Best of Crime Stories: शादी जो बनी बर्बादी

क्षमादान: आखिर मां क्षितिज की पत्नी से क्यों माफी मांगी?

Best of Crime Stories: शादी जो बनी बर्बादी- भाग 1

23 नवंबर, 2017 गुरुवार का दिन था. सुबह के यही कोई 10 बजे थे. महाराष्ट्र के अमरावती शहर के ओंकार मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी थी. मंदिर आनेजाने वाले लोगों की वजह से सड़कों पर भी काफी चहलपहल थी. 24 वर्षीया प्रतीक्षा भी अपनी सहेली श्रेया वायस्कर के साथ साईंबाबा के दर्शन कर के स्कूटी से खुशीखुशी अपने घर लौट रही थी.

दोनों सहेलियां आपस में बातें करते हुए अभी साईंनगर के वृंदावन कालोनी परिसर स्थित ठाकुलदार मालानी घर के सामने क्रौसिंग पर पहुंची थीं कि अचानक उन की स्कूटी के सामने एक दूसरी स्कूटी आ कर रुकी. जिस की वजह से दोनों सड़क पर गिरतेगिरते बचीं.

उस स्कूटी पर एक युवक सवार था. उसे इस तरह सामने आया देख कर प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. डरीसहमी प्रतीक्षा ने एक बार श्रेया को देखा. वह उस लड़के को जानती थी. वह हिम्मत जुटा कर उस लड़के से बोली, ‘‘हटो मेरे सामने से, मेरा रास्ता छोड़ो. मुझे घर जाने के लिए देर हो रही है.’’

वह युवक उसे घूरने लगा. तभी प्रतीक्षा ने श्रेया से कहा, ‘‘श्रेया, यह सामने से नहीं हट रहा तो तुम अपनी स्कूटी साइड से निकाल कर चलो.’’

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श्रेया वहां से निकल पाती, उस के पहले उस युवक ने श्रेया के नजदीक आ कर स्कूटी की चाबी निकालते हुए कहा, ‘‘प्रतीक्षा, आज मैं तुम्हें यह जान कर ही जाने दूंगा कि तुम मेरे साथ चलोगी या नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ क्यों चलूं?’’ प्रतीक्षा ने कहा.

‘‘क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो. तुम ने मुझ से शादी की है.’’ युवक ने आवेश में आ कर कहा.

‘‘मैं कितनी बार कह चुकी हूं कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. तुम यह बात भूल जाओ कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं. न मैं अब तुम से प्यार करती हूं और न पहले तुम से प्यार करती थी.’’ प्रतीक्षा ने सीधे जवाब दिया.

‘‘लेकिन मैं तुम्हें अभी भी पत्नी मानता हूं और प्यार भी करता हूं, इसलिए मैं कतई नहीं चाहूंगा कि तुम मुझ से दूर रहो. तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा. अगर आज तुम मेरे साथ नहीं चलोगी तो अच्छा नहीं होगा.’’ युवक ने धमकी दी.

प्रतीक्षा उस की इन बातों से परेशान हो गई. उस ने उसे समझाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी बात समझते क्यों नहीं. मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. फिर भी तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, जो मेरे लिए अच्छा न हो.’’

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‘‘प्रतीक्षा, मैं कुछ भी कर सकता हूं. तुम्हारे साथ न आने से अब मेरी जिंदगी में बचा ही क्या है. तुम्हारी वजह से मुझे थाने और कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. तुम ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी जिंदगी तबाह कर के रख दी. भला मैं तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूं.’’ इतना कह कर उस युवक ने जेब से एक चाकू निकाला. चाकू देख कर प्रतीक्षा और उस की सहेली श्रेया घबरा गईं. दोनों कुछ कर पातीं, उस के पहले ही उस ने प्रतीक्षा पर हमला कर दिया.

हमला होते वक्त मूकदर्शक बने लोग

प्रतीक्षा की मार्मिक चीखें वातावरण में गूंजने लगीं. वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. इस पर भी उस युवक का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह उस पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि वह शांत नहीं हो गई. सहेली पर हमला होने से श्रेया घबरा गई थी. वह प्रतीक्षा की मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही, पर मदद के लिए कोई नहीं आया. कुछ लोग वहां खड़े बस तमाशा देखते रहे. हमलावर को जब विश्वास हो गया कि प्रतीक्षा मर चुकी है तो वह बड़े आराम से अपनी स्कूटी ले कर फरार हो गया.

फिल्मी अंदाज में घटी इस घटना से डरीसहमी श्रेया ने घटना की खबर पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ प्रतीक्षा के घर वालों को भी दे दी. चूंकि वह इलाका थाना राजापेठ के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना राजापेठ थाने को प्रसारित कर दी. थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी ने इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी को आवश्यक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर भेज दिया और अपने आला अधिकारियों को सूचना देने के बाद खुद भी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

अगले भाग में पढ़ें- मां ने बताया हमलावर का नाम

क्षमादान- भाग 1: आखिर मां क्षितिज की पत्नी से क्यों माफी मांगी?

टैक्सी से उतरते हुए प्राची के दिल की धड़कन तेज हो गई थी. पहली बार अपने ही घर के दरवाजे पर उस के पैर ठिठक गए थे. वह जड़वत खड़ी रह गई थी.

‘‘क्या हुआ?’’ क्षितिज ने उस के चेहरे पर अपनी गहरी दृष्टि डाली थी.

‘‘डर लग रहा है. चलो, लौट चलते हैं. मां को फोन पर खबर कर देंगे. जब उन का गुस्सा शांत हो जाएगा तब आ कर मिल लेंगे,’’ प्राची ने मुड़ने का उपक्रम किया था.

‘‘यह क्या कर रही हो. ऐसा करने से तो मां और भी नाराज होंगी…और अपने पापा की सोचो, उन पर क्या बीतेगी,’’ क्षितिज ने प्राची को आगे बढ़ने के लिए कहा था.

प्राची ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था. उस ने क्षितिज की बात मानी ही क्यों. आधा जीवन तो कट ही गया था, शेष भी इसी तरह बीत जाता. अनवरत विचार शृंखला के बीच अनजाने में ही उस का हाथ कालबेल की ओर बढ़ गया था. घर के अंदर से दरवाजे तक आने वाली मां की पदचाप को वह बखूबी पहचानती थी. दरवाजा खुलते ही वह और क्षितिज मां के कदमों में झुक गए. पर मीरा देवी चौंक कर पीछे हट गईं.

‘‘यह क्या है, प्राची?’’ उन्होंने एक के बाद एक कर प्राची के जरीदार सूट, गले में पड़ी फूलमाला और मांग में लगे सिंदूर पर निगाह डाली थी.

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‘‘मां, मैं ने क्षितिज से विवाह कर लिया है,’’ प्राची ने क्षितिज की ओर संकेत किया था.

‘‘मैं ने मना किया था न, पर जब तुम ने मेरी इच्छा के विरुद्ध विवाह कर ही लिया है तो यहां क्या लेने आई हो?’’ मीरा देवी फुफकार उठी थीं.

‘‘क्या कह रही हो, मां. वीणा, निधि और राजा ने भी तो अपनी इच्छा से विवाह किया था.’’

‘‘हां, पर तुम्हारी तरह विवाह कर के आशीर्वाद लेने द्वार पर नहीं आ खड़े हुए थे.’’

‘‘मां, प्रयत्न तो मैं ने भी किया था, पर आप ने मेरी एक नहीं सुनी.’’

‘‘इसीलिए तुम ने अपनी मनमानी कर ली? विवाह ही करना था तो मुझ से कहतीं, अपनी जाति में क्या लड़कों की कमी थी. अरे, इस ने तो तुम से तुम्हारे मोटे वेतन के लिए विवाह किया है. मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम ने मां का दिल दुखाया है, तुम कभी चैन से नहीं रहोगी,’’ और इस के बाद वह ऐसे बिलखने लगीं जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो.

‘‘मां,’’ बस, इतना बोल कर प्राची अविश्वास से उन की ओर ताकती रह गई. मां के प्रति उस के मन में बड़ा आदर था. अपना वैवाहिक जीवन वह उन के श्राप के साथ शुरू करेगी, ऐसा तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. अनजाने ही आंखों से अश्रुधारा बह चली थी.

‘‘ठीक है मां, एक बार पापा से मिल लें, फिर चले जाएंगे,’’ प्राची ने कदम आगे बढ़ाया ही था कि मीरा देवी फिर भड़क उठीं.

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‘‘कोई जरूरत नहीं है यह दिखावा करने की. विवाह करते समय नहीं सोचा अपने अपाहिज पिता के बारे में, तो अब यह सब रहने ही दो. मैं उन की देखभाल करने में पूर्णतया सक्षम हूं. मुझे किसी की दया नहीं चाहिए,’’ मीरा देवी ने प्राची का रास्ता रोक दिया.

‘‘कौन है. मीरा?’’ अंदर से नीरज बाबू का स्वर उभरा था.

‘‘मैं उन्हें समझा दूंगी कि उन की प्यारी बेटी प्राची अपनी इच्छा से विवाह कर के घर छोड़ कर चली गई,’’ वह क्षितिज को लक्ष्य कर के कुछ बोलना ही नहीं चाहती थीं मानो वह वहां हो ही नहीं.

‘‘चलो, चलें,’’ आखिर मौन क्षितिज ने ही तोड़ा. वह सहारा दे कर प्राची को टैक्सी तक ले गया और प्राची टैक्सी में बैठी देर तक सुबकती रही. क्षितिज लगातार उसे चुप कराने की कोशिश करता रहा.

‘‘देखा तुम ने, क्षितिज, पापा को पक्षाघात होने पर मैं ने पढ़ाई छोड़ कर नौकरी की. आगे की पढ़ाई सांध्य विद्यालय में पढ़ कर पूरी की. निधि, राजा, प्रवीण, वीणा की पढ़ाई का भार, पापा के इलाज के साथसाथ घर के अन्य खर्चों को पूरा करने में मैं तो जैसे मशीन बन गई थी. मैं ने अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं. निधि, राजा और वीणा ने नौकरी करते ही अपनी इच्छा से विवाह कर लिया. तब तो मां ने दोस्तों, संबंधियों को बुला कर विधिविधान से विवाह कराया, दावत दीं. पर आज मुझे देख कर उन की आंखों में खून उतर आया. आशीर्वाद देने की जगह श्राप दे डाला,’’ आक्रोश से प्राची का गला रुंध गया और वह फिर से फूटफूट कर रोने लगी.

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‘‘शांत हो जाओ, प्राची. हमारे जीवन का सुखचैन किसी के श्राप या वरदान पर नहीं, हमारे अपने नजरिए पर निर्भर करता है,’’ क्षितिज ने समझाना चाहा था, पर सच तो यह था कि मां के व्यवहार से वह भी बुरी तरह आहत हुआ था. अपने फ्लैट के सामने पहुंचते ही क्षितिज ने फ्लैट की चाबी प्राची को थमा दी और बोला, ‘‘यही है अपना गरीबखाना.’’

प्राची ने चारों ओर निगाह डाली, घूम कर देखा और मुसकरा दी. डबल बेडरूम वाला छोटा सा फ्लैट बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था.

Father’s Day Special- कीमत संस्कारों की: भाग 2

दीनप्रभु अभावों के जीवन के भुक्तभोगी थे इसलिए वह हाथ लगे इस अवसर को खोना नहीं चाहते थे और सबकुछ जानते और देखते हुए भी वह अपने परिवार के साथ तालमेल बनाए रहे. अमेरिका में आ कर उन्होेंने आगे और पढ़ाई की. फिर बाकायदा विदेश में पढ़ाने का लाइसेंस लिया और फिर वह बच्चों के स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए.

परिश्रम से दीनप्रभु ने कभी मुंह नहीं मोड़ा. अपनी नौकरी से उन्होंने थोड़ा बहुत पैसा जमा किया और फिर एक दिन उस पैसे से एक छोटा सा ‘फ्रैंचाइज’ रेस्टोरेंट खोल लिया. फिर उन की मेहनत और लगन रंग लाई. रेस्टोरेंट चल निकला और वह थोड़े समय में ही सुखसंपदा से भर गए. पैसा आया तो दीनप्रभु ने दूसरे धंधे भी खोल लिए और फिर एक दिन उन्होंने प्रयास कर के अमेरिकी नागरिकता भी ले ली. फिर तो उन्होंने एकएक कर अपने भाईबहनों के परिवार को भी अमेरिका बुला लिया. अपने परिवार के लोगों को अमेरिका बुलाने से पहले दीनप्रभु ने सोचा था कि जब कभी विदेश में रहते हुए उन्हें अकेलापन महसूस होगा तो वे 2-1 दिन के लिए अपने भाइयों के घर चले जाया करेंगे.

अब तक दीनप्रभु 3 रेस्टोरेंट और 2 गैस स्टेशन के मालिक बन चुके थे. रेस्टोरेंट को वह और उन की पत्नी संभालते थे और दोनों गैस स्टेशनों का भार उन्होंने अपने दोनों बच्चों पर डाल रखा था. खानपान में उन के यहां पहले ही कोई रीतिरिवाज नहीं था और न ही अब है लेकिन फिर भी दीनप्रभु किसी न किसी तरह अपने भारतीय संस्कारों को बचाए रखने की कोशिश कर रहे थे. जबकि उन की पत्नी बड़े मजे से हर तरह का अमेरिकी शाकाहारी व मांसाहारी भोजन खाती थी. पार्टियों में वह धड़ल्ले से शराब पीती और दूसरे युवकों के साथ डांस भी कर लेती थी.

दीनप्रभु जब भी ऐसा देखते तो यही सोच कर तसल्ली कर लेते कि इनसान को दोनोें हाथों में लड्डू कभी भी नहीं मिला करते हैं. यदि उन को विदेशी जीवन की अभ्यस्त पत्नी मिली है तो उस के साथ उन्हें वह सुख और सम्पन्नता भी प्राप्त हुई है कि जिस के बारे में वह प्राय: ही सोचा करते थे.

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विवाह के 25 साल  पलक झपकते गुजर गए. इस बीच संतान के नाम पर उन के यहां एक लड़का और एक लड़की भी आ चुके थे. उन्हें याद है कि जब लौली ने पहली संतान को जन्म दिया था तो उन्होंने कितने उल्लास के साथ उस का नाम हरिशंकर रखा था मगर लौली ने बाद में उस का नाम हरिशंकर से हैरीसन करवा दिया. ऐसा ही दूसरी संतान लड़की के साथ भी हुआ. उन्होंने लड़की का भारतीय नाम पल्लवी रखा था मगर लौली ने पल्लवी को पौलीन बना दिया. लौली का कहना था कि अमेरिकन को हिंदी नाम लेने में कठिनाई आती है. उस समय लौली ने यह भी बताया था कि उस ने भी अपना लीला नाम बदल कर लौली किया था.

लौली की सोच है कि जब जीवन विदेशी संस्कृति में रह कर ही गुजारना है तो वह कहां तक अपने देश की सामाजिक मान्यताओं को बचा कर रख सकती है और दीनप्रभु अपनी पत्नी की इस सोच से सहमत नहीं थे. उन का मानना था कि ठीक है विदेश में रहते हुए खानपान और रहनसहन के हिसाब से हर प्रवासी को समझौता करना पड़ता है लेकिन इन दोनों बातों में अपने देश की उस संस्कृति और संस्कारों की बलि नहीं चढ़ती है कि जिस में एक छोटा भाई अपनी बड़ी बहन को ‘दीदी’, बड़े भाई को ‘भैया’ और अपने से बड़ों को ‘आप’ कह कर बुलाता है. यहां विदेश में ऐसा कोई भी रिवाज या सम्मान नाम की वस्तु नहीं है. यहां चाहे कोई दूसरों से छोटा हो या बड़ा, हर कोई एकदूसरे का नाम ले कर ही बात करता है और जब ऐसा है तो फिर एकदूसरे के सम्मान की तो बात ही नहीं रह सकती है.

एक दिन पौलीन अपने किसी अमेरिकन मित्र को ले कर घर आई और अपने कमरे को बंद कर के उस के साथ घंटों बैठी बातें करती रही तो भारतीय संस्कारों में भीगे दीनप्रभु का मन भीग गया. वह यह सब अपनी आंखों से नहीं देख सके. बेचैनी बढ़ी तो उन्होंने पौलीन से आखिर पूछ ही लिया.

‘कौन है यह लड़का?’

‘डैड, यह मेरा बौय फ्रेंड है,’ पौलीन ने बिना किसी झिझक के उत्तर दिया.

दीनप्रभु जैसे सकते में आ गए. वह कुछ पलों तक गंभीर बने रहे फिर बोले, ‘तुम इस से शादी करोगी?’

उन की इस बात पर पौलीन अपने माथे पर ढेर सारे बल डालती हुई बोली, ‘आई एम नाट श्योर.’ (मैं ठीक से नहीं कह सकती.)

पल्लवी ने कहा तो दीनप्रभु और भी अधिक आश्चर्य में पड़ गए. उन्हें यह सोचते देर नहीं लगी कि उन की लड़की का इस लड़के से यह कैसा रिश्ता है जिसे मित्रता भी नहीं कह सकते हैं और विवाह से पहले होने वाले 2 प्रेमियों के प्रेम की संज्ञा भी उसे नहीं दी जा सकती है. पौलीन अकसर इस लड़के के साथ घूमतीफिरती है. जहां चाहती है, बेधड़क उस के साथ चली जाती है. कई बार रात में भी घर नहीं आती है, उस के बावजूद वह यह नहीं जानती कि इस लड़के से विवाह भी करेगी या नहीं.

काफी देर तक गंभीर बने रहने के बाद दीनप्रभु ने पौलीन से कहा, ‘क्या तुम बता सकती हो कि बौय फ्रेंड और पति में क्या अंतर होता है?’

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‘कोई विशेष नहीं डैड. दोनों ही एकजैसे होते हैं. अंतर है तो केवल इतना कि बौय फ्रेंड की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है जबकि पति की बाकायदा अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति एक ऐसा उत्तरदायित्व होता है जिसे उसे पूरा करना ही होता है.’

अतीत की यादें दिमाग में तभी साकार रूप लेती हैं जब कुछ मिलतीजुलती घटनाएं सामने घटित हों. विवाह के बारे में बेटी का नजरिया जान कर उन्हें अपनी बहनों की शादी की याद आ गई. दीनप्रभु ने अपनी मर्जी से कभी अपनी दोनों छोटी बहनों के लिए वर चुने थे और दोनों में से किसी ने भी चूं तक न की थी. मगर आज घर में उन की स्थिति यह है कि अपनी ही बेटी के जीवनसाथी के चुनाव के बारे में जबान तक नहीं खोल सकते हैं.

दीनप्रभु को शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि नए समाज का जो यह नया धरातल है उस पर उस के जैसा सदाचारी, सरल स्वभाव का इनसान एक पल को भी खड़ा नहीं हो सकता है. जिंदगी के सुव्यवस्थित आयाम यदि बाहरी दबाव के कारण बदलने लगें तो इनसान एक बार को सहन कर लेता है लेकिन जब अपने ही लोग खुद के बनाए हुए रहनसहन के दायरों को तोड़ने लगें तो जीवन में एक झटका तो लगता ही है साथ ही इनसान अपनी विवशता के लिए हाथ भी मलने को मजबूर हो जाता है.

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दीनप्रभु जानते थे कि अपने द्वारा बनाए उस माहौल में रहने को वह मजबूर हैं जिस की एक भी बात उन को रास नहीं आती. वह यह भी समझते थे कि यदि उन्होंने कोई भी कड़ा कदम उठाने की चेष्टा की तो जो घर बनाया है उसे बरबादियों का ढांचा बनते देर भी नहीं लगेगी. जिस देश और समाज में वह रह रहे हैं उस की मान्यताओं को स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा. जिस देश का चलन यह कहे कि ‘ये मेरा अपना जीवन है, आप कुछ भी नहीं कह सकते हैं’ और ‘अब मैं 21 वर्ष का बालिग हो चुका हूं,’ वहां पर बच्चों को जन्म देने वाले मातापिता का नाम केवल इस कारण चलता है क्योंकि बच्चे को जन्म देने वाले कोई न कोई मातापिता ही तो होते हैं.

अब इस भोजपुरी एक्टर के साथ पर्दे पर धूम मचाएंगी Aamrapali Dubey, क्या होगा निरहुआ का रिएक्शन

भोजपुरी इंडस्ट्री की मशहूर एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे (Aamrapali Dubey)  इन दिनों एक से बढ़कर एक प्रोजेक्ट साइन कर रही हैं. बता दें कि एक्ट्रेस ने निरहुआ यानी दिनेश लाल यादव के साथ कई फिल्में की हैं. दोनों की जोड़ी को दर्शक खूब पसंद करते हैं. तो अब खबर यह आ रही है कि एक्ट्रेस जय यादव के साथ भोजपुरी फिल्म के लिए हाथ मिला लिया है.

जी हां, सही सुना आपने, रिपोर्ट्स की मानें तो आम्रपाली दुबे ने भोजपुरी एक्टर जय यादव  के साथ पर्दे पर जल्द ही दिखाई देंगी. मेकर्स ने फिल्म के टाइटल को लेकर कोई खुलासा नहीं किया है.

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आपको बता दें कि आम्रपाली दुबे और जय यादव ‘मेरे रंग मैं रंगने वाली’ में भी एक साथ नजर आ चुके हैं. इस फिल्म में दोनों की ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री को दर्शकों ने खूब पसंद किया था.

 

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इस फिल्म के बाद से ही दर्शक आम्रपाली और जया को बड़े पर्दे पर देखने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. खबर आ रही है कि आम्रपाली और जय की इस फिल्म की शूटिंग सितंबर से शुरू की जाएगी.

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वर्कफ्रंट की बात करे तो जय यादव फिल्म ‘अमानत’ में एक्ट्रेस काजल राघवानी के साथ भी नजर आएंगे. तो वहीं आम्रपाली दुबे के पास ‘आई मिलन की रात’, ‘ठिक है’, ‘आशिकी’, ‘रोमियो राजा’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी कई भोजपुरी फिल्में हैं.

 

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Ghum Hai Kisikey Pyaar Mein: सई के सामने आएगा पाखी और विराट का अतीत!

स्टार प्लस के सुपरहिट टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी इन दिनों काफी दिलचस्प मोड़ पर आ चुकी है. शो के बीते एपिसोड में आपने देखा कि पाखी देवयानी का रोल अदा की तो वहीं देवयानी बनी पाखी का हाल देखकर हरिणी इमोशनल हो गई. शो के लेटेस्ट एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए जानते हैं शो के आगे की कहानी.

शो में दिखाया जा रहा है कि हरिणी को सच का एहसास हुआ. हरिणी, देवयानी को अपनी मां कहकर बुलाई. मां बेटी को साथ देखकर पूरे चौहान परिवार की आंख में आंसू आ गए. तो अब शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है.

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शो में आप देखेंगे कि विराट कहेगा कि सई की वजह से उसके परिवार की खुशियां लौट आई हैं. यह बात सुनकर पाखी का दिल टूट जाएगा. विराट के मुंह से सई की तारीफ सुनकर पाखी का गुस्सा सातवे आसमान पर होगा.

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तो वहीं पाखी विराट को पुराना वादा याद दिलवाएगी. वह विराट से कहेगी कि तुमने मुझे धोखा दिया है, इतना ही नहीं वह ये भी कहेगी कि तुमने मेरे जज्बात के साथ खेला है. पाखी यह भी याद दिलाएगी कि क्या पहले हम एक-दूसरे से प्यार करते थे… हम शादी भी करने वाले थे.. मैं तुम्हारी वाइफ बनने वाली थी….कह दो कि ये सब झूठ है..

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तो उधर सई, विराट और पाखी की सारी बाते सुन लेती है. अब शो को अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि पाखी और विराट का अतीत जानकर सई क्या फैसला लेगी.

देव को आएगा हार्ट अटैक तो Imlie सिखाएगी अनु को सबक

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. कहानी एक नया मोड़ ले रही है. शो के बीते एपिसोड में आपने देखा कि मालिनी को अपने पिता और इमली की मां के रिश्ते के बारे में पता चल गया है.  इस सच्चाई को जानने के बाद मालिनी के पैरों तले जमीन खिसक गई है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए जानते हैं शो के लेटेस्ट ट्रैक के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि मालिनी को पता चल गया है कि इमली उसके पापा देव और मीठी की ही बेटी है. ऐसे में मालिनी (Mayuri Deshmukh) फैसला करती है कि इमली को सारे हक दिलवाएगी, जिसकी वह हकदार है.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि मालिनी घर वापस आते ही देव से हर राज कहेगी.  मालिनी कहेगी कि इमली देव की बेटी है. अनु को ये सुनकर जोर का झटका लगेगा.

 

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मालिनी देव से यह भी कहेगी कि वो इमली को अपना ले. अनु मालिनी को रोकेगी लेकिन मालिनी देव को लेकर आदित्य के घर जाने का फैसला करेगी।. आदित्य के घर पहुंचते ही मालिनी इमली से टकराएगी. इमली को देखते ही मालिनी देव से खुद अपने मुंह से सारा सच कहने के लिए कहेगी.

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तो वहीं देव इमली से अपनी बात कहने ही जाएगा कि उसे हार्ट अटैक आ जाएगा. और बेहोशी की हालत में वह जमीन पर गिर जाएगा और उसकी ये हालत देखकर इमली और मालिनी काफी घबरा जाएंगे.

 

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त्रिपाठी परिवार देव को अस्पताल में भर्ती कराएंगे लेकिन यहां पर आते ही अनु खूब तमाशा करेगी. अनु सभी के सामने इमली को जलील करेगी और उस पर अपना सारा गुस्सा निकालेगी. अनु गुस्से में आकर इमली से देव का सच बताने की कोशिश करेगी लेकिन मालिनी बीच में आ जाएगी.

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनु फिर से इमली पर हाथ उठाएगी तो इस बार इमली भी पिछे नहीं हटेगी और अनु को सबक सिखाएगी.शो के अपकमिंग एपिसोड में इमली औऱ अनु के बीच खूब तमाशा होने वाला है.

Father’s Day Special- मौहूम सा परदा: भाग 3

‘अब्बू इतनी सुबह गए कहां’, इस प्रश्न पर सोचतेसोचते दोनों लड़के आपस में उलझ गए. साजिद ने साफ कह दिया, ‘‘गलती शाहिद भाई की है. अम्मी ने हमारे साथ कभी कोई बदसलूकी नहीं की. बल्कि हमेशा प्यार से हमारी परवरिश की. फिर शाहिद भाई के मन में ऐसे खयालात कैसे पैदा हुए जिन की वजह से कल उस ने अब्बू के सामने अम्मी के खिलाफ ऐसी बेहूदा बातें कीं. अगर किसी वजह से उन को निजी तौर पर अम्मी के खिलाफ कुछ शिकायत थी तो उसे मोहूम से परदे में ही रहने देते. इस तरह अब्बू के सामने उन्हें पेश कर के क्या हासिल हुआ. अरे, कुछ हासिल होना तो दूर, मुझे तो ऐसा लगता है कि हम कहीं अब्बू को खो न दें.’’ इतना कह कर साजिद चुप हो गया.

थोड़ी देर खामोशी पसरी रही, फिर साजिद ही बोला, ‘‘चलो, अब चल कर ढूंढ़ो तो सही, अब्बू गए कहां हैं, आखिरकार,’’ दोनों भाई चलने को तैयार हुए ही थे कि दरवाजे की घंटी बजी. गेट पर एक आटो चालक को खड़ा देख कर शाहिद भिनभिनाया, ‘‘अब यह कौन है, एक नई मुसीबत सुबह ही सुबह?’’

‘‘अरे चुप रहिए, देखिए, कहीं अब्बू ही न हों,’’ शाहिद की बीवी ने डांटते हुए कहा.

आटोरिक्शा वाला घर के लोगों को बाहर आया देख कर गेट खोल कर अंदर आ गया और बोला, ‘‘हजरात, आप जनाब डा. साहब के साहबजादे ही हैं न?’’

‘‘हां, मगर आप कौन हैं. और डाक्टर साहब यानी हमारे अब्बू कहां हैं?’’

दोनों के सवाल के जवाब में आटोचालक बोला, ‘‘साहबान, हमारा नाम रमजानी है, हम आप के पास की कच्ची बस्ती में ही रहते हैं. पहले यूनिवर्सिटी की डिलीवरी वैन चलाते थे. 3 साल से रिटायर हो गए. रिटायर होने से गुजरबसर में परेशानी होने लगी तो डाक्टर साहब ने हमें यह आटोरिक्शा अपनी जमानत पर फाइनैंस करा दिया. आज सवेरे 4 बजे के करीब डाक्टर साहब हमारे घर आए और बोले, ‘रमजानी, तुम्हें बेवक्त जगा कर तकलीफ दे रहे हैं लेकिन अगर तुम हमें अभी एअरपोर्ट छोड़ दोगे तो हमें सुबह 6 बजे दिल्ली के लिए फ्लाइट मिल जाएगी और वहां से शाम को हमें लंदन की फ्लाइट मिल जाएगी. तुम्हारी भाभी को वहां अपने इस पुराने सितार की बड़ी जरूरत है. अगर यह मेहरबानी कर दो तो काम बन जाएगा.’

‘‘हजरात, डाक्टर साहब के ये शब्द सुन कर हम तो शर्म से ऐसे गड़़ गए कि उन्हें सलाम करना तक भूल गए. जल्दी से कपड़े पहने, आटो निकाला और उन्हें बिठा कर चल दिए. एअरपोर्ट पहुंच कर वे आटो से उतरे, सितार निकाला और हजार का एक नोट हमारे हाथ में थमा कर बोले, ‘रमजानी, मेरे पास छुट्टा नहीं हैं, तुम्हारी बोहनी का समय है, रख लो. देखो, मना मत करना.’ यह कह कर हमारी मुट्ठी बंद कर के तेजी से एअरपोर्ट की बिल्ंिडग में दाखिल हो गए. हम तो बोडम की तरह देखते ही रह गए. भैया, हम डाक्टर साहब की बहुत इज्जत करते हैं. सो, एअरपोर्ट तक का किराया 120 रुपए रख लिया है. बाकी के यह 880 रुपए आप हजरात रखें.’’ कह कर उस ने कुछ नोट शाहिद के हाथ पर रख दिए. फिर बोला, ‘‘हां, यह खत भी दिया था. घर पर देने को,’’ कह कर कमीज की जेब से एक लिफाफा निकाल कर शाहिद के हाथ में थमा कर सलाम कर के वह चला गया.

आटोचालक के जाते ही साजिद ने शाहिद से तल्ख आवाज में कहा, ‘‘अब जनाब लिफाफा खोल कर खत पढ़ कर बताने की जहमत फरमाएं कि अब्बा हुजूर आप की तकरीर से खुश हो कर क्या पैगाम दे गए हैं.’’

शाहिद ने कांपते हाथों से लिफाफा खोला, कौपी के एक पन्ने पर शायद चलते वक्त कांपते हाथों से लिखा था, ‘‘शाहिद साहब, राबिया बेगम के बारे में आप ने अपने खयालात को आज तक मोहूम से परदे में रखा. उस के लिए शुक्रिया. अगर आप के खयालात उन की मौजूदगी में रोशन होते तो शायद वे तो शर्म और दुख से जीतेजी ही मर जातीं. हम कोशिश करेंगे कि अब इस घर में कभी वापस आना न हो. हमारे पास इल्म और फन के साथ आपसी प्यारमुहब्बत और विश्वास की जो अकूत दौलत है उस के सहारे

हम मजे से जिंदा रह लेंगे. तुम सब खुश रहो.’’ खत के अंत में उन्होंने हमेशा की तरह ‘तुम्हारा अब्बू’ नहीं लिख कर लिखा था, ‘‘किसी का कोई नहीं, जाकिर अली.’’

खत का मजमून सुन कर घर के सभी लोग थोड़ी देर गुमसुम खड़े रहे और शाहिद को तनहा छोड़ कर कोठी के अंदर चले गए.

पता नहीं कितना समय गुजर गया. अचानक अजब तरह के शोर से शाहिद चौंका. उस ने देखा एक मादा लंगूर कोठी के बाग के एक पुराने पेड़ की सब से ऊंची शाखा पर चढ़ कर वहां से हवेली की छत पर पहुंच कर महफूज पनाह पाने के जनून में पेड़ों के बीच में से निकल रहे बिजली के तारों की चपेट में आ कर शायद मर गई है. हाइटैंशन पावर के तार होने से उस का शरीर फट गया था. मगर पता नहीं कैसे उस की गोद में चिपका उस का छोटा सा बच्चा उस की गोद से गिर कर नीचे जमीन पर आ पड़ा था. मादा लंगूर को तारों में लटकता देख कर सारे लंगूर पेड़ पर चढ़ कर हूपहूप की आवाज में चिल्ला कर अपना आक्रोश प्रकट कर रहे थे.

उधर, मां की गोद से छिटक कर जमीन पर पड़ा छोटा सा बेसहारा बच्चा अपनी भाषा में अपनी मां को पुकार रहा था और रक्षा की गुहार लगा रहा था. लंगूर के बच्चे को जमीन पर पड़ा देख कर लंगूरों का जानी दुश्मन उन का पालतू शेफर्ड जाति का खूंखार कुत्ता उस की तरफ लपका. वह उस के करीब पहुंच ही गया था कि अचानक पेड़ की डाल से एक मादा लंगूर कूदी. उस ने झपट कर बच्चे को गोदी में चिपकाया और कुत्ते के ऊपर से छलांग लगा कर खिड़की के छज्जे पर बैठ गई. बच्चा, एक मां की गोद में आ कर, अब बेहद आश्वस्त हो गया था. उस ने चीखना बंद कर दिया था.

यह दृश्य देख कर शाहिद को अपने खुद के अंदर कुछ पिघलता हुआ लगा. उस की मां की मौत के बाद से राबिया बेगम के उन की मां बनने और उन के द्वारा की गई परवरिश के बाद अब कल उस के मुंह से उन्हें राबिया बेगम कहे जाने तक का सारा माही कुछ लमहों में उस की आंखों के सामने एक फिल्म की रील के दृश्यों की तरह तेजी से गुजर गया. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. तभी उस की बीवी हाथ में मोबाइल फोन लिए लपकती हुए आई और बोली, लंदन से आप की अम्मी का फोन, वे अब्बू को पूछ रही हैं, क्या कहना है.’’

उस ने जलती नजरों से बीवी को देखा. मोबाइल फोन उस के हाथ से छीना और रुंधे स्वर में बोला, ‘‘अम्मी आदाब, अम्मी, मैं शाहिद, आप का बेटा शाहिद. अम्मी आप हमें किस बात की सजा दे रही हैं जो हमें एकदम तनहा छोड़ कर चली गई हो. आ जाओ, अम्मी. आप को हमारी…अपने बच्चों की खुशियों के लिए वापस आ जाओ, अम्मी. मैं आप के बिना अपने को बिलकुल तनहा महसूस कर रहा हूं. एक हफ्ते में आ जाइए.’’ कहतेकहते शाहिद की हिचकिया बंध गईं तो साजिद ने फोन ले कर अम्मी की मानमनौवल शुरू कर दी.

साजिद की अम्मी से मानमनौवल पूरी हो गई थी. वह बोला, ‘‘भाईजान, आप ने रात को भी कुछ नहीं खाया, आप कुछ नाश्ता कर लीजिए. मैं ने रहमत चाचा से कार निकालने के कह दिया है. अभी निकलेंगे तो अब्बू की फ्लाइट के लिए सिक्योरिटी चैकइन के लिए एअरपोर्ट पहुंचने तक हम भी

वहां पहुंच जाएंगे. उन्हें मना कर ले कर आएंगे.’’

‘‘साजिद, मैं ने रात को खाना नहीं खाया तो तुम ने कौन सा खाया था. तुम नाश्ता कर लो, मैं तो जब तक अब्बू से मिल कर माफी नहीं मांग लेता, नहीं खाऊंगा. तुम सब यही मनाओ कि अब्बू मिल जाएं और मुझे माफ कर दें.’’ इतना कह कर उस ने सिर झुका लिया.

Crime: मुझे बचा लो, पिताजी मुझे मार डालेंगे!

छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा  के कटघोरा थाना अंतर्गत  छत्तीसगढ़ प्रदेश की प्राचीन राजधानी कहे जाने वाले  “तुमान” नामक ग्राम में हुए एक युवती की हत्या की गुत्थी को सुलझाने में पुलिस को बड़ी मशक्कत के बाद सफलता मिली .

कटघोरा थाना प्रभारी अविनाश सिंह  व पुलिस की टीम ने हत्या की तह तक जांच कर संदिग्ध आरोपी से कड़ी पूछताछ की और अंततः हत्यारे ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

हत्या की वजह प्रेम प्रसंग है- प्रेमी ने युवती कृष्णा कुमारी गोस्वामी( 21 वर्ष )की बेवफाई के शक में उसे मौत की नींद सुला दिया. कृष्णा हत्या कांड में पुलिस की गहन जांच में यह तथ्य सामने आया की एक टीवी सीरियल के अपराधिक कार्यक्रम को देखकर प्रेमी ने संगीन तरीके से हत्या की घटना को अंजाम  दिया . पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया कि  दिगपाल दास गोस्वामी की  बेटी कृष्णा  गोस्वामी का  एक युवक संजय चौहान के साथ पिछले कुछ वर्षों से प्रेम संबंध था. संजय कृष्णा कुमारी के घर भी आया जाया करता था.

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कृष्णा गोस्वामी के ब्वाय फ्रेंड संजय के अलावा अन्य लड़कों  से भी ,  हो गई थी और मोबाइल में बात चीत व चैटिंग किया करती थी. इस दरमियान  कृष्णा की  कटघोरा के एक युवक नेमेंद्र देवांगन से ऑनलाइन मोबाइल गेम के जरिये मित्रता हुई और दोनों के बीच मोबाइल से बातचीत भी होने लगी, जिसकी भनक  प्रेमी संजय को हो गई जिसके कारण संजय  कृष्णा से इस बात को लेकर सख्त नाराज़ रहने लगा था.

और उतारा मौत के घाट

प्रेमी संजय चौहान ने एक टेलीविजन सीरियल  को देखकर उसी अंदाज़ में प्रेमिका कृष्णा की हत्या को अंजाम दिया. घटना के दिन  संजय युवती कृष्णा के घर पहुँचा और कहने लगा – “तू मझे धोखा दे रही है देखना कहा मैं तुझे मार डालूंगा. तू किसी और लड़के से सम्बंध बना रही है.”

इस पर कृष्णा ने उसकी बातों को हंस कर ध्यान नहीं दिया. उसे घर में बिठाया  चाय पीने के बाद  वह वापस चला गया.

रात तकरीबन डेढ़ बजे संजय बिना चप्पल व मोबाइल के युवती के घर पहुँचा और कृष्णा को बहलाकर उसके मोबाइल से अपने मोबाइल व कटघोरा के युवक नेमेन्द्र के मोबाइल पर कृष्णा से मैसेज पोस्ट करवाया – “मुझे बचा लो, मेरे पिताजी मुझे मार डालेंगे” उसके बाद कृष्णा के घर पर रखी साड़ी से कृष्णा का गला दबाकर घर के पीछे की बाड़ी में ले जा कर  मार दिया. सुबह जब कृष्णा के पिता दिगपाल घर के पीछे बाडी में गया तो कृष्णा मृत अवस्था में पड़ी हुई मिली गले में साड़ी लिपटी हुई थी  उन्होंने कृष्णा के गले से साड़ी के फंदे को हटाया और देखा तो कृष्णा मर चुकी थी. घटना की सूचना  थाना में दी गई.

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 विवाद का फायदा उठाया प्रेमी ने

कटघोरा पुलिस  थाना प्रभारी  द्वारा की गई कड़ी पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली दिगपाल  अपनी  बेटी कृष्णा कुमारी गोस्वामी का विवाह जिला सूरजपुर में करना चाहता  था लेकिन बेटी कृष्णा इस शादी को लेकर इंकार कर रही थी. जिसे लेकर बाप बेटी में  विवाद होता था इस बात की जानकारी कृष्णा के प्रेमी संजय को थी और इस बात का फायदा उठाकर सबसे पहले घटना के दिन उसने कृष्णा को धमकाकर अपने व कटघोरा के युवक नेमेन्द्र देवांगन के मोबाइल में पिता के खिलाफ मैसेज करवाया जिससे पुलिस का शक कृष्णा के पिता पर चला जाए.

और पहले हुआ भी यही हत्या की जांच में पहुचे सायबर सेल व खोजी बाघा ने भी मृतका कृष्णा कुमारी गोस्वामी के पिता को ही संदेही हत्यारा बताया. सायबर सेल ने जांच में पाया की कृष्णा के मोबाइल से मैसेज किया गया है जिसमें कृष्णा के द्वारा लिखा गया था कि उसे पिता से उसको जान का खतरा है. और दिगपाल द्वारा सुबह मृतका के गले से साड़ी के फंदे को हटाना भी खोजी बाघा द्वारा दिगपाल को निधानदेही होना बताया गया था. लेकिन  पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह मीणा इस जांच से संतुष्ट नही थे.

तुमान हत्याकांड में युवती कृष्णा की हत्या में कृष्णा के पिता और भाई तथा प्रेमी संजय चौहान व कटघोरा के युवक नेमेन्द्र देवांगन को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू हुई लेकिन पिता ने बार बार  फरियाद की कि उसने बेटी की हत्या हत्या नहीं कि है. अंततः कटघोरा निरीक्षक ने कड़ी पूछताछ में आरोपी संजय चौहान ने हत्या का गुनाह कबूल‌ कर  लिया.

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पुलिस को सायबर से जानकारी मिली कि संजय अपना मोबाइल कभी बंद नहीं करता था और जब भी वो कृष्णा के घर जाता था तो भी मोबाइल लेकर जाता था लेकिन घटना के दिन उसका मोबाइल बंद था और वह मोबाइल लेकर नहीं गया  था कृष्णा के मोबाइल से मैसेज खुद न लिख कर उसने कृष्णा से मैसेज लिखवाया और पोस्ट करवाया ताकि हत्या के आरोप में  पिता जेल चला जाए और वह  पुलिस  पकड़ से दूर रहे. मगर उसकी चालाकी किसी काम नहीं आई.

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