मुझे लगा कि मुझे देखते ही वह गुस्से से भर कर उलाहना देगी, लेकिन उलाहना तो दूर शिकायत करना भी उस की फितरत में नहीं था. मैं उसे तब से जानता हूं, जब वह फ्रौक पहन कर पीठ पर बस्ता टांगे उछलतीकूदती स्कूल जाती थी.
इस दुनिया में नहीं रहे मेरे दोस्त की एकलौती बहन रिया पोस्ट ग्रेजुएट होते ही शादी के रेशमी धागे में बांध दी गई.
रिया नई दुनिया के मीठे सपनों को पलकों पर सजा भी नहीं पाई थी कि एक राज खुला. उस का पति मैट्रिक फेल ही नहीं था, बल्कि शराबी और सट्टेबाज भी था.
रिया 6 साल से तंग गली के झोंपड़ेनुमा मकान में आंसुओं से भीगती रही और अपने गरम गोश्त को नुचते हुए देख कर भी अपनी जबान पर सौ ताले लगा लेती.
जुल्म के मुंह में लंबी जबान होती है न, पति का मुंह खुलता तो रिया के मरहूम भाई और मांबाप के लिए गालियों का भभका फूटता.
2 बच्चे, भूख का जमघट और चुभते शब्दों का जहर उस समय कहर बन कर टूटा, जब तलाक का भयानक धमाका गोली की तरह रिया के कानों में धंस गया. वह किरचियों में बिखर गई.
रिया की सिसकियां सुन कर मैं यादों से बाहर लौट आया.
‘‘क्या बात है? आज तुम बहुत परेशान लग रही हो रिया?’’ मैं ने हमारे बीच खिंची खामोशी की लंबी लकीर को चीरते हुए पूछा.
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कुछ देर तक तो वह अपनी बड़ीबड़ी आंखों की पलकों में आंसुओं की लडि़यां समेटे मुझे बड़ी बेबसी से देखती रही, फिर इतना ही बोल पाई, ‘‘कैलाश भाई, जिया साहब का इंतकाल हो गया.’’