पुरुष अपनी लाइफस्टाइल में लाएंगे ये बदलाव, तो नहीं होंगे डिप्रेशन के शिकार

पुरुष अपनी लाइफ सबसे ज्यादा जिम्मेदारियों से घिरे होते हैं और ऐसे में ये जरुरी है कि वे अपनी सेहत और मेंटल हेल्थ का ध्यान रखें. क्योकि वे अपनी लाइफ में इतने बीजी हो जाते है कि अपना ध्यान नहीं रख पाते हैं. जिसकी वजह से वे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. इतना ही नहीं, डिप्रेशन की वजह से व्यक्ति का किसी काम में मन नहीं लगता है. ऐसे में पुरुषों को अपनी लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव जरूर करने चाहिए. इन बदलाव को करने से डिप्रेशन में नहीं जाएंगा.

ना बोलना है बहुत जरूरी-

काम के प्रेशर से भी हो सकता है डिप्रेशन. इसलिए ये जरुरी है कि तनाव से बचने के लिए मना करना सीखें. ऐसा इसलिए क्योंकि पुरुष कई बार ऐसी चीजं को पूरा करने की कोशिश करते हैं जिससे हम सहमत नहीं है. ये एक बड़ी वजह होती है डिप्रेशन की. इसलिए इस आदत को आज ही बदलें.

खुद पर ध्यान दें-     

पुरुष ज्यादातर परिवार की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए खुद पर ध्यान नहीं देते हैं. ऐसे में वो ठीक से सोते नहीं है, हेल्दी डाइट नहीं लेते हैं. जिसकी वजह वो धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं. इसलिए पुरुषों को खुद पर ध्यान जरूर देना चाहिए क्योंकि अगर आप खुद पर ध्यान देंगे तो अंदर से आपका मूड अच्छा रहेगा.

परिवार के साथ समय बताएं-

कई बार ऐसा होता है कि पुरुष अपने काम के चलते सभी लोगों से दूरी बना लेते हैं. जिसकी वजह से पुरुष खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं इसलिए अपने परिवार के समय जरूर बिताएं. अपनी बातें उनसे शेयर करें. ऐसा करने से आप खुद को हल्का और खुश महसूस करेंगे.

इन 6 टिप्स से करें डिप्रेशन की पहचान

डिप्रेशन, एक ऐसी समस्या है जिसमें खुद उस इंसान को ही पता नहीं होता की वो इस बीमारी का शिकार है. अगर समय रहते इसका इलाज हो जाए तो इससे निजात मिल सकता है. भारत जनसंख्या के मामले है वैसे तो दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है. पर डप्रेशन में ये दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़कर पहले स्थान पर है. जी हां…भारतीय लोगों में डिप्रेशन के मामले पिछले कुछ सालों में बढ़ गए हैं. WHO (World Health Organization) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 6.5% नागरिक गंभीर डिप्रेशन का शिकार हैं. ये आंकड़ा दुनिया के किसी भी अन्य देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है.

क्या है डिप्रेशन और कैसे करें इसकी पहचान

चिंता और तनाव हम सभी को होता है. मगर जब ये तनाव सीमा से ज्यादा बढ़ जाता है, तो मानसिक रोग बन जाता है, जिसे डिप्रेशन कहते हैं. डिप्रेशन की शुरुआत में कुछ ऐसे लक्षण महसूस होते हैं, जिन्हें आप आसानी से नजरअंदाज कर सकते हैं. अगर आपको भी महसूस होते हैं ये लक्षण, तो सावधान हो जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लें.

1. हर समय थकान महसूस होना

थकान डिप्रेशन का एक बड़ा लक्षण है. डिप्रेशन के कारण व्यक्ति का किसी काम में मन नहीं लगता है और वो हर समय थका हुआ महसूस करता है. इस दौरान व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियां सीमित हो जाती हैं. उसकी बातों में नकारात्मकता आ जाती है और वो ज्यादातर समय गुमसुम उदास रहने लगता है.

2. नींद पर भी पड़ता है बुरा असर

डिप्रेशन का दूसरा सबसे पहला लक्षण व्यक्ति की नींद का प्रभावित होना है. वे या तो बहुत कम या बहुत अधिक सोने लगते हैं. कुछ लोग 12 घंटे तक सोने के बाद भी थकान महसूस करते हैं, तो वहीं कुछ लोग रात में थोड़ी-थोड़ी देर बाद जागते रहते हैं. थकान की ही तरह नींद की समस्‍या भी अवसादग्रस्‍त पुरुषों में सामान्‍य लक्षण है.

3. चिड़चिड़ापन होना

अवसादग्रस्‍त पुरुषों का स्‍वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है. अगर वे भावनात्‍मक बातें कर रहे हों, तो दुख और चिड़चिड़ेपन का मेल सामने आ सकता है. पुरुषों में चिड़चिड़ेपन की बड़ी समस्या उनके मस्तिष्‍क में लगातार आने वाले नकारात्‍मक विचार होते है.

4. गुस्सा करना

डिप्रेशन के कारण कई बार व्यक्ति को बिना वजह गुस्सा आता है. गुस्से के कारण कई बार वे आक्रामक हो जाते हैं और लड़ने-झगड़ने भी लगते हैं. गुस्‍से में व्‍यक्ति चिढ़ के मुकाबले स्‍वयं को अधिक प्रभावी दिखाने का प्रयास करता है. ऐसे में व्‍यक्ति को परिवार और दोस्‍तों से खास मदद की जरूरत होती है.

5. डिसिजन मेकिंग पावर में कमी आना

अगर आपको लगातार निर्णय लेने में कठिनाई आ रही है, तो यह डिप्रेशन का संकेत हो सकता है. कुछ लोगों को नैसर्गिक रूप से दुविधा में रहते हैं. उन्‍हें फैसले लेने में परेशानी आ सकती है. अगर आपके साथ पहले से यह परेशानी है, तो आपको अधिक घबराने की जरूरत नहीं. लेकिन, आपके स्‍वभाव में यह आदत नयी शामिल हुई है, तो आपको सोचने की जरूरत है. जानकार मानते हैं कि डिप्रेशन आपके क्षमता लेने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है.

6. कब्‍ज या डायरिया का होना

कब्‍ज या डायरिया, और सिरदर्द और कमर दर्द जैसे स्‍वास्‍थ्‍य लक्षण, अवसादग्रस्‍त लोगों में सामान्‍य हैं. लेकिन, अक्‍सर पुरुष इस बात को नहीं समझते कि तेज दर्द और पाचन क्रिया में अनि‍यमितता का संबंध अवसाद से भी हो सकता है. डाक्‍टर बताते हैं कि अवसादग्रस्‍त लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍यायें लगी रहती हैं. लेकिन, अक्‍सर वे इसे लेकर गंभीर नहीं होते.

अगर आप भी इन किसी समस्या से परेशान है तो आप जरुर डाक्टर से सलाह ले और कोशिश करें की आपके आस पास के लोगों के अगर व्यवहार या  इन परेशानी को आप देखते है उनका साथ दे और डाक्टर से सलाह दिलवाए.

बच्चों को रखें फोन से दूर

क्या आपका भी बच्चा फोन का आदि है अगर हां तो हो जाइए सावधान और अपने बच्चे को फोन का आदि बनने से बचाएं उन्हें फोन से दूर रखें. बच्चों को ज्यादा फोन देना आपके लिए और बच्चों के लिए दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं इसलिए कोशिश करें कि आपका बच्चा फोन से दूर रहे. अक्सर ऐसा होता है कि जब आपका बच्चा छोटा होता है वो रोता है तो आप उसे शांत कराने के लिए हाथ में फोन पकड़ा देते हैं जो बिल्कुल भी सही नहीं है और आपके बच्चे के भविष्य के लिए तो बिल्कुल भी नहीं. ऐसे कई दुष्परिणाम हैं जो आपको जानना आवश्यक है.

  • सबसे पहले तो आपका बच्चा फोन का आदि होने लगता है फिर वो बार-बार रोता है ताकि उसे फोन मिले और साथ ही फिर उसे बड़े होने पर भी जल्दी फोन चाहिए जबकि अभी वो उस लायक है भी नहीं कि उसके हाथ में फोन दे दिया जाए.
  • फोन देखते वक्त क्या पता आपका बच्चा कुछ ऐसा देख ले जो शायद उसे अभी नहीं देखना और समझना चाहिए क्योंकि हर चीज जानने और समझने का एक सही वक्त होता है. और आपका बच्चा वो देखकर आपसे सवाल कर बैठे तो आप उसका जवाब नहीं दे पाएंगे. और क्या पता किसी के सामने आपका बच्चा कुछ गलत कह दें.
  • ज्यादा फोन के इस्तेमाल से आपके बच्चे की आंखे भी खराब हो सकती हैं. कम उम्र में चश्मा लगना कोई बहुत सही चीज तो है नहीं. और फिर ये आपके बच्चें के भविष्य के लिए बिल्कुल ही अच्छा नहीं होगा. जैसे जैसे वो बड़ा होगा या होगी उसकी आंखों पर असर पड़ेगा. उसे पढ़ाई में दिक्कत हो सकती है. और फिर आजकल के बच्चे तो कम्प्यूटर भी ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो ध्यान रहे कि इसमें आंखों की सेफ्टी का भी ध्यान रखें.
  • बच्चों के हांथ में मोबाइल तभी दें जब आपको लगे कि अब आपके बच्चें को सचमुच फोन की जरूरत है. ये नहीं कि कभी भी दे दिया. इसके कारण बच्चे कभी-कभी बिगड़ भी जाते हैं और भले ही फोन कई मामलों में अच्छा है लेकिन कभी-कभी बहुत घातक सिद्ध हो सकता है. आजकल तो क्राइम भी कितने हो रहें हैं. कहीं ऐसा ना हो कि आपका बच्चा उस क्राइम का शिकार हो जाए. इसलिए अपने बच्चे का ध्यान रखें और जितना हो सके उसे फोन से दूर रखें, जरूरत के समय उसके हाथ में फोन दें.
  • आजकल के बच्चों की तो पढ़ाई भी बिना फोन के नहीं होती है तो कोशिश करें कि जब आप अपने बच्चे को पढ़ाई से संबंधित कार्य के लिए फोन दे रहें हैं तो वो वही कर रहा है या फिर किसी गलत चीज का शिकार तो नहीं हो गया कुछ गलत तो नहीं कर रहा. एक अभिभावक होने के नाते ये आपका फर्ज है और कर्तव्य भी.
  • ज्यादा फोन इस्तेमाल करने से आपका बच्चा डिप्रेशन में होगा जब उसे फोन नहीं मिलेगा. उसका विकास रुक सकता है क्योंकि वो किसी पर ध्यान ही नहीं देगा तो अच्छा होगा कि आप अपने बच्चें को घर-परिवार से जोड़े, लोगों के साथ घुलने-मिलने दें ताकि वो फोन से दूर रहे.

बच्चों को इतनी ज्यादा लत हो जाती है फोन की कि उसके चक्कर में वो सोते भी नहीं हैं तो नींद पूरी ना होना और सिर दर्द होना तो बिल्कुल भी आपके बच्चे के लिए ठीक नहीं है. इसलिए सावधानी बरतने की जरूरत है.

आखिर शराब क्यों है खराब, पढ़ें खबर

शराब न केवल स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है बल्कि यह अपराध को भी बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है. शराब पीने के बाद व्यक्ति का दिल और दिमाग अच्छे और बुरे में फर्क करना भूल जाता है. शराब की वजह से व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है. ऐसे में वह अपने से बड़ों से अभद्रता से बात करने में भी नहीं हिचकता.

शराब की लत की वजह

अकसर शौकिया तौर पर शराब पीने की शुरुआत होती है जो धीरेधीरे उन की आवश्यकता बन जाती है. शराब की लत का एक बड़ा कारण घरेलू माहौल भी है, क्योंकि जब घर का कोई बड़ा सदस्य घर के दूसरे सदस्यों व बच्चों के सामने खुलेआम शराब पीता है या पी कर आता है तो अनुभव लेने की इच्छा के चलते पत्नी, बच्चे व घर के अन्य सदस्य भी शराब पीने के आदी हो सकते हैं.

शराब की लत लगने का एक कारण गलत संगत भी है. अगर व्यक्ति शराब पीने वाले साथियों के साथ ज्यादा समय बिताता है तो उसे शराब की लत पड़ सकती है. तमाम लोग शराब को अपना सोशल स्टेटस मानते हैं.

शराब की लत लगने की एक बड़ी वजह निराशा, असफलता व हताशा को भी माना जाता है, क्योंकि अकसर लोग इन चीजों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं जो बाद में बरबादी का कारण भी बनता है.

पढ़ाई व कैरियर

किशोरों व युवाओं में नशे की लत दिनोदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण शराब उन की पढ़ाई व कैरियर के लिए बाधा बन जाती है.

सामाजिक व आर्थिक नुकसान

शराबी व्यक्ति की समाज में इज्जत नहीं होती, शराब की लत के चलते परिवार में सदैव आर्थिक तंगी बनी रहती है, जिस वजह से परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट आम बात हो जाती है. शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी स्थायी जमा पूंजी भी दांव पर लगा देता है, जिस से बच्चों की पढ़ाई व कैरियर भी प्रभावित होता है.

स्वास्थ्य का दुश्मन

स्वास्थ्य के लिए शराब जहर की तरह है जो व्यक्ति को धीरेधीरे मौत की तरफ ले जाती है. मानसिक व नशा रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार शराब में पाया जाने वाला अलकोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है, जिस की वजह से 200 से भी अधिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है.

अत्यधिक शराब पीने से शरीर में विटामिन और अन्य जरूरी तत्त्वों की कमी हो जाती है. शराब का लगातार प्रयोग पित्त के संक्रमण को बढ़ाता है, जिस से ब्रैस्ट और आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

शराब में पाया जाने वाला इथाइल अल्कोहल लिवर सिरोसिस की समस्या को जन्म देता है जो बड़ी मुश्किल से खत्म होने वाली बीमारी है. इथाइल अलकोहल की वजह से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, जिस से लिवर बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में भी व्यक्ति अगर पीना जारी रखता है तो अल्कोहल हैपेटाइटिस नाम की बीमारी लग जाती है.

सैक्स पर असर

जिला अस्पताल बस्ती के चिकित्सक डा. बी के वर्मा के अनुसार शराब सैक्स के लिए जहर है. लोग सैक्स संबंधों का अधिक मजा लेने के चलते यह सोच कर शराब पीते हैं कि वे लंबे समय तक आत्मविश्वास के साथ सहवास कर पाएंगे, लेकिन लगातार शराब के सेवन के चलते प्राइवेट पार्ट में तनाव आना कम हो जाता है, जिस का नतीजा नामर्दी के रूप में दिखता है. कामेच्छा की कमी के साथ ही महिलाओं की माहवारी अनियमित हो जाती है.

सड़क दुर्घटना का कारण

अकसर सड़क दुर्घटना का सब से बड़ा कारण शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है, क्योंकि शराब पीने के बाद गाड़ी ड्राइव करने वाले का दिमाग उस के वश में नहीं रहता और ड्राइव करने वाला व्यक्ति गाड़ी से नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना हो जाती है.

अपराध को बढ़ावा

शराब का नशा दुनिया भर में होने वाले अपराधों की सब से बड़ी वजह माना जाता है. अकसर शराबी व्यक्ति नशे में अपने होशोहवास खो कर ही अपराध को अंजाम देता है.

ऐसे पाएं छुटकारा

शराब की लत का शिकार व्यक्ति इस से होने वाली हानियों को देखते हुए अकसर शराब को छोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन प्रभावी कदम की जानकारी न होने की वजह से वह शराब व नशे से दूरी नहीं बना पाता है. यहां दिए उपायों को अपना कर व्यक्ति शराब जैसी बुरी लत से छुटकारा पा सकता है :

– अगर आप शराब की लत के शिकार हैं और इस से दूरी बनाना चाहते हैं तो इस को छोड़ने के लिए खास तिथि का चयन करें. यह तिथि आप की सालगिरह वगैरा हो सकती है. छोड़ने से पहले इस की जानकारी अपने सभी जानने वालों को जरूर दें.

– अगर आप का बच्चा शराब का शिकार है तो मातापिता को चाहिए कि उस की गतिविधियों पर नजर रखें और समय रहते किसी नशामुक्ति केंद्र ले जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें.

– ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां शराब की दुकानें या शराब पीने वाले लोग मौजूद हों, क्योंकि ऐसी अवस्था में फिर से आप की शराब पीने की इच्छा जाग सकती है.

– कमजोरी, उदासी या अकेलापन महसूस होने की दशा में घबराएं नहीं बल्कि अपने भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने अनुभवों को बांटें और कठिनाइयों से उबरने की कोशिश करें.

– शराब छोड़ने के लिए आप इस बात को जरूर सोचें कि आप ने शराब की वजह से क्या खोया है और किस तरह की क्षति पहुंची है. इस से न केवल आप शराब से दूरी बना सकते हैं बल्कि खराब हुए संबंधों को पुन: तरोताजा भी कर सकते हैं.

– शराब छोड़ने से उत्पन्न परेशानियों से निबटने के लिए किसी अच्छे चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें.

अगर आप भी घिरे रहते हैं गैजेट्स से, तो हो जाइए सावधान

किशोरों की सुबह मोबाइल अलार्म से शुरू हो कर आईपैड व वीडियो गेम्स, कंप्यूटर और वीडियो चैट, मूवी, लैपटौप आदि के इर्दगिर्द गुजरती है. दिनभर वे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप जैसी सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर बिजी रहते हैं. इन्हें नएनए गैजेट्स अपने जीवन में सब से अहम लगते हैं. इन की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन अगर इन का उपयोग जरूरत से ज्यादा होने लगे तो यह एक संकेत है कि आप अपनी सेहत के साथ खुद ही खिलवाड़ कर रहे हैं.

कैलाश हौस्पिटल, नोएडा के डाक्टर संदीप सहाय का कहना है कि देर रात तक स्मार्टफोन, टैब या लैपटौप का इस्तेमाल करने से नींद पर असर पड़ सकता है. इस से न सिर्फ गहरी नींद में खलल पड़ेगा बल्कि अगली सुबह थकावट का एहसास भी होगा. यदि हम एकदो रात अच्छी तरह से न सोएं तो थकावट का एहसास होने लगता है और चुस्ती कम हो जाती है. यह बात सही है कि इस से हमें शारीरिक या मानसिक तौर पर कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यदि कईर् रातों तक नींद उड़ी रहे तो न सिर्फ शरीर पर थकान हावी रहेगी बल्कि एकाग्रता और सोचने की क्षमता पर भी असर पड़ेगा. लंबे समय में इस से उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

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गरदन में दर्द : लैपटौप में स्क्रीन और कीबोर्ड काफी नजदीक होते हैं. इस कारण इस पर काम करने वाले को झुकना पड़ता है. इसे गोद में रख कर इस्तेमाल करने पर गरदन को झुकाने की आवश्यकता पड़ती है. इस से गरदन में खिंचाव पैदा होता है, जिस से दर्द होता है. कभी कभी तो डिस्क भी अपनी जगह से खिसक जाती है. लैपटौप पर ज्यादा समय तक काम करने से शरीर का पौश्चर बिगड़ जाता है. लैपटौप में कीबोर्ड कम जगह में बनाया जाता है. इसलिए इस में उंगलियों को अलग स्थितियों में काम करना पड़ता है. इस से उंगलियों में दर्द होता है. चमकती स्क्रीन देखने पर आंखों में चुभन हो सकती है. आंखें लाल होना, उन में खुजली होना और धुंधला दिखाई देना सामान्य समस्याएं हैं.

स्पाइन, नर्व व मांसपेशियों में दिक्कत : दिन का अधिकतर समय लैपटौप पर बिताने से स्पाइन मुड़ जाती है. इस से स्प्रिंग की तरह काम करने की गरदन की जो कार्यप्रणाली है वह भी प्रभावित होती है. इस से तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त भी हो सकती हैं. अधिकतर लोग लैपटौप को पैरों पर रख कर काम करते हैं. इस से भी मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है.

ज्यादा टीवी देखना भी है हानिकारक : ब्रिटिश जर्नल औफ मैडिसन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार 25 या उस से अधिक उम्र के लोगों द्वारा हर घंटे देखे गए टीवी से उन का जीवनकाल 22 सैकंड कम हो जाता है. हर भारतीय एक सप्ताह में औसतन 15-20 घंटे टीवी देखता है. कई शोधों से यह बात भी सामने आई है कि हर घंटे देखे गए टीवी से उन का जीवनकाल 22 सैकंड कम हो जाता है. रोज 2 घंटे टीवी केसामने बिताने से टाइप 2 डायबिटीज और दिल की बीमारियों का खतरा 20त्न बढ़ जाता है.

पढ़ाई से ध्यान हटना :  जो युवा अपना अधिकतर समय कंप्यूटर व गैजेट्स के सामने बिताते हैं उन की पढ़ने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है और धीरेधीरे उन का मन पढ़ाई में कम और गैजेट्स में ज्यादा लगने लगता है. उन को घंटों बैठ कर पढ़ाई करने से ज्यादा अच्छा गेम खेलना लगता है. वे अगर किताबें ले कर बैठ भी जाते हैं तो भी उन का सारा ध्यान कंप्यूटर पर ही टिका रहता है, जो उन की पर्सनैलिटी को नैगेटिव बनाने के साथसाथ उन का कैरियर तक चौपट कर देता है.

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असामाजिक होना : वर्चुअल दुनिया का साथ मिलने पर युवा अकसर असामाजिक होने लगते हैं, क्योंकि वे उस दुनिया में अपनी मनमानी करते हैं. वहां उन्हें कोई रोकने वाला नहीं होता है.

लड़कों में नपुंसकता बढ़ती है : देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में किए जा रहे अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन और उस के टावर्स से निकलने वाली रेडिएशन पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर असर डालने के अलावा शरीर की कोशिकाओं के डिफैंस मैकेनिज्म को नुकसान पहुंचाती हैं.

क्यों होता है सेहत को नुकसान : एक शोध के अनुसार इलैक्ट्रौनिक उपकरणों के प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. ये उपकरण इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडिएशन छोड़ते हैं, जिन में मोबाइल फोन, लैपटौप, टैबलेर्ट्स वाईफाई वायरलैस उपकरण शामिल हैं.

शोध के मुताबिक वायरलैस उपकरणों के ज्यादा उपयोग से इलैक्ट्रोमैग्नैटिक हाईपरसैंसेटिविटी की शिकायत हो जाती है, जिसे गैजेट एलर्जी भी कहा जा सकता है.

डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मोबाइल फोन की रेडियो फ्रीक्वैंसी फील्ड शरीर के ऊतकों को प्रभावित करती है. हालांकि शरीर का ऐनर्जी कंट्रोल मैकेनिज्म आरएफ ऐनर्जी के कारण पैदा गरमी को बाहर निकालता है, पर शोध साबित करते हैं कि यह फालतू ऐनर्जी ही अनेक बीमारियों की जड़ है. हम जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं उस के नुकसान को अनदेखा करते हैं. मोबाइल फोन, लैपटौप, एयरकंडीशनर, ब्लूटूथ, कंप्यूटर, एमपी3 प्लेयर आदि की रेडिएशंस से नुकसान होता है.

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ईएनटी विशेषज्ञ का कहना है कि नुकसान करने वाली रेडिएशंस हमारे स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ करती हैं और हमारी कार्यक्षमता को कम करती हैं. हम पूरे दिन लगभग 500 बार इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडिएशंस से प्रभावित होते हैं. ये हमारी एकाग्रता को प्रभावित करती हैं. हमें चिड़चिड़ा बनाती हैं और थके होने का एहसास कराती हैं. हमारी स्मरणशक्ति को कमजोर करती हैं, प्रतिरोधक क्षमता को कम करती हैं और सिरदर्द जैसी समस्या पैदा करती हैं.

यही स्थिति मोबाइल की भी है अधिकांश लोग कम से कम 30 मिनट तक मोबाइल पर बात करते हैं. इस तरह एक साल में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले को 11 हजार मिनट का रेडिएशन ऐक्सपोजर का सामना करना पड़ता है. मोबाइल फोन के रेडिएशन के खतरे बढ़ते जा रहे हैं.

क्या कहती है रिसर्च

एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो किशोर कंप्यूटर या टीवी के सामने ज्यादा वक्त बिताते हैं उन किशोरों की हड्डियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिस की वजह से वे गंभीर स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं. नौर्वे में हुई एक रिसर्च में कहा गया है कि किशोरों में हड्डियों की समस्या बढ़ती जा रही है, जिस की वजह कंप्यूटर पर देर तक बैठ कर काम करना है.

अमेरिकन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने कंप्यूटर के इस्तेमाल का समय भी बताया. आर्कटिक विश्वविद्यालय औफ नौर्वे की एनी विंथर ने स्थानीय जर्नल में एक रिपोर्ट प्रकाशित कराई है, जिस में कंप्यूटर के सामने बैठने की वजह से शारीरिक नुकसान का आकलन किया गया है. इस रिपोर्ट के साथ ही अमेरिकन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने किशोरों के लिए कंप्यूटर के इस्तेमाल का समय भी बताया है.

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मोबाइल फोन, लैपटौप आदि के ज्यादा इस्तेमाल से आप की उम्र तेजी से बढ़ रही है, जिस से आप जल्दी बूढ़े हो सकते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक इस स्थिति को टैकनैक कहते हैं. इस में इंसान की त्वचा ढीली हो जाती है. गाल लटक जाते हैं और झुर्रियां पड़ जाती हैं. इन सब के कारण इंसान का चेहरा उम्र से पहले ही बूढ़ा लगने लगता है. इस के अलावा आंखों के नीचे काले घेरे बनने लगते हैं और गरदन व माथे पर उम्र से पहले ही गहरी लकीरें दिखने लगती हैं.

मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल के कौस्मैटिक सर्जन विनोद विज ने बताया कि मोबाइल फोन का लंबे वक्त तक झुक कर इस्तेमाल करने से गरदन, पीठ और कंधे का दर्द हो सकता है. इस के अलावा सिरदर्द, सुन्न, ऊपरी अंग में झुनझुनी के साथ आप को हाथ, बांह, कुहनी और कलाई में दर्द हो सकता है.

ऐसे बचें गैजेट्स की लत से

इंटरनैट और मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में 37 करोड़ 10 लाख मोबाइल इंटरनैट यूजर्स होने का अनुमान है, जिन में 40 फीसदी मोबाइल इंटरनैट यूजर्स 19 से 30 वर्ष के हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करने के लिए कई बार आगे की ओर झुकने से रीढ़ की हड्डी, मांसपेशियों और हड्डियों की प्रकृति में बदलाव होने लगता है.

कौस्मैटिक सर्जरी इंस्टिट्यूट के सीनियर कौस्मैटिक सर्जन मोहन थामस कहते हैं कि लोगों को अभी इस बात का एहसास नहीं है कि उन की त्वचा गरदन और रीढ़ की हड्डी को कितना नुकसान पहुंच रहा है. तकनीक के इस्तेमाल के आदी लोगों को इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स की लत से बचने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण गरदन की मांसपेशियां छोटी हो जाती हैं. इस के अलावा त्वचा का गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव भी बढ़ जाता है. इस के कारण त्वचा का ढीलापन, दोहरी ठुड्डी और जबड़ों के लटकने की समस्या हो जाती है.

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फ्रांस में अदालत का खटखटाया दरवाजा

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के नए आंकड़ों के मुताबिक भारत की 125 करोड़ की आबादी के पास 98 करोड़ मोबाइल कनैक्शन हैं. हाल ही में फ्रांस की एक अदालत ने इएचएस से पीडि़त एक महिला को विकलांगता भत्ता दे कर वाईफाई और इंटरनैट की पहुंच से दूर शहर छोड़ गांव में रहने का आदेश दिया. हालांकि ऐसा मामला अब तक भारत में नहीं आया, लेकिन अगर आप को भी शारीरिक कमजोरी हो तो डाक्टर को दिखाने के साथसाथ आप भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

इस गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं Neha Kakkar, पढ़ें खबर

बॉलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) अक्सर सुर्खियों में छायी रहती है. वह अपने आवाज के जादू से फैंस के दिलों पर राज करती हैं. नेहा अक्सर अपने पर्सनल लाइफ से जुड़ी बातें फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. खबर है कि नेहा एक गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं. आइए बताते है नेहा की बीमारी के बारे में.

एक रियलिटी शो के दौरान नेहा कक्कड़ ने कहा था कि वह एक बीमारी से जूझ रही हैं और कई बार इसकी वजह से वह बहुत डिस्‍टर्ब हो जाती हैं. उन्होंने अपनी बीमारी के बारे में बात करते हुए कहा कि उनके पास प्‍यार, अच्छा परिवार, करियर, सब कुछ है  लेकिन अपने एंग्‍जायटी इश्‍यू की वजह से वह बहुत परेशान रहती हैं.

 

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बता दें कि एंग्‍जायटी इंसान के लिए काफी खतरनाक हो सकती हैं. एक्सपर्ट के अनुसार एंग्जायटी एक मानसिक रोग है, जो इंसान को मानसिक रूप से कमजोर बना देती है. ये मस्तिष्क को चोट देने के साथ ही शरीर को भी नुकसान पहुंचाती है. इस बीमारी में रोगी को तेज बैचेनी के साथ नकारात्मक विचार, चिंता और डर का आभास होता है.

 

जब कोई इंसान एंग्जायटी से जूझ रहा होता है उस स्थिति में पैनिक अटैक आते हैं. इसके अलावा अलावा उलटी व जी मिचलाने की समस्या भी होती है. सांस फूलने लगती है.एक्सपर्ट के अनुसार कोई ऐसी चिंता है, जो लंबे वक्त से बनी हुई है तो यह निश्चित तौर पर कोई बड़ा रूप ले सकती है. ऐसे में आपको मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट का परामर्श लेना चाहिए.

 

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एंग्जायटी के लक्षण इस प्रकार है- दिल की धड़कन का बढ़ जाना, सांस फूल जाना, मांसपेशियों में तनाव का बढ़ जाना, छाती में खिंचाव महसूस होना, किसी के लिए बहुत ज्यादा लगाव होना.

चिंता में युवा

मकान बनने बंद हो गए हैं. मोबाइलों की बिक्री में ठहराव आ गया है. सरकार को तो पास्ट सुधारना है, इसलिए वह कश्मीर के पीछे पड़ी है और सुरक्षा पर खरबों रुपए खर्च कर रही है. वहां की एक करोड़ जनता आज गुलामी की जेल में बंद है.

सरकार का निशाना तो पी चिदंबरम, शरद पंवार, राहुल गांधी हैं, सदियों पुराने देवीदेवता हैं, भविष्य नहीं. युवाओं को सुधरा हुआ कल चाहिए. घरघर में तकनीक का लाभ उठाने के लिए गैजेट मौजूद हों. सिक्योर फ्यूचर हो. जौब हो. मौज हो. पर सरकार तो टैक्स लगाने में लगी है. वह महंगे पैट्रोल के साथ युवाओं को बाइक से उतारने में लगी है. यहां तक कि एग्जाम की फीस बढ़ाने में भी उसे हिचक नहीं होती.

देश का कल आज से अच्छा होगा, यह सपना अब हवा हो रहा है. नारों में कल की यानी भविष्य की बड़ी बातें हैं पर अखबारों की सुर्खियां तो गिरते रुपए, गिरते स्टौक मार्केट और बंद होती फैक्ट्रियों की हैं. सरकार भरोसा दिला रही है कि हम यह करेंगे वह करेंगे, पर हर युवा जानता व समझता है कि कल का भरोसा नहीं है.

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फ्लिपकार्ट और अमेजन, जो बड़ी जोरशोर से देश में आई थीं और जिन्होंने युवाओं को लुभाया था, अब हांफने लगी हैं. उन की बढ़ोतरी की दर कम होने लगी है जो साफ सिग्नल दे रही है कि आज के युवाओं के पास अब पैसा नहीं बचा.

दोष युवाओं का भी है. पिछले 8-10 सालों में युवाओं ने खुद अपने भविष्य को आग लगा कर फूंका है. कभी वे धार्मिक पार्टियों से  जुड़ कर मौज मनाते तो कभी रेव पार्टियों में. हर शहर में हुक्का बार बनने लगे, फास्टफूड रैस्तरांओं की भरमार होने लगी. लोग लैब्स में नहीं, अड्डों पर जमा होने लगे. जिन्हें रातदिन लाइब्रेरी और कंप्यूटरों से ज्ञान बटोरना था वे सोशल मीडिया पर बासी वीडियो और जोक्स को एक्सचेंज करने में लग गए.

युवाओं का फ्यूचर युवाओं को खुद भी बचाना होगा. हौंगकौंग के युवा डैमोक्रेसी बचाने में लगे हैं. इजिप्ट, लीबिया, ट्यूनीशिया में युवाओं ने सरकारों को पलट दिया. वहां जो नई सरकारें आईं वे मनमाफिक न निकलीं. पर आज वहां के युवाओं से वे भयभीत हैं. 25 साल पहले चीन के बीजिंग शहर में टिनामन स्क्वायर पर युवाओं ने कम्युनिस्ट शासकों को जो झटका दिया उसी से चीन की नीतियां बदलीं और आज चीन अमेरिका के बराबर खड़ा है. भारत पिछड़ रहा है, क्योंकि यहां का युवा या तो कांवड़ ढो रहा है या गले में भगवा दुपट्टा डाले धर्मरक्षक बन जाता है, जब उसे तरहतरह की पार्टियों से फुरसत होती है.

काम की बात आज युवामन से निकल चुकी है. घरों में पिज्जा, पास्ता खाने वाली जनरेशन को पिसना भी सीखना होगा.

तमिलनाडु

छात्रों के बीच पनपता भेदभाव के कुछ स्कूलों में छात्रछात्राएं अपनी जाति के हिसाब से चुने रंगों के रबड़ के या रिबन के बैंड हाथ में पहन कर आते हैं ताकि वे निचली जातियों वालों से दूर रहें. जातिवाद के भेदभाव का यह रंग तमिलनाडु में दिख रहा है हालांकि यह हमारे देश के कोनेकोने में मौजूद है. असल में हिंदू धर्म किसी जमात का नहीं, यह जातियों का समूह है जिस के झंडे के नीचे जातियां फलफूल रही हैं.

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भारत में मुसलमान इतनी संख्या में हैं तो इसलिए नहीं कि कभी विदेशी शासकों ने लोगों को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया बल्कि इसलिए हैं कि तब बहुत से लोग अपने आसपास मौजूद ऊंची जातियों वालों के कहर से बचना चाहते थे. देशी शासक जब भी जहां भी आए, उन्होंने जातियज्ञ में और घी डाल कर उसे तेज दिया. पिछली कुछ सदियों में अगर फर्क हुआ तो बस इतना कि कुछ शूद्र जातियां अपने को राजपूत तो कुछ वैश्य समझने लगीं. कुछ नीची जातियों के लोगों ने भगवा कपड़े पहन कर व साधु या स्वामी का नाम रख कर अपने को ब्राह्मण घोषित कर डाला. इस के बावजूद इन सब जातियों में आपस में किसी तरह का कोई लेनदेन नहीं हुआ.

स्कूलों, कालेजों, निजी व सरकारी संस्थानों में यह भेदभाव बुरी तरह पनप रहा है और छात्रछात्राएं जाति का जहर न केवल पी रहे हैं, दूसरों को पिला भी रहे हैं. जहां बैंड या रिबन पहने जा रहे हैं वहां तो अलगथलग रहा ही जाता है, जहां नहीं पहना हो वहां कोई दूध और शक्कर को मिलाया नहीं जा रहा. यह वह गंगा, कावेरी है जहां रेत और पानी कभी नहीं मिलते.

भेदभाव का असर पढ़ाई पर पड़ रहा है. स्कूलोंकालेजों में प्रतियोगिता के समय कभी आरक्षण का नाम ले कर कोसा जाता है तो कभी ऊंची जाति के दंभभरे नारे लगाए जाते हैं. लड़कों ने बाइकों पर गर्व से अपनी जाति का नाम लिखना शुरू कर दिया है ताकि झगड़े के समय राह चलता उन की जाति का व्यक्ति भी उन्हें सपोर्ट करने आ जाए.

हमारी आधुनिक, वैज्ञानिक, तार्किक, लिबरल पढ़ाईलिखाई सब भैंस गई पानी में की हालत में है. हम सब भंवर में फंस रहे हैं. सरकार को उस का लाभ मिल रहा है और आज के नेता इसी बल पर जीत कर आते हैं. वे कतई इंट्रैस्टेड नहीं हैं कि यह भेदभाव खत्म हो. उलटे, हर स्टूडैंट यूनियन चुनाव में हर पोस्ट पर जाति के हिसाब से कैंडीडेट लड़वाए जाते हैं ताकि बहुमत पाने के लिए 40-50 परसैंट विद्यार्थियों का सपोर्ट मिल सके.

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यह एक महान देश बन पाएगा, इस की उम्मीद क्या रखें, क्योंकि जाति का मतलब यहां क्या काम करोगे, कितना करोगे, कैसे करोगे तक पहुंचता है. और स्कूलकालेज से चल कर यह कारखानों, खेतों, दफ्तरों, बैंकों तक पहुंचता है.

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