भाग-1
विदाई की रस्म पूरी हो रही थी. नीता का रोरो कर बुरा हाल था. आंसुओं की झड़ी के बीच वह बारबार नजरें उठा कर बेटी को देखती तो उस का कलेजा मुंह को आ जाता.
सारी औपचारिकताएं खत्म हो चुकी थीं. टीना धीरेधीरे गाड़ी की ओर बढ़ रही थी. बड़ी बूआ भीगी पलकों के साथ ढेर सारी नसीहतें दे रही थीं, ‘‘टीना, अब तेरे लिए ससुराल ही तेरा अपना घर है. वहां सब का खयाल रखना. सासससुर की सेवा करना…’’ कहतेकहते उन की रुलाई फूट पड़ी.
नीता बड़ी मुश्किल से इतना भर कह पाई, ‘‘अपना खयाल रखना टीना,’’ आगे मां की जबान साथ न दे पाई और वह बड़ी जीजी के कंधे का सहारा ले कर जोरजोर से रोने लगीं.
टीना और नरेश गाड़ी में बैठ गए. दुलहन के लिबास में लिपटी टीना की हालत पर नरेश भावुक हो उठा. उस ने धीरे से टीना का हाथ पकड़ कर उसे ढांढस बंधाने का प्रयास किया. पति का स्पर्श पा कर टीना को कुछ राहत मिली, वरना उसे लग रहा था कि उस के सारे परिचित पीछे छूट गए हैं.
1 घंटे में टीना अपनी ससुराल की दहलीज पर खड़ी थी. नरेश का परिवार उस के लिए अपरिचित न था. दूर की रिश्तेदारी के कारण अकसर उन की मुलाकातें हो जाया करती थीं. ऐसे ही एक विवाह समारोह में नरेश की मां सुधा ने टीना को देखा था. उस का चुलबुलापन उन्हें बहुत अच्छा लगा. बिना समय गंवाए उन्होंने बात चलाई और 6 महीने के अंदर टीना उन की बहू बन कर उन के घर आ गई.
2 दिन तक विवाह की रम्में पूरी होती रहीं. तीसरे दिन नरेश व टीना हनीमून के लिए शिमला आ गए. दोनों बहुत खुश थे. नरेश के प्यार में खो कर टीना, मम्मी से बिछुड़ने का गम भूल सी गई.
हनीमून के 2 दिन बहुत ही सुखद बीते. तीसरे दिन टीना को सर्दीबुखार ने घेर लिया. नरेश चिंतित था, ‘‘टीना, तुम आराम करो, लगता है यहां के मौसम में आए बदलाव के चलते तुम्हें सर्दी लग गई है.’’
‘‘मेरा बदन बहुत दुख रहा है नरेश.’’
‘‘तुम चिंता न करो, मैं डाक्टर को ले कर आता हूं.’’
‘‘डाक्टर की जरूरत नहीं है. एंटी कोल्ड दवाई से ही बुखार ठीक हो जाएगा, क्योंकि जब मुझे सर्दीबुखार होता था तो मम्मी मुझे यही दिया करती थीं.’’
‘‘मम्मी की बहुत याद आ रही है,’’ टीना को बांहों में भर कर नरेश बोला तो उस ने सिर हिला दिया.
‘‘तो इस में कीमती आंसू बहाने की क्या जरूरत है. अभी मम्मी से बात कर लो,’’ टीना की ओर मोबाइल बढ़ाते हुए नरेश बोला.
‘‘मुझे मम्मी से ढेर सारी बातें करनी हैं, अभी घर पर बहुत सारे मेहमान होंगे.’’
‘‘पगली, बाकी बातें बाद में कर लेना, अभी तो अपना हालचाल बता दो उन्हें.’’
‘‘प्लीज, उन्हें मेरी तबीयत के बारे में कुछ न बताना, वरना वे मुझे देखने यहीं आ जाएंगी. मैं मम्मी को जानती हूं,’’ टीना चहक कर बोली.
मम्मी के बारे में बात कर वह अपना दुखदर्द भूल गई. नरेश ने महसूस किया कि टीना सब से ज्यादा खुश मम्मी की बातों से होती है. अब टीना का दिल बहलाने के लिए वह बहुत देर तक मम्मी के बारे में बात करता रहा.
हनीमून के दौरान पूरे 7 दिनों में टीना ने एक बार भी अपनी ससुराल के बारे में कुछ नहीं पूछा. वह बस, अपनी मम्मी की और सहेलियों की बातें करती रही. हनीमून से वापस लौटते हुए टीना बोली, ‘‘नरेश, मुझे लखनऊ कितने दिन रुकना होगा.’’
‘‘तुम यह सब क्यों पूछ रही हो? अभी हमारी शादी को 8-10 दिन ही हुए हैं. जिस में हम घर पर 3 दिन ही रहे हैं. कम से कम 2 हफ्ते तो रुक ही जाना.’’
‘‘2 हफ्ते तक घर में बहू बन कर रहना मेरे बस की बात नहीं है.’’
‘‘मेरी मम्मी तुम्हें बहू नहीं बेटी की तरह रखेंगी. तुम खुद देख लेना. बहुत अच्छी मां हैं वह.’’
‘‘तुम्हारी बहन को देख कर मुझे अंदाजा लग गया है कि वह बेटी को किस तरह रखती हैं,’’ मुंह बना कर टीना बोली.
‘‘हम यहां से चल कर 2 दिन लखनऊ रुकेंगे. उस के बाद दिल्ली चलेंगे तुम्हारे मम्मीपापा के पास. वहां से जब तुम चाहोगी तब ही वापस आएंगे,’’ न चाहते हुए भी मजबूरी में टीना ने नरेश की यह बात मान ली.
लखनऊ में नरेश के परिवार वालों ने टीना की खूब खातिरदारी की. नरेश को लगा वह टीना को कुछ दिन और यहां रोक लेगा पर दूसरे दिन ही टीना ने अपने मन की बात कह डाली.
‘‘नरेश, हम कल दिल्ली चल रहे हैं न. मैं ने मम्मी को फोन से बता दिया है,’’ टीना बोली तो नरेश चुप हो गया. उस ने यह बात अभी तक अपने मम्मीपापा से नहीं कही थी. वह तुरंत पानी पीने के बहाने वहां से हट कर किचन में आ गया और धीरे से मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, टीना कल अपने मायके जाना चाहती है. आप की इजाजत हो तो…’’
‘‘ठीक ही तो कह रही है बहू. इतने दिन हो गए हैं उसे ससुराल आए हुए. इकलौती बेटी है वह अपने मां बाप की. घर की याद आनी तो स्वाभाविक है बेटा,’’ बेटे की दुविधा दूर करते हुए सुधा बोलीं.
कमरे में नरेश पहुंचा तो टीना बोली, ‘‘आप मेरी बात अधूरी छोड़ कर कहां चले गए थे?’’
‘‘पानी पीने चला गया था. तुम पैकिंग में व्यस्त थीं सो मैं खुद ही चला गया किचन तक.’’
‘‘कल का प्रोग्राम पक्का है न?’’
‘‘बिलकुल पक्का,’’ नरेश चहक कर बोला तो टीना ने राहत की सांस ली.
मायके पहुंच कर टीना मम्मी से लिपट कर खूब रोई. नीता, टीना को बड़ी देर तक सहलाती रही.
‘‘कितनी दुबली हो गई हैं मम्मी आप,’’ टीना बोली.
नरेश, मांबेटी को छोड़ कर अपने ससुर के पास आ गया.
‘‘पापा, बेटी के बिना घर खालीखाली लग रहा होगा आप को.’’
‘‘बेटी का असली घर तो उस की ससुराल ही होता है बेटा, यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए. टीना अपनी मां के लाड़प्यार के कारण थोड़ी लापरवाह है. उस की नादानियों को नजरअंदाज कर दिया करना.’’
‘‘आप चिंता न करें पापाजी, धीरेधीरे टीना मेरे परिवार के साथ घुलमिल जाएगी.’’
एक ही दिन में नरेश समझ गया कि इस घर में टीना के पापा की उपस्थिति केवल नाम लेने भर की है. घर में सारे फैसले नीता के कहे अनुसार ही होते हैं.
एक हफ्ता बीत गया. टीना का मन लखनऊ जाने का न था, वह तो नरेश के साथ सीधे मुंबई जाना चाहती थी पर नरेश से कहने का वह साहस न जुटा सकी.
बेटी को विदा करते हुए नीता ने ढेरों हिदायतें दे डालीं. नरेश साथ खड़ा सबकुछ सुन रहा था पर बोला कुछ नहीं. उसे ताज्जुब हो रहा था कि उस की सास ने एक बार भी टीना को अपने सासससुर की सेवा से संबंधित नसीहत न दी. चलते वक्त वह नरेश से बोलीं, ‘‘बेटा, टीना का खयाल रखना, मैं ने जिंदगी की अमानत तुम्हें सौंप दी है.’’
शादी के 3 हफ्तों में ही नरेश को सबकुछ समझ में आने लगा था कि मम्मी के लाड़प्यार के कारण टीना की परवरिश एक आम लड़की की तरह नहीं हुई थी. घूमनाफिरना, मौजमस्ती करना और गप्पबाजी उस के खास शौक थे. घर के किसी काम में उस की रुचि न थी. सामान्य शिष्टाचार में उस का विश्वास न था.
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छुट्टियां खत्म हुईं तो नरेश के साथ टीना भी मुंबई आ गई.
नरेश, टीना से जितना सामंजस्य बिठाता, टीना अपनी हद आगे सरका देती.
टीना की गुडमार्निंग मम्मी को फोन से होती, और फिर तो बातों में टीना यह भी भूल जाती कि उस के पति को दफ्तर जाना है, महीने का टेलीफोन का बिल हजारों में आया तो नरेश बोला, ‘‘टीना, मेरी आमदनी इतनी नहीं है कि मैं 5 हजार रुपए महीना टेलीफोन के बिल पर खर्च कर सकूं. हमें अपनी जरूरतें सीमित करनी होंगी.’’
‘‘नरेश, आप के पास रुपए की कमी है तो मैं मम्मी से मांग लेती हूं. मेरे एक फोन पर वह तुरंत रुपए आप के खाते में ट्रांसफर करवा देंगी.’’
‘‘शादी के बाद बेटी को मां पर नहीं पति पर आश्रित रहना चाहिए.’’
‘‘मैं अपनी मम्मीपापा की इकलौती संतान हूं,’’ टीना बोली, ‘‘उन का सबकुछ मेरा ही तो है. पता नहीं किस जमाने की बात कर रहे हो तुम.’’
‘‘छोटीछोटी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना ठीक नहीं होता.’’
‘‘मम्मी, दूसरी नहीं मेरी अपनी हैं.’’
‘‘यही बातें तुम्हें मेरे लिए भी सोचनी चाहिए. मेरे मांबाप का मुझ पर कुछ हक है और हमारा उन के प्रति कुछ फर्ज भी है,’’ पहली बार अपने परिवार की पैरवी की नरेश ने.
दूसरे दिन नरेश के आफिस जाते ही टीना ने सारी बातें अपनी मम्मी को बताईं तो वह बोलीं, ‘‘ठीक किया तू ने टीना. तुम्हारी ससुराल में जरा सी भी दिलचस्पी नरेश को उन की ओर मोड़ देगी. तुम्हें अपना भला देखना है कि ससुराल का.’’
शादी के बाद पहली होली पर नरेश ने टीना से घर चलने का आग्रह किया तो वह तुनक गई.
‘‘होली का त्योहार मुझे अच्छा नहीं लगता. रंगों से मुझे एलर्जी होती है.’’
‘‘बड़ों की भावनाओं का सम्मान करना जरूरी होता है टीना, मेरी खातिर तुम लखनऊ चलो न, वहां सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’ नरेश दुविधा में था कि क्या करे, क्योंकि टीना ससुराल जाने के लिए तैयार न थी. तभी नरेश के दिमाग में एक आइडिया आया और वह बोला, ‘‘टीना, चलो दिल्ली चलते हैं.’’ दिल्ली का नाम सुनते ही टीना तैयार हो गई.
होली से 2 दिन पहले वे दिल्ली पहुंच गए. नीता बेटीदामाद को देख कर फू ली न समाई. बेटी को होली पर मायके देख कर टीना के पापा पहली बार बोले, ‘‘टीना, इस समय तुम्हें मायके के बजाय अपनी ससुराल में होना चाहिए था. यह तुम्हारी ससुराल की पहली होली है.’’
‘‘क्या फर्क पड़ता है? टीना यहां रहे या ससुराल में.’’
‘‘फर्क हमें नहीं हमारे समधीजी को पड़ेगा, जिन का बेटा होली के दिन अपनी ससुराल में पत्नी के साथ…’’
‘‘बसबस, रहने दो. तुम्हें कुछ पता है रिश्तेनातों के बारे में. मैं न होती तो…’’
‘‘आप दोनों हमें ले कर आपस में क्यों उलझ रहे हैं. टीना यहां रह लेगी और चूंकि मेरा यहां रुकना ठीक नहीं है इसलिए मैं लखनऊ चला जाता हूं.’’
टीना के सामने अब कोई रास्ता न था. मजबूर हो कर उसे भी नरेश के साथ लखनऊ आना पड़ा. होली पर गुलाल के रंग टीना के सुंदर चेहरे पर बहुत फब रहे थे पर खुशी का असली रंग उस के चेहरे से नदारद था.
सुधा से बहू की उदासी और उकताहट छिपी न थी. वह सबकुछ देख कर भी चुप थी. इस अवसर पर उसे कोई नसीहत देना उस के दुख को क्रोध में बदलना था. बस, एक बार सुधा ने कहा, ‘‘टीना, कितना अच्छा लगता है जब तुम और नरेश यहां होते हो.’’
सुधा की बात सुन कर टीना चुप रही. रात को नरेश ने पूछा, ‘‘टीना, तुम्हारा मन कुछ दिन ससुराल में रहने को हो तो मैं अपनी छुट्टी आगे बढ़ा लेता हूं.’’
सुधा के शब्दों की खीज वह नरेश पर उतारते हुए बोली, ‘‘3 दिन में आप का मन नहीं भरा अपने लोगों के साथ रह कर.’’
‘‘अपनापन तो मन में होता है, टीना. मुझे तो तुम से जुड़े सभी लोग अपने लगते हैं.’’
‘‘मुझे तुम्हारी फिलोसफी नहीं सुननी, और यहां रुकना मेरे बस की बात नहीं.’’
टीना का दो टूक जवाब सुन कर भी नरेश हंस दिया और बोला, ‘‘सौरी डार्लिंग, हम कल सुबह ही यहां से चल पड़ेंगे.’’
मुंबई वापस लौट कर टीना ने राहत की सांस ली और ससुराल में घटी सब बातोें की जानकारी अपनी मम्मी को दे दी.
अकसर टीना और नरेश शाम को घर से बाहर ही खाना खाते क्योंकि टीना को खाना पकाना नहीं आता था और वह सीखने का प्रयास भी नहीं करती. कभी वह जिद कर के टीना से कुछ बनाने को कहता तो गैस के चूल्हे जलने के साथ टीना का मोबाइल कान से लग जाता.
हां, मम्मी, बताओ कढ़ी बनाने के लिए सब से पहले क्या करना है? इस तरह मम्मी से पूरी रेसिपी सुन कर जितना फोन का बिल बढ़ता उस से कम पैसे में होटल से लजीज खाना मंगाया जा सकता था. सो नरेश ने फरमाइश करनी ही छोड़ दी.
इधर नरेश ने महसूस किया कि टीना उस से उलझने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ती रहती है. कल की ही बात है, टीना को शोरूम में एक घड़ी बहुत पसंद आई. उस ने नरेश से घड़ी लेने का आग्रह किया, ‘‘नरेश देखो, कितनी सुंदर घड़ी है.’’
‘‘टीना, तुम्हारे पास पहले ही कई घडि़या हैं. उन में से कुछ तो तुम ने आज तक पहनी भी नहीं हैं और घड़ी ले कर क्या करोगी?’’
‘‘वे घडि़यां मुझे पसंद नहीं. मुझे तो यही चाहिए,’’ टीना जिद करते हुए बोली.
इतनी देर में नरेश काउंटर से हट कर अलग खड़ा हो गया. टीना नरेश की ओर बढ़ी तो वह दुकान से बाहर आ गया. गुस्से से भरी टीना, नरेश के साथ घर तो आ गई पर घर में घुसते ही वह फट पड़ी, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, दुकान में मेरी बेइज्जती करने की.’’
‘‘मेरा ऐसा कोई इरादा न था. मैं तो बस, दुकान में उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता था.’’
‘‘आज तक मेरी मम्मी ने कभी मेरी किसी इच्छा से इनकार नहीं किया. मैं जैसे चाहूं रहूं, खाऊंपीऊं, खरीदारी करूं या घूमू फिरूं.’’
‘‘मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था. टीना, प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी जेब में उस वक्त उतने रुपए नहीं थे.’’
‘‘के्रडिट कार्ड तो था. पहली बार मैं ने तुम्हारे सामने अपनी इच्छा रखी और तुम ने मेरी बेइज्जती की.’’
‘‘मुझे माफ कर दो प्लीज.’’
‘‘तुम्हारा मेरे प्रति यही नजरिया रहा तो देख लेना मैं यहीं इसी घर में आत्महत्या कर लूंगी.’’
‘‘आत्महत्या तुम्हें नहीं मुझे करनी चाहिए जिस ने अपनी इतनी प्यारी पत्नी का दिल दुखाया. चलो, मैं अभी तुम्हारे लिए घड़ी ले आता हूं.’’
‘‘अब मुझे घड़ी नहीं चाहिए, जिस चीज के लिए एक बार ना हो जाए उसे मैं कभी हाथ नहीं लगाती,’’ कहते हुए टीना मुंह फुला कर सो गई. उस ने खाना भी नहीं खाया तो नरेश को भी भूखा सोना पड़ा.
अगले दिन नरेश के आफिस जाते ही टीना ने मम्मी को कल की पूरी घटना सुना दी. सुन कर नीता को बड़ा गुस्सा आया और वह बोलीं, ‘‘यह तो नरेश ने अच्छा नहीं किया टीना, उस की हिम्मत तो देखो कि अपनी पत्नी की छोटी सी इच्छा पूरी न कर सका.’’
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‘‘मुझे इस बात का बड़ा दुख हुआ मम्मी.’’
‘‘ऐसे मौकों पर तुम कमजोर न पड़ना. आखिर वह इतनी तनख्वाह का करता क्या है? कहीं सारे रुपए घर तो नहीं भेज देता?’’
‘‘मैं ने कभी पूछा नहीं मम्मी.’’
‘‘नरेश की हर हरकत पर नजर रखना. तुम अभी कमजोर पड़ गईं तो फिर कभी पति पर राज नहीं कर सकोगी.’’
मम्मी के कहे अनुसार टीना ने नरेश की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी पर ऐसा कुछ हाथ न लगा जिसे ले कर नरेश पर हावी हुआ जा सके.
-क्रमश:
डा. के रानी