Fraud : झांसे‌ के‌ फांसे से बचना

Fraud : मध्य प्रदेश के कटनी थाना क्षेत्र में राजा रसगुल्ला की गली में सुबहसवेरे 60 साल की एक बूढ़ी औरत चंद्रकला जैन से जेवर ठग लिए. बाबा के वेश में पहुंचे ठगों ने उन्हें अपने जाल में फंसाया और फिर उन के घर की परेशानियों का समाधान करने के नाम पर जेवर उतरवा कर चंपत हो गए.

ठगी का शिकार हुईं चंद्रकला जैन द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई. पुलिस आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.

कोतवाली पानी की टंकी के पास रहने वाली चंद्रकला जैन ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि वे सुबह पैदल राजा रसगुल्ला की गली से हनुमान ताल की तरफ जा रही थीं. वे बखरी वाले रोड पर पहुंची थीं कि तभी पीछे से एक आदमी ने उन्हें आवाज दी. आवाज देने वाला बाबा के वेश में था. उस ने आदमी ने उन से चश्मे की दुकान पूछी फिर बातचीत करते हुए कहा कि वह हरिद्वार से आया है. उस ने उन्हें दान देने के लिए कहा और फिर बातों में उलझा कर घर में कई परेशानियां होने और उन का समाधान करने का भरोसा दिलाते हुए सोने की चेन व कान टौप्स उतरवा कर पर्स में रखवाए. उस के बाद ठग ने पर्स अपने साथी को दिलवाया और चंद्रकला जैन से कहा कि वे 10 कदम आगे जाएं और लौट कर अपना पर्स उठाएं व घर जा कर पर्स पर दूध चढ़ाएं तो उन की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

उस आदमी की बातों में आ कर चंद्रकला जैन 10 कदम आगे चलीं और पीछे मुड़ कर देखा तो दोनों ठग गायब थे.

सब से खास बात यह है कि हिंदू समाज में अगर कोई गेरुआ कपड़े पहन लेता है, दाढ़ी बड़ा लेता है, तो लोग उस की बात को पत्थर की लकीर समझने लगते हैं. इस तरह गलती हमारी खुद की है. हमें यह समझना चाहिए कि क्या सच है और क्या गलत. क्या फरेब है और क्या हकीकत. जब तक हम में यह समझ नहीं होगी, तब तक पुलिस और सरकार भी कुछ नहीं कर सकती. लिहाजा, हम ठगी के शिकार होते रहेंगे.

ऐसे करें बचाव

-लोगों खासकर बूढ़ी औरतों को अनजान लोगों से सावधान रहने की जरूरत है.

-बूढ़ों को अपने आसपास के माहौल को जानने की कोशिश करनी चाहिए. उन्हें जागरूक होना चाहिए कि आज का समय ठगी और फरेब का है और किसी की बातों में नहीं आना चाहिए.

-बूढ़ी औरतों को अपने परिवार और जानपहचान वालो को अपनी गतिविधियों के बारे में सूचना देते रहना चाहिए.

-बूढ़ी औरतों को अपने जेवर और पैसे सुरक्षित रखने चाहिए.

-बूढ़ों को सामाजिक समर्थन प्रदान करने के लिए सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए.

-ठगी के बारे में जागरूकता अभियान चलाएं, ताकि लोगों को इस के बारे में जानकारी मिल सके.

-पुलिस और प्रशासन के साथ सहयोग कर के ठगी की घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाएं.

-बूढ़ी औरतों के लिए सुरक्षा सेवाएं प्रदान करने के लिए सामुदायिक संगठनों को सामने आना चाहिए.

-ठगी की घटनाओं की जांच करने के लिए पुलिस को सूझबूझ के साथ कार्यवाही करनी चाहिए.

-ठगों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को सख्त निर्देश देना चाहिए.

ठगी होने की खास वजह लालच है. जैसे ही कोई रुपए या सोनाचांदी दोगुना करने का भरोसा देता है, लोग उस के पीछे घूमने लगते हैं. लोगों को यह समझना चाहिए कि अगर उस के पास कुछ चमत्कार है, तो वह खुद गरीब क्यों है.

Honey Trap : सोशल मीडिया पर डाक्टर को ठगा

Honey Trap : आरोपियों ने अपने अपराध को अंजाम देने के लिए एक शातिर योजना बनाई थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर डाक्टर को अपना निशाना बनाया और उन्हें अपने जाल में फंसाया.

आरोपियों ने डाक्टर को यह यकीन दिलाया कि वे दिल्ली पुलिस में हैं और उन्हें अपनी सेवाओं के लिए पैसे देने होंगे. डाक्टर ने आरोपियों की बातों पर यकीन कर लिया और उन्हें तकरीबन 9 लाख रुपए दे दिए. पर जब डाक्टर को यह एहसास हुआ कि वे ठगी के शिकार हो गए हैं, तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने आरोपियों की तलाश शुरू की और आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

आरोपियों की पहचान तिलक नगर के बाशिंदे 42 साल के नीरज त्यागी उर्फ धीरज उर्फ धीरू, कराला के रहने वाले 32 साल के आशीष माथुर और खरखौदा, हरियाणा के रहने वाले 30 साल के दीपक उर्फ साजन के रूप में हुई थी.

पुलिस ने आरोपियों के पास से हैड कांस्टेबल की पूरी वरदी और दिल्ली पुलिस के 3 पहचानपत्र, एक कार और 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

आरोपी नीरज त्यागी और दीपक उर्फ साजन के खिलाफ पहले से ही बिंदापुर थाने में प्रेमजाल में फंसा कर वसूली करने का मामला दर्ज है.

हनी ट्रैप की शुरुआत का सटीक समय नहीं बताया जा सकता है, क्योंकि यह एक तरह की धोखाधड़ी है, जो अलगअलग रूप में और अलगअलग समयों में हुई है.

हालांकि, यह कहा जा सकता है कि हनी ट्रैप की शुरुआत प्राचीनकाल में हुई थी, जब लोगों को औरतों के बहाने से लुभाने और उन से फायदा उठाने के लिए अलगअलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था.

दरअसल, आधुनिक समय में हनी ट्रैप की शुरुआत 60 के दशक में हुई थी, जब अमेरिकी और सोवियत जासूसों ने अपने फायदे की जानकारी हासिल करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करना शुरू किया था.

इंटरनैट और सोशल मीडिया के आने के साथ हनी ट्रैप की शुरुआत और भी आसान हो गई है और अब यह एक आम तरह की धोखाधड़ी बन गई है, जो दुनियाभर के देशों में होती है.

कुछ दिलचस्प बातें

* 60 के दशक में अमेरिकी और सोवियत जासूसों ने हनी ट्रैप का इस्तेमाल करना शुरू किया था.

* 80 के दशक में हनी ट्रैप का इस्तेमाल व्यावसायिक जासूसी में किया जाने लगा था.

* 90 के दशक में इंटरनैट के आने के साथ हनी ट्रैप औनलाइन हो गई और यह और भी आसान हो गई.

हनी ट्रैप की कुछ घटनाएं

मध्य प्रदेश के इंदौर में हनी

ट्रैप का एक मामला सामने आया, जिस में एक औरत ने कई मर्दों को अपने जाल में फंसा कर उन से पैसे ऐंठे. इस मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था.

इसी तरह दिल्ली में भी हनी ट्रैप का एक मामला सामने आया था, जिस में एक औरत ने एक मर्द को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उसे पैसे देने के लिए मजबूर किया था. इस मामले में पुलिस ने आरोपी औरत को गिरफ्तार किया था.

मुंबई में हनी ट्रैप का एक मामला सामने आया, जिस में एक औरत ने कई मर्दों को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उन से पैसे ऐंठे. इस मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया.

हनी ट्रैप के प्रकार

औनलाइन हनी ट्रैप : औनलाइन हनी ट्रैप में आरोपी सोशल मीडिया या औनलाइन डेटिंग प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर के पीडि़त को अपने प्रेमजाल में फंसाता है.

औफलाइन हनी ट्रैप : औफलाइन हनी ट्रैप में आरोपी किसी पीडि़त से निजीतौर पर मिलता है और उसे अपने जाल में फंसाता है.

कौरपोरेट हनी ट्रैप : कौरपोरेट हनी ट्रैप में आरोपी किसी कंपनी के शख्स को अपने जाल में फंसाता है और उस से कारोबारी जानकारी हासिल करता है.

हनी ट्रैप के लक्षण

* अगर कोई किसी अनजान शख्स से अचानक मिलता है और उस के साथ बहुत जल्दी गहरे संबंध बनाने की कोशिश करता है, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

* अगर कोई किसी के प्रति बहुत ज्यादा प्यार और आकर्षण दिखाता है, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

* यदि कोई किसी की निजी जानकारी मांगता है, जैसे कि पता, फोन नंबर या बैंक खाते से जुड़ी जानकारी, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

बचाव के कानूनी उपाय

* अगर आप हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं, तो तुरंत ही पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करें.

* हनी ट्रैप से संबंधित कानूनी सलाह लेने के लिए किसी माहिर वकील से बात करें.

* आप औनलाइन हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं, तो साइबर सैल में शिकायत दर्ज करें.

हनी ट्रैप में लड़कियां और लड़के दोनों ही शामिल हो सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर मामलों में लड़कियां ही हनी ट्रैप के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर बार ऐसा ही हो. कुछ मामलों में लड़के भी हनी ट्रैप में शामिल हो सकते हैं.

हनी ट्रैप में शामिल होने वाले के लिए उस के लिंग या उम्र की कोई अहमियत नहीं है. यह एक ऐसी धोखाधड़ी है, जिस में कोई भी शामिल हो सकता है और किसी को भी अपना शिकार बना सकता है. ऐसे शातिर लोग अमीरों को फांसते हैं. वे लड़की को आगे रख कर अपने शिकार को गुमराह करते हैं और उन से फायदा उठाते हैं.

साइबर क्राइम : ‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी

Crime News in Hindi: दिल्ली के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गौरव अरोड़ा नोएडा की एक रियल एस्टेट कंपनी में बढ़िया नौकरी करते थे. लेकिन पिछले 2 सालों से वह काफी परेशान थे. इस की वजह यह थी कि जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई, तब से रियल एस्टेट के क्षेत्र में मंदी आ गई है. पहले जहां प्रौपर्टी की कीमतें आसमान छू रही थीं, अब वह स्थिर हो चुकी हैं. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से इनवैस्टर भी अब प्रौपर्टी में इनवैस्ट करने से कतरा रहे हैं. इस का सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन की रोजीरोटी रियल एस्टेट के धंधे से चल रही थी. गौरव को हर महीने अपनी कंपनी का कुछ टारगेट पूरा करना होता था. पहले तो वह उस टारगेट को आसानी से पूरा कर लेता था, लेकिन प्रौपर्टी के क्षेत्र में आई गिरावट से अब बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा था.

बच्चों की पढ़ाई के खर्च के अलावा उसे घर के रोजाना के खर्च पूरे करने में खासी परेशानी हो रही थी. एक दिन बौस ने उसे अपनी केबिन में बुला कर पूछा, ‘‘गौरव, यहां नौकरी के अलावा तुम और कोई काम करते हो?’’

‘‘नहीं सर, समय ही नहीं मिलता.’’ गौरव ने कहा.

‘‘देखो, मैं तुम्हें एक काम बताता हूं, जिसे तुम कहीं भी और दिन में कभी भी कर सकते हो. काम इतना आसान है कि तुम्हारी पत्नी या बच्चे भी घर बैठे कर कर सकते हैं.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, ऐसा क्या काम है, जो कोई भी कर सकता है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘नोएडा की ही एक कंपनी है सोशल ट्रेड. इस कंपनी के अलगअलग पैकेज हैं. आप जो पैकेज लेंगे, कंपनी उसी के अनुसार आप को लाइक करने को देगी. हर लाइक का 5 रुपए मिलता है.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ समझा नहीं.’’ गौरव ने कहा.

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से समझाता हूं.’’ कह कर बौस ने एक खाली पेपर निकाला और उस पर समझाने लगे, ‘‘देखो, कंपनी के 4 तरह के प्लान हैं. पहला है एसटीपी-10, दूसरा है एसटीपी-20, तीसरा है एसटीपी-50 और चौथा है एसटीपी-100.

‘‘एसटीपी-10 का पैकेज 5750 रुपए का है. इस में तुम्हें रोजाना 10 लाइक करनी होंगी. एसटीपी-20 का पैकेज 11500 रुपए का है. इस में तुम को रोजाना 20 लाइक करने को मिलेंगे. एसटीपी-50 के पैकेज में 28,750 रुपए जमा कर के 50 लाइक प्रतिदिन करने को मिलेंगे और एसटीपी-100 के पैकेज में 57,500 रुपए जमा कर के 125 लाइक तुम्हारी आईडी पर करने को आएंगे.

‘‘पैकेज की इस धनराशि में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल है. यह लाइक शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़ कर एक साल तक आएंगे. हर लाइक के 5 रुपए मिलेंगे. तुम्हें जो इनकम होगी, उस में से सरकार के नियम के अनुसार टैक्स भी काटा जाएगा.‘‘तुम्हें फायदे की एक बात बताता हूं. तुम जिस पैकेज में जौइन करोगे, 21 दिनों के अंदर उसी पैकेज में 2 और लोगों को जौइन करा दिया तो तुम्हारी आईडी बूस्टर हो जाएगी. यानी उस आईडी पर दोगुने लाइक आएंगे. अगर और ज्यादा कमाई करनी है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जौइन कराओ, इस से डाइरेक्ट इनकम के अलावा बाइनरी इनकम भी मिलेगी.’’

बौस ने आगे बताया, ‘‘कंपनी हंडरेड परसेंट लीगल है. बिना किसी डर के तुम यहां काम कर के अच्छी कमाई कर सकते हो. यकीन न हो तो तुम मेरी बैंक पासबुक देख सकते हो.’’ इतना कह कर बौस ने गौरव को अपनी पासबुक दिखाई.

गौरव ने पासबुक देखी तो सचमुच उस में कंपनी की तरफ से कई हजार रुपए आने की एंट्री थी. उसे यह स्कीम अच्छी लगी. उसे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है, जो घर पर कोई भी कर सकता है. उस ने बौस से कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जैसे ही पैसों का जुगाड़ हो जाएगा, वह काम शुरू कर देगा.

घर पहुंचने के बाद गौरव के दिमाग में बौस द्वारा दिखाया गया सोशल ट्रेड कंपनी का प्लान ही घूमता रहा. उस ने सोचा कि अगर वह 57,500 रुपए जमा कर देगा तो 625 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे. सब कटनेकटाने के बाद 1,33,594 रुपए मिलेंगे यानी एक साल में उस के पैसे दोगुने से अधिक हो जाएंगे.

गौरव ने इस बारे में पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि इस तरह की कई कंपनियां लोगों के पैसे ले कर भाग चुकी हैं. इन के चक्कर में न पड़ा जाए तो बेहतर है. वैसे आप की मरजी. गौरव ने पत्नी की सलाह को अनसुना कर दिया. सोचा कि इसे कंपनी के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए यह ऐसी बातें कर रही है. बहरहाल उस ने ठान लिया कि वह यह काम जरूर करेगा. अगले दिन उस के एक नजदीकी दोस्त ने भी सोशल ट्रेड के प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह खुद पिछले एक महीने से इस प्लान से अच्छी इनकम हासिल कर रहा है.

दोस्त ने गौरव से भी सोशल ट्रेड जौइन करने को कहा. गौरव को सोशल ट्रेड में काम करना ही था, इसलिए उस ने बौस के बजाय दोस्त के साथ जुड़ कर सोशल ट्रेड में काम करना उचित समझा.

गौरव के पास कुछ पैसे बैंक में थे, कुछ पैसे बैंक से लोन ले कर उस ने 1,15,000 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर 2 आईडी ले लीं. उस की आईडी के बाईं साइड में उस की एक और आईडी लग चुकी थी. अगर उस के दाईं साइड में 57,500 रुपए की एक आईडी और लग जाती तो उस की मुख्य आईडी पर बूस्टर लग सकता था.

इसलिए गौरव इस फिराक में था कि 57,500 रुपए की एक आईडी किस की लगवाई जाए. उस ने अपने बड़े भाई कपिल अरोड़ा को सोशल ट्रेड के प्लान की इनकम के बारे में बताया. लालच में कपिल भी तैयार हो गया और उस ने भी 25 जनवरी, 2017 को 57,500 रुपए जमा करा दिए.

कपिल अरोड़ा की आईडी लगते ही गौरव की मुख्य आईडी बूस्टर हो गई और उस पर 125 के बजाए 250 लाइक आने लगे, जिस से उसे रोजाना 1250 रुपए की इनकम होने लगी. गौरव ने पेमेंट मोड 15 दिन का रखा था. 23 जनवरी, 2017 को उसे पहला पेआउट 4800 रुपए का मिला. कपिल की आईडी लग जाने के बाद उसे अगला पेआउट इस से डबल आने की उम्मीद थी, पर अगले 15 दिनों बाद उस का पेआउट नहीं आया.

यह बात गौरव ने अपने उस दोस्त से कही, जिस ने उसे जौइन कराया था. दोस्त ने उसे बताया कि कंपनी में अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, इसलिए सभी के पेमेंट रुके हुए हैं. चिंता की कोई बात नहीं है, जो भी पेमेंट इकट्ठा होगा, वह सारा मिल जाएगा. यही नहीं, उस ने गौरव से कहा कि वह अपनी टीम बढ़ाए, जिस से इनकम बढ़ सके.

गौरव रोजाना अपनी आईडी पर आने वाले लाइक करता रहा. चूंकि उस का पेआउट नहीं आ रहा था, इसलिए उस ने और किसी को सोशल ट्रेड में जौइन नहीं कराया. उस का भाई कपिल भी अपनी आईडी पर आने वाले 125 लाइक रोजाना करता रहा. गौरव और कपिल कंपनी के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस भी गए.

उन की तरह अन्य सैकड़ों लोग वहां अपनी इसी समस्या को ले कर आजा रहे थे. सभी को यही बताया जा रहा था कि आईटी एक्सपर्ट सिस्टम को अपग्रेड करने में लगे हुए हैं. सोशल ट्रेड कंपनी से लाखों लोग जुड़े थे. उन में से अधिकांश के मन में इसी बात का संशय था कि पता नहीं कंपनी उन का रुका हुआ पेआउट देगी या नहीं. बहरहाल बड़े लीडर्स और कंपनी की ओर से परेशानहाल लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा था.

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सूरजपुर के रहने वाले दिनेश सिंह और पूर्वी दिल्ली के आजादनगर की रहने वाली पूजा गुप्ता ने भी दिसंबर, 2016 में अलगअलग 57,500 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर आईडी ली थीं. ये भी रोजाना अपनी आईडी पर 125 लाइक करते थे. जौइनिंग के एक महीना बाद भी इन को इन के किए गए लाइक का पैसा नहीं मिला तो इन्हें भी चिंता होने लगी. न तो इन्हें अपने अपलाइन से और न ही कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब मिल रहा था.

थकहार कर दिनेश सिंह ने 31 जनवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के थाना सूरजपुर में कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस की जांच एसआई मदनलाल को सौंपी गई. पेआउट न मिलने से असंतुष्ट कई लोगों ने पुलिस और जिला प्रशासन से शिकायतें करनी शुरू कर दी थीं. सोशल ट्रेड कंपनी के खिलाफ  ज्यादा शिकायतें मिलने पर पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया.

नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.

पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.

एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.

सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा.

बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.

बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो.

उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.

शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी.

कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.

सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया.

सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया.

सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.

बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.

अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.

बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया.

कारोबार बढ़ा तो कंपनी ने आगामी योजनाएं बनानी शुरू कीं. पहला कदम ईकौमर्स में रखना था. इस के जरिए वह जरूरत की हर चीज ग्राहकों को उपलब्ध कराना चाहता था. सोशल ट्रेड डौट बिज के बाद उस ने फ्री हब डौटकौम नाम की कंपनी  बनाई. ईकौमर्स के लिए उस ने इनमार्ट डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. इस के जरिए खरीदारी करने पर भी उस ने अतिरिक्त इनकम का प्रावधान रखा.

अभिनव जानता था कि भारत में करोड़ों लोग फेसबुक यूज करते हैं, जिस से मोटी कमाई फेसबुक के ओनर को होती है. फेसबुक की ही तरह भारतीय सोशल साइट बनाने का विचार उस के दिमाग में आया. इस बारे में उस ने अपनी आईटी टीम से विचारविमर्श किया. अपनी टीम के साथ मिल कर अनुभव ने इस तरह की सोशल साइट बनाने पर काम शुरू कर दिया, जिस में फेसबुक से ज्यादा फीचर हों. अपनी इस सोशल साइट का नाम उस ने डिजिटल इंडिया डौट नेट रखा. इस में इस तरह की तकनीक डालने की उन की कोशिश थी कि किसी की आवाज या फोटो डालने पर उस व्यक्ति के एकाउंट पर पहुंचा जा सके.

उधर सोशल ट्रेड में भारत से ही नहीं, विदेशों से भी एंट्री लगनी शुरू हो चुकी थीं. इनवेस्टरों ने भी मोटा पैसा यहां इनवेस्ट करना शुरू कर दिया. अब कंपनी को करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी. किसी वजह से कंपनी ने लोगों को पेआउट देना बंद कर दिया. लोगों ने अपने सीनियर लीडर्स और कंपनी औफिस जा कर संपर्क किया तो उन्हें यही बताया गया कि कंपनी के सौफ्टवेयर में अपग्रेडिंग का काम चल रहा है. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा, सारे पेआउट रिलीज कर दिए जाएंगे.

अब तक कंपनी में करीब साढ़े 6 लाख लोगों ने 9 लाख से अधिक आईडी लगा रखी थीं. कंपनी के पास इन्होंने लगभग 3 हजार 726 करोड़ रुपए जमा करा रखे थे. जब उन्हें कंपनी की तरफ से पैसे आने बंद हो गए तो लोगों में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक थी. कुछ लोगों ने मोटी रकम लगाई थी, उन की तो नींद हराम हो गई.

सीनियर लीडर उन्हें यही भरोसा दिलाते रहे कि उन का पैसा कहीं नहीं जाएगा. जो लोग कंपनी से लंबे समय से जुड़े थे, उन्हें विश्वास था कि कंपनी कहीं जाने वाली नहीं है. अपग्रेडेशन का काम पूरा होने के बाद सभी के पैसे खाते में भेज देगी. लेकिन जिन लोगों को जौइनिंग के बाद फूटी कौड़ी भी नहीं मिली थी, उन की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी. आखिर वे भरोसे की गोली कब तक लेते रहते.

लोगों ने नोएडा के जिला और पुलिस प्रशासन से सोशल ट्रेड की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. लोगों ने सोशल ट्रेड के औफिस पर जब 3 डब्ल्यू का बोर्ड लगा देखा तो उन्हें शक हो गया कि कंपनी भाग गई है. कंपनी के अंदर ही अंदर बदलाव की क्या प्रक्रिया चल रही है, इस से लोग अनजान थे.

15 दिनों की गोपनीय जांच करने के बाद पुलिस प्रशासन को भी लगा कि अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड कंपनी के नाम पर लोगों से अरबों रुपए की ठगी की है. तब पुलिस ने 1 फरवरी, 2017 को अनुभव मित्तल और कंपनी के 2 पदाधिकारियों श्रीधर प्रसाद और महेश दयाल को हिरासत में ले लिया.

अनुभव मित्तल से पूछताछ के बाद पता चला कि उस की कंपनी के गाजियाबाद के राजनगर में कोटक महिंद्रा बैंक में एक एकाउंट, यस बैंक में 2 एकाउंट, एक्सिस बैंक में 2 एकाउंट, केनरा बैंक में 3 एकाउंट हैं. जांच में पुलिस को केनरा बैंक में 480 करोड़ रुपए और यस बैंक में 44 करोड़ रुपए मिले. पुलिस ने इन खातों को फ्रीज करा दिया.

जांच में पुलिस को जानकारी मिली है कि कंपनी ने दिसंबर, 2016 के अंत में सोशल ट्रेड डौट बिज से माइग्रेट कर के फ्री हब डौटकौम लांच कर दिया और उस के 10 दिन के अंदर ही फ्री हब डौटकौम से इनमार्ट डौटकौम पर माइग्रेट किया. इस के बाद 27 जनवरी, 2017 को इनमार्ट से फ्रिंजअप डौटकौम पर माइग्रेट कर लिया.

कंपनी में इतनी जल्दीजल्दी बदलाव करने के बाद अनुभव मित्तल ने गिरफ्तारी के 7 दिनों पहले ही दिल्ली की एक नई कंपनी 3 डब्ल्यू खरीद कर उस का बोर्ड भी अपने औफिस के बाहर लगा दिया. इस के अलावा अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड डौट बिज के डोमेन पर प्राइवेसी प्रोटेक्शन प्लान भी ले लिया था, ताकि कोई भी व्यक्ति या जांच एजेंसी डोमेन की डिटेल के बारे में पता न लगा सके.

पुलिस को पता चला कि वह फेसबुक पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा था. कंपनी द्वारा सदस्यों को धोखे में रख कर उन से पैसे लिए जाते थे और जब अपने पेज को लौगइन करते तो विज्ञापन पेजों के या तो गलत यूआरएल होते थे या उन्हीं सदस्यों के यूआरएल को आपस में ही लाइक कराया जा रहा था. कंपनी द्वारा कोई वास्तविक विज्ञापन या कोई लौजिकल या रियल सर्विस नहीं उपलब्ध कराई जा रही थी.

कंपनी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, वह सदस्यों के पैसों को ही इधर से उधर घुमा रही थी, जोकि द प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978 की धारा 2(सी)/3 के तहत अवैध है. इस एक्ट की धारा 4 में यह अपराध है.

पुलिस ने अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल को विस्तार से पूछताछ करने के बाद 2 फरवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के सीजेएम-3 की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस ने लखनऊ की फोरैंसिक साइंस लेबोरैटरी, रिजर्व बैंक औफ इंडिया, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सेबी, कारपोरेट अफेयर मंत्रालय की फ्रौड इनवेस्टीगेशन टीम को भी जानकारी दे दी है. सभी विभागों के अधिकारी अपनेअपने स्तर से मामले की जांच में लग गए हैं. जांच में पता चला है कि अनुभव मित्तल ने लाइक के जरिए 3700 करोड़ रुपयों की ठगी की है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मामले की गहन जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. आईजी (क्राइम) भगवानस्वरूप के नेतृत्व में बनी इस जांच टीम में मेरठ रेंज के डीआईजी के.एस. इमैनुअल, एडिशनल एसपी (क्राइम) गौतमबुद्धनगर, एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्रा, सीओ राजकुमार मिश्रा, गौतमबुद्धनगर के 2 इंसपेक्टर, एसआई सर्वेश कुमार पाल, सौरभ आदि को शामिल किया गया है.

टीम ने इस ठगी में फंसे लोगों को अपनी शिकायत भेजने के लिए एक ईमेल आईडी सार्वजनिक कर दी है. मीडिया में यह ईमेल जारी हो जाने के बाद देश से ही नहीं, विदेशों से भी भारी संख्या में शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं. कथा लिखे जाने तक एसटीएफ के पास करीब साढ़े 6 हजार शिकायतें ईमेल से आ चुकी थीं. इन में से 100 से अधिक नाइजीरिया से मिली है. केन्या और मस्कट से भी पीडि़तों ने ईमेल से शिकायतें भेजी हैं.

पुलिस अब यह जानने की कोशिश कर रही है कि अभिनव ने इतनी मोटी रकम आखिर कहां इनवैस्ट की है. बहरहाल जिन लोगों ने अनुभव मित्तल की कंपनी में पैसा लगाया है, अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानी) 

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी

दिल्ली के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गौरव अरोड़ा नोएडा की एक रियल एस्टेट कंपनी में बढि़या नौकरी करते थे. लेकिन पिछले 2 सालों से वह काफी परेशान थे. इस की वजह यह थी कि जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई, तब से रियल एस्टेट के क्षेत्र में मंदी आ गई है. पहले जहां प्रौपर्टी की कीमतें आसमान छू रही थीं, अब वह स्थिर हो चुकी हैं. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से इनवैस्टर भी अब प्रौपर्टी में इनवैस्ट करने से कतरा रहे हैं. इस का सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन की रोजीरोटी रियल एस्टेट के धंधे से चल रही थी. गौरव को हर महीने अपनी कंपनी का कुछ टारगेट पूरा करना होता था. पहले तो वह उस टारगेट को आसानी से पूरा कर लेता था, लेकिन प्रौपर्टी के क्षेत्र में आई गिरावट से अब बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा था.

बच्चों की पढ़ाई के खर्च के अलावा उसे घर के रोजाना के खर्च पूरे करने में खासी परेशानी हो रही थी. एक दिन बौस ने उसे अपनी केबिन में बुला कर पूछा, ‘‘गौरव, यहां नौकरी के अलावा तुम और कोई काम करते हो?’’

‘‘नहीं सर, समय ही नहीं मिलता.’’ गौरव ने कहा.

‘‘देखो, मैं तुम्हें एक काम बताता हूं, जिसे तुम कहीं भी और दिन में कभी भी कर सकते हो. काम इतना आसान है कि तुम्हारी पत्नी या बच्चे भी घर बैठे कर कर सकते हैं.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, ऐसा क्या काम है, जो कोई भी कर सकता है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘नोएडा की ही एक कंपनी है सोशल ट्रेड. इस कंपनी के अलगअलग पैकेज हैं. आप जो पैकेज लेंगे, कंपनी उसी के अनुसार आप को लाइक करने को देगी. हर लाइक का 5 रुपए मिलता है.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ समझा नहीं.’’ गौरव ने कहा.

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से समझाता हूं.’’ कह कर बौस ने एक खाली पेपर निकाला और उस पर समझाने लगे, ‘‘देखो, कंपनी के 4 तरह के प्लान हैं. पहला है एसटीपी-10, दूसरा है एसटीपी-20, तीसरा है एसटीपी-50 और चौथा है एसटीपी-100.

‘‘एसटीपी-10 का पैकेज 5750 रुपए का है. इस में तुम्हें रोजाना 10 लाइक करनी होंगी. एसटीपी-20 का पैकेज 11500 रुपए का है. इस में तुम को रोजाना 20 लाइक करने को मिलेंगे. एसटीपी-50 के पैकेज में 28,750 रुपए जमा कर के 50 लाइक प्रतिदिन करने को मिलेंगे और एसटीपी-100 के पैकेज में 57,500 रुपए जमा कर के 125 लाइक तुम्हारी आईडी पर करने को आएंगे.

‘‘पैकेज की इस धनराशि में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल है. यह लाइक शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़ कर एक साल तक आएंगे. हर लाइक के 5 रुपए मिलेंगे. तुम्हें जो इनकम होगी, उस में से सरकार के नियम के अनुसार टैक्स भी काटा जाएगा.

‘‘तुम्हें फायदे की एक बात बताता हूं. तुम जिस पैकेज में जौइन करोगे, 21 दिनों के अंदर उसी पैकेज में 2 और लोगों को जौइन करा दिया तो तुम्हारी आईडी बूस्टर हो जाएगी. यानी उस आईडी पर दोगुने लाइक आएंगे. अगर और ज्यादा कमाई करनी है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जौइन कराओ, इस से डाइरेक्ट इनकम के अलावा बाइनरी इनकम भी मिलेगी.’’

बौस ने आगे बताया, ‘‘कंपनी हंडरेड परसेंट लीगल है. बिना किसी डर के तुम यहां काम कर के अच्छी कमाई कर सकते हो. यकीन न हो तो तुम मेरी बैंक पासबुक देख सकते हो.’’ इतना कह कर बौस ने गौरव को अपनी पासबुक दिखाई.

गौरव ने पासबुक देखी तो सचमुच उस में कंपनी की तरफ से कई हजार रुपए आने की एंट्री थी. उसे यह स्कीम अच्छी लगी. उसे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है, जो घर पर कोई भी कर सकता है. उस ने बौस से कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जैसे ही पैसों का जुगाड़ हो जाएगा, वह काम शुरू कर देगा.

घर पहुंचने के बाद गौरव के दिमाग में बौस द्वारा दिखाया गया सोशल ट्रेड कंपनी का प्लान ही घूमता रहा. उस ने सोचा कि अगर वह 57,500 रुपए जमा कर देगा तो 625 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे. सब कटनेकटाने के बाद 1,33,594 रुपए मिलेंगे यानी एक साल में उस के पैसे दोगुने से अधिक हो जाएंगे.

गौरव ने इस बारे में पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि इस तरह की कई कंपनियां लोगों के पैसे ले कर भाग चुकी हैं. इन के चक्कर में न पड़ा जाए तो बेहतर है. वैसे आप की मरजी. गौरव ने पत्नी की सलाह को अनसुना कर दिया. सोचा कि इसे कंपनी के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए यह ऐसी बातें कर रही है. बहरहाल उस ने ठान लिया कि वह यह काम जरूर करेगा. अगले दिन उस के एक नजदीकी दोस्त ने भी सोशल ट्रेड के प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह खुद पिछले एक महीने से इस प्लान से अच्छी इनकम हासिल कर रहा है.

दोस्त ने गौरव से भी सोशल ट्रेड जौइन करने को कहा. गौरव को सोशल ट्रेड में काम करना ही था, इसलिए उस ने बौस के बजाय दोस्त के साथ जुड़ कर सोशल ट्रेड में काम करना उचित समझा.

गौरव के पास कुछ पैसे बैंक में थे, कुछ पैसे बैंक से लोन ले कर उस ने 1,15,000 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर 2 आईडी ले लीं. उस की आईडी के बाईं साइड में उस की एक और आईडी लग चुकी थी. अगर उस के दाईं साइड में 57,500 रुपए की एक आईडी और लग जाती तो उस की मुख्य आईडी पर बूस्टर लग सकता था.

इसलिए गौरव इस फिराक में था कि 57,500 रुपए की एक आईडी किस की लगवाई जाए. उस ने अपने बड़े भाई कपिल अरोड़ा को सोशल ट्रेड के प्लान की इनकम के बारे में बताया. लालच में कपिल भी तैयार हो गया और उस ने भी 25 जनवरी, 2017 को 57,500 रुपए जमा करा दिए.

कपिल अरोड़ा की आईडी लगते ही गौरव की मुख्य आईडी बूस्टर हो गई और उस पर 125 के बजाए 250 लाइक आने लगे, जिस से उसे रोजाना 1250 रुपए की इनकम होने लगी. गौरव ने पेमेंट मोड 15 दिन का रखा था. 23 जनवरी, 2017 को उसे पहला पेआउट 4800 रुपए का मिला. कपिल की आईडी लग जाने के बाद उसे अगला पेआउट इस से डबल आने की उम्मीद थी, पर अगले 15 दिनों बाद उस का पेआउट नहीं आया.

यह बात गौरव ने अपने उस दोस्त से कही, जिस ने उसे जौइन कराया था. दोस्त ने उसे बताया कि कंपनी में अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, इसलिए सभी के पेमेंट रुके हुए हैं. चिंता की कोई बात नहीं है, जो भी पेमेंट इकट्ठा होगा, वह सारा मिल जाएगा. यही नहीं, उस ने गौरव से कहा कि वह अपनी टीम बढ़ाए, जिस से इनकम बढ़ सके.

गौरव रोजाना अपनी आईडी पर आने वाले लाइक करता रहा. चूंकि उस का पेआउट नहीं आ रहा था, इसलिए उस ने और किसी को सोशल ट्रेड में जौइन नहीं कराया. उस का भाई कपिल भी अपनी आईडी पर आने वाले 125 लाइक रोजाना करता रहा. गौरव और कपिल कंपनी के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस भी गए.

उन की तरह अन्य सैकड़ों लोग वहां अपनी इसी समस्या को ले कर आजा रहे थे. सभी को यही बताया जा रहा था कि आईटी एक्सपर्ट सिस्टम को अपग्रेड करने में लगे हुए हैं. सोशल ट्रेड कंपनी से लाखों लोग जुड़े थे. उन में से अधिकांश के मन में इसी बात का संशय था कि पता नहीं कंपनी उन का रुका हुआ पेआउट देगी या नहीं. बहरहाल बड़े लीडर्स और कंपनी की ओर से परेशानहाल लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा था.

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सूरजपुर के रहने वाले दिनेश सिंह और पूर्वी दिल्ली के आजादनगर की रहने वाली पूजा गुप्ता ने भी दिसंबर, 2016 में अलगअलग 57,500 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर आईडी ली थीं. ये भी रोजाना अपनी आईडी पर 125 लाइक करते थे. जौइनिंग के एक महीना बाद भी इन को इन के किए गए लाइक का पैसा नहीं मिला तो इन्हें भी चिंता होने लगी. न तो इन्हें अपने अपलाइन से और न ही कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब मिल रहा था.

थकहार कर दिनेश सिंह ने 31 जनवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के थाना सूरजपुर में कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस की जांच एसआई मदनलाल को सौंपी गई. पेआउट न मिलने से असंतुष्ट कई लोगों ने पुलिस और जिला प्रशासन से शिकायतें करनी शुरू कर दी थीं. सोशल ट्रेड कंपनी के खिलाफ  ज्यादा शिकायतें मिलने पर पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया.

नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.

पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.

एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.

सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा.

बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.

बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो.

उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.

शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी.

कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.

सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया.

सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया.

सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.

बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.

अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.

बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया.

कारोबार बढ़ा तो कंपनी ने आगामी योजनाएं बनानी शुरू कीं. पहला कदम ईकौमर्स में रखना था. इस के जरिए वह जरूरत की हर चीज ग्राहकों को उपलब्ध कराना चाहता था. सोशल ट्रेड डौट बिज के बाद उस ने फ्री हब डौटकौम नाम की कंपनी  बनाई. ईकौमर्स के लिए उस ने इनमार्ट डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. इस के जरिए खरीदारी करने पर भी उस ने अतिरिक्त इनकम का प्रावधान रखा.

अभिनव जानता था कि भारत में करोड़ों लोग फेसबुक यूज करते हैं, जिस से मोटी कमाई फेसबुक के ओनर को होती है. फेसबुक की ही तरह भारतीय सोशल साइट बनाने का विचार उस के दिमाग में आया. इस बारे में उस ने अपनी आईटी टीम से विचारविमर्श किया. अपनी टीम के साथ मिल कर अनुभव ने इस तरह की सोशल साइट बनाने पर काम शुरू कर दिया, जिस में फेसबुक से ज्यादा फीचर हों. अपनी इस सोशल साइट का नाम उस ने डिजिटल इंडिया डौट नेट रखा. इस में इस तरह की तकनीक डालने की उन की कोशिश थी कि किसी की आवाज या फोटो डालने पर उस व्यक्ति के एकाउंट पर पहुंचा जा सके.

उधर सोशल ट्रेड में भारत से ही नहीं, विदेशों से भी एंट्री लगनी शुरू हो चुकी थीं. इनवेस्टरों ने भी मोटा पैसा यहां इनवेस्ट करना शुरू कर दिया. अब कंपनी को करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी. किसी वजह से कंपनी ने लोगों को पेआउट देना बंद कर दिया. लोगों ने अपने सीनियर लीडर्स और कंपनी औफिस जा कर संपर्क किया तो उन्हें यही बताया गया कि कंपनी के सौफ्टवेयर में अपग्रेडिंग का काम चल रहा है. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा, सारे पेआउट रिलीज कर दिए जाएंगे.

अब तक कंपनी में करीब साढ़े 6 लाख लोगों ने 9 लाख से अधिक आईडी लगा रखी थीं. कंपनी के पास इन्होंने लगभग 3 हजार 726 करोड़ रुपए जमा करा रखे थे. जब उन्हें कंपनी की तरफ से पैसे आने बंद हो गए तो लोगों में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक थी. कुछ लोगों ने मोटी रकम लगाई थी, उन की तो नींद हराम हो गई.

सीनियर लीडर उन्हें यही भरोसा दिलाते रहे कि उन का पैसा कहीं नहीं जाएगा. जो लोग कंपनी से लंबे समय से जुड़े थे, उन्हें विश्वास था कि कंपनी कहीं जाने वाली नहीं है. अपग्रेडेशन का काम पूरा होने के बाद सभी के पैसे खाते में भेज देगी. लेकिन जिन लोगों को जौइनिंग के बाद फूटी कौड़ी भी नहीं मिली थी, उन की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी. आखिर वे भरोसे की गोली कब तक लेते रहते.

लोगों ने नोएडा के जिला और पुलिस प्रशासन से सोशल ट्रेड की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. लोगों ने सोशल ट्रेड के औफिस पर जब 3 डब्ल्यू का बोर्ड लगा देखा तो उन्हें शक हो गया कि कंपनी भाग गई है. कंपनी के अंदर ही अंदर बदलाव की क्या प्रक्रिया चल रही है, इस से लोग अनजान थे.

15 दिनों की गोपनीय जांच करने के बाद पुलिस प्रशासन को भी लगा कि अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड कंपनी के नाम पर लोगों से अरबों रुपए की ठगी की है. तब पुलिस ने 1 फरवरी, 2017 को अनुभव मित्तल और कंपनी के 2 पदाधिकारियों श्रीधर प्रसाद और महेश दयाल को हिरासत में ले लिया.

अनुभव मित्तल से पूछताछ के बाद पता चला कि उस की कंपनी के गाजियाबाद के राजनगर में कोटक महिंद्रा बैंक में एक एकाउंट, यस बैंक में 2 एकाउंट, एक्सिस बैंक में 2 एकाउंट, केनरा बैंक में 3 एकाउंट हैं. जांच में पुलिस को केनरा बैंक में 480 करोड़ रुपए और यस बैंक में 44 करोड़ रुपए मिले. पुलिस ने इन खातों को फ्रीज करा दिया.

जांच में पुलिस को जानकारी मिली है कि कंपनी ने दिसंबर, 2016 के अंत में सोशल ट्रेड डौट बिज से माइग्रेट कर के फ्री हब डौटकौम लांच कर दिया और उस के 10 दिन के अंदर ही फ्री हब डौटकौम से इनमार्ट डौटकौम पर माइग्रेट किया. इस के बाद 27 जनवरी, 2017 को इनमार्ट से फ्रिंजअप डौटकौम पर माइग्रेट कर लिया.

कंपनी में इतनी जल्दीजल्दी बदलाव करने के बाद अनुभव मित्तल ने गिरफ्तारी के 7 दिनों पहले ही दिल्ली की एक नई कंपनी 3 डब्ल्यू खरीद कर उस का बोर्ड भी अपने औफिस के बाहर लगा दिया. इस के अलावा अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड डौट बिज के डोमेन पर प्राइवेसी प्रोटेक्शन प्लान भी ले लिया था, ताकि कोई भी व्यक्ति या जांच एजेंसी डोमेन की डिटेल के बारे में पता न लगा सके.

पुलिस को पता चला कि वह फेसबुक पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा था. कंपनी द्वारा सदस्यों को धोखे में रख कर उन से पैसे लिए जाते थे और जब अपने पेज को लौगइन करते तो विज्ञापन पेजों के या तो गलत यूआरएल होते थे या उन्हीं सदस्यों के यूआरएल को आपस में ही लाइक कराया जा रहा था. कंपनी द्वारा कोई वास्तविक विज्ञापन या कोई लौजिकल या रियल सर्विस नहीं उपलब्ध कराई जा रही थी.

कंपनी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, वह सदस्यों के पैसों को ही इधर से उधर घुमा रही थी, जोकि द प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978 की धारा 2(सी)/3 के तहत अवैध है. इस एक्ट की धारा 4 में यह अपराध है.

पुलिस ने अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल को विस्तार से पूछताछ करने के बाद 2 फरवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के सीजेएम-3 की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस ने लखनऊ की फोरैंसिक साइंस लेबोरैटरी, रिजर्व बैंक औफ इंडिया, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सेबी, कारपोरेट अफेयर मंत्रालय की फ्रौड इनवेस्टीगेशन टीम को भी जानकारी दे दी है. सभी विभागों के अधिकारी अपनेअपने स्तर से मामले की जांच में लग गए हैं. जांच में पता चला है कि अनुभव मित्तल ने लाइक के जरिए 3700 करोड़ रुपयों की ठगी की है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मामले की गहन जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. आईजी (क्राइम) भगवानस्वरूप के नेतृत्व में बनी इस जांच टीम में मेरठ रेंज के डीआईजी के.एस. इमैनुअल, एडिशनल एसपी (क्राइम) गौतमबुद्धनगर, एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्रा, सीओ राजकुमार मिश्रा, गौतमबुद्धनगर के 2 इंसपेक्टर, एसआई सर्वेश कुमार पाल, सौरभ आदि को शामिल किया गया है.

टीम ने इस ठगी में फंसे लोगों को अपनी शिकायत भेजने के लिए एक ईमेल आईडी सार्वजनिक कर दी है. मीडिया में यह ईमेल जारी हो जाने के बाद देश से ही नहीं, विदेशों से भी भारी संख्या में शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं. कथा लिखे जाने तक एसटीएफ के पास करीब साढ़े 6 हजार शिकायतें ईमेल से आ चुकी थीं. इन में से 100 से अधिक नाइजीरिया से मिली है. केन्या और मस्कट से भी पीडि़तों ने ईमेल से शिकायतें भेजी हैं.

पुलिस अब यह जानने की कोशिश कर रही है कि अभिनव ने इतनी मोटी रकम आखिर कहां इनवैस्ट की है. बहरहाल जिन लोगों ने अनुभव मित्तल की कंपनी में पैसा लगाया है, अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

बेईमानों की असलियत

बेईमानी के काम करने वाले अकसर इतने ज्यादा अपराधी आदतों के शिकार हो जाते हैं कि हत्या करने से चूकते तक नहीं हैं और उन में से कुछ तो कानून के हत्थे चढ़ ही जाते हैं. फाइनैंस कंपनियों का काम इस देश में पूरी तरह बेईमानी का काम है. जो पैसा लगा कर मोटा ब्याज देने का वादा करते हैं वे आमतौर पर गुंडे किस्म के लोग होते हैं और जमा पैसे को हड़पना आम है. देशभर में लाखों लोग ऐसी कंपनियों में खरबों खो चुके हैं और नईनई कंपनियां खुल रही हैं, नएनए बेवकूफ मेहनत की या बेईमानी की कमाई उन में लगा रहे हैं.

इन को चलाने वाले चूंकि धोखा देना जानते हैं, ये अपनी बीवियों या प्रेमिकाओं से भी बेईमानी करते हुए हिचकते नहीं हैं. बेईमानी इन के खून का हिस्सा बन जाती है. दिल्ली के एक घने इलाके में सिंह ऐंड ब्रदर्स फाइनैंशियल कंपनी के मालिक अनुज को गिरफ्तार किया गया क्योंकि उसने अपनी प्रेमिका की हत्या कराई जो शादी के लिए दबाव डाल रही थी जबकि अनुज पहले से शादीशुदा था.

इस का मतलब है कि लोगों से फाइनैंस कंपनी के नाम पर पैसा जमा करने वाला अपनी बीवी से भी बेईमानी कर रहा था और प्रेमिका से भी. प्रेमिका चूंकि उसी दफ्तर में काम करती थी, उसे यह मालूम होगा ही कि अनुज शादीशुदा है पर वह पत्नी से पति छीन लेना चाहती थी, बेईमानी से.

जो धंधे टिके ही बेईमानी पर होते हैं उन में सभी बेईमान होते हैं और ‘शोले’ के गब्बर सिंह की तरह कब बौस का निशाना बन जाएं कहा नहीं जा सकता. ये फाइनैंस कंपनियों वाले सुंदर, सौम्य, मीठी बातें करने वाली लड़कियां रखते हैं ताकि ग्राहकों को फंसाया जा सके. अब ये लड़कियां बौस को फंसा लें या बौस इन्हें फंसा ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि इन की पूरी ट्रेनिंग ग्राहक को फंसा कर पैसा जमा करने की होती है. जो किसी से पैसा लेना जानता है या जानती है उसे किसी का जीवनसाथी या किसी का दिल लूटना भी आता है.

बहुत से अपराध इसी वजह से होते हैं. कई सैक्सुअल हैरेसमैंट केसों के पीछे यही लूटने की खून में भरी आदत हो जाती है.

भारतीय जनता पार्टी की एक स्पोक्सपर्सन सोनाली फोगाट की हत्या का शक भी इसी गिनती में आ सकता है. वह अपने बौयफ्रैंड्स के साथ गोवा के किसी पब में गई थी जहां शायद उसे ड्रिंक में कुछ पिलाया गया जिस से उस की मौत हो गई. राजनीति में लगे लोगों के पास इतने पैसे, इतना समय आखिर आता कैसे है कि वे गोवा में सैरसपाटे कर सकें. राजनीति और वह भी भारतीय जनता पार्टी की तो साफसुथरी है. वहां तो कंदमूल खा कर जीने का उपदेश दिया जाता है.

सोनाली फोगाट की हत्या भी उसी वजह से होना मुमकिन है क्योंकि जो उस के साथ गए थे, कोई सगेसंबंधी नहीं थे. अब वे सब गिरफ्तार कर लिए गए हैं.

शराफत कोई खास गुण नहीं है. यह अपने बचाव का कवच है. दूसरों को न लूटने का मतलब है खुद को लूटे न जाने देना. यह हर शरीफ समझ जाता है कि मजबूत होने के बाद भी कैसे शरीफ बना रहा जाए.

फेरी वालों के फरेब में फंसते लोग

‘ले लो बाबू. 10 कालीन हैं. बहुत ही कम दाम में मिल जाएंगे… हजारों रुपए का सामान बहुत ही कम कीमत पर देंगे. ऐसा मौका बारबार नहीं मिलेगा… हम लोगों को जरूरी काम से घर जाना है, इसलिए कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है…’

इस तरह की बातें कहते फेरी वाले घरों और दफ्तरों के आसपास घूमते रहते हैं और कम कीमत पर इतने कालीन या कोई और सामान मिलता देख लोगों का लालची होना लाजिमी है. फेरी वालों की इस मार्केटिंग ट्रिक के  झांसे में लोग खासकर औरतें आसानी से फंस जाती हैं. लोगबाग पैसे जुटा कर फेरी वालों के कहे मुताबिक रुपयों का इंतजाम करते हैं. उन्हें अपनी औकात दिखाते हुए अकड़ के साथ रुपए थमा देते हैं और मन ही मन खुश होते हैं कि काफी कम कीमत पर ढेर सारा सामान मिल गया.

पटना की एक बड़ी कंपनी में काम करने वाले जितेंद्र सिंह कहते हैं कि एक दिन जब वे अपने दफ्तर में बैठ कर काम निबटा रहे थे तो कंधे पर कई चादर और दरी लादे एक नौजवान पहुंचा. उस ने पूछा कि चादर और दरी लेनी है? पहले तो जितेंद्र ने कहा कि नहीं भाई नहीं लेनी है. फेरी वाले ने कहा कि ले लो सस्ते में दे देंगे.

जितेंद्र ने जब पूछा कि कितने की है तो फेरी वाले ने कहा कि ये सब 4,000 रुपए की हैं, अगर 3,000 रुपए दे, तो वह सारी चादरें और दरियां दे देगा.

जितेंद्र ने कहा कि 2,000 रुपए में दोगे तो सोचेंगे. फेरी वाले ने कुछ देर नानुकर करने के बाद कहा कि अगर तुम्हारी जेब में 2,000 हैं तो निकाल दो और ले लो सारा सामान.

जितेंद्र ने कहा कि इतने रुपए फिलहाल उन के पास नहीं हैं, पर वे इंतजाम कर सकते हैं. फेरी वाले ने उन्हें उकसाते हुए कहा कि हो गया न चेहरा पीला. जेब में रुपया रहता नहीं है और चले हैं हजारों का सामान खरीदने.

जितेंद्र और फेरी वाले की बात को पास बैठा स्टाफ चुपचाप सुन रहा था. उस ने जितेंद्र को आगाह करते हुए कहा कि वे फेरी वाले के जाल में फंस रहे हैं. इस के बाद भी जितेंद्र फेरी वाले से सौदा पटाने में लगे रहे. आखिर में फेरी वाला जितेंद्र की औकात बताने लगा. दफ्तर में बेइज्जती होते देख पूरा स्टाफ उस फेरी वाले को मारने दौड़ा. अपनी चाल उलटी पड़ती देख वह फेरी वाला अपना सामान फेंक जान बचा कर भाग खड़ा हुआ.

मुजफ्फरपुर में रहने वाली अर्चना सिन्हा अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं कि एक दिन एक फेरी वाला उन के घर पर कालीन देख लेने की गुहार लगाने लगा. पहले तो उन्होंने फेरी वाले से कहा कि उन्हें कालीन की जरूरत नहीं है, पर वह बारबार कालीन देख लेने की जिद करने लगा. मन मार कर वे कालीन देखने लगीं.

कालीन अच्छे लगे और 2,000 रुपए में 10 कालीन देने की बात तय हो गई. फेरी वाले को रुपए दे कर उन्होंने नौकर से कहा कि कालीन अंदर ले आए. रुपए ले कर वह कालीन वाला दरवाजे से बाहर निकल गया.

थोड़ी देर बाद अर्चना सिन्हा ने कालीन का गट्ठर खोल कर देखा तो उस में 4 कालीन ही निकले, वे भी चादर की तरह पतले थे. 2,000 रुपए में 10 कालीन खरीद कर चालाकी भरा सौदा करने की खुशी काफूर हो गई. घटिया क्वालिटी की 4 चादरें देख कर उन की सम झ में आ गया कि वे ठगी जा चुकी हैं. उन्होंने नौकर को बाहर दौड़ाया और फेरी वाले को पकड़ने को कहा, पर वह कहां हाथ आने वाला था.

इस तरह के कालीन, चादर, दरी वगैरह अपने कंधे पर लाद कर कई फेरी वाले यहांवहां घूमते दिखाई देते हैं और आम लोगों को अपनी बातों में फंसा कर ठगते हैं.

मनोविज्ञानी रमेश देव बताते हैं कि ऐसे फेरी वाले आम आदमी की साइकोलौजी को पकड़ते हैं. उन्हें औकात की दुहाई दे कर दिल और दिमाग पर चोट करते हैं और उतावला हो कर और अपने को पैसे वाला साबित करने के चक्कर में लोग आसानी से उन की ठगी का शिकार बन जाते हैं.

ऐसे ठग फेरी वाले 3-4 चादरें, दरियां या कालीन को अपने कंधे पर इस तरह चालाकी और सलीके से सजा कर रखते हैं कि वे 8-10 नजर आते हैं.

कई बार जब कम पैसे में ज्यादा सामान खरीद लेने के अहसास के साथ फेरी वाले के जाने के बाद लोग गट्ठर खोलते हैं तो असलियत का पता चलता है. एक तो सामान कम होता है, साथ ही उस की क्वालिटी भी काफी बेकार होती है.

डीएसपी अशोक कुमार सिन्हा कहते हैं कि ऐसे फेरी वालों को खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. इस तरह के धंधेबाजों का खासा नैटवर्क चलता है. वे लोग आम आदमी की औकात को ठेस पहुंचा कर अपना मतलब साधते हैं. 500-700 रुपए के सामान को 2-3 हजार रुपए में बेच लेते हैं.

कई मामलों में यह भी देखा गया है कि लोगों को फेरी वालों से सामान लेने की चाहत नहीं होती है, पर जब फेरी वाला उन्हें उन की औकात बताने लगता है तो लोग इज्जत का सवाल बना कर अपनी मेहनत की जमापूंजी को बिना सोचेसम झे उसे दे देते हैं. उस के बाद सामान की घटिया क्वालिटी को देख कर माथा पीटने के अलावा उन के पास कोई चारा नहीं रह जाता है.

फेरी वालों से सामान लेते समय सावधान रहें-

* जिस चीज की जरूरत न हो, कभी भी उस तरह का सामान ले कर आए फेरी वालों से बात न करें.

* फेरी वाला अपनी बातों में फंसा कर अपना उल्लू सीधा करता है, इसलिए उस से फालतू के ज्यादा सवालजवाब न करें.

* इस सोच को खत्म करें कि फेरी वाला सस्ते में अच्छा सामान देता है.

* फेरी वाले कम कीमत की चीजों का भी कई गुना ज्यादा पैसा ऐंठ लेते हैं. उतने पैसे में बाजार से अच्छी क्वालिटी की चीजें मिल जाती हैं. दुकानों में सामानों की रेंज भी अच्छी होती है और सामान की गारंटी भी मिलती है.

* औकात बताने पर उतर आए फेरी वालों को सबक सिखाने के लिए आसपास के लोगों को चिल्ला कर बुला लें. इस से ठग फेरी वाले भाग खड़े होंगे.

* कीमत को ले कर फेरी वालों से ज्यादा बक झक न करें. अगर चीज पसंद नहीं है तो उसे कम कीमत पर भी क्यों लें.

* फेरी वालों की ओट में बहुत बार चोरउचक्के भी घर में घुस कर लूटपाट कर लेते हैं, इसलिए अगर औरतें घर में अकेली हों तो वे फेरी वालों को न बुलाएं.

संभल कर खाओ ओ दिल्ली वालो

बचपन में जब कभी मैं अपने गांव जाता था तो वहां के मेरे दोस्त मुझे अकसर ही छेड़ते रहते थे कि ‘दिल्ली के दलाली, मुंह चिकना पेट खाली’. तब मुझे बड़ी चिढ़ मचती थी कि मैं इन से बेहतर जिंदगी जीता हूं, फिर भी ये ऐसा क्यों कहते हैं?

यह बात याद आने के पीछे आज की एक बड़ी वजह है और वह यह कि दिल्ली और केंद्र सरकार में दिल्ली की कच्ची कालोनियों को पक्का करने की होड़ सी मची है. वे उन लोगों को सब्जबाग दिखा रहे हैं, जो देश की ज्यादातर उस पिछड़ी आबादी की नुमाइंदगी करते हैं जो यहां अपनी गरीबी से जू झ रहे हैं, क्योंकि उन के गांव में तो रोटी मिले न मिले, अगड़ों की लात जरूर मिलती है.

पर, अब तो दिल्ली शहर भी सब से छल करने लगा है. यहां के लोगों को रोजीरोटी तो मिल रही है पर जानलेवा, फिर चाहे वे पैसे वाले हों या फटेहाल. बाजार में खाने का घटिया सामान बिक रहा है.

दिल्ली के खाद्य संरक्षा विभाग ने इस मिलावट के बारे में बताते हुए कहा कि साल 2019 की 15 नवंबर की तारीख तक 1,303 नमूने लिए गए थे. उन में से 8.8 फीसदी नमूने मिस ब्रांड, 5.4 फीसदी नमूने घटिया और 5.4 फीसदी ही नमूने असुरक्षित पाए गए. ये नमूने साल 2013 से अभी तक सब से ज्यादा हैं.

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यहां एक बात और गौर करने वाली है कि जिन व्यापारियों के खाद्य सामान के नमूने फेल हुए हैं, उन के खिलाफ अलगअलग अदालतों में मुकदमे दर्ज मिले हैं. पर यह तो वह लिस्ट है, जहां के नमूने लिए गए, लेकिन दिल्ली की ज्यादातर आबादी ऐसी कच्ची कालोनियों में रहती है, जहां ऐसे मानकों के बारे में कभी सोचा भी नहीं जाता होगा.

साफ पानी के हालात तो और भी बुरे हैं. साफ पानी की लाइन में सीवर के गंदे पानी की लाइन मिलने की खबरें आती रहती हैं.

ऐसी बस्तियों में ब्रांड नाम की कोई चीज नहीं होती है. हां, किसी बड़े ब्रांड के नकली नाम से बने सामान यहां धड़ल्ले से बिकते हैं. पंसारी की खुली बोरियों में क्याक्या भरा है, किसे पता?

पिछले साल के आखिर में दिल्ली की बवाना पुलिस ने जीरा बनाने की एक ऐसी फैक्टरी पकड़ी थी, जहां फूल  झाड़ू बनाने वाली जंगली घास, गुड़ का शीरा और स्टोन पाउडर से जीरा बनाया जा रहा था. इस जीरे को दिल्ली के अलावा गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व दूसरी कई जगह बड़ी मात्रा में सप्लाई किया जाता था. इस नकली जीरे को असली जीरे में 80:20 के अनुपात में मिला कर लाखों रुपए में बेच दिया जाता था.

यह तो वह मिलावट है जो पकड़ी गई है, बाकी का तो कोई हिसाबकिताब ही नहीं है. दिल्ली के असली दलाल तो ये मिलावटखोर हैं, जो एक बड़ी आबादी को शरीर और मन से इस कदर बीमार कर रहे हैं कि उस का मुंह भी चिकना नहीं रहा है. कच्ची कालोनियों को पक्का करने से पहले ऐसे मिलावटखोरों का पक्का इंतजाम करना जरूरी है.

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संतान प्राप्ति का झांसा, तांत्रिक से बच कर!

छत्तीसगढ़ के  जिला धमतरी में एक शख्स  महिलाओं को “तंत्र मंत्र” के जरिये गर्भवती करने का झूठा  दावा  करता था.इस शख्स  के जाल में ऐसी महिलाएं आसानी से आ जाती थी जिनकी गोद सूनी होती थी. संतान सुख के खातिर अनेक  महिलाएं वह सब कुछ करने को तैयार हो जाती थी जैसा की  शख्स अर्थात  कथित  तांत्रिक बाबा फरमान जारी किया करते था.

पुलिस के अनुसार  बांझपन से पीड़ित अनेक  महिलाओं को इस बाबा ने अपने मायाजाल में फांसकर उनका दैहिक शोषण किया.कभी लोक-लाज के भय से तो कभी अन्य सामाजिक  कारणों से पीड़ित महिलाओं ने अपना मुँह सी रखा था. मगर  कुछ ऐसी महिलाएं बाबाजी के संपर्क में आई जिन्होंने उसको उसकी असलियत  समाज के सामने  रखने की  ठान ली साहस  का परिचय  देते हुए इन महिलाओं ने पुलिस के समक्ष सच्चाई को रख दिया के बाद पुलिस हरकत में आई और एक दिन कथित तांत्रिक बाबा जेल  के सींखचों के पहुंच गया.  महिलाओं की हिम्मत का सबब यह बना की बाबाजी पुलिस के हत्थे चढ़ गए.अब कई पीड़ित महिलाएं अपनी आपबीती पुलिस को सुना रही है.

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झाड़ फूंक से होगी संतान!

पुलिस ने जो सनसनीखेज भंडाफोड़ किया है उसके  अनुसारछत्तीसगढ़ के धमतरी जिला के  मगरलोड थाना क्षेत्र में 7 जनवरी को दो बाबा एक नि:संतान दंपत्ति के घर पहुंचे. उन्होंने तंत्र मंत्र व झाड़-फूंक से संतान प्राप्ति कराने का झांसा देते हुए महिला से तंत्र साधना के नाम  पर पहले तो 2100 रूपये ऐंठ लिए. बाबाजी यही नहीं रुके रकम जेब में डालने के बाद उन्होंने घर के ही एक कमरे में उस महिला को देख उनकी लार टपकने लगी फिर वे साथ अश्लील हरकत करने लगे .

यह महिला बाबाजी की मंशा और असलियत पहचान गई  उसने इस अश्लील हरकत का प्रतिरोध कर कथित बाबा को थपपड़ रसीद कर दी.इस पर मजे की बात यार की अपने बचाव में पाखंडी बाबा ने उसे श्राप देने की चेतावनी देनी शुरू  कर  दी.  चेतावनी में उसने उसके पति एवं सास-ससुर की मृत्यु हो जाने का भय दिखाया और कई अपशगुन को लेकर  डराया धमकाया .मगर बहादुर महिला के तांत्रिक बाबाओं की फेर में ना आने पर  दोनों ही बाबा घटनास्थल से भाग खड़े हुए.

अंततः पुलिस ने धर दबोचा

जब कथित तांत्रिक बाबा अपनी मंशा में सफल नहीं हुए और भाग खड़े हुए तब महिला ने घर के परिजनों को बाबा के करतूत की जानकारी दी.

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घटना के उपरांत पीड़ित महिला ने मामले की जानकारी अपने पति एवं पड़ोसियों को दी  तब पीड़ित महिला ने थाना मगरलोड़ में उपस्थित होकर दोनों पाखंडी तांत्रिक  बाबाओ की सचाई  पुलिस को बताई .पुलिस ने दोनों ही आरोपियों के खिलाफ धारा 385, 417, 454, 354, 506, 34 भादवि एवं 6, 7 टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया  और अंततः ठगी और महिला के यौन शोषण के मामले में

पुलिस अधिक्षक बी पी राजभानु के निर्देश पर थाना प्रभारी मगरलोड की टीम ने आरोपी बाबाओं को खोज निकाला . पुलिस ने हमारे संवाददाता को जानकारी दी कि गिरफ्त में आये बाबा का असली नाम हिंदराज जोशी पिता रामबली जोशी उम्र 45 साल एवं घनश्याम जोशी उम्र 35 साल ग्राम सलोन थाना सलोन जिला रायबरेली उत्तर प्रदेश का निवासी  है .गिरफ्तारी के बाद दोनों तांत्रिक  बाबाओं को अदालत में प्रस्तुत किया गया  और जेल भेज दिया गया.

धर्म के नाम पर चंदे का धंधा

धार्मिक कहानियां हमेशा ही लोगों को कामचोर और भाग्यवादी बनाने की सीख देती हैं. सभी धर्मों की कहानियों में यह बताया जाता है कि अमुक देवीदेवता को पूजने या पैगंबर की इबादत करने से दुनिया की सारी दौलत पाई जा सकती है.

इन कहानियों का असर युवा पीढ़ी यानी नौजवानों पर सब से ज्यादा पड़ता है. यही वजह है कि हमारे देश के नौजवान कोई कामधंधा करने के बजाय गणेशोत्सव, होली, दुर्गा पूजा, राम नवमी, मोहर्रम, क्रिसमस वगैरह त्योहारों पर जीजान लुटा देते हैं. ऐसे नौजवान धार्मिक कार्यक्रमों के बहाने जबरन चंदा वसूली को ही रोजगार मानने लगते हैं.

चंदा वसूली के इस धंधे में धर्म के ठेकेदारों का खास रोल रहता है और चंदे के धंधे के फलनेफूलने में नौजवान खादपानी देने का काम करते हैं. तथाकथित पंडेपुजारियों द्वारा दी गई जानकारी की बदौलत धार्मिक उन्माद में ये नौजवान अपना होश खो बैठते हैं.

धर्म के नाम पर चंदा वसूली के इस खेल में दबंगई भी दिखाई जाने लगी है. स्कूलकालेज के पढ़ने वाले छात्रों की टोली इस में अहम रोल निभाती है.

जनवरी, 2018 में जमशेदपुर के साकची के ग्रेजुएट कालेज में सरस्वती पूजा के नाम पर छात्र संगठन के लोगों ने चंदा न देने वाली छात्राओं के साथ मारपीट की थी. सितंबर, 2019 में भुवनेश्वर में गणेश पूजा के दौरान जबरन चंदा वसूली करने वाले 13 असामाजिक और उपद्रवी तत्त्वों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

दरअसल, त्योहारों के मौसम में चंदा वसूलने का धंधा खूब फलताफूलता है. हाटबाजारों की दुकानों, निजी संस्थानों और सरकारी दफ्तरों में भी इन की चंदा वसूली बेरोकटोक चलती रहती है.

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होली, गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा के दौरान तो ये असामाजिक तत्त्व खुलेआम सड़क पर बैरियर लगा कर आनेजाने वाली गाडि़यों को रोक कर चंदा वसूली करते हैं. चंदा न देने पर गाडि़यों की हवा निकालने के साथ वाहन मालिकों के साथ गलत बरताव किया जाता है.

धर्म के नाम पर इकट्ठा किए गए चंदे के खर्च और उस के बंटवारे को ले कर कई बार ये नौजवान आपस में ही उल झ कर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं.

10 अक्तूबर, 2019 को मध्य प्रदेश की गाडरवाला तहसील के गांव पिठवानी की घटना इस बात का जीताजागता सुबूत है. गांव में दुर्गा पूजा पर हर घर से चंदा इकट्ठा किया गया और दशहरे के बाद हुई मीटिंग में चंदे के हिसाबकिताब को ले कर नौजवानों में  झगड़ा हो गया. देखते ही देखते  झगड़ा इतना बढ़ गया कि 3 नौजवानों ने एक नौजवान को इस कदर पीटा कि उस की मौत हो गई.

धर्म के बहाने पुण्य कमाने वाले वे तीनों नौजवान इस समय जेल की सलाखों के पीछे हैं.

धर्म के नाम पर मौजमस्ती

धार्मिक त्योहारों पर चंदे के दम पर होने वाले बेहूदा डांस, लोकगीत और आरकेस्ट्रा के कार्यक्रमों में नशे का सेवन कर यही नौजवान मौजमस्ती करते हैं.

अनंत चतुर्दशी और दशहरा पर्व पर निकाले जाने वाले चल समारोह और प्रतिमा विसर्जन कार्यक्रमों में धर्म की दुहाई देने वाले ये नौजवान डीजे के गानों की मस्ती में इस कदर डूबे रहते हैं कि उन्हें होश ही नहीं रहता है.

12 सितंबर, 2019 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में  गणेश प्रतिमा के विसर्जन के लिए गए नौजवानों में से 13 की मौत की कहानी तो यही बयां करती है. तालाब में डूबने से मौत की नींद सोए सभी लड़के 15 से 30 साल की उम्र के थे. अंधश्रद्धा और अंधभक्ति के रंग में रंगे ये नौजवान रात के 3 बजे 2 नावों पर सवार हो कर प्रतिमा विसर्जन के लिए तालाब के बीच में गए थे.

गणेशोत्सव के नाम पर की गई मस्ती और हुड़दंग में नाव का संतुलन बिगड़ गया और पुण्य कमाने गए लड़के अपनी जान से हाथ धो बैठे.

कुछ इसी तरह का एक और वाकिआ राजस्थान के धौलपुर में 8 अक्तूबर, 2019 को हुआ था. दशहरे के दिन आयोजकों की टोली के कुछ नौजवान दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए चंबल नदी गए हुए थे. दोपहर 2 बजे नदी की तेज धार में प्रतिमा विसर्जन के बहाने मौजमस्ती कर रहे 2 नौजवान बह गए, जिन्हें बचाने की कोशिश में 8 दूसरे नौजवानों की भी मौत हो गई.

इसी दिन मध्य प्रदेश के देवास के सोनकच्छ थाना क्षेत्र के गांव खजूरिया में भी तालाब में प्रतिमा विसर्जन के दौरान नौजवानों की डूबने से मौत हो गई थी.

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इन घटनाओं में हुई मौतें तो यही साबित करती हैं कि पढ़नेलिखने या कामधंधा खोजने की उम्र में ये नौजवान धार्मिक कट्टरता में पड़ कर अपनी जिंदगी से ही हाथ धो

रहे हैं. देश के पढ़ेलिखे नौजवान कामधंधा न कर के किस कदर धार्मिक आयोजन की बागडोर संभालने में अपना भला सम झ रहे हैं.

दरअसल, देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि पिछले कई सालों से नौजवानों को रोजगार के मौके नहीं मिल पा रहे हैं. लाखों की तादाद में नौजवान बेकार घूम रहे हैं. सरकार केवल नौजवानों को रोजगार देने का लौलीपौप दिखा कर उन के वोट बटोर लेती है और फिर नौजवानों को राष्ट्र प्रेम, धारा 370, मंदिरमसजिद, गौहत्या रोकने के मसलों में उल झा देती है.

यही वजह है कि नौजवान धार्मिक कार्यक्रमों के बहाने जबरन चंदा वसूली को रोजगार मान कर 10-15 दिन मौजमस्ती से काट लेना चाहते हैं.

गांवदेहातों में यज्ञ, हवन, रामकथा, भागवत कथा, प्रवचन देने का चलन इतना बढ़ा है कि वहां हर महीने इस तरह के आयोजन होते रहते हैं. ऐसे आयोजनों में एक हफ्ते में 2 से 5 लाख रुपए का खर्चा आ ही जाता है.

भक्तों को काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहने का संदेश देने वाले ये उपदेशक और कथावाचक लाखों रुपयों के चढ़ावे की रकम और कपड़ेलत्ते ले कर अपना कल्याण करने में लगे रहते हैं.

हालात ये हैं कि गांवों में बच्चों को पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल नहीं हैं. लोगों के इलाज की बुनियादी सहूलियतें नहीं हैं. रातदिन खेतों में काम करने वाले किसानमजदूरों की खूनपसीने की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ऐसे कार्यक्रमों में खर्च हो जाता है.

धर्म के पुजारी पापपुण्य का डर दिखा कर कथा, प्रवचन और भंडारे के नाम से उन का पैसा ऐंठने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.

पत्रकार बृजेंद्र सिंह कुशवाहा बताते हैं कि गांवदेहात में आएदिन ढोंगी संतमहात्मा यज्ञ और मंदिर बनाने के नाम पर लोगों से चंदा वसूली करने आते हैं. धर्म की महिमा बता कर चंदे की मोटी रकम लूटने वाले ये पाखंडी बाबा आलीशान गाडि़यों में घूम कर चंदे का कारोबार करते हैं.

कोई भी धर्म आदमी को कर्मवीर बनने की सीख नहीं देता. धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों द्वारा लिखी गई धार्मिक कहानियों में यही बताया गया है कि देवीदेवताओं की कथापूजन करने से बिना हाथपैर चलाए सभी काम पूरे हो जाते हैं.

पंडेपुजारी, मौलवी और पादरियों ने भी लोगों को इस कदर धर्मांध बना दिया है कि लोग उन की बातों पर आंखें मूंद कर अमल करने में ही अपनी भलाई सम झते हैं, तभी तो लोग धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर चंदा देने में संकोच नहीं करते हैं.

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जनता के चुने गए प्रतिनिधि, जो बड़े पदों पर बैठे हैं, वे धर्म के ठेकेदारों को मौज करने की छूट दिए हुए हैं. हमारे द्वारा चुनी गई सरकारें भी धार्मिक पाखंड में बराबर की भागीदार हैं. सरकारें भी यही चाहती हैं कि लोग इसी तरह धर्म के मसलों में उल झे रहें. ये धर्म की कहानियां इतनी बार इतने सारे लोगों के मुंह से कही जाती हैं कि ये ही सच लगने लगती हैं.

देश के बड़ेबड़े मठों, मंदिरों वगैरह में रखी गई दानपेटियों से निकली धनराशि और भगवान को चढ़ावे में भेंट किए बेशकीमती धातु के गहने चंदे का गुणगान करते नजर आते हैं. इन नौजवानों को यह बात सम झ में क्यों नहीं आती कि आज तक पूजापाठ कर के न तो किसी को नौकरी मिली है और न ही इस से किसी का पेट भरा है. जिंदगी में कुछ करगुजरने के लिए जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती है.

मौजूदा दौर में जरूरत इस बात की है कि धर्म के आडंबरों में पैसा फूंकने के बजाय लोग बच्चों की पढ़ाईलिखाई में पैसा खर्च कर उन्हें इस काबिल बनाएं कि वे आजीविका के लिए नौकरी पा सकें या उन्नत तरीकों से खेतीकिसानी या दूसरे कामधंधे कर पैसों की बचत करना सीखें. धर्म के नाम पर दी गई चंदे की रकम से केवल धर्म के ठेकेदारों का ही भला होता है.

धर्म के दुकानदार तो बहुत हैं, पर कर्म के दुकानदारों का टोटा है. वे यदाकदा ही दिखते हैं, इसीलिए धर्म की जयजयकार होती है.

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