Corona Lockdown में शराब की बहती गंगा 

छत्तीसगढ़ मे कोरोना विषाणु कोविड 19 महामारी के इस समय काल में शराब की  जमीनी स्थिति बेहद चिंताजनक दिखाई दे रही है.  छतीसगढ मे इस भीषण लाॅक डाउन  में भी शराब की गंगा बह रही है! छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार शराबबंदी के मसले पर चारों तरफ से घिर गई है .क्योंकि भूपेश बघेल ने शराबबंदी के मुद्दे पर ही एक तरह से जनादेश हासिल किया था. मगर डेढ़ वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी प्रदेश में शराब बंदी लागू नहीं की गई है  और जैसी परिस्थितियां दिख रही है ऐसा प्रतीत नहीं होता कि आने वाले समय में भूपेश बघेल सरकार छत्तीसगढ़ में बिहार की तर्ज पर शराबबंदी करेगी.

दृश्य एक-

एक हजार की कीमत का शराब लॉक डाउन के इस समय में तीन हजार में बिक रहा  है.

दृश्य  दो- 

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शराब खत्म हुआ जो 80 रुपये में बिकता था तीन सौ रुपए में गली-गली में बिक रहा  है.

दृश्य तीन-

भले आपको दूध, दही इस कोरोना महामारी के समय में ना मिले मगर शराब आप को बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है, कैसे?

कुल मिलाकर यह कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में महामारी के इस समय में भी शराब की गंगा बह रही है. जिम्मेदार अधिकारी जिनका काम कोरोना को  रोकना है वे ही शराब बिकवाते पकड़े जा रहे हैं.

भूपेश बघेल की भीष्म  प्रतिज्ञा

छत्तीसगढ़ में कभी शराब के कारण लोगों के बेवजह तबाह हो जाने की खबरें हत्या और लूट की खबरें सुर्खियों में रहती थी.यह कोरोना महामारी के कारण बेहद कम हो गयी है.

लेकिन लॉक डाउन के बाद से  इन विगत 28 दिनों में इस तरह की  घटनाएं सामने नहीं आ रही है.यहां तक कि घरेलू हिंसा के मामलों पर भी लगाम लगी है. लेकिन जैसे-जैसे लॉक डाउन-2 यानि 3 मई2020  की तारीख नजदीक आती जा रही है,  महिलाओं के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर रही हैं- भरी जवानी में जवान पुत्र या पति को खो देने का भय, मासूम खिलखिलाते बचपन को फिर रोज शराबी पिता के शाम को शराब पीकर घर आकर मारपीट करने, घर में कलह होने,राशन ना होने का भय सताने लगा है. और सवाल  यह उठ रहा है कि भूपेश बघेल की भीष्म  प्रतिज्ञा का क्या हुआ जो उन्होंने विधानसभा चुनाव के पूर्व उठाई थी यानी छत्तीसगढ़ में शराबबंदी.

कारण विगत छत्तीसगढ़ में 28 दिनों से शराब दुकानें बंद हैं.इससे प्रदेश के प्रत्येक घर परिवार में खुशहाली का वातावरण नजर आ रहा है. जो शराब पीने से कोसों दूर है वे तो खुश हैं ही लेकिन महिलाओ और कलह के वातावरण में जीवन बिताने वाले बच्चों के जीवन मे कोरोना कुछ दिनों के लिए एक नया खुशियों का सबेरा लाया हैं.इन सबका मानना है कि प्रदेश में हमेशा के लिए शराबबंदी हो जाए , जिससे शराब पर होने वाला खर्च बच्चों के बेहतर भविष्य के निर्माण में लगे और घर परिवार खुशहाल रहे.एकाएक शराब दुकानें फिर से शुरू होने की खबर से प्रदेश की महिलाएं परेशान हो गई हैं. उन्हें शराब चालू होने के बाद का भय सता रहा है .शराब की वजह से फिर घरेलू हिंसा, कलह, तंगहाली बढ़ेगी। शराब पीने के लिए रुपये की व्यवस्था के लिए महिलाएं मारपीट की शिकार होंगी.

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विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जन घोषणा पत्र प्रदेश की महिलाओं के लिए गहन अंधकार में “दिए की लौ” की भांति पूर्ण शराबबंदी प्रदेश में किए जाने को लेकर सामने आया.प्रदेश की 22 विधानसभा  सीटों पर महिला मतदाताओं की अधिकता है और पूर्ण शराबबंदी का मुद्दा ही कांग्रेस को आशातीत सफलता दिलाते हुए सत्ता के मुकाम पर पहुंचा गया. लेकिन आज लगभग डेढ़ बरस बीतने जा रहे हैं।पूर्ण शराबबंदी की चर्चा पर कांग्रेस दाएं-बाएं झांकने  लगती है.

शराब बंदी की जबरदस्त मांग 

हालांकि “लॉकडाउन” ने शराबबंदी के लिए उपयुक्त समय और वातावरण तैयार कर दिया है.  इतने दिनों में शराब की लत को लेकर ना तो किसी की मौत हुई है और नही कोई मरीज अस्पताल में दाखिल हुआ है. शराब पी कर अस्पताल में भर्ती होने या शराब पीकर मरने की खबरें कई बार सुनने को मिली  है लेकिन लॉक डाउन  के दौरान किसी के शराब न पीने से होने वाली किसी भी विवाद या बड़ी घटना की बात सामने नही आई है. लॉकडाउन ने जनहितकारी शराबबंदी के लिए उपयुक्त समय और वातावरण तैयार कर दिया है. शराब की लत से लॉक डाउन के कारण लाखो मुक्ति पा चुके है. घरों में कलह का वातावरण समाप्त हो चुका है.

 छत्तीसगढ़  के हित में है

अगर छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाना है तो दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ शराबबंदी पूर्ण तौर पर लागू करके प्रदेश को नशे से मुक्त करना होगा.चीन अफीम छोड़कर आज आगे बढ़ गया है, तो हम क्यों नहीं जा सकते. इसके लिए सत्ताधारी कांग्रेस को ही सोचना एवं समझना होगा कि बड़ा सामाजिक-आर्थिक बदलाव का कार्य शराबबंदी से होगा.

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दरअसल, छत्तीसगढ़ में शराब पीने वालों की संख्या  कुछ सालों में तेज़ी से बढ़ती चली गई है. राष्ट्रीय वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की मानें तो छत्तीसगढ़ के 100 में से 32 लोग शराब पीने के आदी हैं, जो देश में सर्वाधिक है.

यह कौन सा सुशासन है, नीतीश कुमार बताएंगे -प्रशांत किशोर

देश में कोरोना वायरस के बढते कहर के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर विपक्ष जम कर भड़ास निकाल रहे हैं. ताजा मामला राजस्थान के कोटा में पढ़ रहे बिहार भाजपा के विधायक अनिल सिंह को ले कर है. विपक्ष का आरोप है कि विधायक का एक बेटा जो राजस्थान के कोटा में रह कर पढाई कर रहा है, को लाने के लिए नीतीश सरकार ने पास जारी किया जो लौकडाउन का सरासर उल्लंघन है, वह भी तब जब इस के पूर्व में कोटा में फंसे सैकङों बच्चों को जब वहां की सरकार ने बिहार जाने की अनुमति दे दी थी तब बिहार के सीमा पर इन्हें रोक दिया गया था. बाद में नीतीश कुमार इस शर्त पर इन छात्रों को राज्य में आने देने के लिए राजी हुए कि इन्हें कुछ दिन क्वारंटाइन में रखा जाएगा.

अब नीतीश के कभी काफी करीब रहे और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत कुमार ने सरकार पर निशाना साधा है.

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एक के बाद एक ट्वीट कर प्रशांत किशोर ने कहा,”कोटा में फंसे सैकड़ों बच्चों को नीतीश कुमार ने यह कह कर खारिज कर दिया कि ऐसा करना लौकडाउन की मर्यादा के खिलाफ होगा. अब उन्हीं की सरकार ने बीजेपी के एक एमएलए को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए विशेष अनुमति दे दी. नीतीशजी, अब आप की मर्यादा क्या कहती है?”

बिहार के गरीब मजदूर फंसे पड़े हैं

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इस से पहले भी प्रशांत किशोर ने कई ट्विट कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा था, जब बिहार के प्रवासी मजदूरों को बिहार में प्रवेश को ले कर नीतीश कुमार ने इसे लौकडाउन का उल्लंघन बताया था.

अपने ट्विट में प्रशांत ने कहा था,”देश भर में बिहार के लोग फंसे पङे हैं और नीतीशजी मर्यादा का पाठ पढा रहे हैं. स्थानीय सरकारें कुछ कर भी रही हैं पर, पर नीतीशजी ने संबंधित राज्यों से इस मसले पर बात भी नहीं की. पीएम के साथ मीटिंग में भी उन्होंने इस की चर्चा तक नहीं की.”

प्रशांत किशोर ने अगले ट्विट में लिखा,”नीतीशजी इकलौते ऐसे सीएम हैं जो पिछले 1 महीने से लौकडाउन के नाम पर पटना के अपने आवास से बाहर तक नहीं निकले हैं. साहेब की संवेदनशीलता और व्यस्तता ऐसी है कि कुछ करना तो दूर, दूसरे राज्य में फंसे बिहार के लोगों को लाने के लिए इन्होंने किसी सीएम से बात तक नहीं की.”

कन्नी काट गए मंत्रीजी

बिहार सरकार में जल संसाधन मंत्री और दिल्ली जदयू के प्रभारी संजय झा से जब फोन पर बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा,”देखिए यह तो अधिकारियों के बीच की बात है. सरकार कहीं भी इस मुद्दे को ले कर शामिल नहीं है.”

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यह पूछने पर कि नीतीश सरकार ने बिहार के प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए क्या किया है? उन्होंने गोलमोल जवाब दे कर बताने से इनकार कर दिया.

गरीब मजदूरों की कोई अहमियत नहीं

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इधर दिल्ली में फंसे हजारों दिहाङी मजदूरों को लौकडाउन का हवाला दे कर ‘जहां हैं वहीं रहें’ कहने वाले नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पुष्पेंद श्रीवास्तव ने कहा,”लगता है बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर नीतीशजी गठबंधन धर्म निभा रहे हैं या फिर वे भाजपा नेताओं के दबाव में हैं.”

उन्होंने कहा,”यह तो बेहद अफसोस की बात है कि एक तरफ जहां बिहार के हजारों प्रवासी मजदूर दिल्ली सहित देश के कई जगहों पर फंसे पङे हैं, तो सिवाय इन के लिए कुछ करने के, बिहार के एक भाजपा एमएलए को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए वीआईपी पास जारी करना मूर्खता है.

“जब नीतीश कुमार प्रवासी मजदूरों को बिहार लाने में असमर्थ थे और लौकडाउन का हवाला दे रहे थे तो इस की सराहना ही हो रही थी पर भाजपा नेता को पास जारी कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि उन की नजरों में गरीब मजदूरों की कोई अहमियत नहीं है. जब कोटा में रह रहे अन्य छात्रों को उन्होंने क्वारंटाइन में रखने को कहा था तो इस बात की क्या गारंटी है कि भाजपा एमएलए के बेटे को कोई संक्रमण नहीं है? क्या इस बात की गारंटी खुद मुख्यमंत्री या राज्य के अधिकारी लेंगे?”

जवाब किसी के पास नहीं

इस मुद्दे को ले कर अब जदयू के पदाधिकारी और विधायक भी कुछ कहने से बचते दिख रहे हैं. दिल्ली प्रदेश जदयू के महासचिव राकेश कुशवाहा ने इस बाबत कुछ कहने से साफ इनकार कर दिया और यहां तक कह दिया कि उन्हें इस की जानकारी तक नहीं है.

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मालूम हो कि बिहार में कोरोना वायरस अब धीरेधीरे अपना पैर पसार चुका है और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक वहां 86 पौजिटिव मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 2 लोगों की मौत भी हो चुकी है.

कानून तो हर किसी पर लागू होता है

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मगर इतना तो साफ है कि कोरोना वायरस को ले कर देशभर में लागू लौकडाउन को ले कर जहां नीतीश सरकार की प्रवासी मजदूरों की घर वापसी और ठोस निर्णय न ले पाने की वजह से आलोचना की जा रही थी, वहीं भाजपा के एक एमएलए के बेटे को पास जारी कर सरकार खुद कटघरे में है. बात भी सही है, नीतीश कुमार राज्य के मुखिया हैं और इस नाते राज्य के अमीरगरीब हर नागरिक के प्रति उन की जिम्मेदारी बनती है. आज वे विपक्ष के निशाने पर हैं तो जाहिर है इस कदम से उन की आलोचना होगी ही वह भी तब जब लौकडाउन में हर किसी पर देश का कानून एकसमान लागू होता है.

फल, सब्जी के बाद पान उत्पादकों पर भी रोजी रोटी का संकट

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने शुरू किए गए लौक डाउन का असर हर जगह दिखाई दे रहा है. फल, फूल, सब्जी उगाने वाले किसानों के साथ देश के विभिन्न इलाकों में पान की खेती करने वाले किसान भी इससे अछूते नहीं हैं. बिना किसी सुरक्षा उपायों के कोरोना वायरस से लड़ी जा रही इस जंग से गरीब किसान जिंदा बच भी गया तो कर्ज के बोझ और भूख से मर जायेगा.

25 मार्च से पूरे देश में लागू किए गए लौक डाउन में पान की दुकानों के बंद होने से पनवाड़ी के साथ पान पत्तों की खेती से जुड़े किसान परिवार की हालत खराब है. पान के पत्तों की तुड़ाई और बिक्री बंद होने से बरेजों में लगी पान की फसल सड़ने की कगार पर  है. पान उत्पादक किसानों की साल भर की मेहनत पर पानी फिर गया है और उनके समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

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मध्यप्रदेश में पान की खेती मुख्य रूप से  छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर, दतिया, पन्ना, सतना, रीवा, सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, मंदसौर, रतलाम, खंण्डवा, होशंगावाद, छिदवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडौरी सहित 21 जिलों में होती है. वैसे तो प्रदेश में चौरसिया जाति के लोगों का व्यवसाय पान की खेती से जुड़ा हुआ है,लेकिन पान बरेजों में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग भी मजदूरी का काम करते हैं. चौरसिया समाज के लोग पान के पत्तों को उगाने के अलावा पान की दुकान पर भी पान और पान मसाला बेचने का धंधा करते हैं.

नरसिंहपुर जिले में करेली तहसील के गांव निवारी, तेंदूखेड़ा तहसील के पीपरवानी और गाडरवारा तहसील के गांव बारहा बड़ा में पान की खेती होती है.

अकेले नरसिंहपुर जिले में चार सौ हेक्टेयर में होने वाली पान की खेती के व्यवसाय से लगभग एक हजार पान उत्पादक किसानों की आजीविका चलती है.पान उत्पादकों द्वारा जिले के बाहर भी अपने पान पत्ते की सप्लाई की जाती है.पिछले एक महीने में इन किसानों की फसल की तुड़ाई और सप्लाई न होने से धीरे धीरे वह सड़ने लगी है.

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निवारी गांव में चौरसिया जाति के एक सौ से अधिक परिवार तीन पीढ़ियों से  पान की खेती कर रहे हैं. गांव के 75 साल के बुजुर्ग खेमचंद चौरसिया अपना दर्द वयां करते हुए कहते हैं -” मेरे दस सदस्यों का परिवार पान की खेती से गुजारा करता है,लेकिन महिने भर से इस लौक डाउन ने खाने पीने को मोहताज कर दिया है”. करेली के साप्ताहिक बाजार में पान की थोक और फुटकर बिक्री करके मिलने वाले रूपयों से रोजमर्रा की चीजों को खरीद कर रोज़ी रोटी चलाते हैं. वे सरकार को कोसते हुए कहते हैं – “ये सरकार की गलत प्लानिंग के कारण हुआ है. जब जनवरी माह में ही दूसरे देशों में कोरोना का अटैक शुरू हो गया था ,तो हमारी सरकार विदेशों में रह रहे अमीर, नौकरशाह और कारपोरेट जगत के लोगों को हवाई जहाज से भारत ला रही थी. यदि उसी समय विदेशों से आवाजाही बंद कर देते तो आज ये दिन न देखने पड़ते”.

बारहा बड़ा के पान उत्पादक ओमप्रकाश  चौरसिया बताते हैं कि पान की फसल नाजुक फसलों में शुमार होती है. पान के पत्तों को तोड़ने के बाद ज्यादा दिनों तक उसे सहेजकर नहीं रखा जा सकता है और पान पत्तों की तुड़ाई भी एक निश्चित अंतराल पर करना होती है.लौक डाउन की वजह से पहले से तोड़ी गई फसल की सप्लाई न होने से सड़ गई है.वे कहते हैं कि उनके पान की सप्लाई छिंदवाड़ा और सागर जिले में तक होता है. मोदी के पहले ही नरसिंहपुर जिले के अफसरों ने 23 मार्च से लौक डाउन कर दिया . इसकी वजह से  पान के रैक नहीं पार्टियों तक न पहुंच कर ट्रांसपोर्ट में ही सड़ गये.अफसरों की सख्ती अब हमें रोजी रोटी को मोहताज रख रही है.

पीपरवानी गांव के औंकार चौरसिया का कहना है कि हमारे गांव के किसानों की आजीविका का इकलौता साधन पान की खेती है. बास की लकड़ी से बने बरेंजो में लगी पान की बेलाओं में  नियमित रूप से पानी देकर सहेजना पड़ता है. कोरोना की महामारी पान उत्पादक किसानों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बनकर आई है. पान की बिक्री न होने और तुड़ाई न कर पाने के कारण हरी भरी फसल सड़ने लगी है.वे  कहते हैं कि सरकार अभी तक किसी प्रकार की मदद के लिए नहीं आगे नहीं है.गांव के अगड़े जाति के लोग तो मोदी के भजन गाने में इतने मस्त हैं कि उन्हें गरीब मजदूर की कोई फ़िक्र ही नहीं है. धर्म का धंधा करने वाले ये लोग कभी थाली, ताली बजाने का फरमान सुनाते हैं तो कभी दिया जलाने का.ये सब नौटंकी न करो तो गांव के लोग शंका की निगाह से देखते हैं.

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निवारी गांव के पढ़े लिखे युवा पंकज चौरसिया बताते हैं कि सप्ताह के अलग-अलग दिनों में जिले के गांव कस्बों में लगने वाले हाट बाजारों में जाकर वे पान की बिक्री से करते हैं और इसी  आमदनी से घर का चूल्हा चौका चलता है . 22 मार्च से पूरा महिना बीतने को है ,पान पत्तों की कोई बिक्री न होने से गुजर बसर मुश्किल हो गई है. पंकज बताते हैं कि उनके पास थोड़ी सी खेती में गेहूं चना की फसल भी हो जाने से राहत है, परन्तु बरेजों में मजदूरी कर रहे लोगों  के परिवार पर रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.लौक डाउन में सब्जियां बनाने तेल ,मसाले तक नहीं मिल रहे, मजबूरन गर्म पानी में उबालकर नमक मिलाकर काम चला रहे हैं.

लंबे समय से मध्यप्रदेश के पान की खेती करके वाले किसान पान विकास निगम बनाने की मांग कर रहे हैं. विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदायें आने की स्थिति में शासन प्रशासन द्वारा इन कृषकों को समय पर उचित लाभ नहीं मिल पाता हैं, जिस कारण से मजबूर होकर किसानों का इस खेती से मोह भंग भी होने लगा है.

किसान भाईयों का सारथी बनेगा  ‘किसान रथ’!

कोरोना संकट के दौर में किसानों को राहत देने के लिए  केंद्रीय कृषि मंत्री श्री तोमर ने ‘ किसान रथ’ मोबाइल एप की  शुरूआत किया .

परिवहन में सुगमता के उद्देश्य से एप लांच :- केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि विश्वव्यापी कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में, देश में खेती-किसानी से जुड़े तमाम लोगों को हरसंभव मदद और राहत देने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में केंद्र सरकार निरंतर काम कर रही है. इसी तारतम्य में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को, कृषि उत्पादों के परिवहन में सुगमता लाने के उद्देश्य से किसान रथ मोबाइल एप लांच किया.

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केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि आज हम सब कोरोना वायरस संकट के दौर से गुजर रहे हैं और इसलिए जबसे लॉकडाउन की स्थिति हुई है, सामान्य चलने वाला कामकाज प्रभावित हुआ है. कृषि का क्षेत्र हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है, अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी इस क्षेत्र का बड़ा महत्व है. मौजूद संकट के दौर में ही, कृषि का काम भी बहुत तेजी के साथ करने की आवश्यकता है. इसे देखते हुए, केंद्र सरकार ने कृषि के काम में रूकावट न हो, कामकाज प्रभावित नहीं हो, किसानों को परेशानी नहीं हो, इसलिए अनेक छूटें प्रारंभ से ही इस क्षेत्र के लिए दी है.

* कृषि उत्पादों के परिवहन में दिक्कतें  दूर होगी   :- खेती-किसानी का काम इन दिनों जोरों पर है व अनेक राज्यों में उपार्जन का काम भी प्रारंभ हो गया है. सारी रियायतों के बाद भी कृषि उत्पादों के परिवहन में कुछ दिक्कतें थी, क्योंकि लॉकडाउन से पहले परिवहन से जुड़े सभी लोग एक साथ थे, लेकिन यह लागू होने से वे कहीं अलग-अलग चले गए, जिससे परेशानी आई कि अब सबकी उपलब्धता कैसे होगी. इस दृष्टि से कृषि मंत्रालय लगातार प्रयत्न कर रहा था कि इस कठिनाई को कैसे हल किया जाएं और अब कई दिनों की तैयारी के बाद किसान रथ मोबाइल एप लांच किया गया है.

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* किसान भाई कैसे जुड़ सकते है इससे :- इसके लिए किसान भाई के पास एंड्रॉयड स्मार्टफोन होना चाहिए . जिसमें इंटरनेट की भी सुविधा होनी चाहिए . इसके बाद किसान भाई लोग इंटरनेट ऑन कर के ‘गूगल प्ले-स्टोर’ से  ‘किसान रथ’ एप को डाउनलोड कर ले . यह ऐप अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, मराठी, पंजाबी, तमिल, कन्नड़ और तेलुगु भाषा में उपलब्ध है. ऐप डाउनलोड करने के बाद  आपको नाम, मोबाइल नंबर और आधार नंबर जैसी जानकारियों के साथ पीएम किसान के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा. यदि आप व्यापारी हैं तो आपको कंपनी का नाम, अपना नाम और मोबाइल नंबर के साथ रजिस्ट्रेशन करना होगा. रजिस्ट्रेशन करने के बाद आप मोबाइल नंबर और एक पासवर्ड के जरिए एप में लॉगिन कर सकेंगे.

* कैसे कम करेगा यह ऐप :-   ऐप पर किसानों को माल की मात्रा का का ब्यौरा देना होगा.उसके बाद परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली नेटवर्क कंपनी किसानों को उस माल को पहुंचाने के लिए ट्रक और किराये का ब्यौरा दिया जायेगा. पुष्टि मिलने के बाद, किसानों को ऐप पर ट्रांसपोर्टरों का विवरण मिलेगा और वे ट्रांसपोर्टरों के साथ बातचीत कर सकते हैं और उपज को मंडी तक पहुंचाने के लिए सौदे को अंतिम रूप दे सकते हैं.

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ऐप के कई फायदा है:-  सरकार ने किसान रथ को लॉकडाउन की स्थिति में सब्जियों और फसलों की खरीद-बिक्री के लिए लॉन्च किया है, ताकि किसान आसानी से अपने सामान को बेच सकें और व्यापारी खरीद सकें. किसान रथ देशभर के किसानों को और व्यापारियों को कृषि उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में मदद करेगा.

मजदूरों का कोई माई बाप नहीं

किसी भी देश की तरक्की में उन मेहनत कश  मजदूरों का योगदान ही सबसे अधिक होता  है. खेती किसानी, उद्योग धंधे, फैक्ट्री, विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य मजदूर के हाथ बिना पूरे नहीं होते. मैले कुचैले कपड़ों में दो जून की रोटी के लिए गर्मी,सर्दी और बरसात में विना रूक काम करने वाले मजदूर काम की तलाश में अपना घर-बार छोड़कर मीलों दूर निकल जाते है.

आजादी के सात दशक बीत गए, लेकिन देश से हम गरीबी दूर नहीं कर पाये हैं.2014 में अच्छे दिन आने का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार इन मजदूरों को रोटी,कपड़ा और मकान नहीं दे पाई है.सरकार पी एम आवास योजना का कितना ही ढोल पीटे, लेकिन अभी भी मजदूरों के परिवार पालीथीन तानकर अपने आशियाने बना रहे हैं. अपनी  बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्यों में जाने विवश हैं.

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कोरोना वायरस के फैलने को रोकने के लिए 24 मार्च की रात जब प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में 21 दिन के लौक डाउन की घोषणा की तो पूरा देश अवाक रह गया. लौक डाउन की परिस्थितियों से निपटने किसी को मौका नहीं दिया गया और न ही कोई सुनियोजित तरीका अपनाया गया. जब मजदूरों को लगा कि वे शहर में विना काम धंधा 21 दिन नहीं रह सकते तो महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों के साथ पैदल ही अपने गांव की ओर निकल पड़े. समाचार चैनलों ने जब मजदूरों के घर लौटने की खबर दिखाई तो राज्य सरकारों ने अपनी इज्जत बचाने इन्हें रोक कर भोजन पानी का इंतजाम किया. इन मजदूरों के जत्थे को सरकारी जर्जर भवनों में रोककर न तो सोशल डिस्टेंस का पालन हो रहा है और न ही मजदूरों की मूलभूत आवश्यकताओं का ध्यान रखा जा रहा है. नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में जबलपुर की सीमा से सटे गांव में रूके मजदूरों के साथ महिलाओं और दुधमुंहे बच्चों को इस चिलचिलाती गर्मी में दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही.

चुनाव के समय गरीब, मजदूरों से वोट की वटोरने वाले इन सफेद पोश नेताओं को  इन मजदूरों से जैसे कोई सरोकार ही नहीं है .

हरियाणा में काम करने वाले नरसिंहपुर जिले के एक  गांव बरांझ के मजदूर सुन्दर कौरव ने बताया कि वह 10अप्रेल को एक मालगाड़ी के डिब्बे में बैठकर इटारसी आ गया. इटारसी से रेलवे ट्रैक के किनारे किनारे पैदल ही अपने गांव की ओर चल पड़ा.भूख प्यास से व्याकुल सुंदर को सर्दी खांसी के साथ बुखार आ गया तो सिहोरा स्टेशन के पास बोहानी गांव के मेडिकल स्टोर से दबा खरीदकर गांव की ओर जा रहा था,तभी चैक पोस्ट पर तैनात कर्मचारियों ने उसे रोककर पूछताछ की. सुन्दर की हालत देख कर कोरोना वायरस के संभावित लक्षणों के आधार पर उसे जिला अस्पताल भेज दिया है.जहां उसकी जांज कर आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया है.

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हर साल फसलों की कटाई के लिए नरसिंहपुर जिले के गांवों में छिंदवाड़ा, सिवनी,मंडला, डिंडोरी जिलों से बड़ी संख्या में मजदूर आते हैं. इस वार लाक डाउन की बजह से इन मजदूरों को उतना काम नहीं मिला.और वे गांवों से घर की ओर निकल पड़े. गांव के स्थानीय लोगों ने उनसे रूकने और भोजन पानी की व्यवस्था का आश्वासन दिया तो उनका कहना था कि वे अपने 12 से 14 साल के बच्चों और बूढ़े मां-बाप को घर पर छोड़ कर फसल कटाई के लिए आये थे.लौक डाउन लंबा चला तो हमारे घर के सदस्यों का क्या होगा, इसलिए वे अपने गांव लौटने पैदल चल पड़े.

जब चीन के बुहान शहर में कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ था, तो हमारे देश की सरकार ने चीन में लाखों डॉलर कमाने वाले अमीरों के साहबजादों को विशेष विमान से भारत बुला लियाथा, लेकिन भारत में कोरोना की महामारी फैलते ही इस देश के लाचार मजदूर को उसके गांव पहुंचाने कोई जनसेवक आगे नहीं आया.

इस सरकार को मजदूरों से ज्यादा चिंता तीर्थ यात्रा पर गये यात्रियों ,धर्म के ठेकेदारों और पुजारियों की ज्यादा थी, तभी तो वाराणसी में फंसे 900 तीर्थ यात्रियों को को आंध्रप्रदेश के राज्य सभा सांसद जीबीएल नरसिम्हा राव की पहल पर लक्जरी बसों में घर वापस भेजा गया.

14 अप्रैल को देश के प्रधान सेवक सुबह दस बजे यह सोचकर अपना संबोधन दे रहे थे मुंबई की सड़कों और धर्म शालाओं में मजदूर टेलीविजन देख रहे होंगे.किसी भी तरह की सूचना संचार की तकनीक से दूर जब यह अफवाह फैली कि आज‌लौक डाउन खत्म हो रहा है तो मजदूरों का हुजूम रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ने लगा. बांद्रा स्टेशन पर घर जाने को उमड़ी भीड़ बता रही है कि लौक डाउन में फंसे मेहनत कश मजदूर  रोजी-रोटी की खातिर अपने घर लौट जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें  तो पुलिस के डंडे और आंसू गैस का सामना करना पड़ा .

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देश के क‌ई हिस्सों से यह खबर आ रही हैं कि रेलवे के कोचों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किया गया है. यैसे में ये राजनेताओं को यह बात नहीं सूझती कि इनही रेलवे कोचों में इन मजदूरों को उनके घर वापस पहुंचा दिया जाए. दरअसल इन मजदूरों का कोई माई बाप नहीं है.नेता इन्हें अपनी कठपुतली समझते हैं,वे जानते हैं कि जब इनसे वोट लेना होगी तो एक बोतल शराब हजार पांच सौ के नोटों से इन्हे बरगलाया जा सकता है.

मजदूरों नहीं तीर्थयात्रियों की है – सरकार

एक तरफ काफी संख्या में महानगरों में लाखों मजदूर दाने दाने के लिए मुँहताज हैं. किसी हाल में वे घर आना चाहते हैं. उसे सरकार किसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं करा रही है. जिन नौजवानों के खून पसीने से देश भर की फैक्ट्रियाँ गुलजार रहती है. उनके हाँथों से बनाये गए उत्पादों का उपभोग सारी दुनिया के अमीर गरीब,राजा से लेकर रंक तक करते हैं.फैक्ट्रियों के मालिक इनके बल पर गुलछर्रे उड़ाते हैं.आज वे ही दाने दाने के लिए मौत के करीब पहुँच गये हैं.इन मजदूरों द्वारा जारी फोटो और वीडियो देखकर किसी भी संवेदनशील ब्यक्ति का दिल दहल जाएगा.

सरकार का ध्यान इन भूखे लाचार लोगों की तरफ नहीं है.इन मजदूरों की आवाज दिल्ली में राज कर रहे प्रधानसेवक और उनके लगुवे भगुवे तक नहीं पहुँच पा रही है.दूसरी तरफ तीर्थयात्रियों को धार्मिक स्थलों से लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का अवहेलना करते हुवे उनके घरों तक लग्जरी गाड़ियों से पहुँचाया जा रहा है.

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गुजरात के लोग किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए हरिद्वार गए थे.इसी बीच लॉक डाउन हो गया.जो जहाँ थे वहीं फँस गए लेकिन गृह मंत्री के निजी हस्तक्षेप के बाद इन यात्रियों को अपने घरों तक पहुँचाया गया.

दूसरी घटना है.काशी बनारस की जहाँ से हमारे प्रधानमंत्री जी सांसद हैं.इनके आवाज पर पूरे देश में लॉक डाउन है. लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं.जो जहाँ हैं वहीं रहें.लेकिन वाराणसी में महाराष्ट और उड़ीसा से आये एक हजार तीर्थ यात्री यहाँ फँस हुवे थे.तमिलनाडु,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश,महाराष्ट और उड़ीसा के एक हजार से अधिक यात्रियों को 25 बसों और चार क्रूजर से सुरक्षाकर्मियों संग सभी लोगों को पहुँचाया गया.

पैंतालीस सीटों पर पैंतालीस यात्री.प्रधानमंत्री जी किस सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आप करवा रहे हैं.

इन तीर्थ यात्रियों की आवाजें लोगों के कानों तक तुरन्त पहुँच गयी.जबकि ये लोग होटल और धर्मशाला में थे.जिला प्रशासन इन लोगों को खाने पीने के साथ सारी सुविधाओं का ख्याल रखे हुवे थी.जबकि मजदूर कई राज्यों में भूख से बेहाल हैं.

इन घटनाओं से स्पष्ट हो गया कि यह सरकार मेहनतकशों के लिए नहीं.तोंद फुलाये टिका लगाये जो परजीवी हैं. उनके ही हितों की बात सोंचती है.

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भाकपा माले के राष्ट्रीय नेता एवं पूर्व विधायक राजाराम सिंह ने कहा कि इस देश के मेहनतकश और श्रमिक वर्ग के लोगों अगर बात समझ में नहीं आयी तो अंग्रजों के गुलामी से भी बुरा हाल होने वाला है. इस कोरोना की वजह से गरीब,बेबस और लाचार लोग बेमौत मारे जायेंगे. यह सरकार पूंजीपतियों और धार्मिक ढकोसलेबाज लोगों को ही हर चीजों में प्राथमिकता देगी.

तरक्की की ओर हैं क्या

एक ओर भारत सरकार दुनिया की नजरों में अच्छी इमेज बनाने की कोशिश में लगी है, वहीं पैसों की बरबादी भी सामने आ रही है.

अस्पताल बनाने, दवा तैयार करने व डाक्टरों की भरती को ले कर सरकार ज्यादा गंभीर नहीं है, बल्कि मिसाइल और मास्क, कोरोना किट खरीदने में लगी है. इस की कानोंकान किसी को खबर नहीं है. जब खबर उजागर होती है तो पता चलता है कि कोरोना किट के नाम पर हम ठगे गए हैं तो मास्क भी घटिया किस्म का दिया है. विपक्षी दल भी मूकदर्शक बना सरकार के साथ कदमताल कर रहा है.

एक ओर जहां कोरोना भय का माहौल है. सरकार अपनी तरफ से कुछ भी करने का वादा नहीं कर रही. इसी तरह फंसे मजदूरों को कोई राहत नहीं दे  रही. हजारों लोग जो बीच जगहों पर फंसे हुए हैं, उन को भी कोई सहूलियत नहीं दी जा रही. ये लोग अपने घर जाने को ले कर बेचैन हैं. अभी तक तो सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है इन लोगों को ले कर.

तरक्की का ढोल पीट कर यह सलाह दी गई है कि अपने घर से बाहर न जाएं. ताली बजाएं थाली पीटें, रोशनी करें. रोशनी के नाम पर तो मिनी दीवाली ही लोगों ने मना ली, पर उन बेचारों की सुध नहीं ली जो जहां फंसा हुआ है उसे उस की जगह तक पहुंचा दिया जाए.

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तरक्कीपसंद, अमनपसंद देश में ऐसी खुशहाली आएगी, सपने में भी नहीं सोचा था. जो जहां था वहीं का हो कर रह गया, ऐसा भी नहीं सोचा था. घरों में पत्नीबच्चे परेशान हैं. पता नहीं, अब कब वे माकूल दिन लौटेंगे.

ऐसा नही है कि भारत में सभी समस्याओं का खात्मा हो गया है.  आज भी कई लोग तमाम दिक्कतों को सहन कर रहे हैं. तंगहाली में जीने को मजबूर हैं. गाड़ियां चल नहीं रही हैं, बसों के पहिये रुके हुए हैं, मैट्रो बंद हैं, ऐसे में कैसे जाएं घर और कैसे लौटें काम पर…

सरकारी इंतजाम नाकाफी हैं. हर ओर यही नजारा देखा जा सकता है. ऊपर से राज्य सरकार ने भी अपने यहां ज्यादा सख्ती कर रखी है. ऐसी सख्ती भी किस काम की, लोग यों ही अपनी जान खो रहे हैं.

एक घटना उत्तर प्रदेश के कानपुर की है. यहां 2 बहनों के गलेसड़े शव मिले हैं क्योंकि फ्लैट से बदबू उठ रही थी. दरवाजा खुला, तो पुलिस भी चौंकी.

हुआ यह कि किराए पर रह रहीं 2 लड़कियों के पास मकान मालिक ने पड़ोसी को किराया लेने भेजा. आसपास रह रहे लोगों ने कहा कि अंदर से बदबू आ रही है. आननफानन पुलिस को बुलाया गया. पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तो अंदर का नजारा वीभत्स था. बंद फ्लैट में 2 लड़कियों के सड़ चुके शव पड़े थे.

जानकारी के मुताबिक, बर्रा के रहने वाले राजेश दिल्ली बीएसफ में तैनात है. इन का कानपुर के पनकी थाना क्षेत्र में फ्लैट है, जिस को 4 महीने पहले दोनों लड़कियों ने ओयो के माध्यम से बुक कर के किराए पर लिया था.

ये दोनों सगी बहनें थीं. मकान मालिक हर माह का किराया लेने के लिए फ्लैट में किसी न किसी को भेजते थे.

14 अप्रैल को जब उन का पड़ोसी किराया लेने पहुंचा तो उस को वहां रहने वाले लोगों ने बताया कि कुछ दिनों से फ्लैट से अजीब सी दुर्गंध आ रही है और फ्लैट में रहने वाली लड़कियां भी काफी दिनों से नहीं दिखाई पड़ी हैं.

ऐसा सुन कर इस की सूचना पुलिस को दी गई. सूचना पर पहुंची पुलिस और फॉरेन्सिक की टीम ने दरवाजा तोड़ा तो वहां का नजारा देख सभी के होश उड़ गए. दोनों बहनों के शव कमरे के फर्श पर पड़े थे और उन के गले में फंसी रस्सी कमरे में लगी खिड़की के सहारे बंधी हुई थी. दोनों के गले में एक ही रस्सी के कोने थे और शव बुरी तरह से सड़ चुके थे.

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शवों की स्थिति देख कर मामला भले ही सुसाइड का लग रहा था, लेकिन कमरे में लेटे शव और सिर्फ 2 हाथ ऊंची खिड़की से लटक कर सुसाइड नहीं हो सकता, यह भी दिख रहा था.

पुलिस ने दोनों युवतियों की पहचान करते हुए बताया कि दोनों सगी बहनें आभा शुक्ला और रेखा शुक्ला हैं. इन की मौत कैसे हुई, यह तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही साफ होगा. वहीं, फॉरेंसिक टीम ने मौके से बरामद सभी चीजों की बारीकी से जांच की. मौके से कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला है

वहीं दूसरी घटना भी उत्तर प्रदेश के कानपुर के ग्रामीण क्षेत्र सजेती क्षेत्र के मवई भच्छन गांव की है. यहां 10 अप्रैल की देर  रात कच्ची शराब की पार्टी हुई थी. जहरीली शराब पीने से  2 लोग मर गए, जबकि 6 बीमार हो गए. सभी को अस्पताल में भर्ती कराया गया.

एसएसपी अनंत देव ने बताया कि यह तो पता नहीं चल सका कि शराब कहां से आई थी. पर, शराब बोतल में थी.

सजेती क्षेत्र के मवई भच्छन गांव में प्रधान रणधीर सचान ने 10 अप्रैल की देर रात कच्ची शराब बनाने के लिए भट्ठी चढ़वाई थी और पार्टी आयोजित की थी.

सूचना पर इन्हें नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में भर्ती कराया गया. हालत गंभीर होने पर सभी को इलाज के लिए कानपुर भेज दिया गया. बीमारों में रणधीर सचान भी है. मरने से में अंकित फतेहपुर के अमौली पीएचसी में फार्मासिस्ट था, वहीं अनूप पेशे से ट्रक ड्राइवर था.

तीसरी घटना ने तो वाकई आंखें खोल दी और राज्य सरकार की पोल खोल कर रख दी . केरल से एक बेहद मार्मिक वीडियो सोशल मीडिया पर आया. अपने 65 साल के पिता को बीमार देख कर एक बेटा उन्हें अस्पताल ले जाने को सड़क पर दौड़ता दिखाई दिया.

बताया जा रहा है कि पुलिस ने इस शख्स के घर से एक किलोमीटर पहले ही एक ऑटो को आगे बढ़ने से रोक दिया था. ये ऑटो मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए आया था, लेकिन जब पुलिस ने उसे रोक दिया तो बीमार बाप को वक्त पर अस्पताल पहुंचाने को उन का बेटा उन्हें गोद में ही ले कर सड़क पर दौड़ पड़ा.

यह  घटना केरल के पनलूर शहर की है. बीमार पिता को अस्पताल ले जाने के लिए उस के बेटे ने एक ऑटो को घर तक बुलाया था.

हालांकि पुलिस ने इस ऑटो को घर से एक किलोमीटर दूर की एक चेक पोस्ट पर ही रोक दिया. जब कोई और रास्ता नहीं मिला, तो इस शख्स का बेटा उसे गोद में उठा कर दौड़ पड़ा.

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सवाल यह है कि पुलिस ने आखिर बुजुर्ग बीमार को अस्पताल ले जाने की स्थिति में भी वाहनों को जाने की अनुमति क्यों नहीं दी?

सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने पुलिस के काम करने के तौरतरीकों को कठघरे में ला खड़ा किया है.

एक ओर सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आ रहा है, वहीं लोगों की सोच अभी भी दकियानूसी बातों  में उलझी हुई है और सोचने पर मजबूर करती है कि 21वीं सदी का भारत 18वीं सदी की गाथा लिख रहा है?

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सरकार अपनी तरफ से कुछ भी करने का वायदा नहीं कर रही. न सरकारी मशीनरी का वेतन रोका है, न फंसे मजदूरों को कोई राहत दे रहा है, न व्यापारियों को कर माफी की बात हो रही है, न किसानों को कुछ दिया जा रहा है. आखिर सरकार की नीति क्या  है, इस का जवाब है क्या?

ऐसे सवालों को दरकिनार करते हुए सरकार अपना ही राग अलाप रही है. वह कह रही है कि लोग काम करें, पर कैसे, बता नहीं रही. क्योंकि बसें, मैट्रो, रेलें सभी तो बन्द है. मजदूर, गरीब जिन के पास अपना साधन नहीं है, वे कैसे काम पर जा पाएंगे.

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सरकार ने काम को ले कर कुछ छूट तो दी है, पर अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए.

एक तरफ तो कह रही है कि काम करो, वहीं दूसरी तरफ आने-जाने की कोई सुविधा नहीं दे रही. फैक्ट्री में ही काम करो, वहीं रहो और सो जाओ. क्या महिलाएं इन शर्तों पर काम कर पाएंगी? वही कंपनी के मालिक भी ऐसी सोशल डिस्टेन्स की व्यवस्था कैसे कर पाएंगे?

भले ही कुछ सेक्टर में यह छूट 20 अप्रैल से दी जा रही हो, पर सरकार ने अपनी शर्तें भी जोड़ दी हैं. यानी मध्यम वर्ग और गरीब तबके की कमर को और तोड़ने का ही प्रयास किया गया है.

नई गाइडलाइन के तहत ट्रेनों में सुरक्षा से जुड़े लोग ही आजा सकेंगे. इस के अलावा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ान सेवाओं पर रोक रहेगी. बस, रेल, मेट्रो, ऑटो, तिपहिया टैक्सी बंद रहेंगे. स्कूल, शिक्षण संस्थाएं, कोचिंग संस्थान बंद रहेंगे. औद्योगिक गतिविधियों पर रोक जारी रहेगी. सिनेमा, जिम, माल बंद रहेंगे.

हालांकि, 20 अप्रैल से चुनिंदा जगहों पर कुछ गतिविधियों को मंजूरी मिलेगी, पर सोशल डिस्टेनसिंग बनाए रखना होगा और दफ्तर, सार्वजनिक जगहों पर चेहरा ढकना अनिवार्य किया गया है. सार्वजनिक जगहों पर थूकने पर जुर्माना लगेगा. जिले में आनेजाने व एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर भी रोक रहेगी.

सरकार सुविधाओं के नाम पर लोगों को टॉफ़ी पकड़ा रही है. लोगों को भी सरकारी बोली बोलने को कहा गया है इसलिए किसी राजनीतिक नेताओं के बोल नहीं फूट रहे.

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वाहवाही सुनने की आदी सरकार ने कोरोना का ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि हर कोई डरा सहमा घर में बंद रहने को मजबूर है.

भले ही 3 मई तक लौक डाउन है, पर इस तरह की छूट मिलने से लौक डाउन 2 कितना कामयाब हो सकेगा, यह तो 20 अप्रैल के बाद ही पता चल सकेगा.

Corona जागरूकता में भोजपुरी के दिग्गज कलाकार आये आगे

देश में कोरोना (COVID-19) एक बड़ा संकट बनता जा रहा है कोरोना संक्रमितों की संख्या में हर रोज भारी इजाफा देखा जा रहा है. इसको देखते हुए प्रधानमन्त्रीं नरेन्द्र मोदी (Naredra Modi) नें लौक डाउन को 3 मई तक के लिए आगे बढ़ा दिया है. लौक डाउन आगे बढ़ाने के पीछे का बस एक ही मकसद है की लोग अपने घरों से बाहर न निकलें. जिससे सोशल डिस्टेंस को बनाये रखनें में मदद मिल सके और कोरोना सक्रमण के फैलाव को रोका जा सके.

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उत्तर प्रदेश और बिहार में मजदूरों के पलायन के चलते यहाँ कोरोना संकट और भी गहरा गया है. इसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश पर पड़ा है. यहां हर रोज मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही हैं. चूँकि यूपी और बिहार में भोजपुरी सिनेमा को खूब पसंद किया जाता है और यहाँ भोजपुरी अभिनेताओं के फैन्स की संख्या भी करोड़ों में हैं. इस दशा में भोजपुरी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने आगे बढ़ कर अपने फैन्स के लिए एक मोटिवेशनल वीडियों बनाया है. जिससे भोजपुरी बेल्ट के लोगों को घर में रहनें और सोशल डिस्टेंस के लिए मोटीवेट किया जा सके.

 

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Ek chhota sa prayaas tha poori bhojpuri industry ko ek saath laakar desh ki janta ko corona ke khilaaf jaagruk karne ka.Hum sabhi kalakaar ekta ke saath khade hain is mushqil daur mein.Main dhanyawaad dungi sabhi kalakaaron ka jinhone apne video bytes bheje aur unka bhi jo kisi kaaran se nahi bhej paaye.Hamara prayaas hai ki sabhi log lockdown ka paalan karein aur ghar se baahar bilkul na niklein.Corona ko haraana hai,desh ko jeetana hai.Jai hind,Jai bharat. #Manoj tiwari #Dinesh Lal yadav #Ravi kishan #Pawan singh #Khesari lal yadav#Pakhi hegde #Anjana singh #Yash Mishra #Smrity sinha #Vinay Anand #Kk Goswami#Seema singh #Sadhika randhawa #Poonam Dubey #Ritu Singh #Aditya ojha #Anara gupta#Shubham Tiwari #Prem singh #bhavna barthwal #payas pandit #Nehashree #Rohit Singh Matru#CP bhatt #Deepak sinha #Glory mohanta#Sanjay bhushan #Amrish singh #gunjanpant

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इस मोटिवेशनल वीडियों को बनाने का विचार भोजपुरी अभिनेत्री गुंजन पन्त (Gunjan Pant) और अमरीश सिंह (Amrish Singh) का है. इस वीडियो को सभी भोजपुरी कलाकारों नें अपने घरों में रहते हुए अपने मोबाईल से ही शूट किया है. जिसका एडिटिंग गोविन्द दूबे ( Govind Dubey) नें किया है.
इस वीडियो में भोजपुरी के सभी दिग्गज अभिनेता और अभिनेत्री लोगों से घर में रहनें और सोशल डिस्टेंस बनाये रखने की अपील करते नजर आ रहें हैं. वीडियो की शुरुआत गुंजन पन्त ने कोरोना से जुड़े पंक्तियों से करते हुए किया है. इसके बाद प्रधानमंत्री का सन्देश शामिल किया गया है.

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इसके बाद सांसद मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) और सांसद रवि किशन (Ravi Kishan) लोगों से अपील करते नजर आ रहें हैं. इस वीडियों में दिनेश लाल यादव (Dinesh Lal Yadav) ‘निरहुआ’ (Nirhua) , पवन सिंह( Pawan Singh), खेसारीलाल (Khesari Lal) ,पाखी हेगड़े (Pakhi Hedge), अंजना सिंह (Anjana Singh) ,गुंजन पन्त (Gunjan Pant), अमरीश सिंह(Amrish Singh), स्मृति सिन्हा (Smriti Singha), विनय आनंद (Vinay Anand), यश कुमार (Yash Kumar), केके गोस्वामी( K.K. Goswami), सीमा सिंह( Seema Singh), सौरव कुमार( Saurav Kumar), साधिका रंधवा(sadhika Randha), रितु सिंह(Ritu Singh), पूनम दूबे(Punam Dubey), अनारा गुप्ता( Anara Gupta) , शुभम तिवारी( Shubham Tiwari), आदित्य ओझा (Aditya Ojha), प्रेम सिंह (Prem Singh), भावना बरथवाल (Bhawna Barthwal), मटरू (Mataru), सीपी भट्ट(C.P. Bhtta), दीपक सिन्हा (Deepak Singha), पायस पंडित (Payas Pandit) , नेहा श्री ( Neha Shree), ग्लोरी मोहंता Glory Mohanta), नें अपने अपने तरीके से लोगों को मोटिवेट करने का प्रयास किया है.

इस वीडियो को बनाने वाले एक्टर्स का कहना को उम्हें विश्वास की भोजपुरी बेल्ट के लोग उनकी अपील जरुर सुनेगें और बेवजह न ही अपने घरों से बाहर निकलेंगे न ही सोशल डिस्टेंस के नियमों को तोड़ेंगे.
इस वीडियो को बनाने में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाली गुंजन पन्त नें अपने इन्स्टाग्राम एकाउंट पर वीडियो शेयर करते हुए उसके कैप्शन में लिखा है “एक छोटा सा प्रयास था पूरी भोजपुरी इंडस्ट्री को एक साथ लेकर देश की जनता को कोरोना के खिलाफ जागरूक करने का. हम सभी कलाकार एकता के साथ खड़े हैं इस मुश्किल दौर में. मैं धन्यवाद दूंगी सभी कलाकारों का जिन्होंने अपने वीडियो भेजें और उनका भी जो किसी कारण से नहीं भेज पाए. हमारा प्रयास है कि सभी लोग लॉक डाउन का पालन करें और घर से बाहर बिल्कुल ना निकले. कोरोना को हराना है देश को जिताना है जय हिंद जय भारत.”

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Lockdown में देश बनता चाइल्ड पोर्नोग्राफी का होटस्पोट

देश में कोरोना लाकडाउन के बीच इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) की तरफ से देश के लिए शर्मनाक रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट में लाकडाउन के दौरान देश में चाइल्ड पोर्नोग्राफी में अप्रत्याशित और खतरनाक वृद्धि बताई गई है. आईसीपीएफ ने कहा कि ऑनलाइन मोनिटरिंग डेटा वेबसाइट दिखा रही है कि लाकडाउन के बाद लोगों में ‘चाइल्ड पोर्न’, ‘सैक्सी चाइल्ड’ और ‘टीन सैक्सी वीडियो’ की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. इस के साथ ही दुनिया की सब से बड़ी पोर्न वेबसाइट पोर्नहब से यह भी पता चलता है कि लाकडाउन के बाद 24 से 26 मार्च तक देश में चाइल्ड पोर्न की मांग में 95 प्रतिशत वृद्धि हुई है.

इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फण्ड ने इसे ले कर एक रिपोर्ट जारी की, जो भारत के 100 मुख्य शहरों के हालिया शोध पर है. जिस में दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, कोलकता इत्यादि शहर शामिल हैं. इस रिपोर्ट का नाम ‘चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मटेरियल इन इंडिया’ है. इस के अनुसार दिसंबर 2019 के दौरान पब्लिक वेब पर 100 शहरों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री की कुल मांग 50 लाख प्रति माह थी जिस में अब अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. इस रिपोर्ट में हिंसक सामग्री की मांग में 200 प्रतिशत तक की वृद्धि का खुलासा किया गया है. यानी इन हिंसक सामग्री में जबरन सैक्स जैसे बच्चे का गला दबाना (चोपिंग), दर्दनाक सेक्स (ब्लीडिंग) और टॉर्चर इत्यादि आते हैं. इस रिपोर्ट में हिंसक सामग्री के बारे में बताने का मतलब भारतीय पुरुष की बच्चों के प्रति बढ़ती मानसिक दुराचार को दिखाती है साथ ही यह भी दिखाती है कि भारतीय पुरुष सामान्य पोर्नोग्राफी से संतुष्ट नहीं बल्कि हिंसक और बर्बर सामग्री की मांग करते है. यह कुरूप होती मानसिक सोच को दिखाती है.

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आईसीपीएफ ने अपनी इस रिपोर्ट में चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन की हालिया रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिस में पता चला कि लाकडाउन के 11 दिनों के भीतर देश भर से 92000 से अधिक इमरजेंसी कॉल आई. यह कॉल्स यौन दुर्व्यवहार और हिंसा से सुरक्षा को ले कर की गई थी. ‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फण्ड’ की रिपोर्ट लाकडाउन अवधी के दौरान सामना किये जाने वाले अत्यधिक यौन खतरे की ओर इशारा करती है. साथ ही ‘चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मटेरियल इन इंडिया’ की रिपोर्ट में बाल यौन शोषण सामग्री की बढती मांग दर्शाती है कि बच्चे लाकडाउन में यौन उत्पीड़क के निशाने पर सब से ज्यादा है. जाहिर है संभावना यह है कि उत्पीड़क और पीड़ित दोनों ही घरों में बंद है.

इस रिपोर्ट में ‘ईसीपीएटी’, ‘यूनाइटेड नेशन’ और ‘यूरोपोल’ की हालिया रिपोर्ट का भी जिक्र किया गया. जिस में चाइल्ड ऑनलाइन ग्रूमिंग का जिक्र किया गया. ऑनलाइन ग्रूमिंग का मतलब इन्टरनेट में बच्चों को सोशल मीडिया में अजनबियों या जानपहचान वालों द्वारा भावनात्मक रिश्ता बना विश्वास में ले कर निजी फोटो या वीडियो की मांग करना. सोशल मीडिया में टीनेजर और बच्चों के साथ इस तरह के अपराध में भारी वृद्धि हुई है. खासकर व्हाट्सएप, फेसबुक में इस का अत्यधिक उपयोग हो रहा है. रिपोर्ट के अनुसार चाइल्ड पोर्न में विशेष उम्र ढूंढी जाती है. ख़ासकर ‘स्कूल गर्ल’ के कंटेंट को खोजा जाता है. इस में उम्र, क्रियाएँ तथा लोकेशन की खोज विशेष तौर पर की जाती है. इस के इतर खासतौर पर हिंसक विडियो की खोज की जाती है.

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भारत इस समय पूरी दुनिया में सब से ज्यादा पोर्न उपभोगी देश है. भारत में सामान्य 70 प्रतिशत ब्राउज़िंग पोर्न कंटेंट के लिए होती है. देश की स्थिति यह है कि अगर देश में कोई सनसनीखेज बलात्कार हो जाए तो पीड़ित महिला के नाम से वीडियो पोर्नसाईट पर ट्रेंड करने लगती है. प्रियंका रेड्डी के मामला इस का ताजा उदाहरण है. साथ ही एक हालिया रिपोर्ट में इस का एक सब से बड़ा कारण स्मार्टफोन का बढ़ता चलन है. स्मार्टफोन के कारण भारत में लाकडाउन के 3 हफ़्तों के दोरान पोर्नोग्राफी देखने में 20 परसेंट की उछाल आई है. किन्तु यह सारी रिपोर्टस भारत के लिए चिंता का विषय हैं. जाहिर है पोर्नोग्राफी एक समय के लिए किसी के लिए यौनकुंठा को निकालने का जरिया हो लेकिन इस से तरह तरह की मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं. अपने पार्टनर के साथ अधिक अपेक्षाएं जुड़ जाती हैं. अलगाव और अवसाद जन्म लेते हैं. यौन अपराधों में बढ़ोतरी होती है. खासकर चाइल्ड पोर्नोग्राफी का बनना और देखना मानसिक संकीर्णता को दर्शाता है.

चाइल्ड पोर्न से जुड़ी यह रिपोर्ट खतरनाक होती स्थिति को दर्शाती है. भारत में फरवरी 2009 चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ संसद में विधेयक सफलतापूर्वक पास हुआ था. यानी चाइल्ड पोर्न को पूरी तरह से गैरकानूनी घोषित किया गया. इस में बच्चों से जुड़े पोर्न वीडियो को प्रसारित और प्रचारित करने वाले को दंड का भी प्रावधान है. जिस में चाइल्ड पोर्न ब्राउज़िंग करने पर 10 लाख तक जुर्माना और 5 साल की सजा मिल सकती है. किंतु ‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फण्ड’ की रिपोर्ट भारत के कमजोर आईटी एक्ट की कलह भी खोल रही है कि सब कुछ पता होते हुए भी इस में सरकार मजबूत कदम नहीं उठा पा रही.

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