चढ़ते सूरज को यहां नमस्कार करने वालों की कमी नहीं, फिर चाहे बाद में वहां गिद्द ही क्यों नहीं मंडलाने लगे. ऐसा ही अजूबा अब फिल्म दुनिया में खलनायक के रूप में मशहूर और स्थापित हो चुके सोनू सूद के मामले में देखने को मिल रहा है.उन्हें भगवान का दर्जा देकर मंदिर बना दिया गया है. और पूजा का ढकोसला चल रहा है. यही नहीं मीडिया भी इसे लताड़ने की जगह महत्व दे रही है. सवाल है क्या हमारे यहां वैसे ही देवताओं की कमी है? या फिर यह कहे कि जितने भी देवता हैं कुछ इसी तरह धीरे-धीरे लोकमान्य होते चले गए हैं! आइए! आज इस महत्वपूर्ण ढोंग और अंधविश्वास के मसले पर विस्तार से चर्चा करते हैं-
कोरोना लॉकडाउन के समय मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए सहायक बनकर सामने आए सोनू सूद की अब गरीबों के भगवान बन चुके हैं. तेलंगाना के गांव डुब्बा टांडा के लोगों ने 47 वर्षीय सोनू सूद के नाम पर एक मंदिर बनवाकर उसमें उनकी मूर्ति स्थापित की है. मजे की बात यह है कि श्रीमान सोनू की प्रतिमा सोनू की चिर परिचित पोशाक टी शर्ट पहने हुए है..!
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह जानकारी मिल रही है की गांव के कुछ खब्तीयों ने इस मंदिर का सिद्दीपेट जिले के कुछ अधिकारियों की मदद से बनवाया है.मंदिर का लोकार्पण बीते रविवार को मूर्तिकार और स्थानीय लोगों की मौजूदगी में किया गया. और जैसा की नाटक होता है इस दौरान एक आरती भी गाई गई. ट्रेडिशनल ड्रेस में वहां की महिलाओं ने पारंपरिक गीत भी गाए.
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जिला परिषद के सदस्य गिरी कोंडेल का बयान सामने आया है वे कहते हैं कि सोनू सूद ने कोरोना के दौरान गरीब लोगों के लिए अच्छा काम किया है. वहीं, मंदिर निर्माण के योजनाकार संगठन में शामिल रमेश कुमार का कथन है कि सोनू ने अच्छे कामों के चलते भगवान का दर्जा हासिल कर लिया है. तो अब कुल मिलाकर हमारे देश में कोई भी कभी भी किसी के भी कामों के गुण दोष को देखकर उसे भगवान का दर्जा दे सकता है.
सोनू का काबिले तारीफ कार्य
निसंदेह मार्च में जब कोरोना का प्रसार और लाक डाउन की स्थिति निर्मित हुई जब सारे बड़े-बड़े नामचीन लोग घरों में घुस गए सोनू सूद ने बहादुरी का परिचय दिया मानवता और इंसानियत का परिचय दिया.
कोरोना से पहले सोनू सूद एक औसत एक्टर के तौर पर जाने जाते थे जोकि फिल्मों में खलनायक के भूमिका में दिखाई देते हैं. हालांकि कोरोना के दौरान लॉकडाउन में अपनी उदारता और शालीनता से उन्होंने लोगों के दिलों में एक अलग ही जगह बनाई राजनेताओं जोकि समाज सेवा का चोला पहने जाते हैं की असलियत भी जगजाहिर कर दी. लॉकडाउन में सोनू सूद ने छत्तीसगढ़ , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और केरल के करीब 25 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया था.
इतना ही नहीं, सोनू ने इनके खाने-पीने का भी इंतजाम किया था. छत्तीसगढ़ में बस्तर की एक बालिका को घर बनवा करके भी दिया जो की चर्चा में रहा सोनू सूद ने मानवता का जो परिचय दिया है वह निसंदेह कम ही उदाहरण बन का सामने आता है. उन्होंने अपने काम से यह दिखा दिया कि वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और प्रत्येक उस व्यक्ति की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा हो जाती है जिसके पास धन दौलत होती है. शायद यही कारण है कि उस दरमियान सोनू सूद की मीडिया में भी खूब तारीफ हुई.
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संतोषी माता और नरेंद्र मोदी भी उदाहरण
देश में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि भगवान कैसे बनते हैं? और किस तरह रातों-रात लोग उनके नाम पर मंदिर बना देते हैं.
यही हमारे देश की खासियत है और यही कमी है. अंधविश्वास के फेर पढ़कर लोग किसी को भी महान गुरु, भगवान का दर्जा दे देते हैं और बाद में धोखा खाते हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का भी एक मंदिर सुर्खियों में रहा. इसी तरह 70 के दशक में जब जय संतोषी मां मूवी रिलीज हुई तो गांव गांव में संतोषी मां के मंदिर बन गए. संतोषी मां की भजन और पूजा सामग्री तैयार होकर बिकने लगी.