कहा जाता है कि हम आधुनिक जमाने में रहते हैं लेकिन आज भी हमारे समाज की सोच पुराने रीति-रिवाज और ख्यालों से बंधी हुई है, ऐसे में हमें कई समाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन समस्याओं के कारण कई लोग अपनी जान भी गंवा देते हैं. तो इस खबर में हम आपके लिए लेकर आए हैं, टॉप 10 समाजिक समस्याएं हिन्दी. इसे पढ़कर आप इन समाजिक समस्याओं से रूबरू होंगे और समाज को सच का आईना दिखाएंगे.
- शर्मनाक: पकड़ौआ विवाह- बंदूक की नोक पर शादी
कहते हैं कि शादी ऐसा लड्डू है, जो खाए वह पछताए और जो न खाए वह भी पछताए. लेकिन वहां आप क्या करेंगे, जहां जबरन गुंडई से आप की मरजी के खिलाफ आप के मुंह में यह लड्डू ठूंसा जाने लगे? हम बात कर रहे हैं ‘पकड़ौवा विवाह’ की, जो बिहार के कुछ जिलों में आज भी हो रहे हैं.
22 साल के शिवम का सेना के टैक्निकल वर्ग में चयन हो गया था और वह 17 जनवरी को नौकरी जौइन करने वाला था. हमेशा की तरह एक सुबह जब वह अपने कुछ दोस्तों के साथ सैर पर निकला, तभी कार में सवार कुछ लोगों ने उसे अगवा कर लिया.
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2.गांव की औरतें: हालात बदले, सोच वही
राज कपूर ने साल 1985 में फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाई थी, जो पहाड़ के गांव पर आधारित थी. इस में हीरोइन मंदाकिनी ने गंगा का किरदार निभाया था. फिल्म का सब से चर्चित सीन वह था, जिस में मंदाकिनी झरने के नीचे नहाती है. वह एक सफेद रंग की सूती धोती पहने होती है. पानी में भीगने के चलते उस के सुडौल अंग दिखने लगते हैं.
उस दौर में गांव की औरतों का पहनावा तकरीबन वैसा ही होता था. सूती कपड़े की धोती के नीचे ब्लाउज और पेटीकोट पहनने का रिवाज नहीं था. इस की वजह गांव की गरीबी थी, जहां एक कपड़े में ही काम चलाना पड़ता था.
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3. जिगोलो: देह धंधे में पुरुष भी शामिल
देह व्यापार का एक बाजार ऐसा भी है, जहां के सैक्सवर्कर औरतें नहीं बल्कि मर्द होते हैं. जिन्हें जिगोलो कहा जाता है. उन्हें यौन पिपासा से भरी औरतों को हर तरह से खुश करना होता है. आजकल जिगोलो की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इस धंधे में मोटी कमाई तो होती ही है साथ ही…
भरे बदन वाली एक अधेड़ महिला कमसिन दिखने की अदाओं के साथ ड्राइंगरूम में खड़ी थी. वहीं कुछ दूसरी महिलएं सिगरेट का धुंआ उड़ाती कुछ दूरी बना कर सोफे पर क्रास टांगों के साथ बैठी थीं. सभी के बीच अपनेअपने सैक्स अपील वाले यौवन को दर्शाने की होड़ सी दिख रही थी.
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4. रीति रिवाजों में छिपी पितृसत्तात्मक सोच
हम पुरुषवादी समाज में रहते हैं जहां स्त्रियों को हमेशा से दोयम दर्जा दिया जाता रहा है. स्त्री कितना भी पढ़लिख ले, अपनी काबिलीयत के बल पर ऊंचे से ऊंचे पद पर काबिज हो जाए पर घरपरिवार और समाज में उसे पुरुषों के अधीन ही माना जाता है.
उस के परों को अकसर काट दिया जाता है ताकि वह ऊंची उड़ान न भर सके. स्त्रियों को दबा कर रखने और उन की औकात दिखाने के लिए तमाम रीतिरिवाज व परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं.
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5. धर्म का धंधा: कुंडली मिलान, समाज को बांटे रखने का बड़ा हथियार!
लड़केलड़की की कुंडलियों में यदि 36 गुणों में सभी गुणों का मिलान हो जाए तो क्या इस की कोई गारंटी है कि वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा? यदि ऐसा न हुआ तो इस में किस का दोष माना जाएगा? क्या शादी से पहले कुंडली मिलान करना आवश्यक है या फिर कुंडली मिलान की प्रक्रिया के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है? क्या यह सिर्फ एक धर्म में ही है या इस जैसी कोई प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी पाई जाती है?
साल था जनवरी 2018, जब राजीव की शादी के लिए जगहजगह लड़की तलाशने के लिए लोगों के घर जाया जा रहा था. उन के घर वाले ऐसी बहू की तलाश में थे जो सुंदर हो, सुशील हो, घरबार का काम करना आता हो, पढ़ीलिखी हो इत्यादि.
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6. पत्नी की सलाह मानना दब्बूपन की निशानी नहीं
पुरुषप्रधान समाज में आज महिलाएं हर क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं. ऐसे में पढ़ीलिखी, योग्य व समझदार पत्नी की राय को सम्मान देना पति का गुलाम होना नहीं, बल्कि उस की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है.
कपिल इंजीनयर हैं. लोक सेवा आयोग से चयनित राकेश उच्च पद पर हैं. विभागीय परिचितों, साथियों में दोनों की इमेज पत्नियों से डरने, उन के आगे न बोलने वाले भीरु या डरपोक पतियों की है. पत्नियों का आलम यह है कि नौकरी संबंधी समस्याओं की बाबत मशवरे के लिए पतियों के उच्च अधिकारियों के पास जाते समय वे भी उन के साथ जाती हैं.
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7. वर्जिनिटी: टूट रही हैं बेडि़यां
आदिकाल से ही औरतों के लिए शुचिता यानी वर्जिनिटी एक आवश्यक अलंकार के रूप में निर्धारित कर दी गई है. यकीन न हो, तो कोई भी पौराणिक ग्रंथ उठा कर देख लीजिए.
अहल्या की कहानी कौन नहीं जानता. शुचिता के मापदंड पर खरा नहीं उतरने के कारण जीतीजागती, सांस लेती औरत को पत्थर की शिला में परिवर्तित हो जाने का श्राप मिला था. पुराणों के अनुसार, उस का दोष सिर्फ इतना ही था कि वह अपने पति का रूप धारण कर छद्मवेश में आए छलिए इंद्र को उस के स्पर्श से पहचान न सकी.
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8. नारी हर दोष की मारी
आज भी स्त्रियों के लिए सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं जैसे उन्हें निगलने के लिए मुंह बाए खड़ी हैं. कई योजनाएं बनती हैं, लेख लिखे जाते हैं, कहानियां गढ़ी जाती हैं, प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं और सब से खास प्रतिवर्ष महिला दिवस भी मनाया जाता है. किंतु हकीकत यह है कि घर की चारदीवारी में महिलाएं बचपन से ले कर बुढ़ापे तक समाज एवं धर्म की मान्यताओं में बंधी कसमसा कर रह जाती हैं.
कुंआरी लड़की एवं विधवा दोष
कुछ महीने पहले की ही बात है झुन झुनवाला की 25 वर्षीय बिटिया के विवाह की बात चल रही थी, लड़कालड़की दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था. लेकिन फिर बात आगे न बढ़ सकी, जब झुन झुनवाला से पूछा गया कि मिठाई कब खिला रही हैं तो कहने लगीं…
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9. वर्जनिटी: चरित्र का पैमाना क्यों
हमारे शास्त्रों और सामाजिक व्यवस्था ने वर्जिनिटी यानी कौमार्य को विशेष रूप से महिलाओं के चरित्र के साथ जोड़ कर उन के लिए अच्छे चरित्र का मानदंड निर्धारित कर दिया है.
हमारे समाज में वर्जिनिटी की परिभाषा इस के बिलकुल विपरीत है. दरअसल, समाज और शास्त्रों के अनुसार इस का अर्थ है कि आप प्योर हैं. हम किसी चीज या वस्तु की प्युरिटी की बात नहीं कर रहे हैं वरन लड़की की प्युरिटी की बात कर रहे हैं. लड़की की वर्जिनिटी को ही उस की शुद्धता की पहचान बना दी गई है. लड़कों की वर्जिनिटी की कहीं कोई बात नहीं करता. बात केवल लड़कियों की वर्जिनिटी की करी जाती है.
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10. समलैंगिकता मिथक बनाम सच
भारत में समलैंगिकता आज भी हंसीमजाक का हिस्सा मात्र है. कानून बनने के बाद भी लोग समलैंगिकता को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे कई मिथक हैं जिन के चलते समलैंगिक लोगों के लिए वातावरण दमघोंटू बना हुआ है.
पिछले वर्ष फरवरी में एक फिल्म आई थी, ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’. उस में समलैंगिक जोड़े को अपनी शादी के लिए परिवार, समाज और मातापिता से संघर्ष करते हुए दिखाया गया था. वह कहीं न कहीं हमारे समाज की सचाई और समलैंगिकों के प्रति होने वाले व्यवहार के बहुत करीब थी.