Women’s Day- मेरा अभिमान: क्या पति को भूल गई निवेदिता?

‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है निवेदिता दुलहन के वेश में. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और तीखातिकोना चेहरा,’’ समता मौसी दुलहन की बलाएं लेते हुए बोलीं.

‘‘काश, दूल्हे के बारे में भी यही कहा जा सकता…’’ घर आए मेहमानों में से किसी ने कहा.

‘‘यह बात तो है… कहां हमारी निवेदिता एमए तक पढ़ी है… इतनी खूबसूरत और आश्रय सिर्फ 12वीं जमात तक पढ़ा है. पिता की मौत के बाद उन की जगह ही नौकरी लग गई है. रंग भी कुछ दबा हुआ है,’’ निवेदिता की बूआ ने कहा.

निवेदिता के घर में भी पैसा नहीं था. अगर उस के मातापिता को शादी की जल्दी थी. निवेदिता और पढ़ना भी चाहती थी, पर उस की शादी तय कर दी गई.

‘‘हां, कमाताखाता लड़का देख कर शादी कर रहे हैं,’’ किसी ने बात को आगे बढ़ाया.

शादी के बाद रात को निवेदिता सुहाग सेज पर बैठी हुई थी और उम्मीद के मुताबिक बिना किसी तामझाम व दिखावे के आश्रय कमरे में आ गया और गंभीर अंदाज में बोला, ‘‘निवेदिता, आज हमारे मिलन की पहली रात है और ऐसा दस्तूर है कि इस दिन गिफ्ट जरूर दिया जाना चाहिए.

‘‘तुम्हें मेरी माली हालत पता ही है. पहले पिताजी की बीमारी के चलते लिया हुआ कर्ज उतारना पड़ा. इसी वजह से कुछ भी बचत नहीं हुई. फिर भी मैं तुम्हारे लिए यह घड़ी लाया हूं.

‘‘यह घड़ी सस्ती जरूर है, पर समय महंगी घडि़यों के बराबर ही बताती है. यह भी बताती है कि समय कीमती है, इसे बरबाद मत करो. और भी कुछ उपहार चाहिए हों तो मांग सकती हो, बशर्ते वह खरीदना मेरी हद में हो.’’

‘‘क्या मैं ऐसा कुछ चाहूं, जो आप की हद में हो तो आप देंगे?’’ निवेदिता ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘जरूर,’’ आश्रय ने जवाब दिया.

‘‘मैं राज्य लोक सेवा आयोग की प्रशासनिक परीक्षा में बैठना चाहती हूं. क्या आप मुझे इजाजत देंगे? मुझे ओबीसी कोटे में जल्दी ही नौकरी भी मिल सकती है,’’ निवेदिता ने पूछा.

ये भी पढ़ें- Women’s Day Special- गिरफ्त: भाग 2

‘‘तुम्हारी पढ़ाई के लैवल के बारे में मैं अच्छी तरह से जानता हूं. निवेदिता, तुम इस एग्जाम में बैठ सकती हो. एक बार पतिपत्नी के संबंध बन जाने के बाद काबू करना मुश्किल होता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि जब तक तुम अपने इम्तिहान में कामयाब न हो जाओ, तब तक हम दोनों एक नहीं होंगे’’

‘‘क्या…? आप ने मुझ से शादी किसी मजबूरी में की है? क्या आप मुझे प्यार नहीं करते हैं?’’ निवेदिता ने घबरा कर पूछा, क्योंकि उसे इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तुम्हें काफी दिन से देख रहा हूं. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हारे कामयाब होने के बाद ही हम दोनों इस प्यार के सच्चे हकदार होंगे,’’ आश्रय ने निवेदिता की गोरीगोरी कलाइयों को पकड़ते हुए कहा.

‘‘और, अगर मेरा चयन नहीं हो पाया तो…?’’ निवेदिता ने सवाल किया.

‘‘जब भी जोकुछ होगा, सिर्फ तुम्हारी रजामंदी से होगा,’’ आश्रय बोला.

‘‘बाहर सब को क्या जवाब देंगे?’’ निवेदिता ने पूछा.

‘‘किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं है. बस, इतना कहना है कि हमें अगले 3 साल तक बच्चे की जरूरत नहीं है,’’ आश्रय ने जवाब दिया.

‘‘वाह… आश्रय, मैं कल से ही पढ़ाई शुरू कर देती हूं.’’

दूसरे दिन से निवेदिता ने पढ़ाई शुरू कर दी. आश्रय ने अपनी मम्मी को भी निवेदिता की इच्छा के बारे में बता दिया. घर में 3 लोगों का काम बहुत ज्यादा नहीं था. रसोईघर का ज्यादातर काम आश्रय की मम्मी कर देती थीं.

निवेदिता देर रात तक पढ़ती, तो आश्रय बीच में चाय या कौफी बना कर उसे दे देता. कभीकभार सिर दुखने पर अपने हाथों से तब तक हलकीहलकी मसाज करता, जब तक कि निवेदिता की आंख न लग जाती.

आखिरकार वह ऐतिहासिक पल भी आ ही गया, जब निवेदिता सभी लिखित इम्तिहानों और इंटरव्यू में कामयाब हो कर डिप्टी कलक्टर बन गई.

‘‘अब सिर्फ प्यार,’’ निवेदिता  आश्रय के गले में बांहों का फंदा डाल कर बोली.

‘‘मेहनत तो तुम्हारी ही है निवेदिता. मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ था. तुम मेरी पत्नी हो गुलाम नहीं. आज तो सिर्फ और सिर्फ प्यार होगा,’’ आश्रय मुसकराता हुआ बोला.

अभी वे दोनों बात कर ही रहे थे कि अचानक आश्रय के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

‘‘क्या…? कब…? अच्छाअच्छा… हम अभी पहुंचते हैं,’’ आश्रय घबराई आवाज में बोला.

‘‘क्या हुआ…?’’ निवेदिता ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस तुम्हारे पापा की थोड़ी सी तबीयत खराब हो गई है,’’ आश्रय ने बताया.

निवेदिता और आश्रय जब तक पहुंचते, तब तक निवेदिता के पापा की मौत हो चुकी थी. अपनी मां को हिम्मत देने के लिए निवेदिता को वहीं पर रुकना पड़ा.

ये भी पढ़ें- विश्वास: एक मां के भरोसे की कहानी

निवेदिता को अपनी ट्रेनिंग की सूचना मिली, जो कि उस के मायके से तकरीबन 300 किलोमीटर दूर थी.

जौइन करने के साथ ही पता चला कि निवेदिता को अनुकूल शर्मा के अंडर ट्रेनिंग लेनी है.

अनुकूल शर्मा कुछ समय पहले तक निवेदिता के गृह जिले में ही थे और उन की अच्छे अफसरों में गिनती होती है.

अनुकूल शर्मा आ गए और अपने चैंबर में घुस गए. इजाजत ले कर निवेदिता भी चैंबर में आ गई.

‘‘तुम्हारे साथ वह बाहर कौन था?’’ लेटर देखते हुए अनुकूल शर्मा ने पूछा.

‘‘मेरे पति हैं,’’ निवेदिता ने कहा.

‘‘अब अगले 3 महीनों तक घरबार, पति, बच्चे सब भूल जाओ… समझी?’’ अनुकूल शर्मा ने कहा.

‘‘जी,’’ निवेदिता ने जवाब दिया.

‘‘मैं जा रहा हूं निवेदिता. अगले  3 महीनों तक खूब मेहनत करो. आगे की जिंदगी बहुत अच्छी होगी,’’ जातेजाते आश्रय ने निवेदिता से कहा.

अनुकूल शर्मा के अंडर में निवेदिता की टे्रनिंग खूब अच्छी चल रही थी. निवेदिता को अब तक सरकारी गाड़ी नहीं मिली थी. इसी वजह से वह अनुकूल शर्मा के साथ उन्हीं की सरकारी गाड़ी से टूर पर जाती थी.

ऐसे ही एक दिन जब वे दोनों टूर से लौट रहे थे, तो अनुकूल शर्मा बोले, ‘‘मुझे लगता है निवेदिता, तुम्हारे साथ ज्यादती हुई है.’’

‘‘आप को ऐसा क्यों लगता है सर…’’ निवेदिता ने अचरज भाव से पूछा.

‘‘तुम इतनी खूबसूरत और होशियार हो और तुम्हारा पति 12वीं जमात पास क्लर्क,’’ अनुकूल शर्मा ने कहा.

‘‘जिंदगी में हमें जो मिलता है, उसे हम बदल नहीं सकते,’’ निवेदिता बोली.

‘‘हम चाहें तो कुछ भी बदल सकते हैं. तुम ने भी यह नौकरी पा कर अपनी जिंदगी बदल दी है.’’

‘‘पर, अब किया क्या जा सकता है. आज मैं जोकुछ भी हूं, आश्रय के चलते ही हूं,’’ निवेदिता बोली.

‘‘कल उसी आश्रय के चलते तुम्हें शर्मिंदगी होगी. किसी पार्टी में तुम उसे ले जा नहीं पाओगी. तुम्हारे पीछे लोग उसे मखमल में टाट का पैबंद बताएंगे. रही कुछ करने की बात तो उस ने तुम पर कितने रुपए खर्च किए होंगे? लाख 2 लाख. तुम उसे 5 लाख दे कर हिसाब चुकता कर दो.

‘‘मैं ने भी अपनी देहाती पत्नी से तलाक के लिए अर्जी दी हुई है, क्योंकि वह मेरे स्टेटस के मुताबिक नहीं है. तुम भी ऐसा कर सकती हो. कल पछताने से आज सही फैसला लेना बेहतर है…’’ अनुकूल शर्मा बोले, ‘‘मुझे तो लगता है कि आश्रय मर्द ही नहीं है, वरना 3 साल तक कौन पति ऐसा होगा, जो अपनी पत्नी से दूर रहेगा?’’

निवेदिता ने कोई जवाब नहीं दिया.

दरअसल, पिछले 2 महीने से कुछ ज्यादा समय से साथ रहने के चलते अनुकूल शर्मा को ऐसा लगने लगा था कि निवेदिता उन की तरफ खिंच रही है.

एक दिन अचानक निवेदिता के पास कलक्टर का फोन पहुंचा और उसे तुरंत मिलने के लिए बुलाया गया.

‘‘बधाई हो निवेदिता, अनुकूल शर्मा जैसे काबिल अफसर ने आप की बहुत अच्छी रिपोर्ट दी है,’’ कलक्टर खुश हो कर बोले.

‘शुक्रिया सर’ कह कर निवेदिता कलक्टर औफिस से बाहर आ गई.

‘‘बधाई हो निवेदिता, एक पार्टी तो बनती ही है. ऐसा करते हैं कि आज  तुम औफिस का चार्ज ले लो. शनिवार और रविवार की छुट्टी है. हम पास  के शहर चलेंगे. वहां पार्टी करेंगे. सबकुछ मेरी तरफ से होगा,’’ अनुकूल शर्मा बोले.

‘‘जी सर,’’ कह कर निवेदिता अपने नए औफिस में चार्ज लेने चली गई.

जब आश्रय को निवेदिता के चार्ज लेने की बात पता चली, तो वह बहुत खुश हुआ. उस ने फोन पर अपने मन की बात कही.

‘‘तुम्हें देखने की बहुत इच्छा हो रही है. शनिवार और रविवार को छुट्टी है. मैं वहां आ जाता हूं.’’

‘‘अरे, नहींनहीं. शनिवार और रविवार को तो मुझे कलक्टर साहब के साथ राजधानी जाना है,’’ निवेदिता ने झूठ बोलते हुए उसे रोक दिया.

शुक्रवार की शाम जब आश्रय दफ्तर से घर लौटा, तो रसोईघर में से हलवा बनने की मस्त महक आ रही थी.

ये भी पढ़ें- Short Story: किसकी कितनी गलती

‘‘मां, आज हलवा क्यों बन रहा है? कोई त्योहार है क्या?’’ दरवाजे से अंदर आते हुए आश्रय ने पूछा.

‘‘त्योहार से भी बढ़ कर है…’’ मां रसोईघर में से ही बोलीं.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ आश्रय ने पूछा.

‘‘तो रसोईघर के भीतर आ कर देख ले,’’ मां बोलीं.

‘‘अरे, निवेदिता तुम…’’ रसोईघर में घुसते ही आश्रय खुशी से चिल्लाया.

निवेदिता ने अपनी स्थायी नियुक्ति तक की पूरी बात आश्रय को बता दी.

‘‘चलो निवेदिता, शाम का खाना हम कहीं बाहर खाते हैं,’’ आश्रय बोला.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. इन 3 दिनों का एक पल भी मुझे किसी के साथ शेयर नहीं करना है. मुझे सिर्फ तुम और तुम चाहिए,’’ निवेदिता किसी जिद्दी बच्ची सी बोली.

शनिवार की सुबह तकरीबन 10 बजे अनुकूल शर्मा का फोन आया, ‘निवेदिता, कहां हो तुम? हमें पार्टी केलिए जाना था.’

‘‘सर, मैं स्वर्ग में हूं और यहां से नहीं आ सकती.’’

‘स्वर्ग… वह कहां है?’ अनुकूल शर्मा ने हैरानी से पूछा.

‘‘सर, यह हर उस जगह है, जहां पतिपत्नी अपने परिवार के साथ रहते हैं. मैं भी अपने पति के साथ हूं. आप ने ट्रेनिंग के दौरान मुझे एक बात सिखाई थी कि सोने का गहना कितना ही बड़ा क्यों न हो, अगर उस में छोटा सा हीरा लग जाए तो उस की कीमत दोगुनी हो जाती है.

‘‘आश्रय भी मेरी जिंदगी का एक ऐसा ही हीरा है, जिस के लगने से  मेरी जिंदगी अनमोल हो गई है. मुझे कभी भी आश्रय के चलते कोई शर्मिंदगी नहीं होगी.

‘‘धन्यवाद और नमस्कार सर. मैं आप से 2 दिन बाद मिलती हूं,’’ इतना कह कर निवेदिता ने फोन काट दिया.

Women’s Day- अपना घर: शादी के बाद क्यों बदला जिया का व्यवहार

Women’s Day- प्रतिबंध: क्या औरतों पर रोक लगाने से रुक गया यौन शोषण

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

स्नेहा को लग रहा था कि बौस उस से शादी कर ही लेंगे क्योंकि वे घर सज्जा में भी उस की राय लेते रहे थे.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

ये भी पढ़ें- हल: आखिर क्यों पति से अलग होना चाहती थी इरा?

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

ये भी पढ़ें- शिकार : क्या मीरा और श्याम इस शादी से खुश थे

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

ये भी पढ़ें- अपना घर : विजय को कैसे हुआ गलती का एहसास

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

Women’s Day- अपना घर: भाग 1

औफिस की घड़ी ने जैसे ही शाम के 5 बजाए जिया जल्दी से अपना बैग उठा तेज कदमों से मैट्रो स्टेशन की तरफ चल पड़ी. आज उस का मन एकदम बादलों की तरह उड़ रहा था. उड़े भी क्यों न, आज उसे अपनी पहली तनख्वाह जो मिली थी. वह घर में सब के लिए कुछ न कुछ लेना चाहती थी. रोज शाम होतेहोते उस का मन और तन दोनों थक जाते थे पर आज उस का उत्साह देखते ही बनता था. आइए अब जिया से मिल लेते हैं…जिया 23 वर्षीय आज के जमाने की नवयुवती है. सांवलासलोना रंग, आम की फांक जैसी आंखें, छोटी सी नाक, बड़ेबड़े होंठ. सुंदरता में उस का कहीं कोईर् नंबर नहीं लगता था पर फिर भी उस का चेहरा पुरकशिश था. घर में सब की लाडली, जीवन से अब तक जो चाहा वह मिल गया. बहुत बड़े सपने नहीं देखती थी. थोड़े में ही खुश थी.

वह तेज कदमों से दुकानों की तरफ बढ़ी. अपने 2 साल के भतीजे के लिए उस ने एक रिमोट से चलने वाली कार खरीदी. पापा के लिए उन की पसंद का परफ्यूम, मम्मी व भाभी के लिए सूट और साड़ी और भैया के लिए जब उस ने टाई खरीदी तो उस ने देखा कि बस उस के पास अब कुछ ही पैसे बचे हैं. अपने लिए वह कुछ न खरीद पाई. अभी पूरा महीना पड़ा था. बस उस के पास कुछ हजार ही बचे थे. उसे उन में ही अपना खर्चा चलाना था. मांपापा से वह कुछ नहीं लेना चाहती थी.

ये भी पढ़ें- खामोश जिद : रुकमा की जिद क्या पूरी हो पाई

जैसे ही वह शोरूम से निकली, बाजू वाली दुकान में उसे आसमानी और फिरोजी रंग के बहुत खूबसूरत परदे दिखाई दिए. बचपन से उस का अपने घर में इस तरह के परदे लगाने का मन था. दुकानदार से जब दाम पूछा तो उसे पसीना आ गया. दुकानदार ने मुसकराते हुए कहा कि ये चंदेरी सिल्क के परदे हैं, इसलिए दाम थोड़ा ज्यादा है पर ये आप के कमरे को एकदम बदल देंगे.

कुछ देर तक खड़ी वह सोचती रही. फिर उस ने वे परदे खरीद लिए. जब वह दुकान से निकली तो बहुत खुश थी. बचपन से वह ऐसे परदे अपने घर में लगाना चाहती थी, पर मां के सामने जब भी बोला उस की इच्छा घर की जरूरतों के सामने छोटी पड़ गई. आज उसे ऐसा लगा जैसे वह वाकई में स्वतंत्र हो गई है.

जब वह घर पहुंची तो रात हो चुकी थी. सब रात के खाने के लिए उस का इंतजार कर रहे थे. भतीजे को चूम कर उस ने सब के उपहार टेबल पर रख दिए. सब उत्सुकता के साथ उपहार देखने लगे. अचानक मां बोली, ‘‘तुम, अपने लिए क्या लाई हो?’’

जिया ने मुसकराते हुए परदों का पैकेट उन की तरफ बढ़ा दिया. परदे देख कर मां बोलीं, ‘‘यह क्या है…? इन्हें तुम पहनोगी?’’

जिया मुसकुराते हुए बोली, ‘‘मेरी प्यारी मां इन्हें हम घर में लगाएंगे.’’

मां ने परदे वापस पैकेट में रखे और फिर बोलीं, ‘‘इन्हें अपने घर लगाना.’’

जिया असमंजस से मां को देखती रही. उस की समझ में नहीं आया कि इस का क्या मतलब है. उस की भूख खत्म हो गई थी.

भाभी ने मुसकरा कर उस के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘मैं आज तक नहीं समझ पाई, मेरा घर कौन सा है? जिया तुम अपना घर खुद बनाना,’’ और फिर भाभी ने बहुत प्यार से उस के मुंह में एक निवाला डाल दिया.

ये भी पढ़ें- Women’s Day Special: जाग सके तो जाग

आज पूरा घर पकवानों की महक से महक रहा था. मां ने अपनी सारी पाककला को निचोड़ दिया था. कचौरियां, रसगुल्ले, गाजर का हलवा, ढोकले, पनीर के पकौड़े, हरी चटनी, समोसे और करारी चाट. भाभी लाल साड़ी में इधर से उधर चहक रही थीं. पापा और भैया पूरे घर का घूमघूम कर मुआयना कर रहे थे. कहीं कुछ कमी न रह जाए. आज जिया को कुछ लोग देखने आ रहे थे. एक तरह से जिया की पसंद थी, जिस पर आज उस के घर वालों को मुहर लगानी थी. अभिषेक उस के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी जिसे अब वे एक रिश्ते का नाम देना चाहते थे.

ये भी पढ़ें- Serial Story-कितने झूठ: क्या थी विकास की असलियत

ठीक 5 बजे एक कार उन के घर के सामने आ कर रुकी और उस में से 4 लोग उतरे. सब ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. जिया ने परदे की ओट से देखा. अभिषेक जींस और लाइट ब्लू शर्ट में बेहद खूबसूरत लग रहा था.

Women’s Day- नपुंसक: भाग 2

‘‘शायद बेटे की चाह या कहें औरत की लत पड़ जाने की वजह से मेरे पिता का मन अर्चना से भी दूर होता चला गया. उन की नजर अब एक विधवा पर थी जिस के पहले से 2 बच्चे थे. एक बेटा और एक बेटी. रूपरंग में वह विधवा सुंदर थी, उस की सुंदरता पर मेरे पिता रीझ उठे और उस से तीसरा विवाह कर लिया.

‘‘3 कमरों के छोटे से घर में वह 3 प्राणी और आ गए. मौसी और उस औरत में खूब लड़ाई होती थी. उस लड़ाई में मैं और मेरी छोटी बहन बिलकुल दब कर रह गईं. उस समय मेरी उम्र कोई 12 साल की रही होगी. मैं अकसर रोतीरोती अपनी मां की तसवीरें बनाती रहती थी. नतीजा यह निकला कि मैं चित्रकला में निपुण होती चली गई.

‘‘उस कच्ची उम्र में मुझे पता चला कि मेरी तीसरी मां, जिस का नाम किरण था, ने बच्चे बंद होने का आपरेशन पहले से ही करवा रखा था. किरण के कई पुरुषों से शारीरिक संबंध रह चुके थे और इसी बात को ले कर वह अकसर मेरे पिता से पिट जाया करती थी.

‘‘कुछ समय बाद ही मेरे पिता का तबादला जयपुर हो गया. जयपुर जाते समय वह बहुत खुश थे…शायद अर्चना और किरण भी. किरण को अपनी आजादी प्रिय थी और अर्चना को अपने पति से अकसर पिटने का डर था. पिता तो चले गए पर जाते समय उन्होंने एक नजर भी हमारी ओर नहीं देखा.

‘‘हम दोनों बहनें फिर से अकेली हो गईं. अर्चना मौसी कभीकभी हमें कोसतीं, कभीकभी प्यार करतीं. बस, यों ही समय बीतता गया. पिता का मन जयपुर में लग गया था, क्योंकि उन्हें वहां एक और औरत मिल गई थी. वह उन्हीं के आफिस में कार्यरत थी और उन से वरिष्ठ थी.

ये भी पढ़ें- अनुभव: गरिमा के साथ परेश को क्या महसूस हुआ

‘‘पापा ने उस औरत को अपने मोहजाल में फंसाया और उस से विवाह रचा लिया. वह औरत मेरे पापा के प्यार में ऐसी पागल हुई कि अपना मकान भी उन के नाम कर दिया.

‘‘तब से ले कर अब तक वह जयपुर में हैं. सुना है, वहां पापा के 3 बच्चे हैं, 2 लड़के और 1 लड़की…’’

‘‘क्या तुम्हें कभी उन की कमी महसूस नहीं होती?’’ अनिरुद्ध ने बीच में टोकते हुए कहा.

‘‘सर…’’

वह उस की बात का जवाब देने वाली थी कि अनिरुद्ध बोल पड़ा, ‘‘तुम ने मुझे फिर सर कहा.’’

‘‘जब तक हम दोनों किसी रिश्ते में नहीं बंध जाते तब तक आप मेरे लिए सर ही रहेंगे.’’

‘‘तो तुम भी मेरे साथ बंधना चाहती हो?’’ उस ने आरुषी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘कोई जबरदस्ती नहीं है, सर. मैं जिस परिवार से हूं, उस परिवार के किसी भी सदस्य से समाज का कोई व्यक्ति संबंध बनाना तो दूर, साथ खड़ा होना पसंद नहीं करता. जिस लड़की के बाप ने 4  शादियां कर रखी हों उस लड़की को लोग देखना तक पसंद नहीं करते पर उस का इस्तेमाल जरूर कर लेते हैं.’’

ये भी पढ़ें- वह बदनाम लड़की : आकाश की जिंदगी में कैसे आया भूचाल   

अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए आरुषी बोली, ‘‘हमारी मौसी ने भले ही हमें मन से पसंद न किया हो पर हमें संभाल कर रखा. इस उम्र में आ कर समझ में आता है कि उन का दबाव, रौब ठीक ही था. उन्हें एक बात का दुख जरूर रहता है कि वह हमारी शादी नहीं कर पाईं. पैसे की कमी अच्छेअच्छों को तोड़ देती है. शुरूशुरू में तो पिताजी पैसे भेजते थे, पर कुछ समय बाद उन्होंने पैसे भेजना एकदम बंद कर दिया. सुनने में आया था कि मेरी तीसरी मां किरण ने पापा को खर्चे के लिए नोटिस भेजा था, पापा ने हम तीनों का खर्चा बंद कर के उन तीनों का शुरू कर दिया.

‘‘पहले तो मौसी घर से दूर एक कालोनी के कुछ घरों में काम करती थीं, पर जब यह बात महल्ले में फैल गई तो उन्होंने वह काम बंद कर के कपड़े सिलना शुरू कर दिया. तब तक हम दोनों बहनें भी बड़ी हो गई थीं. हम ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया.

‘‘मेरा मन शायद चित्रकार बनने का इंतजार कर रहा था, इस में मेरी मदद की, मेरी मौसी, बहन और मेरे जनून ने. नतीजा तुम्हारे सामने है. पर अब लगता है मेरी उम्र कुछ ज्यादा ही हो गई. मेरे साथ की लड़कियों के बच्चे भी 15-16 साल के हो गए हैं. एक मैं हूं, अभी भी वहीं हूं जहां 20 साल पहले थी.

‘‘आज मेरे पास सभी कुछ है. एक मां सौतेली ही सही, छोटा सा अपना घर, पर नहीं है तो प्यार. छोटी बहन ने भी कोर्ट मैरिज कर के अपना घर बसा लिया और खुशी से रह रही है. मौसी ने मेरा घर बसाने की कोशिश तो की पर मेरी फोटो से पहले मेरे पापा के कारनामे वहां पहुंच जाते थे.

‘‘लड़कों की देखादेखी में मेरी उम्र 30 से ऊपर की हो चली थी. मैं ने मौसी को शादी करने से साफ इनकार कर दिया था. मौसी मुझ से पूछती थीं कि आरुषी, सारी जिंदगी अकेली कैसे गुजारोगी तो मेरा जवाब होता था कि मौसी, तुम तो शादी कर के भी अकेली रह रही हो, मैं बिना शादी के रह लूंगी. कम से कम इतनी तसल्ली तो है कि मुझे कोई धोखा नहीं दे रहा. बेचारी मौसी भी निरुत्तर हो जाया करती थीं.’’

‘‘आरुषी, तुम ने अपने पापा को वापस बुलाने के लिए या खर्चे के लिए कोर्ट का सहारा नहीं लिया?’’

‘‘जिस औरत के पास हमारी किताबों के पैसे तक नहीं होते थे वह वकील के पैसे कहां से लाती,’’ आरुषी ने लाचारी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘सर, आप को मैं ने अपनी जिंदगी के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया है. मेरे जीवन का एकएक पन्ना आप के सामने खुल गया है. आप जो भी फैसला करेंगे मुझे खुशीखुशी मंजूर होगा.’’

ये भी पढ़ें- Women’s Day Special: जाग सके तो जाग

‘‘आरुषी, तुम ने तो अपने पन्ने मेरे सामने खोल कर रख दिए पर मेरा भी एक पन्ना है, जो किसी के भी सामने नहीं खुला है. मैं तुम्हें पहले ही बता दूं कि तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं है, तुम्हारी जिंदगी है और तुम अपनी जिंदगी की स्वयं मालिक हो. बस, इतनी सी प्रार्थना है कि मुझ से दोस्ती कभी मत तोड़ना,’’ इतना कहते हुए अनिरुद्ध की आंखों में पानी आ गया.

Women’s Day- ऐसा कैसे होगा: उम्र की दहलीज पर आभा

बड़े बाबू के पूछने पर मैं ने अपनी उम्र 38 वर्ष बताई, सहज रूप में ही कह दिया था, ‘38…’ हालांकि बड़े बाबू अच्छी तरह जानते थे कि मेरी जन्मतिथि क्या है, शायद उन्होंने उस पर इतना ध्यान भी नहीं दिया. लेकिन तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं अपनी उम्र कम बता रही हूं. यह बात शायद बड़े बाबू जान गए थे और अपनी नाक पर टिके चश्मे से ऊपर आंखें चमका कर मुझे उपहासभरी दृष्टि से देख रहे थे.

वैसे मैं 39 वर्ष 7 महीने 11 दिन की हो गई हूं. सामान्यरूप से इसे 40 वर्ष की उम्र कहा जा सकता है. किंतु मैं 40 वर्ष की कैसे हो सकती हूं? 40 वर्ष तक तो व्यक्ति प्रौढ़ हो जाता है. लेकिन मैं तो अभी जवान हूं, सुंदर हूं, आकर्षक हूं.

नौजवान सहयोगी हसरतभरी निगाहों से मुझे देखते हैं. लोगों की आंखों को मैं पढ़ सकती हूं, भले ही उन में वासना के कलुषित डोरे रहते हैं, कामातुर विकारों से ग्रस्त रहती हैं उन की आंखें, फिर भी मुझे अच्छा लगता है. मुझ से बातें करने की उन की ललक, मेरी यों ही अनावश्यक तारीफ, मेरे कपड़ों के रंग, मेरा मुसकराना, बोलने का लहजा, काम करने का तरीका आदि अनेक चीजें हैं, जो काबिलेतारीफ कही जाती हैं. दूसरों की आंखों में आंखें डाल कर बात करने का मेरा सलीका लोगों को प्रभावित करता है. ये बातें मैं उन तमाम निकटस्थ सहयोगियों के क्रियाकलापों से जान जाती हूं.

ये भी पढ़ें : जीवन संध्या में – कर्तव्यों को पूरा कर क्या साथ हो पाए

मेरा मन चाहता है कि लोग मुझे घूरें, मेरे मांसल शरीर के ईदगिर्द अपनी निगाहें डालें, मेरा सामीप्य पाने के लिए बहाने ढूंढ़ें, मुझ से बातें करें व प्रेम करने की हद तक भाव प्रदर्शित करें.

किंतु मैं 40 वर्ष की कैसे हो सकती हूं? अभी तो मैं ने कौमार्यवय की अठखेलियों में भाग ही नहीं लिया, जवानी के उफनते वेग में पागल भी नहीं हुई. किसी के प्रणय में मदांध होना तो दूर, स्वच्छंद रतिविलासों का अनुभव भी नहीं किया. किसी के लौह बंधन में बंध कर चरमरा कर बिखर जाने की कामना अभी पूरी कहां हुई है? नारीत्व के समर्पित सुख का अनुभव कहां लिया है? मैं अभी 40 वर्ष की प्रौढ़ा कैसे हो सकती हूं?

मैं ने जब से इस बढ़ती उम्र के गणित को सोचना प्रारंभ किया है, घबरा गई हूं, मन बेचैन सा हो गया है. शरीर में अचानक शिथिलता आ गई है. गालों पर कसी हुई त्वचा जैसे अपने कसाव कम कर रही है. ऐसा लग रहा है जैसे नदी उतर रही है, उस में आई बाढ़ जैसे घट रही है. आंखों के नीचे हलके निशान उभर आए हैं. हलकी सी श्यामलता चेहरे पर छा रही है.

लेकिन यह कैसे हो सकता है? बाबूजी की मृत्यु को 4 बरस हो गए. छोटू का इस बार एमबीबीएस कोर्स पूरा हो जाएगा, लेकिन उसे एमडी बनना है, 2-3 साल अभी लगेंगे. विभा इस वर्ष स्नातिका हो जाएगी. मामाजी ने उस के लिए एक रिश्ते की बात की है. अगले मार्च में उस की शादी कर देंगे. छोटू का भी कुछ प्रेमप्रसंग जोरशोर से चल रहा है, लड़की पंजाबी है, साथ पढ़ती है, इस में बुराई भी क्या है.

लेकिन, मैं अब क्या करूंगी? सोचती थी कि इन 4 सालों में विभा की पढ़ाई पूरी हो जाएगी और छोटू घर संभाल लेगा, तब मैं आजाद हो जाऊंगी. मेरे चाहने वाले बहुत हैं, ढेर सारे उम्मीदवार हैं, तब अपने विषय में सोचूंगी एकदम निश्ंिचत हो कर. लेकिन, इस अवधि में मैं 40 वर्ष की प्रौढ़ा कैसे हो सकती हूं?

घर वालों से मुझे कोई शिकायत नहीं है. बाबूजी कई रिश्ते लाए थे. जातिबिरादरी के, ऊंचे खानदान वाले, बड़ीबड़ी मांगों, दहेज की आकांक्षा वाले लोग. बाबूजी मेरा विवाह कर भी सकते थे. लेकिन तब छोटू एमबीबीएस न कर पाता, विभा बीए की पढ़ाई भी न कर पाती. सारी जमा पूंजी समाप्त हो जाती. मैं बड़ी बेटी हूं न, सारी समस्याएं जानती हूं.

शादी का नाम लेते ही मैं चिढ़ जाती थी, काटने दौड़ती थी. लोग मेरे सामने शादी की बात करने से डरते थे. वे मेरी आलोचना भी करते थे. भलाबुरा भी कहते थे. कोई कहता, ‘गोल्ड मैडलिस्ट है न, इसीलिए दिमाग आसमान पर चढ़ा है.’

दूसरा कहता, ‘रूपगर्विता है, अपने सौंदर्य का बड़ा अभिमान है.’

शादी के नाम पर जैसे मुझे सचमुच चिढ़ थी. किसी की ताबेदारी में रहना मुझे स्वीकार न था.

अच्छी कंपनी में इज्जत की नौकरी है, अच्छीखासी तनख्वाह है, प्रतिष्ठा है. औफिस में रोबदाब है, घर में भी लोग डरते हैं. छोटू और विभा भी सामने आने से कतराते हैं. मां भी जैसे खुशामद सी करती हैं. सबकुछ असहज और अस्वाभाविक लगता है. मन करता है कि विभा मेरे गले में बांहें डाल कर लिपट जाए, छोटू मेरी चोटी खींच कर भाग जाए. मां मुझे डांटें, धमकाएं, लेकिन वह सब कतई बंद है.

मां की बीमारी बढ़ गई है, उन्हें अस्पताल में भरती कराना ही पड़ेगा. डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब ज्यादा दिन नहीं जिएंगी. अंतिम अवस्था है.

लेकिन मेरी अंतिम अवस्था नहीं है. मैं घुलघुल कर नहीं मरूंगी, अपने वजूद को बचा कर रखूंगी. मुझे अभी प्रौढ़ा नहीं बनना है.

अपना राजपाल है न, मुझ पर जान देता है. हमउम्र और हमपेशा भी है. बेचारा विधुर है, 10 साल से एकाकी है. मेरे खयाल से उस से मिलना चाहिए. वह वासना और प्रेम का अंतर जानता है, उस में गहरी समझदारी है.

ये भी पढ़ें : तलाक के कागजात- क्या सचमुच तलाक ले पाए सुधीर

एक बार समझदारी के साथ ही उस ने शादी का अप्रत्यक्ष प्रस्ताव भी रखा था और मैं उस के प्रस्ताव से प्रभावित भी थी.

वह बोला था, ‘क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम दोनों इस मुद्दे पर एक लंबी वार्त्ता करें, जिस में अनेक सत्र हों, जो दिनों, महीनों, वर्षों तक चले. अब हमारेतुम्हारे पास विषय तो बहुत से हैं न, उन सभी विषयों पर सलीके से बातें करें. उन पर सोचें, व्यवहार करें, तुम मेरे विचारों की प्रयोगशाला बन जाओ और मैं तुम्हारे खयालों की ठोस जमीन. हम दोनों एकदूसरे से अपने प्रश्नों का समाधान कराएं. क्या तुम अपनी बकाया जिंदगी मेरे ऊलजलूल प्रश्नों को सुलझाने के लिए मेरे नाम कर सकती हो? क्या मैं तुम्हें समझने की कोशिश में तमाम उम्र बिता सकता हूं? सच कहता हूं, मैं तुम्हारी अनंत जिज्ञासाओं का एकमात्र समाधान हूं. मेरे अंतर्मन के पृष्ठों को पलट कर तो देखो.’

मैं कई दिनों से राजपाल के विषय में ही सोच रही हूं. वह एक परिपक्व व्यक्तित्व की गरिमा से युक्त है, संवेदनशील है. उस में कोई छिछोरापन नहीं है. प्रणय प्रस्ताव रखने में भी समझदारी से काम लेता है.

एक दिन कहने लगा, ‘आभा, तुम्हारे होंठों पर लगी लिपस्टिक और मेरे पैन की स्याही एकजैसी है, हलकी मैरून. यह रंग मन की अनुराग भावना को व्यक्त करता है, क्यों?’

मैं ने हलकी सी मुसकराहट फेंकी और आगे बढ़ गई. उस की बात बहुत दिनों तक मेरा पीछा करती रही. वह एक सभ्य और जिम्मेदार अफसर है. उस के साथ उठाबैठा जा सकता है.

कल मां को अस्पताल में भरती करा दूंगी. छोटू को स्कौलरशिप मिलती है. विभा की शादी के लिए बाबू की एफडी तो है. मामाजी सब संभाल लेंगे. मैं आज शाम को राजपाल के बंगले पर जाऊंगी, साफसाफ बात करूंगी और आजकल में ही निर्णय ले लूंगी.

मुझे अभी 40 साल की प्रौढ़ा नहीं बनना. 40 साल में अभी 5 महीने बाकी हैं. इन 5 महीनों में मैं अपना कौमार्य अनुभव करूंगी, नाचूंगी, गाऊंगी, आकाश में उड़ूंगी, सितारों से बातें करूंगी, चांद को छू कर देखूंगी.

अभी मुझे 40 साल की नहीं होना, सबकुछ व्यवस्थित हो गया है, सबकुछ ठीकठाक है.

स्नान करने के बाद मैं ने हलका सा मेकअप किया व नीली साड़ी पहनी. होंठों पर हलके मैरून रंग की लिपस्टिक लगाई. फिर विदेशी इत्र की सुगंध से सराबोर हो कर चल दी अपना अंतिम निर्णय लेने, अपने निश्चित गंतव्य के लिए.

ये भी पढ़ें : दो खजूर

Women’s Day- गांव की इज्जत: हजारी ने कैसे बचाई गांव की इज्जत

शालिनी देवी जब से गांव की सरपंच चुनी गई थीं, गांव वालों को राहत क्या पहुंचातीं, उलटे गरीबों को दबाने व पहुंच वालों का पक्ष लेने लगी थीं.

शालिनी देवी का मकान गांव के अंदर था, जहां कच्ची सड़क जाती थी.

सड़क को पक्की बनाने की बात तो शालिनी देवी करती थीं, पर अपना नया मकान गांव के बाहर मेन रोड के किनारे बनाना चाहती थीं, इसलिए वे गरीब गफूर मियां पर मेन रोड वाली सड़क पर उन की जमीन सस्ते दाम पर देने का दबाव डालने लगी थीं.

गफूर मियां को यह बात अच्छी नहीं लगी. वे हजारी बढ़ई के फर्नीचर बनाने की दुकान में काम करते थे. मेहनताने में जोकुछ भी मिलता, उसी से अपना परिवार चलाते थे.

ये भी पढ़ें- परख : प्यार व जनून के बीच थी मुग्धा

बड़ों के सामने गफूर मियां की बोली फूटती न थी. एक बार गांव के ही एक बड़े खेतिहर ने उन का खेत दबा लिया था, पर हजारी ने ही आवाज उठा कर गफूर मियां को बचाया था.

गफूर मियां हजारी बढ़ई को सबकुछ बता देते थे. उन्होंने बताया कि शालिनी देवी अपना नया मकान बनाने के लिए उन की जमीन मांग रही हैं.

इस बात पर हजारी बढ़ई खूब बिगड़े और बोले, ‘‘यह तो शालिनी देवी का जुल्म है. यह बात मैं मुखिया राधे चौधरी के पास ले जाऊंगा.’’

हजारी बढ़ई जानते थे कि मुखिया इंसाफपसंद तो हैं, पर शालिनी देवी के मामले में वे कुछ नहीं बोलेंगे. दबी आवाज में यह बात भी उठी थी कि शालिनी देवी का मुखिया से नाजायज संबंध है.

एक दिन हजारी बढ़ई गफूर मियां का पक्ष लेते हुए सरपंच शालिनी देवी से कहने लगे, ‘‘चाचीजी, हम लोग गरीब हैं. हमें आप से इंसाफ की उम्मीद है. आप गफूर मियां को दबा कर उन की जमीन सस्ते दाम में हड़पने की मत सोचिए, नहीं तो यह बात पूरे गांव में फैलेगी. विरोधी लोग आप के खिलाफ आवाज उठाएंगे. मैं नहीं चाहता कि अगले चुनाव में आप सरपंच का पद पाने से रह जाएं.’’

यह सुन कर शालिनी देवी गुस्से से कांप उठीं और बोलीं, ‘‘तुम उस गफूर की बात कर रहे हो, जो बिरादरी में छोटा है. उस की हिम्मत है, तो मुखिया के पास जा कर शिकायत करे.’’

हजारी बढ़ई बोले, ‘‘आप की नजर में तो मैं भी छोटा हूं… छोटे भी कभीकभी बड़ा काम कर जाते हैं.’’

शालिनी देवी एक दिन दूसरे सरपंचों से बोलीं, ‘‘क्या हमारा चुनाव इसलिए हुआ है कि हम दूसरे लोगों की धौंस से डर जाएं?’’

मुखिया राधे चौधरी ने शालिनी देवी को समझाया कि हजारी बढ़ई व गफूर मियां जैसे छोटे लोगों से डरने की जरूरत नहीं है.

शालिनी देवी खूबसूरत व चालाक थीं. उन की एक ही बेटी थी रेशमा, जो उन का कहना नहीं मानती थी. वह खेतखलिहानों में घूमती रहती थी.

शालिनी देवी के लिए अब एक ही रास्ता बचा था, जल्दी ही उस की शादी कर उसे ससुराल विदा कर दो.

जल्दी ही एक पड़ोसी गांव में उन्हें एक खेतिहर परिवार मिल गया. लड़का नौकरी के बजाय गांव की राजनीति में पैर पसार रहा था. भविष्य अच्छा देख कर शालिनी देवी ने रेशमा की शादी उस से तय कर दी.

शालिनी देवी ने हजारी बढ़ई को बुलाया और बोलीं, ‘‘मेरी बेटी रेशमा की शादी है. तुम उस के लिए फर्नीचर बना दो. मेहनताना व लकडि़यों के दाम मैं दे दूंगी.’’

इज्जत समझ कर हजारी बढ़ई ने गफूर मियां व मजदूरों को काम पर लगा कर अच्छा फर्नीचर बनवा दिया.

मेहनताना देते समय शालिनी देवी कतराने लगीं, ‘‘तुम मुझ से कुछ ज्यादा पैसे ले रहे हो. लकडि़यों की मुझे पहचान नहीं… सागवान है कि शीशम या शाल… कुछकुछ आमजामुन की लकड़ी भी लगती है.’’

हजारी बढ़ई बोला, ‘‘यह सागवान ही है. मेरे पेट पर लात मत मारिए. अपना समझ कर मैं ने दाम ठीक लिया है. मुझे मजदूरों को मेहनताना देना पड़ता है. फर्नीचर आप नहीं ले जाएंगी, तो दूसरे खरीदार न मिलने से मैं मारा जाऊंगा.’’

मौका देख कर शालिनी देवी बदले पर उतर आईं और बोलीं, ‘‘मैं औनेपौने दाम पर सामान नहीं लूंगी. मैं तो शहर से मंगाऊंगी.’’

तभी वहां मुखिया राधे चौधरी आ गए. वे भी शालिनी देवी का पक्ष लेते हुए बोले, ‘‘ज्यादा पैसा ले कर गफूर मियां का बदला लेना चाहते हो तुम?’’

हजारी बढ़ई तमक कर बोले, ‘‘मैं गलती कर गया. सुन लीजिए, जो मेरे दिल में कांटी ठोंकता है, उस के लिए मैं भी कांटी ठोंकता हूं… मैं बढ़ई हूं, रूखी लकडि़यों को छील कर चिकना करना मैं अच्छी तरह जानता हूं. आप का दिल भी रूखा हो गया है. मैं इसे छील कर चिकना करूंगा.

‘‘शालिनी देवी, आप की बेटी गांव के नाते मेरी बहन है. मैं बिना कुछ लिए यह फर्नीचर उसे देता हूं… आगे आप की मरजी…’’

ये भी पढ़ें- उस की रोशनी में : सुरभि अपना पाई उसे

हजारी बढ़ई ने मजदूरों से सारा फर्नीचर उठवा कर शालिनी देवी के यहां भिजवा दिया.

शालिनी देवी को लगा कि हजारी उस के दिल में कांटी ठोंक गया है.

गांव में क्या हिंदू क्या मुसलिम, सभी हजारी को प्यार करते थे. एक गूंगी लड़की की शादी नहीं हो रही थी. हजारी ने उस लड़की से शादी कर गांव में एक मिसाल कायम की थी.

इस पर गांव के सभी लोग कहा करते थे, ‘हजारी जैसे आदमी को ही गांव का मुखिया या सरपंच होना चाहिए.’

शालिनी देवी के घर बरात आई. उसी समय मूसलाधार बारिश हो गई. कच्ची सड़क पर दोनों ओर से ढलान था. सड़क पर पानी भर गया था. कहीं से निकलने की उम्मीद नहीं थी. चारों तरफ पानी ही पानी नजर आने लगा.

‘दरवाजे पर बरात कैसे आएगी?’ सभी बराती व घराती सोचने लगे.

दूल्हा कार से आया था. ड्राइवर ने कह दिया, ‘‘कार दरवाजे तक नहीं जा सकती. कीचड़ में फंस जाएगी, तो निकालना भी मुश्किल होगा.’’

शालिनी देवी सोच में पड़ गईं.

मुखिया राधे चौधरी भी परेशान हुए, क्योंकि इतनी जल्दी पानी को भी नहीं निकाला जा सकता था.

गांव की बिजली भी चली गई थी. पंप लगाना भी मुश्किल था. पैट्रोमैक्स जलाना पड़ रहा था.

फिर कीचड़ तो हटाई नहीं जा सकती थी. उस में पैर धंसते थे, तो मुश्किल से निकलते थे… मिट्टी में गिर कर दोचार लोग धोतीपैंट भी खराब कर चुके थे.

बराती अलग बिगड़ रहे थे. एक बोला, ‘‘कार दरवाजे पर जानी चाहिए. दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ेगा. वह गोद में भी नहीं जाएगा.’’

दूल्हे के पिता बिगड़ गए और बोले, ‘‘कोई पुख्ता इंतजाम न होने से मैं बरात वापस ले जाऊंगा.’’

शालिनी देवी रोने लगीं, ‘‘इसीलिए मैं नया मकान मेन रोड पर बनाना चाहती थी. लेकिन जमीन नहीं मिलती. गफूर मियां अपनी जमीन नहीं देता. हजारी बढ़ई ने उसे चढ़ा कर रखा हुआ है.’’

शालिनी देवी ने अपनेआप को चारों ओर से हारा हुआ पाया. उन्हें मुखिया राधे चौधरी पर गुस्सा आ रहा था, जो कुछ नहीं कर पा रहे थे.

तभी हजारी बढ़ई गफूर मियां के साथ आए और बोले, ‘‘गांव की इज्जत का सवाल है. गांव की बेटी की शादी है… बरातियों की बात भी जायज है. कार दरवाजे तक जानी ही चाहिए…’’

शालिनी देवी हार मानते हुए बोल उठीं, ‘‘हजारी, कोई उपाय करो… समझो, तुम्हारी बहन की शादी है.’’

‘‘सब सुलट जाएगा. आप अपना दिल साफ रखिए.’’

शालिनी देवी को लगा कि हजारी ने एक बार फिर एक कांटी उन के दिल में ठोंक दी है.

हजारी बढ़ई गफूर मियां से बोले, ‘‘मुसीबत की घड़ी में दुश्मनी नहीं देखी जाती. दुकान में फर्नीचर के लिए जितने भी पटरे चीर कर रखे हुए हैं, सब उठवा कर मंगा लो और बिछा दो. उसी पर से बराती भी जाएंगे और कार भी जाएगी दरवाजे तक.

‘‘लकड़ी के पटरों पर से गुजरते हुए कार के कीचड़ में फंसने का सवाल ही नहीं उठता. बांस की कीलें ठोंक दो. कुछ गांव वालों को पटरियों के आसपास ले चलो…’’

सभी पटरियां लाने को तैयार हो गए, क्योंकि गांव की इज्जत का सवाल सामने था.

इस तरह हजारी बढ़ई, गफूर मियां और गांव वालों की मेहनत से एक पुल सा बन गया. उस पर से कार पार हो गई.

बराती खुश हो कर हजारी बढ़ई की तारीफ करने लगे.

शालिनी देवी की खुशी का ठिकाना न था. वे खुशी से झूम उठीं.

मुखिया राधे चौधरी हजारी बढ़ई की पीठ थपथपाते हुए बोले, ‘‘इस खुशी में मैं अपने बगीचे के 5 पेड़ तुम्हें देता हूं.’’

पता नहीं, मुखिया हजारी को खुश कर रहे थे या शालिनी देवी को.

शालिनी देवी ने देखा कि हजारी बढ़ई और गफूर मियां भोज खाने नहीं आए, तो लगा कि दिल में एक कांटी और ठुंक गई है.

बरात विदा होते ही शालिनी देवी हजारी बढ़ई के घर पहुंच गईं और आंसू छलकाते हुए बोलीं, ‘तुम ने मेरे यहां खाना भी नहीं खाया. इतना रूठ गए हो… क्यों मुझ से नाराज हो? मैं अब कुछ नहीं करूंगी, गफूर की जमीन भी नहीं लूंगी. हां, कच्ची सड़क को पक्की कराने की कोशिश जरूर करूंगी…

ये भी पढ़ें- मरीचिका : मधु के साथ असीम ने क्या किया

‘‘सच ही तुम ने मेरे रूखे दिल को छील कर चिकना कर दिया है… तुम मेरी बात मानो…उखाड़ दो अपने दिल से कांटी… तब मुझे चैन मिलेगा.’’

हजारी बढ़ई बोला, ‘‘दरअसल, आप सरपंच होते ही हमें छोटा समझने लगी थीं. आप भूल गई थीं कि छोटी सूई भी कभी काम आती है.’’

तभी हजारी की गूंगी बीवी कटोरे में गुड़ और लोटे में पानी ले आई.

पानी पीने के बाद शालिनी देवी ने साथ आए नौकरों के सिर से टोकरा उतारा और गूंगी के हाथ में रख दिया. फिर वे हजारी से बोलीं, ‘‘शाम को अपने परिवार के साथ खाना खाने जरूर आना, साथ में अपने मजदूरों को लाना. मैं तुम सब का इंतजार करूंगी.’’

टोकरे में साड़ी, धोती, मिठाई, दही और पूरियां थीं. धोती के एक छोर में फर्नीचर के मेहनताने और लागत से भी ज्यादा रुपए बंधे हुए थे.

हजारी बढ़ई आंखें फाड़े शालिनी देवी को जाते देखते रहे, जिन का दिल चिकना हो गया था. अब कांटी भी उखड़ चुकी थी.

Women’s Day: मर्द की मार सहे या घर छोड़ दे औरत?

लेखक- धीरज कुमार

माला का पति महेश रोज शराब पी कर घर आता है. वह बातबात पर अपनी पत्नी से झगड़ा करता है, लेकिन जब शराब का नशा उतरता है, तो माला से खूब प्यारभरी बातें करता है

माला भी उस की प्यार भरी बातों में पिघल जाती है. वह अपने पति की मार और दुत्कार को भूल जाती है.

जब माला महेश को अपनी कसम दे कर शराब छोड़ने की बात करती है, तो वह जल्दी ही मान जाता है. लेकिन शाम होतेहोते वह फिर पुरानी बातों पर आ जाता है. वह अपनी पत्नी की कसम को भूल जाता है और फिर से शराब पी कर आ जाता है. फिर वह रोज की तरह अपनी पत्नी और बच्चों को गालियां देता है और मारपीट करता है.

महेश और माला के 2 बच्चे हैं. माला घरेलू औरत है और खुद बाहर काम नहीं कर पाती है. उस के मायके में कोई उसे सहारा देने वाला भी नहीं है. वह चाह कर भी अपने पति महेश को छोड़ नहीं पा रही है. वह किसी तरह अपने बच्चों की ठीक से परवरिश करना चाहती है. वह चाहती है कि उस के बच्चे पढ़लिख कर अच्छे इनसान बनें.

लेकिन माला के पति के शराब पीने की लत के चलते घर में हमेशा पैसे की तंगी बनी रहती है. उस का पति मोटरगैराज में काम करता है. वहां वह अच्छा कमा लेता है, पर शाम होतेहोते आधे से ज्यादा पैसे की शराब पी जाता है. उसे बाकी चीजों पर तो काबू है, पर वह खुद को शराब पीने से नहीं रोक पाता है.
आज भी देशभर में औरतों के साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं हो रही हैं. भले ही हमारे देश में पढ़ाईलिखाई का लैवल बढ़ा हो, लेकिन इन घटनाओं में कमी नहीं आई है. आज भी औरतों को मर्दों से कमतर आंका जाता है. उन्हें कमजोर समझा जाता है. वे भोगने की चीज समझी जाती हैं, इसलिए उन के साथ आज भी घरेलू हिंसा बरकरार है.

ये भी पढ़ें : घुड़चढ़ी- बराबरी का नहीं पाखंडी बनने का हक

 

जब कोई मर्द अपनी औरत के साथ झगड़ा करता है, तब वह उस का मुंह बंद करने के लिए हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता है, जबकि औरतें ऐसा नहीं कर पाती हैं. आज भी औरतें पति को काफी इज्जत देती हैं. पति को बड़ा समझती हैं और खुद को उन के पैर की जूती मानती हैं, इसी सोच का पति नाजायज फायदा उठाते हैं.

कई बार औरतें घरेलू हिंसा सहती रहती हैं, पर कानून की मदद नहीं ले पाती हैं, क्योंकि उन का मानना है कि ऐसा करने पर उन के घरपरिवार की इज्जत नीलाम हो जाती है. वहीं दूसरी तरफ वे खुद को कोर्टकचहरी के चक्कर से भी बचाना चाहती हैं, क्योंकि घरेलू हिंसा की शिकार औरत के पास इतनी ताकत नहीं बचती है कि वह अलग से कोर्टकचहरी और थाने के चक्कर लगा सके.
आज भी हिंसा की शिकार औरतें घुटघुट कर जीती हैं. वे चाह कर भी अपने पति से अलग नहीं हो पाती हैं. पति उन पर कितना भी जुल्म करता रहे, वे उस के साथ जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर होती हैं.

इस की बड़ी वजह यह है कि अकेली औरत को कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. मसलन, किराए का मकान नहीं मिलना, लोगों के नजरिए में बदलाव. अकेली औरत को देख कर लोग तरहतरह की कहानियां गढ़ने लगते हैं. छोटे शहरों, गांवकसबों में तो और भी कई तरह की परेशानियां हैं.

दरअसल, इस के पीछे मायके से मिली सीख का भी गहरा असर होता है. शादी से पहले हर लड़की को यह सीख दी जाती है कि शादी के बाद पति ही सबकुछ होता है. उस की जायज और नाजायज बातों को हर हाल में मानना चाहिए. ससुराल ही सबकुछ होता है. वहीं तुम्हें मरना है, वहीं तुम्हें जीना है. शादी के बाद हर लड़की की ससुराल से ही अर्थी निकलती है यानी उस का अपने मातापिता के घर से नाता टूट जाता है.

इन बातों के चलते लड़की खुद को कमजोर समझने लगती है. वह बुरे से बुरे हालात में भी पति के साथ रहने को मजबूर हो जाती है, इसीलिए कुछ मर्द औरतों के साथ कई तरह के जुल्म करते रहते हैं. ऐसी औरतें ही हिंसा की ज्यादा शिकार होती हैं.

रंजना देखने में खूबसूरत नहीं थी. वह सांवली और छोटे कद की थी. उस के मातापिता ने अपनी हैसियत के मुताबिक दहेज दे कर खातेपीते परिवार में उस का ब्याह किया था.

पर शादी के बाद से ही रंजना का पति उसे नापसंद करने लगा था, क्योंकि यह शादी अरेंज मैरिज थी, इसलिए वह रंजना को पहले नहीं देख पाया था.

ये भी पढ़ें : बदहाली: कोरोना की लहर, टूरिज्म पर कहर

 

इस का नतीजा यह था कि पति बातबात पर रंजना के साथ झगड़ा और मारपीट करता था. फिर भी रंजना अपने इस रिश्ते को ढोने की कोशिश कर रही थी. उसे उम्मीद थी कि अपने रंगरूप से तो वह पति को आकर्षित नहीं कर पाई, लेकिन अपने अच्छे गुणों से एक न एक दिन उन्हें आकर्षित जरूर कर पाएगी, इसीलिए वह अपने पति और सासससुर की दिनरात सेवा करती रहती थी, फिर भी उन लोगों में कोई बदलाव नहीं हुआ.

रंजना 12वीं जमात तक पढ़ी थी. जब उस के राज्य में प्राथमिक शिक्षक की बहाली निकली, तो उस ने भी अर्जी दे दी. शिक्षक बहाली में 35 फीसदी महिला आरक्षण होने के चलते रंजना को अपने गांव के ही एक स्कूल में नौकरी मिल गई. इस तरह वह आत्मनिर्भर बन गई.

अब रंजना अपना फैसला लेने के लिए आजाद थी. वह सालों से अपने पति, सास, ननद के उलाहने सहती आ रही थी. अब वह सोच रही थी कि अपने पति से अलग हो कर बाकी की जिंदगी अपने बच्चों के साथ गुजारेगी.

लेकिन उस की ससुराल वालों ने परिवार का माली नुकसान देख कर उसे साथ रखने को मना लिया. अब उस के सासससुर और पति कमाऊ पत्नी होने के चलते सबकुछ सहने को तैयार हैं. कल तक रंजना अपने पति और सासससुर के उलाहने झेलती थी, लेकिन अब वह उस परिवार में शान से रहती है.

रंजना के माली हालात बदलते ही पति के परिवार का रवैया बदल गया. कल तक रंजना अपने परिवार से दूर रहना चाहती थी, लेकिन अब वह परिवार के लिए जरूरत बन गई थी, इसलिए उस के परिवार के लोग अब उस के नखरे सहने के लिए तैयार थे.

लिहाजा, जरूरी है कि जो अपनेअपने घरपरिवार, सासससुर, पति द्वारा सताई जा रही हों, तो सब से पहले उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए सोचना चाहिए. कोई जरूरी नहीं है कि सरकारी नौकरी ही मिले. सब से पहले अपने माली हालात ठीक करने के लिए सोचना चाहिए. अपने पैरों पर खड़ी औरत अपना रास्ता खुद बना सकती है. जरूरत पड़ने पर अपने घरपरिवार, ससुराल और पति से अलग भी हो सकती है.

ये भी पढ़ें : किन्नर: समाज के सताए तबके का दर्द

Women’s Day: परवाज़ की उड़ान

लेखक- शोभा रानी गोएल

बिजनैस मीटिंग मे भाग लेने के लिए वह 15 दिनों पहले न्यूयौर्क आया. मीटिंग बहुत अच्छी रही. कंपनी को नया प्रोजैक्ट मिल गया. वह बहुत खुश था. उसे अपनी कामयाबी पर बहुत फख्र हो रहा था. खुशी का एक कारण यह भी कि वह अपने वतन लौटा लौट रहा था. हिंदुस्तान जैसा दूसरा इस जहां में कहां.

हिंदुस्तान की मिट्टी की खुशबू ही अलग है, जिस में रिश्ते पनपते हैं. अमेरिका ने बहुत तरक्की की है, इस में शक नहीं लेकिन संस्कृति में अपने हिंदुस्तान का सानी नहीं. उसे आन्या की याद आई. आन्या उस की पत्नी, साक्षात अन्नपूर्णा है. सभ्य, सुसंस्कृत और मृदुभाषी…22 घंटे के सफर की थकान आन्या के हाथ की एक कप चाय पलभर में छूमंतर कर देगी. बेटे आदित्य के साथ फुटबौल खेलते हुए वह खुद को दुनिया का सब से खुश इंसान समझने लगता है. वह यह सब सोचसोच कर मुसकरा रहा था.

ये भी पढ़ें : उतरन- भाग 1: पुनर्विवाह के बाद क्या हुआ रूपा के साथ?

जब वह अपने देश में आया तो यहां का नजारा बदल चुका था. कोरोना वायरस हिंदुस्तान में कहर बरपा रहा था. दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते ही एयरपोर्ट ऐडमिनिस्ट्रेशन ने चश्मे जैसे यंत्र से उस की स्क्रीनिंग कर जांच की. उसे बताया गया कि उसे बुखार है.‌ उस ने अधिकारियों और स्वास्थ्य कर्मचारियों से कहा कि थकावट के कारण थोड़ी सी हरारत है. पर, उसे कोरोना संदिग्ध मानते हुए उस से अस्पताल चल कर चैकअप कराने को कहा गया. उस ने कितनी बार मिन्नतें कीं, पर उस की एक न सुनी गई. उसे आश्वासन दिया गया कि उस के परिवार को सूचित कर दिया जाएगा, साथ ही, उस के परिवार का पूरा ध्यान भी रखा जाएगा.

अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में रहने व जरूरी जांच के लिए उसे भरती किया गया. वहां उसे डाक्टर और मैडिकल स्टाफ के सिवा किसी से भी मिलने की इजाजत नहीं थी. डाक्टर व नर्स आते, उस का चैकअप करते, दवाई देते. वार्डबौय पलंग की चादर बदलता, सफाईकर्मी अपना कार्य करते, साथ ही, हाल चाल पूछ लेते. कमरे में टीवी भी लगा हुआ था.

इन सब के बावजूद वह अकेलापन महसूस करता. वह‌ बारबार बाहर की दुनिया में जाना चाहता. पर यह संभव नहीं था. ‌एक बार उस ने वहां से निकलने की कोशिश की, तो पकडा गया. उसे सख्त हिदायत दी गई, यदि उस ने दोबारा ऐसा किया तो उस पर गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज किया जाएगा. जब तक उस की रिपोर्ट नहीं आती, और वह कोरोना नैगेटिव नहीं पाया जाता, तब तक उसे यहीं रहना है. उस पर कड़ी निगरानी रखी जाती. वैसे, अस्पताल प्रशासन और कर्मचारी उस के साथ अच्छा व्यवहार करते. डाक्टर व नर्स उस से प्यार से बातें करते, उस की काउंसलिंग करते, उस की बातें धैर्य से सुनते. फिर भी, उसे कैद जैसा महसूस होता. अभी उसे यहां आए 5 दिन ही हुए थे, उस की रिपोर्ट पैंडिंग थी. वह बाहर की दुनिया में जाने के लिए छटपटाने लगा. वह रातदिन सोचता रहता.

सोचतेसोचते वह आन्या को याद करने लगा. आन्या से उस के विवाह को 10 वर्ष होने को आए. शादी से पहले आन्या नौकरी करती थी. उस ने घर की देखभाल करने के कारण नौकरी करने से मना कर दिया. उस ने जिद करनी चाही पर उसे दृढ़ देख कर मान गई. जब भी वह घर से बाहर जाना चाहती, वह हमेशा मना कर देता. घर का सौदा वगरह वह ही लाता. पानी व बिजली के बिल खुद जा कर भर देता. आन्या कभी घूमने के लिए जाना चाहती, तो वह साथ में जाता. मायके भी साथ जाता, साथ ही ले आता. उसे अकेला कभी कहीं जाने न देता. उस की फिक्र करतेकरते उस की ऐसी फितरत बन गई.

उस ने आन्या को घर से बाहर निकलने से सख्त मना कर दिया था. दूधसब्जी से ले कर घर की सभी जरूरी चीजें वह खुद ला कर देता. कभीकभी आन्या जिद करती, तो वह उसे डांट देता, बुराभला कहता. धीरेधीरे उस ने कहना ही छोड़ दिया. शादी के 2 वर्षों बाद उन की जिंदगी में आदी आया. लेकिन उस की सोच नहीं बदली. उस की मानसिकता वही रही कि बाहर की दुनिया स्त्री के लिए सुरक्षित नहीं है. महिलाएं बाहर जा कर आफत को निमंत्रण देती हैं.

उस के औफिस में महिलाएं काम करती थीं. अकसर सहकर्मी उन के कपड़े और उन के कार्यों पर छींटाकशी करते. वह यह सब देखता था. महिला बौस का तो सहकर्मी पीछे मजाक बनाते, उन की मिमक्री करते. आतेजाते राह में असामाजिक तत्त्वों द्वारा लड़कियों को छेड़ते उस ने कई बार देखा था. अखवार मे आएदिन वह रेप की‌ खबरें पढ़ता. तो मन दहल जाता. इसीलिए वह आन्या के बाहर जाने पर रोक लगाने लगा. आन्या ने अब उस से कुछ कहना ही छोड़ दिया. वह आदी के साथ ज्यादा समय गुजारती, उस के साथ खेलती व बातें करती.

ऐसे मना उसे धीरेधीरे यह एहसास होने लगा था कि आन्या उस से दूर जा रही है. अब वह उस से जरूरतभर बात ही करती. जब कभी आत्मिक क्षणों में उस के पास आता. वह स्थिर बनी रहती. वह अब न शिक़ायत करती और न ही अपनी इच्छा व्यक्त करती.

ये भी पढ़ें : हिकमत- भाग 1: क्या गरीब परिवार की माया ने दिया शादी

एक दिन औफिस से लौटते समय रैडलाइट होने पर कार रोकी. एक बहेलिया इक प्यारी सी चिड़िया को पिंजरे में कैद कर उसे पिंजड़ासहित बेच रहा था. वह आदी के लिए उसे खरीद लाया. पिंजरे में दानापानी रखते हुए आन्या उस चिड़िया से कह रही थी, ‘तेरीमेरी एक ही नियती, जिंदगी बनी कैद मुसाफिर.’

वह नहीं समझ पाया था कि आन्या किस यंत्रणा से गुजर रही है. उस ने समझना ही नहीं चाहा. वह अपने अहं में चूर रहा. चिड़िया से वह उसे अकसर बातें करते देखता, तो हंसने लगता, कहता, ‘यह मूक प्राणी तुम्हारी बातें क्या समझेगा, और क्या जबाव देगा?’ ‘कुछ बातों के लिए जवाब नहीं, जज़्बातों की जरूरत होती है, वह तुम नहीं समझोगे,’ आन्या ने कहा था.

एक मीटिंग के सिलसिले में जब अमेरिका के प्रसिद्ध शहर न्यूयौर्क आने का मौका मिला तो वह खुशीखुशी पैकिंग करने लगा. तब दबी जबान में आन्या ने उसे साथ ले जाने का आग्रह किया. तो, वह बिफर पड़ा था. ‘मैं घूमने के लिए नहीं, काम करने के लिए जा रहा हूं. तुम्हारी मोटी बुद्धि तो हमेशा ही मौजमस्ती की ही बातें जानती है. घर का जरूरी सामान ला कर रख दिया है, बाहर निकलने की जरूरत नहीं है. जब भी फुरसत मिलेगी, वीडियो कौल करूंगा. आन्या का मन बुझ गया.

आज जब उसे अस्पताल में रखा गया तब उसे आन्या की तकलीफ़ समझ आई, उस का दर्द दिखाई दिया. वह कितना बेदर्द था और आन्या कितनी बेबस. कितना निष्ढुर हो गया था वह. अब समझ गया कि हजार सुविधाएं भी आजादी के अभाव में कांटें बन जाती हैं. किसी को कैद कर उसे सुखी समझना जीवन की सब से बड़ी भूल होती है, अन्याय है यह.

ये भी पढ़ें : अपने हिस्से की लड़ाई

जब कांटों से डर कर गुलाब खिलना नहीं छोडते, तो फिर हम उन पर क्यों बंदिशें लगाएं. यहां से ठीक होने के बाद अब वह सब से पहले आन्यारुपी अपनी चिड़िया को आजाद करेगा खुले आसमां में, उस की ऊंची उड़ान देखेगा. फिर, आन्या से माफी मांग कर उसे खुद के जीवन जीने के लिए लगी बंदिशें हटा देगा. अब कोई कैद नहीं, जीवन फिर से खिलखिलाएगा.

Women’s Day- नपुंसक: भाग 1

आरुषी ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर डाली तो देखा साढ़े 8 बज चुके थे. उस का शरीर थक कर चूर हो गया था. उस ने हाल की दीवारों पर नजर डाली, तो पाया केवल 5 पेंटिंग्स बची थीं. उन में से भी 3 अनिरुद्ध के चाचाजी अपने फार्म हाउस पर ले जाएंगे. मन ही मन खुश होती आरुषी की नजर अनिरुद्ध पर पड़ी जो उस की तरफ पीठ किए हुए खड़ा था, पर तन, मन, धन से उस का साथ दे रहा था.

उस के मन ने खुद से सवाल किया, कैसे चुका पाऊंगी इस आदमी का उपकार? क्या नहीं किया इस ने मेरे लिए? उस के मन में अनिरुद्ध को ले कर जाने कैसेकैसे विचार आ रहे थे. तभी अनिरुद्ध का फोन बज उठा और आरुषी की विचार तंद्र्रा टूट गई. जैसे ही फोन पर बात समाप्त हुई, अनिरुद्ध उस के करीब आया और आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘कैसा लग रहा है आरुषी, पहली प्रदर्शनी में ही तुम ने झंडे गाड़ दिए. एक ही हफ्ते में तुम ने लाखों कमा लिए.’’

अनिरुद्ध का आप से तुम पर आना, आरुषी को अच्छा लगा. वह बोली, ‘‘अनिरुद्ध, यह तो तुम्हारी मेहनत का नतीजा है वरना मैं जिस परिवार से हूं उस के लिए तो यह सबकुछ करना संभव नहीं था.’’

आरुषी की आंखों के आगे चुटकी बजाते हुए अनिरुद्ध ने कहा, ‘‘आरुषी, कहां खो जाती हो तुम? कोई परेशानी है क्या? इस तरह उदास रहोगी तो मैं तुम्हें पार्टी कैसे दे पाऊंगा. कल मैं तुम्हें तुम्हारी सफलता पर एक पार्टी दूंगा.’’

ये भी पढ़ें- घर लौट जा माधुरी: भाग 3

‘‘सर, कल किस ने देखा है?’’ आरुषी बोली, ‘‘चलिए, आज ही मैं आप को पार्टी दे देती हूं.’’

‘‘पर तुम अपने घर खबर तो कर दो,’’ अनिरुद्ध अचकचा कर हैरानी से बोला.

‘‘मैं घर पर बता कर आई थी कि आज मुझे देर हो जाएगी,’’ आरुषी के चेहरे से साफ लग रहा था कि वह झूठ बोल रही है.

अनिरुद्ध ने फौरन आर्ट गैलरी से आरुषी की बनाई पेंटिंग्स सावधानी से उतरवा कर अपने आफिस में रखवा दीं. उस के बाद जेब से चाबी निकाल कर आर्ट गैलरी का ताला लगाया और आरुषी के साथ रेस्टोरेंट की ओर चल दिया.

कार में बैठी आरुषी मन ही मन सोच रही थी कि काश, रेस्टोरेंट और दूर हो जाए ताकि अनिरुद्ध के साथ यह सफर समाप्त न हो. उस के चेहरे पर रहरह कर मुसकराहट आ रही थी, पर उस ने खुद को परंपरा और आदर्शवाद के आवरण से ढक रखा था.

‘‘आरुषी, तुम्हें रात के 9 बजे मेरे साथ आते हुए डर नहीं लगा?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, शायद डरने की उम्र को मैं बहुत पीछे छोड़ आई हूं.’’

‘‘तो क्या अब तुम्हें बिलकुल डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात भी नहीं है, डर लगता है पर अभी तुम से नहीं लग रहा है,’’ अचानक आरुषी भी आप से तुम पर आ गई थी, उसे इस का आभास भी नहीं हुआ था. ऐसी ही बातें करते दोनों रेस्टोरेंट पहुंच गए.

पार्किंग में कार खड़ी कर के अनिरुद्ध आगे बढ़ा तो अचानक ही उस ने आरुषी का हाथ अपने हाथ में ले लिया. उस ने भी इस का विरोध नहीं किया बल्कि जो आवरण आरुषी ने ओढ़ रखा था, उसे उतार फेंका. उस की पकड़ को उस ने और कस कर पकड़ लिया.

दोनों ने मन ही मन इस रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. आरुषी के चेहरे पर वही भाव थे जो अब से 15 साल पहले तब आए थे जब राघव ने उसे 3 अक्षर के साथ प्रेम का इजहार किया था. वैसे ही आज उस का चेहरा खुशी से दमक उठा था, कनपटी लाल हो चुकी थी, कांपती उंगलियां बारबार चेहरे पर आ रही जुल्फों को पीछे कर रही थीं.

उस की जुल्फों को अनिरुद्ध ने कान के पीछे करते हुए कहा, ‘‘लो, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर दे रहा हूं.’’

तब आरुषी को लगा, काश, उस का हाथ चेहरे पर ही रुक जाए, ऐसा सोचते हुए आरुषी ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘‘अरु, अपनी आंखें खोलो. मुझे यह सब सपना लग रहा है. क्या तुम्हें भी कुछ ऐसा ही लग रहा है?’’

अनिरुद्ध की आवाज सुन कर मानो वह आकाश से उड़ती हुई जमीन पर आ लगी. उस की आंखें एक झटके में खुल गईं. वास्तविकता के धरातल पर आते ही उसे अपने से जुड़ी सभी बातें याद आने लगीं. अतीत की बातें याद आते ही आरुषी के माथे पर पसीने की छोटीछोटी बूंदें उभरने लगीं. उसे लगा उस के परिवार के बारे में जान कर अनिरुद्ध उसे तुरंत छोड़ देगा.

आरुषी की आंखों के आगे चुटकी बजाते हुए अनिरुद्ध बोला, ‘‘कहां खो जाती हो तुम?’’

‘‘सर, मैं आप को अपने बारे में कुछ बताना चाहती हूं,’’ आरुषी के चेहरे पर गंभीरता देख कर वह भी कुछ गंभीर हो गया और बोला, ‘‘कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

ये भी पढ़ें- चाहत की शिकार : कैसे बरबाद हुई आनंद की जिंदगी  

फीकी सी मुसकराहट के साथ आरुषी ने अपनी बात कहनी शुरू की :

‘‘मेरे पापा का नाम करण राजनाथ है. वह रिटायर सिविल इंजीनियर हैं. करीब 40 साल पहले उन का विवाह कनकलता नाम की एक लड़की से हुआ था. वह लड़की रूपरंग में बेहद साधारण थी. विवाह के कुछ समय बाद ही उस ने एक लड़की को जन्म दिया और उस के ठीक 1 साल बाद दूसरी लड़की को जन्म दिया. चूंकि कनकलता रूपरंग में साधारण थी और गंवार भी थी इसलिए करण राजनाथ का मन उस औरत से बिलकुल हट गया. जब वह तीसरी बार गर्भवती हुई तो करण ने उसे अपने गांव छोड़ दिया. गांव में तीसरे प्रसव के दौरान जच्चाबच्चा दोनों की मृत्यु हो गई.

‘‘अब करण राजनाथ की दोनों बेटियां अकेली रह गईं. करण राजनाथ की दोनों बेटियों में बड़ी बेटी मैं हूं और छोटी बेटी मेरी बहन है. मेरी मां को गुजरे अभी कुछ महीने ही बीते थे कि मेरे पिता ने दूसरी शादी कर ली. उन का नाम अर्चना है और हम उन्हें मौसी कह कर बुलाते हैं. पहले तो उन्होंने हमें प्यार नहीं किया पर जब पता चला कि वह मां नहीं बन सकतीं तो उन्होंने हमें प्यार देना शुरू कर दिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें