Serial Story : भोर की एक नई किरण – भाग 2

मनीष की मम्मी बेटे का विवाह कहीं और करना चाहती थीं परंतु मनीष ने स्वाति को पसंद कर लिया. बेटे के हठ के आगे मां को झुकना पडा़, पर उन्होंने कभी दिल से बहू को स्वीकार नहीं किया. वह पहले दिन से ही स्वाति का विरोध करती रहीं. स्वाति जब कभी उन का कोई काम करती, वह उस में कमी अवश्य निकालतीं. स्वाति के ससुर जब भी उस का पक्ष लेते वह उन्हें भी डांट देती थीं.

विवाह के 2-3 दिन बाद उन्होंने सारे काम का दायित्व स्वाति को सौंप दिया था. धीरेधीरे स्वाति ने चुप्पी साध ली. इस बीच वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी फिर भी घर में उस का कोई महत्त्व नहीं था. मनीष स्वाति के साथ होते हुए अन्याय को देख कर भी अनदेखा कर देता था. मनीष की उदासीनता ने स्वाति को इस घर से चले जाने के लिए प्रेरित किया. वह सोचती, जहां रह कर उस का खुद का व्यक्तित्व कुुंठित हो रहा हो, वहां वह किस प्रकार अपने बच्चों की उचित परवरिश कर सकती है. इसलिए उस ने श्रीकांत को पत्र लिखा ताकि उस के पास रह कर वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करे. श्रीकांत ने स्वाति को बताया, फिलहाल, वह 7-8 दिन बडौ़दा में रुकने वाला था.

एक रात श्रीकांत और स्वाति छत पर जा कर बैठ गए थे. छत पर ठंडी हवा चल रही थी कितु स्वाति बहुत अधीर थी. अब तक श्रीकांत ने उस से चलने के बारे में कुछ नहीं कहा था. श्रीकांत के बैठते ही स्वाति ने उस का हाथ पकड़ लिया और रुंधे गले से बोली, फ्भैया, मुझे यहां से ले चलो. मैं अब और यहां नहीं रह सकती.

जब से मैं यहां आया हूं स्वाति, तुम्हारी ही स्थिति को जानने और समझने का प्रयास कर रहा हूं.

फिर तो आप ने देखा होगा भैया कि मेरा घर में कोई महत्त्व नहीं. किसी को मुझ से तनिक भी लगाव नहीं. यहां तक कि मनीष को भी नहीं. तब मैं क्यों जबरन यहां पडी़ रहूं?

प्रश्न जबरन पडे़ रहने का नहीं है, स्वाति. प्रश्न यह है, क्या यहां से चले जाने से संबंध अच्छे बन जाएंगे?

जब संबंध ही नहीं रखने, तो उन के अच्छे या बुरे होने का क्या अर्थ है?

पगली, क्या ऐसे संबंध इतनी सरलता से टूट जाते हैं, कह कर श्रीकांत कुछ क्षण बहन के चेहरे को देखते रहे फिर बोले, याद रखो, स्वाति, संबंध तोड़ना सरल है. क्षण भर में हम कोई भी संबंध बिगाड़ सकते हैं कितु असली कला है, उन्हें जीवन भर निभाना.

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एक पल रुक कर श्रीकांत गंभीर स्वर में बोले, फ्स्वाति, तुम्हें मुझ पर पूरा विश्वास है न कि मैं जो कुछ भी करूंगा वह तुम्हारी भलाई के लिए होगा.

यह भी कोई पूछने की बात है, भैया आप से अधिक तो मुझे खुद पर भी भरोसा नहीं.

तब सुनो स्वाति, पिछले कई दिनों से मैं यहां की स्थिति को देख और समझ रहा हूं. वास्तव में तुम लोगों के संबंधों में टकराव नहीं, वरन उदासीनता है और इस के लिए मैं समझता हूं, तुम भी कम दोषी नहीं हो.

यह क्या कह रहे हैं आप, भैया ?

मैं ठीक कह रहा हूं, यदि तुम्हारी सास ने तुम्हें नहीं अपनाया तो तुम ने भी कभी उन के निकट जाने का प्रयास नहीं किया जबकि तुम्हें पता था कि यह विवाह मनीष के हठ के कारण हुआ है.

भैया, मैं आप से बहस नहीं कर रही हूं, कितु जब बहू अपने प्रियजनों को छोड़ कर अनजाने लोगों के बीच आती है, तब ससुराल वालों का फर्ज बनता है, उसे अपनाएं और भरपूर प्यार दें ताकि वह उस घर को अपना समझ कर नया जीवन प्रारंभ कर सके.

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श्रीकांत ने सिर हिलाते हुए स्वाति की बात का समर्थन किया, फिर उसे समझाते हुए बोले, फ्जीवन में सदैव सबकुछ सरलता से प्राप्त नहीं होता है. कभीकभी उस के लिए अथक प्रयास भी करना पड़ता है. याद रखो स्वाति, किसी से कुछ पा लेना व्यक्ति की अपनी क्षमता पर निर्भर करता है.

अब इन बातों से क्या लाभ, स्वाति बोली, फ्अब तो सबकुछ समाप्त हो चुका है. इन लोगों के व्यवहार ने मेरा मन मार दिया है. अब कुछ भी करने का उत्साह शेष नहीं है.

स्वाती, जब हमें ऐसा लगे कि अंधकार अब कभी समाप्त नहीं होगा, तभी प्रकाश की किरण दिखाई देने की संभावना प्रबलतम होती है. इन टिमटिमाती हुई बत्तियों को देखो, इतना कह कर श्रीकांत ने हाथ से एक ओर इशारा किया. स्वाति ने उस ओर देखा, पूरी तरह अंधकार में किसी फैक्टरी की वह जलती हुई 3-4 बत्तियां बडी़ भली लग रही थीं.

अपनी जिदगी के अंधकार में हमें इसी तरह के बिदुओं से अपना आगे का रास्ता चुनना चाहिए, श्रीकांत ने कहा.

फ ने इतनी अच्छी बातें करनी कहां से सीखी भैया, स्वाति श्रीकांत की बातों से प्रभावित हो कर बोली.

फ्मां से, स्वाति. तुम उस समय बहुत छोटी थी. मां को मैं ने कभी भी निराश होते नहीं देखा था. कितनी भी कठिन स्थिति क्यों न हो, वह कोई न कोई आशा की किरण अवश्य खोज लेती थीं, श्रीकांत ने कुछ पल रुक कर स्वाति की ओर देखा. स्वाति सिर झुकाए कुछ सोच रही थी. श्रीकांत ने फिर कहा, फ्मैं चाहता हूं, एक बार तुम सच्चे मन से उस दूरी को समाप्त करने का प्रयत्न करो जो तुम्हारे और तुम्हारी सास के बीच हुई है. यदि तुम ने उन की ओर एक कदम भी बढा़या तो दूरी कुछ कम ही होगी, स्वाति ने सहमति में सिर हिलाया.

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इस के पश्चात श्रीकांत स्वाति को धीरेधीरे कुछ समझाते रहे और अंत में बोले, फ्मैं आज से ठीक 6 माह बाद पुनः यहां आऊंगा. यदि स्थिति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ तो अपने भाई पर विश्वास रखो, तुम्हें अवश्य ही यहां से ले जाऊंगा. इस के बाद वे दोनों नीचे आ गए. अगले दिन श्रीकांत बडौ़दा से अपने घर वापस लौट आए.

Serial Story : भोर की एक नई किरण – भाग 1

देहरादून एक्सप्रेस अपनी पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी. कितु इस से भी तेज भाग रहा था, श्रीकांत का मन. भागती ट्रेन के शोर से भी अधिक स्वाति के पत्र के शब्द उन के दिमाग पर हथौडे़ बरसा रहे थे और चोट से बचने के लिए उन्होंने अपना चेहरा खिड़की से सटा लिया और प्रकृति के विस्तार में अपनी आंखें गडा़ दीं. कितु दूरदूर तक फैले हुए खेतखलिहान और भागते हुए वृक्ष भी उन के मन को न बांध सके. मन बारबार वर्तमान से अतीत की ओर भाग रहा था.

उन की बहन स्वाति ने मनोविज्ञान में एम.ए- किया था. उस का इरादा पीएच.डी- करने का था. वह शुरू से ही पढ़ने में बेहद तेज थी. मेहनत एवं लगन की उस में कमी नहीं थी. लेक्चरर बन कर अपना एक अलग स्थान बनाने के लिए वह जीजान से जुटी हुई थी. लेकिन स्वाति कहां जानती थी कि कभीकभी एक छोटा सा अनुरोध भी जीवन को नया मोड़ दे देता है.

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मनीष ने उसे एक विवाह समारोह में देखा था और वहीं उसे उस ने पसंद कर लिया. उस की ओर से जब विवाह का प्रस्ताव आया तो स्वाति ने तुरंत इनकार कर दिया. विवाह के लिए वह अपने कैरियर को दांव पर नहीं लगा सकती थी. विवाह तो बाद में भी किया जा सकता था. उस के भाई श्रीकांत जो मित्र और पथप्रदर्शक भी थे, उन की भी यही इच्छा थी कि पहले कैरियर फिर विवाह.घ्भाभी सुधा ने दोनों को समझाया था कि जीवन में ऐसे मौके बारबार नहीं आते, स्वाति ऐसे मौकों की कभी अवहेलना मत करो.

स्वाति ने प्रतिरोध करते हुए कहा, ‘भाभी, तुम भलीभांति जानती हो कि मैं ने वर्षों से एक ही सपना देखा है कि मैं जीवन में कुछ बनूं और तुम लोग मेरा यह स्वप्न तोड़ देना चाहते हो.’

बहुत सोचने के बाद श्रीकांत को सुधा की बात अधिक उचित जान पडी़. उन्होंने सुझाया, ‘क्यों न ऐसा रास्ता अपनाया जाए जिस से लड़का भी हाथ से न जाए और स्वाति की इच्छा भी रह जाए. मनीष से पत्रव्यवहार कर के यह स्पष्ट कर लेते हैं कि उसे विवाह के बाद स्वाति के पीएच-डी- करने पर कोई आपत्ति तो नहीं.’

इस के बाद श्रीकांत और मनीष के बीच पत्रव्यवहार हुआ, जिस से पता चला कि मनीष को इस पर कोई आपत्ति न थी. तब खुशीखुशी स्वाति और मनीष का विवाह हो गया.घ्स्वाति को विदा करते हुए जहां श्रीकांत को उस के दूर चले जाने का गम था, वहीं यह संतोष भी था कि उन्होंने बहन के प्रति कर्तव्यों को पूरा कर के मां को दिया हुआ वचन निभाया है. इस के लिए वह सुधा के भी आभारी थे, जिस ने भाभी के रूप में स्वाति को मां जैसा स्नेह दिया था.

विवाह के बाद स्वाति जब पहली बार मनीष के साथ मायके आई तो श्रीकांत को उस की खुशी देख कर सुखद अनुभूति हुई. समय का पंछी आगे उड़ता रहा और देखतेदेखते 6 वर्ष बीत गए. इस बीच स्वाति 2 बच्चों की मां भी बन गई. शादी के बाद जब कभी श्रीकांत और सुधा ने उस से पीएच-डी- पूरी करने के विषय में पूछा तो वह हंस कर टाल गई. श्रीकांत समझते, स्वाति अपने विवाहित जीवन के सुख में इतना खो गई है कि अब वह पीएच-डी- करने की बात भूल बैठी है. उन का स्वाति के बारे में यह भ्रम न जाने कब तक बना रहता, यदि अचानक उन्हें उस का भेजा पत्र न मिलता. पत्र देखते ही वह स्वाति से मिलने केघ्लिए चल पडे़ थे.घ्अचानक टेªन का झटका लगा और श्रीकांत अतीत से वर्तमान में लौट आए.

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उन्होंने जेब से पत्र निकाला और फिर एक बार उन की नजरें इन पंक्तियों पर अटक गईं:

फ्पिछले 6 सालों से अपने ही घर में अपने वजूद को तलाश करतेकरते थक चुकी हूं. इस से पहले कि पूरी तरह टूट कर बिखर जाऊं, मुझे यहां से ले जाओ.

पत्र पढ़ते ही श्रीकांत बेचैन हो उठे. उन का शेष सफर बहुत कठिनाई से बीता.

बडौ़दा स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने टैक्सी पकडी़ और स्वाति के घर जा पहुंचे. बडे़ भाई को देखते ही स्वाति उन से लिपट गई और सुबकने लगी. मनीष आश्चर्यचकित हो कर बोला, फ्अरे, भैया आप आने की खबर कर देते तो मैं स्टेशन पहुंच जाता, कहते हुए उस ने श्रीकांत के पैर छुए.

फ्अचानक आफिस का कुछ विशेष काम निकल आया. इसलिए खबर देने का समय ही नहीं मिला.

फ्चलो, अच्छा हुआ. इसी बहाने आप आए तो, स्वाति के ससुर ने श्रीकांत को सोफे पर बैठाते हुए कहा.

फ्पायल कहां है? श्रीकांत ने चारों तरफ निगाहें दौडा़ते हुए पूछा.

फ्पायल स्कूल गई है, स्वाति बोली और बेटे सनी को अपने भाई की गोद में दे कर चाय का प्रबंध करने चली गई.

दोपहर में श्रीकांत जब आराम करने के लिए स्वाति के कमरे में आए तो स्नेहपूर्वक उसे पास बैठाते हुए बोले, फ्तुझे किस बात का दुख है, स्वाति?

भाई का स्नेहिल स्पर्श पाते ही स्वाति फफक पडी़, फ्मुझे यहां से ले चलो भैया वरना मैं मर जाऊंगी, और उस के बाद स्वाति ने धीरेधीरे श्रीकांत को सब बता दिया.

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Serial Story : अजनबी मुहाफिज

Serial Story : अजनबी मुहाफिज – भाग 3

लेखक: शकीला एस हुसैन

स्टेशन मास्टर का शुक्रिया अदा कर के मैं बाहर आ गया. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों स्टेशन के बाहर मुश्किल से 2-3 तांगे खड़े रहते थे. मैं एक तांगे की तरफ बढ़ा. कोचवान बूढ़ा आदमी था. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा, यह फोटो देख कर बताओ. मुझे इन दोनों की तलाश है. ये दोनों औरतें 3-4 दिन पहले स्टेशन से निकल कर तांगें में बैठ कर कहीं गई थीं. क्या तुम बता सकते हो वे किस के तांगे में गई थीं?’’

चाचा ने जवाब दिया, ‘‘14 तारीख को ये दोनों औरतें गुलाम अब्बास के तांगे में बैठ कर छछेरीवाल गई थीं, क्योंकि गुलाम अब्बास का रूट स्टेशन से छछेरीवाल तक ही जाता है क्योंकि वह खुद वहीं रहता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘चाचा, हमें छछेरीवाल ही जाना है और गुलाम अब्बास से मिलना है.’’

मैं अपने 2 सिपाहियों के साथ छछेरीवाल रवाना हो गया. वह हमें सीधे गुलाम अब्बास के घर ले गया. मैं पुलिस की वरदी में था. पहले तो वह घबरा गया. मैंने दोनों फोटो दिखा कर उन औरतों के बारे में पूछा तो वह फौरन ही बोला, ‘‘जी सरकार, इन दोनों औरतों को 14 दिसंबर की दोपहर रेलवे स्टेशन से छछेरीवाल लाया था. इस में से मोटी औरत को मैं जानता हूं. इस का नाम गुलशन है. सब इसे गुलशन आंटी कहते हैं पर वह गोरी खूबसूरत लड़की मेरे लिए नई थी.’’

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उस ने हमें गुलशन के घर का पता बता दिया. हम वहां पहुंचे. घर के बाहर एक गंजा बूढ़ा आदमी फल और सब्जी का ठेला लगाए बैठा था. उस ने जल्दी से हमें सलाम किया. मैं ने उस से गुलशन आंटी के बारे में पूछा. वह बोला, ‘‘गुलशन मेरी बीवी है.’’

मैं उस के साथ घर के अंदर गया. धीरे से उस ने पूछा, ‘‘हुजूर, कुछ गलती हो गई है क्या?’’

‘‘हां, एक केस में उस से पूछताछ करनी है.’’ वह बड़बड़ाया, ‘‘वह जरूर फिर कोई कमीनी हरकत कर के आई होगी.’’

‘‘क्या तुम्हारी बीवी हमेशा कोई लफड़े करती रहती है?’’

‘‘बस सरकार, वह ऐसी ही है मेरी कहां सुनती है.’’

उसी वक्त अंदर के कमरे से एक तेज आवाज आई, ‘‘तुम्हारा दिल दुकान पर नहीं लगता. घर में क्यों चले आते हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘इसे बाहर बुलाओ.’’

उस ने उसे आवाज दी, ‘‘गुलशन बाहर आओ. तुम से मिलने कोई आया है.’’

घर का दरवाजा एक झटके से खोल कर जो औरत बाहर आई, वह गोलमटोल, 45 साल की औरत थी. उस के चेहरे पर चालाकी और कमीनापन झलक रहा था. हमें देखते ही उस ने दरवाजा बंद करना चाहा. मैं ने पांव अड़ा दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘गुलशन, सीधेसीधे हमारे सवालों के जवाब दो. नहीं तो मैं हथकड़ी डाल कर ले जाऊंगा.’’

मेरी धमकी का असर हुआ. वह हमें अंदर ले गई जहां 2 पलंग बिछे थे. हम उन पर बैठ गए.

‘‘गुलशन, 24 दिसंबर को जो लड़की तुम्हारे साथ तुम्हारे घर आई थी, वह कहां है?’’

‘‘कौन सी लड़की सरकार?’’

सिपाही ने फौरन ही फोटो निकाल कर उस के सामने रख दिया.

‘‘अच्छा! आप इस की बात कर रहे हैं. यह तो फरजाना है. मेरी रिश्ते की भांजी.’’ वह मजबूत लहजे में बोली, ‘‘वे लोग लालामूसा में रहते हैं. फरजाना मुझ से मिलने आई थी. मैं उसे लेने रेलवे स्टेशन गई थी.’’

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मैं समझ गया, वह सरासर झूठ बोल रही है. मैं ने उस के आदमी से पूछा, ‘‘तुम कभी फरजाना से मिलने लालामूसा गए हो?’’

वह हड़बड़ा गया, ‘‘नहीं…हां…जी…नहीं…’’

अब मैं गुलशन की तरफ बढ़ा और डांट कर कहा, ‘‘देखो गुलशन, तुम सच बोल दो उसी में भलाई है. वरना मैं तुम से बहुत बुरी तरह पेश आऊंगा. जिस लड़की को तुम अपनी भांजी बता रही हो, उस से तुम स्टेशन पर पहली बार मिली थी. उस से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है. अगर होता तो तुम हरगिज उसे कादिर के हवाले नहीं करती. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि फरीदपुर में कैसी कयामत बरपी है. तुम जिस लड़की को बहलाफुसला कर अपने साथ लाई थीं, 2 रोज बाद उसे तुम ने कादिर के हवाले कर दिया.’’

‘‘मैं किसी कादिर को नहीं जानती.’’

‘‘बकवास बंद करो. तुम बहुत ढीठ और बेशर्म औरत हो. थाने जा कर तुम्हारी जुबान खुलेगी.’’

उसे भी तांगे में बैठा कर हम थाने आ गए. मैं ने एक हवलदार को बुला कर गुलशन को उस के हवाले करते हुए कहा, ‘‘यह आंटी गुलशन हैं. इन्होंने एक लड़की चौधरी रुस्तम के डेरे पर भिजवाई थी, पर अब गूंगी हो गई हैं. तुम्हें रात भर में इसे अच्छा करना है. तुम्हारे पास जुबान खुलवाने के जितने मंत्र हैं, सब आजमा लो.’’

वह गुलशन आंटी को ले कर चला गया. उसी वक्त सादिक पहलवान मुझ से मिलने पहुंचा. ऊंचा पूरा मजबूत काठी का आदमी था. चेहरे से ही शराफत टपकती थी. मैं ने उस से काफी पूछताछ की.

सब से बड़ी बात यह थी कि वारदात के एक दिन पहले ही वह कुश्ती के मैच में शामिल होने दूसरे शहर चला गया था, जिस के कई गवाह थे. चौधरी सिकंदर के मुताबिक वह सच्चा और खरा आदमी था और फरीदपुर की शान था. वह 3 मैच जीत कर आया था. मैं ने उसे जाने दिया. शाम हो चुकी थी. मैं भी अपने क्वार्टर पर चला गया.

अगली सुबह तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा. हवलदार ने खुशखबरी सुनाई कि आंटी गुलशन बोलने लगी है. मैं ने हवलदार से पूछा, ‘‘तुम ने मारपीट तो नहीं की न?’’

‘‘नहीं साहब, सिर्फ पेशाब लाने वाली दवा पिला दी थी और उसे बाथरूम नहीं जाने दिया. मजबूर हो कर उस ने जुबान खोल दी.’’

आंटी गुलशन ने बताया कि वह शहरशहर घूमने वाली औरत है. जब कोई मजबूर, बेबस लावारिस लड़की नजर आती, उस से हमदर्दी जता कर उसे अपने साथ छछेरीवाल ले आती. कुछ दिन खिलापिला कर उसे फरेब में रखती, फिर किसी ग्राहक को बेच देती और अपने पैसे खड़े कर लेती.

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कादिर जैसे कई लोगों से उस की जानपहचान थी, जिन्हें वह लड़कियां सप्लाई करती थी. यह लड़की, जिस का नाम जबीन था, उस ने कादिर के हवाले की थी. कादिर पहले भी रुस्तम के लिए गुलशन से कई लड़कियां ले चुका था. जबीन गुलशन को गुजरांवाला रेलवे स्टेशन पर मिली थी. वह पहली नजर में ही पहचान गई कि वह उस का शिकार है.

वह उस के करीब जा कर बैठ गई. 10 मिनट में ही प्यार जता कर उस की असल कहानी मालूम कर ली. जबीन का ताल्लुक वजीराबाद से था. उस का बाप मर चुका था. उस की मां ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेला बाप उस पर बुरी नजर रखता था. कई बार उसे परेशान भी करता था.

Serial Story : अजनबी मुहाफिज – भाग 4

लेखक: शकीला एस हुसैन

जब उस ने मां से शिकायत की तो मां ने उलटा उसे ही मुजरिम ठहराया. तंग आ कर जबीन घर से भाग निकली. जब वह ट्रेन से इस तरफ आ रही थी तो उसे महसूस हुआ कि एक आदमी उस का पीछा कर रहा है. घबरा कर वह अंजान स्टेशन पर उतर गई. वहीं उस की मुलाकात गुलशन से हुई.

गुलशन उसे अपनी मीठी बातों के जाल में फंसा कर अपने घर ले आई. 2 दिन उस की खूब खातिर की और फिर नौकरी दिलाने के बहाने कादिर के पास बेच कर आ गई. उस मासूम को इस छलकपट की खबर ही नहीं लगी.

मैंने गुस्से से कहा, ‘‘तुम दुनिया की सब से कमीनी औरत हो. जिस इज्जत की हिफाजत के लिए जबीन ने अपना घर छोड़ा था, तुम ने झूठी मोहब्बत का फरेब दे कर उस की इज्जत को नीलाम कर दिया. मैं तुम्हें कठोर सजा दिलवाऊंगा.’’

वो मगरमच्छ के आंसू बहाने लगी, जिस का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ.

‘‘तुम ने क्या कह कर उसे कादिर के हाथ बेचा था?’’

‘‘मैं ने कहा था यह मेरा भाई है. इस के 3-4 बच्चे हैं. इसे बच्चे संभालने के लिए एक औरत चाहिए. यह कह कर मैं ने उसे कादिर के हवाले कर दिया था. वह खुशीखुशी उस के साथ चली गई थी.’’

‘‘अब तुम्हारे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है. मैं तुम्हें मासूम लड़कियों की जिंदगी बरबाद करने के जुर्म में लंबे अरसे के लिए अंदर कर दूंगा.’’

दूसरे दिन मैं वजीराबाद रवाना हो गया. वहां मैं ने जबीन के सौतेले बाप और मां से मुलाकात की. उन लोगों को जबीन के बारे में कुछ पता नहीं था, न ही उन्हें उस की कोई फिक्र थी. उन लोगों ने उसे ढूंढने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. पूछताछ कर के मैं वापस गुजरांवाला आ गया.

यहां भी मैं ने जबीन की काफी तलाश करवाई लेकिन कुछ पता नहीं चला. बाद में किसी ने मुझे बताया कि जिस दिन गुलशन ने जबीन को कादिर के हवाले किया था, उसी दिन से छछेरीवाल से जावेद नाम का एक नौजवान गायब है. वह कबड्डी का बहुत अच्छा खिलाड़ी था.

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यह सुन कर मेरे दिमाग में बिजली सी चमकी. मेरी आंखों के सामने कादिर की गरदन टूटी लाश घूम गई. कादिर की गरदन का मनका जिस माहिर अंदाज में तोड़ा गया था, वह किसी पहलवान या कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी का ही काम हो सकता था.

मैं ने छछेरीवाल में जावेद के जानने वाले लोगों से मिल कर अपने आर्टिस्ट से उस का स्केच बनवाया. उस के सहारे मैं ने जावेद की तलाश शुरू कर दी. 3 महीने गुजर गए.

मामला भी ठंडा पड़ गया. एक दिन अचानक मैं जावेद को ढूंढने में कामयाब हो गया. दरअसल, जावेद और जबीन ने शादी कर ली थी. एक दूरदराज इलाके में दोनों पुरसुकून जिंदगी गुजार रहे थे. जावेद का ताल्लुक छछेरीवाल से था. वह गुलशन के धंधे से अच्छी तरह से वाकिफ था. जब उस की नजर गुलशन के साथ आई जबीन पर पड़ी तो वह दिल हार बैठा. उस ने फैसला कर लिया कि वह इस मासूम लड़की की जिंदगी जरूर बचाएगा.

वह गुलशन की निगरानी करने लगा. जब गुलशन फरीदपुर से जबीन को कादिर के पास ले कर आई, जावेद उस का पीछा कर रहा था. पीछा करतेकरते ही वह रुस्तम के अड्डे पर पहुंच गया. वहीं छिप कर वह रुस्तम वाले बैडरूम में घुस गया और सही मौके का इंतजार करने लगा. रुस्तम को वहां किसी के होने का गुमान भी नहीं था. वह नशे में धुत था.

जब वह जबीन से जबरदस्ती करने लगा तो जावेद ने उसे सोचनेसमझने का मौका दिए बिना उस के सिर के पिछले हिस्से पर वजनी रेंच पाने से करारा वार किया, जिस से उस की मौत हो गई.

यह मंजर देख कर जबीन ने दरवाजे के बाहर दौड़ लगा दी. मारे डर के उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.

बाहर कादिर मौजूद था. उस ने भी जबीन के पीछे दौड़ लगा दी. जावेद ने भी देर नहीं की. वह उन दोनों के पीछे दौड़ा. रेंच पाना वह रुस्तम के कमरे में पलंग के नीचे फेंक आया था. वे तीनों आगेपीछे दौड़ते हुए नजर के अंदर उतर गए.

जावेद जल्दी ही कादिर तक पहुंच गया और पलक झपकते ही एक झटके से उस ने कादिर की गरदन का मनका तोड़ डाला. पहले तो जबीन यह समझी कि यह वही आदमी है जो ट्रेन में उस का पीछा कर रहा था. पर जावेद ने उसे बताया कि उस ने उसे छछेरीवाल में देखा था और उस पर आशिक हो गया था.

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यह सुन कर जबीन की जान में जान आई. जावेद के हाथों 2 कत्ल हो चुके थे. छछेरीवाल जाने का सवाल ही नहीं उठता था. उन दोनों ने मिल कर फैसला किया कि दोनों किसी दूरदराज इलाके में जा कर शादी कर के रहेंगे.

इन तमाम हालात में जबीन का कोई कुसूर नहीं था. वह तो खुद हालात और गमों की मारी हुई थी. गिरफ्तारी के वक्त वह उम्मीद से थी.

जावेद ने जो भी किया, जबीन की इज्जत बचाने के लिए किया था. उस ने 2 शैतानों का सफाया कर दिया था, जो इंसान के रूप में भेडि़ए थे. एक हिसाब से उन दोनों का मर जाना अच्छा था.

मेरी नजर में जावेद का कातिल होना हालात का तकाजा था. मैं ने जावेद के लिए क्या सजा चुनी, यह मैं आप को नहीं बताऊंगा. यह आप की जहानत के लिए एक चैलेंज है, खुद सोचें और फैसला करें.

Serial Story : अजनबी मुहाफिज- भाग 1

लेखक: शकीला एस हुसैन

उन दिनों मैं जिला गुजरांवाला के थाना सदर में तैनात था. मेरा थाना जीटी रोड के मोड़ पर था. सर्दी का मौसम था. जब मैं थाने पहुंचा तो 2 लोग मेरे इंतजार में बैठे मिले. उन्होंने खबर दी कि नहर के किनारे एक लाश बरामद हुई है.

जिन दिनों अपर चिनाब नहर अपने किनारों तक भर कर बह रही होती है, उस वक्त उस की गहराई करीब 20 फीट होती है. मैं फौरन एएसआई नबी बख्श और एक हवलदार को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गया. मेरी तजुर्बेकार निगाहों ने लाश को देखने के बाद अंदाजा लगा लिया कि मृतक को एक झटके में मौत के घाट उतारा गया है.

कातिल जो भी था, पहलवान या कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, क्योंकि मकतूल को गरदन का मनका तोड़ कर मौत के घाट उतारा गया था. यह टैक्निक किसी आम आदमी के बस की बात नहीं है. मकतूल की उम्र 30 के आसपास थी. वह मजबूत जिस्म का स्मार्ट आदमी था, शानदार मूंछों वाला. उस के बदन पर गरम लिबास था, स्वेटर भी पहन रखा था.

पूरी तरह से तलाशी लेने के बाद मृतक के कपड़ों में ऐसी कोई चीज नहीं मिल सकी जो काम की होती. उस के जिस्म पर कोई जख्म भी नहीं था. अब तक वहां काफी लोग जमा हो चुके थे. मैं ने सभी से लाश के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. एक बूढ़े आदमी ने गौर से देखने के बाद कहा, ‘‘सरकार, मैं इसे पहचनता हूं. मैं ने इसे देखा है. यह फरीदपुर के चौधरी सिकंदर अली के यहां काम करता था.’’

मैं चौधरी सिकंदर को जानता था. उस से 2-3 मुलाकातें हो चुकी थीं. अच्छा आदमी था. कुछ अरसे पहले उसे फालिज का अटैक हुआ था. तब से वह बिस्तर का हो कर रह गया था. मैं ने हवलदार को लाश के पास छोड़ा और खुद घोड़े पर सवार हो कर एएसआई के साथ फरीदपुर रवाना हो गया. मैं ने हवलदार को कह दिया था कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेजने का बंदोबस्त कर ले.

फरीदपुर वहां से करीब 8 मील दूर था. हम घोड़ों पर सवार थे. अभी हम ने कुछ ही रास्ता तय किया था कि सामने से 2-3 घुड़सवार आते दिखाई दिए. हम उन्हें देख कर रुक गए. मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम लोग कहां जा रहे हो?’’

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‘‘हम लोग आप के पास ही आ रहे थे. आप को हमारे साथ चलना पड़ेगा. बड़ा हादसा हो गया है.’’ एक नौजवान ने कहा.

‘‘कहां चलना पड़ेगा और क्यों?’’

‘‘फरीदपुर, सरकार. वहां के चौधरी का किसी ने कत्ल कर दिया है. हम यही खबर ले कर आए थे.’’

‘‘तुम चौधरी सिकंदर की बात कर रहे हो?’’

‘‘नहीं जनाब, उन्हें कौन कत्ल करेगा. हम उन के बेटे चौधरी रुस्तम की बात कर रहे हैं.’’ उसी नौजवान ने जिस का नाम राशिद था, जवाब दिया.

‘‘किस ने कत्ल किया है और कब?’’

‘‘कातिल के बारे में तो कुछ पता नहीं सरकार. घटना पिछली रात की है. छोटे चौधरी साहब की लाश उधर डेरे पर पड़ी हुई है.’’

फरीदपुर छोटा सा गांव था. 60-70 घरों की आबादी वाला. मैं ने राशिद से पूछा, ‘‘इस हादसे के बाद से फरीदपुर से कोई गायब है क्या?’’

‘‘हां सरकार. आप को कैसे पता लगा? कल रात से कादिर गायब है. उस की ड्यूटी डेरे पर छोटे चौधरी के साथ होती थी, पर रात को वह ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं.’’

‘‘अब वह पहुंचेगा भी नहीं. वह मारा जा चुका है. तुम लोग मेरे साथ नहर पर चलो और लाश पहचान कर तसदीक कर दो.’’

वे लोग मेरे साथ घटनास्थल पर आए. उन्होंने तसदीक कर दी कि लाश कादिर की थी जोकि छोटे चौधरी का खास आदमी था. मैं ने उन्हें बताया, ‘‘लाश नहर में बहती हुई आई है. किसी ने गरदन का मनका तोड़ कर उसे कत्ल किया है.’’

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मैं उन लोगों के साथ फरीदपुर रवाना हो गया. चौधरी सिकंदर तो फालिज की वजह से बिस्तर पर पड़े थे. उन का एकलौता बेटा रुस्तम ही कामकाज देखता था. पहले हम डेरे पर पहुंचे. वे तीनों आदमी मेरे साथ  थे.

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डेरा नहर के किनारे खेत के बीचोबीच बना था. इस में फलों के कुछ पेड़ भी लगे थे. यहां नीची छत वाले 3 कमरे थे. सामने बड़ा बरामदा था. डेरे के आसपास भी कुछ लोग खड़े हुए थे. डेरे के एक तरफ कुछ मवेशी बंधे थे.

राशिद मुझे उस कमरे में ले गया, जिस कमरे में लाश थी. यह देख कर मुझे हैरत हुई कि कमरा आलीशान बैडरूम का मंजर पेश कर रहा था. दीवार की एक साइड में बड़ा पलंग बिछा था और उस पर चौधरी की लाश पड़ी थी. मैं ने रुस्तम की लाश की बारीकी से जांच की.

चौधरी की खोपड़ी पर पीछे से किसी भारी चीज से वार किया गया था, जिस से सिर बुरी तरह जख्मी हो गया था. बिस्तर और कपड़े खून में भीगे हुए थे. वार इतना करारा था कि पड़ते ही चौधरी मर गया. उस के बाद मैं ने कमरे का जायजा लिया. मेज पर कच्ची शराब की बोतल और शराब से भरा एक गिलास रखा था. बोतल भी खुली हुई थी. इस का मतलब मकतूल मरने से पहले शराब पी रहा था. यह कमरा शायद अय्याशी के लिए ही बनाया गया था.

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पलंग के नजदीक फर्श पर मुझे लाल हरी चूडि़यों के टुकड़े दिखाई दिए. मैं ने ऐहतियात से टुकड़े जमा कर लिए. इस का मतलब था चौधरी के साथ कोई औरत मौजूद थी. चूडि़यों के टुकड़े इस बात की गवाही दे रहे थे कि औरत अपनी मरजी से नहीं आई थी. उसे जबरदस्ती चौधरी की अय्याशी के लिए लाया गया था.

मेरे जहन में एक खयाल आया कि कहीं उस औरत ने ही तो चौधरी को मौत के घाट नहीं उतारा. यह मुमकिन भी था. मैं ने राशिद और ममदू से पूछा, ‘‘रात को चौधरी रुस्तम के साथ डेरे पर कौन था?’’

‘‘हुजूर, यहां तो सिर्फ कादिर ही होता है. पिछली रात भी वहीं था.’’

मैं ने टूटी हुई चूडि़यों की तरफ इशारा करते हुए पूछा, ‘‘यह औरत कौन थी, जिस की जबरदस्ती में चूडि़यां टूटी हैं?’’

‘‘जनाब हमारी बात का यकीन करें. हमें इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम. कादिर जानता है. पर अब तो वह मर चुका है.’’

उन की बात में सच्चाई थी. रुस्तम एक अय्याश आदमी था. वह शराब के नशे में था और किसी औरत के साथ उस ने जबरदस्ती की थी. राशिद ने बताया, ‘‘चौधरी रुस्तम अकसर डेरे पर ही रातें गुजारता था. सुबहसवेरे वह हवेली पहुंच जाता था. पर आज जब वह हवेली नहीं पहुंचा तो चौधरी सिकंदर ने हमें यहां भेजा. यहां चौधरी रुस्तम की लाश मिली. हम ने फौरन आप को खबर की.’’

Serial Story : अजनबी मुहाफिज- भाग 2

लेखक: शकीला एस हुसैन

उसी वक्त एएसआई लोहे का रेंच और पाना उठा लाया. उस पर खून और कुछ बाल चिपके हुए थे. यही आलाएकत्ल था, जिस की मार ने चौधरी का काम तमाम कर दिया. यह रेंच पाना पलंग के नीचे से बरामद हुआ था.

उसे ऐहतियात से रखने के बाद मैं ने राशिद से कहा, ‘‘जल्दी ही चौधरी की लाश को अस्पताल ले जाने का बंदोबस्त करो.’’

इस डेरे पर 3 कमरे थे. दूसरे कमरे में कादिर का मुकाम था. तीसरा कमरा स्टोर की तरह काम में आता था. कहीं से कोई भी काम की चीज बरामद नहीं हुई. मैं चौधरी सिकंदर के पास पहुंच गया. वह अपाहिज था. फालिज ने उसे बिस्तर से लगा दिया था. जवान बेटे की मौत ने उसे हिला कर रख दिया था.

मैं ने उसे तसल्ली दी और वादा किया कि मैं बहुत जल्द कातिल को गिरफ्तार कर लूंगा. वह रोते हुए बोला, ‘‘रुस्तम मेरा एकलौता बेटा था. मेरी तो नस्ल ही खत्म हो गई. उस की शादी का अरमान भी दिल में रह गया. उस से छोटी तीनों बहनों की शादियां हो गईं. बस यही रह गया था. मेरी बीवी का भी इंतकाल हो गया है. अब मैं बिलकुल तनहा रह गया.’’

मैं ने उसे तसल्ली दे कर डेरे के हाल सुनाए और पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है क्या?’’

‘‘नहीं जनाब. मुझे कुछ अंदाजा नहीं है.’’

‘‘कादिर को गरदन का मनका तोड़ कर ठिकाने लगाया गया था और लाश नहर में बहा दी गई थी, जबकि रुस्तम को खोपड़ी पर वार कर के खत्म किया गया था. यह किसी ऐसे इंसान का काम है जो दोनों से नफरत करता था. क्या आप फरीदपुर की तमाम औरतों को हवेली में जमा कर सकते हैं, साथ ही अगर आप के गांव में कोई पहलवान हो या कबड्डी का खिलाड़ी हो तो उसे भी बुलवाइए.’’

‘‘मैं अभी इंतजाम करता हूं. हमारे गांव में एक ही पहलवान है सादिक, जो गांव की शान और हमारा मान है. बड़ा ही भला आदमी है.’’

थोड़ी देर में गांव की सभी औरतें हवेली में पहुंच गईं. मैं ने चौधरी को बताया, ‘‘मुझे उस औरत की तलाश है जो रात को चौधरी रुस्तम के साथ डेरे पर मौजूद थी. उस की चूडि़यां टूटी थीं. उस के हाथ पर खरोंच या जख्म जरूर होगा.’’

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मैंने चौधरी को चूड़ी के टुकड़े भी दिखाए. मेरी बात सुन कर चौधरी सारा मामला समझ गया. मैं ने हवेली में बुलाई जाने वाली तमाम औरतों की कलाइयां बारीकी से चैक कीं पर किसी की कलाई पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला. मुझे बताया गया बस एक औरत इस परेड में शामिल नहीं है, क्योंकि उसे बुखार है.

मैं ने उस औरत से मिलना जरूरी समझा. उसे सब नूरी मौसी कहते थे. मैं उस के घर पहुंचा. नूरी कोई 50 साल की मामूली शक्ल की औरत थी. उसे देख कर मेरी उम्मीद खत्म हो गई पर उस से बात करना जरूरी समझा. मैं ने उसे सारी बात बताई. उस ने अपनी कलाई आगे की.

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘नहीं नूरी मौसी, तुम्हारी कलाई चैक करने की जरूरत नहीं है. अगर तुम मुझे यह बता सकती हो कि रात चौधरी के डेरे पर कौन औरत थी, जिस ने चौधरी की जान ली तो बड़ी मेहरबानी होगी. वैसे मुझे एक मर्द की भी तलाश है जिस ने कादिर को मौत के घाट उतारा है.’’

नूरी बहुत समझदार औरत थी. सारी बात समझ गई. कहने लगी, ‘‘सरकार, मेरा अंदाजा है चौधरी के साथ जो औरत डेरे पर थी, वह जरूर बाहर की होगी. फरीदपुर की नहीं हो सकती. क्योंकि यहां आप ने सभी को चैक कर लिया है.’’

‘‘तुम्हारे इस अंदाजे की कोई वजह है?’’

‘‘जी सरकार, मैं ने कल दिन में 2 अजनबी औरतों को कादिर से बात करते देखा था.’’

नूरी की बात सुन कर आशा की एक किरण जगी. मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘तुम ने उन औरतों को कहां देखा था?’’

‘‘डेरे के करीब, नहर के किनारे.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘ओह. क्या तुम बता सकती हो कि वे क्या बातें कर रहे थे?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं जरा फासले पर थी. बात नहीं सुन सकी. पर यह पक्का है वे फरीदपुर की नहीं थीं.’’

‘‘नूरी, तुम ने बड़े काम की बात बताई. मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं. बस एक काम और करो, उन के हुलिए और कद के बारे में तफसील से बताओ जिस से उन्हें ढूंढने में आसानी हो जाए. तुम ने उन की शक्लें तो गौर से देखी होंगी?’’

‘‘जी देखी थीं. साहब वे 2 औरतें थीं. उस में से एक जवान 19-20 की होगी. लंबा कद, गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें बहुत खूबसूरत थी. उस ने फूलदार सलवार कुरते पर काली शौल ओढ़ रखी थी. उस के साथ वाली औरत अधेड़ थी. काफी मोटी, कद छोटा, रंग सांवला बिलकुल फुटबाल जैसे लगती थी. उस की नाक पर एक मस्सा था. उस ने भूरे रंग का जोड़ा और नीला स्वेटर पहन रखा था.’’

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शुक्रिया कह कर मैं उस के घर से निकल आया. फरीदपुर में मेरा काम करीबकरीब खत्म हो गया था. पहलवान सादिक से आज मुलाकात मुमकिन न थी. क्योंकि वह बाहर गया हुआ था.

अगले दिन सुबह मैं ने सरकारी फोटोग्राफर और आर्टिस्ट को थाने बुलवाया और उन दोनों औरतों का हुलिया बता कर स्केच बनाने को कहा. स्केच तैयार होने पर मैं ने उस स्केच के 10-12 प्रिंट बनवाए. साथ ही बताने वालों को भी जता दिया कि ये दोनों औरतें अगर कहीं भी दिखाई दें तो मुझे फौरन खबर करें.

फिर उन तसवीरों के आने पर मैं ने उन्हें जरूरी जगहों पर तलाश करने के लिए सिपाहियों की ड्यूटी लगा दी. शाम को दोनों पोस्टमार्टम शुदा लाशें थाने पहुंच गईं. दोनों की मौत का वक्त 10 और 11 बजे के बीच का था.

रुस्तम की मौत खोपड़ी पर लगने वाली करारी चोट से हुई थी, जब वह शराब के नशे में धुत था. रेंच पाने पर उसी का खून और बाल थे और कादिर की गरदन का मनका एक खास टैक्निक से तोड़ा गया था और फिर उसे नहर में डाल दिया गया था. मैं ने लाशें कफनदफन के लिए चौधरी साहब के यहां भिजवा दीं.

अब मुझे उन दोनों औरतों की तलाश थी. फोटो बन कर आ गए थे. सिपाही उन की तलाश में भटक रहे थे. दूसरे दिन शाम को एक सिपाही खबर ले कर आया कि इन दोनों औरतों को रेलवे प्लेटफार्म पर देखा गया है.

मैं फौरन रेलवे स्टेशन रवाना हो गया. स्टेशन मास्टर ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया. मैं ने उन दोनों औरतों के बारे में पूछताछ शुरू कर दी. उस ने बताया, ‘‘वह लड़की गलती से इस स्टेशन पर उतर गई थी. वह बहुत परेशान थी. उसी दौरान यह मोटी औरत उसे मिल गई. दोनों काफी देर तक एक बेंच पर बैठ कर बातें करती रहीं. उस के बाद मोटी औरत उस का हाथ पकड़ कर स्टेशन से बाहर ले गई. हो सकता है, वे एकदूसरे को जानती हों पर पक्का नहीं है.’’

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मैं ने पूछा, ‘‘आप ने कहा वह लड़की गलती से उतर गई थी. वह जा कहां रही थी?’’

‘‘जिस गाड़ी से वह उतरी थी, वह रावलपिंडी से लाहौर जा रही थी. मुझे यह नहीं पता वह कहां जा रही थी क्योंकि मेरी उस से कोई बातचीत नहीं हुई थी. फिर वह मोटी औरत के साथ बाहर चली गई थी.’’

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी – भाग 2

कुछकुछ आभास श्वेता को उन की डायरी से ही हुआ था. एक बार उन की डायरी में कुछ कविताओं के अंश नोट किए हुए मिले थे.

‘तुम चले जाओगे पर थोड़ा सा यहां भी रह जाओगे, जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी सी गंध.’

एक पृष्ठ पर लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर तो श्वेता भौचक ही रह गई थी…सब कुछ बीत जाने के बाद भी बचा रह गया है प्रेम, प्रेम करने की भूख, केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों सा… सबकुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बचा रहेगा प्रेम, …दीपशिखा ही नहीं, उस की तो पूरी देह ही बन गई है दीपक, प्रेम में जलती हुई अविराम…

मम्मी अचानक ही आ गई थीं और डायरी पढ़ते देख एक क्षण को सिटपिटा गई थीं. बात को टालने और स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए श्वेता खिसियायी सी हंस दी थी, ‘‘यह कवि आप को बहुत पसंद आने लगे हैं क्या, मम्मी?’’

‘‘नहीं, तुम गलत समझ रही हो,’’ मम्मी ने व्यर्थ हंसने का प्रयत्न किया था, ‘‘एक छात्रा को शोध करा रही हूं नए कवियों पर…उन में इस कवि की कविताएं भी हैं. उन की कुछ अच्छी पंक्तियां नोट कर ली हैं डायरी में. कभी कहीं भाषण देने या क्लास में पढ़ाने में काम आती हैं ऐसी उजली और दो टूक बात कहने वाली पंक्तियां.’’ फिर मां ने स्वयं एक पृष्ठ खोल कर दिखा दिया था, ‘‘यह देखो, एक और कवि की पंक्तियां भी नोट की हैं मैं ने…’’ वह बोली थीं.

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उस पृष्ठ को वह एक सांस में पढ़ गई थी, ‘‘धीरेधीरे जाना प्यार की बहुत सी भाषाएं होती हैं दुनिया में, देश में और विदेश में भी लेकिन कितनी विचित्र बात है प्यार की भाषा सब जगह एक ही है और यह भी जाना कि वर्जनाओं की भी भाषा एक ही होती है…प्यार की भाषा में शब्द नहीं होते सिर्फ अक्षर होते हैं और होती हैं कुछ अस्फुट ध्वनियां और उन्हीं को जोड़ कर बनती है प्यार की भाषा…’’

मां के उत्तर से वह न सहमत हुई थी, न संतुष्ट पर वह व्यर्थ उन से और इस मसले पर उलझना नहीं चाहती थी. शायद यह सोच कर चुप लगा गई थी कि मां भी आखिर हैं तो एक स्त्री ही और स्त्री में प्रेम पाने की भूख और आकांक्षा अगर आजीवन बनी रह जाए तो इस में आश्चर्य क्या है?

पिता के साथ मां ने एक लंबा वैवाहिक जीवन जिया था. उस दुर्घटना में वह अचानक मां को अकेला छोड़ कर चले गए थे. शरीर की कामनाएंइच्छाएं तो अतृप्त रह ही गई होंगी…55-56 साल की उम्र थी तब मम्मी की. इस उम्र में शरीर पूरी तरह मुरझाता नहीं है. फिर पिता महीने 2 महीने में ही घर आ पाते थे. पूरा जीवन तो मां ने एक अतृप्ति के साथ बियाबान रेगिस्तान में प्यासी हिरणी की तरह मृगतृष्णा में काटा होगा…आगे और आगे जल की तलाश में भटकी होंगी…और वह जल उन्हें मिला होगा अमन अंकल में या हो सकता है मिल रहा हो प्रभु अंकल में.

एक शहर के महाविद्यालय में किसी व्याख्यान माला में भाषण देने गई थीं मम्मी. उन के परिचय में जब वहां बताया गया कि साहित्य में उन का दखल एक डायरी लेखिका के रूप में भी है तो उन के भाषण के बाद एक सज्जन उन से मिलने उन के निकट आ गए, ‘‘आप ही

डा. कुमुदजी हैं जिन की डायरियों के कई अंश…’’ मम्मी उठ कर खड़ी हो गई थीं, ‘‘आप का परिचय?’’

‘‘यहां निकट ही एक नेशनल पार्क है… मैं उस में एक छोटामोटा अधिकारी हूं.’’ इसी बीच महाविद्यालय के एक प्राध्यापकजी टपक पड़े थे, ‘‘हां, कुमुदजी यह छोटे नहीं मोटे अधिकारी हैं. वन्य जीवों पर इन्होंने अनेक शोध कार्य किए हैं. हमारे जंतु विज्ञान विभाग में यह व्याख्यान देने आते रहते हैं. यह विद्यार्थियों को जानवरों से संबंधित बड़ी रोचक जानकारियां देते हैं. अगर आप के पास समय हो तो आप इन का नेशनल पार्क अवश्य देखने जाएं… आप को वहां कई नए अनुभव होंगे.’’

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श्वेता को मां ने बताया था, ‘‘यह महाशय ही प्रभुनाथ हैं.’’

मां की डायरी में बाद में श्वेता ने पढ़ा था.

‘किसीकिसी आदमी का साथ कितना अपनत्व भरा होता है और उस के साथ कैसे एक औरत अपने को भीतर बाहर से भरीभरी अनुभव करती है. क्या सचमुच आदमी की उपस्थिति जीवन में इतनी जरूरी होती है? क्या इसी जरूरीपन के कारण ही औरत आदमी को आजीवन दुखों, परेशानियों के बावजूद सहती नहीं रहती?’

खालीपन और अकेलेपन, भीतर के रीतेपन को भरने के लिए जीवन में क्या सचमुच किसी पुरुष का होना नितांत आवश्यक नहीं है…कहीं कोई आदमी आप के जीवन में होता है तो आप को लगता रहता है कि कहीं कोई है जिसे आप की जरूरत है, जो आप की प्रतीक्षा करता है, जो आप को प्यार करता है…चाहता है, तन से भी, मन से भी और शायद आत्मा से भी…

प्रभुनाथ के साथ पूरे 7 दिन तक नेशनल पार्क के भीतर जंगल के बीच में बने आरामदेय शानदार हट में रही… तरहतरह के जंगली जंतु तो प्रभुनाथ ने अपनी जीप में बैठा कर दिखाए ही, थारू जनजाति के गांवों में भी ले गए और उन के बारे में अनेक रोचक और विचित्र जानकारियां दीं, जिन से अब तक मैं परिचित नहीं थी.

‘दुनिया में कितना कुछ है जिसे हम नहीं जानते. दुनिया तो बहुत बड़ी है, हम अपने देश को ही ठीक से नहीं जानते. इस से पहले हम ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि यह नेशनल पार्क…यह मनोरम जंगल, जंगल में जानवरों, पेड़पौधों की एक भरीपूरी विचित्र और अद्भुत आनंद देने वाली एक दुनिया भी होती है, जिसे हर आदमी को जीवन में जरूर देखना और समझना चाहिए.’

प्रभुनाथ ने चपरासी को मोटर- साइकिल से भेज कर भोजन वहीं उसी आलीशान हट में मंगा लिया था. साथ बैठ कर खाया. खाने के बाद प्रभुनाथ उठे और बोले, ‘‘तो ठीक है मैडम…आप यहां रातभर आराम करें. हम अपने क्वार्टर में जा कर रहेंगे.’’

‘‘नहीं. मैं अकेली हरगिज इस जंगल में नहीं रहूंगी,’’ मैं हड़बड़ा गई थी, ‘‘रात हो आई है और जानवरों की कैसी डरावनीभयावह आवाजें रहरह कर आ रही हैं. कहीं कोई आदमखोर यहां आ गया और उस ने इस हट के दरवाजे को तोड़ कर मुझ पर हमला कर दिया तो?’’

‘‘क्या आप को इस हट का कोई दरवाजा टूटा या कमजोर नजर आता है? हर तरह से इसे सुरक्षित बनाया गया है. इस में देश और प्रदेश के मंत्री, सचिव और आला अफसर, उन के परिवार आ कर रहते हैं. मैडम, आप चिंता न करें. बस रात को कोई जानवर या आदमी दरवाजे को धक्का दे, पंजों से खरोंचे तो आप दरवाजा न खोलें. यहां आप को पीने के लिए पानी बाथरूम में मिलेगा. चाय-कौफी बनाना चाहेंगी तो उस के लिए गैसस्टोव और सारी जरूरी क्राकरी व सामग्री किचन में मिलेगी. बिस्तर आरामदेय है. हां, रात में सर्दी जरूर लगेगी तो उस के लिए 2 कंबल रखे हुए हैं.’’

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‘‘वह सब ठीक है प्रभु…पर मैं यहां अकेली नहीं रहूंगी या तो आप साथ रहें या फिर हमें भी अपने क्वार्टर की तरफ के किसी क्वार्टर में रखें.’’

‘‘नहीं मैडम,’’ वह मुसकराए, ‘‘आप डायरी लेखिका हैं. हिंदी की अच्छी वक्ता और प्रवक्ता हैं. हम चाहते हैं कि आप यहां के वातावरण को अपने भीतर तक अनुभव करें. देखें कि कैसा लगता है. बिलकुल नया सुख, नया थ्रिल, नया अनुभव होगा…और वह नया थ्रिल आप अकेले ही महसूस कर पाएंगी…किसी के साथ होने पर नहीं.

‘‘आप देखेंगी, जीवन जब खतरों से घिरा होता है…तो कैसाकैसा अनुभव होता है…जान बचे, इस के लिए ऐसेऐसे देवता आप को मनाने पड़ते हैं जिन की याद भी शायद आप को अब तक कभी न आई हो…बहुत से लेखक इस अनुभव के लिए ही यहां इस हट में आ कर रहना पसंद करते हैं.’’

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी – भाग 3

‘‘वह तो सब ठीक है…पर आप को मैं यहां से जाने नहीं दूंगी.’’ फिर कुछ सोच कर पूछ बैठीं, ‘‘बाहर गेट के क्वार्टरों में आप की प्रतीक्षा पत्नीबच्चे भी तो कर रहे होंगे? अगर ऐसा है तो आप जाएं पर हमें भी वहीं किसी क्वार्टर में रखें.’’

गंभीर बने रहे काफी देर तक प्रभुनाथ. फिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में किसी को मैं कम ही बताता हूं. यहां बाईं तरफ जो छोटा कक्ष है उस में एक अलमारी में जहां वन्य जीवजंतुओं से संबंधित पुस्तकें हैं वहीं मेरे द्वारा लिखी गई और शोध के रूप में तैयार पुस्तक भी है. अकसर यहां मंत्री लोग और अफसर अपनी किसी न किसी महिला मित्र को ले कर आते हैं और 2-3 दिन तक उस का जम कर देह सुख लेते हैं. उन के लिए हम लोग यहां हर सुविधा जुटा कर रखते हैं. क्या करें, नौकरी करनी है तो यह सब भी इंतजाम करने पड़ते हैं…’’

झेंप गईं डा. कुमुद, ‘‘खैर, वह सब छोडि़ए. आप अपने परिवार के बारे में बताइए.’’

‘‘एक बार हम पिकनिक मनाने यहां इसी हट पर अपने परिवार के साथ आए हुए थे. अधिक रात होने पर पता नहीं पत्नी को क्या महसूस हुआ कि बोली, ‘यहां से चलिए, बाहर के क्वार्टरों में ही रहेंगे. यहां न जाने क्यों आज अजीब सा भय लग रहा है.’ हम जीप में बैठ कर वापस बाहर की तरफ चल दिए. पत्नी, लड़की और लड़का. हमारे 2 ही बच्चे थे. अभी कुछ ही दूर चले होंगे कि खतरे का आभास हो गया. एक शेर बेतहाशा घबराया हुआ भागता हमारे सामने से गुजरा. पीछे कुछ बदमाश, जिन्हें हम लोग पोचर्स कहते हैं. जंगली जानवरों का चोरीछिपे शिकार करने वाले उन पोचरों से हमारा सामना हो गया.’’

‘‘निहत्थे नहीं थे हम. एक बंदूक साथ थी और साहसी तो मैं शुरू से रहा हूं इसीलिए यह नौकरी कर रहा हूं. बदमाशों को ललकारा कि अगर किसी जानवर को तुम लोगों ने गोली मारी तो हम आप को गोली मार देंगे. जीप को चारों ओर घुमा कर हम ने उस की रोशनी में बदमाशों की पोजीशन जाननी चाही कि तभी उन्होंने हम पर अपने आधुनिक हथियारों से हमला बोल दिया. हम संभल तक नहीं पाए… पत्नी और बेटी की मौत गोली लगने से हो गई. लड़का बच गया क्योंकि वह जीप के नीचे घुस गया था.

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‘‘मैं उन्हें ललकारता हुआ अपनी बंदूक से फायर करने लगा. गोलियों की आवाज ने गार्डों को सावधान कर दिया और वे बड़ीबड़ी टार्चों और दूसरी गाडि़यों को ले कर तेजी से इधर की तरफ हल्ला बोलते आए तो बदमाश नदी में उतर कर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए.’’

‘‘फिर दूसरी शादी नहीं की,’’ उन्होंने पूछा.

‘‘लड़के को हमारी ससुराल वालों ने इस खतरे से दूर अपने पास रख कर पाला…साली से मेरी शादी उन लोगों ने तय की पर एकांत में साली ने मुझ से कहा कि वह किसी और को चाहती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. मैं बीच में न आऊं तो ही अच्छा है. मैं ने शादी से इनकार कर दिया…’’

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‘‘लड़का कहां है आजकल?’’

डा. कुमुद ने पूछा.

‘‘बस्तर के जंगलों में अफसर है. उस की शादी कर दी है. अपनी पत्नी के साथ वहीं रहता है.’’

‘‘मैं ने तो सुना है कि बस्तर में अफसर अपनी पत्नी को ले कर नहीं जाते. एक तो नक्सलियों का खतरा, दूसरे आदिवासियों की तीरंदाजी का डर… तीसरे वहां आदमी को बहुत कम पैसों में औरत रात भर के लिए मिल जाती है.’’ इतना कह कर डा. कुमुद मुसकरा दीं.

‘‘जेब में पैसा हो तो औरत सब जगह उपलब्ध है…यहां भी और कहीं भी… इसलिए मैं ने शादी नहीं की. जरूरत पड़ने पर कहीं भी चला जाता हूं.’’ प्रभु मुसकराए.

‘‘हां, पुरुष होने के ये फायदे तो हैं ही कि आप लोग बेखटके, बिना किसी शर्म के, बिना लोकलाज की परवा किए, कहीं भी देहसुख के लिए जा सकते हैं…पैसों की कमी होती नहीं है आप जैसे बड़े अफसरों को…अच्छी से अच्छी देह आप प्राप्त कर सकते हैं. मुश्किल तो हम संकोचशील औरतों की है. हमें अगर देह- सुख की जरूरत पड़े तो हम बेशर्मी लाद कर कहां जाएं? किस से कहें?’’

‘‘वक्त बहुत बदल गया है कुमुदजी…अब औरतें भी कम नहीं हैं. वह बशीर बद्र का शेर है न… ‘जी तो बहुत चाहता है कि सच बोलें पर क्या करें हौसला नहीं होता, रात का इंतजार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता.’’’

मुसकराती रहीं कुमुद देर तक, ‘‘बड़े दिलचस्प इनसान हैं आप भी, प्रभुनाथजी.’’

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श्वेता डायरी के अगले पृष्ठ को पढ़ कर अपने धड़कते दिल को मुश्किल से काबू में कर पाई थी…

मां ने लिख रखा था… ‘7 दिन रही उस नेशनल पार्क में और जो देहसुख उन 7 दिनों में प्राप्त किया शायद अगले 7 जन्मों में प्राप्त न हो सके. आदमी का सुख वास्तव में अवर्णनीय, अव्याख्य और अव्यक्त होता है…इस सुख को सिर्फ देह ही महसूस कर सकती है…उम्र और पदप्रतिष्ठा से बहुत दूर और बहुत अलग…’.

Serial Story : मेरी मां का नया प्रेमी – भाग 1

श्वेता ने मां को फोन लगाया तो फोन पर किसी पुरुष की आवाज सुन कर वह चौंक गई…कौन हो सकता है? एक क्षण को उस के दिमाग में सवाल कौंधा. अमन अंकल तो होने से रहे. मां ने ही एक दिन बताया था, ‘तुम्हारे अमन अंकल को बे्रन स्ट्रोक हुआ था. अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया था. आधे धड़ को लकवा मार गया. उन के लड़के आए थे, अपने साथ उन्हें हैदराबाद लिवा ले गए.’

‘‘हैलो…बोलिए, किस से बात करनी है आप को?’’ सहसा वह अपनी चेतना में वापस लौटी. संयत आवाज में पूछा, ‘‘आप…आप कौन? मां से बात करनी है. मैं उन की बेटी श्वेता बोल रही हूं.’’ स्थिति स्पष्ट कर दी.

‘‘पास के जनरल स्टोर तक गई हैं. कुछ जरूरी सामान लाना होगा. रोका था मैं ने…कहा भी कि लिख कर हमें दे दो, ले आएंगे. पर वह कोई स्पेशल डिश बनाना चाहती हैं शाम को. तुम्हें तो पता होगा, पास में ही सब्जी की दुकान है. वहां वह अपनी स्पेशल डिश के लिए कुछ सब्जियां लेने गई हैं…पर यह सब मैं तुम से बेकार कह रहा हूं. तुम मुझे जानती नहीं होगी. इस बीच कभी आई नहीं तुम जो मुझे देखतीं और हमारा परिचय होता… बस, इतना जान लो…मेरा नाम प्रभुनाथ है और तुम्हारी मां मुझे प्रभु कहती हैं. तुम चाहो तो प्रभु अंकल कह सकती हो.’’

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‘‘प्रभु अंकल…जब मां आ जाएं, बता दीजिएगा…श्वेता का फोन था.’’ और इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. न स्वयं कुछ और कहा, न उन्हें कहने का अवसर दिया.

श्वेता की बेचैनी उस फोन के बाद बहुत बढ़ गई. कौन हो सकते हैं यह महाशय? क्या अमन अंकल की तरह मां ने किसी नए…आगे सोचने से खुद हिचक गई श्वेता. कैसे सोचे? मां आखिर मां होती है. उन के बारे में हमेशा, हर बार, हर पुरुष को ले कर हर ऐसीवैसी बात कैसे सोची जा सकती है?

फिर भी यह सवाल तो है ही कि प्रभुनाथ अंकल कौन हैं? कैसे होंगे? कितनी उम्र होगी? मां से कब, कहां, कैसे, किन हालात में मिले होंगे और उन का संबंध मां से इतना गहरा कैसे बन गया कि मां अपना पूरा घर उन के भरोसे छोड़ कर पास के जनरल स्टोर तक चली गईं… सामान और स्पेशल डिश के लिए सब्जियां लेने…

इस का मतलब हुआ प्रभु अंकल मां के लिए कोई स्पेशल व्यक्ति हैं…लेकिन यह नाम पहले तो कभी मां से सुना नहीं. अचानक कहां से प्रकट हो गए यह अंकल? और इन का मां से क्या संबंध होगा…जिन के लिए मां स्पेशल डिश बनाती हैं…कह रहे थे कि जब वह आते हैं तो मां जरूर कोई न कोई स्पेशल डिश बनाती हैं…इस का मतलब हुआ यह महाशय वहां नहीं, कहीं और रहते हैं और कभीकभार ही मां के पास आते हैं.

अड़ोसपड़ोस के लोग अगर देखते होंगे तो मां के बारे में क्या सोचते होंगे? कसबाई शहर में इस तरह की बातें पड़ोसियों से कहां छिपती हैं? मां ने क्या कह कर उन का परिचय पड़ोसियों को दिया होगा? और उस परिचय पर क्या सब ने यकीन कर लिया होगा?

स्थिति पर श्वेता जितना सोचती जाती, उतने ही सवालों के घेरे में उलझती जाती. पिछली बार जब वह मां से मिलने गई थी तो उन की लिखनेपढ़ने की मेज पर एक नई डायरी रखी देखी थी. मां को डायरी लिखने का शौक है और महिला होने के नाते उन की वह डायरी अकसर पत्रपत्रिकाओं में छपती भी रहती है, अखबारों के साहित्य संस्करणों से ले कर साहित्यिक पत्रिकाओं तक में उन के अंश छपते हैं. चर्चा भी होती है. शहर में सब इसलिए भी उन्हें जानते हैं कि वहां के महाविद्यालय में हिंदी की प्रवक्ता थीं. लंबी नौकरी के बाद वहीं से रिटायर हुईं. मकान पिता ही बना गए थे. अवकाश प्राप्त जिंदगी आराम से वहीं गुजार रही हैं. भाई विदेश में है. श्वेता के पास आ कर वह रहना नहीं चाहतीं. बेटीदामाद के पास आ कर रहना उन्हें अपनी स्वतंत्रता में बाधक ही नहीं लगता बल्कि अनुचित भी लगता है.

इंतजार करती रही श्वेता कि मां अपनी तरफ से फोन करेंगी पर उन का फोन नहीं आया. मां की डायरी में एक अंगरेजी कवि का वाक्य शुरू में ही लिखा हुआ पढ़ा था ‘इन यू ऐट एव्री मोमेंट, लाइफ इज अबाउट टू हैपन.’ यानी आप के भीतर हर क्षण, जीवन का कुछ न कुछ घटता ही है…जीवन घटनाविहीन नहीं होता.

महाविद्यालय में पढ़ते समय भी श्वेता अपनी सहेलियों से मां की प्रशंसा सुनती थी. बहुत अच्छा बोलती हैं. उन की स्मृति गजब की है. ढेरों कविताओं के उदाहरण वह पढ़ाते समय देती चली जाती हैं. भाषा पर जबरदस्त अधिकार है. कालिज में शायद ही कोई उन जैसे शब्दों का चयन अपने व्याख्यान में करता है. पुरुष अध्यापक प्रशंसा में कह जाते हैं कि प्रो. कुमुदजी पता नहीं कहां से इतना वक्त निकाल लेती हैं यह सब पढ़नेलिखने का?

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कुछ मुंहफट जड़ देते कि पति रेलवे में स्टेशन मास्टर हैं. अकसर इस स्टेशन से उस स्टेशन पर फेंके जाते रहते हैं. बाहर रहते हैं और महीने में दोचार दिन के लिए ही आते हैं. इसलिए पति को ले कर उन्हें कोई व्यस्तता नहीं है. रहे बच्चे तो वे अब बड़े हो गए हैं. बेटा आई.आई.टी. में पढ़ने बाहर चला गया है. कल को वहां से निकलेगा तो विदेश के दरवाजे उसे खुले मिलेंगे. लड़की पढ़ रही है. योग्य वर मिलते ही उस की शादी कर देंगी. फुरसत ही फुरसत है उन्हें…पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं तो क्या करेंगी?

श्वेता एम.ए. के बाद शोधकार्य करना चाहती थी पर पिता को अपने एक मित्र का उपयुक्त लड़का जंच गया. रिश्ता तय कर दिया और श्वेता की शादी कर दी. बी.एड. उस ने शादी के बाद किया और पति की कोशिशों से उसे दिल्ली में एक अच्छे पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थे. व्यस्तता के बावजूद श्वेता अपने संबंध और कार्य से खुश थी. छुट्टियों में जबतब मां के पास हो आती, कभी अकेली, कभी बच्चों के साथ, तो कभी पति भी साथ होते.

आई.आई.टी. के तुरंत बाद भाई अमेरिका चला गया था. इधर मंदी के चलते अमेरिका से भारत आना उस के लिए अब संभव न था. कहता है अगर नौकरी से महीने भर बाहर रहा तो कंपनी समझ लेगी कि बिना इस आदमी के काम चल सकता है तो क्यों व्यर्थ में एक आदमी की तनख्वाह दी जाए. वैसे भी अमेरिका में जौब की बहुत मारामारी चल रही है.

फिर भी भाई को पिता की एक हादसे में हुई मृत्यु के बाद आना पड़ा था और बहुत जल्दी क्रियाकर्म कर के वापस चला गया था. पिता उस दिन अपने नियुक्ति वाले स्टेशन से घर आ रहे थे लेकिन टे्रन को एक छोटे स्टेशन पर भीड़ ने आंदोलन के चलते रोक लिया था. टे्रन पर पत्थर फेंके गए तो कुछ दंगाइयों ने टे्रन में आग लगा दी. जिस डब्बे में पिताजी थे उस डब्बे को लोगों ने आग लगा दी थी. सवारियां उतर कर भागीं तो उन पर दंगाइयों ने ईंटपत्थर बरसाए.

पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा पिता के सिर में आ कर लगा तो वह वहीं गिर पड़े. साथ चल रहे अमन अंकल ने उन्हें उठाया. सिर से खून बहुत तेजी से बह रहा था. लोगों ने उन्हें ले कर अस्पताल तक नहीं जाने दिया. रास्ता रोके रहे. हाथपांव जोड़ कर अमन अंकल ने किसी तरह पिताजी को कहीं सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास किया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन की मृत्यु हो गई थी.

भाई ने पिता के फंड, पेंशन आदि की सारी जिम्मेदारी अमन अंकल को ही सौंप दी थी, ‘‘अंकल आप ही निबटाइए ये सरकारी झमेले. आप तो जानते हैं, इन कामों को निबटाने में महीनों लगेंगे, अगर मैं यहां रुक कर यह सब करता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. अपनी नौकरी पर जाओ. यहां मैं सब संभाल लूंगा. इसी रेलवे विभाग में हूं. जानता हूं. ऊपर से नीचे तक लेटलतीफी का राज कायम है.’’

अमन अंकल ने ही फिर सब संभाला था. बाद में उन का ट्रांसफर वहीं हो गया तो काम को निबटाने में और अधिक सुविधा रही. तब से अमन अंकल का हमारे परिवार से संबंध जुड़ा. वह अरसे तक जारी रहा. उन का एक ही लड़का था जो आई.टी. इंजीनियर था. पहले बंगलौर में नौकरी पर लगा था. बाद में ऊंचे वेतन पर हैदराबाद चला गया.

अमन अंकल की पत्नी की मृत्यु कैंसर से हो गई थी. नौकरी शेष थी तो अमन अंकल वहीं रह कर नौकरी निभाते रहे. इस बीच उन का हमारे परिवार में आनाजाना जारी रहा. मां की उन्होंने बहुत देखरेख की. पिता की मृत्यु का सदमा वह उन्हीं के कारण सह सकीं. यह उन का हमारे परिवार पर उपकार ही रहा. बाकी मां से उन के क्या और कैसे संबंध रहे, वह अधिक नहीं जानती.

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