ट्रांसजेंडर को बच्चा

केरल के कोझिकोड जिले में जाहद फाजिल और जिया पावल एक ट्रांसजेंडर जोड़ी है. पेशे से डांसर जिया का जन्म पुरुष के रूप में हुआ था, जिस की दोस्ती जब जाहद से हुई थी, तब वह लड़की थी. यानी जाहद का जन्म एक लड़की के रूप में हुआ था. दोनों ने कुछ दिनों में ही पाया कि उन के बीच विपरीत लिंग जैसा आकर्षण है. एकदूसरे के प्रति यही सैक्सुअल खिंचाव उन में आपसी प्रेम का कारण भी बना. वे एक प्रेमी युगल बन गए, लेकिन उन के अपने लिंग की अनुभूति  अलगअलग थी.

तब लड़की जैसी दिखने वाली जाहद ने महसूस किया था कि उस में लड़का होने के तमाम बायोलौजिकल गुण हैं. इसी तरह से जिया को भी अहसास हुआ था कि वह लड़का जरूर है, लेकिन उस के सारे लक्षण लड़कियों जैसे ही हैं. फिर क्या था, उन्होंने अपनेअपने दिल की सुनी और हमेशा एकदूसरे का हाथ थामे रहने के लिए अपनेअपने लिंग परिवर्तन करवा लिए. इस तरह से जाहद फाजिल लड़की से लड़का और जिया पावल लड़का से लड़की बन गई और फिर दोनों एक ट्रांसजेंडर जोड़ी के रूप में सोशल मीडिया पर छा गए.

यह करीब कोरोना काल के पहले साल 2019 की बात है. तब उन्होंने अपनी प्रेम कहानी के साथ जिंदगी को अलग अंदाज में जीने की शुरुआत की और अपने अनुभवों को इंस्टाग्राम पर भी साझा करने लगे. कहने को उन का लिवइन रिलेशन था, लेकिन सब कुछ जानपहचान वालों की नजर में था. किसी से कुछ भी छिपा नहीं था.

वे चाहते थे कि उन की कहानी अन्य ट्रांसजेंडर्स से अलग तरह की हो. वे समाज में सम्मान पाएं और भविष्य में याद किए जाएं. साथ ही उन की महत्त्वाकांक्षा सामान्य जोड़े की तरह अपना परिवार भी बनाने की थी. वे कम से कम एक बच्चा भी चाहते थे.

इस दिली तमन्ना को पूरा करने के लिए उन्होंने मांबाप बनने के लिए जानकारियां जुटानी शुरू कीं. कुछ लोगों से बात की. सलाह ली. फिर इस नतीजे पर पहुंचे कि कोई बच्चा गोद ले कर अपने सपने को पूरा कर सकते हैं. ऐसा कर वे उस बच्चे के मातापिता कहला सकते थे. एक पैरेंट्स का सपना पूरा कर सकते थे, लेकिन वे बच्चे के जन्म देने वाले पैरेंट्स नहीं कहला सकते थे.

जब इस बारे में और जानकारी जुटाई तब मालूम हुआ कि ऐसा करना जितना सुनने में आसान लगा था, दरअसल, वह उतना ही मुश्किल था. कारण, इस प्रक्रिया में कानूनी चुनौतियां थीं. जिस के चलते उन्होंने इस योजना को पीछे छोड़ दिया.

  • मां बनने के लिए किया डाक्टरों से संपर्क

इस के लिए उन्होंने जब और छानबीन की तब उन्हें निस्संतान दंपति के मातापिता बनने के आईवीएफ तकनीक के बारे में मालूम हुआ, जिसे आम बोलचाल की भाषा में टेस्टट्यूब बेबी से जाना जाता है. इसे ध्यान में रखते हुए दोनों ने बच्चे पैदा करने की योजना बनाई.

उस के बाद जाहद ने मां बनने के लिए डाक्टरों से संपर्क किया. इस का मुख्य कारण था कि उस के शरीर में स्त्री के अंश मौजूद थे. हालांकि यह भी कोई आसान नहीं था. इस दौर से गुजरने के क्रम में कई तरह की समस्याओं से गुजरते हुए खुद को मानसिक तौर पर तैयार किया.

जाहद के गर्भ ठहरने का फायदा उस के अंडाशय और गर्भाशय नहीं हटाने से मिला. जब वह सैक्स चेंज के दौर से गुजर रहा था, तब उस के स्तन हटा दिए गए थे, क्योंकि उन की टेस्टोस्टीरोन हार्मोनल थेरेपी चल रही थी, जबकि जिया का उस की पसंद के जेंडर के लिए हारमोन थेरेपी का इलाज चलाया गया था. करीब डेढ़ साल पहले, जब उन्होंने बच्चा पैदा करने का फैसला किया, तब उन की हार्मोनल थेरेपी बंद कर दी गई थी.

8 फरवरी, 2023 को उन्हें अपने बच्चे के मातापिता बनने की खुशखबरी भी मिल गई. पेरैंट्स बन गए. बच्चे का जन्म कोझिकोड (केरल) के सरकारी मैडिकल टीम की देखरेख में सीजेरियन से हुआ.

21 साल के जिया पावल और 23 साल की उन की पार्टनर जाहद बेहद खुश है कि डाक्टरों के कहे मुताबिक 9 फरवरी को बच्चे का जन्म हुआ.

इस तरह से ट्रांसजेंडर जोड़ी जिया और जाहद डाक्टर द्वारा दी गई जन्म की तारीख से एक माह पहले ही ही बच्चे के मातापिता बन गए. जिया ने बच्चे के जन्म पर खुशी जाहिर करते हुए सूचना दी कि जाहद और बेबी दोनों स्वस्थ हैं.

साथ ही जिया ने बच्चे का लिंग बताने से मना कर दिया. वैसे इस से पहले जिया को डाक्टरों ने बताया था कि उन की 23 वर्षीय जीवनसाथी जाहद 8 फरवरी को बच्चे को जन्म देने वाली हैं और डिलीवरी डेट अगले महीने की तय थी, लेकिन जाहद को डायबिटीज की समस्या के कारण उसे 6 फरवरी को ही केरल के सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया था.

वे पलपल बदलती जिंदगी और पूरी होती महत्त्वाकांक्षा के बारे में अपनी कहानी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखते रहे हैं. मलयालम में लिखी गई कहानी के मुताबिक, जाहद ने कहा था कि मैं मां बनने के अपने सपने और जिया के पिता बनने के सपने को साकार करने वाली हूं. मैं जन्म से या शरीर से एक महिला नहीं था, लेकिन मेरा सपना था कि मुझे कोई ‘मां’ कहे.

इस की उन्हें मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली. अधिकतर ने उन्हें बधाई देते हुए बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं. एक यूजर ने लिखा- ‘बधाई! ये सब से खूबसूरत चीज है. सच्चे प्यार की कोई सीमा नहीं है.’ एक अन्य यूजर ने लिखा कि समाज के नियमों को तोड़ने के लिए शुक्रिया! आप का बच्चा स्वस्थ हो! बहुत शुभकामनाएं!

जिया ने अपने जीवनसाथी के पेट में 8 माह के बच्चे के पलने के बारे में सोशल मीडिया पर यह बताया कि उन के इस फैसले से ट्रांसजेंडर समुदाय बहुत ख़ुश है. जबकि इस समुदाय के अलावा बाहर के भी कुछ पुरानी चली आ रही बातों पर भी भरोसा करते हैं और उसे ही मानने को मजबूर करते हैं. वे समझते हैं कि समलैंगिक लोग बच्चा नहीं रख सकते. लेकिन इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.

जिया एक वैसे मुसलिम परिवार से है, जो काफी रूढि़वादी विचार के रहे हैं. वह डांसर बनना चाहती थी और शास्त्रीय नृत्य सीखना चाहती थी, जिस की अनुमति परिवार वालों ने कभी नहीं दी. वे इतने पुराने खयाल के थे कि उन्होंने जिया के बाल काट दिए ताकि वह डांस न कर पाए. संयोग से एक बार उसे एक यूथ फेस्टिवल में जाना हुआ. वहां से फिर कभी घर नहीं लौटी.

  • जिया बनना चाहती थी डांसर

वहां से जिया एक ट्रांसजेंडर कम्युनिटी सेंटर में चली गई, जहां लड़कियों को डांस सिखाया जाता था. वहीं उस ने डांस सीखा. 8 माह तक भ्रूण को अपने पेट में पालने वाले जाहद की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. जब उस के जेंडर के बारे में परिवार को पता चला तो वह घर वालों से अलग हो गया. वह एक ईसाई परिवार से है. तिरुअनंतपुरम में ओकी तूफान के दौरान उस के मातापिता का घर और नाव दोनों तबाह हो गए थे.

हालांकि जब जाहद ने अपने अभिभावकों को प्रेग्नेंसी के बारे में बताया, तब उस के प्रति उन का रुख सकारात्मक बन गया था. उन्होंने जाहद की गर्भावस्था के दौरान मदद भी की. उस की मां ने सुझाव दिया था कि वह अपनी गर्भावस्था की बातों को सार्वजनिक नहीं करे.

उन की बात को मानते हुए कई महीने तक वह डाक्टरी देखरेख में रहा, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया, जब जिया को महसूस हुआ कि उन्हें जाहद के गर्भ की बात सार्वजनिक करनी चाहिए.

  • सरकारी अस्पताल में हुई डिलीवरी

वैसे जाहद और जिया की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. जिया अपनी माली हालत के बारे में बताते हैं कि उन के लिए जिंदा रहना तक बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि उन के पास छोटे बच्चों को डांस सिखाने का काम है. उन के लिए अच्छी बात यह है कि जाहद पढ़ालिखा है और एक अकाउंटेंट है. उन्होंने शुरुआत में तिरुअनंतपुरम में सरकार की ओर से बनाए गए जेंडर पार्क में काम किया.

बाद में जाहद कोझिकोड चला गया और वहीं उन्होंने सुपरमार्केट में नौकरी कर ली. जिया बच्चा पा कर खुश जरूर है, लेकिन घरेलू खर्च और बच्चे की जरूरतें पूरी करने के लिए खर्च जुटाने की जिम्मेदारी एक तरह से जिया पर ही है. इस के लिए उस ने स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ाने की योजना बनाई है. उसे पता है कि जाहद बच्चा पैदा होने के बाद 2 महीने तक काम पर वापस नहीं लौट पाएगा.

जाहद की देखभाल करने वाले कोझिकोड सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने तब बताया कि दंपति की किसी भी सामान्य पुरुष स्त्री की तरह ही नौरमल डिलीवरी होगी. तब डाक्टरों को इस मामले पर मीडिया से बोलने की इजाजत नहीं थी. इसलिए वे इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं जता पाए थे. किंतु सैक्स चेंज करने वाले डाक्टर के अनुसार जाहद दोबारा गर्भ धारण कर सकता है.

डाक्टर का कहना है कि एक बार  गर्भावस्था का दौर खत्म हो जाने पर वह सैक्स हारमोन थेरेपी को फिर से शुरू कर सकता है. ऐसा कर ट्रांसजेंडर कपल अपनी इच्छाएं पूरी कर सकते हैं. जब तक अंडाशय और गर्भाशय हटाया नहीं जाता, तब तक 40 साल की उम्र तक कोई समस्या नहीं आती है.

वैसे जिया और जाहद कथा लिखे जाने तक सैक्स चेंज की प्रक्रिया के दौर से ही गुजर रहे हैं. इस के पूरा होने के बाद उन्हें नए जेंडर का सर्टिफिकेट मिलेगा और वे कानूनी तौर पर शादी कर सकते हैं.

‘‘मेरा पहला दृढ़ निर्णय था कि मैं दूसरे किन्नरों की तरह सिग्नल पर भीख नहीं मगूंगी’’ -जोया सिद्दिकी

भारतीय समज में किन्नरों/ ट्रांसजेंडेर को कभी भी अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता. यह किन्नर सड़क पर लगे सिग्नल या ट्रेन के डिब्बों में घूम घूमकर पैसा मांगते हुए नजर आते हैं.लोग इन्हे हिकारत की नजर से दख्ेाते हैं.जबकि यह किन्नर भी आम इंसानो की तरह काम कर सकते हैं.पर इन्हे इनके अपने परिवार से भी सहयोग नही मिलता है.पिछले कुछ समय से किन्नरो द्वारा अच्दे काम करने की बाते सामने आ रही है.हाल ही में पष्चिम बंगाल की किन्नर जोयिता मंडल को पष्चिम बंगाल मे जज नियुक्त किया गया है.तो वहीं बौलीवुड में बाॅबी डार्लिंग औश्र कलकत्ता मे श्री घटक फिल्मों मे अभिनय कर रही हैं.

अब ओटीटी प्लेटफार्म ‘मास्क टीवी’ पर एक सीरीज ‘‘प्रोजेक्ट एंजल्स’’ प्रसारित हो रहा है,जिसमे सभी नौ किरदार नौ ट्रांसजेंडेर यानी कि किन्नर ही निभा रही हैं.इन्ही में से एक जोया सिद्दिकी हैं,जो कि किन्नर होेते हुए भी एक इंटरनेषनल ब्रांड प्रोफेषनल मेकअप आर्टिस्ट के रूप में भी काम कर रही हैं.और अब वह अभिनय जगत में भी कदम रख चुकी हैं.

zoya siddiqi

प्रस्तुत है जोया सिद्दिकी से हुई बातचीत के अंष..

सवाल – अपनी अब तक की यात्रा के बारे में बताएं?

जवाब –

मेरी परवरिष मंुबई में ही हुई है.मै  एक मुस्लिम परिवार से हॅूं.पर मुझे घर से लेकर स्कूल व कालेज की पढ़ाई तक हर जगह तमाम मुसीबतो  का सामना करना पड़ा.कालेज में एडमीषन मिलना.सड़क व अन्य जगहों पर लोगों द्वारा मेरा मजाक उड़ाया जाता.इस तरह की तमाम तकलीफों का सामना करते हुए मैं आज ‘मास्क टीवी’ पर प्रसारित हो रही वेब सीरीज ‘प्रोजेक्ट एंजिल’ में अभिनय कर रही हूं . मंबई सहित कई षहरों मंे मेरी तस्वीरों के साथ ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ के पोस्टर भी लगे हैं.मुझे गर्व हो रहा है कि आज मैं इतने बड़े प्लेटफार्म पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्षन कर रही हॅूं.कल तक जो लोग मुझे दुत्कारते थे,आज वही मुझे फोन करने लगे हैं.

सवाल – जिंदगी में किस तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ा?

जवाब –

जब मुझे व मेरे घर वालों को पता चला कि मैं ट्ांसजेंडर यानी कि किन्नर हॅूं,तो मैने ख्ुाद को उसी रूप में स्वीकार करना सीख.मगर मेरे परिवार ने मुझे स्वीकार नही किया.मेरा साथ नही दिया.मेेरे परिवार वालों ने मुझे घर छोड़ देने के लिए कहा.जिसके चलते मुझे सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.लेकिन मैने हार नही माना.मैं अपने आस पास देख रही थी कि किस तरह अपाहिज लोग भी जिंदगी जी रहे हैं.उनका भी अपना एक संघर्ष है.पर वह हार नहीं मान रहे हैं,तो फिर मैं क्यों हार मान लेती.मैने सोचा कि अल्लाह ने मुझे हाथ पैर दिए हें.मेरा षरीर कहीं से टूटा हुआ नही है,तो फिर मैं क्यों किसी के आगे हाथ फैलाउं.मैने निर्णय लिया कि मैं दूसरे किन्नरों की तरह सड़क पर किसी सिग्नल पर खड़े होकर हाथ नहीं फैलाउंगी.मैं घर घर जाकर ताली बजाकर पैसे नहीं मांगूंगी.बल्कि मैं आम इंसानो की ही तरह मेहनत
करते हुए काम करके पैसा कमाउंगी और अपनी जिंदगी जिउंगी.मैने अपने परिवार वालों से भी कह दिया था कि जल्द ही मैं घर छोड़ दूॅंगी.पर मैं किन्नरों की तरह भीख नही मांगंूगी.बल्कि मैं अपनी जिंदगी में कुछ ऐसा बनकर दिखाउंगी कि लोग मुझे हिकारत की नजर से नही देखेंगे.मुझे दुत्कारेंगे नहीं.यदि मैं परिवार व समाज के लोगों की बातें सुनती, तो मैं कब का आत्महत्या कर चुकी होती.मैने किसी की परवाह किए बगैर अपना संघर्ष जारी रखा.मैने सोचा था कि अगर मैं कुछ अलग काम कर अपना एक मुकाम बनाउंगी,तो मुझे देखकर मेरे किन्नर समुदाय के लोगो को प्रेरणा मिलेगी और वह भी मेरी तरह कुछ नया करने की सोच सकेंगे.इस तरह समाज के लोगों की भी किन्नरों के प्रति सोच बदलेगी और हमारा किन्नर समुदाय प्रगति करेगा.मेरी सोच सही रही है कि मुझे अपने किन्नर समुदाय के लोगो को कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए प्रेरित करना है.मुझे लगता है कि मैं इस दिषा में कुछ हद तक कामयाब हो रही हॅंू.

सवाल – क्या घर वालों के कहने पर आपने घर छोड़ दिया था?

जवाब –

जी नहीं…मैं घर छोड़ कर कहां जाती.मैने घर नहीं छोड़ा.पर घर के अंदर हर दिन मार खाती थी.गालियां सुनती थी.क्योंकि उस वक्त मेरे पास यह सब सहन करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नही था.लेकिन मैं समय से पहले ही इतनी मैच्योर हो गयी थी कि मैने सोच लिया था कि मुझे अपनी जिंदगी में कुछ हटकर करना है.आज मुझे लगता है कि मैं अपने मकसद में कामयाब हॅूं. मैने काफी तकलीफ सहन करके पढ़ाई की.फिर नौकरी की तलाष षुरू की.आज की तारीख मे आम इंसान को तो नौकरी मिलती नही है.ऐसे मे मुझ किन्नर को कौन नौकरी देता? तो काफी ठोकरे खायीं.आप मानेंगे नही मुझे किराए का मकान तक कोई देने को तैयार नहीं था.सभी कहते थे कि तुम्हें देखकर हमारे व समाज के बच्चे खराब हो जाएंगे.पर लोग यह भूल जाते है  कि हमारा षरीर और हमारे अहसास लड़की वाले ही हैं.ऐसे में हमें देखकर कोई बच्चा कैसे खराब हो जाएगा.

सवाल – तो फिर आपकी पढ़ाई कैसे पूरी हुई?

जवाब –

मैने कोषिष की तो पता चला कि एक संस्था पढ़ाई करने के लिए स्काॅलरषिप देती है,तो मैंने उससे स्काॅलरषिप लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की.साथ में मैने पार्ट टाइम जाॅब भी किया.मैने बहुत संघर्ष किया.मैं अपनी तकलीफों को बयां कर किसी की हमदर्दी नहीं बटोरना चाहती.आज मैं एक प्रोफेषनल मेकअप आर्टिस्ट हॅंू और एक अंतरराष्ट्ीय कंपनी ‘फला मार्केट’ में मेकअप आर्टिस्ट के रूप में नौकरी कर रही हॅूं.यह एक बड़ी कंपनी है.इस तरह मैं अपनी जिंदगी में सैटल हो चुकी हूं. और अब तो मेरे लिए माॅडलिंग व अभिनय के दरवाजे भी खुल गए हैं.मैं मास्क टीवी की सीरीज ‘‘प्रोजेक्ट एंजल्स’’ में अभिनय कर रही हॅूं.इसके बड़े बड़े पोस्टर व होर्डिंग्स लगे हुए हैं.इससे मेरी एक अलग पहचान बन रही है.अब मेरे किन्नर समुदाय के लोगो को भी एक नई प्रेरणा मिलेगी और वह भी अपनी जिंदगी में कुछ अलग करने का प्रयास करेंगे.अब यह लोग खुद को तुच्छ नही समझेंगें.

सवाल – आप अंतरराष्ट्ीय ब्रांड ‘फला मार्केट’ में प्रोफेषनल मेकअप आर्टिस्ट के रूप में कार्य कर रही हैं,वहां किस तरह के अनुभव होते हैं?

जवाब –

देखिए,वहां पर हर तरह के लोग आते हैं.जिनके पैसा है,उन्हे कौन रोकेगा. मगर जो षिक्षित लोग होते हैं,वह हमारी प्रषंसा करके जाते हैं.वह अपनी बातांेे से हमारा हौसला ही बढ़ाते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि ,‘आप इतनी अच्छी जगह काम कर रहे हो,इसका हमें गर्व है.आप खूबसूरत हैं.’’मगर जब कोई अषिक्षित या नीची सोच वाले ग्राहक आते है,तो वह हमें देख कर मुंॅह बनाते हुए कहते है,‘ अरे,यह किन्नर..इससे हम मेकअप नही करवाएंगे…’ इन अषिक्षित लोगांे की नजर में किन्नर का मतलब धब्बा ही होता है.

सवाल – तो आप लोगो की सोच बदलना चाही हैं?

जवाब –

जी हाॅ!मेरा मानना है कि किन्नर होने का मतलब धब्बा नही है.वह तुच्छ नही है.हर किन्नर को इस समाज में सम्मानजनक जिंदगी जीने का पूरा हक है.हम सभी इंसान हैं.जब हर इंसान इस ढंग से सोचेगा तभी हर किन्नर की जिंदगी बदल सकेगी.फिर किसी भी किन्नर को सिग्नल पर खड़े होकर हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा.यदि हर किन्नर षिक्षित होगा और समाज में अच्छा काम करेगा,तो यह भारत देष की प्रगति ही होगी.

सवाल – आप प्रोफेषनल मेकअप आर्टिस्ट हैं,तो मेकअप की कला कहां से सीखी?

जवाब –

मेरे पास इतने पैसे नही थे कि मैं मेकअप सीखने के लिए किसी क्लास मंे जाती. पहले मुझे एक कंपनी मे हाउस कीपिंग ककी नौकरी मिली थी.कंपनी वालो ने मेरा व्यवहार,मेरे काम करने व बात करने का तरीका देखा.उन्होने मेरे अंदर सीखने की ललक को पहचाना.मेरी मेहनत देखी.तो धीरे धीरे मेरा पद बढ़ता गया.फिर उसी कंपनी ने मुझे मेकअप करना सिखाया.आज मेरी गिनती बेहतरीन प्रोफेषनल मेकअप आर्टिस्ट के तौर पर होती है.

सवाल – अच्छी नौकरी मिलने के बाद तो समस्याएं खत्म हो गयी होंगी?

जवाब –

भारत देष का समाज किसी को भी चैन से रहने नही देता.किन्नर होने के नाते आसानी से किराए का मकसन नही मिलता..बामुष्किल किराए का मकान मिला,तो षर्तें लाद दी गयीं कि जोर से बात नही करोगी.तुम्हारा कोई दोस्त तुमसे मिलने नही आएगा.रात मंे देर से नहीं आओगी.लोगों की मेंटालिटी अजीबोगरीब है.आए दिन कुछ न कुछ समस्याएं खड़ी करते रहते हैं.

सवाल – ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘मास्क टीवी’’ की सीरीज ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’’ से जुड़ना कैसे हुआ?

जवाब –

मेरे दोस्त ने मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया था.फिर मैं मानसी भट्ट व चिरंजीवी भट्ट से मिली.इन लोगों ने हमें कहानी सुनायी,तो मुझे अहसास हुआ कि इससे जुड़कर मैं अपने किन्नर समुदाय तक बड़े स्तर पर प्रेरणा दायक बात पहुंॅचा सकती हॅूं.मुझे इसमें अभिनय करने में बड़ा मजा आ रहा है.मुझे मास्क टीवी ने एक बड़ा प्लेटफार्म मुहैय्या कराया है.

zoya siddiqi

सवाल – ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ में क्या कर रही हैं?

जवाब –

इससे पहले मैने ‘पिंकविला’ सीरीज में भी अभिनय किया था,जिसमें ट्ांसजेंडर /किन्नर की जिंदगी के बारे में बताया गया था.लेकिन सीरीज ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ में हम किन्नरों की खूबसूरती के साथ ही इस बात को दिखाया जा रहा है कि हम अभिनय कर सकते हैं,हम माॅडलिंग कर सकते हैं.यानीकि हमारे अंदर के कलात्मक पक्ष को उभारा जा रहा है.जिसे देखकर हमारी कम्यूनिटी के लोग भी प्रेरणा लेंगे.फिर हम सभी को बौलीवुड ही नहीं,टीवी इंडस्ट्री  में भी काफी काम मिलेगा.

सवाल – क्या इस सीरीज में आपकी निजी जिंदगी के संघर्ष को भी दिखाया जा रहा है?

जवाब –

जी नहीं..यह सीरीज तो इस बात को चित्रित कर रही है कि हम किन्नर सिग्नल पर हाथ फैलाने की बजाय क्या क्या कर अपना विकास करने के साथ ही समाज व देष की प्रगति में भी योगदान दे सकते हैं.इसमें दिखाया गया है कि किन्नर भी आम इंसान ही हैं.हम भी खूबसूरत हैं.हम इस सीरीज में यही बता रहे हैं कि हम किन्नर सिर्फ सिग्नल पर खड़े रहने या ट्रेन  के डिब्बों के लिए नही बने हैं,बल्कि हम भी माॅडल, अभिनेत्री,डांसर,मेकअप आर्टिस्ट सहित सब कुछ बन सकते हैं.हम भी अच्छी षिक्षा ले सकते हैं.हम भी वकील व जज बन सकते हैं.हम अपनी जिंदगी में काफी कुछ कर सकते हैं.

सवाल – क्या आप अपने किन्नर समुदाय के लोगो को समझाती हैं?

जवाब –

देखिए,जो उम्र दराज की हैं,उन्हे समझाने से कोई फायदा नही.मगर हम नई उम्र की किन्नरांे से बातें करते रहते हैं,हम सभी को यही समझाते हंै कि वह भी हमारी तरह मेहनत का रास्ता अपनाकर जिंदगी को संवारने का प्रयास करें.वह भी अच्छी पढ़ाई करें.अपने आपको इंसान के तौर पर स्वीकार कर लोगांे से कंधे से कंधा मिलाकर चलने की सोचे.नौकरी कर अपने पैरों पर खड़ी हों.

सवाल – इसके बाद भी अभिनय करना चाहेंगी?

जवाब –

जी हाॅ! फिलहल तो ‘मास्क टीवी’ का ही एक दूसरा सीरीज करने वाली हॅूं. इसके अलावा एक फिल्म का भी आफर आया है.अब मुझे एक बड़ी माॅडल औरबड़ी अभिनेत्री बनना है.

किन्नर: समाज के सताए तबके का दर्द

 देवेंद्रराज सुथार

पिछले दिनों कोलकाता पुलिस में इंस्पैक्टर की भरती के इम्तिहान का इश्तिहार निकला, तो पल्लवी ने भी इस इम्तिहान में बैठने का मन बना लिया. जब उस ने आवेदनपत्र डाउनलोड किया, तो उस में जैंडर के केवल 2 ही कौलम थे, एक पुरुष और दूसरा महिला.

पल्लवी को मजबूरन हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा. अपने वकील के जरीए उस ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और साल 2014 के ट्रांसजैंडर ऐक्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अपनी दलील रखी.

ये भी पढ़ें : अंधविश्वास: वैष्णो देवी मंदिर हादसा- भय, भगदड़ और भेड़चाल

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के एडवोकेट से इस मामले पर राय पेश करने को कहा. अगली तारीख पर राज्य सरकार के एडवोकेट ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार आवेदन के ड्राफ्ट में पुरुष और महिला के साथसाथ ट्रांसजैंडर कौलम रखने के लिए रजामंद हो गई है.

अब पल्लवी पुलिस अफसर बने या न बने, उस ने भारत के ट्रांसजैंडरों के लिए एक खिड़की तो खोल ही दी है.

ऐसे ही पुलिस में भरती होने वाली देश की पहली ट्रांसजैंडर और तमिलनाडु पुलिस का हिस्सा पृथिका यशनी की एप्लीकेशन रिक्रूटमैंट बोर्ड ने खारिज कर दी थी, क्योंकि फार्म में उस के जैंडर का औप्शन नहीं था. ट्रांसजैंडरों के लिए लिखित, फिजिकल इम्तिहान या इंटरव्यू के लिए कोई कटऔफ का औप्शन भी नहीं था.

इन सब परेशानियों के बावजूद पृथिका यशनी ने हार नहीं मानी और कोर्ट में याचिका दायर की. उस के केस में कटऔफ को 28.5 से 25 किया गया. पृथिका हर टैस्ट में पास हो गई थी, बस 100 मीटर की दौड़ में वह एक सैकंड से पीछे रह गई. मगर उस के हौसले को देखते हुए उस की भरती कर ली गई.

ये भी पढ़ें :  गैंगमैन की  सिक्योरिटी तय हो

मद्रास हाईकोर्ट ने साल 2015 में तमिलनाडु यूनिफार्म्ड सर्विसेज रिक्रूटमैंट बोर्ड को ट्रांसजैंडर समुदाय के सदस्यों को भी मौका देने के निर्देश दिए. इस फैसले के बाद से फार्म के जैंडर में 3 कौलम जोड़े गए.

तमिलनाडु में ही क्यों, राजस्थान में भी यही हुआ था. जालौर जिले के रानीवाड़ा इलाके की गंगा कुमारी ने साल 2013 में पुलिस भरती का इम्तिहान पास किया था. हालांकि, मैडिकल जांच के बाद उन की अपौइंटमैंट को किन्नर होने के चलते रोक दिया गया था. गंगा कुमारी हाईकोर्ट चली गई और 2 साल की जद्दोजेहद के बाद उसे कामयाबी मिली.

ये फैसले बताते हैं कि जरूरत इस बात की है कि समाज के हर शख्स का नजरिया बदले, नहीं तो कुरसी पर बैठा अफसर अपने नजरिए से ही समुदाय को देखेगा.

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, हमारे देश में तकरीबन 5 लाख ट्रांसजैंडर हैं. अकसर इस समुदाय के लोगों को समाज में भेदभाव, फटकार और बेइज्जती का सामना करना पड़ता है. ऐसे ज्यादातर लोग भिखारी या सैक्स वर्कर के रूप में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.

15 अप्रैल, 2014 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने थर्ड जैंडर को संवैधानिक अधिकार दिए और सरकार को इन अधिकारों को लागू करने का निर्देश दिया. उस के बाद 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद थर्ड जैंडर के अधिकारों को कानूनी मंजूरी मिल गई.

हर तरह के जैंडर पर सभी देशों में चर्चा होती है, उन्हें समान अधिकार और आजादी दिए जाने की वकालत होती है, बावजूद इस के जैंडर के आधार पर सभी को बराबर अधिकार और आजादी अभी भी नहीं मिल पाई है.

ये भी पढ़ें : शख्सियत: आयशा मलिक- पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जस्टिस

साल 2011 की जनगणना बताती है कि महज 38 फीसदी किन्नरों के पास नौकरियां हैं, जबकि सामान्य आबादी का फीसद 46 है. साल 2011 की जनगणना यह भी बताती है कि केवल 46 फीसदी किन्नर पढ़ेलिखे हैं, जबकि समूचे भारत की पढ़ाईलिखाई की दर 76 फीसदी है.

किन्नर समाज जोरजुल्म का शिकार है. इसे नौकरी और तालीम पाने का अधिकार बहुत कम मिलता है. ऐसे लोगों को अपनी सेहत की सही देखभाल करने में भी दिक्कत आती है.

दक्षिण भारत के 4 राज्यों तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के आंकड़े बताते हैं कि कुल एचआईवी संक्रमण में से 53 फीसदी किन्नर समुदाय का हिस्सा है.

किन्नर समुदाय भेदभाव के चलते ही अपनी भावनाओं को छिपाता है, क्योंकि वे लोग इस बात से डरे होते हैं कि कहीं वे अपने परिवारों द्वारा घर से निकाल न दिए जाएं.

किन्नरों के परिवारों में कम से कम एक शख्स ऐसा जरूर होता है, जो यह नहीं चाहता कि ट्रांसजैंडर होने के चलते समाज किसी से भी बात करे. किसी के किन्नर होने की जानकारी होने पर

समाज के लोग उस शख्स से दूरी बनाने लगते हैं.

विकास के इस दौर में किन्नर समाज आज भी हाशिए पर खड़ा है. किन्नर समुदाय के विकास की अनदेखी एक गंभीर मुद्दा है. सभी समुदायों के अधिकारों के बारे में चर्चा की जाती है, लेकिन किन्नर समुदाय के बारे में चर्चा तक नहीं होती. हर किन्नर पल्लवी जितने मजबूत मन का भी नहीं होता कि लड़ कर अपना हक ले ले.

सवाल यह है कि आखिर वह समय कब आएगा, जब समाज के सामान्य सदस्यों की तरह इन्हें भी आसानी से इन का हक मुहैया रहेगा? कानून के बावजूद भी उन की समान भागीदारी से बहुतकुछ बदल पाने की उम्मीद तब तक बेमानी है, जब तक कि सामाजिक लैवल पर नजरिया बदलता नहीं. जब तक सामाजिक ढांचे में उन की अनदेखी की जाती रहेगी, तब तक कानूनी अधिकार खोखले ही रहेंगे.

अब यह जरूरी है कि समान अधिकारों के साथसाथ समाज में भी समान नजरिया हो, तभी बदलाव आएगा. कानून एक खास पहलू है, लेकिन समाज के नजरिए को बदलना भी कम खास नहीं है, इसलिए इस जद्दोजेहद का खात्मा कानून के पास होने से नहीं होता, बल्कि यहीं से सामाजिक रजामंदी के लिए एक नई जद्दोजेहद शुरू होती है.

किन्नर ट्रेनों, बसों या सड़क पर लोगों के सिर पर हाथ फेरते हुए दुआ देते हैं और पैसे मांगते हैं. बद्दुआ का डर कुछ लोगों को पैसे देने के लिए मजबूर करता है, लेकिन यह उन की समस्या का हल नहीं है.

किन्नर के रूप में पैदा होने में उन का कोई कुसूर नहीं है. इन की जिंदगी बदलना भी हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम अपनी सोच तो कम से कम बदल ही सकते हैं.

हमारी सोच बदलेगी, तो किन्नर भी मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं और बेहतर जिंदगी जी सकते हैं. आईपीएस, आईएएस अफसर ही नहीं, बल्कि सेना में शामिल हो कर देश की हिफाजत के लिए अपनी जान भी लड़ा सकते हैं.

ये भी पढ़ें : बदहाली: कोरोना की लहर, टूरिज्म पर कहर

तानों के डर से मांबाप अपने बच्चों को घर से निकाल देते हैं: नाज जोशी

कुछ लोग अपने अधूरेपन को ले कर जिंदगीभर खुद को कोसते रहते हैं, जबकि कुछ उस अधूरेपन से बाहर निकल कर एक नई दुनिया और नई सोच बना लेने के साथसाथ अपने प्रति लोगों के नजरिए को भी बदलने की ताकत रखते हैं. पर ऐसा करने के लिए उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन वे इस से घबराते नहीं हैं, बल्कि समाज, परिवार और धर्म के आगे एक मिसाल खड़ी कर देते हैं.

ऐसी ही कई चुनौतियों से गुजर कर 3 बार मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी विजेता बनी नाज जोशी भारत की पहली ट्रांससैक्सुअल इंटरनैशनल ब्यूटी क्वीन, ट्रांस राइट्स ऐक्टिविस्ट, मोटीवेशनल स्पीकर और एक ड्रैस डिजाइनर हैं.

naz

दिल्ली की रहने वाली नाज जोशी ‘क्वीन यूनिवर्स 2021 सीजन 3′ के लिए बैंकौक जाने वाली हैं, जिस में दुनियाभर की सभी उम्र और बौडी शेप की महिलाएं भाग लेंगी. इस प्रतियोगिता में खूबसूरती को ज्यादा अहमियत न देने के साथसाथ प्रतियोगी के अपने परिवार और समाज के प्रति योगदान को भी अहमियत दी जाएगी.

ये भी पढ़ें- साथी जब नशे में धुत्त हो तो ड्राइव का जोखिम भूलकर भी ना ले

हंसमुख और बेबाक नाज जोशी से उन की जिंदगी के बारे में लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप को ब्यूटी क्वीन बनने की प्रेरणा कहां से मिली?

जब मैं ने सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय को ताज पहनते देखा, तो मुझे भी ताज पहनने का शौक हुआ. मजे की बात यह है कि मैं ने कभी ट्रांसजैंडर के साथ कौंपीटिशन नहीं किया है, बल्कि मैं ने नौर्मल लड़कियों के साथ प्रतियोगिता की है और आज तक 7 इंटरनैशनल क्राउन जीत चुकी हूं.

इस से मुझे बहुत प्रेरणा मिली, कौंफिडैंस मिला और सामाजिक काम करने की इच्छा पैदा हुई. मैं ट्रांसजैंडर समाज की सेहत, उन की समस्याओं के हल और पढ़ाईलिखाई को ले कर काम करना चाहती हूं. अभी मेरा मकसद नई लड़कियों को ऐक्टिंग के क्षेत्र में सही राह दिखाना भी है, क्योंकि ऐक्टिंग की दुनिया में कास्टिंग काउच बहुत ज्यादा है और लड़कियां उन की शिकार बनती हैं.

ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती हैं, जहां लोग खुद को कास्टिंग डायरैक्टर कहते हैं, लेकिन लड़कियों के उन से मिलने पर वे उन के खाने या ड्रिंक में कुछ मिला देते हैं और उन का शोषण करते हैं. इस के अलावा मैं किसी लड़की के ब्यूटी कांटैस्ट जीतने के बाद उसे इंडस्ट्री में जाने की पूरी गाइडैंस देती हूं.

naaz

आप ट्रांसजैंडर कैसे बनीं? इस मुकाम तक पहुंचने के लिए आप के सामने किस तरह की चुनौतियां आई थीं?

मैं एक मुसलिम मां और पंजाबी पिता के घर में जन्मी हूं. जब मैं 7 साल की थी तो मेरे परिवार ने मुझे मुंबई किसी दूर के रिश्तेदार के यहां भेज दिया था, ताकि उन्हें किसी तरह के ताने न सुनने पड़े.

मैं ने मुंबई में बहुत जिस्मानी जुल्म सहा है. जहां मैं काम करती थी, वहां भी लोगों ने बहुत सताया, इसलिए मैं आज लड़कियों को प्रोटैक्शन देती हूं.

अपना सैक्स बदलने के लिए मुझे सर्जरी से गुजरना पड़ा. मेरे हिसाब से अगर हमारे देश की लड़कियां मजबूत नहीं होंगी, तो ट्रांसजैंडर का मजबूत होना मुमकिन नहीं. दरअसल, ट्रांसजैंडर पहले इनसान हैं और बाद में उन का जैंडर आता है.

मैं ट्रांसजैंडर के हकों के लिए समयसमय पर वर्कशौप करती हूं, जिन में उन की सेहत से जुड़ी जानकारियां, सेफ सैक्स वगैरह होता है, जिस से उन की जिंदगी खतरे में न पड़े.

इस के अलावा मैं दुनिया की पहली ऐसी महिला हूं, जो लड़कियों के लिए इंटरनैशनल शो करने बैंकौक जा रही हूं, जिस में सभी वर्ग और उम्र की महिलाएं भाग ले सकेंगी.

ये भी पढ़ें- ठगी का नया हथियार बना, टीवी शो ‘कौन बनेगा

trans

आप ट्रांसजैंडर समाज के साथ लोगों के गलत बरताव की क्या वजह मानती हैं और इस के लिए किसे जिम्मेदार ठहराती हैं?

इस की जिम्मेदारी मांबाप की है, क्योंकि वे ऐसे बच्चे को ताने के डर से स्वीकार नहीं करते हैं और घर में छिपा कर या कहीं बाहर भेज देते हैं. अगर ऐसे बच्चों को स्कूल में ताने सुनने पड़ते हैं, तो उस का समाधान मांबाप स्कूल में जा कर बातचीत द्वारा निकाल सकते हैं. उत्तरपूर्वी भारत की एक ट्रांसजैंडर लड़की अब डाक्टर बन चुकी है. उसे इसलिए ज्यादा समस्या नहीं आई, क्योंकि वहां पर और थाईलैंड जैसी जगहों पर लड़के भी लड़कियों जैसे ही दिखते हैं, इसलिए सब से घुलनामिलना आसान होता है.

इस के अलावा आज 100 से भी ज्यादा ट्रांसजैंडर लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं, जिन में कलाकार, समाजसेवी और मोटिवेशनल स्पीकर शामिल हैं.

दरअसल, मातापिता अगर ट्रांसजैंडर बच्चे के साथ ‘पिलर’ बन कर खड़े होते हैं, तो वे भी बहुतकुछ कर सकते हैं. किन्नर 2 तरह के होते हैं, कुछ जन्म से तो कुछ बाद में अपना सैक्स चेंज कराते हैं. यह कोई बीमारी नहीं होती. मांबाप के स्वीकारने से सड़कों पर किन्नरों का भीख मांगना, अनजान लोगों से सड़क पर सैक्स करना कम होगा. मातापिता केवल बच्चे को अपना लें, बस यही काफी होगा.

transg

आप के इस सफर में मांबाप का रोल कैसा रहा है?

मेरे परिवार में मां से ज्यादा पिता और बहन का सहयोग रहा है. भाई और मां भी केयरिंग हैं. जब मुझे कोरोना हुआ था, तो उन्होंने मेरा बहुत ध्यान रखा था.

सैक्स चेंज की भावना आप के मन में कैसे आई और इस के बाद क्याक्या एहतियात बरतने की जरूरत होती है?

बचपन में 3 साल की उम्र से ही ऐसी भावना रही है, क्योंकि स्कूल में मुझे डौल बनाया गया था और मुझे आसपास की लड़कियों के साथ उठनाबैठना अच्छा लगता था. इस के अलावा बचपन में मुझे किसी ने गाना गाने को कहा और मैं ने ‘लैला ओ लैला…’ गाया.

दरअसल, मुझे ग्लैमर और ऐक्टिंग छोटी उम्र से पसंद था, जिस में जीनत अमान, परवीन बौबी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित वगैरह हीरोइनों को फिल्मों में देखना अच्छा लगता था. जब बड़ी हुई तो लगा कि मैं भी इन की तरह परदे पर चूड़ियां पहन कर डांस करूं. घर पर भी मैं ऐसा ही गाना चला कर डांस किया करती थी.

बड़ी होने पर फिल्म हीरोइन साधना के मशहूर ‘साधना कट’ बाल रखे, जिस पर मांबाप ने एतराज किया और लड़कों की तरह चलनेफिरने की हिदायत दी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, क्योंकि मैं अंदर से लड़की थी.

फिर पिता ने मुंबई भेजा. वहां मैं ने काम के साथ पढ़ाई की और दिल्ली आ गई. इस के बाद सैक्स चेंज कराया और सब ठीक हो गया.

सैक्स चेंज के दौरान 2 साल तक हार्मोन लेना पड़ा, क्योंकि हार्मोन पूरे शरीर को बदल देता है. इस का असर किडनी, लिवर वगैरह पर पड़ता है. हर महीने शरीर और हार्मोन का टैस्ट कराना पड़ता है. कई बार सैक्स चेंज के दौरान मौत भी हो जाती है, इसलिए डाक्टर की सलाह के मुताबिक ही सैक्स चेंज के लिए जाएं और उन के हिसाब से दवाएं लें.

naj

आप कितनी फैशनेबल हैं? आप की आगे की क्या योजनाएं हैं?

मैं एक ड्रैस डिजाइनर हूं और अपनी ड्रैस खुद डिजाइन करती हूं. मैं सलवारकमीज पहनती हूं और शो के हिसाब से गाउन या शौर्ट ड्रैस पहनती हूं.

मुझे बहुत दुख होता है, जब मैं सुनती हूं कि किसी लड़की का उस की ड्रैस की वजह से रेप हुआ है. कोई भी ड्रैस एक पहनावा है और उसे कोई भी लड़की अपने हिसाब से पहन सकती है. गलत सोच वाले मर्दों और लड़कों को बचपन से लड़कियों की इज्जत करना सीखने की जरूरत है.

औस्ट्रेलिया कभी नहीं भूलेगा भारतीय टीम का ‘चैंपियन

मैं ने अपनी प्रतियोगिता में मार्शल आर्ट्स का भी एक कोर्स रखने के बारे में सोचा है, ताकि वे अपना बचाव खुद कर सकें. आगे मैं एक एनजीओ खोल कर उस में भी मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग और लड़कियों को ग्रूमिंग कर आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा रखती हूं.

आप लोगों को क्या मैसेज देना चाहती हैं?

मेरा सभी परिवारों, समाज और महिलाओं से कहना चाहती हूं कि ट्रांसजैंडर को अपनाएं, उन्हें पढ़ाएं. वे भी सब के साथ मिल कर अच्छा काम कर सकती हैं. अभी ‘मेक इन इंडिया’ के स्लोगन से भी ज्यादा ‘एमपावर इंडिया’ का स्लोगन होना चाहिए, क्योंकि महिलाओं के पढ़ने और आत्मनिर्भर होने से पूरा देश आगे बढ़ेगा.

सिर्फ बदन चाहिए प्यार नहीं

मैं एक ट्रांसजैंडर सैक्स वर्कर हूं. यह मेरी अपनी खुद की कहानी है. 12 जून, 1992 को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के एक मिडिल क्लास परिवार में मेरा जन्म हुआ. हमारा बड़ा सा परिवार था. प्यार करने वाली मां और रोब दिखाने वाले पिता. चाचा, ताऊ, बूआ और ढेर सारे भाईबहन.

मैं पैदा हुआ तो सब ने यही समझा कि घर में लड़का पैदा हुआ है. मुझे लड़कों की तरह पाला गया, लड़कों जैसे बाल कटवाए, लड़कों जैसे कपड़े पहनाए, बहनों ने भाई मान कर ही राखियां बांधीं और मां ने बेटा समझ कर हमेशा बेटियों से ज्यादा प्यार दिया.

हमारे घरों में ऐसा ही होता है. बेटा आंखों का तारा होता है और बेटी आंख की किरकिरी.

सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि कुछ भी ठीक नहीं रहा. मैं जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, वैसेवैसे मेरे भीतर एक दूसरी दुनिया जन्म ले रही थी.

घर में ढेर सारी बहनें थीं. बहनें सजतींसंवरतीं, लड़कियों वाले काम करतीं तो मैं भी उन की नकल करता. चुपके से बहन की लिपस्टिक लगाता, उस का दुपट्टा ओढ़ कर नाचता.

मेरा मन करता कि मैं भी उन की ही तरह सजूं, उन की ही तरह दिखूं, उन की तरह रहूं. लेकिन हर बार एक मजबूत थप्पड़ मेरी ओर बढ़ता.

छोटा था तो बचपना समझ कर माफ कर दिया जाता. थोड़ा बड़ा हुआ तो कभी थप्पड़ पड़ जाता तो कभी बहनें मार खाने से बचा लेतीं. बहनें सब के सामने बचातीं और अकेले में समझातीं कि मैं लड़का हूं. मुझे लड़कों के बीच रहना चाहिए, घर से बाहर जा कर उन के साथ खेलना चाहिए.

लेकिन मुझे तो बहनों के बीच रहना अच्छा लगता था. बाहर मैदान में जहां सारे लड़के खेलते थे, वहां जाने में मुझे बहुत डर लगता. पता नहीं, क्यों वे भी मुझे अजीब नजरों से देखते और तंग करते थे. उन की अजीब नजरें वक्त के साथसाथ और भी डरावनी होती गईं.

मैं स्कूल में ही था, जब वह घटना घटी. दिसंबर की शाम थी. अंधेरा घिर रहा था. तभी उस दिन स्कूल के पास एक खाली मैदान में कुछ लड़कों ने मुझे घेर लिया. उन्हें लगता था कि मैं लड़की हूं. वे जबरदस्ती मुझे पकड़ रहे थे और मैं रो रहा था.

मैं खुद को छुड़ाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था. उन्होंने जबरदस्ती मेरे कपड़े उतारे और यह देख कर छोड़ दिया कि मेरे शरीर का निचला हिस्सा तो लड़कों जैसा ही था.

इस हाथापाई में मेरे पेट में एक सरिया लग गया. मेरी पैंट खुली थी और पेट से खून बह रहा था. वे लड़के मुझे उसी हालत में अंधेरे में छोड़ कर भाग गए.

मैं पता नहीं, कितनी देर तक वहां पड़ा रहा. फिर किसी तरह हिम्मत जुटा कर घर आया. मैं ने किसी को कुछ नहीं बताया. चोट के लिए कुछ बहाना बना दिया. घर वाले मुझे अस्पताल ले गए. मैं ठीक हो कर घर आ गया.

दुनिया से अलग मेरे भीतर जो दुनिया बन रही थी, वह वक्त के साथ और गहरी होती चली गई. मेरी दुनिया में मैं अकेला था. सब से अपना सच छिपाता, कई बार तो अपनेआप से भी. मैं अंदर से डरा हुआ था और बाहर से जिद्दी होता जा रहा था.

घर में सब मुझे प्यार करते थे, मां और बहन सब से ज्यादा. लेकिन जब बड़ा हो रहा था तो लगा कि उन का प्यार काफी नहीं है. स्कूल में एक लड़का था सनी. वह मेरा पहला बौयफ्रैंड था, मेरा पहला प्यार.

लेकिन बचपन का प्यार बचपन के साथ ही गुम हो गया. जैसेजैसे हम बड़े होते हैं, दुनिया देखते हैं, हमें लगता है कि हम इस से ज्यादा के हकदार हैं, इस से ज्यादा पैसे के, इस से ज्यादा खुशी के, इस से ज्यादा प्यार के. जब साइकिल थी तो मैं उस में ही खुश था. स्कूटी आई तो लगा कि स्कूटी की खुशी इस के आगे कुछ नहीं. साइकिल से मैं कुछ ही किलोमीटर जाता था और स्कूटी से दसियों किलोमीटर. लगा कि आगे भी रास्ते में और प्यार मिलेगा और खुशी.

मैं दौड़ता चला गया. लेकिन जब आंख खुली तो देखा कि रास्ता तो बहुत तय कर लिया था, पर न तो प्यार मिला, न खुशी. मेरे 9 बौयफ्रैंड रहे. हर बार मुझे लगता था कि यह प्यार ही मेरी मंजिल है, लेकिन हर बार मंजिल साथ छोड़ देती. सब ने मेरा इस्तेमाल किया, शरीर से, पैसों से, मन से. लेकिन हाथ किसी ने नहीं थामा.

सब को मुझ से सिर्फ सैक्स चाहिए था. सब ने शरीर को छुआ, मन को नहीं. सब ने कमर में हाथ डाला, सिर पर किसी ने नहीं रखा.

फिर एक दिन मैं ने फैसला किया कि अगर यही करना है तो पैसे ले कर ही क्यों न किया जाए.

मैं बाकी लड़कों की तरह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, अपना कैरियर बनाना चाहता था. मैं ने कानपुर यूनिवर्सिटी से एमकौम किया और सीए का इम्तिहान भी दिया.

अब तक जिंदगी उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी कि मैं घर वालों और आसपास के लोगों के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया था. मैं समाज में, कालेज में मिसफिट था.

मैं लड़का था, लेकिन लड़कियों जैसा दिखता था. मर्द था, लेकिन औरत जैसा महसूस करता था. मेरा दिल औरत का था, लेकिन उस में बहुत सारी कड़वाहट भर गई थी.

प्यार की तलाश मुझे जिंदगी के सब से अंधेरे कोनों में ले गई. बदले में मिली कड़वाहट और गुस्सा.

अपनी पहचान छिपाने के लिए मैं दिल्ली आ गया. नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश की, लेकिन मिली नहीं. शायद उस के लिए भी डिगरी से ज्यादा यह पहचान जरूरी थी कि तुम औरत हो या मर्द. मुझे यह खुद भी नहीं पता कि मैं क्या था.

यहां मैं कुछ ऐसे लोगों से मिला, जो मेरे जैसे थे. उन्हें भी नहीं पता था कि वे औरत हैं या मर्द. अजनबी शहर में रास्ता भूल गए मुसाफिर को मानो एक नया घर मिल गया.

कोई तो मिला, जिसे पता है कि मेरे जैसा होने का मतलब क्या होता है. कोई तो मिला, जो सैक्स नहीं करना चाहता था, लेकिन उस ने सिर पर हाथ रखा. थोड़ी करुणा मिली तो मन की सारी कड़वाहट आंखों के रास्ते बह निकली.

इन नए दोस्तों ने मुझे खुद को स्वीकार करना सिखाया, शर्म से नहीं सिर उठा कर. मैं ने उन के साथ एनजीओ में काम किया, अपने जैसे लोगों की काउंसिलिंग की, उन के मांबाप की काउंसिलिंग की.

सबकुछ ठीक होने लगा था. लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी कोई कांटा चुभा था. प्यार की तलाश अब भी जारी थी. कुछ था, जिसे सिर्फ दोस्त नहीं भर सकते थे.

प्यार किया, फिर धोखा खाया. जिस को भी चाहा, वह रात के अंधेरे में प्यार करता और दिन की रोशनी में पहचानने से इनकार कर देता. और फिर मैं ने तय किया कि यह काम अब मैं पैसों के लिए करूंगा. शरीर लो और पैसे दो.

मुझे आज भी याद है मेरा पहला काम. एक सैक्स साइट पर तन्मय राजपूत के नाम से मेरा प्रोफाइल बना था. उसी के जरीए मुझे पहला काम मिला. नोएडा सैक्टर 11 में मैट्रो अस्पताल के ठीक सामने वाली गली में मैं एक आदमी के पास गया. वह आदमी मुझ से सिर्फ 4-5 साल बड़ा था.

मैं ने पहली बार पैसों के लिए सैक्स किया. उन की भाषा में इसे सैक्स नहीं, सर्विस कहते हैं. मैं ने उसे सर्विस दी, उस ने मुझे 1,500 रुपए. तब मेरी उम्र 22 साल थी.

उस दिन वे 1,500 रुपए हाथ में ले कर मैं सोच रहा था कि जेरी, तू ने जो रास्ता चुना है, उस में हो सकता है तुझे बदनामी मिले, लेकिन पैसा खूब मिलेगा. लेकिन हुआ यह कि बदनामी और गंदगी तो मिली, लेकिन पैसा नहीं.

इस रास्ते से कमाए गए पैसों का कोई हिसाब नहीं होता. यह जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है. यह सिर उठा कर की गई कमाई नहीं होती, सिर छिपा कर अंधेरे में की गई कमाई होती है.

एक बार जो मैं उस रास्ते पर चल पड़ा तो पीछे लौटने के सारे रास्ते बंद हो गए. अब हर रात यही मेरी जिंदगी है. एक शादीशुदा आदमी की जिंदगी में कुछ दिनों या हफ्तों का अंतराल हो सकता है, लेकिन मेरी जिंदगी में नहीं. हर रात हमें तैयार रहना होता है. 15 ग्राहक हैं मेरे. कोई न कोई तो मुझे बुलाता ही है.

आप को लगता है कि सैक्स बहुत सुंदर चीज है, जैसे फिल्मों में दिखाते हैं. लेकिन मेरे लिए वह प्यार नहीं, सर्विस है. और सर्विस मेहनत और तकलीफ का काम है. हमारी लाइन में सैक्स ऐसे होता है कि जो पैसे दे रहा है, उस के लिए वह खुशी है और जो पैसे ले रहा है, उस के लिए तकलीफ.

ग्राहक जो डिमांड करे, हमें पूरी करनी होती है. जितना ज्यादा पैसा, उतनी ज्यादा तकलीफ. लोग वाइल्ड सैक्स करते हैं, डर्टी सैक्स करते हैं, मारते हैं, कट लगाते हैं. लोगों की अजीबअजीब फैंटैसी हैं. किसी को तकलीफ पहुंचा कर ही मजा मिलता है. किसी को तब तक मजा नहीं आता, जब तक सामने वाले के शरीर से खून न निकल जाए.

मैं यह सबकुछ बिना किसी नशे के पूरे होशोहवास में करता हूं. जो कर रहा हूं, उस से मेरे शरीर को काफी नुकसान हो रहा है. अगर नशा करूंगा, तो मैं अच्छी सर्विस नहीं दे पाऊंगा.

ग्राहक नशा करते हैं और मैडिकल स्टोर से सैक्स पावर बढ़ाने की दवा ले कर आते हैं और मैं पूरे होश में होता हूं. कई बार पूरीपूरी रात यह सब चलता है.

दिन के उजाले में शहर की सड़कों पर बड़ीबड़ी गाडि़यों में जो इज्जतदार चेहरे घूम रहे हैं, कोई नहीं जानता कि रात के अंधेरे में वही हमारे ग्राहक होते हैं. बड़ेबड़े अफसर, नेता, पुलिस वाले… मैं नाम गिनाने लग जाऊं तो आप की आंखें फटी की फटी रह जाएं.

क्या पता कि आप के हाईफाई दफ्तर में घूमने वाली कुरसी पर बैठा सूटबूट वाला आदती रात के अंधेरे में हमारा ग्राहक हो.

एक बार मैं कनाट प्लेस में एक औफिस में इंटरव्यू देने गया. वह एक वक्त था, जब मैं इस जिंदगी से बाहर आना चाहता था. वहां जो आदमी मेरा इंटरव्यू लेने के लिए बैठा था, वह मेरा क्लाइंट रह चुका था.

उस ने कहा, ‘‘इंटरव्यू छोड़ो, यह बताओ, फिर कब मिल रहे हो?’’

मैं कोई जवाब नहीं दे पाया. पता नहीं, मुझे क्यों इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई थी. मैं उस का सामना नहीं कर पाया या अपना. मैं बिना इंटरव्यू दिए ही वापस लौट आया.

मेरी नजर में सैक्स शरीर की भूख है. प्यार कुछ नहीं होता. जहां प्यार हो, सैक्स जरूरी नहीं. दुनिया में जो प्यार का खेल चलता है, उस का सच कभी हमारी दुनिया में आ कर देखिए. अच्छेखासे शादीशुदा इज्जतदार लोग आते हैं हमारे पास अपनी भूख मिटाने.

एक बार एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘‘मेरी बीवी पेट से है. मुझे रिलीज होना है.’’

मैं ने उस आदमी के साथ ओरल सैक्स किया था. यह सब क्या है? एक औरत जो तुम्हारी पत्नी है, उस के पेट में तुम्हारा ही बच्चा पल रहा है, वह तुम्हें सैक्स नहीं दे सकती तो तुम सैक्स वर्कर के पास जाओगे?

ज्यादातर मर्दों के लिए औरत के सिर्फ 2 ही काम हैं कि वह उन के साथ सोए और उन के मां बाप की सेवा करे. 90 फीसदी मर्दों की यही हकीकत है. ज्यादातर लोग अपनी बीवी से प्यार नहीं करते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें