Indian Politics : ओबीसी और एससी में क्यों है दूरी?

Indian Politics : साल 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गोलबंदी अभी से तेज हो गई है. कयास इस बात का लगाया जा रहा है कि एससी और ओबीसी तबका किधर जाएगा.

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में एससी, ओबीसी और मुसलिम तबका इंडिया ब्लौक के साथ रहा था, जिस का फायदा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों को हुआ था. कांग्रेस को लोकसभा की 6 सीटें और समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिली थीं, जो अपनेआप में एक बड़ा इतिहास है.

इस के बाद हुए उत्तर प्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव और दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजे देखने से लगा कि लोकसभा चुनाव वाला वोटिंग ट्रैंड बदल चुका है, खासकर एससी और ओबीसी जातियां धर्म के चलते आपसी दूरी दिखा रही हैं.

एससी और ओबीसी जातियों में खेमेबंदी केवल वोट तक ही नहीं सिमटी है, बल्कि यह जातीय और सामाजिक लैवल पर गुटबाजी में बदल चुकी है, जिस का असर वोट बैंक पर तो पड़ ही रहा है, साथ ही, घरों और स्कूलों पर भी पड़ रहा है. सरकारी स्कूलों में जहां बच्चों को भोजन ‘मिड डे मील’ खाने को मिल रहा है, वहां पर ओबीसी बच्चे एससी बच्चों के साथ बैठ कर खाना खाने से बचते हैं.

ओबीसी बच्चे तादाद में ज्यादा होने के चलते अपना अलग ग्रुप बना लेते हैं, जिस से एससी बच्चे अलगथलग पड़ जाते हैं. स्कूलों से शुरू हुए इस जातीय फर्क को आगे भी देखा जाता है. ओबीसी जातियां ऊंची जातियों जैसी दिखने के लिए खुद को बदल रही हैं.

ओबीसी समाज के लड़के ऊंची जाति की लड़कियों से शादी कर रहे हैं. ऊंचे तबके के परिवारों को भी अगर एससी और ओबीसी में से किसी एक को चुनना हो, तो वह ओबीसी को ही पसंद करते हैं. ओबीसी बच्चे पूरी तरह से ऊंची जाति वाला बरताव करते हैं और यही उन के स्वभाव में रचबस जाता है.

उत्तर प्रदेश में सब से बड़े यादव परिवार मुलायम सिंह यादव का घर इस का उदाहरण है. मुलायम सिंह यादव की पीढ़ी में यादव जाति के बाहर की कोई महिला नहीं थी, पर मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता बनिया बिरादरी से थीं.

इस के बाद अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पहाड़ी जाति की ठाकुर हैं. उन के पिता का नाम आरएस रावत और मां का नाम चंपा रावत है. शादी के पहले डिंपल सिंह रावत थीं, जो अब डिंपल यादव हो गई हैं.

मुलायम सिंह यादव के दूसरे बेटे प्रतीक यादव की भी शादी अपर्णा बिष्ट से हुई है. वे भी पहाड़ी ठाकुर हैं. मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव की पत्नी राजलक्ष्मी मध्य प्रदेश के मैहर राजपूत घराने की हैं. इन के नाना राजा कुंवर नारायण सिंह जूदेव 3 बार विधायक रहे थे. राजलक्ष्मी ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था.

बिहार में लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव की शादी भूमिहार जाति से आने वाले नेता और मुख्यमंत्री रह चुके दारोगा राय की पोती ऐश्वर्या राय से हुई है. ऐश्वर्या के पिता चंद्रिका राय भी बिहार में मंत्री रहे हैं.

लालू प्रसाद यादव के दूसरे बेटे तेजस्वी यादव की पत्नी रेचल गोडिन्हो हरियाणा के रेवाड़ी में रहने वाले ईसाई परिवार की बेटी हैं. वे दिल्ली में पलीबढ़ी हैं और वहीं तेजस्वी यादव से उन की मुलाकात भी हुई थी और शादी के बाद उन का नाम राजश्री यादव हो गया.

राजश्री यादव नाम इसलिए रखा गया, जिस से बिहार के लोग आसानी से इस नाम का उच्चारण कर सकें. इस नाम को रखने का सुझाव लालू प्रसाद यादव ने ही दिया था.

ओबीसी जातियों ने खुद को बदला है. वह अपना रहनसहन और बरताव ऊंची जातियों जैसा ही करने लगी है. धार्मिक रूप से वह ऊंची जाति वालों की तरह ही बरताव करने लगी हैं.

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भले ही खुद को शूद्र कहें, लेकिन उन का बरताव ऊंची जाति के लोगों जैसा ही होता है. वोट से अलग हट कर देखें, तो वे धार्मिक कर्मकांड को पूरी तरह से मानते हैं.

उन्होंने अपने पिता की अस्थियों का विसर्जन पूरी आस्था और धार्मिक कर्मकांडों के साथ किया था. वे गंगा में डुबकी लगा आए और कुंभ भी नहा आए. ऐसे में एससी जातियों को ओबीसी और ऊंची जातियों में फर्क नजर नहीं आता है.

कांग्रेस दलितों की करीबी क्यों?

एससी तबके के लोग जब कांग्रेस और ओबीसी दलों के बीच तुलना करते हैं, तो उसे कांग्रेस ही बेहतर नजर आती है. इस की सब से खास बात यह भी है कि कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब उस ने ऐसे तमाम कानून बनाए थे, जिन से गैरबराबरी को खत्म करने में मदद मिली. इन में जमींदारी उन्मूलन कानून, छुआछूत विरोधी कानून और दलित कानून प्रमुख हैं.

लंबे समय तक एससी तबका कांग्रेस का वोटबैंक रहा है. इस वजह से जब साल 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आरक्षण और संविधान को मुद्दा बनाया, तो एससी जातियों ने उस की बात पर भरोसा किया.

इस भरोसे के बल पर ही एससी तबके ने कांग्रेस और उस की अगुआई वाले इंडिया ब्लौक को चुनावी कामयाबी दिलाई, जिस से भारतीय जनता पार्टी बहुमत से सरकार बनाने में चूक गई.

यह इंडिया ब्लौक और कांग्रेस की बड़ी कामयाबी थी. इस के बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भूमिका को सहयोगी दलों ने सीमित करने की कोशिश की, जिस वजह से एससी वोटबैंक वापस भाजपा में चला गया.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी हो या उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, दोनों चुनाव हार गईं. कांग्रेस को अलगथलग कर के एससी वोट हासिल नहीं किया जा सकता है. इस हालत में कांग्रेस जरूरी होती जा रही है. समाजवादी पार्टी जितना जल्दी इस बात को समझ ले, उतना ही उस का भला होगा.

उत्तर प्रदेश में एससी बिरादरी को अपनी तरफ खींचने के लिए राजनीतिक दल तानाबाना बुनने में लगे हैं. भाजपा अपने संगठन में दलितों को खास तवज्जुह देने की कवायद में है. संविधान और डाक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम पर दलित समाज का दिल जीतने की कवायद कांग्रेस से ले कर समाजवादी पार्टी तक कर रही हैं.

बहुजन समाज पार्टी के लगातार कमजोर होने से एससी तबका मायावती की पकड़ से बाहर निकलता जा रहा है. नगीना लोकसभा सीट से सांसद चुने जाने के बाद चंद्रशेखर आजाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति का नया चेहरा बन कर उभरे हैं और बसपा के औप्शन के तौर पर खुद को पेश कर
रहे हैं.

दूसरी बड़ी हिस्सेदारी

ओबीसी के बाद दूसरी सब से बड़ी हिस्सेदारी एससी की है. दलित आबादी 22 फीसदी के आसपास है. यह दलित वोटबैंक जाटव और गैरजाटव के बीच बंटा हुआ है. 22 फीसदी कुल दलित समुदाय में सब से बड़ी तादाद 12 फीसदी जाटवों की है और 10 फीसदी गैरजाटव दलित हैं.

उत्तर प्रदेश में दलित जाति की कुल 66 उपजातियां हैं, जिन में से 55 ऐसी उपजातियां हैं, जिन का संख्या बल ज्यादा नहीं है. इन में मुसहर, बसोर, सपेरा, रंगरेज जैसी जातियां शामिल हैं.

दलित की कुल आबादी में 56 फीसदी जाटव के अलावा दलितों की अन्य जो उपजातियां हैं, उन की संख्या 46 फीसदी के आसपास है. पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक तकरीबन 5 फीसदी हैं.

बसपा प्रमुख मायावती और भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर जाटव समुदाय से आते हैं. उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति हमेशा से जाटव समुदाय के ही इर्दगिर्द सिमटी रही है.

बसपा प्रमुख मायावती के दौर में जाटव समाज का सियासी असर बढ़ा, तो गैरजाटव दलित जातियों ने भी अपने सियासी सपनों को पूरा करने के लिए बसपा से बाहर देखना शुरू किया.

साल 2012 के चुनाव के बाद से गैरजाटव दलित में वाल्मीकि, खटीक, पासी, धोबी, कोरी समेत तमाम जातियों के विपक्षी राजनीतिक दल अपनेअपने पाले में लामबंद करने में कामयाब रहे हैं.

अखिलेश यादव साल 2019 के बाद से ही दलित वोटों को किसी भी दल के गठबंधन की बैसाखी के बजाय अपने दम पर हासिल करने की कवायद में हैं.

बसपा के कई दलित नेताओं को उन्होंने अपने साथ मिलाया है, जिस के चलते साल 2022 और साल 2024 में उन्हें कामयाबी भी मिली थी. सपा अब ‘पीडीए’ की बैठक कर के दलित वोटबैंक अपनी तरफ करने का काम कर रही है.

जाटव बिरादरी के राजाराम कहते हैं, ‘‘हम बसपा को वोट देते हैं, लेकिन मेरी बहू और बेटे बसपा को पसंद नहीं करते हैं. वे भाजपा को वोट देते हैं.’’

साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में हुए 10 उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ा था. सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच था, जिस में सपा को केवल 2 सीटों पर जीत मिली और 8 सीटें भाजपा जीत ले गई.

अखिलेश यादव भाजपा की इस जीत को लोकतंत्र विरोधी बता रहे हैं. इस के बाद यह साफ हो गया है कि लोकसभा चुनाव में सपाकांग्रेस गठबंधन को वोट देने वाला एससी तबका सपा के साथ नहीं है. कांग्रेस और बसपा के चुनाव लड़ने के फैसले से वह भाजपा को विकल्प के रूप में देख रहा है.

गृह मंत्री अमित शाह द्वारा डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर टिप्पणी किए जाने के मुद्दे को ले कर कांग्रेस नेताओं ने संसद से सड़क तक भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ मोरचा खोल दिया था.

कांग्रेस ने देशभर में ‘जय भीम’, ‘जय बापू’ और ‘जय संविधान’ नाम से अभियान शुरू किया था. राहुल गांधी ने साल 2024 का लोकसभा चुनाव संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर लड़ा था.

इस का सियासी फायदा कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों को मिला था. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं और उस के सहयोगी दल सपा को 37 सीटों पर जीत मिली थी. इसी तरह महाराष्ट्र में भी संविधान और आरक्षण का दांव कारगर रहा था.

उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिले हैं, जहां दलितों की तादाद 20 फीसदी से ज्यादा है. राज्य में सब से ज्यादा दलित आबादी सोनभद्र में 42 फीसदी, कौशांबी में 36 फीसदी, सीतापुर में 31 फीसदी है, बिजनौर और बाराबंकी में 25-25 फीसदी हैं. इस के अलावा सहारनपुर, बुलंदशहर, मेरठ, अंबेडकरनगर, जौनपुर में दलित समुदाय निर्णायक भूमिका में है.

इस तरह से उत्तर प्रदेश में दलित समाज के पास ही सत्ता की चाबी है, जिसे हर दल अपने हाथ में लेना चाहता है. दलितों के बीच ‘सामाजिक समरसता अभियान’ के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस दलित वोटबैंक पर निशाना साधा, जिस पर बसपा ने कभी ध्यान ही नहीं दिया था. इस का फायदा भाजपा को सीधेसीधे देखने को मिला है.

धार्मिक दलित बने भाजपाई

‘रामचरित मानस’ की चौपाई ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी’ को भूल कर एससी और ओबीसी का एक बड़ा तबका पूरी तरह से धार्मिक हो चुका है. यही भाजपा की सब से बड़ी ताकत है. भाजपा धर्म के जरीए राजनीति कर रही है. उस का प्रचार मंदिरों से होता है.

अब तकरीबन हर जाति के लोगों के अलगअलग मंदिर हैं, जहां लोग अपनेअपने भगवानों की पूजा करते हैं. धर्म के नाम पर वे भाजपा के साथ खड़े हो रहे हैं.

समाजवादी पार्टी का मूल वोटबैंक यादव समाज भी अब अखिलेश यादव के साथ पूरी तरह से नहीं है. वह सपा को पसंद करता है, लेकिन जैसे ही मुद्दा हिंदूमुसलिम का होता है, वह भाजपा के साथ खड़ा हो जाता है.

अयोध्या के करीब मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर 6 महीने पहले लोकसभा चुनाव में फैजाबाद लोकसभा सीट सपा के अवधेश प्रसाद ने जीती थी. इस के बाद उन को विधायक की सीट छोड़नी पड़ी थी, जिस का उपचुनाव हुआ. सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को टिकट दे दिया. विधानसभा के उपचुनाव में सपा तकरीबन 65,000 वोट से हार गई.

सपा चुनावी धांधली का कितना भी बहाना बनाए, पर सच यह है कि सपा के वोट कम हुए हैं. इस की वजह यह रही कि अवधेश प्रसाद को राजा अयोध्या कहना एससी और ओबीसी जातियों को भी अच्छा नहीं लगा. इस वजह से उन्होंने सपा के उम्मीदवार के खिलाफ वोट दे कर उस को हरवा दिया.

एससी अब ओबीसी के साथ खड़ा होने में हिचक रहा है. इस में ओबीसी की कमी है, क्योंकि वह खुद को ऊंची जाति का समझ कर वैसा ही बरताव एससी के साथ कर रहा है.

ओबीसी अब मन से ऊंची जाति का बन चुका है. मंडल कमीशन लागू करते समय यह सोचा गया था कि ओबीसी अपने तबके से कमजोर तबके को आगे बढ़ाएगा.

मंडल कमीशन की सिफारिशों का सब से ज्यादा फायदा यादव और कुर्मी जातियों ने आपस में बांट लिया. गरीब तबका गरीब ही रह गया. अब वह धर्म के सहारे आगे बढ़ कर खुद को ऊंची जाति वालों जैसा बना कर एससी से दूर हो रहा है.

एससी की सब से पहली पसंद हमेशा से ही कांग्रेस रही है. जैसेजैसे कांग्रेस मजबूत होगी, वैसेवैसे एससी और मुसलिम दोनों ही उस की तरफ जाएंगे. इन को लगता है कि भाजपा से टक्कर लेने का काम केवल कांग्रेस ही कर सकती है.

राहुल गांधी ही भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं. एससी और मुसलिम दोनों ही कांग्रेस के पक्ष में तैयार खड़े हैं. ऐसे में अब समाजवादी पार्टी की मजबूरी है कि वह कांग्रेस को साथ ले कर चले. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो दिल्ली जैसी हालत उत्तर प्रदेश में भी होगी. अरविंद केजरीवाल जैसा बरताव अखिलेश यादव को धूल चटा देगा.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सपा कांग्रेस को कमजोर न समझे, सहयोगी और साथी समझे, नहीं तो ‘हम तो डूबे हैं सनम तुम को भी ले डूबेंगे’.

डोनाल्ड ट्रंप के हथकड़ियों के फैसले पर खामोश हैं Narendra Modi

Narendra Modi : भारत ही क्या सारी दुनिया में यह बात मशहूर है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरे दोस्ताना संबंध हैं. ऐसे संबंध कि वे एकदूसरे का सम्मान करते हैं और नरेंद्र मोदी का तो वे कहना मानते हैं. शायद यही वजह है कि नरेंद्र मोदी जिस तरह काम करते हैं, वैसा ही काम डोनाल्ड ट्रंप भी करते दिखाई दे रहे हैं.

एक और बड़ा उदाहरण सामने है. जैसे नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ते रहे हैं, बहुतकुछ वैसी ही शैली डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनाई. इस से यह संदेश और भी मजबूत हो गया कि दोनों ही नेताओं में बड़ी अच्छी ट्यूनिंग है और वे एकदूसरे को सम झते हैं, मगर जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही एकदम से भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाया है, वह बताता है कि दोनों के ही संबंध कितने छत्तीसी हैं.

अमेरिका में अवैध प्रवासियों का निर्वासन एक खास मुद्दा बन कर सामने है. एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में तकरीबन 11 मिलियन अवैध प्रवासी रहते हैं, जिन में से ज्यादातर मैक्सिको और दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों से आए हैं. इसी के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त नीति अपनाई है.

ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए कई सख्त कदम उठाए हैं, जिन में सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए डाटाबेस का उपयोग करना और अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए अधिक अधिकारियों की नियुक्ति करना शामिल है.

अब 205 भारतीय नागरिकों को ले कर सी-17 विमान सैन एंटोनियो, टैक्सास से भारत आ गया है, जिस से देश में सकते के हालात हैं. हर बात में प्रतिक्रिया देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर तो मानो खामोश हैं.

दरअसल, अमेरिकी सरकार के इस ऐक्शन का नतीजा यह होगा कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे. लेकिन इस ऐक्शन का विरोध भी हो रहा है, खासकर उन लोगों द्वारा, जो अवैध प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं. उन का मानना है कि अवैध प्रवासी भी इनसान हैं और उन्हें भी सम्मान और अधिकार मिलने चाहिए.

अमेरिकी सरकार की अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने की कार्यवाही एक जटिल मुद्दा है, जिस में कई पक्ष और विपक्ष हैं, जबकि यह कार्यवाही अवैध प्रवास को रोकने के लिए एक कदम हो सकती है, लेकिन इस का नतीजा यह भी हो सकता है कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे और उन के अधिकारों का उल्लंघन होगा.

भारत की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर मिलीजुली बनी हुई है. एक ओर भारत सरकार ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर अमेरिकी सरकार के साथ सहयोग करने की बात कही है, वहीं दूसरी ओर  विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने यह कह कर इस कदम की आलोचना की है कि यह अवैध प्रवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

इस मुद्दे पर आम लोगों की राय भी मिलीजुली है. कुछ लोगों का मानना है कि अवैध प्रवासी भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं, जबकि दूसरे लोगों का मानना है कि उन्हें इनसानियत के नजरिए से देखा जाना चाहिए और उन्हें वापस भेजने से पहले उन के मामलों की समीक्षा की जानी चाहिए.

ऐसा लगता कि इस मामले में अमेरिका भी चीन के रास्ते पर चल रहा है. दोनों देशों की आव्रजन नीतियां और उन के कार्यान्वयन में काफी फर्क है. अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए सख्त नीतियों का प्रस्ताव किया है, जबकि चीन में आव्रजन नीतियां ज्यादा सख्त और प्रतिबंधात्मक हैं. चीन में अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए विशेष कानून और नियम हैं.

हालांकि, अमेरिका और चीन के माली, राजनीतिक और सामाजिक हालात अलगअलग हैं, जो उन की आव्रजन नीतियों पर असर करती हैं. मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका लोकतंत्र का हिमायती है, मानवाधिकार का प्रहरी माना जाता है और वह ऐसा कदम उठाएगा, यह कोई सोच भी नहीं सकता था.

मगर अब जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे मामले में कई कदम उठाने चाहिए. सब से पहले उन्हें अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए और अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर एक सम झौता करना चाहिए, जो भारतीय नागरिकों के हितों की हिफाजत करे.

इस के अलावा भारत सरकार को अवैध प्रवासियों के परिवारों को मदद देनी चाहिए, जो भारत में रहते हैं. सरकार को उन्हें माली मदद, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं देनी चाहिए.

सरकार को अवैध प्रवास रोकने के लिए भी कदम उठाने चाहिए. सीमा सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए  और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए तकनीकी उपायों का उपयोग करना चाहिए.

यही नहीं, सरकार को अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना चाहिए. उन्हें लोगों को अवैध प्रवास के खतरों और इस के बुरे नतीजों के बारे में बताना चाहिए. इन कदमों से सरकार अवैध प्रवासियों के मुद्दे का समाधान कर सकती है और भारतीय नागरिकों के हितों की हिफाजत कर सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संबंधों में पिछले कुछ समय में काफी उतारचढ़ाव देखा गया है. ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी को बंद करने की घोषणा की थी, जिस से भारत को मिलने वाली माली मदद पर असर पड़ सकता है.

यह कैसी राजनीति के प्रहरी बने श्रीमान Narendra Modi

Narendra Modi : आजादी के बाद राजनीति अपने आदर्श और विपक्षियों को भी सम्मान देने के संदर्भ में जिस ऊंचाई पर थी, नरेंद्र दामोदरदास मोदी के साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरेधीरे यह पतन की ओर आगे बढ़ रही है. ऐसा कई बार देखा गया है जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए राजनीति और इस पद को गरिमा को कम किया है. इस का एक बड़ा उदाहरण आप के सामने आया है दिल्ली विधानसभा चुनाव के दरमियान जब अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी ‘आप’ को नरेंद्र मोदी ‘आप दा’ कर कर कर बुला पुकार रहे हैं.

नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2025 को भाजपा कार्यकताओं से विधानसभा चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा बूथों पर जीत का लक्ष्य रखने का आह्वान किया और कहा कि लोग अब खुल कर आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और उसे उस के वादों की याद दिला रहे हैं.

‘नमो एप’ के जरीए ‘मेरा बूथ, सब से मजबूत’ कार्यक्रम के तहत भाजपा के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए नरेंद्र मोदी ने ‘आप’ को एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी के लोगों के लिए ‘आप दा’ करार दिया और कहा, जब इस से मुक्ति मिलेगी तभी दिल्ली को ‘विकसित भारत’ की ‘विकसित राजधानी’ बनाने का संकल्प सिद्ध हो पाएगा.

नरेंद्र मोदी ने यह दावा भी किया कि ‘आप दा’ वाले विधानसभा चुनाव में इतने डरे हुए हैं कि उन्हें हर दिन एक नई घोषणा करनी पड़ रही है.

नरेंद्र मोदी के मुताबिक, दिल्ली वाले आप वालों की ‘आप दा’ और उन के झूठ और फरेब से अब ऊब चुके हैं. पहले कांग्रेस ने और फिर आप वालों की ‘आप दा’ ने दिल्ली के लोगों से बहुत विश्वासघात किया है. ये ‘आप दा’ वाले अब हर दिन एक नई घोषणा कर रहे हैं. इस का मतलब है कि उन को रोज पराजय की नईनई खबरें मिल रही हैं. ये इतने डरे हुए हैं कि इन्हें रोज सुबह एक नई घोषणा करनी पड़ रही है. लेकिन अब दिल्ली की जनता इन का खेल समझ गई है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि इन दिनों वे अपनी चुनावी सभाओं में दावा करते हैं कि ‘फिर आएंगे’ लेकिन अब जनता उन्हें बोलती है कि वे ‘फिर खाएंगे.

इस तरह नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर उड़ते हुए देश की राजनीति राजनीतिक दल और आम जनता के समक्ष क्या कर रहे हैं, वह रेखांकित करता है कि राजनीति कितने नीचे चली गई है. पद और सत्ता प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री पद पर बैठे नरेंद्र मोदी यह भूल जाते हैं कि इसे राजनीति और प्रधानमंत्री पद तारतार हो रहा है.

नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं से ‘आप दा’ वालों की पोल खोलने और केंद्र की उपलब्धियां गिनाने का आह्वान किया. उन्होंने ‘आप’ पर पूर्वांचल के लोगों को दिल्ली से बाहर निकालने की साजिश रचने का आरोप लगाया और दावा किया कि दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी में उन के लिए नफरत भरी हुई है. पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहने के लिए दिल्ली सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि शराब उपलब्ध है, लेकिन पानी उपलब्ध नहीं है.

नरेंद्र मोदी के मुताबिक, भाजपा यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अभियान चलाएगी कि यहां सत्ता में आने पर हर किसी तक पीने का पानी पहुंचे. उन्होंने लोगों के बिजली बिलों में वृद्धि के लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराया. अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा
कि ‘शीशमहल’ आप के झूठ और छल का जीताजागता उदाहरण है.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने यमुना नदी को साफ करने का वादा किया था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अब कह रहे हैं कि यमुना को साफ करने के लिए वोट नहीं मिलते. आप गरीबों के लिए घर बनाने के अपने वादे को पूरा करने में भी विफल रही, जबकि केंद्र ने उन के लिए हजारों घर बनाए हैं. भाजपा अपने बूथ कार्यकर्ताओं के बल पर भारी जीत दर्ज करेगी और लोग, विशेषकर महिलाएं उस के अभियान की अगुआई कर रही हैं. कांग्रेस अकसर झूठे वादे करती है और दावा किया कि ‘आप’ इस मामले में मुख्य विपक्षी पार्टी से काफी आगे निकल गई है. कांग्रेस में बरबादी व बुराइयां आने में सात दशक लग गए. इन में तो 7 माह में कांग्रेस की सारी बुराइयां आ गईं और अब तो पिछले 9 साल में इन्होंने उन बुराइयों को भी दोगुना कर दिया है.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए हैं मगर उन्होंने हमेशा विपक्ष का माहौल उड़ाया है. इस का एक बड़ा उदाहरण विपक्षी पार्टियों के गठबंधन के नाम को ‘इंडी’ पुकाराना भी शामिल हैं.

सम्मानजनक इंडिया कहने में क्या उन्हें गुरेज है, यह देश की जनता को समझना चाहिए. और अब विधानसभा चुनाव में ‘आप’ पार्टी को ‘आप दा’ कहना, सीधासीधा नरेंद्र मोदी के द्वारा राजनीति को गंदी राजनीति में बदलने का एक उदाहरण है.

पौलिटिकल राउंडअप: कुमारी शैलजा को कमान

साथ ही, प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाने के साथसाथ विधानसभा चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है. विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में इन दोनों नेताओं का रोल अहम होगा.

कन्हैया को क्लीनचिट

दिल्ली. फरवरी, 2016 में दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में संसद पर हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ एक कार्यक्रम हुआ था जिस में जेएनयू छात्र संघ के तब के अध्यक्ष और आज के नेता कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया गया था.

अब दिल्ली की आम आदमी सरकार ने कन्हैया कुमार और 9 दूसरे लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने की दिल्ली पुलिस को इजाजत नहीं दी है. सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा है कि पुलिस ने जो सुबूत पेश किया है, उस के मुताबिक कन्हैया कुमार और दूसरों पर देशद्रोह का मामला नहीं बनता.

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अगर मुकदमा चलता तो भी पुलिस गुनाह साबित नहीं कर पाती, पर अदालतों में हाजिरी के समय कन्हैया कुमार के साथ मारपीट का मौका भाजपाई वकीलों को जरूर मिल जाता.

माया का पुराना राग

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं जिस की मायावती ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. वे अपनी बहुजन समाज पार्टी को मजबूत बनाने के लिए एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग का सहारा ले रही हैं, इसीलिए उन्होंने 5 सितंबर को मुसलिम मुनकाद अली, दलित बीआर अंबेडकर और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरएस कुशवाहा को स्टेट कोऔर्डिनेटर बनाया है.

इस बारे में पार्टी के एक बड़े नेता ने बताया, ‘हम गैरयादव और गैरलोध ओबीसी वोटर को पार्टी में वापस लाने का प्रयास करेंगे. हम ने महसूस किया कि भले ही हम ने लोकसभा चुनाव सपा के साथ लड़ा लेकिन ओबीसी और दलितों का एक समूह हम से दूर हो गया है.’ मायावती अब पूरी तरह फुस पटाखा हो चुकी हैं.

लोकतंत्र है तो दिखाए सरकार

श्रीनगर. जब से जम्मूकश्मीर का बंटवारा हुआ है और वहां से आर्टिकल 370 को हटाया गया है, तब से केंद्र सरकार ने हालात के सामान्य होने का दावा किया है, लेकिन 9 सितंबर, 2019 को जम्मूकश्मीर पौलिटिकल मूवमैंट (जेकेपीएम) के प्रमुख शाहिद खान ने भारत सरकार से कहा कि अगर देश में लोकतंत्र है तो वह दुनिया को दिखना भी तो चाहिए.

शाहिद खान ने केंद्र सरकार को लपेटते हुए कहा कि कश्मीर को समाधान का हिस्सा होना चाहिए, समस्या का नहीं, लेकिन पता नहीं क्यों, दुनिया कश्मीर को समस्या की तरह देखती है. वे मानते हैं कि घाटी के नौजवान एनर्जी और विचारों से भरे हुए हैं, लेकिन दुनिया उन्हें अलग नजरिए से देख रही है. पूरा कश्मीर आज कर्फ्यू की गिरफ्त में है. जो लोग प्लौट खरीदने के ख्वाब देख रहे थे वही नजर नहीं आ रहे.

उर्मिला का विलाप

मुंबई. कभी फिल्मकार रामगोपाल वर्मा की चहेती हीरोइन रही उर्मिला मातोंडकर ने इन लोकसभा चुनाव से पहले बड़े जोरशोर के साथ कांग्रेस में ऐंट्री मारी थी और मुंबई उत्तर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, पर उन्हें भाजपा नेता गोपाल शेट्टी से करारी शिकस्त मिली थी.

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अब उर्मिला मातोंडकर का कांग्रेस से मोह भंग हो गया है और उन्होंने इस पार्टी से कन्नी काट ली है. 10 सितंबर को कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए उन्होंने कहा कि मुंबई कांग्रेस बड़े लक्ष्यों पर ध्यान देने की जगह उन का इस्तेमाल कर राजनीति कर रही है.

आंध्र में सियासी बवाल

हैदराबाद. पिछले लोकसभा चुनाव में सभी बड़े विपक्षी दलों को एकसाथ लाने की कोशिश करने वाले चंद्रबाबू नायडू अब अपने प्रदेश में मुसीबत में हैं.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके चंद्रबाबू नायडू 11 सितंबर को पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ गुंटूर जिले में सरकार के खिलाफ रैली करने वाले थे, जिस की उन्हें इजाजत नहीं मिली तो उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया. इस के बाद मौजूदा वाईएसआरसीपी सरकार द्वारा उन्हें और उन के बेटे नर लोकेश को उन के घर में ही नजरबंद कर दिया गया.

इस के बाद नरसरावपेटा, सत्तेनापल्ले पलनाडू और गुराजला में धारा 144 लागू कर दी गई. बाद में पुलिस ने टीडीपी के कई और नेताओं को भी नजरबंद कर दिया.

सुशील ने बताया अपना ‘कैप्टन’

पटना. बिहार में जैसेजैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, वैसेवैसे वहां सियासी उठापटक तेज हो गई है. वहां यह खबर भी सियासी गलियारों में तैर रही है कि प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री भाजपा से होगा, जिस से जनता दल (यूनाइटेड) वालों की भौंहें तन गई हैं.

लेकिन विवाद ज्यादा न बढ़े, इसी के मद्देनजर भाजपाई और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए के ‘कैप्टन’ हैं और आने वाले विधानसभा चुनाव तक वे ही ‘कैप्टन’ बने रहेंगे. भाजपा की राजनीति में जो कहा जाता है, वह किया नहीं जाता.

संभाजी भिड़े का एकादशी राग

पुणे. जब से इसरो का चंद्रयान 2 अभियान सुर्खियों में छाया है तब से लोगों ने इस के पूरी तरह कामयाब न होने पर तरहतरह की बातें बनाई हैं. इन्हीं में से एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व कार्यकर्ता संभाजी भिड़े ने अपना अलग ही राग छेड़ा कि अमेरिका को चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान भेजने में तब कामयाबी मिली जब उस ने इस के लिए एकादशी की तिथि चुनी.

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9 सितंबर को शोलापुर में संभाजी भिड़े ने कहा, ‘अमेरिका ने 38 बार चांद पर अंतरिक्ष यान भेजने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा. इस के बाद कुछ अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि क्यों न अमेरिकी कालगणना की जगह भारतीय कालगणना का इस्तेमाल किया जाए. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस सुझाव पर अमल किया और 39वीं बार एकादशी के दिन अंतरिक्ष यान भेजा और वे कामयाब रहे.’ हमारे वैज्ञानिक भी पाखंडों से परे नहीं सोचते तो संभाजी भिड़े का क्या कहना.

कमल हासन का हमला

चेन्नई. भाजपा नेता और गृह मंत्री अमित शाह ने 14 सितंबर ‘हिंदी दिवस’ पर ‘एक राष्ट्र, एक भाषा’ की पैरवी की थी. यह बात अभिनेता से नेता बने कमल हासन को नागवार गुजरी और उन्होंने एक वीडियो जारी कर अमित शाह पर हमला करते हुए कहा कि भारत 1950 में ‘अनेकता में एकता’ के वादे के साथ गणतंत्र बना था और अब कोई ‘शाह, सुलतान या सम्राट’ इस से इनकार नहीं कर सकता है.

अपने वीडियो में कमल हासन ने कहा कि इस बार एक बार फिर भाषा के लिए आंदोलन होगा और यह जल्लीकट्टू आंदोलन से भी बड़ा होगा.

ममता की चिंता

कोलकाता. भारत में भाजपा के राज से हलकान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 15 सितंबर को कहा कि देश ‘घोर आपातकाल’ से गुजर रहा है. उन्होंने लोगों से संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों व स्वतंत्रता की रक्षा करने की अपील की.

पिछले लोकसभा चुनाव प्रचार में भाजपा से लोहा लेने वाली तृणमूल की प्रमुख ममता बनर्जी अपने दम पर केंद्र सरकार की तानाशाही के खिलाफ जम कर लगी हैं.

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‘प्रधानमंत्री आवास योजना’: गरीबों के लिए बनी मुसीबत

गरीबों को लगा था कि उन का पक्का मकान बनाने का सपना पूरा हो जाएगा. पर सरकार का एक कार्यकाल खत्म होतेहोते योजना की कछुआ चाल, नेताओं और अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया कि साल 2022 तक देश के सभी गरीबों को पक्का मकान देने का मोदी सरकार का वादा पूरा होने वाला नहीं है.

देश में गरीबों को मकान देने के लिए पहले ‘इंदिरा आवास योजना’ चलती थी, जिस का साल 2015 में नाम बदल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ रख दिया था और ऐलान किया था कि साल 2022 तक सभी के सिर पर छत होगी. इस के लिए यह भी योजना बनी थी कि सरकारी विभागों से घर बना कर देने के बजाय खुद जरूरतमंद के खाते में पैसे जमा कराया जाए.

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‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत गांवदेहात के इलाकों में एक लाख, 60 हजार की रकम और शहरी इलाकों में 2 लाख, 40 हजार की रकम सीधे जरूरतमंद के बैंक खाते में जमा करने का काम किया गया था. इस रकम से एक कमरा, एक रसोई, एक स्टोररूम का नक्शा भी दिया गया था.

पर हुआ यह कि जिन लोगों के पास पहले से मकान थे, उन्हें रकम मिल गई और जो लोग बिना छत के प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना आशियाना बना कर रह रहे थे, उन्हें पक्का मकान देने के बजाय झुनझुना पकड़ा दिया गया.

ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव और नगरपालिकाओं की अध्यक्ष, सीएमओ की मिलीभगत से जरूरतमंदों से 10,000 से 20,000 रुपए ले कर योजना की रकम की बंदरबांट कुछ इस तरह हुई कि बिना नक्शे और बिना सुपरविजन के योजना की रकम खर्च कर ली गई.

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत साल 2022 तक देश में सभी लोगों को छत देने की बात कही जा रही है. इस के लिए लक्ष्य और उस के पूरा होने के आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत देख कर आप दंग रह जाएंगे.

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मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की नगरपरिषद साईंखेड़ा के वार्ड नंबर 14 के लाभार्थी हरिगोपाल श्रीवास्तव की दास्तान ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ की असलियत को उजागर करती है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव को मई, 2018 में पक्का घर बनाने के लिए पहली किस्त के रूप में एक लाख की रकम मिली थी. उन्होंने अपने कच्चा मकान तोड़ कर जून महीने में ही पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया था. एक महीने में एक लाख रुपए खर्च कर छत तक का काम पूरा हो गया था, लेकिन दूसरी किस्त की रकम उन्हें नहीं दी गई.

हरिगोपाल श्रीवास्तव के परिवार के लोग पूरी बरसात, ठंड और भीषण गरमी में प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन एक साल के बाद भी उन्हें दूसरी किस्त की रकम नहीं मिली है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव ने कई बार इस की शिकायत सरकारी अफसरों के साथसाथ चुने हुए जनप्रतिनिधियों से की, मगर कोई समाधान नहीं निकला. परेशान हो कर जब उन्होंने एसडीएम, गाडरवारा को अनशन पर बैठने की अर्जी दी, तो उन्हें इस की भी इजाजत नहीं दी गई.

नगरपरिषद के अधिकारी विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का बहाना बना कर इसी तरह अनेक लोगों को दूसरी किस्त की रकम देने में आनाकानी कर रहे हैं. वोट का सौदा करने वाली सरकार के नुमाइंदे भी अब चुप्पी साध कर बैठे हैं.

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खिरका टोला वार्ड नंबर 8 के दीपक कुशवाहा और बासुदेव अहिरवार बताते हैं कि उन्हें भी जून, 2018 में पहली किस्त की रकम मिल चुकी है, पर दूसरी किस्त की रकम के लिए नगरपरिषद के अधिकारी और पार्षद और रुपयों की मांग कर रहे हैं. पीडि़त परिवार के छोटेछोटे बच्चों ने पूरी गरमी खुले आसमान के नीचे बिताई है और अब बरसात का मौसम है. ऐसे में उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं.

जनता की सेवा के लिए चुने गए पार्षद दूसरी किस्त दिलाने के लिए दलाली कर लाभार्थियों से 10,000 से ले कर 20,000 रुपए की रकम खुलेआम मांग रहे हैं. जो लोग पैसे दे देते हैं, उन्हें दूसरी किस्त का पैसा आसानी से मिल जाता है.

इन की बल्लेबल्ले

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का फायदा किसी को मिला हो या न मिला हो, पर ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव की दुकानदारी खूब चल निकली है.

सरपंच सचिव ने गरीबों को रकम दिलाने के एवज में पैसे वसूल तो किए ही हैं, साथ ही मिल कर गांवगांव में अपनी ईंट, गिट्टी, लोहा, सीमेंट की दुकानें खोल ली हैं. अगर इन की दुकान से सामान खरीदा तो समय पर किस्त मिल जाती है, नहीं तो सालों दूसरी किस्त की रकम नहीं मिलती है. कई सरपंचों ने नेताओं के इशारों पर गांव की रेत खदानों पर गैरकानूनी कब्जा कर के करोड़ों रुपए की रेत साफ कर दी है. गांवदेहात के इलाकों में 500 रुपए प्रति ट्रौली मिलने वाली रेत आज 2,000 रुपए प्रति ट्रौली मिल रही है.

मध्य प्रदेश में सरपंच सचिव द्वारा किए भ्रष्टाचार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नरसिंहपुर जिले की हीरापुर ग्राम पंचायत के सचिव भागचंद कौरव के घर आयकर विभाग द्वारा जून, 2019 में मारे गए छापे के दौरान आमदनी से ज्यादा 2 करोड़ रुपए की जायदाद का खुलासा हुआ है.

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गांवदेहात के लोग बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के आने से घरघर पक्के मकान बनने से गांव की नदियों की रेत बहुत महंगी हो गई है. जिला प्रशासन के अधिकारी ट्रैक्टरट्रौली जब्त कर उन्हें परेशान करते हैं, जबकि रेत से भरे भारीभरकम डंपर रातदिन शहरों के लिए गैरकानूनी रेत सप्लाई कर रहे हैं. योजना का सुपरविजन कर रहे इंजीनियर मकान के वैल्युएशन के नाम पर लोगों से 10,000 रुपए की वसूली कर रहे हैं.

दूसरा पहलू यह भी

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ में अकेले नेता, अधिकारी, कर्मचारी ही गड़बड़झाला नहीं कर रहे हैं, बल्कि जनता भी पीछे नहीं है. सरकार मकान बनाने के लिए गरीबों के खाते में पैसे डाल रही है, लेकिन लोग पैसा ले कर उसे दूसरे कामों में खर्च कर लेते हैं. किसी ने उस पैसे से मोटरसाइकिल खरीद ली है तो कोई दूसरी पत्नी ले आया. मकान के नाम पर कहीं पत्थरों का टीला है तो कहीं झोंपडि़यां. किसी ने पैसे बीमारी पर खर्च कर लिए तो कोई शराब और जुए में उड़ा गया.

बांसखेड़ा गांव के मिहीलाल का घर ऐसा है जिन्हें पहली किस्त नवंबर, 2017 में मिली थी और 10 दिन के अंदर ही सारे पैसे निकाल लिए गए. घर बनाने के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखी गई.

अब सरकारी अधिकारी मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं तो उन का कहना है कि पैसे रखे हैं, लेकिन ईंटभट्ठों व रेत खनन पर रोक होने के चलते वे मकान नहीं बना पा रहे हैं.

होशंगाबाद जिले के बारछी गांव के चंदन नौरिया के 3 बेटे हैं. तीनों को अलगअलग ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा मिल गया. 2 बेटों के पैसों से मकान बना लिया तो तीसरे बेटे के पैसे में मोटरसाइकिल और दूसरा सामान खरीद लिया, जबकि गांव में कटिंगदाढ़ी बना कर अपनी आजीविका चलाने वाले कमलेश को ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा नहीं मिला है. वे खपरैल के कच्चे मकान में अपने बूढ़े मांबाप समेत 7 सदस्यों के परिवार के साथ रह रहे हैं.

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इसी तरह रायसेन जिले के पटना गांव के अरविंद ने अपना पक्का मकान बनाने के लिए पुराने खपरैल के मकान को तोड़ दिया था. यह सोच कर वे किराए के मकान में रहने लगे थे कि 4 महीने बाद अपने मकान में वापस रहने लगेंगे, लेकिन उन्हें भी सालभर बीत जाने के बाद दूसरी किस्त का पैसा नहीं मिला है और उन का पैसा किराए के मकान में खर्च हो रहा है.

लोगों का मानना है कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के जमीनी हकीकत पर सही न उतरने से प्रधानमंत्री की यह योजना कामयाब होती नजर नहीं आ रही है. अगर सरकार एक से नक्शे और डिजाइन के मुताबिक गरीबों को मकान तैयार कर के देती तो उन्हें पक्के मकान भी मिल जाते और सरकारी पैसे की बंदरबांट भी न होती.

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