मैं सिलाईकढ़ाई के लिए अपनी संस्था खोलना चाहती हूं, कृपया सुझाव दें

सवाल

मैं 31 साल की एक कुंआरी लड़की हूं. मैं सिलाईकढ़ाई में माहिर हूं और अपनी एक संस्था बना कर इस काम को आगे बढ़ाना चाहती हूं. साथ हीमैं चाहती हूं कि गरीब घर की लड़कियां यह काम सीख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं. इस काम की शुरुआत कैसे की जाए?

जवाब

आप अपना छोटा सा सैंटर बना कर इस की शुरुआत कर सकती हैं. इस के लिए 2-4 मेहनती लड़कियों को जोड़ें और काम शुरू कर दें. इसे 25-30 हजार की मामूली रकम से भी आप शुरू कर सकती हैं.

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शुरुआती दिक्कत काम का जुगाड़ करने और कपड़े बेचने की आएगी. इस के लिए आप को संबंध बढ़ाने होंगे. छोटे स्कूलों की यूनिफौर्म सिलने का काम हासिल करें और क्वालिटी का काम कर के दें. इस से कामयाबी मिलेगीक्योंकि आप का इरादा नेक है. ह्वाट्सएप ग्रुप बना कर या शहर में अपनी संस्था के परचे बांट कर भी काम मिल सकता है. 

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‘मसान’ एक्ट्रेस निहारिका रायजादा लेकर आयी हैं कोरोना वॉरियर्स के लिए ये गाना

अपने जमाने के मशहूर संगीतकार स्व. ओ. पी. नैय्यर की पोती तथा असल जिंदगी में एक कार्डियोलॉजिस्ट- साइंटिस्ट निहारिका रायजादा बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं. वह अभिनेत्री भी हैं. वह ‘मिस इंडिया यूके 2010’ की विजेता तथा ‘मिस इंडिया वर्लडवाइड 2010’की रनर-अप भी हैं.

निहारिका रायजादा को बंगाली फिल्म‘दामादो’ के अलावा ‘मसान‘, ‘6-5=2‘, ‘एलोन’,‘बेबी’, ‘टोटल धमाल’ व अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘सावित्री वारियर्स’ में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं. इतना ही नही वह जल्द प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘सूर्यवंशी’ में भी अभिनय करते हुए नजर आएंगी. तो वहीं निहारिका रायजादा अपनी निजी जिंदगी में कोरोना महामारी के दौरान ‘कोविड 19’के हजारों मरीजों का इलाज भी कर चुकी हैं.

Niharika-Raizada

‘‘हर महिला किसी वॉरियर से कम नहीं होती है.‘‘ऐसा मानने वाली निहारिका रायजादा अब कोरोना के सभी वॉरिअर्स के लिए एक गाना लेकर आयी हैं. इस गाने में उनके साथ शम्पा गोपीकृष्ण भी नजर आएंगे. इस गाने को स्वनिल कुमार ने निर्देशित किया है तो वहीं इसे रिशभ पुथरन मे बड़ी खूबसूरती के साथ फिल्माया है.

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लोगों को जीने और लड़ने के लिए प्रेरित करते इस गाने की धुन पर निहारिका और शम्पा ने लाल परिधानों में अपने हाव-भाव के जरिए शक्ति, सशक्तिकरण और कोमलता को दर्शाने की कोशिश की है, जो लाल रंग की अपनी अनूठी पहचान भी है.

विश्व की कई भाषाओं की फिल्मों में अभिनय कर चुकीं व कई भाषाओं पर अपना अधिकार रखनेवालीं निहारिका रायजादा कहतीं है- ‘‘इस गाने के बोल हमें लोगों की बातों पर ध्यान देने की बजाय अपने दिल की आवाज को सुनने के लिए प्रेरित करते हैं. यह गाना जिंदगी को अपनी ही धुन में जीने, खुशनुमां यादें बनाने व उन्हें सहेजने और हर लम्हे को उन्मुक्त ढंग से जीने की प्रेरणा भी देता है.जिंदगी भले ही आपको मुक्के मारे, लेकिन हमें गिरकर संभलना और संभलकर उठना ही तो सीखना है.’’

इसे गाने के संदर्भ में निहारिका कहतीं हैं-‘‘मैं इस गाने से खुद को जुड़ा हुआ पाती हूं. क्यों यह गाना लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार करता है और इस मुश्किल घड़ी में लोगों को लड़ने का हौसला देता है. मेरे लिए नृत्य अंधेरे में रौशनी के समान है.

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मैं चाहती हूं कि किसी तरह से मैं भी लोगों की जिंदगियों को उजालों से भरने में उनकी कोई मदद कर सकूं. इस महामारी में वैक्सीन, ऑक्सीजन और स्टाफ की कमी के बावजूद सभी लोग अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे हैं.’’

लोगों के दिलों को धड़काने वाली अदाकारा निहारिका कहती हैं, ‘‘ये ऐसी आपदा है जिसने लोगों के दिलों को एक-दूसरे के करीब लाना है.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: सीरत की जिंदगी से कार्तिक होगा दूर, आएगा नया ट्विस्ट

स्टार प्लस का चर्चित सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिन धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. तो चलिए बताते हैं शो के लेटेस्ट एपिसोड के बारे में.

सीरियल के बीते एपिसोड में आपने देखा कि कार्तिक और सीरत की सगाई से रणवीर काफी दुखी है. रणवीर अपने भवनाओं पर काबू नहीं कर पाता है और वह एक्सीडेंट का शिकार हो जाता है. सीरत उसे बचाने के लिए भागती है और कार्तिक के साथ उसे अस्पताल पहुंचाती है.

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सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड में ये दिखाया गया  कि सीरत और रणवीर के बीच जबरदस्त लड़ाई हुई. इस लड़ाई के बीच दर्शकों को कई सवाल-जवाब देखने को मिला. इन सवालों के सामने रणवीर की बोलती बंद हो गई. लेटेस्ट एपिसोड के अनुसार सीरत, रणवीर से अपने सभी सवालों के जवाब मांगेगी और पूछेगी कि आखिर रणवीर उससे दूर हुआ ही क्यों ?

 

खबर यह आ रही है कि सारे गिले-शिकवे दूर करने के बाद रणवीर और सीरत एक हो जाएंगेशो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या रणवीर और सीरत के बीच होने वाली बातचीत के बाद क्या कार्तिक इन दोनों की जिंदगी से दूर हो जाएगा ?

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Ghum Hai KisiKey Pyaar Meiin: विराट को देखकर फूटफूट कर रोई सई तो पाखी का हुआ बुरा हाल

स्टार प्लस का सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो मे खूब धमाल हो रहा है. सीरियल के बीते एपिसोड में आपने देखा कि सई, विराट से मिलने जाती है तो पाखी कहती है कि विराट तय करेगा कि उससे कौन मिल सकता है. तो सई कहती है कि चाहे जो भी हो, मैं जाने से पहले विराट से जरूर मिलूंगी. आईए आपको बताते है सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड के बारे में.

पुलकित, सई से कहेगा कि तुम विराट से मिलने के लिए स्वतंत्र हो और तुम्हें कोई नहीं रोक सकता. ये बात सुनकर पाखी जल-भुन जाती है. तो वहीं सई विराट के कमरे में जाती है. वह उसकी हालत देखर बुरी तरह टूट जाती है.

 

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सई कान पकड़ कर विराट से माफी मांगती है और कहती है कि जब आपने मुझे कॉल किया तो मैंने आपका फोन नहीं उठाया. वह इस बात के लिए काफी दुखी होती है.  वह विराट से ये भी कहती है कि मेरे लिए मेरा आत्म सम्मान सबसे ज्यादा मायने रखता है लेकिन आपन मुझे नॉर्मल होने के लिए कुछ समय दे सकते थे.

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वह आगे कहती है कि लेकिन मुझे लगता है कि आप मुझसे मिलना नहीं चाहते. लेकिन मैं कल आपको देखने के लिए फिर आऊंगी. साई बाहर आकर पाखी से कहती है कि अभी मैं जा रही हूं लेकिन कल मैं  फिर से वापस आऊंगी लेकिन अगर विराट मुझसे मिलने के लिए मना कर देंगे तो वह कभी नहीं लौटेगी.

अब सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या विराट, सई को अपने पास से मना करता है ये नहीं?

मैं कराटे खेल में अपनी करियर बनाना चाहता हूं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 15 साल का एक गरीब घर का लड़का हूं. मुझे कराटे खेल से बड़ा लगाव है और इस कला में मैं कई मैडल भी जीत चुका हूं. मैं इस खेल में आगे जाना चाहता हूं, पर मुझे इस की ज्यादा जानकारी नहीं है. मुझे सही राह दिखाएं.

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जवाब

आप अपने शहर के खेल एवं युवा कल्याण विभाग जा कर संपर्क करें या फिर स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर से जानकारी हासिल करें. अगर कोई कोच मिल जाएतो उस से सीखें.

कोई बड़ा प्राइवेट स्कूल आप के कोच का खर्च उठा सकता है. इसे स्पौंसर करना भी कहते हैं. इस के लिए आप अपने मैडल और सर्टिफिकेट ले कर प्राइवेट स्कूलों के प्रिंसिपलों से मिल कर अपनी ख्वाहिश जाहिर करें.

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कोरोना: साधु संत, ओझाओं के चक्कर में!

कोरोना कोविड 19 का भयावह रूप आज देश देख रहा है. आज वैज्ञानिक भी इस संक्रमण के सामने असहाय हैं‌ और एक गाइडलाइन जारी कर दी गई है. ऐसे में देश में कुछ साधु, संत, ओझा, गुनिया ज्ञान बघार रहे हैं. और एक तरह से कानून को चैलेंज करते हुए बकायदा सोशल मीडिया में वीडियो वायरल करके अपनी बात प्रसारित कर रहे हैं.

जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि आज भी हमारे देश में किस तरह साधु संत और ओझाओं की तूती बोल रही है. होना यह चाहिए कि ऐसे लोगों पर शासन प्रशासन तत्काल लगाम लगाए, ताकि कोई भी कुछ मनगढ़ंत ज्ञान बघार करके लोगों की जान का दुश्मन न बन सके.

आज हालात इतने गम्भीर हो रहे हैं कि यह साधु संत झूठे ही कोरोना से बचाव के दावे करके, एक तरह से लोगों की जान सांसत में डालने का काम कर रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ में इन दिनों एक अनाम तिलकधारी साधु का वीडियो वायरल है, जो बड़े ही धीरे गंभीर वाणी में नींबू के दो चार रस के प्रयोग की सलाह दे रहा है, यह वीडियो बड़ी तेजी से गांव गांव पहुंच रहा है. लोग इस गेरुआ वस्त्र धारी के बताए हुए बातों में विश्वास भी कर रहे हैं जो कि सौ फीसदी झूठ के अलावा कुछ भी नहीं है.

वायरल वीडियो में कथित साधु! कि दावा है – ‘एक नींबू लो और उसके रस की दो-तीन बूंदें अपनी नाक में डालें…. इसे डालने के महज 5 सेकेंड के बाद आप देखेंगे कि आपका नाक, कान, गला और हृदय का सारा हिस्सा शुद्ध हो जाएगा.’
वीडियो में गेरूए कपड़ा पहने साधु कह रहा है- ‘आपका गला जाम है, नाक जाम है, गले में दर्द है या फिर इनफेक्शन की वजह से बुखार है, ये नुस्खा सारी चीजें दूर कर देगा. आप इसका प्रयोग जरूर कीजिए, मैंने आज तक इस घरेलू नुस्खे का उपयोग करना वालों को मरते हुए नहीं देखा है. यह नुस्खा नाक, कान, गला और हृदय के लिए रामबाण है. बाकी आपको जो करना है कीजिए लेकिन एक बार इसे जरूर आजमाइए.

यह साधु इतने भोलेपन से अपनी बात कह रहा है कि लोग सहज ही इसे मान सकते हैं. क्योंकि सोशल मीडिया में प्रसारित ऐसे लोगों के झूठे वायरल वीडियो की कोई काट सरकार के पास नहीं है और न ही प्रशासन कोई सख्त कार्रवाई कर पाता है.

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झूठ फैलाने का माध्यम बना सोशल मीडिया….!

जैसा कि हम जानते हैं सोशल मीडिया आज लोगों तक बात पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम मंच बन चुका है.

मगर जैसा की कहावत है किसी भी चीज की अच्छाई और बुराई दोनों होती है सोशल मीडिया की भी यही सच्चाई है इसका प्रयोग कई जगह नकारात्मक ढंग से भी किया जाता है. प्रणाम स्वरूप झूठ बड़ी तेजी से फैलता है और यह लोगों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. ऐसे में नींबू की चार बूंद से कोरोना के इलाज का दवा यह बता जाता है कि किस तरह सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया जा रहा है. इसलिए जहां सरकार को इसके लिए कुछ कठोर नियम बनाने चाहिए वहीं लोगों में भी यह समझ होनी चाहिए कि सोशल मीडिया में प्रसारित हर बात का तथ्य सही नहीं होता उसे हम अपने नीर क्षीर बुद्धि से समझे कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं है. दरअसल कई संदर्भ आ चुके हैं जब सोशल मीडिया में प्रसारित नुस्खों के कारण लोगों की जान पर बन आई.

एक्शन और जागृति जरूरी

सोशल मीडिया में कुछ भी अपने अधकचरे ज्ञान से परोस देना समझदारी नहीं है. वस्तुत: लोगों का हित सोचते सोचते लोग बुरा कर बैठते हैं. इसकी प्रमुख वजह है हमारे देश ने बहुतायत लोग अशिक्षित हैं और अफवाह बाजी में सिद्धहस्त हैं. ऐसे लोग अपने आप को परम ज्ञानी समझते हैं. और साथ ही कुछ लोग अपने प्रचार प्रसार के लिए और इसे एक धंधा बनाने के लिए भी झूठे अध कचरे ज्ञान को प्रसारित करने की चेष्टा करते है. देश में बहुसंख्यक लोग आज भी गांव में रहते हैं, वही शहरों में भी साधु संत के चोले में आकर के कुछ भी कहने वाले लोगों के लिए बड़ी श्रद्धा और अंधविश्वास है, परिणाम स्वरूप इसका नुकसान भी लोग उठाते हैं.ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया में आ रहे किसी जानकारी को आंख बंद करके कभी भी स्वीकार ना करें. इसके लिए वैज्ञानिक सच्चाई को जानने समझने और मानने में ही आपका भला है.

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Serial Story- अपनी ही चाल में फंस गया अकबर: भाग 1

प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

-ए. सलीम वसला

अकबर ने बीटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद सोचा था कि उसे जल्दी ही कोई न कोई प्राइवेट जौब मिल जाएगी और उस के परिवार की स्थिति सुधर जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 10 महीने तक कई औफिसों में इंटरव्यू देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. ऊपर से घर की जमापूंजी भी खर्च हो गई.

अकबर के परिवार में उस की मां के अलावा 2 छोटे भाई जावेद और नवेद थे, जिन की उम्र 16 और 12 बरस थी. वे भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे. घर का खर्च चलाने के लिए अब मां को अपने जेवर बेचने पड़ रहे थे. ऐसी स्थिति में अकबर समझ गया कि अब उसे कुछ न कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा, वरना परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.

अकबर अपने ही विचारों में डूबा सड़कें नाप रहा था, तभी किसी ने उस का नाम ले कर पुकारा. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा, ‘‘अरे इकबाल, तुम!’’ दोनों गर्मजोशी से गले मिले.

इकबाल हाईस्कूल में उस का मित्र बना था और 12वीं कक्षा तक साथ था. उसे पढ़नेलिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर अकबर को अपने पिता के कारण बीटेक में दाखिला लेना पड़ा. मगर जब अकबर बीटेक के तीसरे साल में था, तभी उस के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

अकबर के पिता एक प्राइवेट औफिस में एकाउंटेंट थे. उन के मरने के बाद जो पैसा मिला, वह अकबर की पढ़ाई में लग गया था.

12वीं कक्षा पास करने के बाद इकबाल कहां चला गया, उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई. और आज 5 साल बाद इकबाल उस के सामने था.

अकबर के बदन पर जहां मामूली कपड़े थे, वहीं इकबाल ने बढि़या सूट पहन रखा था. उस के रंगढंग बदल गए थे. दोनों एक होटल में बैठ कर बातें करने लगे, एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताने लगे.

अकबर ने कहा, ‘‘बीटेक करने के बाद मैं एक औफिस से दूसरे औफिस में धक्के खा रहा हूं. यही नहीं, मेरी मां की तबीयत खराब रहती है, उन्हें शुगर की बीमारी है. मां ने एक कंपनी में 2 लाख रुपए फिक्स करा दिए थे और 4 साल बाद 4 लाख रुपए मिलने थे.

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‘‘लेकिन वह कंपनी साल भर बाद ही लोगों से करोड़ों रुपए ले कर चंपत हो गई. इस घटना ने मुझे बड़ा विद्रोही बना दिया है. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?’’

‘‘मैं ने भी तेरी तरह बहुत धक्के खाए हैं. कुछ नहीं मिलता इन नौकरियों में. बस, घर की दालरोटी चल सकती है.’’ इकबाल के स्वर में कठोरता शामिल हो गई थी, ‘‘अगर तुम शान से जिंदगी बिताना चाहते हो तो कल शाम को मुझ से मिलो.’’

फिर उस ने अखबार के एक टुकड़े पर कोई पता लिख कर दे दिया.

अकबर ने वह पर्ची ले कर अपनी जेब में रख ली. इकबाल आगे बोला, ‘‘मेरे पास एक औफर है. अगर मंजूर हो तो वहीं बता देना और अगर न हो तो तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते.’’ उस के बाद अकबर और इकबाल अपनेअपने घरों की ओर चल पड़े.

अगले दिन इतवार था. अकबर को कहीं इंटरव्यू नहीं देना था इसलिए उस ने इकबाल को आजमाने का फैसला किया और उस के बताए हुए पते पर जा पहुंचा. मकान का गेट इकबाल ने ही खोला और उसे अंदर ले गया. चाय तैयार थी.

चाय का कप अकबर को देने के बाद इकबाल ने अपनी बात शुरू की, ‘‘देखो अकबर, मैं जानता हूं कि तुम एक शरीफ आदमी हो मगर अब शराफत का जमाना नहीं रहा. मैं ने भी बहुत धक्के खाए हैं तुम्हारी तरह.

‘‘शायद जिंदगी भर धक्के ही खाता रहता, अगर मुझे नासिर भाई न मिलते. क्या शानदार दिमाग है उन के पास. यकीन करो, मैं उन के साथ रह कर हर महीने एक लाख रुपए कमाता हूं और कभीकभी उस से भी ज्यादा.’’

इकबाल की बात सुन कर अकबर हैरान रह गया, ‘‘एक लाख…वह कैसे?’’

‘‘हम बड़े काम में हाथ डालते हैं. गाडि़यां, बाइक्स छीनते हैं. बड़ीबड़ी दुकानों में डकैती डालते हैं. बंगलों के अंदर घुस जाते हैं. एक महीने में 2-3 वारदातें भी कर लीं तो एक लाख आसानी से बन जाता है,’’ इकबाल बोला.

अकबर सन्न रह गया. वह जानता था कि बेरोजगारी के इस दौर में अपना हक छीनना ही पड़ता है, मगर इकबाल तो उस से भी ऊपर की चीज था. वह बोला, ‘‘मगर यार, इस में तो बहुत खतरा है. पकड़े जाने का और जान जाने का भी.’’

‘‘मेरी जान, खतरे के बगैर कोई खेल नहीं खेला जाता. वैसे हमारी तरह के लोग इसलिए पकड़े जाते हैं कि पुलिस को मुखबिरी हो जाती है या कोई साथी गद्दारी कर जाता है. लेकिन यहां अपने साथ ऐसा कुछ नहीं होता है. क्योंकि नासिर भाई पुलिस में हैं. वे सब संभाल लेते हैं.

‘‘पहले हम सिर्फ 2 लोग थे मगर अब हर वारदात में एक ऐसा बंदा जरूर रखते हैं जो अपने काम में पारंगत हो. जैसे पिछली बार हमारे साथ तिजोरियों का लौक तोड़ने वाला एक माहिर आदमी था,’’ इकबाल ने कहा.

‘‘तो ऐसा एक बंदा स्थायी रूप से क्यों नहीं रख लेते,’’ अकबर ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, हम ऐसा नहीं करते. हमारे ग्रुप की परंपरा है कि एक बंदा सिर्फ एक वारदात में साथ देता है. इस बार खेल बड़ा है, इसलिए भरोसे के आदमी की जरूरत है. हमें कंप्ूयटर का एक माहिर आदमी चाहिए.

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‘‘तुम ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है. अगर तुम हमारे साथ मिल जाओ तो हमारा काम बड़ी आसानी से हो सकता है. 3-4 करोड़ का खेल है. अगर कामयाब रहे तो 50 लाख तेरे, 50 लाख मेरे और बाकी नासिर

भाई के. अगर मंजूर है तो बताओ.’’ इकबाल बोला.

50 लाख की बात सुन कर अकबर की आंखें फैल गईं. अगर उसे कोई छोटीमोटी नौकरी मिल भी गई तो गुजारा भर ही हो पाएगा. और कहां 50 लाख, वह कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘मुझे कुछ वक्त दो.’’

‘‘हां, अभी काफी वक्त है. यह काम एक महीने बाद करना है और ये पैसे रख लो.’’ इकबाल ने 10-15 हजार रुपए निकाल कर अकबर की जेब में ठूंस दिए. फिर वह अकबर से बोला, ‘‘पैसों की परेशानी से दूर रह और अपना पहनावा ठीक कर. लेकिन बात बाहर न जाने पाए.’’

अकबर उस के स्वर में छिपी धमकी को समझ गया था. उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया. कुछ देर बाद वह ढेरों सोचों को दिमाग में समेटे अपने घर की ओर चल पड़ा.

घर पहुंच कर अकबर ने एक फैसला कर लिया था. अकबर ने मां को कुछ पैसे देते हुए कहा कि उस ने पार्टटाइम जौब जौइन कर ली है. उस के दिए पैसों से घर के हालात में सुधार हुए. मां के चेहरे पर छाए उदासी के बादल छंटने लगे. 3 दिन तक सोचविचार करने के बाद अकबर ने इकबाल के औफर पर हामी भर दी. इकबाल खुश हो गया.

मगर इकबाल का औफर इतना आसान नहीं था. फिर भी भूखों मरने से तो अच्छा ही था. वह इकबाल का साथ दे और अपने हालात को सुधारे.

Serial Story- अपनी ही चाल में फंस गया अकबर: भाग 2

प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

-ए. सलीम वसला

अगले दिन सबइंसपेक्टर नासिर अकबर से मिलने उसी घर में आया. वह आम पुलिस वालों की तरह हट्टाकट्टा था और उस के माथे पर जख्म का निशान था. नासिर के मिजाज में एक अजीब सी सख्ती थी, मगर बात करने का अंदाज नरम था. उस की बातें सुन कर अकबर के अंदर समाया भय लगभग खत्म हो गया था.

नासिर ने पूरी प्लानिंग इकबाल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘शहर के मेनरोड पर प्राइवेट बैंक की मेन ब्रांच है. यह ब्रांच इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यहां 3 शुगर मिल्स की पेमेंट जमा होती है. गन्ने के सीजन में यहां हर माह 3 से 5 करोड़ रुपए जमा होते हैं.

रकम के हिसाब से यहां सिक्योरिटी भी काफी सख्त है. शहर की एक एजेंसी उस बैंक को सिक्योरिटी उपलब्ध करा रही है. बैंक में 3 सिक्योरिटी गार्ड हैं, 2 बाहर और एक अंदर. उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है.

असल समस्या है उस एजेंसी के सिक्योरिटी कैमरे और अलार्म सिस्टम. उन्होंने बैंक के एक कमरे को विधिवत अपना सिक्योरिटी रूम बना रखा है, जहां एजेंसी की एक कर्मचारी लड़की काम करती है. मैं ने उसे खरीद लिया है,’’ नासिर ने गर्व के साथ कहा और आवाज दी, ‘‘शीजा.’’

थोड़ी ही देर बाद कमरे में एक मौडर्न लड़की दाखिल हुई. उस ने जींस पर एक हलकी सी शर्ट पहन रखी थी, जिस में उस के शरीर की कयामत बड़ी मुश्किल से कैद नजर आती थी. अकबर ने चौंक कर देखा. शीजा ने मुसकराते हुए इकबाल और अकबर से हाथ मिलाया.

जब शीजा अपनी कुरसी पर बैठ गई तो अकबर ने पूछा, ‘‘नासिर भाई, मेरा एक सवाल है. जब आप के पास शीजा मौजूद है तो फिर मुझे साथ मिलाने की क्या जरूरत थी? काम तो मेरा भी वही है जो शीजा करेगी.’’

अकबर की बात सुन कर नासिर मुसकरा दिया और बोला, ‘‘यार, तुम्हें हमारे ग्रुप की परंपरा तो बताई होगी इकबाल ने. हमारे साथ हर बार अपने काम का माहिर एक बंदा जरूर रहता है और रही शीजा की बात तो वह सिर्फ तुम्हारी मदद करेगी, असल काम तो तुम्हीं करोगे यानी पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे.

‘‘अगर शीजा यह काम करती है तो जाहिर है कि पुलिस वाले सब से पहले उसी पर हाथ डालेंगे. घटना के बाद इसे कहां हमारे साथ फरार होना है. तुम लोग रिकौर्डिंग गायब करोगे और सिक्योरिटी सिस्टम को नाकारा बनाओगे. बाकी सिक्योरिटी गार्ड्स के लिए मेरे पास एक प्लान है.’’

तभी इकबाल बोल पड़ा, ‘‘मगर भाई, हम नकाब पहन कर जाएंगे तो फिर सिक्योरिटी कैमरों की क्या समस्या?’’

‘‘यार इकबाल, तुम्हें याद नहीं कि पिछली वारदात में तुम्हारा नकाब एक आदमी ने खींच लिया था. इस के अलावा 2-3 वारदातों के दौरान सिक्योरिटी कैमरों में हमारी चालढाल भी रिकौर्ड हुई. इसलिए यह काम करना पड़ेगा. शीजा, तुम बताओ तुम्हारी सिक्योरिटी एजेंसी अपने गार्ड्स को कितनी तनख्वाह देती है?’’ सबइंसपेक्टर नासिर ने इकबाल की वो बात याद दिलाने के बाद शीजा से पूछा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा 20-22 हजार.’’ वह मुंह बना कर बोली.

‘‘…इस का मतलब है कि उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है,’’ नासिर ने कहा.

‘‘बिलकुल, बाहर वाले दोनों गार्ड्स खरीदे जा सकते हैं, क्योंकि वे उस नौकरी से तंग हैं. हां, अंदर वाला गार्ड ईमानदार बंदा है, उसे खरीदना मुश्किल है,’’ शीजा के पास पूरी जानकारी थी.

‘‘उस पर हम लोग काबू पा लेंगे,’’ इकबाल बोला.

यह मीटिंग लगभग एक घंटा चली. उन्होंने अपनी योजना के हर पहलू पर ध्यान दिया. उस के बाद वे इस वादे के साथ अपनेअपने घरों की ओर चल दिए कि वे इस प्लान की पूरी तरह रिहर्सल करेंगे. फिर अगले 20 दिन अकबर, इकबाल, शीजा और नासिर उस घर में इकट्ठे हो कर रोजाना एक घंटा अपने काम में लगे रहते.

इस दौरान नासिर ने बैंक के बाहर वाले दोनों गार्डों को अपने साथ मिला लिया था. वह एक चालाक पुलिस वाला था और अपना हर काम बखूबी निकालना जानता था. ठीक एक महीने बाद आखिर वह दिन आ पहुंचा, जिस की तैयारी हो रही थी.

सर्दियों का सूरज अपनी नर्म धूप लिए चमक रहा था. प्राइवेट बैंक की उस मेन ब्रांच में लंच का समय हो गया था लेकिन आज दोनों गार्ड्स गेट पर नहीं थे. थोड़ी देर पहले एक गार्ड खाना लेने के लिए चला गया था जबकि दूसरा गार्ड वाशरूम में था.

ठीक उसी समय एक सुजुकी कार बैंक के गेट पर आ कर रुकी. उस में सवार तीनों लोगों ने अपने चेहरों पर नकाब चढ़ा रखी थी और उन के हाथों में आधुनिक हथियार थे. वे दौड़ते हुए आगे बढ़े.

बैंक के अंदर घुसते ही उन्होंने गेट बंद कर लिया. अंदर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो नासिर द्वारा चलाई गई गोली उस की गरदन में सुराख कर गई. नासिर मैनेजर के औफिस की ओर बढ़ा जबकि इकबाल कैशियर के काउंटर की तरफ बढ़ गया था.

अकबर दौड़ता हुआ कंप्यूटर रूम की ओर बढ़ा. वहां शीजा के साथ एक अन्य आदमी बैठा था. उस ने उस के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे बेहोश कर दिया. कुछ देर बाद अकबर और शीजा ने सभी सिक्योरिटी कैमरों और अलार्म को निष्क्रिय कर दिया और उन की रिकौर्डिंग नष्ट कर दी.

इस के बाद अकबर ने शीजा के सिर पर पिस्तौल के दस्ते का वार कर के उसे भी बेहोश कर दिया. ठीक 10 मिनट बाद जब तीनों लोग सफलतापूर्वक डकैती डाल कर बाहर निकले तो नासिर के शिकंजे में मैनेजर की गरदन थी जबकि अकबर और इकबाल ने नोटों से भरे बैग उठा रखे थे. नासिर की पिस्टल की नाल मैनेजर की कनपटी से लगी हुई थी.

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बाहर के सिक्योरिटी गार्डों ने उन्हें देखते ही अपनी बंदूकें फेंक दीं. अगर वे गोली चलाते तो मैनेजर की जान जा सकती थी. तीनों लोग हवाई फायर करते हुए बाहर निकले.

मैनेजर को गाड़ी में बिठा कर इकबाल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी फिर

2-3 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद उन्होंने एक सुनसान जगह पर मैनेजर को गाड़ी से धक्का दे कर गिरा दिया और आगे बढ़ चले.

गाड़ी चोरी की थी, जो उन लोगों ने शहर से बाहर पहुंच कर एक जंगल में खड़ी कर दी. फिर आगे का रास्ता तीनों ने अलगअलग तय किया. नोटों के दोनों बैग नासिर अपने साथ ले गया था.

बैंक में पड़ी डकैती का मामला 3 हफ्तों बाद ठंडा पड़ गया. डकैतों के चेहरे पर नकाब होने के कारण कोई भी आदमी उन्हें नहीं पहचान पाया. इस के अलावा डकैतों ने ऐसा कोई सबूत घटनास्थल पर नहीं छोड़ा था कि उन का सुराग लगाया जा सकता.

वैसे जांच करने वाले पुलिस इंसपेक्टर ने बाहर के दोनों सिक्योरिटी गार्डों पर शक जाहिर किया था, मगर वह उन से कुछ उगलवा नहीं सका.

ठीक एक महीने बाद जाड़े की शुरुआत हो गई थी. ऐसी ही एक शाम  को अकबर उस किराए के मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए पहुंचा, जो नासिर और इकबाल का अड्डा था. यह कार्यक्रम भी पहले से तय था.

दोनों लोग कमरे में मौजूद थे. उन्होंने अकबर का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वे खूब खापी कर बैंक डकैती की कामयाबी का जश्न मना रहे थे.

उन्होंने अकबर से भी शराब पीने को कहा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. थोड़ी देर बाद नासिर ने इकबाल से कहा, ‘‘अकबर को जल्दी घर जाना होगा. जाओ, अंदर से बैग उठा लाओ.’’

इकबाल बैग उठा लाया. तब नासिर ने कहा, ‘‘कुल 2 करोड़ 75 लाख हाथ में आए हैं. दोनों गार्ड्स के हिस्से के 5-5 लाख उन्हें पहुंचा दिए गए हैं.

25 लाख शीजा के और 50 लाख तुम्हारे हैं. बाकी मेरा और इकबाल का हिसाब है.’’

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तभी अचानक अकबर की नजर अपने पीछे खड़े इकबाल पर पड़ गई, जिस ने पिस्टल निकाल कर अकबर की ओर तान दिया. यह देख कर अकबर का कलेजा मुंह को आ गया. वह हैरत से बोला, ‘‘यह क्या कर रहे हो इकबाल भाई. नासिर साहब, यह सब क्या है?’’

नासिर और इकबाल मुसकरा उठे.

‘‘हमारे गु्रप की परंपरा है कि हम हर वारदात में अपना साथी बदल देते हैं. तिजोरियों के माहिर की लाश समुद्र में डुबो दी थी. उस से पहले एक अन्य घटना में गाडि़यों का सामान चुराने वाला हमारे साथ था. उस की लाश इसी मकान के आंगन में दफन है.

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प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

-ए. सलीम वसला

‘‘अभी हाल में हम ने सरकारी खजाना लूटा था, जिस के लिए राइफल के एक निशानेबाज की जरूरत थी. बाद में हम ने उसे भी यहीं दफना दिया. यहां ऐसे ही कई हुनरमंद लोग दफन हैं. लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारी लाश का क्या किया जाए.

खैर, हम आपस में सलाह कर लेंगे. शीजा तो हमें 2-4 रात जन्नत की सैर कराएगी, फिर उस के बारे में सोचेंगे कि क्या करना है.’’

नासिर की बात सुन कर अकबर के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बारीबारी से नासिर और इकबाल से दया की भीख मांगी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अकबर शीजा के बारे में सोच रहा था. उस ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं.

फिर धांय की आवाज के साथ गोली चली. लेकिन अकबर को दर्द का अहसास नहीं हुआ. मगर इकबाल की चीख कमरे में गूंज उठी.

उस के दाएं हाथ में गोली लगी थी और पिस्टल उस के हाथ से छूट कर दूर जा गिरी थी. नासिर ने चौंक कर पीछे देखा. वहां रिवौल्वर हाथ में लिए शीजा खड़ी मुसकरा रही थी.

‘‘अकबर सौरी, मुझे कुछ देर हो गई. तुम ठीक तो हो न?’’ वह रिवौल्वर से इकबाल और नासिर को कवर करती हुई बोली.

शीजा को इस रूप में देख कर नासिर बौखला उठा था, जबकि इकबाल अपने जख्मी हाथ का खून रोकने की कोशिश कर रहा था. अकबर बोला, ‘‘हांहां, मैं ठीक हूं.’’

फिर वह आगे बढ़ कर शीजा के गले लग गया. तभी नासिर गुर्रा कर बोला, ‘‘ठीक है, खूब गले मिलो. लेकिन यहां से बच कर नहीं जा पाओगे.’’

‘‘यह बात तुम ने गलत कही, अभी देख लेना. खैर, तुम ने अपनी परंपरा बता दी, अब मेरी भी परंपरा सुन लो. मैं जिन पर शक कर लेता हूं, उन्हें उन की गलती की सजा जरूर मिलती है.’’ अकबर ने कुटिल स्वर में कहा.

नासिर बोला, ‘‘कौन सजा देगा मुझे… तुम?’’

फिर उस ने ठहाका लगाते हुए अपनी जेब की ओर हाथ बढ़ाया, तभी पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी तथा कई पुलिस वाले कमरे में घुस आए.

‘‘हैंड्सअप! मैं तुम्हें दूंगा सजा नासिर. कानून तुझे सजा देगा नमकहराम. तूने पुलिस विभाग को बदनाम कर दिया.’’ पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी ने गुस्से से कहा.

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पुलिस वाले नासिर और इकबाल को गिरफ्तार कर चुके थे. इकबाल और नासिर की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया.

दरअसल, अकबर और शीजा एक ही कालेज में 12वीं तक साथसाथ पढ़े थे तथा एकदूसरे से प्यार करते थे. लेकिन शीजा के पिता की अचानक मौत हो जाने पर उसे अपने गांव जाना पड़ा और वह वहीं रह कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगी थी जबकि अकबर ने बीटेक कंप्यूटर साइंस में दाखिला ले लिया था. इसी कारण दोनों बिछुड़ गए थे.

जब नासिर ने शीजा का अकबर से परिचय कराया तो वे एकदूसरे से अपरिचित बने रहे ताकि इकबाल और नासिर को कोई गलतफहमी न होने पाए. लेकिन वे उस के बाद एकदूसरे से बराबर मिलते रहे. दोनों को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वे नासिर और इकबाल का साथ देने को तैयार हो गए.

लेकिन बैंक डकैती के कुछ दिनों बाद जब बैंक के दोनों गार्ड्स की अचानक हत्या हो गई तो शीजा और अकबर को अपने बारे में सोचना पड़ा. नासिर और इकबाल ने अभी पैसों का बंटवारा नहीं किया था और कुछ दिनों बाद उन्हें उसी मकान में बुलाया था.

लेकिन अकबर को शक हो गया था कि वे लोग उसे और शीजा को नुकसान पहुंचाएंगे. इसलिए अकबर और शीजा पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी से मिले जो शीजा के दूर के मामा लगते थे.

उन्होंने सारी बात जफर जीलानी को बता दी. फिर शीजा और अकबर ने वैसा ही किया, जैसा जफर जीलानी ने उन से कहा था. इस घटना के बाद कई डकैतियों और लूटपाटों का परदाफाश हो गया तथा काफी मात्रा में रुपए और जेवरात बरामद हुए. कई लोगों के गायब होने की गुत्थी भी सुलझ गई, जिन्हें नासिर और इकबाल ने मौत के घाट उतार दिया था.

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पुलिस कमिश्नर जफर जीलानी शीजा और अकबर के व्यवहार तथा हिम्मत से बहुत खुश हुए. उन्होंने दोनों को वादामाफ गवाह बना दिया. जल्दी ही इकबाल और नासिर को सजा सुना दी गई. जबकि शीजा और अकबर को पुलिस के साइबर विभाग में नौकरी मिल गई.

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