टॉप 10 सामाजिक समस्याएं हिन्दी में

कहा जाता है कि हम आधुनिक जमाने में रहते हैं लेकिन आज भी हमारे समाज की सोच पुराने रीति-रिवाज और ख्यालों से बंधी हुई है, ऐसे में हमें कई समाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन समस्याओं के कारण कई लोग अपनी जान भी गंवा देते हैं. तो इस खबर में हम आपके लिए लेकर आए हैं, टॉप 10 समाजिक समस्याएं हिन्दी. इसे पढ़कर आप इन समाजिक समस्याओं से रूबरू होंगे और समाज को सच का आईना दिखाएंगे.

  1. शर्मनाक: पकड़ौआ विवाह- बंदूक की नोक पर शादी

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कहते हैं कि शादी ऐसा लड्डू है, जो खाए वह पछताए और जो न खाए वह भी पछताए. लेकिन वहां आप क्या करेंगे, जहां जबरन गुंडई से आप की मरजी के खिलाफ आप के मुंह में यह लड्डू ठूंसा जाने लगे? हम बात कर रहे हैं ‘पकड़ौवा विवाह’ की, जो बिहार के कुछ जिलों में आज भी हो रहे हैं.

22 साल के शिवम का सेना के टैक्निकल वर्ग में चयन हो गया था और वह 17 जनवरी को नौकरी जौइन करने वाला था. हमेशा की तरह एक सुबह जब वह अपने कुछ दोस्तों के साथ सैर पर निकला, तभी कार में सवार कुछ लोगों ने उसे अगवा कर लिया.

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2.गांव की औरतें: हालात बदले, सोच वही

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राज कपूर ने साल 1985 में फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाई थी, जो पहाड़ के गांव पर आधारित थी. इस में हीरोइन मंदाकिनी ने गंगा का किरदार निभाया था. फिल्म का सब से चर्चित सीन वह था, जिस में मंदाकिनी  झरने के नीचे नहाती है. वह एक सफेद रंग की सूती धोती पहने होती है. पानी में भीगने के चलते उस के सुडौल अंग दिखने लगते हैं.

उस दौर में गांव की औरतों का पहनावा तकरीबन वैसा ही होता था. सूती कपड़े की धोती के नीचे ब्लाउज और पेटीकोट पहनने का रिवाज नहीं था. इस की वजह गांव की गरीबी थी, जहां एक कपड़े में ही काम चलाना पड़ता था.

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3. जिगोलो: देह धंधे में पुरुष भी शामिल

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देह व्यापार का एक बाजार ऐसा भी है, जहां के सैक्सवर्कर औरतें नहीं बल्कि मर्द होते हैं. जिन्हें जिगोलो कहा जाता है. उन्हें यौन पिपासा से भरी औरतों को हर तरह से खुश करना होता है. आजकल जिगोलो की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इस धंधे में मोटी कमाई तो होती ही है साथ ही…

भरे बदन वाली एक अधेड़ महिला कमसिन दिखने की अदाओं के साथ ड्राइंगरूम में खड़ी थी. वहीं कुछ दूसरी महिलएं सिगरेट का धुंआ उड़ाती कुछ दूरी बना कर सोफे पर क्रास टांगों के साथ बैठी थीं. सभी के बीच अपनेअपने सैक्स अपील वाले यौवन को दर्शाने की होड़ सी दिख रही थी.

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4. रीति रिवाजों में छिपी पितृसत्तात्मक सोच

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हम पुरुषवादी समाज में रहते हैं जहां स्त्रियों को हमेशा से दोयम दर्जा दिया जाता रहा है. स्त्री कितना भी पढ़लिख ले, अपनी काबिलीयत के बल पर ऊंचे से ऊंचे पद पर काबिज हो जाए पर घरपरिवार और समाज में उसे पुरुषों के अधीन ही माना जाता है.

उस के परों को अकसर काट दिया जाता है ताकि वह ऊंची उड़ान न भर सके. स्त्रियों को दबा कर रखने और उन की औकात दिखाने के लिए तमाम रीतिरिवाज व परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं.

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5. धर्म का धंधा: कुंडली मिलान, समाज को बांटे रखने का बड़ा हथियार!

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लड़केलड़की की कुंडलियों में यदि 36 गुणों में सभी गुणों का मिलान हो जाए तो क्या इस की कोई गारंटी है कि वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा? यदि ऐसा न हुआ तो इस में किस का दोष माना जाएगा? क्या शादी से पहले कुंडली मिलान करना आवश्यक है या फिर कुंडली मिलान की प्रक्रिया के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है? क्या यह सिर्फ एक धर्म में ही है या इस जैसी कोई प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी पाई जाती है?

साल था जनवरी 2018, जब राजीव की शादी के लिए जगहजगह लड़की तलाशने के लिए लोगों के घर जाया जा रहा था. उन के घर वाले ऐसी बहू की तलाश में थे जो सुंदर हो, सुशील हो, घरबार का काम करना आता हो, पढ़ीलिखी हो इत्यादि.

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6. पत्नी की सलाह मानना दब्बूपन की निशानी नहीं

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पुरुषप्रधान समाज में आज महिलाएं हर क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं. ऐसे में पढ़ीलिखी, योग्य व समझदार पत्नी की राय को सम्मान देना पति का गुलाम होना नहीं, बल्कि उस की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है.

कपिल इंजीनयर हैं. लोक सेवा आयोग से चयनित राकेश उच्च पद पर हैं. विभागीय परिचितों, साथियों में दोनों की इमेज पत्नियों से डरने, उन के आगे न बोलने वाले भीरु या डरपोक पतियों की है. पत्नियों का आलम यह है कि नौकरी संबंधी समस्याओं की बाबत मशवरे के लिए पतियों के उच्च अधिकारियों के पास जाते समय वे भी उन के साथ जाती हैं.

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7. वर्जिनिटी: टूट रही हैं बेडि़यां

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आदिकाल से ही औरतों के लिए शुचिता यानी वर्जिनिटी एक आवश्यक अलंकार के रूप में निर्धारित कर दी गई है. यकीन न हो, तो कोई भी पौराणिक ग्रंथ उठा कर देख लीजिए.

अहल्या की कहानी कौन नहीं जानता. शुचिता के मापदंड पर खरा नहीं उतरने के कारण जीतीजागती, सांस लेती औरत को पत्थर की शिला में परिवर्तित हो जाने का श्राप मिला था. पुराणों के अनुसार, उस का दोष सिर्फ इतना ही था कि वह अपने पति का रूप धारण कर छद्मवेश में आए छलिए इंद्र को उस के स्पर्श से पहचान न सकी.

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8. नारी हर दोष की मारी

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आज भी स्त्रियों के लिए सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं जैसे उन्हें निगलने के लिए मुंह बाए खड़ी हैं. कई योजनाएं बनती हैं, लेख लिखे जाते हैं, कहानियां गढ़ी जाती हैं, प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं और सब से खास प्रतिवर्ष महिला दिवस भी मनाया जाता है. किंतु हकीकत यह है कि घर की चारदीवारी में महिलाएं बचपन से ले कर बुढ़ापे तक समाज एवं धर्म की मान्यताओं में बंधी कसमसा कर रह जाती हैं.

कुंआरी लड़की एवं विधवा दोष

कुछ महीने पहले की ही बात है  झुन झुनवाला की 25 वर्षीय बिटिया के विवाह की बात चल रही थी, लड़कालड़की दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था. लेकिन फिर बात आगे न बढ़ सकी, जब  झुन झुनवाला से पूछा गया कि मिठाई कब खिला रही हैं तो कहने लगीं…

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9. वर्जनिटी: चरित्र का पैमाना क्यों

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हमारे शास्त्रों और सामाजिक व्यवस्था ने वर्जिनिटी यानी कौमार्य को विशेष रूप से महिलाओं के चरित्र के साथ जोड़ कर उन के लिए अच्छे चरित्र का मानदंड निर्धारित कर दिया है.

हमारे समाज में वर्जिनिटी की परिभाषा इस के बिलकुल विपरीत है. दरअसल, समाज और शास्त्रों के अनुसार इस का अर्थ है कि आप प्योर हैं. हम किसी चीज या वस्तु की प्युरिटी की बात नहीं कर रहे हैं वरन लड़की की प्युरिटी की बात कर रहे हैं. लड़की की वर्जिनिटी को ही उस की शुद्धता की पहचान बना दी गई है. लड़कों की वर्जिनिटी की कहीं कोई बात नहीं करता. बात केवल लड़कियों की वर्जिनिटी की करी जाती है.

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10. समलैंगिकता मिथक बनाम सच

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भारत में समलैंगिकता आज भी हंसीमजाक का हिस्सा मात्र है. कानून बनने के बाद भी लोग समलैंगिकता को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे कई मिथक हैं जिन के चलते समलैंगिक लोगों के लिए वातावरण दमघोंटू बना हुआ है.

पिछले वर्ष फरवरी में एक फिल्म आई थी, ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’. उस में समलैंगिक जोड़े को अपनी शादी के लिए परिवार, समाज और मातापिता से संघर्ष करते हुए दिखाया गया था. वह कहीं न कहीं हमारे समाज की सचाई और समलैंगिकों के प्रति होने वाले व्यवहार के बहुत करीब थी.

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Social Story: आखिर कब तक और क्यों

‘‘क्या बात है लक्ष्मी, आज तो बड़ी देर हो गई आने में?’’ सुधा ने खीज कर अपनी कामवाली से पूछा.

‘‘क्या बताऊं मेमसाहब आप को कि मुझे क्यों देरी हो गई आने में… आप तो अपने कामों में ही लगी रहती हैं. पता भी है मनोज साहब के घर में कैसी आफत आ गई है? उन की बेटी रिचा के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया है… बड़ी शांत, बड़े अच्छे तौरतरीकों वाली है.’’

लक्ष्मी से रिचा के बारे में जान कर सुधा का मन खराब हो गया. बारबार उस का मासूम चेहरा उस के जेहन में उभर कर मन को बेधने लगा कि पता नहीं लड़की के साथ क्या हुआ? फिर भी अपनेआप पर काबू पाते हुए लक्ष्मी के धाराप्रवाह बोलने पर विराम लगाती हुई वह बोली, ‘‘अरे कुछ नहीं हुआ है. खेलते वक्त चोट लग गई होगी… दौड़ती भी तो कितनी तेज है,’’ कह कर सुधा ने लक्ष्मी को चुप करा दिया, पर उस के मन में शांति कहां थी…

कालेज से अवकाश प्राप्त कर लेने के बाद सुधा बिल्डिंग के बच्चों की मैथ्स और साइंस की कठिनाइयों को सुलझाने में मदद करती रही है. हिंदी में भी मदद कर उन्हें अचंभित कर देती है. किस के लिए कौन सी लाइन ठीक रहेगी. बच्चे ही नहीं उन के मातापिता भी उसी के निर्णय को मान्यता देते हैं. फिर रिचा तो उस की सब से होनहार विद्यार्थी है.

‘‘आंटी, मैं भी भैया लोगों की तरह कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहती हूं. उन की तरह आप मेरा मार्गदर्शन करेंगी न?’’

सुधा के हां कहते ही वह बच्चों की तरह उस के गले लग जाती थी. लक्ष्मी के जाते ही सारे कामों को जल्दी से निबटा कर वह अनामिका के पास गई. उस ने रिचा के बारे में जो कुछ भी बताया उसे सुन कर सुधा कांप उठी. कल सुबह रिचा अपने सहपाठियों के साथ पिकनिक मनाने गंगा पार गई थी. खानेपीने के बाद जब सभी गानेबजाने में लग गए तो वह गंगा किनारे घूमती हुई अपने साथियों से दूर निकल गई. बड़ी देर तक जब रिचा नहीं लौटी तो उस के साथी उसे ढूंढ़ने निकले. कुछ ही दूरी पर झाडि़यों की ओट में बेहोश रिचा को देख सभी के होश गुम हो गए. किसी तरह उसे नर्सिंगहोम में भरती करा कर उस के घर वालों को खबर की. घर वाले तुरंत नर्सिंगहोम पहुंचे.

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अनामिका ने जो कुछ भी बताया उसे सुन कर सुधा स्तब्ध रह गई. अब वह असमंजस में थी कि वह रिचा को देखने जाए या नहीं. फिर अनमनी सी हो कर उस ने गाड़ी निकाली और नर्सिंगहोम चल पड़ी, जहां रिचा भरती थी. वहां पहुंच तो गई पर मारे आशंका के उस के कदम आगे बढ़ ही नहीं रहे थे. किसी तरह अपने पैरों को घिसटती हुई उस के वार्ड की ओर चल पड़ी. वहां पहुंचते ही रिचा के पिता से उस का सामना हुआ. इस हादसे ने रात भर में ही उन की उम्र को10 साल बढ़ा दिया था. उसे देखते ही वे रो पड़े तो सुधा भी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाई. ऐसी घटनाएं पूरे परिवार को झुलसा देती हैं. बड़ी हिम्मत कर वह कमरे में अभी जा ही पाई थी कि रिचा की मां उस से लिपट कर बेतहासा रोने लगीं. पथराई आंखों से जैसे आंसू नहीं खून गिर रहा हो.

रिचा को नींद का इंजैक्शन दे कर सुला दिया गया था. उस के नुचे चेहरे को देखते ही सुधा ने आंखों से छलकते आंसुओं को पी लिया. फिर रिचा की मां अरुणा के हाथों को सहलाते हुए अपने धड़कते दिल पर काबू पाते हुए कल की दुर्घटना के बारे में पूछा, ‘‘क्या कहूं सुधा, कल घर से तो खुशीखुशी सभी के साथ निकली थी. हम ने भी नहीं रोका जब इतने बच्चे जा रहे हैं तो फिर डर किस बात का… गंगा के उस पार जाने की न जाने कब से उस की इच्छा थी. इतने बड़े सर्वनाश की कल्पना हम ने कभी नहीं की थी.’’

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर सुधा उस लेडी डाक्टर के पास गई, जो रिचा का इलाज कर रही थी. सुधा ने उन से आग्रह किया कि इस घटना की जानकारी वे किसी भी तरह मीडिया को न दें, क्योंकि इस से कुछ होगा नहीं, उलटे रिचा बदनाम हो जाएगी. फिर पुलिस के जो अधिकारी इस की घटना जांचपड़ताल कर रहे हैं, उन की जानकारी डाक्टर से लेते हुए सुधा उन से मिलने के लिए निकल गई. यह भी एक तरह से अच्छा संयोग रहा कि वे घर पर थे और उस से अच्छी तरह मिले. धैर्यपूर्वक उस की सारी बातें सुनीं वरना आज के समय में इतनी सज्जनता दुर्लभ है.

‘‘सर, हमारे समाज में बलात्कार पीडि़ता को बदनामी एवं जिल्लत की किनकिन गलियों से गुजरना पड़ता है, उस से तो आप वाकिफ ही होंगे… इतने बड़े शहर में किस की हैवानियत है यह, यह तो पता लगने से रहा… मान लीजिए अगर पता लग जाने पर अपराधी पकड़ा भी जाता है तो जरा सोचिए रिचा को क्या पहले वाला जीवन वापस मिल जाएगा? उसे जिल्लत और बदनामी के कटघरों में खड़ा कर के बारंबार मानसिक रूप से बलात्कार किया जाएगा, जो उस के जीवन को बद से बदतर कर देगा. कृपया इसे दुर्घटना का रूप दे कर इस केस को यहीं खारिज कर के उसे जीने का एक अवसर दीजिए.’’

सुधा की बातों की गहराई को समझते हुए पुलिस अधिकारी ने पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया. वहां से आश्वस्त हो कर सुधा फिर नर्सिंगहोम पहुंची और रिचा के परिवार से भी रोनाधोना बंद कर इस आघात से उबरने का आग्रह किया.

शायद रिचा को होश आ चुका था. सुधा की आवाज सुनते ही उस ने आंखें खोल दीं. किसी हलाल होते मेमने की तरह चीख कर वह सुधा से लिपट गई. सुधा ने किसी तरह स्वयं पर काबू पाते हुए रिचा को अपने सीने से लगा लिया. फिर उस की पीठ को सहलाते हुए कहा, ‘‘धैर्य रख मेरी बच्ची… जो हुआ उस से बुरा तो कुछ और हो ही नहीं सकता, लेकिन इस से जीवन समाप्त थोड़े हो जाता है? इस से उबरने के लिए तुम्हें बहुत बड़ी शक्ति की आवश्यकता है मेरी बच्ची… उसे यों बेहाल हो कर चीखने में जाया नहीं करना है… जितना रोओगी, चीखोगी, चिल्लाओगी उतना ही यह निर्दयी दुनिया तुम्हें रुलाएगी, व्यंग्यवाणों से तुझे बेध कर जीने नहीं देगी.’’

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‘‘आंटी, मेरा मर जाना ठीक है… अब मैं किसी से भी नजरें नहीं मिला सकती… सारा दोष मेरा है. मैं गई ही क्यों? सभी मिल कर मुझ पर हसेंगे… मेरा शरीर इतना दूषित हो गया है कि इसे ढोते हुए मैं जिंदा नहीं रह सकती.’’

फिर चैकअप के लिए आई लेडी डाक्टर से गिड़गिड़ा कर कहने लगी, ‘‘जहर दे कर मुझे मार डालिए डाक्टर… इस गंदे शरीर के साथ मैं नहीं जी सकती. अगर आप ने मुझे मौत नहीं दी तो मैं इसे स्वयं समाप्त कर दूंगी,’’ रिचा पागल की तरह चीखती हुई बैड पर छटपटा रही थी.

‘‘ऐसा नहीं कहते… तुम ने बहुत बहादुरी से सामना किया है… मैं कहती हूं तुम्हें कुछ नहीं हुआ है,’’ डाक्टर की इस बात पर रिचा ने पथराई आंखों से उन्हें घूरा.बड़ी देर तक सुधा रिचा के पास बैठी उसे ऊंचनीच समझाते हुए दिलाशा देती रही लेकिन वह यों ही रोतीचिल्लाती रही. उसे नींद का इंजैक्शन दे कर सुलाना पड़ा. रिचा के सो जाने के बाद सुधा अरुण को हर तरह से समझाते हुए धैर्य से काम लेने को कहते हुए चली गई. किसी तरह ड्राइव कर के घर पहुंची. रास्ते भर वह रिचा के बारे में ही सोचती रही. घर पहुंचते ही वह सोफे पर ढेर हो गई. उस में इतनी भी ताकत नहीं थी कि वह अपने लिए कुछ कर सके.

रिचा के साथ घटी दुर्घटना ने उसे 5 दशक पीछे धकेल दिया. अतीत की सारी खिड़कियां1-1 कर खुलती चली गईं…

12 साल की अबोध सुधा के साथ कुछ ऐसा हुआ था कि वह तत्काल उम्र की अनगिनत दहलीजें फांद गई थी. कितनी उमंग एवं उत्साह के साथ वह अपनी मौसेरी बहन की शादी में गई थी. तब शादी की रस्मों में सारी रात गुजर जाती थी. उसे नींद आ रही थी तो उस की मां ने उसे कमरे में ले जा कर सुला दिया. अचानक नींद में ही उस का दम घुटने लगा तो उस की आंखें खुल गईं. अपने ऊपर किसी को देख उस ने चीखना चाहा पर चीख नहीं सकी. वह वहशी अपनी हथेली से उस के मुंह को दबा कर बड़ी निर्ममता से उसे क्षतविक्षत करता रहा.

अर्धबेहोशी की हालत में न जाने वह कितनी देर तक कराहती रही और फिर बेहोश हो गई. जब होश आया तो दर्द से सारा बदन टूट रहा था. बगल में बैठी मां पर उस की नजर पड़ी तो पिछले दिन आए उस तूफान को याद कर किसी तरह उठ कर मां से लिपट कर चीख पड़ी. मां ने उस के मुंह पर हाथ रख कर गले के अंदर ही उस की आवाज को रोक दिया और आंसुओं के समंदर को पीती रही. बेटी की बिदाई के बाद ही उस की मौसी उस के सर्वनाश की गाथा से अवगत हुई तो अपने माथे को पीट लिया. जब शक की उंगली उन की ननद के 18 वर्षीय बेटे की ओर उठी तो उन्होंने घबरा कर मां के पैर पकड़ लिए. उन्होंने भी मां को यही समझाया कि चुप रहना ही उस के भविष्य के लिए हितकर होगा.

हफ्ते भर बाद जब वह अपने घर लौटी तो बाबूजी के बारबार पूछने के बावजूद भी अपनी उदासी एवं डर का कारण उन्हें बताने का साहस नहीं कर सकी. हर पल नाचने, गाने, चहकने वाली सुधा कहीं खो गई थी. हमेशा डरीसहमी रहती थी.

आखिर उस की बड़ी बहन ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बताओ न मां, वहां सुधा के साथ हुआ क्या जो इस की ऐसी हालत हो गई है? आप हम से कुछ छिपा रही हैं?’’

सुधा उस समय बाथरूम में थी. अत: मां उस रात की हैवानियत की सारी व्यथा बताते हुए फूट पड़ी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. बाबूजी भैया के साथ बाजार से लौट आए थे. मां को इस का आभास तक नहीं हुआ. सारी वारदात से बाबूजी और भैया दोनों अवगत हो चुके थे और मारे क्रोध के दोनों लाल हो रहे थे. सब कुछ अपने तक छिपा कर रख लेने के लिए बाबूजी ने मां को बहुत धिक्कारा. सुधा बाथरूम से निकली तो बाबूजी ने उसे सीने से लगा लिया.

बलात्कार किसी एक के साथ होता है पर मानसिक रूप से इस जघन्य कुकृत्य का शिकार पूरा परिवार होता है. अपनी तेजस्विनी बेटी की बरबादी पर वे अंदर से टूट चुके थे, लेकिन उस के मनोबल को बनाए रखने का प्रयास करते रहे.

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सुधा ने बाहर वालों से मिलना या कहीं जाना एकदम छोड़ दिया था. लेकिन पढ़ाई को अपना जनून बना लिया था. भौतिकशास्त्र में बीएसी औनर्स में टौप करने के 2 साल बाद एमएससी में जब उस ने टौप किया तो मारे खुशी के बाबूजी के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. 2 महीने बाद उसी यूनिवर्सिटी में लैक्चरर बन गई. सभी कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन शादी से उस के इनकार ने बाबूजी को तोड़ दिया था. एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे थे, लेकिन सुधा शादी न करने के फैसले पर अटल रही. भैया और दीदी की शादी किसी तरह देख सकी अन्यथा किसी की बारात जाते देख कर उसे कंपकंपी होने लगती थी.

सुधा के लिए जैसा घरवर बाबूजी सोच रहे थे वे सारी बातें उन के परम दोस्त के बेटे रवि में थी. उस से शादी कर लेने में अपनी इच्छा जाहिर करते हुए वे गिड़गिड़ा उठे तो फिर सुधा मना नहीं कर सकी. खूब धूमधाम से उस की शादी हुई पर वह कई वर्षों बाद भी बच्चे का सुख रवि को दे सकी. वह तो रवि की महानता थी कि इतने दिनों तक उसे सहन करते रहे अन्यथा उन की जगह कोई और होता तो कब का खोटे सिक्के की तरह उसे मायके फेंक आया होता.

रवि के जरा सा स्पर्श करते ही मारे डर के उस का सारा बदन कांपने लगता था. उस की ऐसी हालत का सबब जब कहीं से भी नहीं जान सके तो मनोचिकित्सकों के पास उस का लंबा इलाज चला. तब कहीं जा कर वह सामान्य हो सकी थी. रवि कोई वेवकूफ नहीं थे जो कुछ नहीं समझते. बिना बताए ही उस के अतीत को वे जान चुके थे. यह बात और थी कि उन्होंने उस के जख्म को कुरेदने की कभी कोशिश नहीं की.

2 बेटों की मां बनी सुधा ने उन्हें इस तरह संस्कारित किया कि बड़े हो कर वे सदा ही मर्यादित रहे. अपने ढंग से उन की शादी की और समय के साथ 2 पोते एवं 2 पोतियों की दादी बनी.

जीवन से गुजरा वह दर्दनाक मोड़ भूले नहीं भूलता. अतीत भयावह समंदर में डूबतेउतराते वह 12 वर्षीय सुधा बन कर विलख उठी. मन ही मन उस ने एक निर्णय लिया, लेकिन आंसुओं को बहने दिया. दूसरे दिन रिचा की पसंद का खाना ले कर कुछ जल्दी ही नर्सिंगहोम जा पहुंची. समझाबुझा कर मनोज दंपती को घर भेज दिया. 2 दिन से वहीं बैठे बेटी की दशा देख कर पागल हो रहे थे. किसी से भी कुछ नहीं कहने को सुधा ने उन्हें हिदायत भी दे दी. फिर एक दृढ़ निश्चय के साथ रिचा के सिरहाने जा बैठी.

सुधा को देखते ही रिचा का प्रलाप शुरू हो गया, ‘‘अब मैं जीना नहीं चाहती. किसी को कैसे मुंह दिखाऊंगी?’’

सुधा ने उसे पुचकारते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ वह कोई नई बात नहीं है. सदियों से स्त्रियां पुरुषों की आदम भूख की शिकार होती रही हैं और होती रहेंगी. कोई स्त्री दावे से कह तो दे कि जिंदगी में वह कभी यौनिक छेड़छाड़ की शिकार नहीं हुई है. अगर कोई कहती है तो वह झूठ होगा. यह पुरुष नाम का भयानक जीव तो अपनी आंखों से ही बलात्कार कर देता है. आज तुम्हें मैं अपने जीवन के उस भयानक सत्य से अवगत कराने जा रही हूं, जिस से आज तक मेरा परिवार अनजान है, जिसे सुन कर शायद तुम्हारी जिजिविषा जाग उठे,’’ कहते हुए सुधा ने रिचा के समक्ष अपने काले अतीत को खोल दिया. रिचा अवाक टकटकी बांधे सुधा को निहारती रह गई. उस के चेहरे पर अनेक रंग बिखर गए, बोली, ‘‘तो क्या आंटी मैं पहले जैसा जी सकूंगी?’’

‘‘एकदम मेरी बच्ची… ऐसी घटनाओं से हमारे सारे धार्मिक ग्रंथ भरे पड़े हैं… पुरुषों की बात कौन करे… अपना वंश चलाने के लिए स्वयं स्त्रियों ने स्त्रियों का बलात्कार करवाया है. कोई शरीर गंदा नहीं होता. जब इन सारे कुकर्मों के बाद भी पुरुषों का कौमार्य अक्षत रह जाता है तो फिर स्त्रियां क्यों जूठी हो जाती हैं.

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‘‘इस दोहरी मानसिकता के बल पर ही तो धर्म और समाज स्त्रियों पर हर तरह का अत्याचार करता है. सारी वर्जनाएं केवल लड़कियों के लिए ही क्यों? लड़के छुट्टे सांड़ की तरह होेंगे तो ऐसी वारदातें होती रहेंगी. अगर हर मां अपने बेटों को संस्कारी बना कर रखे तो ऐसी घटनाएं समाज में घटित ही न हों. पापपुण्य के लेखेजोखे को छोड़ते हुए हमें आगे बढ़ कर समाज को ऐसी घृणित सोच को बदलने के लिए बाध्य करना है. जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ और कल तुम यहां से अपने घर जा रही हो. सभी की नजरों का सामना इस तरह से करना है मानो कुछ भी अनिष्ट घटित नहीं हुआ है. देखो मैं ने कितनी खूबसूरती से जीवन जीया है.’’

रिचा के चेहरे पर जीवन की लाली बिखरते देख सुधा संतुष्ट हो उठी. उस के अंतर्मन में जमा वर्षों की असीम वेदना का हिम रिचा के चेहरे की लाली के ताप से पिघल कर आंखों में मचल रहा था. अतीत के गरल को उलीच कर वह भी तो फूल सी हलकी हो गई थी.

सोशल मीडिया क्राइम: नाइजीरियन ठगों ने किया कारनामा

यह ठगी की क्राइम स्टोरी पढ़कर आप भी चौंक जाएंगे की ठगी के कैसे-कैसे नायाब नमूने लोगों ने इजाद कर लिए हैं. इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की
राजनांदगांव पुलिस को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है. सोशल मीडिया के जरिए आनलाइन ठगी करने वाले दो नाईनीरियन को पुलिस ने नईदिल्ली से गिरफतार किया है इनके नाम- किबी स्टेनली ओकवो और नवाकोर इमानुएल हैं.

दंपत्ति से 44 लाख की ठगी

पुलिस अधीक्षक कमललोचन कश्यप ने बताया कि राजनांदगांव निवासी श्रीमती सुनीता आर्य पति चैतूराम आर्य ने विगत एक दिसंबर को उक्त आरोपियों के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा था कि जुलाई 2018 में किसी डेविड सूर्ययन नामक व्यक्ति उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी. तथा खुद को लंदन निवासी होना बताया. काफी दिनों तक दोनों के बीच चेटिंग होती रही और एक दिन उपरोक्त व्यक्ति ने कहा कि वह उसे मोबाइल, गोल्डन ज्वेलरी, रिंग, जूते, कोट, घडी चैनल, बैग इत्यादि सामान गिफट करना चाहता है परंतु उसका जहांज फिनलैण्ड में रूका पड़ा है, उसके बाद पीड़िता के पास एक व्यक्ति का फेान आया जिसने खुद को कस्टम अधिकारी बताया और कहा कि उपरोक्त सामान चाहिऐ तो उसे 62500 रूपये जमा कराने होंगे. इस तरह क्राइम प्रारंभ हो गया विश्वास करके आगे दंपत्ति ने यूपी जमाने प्रारंभ कर दिए और धीरे धीरे 44लाख रुपए की चपत उन्हें लग गई.

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ऐसे हुआ ठगी का एहसास

इधर पीड़िता ने उसके झांसे में आते हुए रकम जमा कर दी परंतु जब सामान नही पहुंचा तेा उसने डेविड सूर्ययन से संपर्क करना चाहा मगर उसका सोशल मीडिया एकाउंट और मोबाइल नम्बर बंद बताया जा रहा था. आश्चर्य कि इस तरह पीड़िता से कुल 44 लाख की आनलाइन धोखाधड़ी हो गई. उसके बाद पीड़िता ने राजनंदगांव पुलिस अधीक्षक एवं अधिकारियों से संपर्क किया जिन के निर्देश पर कोतवाली थाना में मामला दर्ज हुआ. रिपोर्ट
दर्ज करने के बाद पुलिस ने भादवि की धारा 420, 34 एवं 66 डी के तहत जुर्म दर्ज किया.

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अंततः अपराधी पकड़े गए

पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जाल बिछाकर ठगों को दबोच लिया। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव पुलिस ने ऑनलाइन साइबर क्राइम को बहुत गंभीरता से लिया और इसके लिए एक क्राइम इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई गई जोशीला पुलिस कप्तान कश्यप को रिपोर्ट कर रही थी बहुत ही चालाकी से दोनों नाइजीरियन नागरिकों को पुलिस ने जाल में फंसाया और गिरफ्तार करके राजनंदगांव ले आई है पुलिस ने दोनों का बयान दर्ज किया उन्होंने स्वीकार किया कि यह काम वह विगत 2 वर्षों से कर रहे थे और अनेक लोगों को अपना शिकार बनाया है. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया जहां से जमानत के अभाव में उन्हें जेल भेज दिया गया है.

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