पिता को गोली मारूं, समर को गोली मारूं या अपनी बेटी को? कोई बतलाए कि मैं क्या करूं?’’ 

इतना कह कर मलिक नौरोज फूटफूट कर रोने लगा. सब ने पहली बार एक चट्टान को रोते देखा. मरजाना ने सब कुछ सुन लिया था. अपनी खुशी के लिए उस ने जो कदम उठाया था, वह अपने बाप के दुख के सामने कितना मामूली था. यह जीवन कितना अजीब है, दूसरों के लिए जीना, दूसरों के लिए मरना, उस ने समर गुल से कहा, ‘‘मेरे प्रियतम, अब मैं बहुत दूर चली जाऊंगी.’’

समर गुल कुछ नहीं बोला. उसे हक्काबक्का देखता रहा.

‘‘समर गुल,’’ उस ने रुंधी आवाज में कहा, ‘‘मुझे जाना ही होगा, मुझे मान लेना चाहिए. मैं बाप की इज्जत से खेली हूं. जीवन दूसरों के लिए होता है, मुझे आज इस का अहसास हुआ है.’’ ‘‘जो होना था, वह तो हो चुका.’’ समर गुल ने तड़प कर कहा, ‘‘गई हुई इज्जत तो गिरे हुए आंसुओं की तरह होती है, जो फिर हाथ नहीं आते.’’

‘‘हां, इज्जत वापस नहीं सकती, लेकिन मैं उस का प्रायश्चित करना चाहती हूं, मेरे जानम.’’ ‘‘तो तुम मरना चाहती हो?’’ ‘‘हां, मेरे बाप का कुछ तो बोझ हलका होगा, उस की आनबान को कुछ तो सहारा मिल जाएगा.’’ उस ने समर के सीने पर अपना सिर रख कर कहा, ‘‘यह मेरा आखिरी फैसला है, समर गुल. मेरे बाबा से कह दो, मैं उस के साथ जाने के लिए तैयार हूं.’’ जिरगे को बता दिया गया. समर गुल के बाप को बड़ी हैरत हुई. लेकिन मरजाना के बाप के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने राइफल की गोलियां निकाल कर फेंक दी, जंग खत्म हो गईवे लोग मरजाना को ले कर चल दिए. पूरा गांव उदास था. आई थी तो गई ही क्यों, हर एक की जुबान पर यही सवाल था. उस के जाने का कारण समर गुल के अलावा और कोई नहीं जानता था.

अगले दिन वे सरहद पर पहुंच गए. सब लोग सरहद पर रुक गए, लेकिन मरजाना नहीं रुकी. वह आगे बढ़ती रही. अचानक गोलियां की बौछार हुई, मरजाना तड़प कर मुड़ी और गिर पड़ी. हिचकी ली, एकदो बार मुंह खोला और शांत हो गई. उस की आंखें आसमान की ओर थीं, जैसे कह रही हों, ‘मेरा नाम मरजाना है, मुझे मर जाना आता है.’

हाय हैंडसम: प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

प्यार आजाद है, उम्र नहीं देखता. यह किसी भी उम्र में, किसी से भी हो सकता है.  कमसिन उम्र की गौरी दिल लगा बैठी थी अपनी उम्र से ढाईगुना बड़े व्यक्ति से. प्रेम में दीवानी गौरी का यह महज बचपना था या वाकई उस के प्यार में कोई अलग बात थी?

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मु?ो अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मु?ा से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मु?ो आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मु?ो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं ?ोंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मु?ो बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मु?ो ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मु?ो अपना नंबर दो न, मु?ो आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मु?ो मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मु?ो तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या सम?ा था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने ?ां?ालाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?ि?ाक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मु?ो फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मु?ो नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मु?ो उस को सम?ाना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मु?ो मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से ?ाठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

अगले दिन सुबह मैं बस में बैठ कर जा रहा था. मन किसी अनजाने भय से भयांकित था. सोच रहा था, पता नहीं क्या होगा? मेरे साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए. अगर ऐसा कुछ हो गया तो पत्नी और बच्चों को कैसे सम?ाऊंगा? मैं तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा, मेरी इज्जत का ढिंढोरा बीच बाजार पिट जाएगा? एक मन कह रहा था, मैं गौरी से न मिलूं, तो एक मन कह रहा था, मिल लो, मिलने से स्थिति साफ हो जाएगी. यही सब सोचते हुए मैं मुरादाबाद पहुंच गया. कपूर कंपनी चौराहे पर बस रुकी. मैं बस से उतरा ही था, गौरी मेरे सामने आ कर बोली, ‘हाय हैंडसम.’ मैं उसे देख कर सकपका गया.

‘जनाब, पूरे 9 बजे से यहां खड़ी आप का इंतजार कर रही हूं,’ उस ने जताया.

मैं ने बस, उस से इतना ही कहा, ‘तुम ने मु?ो पहचान लिया?’

‘हां तो, इस में चौंकने की क्या बात है. बौडीशौडी तो बिलकुल फोटो जैसी है. बस, सिर के बाल ही तो थोड़े सफेद हुए हैं.’

मैं खामोश ही रहा.

‘हम चलें?’ उस ने सड़क किनारे खड़ी अपनी लाल रंग की बड़ी कार की तरफ इशारा कर के कहा.

‘हम कार से चलेंगे?’

‘हां कार भी हमारी, रैस्त्रां भी हमारा और लस्सी भी हमारी होगी, आप हमारे मेहमान जो हो.’

मैं उस की कार में बैठ गया. कार वही चला रही थी. हम मुरादाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर बिजनौर रोड पर एक रैस्टोरैंट में आ कर बैठ गए. उस ने 2 कुल्हड़ वाली लस्सी और 2 सैंडविच का और्डर दे दिया. वहां बैठे लोग मु?ो और उस को अजीब निगाहों से घूरने लगे. मु?ो अजीब लगा, तो मैं ने अपने हावभाव ऐसे कर लिए जैसे मैं उस का कोई रिश्तेदार हूं. वह बहुत उतावली हो रही थी. टेप रिकौर्डर की तरह पटरपटर बोले जा रही थी. वह क्या बोल रही थी, मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था क्योंकि मेरा दिलोदिमाग उस की बातों में नहीं लग रहा था. मैं, बस, उसे देखे जा रहा था. फिर उस ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों में अपने दोनों गालों को रोका और कुहनियों को मेज पर टिका कर हसरत से मु?ो ऐसे देखने लगी जैसे कोई अनोखी चीज देख रही हो. फिर मुसकराने लगी.

मैं ने कहा, ‘अरे, ऐसे क्यों देख रही हो मु?ो?’

वह उसी तरह मुसकराते हुए बोली, ‘एक बात बोलूं हैंडसम, मेरे दिल ने आप को चाह कर कोई गलती नहीं की. आप तो कल्पना से भी अधिक स्मार्ट और हैंडसम हैं. दिन में 10 बार देखते हैं आप की तसवीर को.’

‘अच्छा, ऐसा क्या है उस तसवीर में?’ मेरे कहते ही वह अपने महंगे मोबाइल फोन पर मेरा फेसबुक अकाउंट खोल कर मेरी डीपी को मु?ो दिखाते हुए बोली, ‘‘हमारी निगाहों से देखिए अपनी इस तसवीर को. कैसे अपने दोनों हाथों को ऊपर कर के मंदमंद मुसकरा रहे हैं. इसी मुसकराहट ने हमारी जान ले ली.’’

मैं कभी अपनी फोटो देख रहा था, तो कभी उस को.

‘आप की लस्सी गरम हो रही है, पीजिए इसे,’ उस ने अधिकार से कहा.

मैं ने लस्सी का कुल्हड़ उठाया और एक घूंट भर कर कहा, ‘गौरी, तुम ने कहा था तुम मु?ा से मिलना चाहती हो, तो मैं तुम से मिल लिया. तुम ने यह भी कहा था मिलने के बाद मैं जो कहूंगा, तुम उस को मानोगी?’

‘तो कहिए न, हम आप की बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी,’ वह तपाक से बोली.

मैं ने कहा, ‘अब तुम न तो मु?ो कभी फोन करोगी और न ही फेसबुक पर मु?ो कोई मैसेज करोगी.’

‘आप से प्यार तो करूंगी या वह भी नहीं करूंगी. सुनिए हैंडसम, हम आप को अब न फोन करेंगे, न आप से फेसबुक पर चैट करेंगे लेकिन एक शर्त पर, एक बार, बस, एक बार आप हम से मुसकरा कर आई लव यू कह दीजिए.’

मैं ने मन में सोचा, यह लड़की बहुत जिद्दी है. ऐसे मानने वाली नहीं है. इस के लिए कुछनकुछ तो करना ही पड़ेगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम से सचमुच प्यार करने लगूंगा, तुम्हें आई लव यू भी बोलूंगा, लेकिन तब जब तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई करोगी और फर्स्ट डिवीजन से अपनी इंटर की परीक्षा पास कर लोगी. उस से पहले, न तुम मु?ो फोन करोगी और न ही मु?ा से चैट करोगी.’

‘ओके हैंडसम, हमें आप की शर्त मंजूर है. अब हम खूब जम कर पढ़ाई करेंगे. हालांकि, यह सब करना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा क्योंकि जो शर्त आप ने हमारे सामने रखी है वह हमारे लिए किसी सजा से कम नहीं है. फिर भी हम इस सजा को आप की मोहब्बत का तोहफा सम?ा कर स्वीकार कर लेते हैं, पर आप हमें भूल मत जाना.’

मेरे ड्राइवर ने मु?ो फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मु?ो अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मु?ो बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मु?ो यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मु?ो उस की भूल को सुधारना होगा.

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मु?ो याद आया, गौरी ने मु?ा से कहा था, अगर मु?ो जिंदा देखना चाहते हो तो मु?ो कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मु?ो थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से ?ाठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम सम?ा गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मु?ो गौरी से बात कर के उसे सम?ा देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मु?ो बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मु?ो किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मु?ो बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मु?ा से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत सम?ा लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मु?ा से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

बदरंग जिंदगी : दामोदर की अपनी जिंदगी कैसी थी

दामोदर को अहसास हुआ कि उसे फिर से पेशाब लग गया है. पता नहीं, उस का गुरदा खराब हो गया है या शायद कोई और बात है.

ऐसा नहीं है कि दामोदर ने डाक्टर को नहीं दिखाया. उस ने कई डाक्टरों को दिखाया, लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. उसे लगातार पेशाब आना बंद ही नहीं होता है. वह आखिर करे भी तो क्या करे? अब उस का डाक्टरों पर से जैसे विश्वास ही उठ गया है. उसे लगता है कि उस के मर्ज की दवा शायद अब किसी भी डाक्टर के पास नहीं है.

कभीकभी दामोदर को ऐसा भी लगता है कि वह एक ऐसे जंगल में पहुंच गया है, जहां से उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है और वह उसी जंगल में जिंदगीभर भटकता रह कर कहीं मरखप जाएगा.

दामोदर को अपनी जिंदगी में सबकुछ अच्छा लगता है, लेकिन यह अच्छा नहीं लगता कि उसे बारबार पेशाब आए. ज्यादा पेशाब आने से उसे बारबार काम छोड़ कर जाना पड़ता है. उस के कारखाने के मालिक इस हरकत पर बड़ी बारीक नजर रखते हैं और वह तब मन ही मन भीतर से कट कर रह जाता है. महीने की 6,000 रुपए तनख्वाह पाने वाला दामोदर पिछले एक साल से ढंग से काम नहीं कर पा रहा है, तभी तो मालिक उस पर गुर्राते हैं.

कभीकभी तो दामोदर को खुद भी लगता है कि वह काम छोड़ दे और अपने घर पर ही रहे, लेकिन अगर वह इस काम को छोड़ देगा, तो खाएगा क्या?

दामोदर के बेटे अमन की उम्र भी महज 19 साल है. इतनी कम उम्र में ही उस ने पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल ली है. ऐसी उम्र में दूसरे बच्चे जब बाप के पैसे पर कहीं किसी कालेज में मौज कर रहे होते हैं, उस समय अमन सारे घर को देखने लगा है. आखिर क्या होता है आजकल 6,000 रुपए में? आज अगर अमन को 15,000 रुपए नहीं मिल रहे होते, तो क्या दामोदर घर चला पाता? बिलकुल भी नहीं.

अमन हर महीने याद कर के दामोदर की दवा औनलाइन खरीद कर भेज देता है, नहीं तो अपनी तनख्वाह में तो दामोदर दवा तक नहीं खरीद पाता.

बाजार से दवा खरीदने जाओ तो बड़ी महंगी मिलती है. आजकल डाक्टर के केबिन के बाहर मरीजों से ज्यादा मैडिकल कंपनी के लड़के ही दिखाई देते हैं. मरीजों को ठेलतेठालते अंदर घुसने को बेताब दिखाई पड़ते हैं.

जो थोड़ीबहुत भी नैतिकता डाक्टरों में बची थी, वह इन कमबख्त दवा कंपनियों ने खत्म कर रखी है. रोज एक दवा कंपनी बाजार में उतर जाती है और उस के ऊपर दबाव होता है अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग का. लिहाजा, डाक्टर भी हथियार डाल ही देते हैं.

रोज एक नया चेहरा डाक्टर के केबिन में दाखिल हो जाता है और न चाहते हुए भी वह उन की दवा मरीजों को लिख देता है. दवाओं पर मनमाना दाम कंपनी लगाती है और कंपनी के टारगेट और मुनाफे के बीच फंस जाते हैं दामोदर जैसे लोग.

दामोदर को लगा कि वह कुछ देर और रुका, तो उस का पेशाब पैंट में ही निकल जाएगा. लोग उस की इस बीमारी पर बुरा मुंह बनाते हैं खासकर उस के साथ काम करने वाले.

दामोदर ने अपनी बहुत देर से दबी हुई इच्छा आखिरकार दिनेश को बताई. दिनेश उस का साथी है. रोज काम करने बैरकपुर से रघुनाथपुर वह दिनेश की मोटरसाइकिल से ही आताजाता है. उस के पास अपनी मोटरसाइकिल नहीं है. उस का घर दिनेश के घर के बगल में ही है.

‘‘दिनेश, मैं आता हूं पेशाब कर के,’’ इतना कह कर दामोदर निबटने के लिए जाने लगा.

‘‘अगर तुम्हें  पेशाब करने जाना ही था, तो कारखाना बंद होने से पहले ही चले जाते. और हां, अभी तुम थोड़ी देर पहले भी तो पेशाब करने

गए थे. पता नहीं, तुम को कितनी बार पेशाब लगता है…

‘‘एक हम लोग हैं, जो कारखाने में घुसने के बाद बहुत मुश्किल से 2 या ज्यादा से ज्यादा 3 बार जाते होंगे, लेकिन तुम को तो दिनभर में न जाने कितनी बार पेशाब लगता है. पता नहीं क्या हो गया है तुम्हें. किसी अच्छे डाक्टर को क्यों नहीं दिखाते?’’

दामोदर के चेहरे पर जमानेभर की उदासी उभर आई. उस के सूखे हुए बदरंग चेहरे पर नजर पड़ते ही दिनेश का दिल भी डूबने लगा और वह उस की परेशानी को सम?ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है जाओ, लेकिन जरा जल्दी आना. आज मुझे अपने बेटे को पार्क ले कर जाना है. वह पिछले कई हफ्तों से कह रहा है.

‘‘अखिर इन मालिक लोगों के लिए सुबह 9 बजे से रात को 9 बजे तक काम करतेकरते अपने बालबच्चों को कहीं घुमाने का समय ही नहीं मिल पाता.’’

‘‘हां, आता हूं,’’ कह कर दामोदर जल्दी से पान मसाले की एक पुडि़या फाड़ कर अपने मुंह में डालता हुआ पेशाब करने चला गया.

दामोदर सेठ घनश्याम दास के यहां पिछले 20 सालों से काम कर रहा था. दिनेश अभी नयानया है. दोनों मोटरसाइकिल पर बैठे और अपने घर की ओर चल पड़े.

बात के छोर को दिनेश ने पकड़ा, ‘‘तुम्हें यह बीमारी कब से हुई है? तुम इस का इलाज क्यों नहीं कराते हो?’’

दामोदर बोला, ‘‘अरे भाई, इलाज की मत पूछो. कुछ दिन पहले मैं अपनी सोसाइटी के गेट पर खड़ाखड़ा ही बेहोश हो कर गिर पड़ा था. वह तो बगल के एक दुकानदार ने देख लिया और सोसाइटी के गार्ड की मदद से मुझे मेरठ के एक हौस्पिटल में भिजवाया.

‘‘7 दिनों तक हौस्पिटल में रहा. एक दिन का 15,000 रुपए चार्ज था वहां का. केवल 7 दिनों में ही एक लाख रुपए से ज्यादा उड़ गए. फिर मेरे लड़के ने दूसरे हौस्पिटल में मुझे भरती कराया, तब जा कर अभी मेरी हालत में कुछ सुधार आया. अगर वह दुकानदार और गार्ड़ न होते, तो आज मैं तुम्हारे सामने जिंदा न खड़ा होता.’’

‘‘और सारा खर्चा कहां से आया? सेठजी ने कुछ मदद की या नहीं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘अरे, मुझे कहां होश था. लड़का बता रहा था कि उस ने मालिक को फोन कर के पैसे मांगे थे, लेकिन मालिक की सूई 2,000 रुपए पर अटकी हुई थी. बड़ी हीलहुज्जत के बाद उन्होंने 5,000 रुपए दिए थे.’’

‘‘बाकी के पैसों का इंतजाम कैसे हुआ?’’

‘‘कुछ अगलबगल से कर्ज लिया और बाकी मेरे ससुरजी ने तकरीबन 4 लाख रुपए दे कर मेरी मदद की. तब जा कर मेरी जान बची.’’

मोटरसाइकिल एक मैडिकल स्टोर के बगल से गुजरी. दामोदर ने दिनेश को गाड़ी रोकने के लिए कहा और वह लपकता हुआ मैडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गया. उस की दवा खत्म हो गई थी.

दामोदर ने दुकानदार को परची दिखाई. दुकानदार ने परची को बड़े गौर से देखा और दवा निकाल कर उस ने काउंटर पर रख दिया और दामोदर से बोला, ‘‘इस बार भी कंपनी ने दवा का दाम बढ़ा दिया है. पिछली बार यह 250 रुपए की थी, अब 270 रुपए लगेंगे.’’

दामोदर ने जेब में हाथ डाला और पैसे गिने. उस के पास 200 रुपए थे. उसी में उसे रास्ते में घर के लिए एक लिटर दूध भी लेना था. पैसा नहीं बचेगा.

दामोदर ने दुकानदार से कहा, ‘‘फिलहाल तो मुझे 2 दिन की 2 गोली दे दो, बाकी जब तनख्वाह मिलेगी, तब आ कर ले जाऊंगा.’’

दवा ले कर बाकी पैसे दामोदर ने जेब के हवाले किए और वापस आ कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया. रास्ते में उस ने एक लिटर दूध भी लिया.

घर पहुंच कर दामोदर ने हाथमुंह धोए और पलंग पर लेट गया. तब तक उस की पत्नी रुचि चाय बना कर ले आई. एक प्याली उस ने दामोदर को दी और दूसरी प्याली खुद ले कर चाय पीने लगी.

चाय पीतेपीते रुचि बोली, ‘‘आज मकान मालिक आया था और घर का किराया मांग रहा था. कह रहा था कि 2 महीने का किराया तो पूरा हो ही गया है और अब तीसरा महीना भी लगने वाला है. आप लोग जल्दी से जल्दी किराया दीजिए, नहीं तो घर को खाली कर दीजिए.’’

‘‘यह हरीश भी अजीब आदमी है. वह जानता है कि हम लोग दानेदाने को तरस रहे हैं. एक तो राशन की परेशानी, उस पर हर महीने का किराया.

‘‘इन ढाई महीनों में मैं पहले ही अपने जानपहचान के सभी लोगों से कर्ज ले चुका हूं. उस को भी सोचना चाहिए. दुकान बंद है. जब मालिक से पैसा मिलेगा, तब उस को किराया भी मिल ही जाएगा. हम कौन सा भागे जा रहे हैं?’’

दामोदर को लगा जैसे उस के सीने पर किसी ने बहुत भारी पत्थर रख दिया हो, जैसे उस की सांस फूलने लगी हो और उस का दम घुट जाएगा, वह वहीं पलंग पर खत्म हो जाएगा. लिहाजा, वह उठ कर पलंग पर बैठ गया.

‘‘आज मां का फोन भी आया था. कह रही थीं कि एक बार में न सही, किस्तों में ही 4 लाख रुपए थोड़ेथोड़े कर के लौटा दे. मेरी छोटी बहन निम्मो की शादी तय हो गई है. अगले साल कोई अच्छा सा लगन देख कर पिताजी निम्मो की शादी कर देना चाहते हैं. तुम से सीधेसीधे कहते नहीं बना तो उन्होंने मां से फोन कर के कहलवाया है,’’ रुचि ने डरतेडरते धीरे से कहा.

‘‘ठीक है, उन का भी कर्ज हम लोग चुका देंगे, लेकिन थोड़ा समय चाहिए,’’ दामोदर छत को घूरते हुए बोला.

रात काफी गहरा चुकी थी. रुचि कब की सो गई थी, लेकिन दामोदर को नींद नहीं आ रही थी. रहरह कर वह बदरंग हो चुकी दीवार और छत को घूरता जा रहा था. उसे कभीकभी यह भी लगता है कि दीवार और छत की तरह ही उस की जिंदगी भी बदरंग हो गई है. एकदम बेकार पपड़ी छोड़ती और सीलन से भरी हुई.

क्या पाया आज दामोदर ने 55 साल की उम्र में? कुछ भी तो नहीं. ताउम्र खटता रहा, लेकिन उस के हाथ क्या लगा? जीरो. एक ऐसी जिंदगी, जो खुशी से ज्यादा उसे दुख ही देती रही.

अचानक दामोदर को लगा कि उसे फिर से पेशाब लग गया है, तो वह उठ कर फारिग होने चला गया. आ कर वापस लेटा तो रुचि की नींद खुल गई.

रुचि ने उबासी लेते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ? नींद नहीं आ रही है क्या?’’

‘‘नहीं. लगता है कि पलंग में खटमल हो गए हैं और मुझे काट रहे हैं,’’ दामोदर बिछौना ठीक करता हुआ बोला.

रुचि ने ‘अच्छा’ कहा और उबासी लेते हुए फिर सो गई. दामोदर के बगल वाला कमरा उस की बेटी प्रीति का है. पापा के आने की आहट पा कर उस ने जल्दी से अपने कमरे की बत्ती बंद कर ली, लेकिन दामोदर के दिमाग में एक नई चिंता ने घर करना शुरू कर दिया.

आखिर इस साल प्रीति का 25वां लगने वाला है. आखिर कब तक जवान लड़की को कोई घर में रखेगा. कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो…

तमाम चिंताओं के बीच दामोदर रातभर करवटें बदलता रहा, लेकिन उसे नींद नहीं आई.

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