लेखक- धीरज राणा भायला

शायरा और सुहैल एकसाथ खेलते बड़े हुए थे. उन्होंने पहले दर्जे से 7वें दर्जे तक एकसाथ पढ़ाई की थी. शायरा के अब्बा बड़ी होती लड़कियों के बाहर निकलने के सख्त खिलाफ थे, इसलिए उसे घर बैठा दिया गया.

उस समय शायरा और सुहैल को लगा था, जैसे उन की खुशियों पर गाज गिर गई हो, मगर दोनों के घर गांव की एक ही गली में होने के चलते उन्हें इस बात की खुशी थी कि शायरा की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी वे दोनों एकदूसरे से दूर नहीं थे.

उन दोनों के अब्बा मजदूरी कर के घर चलाते थे, मगर माली हालात के मामले में दोनों ही परिवार तंगहाल नहीं थे. शायरा के चाचा खुरशीद सेना में सिपाही थे, बड़ी बहन नाजनीन सुहैल के बड़े भाई अरबाज के साथ ब्याही थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और बैंगलुरु में रहते थे. शायरा का एकलौता भाई जफर था, उस से बड़ा, जिस की गांव में ही परचून की दुकान थी.

सुहैल 3 भाइयों में बीच का था. अरबाज बैंगलुरु में सैटल था. गुलफान और सुहैल अभी पढ़ रहे थे. सुहैल खूब  मन लगा कर पढ़ रहा था, ताकि सेना में बड़ा अफसर बन सके.

स्कूल से आते ही सुहैल का पहला काम होता शायरा के घर पहुंच कर उस से खूब बातें करना. उस समय घर में शायरा के अलावा बस उस की अम्मी हुआ करती थीं.

शायरा कोई काम कर रही होती तो सुहैल उसे बांह पकड़ कर छत पर ले जाता. जब वे छोटे थे, तब उन की योजनाओं में गुड्डेगुडि़यों और खिलौनों से खेलना शामिल था, मगर अब वे बड़े हो गए थे तो योजनाएं भी बदल गई थीं.

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