Narendra Modi : भारत ही क्या सारी दुनिया में यह बात मशहूर है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरे दोस्ताना संबंध हैं. ऐसे संबंध कि वे एकदूसरे का सम्मान करते हैं और नरेंद्र मोदी का तो वे कहना मानते हैं. शायद यही वजह है कि नरेंद्र मोदी जिस तरह काम करते हैं, वैसा ही काम डोनाल्ड ट्रंप भी करते दिखाई दे रहे हैं.
एक और बड़ा उदाहरण सामने है. जैसे नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ते रहे हैं, बहुतकुछ वैसी ही शैली डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनाई. इस से यह संदेश और भी मजबूत हो गया कि दोनों ही नेताओं में बड़ी अच्छी ट्यूनिंग है और वे एकदूसरे को सम झते हैं, मगर जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही एकदम से भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाया है, वह बताता है कि दोनों के ही संबंध कितने छत्तीसी हैं.
अमेरिका में अवैध प्रवासियों का निर्वासन एक खास मुद्दा बन कर सामने है. एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका में तकरीबन 11 मिलियन अवैध प्रवासी रहते हैं, जिन में से ज्यादातर मैक्सिको और दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों से आए हैं. इसी के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त नीति अपनाई है.
ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए कई सख्त कदम उठाए हैं, जिन में सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए डाटाबेस का उपयोग करना और अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए अधिक अधिकारियों की नियुक्ति करना शामिल है.
अब 205 भारतीय नागरिकों को ले कर सी-17 विमान सैन एंटोनियो, टैक्सास से भारत आ गया है, जिस से देश में सकते के हालात हैं. हर बात में प्रतिक्रिया देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर तो मानो खामोश हैं.
दरअसल, अमेरिकी सरकार के इस ऐक्शन का नतीजा यह होगा कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे. लेकिन इस ऐक्शन का विरोध भी हो रहा है, खासकर उन लोगों द्वारा, जो अवैध प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं. उन का मानना है कि अवैध प्रवासी भी इनसान हैं और उन्हें भी सम्मान और अधिकार मिलने चाहिए.
अमेरिकी सरकार की अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने की कार्यवाही एक जटिल मुद्दा है, जिस में कई पक्ष और विपक्ष हैं, जबकि यह कार्यवाही अवैध प्रवास को रोकने के लिए एक कदम हो सकती है, लेकिन इस का नतीजा यह भी हो सकता है कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे और उन के अधिकारों का उल्लंघन होगा.
भारत की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर मिलीजुली बनी हुई है. एक ओर भारत सरकार ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर अमेरिकी सरकार के साथ सहयोग करने की बात कही है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने यह कह कर इस कदम की आलोचना की है कि यह अवैध प्रवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
इस मुद्दे पर आम लोगों की राय भी मिलीजुली है. कुछ लोगों का मानना है कि अवैध प्रवासी भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं, जबकि दूसरे लोगों का मानना है कि उन्हें इनसानियत के नजरिए से देखा जाना चाहिए और उन्हें वापस भेजने से पहले उन के मामलों की समीक्षा की जानी चाहिए.
ऐसा लगता कि इस मामले में अमेरिका भी चीन के रास्ते पर चल रहा है. दोनों देशों की आव्रजन नीतियां और उन के कार्यान्वयन में काफी फर्क है. अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए सख्त नीतियों का प्रस्ताव किया है, जबकि चीन में आव्रजन नीतियां ज्यादा सख्त और प्रतिबंधात्मक हैं. चीन में अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए विशेष कानून और नियम हैं.
हालांकि, अमेरिका और चीन के माली, राजनीतिक और सामाजिक हालात अलगअलग हैं, जो उन की आव्रजन नीतियों पर असर करती हैं. मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका लोकतंत्र का हिमायती है, मानवाधिकार का प्रहरी माना जाता है और वह ऐसा कदम उठाएगा, यह कोई सोच भी नहीं सकता था.
मगर अब जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे मामले में कई कदम उठाने चाहिए. सब से पहले उन्हें अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए और अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर एक सम झौता करना चाहिए, जो भारतीय नागरिकों के हितों की हिफाजत करे.
इस के अलावा भारत सरकार को अवैध प्रवासियों के परिवारों को मदद देनी चाहिए, जो भारत में रहते हैं. सरकार को उन्हें माली मदद, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं देनी चाहिए.
सरकार को अवैध प्रवास रोकने के लिए भी कदम उठाने चाहिए. सीमा सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए तकनीकी उपायों का उपयोग करना चाहिए.
यही नहीं, सरकार को अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना चाहिए. उन्हें लोगों को अवैध प्रवास के खतरों और इस के बुरे नतीजों के बारे में बताना चाहिए. इन कदमों से सरकार अवैध प्रवासियों के मुद्दे का समाधान कर सकती है और भारतीय नागरिकों के हितों की हिफाजत कर सकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संबंधों में पिछले कुछ समय में काफी उतारचढ़ाव देखा गया है. ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी को बंद करने की घोषणा की थी, जिस से भारत को मिलने वाली माली मदद पर असर पड़ सकता है.