आज से 15 साल पहले की बात है. मैं 11वीं जमात में पढ़ता था. वह लड़की हमारी क्लास में नईनई आई थी. उस के पैर में कुछ लचक थी. शायद कुछ चोट लगी हो, इसलिए वह थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी. उस ने 10वीं क्लास में पूरे उदयपुर में टौप किया था और मैं ने अपने स्कूल में.
दिखने में तो वह बला की खूबसूरत थी. मगर कहते हैं न कि चांद में भी दाग होता है, बिलकुल ऐसे ही उस के पैर की वह चोट उस चांद से हुस्न का दाग बन गई थी.
उस ने पहले दिन से ही क्लास के मनचले लड़कों को अपनी खूबसूरती का दीवाना बना दिया था. उस की सादगी की चर्चा हर जबान पर थी.
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शुरुआत के चंद महीनों में ही क्लास के आधे से ज्यादा लड़के उसे प्रपोज कर चुके थे. सब को उस के हुस्न से मतलब था, उस से नहीं. हम लड़कों की सोच गिरी हुई होती है. लड़की को इस्तेमाल करने की चीज समझते हैं. इस्तेमाल किया और फेंक दिया. मगर सबकुछ जानते हुए भी उस ने कभी किसी को जवाब नहीं दिया. न ही नाराजगी से और न ही खुशी से.
और एक मैं था, जो अभी तक उस का नाम भी नहीं जानता था. सच कहूं, तो मैं ने कभी कोशिश भी नहीं की थी. नाम जान कर करना भी क्या था, जब दोनों की दुनिया और रास्ते ही अलग थे. हर कोई उसे अलगअलग नाम से पुकारता था, इसलिए कभी सुनने में भी नहीं आया उस का असली नाम.
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