तेरा जाना: आखिर क्यों संजना ने लिया ऐसा फैसला?

दोमंजिले मकान के ऊपरी माले में अपनी पैरालाइज्ड मां के साथ अकेला बैठा अनिल खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था. मां सो रही थी. कमरा बिखरा पड़ा था. उसे अपनी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. सुबह के 11 बज चुके थे. पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं गया था. ऐसे में उठ कर नाश्ता बनाना आसान नहीं था. वैसे पिछले कई दिनों से नाश्ते के नाम पर वह ब्रेड बटर और दूध ले रहा था.

किसी तरह फ्रेश हो कर वह किचन में घुसा. दूध और ब्रेड खत्म हो चुके थे. घर में कोई ऐसा था नहीं जिसे भेज कर दूध मंगाया जा सके. खुद ही घिसटता हुआ किराने की शॉप तक पहुंचा. दूध, मैगी और ब्रेड के पैकेट खरीद कर घर आ गया.

अपनी पत्नी संजना के जाने के बाद वह यही सब खा कर जिंदगी बसर कर रहा था. घर आ कर जल्दी से उस ने दूध उबालने को रखा और ब्रेड सेकने लगा.

तभी मां ने आवाज लगाई,” बेटा जल्दी आ. मुझे टॉयलेट लगी है.”

अनिल ने ब्रैड वाली गैस बंद की और दूध वाली गैस थोड़ी हल्की कर के मां के कमरे की तरफ भागा. तब तक मां सब कुछ बिस्तर पर ही कर चुकी थीं. उन से कुछ भी रोका नहीं जाता. वह मां पर चीख पड़ा,” क्या मां, मैं 2 सेकंड में दौड़ता हुआ आ गया पर तुम ने बिस्तर खराब कर दिया. अब यह सब बैठ कर मुझे ही धोना पड़ेगा. कामवाली भी तो नहीं आ रही न.”

मां सकपका गईं. दुखी नजरों से उसे देखती हुई बोलीं,” माफ कर देना बेटा. पता नहीं कैसी हालत हो गई है मेरी. कितनी तकलीफ देती हूं तुझे. मैं मर क्यों नहीं जाती” कहते हुए वह रोने लगी थीं.

“ऐसा मत कह मां.”अनिल ने मां का हाथ पकड़ लिया.” पिताजी पहले ही हमें छोड़ कर जा चुके. भाई दूसरे शहर चला गया. संजना किसी और के साथ भाग गई. अब मेरा है ही कौन तेरे सिवा. तू भी चली जाएगी तो पूरी तरह अकेला हो जाऊंगा.”

अनिल की भी आंखें भर आई थीं. उसे संजना की याद तड़पाने लगी थी. संजना थी तो सब कुछ कितनी सहजता से संभाले रखती थी. मां की तबियत तब भी खराब थी मगर संजना इस तरह मां की सेवा करती थी कि तकलीफों के बावजूद वे हंसती रहती थीं. उस समय छोटा भाई और पिताजी भी थे. मगर घर के काम पलक झपकते निबट जाते थे.

अनिल की आंखों के आगे संजना का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया जब वह ब्याह कर घर आई थी. नईनवेली बहू इधर से उधर फुदकती फिरती थी. मगर अनिल उस की मासूमियत को बेवकूफी का नाम देता था. वक्तबेवक्त उसे झिड़कता रहता था. वह घर से एक भी कदम बाहर रख देती थी तो घर सिर पर उठा लेता था. उस की सहेलियों तक से उसे मिलने नहीं देता था. समय के साथ चपल हिरनी सी संजना   पिंजरे में कैद बुलबुल जैसी गमगीन हो गई. हंसी के बजाय उस की आंखों में पीड़ा झांकने लगी थी. फिर भी कोई शिकायत किए बिना वह पूरे दिन घर के कामों में लगी रहती.

आज अनिल को याद आ रहा था वह दिन जब संजना की मौजूदगी में एक बार उसे बुखार आ गया था. उस वक्त उन की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए थे. तब संजना पूरे दिन  उस के हाथपैरों की मालिश करती रही थी. अनिल कभी संजना से सिर दबाने को कहता, कभी कुछ खाने को मंगाता तो कभी पत्रिकाओं में से कहानियां पढ़ कर सुनाने को कहता  हर समय संजना को अपनी सेवा में लगाए रखता.

एक दिन उस के मन की थाह लेने के लिए अनिल ने पूछा था,” मेरी बीमारी में तुम मुझ से परेशान तो नहीं हो गई? ज्यादा काम तो नहीं करा रहा हूं मैं ?”

संजना ने कुछ कहा नहीं केवल मुस्कुरा भर दिया तो अनिल ने उसे तुलसीदास का दोहा सुनाते हुए कहा था,” धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी…. आपद काल परखिए चारी…. जानती हो इस का मतलब क्या है?”

नहीं तो. आप बताइए क्या मतलब है?” संजना ने गोलगोल आंखें नचाते हुए पूछा तो अनिल ने समझाया,” इस का मतलब है खराब समय में ही धीरज, धर्म, मित्र और औरत की परीक्षा होती है. बुरे समय में पत्नी आप का साथ देती है या नहीं यह देखना जरूरी है. इसी से पत्नी की परीक्षा होती है.”

संजना के बारे में सोचतेसोचते काफी समय तक अनिल यों ही बैठा रहा. तभी उसे याद आया कि उस ने गैस पर दूध चढ़ा रखा है. वह दौड़ता हुआ किचन में घुसा तो देखा आधा से ज्यादा दूर जमीन पर बह गया है और बाकी जल चुका है. भगोना भी काला हो गया है. अनिल सिर पकड़ कर बैठ गया. किचन की सफाई का काम बढ़ गया था. दूध भी फिर से लाना होगा. उधर मां के बिस्तर की सफाई भी करनी थी.

सब काम निबटातेनिबटाते दोपहर के 2 बज गए. दूध के साथ ब्रेड खाते हुए अनिल को फिर से पुराने दिन याद आने लगे. संजना को उस के लिए पिताजी ने पसंद किया था. वह खूबसूरत, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की थी. जबकि अनिल कपड़ों का थोक विक्रेता था.

घर में रुपएपैसों की कमी नहीं थी. फिर भी संजना जॉब करना चाहती थी. वह इस बहाने खुली हवा में सांस लेना चाहती थी. मगर अनिल ने उस की यह गुजारिश सिरे से नकार दी थी. अनिल को डर लगने लगा था कि कमला यदि बाहर जाएगी या अपनी सहेलियों से मिलेगी तो वे उसे भड़काएंगी. यही सोच कर उस ने संजना को जॉब करने या सहेलियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

एक दिन वह दुकान से जल्दी घर लौट आया. उस ने देखा कि कपड़े प्रेस करतेकरते संजना अपनी किसी सहेली से बातें कर रही है. अनिल दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ और बिस्तर पर बैठ कर चुपके से संजना की बातें सुनने लगा. वह अपनी सहेली से कह रही थी,” मीना सच कहूं तो कभीकभी दिल करता है इन को छोड़ कर कहीं दूर चली जाऊं. कभीकभी बहुत परेशान करते हैं. मगर उस वक्त सुनयना दीदी का ख्याल आ जाता है. वह इतनी सुंदर हैं पर विधवा होने की वजह से उन की कहीं शादी नहीं हो पाई. कितनी बेबस और अकेली रह गई हैं. एक औरत के लिए दूसरी शादी कर पाना आसान नहीं होता. कभी मन गवाह नहीं देता तो कभी समाज. एक बात बताऊं मीना…” संजना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनिल चीख पड़ा,” संजना फोन रखो. मैं कहता हूं फोन रखो.” डर कर संजना ने फोन रख दिया.

अनिल ने खींच कर एक झापड़ उसे रसीद किया. संजना बिस्तर पर बैठ कर सुबकने लगी. अनिल ने उस के कानों में तुलसीदास का दोहा बुदबुदाया,” ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी …. ये सब ताड़न के अधिकारी….”

संजना ने सवालिया नजरों से अनिल की ओर देखा तो अनिल फिर चीखा,”जानती है इस दोहे का मतलब क्या है? नहीं जानती न. इस का मतलब है कि औरतों को अक्ल सिखाने के लिए उन्हें पीटना जरूरी होता है. वे ताड़न की अधिकारी होती हैं और मैं तेरी जैसी औरतों को पीटना अच्छी तरह जानता हूं. पति की बुराई मोहल्ले भर में करती चलती हो. सहेलियों के आगे बुराइयों का पोथा खोल रखा है. छोड़ कर जाएगी मुझे? क्या कमी रखी है मैं ने? जाहिल औरत बता क्या कमी रखी है?” कहते हुए अनिल ने गर्म प्रेस उस की हथेली पर रख दी.

संजना जोर से चीख उठी. बगल के कमरे से पिताजी दौड़े आए.” बस कर अनिल क्या कर रहा है तू ? चल तेरी मां दवा मांग रही है.”

पिताजी अनिल को खींचते हुए ले गए. फिर संजना देर तक नल के नीचे बहते पानी में हाथ रखी रोती रही. उस दिन संजना के अंदर कुछ टूट गया था. यह चोट फिर कभी ठीक नहीं हुई. उस दिन के बाद संजना ने अपनी सहेलियों से भी बातें करना छोड़ दिया. हंसनाखिलखिलाना सब कुछ छूट गया. वह अनिल के सारे काम करती मगर बिना एक शब्द मुंह से निकाले. रात में जब अनिल उसे अपनी तरफ खींचता तो उसे महसूस होता जैसे बहुत सारे बिच्छूओं ने एक साथ डंक मार दिया हो. पर वह बेबस थी. उसे कोई रास्ता नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

इस तरह जिंदगी के करीब 3 साल बीत गए. उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. संजना वैसे भी बच्चे के पक्ष में नहीं थी. उसे लगता था कि इतने घुटन भरे माहौल में वह अपने बच्चे को कौन सी खुशी दे पाएगी?

एक दिन वह शाम के समय सब्जी लाने बाजार गई थी. वहीं उस की मुलाकात अपने सहपाठी नीरज से हुई. वह अपने भाई निलय के साथ के सब्जी और फल खरीदने आया था. संजना को देखते ही नीरज ने उसे पुकारा,” कैसी हो संजना पहचाना मुझे?”

नीरज को देख कर संजना का चेहरा खिल उठा,”अरे कैसे नहीं पहचानूंगी. तुम तो कॉलेज के जान थे.”

“पर तुम्हें पहचानना कठिन हो रहा है. कितनी मुरझा गई हो.सब ठीक तो है?” चिंता भरे स्वर में नीरज ने पूछा तो संजना ने सब सच बता दिया.

ढांढस बंधाते हुए नीरज ने संजना का परिचय अपने भाई से कराया,” यह मेरा भाई है. यहीं पास में ही रहता है. बीवी से तलाक हो चुका है. बीवी बहुत रुखे स्वभाव की थी जबकि यह बहुत कोमल हृदय का है. मैं तो जयपुर में रहता हूं मगर तुम्हें जब भी कोई समस्या आए तो मेरे भाई से बात कर सकती हो. यह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा.”

इस छोटी सी मुलाकात में निलय ने अपना नंबर देते हुए हर मुश्किल घड़ी में साथ  निभाने का वादा किया था.

संजना को जैसे एक आसरा मिल गया था. वैसे भी निलय उसे जिन निगाहों से देख रहा था वे निगाहें घर आने के बाद भी उस का पीछा करती रही थीं. अजीब सी कशिश थी उस की निगाहों में. संजना चाह कर भी निलय को भूल नहीं पा रही थी.

करीब चारपांच दिन बीत गए. हमेशा की तरह संजना अपने घर के कामों में व्यस्त थी कि तभी निलय का फोन आया. उस का नंबर संजना ने सुधा नाम से सेव किया था. संजना ने दौड़ कर फोन उठाया.  निलय की आवाज में एक सुरुर था. वैसे उस ने संजना का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था मगर उस के बात करने का अंदाज ऐसा था कि संजना दोतीन दिनों तक फिर से निलय के ख्यालों में गुम रही.

इस बार उसी ने निलय को फोन किया. दोनों देर तक बातें करते रहे. हालचाल से बढ़ कर अब जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी बातें होने लगीं थीं. अब हर रोज दोपहर करीब 2- 3 बजे दोनों बातें करने लगे. दोनों ने अपनीअपनी फीलिंग्स शेयर की और फिर एक दिन एकदूसरे के साथ कहीं दूर भाग जाने की योजना भी बना डाली. संजना के लिए यह फैसला लेना कठिन नहीं हुआ था. वह ऐसे भी अनिल से आजिज आ चुकी थी. अनिल ने जिस तरह से उसे मारापीटा और गुलाम बना कर रखा था वह उस के जैसी स्वाभिमानी स्त्री के लिए असहनीय था.

एक दिन अनिल के नाम एक चिट्ठी छोड़ कर संजना निलय के साथ भाग गई. वह कहां गई इस की खबर उस ने अनिल को नहीं दी मगर क्यों गई और किस के साथ गई इन सब बातों की जानकारी खत के माध्यम से अनिल को दे दी. साथ ही उस ने खत में स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह अनिल को तलाक नहीं देगी और उस के साथ रहेगी भी नहीं.

अनिल के पास हाथ मलने और पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. इस बात को डेढ़ साल बीत चुके थे. अनिल की जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी. मन में बेचैनी का असर दुकान पर भी पड़ा. उस का व्यवसाय ठप पड़ने लगा. अनिल के पिता की मौत हो गई और घर के हालात देखते हुए अनिल के भाई ने लव मैरिज की और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.

अब अनिल अकेला अपनी बीमार मां के साथ जिंदगी की रेतीली धरती पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश था.

पंडों का चक्रव्यूह : पूजा के नाम पर ठगी

आजमैं जब अपने चाचाजी को देखने उन के घर गई तो उन्हें देख कर बहुत दुख हुआ. चाचाजी की हालत बहुत गंभीर थी. मैं ने चाचीजी से पूछा कि डाक्टर क्या कह रहा है? किस डाक्टर को दिखाया? अचानक क्या हुआ? 5 महीने पहले तो चाचाजी ठीक थे? तो चाचीजी ने बताया, ‘‘बिटिया, 4 महीने पहले तुम्हारे चाचाजी को बुखार आया था. डाक्टर की दवा से फायदा नहीं हुआ तो पड़ोसिन पंडिताइन ने एक अच्छे हकीम की दवा दिलवाई. ये कुछ दिन तो ठीक रहे फिर हालत बिगड़ती गई. फिर डाक्टर को दिखाया, पर ये ठीक नहीं हुए. बहुत दिनों तक दवा खाते रहे पर कोई फायदा नहीं हुआ. तभी एक दिन पंडिताइन ने चाचाजी की जन्मपत्री एक बहुत बड़े पंडित को दिखाई तो मालूम चला कि तुम्हारे चाचाजी ठीक कैसे होंगे. इन की तो घोर शनि और केतु की दशा चल रही है. तब से हम ने डाक्टर की दवा कम कर दी और इन के लिए जाप वगैरह करा रहे हैं.’’

सुन कर मेरा माथा ठनका. मैं ने कहा, ‘‘चाचीजी, जाप वगैरह से कुछ नहीं होगा. डाक्टर को ठीक से दिखा कर टैस्ट वगैरह कराइए. आप जो पैसा जाप में खर्च कर रही हैं, इन के खाने और दवा पर खर्च करिए.’’

चाचीजी ने कहा, ‘‘बिटिया, डाक्टर क्या पंडित से ज्यादा जाने हैं? जब पंडितजी ने बता दिया कि क्यों बीमार हैं, तो डाक्टर के पास जाने से क्या फायदा? अब हम किसी डाक्टर को नहीं दिखाएंगे,’’ और वे तमतमा कर अंदर चली गईं.

मैं ने अपनी भाभी यानी उन की बहू को समझाया. पर वे तो चाचीजी से भी ज्यादा अंधविश्वासी थीं. मैं चाचाजी से मिल कर दुखी मन से घर लौट आई. मैं समझा गई कि उस पंडित ने चाचीजी को अपने जाल में फांस लिया है.

मेरी चाचीजी को हमेशा पंडितों की बातों और उन के अंधविश्वासों पर विश्वास रहा. मैं पहले जब भी चाचीजी से मिलने जाती तो अकसर किसी पंडे या पंडित को उन के पास बैठा देखती. वे उस से घर की सुखशांति व निरोग होने के लिए उपाय पूछती दिखतीं और वह पंडा या पंडित जन्म और अगले जन्म के विषय में इस तरह से बताता जैसे सब कुछ उस के सामने घटित हो रहा हो. वह अकसर कौन सा दान करना जरूरी है, किस दान से क्या फल मिलेगा और अगर फलां दान नहीं किया तो अगले जन्म में क्या नुकसान होगा वगैरह बातें कर के चाचीजी के मस्तिष्क को अंधविश्वासों में जकड़ता जा रहा था और चाचीजी बिना किसी विरोध के उस का कहना मानती थीं.

चाचाजी उम्र बढ़ने के साथ व्याधियों से भी घिरते जा रहे थे. चाचीजी उस का कारण चाचाजी का पंडितों पर विश्वास न होना मानती थीं. चाचीजी और चाचाजी की उम्र में 12 साल का अंतर था पर चाचीजी का कहना था कि मैं इसलिए स्वस्थ हूं क्योंकि मैं पंडितजी के कहे अनुसार सारे धर्मकर्म करती हूं और चाचाजी चूंकि पंडितजी की बात नहीं मानते, इसलिए रोगों से ग्रस्त रहते हैं. उन की इस तरह की बात बारबार सुन कर उन की बहू भी अंधविश्वासी हो गई थी.

एक घर में जब 2 महिलाएं पंडितों और पंडों के चक्कर में फंस जाएं तो वे रोज नए तरह के किस्सों और कर्मकांडों द्वारा दानपुण्य से लूटने की भूमिका तैयार करते रहते हैं. वही चाचीजी के घर में हो रहा था.

मैं हर दूसरे दिन फोन पर चाचाजी की खबर लेती रहती. कभी उन की तबीयत ठीक होती तो कभी ज्यादा खराब होती. 3 हफ्ते बाद मैं जब चाचाजी से मिलने गई तो पंडितजी बैठे थे और चाचीजी की बहू को कुछ सामग्री लिखा रहे थे.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हो रहा है, चाचीजी?’’

चाचीजी बोलीं, ‘‘बिटिया, पंडितजी कह रहे हैं अगर चाचाजी का तुलादान कर दिया तो ये ठीक हो जाएंगे. तुलादान व्यक्ति के वजन के बराबर अनाज वगैरह दान करने को कहते हैं और ये उसी का सामान लिखा रहे हैं.’’

फिर वे पंडितजी से बात करने में मशगूल हो गईं. पंडितजी चाचीजी की उदारता और पतिभक्ति की भूरिभूरि प्रशंसा कर रहे थे और मैं खड़ीखड़ी पंडित के ठगने के तरीके और अंधविश्वास में लिपटे इन लोगों को देख रही थी.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत बिगड़ गई है. घर में मेरे भाई का डाक्टर दोस्त आया हुआ था. उसे खाना खिला कर मैं ने चाचाजी को देखने का प्रोग्राम बनाया. जब उसे मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो वह बोला, ‘‘दीदी, मैं आप को चाचाजी के घर छोड़ता चला जाऊंगा. हम घर से निकले और चाचाजी के घर पहुंचे तो मैं ने क्षितिज से कहा, ‘‘जब तुम यहां तक आ गए हो तो एक बार चाचाजी को देख लो.’’

‘‘ठीक है दीदी, मैं देख लेता हूं,’’ क्षितिज ने कहा. हम अंदर गए तो पंडितजी मंत्र का जाप कर रहे थे. पास में एक गाय खड़ी थी. चाचाजी बेसुध से पास की चारपाई पर लेटे थे और उन के हाथ को पकड़ कर चाचीजी ने उस में फूल, पानी, अक्षत, रोली वगैरह रखे हुए थे.

पूछने पर उन की बहू ने बताया, ‘‘दीदी, गौदान हो रहा है. पंडितजी कह रहे थे कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवीदेवता रहते हैं. इस का दान करने से बाबूजी तुरंत ठीक हो जाएंगे.’’

ये बातें सुन कर मेरा माथा ठनका. मुझे लगा इन पंडितों का जाल इन्हीं अज्ञानी लोगों की वजह से दिन पर दिन समाज में फैलता जा रहा है. मैं अपनी सोचों में ही डूबउतरा रही थी कि पंडितजी की पूजा समाप्त हुई. उन्हें दक्षिणा का लिफाफा चाचीजी ने थमाया तो वह गाय और साथ का सामान ले कर चलने लगे. धूप, अगरबत्ती के धुएं से चाचाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही थी और खांसतेखांसते उन का बुरा हाल था.

पंडितजी चाचीजी से बोले, ‘‘देखिए माताजी, बाबूजी का रोग कैसे

बाहर निकलने के लिए लालायित है. अब ये कल तक ठीक हो जाएंगे.’’

चाचीजी बड़े आग्रह के साथ पंडितजी को खाना खिलाने ले गईं. उन्होंने चाचाजी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया.

जब पंडितजी चले गए तो मैं चाचाजी के पास गई. उन के सिर पर हाथ रखा, सीने को सहलाया तो उन्हें कुछ आराम मिला. उन्होंने आंखें खोल कर मुझे देखा. मैं ने तभी क्षितिज को उन से मिलाया, ‘‘चाचाजी, आप ठीक हो जाएंगे, ये डाक्टर क्षितिज हैं.’’

चाचाजी की दर्द और कातरता से भरी आंखें आशा के साथ क्षितिज को देखने लगीं. क्षितिज ने चाचाजी का चैकअप किया और कुछ दवाएं लिखीं. उस ने चाचाजी को ढाढ़स बंधाया और दवा लेने चला गया.

क्षितिज ने दवा की एक खुराक उसी समय दी और अपनी क्लीनिक चला गया. मैं शाम तक वहीं रही. रात को खाना खा कर जब मैं वहां से अपने पति के साथ वापस आ रही थी, तो चाचाजी दवा की 2 डोज ले चुके थे और कुछ स्वस्थ से लग रहे थे. इधर चाचीजी और उन की बहू इस बात से आश्वस्त थीं कि गौदान करने से बाबूजी ठीक हो रहे हैं.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत खराब है. मैं जल्दीजल्दी जब वहां पहुंची तो चाचाजी अंतिम सांसें ले रहे थे और वही पंडितजी मंत्र पढ़पढ़ कर न जाने कौन से दान और कर्मकांड करवा रहे थे. मालूम चला कि चाचीजी ने चाचाजी की दवा बंद करवा दी थी. सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया पर मैं क्या कर सकती थी?

मेरे देखतेदेखते चाचाजी ने अंतिम सांस ली. चाचाजी की मृत्यु को रोका जा सकता था, अगर उन की दवा बंद न की गई होती. पर चाचीजी तो पंडित के चक्कर में इतनी फंसीं कि उन्हें कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

फिर शुरू हुआ पंडित द्वारा भगवान की मरजी आदि बातों को बताना. थोड़ी देर बाद चाचाजी का लड़का सब को फोन कर रहा था तो चाचीजी चाचाजी के पास बैठी सुबकसुबक कर रो रही थीं. उन की बहू अगरबत्ती जलाने, बैठने का प्रबंध करने आदि में लगी थी. पंडितजी एक सज्जन के साथ सामान की लिस्ट बनवाने में व्यस्त थे. पंडितजी ने चाचाजी के जीतेजी जितनी लंबी लिस्ट बनवाई थी, यह लिस्ट उस से और लंबी हो गई थी और वे न करने या कम करने पर मरने वाले की आत्मा को कष्ट होगा, यह दुहाई देते जा रहे थे.शाम को जब चाचाजी का शरीर अंतिम यात्रा के लिए ले जाया गया तो घाट पर फिर वही सब पंडों के आदेश और उन पर चलता व्यक्ति. न खत्म होने वाली रस्में और उन में उलझते घर के लोग.

जब दाह संस्कार कर के लोग वापस आए तो सब थक कर भरे मन से अपनेअपने घर चले गए. पर पंडितजी एक कोने में बैठ कर अगले दिन की तैयारी व लिस्ट बनवाने में व्यस्त हो गए. उन का असली किरदार तो अब शुरू हुआ था. अब 10 दिन की कड़ी तपस्या, खानपान में परहेज, जमीन में सोना, अलग रहना, अपने प्रिय की जुदाई का दुख. फिर भी पंडितजी की लिस्ट में किसी तरह की कमी नहीं थी. बल्कि ऐसे भावुक समय को भुनाने की तो पंडों की पूरी कोशिश रहती है. ऐसे समय में कुटुंब और समाज के लोग भी पंडे की बातों का समर्थन कर के, ऊंचनीच सम?ा कर, दुख से पीडि़त व्यक्ति के घाव को हरा ही करते हैं.

एक तो व्यक्ति दुखी वैसे ही होता है. ऐसे में अगर यह कह दिया जाए कि अगर आप इतना सब नहीं करेंगे तो आप के पिता भूखे रहेंगे, दुखी रहेंगे, तो वह उधार कर के भी उस पंडे की हर बात मानने को मजबूर हो जाता है.

9 दिन इसी तरह लूटने के बाद 10वें दिन पंडित ने एक बड़ी लिस्ट थमाई जिस में दानपुण्य की सामग्री लिखी थी. जब चाचाजी के बेटे ने प्रश्नवाचक नजरों से पंडितजी को देखा तो पंडितजी सम?ाने लगे, ‘‘बेटा, इस समय जो दान जाएगा, वह तो शमशान के पंडित को ही जाएगा. यह सारी सामग्री इसलिए आवश्यक है, क्योंकि

9 दिन से तुम्हारे पिता प्रेतयोनि में ही हैं और प्रेम को कोई लगाव नहीं होता. अगर प्रेत असंतुष्ट रह गया तो वह तुम्हारा, तुम्हारे बच्चों या परिवार का अहित करने से नहीं चूकेगा. इसलिए 10वें के दिन वह सभी दान करना पड़ता है जो 13वीं के दिन किया जाता है. वरना प्रेत से छुटकारा पाना बहुत कठिन हो जाता है.

अपने भविष्य व अपने बच्चों के प्रति हम इतने सशंकित रहते हैं कि पंडों या पंडितों के चक्रव्यूह में बेबस हो कर फंस जाते हैं. इस पंडित ने जिस तरह से अपराधबोध और भय की सुरंग चारों तरफ फैला दी थी, उस से निकलने का कोई रास्ता चाचाजी के बेटे को नजर नहीं आ रहा था. इसलिए जैसाजैसा पंडित कहते जा रहे थे, वह बुरे मन से ही सही सब कर रहा था.

13वीं के लिए पंडितजी ने पुन: एक बार लंबी पूजा व दान की लिस्ट चाचाजी

के बेटे को पकड़ाई और सम?ाया, ‘‘जजमान, 13वीं को आप के पिता आप के द्वारा दिए गए दान व तर्पण से प्रसन्न हो कर प्रेतयोनि से मुक्त हो कर पितरों के साथ मिलेंगे. अत: आप इन को वस्त्र, आभूषण, बरतन और अन्य सामग्री से प्रसन्न कर के पितरों के साथ मिलने में इन की सहायता करें.’’

चाचाजी का बेटा यह सब करतेकरते थक गया था. उसे तो इन सब पर विश्वास ही नहीं था, पर मां और पत्नी के डर से कुछ कह नहीं पा रहा था. पर जब 10वां हो गया और पंडित की मांगें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही गईं तो वह बिफर गया और 13वीं के दिन का सामान देने के लिए राजी नहीं हुआ.

पंडित का कहना था कि अगर यह सब दान नहीं किया तो मृतात्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी. और भी कई भावुक बातें उस ने कहीं. चाचाजी के बेटे का सब्र का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘मैं अगर आप के कहे अनुसार चलता रहा तो यह सच है कि मैं इस जन्म में तो कर्ज से मुक्त नहीं हो पाऊंगा और जीतेजी मर जाऊंगा. अब बहुत हो गया. कृपया लूटने का नाटक बंद करें,’’ और उस की आंखों से आंसू बहने लगे. पता नहीं ये आंसू दुख के थे या पश्चात्ताप के.

उसी समय चाचीजी बेटे को दिलासा देने आईं और बोलीं, ‘‘बेटा, इतना सब अच्छे से किया है, तो अब आखिरी काम क्यों नहीं अच्छे से कर देता है? मेरे पास जो भी है, उन का दिया है. ले मेरे हाथ की चूडि़यों को. उन्हें बेच कर तू उन की गति संवार दें. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं,’’ और चाचीजी सुबकने लगीं.

उस ने चूडि़यां मां को वापस कीं. निर्लिप्त भाव से वह सब करने लगा, जो पंडित उस से कह रहा था पर चिंता की लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट दिख रही थीं, क्योंकि अभी 11 पंडितों का खाना, दक्षिणा और संबंधियों का भोज बाकी था. पर वह इन के भंवर में इतना फंस गया था कि कुछ कहना व्यर्थ था.

घर के किसी भी व्यक्ति के जाने के बाद पीछे रहा व्यक्ति दोहरी पीड़ा ?ोलता है. एक तो अपने प्रियजन के विछोह की तो दूसरी व्यर्थ के कर्मकांडों की. पर अंधविश्वास व पंडों द्वारा फैलाए डर तथा अनर्थ की आशंका के कारण व्यक्ति इन का अतिक्रमण नहीं कर पाता.

हम सब एकसाथ 2 तरह की दुनिया में रहते हैं. एक भौतिक साधनों से संपन्न आधुनिकता से भरी दुनिया, तो दूसरी पाखंड और पंडों के द्वारा बनाई गई भयभीत करने वाली दुनिया, जिस में सत्य का या वास्तविकता का कोई अंश नहीं होता. भगवान के नाम पर, मृतात्मा के नाम पर ये पंडे, जिस तरह से व्यक्ति को लूटते हैं उस के बारे में सब को पता है कि यह सब शायद सत्य नहीं है पर फिर भी कभी डर से, कभी मृतात्मा के प्रति उपजे प्यार और आदर से, हम सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं और इन पंडों की कुटिल चाल में फंस जाते हैं.

खैर पंडितजी ने अपना सामान बांधा, चाचाजी के बेटे को पता दिया और सामान घर पहुंचाने का आदेश दे कर चलते बने.

गर्ल्स होस्टल : पूर्णिमा के साथ क्या हुआ

अपने विधायक चाचा की दबंगई के चलते रोहित और उस के दोस्तों ने कालेज में कोहराम मचा रखा था. लड़कियों को छेड़ना उन का रोज का काम था. फिर कालेज में आई खूबसूरत पूर्णिमा. रोहित उसे पाने के लिए तिकड़म लड़ाने लगा. क्या पूर्णिमा रोहित के जाल में फंस पाई?

आ प के चाचा विधायक हैं, तो क्या आप कुछ भी कर देंगे? कानून को ही ताक पर रख देंगे? किसी लड़की की इज्जत धूल में मिला देंगे? हां, विधायक का भतीजा ऐसा भी कर सकता था, रोहित का तो कम से कम यही मानना था.

उस इलाके में नेताओं और विधायकों की गुंडागर्दी हद पर थी. कालेजों में रैगिंग और छात्राओं के साथ छेड़खानी बहुत ही आम घटनाएं होती थीं. सत्ता से जुड़े नेता लड़कियों की पढ़ाईलिखाई के खिलाफ हैं, क्योंकि उन के मन में तो संस्कृति और संस्कार भरे हैं, जिन की आड़ में कुछ भी किया जा सकता है.

झांसी यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिगरी हासिल करते हुए रोहित ने आधा दर्जन अमीर और बिगड़े हुए लड़कों का झंडाधारी गैंग बना रखा था. लड़कियों के पास से तेज रफ्तार बाइक निकाल कर उन्हें डरा देना, उन के सीने को गंदे तरीके से घूरना, उन पर फब्तियां कसना, उन के साथ फ्लर्ट करना और उन्हें गर्लफ्रैंड बनने के लिए मजबूर करना उस का रोज का काम था.

सीनियर क्लास में आने के बाद तो उन लोगों की बदमाशियां और ज्यादा बढ़ गई थीं. जूनियर लड़कियों को तो जैसे वे लोग अपना स्वादिष्ठ खाना ही सम?ाते थे. प्रोक्टर भी रोहित को सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ देते थे, क्योंकि रोहित के चाचा विधायक थे.

रोहित और उस की मित्र मंडली नए छात्रों की रैगिंग का प्लान बना रहे थे. पर उत्तराखंड की दलित तबके की एक लड़की पूर्णिमा ने एडमिशन के पहले ही दिन भूचाल सा ला दिया था.

लंबी, छरहरी, खूबसूरत यह पहाड़ी लड़की यूनिवर्सिटी में लड़कों के आकर्षण का केंद्र बन गई. उस समय तक रोहित की अनेक गर्लफ्रैंड थीं. रोहित का रईसों की तरह लाइफस्टाइल और चाचा के विधायक होने के चलते कोई भी लड़की उस के साथ डेट करने और रात बिताने को आसानी से तैयार हो जाती थी. पूर्णिमा ऐसे तबके से थी, जिस के साथ मनमाना जोरजुल्म सदियों से होता आया है.

झांसी यूनिवर्सिटी में जूनियर छात्रों के साथ होने वाली रैगिंग बहुत बदनाम थी. कालेज के खाली हाल में सारे जूनियर छात्रों को बुलाया जाता और उन की लाइन लगवाई जाती, फिर उन के कपड़े उतरवाए जाते. इसे ‘गुरुदीक्षा’ बोला जाता था. इस का मतलब होता है था आप की शर्म उतर जाना.

इस के अलावा फिजिकल रैगिंग भी की जाती थी, जो एक तरह का मैंटल टौर्चर होता था. बहुत सारी चीजें कराई जाती थीं. न करने पर मार भी पड़ती थी. और कहा जाता था कि यह सब आप को मजबूत बनाने के लिए किया जा रहा है.

अनुशासन सिखाने के नाम पर रोहित और उस का गैंग जूनियर छात्रों को इस कदर डरा कर रखते थे कि वे खुद अपनी गर्लफ्रैंड को रोहित और उस के दोस्तों के पास उन का मनोरंजन करने के लिए छोड़ आते थे.

हालांकि, लड़कियों की फिजिकल रैगिंग कम ही होती थी यानी कि मारपिटाई नहीं होती थी, पर उन से भी उलटीसीधी चीजें कराई जाती थीं. जैसे दीवार से लग कर खड़े कर देना और कहना ‘जाओ छिपकली बन जाओ’ या सिसकियों की आवाज निकालने के लिए कहा जाता था या फिर किसी गंदे फिल्मी गाने पर मटकने के लिए कहा जाता था.

रोहित का क्रश होने के चलते पूर्णिमा को इस गंदी रैगिंग से तो नहीं गुजरना पड़ा, पर अब बदले में वह उसे अपने साथ डेट पर चलने के लिए मजबूर कर रहा था.

पूर्णिमा उस जैसे लड़के को अपने सीने से चिपकाना तो दूर की बात है, अपनी जूती की नोक पर भी जगह देने को तैयार नहीं थी.

पूर्णिमा ने जब रोहित के तीसरे प्रपोजल को ठुकरा दिया, तो वह किसी सरकारी सांड़ की तरह भड़क गया. अगर लंबे समय तक सैक्स सुख न मिले, तो सांड़ के दिमाग पर गरमी चढ़ जाती है और वह चारों तरफ तोड़फोड़ शुरू कर देता है, उसी तरह रोहित ने भी अपने दोस्तों के सामने पूर्णिमा की जिंदगी बरबाद करने की कसम खाई.

बार में शराब पीते हुए रोहित ने अपने दोस्तों को चुनौती दी कि पूर्णिमा उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा, उसे बदनाम कर देगा.

रोहित के चाचा विधायक थे, तो उस के दोस्तों को भी यह सब बहुत ही आसान काम और शरारत ही लगा था.

एक दिन कालेज में क्लास खत्म होने के बाद अकेले में मौका पाते ही रोहित ने गर्ल्स टौयलैट में घुस कर पूर्णिमा को बंधक बना लिया. उस दिन रोहित अपने मकसद में कामयाब हो ही गया होता, अगर ऐनवक्त पर पूर्णिमा की सहेली ने न देख लिया होता. उस ने छात्रों और प्रोक्टर को बुला कर भीड़ जुटा दी.

रोहित ने पूर्णिमा को तब तक टौयलैट के गंदे पानी से नहला दिया था, उस की शर्ट के बटन तोड़ दिए थे और जबरदस्ती उस से जिस्मानी रिश्ता बनाने की कोशिश में उस के कपड़े फाड़ दिए थे, फर्श पर गिरा कर उसे गंदा कर दिया था. उस से कहा था कि वह तो इसी गंद में रहने लायक है.

इतनी घिनौनी हरकत के बावजूद रोहित के विधायक चाचा के डर से उस के खिलाफ जरा भी ऐक्शन नहीं हुआ, उलटा कालेज प्रशासन ने पूर्णिमा पर ही समझाते का दबाव बनाया, तो वह भी रोहित से डरने लगी.

बेइज्जती होने के बावजूद पूर्णिमा को अपनी पढ़ाई और परिवार की इज्जत की चिंता थी. पढ़ाई और फीस बरबाद होने के डर से उस ने यह सब सह लिया.

3-4 दिन बाद फिर से रोहित और उस के दोस्तों ने सरेआम पूर्णिमा के साथ छेड़खानी शुरू कर दी. घूरना, मजाक करना, भद्दे कमैंट करने तक तो ठीक था, पर अब तो रोहित की हिमाकत और ज्यादा बढ़ गई थी.

रोहित अकसर ही पूर्णिमा को अकेले में रोक कर उसे जबरदस्ती गले लगाने या चूमने के लिए मजबूर करने लगा. पूर्णिमा ने उस का भी विरोध नहीं किया, पर जब वह जबरदस्ती उस के कपड़ों

के अंदर हाथ डाल कर उस के नाजुक अंगों को सहलाने की कोशिश करने लगा, तब उस के लिए यह हद से बाहर हो गया.

रोहित को पूर्णिमा की बदनामी से कोई मतलब नहीं था. उस ने धमकी दी कि अगर वह एक रात उस के साथ होटल के कमरे में रुक कर जिस्मानी रिश्ता बनाने को तैयार होती है तो ठीक है वरना एक दिन वह सभी छात्रों के सामने उस का रेप कर देगा.

पूर्णिमा ने रोते हुए रोहित के पैर पकड़ कर उस से रहम की भीख मांगी. उस ने बताया कि उसे होस्टल से गायब रहने की इजाजत नहीं मिलेगी. वार्डन मैडम उस के मांबाप को बता देंगी, उसे होस्टल के बाहर कदम भी नहीं रखने देंगी. लेकिन रोहित ने जरा भी रहम नहीं दिखाया.

तमाम बहस के बाद योजना बनी कि पूर्णिमा रोहित को अपने होस्टल में लड़की के वेश में ऐंट्री कराएगी और फिर वह पूरी रात पूर्णिमा के साथ उस के कमरे में ऐश करेगा.

अगले दिन पूर्णिमा ने रोहित से कहा कि अगर वह रात को अकेला लड़कियों के होस्टल में घुस सके, तो वह उसे छिपा कर अपने कमरे में ले जाएगी और रोहित को भरपूर मजा देगी. होस्टल में कैसे घुसेगा, यह रोहित का काम है, लेकिन किसी को पता चल गया, तो उस की खैर नहीं.

यह योजना तो रोहित के लिए हिमालय चढ़ने के समान थी. आज तक किसी लड़के ने गर्ल्स होस्टल की किसी लड़की से दोस्ती तक नहीं की और वह उसी होस्टल में घुस कर पूर्णिमा के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने वाला है.

बिस्तर पर पूर्णिमा का कचूमर बनाने के लिए रोहित ने एक विदेशी कंपनी का महंगा कंडोम पैकेट खरीदा था.

रात 10 बजे गर्ल्स होस्टल की दीवार फांदने के लिए रोहित ने एक सीढ़ी का इंतजाम किया और 10 बजे वह कूद गया. कैंटीन के पीछे के रास्ते पर पूर्णिमा उस का इंतजार करते हुए मिली.

होस्टल की झाड़ियों में से झगुरों की आवाज और होस्टल के दूसरी मंजिल के किसी कमरे से बाहर आती गाने की आवाज ‘बांहों में चले आओ, हम से सनम कैसा परदा…’ माहौल को और भी रोमांटिक बना रहा था.

छोटे और टाइट नाइट सूट में पूर्णिमा पूरी की पूरी खरबूजे की दुकान लग रही थी. रोहित को उस के सारे शरीर पर गोलमटोल, भरेपूरे, उभरे हुए, बड़ेबड़े, नरमनरम उभारों के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.

रोहित लड़की की सलवारसूट में था, चुनरी से घूंघट डाले हुए था और पूर्णिमा का हाथ पकड़े हुए वह उस के पीछेपीछे चल रहा था.

रात का समय था. होस्टल में सारी लड़कियों ने बहुत ही कम, छोटेछोटे, नाममात्र के नाइटवियर और कैजुअल कपड़े पहने हुए थे. सभी एक से बढ़ कर एक खूबसूरत लग रही थीं.

रोहित एक लड़की को घूरना शुरू करता कि सामने से एक और लड़की टपक पड़ती, उसे घूरता उस के पहले ही तीसरी और चौथी लड़कियां उसे छूते हुए बगल से निकल जातीं.

रोहित का दिल बागबाग हो रहा था. खुली तिजोरी की तरह यहां हर तरफ हुस्न और जिस्म का मेला लगा हुआ था.

पूर्णिमा के रूम में पहुंच कर रोहित ने अभी कुछ ही कपड़े उतारे थे कि 4 अनजान लड़कियां ‘पहले हम करेंगे’ बोलते हुए जबरदस्ती उन के कमरे में घुस आईं.

रोहित को लगा कि वे सभी लोअर मिडिल क्लास लड़कियां उस जैसे शहजादे के साथ मजे करना चाहती हैं और वह खुशी के मारे झम उठा.

पर वहां तो कुछ और ही होने लगा. एक बहुत मोटी और सीनियर लड़की ने अधनंगे रोहित को बिस्तर पर रस्सी से बांध दिया और उस के बाकी कपड़ों को कैंची से काट कर पूरी तरह उसे नंगा कर दिया.

दूसरी बौडीबिल्डर जैसी लड़की ने रोहित के शरीर को जोश में लाना शुरू कर दिया, तो तीसरी फिल्म हीरोइन जैसी लंबी और छरहरी लड़की ने अपनी पैंटी उस के मुंह में घुसा दी और ऊपर से टेप चिपका दी.

चौथी, साइंटिस्ट की तरह पढ़ाकू दिखने वाली, चश्मा पहने एक लड़की ने रोहित के मर्दाना अंगों को तार और क्लिप से एक बैटरी जैसे उपकरण से जोड़ दिया.

इन सभी लड़कियों ने तितली जैसे नकाब पहने हुए थे और स्ट्रिपिंग करते हुए रोहित को बहलाने लगीं, जबकि बड़ी उम्र की दिखने वाली एक लड़की रोहित का वीडियो बनाने लगी.

रोहित अभी तक अपनेआप को हैंडसम हंक समझ कर रोमांचित हो रहा था, लेकिन जैसे ही इन लड़कियों ने उस के जिस्म को अपने नाखून और दांतों से घायल करना शुरू किया, तो वह समझ गया कि उसे प्यार नहीं, बल्कि बेइज्जत किया जा रहा है.

कुछ ही देर में रोहित के पूरे शरीर पर इन लड़कियों की लिपस्टिक और उन के ‘लव बाइट’ के निशान बन गए थे.

साइंटिस्ट जैसी लड़की रोहित के चेहरे पर सिगरेट का धुआं फेंकते हुए अपने विद्युत उपकरण से हलका करंट लगा रही थी. रस्सी से हाथ छुड़ाने की कोशिश में रोहित का हाथ कटने लगा था, जबकि लड़कियों ने उस के मुंह पर थूक कर और भद्दीभद्दी गालियां दे कर उसे जलील करना शुरू कर दिया था.

लेकिन अभी तो और भी ड्रामा बाकी था. मोटी लड़की ने रोहित को पोर्न फिल्मों की पोजीशन में घोड़े की तरह खड़ा कर दिया और फिर उस के पिछवाड़े को हौकी स्टिक से पीटने लगी. फिल्म हीरोइन की तरह दिखने वाली लड़की अपनी सैंडल की पैंसिल साइज एड़ी से रोहित की जांघों और पैरों को कुचलने लगी.

रोहित बहेलिया के जाल में फंसे हुए कबूतर की तरह मदद के लिए फड़फड़ाने लगा. एक लड़की रोहित की गोद में बैठ कर उस्तरे से उस के हर जगह के बाल घोंटने लगी. भौंह के बाल काट कर उस ने उसे ‘भूत’ बना दिया.

आखिर में पूर्णिमा ने रोहित के मर्दाना अंग और घाव पर पैट्रोल छिड़क दिया, जिस से अब वह दर्द के चलते बगैर पानी की मछली की तरह तड़पने लगा और कुछ देर के बाद वह बेहोश हो गया.

3-4 घंटे बाद जब रोहित को होश आया, तो उस के हाथपैर खुले हुए थे और वह पूरी तरह नंगा और घायल हालत में जमीन पर पड़ा हुआ था. वे लड़कियां सिगरेट और बीयर पीते हुए आगे की योजना बना रही थीं.

पूर्णिमा ने कहा, ‘‘इसे वार्डन के हवाले करे देते हैं. वही समझोंगी कि क्या करना है.’’

दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘इसे पुलिस के हवाले करते हैं और कहेंगे कि यह जबरदस्ती होस्टल में घुस आया था.’’

फिल्म हीरोइन जैसी लड़की ने कहा, ‘‘लड़कियों के बीच इस की नंगी परेड कराते हैं.’’

चौथी लड़की ने कहा, ‘‘इसे फंदे पर लटका कर मौत के घाट उतार देते हैं.’’

साइंटिस्ट जैसी दिखने वाली लड़की बोली, ‘‘इस का एंटेना काट कर इस की परमानैंट नसबंदी किए देते हैं.’’

इन लड़कियों के खतरनाक इरादों को भांप कर बेहोशी का नाटक कर रहे रोहित के रोंगटे खड़े हो गए. वह पूरी ताकत लगा कर वहां से भाग निकला. कमरे के आगे का कौरिडोर, सीढ़ी, बरामदा, डाइनिंग हाल, हर जगह सुनसान हो चुकी थी, सुबह के 3 बज चुके थे.

दीवार फांदने के लिए रोहित ऊपर चढ़ गया, पर दूसरी तरफ 6 फुट का गड्ढा और कांटे थे. मरता क्या नहीं करता… दीवार फांदने से उस के पैर में मोच आ गई. लेकिन अगर रोहित वहां रुकता तो रोशनी होने पर बैगर कपड़ों के घर कैसे पहुंचता. गर्ल्स होस्टल से रोहित के विधायक चाचा का घर महज 2 किलोमीटर था, लेकिन उस की बुरी हालत की वजह से चलना तक मुश्किल हो रहा था.

अगली गली में कुत्तों ने रोहित को जानवर समझ कर दौड़ा दिया. किसी तरह उन से बचा तो उस के आगे चौकीदार ने उसे चोर समझ कर सीटी बजानी शुरू कर दी. जब तक भीड़ जुट कर उसे पकड़ती या पुलिस आती, तब तक वह सीधे भागते हुए चाचा के बंगले में जा छिपा.

4 दिन इलाज कराने के बाद जब रोहित अपनी इस बेइज्जती का बदला लेने की योजना बना रहा था, तभी उस के मोबाइल फोन पर एक वीडियो आया, जिस में कुछ नकाबपोश लड़कियां उस का रेप करते दिख रही थीं.

आगे की फुटेज में रोहित वहां से नंगे बदन भागता दिख रहा था. वह अपने होश संभालता, उस के पहले ही पूर्णिमा का फोन आ गया. उन वीडियो को वायरल होने से रोकने का एक ही उपाय था, वह यूनिवर्सिटी से नाम कटा ले और फिर कभी उस के या किसी और लड़की के रास्ते में आने की कोशिश न करे.

अपने चाचा की विधायकी बचाने के लिए रोहित को झक मार कर समझता करना पड़ा.

इस कांड ने बुंदेलखंड के मनचले लड़कों में इतनी दहशत भर दी थी कि फिर कभी यूनिवर्सिटी में लड़कियों से छेड़छाड़, उन की रैगिंग या उन्हें रेप की धमकी नहीं मिली. धीरेधीरे लड़कों के साथ भी रैगिंग की घटनाएं भी खत्म हो गईं.

लाफिंग बुद्धा : प्यार के जाल में फंसी सुधा

मेरा नाम सुधा है. मेरी उम्र 20 साल हो गई थी और आईना ही मेरा सब से अच्छा दोस्त था. मैं अपने चेहरे को दिनभर आईने में देखती रहती थी. कभी इस कोण से, तो कभी उस कोण से.

कहना गलत नहीं होगा कि मेरे रूप ने मुझे अहंकारी बना दिया था और मैं अपने अहंकार को जीभर कर जीती भी थी, क्योंकि मेरे लिए किसी भी इनसान की जिस्मानी खूबसूरती सब से ज्यादा प्यारी होती है.

अरे, यह चेहरा ही तो है, जिस को देख कर हम किसी के बारे में सही या गलत, अच्छी या बुरी सोच बनाते हैं. अब जो चेहरा हमारी आंखों को अच्छा न लगे, वह इनसान अंदर से भी कैसे अच्छा हो सकता है? मेरे मन में किसी के लुक्स के प्रति यही सोच रहती थी.

मेरे कसबे का नाम यमुनानगर था और यह उत्तराखंड का एक टूरिस्ट प्लेस था. लोग यहां सालभर घूमने आते थे. यमुनानगर में ढेर सारे पहाड़, नदियां और खूब सारी हरियाली थी.

मैं बीए के तीसरे साल में थी. मेरे घर में एक छोटा भाई और मम्मीपापा थे. हमारे घर की आमदनी का जरीया पापा की वह दुकान थी, जिस में जरूरत का सामान, एंटीक मूर्तियां और पुरानी पेंटिंगें बिका करती थीं.

पापा को जब भी नहानाधोना या किसी काम के सिलसिले में बाहर जाना होता था, तो मैं ही दुकान संभालती थी. लिहाजा, मुझे दुकान पर रखी सारी चीजों की कीमत की अच्छी जानकारी हो गई थी.

उस दिन पापा को बाहर जाना था. दुकान पर मैं ही बैठी थी. तमाम सैलानी आतेजाते और खरीदारी कर रहे थे. इतने में एक सजीला नौजवान मेरी दुकान पर आ कर खड़ा हो गया और दुकान में सजे सामान को बड़े ध्यान से देखने लगा.

वह पतले चेहरे वाला नौजवान क्लीन शेव था. उस ने अपने गोरे चेहरे पर हलके लैंस का चश्मा लगा रखा था और अपने बालों को बेतरतीब ढंग से बढ़ा रखा था, जो उस के कंधे तक लहरा रहे थे.

‘‘जी बताइए, क्या चाहिए आप को?’’ मैं ने एक कुशल दुकानदार की तरह पूछा.

‘‘मुझे लाफिंग बुद्धा की एक ऐसी मूर्ति चाहिए, जिस में उन की गर्लफ्रैंड भी हो,’’ उस नौजवान ने मांग की, पर ऐसी मूरत तो आज तक मैं ने देखी ही नहीं थी, जिस में लाफिंग बुद्धा के साथ उन की गर्लफ्रैंड भी हो.

‘‘जी, और आप को ऐसी मूर्ति मिलेगी भी नहीं. यही तो प्रौब्लम है इस देश की कि मन में कुछ और होता है और सामने कुछ और,’’ उस नौजवान ने कहा, तो मैं हैरान हो कर उस के खूबसूरत से चेहरे की ओर देखने लगी.

शायद वह नौजवान प्यार के बारे में एक लंबी स्पीच देना चाह रहा था, पर उस ने क्या कहा था, मैं ठीक से सम?ा नहीं पाई, क्योंकि शायद मेरे कान बंद हो गए थे. मेरी आंखें तो उस के सजीले चेहरे में ही खो गई थीं.

इस के बाद उस नौजवान ने जबरदस्ती प्यार पर पूरा एक भाषण ही सुना डाला. मैं कुछकुछ समझ और बहुतकुछ नहीं समझ.

‘‘अब बताइए, मैं ही आप से अपनी गर्लफ्रैंड बनने को कह दूं, तो क्या आप बन जाएंगी?’’ उस नौजवान का यह सवाल सुन कर मैं अचकचा गई थी. शर्म का रंग मेरे गालों से होता हुआ मेरे कानों तक पहुंच गया था. मैं कुछ बोल नहीं सकी, सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

‘‘जब लाफिंग बुद्धा की ऐसी कोई मूरत आ जाए, तो आप मुझे इस मोबाइल नंबर पर फोन कर देना. अभी तो मुझे यहां काफी दिनों तक रुकना है,’’ उस नौजवान ने मुझे अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा.

मैं ने उस विजिटिंग कार्ड को गौर से देखा तो पाया कि उस नौजवान का नाम आर्यमन था. कितना प्यारा था उस का नाम भी, ठीक उसी की तरह. वह एक इंजीनियर था, जो हमारे कसबे से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर बहने वाली मीठी नदी पर पुल बनाने के काम के लिए आया था.

अभी मैं आर्यमन का विजिटिंग कार्ड देख ही रही थी कि गोपाल आ गया और मु?ा से उस नौजवान के बारे में पूछताछ करने लगा, ‘‘यह शहरी छोरा कौन था और तू उस से बड़ा हंसहंस कर बात किए जा रही थी,’’ गोपाल के सवाल पर मैं चिड़चिड़ा उठी.

‘‘अरे, तू तो यही चाहता है कि मेरी दुकानदारी चौपट हो जाए और तेरी दुकान चमक जाए,’’ मैं ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा.

गोपाल मु?ा से 2 साल बड़ा था और मैं उस से बेवजह ही चिढ़ती थी, क्योंकि वह देखने में बिलकुल भी अच्छा नहीं था. मोटा सा शरीर और गोल भरा हुआ सा चेहरा, उस पर सूजी हुई सी नाक. इतनी सी उम्र में ही काफी बड़ा दिखता था वह.

मेरी दुकान के सामने वाली लाइन में ही गोपाल की भी दुकान थी, जिस में वह पुराना विदेशी सामान, छतरियां, हैट्स, रेनकोट और कुछ विदेशी एंटीक मूर्तियां व दूसरा सामान बेचा करता था.

ठीक अगले ही दिन वह सजीला नौजवान आर्यमन फिर से दुकान पर आया. दुकान पर मैं ही बैठी थी. आते ही उस ने वही सवाल किया, ‘‘क्या लाफिंग बुद्धा की वह मूरत आ गई?’’

हालांकि, आर्यमन अभी कल ही तो यह सवाल पूछ कर गया था और आज फिर आ गया.

‘‘अच्छा, कोई बात नहीं. अभी नहीं आई तो जब आ जाए, तो मेरे विजिटिंग कार्ड पर दिए गए मोबाइल नंबर पर आप मुझे बता देना. आप लोग तो दुकान में बस यही हिरण और शेर की मूर्ति ही सजा कर रखते हैं,’’ कह कर वह जाने लगा.

मुझे आर्यमन की यह बात बुरी लगी थी, क्योंकि अपनी दुकान पर बिकने वाली हर चीज और स्पैशली लाफिंग बुद्धा के प्रति मेरा बहुत ज्यादा लगाव रहा है, पर मैं उस की बात का विरोध न कर सकी और वह चला गया.

मैं जवान थी. इस तरह एक सजीले नौजवान के बारबार आने और मुझे से बात करने से मेरा मन भी खुश हो गया था. उस की बातें मुझे बारबार याद आ रही थीं और मैं अब यह भी समझ गई थी कि वह अपने मोबाइल नंबर पर मुझ से फोन करने को क्यों कह रहा है.

अगले 6-7 दिन तक आर्यमन नहीं आया, तो मुझे उस की कमी खटकने सी लगी. मैं ने कांपते हाथों से उस का फोन नंबर मिला दिया. उधर से वह ऐसे बातें करने लगा, जैसे मुझे न जाने कितने समय से जानता हो. अनजान वाली फीलिंग ही नहीं आ रही थी.

फिर क्या था, हम रोज बातें करते और कुछ ही दिनों में हमारे बीच एक दोस्ती या यों कहें कि एक अनजाना सा रिश्ता कायम हो गया था. हमारी बातें मुलाकातों में बदलने लगी थीं. मैं उस की बाइक पर बैठती और हवा के झांके से उस के लंबे बाल उड़ते, तो मुझे बहुत अच्छा लगता था.

आर्यमन मुझे बाइक पर बिठा कर नदी पर ले जाता, जहां बनने वाले पुल का काम दिखाता और वापस छोड़ जाता. घर वालों का भरोसा मुझ पर बना रहे, इसलिए उस ने मेरे पापा से भी मुलाकात कर ली और बातोंबातों में उन्हें भी बता दिया कि वह मुंबई का रहने वाला है और नदी पर बन रहे पुल के काम में इंजीनियर है.

आर्यमन को नदियां, पेड़, पहाड़, जंगल घूमनाफिरना अच्छा लगता है. इस के अलावा उसे बड़े कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंगें और पुरानी मूर्तियां जमा करना बहुत पसंद है.

हमारी जानपहचान पहले से ज्यादा गहरी हो गई थी और मैं पूरी तरह से उस के प्यार में पड़ गई थी. और पड़ती भी कैसे नहीं. उस ने मु?ो शादी करने का प्रस्ताव जो दे दिया था और जल्दी ही पापा से इस बारे में बात करने आने को भी कह रहा था.

मैं मारे खुशी के उस के गले लग गई थी. पता नहीं, कितनी देर तक हम ने एकदूसरे की धड़कनों को सुना था.

एक तो इतना खूबसूरत दिखने वाले नौजवान के साथ शादी करने का रोमांच और ऊपर से शादी के बाद मुंबई जैसी मायानगरी में जाने के विचार से ही मैं सिहर उठती थी.

यह सिहरन और भी गहरी उस दिन हो गई, जब मैं उस के साथ पुल की तरफ जा रही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गई और हम दोनों भीग गए.

हम ने भी भीगने से खुद को नहीं रोका. हालांकि, यह एक सुनसान जगह थी, पर हम खूब भीगे और भीगने के बाद जब एक खंडहरनुमा घर में छिपने के लिए गए, तो आर्यमन ने मेरे मन के साथसाथ मेरे तन को भी छुआ. शायद मैं उस अजनबी में भावी पति को देख रही थी या मैं उस के रंगरूप पर मोहित थी, तभी तो मैं ने उसे ऐसा करने से नहीं रोका.

आर्यमन मेरे शरीर में उतर चुका था. हमारे शरीर एक हो चुके थे.

उस दिन दो शरीर एक हुए, तो फिर कई बार यह सिलसिला चला. मैं मना भी करती रही, पर आर्यमन नहीं मानता था.

उस दिन गोपाल ने फिर चेताया, ‘‘तुम्हें पता भी है कि उस लंबे बालों वाले के साथ लोग तुम्हारा नाम जोड़ रहे हैं… अरे, बदनाम हो रही हो तुम.’’

पर, मैं ने गोपाल की बात मुसकरा कर जाने दी. अब वह भला क्या जाने कि मैं उस लंबे बालों वाले के साथ शादी कर के मुंबई जाने वाली हूं.

उस बारिश वाली घटना को 4 महीने हो गए थे. इधर कई दिनों से आर्यमन दुकान पर नहीं आ रहा था और यह बात मुझे न चाहते हुए भी शक में डाल रही थी और अब मुझे अपनी शादी की जल्दी थी, क्योंकि मैं पेट से हो चुकी थी और यह बात बताने के लिए मैं आर्यमन को फोन कर रही थी, पर उस का मोबाइल लगातार स्विच औफ आ रहा था.

मैं ने पेट से होने की बात अपनी मां को बताई. मुझे लगा कि वे मुझे एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद करेंगी, पर ऐसा नही हुआ. उन्होंने तो मुझे अपने सीने से लगा लिया.

‘‘अरे, तू यह क्या कर बैठी मेरी बच्ची…’’ मां रोए जा रही थीं, पर मेरे मन के किसी कोने में अब भी उम्मीद थी कि आर्यमन वापस जरूर आएगा.

मां ने पापा को अकेले में यह सब बताया और पुल के पास जा कर आर्यमन के बारे में पता करने को कहा. पापा का शरीर ढीला पड़ रहा था. मारे गुस्से के उन की जबान ऐंठ रही थी, फिर भी वे अपने पर कंट्रोल किए हुए थे. मां ने उन्हें अपने सिर का वास्ता जो दिया हुआ था.

पापा गए और उलटे पैर वापस लौट आए. आर्यमन नाम का कोई इंजीनियर नहीं था वहां पर, मोबाइल की तसवीर दिखाई तो पता चला कि उस का नाम वीर बहादुर सिंह था और वह यहां पर एक प्राइवेट कंपनी की तरफ से सीमेंट और मौरंग वगैरह की डिलीवरी देने आया था. उस के बारे में और कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी. मोबाइल अब भी बंद आ रहा था.

मेरा मन कर रहा था कि खुदकुशी कर लूं, पर मां जानती थीं कि इस समय एक लड़की का मन बहुत कमजोर हो जाता है, इसलिए वे मुझे दिलासा दिए जा रही थीं.

‘‘तू ने कुछ भी गलत नहीं किया, गलती तो उस आदमी की है, जिस ने तेरे भरोसे को धोखा दिया है, इसलिए तुझे कोई भी गलत कदम उठाने की जरूरत नहीं.’’

पर गलत कदम न उठाऊं तो क्या करूं? अनब्याही लड़की कैसे मां बन गई? इस सवाल का जवाब क्या होगा भला? मेरी वजह से मां और पापा तो बेइज्जत हो जाएंगे.

मां के आंसू सूख चुके थे. पापा निढाल पड़े थे कि तभी गोपाल हमारे घर के अंदर बेहिचक घुस आया और पापा के पास जा कर उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘अंकल, मैं सुधा से शादी करना चाहता हूं.’’

पापा और मां एकसाथ उसे देखते रह गए. मेरे कानों में भी गोपाल की यह आवाज गूंजी.

‘‘पर गोपाल, हम तुम्हें कुछ बताना चाहते हैं,’’ पापा ने कहा, पर गोपाल को उस की जरूरत नहीं थी, क्योंकि ऐसे कसबों में तो इस तरह की बातें जंगल की आग की तरह फैलती हैं. सब को पता चल ही चुका था कि मेरे साथ छल हुआ है. हकीकत जानने के बाद भी गोपाल मेरे साथ शादी करने को तैयार था.

वह गोपाल, जिस से मैं चिढ़ती थी और जो मुझे अपने मोटापे के चलते उम्र से बड़ा लगता था, पर जो बाहर से बदसूरत है, वह अंदर से खूबसूरत कैसे होगा? पर आज वही मुझे इस मुसीबत से उबारने आया है.

आननफानन ही गोपाल के साथ मेरी शादी हो गई. कितनी गलत थी मैं. बाहरी रंगरूप को देख कर ही किसी के मन को पहचान लेना आज के समय में मुमकिन नहीं है. चेहरे पर चेहरे हैं और वे भी सब रंग बदलते चेहरे.

गोपाल ने आज तक मुझे किसी तरह का कोई उलाहना नहीं दिया, बस अपना प्यार ही बरसाया है. शादी के बाद हम दिल्ली में आ कर सैटल हो गए हैं.

अब मुझे लाफिंग बुद्धा और उन के साथ एक गर्लफ्रैंड वाली मूरत ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मेरे लिए तो मेरे पति का प्यार ही काफी है. आज इन की पत्नी भी मैं हूं, इन की गर्लफ्रैंड भी मैं ही हूं और ये मेरे लाफिंग बुद्धा.

बदचलन औरत का जवाब : उजमा ने क्यों उजाड़ी अपनी ही गृहस्थी

उजमा के दोनों बेटे रो रहे थे. बड़ा बेटा रोते हुए कह रहा था, ‘‘पुलिस अंकल, अम्मी से बोलो कि हम उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं करेंगे. वे हमें छोड़ कर न जाएं. हम घर का सारा काम करेंगे. उन्हें बिलकुल भी काम नहीं करने देंगे. बस, वे हमारे साथ रहें. वे जो भी कहेंगी, हम वही करेंगे. अंकल प्लीज, हमारी अम्मी को समझाओ…’’

बच्चों को रोताबिलखता देख कर वहां बैठे सभी पुलिस वालों की आंखों में आंसू आ गए. साथ ही, बच्चों के अब्बा राशिद की आंखें भी नम हो गईं.

पर उजमा ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘मैं साहिल से प्यार करती हूं और मुझे इस के साथ जाने से कोई नहीं रोक सकता. मैं अपनी मरजी से साहिल के साथ जा रही हूं, न कि साहिल मुझे जबरदस्ती ले कर जा रहा है.’’

‘‘अम्मी, रुक जाओ. हमें छोड़ कर मत जाओ. तुम हमारी अच्छी अम्मी हो,’’ उजमा के छोटे बेटे ने कहा.

उजमा बोली, ‘‘मेरी कोई औलाद नहीं है. तुम रहो अपने इस नकारा बाप के साथ. मैं इस के साथ रह कर अपनी जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती. मेरी भी कुछ ख्वाहिशें हैं… मैं भी अच्छे से जीना चाहती हूं…’’

तभी वहां बैठे एक पत्रकार ने बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, रोओ मत. तुम्हारी अम्मी अब तुम्हारे लिए मर चुकी है. उसे भूल जाओ और अपने अब्बा के साथ घर जाओ.

‘‘खुश रहो और उस औरत को भूल जाओ, जो रिश्ते में तुम्हारी मां है. समझना कि तुम्हारी अम्मी अब इस दुनिया में नहीं है.’’

उजमा ने जब उस पत्रकार के मुंह से यह सब सुना, तो वह बुरा सा मुंह बनाते हुए साहिल से बोली, ‘‘चलो, यहां से… मेरे लिए भी मेरे दोनों बच्चे और उन का बाप मर चुका है.’’

यह घटना उत्तर प्रदेश के एक गांव की है, जहां राशिद अपनी बीवी उजमा के साथ खुशीखुशी रहता था.

राशिद एक दिहाड़ी मजदूर था, पर था बड़ा मेहनती. अपनी मेहनत से पूरे घर का खर्चा वह आसानी से उठा लेता था.

राशिद का काम इन दिनों पास के ही एक गांव में चल रहा था. वहां एक अस्पताल बन रहा था, जिस में राशिद दिहाड़ी मजदूर बन कर काम कर रहा था.

राशिद की मेहनत देख कर वहां का ठेकेदार उस से बहुत खुश था और साहिल नाम का वह ठेकेदार राशिद को काफी इज्जत भी देता था, उस का हालचाल पूछता था, वक्तबेवक्त उसे एडवांस में पैसे भी दे देता, क्योंकि राशिद अपना काम दूसरे लोगों की तुलना में मेहनत, ईमानदारी और सफाई के साथ करता था. यही वजह थी कि वहां के ठेकेदार को राशिद पर बहुत भरोसा था और वह उसे अपना दोस्त समझ कर काम की जिम्मेदारी सौंप देता था.

राशिद ने एक दिन अपने ठेकेदार से 5,000 रुपए बतौर एडवांस ले लिए थे.

लेकिन उस के अगले दिन राशिद काम पर नहीं आया, तो ठेकेदार साहिल को अजीब लगा. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या हुआ? राशिद की तबीयत खराब है या पैसा पा कर उस की नीयत बदल गई.

इसी उधेड़बुन में एक दिन साहिल ठेकेदार राशिद के घर जा पहुंचा. उस ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया, अंदर से एक निहायत ही खूबसूरत हसीना फटेपुराने कपड़े पहने उस के सामने आ कर बोली, ‘‘जी कहिए, आप कौन हैं?’’

साहिल की नजर जैसे ही उस हसीना पर पड़ी, उस के होश उड़ गए. उस हसीना का गदराया बदन और उठी हुई छातियां देख कर वह हक्काबक्का रह गया.

उजमा ने फिर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?  किस से मिलना है आप को?’’

ठेकेदार साहिल इस बार भी उजमा के अल्फाज न सुन सका. वह तो बस एकटक उजमा की खूबसूरती को निहार रहा था.

तभी उजमा ने अपनी गरदन को एक झटका देते हुए कहा, ‘‘आप कुछ बोलेंगे भी या यों ही मुझे निहारते रहेंगे,’’ कहते हुए उस ने अपने बालों को हवा में यों लहरा दिया कि साहिल के मुंह से खुद ब खुद निकल पड़ा, ‘‘आप वाकई बहुत ज्यादा खूबसूरत हो.’’

उजमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरी तारीफ करना बंद करो और यह बताओ कि आप को किस से मिलना है और यहां क्यों आए हो?’’

साहिल हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं राशिद से मिलने आया हूं. दरअसल, राशिद मेरे पास काम करता है और

मैं उस का ठेकेदार हूं. वह काम पर नहीं आया, तो उस का हालचाल लेने आ गया.’’

यह सुनते ही उजमा सन्न रह गई और बोली, ‘‘आइए बाबूजी, अंदर आइए. राशिद अंदर हैं.’’

साहिल उजमा के पीछेपीछे घर के अंदर पहुंच गया. उजमा उसे राशिद के पास ले गई.

राशिद ने जैसे ही ठेकेदार साहिल को अपने घर में देखा, तो वह शर्मिंदा होते हुए बोला, ‘‘मुझे माफ कर देना बाबूजी. दरअसल, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए मैं काम पर न आ सका.’’

साहिल बोला, ‘‘कोई बात नहीं. मैं तो यह पता करने आया था कि आखिर क्या बात हुई, जो तुम आज काम पर नहीं आए?’’

राशिद बोला, ‘‘बाबूजी, आप तो देख रहे हो कि मुझे कई दिनों से बुखार था. अब जा कर कुछ सुकून मिला है. आप मुझे माफ कर देना. मैं ने आप से एडवांस पैसा भी लिया और काम पर भी नहीं आ सका.’’

साहिल ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. जब तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाए, तब आ जाना. फिलहाल, तुम आराम करो.’’

तभी उजमा चाय ले कर आ गई और एक कप साहिल की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘लो बाबूजी, हम गरीब के घर की चाय पी लो.’’

साहिल ने कहा, ‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी…’’ और उस ने उजमा के हाथों से चाय लेते समय उस के हाथों को छू लिया.

साहिल की इस हरकत से उजमा ने एक कातिल मुसकान से उस की तरफ देखा और मुसकरा दी.

साहिल भी मुसकराते हुए चाय की चुसकी लेते हुए बोला, ‘‘वाह, क्या चाय बनाई है.’’

उजमा ने कहा, ‘‘सच बाबूजी, हमारी चाय क्या आप को पसंद आई?’’

तभी राशिद बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘क्यों हम गरीब लोगों का मजाक उड़ा रहे हैं बाबूजी.’’

साहिल बोला, ‘‘नहीं राशिद, वाकई, आप की बीवी ने चाय बहुत अच्छी बनाई है.’’

चाय पीने के बाद साहिल उठा और राशिद को खर्चे के लिए 2,000 रुपए देते हुए बोला, ‘‘लो राशिद, ये कुछ पैसे रख लो और जब तक तबीयत सही न हो, काम पर आने की जरूरत नहीं है.

‘‘मैं रोजाना शाम को तुम से मिलने आता रहूंगा और किसी भी चीज की जरूरत हो, तो मुझे बेझिझिक बता देना.’’

राशिद ने कहा, ‘‘अरे बाबूजी, इस की क्या जरूरत थी. वैसे भी मैं कल से काम पर आ जाऊंगा.’’

साहिल बोला, ‘‘ये पैसे मैं तुम्हें एडवांस में नहीं दे रहा हूं, मेरी तरफ से तुम्हारे बीवीबच्चों के लिए हैं,’’ कहते हुए साहिल उठा और जैसे ही घर से बाहर निकलने के लिए चला, तो राशिद ने उजमा को आवाज देते हुए कहा, ‘‘बाबूजी को बाहर तक छोड़ आओ.’’

उजमा साहिल के साथ बाहर तक आई, तो दरवाजे के करीब एकांत में पहुंचते ही साहिल ने उजमा से कहा, ‘‘आप बहुत खूबसूरत हो. अगर आप के जैसी कोई आप की बहन हो, तो मेरी शादी उस से करा दो.’’

उजमा बोली, ‘‘मेरी तो कोई बहन नहीं है.’’

तभी ठेकेदार साहिल ने उजमा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल जन्नत की हूर लगती हो.’’

उजमा मुसकरा दी और बोली, ‘‘अच्छा, आप को मैं ऐसी लगती हूं?’’

‘‘हां, आप वाकई बहुत खूबसूरत हैं,’’ कहते हुए साहिल वहां से बाहर आ गया और उजमा घर के भीतर चली गई.

राशिद ने उजमा से कहा, ‘‘बहुत नेक और मदद करने वाले हैं हमारे साहिल ठेकेदार. एक बात का ध्यान रखना कि वे जब भी कभी यहां आएं, तो उन के नाश्तेपानी में कोई कमी मत रखना.’’

उजमा बोली, ‘‘आप बेफिक्र रहें.

मैं किसी बात की कोई कमी नहीं होने दूंगी. वे जब भी आएंगे, उन की खूब मेहमाननवाजी करूंगी.’’

कुछ दिन बाद राशिद ठीक हो गया और वह काम पर जाने लगा.

एक दिन राशिद काम पर था. साहिल का दिल उजमा से मिलने के लिए बेचैन था. मौसम भी खराब था, तो साहिल ने राशिद से कहा, ‘‘मैं घर जा रहा हूं और जब तक वापस न आऊं, तुम यहीं रहना. अभी 11 बज रहे हैं, मैं दोपहर 2-3 बजे तक आ जाऊंगा.’’

राशिद ने कहा, ‘‘ठीक है बाबूजी, आप यहां की जरा भी फिक्र मत करो. मैं यहां सब संभाल लूंगा.’’

साहिल ने अपनी कार स्टार्ट की और राशिद के घर की तरफ चल दिया. राशिद के घर के पास पहुंच कर उस ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया, उजमा बाहर निकल आई और बोली, ‘‘बाबूजी, आप यहां कैसे…? राशिद तो काम पर गए हैं.’’

साहिल बोला, ‘‘मालूम है मुझे. मैं तो बस बच्चों की खैरियत मालूम करने आया हूं…’’ साहिल ने अभी अपना जुमला पूरा भी नहीं किया था कि तभी जोरदार बारिश होने लगी.

साहिल ने कहा, ‘‘अंदर भी आने दोगी या सब यहीं दरवाजे पर मालूम करोगी…’’

उजमा बोली, ‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, बच्चे भी स्कूल गए हैं. आप आओ न अंदर.’’

साहिल उजमा के साथ घर के अंदर आ गया. उजमा ने साहिल को बैठने के लिए कहा और बोली, ‘‘मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

साहिल ने कहा, ‘‘नहीं, चाय नहीं. बस, तुम से एक बात पूछनी थी कि तुम इतनी खूबसूरत हो, फिर राशिद जैसे गरीब के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो?’’

उजमा ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरे मांबाप बहुत गरीब थे. उन्होंने मेरा निकाह राशिद से कर दिया, तो अब अपनी किस्मत समझ कर इन के साथ रहने को मजबूर हूं.’’

साहिल ने आगे बढ़ कर उजमा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘मैं ने जब से तुम्हें देखा है, तुम्हारा दीवाना हो गया हूं. तुम बला की खूबसूरत हो. तुम्हें यहां देख कर ऐसा लगता है, जैसे कीचड़ में कोई कमल खिला हो.’’

उजमा ने पूछा, ‘‘सच बाबूजी, आप को मैं अच्छी लगती हूं?’’

साहिल ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें एतराज न हो, तो तुम मुझ से शादी कर लो. मैं तुम्हें इस कीचड़ से निकाल कर महल में रखूंगा.’’

इतना कहते हुए साहिल ने उजमा को अपनी बांहों में भरते हुए उस के गुलाबी रस भरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

साहिल की इस हरकत से उजमा सिहर उठी. उस के बदन में हवस की आग भड़कने लगी.

साहिल ने उजमा की उठी हुई छातियों से उस के दुपट्टे को अलग करते हुए उन्हें अपने हाथों की गिरफ्त में ले लिया और सहलाने लगा.

उजमा कसमसा कर ठेकेदार साहिल की बांहों में सिमटने को बेताब होने लगी.

साहिल ने बिना समय गंवाए उजमा को चारपाई पर लिटा दिया और उस के अंगों को बेतहाशा चूमते हुए उस के बदन से कपड़े हटाने लगा. कुछ ही देर में पूरा कमरा कामुक आवाजों से गूंजने लगा.

एक बार साहिल और उजमा के बीच यह जिस्मानी रिश्ता बना, तो फिर रुकने का नाम ही नहीं लिया. अब उन दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे से अपनेअपने जिस्म की ख्वाहिश पूरी करने लगे.

कई महीनों तक दोनों का यह रिश्ता चलता रहा, फिर साहिल ठेकेदार का वह ठेका भी पूरा हो गया और राशिद अब अपने घर पर रहने लगा.

राशिद के घर पर रहने से उजमा और साहिल को मिलने में दिक्कत आने लगी. दोनों तरफ आग भड़की हुई थी. उजमा को अब न बच्चों की परवाह थी और न राशिद की. उस का तो बस अब यही सपना था कि वह अपनी जिंदगी की नई शुरुआत साहिल के साथ करे.

एक रात उजमा साहिल के साथ घर छोड़ कर चली गई और एक परचा लिख कर रख गई, ‘मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हारे साथ अब और नहीं रह सकती. मुझे भी अपनी जिंदगी जीने का हक है, जिसे मैं अपनी मरजी से जीना चाहती हूं.

‘मैं ने अपना जीवनसाथी ढूंढ़ लिया है, जो मुझे बहुत प्यार करता है और मेरा अच्छे से खयाल रखता है. उस के पास काफी पैसा भी है. मैं यह गरीबी वाली जिंदगी जी कर थक चुकी हूं, इसलिए मैं यह घर छोड़ कर अपनी मरजी से जा रही हूं.’

राशिद ने जब उजमा का यह परचा पढ़ा, तो उस के होश ही उड़ गए. वह समझ गया कि उजमा को उस के सपनों का राजकुमार मिल गया है, इसलिए वह घर छोड़ कर चली गई है.

राशिद ने थाने में जा कर उजमा को ढूंढ़ने की फरियाद की और साथ ही, उजमा का लिखा वह परचा भी पुलिस को दिखाया.

पुलिस वालों ने राशिद को दिलासा देते हुए इतना ही कहा कि जब उजमा अपनी मरजी से गई है, तो उसे ढूंढ़ना बेकार है.

राशिद के पास उस पुलिस वाले के सवाल का कोई जवाब न था. वह वापस घर लौट आया. पुलिस ने भी उजमा को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की.

बच्चों का अपनी मां के लिए रोरो कर बुरा हाल था. राशिद की सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और कैसे उन की मां बच्चों को ला कर दे.

एक दिन गांव में एक हादसा हो गया था. वहां पर कई पत्रकार आए हुए थे, तभी राशिद का बड़ा बेटा रोता हुआ पत्रकार तनवीर के पास आया और बोला, ‘‘अंकल, मेरी अम्मी को ढूंढ़ कर हमारे पास ले आओ.’’

पत्रकार तनवीर हैरानी से उस बच्चे की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘बेटे, क्या हुआ है तुम्हारी अम्मी को और वे कहां हैं? तुम उन्हें क्यों ढूंढ़ रहे हो? तुम्हारे अब्बा कहां हैं?’’

बच्चे ने कहा, ‘‘वे सामने मेरे अब्बा खड़े हैं और हमारी अम्मी कई दिनों से घर से कहीं चली गई हैं. उन का कुछ अतापता नहीं है. अब्बा और मैं पुलिस अंकल के पास भी गए थे, पर वे अभी तक हमारी अम्मी को ढूंढ़ कर नहीं लाए हैं. आप हमारी मदद कर दो, प्लीज.’’

पत्रकार तनवीर बच्चे को ले कर राशिद के पास गया, तो उस ने देखा कि राशिद एक बच्चे का हाथ पकड़े एक तरफ खड़ा था और उस की आंखों में आंसू थे. उस का शरीर काफी कमजोर लग रहा था, बदन पर फटेपुराने कपड़े थे.

तनवीर पत्रकार राशिद से बोला, ‘‘यह बच्चा क्या कह रहा है? कहां है इस की अम्मी?’’

राशिद ने पूरा मामला पत्रकार तनवीर को बताया और कहा, ‘‘बच्चे अपनी मां को बहुत याद करते हैं. वह अपने किसी आशिक के साथ हम सब को छोड़ कर चली गई है. उस ने बच्चों तक की कोई परवाह नहीं की.

‘‘मैं ने पुलिस में भी जा कर शिकायत भी की, पर हवलदार बोले कि जब तुम्हारी बीवी अपनी मरजी से गई है, तो इस का मतलब यह है कि वह तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती है.’’

तनवीर पत्रकार ने कहा, ‘‘आप चिंता मत करो. मैं अभी इंस्पैक्टर से बात कर के उसे ढूंढ़ने पर जोर देता हूं. आप मुझे उस का कोई फोटो दे दो.’’

तनवीर ने इंस्पैक्टर से मिल कर उजमा को जल्दी ढूंढ़ने के लिए कहा, तो अगले ही दिन उजमा अपने आशिक साहिल के साथ थाने में आ गई.

राशिद और उस के बच्चों को भी थाने में बुला लिया गया, जहां काफी बहस और एकदूसरे की बात सुनने के बाद सब की आंखें नम हो गईं, क्योंकि उजमा ने राशिद के साथ न रहने का दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘मुझे न बच्चों की परवाह है और न पति राशिद की. मैं साहिल से प्यार करती हूं और उसी के साथ रहना चाहती हूं. साहिल मुझे भगा कर नहीं ले गया, बल्कि मैं अपनी मरजी से इस के साथ गई हूं.’’

उजमा के इस जवाब को सुन कर राशिद ही नहीं, बल्कि बच्चों की आंखों में भी आंसू आ गए, पर उजमा पर इस का कोई असर न हुआ. उस ने साहिल के हाथ में हाथ डाला और पुलिस स्टेशन से बाहर निकल कर एक चमचमाती गाड़ी में बैठ कर वहां से चली गई.

राशिद अपने बच्चों को ले कर घर आ गया. उजमा के इस फैसले से वह पूरी तरह हिल चुका था. उस की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ चुकी थी.

सबक : कैसा था सरकारी बाबू

सरकारी बाबू अपने नीचे काम करने वाले मुलाजिमों से अपने घरेलू काम कराने में शान समझते हैं. सरकारी बाबू जनता का काम बगैर घूस लिए नहीं करते और औफिस के सामान को अपनी निजी जागीर समझते हैं. झांसी के रेलवे वैगन मरम्मत कारखाने में तो यह बीमारी खतरनाक लैवल तक पहुंच चुकी थी. कारखाने के डायरैक्टर, रामसेवक (आरएस) उर्फ पांडेयजी, कहने को एक कर्मकांडी ब्राह्मण थे और जो गीता और उपनिषदों की बातें करते थे, लेकिन गरीब मुलाजिमों का खून पीने में उन का धर्म भ्रष्ट नहीं होता था. वैगन मरम्मत कारखाने में वैगनों को आगेपीछे करने (शंटिंग) के दौरान हुए हादसे में मनिपाल नाम के एक दलित मुलाजिम की मौत हो गई. जिस तरह किसी जानवर की मौत से गिद्धों को भोज मिलता है, वे जश्न मनाते हैं, उसी तरह कारखाने के बाबुओं की खुशी का ठिकाना नहीं था.

बीमा के पैसे और फंड निकलवाने के बदले उन्होंने मनिपाल की विधवा पत्नी राजश्री से तगड़ी रिश्वत वसूल की.  इस घटना के 2 साल बाद, 18 साल का होते ही, मनिपाल के बेटे मोहित को अपने पिताजी की जगह चपरासी की नौकरी मिल गई. पांडेयजी को मानो इसी दिन का इंतजार था.

किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई और उन्होंने मोहित को औफिस में जौइन कराने के साथ ही उसे अपने बंगले पर हमेशा के लिए बंधुआ मजदूर की तरह अपनी पत्नी और बच्चों की खुशामद में लगा दिया. वैसे, पांडेयजी ‘मनुस्मृति’ में विश्वास करते थे, वे दलित को अपने पैर की जूती समझते थे, लेकिन घरेलू काम कराने की मजबूरी में उन्होंने मोहित का उपनयन संस्कार कर, अपने मतलब भर के लिए उसे अछूत से सामान्य बना लिया. पांडेयजी की बड़ी बेटी श्वेता बहुत ही अक्खड़ थी और मोहित से गुलामों की तरह बरताव करने में उसे जातीय मजा आता था.

मोहित बेचारा हाथ जोड़े श्वेता की सेवा में खड़ा रहता था. जरा भी गड़बड़ हो जाए तो वह उस बेचारे की बहुत डांट लगाती थी. कभीकभार छड़ी से पिटाई कर देती थी. एक बार तो श्वेता ने अपने सभी दोस्तों के सामने मोहित को चांटा जड़ दिया था. पांडेयजी को अपनी परी जैसी बेटी की ऐसी हरकतें बहुत ही नादान और नटखट लगती थीं. उन्हें श्वेता के राजकुमारियों जैसे बरताव पर बहुत गर्व होता था. श्वेता के उकसाने पर पांडेयजी भी मोहित के कान तान देते थे.

मोहित के साथ श्वेता के गैरइनसानी बरताव के चलते किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि श्वेता एक दिन इसी गरीब, निचली जाति के गंवार लड़के से प्यार कर बैठेगी. मोहित भी केवल इसलिए श्वेता की गुस्ताखियों को सह रहा था, क्योंकि उसे श्वेता के निजी काम करने में अलग सा मजा आने लगा था. कोई नहीं समझ सका कि मोहित और श्वेता दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े हैं, उन्हें एकदूसरे की खुशबू खींच सकती है. मोहित बगैर कहे श्वेता के कपड़ों को साफ करता, उन को प्रैस करता, उस के जूते साफ कर देता और अपने हाथों से पहना देता.

एक दिन मोहित ने किसी बात पर श्वेता को जवाब दे दिया. इस बात पर नाराज हो कर श्वेता ने अपने बड़ेबड़े नाखूनों से मोहित को लहूलुहान कर दिया. पर कहते हैं न कि नफरत बहुत जल्दी प्यार में भी बदल जाती है, लिहाजा मोहित की मालकिन भक्ति और बगैर जवाब दिए, हंसते हुए सब सह जाने के चलते श्वेता का दिल पहले ही मोहित के प्रति नरम पड़ चुका था. जब श्वेता ने मोहित का खून निकलते देखा तो उसे भी रोना आ गया. अपने हाथों से उस ने मोहित के जख्मों पर दवा लगाई. श्वेता अब मोहित को अपने दोस्त की तरह रखने लगी थी.

वह मोहित से सिर्फ 2 साल छोटी थी और कच्ची उम्र का प्यार बहुत ही मजबूत फीलिंग पैदा कर देता है. एक सर्द दोपहर को श्वेता कंबल लपेटे हुए टैलीविजन देख रही थी. श्वेता के लिए मैगी बनाने के बाद मोहित भी उस के पास बैठ कर टैलीविजन देखने लगा. ठंड से ठिठुर रहे मोहित को श्वेता ने कंबल के अंदर बुला लिया. मोहित की पहली छुअन उसे दिल की गहराइयों तक हिला गई. श्वेता ने मोहित से उस के हाथपैरों की मालिश करने को कहा और अपने सारे कपड़े उस के सामने ढीले कर दिए.

श्वेता, जो अपनी मां के सामने कपड़े बदलने में भी हिचकिचाती थी, उसे अपने गुलाम मोहित के आगे कपड़े उतारने में जरा भी शर्म नहीं आई. श्वेता की इस अनकही हां पर मोहित उस के शरीर के नाजुक हिस्सों को सहलाने लगा. इस से श्वेता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. श्वेता को मस्ती में देख कर मोहित ने उस की ब्रा के हुक खोल दिए और उस के उभारों को सहलाता हुआ उन्हें चूमना शुरू कर दिया. अपने स्वभाव के उलट श्वेता ने इस बार मोहित को परे नहीं धकेला और न ही उस की इस हिम्मत के लिए उसे कोई सजा दी. जोश में आए मोहित को अपने पास खींच कर श्वेता ने उस पर चुमनों की बरसात कर दी. उस दिन के बाद से मोहित पांडेयजी के बंगले पर उन का सरकारी दामाद बन कर ठाठ से रहने लगा था और उधर पांडेयजी औफिस में मोहित की नौकरी की चिंता कर रहे थे.

मोहित के खाते में महीने के पहले दिन उस की सैलरी भी आ जाती थी. मोहित ने आज श्वेता बेबी की पसंद का पास्ता बनाया था. बेबी को मोबाइल फोन पर वीडियो गेम खेलने में दिक्कत न हो, इसलिए वह अपने हाथों से उसे खिला रहा था. पास्ता खत्म कर श्वेता ने अपना सिर मोहित की गोद में रख लिया, तो मोहित ने धीरे से श्वेता के उभारों को सहलाना शुरू कर दिया. आईने में अपने उभारों की गोलाइयों को देख कर इतराते हुए श्वेता सोच रही थी कि कालेज में आने के बाद उस की सहेलियां जहां अभी तक एक अदद बौयफ्रैंड नहीं ढूंढ़ पाईं, वहीं उस ने मोहित की बदौलत सैक्स में पीएचडी करना शुरू कर दी थी. श्वेता ने मोहित को ब्यूटीपार्लर का कोर्स सिखा दिया था.

मोहित घर पर ही श्वेता की वैक्सिंग, पैडीक्योर, थ्रैडिंग कर देता था. मौका मिलने पर मोहित बाथटब में श्वेता की पीठ साफ करने की नौकरी भी कर देता था. प्यारमुहब्बत से रहतेरहते बहुत जल्दी वे सारी मर्यादा तोड़ चुके थे. श्वेता को जब एक महीने का पेट ठहर गया, तब उसे गलती का अहसास हुआ. उस ने डरतेडरते मोहित को जब यह बात बताई, तब तक 2 महीने हो गए थे. परिवार वालों को जब तक पता लगा, तीसरा महीना पूरा हो गया था.  अब किसी भी तरह पेट गिराना मुमकिन नहीं था.

पांडेयजी को यकीन नहीं हो रहा था कि उन की इंगलिश स्कूल में पढ़ीलिखी बेटी को निचली जाति के गरीब लड़के से प्यार हो गया था. पांडेयजी को मनुस्मृति का मंत्र याद आ गया : अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च, वंचनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत. यानी अपने अपमान, आर्थिक नुकसान के साथ ही साथ घर के दुश्चरित्र की बाहर चर्चा करने से कोई लाभ नहीं होता, व्यक्ति का मजाक ही बनता है. इस मंत्र को दोहराते हुए पांडेयजी ने खून का घूंट पी कर मजबूरी के चलते इस बात को छिपा दिया और श्वेता और मोहित की शादी कराने का फैसला किया. मोहित आज उन के बंगले पर कानूनी दामाद बन कर रह रहा है. समाजवादियों ने पांडेयजी को उन के इस क्रांतिकारी फैसले के चलते दलित समाज के आदमी को गले लगाने की वजह से उन्हें सम्मानित किया. मंच से दलितों की बदहाली पर बोलते हुए पांडेयजी की आंखों में आंसू आ गए.

खौफ के साए : जब साहब को मिली देख लेने की धमकी

मैं  अपने चैंबर में जैसे ही दाखिल हुआ, तो वहां 2 अजनबी लोगों को इंतजार करते पाया. उन में से एक खद्दर के कपड़े और दूसरा पैंटशर्ट पहने हुए था.

मैं ने अर्दली से आंखों ही आंखों में सवाल किया कि ये कौन हैं?

‘‘सर, ये आप से मिलने आए हैं. इन्हें आप से कुछ जरूरी काम है,’’ अर्दली ने बताया.

‘‘मगर, मेरा तो आज इस समय किसी से मिलने का कोई कार्यक्रम तय नहीं था,’’ मैं ने नाराज होते हुए कहा.

‘‘साहब, हमें मुलाकात करने के लिए किसी से समय लेने की जरूरत नहीं पड़ती. आप जल्दी से हमारी बात सुन लें और हमारा काम कर दें,’’ खद्दर के कपड़े वाले आदमी ने रोब से कहा.

‘‘मगर, अभी मेरे पास समय नहीं है. अच्छा हो कि आप कल दोपहर 12 बजे का समय मेरे सैक्रेटरी से ले लें.’’

‘‘पर, हमारे लिए तो आप को समय निकालना ही होगा,’’ दूसरा आदमी जोर से बोला.

‘‘आप कौन हैं?’’ मैं ने सवाल किया. ‘‘मैं अपनी पार्टी का मंत्री हूं. जनता की सेवा करना मेरा फर्ज है,’’ खद्दर वाले आदमी ने कहा.

‘‘और मैं इन का साथी हूं. समाज सेवा मेरा भी शौक है,’’ दूसरा बोला.

मैं ने उन्हें गौर से देखा और सोचने लगा, ‘अजीब लोग हैं… मान न मान, मैं तेरा मेहमान की तरह बिना इजाजत लिए दफ्तर में घुस आए और अब मुझ पर रोब झड़ रहे हैं. इन के तेवर काफी खतरनाक लग रहे हैं. ये आसानी से टलने वाले नहीं लग रहे हैं. क्या मुझे इन की बात सुन लेनी चाहिए?’

मुझ चुप देख कर पैंटशर्ट वाले आदमी ने कहा, ‘‘साहबजी, परेशान न हों. हमें आप से एक सर्टिफिकेट चाहिए. मेरी बहन को इस की सख्त जरूरत है. एक खाली जगह के लिए अर्जी देनी है. इस सर्टिफिकेट से उस की नौकरी पक्की हो जाएगी.’’

‘‘यह तो मुमकिन नहीं है. जब उस ने हमारे यहां काम ही नहीं किया है, तो मैं उसे सर्टिफिकेट कैसे दे सकता हूं? यह गलत काम मु?ा से नहीं हो सकेगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘सर, आजकल कोई काम न तो गलत है और न सही. समाज में रह कर एकदूसरे की मदद तो करनी ही पड़ती है. कीमत ले कर सब मुमकिन हो जाता है. आप को जो चाहिए, वह हम हाजिर कर देंगे.

‘‘यह देखिए, टाइप किया हुआ सर्टिफिकेट हमारे पास है. बस, इस पर आप के दस्तखत और मुहर चाहिए,’’ नेता टाइप आदमी ने कहा.

‘‘मैं ने कभी किसी को इस तरह का झठा सर्टिफिकेट नहीं दिया है. आप किसी और से ले लो,’’ मैं ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘मगर, हमें तो आप से ही यह सर्टिफिकेट लेना है और अभी लेना है. बुलाइए अपने सैक्रेटरी को.’’

‘‘यह कैसी जोरजबरदस्ती है. आप लोग मेरे दफ्तर में आ कर मुझे ही धमका रहे हैं. आप को यहां आने के लिए किस ने कहा.

‘‘बेहतर होगा, अगर आप यहां से चले जाएं और मुझे मेरा काम करने दें. अभी यहां एक जरूरी मीटिंग होने वाली है,’’ यह बोलते हुए मैं कांप रहा था.

‘‘सोच लो साहब, एक लड़की के कैरियर का सवाल है. हम भी कभी तुम्हारे काम आ सकते हैं. आजकल हर बड़े आदमी को सियासी लोगों के सहारे की जरूरत पड़ती है.

‘‘अगर तुम ने हमारी बात न मानी, तो फिर हम तुम्हें चैन से बैठने नहीं देंगे. हमें तुम्हारे घर से आनेजाने का समय मालूम है और बच्चों के स्कूल जाने के समय से भी हम अच्छी तरह वाकिफ हैं,’’ उन की ये धमकी भरी बातें मेरे कानों पर हथौड़े मार रही थीं.

मेरा सिर बोझिल हो गया. बदतमीजी की हद हो गई. ये तो अब आप से तुम पर आ गए. क्या किया जाए? क्या पुलिस को खबर कर दूं, पर उस के आने में तो देर लगेगी.

फिर कुछ देर बाद हिम्मत कर के मैं ने कहा, ‘‘तुम लोग मुझे धमका कर गैरकानूनी काम कराना चाहते हो. मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगा,’’ मैं ने घंटी बजा कर सैक्रेटरी को बुलाना चाहा.

इस पर उन में से एक गरजा, ‘‘शौक से कराओ रिपोर्ट, लेकिन तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. थानेचौकी में तो हमारी रोज ही हाजिरी होती है.’’

इन लोगों की ऊंची आवाजों से दफ्तर में भी खलबली मच गई थी.

‘‘सर, क्या सौ नंबर डायल कर के पुलिस को बुलवा लूं?’’ सैक्रेटरी ने आ कर धीमे से पूछा.

‘‘नहीं, अभी इस की जरूरत नहीं है. तुम मीटिंग की तैयारी करो. मैं इन्हें अभी टालता हूं.’’

मैं फिर पानी पी कर और अपनी सांस को काबू में कर के उन की तरफ मुड़ा. अब मु?ा पर भी एक अनजाना खौफ हावी था कि क्या होगा?

कमरे के बाहर मेरा अर्दली सारी बातें सुन कर मुसकरा रहा था. उस के मुंह से निकला, ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. सिट्टीपिट्टी गुम हो गई साहब की.

2 गुंडों ने सारा रोब हवा कर दिया.’

फिर वे दोनों उठ कर खड़े हो गए और जोरजोर से चिल्लाने लगे, ‘अगर हमारा काम नहीं किया, तो पछताओगे. यहां से घर जाना मुश्किल हो जाएगा तुम्हारे लिए. निशान तक नहीं मिलेगा, सम?ो.’

‘‘तुम लोग जो चाहे कर लेना, मगर मैं गलत काम नहीं करूंगा,’’ मैं ने भी आखिरी बार हिम्मत कर के यह वाक्य कह ही दिया.

‘अच्छा तो ठीक है. अब हम तुम्हारे घर शाम के 6 बजे आएंगे. सर्टिफिकेट टाइप करा कर लेते आना और मुहर भी साथ में लेते आना, वरना अंजाम के तुम खुद जिम्मेदार होगे,’ वे जाते हुए जोर से बोले.

मेरे मुंह से मुश्किल से निकला, ‘‘देखा जाएगा.’’

वे कमरे से बाहर चले गए थे, मगर मैं अपनी कुरसी पर बैठा खौफ से कांप रहा था कि अब क्या होगा? बाहर मेरा स्टाफ हंसीमजाक में मस्त था.

‘‘कल साहब दफ्तर नहीं आएंगे. घर पर रह कर उन गुंडों से बचने की तरकीबें सोचेंगे और हम मौजमस्ती करेंगे,’’ एक क्लर्क ने कहा.

तभी अर्दली ने अंदर आ कर पानी का गिलास रखते हुए पूछा, ‘‘चाय लाऊं, साहब?’’

‘‘नहीं… अभी नहीं.’’

मैं ने घड़ी देखी, तो दोपहर का डेढ़ बजने वाला था यानी लंच का समय हो गया था.

मैं ने सैक्रेटरी को बुला कर मीटिंग टलवा दी और अपनी हिफाजत की तरकीबें सोचने लगा, ‘जब तक बड़े साहब से बात न कर लूं, पुलिस में रिपोर्ट कैसे कराऊं. वे दौरे पर बाहर गए हैं,

2 दिन बाद आएंगे, तभी कोई कार्यवाही की जा सकती है.

‘अब सरकारी दफ्तरों में भी गुंडागर्दी फैलनी शुरू हो गई है. डराधमका कर गलत काम कराने, अफसरों को फंसाने और ब्लैकमेल करने की साजिशें हो रही हैं. हम जैसे उसूलपसंद लोगों के लिए तो अब काम करना मुश्किल हो गया है,’ सोचते हुए मेरी उंगलियां घर के फोन का नंबर डायल करने लगीं.

मैं ने बीवी से कहा, ‘‘सतर्क रहना और बच्चों को घर से बाहर न जाने देना. हो सकता है कि शाम को मेरे घर पहुंचने से पहले कोई घर पर आए. कह देना, साहब घर पर नहीं हैं.’’

‘‘पर, बात क्या है, बताइए तो सही?’’ बीवी ने मेरी आवाज में घबराहट महसूस कर के पूछा.

‘‘कुछ नहीं, तुम परेशान न हो. मैं समय पर घर आ जाऊंगा. गेट अंदर से बंद रखना.’’

फिर मैं ने अपने दोस्त धीर को फोन कर के सारी घटना उसे बता दी और उसे घर पर पूरी तैयारी से आने को कहा.

ठीक साढ़े 5 बजे मैं दफ्तर से घर के लिए अपनी गाड़ी से चल दिया. मेरे साथ अर्दली और क्लर्क भी थे.

वे लोग जिद कर के साथ हो लिए थे कि मुझे घर तक छोड़ कर आएंगे. उन की इच्छा को मैं टाल भी न सका.

सच तो यह है कि उन की मौजूदगी ने ही मेरी हिम्मत बढ़ा दी. रास्ते भर मेरी नजरें इधरउधर उन बदमाशों को ही तलाशती रहीं कि कहीं किसी तरफ से वे निकल न आएं और मेरी गाड़ी रोक कर मेरे ऊपर हमला न कर दें.

मैं ठीक 6 बजे घर पहुंच गया. वहां सन्नाटा छाया था. मैं ने दरवाजे की घंटी बजाई.

अंदर से सहमी सी आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘दरवाजा खोलो. मैं हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

कुछ देर बाद मेरी आवाज पहचान कर बीवी ने दरवाजा खोला.

‘‘तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप के फोन ने मु?ो चिंता में डाल दिया था. फिर 2 फोन और आए. कोई आप को पूछ रहा था कि क्या साहब दफ्तर से आ गए? आखिर माजरा क्या है?’’ बीवी ने पूछा.

‘‘कुछ भी नहीं.’’

‘‘अगर कुछ नहीं है, तो आप के चेहरे पर खौफ क्यों नजर आ रहा है और आवाज क्यों बैठी हुई है?’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और बैग मेज पर रख कर अंदर सोफे पर लेट गया.

कुछ ही देर में धीर भी आ गया. उस ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यार, घबराओ नहीं. मैं ने सब बंदोबस्त कर दिया है. अब वे तुम्हारे पास कभी नहीं आएंगे. हमारे होते हुए किस की हिम्मत है कि तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ सके.

‘‘रात में यहां 2 लोगों की ड्यूटी निगरानी के लिए लगा दी है. वे यहां का थोड़ीथोड़ी देर बाद जायजा लेते रहेंगे.’’

‘‘जरा तफसील से बताओ कि तुम ने क्या इंतजाम किया है?’’ मैं ने धीर से कान में फुसफुसा कर पूछा.

धीर ने बताना शुरू किया, ‘‘मैं उस खद्दरधारी बाबूलाल के ठिकाने पर हो कर आ रहा हूं. उसी के इलाके का एक दादा रमेश भी मेरे साथ था.

‘‘रमेश ने बाबूलाल को देखते ही कहा, ‘हम तो साहब के घर पर तुम्हारा इंतजार कर रहे थे और तुम यहां मौजूद हो.’

‘‘बाबूलाल रमेश को देख कर ढेर हो गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. फिर माफी मांगते हुए वह बोला, ‘साहबजी, मुझ से गलती हो गई, जो मैं आप के दोस्त के दफ्तर चला गया और उन को धमका आया. उमेश ने मुझ पर ऐसा काम करने का दबाव डाला था. मैं उस की बातों में आ गया था. अब कभी ऐसी गलती नहीं होगी.’

‘‘आज के जमाने में सेर पर सवा सेर न हो, तो कोई दबता ही नहीं है. जब उसे मेरी ताकत का अंदाजा हो गया, तो वह खुद डर गया, इसलिए वह अब कभी तुम्हारे पास नहीं आएगा.

‘‘तुम बेफिक्र रहो और कल से ही रोज की तरह दफ्तर जा कर अपना काम करो. कोई बात हो, तो मुझे फोन कर देना.’’

धीर की तसल्ली भरी बातों ने मेरा सारा खौफ मिटा दिया. अब मैं अपनेआप को पहले जैसा रोबदार अफसर महसूस कर रहा था.

मेरी बीवी और बच्चों के चेहरे भी खिल उठे थे.

दूसरे दिन जब मैं घर से दफ्तर के लिए निकला, तो हर चीज हमेशा की तरह ही थी. डर की कोई परछाईं भी नजर नहीं आ रही थी.

आज अपने चैंबर में बैठा हुआ मैं महसूस कर रहा था कि खौफ तो आदमी के अंदर ही पनपता है, बाहर तो केवल उस की परछाइयां ही फैलती हुई लगती हैं.

 

मिसाल : बहू और ससुर का निराला रिश्ता

किसी रेलवे प्लेटफौर्म पर खड़े हो जाओ, तो लगता है कि सारी दुनिया कहीं आनेजाने में लगी हुई है. यहां किसी को लेने आओ और इंतजार करो, तो उस का अलग ही मजा है. देखते रहो लोगों को आतेजाते, उन की गतिविधियां, अलग ही आनंद होता है इन सब को देखने का. कौन से स्टेशन पर कौन मिलेगा और कौन बिछुड़ेगा. कुछ नहीं पता, किस का साथ कितनी देर तक और कितनी दूर तक, यह भी नहीं मालूम, किस की यादों के फूल सदा सुगंध बिखेरते रहेंगे और किस के कांटे बन कर सदा चुभते रहेंगे, यह भी रहस्य ही रहता है.

एक बार बिटिया कानपुर गई थी. मैं उसे लेने के लिए स्टेशन गई थी. ट्रेन 3 घंटे देरी से आनी थी. मैं एक उपन्यास ले गई थी. प्लेटफौम पर स्टौल से कौफी खरीदी और उसे पढ़ने की जगह ढूंढ़ने लगी. कोने की एक बैंच पर एक बुजुर्ग और लगभग 3-4 साल का एक छोटा बच्चा बैठे हुए थे. बाकी सब जगहें भरी हुई थीं. मैं वहीं चली गई और उन के साथ बैठ गई. वे बुजुर्ग उस बच्चे के साथ खेलने में लगे हुए थे. बच्चा बड़े प्यार से खिलखिला कर उन के साथ खेल रहा था. यह देख कर मेरे चेहरे पर भी मुसकान आ गईर् और मैं मुसकराते हुए दूसरे कोने में बैठ गई और उपन्यास पढ़ने की कोशिश करने लगी. पर उस बच्चे की खिलखिलाती हुई हंसी से मेरा ध्यान बारबार उस की तरफ चला जाता. उन बुजुर्ग का ठेठ देहाती पहनावा होने के बावजूद वे एक संपन्न और संभ्रांत परिवार के लग रहे थे. सफेद धोतीकुरते और सफेद बड़ी सी पगड़ी लपेटे, बड़ीबड़ी सफेद रोबीली मूंछें और आंखों में काले फ्रेम के चश्मे में उन का तेजस्वी व्यक्तित्व झलक रहा था. बैठे हुए होने पर भी उन की कदकाठी ऊंची ही लग रही थी. लंबेलंबे पैरों में काली चमकदार जूतियां सजी थीं. वे देहाती नहीं, बहुत पढ़ेलिखे लगे. बच्चे को वे वैभव कह कर बुला रहे थे.

इतने में बच्चा पानी मांगने लगा तो उन्होंने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली. वह खाली थी. वे पानी की बोतल लेने जाने लगे तो मैं ने उन्हें अपनी पानी की बोतल देते हुए कहा, ‘‘यह अभी खरीदी है, आप इसी से ही पिला दीजिए.’’

उन्हें संकोच हुआ पर मेरे बारबार कहने पर उन्होंने मेरी बोतल से थोड़ा पानी अपनी बोतल में ले कर वैभव को पानी पिला दिया. उन्होंने मुझसे पूछा, ‘‘कौन सी ट्रेन का वेट कर रही हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘गरीब रथ, मेरी बेटी आ रही है कानपुर से और आप?’’

वे बोले, ‘‘मैं भी गरीब रथ का ही इंतजार कर रहा हूं, मेरी बहू यानी इस की मां भी कानपुर से ही आ रही है, उसे लेने आए हैं.’’

मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि ससुर अपनी बहू को लेने आए हैं.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या अपने मायके से आ रही हैं?’’

वे बोले, ‘‘नहीं, उस का इम्तिहान था वहां, सिविल सर्विस का.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है कि आप लेने आए हैं, उन के पति कहीं बाहर हैं क्या?’’

इस के बाद जो कुछ उन्होंने मुझे बताया, वह केवल आंखों में अश्रु भरने वाला ही था. उन्होंने कहा, ‘‘वैभव के पिता कैप्टन विक्रम सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं, फौज में था मेरा बेटा और कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान शहीद हो गया, वैभव तब 2-3 महीने का ही था. मेरा बड़ा बेटा भी आर्मी में था और वह भी सियाचिन बौर्डर पर हमले में शहीद हो गया था. उस की शादी भी नहीं हुई थी. विक्रम की शादी धूमधाम से की थी पर वह भी इस संसार में नहीं रहा.’’ यह कह कर वे चुप हो गए.

मन विचलित हो गया यह सुन कर, मैं ने पूछा, ‘‘आप के घर में और कौनकौन है?’’ वे बोले, ‘‘मेरी पत्नी तो बहुत पहले ही चल बसी थी, मैं खुद फौज में था पर बिन मां के बच्चों को पालने के लिए सेवानिवृत्त हो गया. आज मैं अपनी बहू के साथ रहता हूं और अपने इस नन्हे से पोते को खिलाता रहता हूं.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘बहू को अपने मायके जाने को कहा. पर वह मानी नहीं, कहती है, ‘पापा, आप के साथ ही रहूंगी, आप के बच्चों ने देश की सेवा करते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी तो क्या मैं आप की सेवा नहीं कर सकती.’ अब उस ने एमए किया और सिविल सर्विस के लिए तैयारी की. मेरी भी बड़ी सेवा करती है. अब मेरा इन दोनों के अलावा और है ही कौन? काश, मेरे एकदो बेटे और होते तो उन को भी

मैं देश की सेवा के लिए सेना में भरती करा देता. अब यही इच्छा है कि वैभव भी बड़ा हो कर सेना में भरती हो या फिर डाक्टर बने. आगे उस की मरजी रहेगी.’’ फिर कुछ आजीविका की बात चली तो वे बोले, ‘‘मेरे गांव में मेरी काफी जमीन है, पुश्तैनी हवेली है, पैसे की कोई कमी नहीं और हम 3 जनों का बड़े अच्छे से गुजारा होता है. हम ने गांव में छोटा सा अस्पताल बनवाया है जहां गरीबों का मुफ्त इलाज होता है. 6 डाक्टर हैं वहां जिन से इलाज कराने दूरदूर से लोग आते हैं.’’

उन की बातें सुन कर मैं हैरान रह गई. समझ नहीं आया कि क्या कहूं? जिस व्यक्ति के दोनों जवान बेटे शहीद हो गए हों, वह कितनी जिंदादिली से बात कर रहा है. फिर भी हिम्मत कर के मैं ने पूछा, ‘‘आप क्या अपने पोते को भी शहीद होते हुए देख सकोगे अगर वह सेना में भरती हुआ तो?’’

उन के होंठों पर फीकी सी हंसी तैर गई, गोद में बैठे हुए वैभव के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने थोड़ा भावुक हो कर कहा, ‘‘कौन बाप अपने पुत्र की अर्थी को कंधा देना चाहता है पर देश के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं. आज लोग मुझे मेरे बेटों के नाम से जानते हैं, यह मेरे लिए बड़े ही गर्व की बात है. मेरी बहू राधिका बहुत ही सुशील और संस्कारी है. पूरा गांव उस की बड़ी इज्जत करता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘आप की बहू की उम्र तो अभी कम होगी, जिंदगी तो बहुत लंबी है, दूसरे विवाह के बारे में तो…’’ यह कहतेकहते मैं रुक गई.

तब वे खुद ही बोले, ‘‘मैं ने उस से कहा भी, ‘बेटा, तुम अभी छोटी उम्र की हो, दूसरा विवाह कर लो और अपनी जिंदगी को अच्छे से जियो.’ पर वह कहती है, ‘पापा यह क्या पता है कि मेरे दूसरे पति की उम्र भी कितनी हो. कम से कम मैं आज कैप्टन विक्रम सिंह की पत्नी के नाम से तो जानी जाती हूं. यह पहचान मेरे लिए बहुत बड़ी है. मेरे मांबाप ने तो मुझे आप लोगों को सौंप दिया था. अब मैं ही आप की बेटी और बेटा दोनों बन कर रहूंगी.’ और अब बहू मेरी बेटी ही बन गई है. हम दोनों अच्छे दोस्त भी हैं, खूब बातें करते हैं, बहस करते हैं, और रूठनामनाना भी करते हैं.’’ वे मुसकरा कर आगे बोले, ‘‘बड़ी जिद्दी है राधिका, जो भी ठान लिया, वह कर के ही छोड़ती है. मैं उस से हार जाता हूं और जिस का मुझे दुख भी नहीं होता.’’

यह सुन कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि इस संसार में ऐसे भी लोग हैं जो हमारे देश, समाज और परिवार के लिए कितनी मौन कुर्बानियां देते हैं और हम क्या कर रहे हैं? कुछ भी तो नहीं, मैं ने कहा, ‘‘आप से मिल कर बहुत ही अच्छा लगा, आप एक आदर्श हैं हम सब के लिए.’’

वे मुसकराए और बोले, ‘‘मुझे भी अच्छा लगा, अनाउंसमैंट हो गया है. गाड़ी के आने का, चलो अपनेअपने बच्चों से मिलते हैं, फिर वैभव से बोले, ‘‘ इन को नमस्ते करो,’’ देखो, बड़ी दीदी हैं न.’’ तो वैभव ने झट से मुझे नमस्कार किया.

मैं ने उसे गोदी में उठा कर प्यार किया. इस से ज्यादा कुछ था भी नहीं मेरे पास उस मासूम के लिए. मैंने भरेमन से हाथ जोड़ कर उन से विदा ली. उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और हम अपनेअपने गंतव्य की ओर बढ़ गए. मेरी बिटिया मिली अपनी सब सहेलियों के साथ और उन की चहकती हुई आवाजों में वैभव की खिलखिलाती हुई हंसी कहीं गुम सी हो गई. टैक्सी में बैठते समय मुझे वे बुजुर्ग और उन की बहू वैभव को गोदी में लिए जाते हुए नजर आए. वे बहू से बात करते हुए जा रहे थे. ऐसा बिलकुल भी नहीं लगा कि वे एक ससुर और बहू हैं, बल्कि एक पिता अपनी बेटी से बात करता चलता हुआ दिखा.

वे  बुजुर्ग कितनी बड़ी सीख दे गए बिना कुछ सिखाए कि अपने देश से बड़ा कुछ भी नहीं. जो भी करना है निस्वार्थ करो और अपने परिवार के लिए भी. आज वे सबकुछ खो कर भी कितने संतुष्ट दिखाई दिए जबकि कितने लोगों के पास सबकुछ होते हुए भी उन को संतुष्टि नहीं होती. लोग जिंदगीभर दूसरों को ही नसीहतें दिए जाते हैं और जब अपने ऊपर बात आती है तो खिसक जाते हैं. पर वे बुजुर्ग अपनेआप में एक मिसाल हैं.

रोटी- वह पुलिस की रोटी बनाती है

उस बड़े शहर से दूसरे शहर जाने के लिए बस से तकरीबन एक घंटा लगता था. दोनों शहरों के बीच जीटी रोड पर कई कसबे आते थे, जहां बस थोड़ी देर रुक कर फिर चलती थी.इस बड़े शहर से मैं एक प्राइवेट बस में बैठ गया. बस खचाखच भरी हुई थी. बड़े शहर से तकरीबन आधे घंटे की दूरी पर एक मशहूर कसबा आता था. वहां बस 5 मिनट के लिए रुकती थी.

बस रुकी और कुछ मुसाफिर उतरे, तो कुछ चढ़े. भीड़ फिर उतनी की उतनी.ड्राइवर की सीट की पिछली सीट पर बैठी एक औरत ने शोर मचा दिया, ‘‘मेरा पर्स चोरी हो गया है… मेरे पास ही एक औरत खड़ी थी, उस ने ही मेरा पर्स चोरी किया है.’’ड्राइवर ने कहा, ‘‘मैं ने उस औरत को पर्स ले जाते हुए देखा है. मैं उस औरत को पहचानता हूं. वह इस बस में पहले भी आतीजाती रही है. लेकिन अब क्या किया जा सकता है? वह औरत तो पर्स ले कर रफूचक्कर हो गई है.

‘‘बहनजी, आप अपने पर्स का ध्यान नहीं रख सकती थीं क्या? आप के पास 2 बैग और भी हैं. इतना सामान उठाए फिरती हो, चोरी तो होनी ही थी.’’उस औरत ने रोंआसी आवाज में कहा, ‘‘भाई साहब, मैं तो पहले से ही बहुत परेशान हूं. मेरे पोते का आज शाम औपरेशन होना है.

मैं ने इधरउधर के रिश्तेदारों से उधार ले कर औपरेशन के लिए पैसे पूरे किए थे. उस पर्स में 20 हजार रुपए थे. मैं गरीब मारी जाऊंगी. हाय, अब मैं क्या करूं?’’बस के सभी मुसाफिरों की उस औरत के साथ हमदर्दी थी, पर अब किया क्या जाए? कौन दे उस को इतनी बड़ी रकम?बस चल पड़ी और 5 मिनट के बाद अगले चौक पर बस मुसाफिरों को लेने के लिए रुकी.

अचानक ड्राइवर की नजर उस औरत पर जा पड़ी, जिस ने पर्स चोरी किया था. वह पर्स पकड़े सड़क पार कर रही थी.ड्राइवर ने फुरती से उतर कर उस औरत को पकड़ लिया. बस से कई मुसाफिर भी उतर पड़े. चारों ओर शोर मच गया कि चोरनी पकड़ी गई.बस ड्राइवर ने उस औरत को पकड़ कर बस में बैठा लिया और पर्स उस औरत को दे दिया, जिस का था.

सारे रुपए पर्स में ही थे.पर्स वाली औरत ने ड्राइवर का लाखलाख शुक्रिया अदा किया. उस की आंखों में खुशी ?ालकने लगी.ड्राइवर ने बस पुलिस स्टेशन पर ला खड़ी की. मुसाफिर भी तमाशा देखने के लिए नीचे उतर पड़े कि अब इस चोरनी की खूब मरम्मत होगी.ड्राइवर ने उस चोरनी को थानेदार के सामने पेश करते हुए कहा, ‘‘जनाब, इस औरत ने बस में एक औरत का पर्स चोरी किया है,

जो इस से बरामद हुआ है,’’ साथ ही उस ने थानेदार को सारी कहानी सुना दी.थानेदार ने अपनी आंखें टेढ़ी करते हुए उस औरत की ओर ध्यान से देखा और कहा, ‘‘हां, तो तुम ने चोरी की है. इसे उस बरामदे में बैठा दो.’’थानेदार का गुस्सा सातवां आसमान छूने लगा था.

उस ने अपने मोटे पेट की बैल्ट ठीक करते हुए सभी मुसाफिरों को बस में बैठने को कहा. सभी मुसाफिर थानेदार का चढ़ा हुआ गुस्सा देख कर बस में बैठ गए.थानेदार ने पर्स वाली औरत और ड्राइवर को बहुत इतमीनान से सम?ाते हुए कहा, ‘‘देखो, बेवजह कोर्टकचहरी के चक्कर में पड़ोगे, तारीखें भुगतोगे, क्या फायदा? आप का पर्स मिल गया है.

आप के पूरे पैसे मिल गए हैं और क्या लेना आप को?‘‘इस औरत को अपना पर्स ले कर जाने दो. इस बेचारी को अस्पताल पहुंचना है. ‘‘बहनजी, आप जाइए. बैठिए बस में, हम अपनी कार्यवाही कर लेते हैं.’’पर ड्राइवर ने जोर दे कर कहा, ‘‘जनाब, इस इलाके की दूसरी बसों में भी कई चोरियां हुई हैं. इस औरत से कई और चोरियां पकड़ी जा सकती हैं. यह एक पूरा गैंग होगा. आप अर्जी रजिस्टर करें.’’एक शख्स ने कहा, ‘‘गवाही हम देंगे, आप पूरा गैंग पकड़ो.’’आखिरकार जब थानेदार की कोई तरकीब काम नहीं आई, तो वह सम?ा गया कि अब केस रजिस्टर करना ही पड़ेगा.

उस ने ड्राइवर और उस शख्स को थोड़ी दूर ले जा कर सम?ाया, ‘‘देखो यार, हमें भी समाज में जीना है. क्या करें, हमारी भी कई बार मजबूरी होती है.‘‘हमारी भी इज्जत का सवाल है, अर्जी रहने दो… बात यह है कि यह औरत, जिस ने चोरी की है, थाने में रोटी बनाती है. ‘‘छोड़ो, आप को क्या लेना? पूरे पैसे मिल गए न आप को. छोड़ो, अब जाने दो.’’

प्यासी धरती : ब्याहता दीपा का दर्द

‘‘मां, अब बस भी करो. अपने पारस के गुणगान करना बंद करो. बहुत हुआ. मैं ने बता दिया न कि मैं उस के साथ नहीं रह सकती. मुझे वह खुशी नहीं दे सकता, फिर क्या मतलब है उस के साथ रहने का. चलो अब, वरना कोर्ट पहुंचने में देर हो जाएगी,’’ ऐसा कहते हुए दीपा अपनी स्कूटी स्टार्ट करने लगी.

दोनों मांबेटी कोर्ट पहुंच गईं. उधर से पारस की फैमिली भी आई थी, जिस में पारस के साथ उस के मम्मीपापा भी थे. पारस की एक बहन है शालिनी, जो सिंगापुर में रहती है. वैसे, शालिनी की ससुराल जींद, हरियाणा में है, लेकिन वे दोनों पतिपत्नी सिंगापुर में नौकरी करते हैं.

इधर दीपा के पिता का 5-6 साल पहले एक सड़क हादसे में देहांत हो गया था. दीपा का एक भाई है आकाश, जो

8 साल पहले दुबई चला गया था, लेकिन अभी तक नहीं लौटा है… पिता की मौत पर भी नहीं आया.

आकाश कभीकभी वीडियो काल कर लेता है. वहां की एक लड़की से उस ने शादी कर ली है, जो भारत में आ कर रहना तो दूर यहां का नाम भी नहीं सुनना चाहती है, उसे वहीं रहना है. यहां बस दोनों अकेली मांबेटी ही हैं.

4 साल पहले दीपा की शादी पारस के साथ हुई थी. शालिनी और दीपा दोनों सहेलियां थीं. शालिनी को दीपा के घर के हालात पता थे. शालिनी ने ही अपने भाई पारस और दीपा के रिश्ते की बात की थी.

एक साल तक दीपा की मां को कुछ खबर नहीं थी, लेकिन उस के बाद से अकसर दीपा के घर में क्लेश रहने लगा था. रोज थाने और कोर्टकचहरी के चक्कर. कभी दीपा का पति और सासससुर पर मारपीट का इलजाम लगाना, तो कभी दहेज के लिए सताना, कभी खाना न देना, तो कभी ससुर पर बहू को छेड़ने का इलजाम… यहां तक कि एक बार तो दीपा ने पारस पर ड्रग्स इस्तेमाल करने का भी इलजाम लगा दिया था.

इस चक्कर में अकसर पारस थाने में होता था. मातापिता एक केस की जमानत करा कर उसे जेल से छुड़ा कर लाते तो दीपा कोई और केस बनवा देती. पिछले 3 साल से यही सब चल रहा था. आखिरकार दीपा ने तलाक की अर्जी दे ही दी.

आज इस केस का आखिरी फैसला सुनाया जाएगा. न जाने जज साहब क्या फैसला सुनाते हैं? न जाने वे उन दोनों का तलाक मंजूर करते हैं या नहीं? इतने में जज साहब आ गए. सब ओर खामोशी छा गई.

‘‘केस नंबर 788 दीपा और पारस का तलाक, दीपा और पारस कोर्ट में हाजिर हों…’’ एक जोरदार आवाज लगाई गई.

जज ने दीपा से पूछा, ‘‘तो दीपाजी क्या सोचा आप ने? सोचसमझ कर जवाब दीजिए. आप के हाथ में कोई भी ठोस वजह नहीं है तलाक की… और पारसजी, क्या आप भी वही चाहते हैं, जो दीपाजी चाहती हैं?’’

दीपा बोली, ‘‘जी सर, मैं ने सोच लिया है कि मुझे तलाक चाहिए.’’

इधर पारस ने कहा, ‘‘जज साहब, मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं हां कहूं या न, क्योंकि मैं ने दीपा को कभी कोई तकलीफ नहीं दी और न ही मेरे मातापिता ने… फिर भी दीपा ने हम पर ढेरों इलजाम लगा कर अनेक बार हमें जेल भिजवाया है.

‘‘जज साहब, मैं कईकई महीने जेल रह चुका हूं. मैं ने बिना किसी कुसूर के पुलिस की मार खाई है, वह भी दीपा के गलत इलजामों पर, फिर भी दीपा अगर तलाक लेने पर अड़ी है तो जैसी इस की मरजी…’’

जज साहब दोनों की बात सुन कर बोले, ‘‘कोई ठोस वजह न होने के चलते यह अदालत तलाक नामंजूर करती है. अगर किसी के पास तलाक लेने की कोई ठोस वजह हो तो जरूर बताए, तभी उस पर विचार किया जाएगा.’’

लेकिन दीपा को तो तलाक चाहिए था. यह फैसला सुनते ही वह फूटफूट कर रो पड़ी और बोली, ‘‘जज साहब, मेरे साथ नाइंसाफी न करें, मुझे तलाक दिलवा दें. मैं मर जाऊंगी इस तरह. मुझे छुटकारा चाहिए. प्यासी धरती सी मैं इस तरह से बंजर बन जाऊंगी, लेकिन मुझे बंजर जमीन नहीं बनना.’’

दीपा का इस तरह विलाप देख कर सब पसोपेश में थे कि आखिर अब तक कोई ठोस वजह वह सामने नहीं ला रही थी, अब अचानक से किस तरह की बातें कर रही है? ऐसी क्या वजह है, जो वह मरने की बातें कर रही है?

सब के सब हैरान हो कर दीपा को देख रहे थे. आखिर में मां के बहुत कहने पर दीपा ने अपनी कहानी सुनाई…

‘‘मुझे प्यार करने का हक नहीं था, क्योंकि न मेरे सिर पर पिता का साया था और न भाई ही मेरे पास था. पैसे कमाने की धुन भाई को अपनों से दूर ले गई. मुझे अगर किसी लड़के के साथ बात करते हुए भी देखा जाता तो न जाने कितनी बातें बनाते थे समाज वाले… बिन बाप और भाई की जो ठहरी… उस पर गरीबी का तमगा.

‘‘शालिनी बहुत अच्छी दोस्त थी मेरी. उस से मेरे घर के हालात छिपे नहीं थे. उस ने मुझ से पूछा कि क्या मैं उस के भाई से शादी करने के लिए तैयार हूं? तो मैं ने झट से हां बोल दी, क्योंकि मैं जानती थी कि अकेली मां क्याक्या करेंगी मेरे लिए.

‘‘मैं शालिनी की शुक्रगुजार थी कि जिस ने एक सच्चे दोस्त का फर्ज अदा किया. लड़की गरीब हो या अमीर, अरमान सब के दिल में एकजैसे उठते हैं. मेरे दिल में अरमान जगे, मैं ने भी शादी को ले कर अनेक सपने देख डाले, लेकिन मैं नहीं जानती थी कि मेरे सपनों का यह अंजाम होगा.

‘‘शादी की पहली रात मेरे दिल में सौ तरह के खयाल आ रहे थे, जिन्हें सोच कर ही मैं शर्म से लाल हो रही थी, लेकिन पारस जैसे ही कमरे में आए और बत्ती बुझा कर यह कह दिया कि ‘बहुत ज्यादा थक गया हूं, सो जाते हैं…’ मैं हैरान रह गई थी यह सुन कर.

‘‘सोचिए, उस समय मेरे दिल पर क्या बीती होगी. अगले 2-3 दिन पारस करीब तो आए, मगर मुझे भरपूर पति सुख न दे पाए. मैं अभी भी प्यासी ही थी. सहेलियां मुझ से पहली रात का किस्सा सुनाने को कहतीं, जिस पर मेरे मन की ज्वाला और भड़क जाती, लेकिन मैं किसी से कुछ नहीं कह सकती थी.

‘‘इस तरह तकरीबन 6 महीने बीत गए. कभी तो पारस सैक्स कर के थक जाते, लेकिन संतुष्टि न मिल पाती और कभी जब सैक्स की ताकत बढ़ाने की दवा खाते तो शुरू करने से पहले ही पस्त हो जाते.

‘‘इसी बात को ले कर एक दिन मैं शालिनी से झगड़ पड़ी थी, ‘शालिनी, तू तो मेरी सच्ची दोस्त थी. तू ने मुझे धोखे में क्यों रखा?’

‘‘इस पर शालिनी ने कहा था, ‘दीपा, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती. तुम सब्र रखो, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘अब तक सब्र ही तो करती आई थी. कुछ समय बाद हम लोग न्यू ईयर पार्टी में गए. पार्टी में सब एकदूसरे के साथ डांस कर रहे थे. पारस भी अपने दोस्त की पत्नी के साथ और मैं पारस के दोस्त के साथ डांस कर रही थी.

‘‘न जाने उस ने किस जोश से मुझे पकड़ा हुआ था कि मैं अपने जज्बात संभाल न पाई, बह गई और अपनेआप को उस की बांहों के सहारे छोड़ दिया. बेताब हो गई उस के आगोश में समा जाने को. कस कर पकड़ लिया उसे और उस के सीने से चिपक गई.

‘‘वहां पर मौजूद लोग मुझे इस तरह देख कर तरहतरह की बातें करने लगे, जो पारस के कानों तक पहुंचीं और पारस ने आ कर मुझे इतनी जोर से खींचा कि मैं वह दर्द बरदाश्त न कर सकी.

‘‘इस के बाद पारस मुझे कार में ले गए और गुस्सा करने लगे. उस समय मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी और अचानक गुस्से में मेरा भी हाथ पारस के चेहरे पर जा पहुंचा. वे इस थप्पड़ से तिलमिला गए थे.

‘‘इस तरह हमारा अकसर झगड़ा हो जाता था. जब मैं ज्यादा परेशान हो गई, तो एक दिन मैं ने पुलिस में पारस के खिलाफ शिकायत लिखवाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

‘‘लेकिन इसी बीच अकसर सास भी पोतेपोते की रट लगाती थीं और जब ससुरजी भी बारबार ऐसी बातें करते तो मुझे बुरा लगता था. घर के रोजरोज के झगड़ों से परेशान प्यासी धरती सी मैं तड़पती रही. मैं जाऊं तो कहां जाऊं…

‘‘मैं ने अपनी मां को बचपन से ही परेशान देखा था. पापा अकसर मां पर हाथ उठाया करते थे, गंदीगंदी गालियां देते थे. उन के कमरे से आवाजें आती थीं, ‘पूरा मजा भी नहीं देती तो क्या तेरी आरती उतारूं. अब मजा लेने क्या मैं किसी और के पास जाऊं… जब तुझे ब्याह कर लाया हूं तो तेरा ही बदन चाटूंगा न, किसी पड़ोसन का तो नहीं…’

‘‘उस पर मां कहती थीं, ‘अब महीना आया हुआ है तो इस में भला मैं क्या कर सकती हूं… आप भी तो 3-4 दिन सब्र नहीं रखते… भला इन दिनों में कौन करता है…’

‘‘ऐसी बातों को सुन कर और खुद के अरमानों को जलता देख मैं सोचती थी कि अगर औरत पूरा मजा न दे तो भी वही कुसूरवार और अगर मर्द औरत को पूरा मजा न दे तो भी औरत ही पिसे. ऐसा क्यों?’’

दीपा सुबकते हुए अपनी सारी कहानी बयान कर रही थी. सभी चुपचाप सिर झुकाए बैठे थे.

जज साहब कमरे की खामोशी तोड़ते हुए बोले, ‘‘दीपाजी, आप का तलाक मंजूर किया जाता है.’’

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