Ghum Hai KisiKey Pyaar Meiin: पाखी की चाल होगी कामयाब, सई पर शक करेगा विराट

गुम है किसी के प्यार में इन दिनों लगातार नया ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे इस शो की रेटिंग लगातार बढ़ रही है और इस हफ्ते टीआरपी लिस्ट में दूसरा नम्बर मिला है. आइए आपको बताते हैं सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक के बारे में.

सीरियल के बीते एपिसोड में दिखाया गया था कि मिशन पर गोली लगने की वजह से विराट की हालत नाजुक है और वो इस वक्त अस्पताल में है. सई को जैसे ही विराट के हालत के बारे में पता चला, वह दौड़ी-दौड़ी विराट के पास चली आई.

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तो वहीं दूसरी तरफ पाखी ने उसे रोक लिया. इतना ही नहीं, उसे भला-बुरा भी कहा.  सई पाखी का ये रूप देखकर दंग रह जाती है.

 

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सीरियल  के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि पाखी और सई के बीच खूब लड़ाई होने वाली है. सई अपने हक के लिए लड़ेगी और  पाखी से कहेगी कि वह विराट की पत्नी है और उसका ध्यान रखेगी. सई की बातों को सुनकर पाखी का जल-भून जाएगी. तो वहीं सई  विराट के पास चली जाएगी.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि पाखी विराट के काम भरेगी और उससे कहेगी की जरूरत के वक्त पर सई ने भी उसका साथ नहीं दिया था. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि पाखी की बातों का असर विराट पर होगा और वह सई पर शक करेगा.

Mother’s Day Special: आंचल भर दूध

आखिर क्या गलती थी नसरीन की, यही कि वह 3 बेटियां पैदा कर चुकी थी? मगर एक दिन जब एक और पैदा हुई फूल सी बच्ची चल बसी तो घर के लोग गम नहीं, उसे एक परंपरा निभाने को मजबूर कर रहे थे…

बाहर चबूतरे पर इक्कादुक्का लोग इधरउधर बैठे हैं. सब के सब लगभग शांत. कभीकभार हांहूं… कर लेते. कुछ बच्चे भी हैं, कुछ न कुछ खेलने का प्रयास करते हुए….और इन्हीं बच्चों में नसरीन की 3 बेटियां भी हैं.

सुबह से बासी मुंह… न मुंह धुला है, न हाथ. इधरउधर देख रही हैं. किसी ने तरस खा कर बिस्कुट के पैकेट थमा दिए. ये नन्हीं जान सुखदुख से अनजान हैं. इन्हें क्या पता कि क्या हुआ है?

घर के अंदर नसरीन को समझाया जा रहा है कि वह दूध बख्श दे, पर उस से दूध नहीं बख्शा जाता. ऐसा लगता है जैसे उस की जबान तालू से चिपक गई है या उस के होंठ परस्पर सिल गए हैं. वह बिलकुल बुत बनी बैठी है.

उस के सामने उस की नवजात बच्ची मृत पड़ी है और उस की गोद में 1 और बच्चा है, उस के स्तन से सटा हुआ. ये दोनों बच्चे जुड़वां पैदा हुए थे. इन में से यह गोद वाला बच्चा, जो जीवित है, अपनी मृत बहन से 5 मिनट बड़ा है.

सुबह से ही औरतों का तांता लगा हुआ है. जो भी औरत देखने आती है वह नसरीन को समझाती है कि वह दूध बख्श दे, पर उस की समझ में नहीं आता कि वह दूध बख्शे भी तो कैसे?

उस की सास उसे समझातेसमझाते हार गई हैं. मोहल्ले भर की मुंहबोली खाला हमीदा भी मौजूद हैं. हमीदा खाला का रोज का मामूल यानी दिनचर्या है, सुबह उठ कर सब के चूल्हे झांकना. यह पता लगाना कि किस के यहां क्या बन रहा है, क्या नहीं. किस के यहां सासबहू में बनती है, किस के यहां आपस में तनातनी रहती है. किस के लड़केलड़की की शादी तय हो गई है, किस की टूट गई है. किस की लड़की का चक्कर किस लड़के से है… वगैरहवगैरह…

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बाल की खाल निकालने में माहिर हमीदा खाला ऐसे शोक के अवसर पर भी बाज नहीं आतीं, अपना भरसक प्रयास करती हैं. जानना चाहती हैं कि मामला क्या है और नसरीन दूध क्यों नहीं बख्श रही?

वह नसरीन को समझाती हुई कहती हैं, ‘‘बहू, आखिर तुम्हें दिक्कत क्या है? तुम क्या सोच रही हो? दूध क्यों नहीं बख्श रही हो?”

हमीदा खाला थोड़ी देर शांत रहीं, फिर नसरीन की सास से बोलीं, ‘‘2 दिन पहले कितनी खुशी थी. सब के चेहरे कितने खिलेखिले थे…और आज…सब कुदरत की मरजी…वही जिंदगी देता है, वही मौत… बेचारी की जिंदगी इतनी ही थी…

नसरीन की सास चुपचाप बैठी रहीं. ना हूं किया, ना हां.

हमीदा खाला फिर से नसरीन की तरफ मुड़ीं,”क्यों रूठी हो बहू? यह कोई रूठने का वक्त है…देखो, तुम्हारे ससुर खफा हो रहे हैं… बाहर आदमी लोग इंतजार में बैठे हैं… बच्ची को कफन दिया जा चुका है और तुम झमेला फैलाए बैठी हुई हो?

दूसरी औरतें भी हमीदाखाला की हां में हां मिलाती हैं और नसरीन को दूध बख्शने की नसीहत देती हैं.

कहती हैं,”सिर्फ 3 मरतबा कह दे, ‘मैं ने दूख बख्शा, मैं ने दूख बख्शा, मैं ने दूख बख्शा…'”

पर वह टस से मस नहीं होती. बस एकटक अपनी मृत बच्ची को देखे जा रही है. ऐसा लगता है कि उसे कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा है.

नहीं, उसे सबकुछ सुनाई पड़ रहा है और दिखाई भी…

शोरशराबा, धूमधाम… उस की सास खुशी से फूले नहीं समा रही हैं. ससुर पोते का मुंह देख कर खुश हैं और अख्तर, उस का तो हाल ही मत पूछो, वह शादी के बाद संभवतया  पहली बार इतना खुश हुआ है.

इस से पहले के अवसरों पर नसरीन के कोई करीब नहीं जाता था. अजी, उसे तो छोड़ ही दो, पैदा होने वाली बच्ची की भी तरफ कोई रुख नहीं करता था. न सास, न ससुर और न ही नन्दें.

अख्तर का व्यवहार तो बहुत ही बुरा होता था. वह कईकई हफ्ते नसरीन से बोलता नहीं था और जब बोलता तो बहुत बदतमीजी से. ऐसा लगता जैसे लड़की के पैदा होने में सारा दोष नसरीन की ही है.

पर इस बार अख्तर बहुत मेहरबान है. वह नसरीन पर सबकुछ लुटाने को तैयार है. मगर वह करे भी तो क्या? उस की जेब खाली है. इन दिनों उस का काम नहीं चल रहा है. बरसात का मौसम जो ठहरा.

इस मौसम में सिलाई का काम कहां चलता है? वैसे तो वह दिल्ली चला जाता था, पर अब रजिया उसे दिल्ली जाने कहां देती है…

रजिया से बहुत प्यार करता है वह और रजिया भी उसे. अख्तर के लिए ही रजिया अपनी ससुराल नहीं जाती. उस का शौहर उसे लेने कई बार आया था, पर उस ने उस की सूरत तक देखना गंवारा नहीं किया.

रजिया का एक बेटा भी है, उसी शौहर से. बहुत खूबसूरत. 8 बरस का. अख्तर को पापा कहता है. उस के पापा कहने पर नसरीन के कलेजे पर मानों सांप लोट जाता है और जब वह रजिया से कहती है कि वह समीर को मना करे कि वह अख्तर को पापा न कहे, तो रजिया नसरीन के घर घुस कर उस की पिटाई कर देती है और रहीसही कसर अख्तर पूरी कर देता है.

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लातघूसों के साथ गंदीगंदी गालियां देता है. तर्क देता है कि खुद बेटा पैदा नहीं कर सकतीं, ऊपर से किसी का बेटा मुझे पापा या अंकल कहे, तो उसे बुरा लगता है.

नसरीन कह सकती है, पर वह नहीं कहती कि रजिया का ही लड़का तुम्हें पापा क्यों कहता है?

मोहल्ले में और भी तो लड़के हैं. वह नहीं कहते पर जबानदराजी करे, तो क्या और पिटे? इसलिए वह बरदाश्त करती है. बरदाश्त करने के अतिरिक्त कोई और चारा भी तो नहीं है. उस के एक के बाद एक बेटी जो पैदा होती गई…

सास और नन्दों के ही नहीं, बल्कि सासससुर और शौहर के ताने सुनसुन कर वह अधमरी सी हो गई. अब तो सूख कर कांटा हो गई है वह. कहां उस का चेहरा फूल सा खिलाखिला रहता था और अब तो मुरझाया सा, बेरौनकबेनूर…

और इस बार बेटा पैदा हुआ भी, तो अकेला नहीं, अपने साथ अपनी एक और बहन को लेता आया. क्या उसे बहनों की कमी थी?

अरे, पैदा होना है, तो वहां हो, जहां रूपएपैसों की कोई कमी नहीं है. हम जैसे फटीचरों के यहां पैदा होने से क्या लाभ? लेकिन तुम को इस से क्या? तुमलोग तो बिना टिकट, बिना पास भागती चली आती हो.

अब देखो ना, एक बच्चे का बोझ उठाना कितना कठिन है. ऊपर से तुम भी…अरे, तुम्हारी क्या जरूरत थी? तुम क्यों चली आईं? किसी ऊंची बिल्डिंग में जा गिरतीं. पर वहां तुम कैसे पहुंच पातीं? वहां तो सारे काम देखभाल कर होते हैं. जांचपरख कर होते हैं…..और हम जैसे गरीबों के यहां तो बस अंधाधुंध, ताबड़तोड़…

अब तुम आई भी थीं, तो अपने साथ रूपयापैसा भी लेती आतीं. भला यह कहां हो सकता था. ऊपर से और कमी हो गई. इस बार मेरे पास आंचलभर दूध भी तो नहीं है. हो भी कैसे? मन भी बहुत खुश रहता है. ऊपर से भरपेट भोजन जो मिलता है…अरे, यह तुम्हारा भाई, कुछ न कुछ कर के अपना पेट पाल ही लेगा. लड़का है, कुछ भी न करे, तो भी खानदान की नस्ल तो बढ़ाएगा ही और तुम…

“बहू…”

हमीदा खाला की आवाज से नसरीन का ध्यान भग्न हुआ,”बहू, क्यों देर करती हो….क्यों जिद खाए बैठी हो? कोई बात हो तो बताओ… आखिर तुम्हें दूध बख्शने में कैसी शर्म… कुछ बोलो भी, क्या बात है? किसी से नाराज हो? किसी ने कुछ कहा है? क्या अख्तर मियां ने…?”

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नसरीन की सास को गुस्सा आ गया, बोलीं, ‘‘क्यों समझाती हो खाला? यह बहुत ढीठ है… कभी किसी की कोई बात मानी भी है, जो आज मानेगी। हमेशा अपने मन की करे है…मन हो, तो बोलेगी….ना हो, तो ना…’’

हमीदा खाला बोल पड़ीं, ‘‘अरे, ऐसी भी मनमानी किस काम की? बच्ची मरी पड़ी है और यह है कि फूली बैठी है।”

तभी अम्मां की आवाज सुन कर अख्तर अंदर आया और बड़े तैश में बोला, ‘‘क्या नौटंकी फैलाए बैठी हो?क्यों सब को परेशान करे है? दूध क्यों नहीं बख्शती?’’

अख्तर की दहाड़ का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा,”नसरीन बोल पड़ी, ‘‘हम इसे दूध पिलाए हों, तो बख्शें.’’

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सौजन्य: मनोहर कहानियां

पारसी व्यवसाई जमशेदजी नौशरवानजी टाटा द्वारा बसाया गया झारखंड का जमशेदपुर भारत के सब से प्रगतिशील औद्योगिक नगरों में एक है. इस शहर की बुनियाद सन 1907 में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से पड़ी.

जमशेदपुर को टाटानगर भी कहते हैं. इस शहर में टिस्को के अलावा टेल्को, टायो, उषा मार्टिन, जेम्को, टेल्कान, बीओसी सहित आधुनिक स्टील ऐंड पावर के कई उद्योग और देश की नामी इकाइयां हैं.

दीपक कुमार अपने परिवार के साथ इसी जमशेदपुर शहर में कदमा थाना इलाके में तीस्ता रोड पर क्वार्टर नंबर एन-97 में रहता था. परिवार में कुल 4 लोग थे. दीपक, उस की पत्नी वीणा और 2 बेटियां. बड़ी बेटी श्रावणी 15 साल की थी और छोटी बेटी दिव्या 10 साल की. दीपक खुद करीब 40 साल का था और उस की पत्नी वीणा 36 साल की.

मूलरूप से बिहार के खगडि़या जिले का रहने वाला दीपक टाटा स्टील कंपनी में फायर ब्रिगेड कर्मचारी था. पिछले कुछ सालों से नौकरी के सिलसिले में वह जमशेदपुर में रहता था, वेतन ठीकठाक था. साइड बिजनैस के रूप में वह ट्रांसपोर्ट का काम भी करता था. इसलिए घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. लेकिन दोस्तों के धोखा देने और लौकडाउन में ट्रांसपोर्ट से आमदनी घटने से वह आर्थिक संकट में आ गया था.

इसी 12 अप्रैल की बात है. दीपक ने अपने दोस्त रोशन और उस की पत्नी आराध्या को लंच पर घर बुलाया. सुबह करीब साढ़े 9 बजे जब दीपक का फोन आया था, तब रोशन ने तबीयत ठीक न होने की बात कह कर मना कर दिया था, लेकिन दीपक के काफी इसरार करने पर रोशन ने कह दिया कि तबीयत ठीक रही, तो वह दोपहर बारह-एक बजे तक आने या नहीं आने के बारे में बता देगा.

रोशन और उस की बीवी आराध्या से दीपक के पारिवारिक संबंध थे. दरअसल, रोशन आराध्या से प्यार करता था, लेकिन दोनों के घर वाले इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे. तब दीपक ने दोनों परिवारों को रजामंद कर के रोशन और आराध्या की शादी कराई थी.

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दीपक का छत्तीसगढ़ में ट्रांसपोर्ट का काम था. वहां रोशन का भी ट्रक चलता था. आराध्या दीपक को मामा कहती थी. रोशन और आराध्या कुछ महीने पहले ही जमशेदपुर में शिफ्ट हुए थे.

आराध्या या रोशन का फोन नहीं आया, तो दीपक ने दोपहर करीब एक बजे पत्नी वीणा के मोबाइल से आराध्या को फोन कर लंच पर जरूर आने का आग्रह किया. आराध्या मना नहीं कर सकी. उस ने कहा, ‘‘ठीक है. हम जरूर आएंगे.’’

दोपहर करीब ढाई बजे रोशन अपनी पत्नी आराध्या और एक साल की बेटी के साथ कार से कदमा में दीपक के घर पहुंचे. उन के साथ रोशन का साला अंकित भी था. अंकित दिल्ली रहता था. वह बहनबहनोई से मिलने जमशेदपुर आया था. रोशन और आराध्या दीपक के घर लंच पर जा रहे थे, अंकित घर में अकेला बोर होगा. सोच कर वे उसे भी अपने साथ लेते गए.

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घर पहुंचने पर दीपक ने गेट खोला. उस ने रोशन और उस की बीवी का गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के साथ तीसरे युवक को देख कर दीपक ने रोशन की तरफ सवालिया नजरों से देखा. उस की नजरों को भांप कर रोशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘यार, ये मेरा साला और मेरी बेगम साहिबा का भाई है. नाम है अंकित. दिल्ली से आया है.’’

रोशन, उस की बीवी और अंकित को ड्राइमरूम में सोफे  पर बैठने का इशारा करते हुए दीपक ने कहा, ‘‘आप लोग बैठो, मैं फ्रिज से ठंडा पानी ले कर आता हूं.’’

दीपक पानी लाने के लिए जाने लगा, तो आराध्या चौंक कर बोली, ‘‘मामा, आप पानी क्यों ला रहे हो? वीणा मामी को कह दो, वह ले आएंगी.’’

‘‘अरे यार, मैं तुम्हें बताना भूल गया. वीणा कुछ देर पहले मेरे भाई के घर रांची चली गई. साथ में दोनों बच्चों को भी ले गई,’’ दीपक ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘घर में अकेला मैं ही हूं. मुझे ही आप लोगों की आवभगत करनी पड़ेगी.’’

‘‘मामा, हमें शर्मिंदा मत कीजिए. आप ने हमें बेकार ही लंच पर बुलाया,’’ आराध्या ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मामीजी घर पर नहीं हैं, तो हम लंच के लिए फिर कभी आ जाएंगे.’’

दीपक ने आराध्या को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘आप को लंच पर बुलाया है, तो बाजार से खाना ले आएंगे.’’

दीपक की इस बात पर आराध्या ने पति रोशन की ओर देखा. रोशन क्या कहता, उस ने फ्रिज से पानी लेने जा रहे दीपक को सोफे पर ही बैठा लिया और बातें करने लगे. घरपरिवार और बच्चों की बातें करते हुए वे ठहाके भी लगाते जा रहे थे.

उन्हें बातें करते हुए 5-7 मिनट ही हुए थे कि आराध्या की बेटी ने पौटी कर दी. आराध्या बेटी को गोद में ले कर बाथरूम में चली गई. बाथरूम में उस ने बच्ची को साफ किया. पीछेपीछे रोशन भी बीवी की मदद के लिए बाथरूम में आ गया और उस ने बेटी का नैपकिन धोया.

बाथरूम से ड्राइंगरूम में आते समय उन्हें चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. वे तेज कदमों से ड्राइंगरूम में पहुंचे, तो दीपक हथौड़े से अंकित पर हमला कर रहा था.

रोशन कुछ समझ नहीं पाया कि अचानक ऐसी क्या बात हो गई, जो दीपक अंकित को मार रहा है. वह दीपक से पूछते हुएअंकित को बचाने लगा, तो दीपक ने उस की बच्ची को अपनी ओर खींचते हुए मारने की कोशिश की. रोशन बचाने लगा, तो दीपक ने उस पर भी हथौड़े से हमला कर दिया. इस से रोशन को भी चोटें लगीं.

किसी तरह रोशन ने अपनी बेटी, पत्नी और साले को बचा कर वहां से बाहर निकाला. अंकित के सिर से खून बह रहा था. उस के सिर पर रुमाल बांध कर खून रोकने की कोशिश की गई. फिर वे कार से सीधे टाटा मैमोरियल हौस्पिटल पहुंचे. अंकित का तुरंत इलाज जरूरी था. उसे हौस्पिटल में भरती कराया गया. रोशन को भी डाक्टरों ने भरती कर लिया.

बाद में रोशन ने दीपक के साले विनोद को फोन कर पूरी बात बताई. विनोद को दाल में कुछ काला नजर आया. उस ने यह बात अपने छोटे भाई आनंद साहू को बताईं. दीपक की ससुराल जमशेदपुर के ही शास्त्रीनगर में थी.

शाम करीब 4 बजे विनोद और उस के घर वाले दीपक के क्वार्टर पर पहुंचे. वहां गेट पर ताला लगा हुआ था, लेकिन अंदर एसी चल रहा था. विनोद और उस के घर वाले सोचविचार कर ही रहे थे कि इसी दौरान रिंकी को ढूंढते हुए उस की मां नीलिमा और मंझली बहन बिपाशा भी वहां पहुंच गईं.

उन्होंने बताया कि रिंकी दीपक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आती थी. वह सुबह 11 बजे घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं पहुंची. रोजाना वह दोपहर एक बजे घर वापस आ जाती थी. बहनों की औनलाइन क्लास होने के कारण रिंकी उस दिन मोबाइल नहीं ले गई थी.

जब रोजाना के समय पर रिंकी वापस घर नहीं पहुंची, तो घर वालों ने दीपक को फोन किया. दीपक ने कहा कि वह ट्यूशन पढ़ा कर जा चुकी है. इस के बाद भी दोपहर 3 बजे तक जब रिंकी घर नहीं पहुंची, तो नीलिमा और बिपाशा दीपक के क्वार्टर पर पहुंची थीं.

चिंता में मांबेटी वहां से कदमा थाने पहुंचीं और पुलिस को पूरी बात बताई.

पुलिस ने कोई घटना दुर्घटना होने की आशंका जताते हुए एक बार हौस्पिटल में देख आने की सलाह दी. वे टीएमएच गईं, लेकिन वहां कुछ पता नहीं चला, तो थकहार कर दोनों दोबारा दीपक के क्वार्टर पर आईं. यहां उन्हें विनोद और उस के घर वाले मिले.

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विनोद ने रिंकी की मांबहन के साथ सोचविचार कर दीपक के क्वार्टर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ दिया. विनोद अंदर कमरे में गया और चिल्लाते हुए बाहर निकल आया. उस ने बताया कि वीणा और दोनों बेटियां मरी पड़ी हैं.

यह सुन कर विनोद के साथ दूसरे लोग कमरे में गए. उन्होंने वीणा और दोनों बच्चियों को हिलायाडुलाया, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई. उन की नब्ज भी ठंडी पड़ चुकी थी. वीणा और उस की दोनों बेटियों की लाश देख कर विनोद और उस के घर वाले रोने लगे.

दीपक की पत्नी और बेटियों की लाश देख कर रिंकी की मां और बहन को शक हुआ. खोजबीन में रिंकी की एक चप्पल बाहर पड़ी मिल गई. इस से संदेह और बढ़ गया. वे घर में रिंकी को तलाशने लगीं. उस की स्कूटी तो बालकनी में खड़ी मिली, लेकिन रिंकी नहीं मिली.

मंझली बेटी बिपाशा मां को दिलासा देते हुए अलगअलग कमरों में बड़ी चीजें हटा कर देखने लगी. उस ने एक कमरे में पलंग का बौक्स खोला, तो उस में रिंकी की लाश पड़ी थी. उस के हाथ बंधे हुए और कपड़े अस्तव्यस्त थे. रिंकी की लाश देख कर नीलिमा और बिपाशा रोने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- चारों हुईं हथौड़े का शिकार

Crime Story: पाताल लोक का हथौड़ेबाज- भाग 3

सौजन्य: मनोहर कहानियां

पहले दीपक परसुडीह थाना इलाके के गांव सोपोडेरा में मातापिता के साथ रहता था. वहां उन का आलीशान पैतृक मकान था. प्रभु उस का जिगरी दोस्त था साल 2004 में दीपक की शादी वीणा से हो गई. बाद में 2012 में दीपक की टाटा स्टील में फायरमैन के पद पर नौकरी लग गई. इस के बाद वह जमशेदपुर के कदमा इलाके में रहने लगा.

परिवार बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां और खर्च भी बढ़ गए थे. एक दिन दीपक ने दोस्त प्रभु से कोई साइड बिजनेस कराने की बात कही. इस पर प्रभु ने उसे ट्रांसपोर्ट का काम करने की सलाह दी. प्रभु ने उसे काम तो बता दिया लेकिन इतना पैसा दीपक के पास नहीं था. इस पर प्रभु ने उस से कहा कि वह सोपोडेरा का अपना पुश्तैनी मकान बेच दे और उस का पैसा ट्रांसपोर्ट में लगा दे, तो अच्छी आमदनी होगी. दीपक को यह बात जंच गई.

दोस्तों ने ही दिया धोखा

उस ने अपना मकान 40 लाख रुपए में बेच दिया. इस में से 20 लाख रुपए उस ने अपने भाई मृत्युंजय को दे दिए. बाकी के 20 लाख रुपए दीपक के पास रहे. करीब दो साल पहले प्रभु ने उसे 17 लाख रुपए में एक हाइवा (मालवाहक ट्रक) और एक बुलेट दिलवा दी. यह हाइवा उस ने प्रभु के मार्फत जोजोबेड़ा में चलवा दिया.

इस से उसे अच्छी आमदनी होने लगी. पिछले साल कोरोना के कारण लौकडाउन हो जाने से उस की आमदनी कम हो गई. इस बीच, दीपक को पता चला कि प्रभु ने जो ट्रक दिलवाया था, उस पर 5 लाख रुपए रोड टैक्स बकाया है.

परिवहन विभाग का नोटिस आने पर उस ने कर्ज ले कर टैक्स जमा कराया. इस के लिए उस ने टिस्का कोआपरेटिव सोसायटी से साढ़े चार लाख रुपए और अपने पीएफ अकाउंट से डेढ़ लाख रुपए का कर्ज लिया.

दीपक की तनख्वाह 34 हजार रुपए महीना थी. सोसायटी से कर्ज लेने के बाद उसे केवल 8 हजार रुपए ही मिलने लगे. ट्रक से भी आमदनी कम हो गई थी. करीब छह महीने पहले प्रभु ने बताया कि उस का भांजा रोशन खुद का और उस का ट्रक पश्चिम बंगाल में खड़गपुर की एक स्टील कंपनी में चलवा रहा है. रोशन पहले से ही उस का दोस्त था.

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उस की शादी भी उस ने ही कराई थी. कमाई की उम्मीद में दीपक ने भरोसा कर बिना किसी लिखापढ़ी के अपना ट्रक रोशन को सौंप दिया. रोशन ने दीपक का ट्रक तो कंपनी में लगवा दिया, लेकिन उसे कमाई का हिस्सा नहीं दिया. इस बीच, दीपक लगातार कर्जदार होता गया.

दीपक अपनी इस बर्बादी के लिए प्रभु और रोशन को जिम्मेदार मानता था. उस ने उन से बदला लेने की योजना बनाई. दीपक अपने मोबाइल पर वेबसीरीज देखा करता था. पाताल लोक और असुर वेबसीरीज देख कर उस ने उन की हत्या करने का मन बनाया. वह एक वेबसीरीज पाताललोक के कैरेक्टर हथौड़ा त्यागी से काफी प्रभावित था.

इसीलिए उस ने हथौड़े से हत्या करने का फैसला किया. उस ने दोनों दोस्तों को मारने की तो योजना बना ली लेकिन इस बात से परेशान था कि वह पकड़ा गया और जेल चला गया, तो बीवीबच्चों का क्या होगा? काफी सोचविचार के बाद उस ने अपने परिवार को भी खत्म करने का निर्णय लिया.

12 अप्रैल को दीपक सुबह जल्दी उठ गया. देखा कि पत्नी वीणा पानी भर रही थी. वह बिस्तर पर ही बेचैनी से इधरउधर करवटें बदलता रहा. पानी भरने और छोटेमोटे घरेलू काम निपटाने के बाद सुबह करीब 8 बजे वीणा फिर बैड पर लेट गई. दीपक ने उसी दिन अपने परिवार और दोनों दोस्तों का काम तमाम करने का आखिरी फैसला कर लिया.

दीपक ने पहले से ही बैड के पास छिपा कर रखा हथौड़ा निकाला और वीणा के सिर में पीछे से वार कर दिया. वीणा चीखती, इस से पहले ही उस ने तकिए से उस का गला दबा दिया. वीणा की मौत हो गई.

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इस के बाद दीपक दूसरे कमरे में गया. वहां बैड पर दोनों बेटियां सो रही थीं. दीपक ने एक नजर उन्हें देखा. फिर बेरहमी से पहले बड़ी बेटी के सिर में हथौड़ी से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा. फिर इसी तरह छोटी बेटी को भी मौत की नींद सुला दिया.

पत्नी और दोनों बेटियों की हत्या के बाद उस ने रोशन को लंच पर आने के लिए फोन किया. इस के बाद दूसरे दोस्त प्रभु को फोन कर शाम 4 बजे जोजोबेड़ा में मिलने की बात कही. दोनों दोस्तों से बात करने के बाद वह नहाधो कर ससुराल गया और अपने जेवर ले कर ज्वैलर्स के पास पहुंचा. जेवर बेच कर वह वापस घर आया.

कुछ देर बाद ही रिंकी घोष उस के बच्चों को पढ़ाने आ गई. रिंकी ने वीणा और बच्चों की लाशें देख लीं, तो दीपक को भेद खुलने का डर हुआ. उस ने उस के भी सिर पर हथौड़ी से हमला कर उसे मार डाला. इस के बाद उस ने उस की लाश से दुष्कर्म किया और शव पलंग के बौक्स में छिपा दिया.

रोशन की हत्या की योजना फेल हो जाने पर वह डर गया था. इसलिए अपने क्वार्टर पर ताला लगा कर बुलेट से भाग निकला. उस की प्रभु को मारने की योजना भी अधूरी रह गई.

जल्लाद बने दीपक की सनक में ट्यूशन टीचर रिंकी बेमौत मारी गई. वह जमशेदपुर में कदमा रामजनम नगर की रहने वाली नीलिमा घोष की 3 बेटियों में सब से बड़ी थी और जमशेदपुर वीमंस कालेज में बीए अंतिम वर्ष की छात्रा थी. मंझली बेटी बिपाशा केरला पब्लिक स्कूल में 10वीं और छोटी बेटी विशाखा 5वीं कक्षा में पढ़ती थी. दीपक की बड़ी बेटी श्रावणी बिपाशा की क्लासमेट थी. श्रावणी के कहने पर ही रिंकी 2 साल से दीपक के घर ट्यूशन पढ़ाने जाती थी.

दीपक का भाई मृत्युंजय रांची में एसबीआई में ब्रांच मैनेजर था. बाद में वह एक निजी फाइनैंस कंपनी में क्रेडिट इंचार्ज के पद पर काम करने लगा था.

मृत्युंजय अब जमशेदपुर आना चाहता था. इस के लिए उस ने दीपक से कहा भी था. दीपक ने अपने ससुराल वालों को भी यह बात बताई थी.

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इस घटना से कुछ दिन पहले ही दीपक अपने परिवार के साथ पुरी घूम कर आया था. 11 अप्रैल की रात भी वह परिवार के साथ एक पार्टी में गया था और 10 बजे के बाद लौटा था.

दीपक ने अपना परिवार उजाड़ दिया और रिंकी के परिवार की खुशियां छीन लीं. कानून उसे उस के किए की सजा देगा, लेकिन उस के ससुराल वाले और रिंकी के परिवार वाले जीवन भर इस दुख को नहीं भुला पाएंगे. दीपक ने पकड़े जाने पर पुलिस को बताया था कि उस का आत्महत्या करने का प्लान था. इसलिए जेल में अब उस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है.

Mother’s Day Special: मां का फैसला- भाग 3

मैं ने उसे आश्वस्त किया कि कुछ लड़के अपना प्रभाव जमाने के लिए बेबाक हरकत करते हैं. फिर शादी वगैरह में तो दूल्हे के मित्र और दुलहन की सहेलियों की नोकझोंक चलती ही रहती है. परंतु 2 दिनों बाद ही प्रभाकर हमारे घर आ गया. उस ने मुझ से भी बातें कीं और बिट्टी से भी. मैं ने लक्ष्य किया कि बिट्टी उस से कम समय में ही खुल गई है.

फिर तो प्रभाकर अकसर ही मेरे सामने ही आता और मुझ से तथा बिट्टी से बतिया कर चला जाता. बिट्टी के कालेज के और मित्र भी आते थे. इस कारण प्रभाकर का आना भी मुझे बुरा नहीं लगा. जिस दिन बिट्टी उस के साथ शीतल पेय या कौफी पी कर आती, मुझे बता देती. एकाध बार वह अपने भाई को ले कर भी आया था. इस दौरान शायद बिट्टी सुरेश को कुछ भूल सी गई. सुरेश भी पढ़ाई में व्यस्त था. फिर प्रभाकर की भी परीक्षा आ गई और वह भी व्यस्त हो गया. बिट्टी अपनी पढ़ाई में लगी थी.

धीरेधीरे 2 वर्ष बीत गए. बिट्टी बीएड करने लगी. उस के विवाह का जिक्र मैं पति से कई बार चुकी थी. बिट्टी को भी मैं बता चुकी थी कि यदि उसे कोई लड़का पति के रूप में पसंद हो तो बता दे. फिर तो एक सप्ताह पूर्व की वह घटना घट गई, जब बिट्टी ने स्वीकारा कि उसे प्रेम है, पर किस से, वह निर्णय वह नहीं ले पा रही है.

सुरेश के परिवार से मैं खूब परिचित थी. प्रभाकर के पिता से भी मिलना जरूरी लगा. पति को जाने का अवसर जाने कब मिलता, इस कारण प्रभाकर को बताए बगैर मैं उस के पिता से मिलने चल दी.

बेहतर आधुनिक सुविधाओं से युक्त उन का मकान न छोटा था, न बहुत बड़ा. प्रभाकर के पिता का अच्छाखासा व्यापार था. पत्नी को गुजरे 5 वर्ष हो चुके थे. बेटी कोई थी नहीं, बेटों से उन्हें बहुत लगाव था. इसी कारण प्रभाकर को भी विश्वास था कि उस की पसंद को पिता कभी नापसंद नहीं करेंगे और हुआ भी वही. वे बोले, ‘मैं बिट्टी से मिल चुका हूं, प्यारी बच्ची है.’ इधरउधर की बातों के बीच ही उन्होंने संकेत में मुझे बता दिया कि प्रभाकर की पसंद से उन्हें इनकार नहीं है और प्रत्यक्षरूप से मैं ने भी जता दिया कि मैं बिट्टी की मां हूं और किस प्रयोजन से उन के पास आई हूं.

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‘‘कहां खोई हो, मां?’’ कमरे से बाहर निकलते हुए बिट्टी बोली. मैं चौंक पड़ी. रजनीगंधा की डालियों को पकड़े कब से मैं भावशून्य खड़ी थी. अतीत चलचित्र सा घूमता चला गया. कहानी पूरी नहीं हो पाई थी, अंत बाकी था.

जब घर में प्रभाकर और सुरेश ने एकसाथ प्रवेश किया तो यों प्रतीत हुआ, मानो दोनों एक ही डाली के फूल हों. दोनों ही सुंदर और होनहार थे और बिट्टी को चाहने वाले. प्रभाकर ने तो बिट्टी से विवाह की इच्छा भी प्रकट कर दी थी, परंतु सुरेश अंतर्मुखी व्यक्तित्व का होने के कारण उचित मौके की तलाश में था.

सुरेश ने झुक कर मेरे पांव छुए और बिट्टी को एक गुलाब का फूल पकड़ा कर उस का गाल थपथपा दिया. ‘‘आते समय बगीचे पर नजर पड़ गई, तोड़ लाया.’’

प्रभाकर ने मुझे नमस्ते किया और पूरे घर में नाचते हुए रसोई में प्रवेश कर गया. उस ने दोचार चीजें चखीं और फिर बिट्टी के पास आ कर बैठ गया. मैं भोजन की अंतिम तैयारी में लग गई और बिट्टी ने संगीत की एक मीठी धुन लगा दी. प्रभाकर के पांव बैठेबैठे ही थिरकने लगे. सुरेश बैठक में आते ही रैक के पास जा कर खड़ा हो गया और झुक कर पुस्तकों को देखने लगा. वह जब भी हमारे घर आता, किसी पत्रिका या पुस्तक को देखते ही उसे उठा लेता. वह संकोची स्वभाव का था, भूखा रह जाता. मगर कभी उस ने मुझ से कुछ मांग कर नहीं खाया था.

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मैं सोचने लगी, क्या सुरेश के साथ मेरी बेटी खुश रह सकेगी? वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका है. संभवतया साक्षात्कार भी उत्तीर्ण कर लेगा, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी बनने की गरिमा से युक्त सुरेश बिट्टी को कितना समय दे पाएगा? उस का ध्येय भी मेरे पति की तरह दिनरात अपनी उन्नति और भविष्य को सुखमय बनाने का है जबकि प्रभाकर का भविष्य बिलकुल स्पष्ट है. सुरेश की गंभीरता बिट्टी की चंचलता के साथ कहीं फिट नहीं बैठती. बिट्टी की बातबात में हंसनेचहकने की आदत है. यह बात कल को अगर सुरेश के व्यक्तित्व या गरिमा में खटकने लगी तो? प्रभाकर एक हंसमुख और मस्त युवक है. बिट्टी के लिए सिर्फ शब्दों से ही नहीं वह भाव से भी प्रेम दर्शाने वाला पति साबित होगा. बिट्टी की आंखों में प्रभाकर के लिए जो चमक है, वही उस का प्यार है. यदि उसे सुरेश से प्यार होता तो वह प्रभाकर की तरफ कभी नहीं झुकती, यह आकर्षण नहीं प्रेम है. सुरेश सिर्फ उस का अच्छा मित्र है, प्रेमी नहीं. खाने की मेज पर बैठने के पहले मैं ने फैसला कर लिया था.

Serial Story: बच्चों की भावना- भाग 1

‘‘अकी, बेटा उठो, सुबह हो गई, स्कूल जाना है,’’ अनुभव ने अपनी लाडली बेटी आकृति को जगाने के लिए आवाज लगानी शुरू की.

‘‘हूं,’’ कह कर अकी ने करवट बदली और रजाई को कानों तक खींच लिया.

‘‘अकी, यह क्या, रजाई में अब और ज्यादा दुबक गई हो, उठो, स्कूल को देर हो जाएगी.’’

‘‘अच्छा, पापा,’’ कह कर अकी और अधिक रजाई में छिप गई.

‘‘यह क्या, तुम अभी भी नहीं उठीं, लगता है, रजाई को हटाना पड़ेगा,’’ कह कर अनुभव ने अकी की रजाई को धीरे से हटाना शुरू किया.

‘‘नहीं, पापा, अभी उठती हूं,’’ बंद आंखों में ही अकी ने कहा.

‘‘नहीं, अकी, साढ़े 5 बज गए हैं, तुम्हें टौयलेट में भी काफी टाइम लग जाता है.’’

यह सुन कर अकी ने धीरे से आंखें खोलीं, ‘‘अभी तो पापा रात है, अभी उठती हूं.’’

अनुभव ने अकी को उठाया और हाथ में टूथब्रश दे कर वाशबेसन के आगे खड़ा कर दिया.

सर्दियों में रातें लंबी होने के कारण सुबह 7 बजे के बाद ही उजाला होना शुरू होता है और ऊपर से घने कोहरे के कारण लगता ही नहीं कि सुबह हो गई. आकृति की स्कूल बस साढ़े 6 बजे आ जाती है. वैसे तो स्कूल 8 बजे लगता है, लेकिन घर से स्कूल की दूरी 14 किलोमीटर तय करने में बस को पूरा सवा घंटा लग जाता है.

जैसेतैसे अकी स्कूल के लिए तैयार हुई. फ्लैट से बाहर निकलते हुए आकृति ने पापा से कहा, ‘‘अभी तो रात है, दिन भी नहीं निकला. मैं आज स्कूल जल्दी क्यों जा रही हूं.’’

‘‘आज कोहरा बहुत अधिक है, इसलिए उजाला नहीं हुआ, ऐसा लग रहा है कि अभी रात है, लेकिन अकी, घड़ी देखो, पूरे साढ़े 6 बज गए हैं. बस आती ही होगी.’’

कोहरा बहुत घना था. 7-8 फुट से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा था. सड़क एकदम सुनसान थी. घने कोहरे के बीच सर्द हवा के झोंकों से आकृति के शरीर में झुरझुरी सी होती और इसी झुरझुराहट ने उस की नींद खोल दी. अपने बदन को बे्रक डांस जैसे हिलातेडुलाते वह बोली, ‘‘पापा, लगता है, आज बस नहीं आएगी.’’

‘‘आप को कैसे मालूम, अकी?’’

‘‘देखो पापा, आज स्टाप पर कोई बच्चा नहीं आया है, आप स्कूल फोन कर के मालूम करो, कहीं आज स्कूल में छुट्टी न हो.’’

‘‘आज छुट्टी किस बात की होगी?’’

‘‘ठंड की वजह से आज छुट्टी होगी. इसलिए आज कोई बच्चा नहीं आया. देखो पापा, इसलिए अभी तक बस भी नहीं आई है.’’

‘‘बस कोहरे की वजह से लेट हो गई होगी.’’

‘‘पापा, कल मोटी मैडम शकुंतला राधा मैडम से बात कर रही थीं कि ठंड और कोहरे के कारण सर्दियों की छुट्टियां जल्दी हो जाएंगी.’’

‘‘जब स्कूल की छुट्टी होगी तो सब को मालूम हो जाएगा.’’

‘‘आप ने टीवी में न्यूज सुनी, शायद आज से छुट्टियां कर दी हों.’’

आकृति ही क्या सारे बच्चे ठंड में यही चाहते हैं कि स्कूल बंद रहे, लेकिन स्कूल वाले इस बारे में कब सोचते हैं. चाहे ठंड पहले पड़े या बाद में, छुट्टियों की तारीखें पहले से तय कर लेते हैं. ठंड और कोहरे के कारण न तो छुट्टियां करते हैं न स्कूल का टाइम बदलते हैं. सुबह के बजाय दोपहर का समय कर दें, लेकिन हम बच्चों की कोई नहीं सुनता है. सुबहसुबह इतनी ठंड में बच्चे कैसे उठें. आकृति मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

तभी 3-4 बच्चे स्टाप पर आ गए. सभी ठंड में कांप रहे थे. बच्चे आपस में बात करने लगे कि मजा आ जाएगा यदि बस न आए. तभी एक बच्चे की मां अनुभव को संबोधित करते हुए बोलीं, ‘‘भाभीजी के क्या हाल हैं. अब तो डिलीवरी की तारीख नजदीक है. आप अकेले कैसे मैनेज कर पाएंगे. अकी की दादी या नानी को बुलवा लीजिए. वैसे कोई काम हो तो जरूर बताइए.’’

‘‘अकी की नानी आज दोपहर की टे्रन से आ रही हैं,’’ अनुभव ने उत्तर दिया.

तभी स्कूल बस ने हौर्न बजाया, कोहरे के कारण रेंगती रफ्तार से बस चल रही थी. किसी को पता ही नहीं चला कि बस आ गई. बच्चे बस में बैठ गए. सभी पेरेंट्स ने बस ड्राइवर को बस धीरे चलाने की हिदायत दी.

बस के रवाना होने के बाद अनुभव जल्दी से घर आया. स्नेह को लेबर पेन शुरू हो गया था, ‘‘अनु, डाक्टर को फोन करो. अब रहा नहीं जा रहा है,’’ स्नेह के कहते ही अनुभव ने डाक्टर से बात की. डाक्टर ने फौरन अस्पताल आने की सलाह दी.

अनुभव कार में स्नेह को नर्सिंग होम ले गया. डाक्टर ने चेकअप के बाद कहा, ‘‘मिस्टर अनुभव, आज ही आप को खुशखबरी मिल जाएगी.’’

अनुभव ने अपने बौस को फोन कर के स्थिति से अवगत कराया और आफिस से छुट्टी ले ली. अनुभव की चिंता अब रेलवे स्टेशन से आकृति की नानी को घर लाने की थी. वह सोच रहा था कि नर्सिंग होम में किस को स्नेह के पास छोड़े.

आज के समय एकल परिवार में ऐसे मौके पर यह एक गंभीर परेशानी रहती है कि अकेला व्यक्ति क्याक्या और कहांकहां करे. सुबह आकृति को तैयार कर के स्कूल भेजा और फिर स्नेह के साथ नर्सिंग होम. स्नेह को अकेला छोड़ नहीं सकता, मालूम नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए.

आकृति की नानी अकेले स्टेशन से कैसे घर आएंगी. घर में ताला लगा है. नर्सिंग होम के वेटिंगरूम में बैठ कर अनुभव का मस्तिष्क तेजी से चल रहा था कि कैसे सबकुछ मैनेज किया जाए. वर्माजी को फोन लगाया और स्थिति से अवगत कराया तो आधे घंटे में मिसेज वर्मा थर्मस में चाय, नाश्ता ले कर नर्सिंग होम आ गईं.

Crime Story: पाताल लोक का हथौड़ेबाज- भाग 2

सौजन्य: मनोहर कहानियां

चारों हुईं हथौड़े का शिकार

एक क्वार्टर में 4 लोगों की हत्या होने की बात पूरे शहर में फैल गई. सूचना मिलने पर कदमा थानाप्रभारी से ले कर डीएसपी, एसपी (सिटी) सुभाषचंद्र जाट और एसएसपी डा. एम. तमिलवाणन के अलावा फोरैंसिक टीम मौके पर पहुंच गई.

पुलिस अफसरों ने मौकामुआयना किया. एक कमरे की दीवार पर खून के छींटे मिले. तलाशी के दौरान कमरे में खून लगी हथौड़ी और खून से सना तकिया भी मिला. शराब की एक बोतल भी मिली. फोरैंसिक टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जरूरी सबूत जुटाए.

मौके के हालात से लग रहा था कि वीणा और उस की दोनों बेटियों की हत्या कई घंटे पहले की गई थी. अनुमान लगाया गया कि सुबह करीब 11 बजे के बाद ट्यूशन टीचर रिंकी जब दीपक की बेटियों को पढ़ाने आई होगी, तो उस ने वीणा और दोनों बच्चियों की लाश देख ली होगी. इस पर दीपक ने भेद खुलने के डर से रिंकी को दूसरे कमरे में ले जा कर मार डाला होगा.

रिंकी की हत्या 11 से दोपहर 1 बजे के बीच की गई होगी, क्योंकि करीब एक बजे दीपक ने रोशन की पत्नी आराध्या को लंच पर बुलाने के लिए फोन किया था. 21 साल की रिंकी के अस्तव्यस्त कपड़े देख कर उस से दुष्कर्म किए जाने का अनुमान भी लगाया गया.

पुलिस ने जरूरी जांचपड़ताल और लिखापढ़ी के बाद चारों शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिए. पुलिस की कार्रवाई में रात हो गई थी, इसलिए रात में पोस्टमार्टम नहीं हो सके.

चारों हत्याओं में सीधा शक दीपक पर था और उस का कुछ अतापता नहीं था. अधिकारियों ने दीपक के ससुराल वालों से उस के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह उस दिन सुबह ही ससुराल गया था.

ससुर पारसनाथ साहू ने दामाद दीपक से जब बेटी और नातिनों के बारे में पूछा, तो उस ने कहा था कि वे रांची में उस के भाई के घर गई हैं.

पारसनाथ ने पुलिस अफसरों को बताया कि कदमा तीस्ता रोड पर कुछ दिनों से चोरी की वारदातें हो रही थीं. इसलिए बेटी वीणा ने कुछ दिन पहले करीब 5 लाख रुपए के अपने कीमती जेवर सुरक्षा के लिहाज से उन के घर पर रख दिए थे.

दीपक एक दिन पहले 11 अप्रैल की शाम को भी अपनी ससुराल गया था, तब वह बच्चों के साथ खेलता रहा फिर कुछ देर रुक कर चला गया था. इस के बाद दूसरे दिन सुबह वह दोबारा आया, तो उस ने अपने जेवर वापस मांगे. हम ने उसे जेवर दे दिए. जेवर ले कर वह चला गया.

पुलिस ने ससुराल वालों से दीपक का मोबाइल नंबर ले कर उस की लोकेशन पता कराई. करीब 3 बजे की उस की आखिरी लोकेशन जमशेदपुर में ही रमाडा होटल के पास बिष्टुपुर में मिली. फिर उस का मोबाइल बंद हो गया था.

दीपक की बुलेट मोटरसाइकिल भी नहीं मिली. इसलिए अनुमान लगाया गया कि ससुराल से गहने ले कर वह बुलेट से फरार हो गया.

जांचपड़ताल में पुलिस को रात के 10 बज गए. इसलिए क्वार्टर सील कर बाकी जांच अगले दिन करने का फैसला किया गया.

13 अप्रैल को सुबह से ही पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में जुट गई. दीपक के क्वार्टर की तलाशी में एक कमरे से सीमन लगा एक गमछा और रिंकी के कुछ कपड़े मिले. इसी कमरे में पलंग के बौक्स में रिंकी की लाश मिली थी.

जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि 12 अप्रैल की सुबह दीपक ससुराल से जो जेवर ले कर आया था, वे जेवर उस ने सुबह करीब साढ़े 10 बजे कदमा उलियान स्थित आरके ज्वैलर्स पर बेच दिए थे.

दीपक ज्वैलर का परिचित था. परिवार के जेवर वह इसी दुकान से बनवाता था. दुकानदार रमेश सोनी से उस ने जमीन खरीदने के लिए जेवर बेचने की बात कही थी. सारे जेवरों का वजन 109 ग्राम था. इन का सौदा 4 लाख 40 हजार रुपए में हुआ. रुपया देने के लिए दुकानदार ने 2-3 घंटे का समय मांगा.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस के बाद दीपक अपने क्वार्टर पर आ गया होगा. कुछ देर बाद ट्यूशन टीचर रिंकी घोष वहां पहुंची होगी. रिंकी ने कमरे में लाशें देख लीं, तो दीपक ने उस को पकड़ लिया होगा और दुष्कर्म करने के बाद उस की हत्या कर लाश पलंग के बौक्स में छिपा दी होगी.

रिंकी की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोपहर करीब डेढ़ बजे दीपक वापस ज्वैलर के पास पहुंचा. ज्वैलर ने उसे 3 लाख रुपए नकद दिए. बाकी पैसे एकदो दिन में देने की बात कही, तो दीपक ने बाकी 1.40 लाख रुपए अपने भाई के बैंक खाते में ट्रांसफर करने को कहा. इस के लिए दुकानदार ने हामी भर ली.

इस के बाद दीपक वापस अपने क्वार्टर पर आया होगा. कुछ देर बाद रोशन अपनी पत्नी, बेटी और साले के साथ लंच के लिए वहां पहुंच गया. वहां दीपक ने अंकित और रोशन पर जानलेवा हमला किया. इस से बच कर वे भाग गए, तो दीपक दोपहर 3 बजे अपने क्वार्टर पर ताला लगा कर बुलेट से फरार हो गया होगा.

शादी कराने वाला ही बना दुश्मन

पुलिस को दीपक के ससुराल वालों से पूछताछ में पता चला कि दीपक का किसी ना किसी बात पर वीणा से झगड़ा होता रहता था. वह अपने पारिवारिक विवाद के लिए रोशन और उस की पत्नी आराध्या को दोषी मानता था.

शायद इसीलिए दीपक ने पत्नी और दोनों बेटियों की हत्या करने के बाद रोशन और आराध्या को जान से मारने की नीयत से ही लंच पर बुलाया था, लेकिन रोशन के साथ उस का साला भी पहुंच गया. 2 पुरुषों के बीच दीपक का हमला कमजोर पड़ गया और रोशन के परिवार की जान बच गई.

ससुराल वालों से ही पता चला कि दीपक अपने बड़े साले विनोद साहू को भी जान से मारने की फिराक में था. उस ने फोन कर जमीन संबंधी कोई बात करने के लिए दोपहर में विनोद को अपने घर बुलाया था, लेकिन विनोद काम में व्यस्त होने के कारण नहीं जा सका था.

विनोद ने कुछ साल पहले किसी लड़की से अफेयर के मामले में दीपक की पिटाई कर दी थी, तब से दीपक उस से रंजिश रखता था.

दीपक के छोटे साले आनंद साहू के बयान पर कदमा थाने में दीपक के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. रोशन ने पहले ही दीपक के खिलाफ जानलेवा हमला करने की शिकायत थाने में दे दी थी. कोल्हान के डीआईजी राजीव रंजन सिंह ने जमशेदपुर पहुंच कर मौकामुआयना किया और रोशन सहित दीपक के ससुराल वालों से पूछताछ की. दूसरी ओर, पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के बाद शव परिजनों को सौंप दिए.

सूचना देने और इतनी बड़ी घटना के बाद भी दीपक के परिवार से कोई भी जमशेदपुर नहीं आया. वीणा और उस की बेटियों के शवों का दाह संस्कार मायके वालों ने किया. रिंकी के शव की अंत्येष्टि उस के घर वालों ने की.

पुलिस की जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि दीपक ने 12 अप्रैल की सुबह हथौड़े से वार कर पत्नी और बेटियों की हत्या की थी. उस ने वीणा के सिर में 2 जगह और चेहरे पर वार किए थे. फिर तकिए से उस का मुंह दबाया था.

बड़ी बेटी श्रावणी के सिर में पीछे से चोट की गई थी. उस का भी गला दबाया गया था. दीपक सब से ज्यादा प्यार छोटी बेटी दिव्या को करता था. उस के सिर के पीछे तेज चोट मारी गई थी. इस से उस की कई हड्डियां टूट गई थीं.

दीपक को तलाशना जरूरी था. दोस्तों और ससुराल वालों से उस के छिपने के ठिकानों का पता लगा कर पुलिस ने अलगअलग टीमें बनाईं और जमशेदपुर व रांची के अलावा बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तक उस की तलाश शुरू कर दी.

कई जगह छापे मारे गए. इस के साथ ही उस की मोटरसाइकिल की तलाश भी शुरू की गई. पुलिस ने दीपक के भाई और बहनों से बात की और उन के मोबाइल नंबरों की जांच की.

ट्यूशन टीचर रिंकी घोष की हत्या के आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर टाइगर्स क्लब के संस्थापक सदस्य आलोक मुन्ना के नेतृत्व में 15 अप्रैल को कदमा रंकिणी मंदिर से गोल चक्कर तक कैंडल मार्च निकाला गया. इन लोगों की मांग थी कि हत्यारे को पकड़ कर अदालत में स्पीडी ट्रायल चलाया जाए और उसे फांसी दी जाए.

4-5 दिन की भागदौड़ के बाद 16 अप्रैल को दीपक धनबाद में पकड़ा गया. वह 12 अप्रैल की दोपहर जमशेदपुर से बुलेट ले कर निकला और राउरकेला पहुंचा. बुलेट उस ने राउरकेला में छोड़ दी. वहां से टैक्सी ले कर वह पुरी व रांची हो कर 15 अप्रैल को धनबाद पहुंचा, जहां एक होटल में रुका.

दीपक अपने पास रखे पैसों में से डेढ़ लाख रुपए भाई मृत्युंजय के खाते में जमा कराना चाहता था. इस के लिए वह 16 अप्रैल को धनबाद में एक प्राइवेट बैंक में पैसे जमा कराने गया. बैंक में पैसे जमा होते ही दीपक के भाई के मोबाइल पर मैसेज आया.

पुलिस ने दीपक और उस के भाई का मोबाइल पहले ही सर्विलांस पर लगा रखा था. मैसेज आते ही पुलिस को दीपक का सुराग मिल गया. जमशेदपुर पुलिस ने धनबाद पुलिस को सूचना दे दी. धनबाद पुलिस बैंक में पहुंची. इसी दौरान दीपक दोबारा बैंक पहुंचा, तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पुलिस 16-17 अप्रैल की दरम्यानी रात उसे धनबाद से जमशेदपुर ले आई.

जमशेदपुर में पुलिस ने दीपक से पूछताछ की तो उस के हथौड़ीमार नर पिशाच बनने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है.

अगले भाग में पढ़ें- दोस्तों ने ही दिया धोखा

सात माह बाद अपने फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हैं Yami Gautam

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते महाराष्ट् सहित कई राज्य सरकारों द्वारा कई तरह के प्रतिबंध व लाॅकडाउन लगाए जाने के चलते फिल्मों की शूटिंग बंद हो चुकी है. जिसके चलते कई कलाकार गोवा या मालद्वीप में छुट्टियां मनाने पहुंच गए हैं.

मगर अभिनेत्री यामी गौतम इस वक्त को अपने परिवार के सदस्यों संग चंडीगढ़ में बिताने का फैसला लेते हुए चंडीगढ़ पहुंच गयी हैं.

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वैसे भी यामी गौतम सदैव एक साथ कई प्रोजेक्ट्स पर काम करने में बेहद व्यस्त रहने के बाद मौका मिलते ही अपने परिवार के साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए चंडीगढ़ पहुंच जाती हैं.यामी गौतम के प्रवक्ता का दावा है कि विभिन्न परियोजनाओं की पूरी तरह से बाजी मारते हुए बहुमुखी अभिनेत्री पिछले सात माह से एक सेट से दूसरे सेट पर जाती रही है और अब उन्हें घर पर रहने का समय मिल गया है.

इन सात माह के दौरान यामी गौतम ने आगरा में फिल्म ‘दासवी’ के लिए शूटिंग की,जिसमें वह एक आईपीएस अधिकारी की भूमिका में हैं. जिसका वीडियो भी यामी गौतम ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर साझा किया था.फिल्म ‘‘दासवी’’में यामी गौतम के साथ अभिषेक बच्चन और निमरत कौर भी हैं.

‘‘दासवी’’के तुरंत बाद यामी गौतम ने बेहजाद खंबाटा निर्देशित फिल्म‘‘ए थस्डे’’की भी कुछ शूटिंग की,जिसमें उनके साथ नेहा धूपिया और डिंपल कपाड़िया भी हैं. इस बीच, उनकी अन्य आगामी फिल्मों में सैफ अली खान, अर्जुन कपूर और जैकलीन फर्नांडीज और अनिरुद्ध रॉय चैधरी की ‘लापता’ के साथ ‘भूत पुलिस’ शामिल हैं.

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सूत्रों के अनुसार यामी गौतम का पिछले 7 महीनों का बहुत व्यस्त कार्यक्रम था. वह कई फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त थीं. अंत में, अभिनेत्री को घर जाने और अपने परिवार के साथ रहने के लिए थोड़ा समय निकालना पड़ा. वह एक यात्रा घर बनाने के लिए अपने कार्यक्रम के बीच एक जगह पाने के लिए वास्तव में उत्साहित हैं और परिवार के साथ अपने समय का आनंद ले रही हैं.

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