Best of Manohar Kahaniya: लिवइन पार्टनर की मौत का राज

सौजन्य-मनोहर कहानियां

9 सितंबर, 2019 को अनीता अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. अगले दिन अपराह्न 2 बजे जब वह दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित अपने फ्लैट में पहुंची तो वहां का खौफनाक मंजर देखते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. उस के पैर दरवाजे पर ही ठिठक गए.

उस के लिवइन पार्टनर सुनील तमांग की लहूलुहान लाश फर्श पर पड़ी थी. उस की गरदन से खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था, जो अब जम चुका था. अनीता ने सब से पहले अपने फ्लैट के मालिक ए.के. दत्ता को फोन कर इस घटना की जानकारी दी. ए.के. दत्ता पास की ही एक दूसरी कालोनी में रहते थे. लिहाजा कुछ देर में वह अपने लाजपत नगर वाले फ्लैट पर पहुंचे, जहां बुरी तरह घबराई अनीता उन का इंतजार कर रही थी.

सुनील की खून से सनी लाश देखने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दी तो कुछ ही देर के बाद थाना अमर कालोनी के थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और घटनास्थल की जांच में जुट गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

घटनास्थल की फोटोग्राफी और वहां पर मौजूद खून के धब्बों के नमूने एकत्र करने के बाद थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने तहकीकात शुरू की. मृतक सुनील की गरदन पर पीछे की तरफ से किसी तेज धारदार हथियार से जोरदार वार किया गया था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर फर्श पर फैल गया था.

कमरे के सभी कीमती सामान अपनी जगह मौजूद थे, जिसे देख कर लगता था कि यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं बल्कि रंजिशन की गई होगी. उन्होंने अनीता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और सुनील पिछले एक साल से इस फ्लैट में लिवइन पार्टनर के रूप में रह रहे थे. वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी, जबकि सुनील एक रेस्टोरेंट में कुक था. लेकिन कई महीने पहले किसी वजह से उस की नौकरी छूट गई थी.

कल रात साढ़े 11 बजे किसी जरूरी काम से वह अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. रात को वह वहीं रुक गई थी. रात में उस ने फोन पर काफी देर तक सुनील से बातें की थीं.

आज दोपहर को वह यहां पहुंची तो देखा फ्लैट का दरवाजा खुला था और अंदर प्रवेश करते ही उस की नजर सुनील की लाश पर पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने मकान मालिक को फोन कर इस घटना के बारे में बताया तो उन्होंने यहां पहुंचने के बाद इस घटना की सूचना पुलिस को दी.

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थानाप्रभारी ने मकान मालिक ए.के. दत्ता से भी पूछताछ की तो उन्होंने भी वही बातें बताईं जो अनीता ने बताई थीं.

सारी काररवाई से निपटने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और थाने लौट कर सुनील की हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस की गुत्थी सुलझाने के लिए दक्षिणपूर्वी दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने कालकाजी के एसीपी गोविंद शर्मा की देखरेख में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन, एसआई अभिषेक शर्मा, ईश्वर, आर.एस. डागर, एएसआई जगदीश, कांस्टेबल राजेश राय, मनोज, सज्जन आदि शामिल थे.

विरोधाभासी बयानों से हुआ शक

अगले दिन थानाप्रभारी ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई, ताकि वारदात की रात फ्लैट के आसपास घटने वाली सभी गतिविधियों की बारीकी से जांच की जा सके. साथ ही मृतक सुनील तमांग और अनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स और सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांचपड़ताल करने के बाद थानाप्रभारी ने गौर किया कि अनीता के बयान विरोधाभासी थे. इसलिए अनीता को पुन: पूछताछ के लिए अमर कालोनी थाने बुलाया गया. उस से सघन पूछताछ की गई तो अनीता यही कहती रही कि वह रात साढ़े 11 बजे अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी, लेकिन वह वहां देर रात को क्यों गई, इस की वजह नहीं बता पाई.

पुलिस को लग रहा था कि वह झूठ पर झूठ बोल रही है. उस ने उस रात जिनजिन नंबरों पर बात की थी, उन के बारे में भी वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी. लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई और सुनील तमांग की हत्या में खुद के शामिल होने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में उस का भाई विजय छेत्री तथा जीजा राजेंद्र छेत्री भी शामिल थे. ये दोनों पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग शहर के रहने वाले थे. अनीता द्वारा अपने लिवइन पार्टनर की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

बाकी आरोपियों विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने एसआई अभिषेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित की. यह टीम 13 सितंबर, 2019 को वेस्ट बंगाल के कालिंपोंग शहर पहुंच गई. स्थानीय पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से जब सुनील तमांग की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन दोनों ने पुलिस को बरगलाने की काफी कोशिश की लेकिन बाद में जब उन्हें बताया गया कि अनीता गिरफ्तार हो चुकी है और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, तो उन दोनों ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

वेस्ट बंगाल की स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद दिल्ली पुलिस दोनों आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर दिल्ली लौट आई.

अनीता, विजय और राजेंद्र से की गई पूछताछ तथा पुलिस की जांच के आधार पर इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है –

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अनीता मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग की रहने वाली थी. करीब 5 साल पहले वह अपने पति से अनबन होने पर उसे छोड़ कर अपने सपनों को पंख लगाने के मकसद से दिल्ली आ गई थी. यहां उस की एक सहेली थी, जो बहुत शानोशौकत से रहती थी. वह सहेली जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी कर दिया करती थी.

दरअसल, अनीता स्कूली दिनों से ही खुले विचारों वाली एक बिंदास लड़की थी. वह जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीना चाहती थी, जबकि उस का पति एक सीधासादा युवक था. उसे अनीता का ज्यादा फैशनेबल होना तथा लड़कों से ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था.

विपरीत स्वभाव होने के कारण शादी के थोड़े दिनों बाद ही वे एकदूसरे को नापसंद करने लगे थे. बाद में जब बात काफी बढ़ गई तो एक दिन अनीता ने पति को छोड़ दिया और वापस अपने मायके चली आई. कुछ दिन तो वह मायके में रही, फिर बाद में उस ने अपने पैरों पर खडे़ होने का फैसला कर लिया. और वह दिल्ली आ गई.

वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, महज 8वीं पास थी. छोटे शहर की होने और कम शिक्षित होने के बावजूद उस का रहने का स्टाइल ऐसा था, जिसे देख कर लगता था कि वह काफी मौडर्न है.

दिल्ली पहुंचने के बाद अनीता ने अपनी उसी सहेली की मदद से ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग ली. इस के बाद वह एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने लगी. नौकरी करने से उस की माली हालत अच्छी हो गई और जिंदगी पटरी पर आ गई.

इसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात सुनील तमांग नाम के युवक से हुई जो नेपाल का रहने वाला था. उस की मां कुल्लू हिमाचल प्रदेश की थी. 28 वर्षीय सुनील दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित एक रेस्टोरेंट में कुक था.

दोनों एकदूसरे को चाहने लगे

कुछ दिनों तक दोस्ती के बाद वह सुनील को अपना दिल दे बैठी. सुनील अनीता की खूबसूरती पर पहले से ही फिदा था. एक दिन सुनील ने अनीता को अपने दिल की बात बता दी और कहा कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता है. इतना ही नहीं, वह उस से शादी रचाना चाहता है.

अनीता उस के दिल की बात जान कर खुशी से झूम उठी. उस ने सुनील से कहा कि पहले कुछ दिनों तक हम लोग साथ रह लेते हैं. फिर घर वालों की रजामंदी से शादी कर लेंगे. इस की एक वजह यह भी थी कि अभी पहले पति से अनीता का तलाक नहीं हुआ था. तलाक के बाद ही दूसरी शादी संभव हो सकती थी.

कोई 4 साल पहले अनीता ने सुनील तमांग के साथ चिराग दिल्ली में किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. दोनों एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. सुनील अनीता का काफी खयाल रखता था. अनीता भी सुनील के साथ लिवइन में रह कर खुद को भाग्यशाली समझती थी.

सुनील न केवल देखने में स्मार्ट था, बल्कि एक अच्छे पार्टनर की तरह उस की प्रत्येक छोटीछोटी बात का विशेष ध्यान रखता था. अनीता भी सुनील की खुशियों का खूब खयाल रखती थी. वह अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करती थी, जिस से सुनील की कोई भावना आहत हो.

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अनीता और सुनील 3 सालों तक चिराग दिल्ली स्थित इस मकान में रहे. इस बीच जब अनीता की पगार अच्छी हो गई तो वह चिराग दिल्ली से लाजपत नगर आ गई. यहां वह ए.के. दत्ता के फ्लैट में किराए पर रहने लगी. यहां उस का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था.

इतने दिनों तक लिवइन रिलेशन में रहने के कारण दोनों के परिवार वाले भी उन के संबंधों से परिचित हो गए थे. अनीता का भाई विजय छेत्री जबतब कालिंपोंग से दिल्ली में उस के पास आता रहता था. उसे सुनील का व्यवहार पसंद नहीं था.

विजय ने अनीता की पसंद पर ऐतराज तो नहीं जताया लेकिन एक दिन उस ने सुनील की गैरमौजूदगी में अपने मन की बात अनीता को बता दी. चूंकि अनीता सुनील से प्यार करती थी, इसलिए उस ने भाई से सुनील का पक्ष लेते हुए कहा कि सुनील दिल का बुरा नहीं है लेकिन फिर भी अगर सुनील की कोई बात उसे अच्छी नहीं लगती है तो वह उसे कह कर इस में सुधार लाने का प्रयास करेगी.

विजय ने जब देखा कि उस की बहन ने उस की बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है तो उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. सुनील और अनीता को विजय की बातों से जरा भी फर्क नहीं पड़ा था.

लेकिन कहते हैं कि हर आदमी का वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है. सुनील तमांग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी बात को ले कर सुनील की रेस्टोरेंट से नौकरी छूट गई. नौकरी छूट जाने की वजह से वह परेशान तो हुआ लेकिन अनीता अच्छा कमा रही थी, इसलिए घर का खर्च आराम से चल जाता था.

हालांकि कुछ दिन बाद अनीता सुनील को समझाबुझा कर जल्दी कहीं नौकरी खोजने का दबाव बना रही थी, मगर 6 महीने तक सुनील को उस के मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली.

धीरेधीरे अनीता को ऐसा लगने लगा जैसे सुनील जानबूझ कर नौकरी नहीं करना चाहता है और अब वह उस के ही पैसों पर मौज करना चाहता है. ऐसा विचार मन में आते ही उस ने एक दिन तीखे स्वर में सुनील से कहा, ‘‘सुनील, या तो तुम जल्दी कहीं पर नौकरी ढूंढ लो अन्यथा मेरा साथ छोड़ कर यहां से कहीं और चले जाओ.’’

हालांकि अनीता ने यह बात सुनील को समझाने के लिए कही थी, लेकिन उस दिन के बाद सुनील के तेवर बदल गए. उस ने अनीता से कहा कि वह उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा और फिर भी अगर वह उसे जबरन खुद से दूर करने की कोशिश करेगी तो उस के पास अंतरंग क्षणों के कई फोटो मोबाइल पर पड़े हैं, जिन्हें वह उस के सगेसंबंधियों के मोबाइल पर भेज देगा, जिस के बाद वह कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

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रुपयों की तंगी तथा सुनील की धमकी को सुन कर अनीता कांप उठी. इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अनीता ने सुनील को नौकरी ढूंढने पर जोर देती रही, लेकिन सुनील पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

अंत में अनीता ने कालिंपोंग स्थित अपने भाई विजय को अपनी मुसीबत के बारे में बताया तो विजय गुस्से से भर उठा. उस ने अनीता से कहा कि वह जल्द ही सुनील नाम के इस कांटे को उस की जिंदगी से निकाल फेंकेगा.

भाई ने बनाया हत्या का प्लान

भाई की बात सुन कर अनीता को राहत महसूस हुई. विजय को सुनील पहले से नापसंद था. अब जब अनीता खुद ही उस से छुटकारा पाना चाहती थी तो उस ने अपने रिश्ते के बहनोई राजेंद्र के साथ मिल कर सुनील को मौत की नींद सुलाने की योजना तैयार कर ली. इस के बाद उस ने अनीता को अपनी योजना के बारे में बताया तो अनीता ने दोनों को दिल्ली पहुंचने के लिए कह दिया.

7 सितंबर, 2019 को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग से नई दिल्ली पहुंचे और पहाड़गंज के एक होटल में रुके. अनीता फोन से बराबर भाई के संपर्क में थी. लेकिन सुनील अनीता और विजय के षडयंत्र से अनजान था. उसे सपने में भी गुमान नहीं था कि अनीता उस की ज्यादतियों से तंग आ कर उस का कत्ल भी करवा सकती है.

9 सितंबर को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पूर्वनियोजित योजना के अनुसार रात के 10 बजे अनीता के फ्लैट पर पहुंचे. अनीता दोनों से ऐसे मिली जैसे उन्हें पहली बार देखा हो. सुनील भी उन से घुलमिल कर बातें करने लगा.

साढ़े 11 बजे उस ने अचानक सब को बताया कि उसे अभी इसी वक्त अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा जाना है. इस के बाद वह तैयार हो कर फ्लैट से बाहर निकल गई.  रात में अनीता सुनील के मोबाइल पर काल कर के उस से 2-3 घंटे तक मीठीमीठी बातें करती रही.

तड़के करीब 4 बजे जैसे ही सुनील सोया, तभी विजय ने राजेंद्र के साथ मिल कर उस की गरदन पर चाकू से वार किया. थोड़ी देर तड़पने के बाद जब उस का शरीर ठंडा पड़ गया तो दोनों वहां से आनंद विहार के लिए निकल गए, क्योंकि वहां से उन्हें कालिंपोंग के लिए ट्रेन पकड़नी थी.

आनंद विहार जाने के दौरान रास्ते में विजय ने खून से सना चाकू एक सुनसान जगह पर फेंक दिया. आनंद विहार स्टेशन से रेलगाड़ी द्वारा वे कालिंपोंग पहुंच गए.

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इन से विस्तार से पूछताछ करने के बाद अगले दिन 16 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने सुनील तमांग की हत्या के आरोप में उस की लिवइन पार्टनर अनीता, विजय छेत्री तथा राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

मामले की जांच थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन कर रहे थे.

Best of Manohar Kahaniya: मिल ही गई गुनाहों की सजा

सौजन्य- मनोहर कहानियां

चंडीगढ़ के एडीशनल सेशन जज एस.के. सचदेवा ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की सूची पर नजर  डाली, 16 गवाह थे. इन में पुलिस वालों के बयान तो लगभग एक जैसे थे कि लाश मिलने पर उन्होंने कौनकौन सी काररवाई की थी. अभियुक्तों की निशानदेही पर कैसे क्या बरामद किया गया था.

इस के अलावा गवाह के रूप में पेश हुए जनकदेव ने अजीब सा बयान दिया तो उसे मुकरा हुआ गवाह घोषित कर दिया गया. गुरमेल सिंह ने अपने बयान में बताया था कि सेक्टर-56 स्थित उस की दुकान पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिन की फुटेज उस ने पुलिस वालों को मुहैया करवाई थी.

संतोष कुमार का कहना था कि वह बद्दी (हिमाचल प्रदेश) की एक फैक्ट्री में मैकेनिक था और रिश्ते में अजय कुमार का साला था. 14 मई, 2016 को उसे उस की मौसी ने फोन कर के अजय की लाश मिलने की बात बताई थी. वह अगले दिन चंडीगढ़ के सिविल अस्पताल की मोर्चरी में अजय की लाश देखने गया था. तब पुलिस ने उस से लाश की लिखित शिनाख्त करवाई थी.

डा. ज्योति बरवा ने डा. रिशु जिंदल के साथ मिल कर लाश का पोस्टमार्टम किया था. डा. संजीव ने अदालत के सामने पेश हो कर मृतक की ब्लड ग्रुप संबंधी रिपोर्ट पेश की थी.

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अभियोजन पक्ष के गवाहों को निपटाने में अदालत को कई महीने का समय लग गया था. उस के बाद बचावपक्ष के गवाहों की बारी थी, जो 5 थे. दिनेश सिंह, बृजेश कुमार यादव, बलविंदर सिंह, किरन तथा खुशबू.

इन लोगों ने अपने बयान में क्या कहा, यह जानने से पहले इस मामले के बारे में जान लेना ठीक रहेगा.

रूबी कुमारी मूलरूप से बिहार की रहने वाली थी. जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी अजय कुमार से हो गई थी. वह भी बिहार का ही रहने वाला था. लेकिन नौकरी की वजह से वह चंडीगढ़ में रहता था. शादी के बाद उस ने रूबी को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ दिया था.

चंडीगढ़ से सटे मोहाली में वह गत्ता बनाने वाली एक फैक्ट्री में नौकरी करता था और चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में छोटा सा मकान ले कर अकेला ही रहता था. साल में 2 बार 10-10 दिनों की छुट्टी ले कर वह गांव जाया करता था.

देखतेदेखते 13 साल का लंबा अरसा गुजर गया. इस बीच वह 3 बच्चों का पिता बन गया था. सन 2015 में अजय बीवीबच्चों को चंडीगढ़ ले आया. उस ने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया.

रूबी शरीर से चुस्तदुरुस्त थी. गांव में उस के पास साइकिल थी. चंडीगढ़ आ कर उस ने स्कूटर चलाना सीख लिया तो अजय ने उसे एक्टिवा स्कूटी दिलवा दी. अजय सुबह लोकल बस से नौकरी पर चला जाता. रूबी तीनों बच्चों को स्कूल पहुंचाती. इस के बाद खाना बना कर दोपहर को टिफिन ले कर वह स्कूटी से पति को फैक्ट्री में दे आती. शाम को छुट्टी के बाद अजय बस से घर आ जाता.

रूबी ने पति को कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया था. अजय पत्नी से बहुत खुश था. वह अकसर कहता रहता था कि उस की जैसी पत्नी खुशनसीब इंसान को ही मिलती है. रूबी सुंदर भी थी, पति को रिझाने की उसे हर कला आती थी. पासपड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं अपनी बहुओं को रूबी की मिसाल दिया करती थीं.

खैर, अजय का समय परिवार के साथ बहुत अच्छे से बीत रहा था. बुरे वक्त की उस ने कल्पना भी नहीं की थी, पर अचानक उस का बुरा वक्त आ गया.

14 मई, 2016 की सुबह एक बुजुर्ग सैर करते हुए सैक्टर-56 के सरकारी स्कूल के पास से गुजरे तो उन की नजर एक जगह वीराने में सीवरेज गटर के पास पड़े सफेद रंग के बोरे पर पड़ी. बोरे के पास पहुंच कर उन्होंने उसे टटोला तो उस में लाश होने की आशंका हुई.

उन्होंने तुरंत इस बात की सूचना 100 नंबर पर दे दी. थोड़ी ही देर में एक पीसीआर वैन वहां आ पहुंची. पुलिसकर्मियों ने उस बुजुर्ग से बात कर के इस बात की सूचना पलसौरा चौकी को दे दी. थोड़ी ही देर में हवलदार कुलदीप सिंह, 2 सिपाही परवीन कुमार और दविंदर सिंह के साथ इंसपेक्टर अमराओ सिंह मौके पर आ पहुंचे.

बोरा खोला गया तो उस में से एक लाश निकली, जिस की शिनाख्त अजय कुमार के रूप में हुई. अमराओ सिंह की तहरीर पर थाना सेक्टर-39 में इस मामले में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. थानाप्रभारी इंसपेक्टर दिलशेर सिंह ने भी मौके पर जा कर मामले की जांच की.

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लाश की पहचान मोहाली की गत्ता फैक्ट्री में काम करने वाले अजय कुमार के रूप में हुई थी. वहां संपर्क करने पर पता चला कि वह चंडीगढ़ के सेक्टर-56 के मकान नंबर 589 में रहता था और पिछले 2 दिनों से ड्यूटी पर नहीं आया था.

पुलिस ने पंचनामा तैयार कर लाश मोर्चरी में रखवा दी. इस के बाद इंसपेक्टर दिलशेर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम मृतक के पते पर पहुंची. वहां उन की मुलाकात अजय की पत्नी रूबी से हुई. उस के तीनों बच्चे भी घर पर थे. अजय के बारे में पूछने पर रूबी ने बताया कि उस के पति 12 मई की सुबह तैयार हो कर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकले थे लेकिन अभी तक वापस नहीं आए.

पुलिस के यह पूछने पर कि उस ने इस बारे में पति की फैक्ट्री में पता किया था या फिर पुलिस चौकी में मिसिंग रिपोर्ट लिखाई थी, तो उस ने मना करते हुए कहा कि किसी बात पर उस का पति से झगड़ा हो गया था. नाराज हो कर वह पैदल ही घर से चले गए थे. उस ने सोचा कि गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो खुद ही वापस आ जाएंगे.

‘‘वह 2 दिनों तक घर नहीं लौटे तो तुम्हें उन की कोई फिक्र नहीं हुई?’’ इंसपेक्टर दिलशेर सिंह ने पूछा.

‘‘फिक्र करने से क्या होता. वैसे भी वह कोई बच्चे तो थे नहीं. न मैं ने उन से झगड़ा किया था. झगड़ा उन्होंने ही शुरू किया था.’’ रूबी ने कहा.

तभी पास खड़ी उस की बड़ी बेटी ने कहा, ‘‘पापा तो मम्मी को समझा रहे थे, झगड़ा मम्मी ने ही शुरू किया था. पहले भी मम्मी पापा से लड़ती रहती थी.’’

पुलिस वालों का ध्यान उस लड़की की ओर गया. दिलशेर सिंह ने उस से प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी पापा से किस बात के लिए लड़ती थी?’’

‘‘सुमन भैया की वजह से. पापा उन्हें पसंद नहीं करते थे, जबकि मम्मी ने उन्हें सिर चढ़ा रखा था.’’ लड़की ने बताया.

वह कुछ और कहती, इस से पहले रूबी ने उस के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुमन रिश्ते में हमारा भतीजा है सर. कभीकभार हम लोगों से वह मिलने आ जाता था जबकि मेरे पति को उस का यहां आना पसंद नहीं था. बस, इसी बात को ले कर हमारा कभीकभार झगड़ा हो जाता था. जब भी झगड़ा होता, वह नाराज हो कर चले जाते थे, फिर 2-3 दिनों बाद खुद ही वापस आ जाते थे.’’

‘‘पर इस बार वह नहीं लौटेंगे,’’ दिलशेर सिंह ने कहा. इस के बाद वह रूबी को अपने साथ जनरल अस्पताल ले गए, जहां मोर्चरी में रखा शव निकलवा कर उसे दिखाया तो वह उस की पहचान अपने पति के रूप में कर के छाती पीटपीट कर रोने लगी.

इस के बाद वह बेहोश सी हो कर जमीन पर लेट गई. अब तक सारा मामला दिलशेर सिंह की समझ में आ चुका था. मगर बिना किसी पुख्ता सबूत के वह किसी पर हाथ डालना नहीं चाहते थे. उन्होंने रूबी को अस्पताल से दवा दिलवा कर वापस घर भिजवा दिया.

इस के बाद उन्होंने रूबी के घर के आसपास की दुकानों के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इन में रूबी 13 व 14 मई की रात में 12 बज कर 14 मिनट 16 सेकेंड पर एक आदमी को अपनी स्कूटी पर बिठा कर ले जाती दिखाई दी. स्कूटी के पीछे बैठे व्यक्ति ने अपने हाथों से गोल सी कोई चीज संभाल रखी थी.

इस सबूत के मिलते ही पुलिस ने उसी शाम रूबी को उस के घर से उठा लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो उस ने अपना गुनाह मानते हुए इस अपराध में 2 और लोगों के शामिल होने की बात बताई.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने उसी रात सुमन कुमार और कुलप्रकाश नाम के लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया.

अगले दिन तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर के पुलिस ने उन का पुलिस रिमांड ले लिया. इस के बाद उन से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में यह बात सामने आई कि रूबी जब बिहार में अपनी ससुराल में पति के बिना रहती थी तो उस के अपने से 6 साल छोटे सुमन कुमार से अवैध संबंध बन गए थे. दूर की रिश्तेदारी में सुमन अजय कुमार का भतीजा लगता था. लिहाजा इन दोनों के संबंधों पर कभी किसी को शक नहीं हुआ. इस बात का दोनों ही फायदा उठाते रहे.

अजय जब रूबी को अपने साथ चंडीगढ़ ले आया तो दोनों प्रेमी बिछुड़ गए. लिहाजा दोनों को ही एकदूसरे की याद सताने लगी. सुमन का जीजा कुलप्रकाश भी चंडीगढ़ में नौकरी करता था. वह उसी मकान की ऊपरी मंजिल में रहता था, जिस में रूबी अपने पति व बच्चों के साथ रह रही थी. नौकरी तलाश करने के बहाने सुमन अपने जीजा के पास आ गया.

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इस तरह वह और रूबी फिर से एकदूसरे के करीब हो गए. जब बच्चे स्कूल और बड़े अपने काम पर चले जाते तो सुमन और रूबी को मिलने का मौका मिल जाता था. रूबी चालाक और बातूनी थी. वह पति को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करती. इस के अलावा उस ने पासपड़ोस में भी अपना अच्छा प्रभाव बना रखा था.

वैसे तो दोनों ही मिलने में बड़ी होशियारी दिखाते थे लेकिन एक दिन अजय घर पर जल्दी आ गया. उस दिन अजय ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ लिया. सुमन को डांट कर भगाने के बाद उस ने रूबी की खूब खबर ली. पतिपत्नी के बीच शुरू हुआ यह झगड़ा उन के बच्चों के स्कूल से आने के बाद तक चलता रहा.

अजय को पत्नी की हकीकत पता लग चुकी थी इसलिए अब वह टाइमबेटाइम घर आने लगा. घर पर उसे सुमन भले ही न मिलता लेकिन पतिपत्नी के बीच झगड़ा फिर से शुरू हो जाता. अजय के सक्रिय हो जाने पर रूबी और सुमन की मुलाकातों पर पहरा लग गया था. ऊपर से रोजरोज के झगड़े से रूबी भी आजिज आ गई थी. एक दिन रूबी ने सुमन से मुलाकात कर के इस समस्या का हल निकालने को कहा.

उस ने रूबी को बताया कि अजय को रास्ते से हटाने के अलावा दूसरा कोई हल नहीं है. इस के बाद दोनों ने अजय को मौत के घाट उतारने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, 12 मई, 2016 की छुट्टी के बाद रूबी तीनों बच्चों को कोई बहाना कर के अपने एक परिचित के यहां छोड़ आई.

दरअसल, उस दिन अजय को बुखार था. दवा दिलवाने के बाद रूबी ने उसे सुला दिया. उसी रात सुमन चाकू ले कर उन के यहां आ पहुंचा. उस वक्त अजय गहरी नींद में था. रूबी ने नींद में सोए पति के गले पर चाकू से वार किए.

जब वह तड़पने लगा तो उस ने और सुमन ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. जब उन्हें इत्मीनान हो गया कि यह मर चुका है तो उन्होंने उस के शव को मोटे कपड़े में लपेट कर घर में पड़े सफेद रंग के बोरे में ठूंस दिया. इस के बाद दोनों मौजमस्ती में डूब गए.

वे शव को ठिकाने लगाने का मौका ढूंढते रहे. पूरे दिन शव उन के घर में ही पड़ा रहा. 13 मई की रात में चंडीगढ़ में जबरदस्त आंधीतूफान आया था.

इस भयावह मौसम की परवाह न कर के रूबी ने आधी रात में अपनी स्कूटी नंबर सीएच04 6538 निकाली और पति के शव वाले बोरे के साथ सुमन को ले कर घर से निकल गई. एक गटर के पास उस ने स्कूटी रोक दी.

उन की योजना शव को गटर में फेंकने की थी मगर उन दोनों से उस का ढक्कन नहीं खुल पाया. तब वे उस बोरे को वहीं छोड़ कर वापस घर आ गए. घर लौट कर उन्होंने अपनी रासलीला रचाई.

कुलप्रकाश का कसूर यह था कि उसे सुमन और रूबी के संबंधों की जानकारी थी. अजय की हत्या के बाद सुमन उसे बुला कर लाया था तो उस ने न केवल शव को पैक करने में मदद की थी, बल्कि खूनआलूदा कपडे़ व चाकू वगैरह भी ले जा कर अलगअलग जगहों पर छिपा दिए थे, जो बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर बरामद कर लिए थे.

पुलिस रिमांड की अवधि समाप्त होने पर तीनों को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

निर्धारित समयावधि में दिलशेर सिंह ने केस का चालान तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया, जहां से सेशन कमिट हो कर यह केस अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.के. सचदेवा की अदालत में पहुंचा. अदालत में इस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. अभियोजन पक्ष के गवाहों को सुनने के बाद विद्वान जज ने बचाव पक्ष के गवाहों को सुनना शुरू किया.

दिनेश एक ठेकेदार था. कुलप्रकाश उस का मातहत था. बचावपक्ष के गवाह के रूप में दिनेश ने अदालत को बताया कि 14 मई, 2016 को वह कुलप्रकाश व 2 अन्य लोगों के साथ चंडीगढ़ के सेक्टर-9डी के शोरूम नंबर 26, 27 में काम कर रहा था कि दिन के साढ़े 10-पौने 11 बजे पल्सौरा चौकी की पुलिस आ कर कुलप्रकाश को पकड़ ले गई थी.

एक गवाह बृजेश कुमार यादव ने बताया कि वह मोहाली की उस गत्ता फैक्ट्री में नौकरी करता था, जहां मृतक काम करता था. 14 मई, 2016 को पुलिस ने गत्ता फैक्ट्री में पहुंच कर अजय के बारे में बृजेश से औपचारिक पूछताछ की थी.

बलविंदर मृतक अजय का पड़ोसी था, किरण कुलप्रकाश की पत्नी थी और खुशबू अजय की बेटी. कोर्ट में इन सभी के बयान दर्ज हुए. इन के बयानों में भी ऐसा कुछ खास नहीं था जो आरोपियों के बचाव के लिए कुछ करता.

इस के बाद दोनों पक्षों में बहस का दौर चला. इस जिरह में भाग लिया था पब्लिक प्रौसीक्यूटर मनिंदर कौर, सुमन के वकील विशाल गर्ग नरवाना, रूबी कुमारी की वकील प्रतिभा भंडारी एवं कुलप्रकाश के वकील पी.सी. राना ने.

विद्वान जज ने दोनों पक्षों को पूरी तवज्जो दे कर सुना. तमाम साक्ष्यों का निरीक्षण कर के अजय कुमार की हत्या में उक्त तीनों अभियुक्तों को दोषी पाते हुए न्यायाधीश ने 18 सितंबर, 2017 को अपना फैसला सुना दिया.

उन्होंने अपने फैसले में सुमन कुमार और रूबी कुमारी को भादंवि की धारा 302, 34 के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद के अलावा डेढ़ लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. उन्होंने कहा कि जुरमाना अदा न करने की सूरत में 6 महीने की सश्रम कैद और बढ़ा दी जाएगी.

इन दोनों को भादंवि की धारा 201 के तहत 3 साल की सश्रम कैद और 50 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. जुरमाना अदा न कर पाने की स्थिति में एक महीने की अतिरिक्त सश्रम कैद की सजा भुगतने का आदेश दिया.

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न्यायाधीश ने कुलप्रकाश को भादंवि की धारा 302, 34 के अंतर्गत बामशक्कत उम्रकैद की सजा के अलावा डेढ़ लाख रुपए का जुरमाना अथवा 6 महीने की सश्रम कैद का फैसला सुनाया. सजा सुनाने के बाद तीनों दोषियों को चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल भेज दिया गया.

कथा तैयार करने तक तीनों दोषी बुड़ैल जेल में बंद थे.

 -कथा अदालत के फैसले पर आधारित

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सौजन्य: मनोहर कहानियां

26 साल के छत्रपति शर्मा की आंखों में नींद नहीं थी. वह लगातार अपनी नईनवेली बीवी प्रिया को निहार रहा था. जैसे ही प्रिया की नजरें उस से टकराती थीं, वह शरमा कर सिर झुका लेती थी. 20 साल की प्रिया वाकई खूबसूरती की मिसाल थी. लंबी, छरहरी और गोरे रंग की प्रिया से उस की शादी हुए अभी 2 दिन ही गुजरे थे, लेकिन शादी के रस्मोरिवाज की वजह से छत्रपति को उस से ढंग से बात करने तक का मौका नहीं मिला था.

छत्रपति मुंबई में स्कूल टीचर था. उस की शादी मध्य प्रदेश के सिंगरौली शहर के एक खातेपीते घर में तय हुई थी और शादी मुहूर्त 23 नवंबर, 2017 का निकला था. इस दिन वह मुंबई से बारात ले कर सिंगरौली पहुंचा और 24 नवंबर को प्रिया को विदा करा कर वापस मुंबई जा रहा था. सिंगरौली से जबलपुर तक बारात बस से आई थी. जबलपुर में थोड़ाबहुत वक्त उसे प्रिया से बतियाने का मिला था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह अपने दिल की बातों का हजारवां हिस्सा भी उस के सामने बयां कर पाता.

बारात जबलपुर से ट्रेन द्वारा वापस मुंबई जानी थी, जिस के लिए छत्रपति ने पहले से ही सभी के रिजर्वेशन करा रखे थे. उस ने अपना, प्रिया और अपनी बहन का रिजर्वेशन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस के एसी कोच में और बाकी बारातियों का स्लीपर कोच में कराया था. ट्रेन रात 2 बजे के करीब जब जबलपुर स्टेशन पर रुकी तो छत्रपति ने लंबी सांस ली कि अब वह प्रिया से खूब बतियाएगा. वजह एसी कोच में भीड़ कम रहती है और आमतौर पर मुसाफिर एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.

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ट्रेन रुकने पर बाराती अपने स्लीपर कोच में चले गए और छत्रपति, उस की बहन और प्रिया एसी कोच में चढ़ गए. छत्रपति की बहन भी खुश थी कि उस की नई भाभी सचमुच लाखों में एक थी. उस के घर वालों ने शादी भी शान से की थी.

जब नींद टूटी तो…

कोच में पहुंचते ही छत्रपति ने तीनों के बिस्तर लगाए और सोने की तैयारी करने लगा. उस समय रात के 2 बजे थे, इसलिए डिब्बे के सारे मुसाफिर नींद में थे. जो थोड़ेबहुत लोग जाग रहे थे, वे भी जबलपुर में शोरशराबा सुन कर यहांवहां देखने के बाद फिर से कंबल ओढ़ कर सो गए थे. छत्रपति और प्रिया को 29 और 30 नंबर की बर्थ मिली थी.

जबलपुर से जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, छत्रपति फिर प्रिया की तरफ मुखातिब हुआ. इस पर प्रिया ने आंखों ही आंखों में उसे अपनी बर्थ पर जा कर सोने का इशारा किया तो वह उस पर और निहाल हो उठा. दुलहन के शृंगार ने प्रिया की खूबसूरती में और चार चांद लगा दिए थे. थके हुए छत्रपति को कब नींद आ गई, यह उसे भी पता नहीं चला. पर सोने के पहले वह आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखता रहा, जिस में उस के और प्रिया के अलावा कोई तीसरा नहीं था.

जबलपुर के बाद ट्रेन का अगला स्टौप इटारसी और फिर उस के बाद भुसावल जंक्शन था, इसलिए छत्रपति ने एक नींद लेना बेहतर समझा, जिस से सुबह उठ कर फ्रैश मूड में प्रिया से बातें कर सके.

सुबह कोई 6 बजे ट्रेन इटारसी पहुंची तो प्लैटफार्म की रोशनी और गहमागहमी से छत्रपति की नींद टूट गई. आंखें खुलते ही कुदरती तौर पर उस ने प्रिया की तरफ देखा तो बर्थ खाली थी. छत्रपति ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. वह उस के वापस आने का इंतजार करने लगा.

ट्रेन चलने के काफी देर बाद तक प्रिया नहीं आई तो उस ने बहन को जगाया और टायलेट जा कर प्रिया को देखने को कहा. बहन ने डिब्बे के चारों टायलेट देख डाले, पर प्रिया उन में नहीं थी. ट्रेन अब पूरी रफ्तार से चल रही थी और छत्रपति हैरानपरेशान टायलेट और दूसरे डिब्बों में प्रिया को ढूंढ रहा था.

सुबह हो चुकी थी, दूसरे मुसाफिर भी उठ चुके थे. छत्रपति और उस की बहन को परेशान देख कर कुछ यात्रियों ने इस की वजह पूछी तो उन्होंने प्रिया के गायब होने की बात बताई. इस पर कुछ याद करते हुए एक मुसाफिर ने बताया कि उस ने इटारसी में एक दुलहन को उतरते देखा था.

इतना सुनते ही छत्रपति के हाथों से जैसे तोते उड़ गए. क्योंकि प्रिया के बदन पर लाखों रुपए के जेवर थे, इसलिए किसी अनहोनी की बात सोचने से भी वह खुद को नहीं रोक पा रहा था. दूसरे कई खयाल भी उस के दिमाग में आजा रहे थे. लेकिन यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि आखिरकार प्रिया बगैर बताए इटारसी में क्यों उतर गई? उस का मोबाइल फोन बर्थ पर ही पड़ा था, इसलिए उस से बात करने का कोई और जरिया भी नहीं रह गया था.

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एक उम्मीद उसे इस बात की तसल्ली दे रही थी कि हो सकता है, वह इटारसी में कुछ खरीदने के लिए उतरी हो और ट्रेन चल दी हो, जिस से वह पीछे के किसी डिब्बे में चढ़ गई हो. लिहाजा उस ने अपनी बहन को स्लीपर कोच में देखने के लिए भेजा. इस के बाद वह खुद भी प्रिया को ढूंढने में लग गया.

भुसावल आने पर बहन प्रिया को ढूंढती हुई उस कोच में पहुंची, जहां बाराती बैठे थे. बहू के गायब होने की बात उस ने बारातियों को बताई तो बारातियों ने स्लीपर क्लास के सारे डिब्बे छान मारे. मुसाफिरों से भी पूछताछ की, लेकिन प्रिया वहां भी नहीं मिली. प्रिया नहीं मिली तो सब ने तय किया कि वापस इटारसी जा कर देखेंगे. इस के बाद आगे के लिए कुछ तय किया जाएगा. बात हर लिहाज से चिंता और हैरानी की थी, इसलिए सभी लोगों के चेहरे उतर गए थे. शादी की उन की खुशी काफूर हो गई थी.

प्रिया मिली इलाहाबाद में, पर…

इत्तफाक से उस दिन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस खंडवा स्टेशन पर रुक गई तो एक बार फिर सारे बारातियों ने पूरी ट्रेन छान मारी, लेकिन प्रिया नहीं मिली.

इस पर छत्रपति अपने बड़े भाई और कुछ दोस्तों के साथ ट्रेन से इटारसी आया और वहां भी पूछताछ की, पर हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. अब पुलिस के पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. इसी दौरान छत्रपति ने प्रिया के घर वालों और अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर प्रिया के गुम हो जाने की बात बता दी थी.

पुलिस वालों ने उस की बात सुनी और सीसीटीवी के फुटेज देखी, लेकिन उन में कहीं भी प्रिया नहीं दिखी तो उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इधर छत्रपति और उस के घर वालों का सोचसोच कर बुरा हाल था कि प्रिया नहीं मिली तो वे घर जा कर क्या बताएंगे. ऐसे में तो उन की मोहल्ले में खासी बदनामी होगी.

कुछ लोगों के जेहन में यह बात बारबार आ रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रिया का चक्कर किसी और से चल रहा हो और मांबाप के दबाव में आ कर उस ने शादी कर ली हो. फिर प्रेमी के साथ भाग गई हो. यह खयाल हालांकि बेहूदा था, जिसे किसी ने कहा भले नहीं, पर सच भी यही निकला.

पुलिस वालों ने वाट्सऐप पर प्रिया का फोटो उस की गुमशुदगी के मैसेज के साथ वायरल किया तो दूसरे ही दिन पता चल गया कि वह इलाहाबाद के एक होटल में अपने प्रेमी के साथ है. दरअसल, प्रिया का फोटो वायरल हुआ तो उसे वाट्सऐप पर इलाहाबाद स्टेशन के बाहर के एक होटल के उस मैनेजर ने देख लिया था, जिस में वह ठहरी हुई थी. मामला गंभीर था, इसलिए मैनेजर ने तुरंत प्रिया के अपने होटल में ठहरे होने की खबर पुलिस को दे दी.

एक कहानी कई सबक

छत्रपति एक ऐसी बाजी हार चुका था, जिस में शह और मात का खेल प्रिया और उस के घर वालों के बीच चल रहा था, पर हार उस के हिस्से में आई थी.

इलाहाबाद जा कर जब पुलिस वालों ने उस के सामने प्रिया से पूछताछ की तो उस ने दिलेरी से मान लिया कि हां वह अपने प्रेमी राज सिंह के साथ अपनी मरजी से भाग कर आई है. और इतना ही नहीं, इलाहाबाद की कोर्ट में वह उस से शादी भी कर चुकी है.

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बकौल प्रिया, वह और राज सिंह एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं, यह बात उस के घर वालों से छिपी नहीं थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी छत्रपति से तय कर दी थी. मांबाप ने सख्ती दिखाते हुए उसे घर में कैद कर लिया था और उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था, जिस से वह राज सिंह से बात न कर पाए.

4 महीने पहले उस की शादी छत्रपति से तय हुई तो घर वालों ने तभी से उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. लेकिन छत्रपति से बात करने के लिए उसे मोबाइल दे दिया जाता था. तभी मौका मिलने पर वह राज सिंह से भी बातें कर लिया करती थी. उसी दौरान उन्होंने भाग जाने की योजना बना ली थी.

प्रिया के मुताबिक राज सिंह विदाई वाले दिन ही जबलपुर पहुंच गया था. इन दोनों का इरादा पहले जबलपुर स्टेशन से ही भाग जाने का था, लेकिन बारातियों और छत्रपति के जागते रहने के चलते ऐसा नहीं हो सका. राज सिंह पाटलिपुत्र एक्सप्रैस ही दूसरे डिब्बे में बैठ कर इटारसी तक आया और यहीं प्रिया उतर कर उस के साथ इलाहाबाद आ गई थी.

पूछने पर प्रिया ने साफ कह दिया कि वह अब राज सिंह के साथ ही रहना चाहती है. राज सिंह सिंगरौली के कालेज में उस का सीनियर है और वह उसे बहुत चाहती है. घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती की थी. प्रिया ने बताया कि अपनी मरजी के मुताबिक शादी कर के उस ने कोई गुनाह नहीं किया है, लेकिन उस ने एक बड़ी गलती यह की कि जब ऐसी बात थी तो उसे छत्रपति को फोन पर अपने और राज सिंह के प्यार की बात बता देनी चाहिए थी.

छत्रपति ने अपनी नईनवेली बीवी की इस मोहब्बत पर कोई ऐतराज नहीं जताया और मुंहजुबानी उसे शादी के बंधन से आजाद कर दिया, जो उस की समझदारी और मजबूरी दोनों हो गए थे.

जिस ने भी यह बात सुनी, उसी ने हैरानी से कहा कि अगर उसे भागना ही था तो शादी के पहले ही भाग जाती. कम से कम छत्रपति की जिंदगी पर तो ग्रहण नहीं लगता. इस में प्रिया से बड़ी गलती उस के मांबाप की है, जो जबरन बेटी की शादी अपनी मरजी से करने पर उतारू थे. तमाम बंदिशों के बाद भी प्रिया भाग गई तो उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उलटे 8-10 लाख रुपए जो शादी में खर्च हुए, अब किसी के काम के नहीं रहे.

मांबाप को चाहिए कि वे बेटी के अरमानों का खयाल रखें. अब वह जमाना नहीं रहा कि जिस के पल्लू से बांध दो, बेटी गाय की तरह बंधी चली जाएगी. अगर वह किसी से प्यार करती है और उसी से शादी करने की जिद पाले बैठी है तो जबरदस्ती करने से कोई फायदा नहीं, उलटा नुकसान ज्यादा है. यदि प्रिया इटारसी से नहीं भाग पाती तो तय था कि मुंबई जा कर ससुराल से जरूर भागती. फिर तो छत्रपति की और भी ज्यादा बदनामी और जगहंसाई होती.

अब जल्द ही कानूनी तौर पर भी मसला सुलझ जाएगा, लेकिन इसे उलझाने के असली गुनहगार प्रिया के मांबाप हैं, जिन्होंने अपनी झूठी शान और दिखावे के लिए बेटी को किसी और से शादी करने के लिए मजबूर किया. इस का पछतावा उन्हें अब हो रहा है.

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जरूरत इस बात की है कि मांबाप जमाने के साथ चलें और जातिपांत, ऊंचनीच, गरीबअमीर का फर्क और खयाल न करें, नहीं तो अंजाम क्या होता है, यह प्रिया के मामले से समझा जा सकता है. – कथा में प्रिया परिवर्तित नाम है.

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