आर-पार की मोहब्बत: भाग 2

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से चाकू से गला रेत कर लक्की की हत्या की थी. लाश देख कर लोग गुस्से से भर गए. गुस्साए लोग लाश वहीं छोड़ कर आरोपियों के घर की ओर चल दिए. इस बीच मौके की स्थिति को भांप कर किसी ने बहादुरपुर थाने में फोन कर घटना के बारे में जानकारी दे दी थी.

सूचना मिलते ही बहादुरपुर थाने के थानाप्रभारी सनोवर खान फोर्स के साथ अजीमाबाद पहुंच गए जहां लक्की की लाश पड़ी हुई थी. वह घटना की जांच में जुट गए.

आरोपी घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर स्थित सेक्टर-डी, अजीमाबाद कालोनी में रहते थे. गुस्साए लोगों ने आरोपियों के घर पर पत्थरबाजी शुरू कर दी.

यह जानकारी थानाप्रभारी को मिली तो वह घटनास्थल से अजीमाबाद कालोनी पहुंच गए. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की. लेकिन भीड़ नियंत्रित नहीं हो पा रही थी. यह देख उन्होंने उच्चाधिकारियों को सूचित कर दिया.

घटना की सूचना पा कर डीएसपी अमित शरण और एसपी (सिटी पूर्वी) जितेंद्र कुमार बगैर समय गंवाए मौके पर पहुंच गए. फिर फोर्स ने मोर्चा संभाल लिया.

लोगों ने की आगजनी

पुलिस सेक्टर-डी में आक्रोशित लोगों को संभालने में जुटी हुई थी, तभी घटनास्थल से करीब 3 किलोमीटर दूर कुम्हरार बाईपास के पास गुस्साए लोगों की भीड़ भड़क उठी. हत्या से नाराज भीड़ बाईपास पर आगजनी कर बवाल कर रही थी और हत्यारों को फांसी देने तथा मृतक की मां आरती देवी की आर्थिक सहायता करने की मांग कर रही थी.

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धीरेधीरे घटना दंगे का रूप ले रही थी. एसपी जितेंद्र कुमार ने हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए थानाप्रभारी (सुल्तानगंज) शेर सिंह राणा, थानाप्रभारी (आलमगंज) सुधीर कुमार और बीएमपी के जवानों को कुम्हरार बाईपास पर तैनात कर दिया ताकि हिंसा को काबू किया जा सके क्योंकि मामला 2 समुदायों से जुड़ा हुआ था और धीरेधीरे दंगे का रूप ले चुका था.

घंटों चला उपद्रव एसपी जितेंद्र कुमार के आने और समझाने के बाद समाप्त हो सका. एसपी के निर्देश पर डीएसपी अमित शरण ने आरोपी अरमान मलिक, उस की बहन खुशबू और फुफेरे भाई अजहर को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपितों के गिरफ्तार होने के बाद हालात पर काबू पा लिया गया था. गिरफ्तार किए तीनों आरोपितों को थाने ला कर उन से अलगअलग पूछताछ की गई.

पूछताछ के दौरान खुशबू ने सच कबूल लिया. उस ने बताया कि लक्की से उस के प्रेम संबंध थे. लेकिन इन संबंधों की वजह से उसे थाने आना पड़ेगा, इस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

इस के बाद पुलिस ने अरमान और अजहर से पूछताछ की तो लक्की हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

19 वर्षीय अंशु साहनी उर्फ लक्की किंग मूलरूप से पटना के बहादुरपुर थाने के अजीमाबाद संदलपुर का रहने वाला था. 3 भाइयों रीतेश, लक्की और पिशु में वह दूसरे नंबर का था. पिता संजय साहनी की बीमारी से मौत हो चुकी थी.

पिता की मौत के बाद मां आरती देवी ने तीनों बेटों का पालनपोषण किया. आरती देवी का साथ दिया उन के देवर कृष्णदेव साहनी ने, सच्चा सारथी बन कर. भाई की मौत के बाद उन्होंने भाभी को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा. उन की मदद के लिए वह हमेशा तत्पर रहे एक देवर की तरह नहीं, बल्कि एक बेटे की तरह.

रीतेश, लक्की और पिशु तीनों चाचा कृष्णदेव का दिल से सम्मान करते थे. चाचा का एकएक शब्द उन के लिए पत्थर की लकीर होती थी, वह जो कहते थे तीनों उन की बात मानते थे.

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ठाटबाट से रहता था लक्की

तीनों भाई धीरेधीरे बड़े हो चले थे. तीनों भाइयों में से लक्की सब से अलग सोच का था. शरीर से चुस्तदुरुस्त और दिमाग से चंचल लक्की खुद को किसी राजा से कम नहीं समझता था. इसीलिए वह अपने नाम के आगे किंग लगाता था. लक्की औनलाइन कंपनी अमेजन का डिलीवर बौय था.

हालांकि उस का सपना, सिर्फ सपना ही था. सपने को हकीकत में बदलने के लिए ढेर सारे पैसे चाहिए थे जो उस के पास नहीं थे. बड़ा भाई रीतेश मोटर मैकेनिक था, वह खुद डिलीवरी बौय का काम करता था जबकि छोटा भाई पिशु मछली बेचता था.

अपनी कमाई का सारा पैसा वह खुद पर खर्च करता था. अपनी कमाई के पैसे से महंगे और अच्छे कपड़े खरीदना, महंगा मोबाइल फोन रखना, काम से निपटने के बाद दोस्तों के साथ पार्टी करना लक्की की दिनचर्या में शामिल था.

बात करीब एक साल पहले की है. एक दिन अरमान मलिक के नाम से अमेजान कंपनी से एक पार्सल आया. लक्की दोपहर करीब एक बजे डिलीवरी देने अरमान के घर पहुंचा. उस दिन अरमान घर पर नहीं था. वह किसी काम से बाहर गया हुआ था. उस की छोटी बहन खुशबू डिलीवरी लेने घर से बाहर निकली.

16 साल की खुशबू बला की खूबसूरत थी. खुशबू को देख कर वह अपलक उसे निहारता रह गया. उसे देख कर लक्की पहली ही नजर में उस पर लट्टू हो गया था.

खुशबू पार्सल रिसीव कर के बलखाती हुई घर के भीतर चली गई. लक्की उसे निहारता रह गया. रात ड्यूटी से घर लौटने के बाद जब लक्की खाना खाने बैठा तो उस की आंखों के सामने खुशबू की खूबसूरती थिरकने लगी. खाना खातेखाते उस के खयालों में खो गया. दोनों भाई खाना खा कर कब उठ गए, उसे पता ही नहीं चला.

उस रात जब घर के सभी लोग सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए तो लक्की बिना घर वालों को बताए चुपके से रात 12 बजे के करीब अपने जिगरी दोस्त जीतू के घर जा पहुंचा. जीतू किराए का कमरा ले कर अकेला ही रहता था. पूरी रात लक्की उस से खुशबू के बारे में बातें करता रहा.

दिल में बसा ली थी खुशबू

अगले दिन लक्की जब डिलीवरी के लिए सामान ले कर घर से निकला तो वह सीधे ग्राहक के घर न जा कर अरमान के घर के रास्ते हो कर निकला ताकि खुशबू का दीदार हो जाए. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी तो लक्की काम पर निकल गया.

रात में घर लौटते समय भी वह उसी के घर के सामने से हो कर निकला ताकि खुशबू को एक नजर देख सके. लेकिन निराशा ही हाथ लगी. मायूस हो कर लक्की घर लौट आया.

अगले दिन काम पर जाते हुए लक्की फिर उसी के घर के सामने से निकला तो दरवाजे पर खुशबू खड़ी मिल गई. उसे देखते ही लक्की के चेहरे पर खुशी उमड़ पड़ी. उसे देख वह मुसकराता हुआ बाइक से आगे बढ़ गया.

लक्की खुशबू से बात करना चाहता था लेकिन उसे इस का जरिया नहीं मिला. इसी दौरान उसे उस फोन नंबर का ध्यान आया जो खुशबू ने पार्सल रिसीव करते समय लिखा था. उसी फोन नंबर पर बात कर के लक्की खुशबू के करीब पहुंच ही गया.

खुशबू के भी दिल में लक्की के लिए चाहत पैदा होने लगी थी. वह भी लक्की से प्यार करने लगी थी. दो जवां दिलों में एकदूजे के लिए प्यार की इबारत लिखी जा रही थी. मौका मिलने पर वे घर से बाहर भी मुलाकातें करने लगे.

मोहब्बत का इजहार और इकरार करने के बाद दोनों चोरीछिपे यहांवहां मिलते और प्यार की बातें करते. लक्की खुशबू को खुश रखने के लिए खूब पैसे खर्च करता और मंहगे तोहफे देता था.

लक्की से प्यार होने के बाद खुशबू के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. पहली बार घर वालों ने खुशबू के बदले हावभाव देखे तो उन्हें उस पर शक हो गया कि मामला कुछ गड़बड़ है.

उस दिन के बाद से उस का बड़ा भाई अरमान बहन पर नजर रखने लगा. वैसे भी अरमान को कहीं से उड़ती हुई खबर मिल चुकी थी कि खुशबू का किसी अंजान लड़के के साथ चक्कर चल रहा है.

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अरमान ने धमकाया लक्की को

उस दिन के बाद से अरमान बहन के प्रेमी को ढूंढने में जुट गया. आखिरकार अरमान ने एक दिन लक्की को बहन से बातें करते देखा तो उसे धमकाया, ‘‘2 टके के डिलीवरी बौय, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन पर बुरी नजर डालने की. आज के बाद तूने फिर से उस की तरफ नजर उठा कर देखा तो तेरी आंखें निकाल लूंगा.’’

लक्की को धमकाने के बाद अरमान खुशबू को ले कर घर चला गया और लक्की अपने काम पर निकल गया. घर पहुंच कर अरमान ने खुशबू की करतूतें मांबाप से बताईं.

घर वाले बेटी की करतूत जान क र शर्मसार हो गए और उन्हें उस पर गुस्सा भी खूब आया. उन्होंने बेटी पर हाथ भर नहीं उठाया, पर उसे खूब जलील किया.

अगले भाग में पढ़ें-  लिख डाली खूनी इबारत

आर-पार की मोहब्बत: भाग 1

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

अंशू साहनी उर्फ लक्की किंग और खुशबू एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. वे शादी भी करना चाहते थे.

‘‘मांआज खाने में क्याक्या है?’’ किचन में मां आरती देवी से लिपटते हुए बेटे अंशू साहनी उर्फ लक्की ने पूछा.

‘‘तेरे पसंद की मछली करी और भात बनाया है.’’ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए मां ने कहा.

‘‘वाह! मछली करी और भात.’’ कह कर लक्की चहक उठा और लंबी सांसें भरते हुए बोला, ‘‘कढ़ाई में से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है. आज तो खाने में मजा आ जाएगा मां.’’

‘‘पगला कहीं का, ऐसा क्यों कह रहा है जैसे आज के पहले तूने कभी मछली करी और भात खाया ही नहीं.’’

‘‘नहीं, मां. बस ऐसे ही… अब तो खाना परोस दो. बड़े जोरों की भूख लगी है.’’ पेट पर हाथ फेरते हुए लक्की बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है, हाथमुंह धो कर कमरे में बैठो, तब तक मैं खाना परोस कर लाती हूं.’’ कह कर आरती देवी ने 3 कटोरीदार थालियां निकालीं.

तीनों थालियों में खाना परोस कर कमरे में ले गईं, जहां लक्की के साथसाथ उस के 2 भाई रीतेश और पिशु बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे.

खाना खाने के बाद लक्की अपने कमरे में सोने चला गया और दोनों भाई भी वहीं कमरे में चौकी पर ही सो गए. उस के बाद आरती भी अपने कमरे में सोने चली गईं. उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. ये बात 12 दिसंबर, 2020 की थी.

रोजमर्रा की तरह अगली सुबह भी आरती देवी करीब 6 बजे उठ गईं. रोज की तरह वह मझले बेटे लक्की के कमरे में झाड़ू लगाने पहुंचीं तो देखा लक्की अपने बिस्तर पर नहीं था.

यह देख कर उन्हें बड़ा अजीब लगा कि इतनी सुबह वह कहां गया होगा? जबकि वह इतनी जल्दी सो कर उठता ही नहीं था. तभी उन्हें याद आया कि वह अकसर बिना किसी को बताए अपने दोस्त जीतू के यहां चला जाता था सोने के लिए. हो सकता है बिना बताए रात वहीं सोने चला गया हो. यह सोच कर आरती देवी लापरवाह हो गईं और अपने कामों में जुट गईं.

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घर की साफसफाई से जब वह फारिग हुईं और दीवार घड़ी पर नजर डाली तो घड़ी में 8 बज रहे थे. पता नहीं क्यों लक्की को ले कर उस के मन में एक संशय सा उठ रहा था.

आरती के दोनों बेटे रीतेश और पिशु भी सो कर उठ चुके थे. बेटों के उठते ही आरती ने बड़े बेटे रीतेश से कहा, ‘‘देखो न, लक्की अपने कमरे में नहीं है. उस का फोन भी बंद आ रहा है. पता नहीं क्यों उसे ले कर मेरे मन में अजीब सा कुछ हो रहा है. देखो न कहां है?’’

‘‘मां, उसे ले कर तुम खामखा परेशान हो रही हो, उस की आदत को तरह जानती तो हो कि कितना लापरवाह है. कितनी बार बिना बताए घर से चला जाता है. और तो और अपना फोन भी बंद रखता है. कहांकहां तलाशता फिरूं? आ जाएगा घर. तुम उस की फिक्र मत करो.’’ रीतेश बोला.

आरती देवी समझ रही थीं कि रीतेश जो कह रहा है वह सच है. क्योंकि लक्की कई बार ऐसा कर चुका था. इसलिए घर वाले यही सोच कर निश्ंिचत हो गए कि लक्की रात भी वहीं गया होगा.

घड़ी में 9 बज गए, उस का फोन अभी भी बंद आ रहा था और वह घर भी नहीं लौटा तो आरती परेशान हो गई और रीतेश को उस के बारे में पता करने को कहा. मां को परेशान देख रीतेश ने लक्की के फोन पर काल की लेकिन फोन बंद था.

यह देख कर रीतेश भी परेशान हो गया. उस ने लक्की के दोस्त जीतू को फोन कर के लक्की के बारे में पूछा तो जीतेश ने बताया कि लक्की तो उस के पास आया ही नहीं था. जीतू की बात सुन रीतेश के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

उस ने जीतू से पूछा, ‘‘अगर लक्की तुम्हारे पास नहीं आया तो वह कहां गया?’’

‘‘मुझे नहीं पता वह कहां गया भैया,’’ जीतू ने सामान्य तरीके से जबाव दिया, ‘‘यहां आया होता तो मैं जरूर बताता. मैं और दोस्तों को फोन कर के पता करता हूं कि वह कहीं किसी और के पास तो नहीं रुका है?’’

‘‘ठीक, जल्द पता कर के बताओ तब तक मैं उसे तलाशता हूं.’’ कह कर रीतेश ने फोन काट दिया.

रीतेश ने मां को लक्की के जीतू के घर न पहुंचने की बात बताई. तब वह और ज्यादा परेशान हो गईं और उन्होंने उसे उस का पता लगाने के लिए भेज दिया.

रीतेश सीधा अपने चाचा कृष्णदेव साहनी के घर पहुंच गया. उस के चाचा 2 घर छोड़ कर अपने परिवार के साथ नए घर में रहते थे. उस ने चाचा से पूरी बात बता दी.

लक्की के गायब होने की बात सुन कर कृष्णदेव भी चौंके. लक्की की खोज में वह उस के साथ हो लिए. चाचाभतीजा घर से जैसे ही थोड़ी दूर पहुंचे तभी मछली बेचने वाले कुछ दुकानदार उन के पास पहुंचे और उन्होंने जो बताया उसे सुन कर दोनों के होश उड़ गए.

दुखद खबर से उड़े होश

दरअसल, पिशु की वजह से मछली दुकानदार उन्हें अच्छी तरह पहचानते थे. पिशु भी मछली बेचने का धंधा करता था. बहरहाल, दुकानदारों ने बताया कि इसी इलाके की अजीमाबाद सड़क के किनारे लक्की की खून सनी लाश पड़ी है. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी है.

भाई की हत्या की बात सुनते ही रीतेश एकदम से बदहवास सा हो गया. ऐसा लगा जैसे गश खा कर वहीं गिर जाएगा. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? बदहवास और दौड़ता हुआ वह उस जगह पहुंचा, जहां लक्की की लाश पड़ी थी.

खून से सनी लक्की की लाश देख कर रीतेश दहाड़ मार कर रोने लगा. चाचा कृष्णदेव साहनी भी भावुक हो काठ बन गए थे. जैसे काटो तो खून नहीं. इन्होंने भतीजे को संभालते हुए जमीन पर बैठा दिया. थोड़ी देर में लक्की की हत्या की खबर घर तक पहुंच गई.

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बेटे की हत्या की खबर मिलते ही आरती देवी गश खा कर गिर पड़ीं. घर में मौजूद पिशु ने मां को संभाला. भाई की मौत की खबर सुन कर वह भी हतप्रभ था. देखते ही देखते लक्की की मौत की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई थी.

मोहल्ले के सैकड़ों लोग आरती के घर के बाहर जमा हो गए. आरती और उन के दोनों बेटों को शक था कि लक्की की हत्या फिरोज मलिक और उस के घरवालों ने ही की होगी. यह बात आरती ने मोहल्ले वालों को भी बता दी.

इंतकाम की आग में जलते हुए मोहल्ले के लोग घटनास्थल पहुंच गए थे.

अगले भाग में पढ़ेंअरमान ने धमकाया लक्की को

आर-पार की मोहब्बत: भाग 3

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

मां ने उसे समझाया, ‘‘बेटी, जो किया सो किया. कम से कम घर की इज्जत तो बाजार में मत उछाल. तू पढ़लिख. वक्त आने पर तेरे अब्बू अच्छा लड़का देख कर तेरा निकाह धूमधाम से कर देंगे. तू ऐसे छिछोरों के साथ गलबहियां जोड़ कर घर की इज्जत मत बेच. समझी.’’

सिर झुकाए खुशबू मां की बातें चुपचाप सुन रही थी. उस समय उस ने मां से झूठ बोल कर मामला वहीं खत्म कर दिया और वादा किया कि अब वह लक्की से कभी नहीं मिलेगी और न ही बात करेगी.

बेटी के किए वादे पर उन्हें यकीन हो गया था कि अब वह कोई ऐसी हरकत नहीं करेगी, जिस से घर वालों को शर्मिंदा होना पड़े.

पर बात यहीं खत्म नहीं हुई. अरमान ने फुफेरे भाई अजहर के साथ मिल कर लक्की के घर का पता लगा लिया था. एक दिन वह उस के घर पहुंच गया. उस ने उस की मां को धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘आंटी, तू अपने बेटे लक्की को समझा देना, वह मेरी बहन से दूर ही रहे तो उस के लिए अच्छा है, नहीं तो इस का नतीजा बहुत बुरा होगा.’’

अरमान और अजहर चले गए. लेकिन आरती देवी एकदम से सन्न रह गई थीं. बेटे को ले कर उन्हें चिंता सताने लगी थी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच न हो जाए. वह लक्की के घर लौटने की राह देखने लगी.

रात में जब लक्की ड्यूटी से घर लौटा तो खाना खिलाने के बाद मां ने उसे समझाया और बताया कि दूसरों की इज्जत से खेलने का अंजाम बहुत बुरा होता है. तू संभल जा बेटा. आज 2 लड़के घर आ कर मुझे धमका गए हैं.

बेटा, मेरे जीने का तुम्हीं सब सहारा हो, अगर तुम्हें कुछ हुआ तो मैं किस के सहारे जीऊंगी? मेरी बात मान बेटा, तू उस लड़की का चक्कर छोड़ कर अपने काम में मन लगा. समय आने पर अच्छी लड़की देख कर तेरी शादी करा दूंगी.

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मां की बात सुन कर लक्की सकपका गया कि उस के प्यार का राज खुल गया है. वह उलटा मां को ही समझाने लगा, ‘‘मां, खुशबू बहुत अच्छी लड़की है. मैं उसे बहुत प्यार करता हूं, वह भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, मां. हमें बस तुम्हारे आशीर्वाद की जरूरत है.’’

लक्की मां के सामने फिल्मी डायलौग मारने लगा. बेटे की बात आरती को तनिक भी अच्छी नहीं लगी. तभी उस ने उस के कान के नीचे एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद किया. वह तिलमिला कर रह गया. आरती को बेटे की चिंता सताने लगी थी क्योंकि उन्होंने उन दोनों लड़कों के तेवर देखे थे. कितने गुस्से में थे वे.

फिलहाल मां के समझाने का लक्की पर कोई असर नहीं हुआ. वह खुशबू से अब भी छिपछिप कर मिल रहा था. लक्की के बिना जी पाना खुशबू के लिए भी मुश्किल होता जा रहा था. दोनों ने फैसला किया कि चाहे जो कुछ हो जाए, वे कभी जुदा नहीं होंगे. जमाने से लड़ कर अपने प्यार को हासिल करेंगे.

इधर, भले ही खुशबू मांबाप को यकीन दिलाने में कामयाब हो गई थी लेकिन भाई अरमान की नजर बहन पर ही टिकी थी. उसे पता चल गया था कि खुशबू मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर छिपछिप कर लक्की से मिलती है. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लान ने जन्म लिया. उस ने अपनी योजना में फुफेरे भाई अजहर को भी शामिल कर लिया था.

लिख डाली खूनी इबारत

अजहर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह बहादुरपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. अजहर के षडयंत्र में शामिल होने से अरमान को बल मिल गया था.

योजना को अंजाम देने के लिए अरमान और अजहर ने खुशबू को धमका कर अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया था. क्योंकि खुशबू के बिना उन की यह योजना पूरी नहीं हो सकती थी.

प्लान के मुताबिक 12/13 दिसंबर, 2020 की रात एक बजे खुशबू ने लक्की को फोन किया और उसे मिलने के लिए उसी समय घर के पीछे बुलाया. खुशबू का फोन आते ही लक्की कपड़े पहन कर मोबाइल साथ ले कर चुपके से घर से निकल गया. उस समय घर के सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे. वह घर से थोड़ी दूर पहुंचा तो रास्ते में उसे अरमान और अजहर मिल गए.

दोनों को देखते ही लक्की समझ गया था कि खुशबू ने धोखे से उसे यहां बुलाया है. इन से बचना कठिन है.

वह खतरे को भांप चुका था. जैसे ही उस ने वहां से भागने की कोशिश की दोनों ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया. कसरती बदन वाले अजहर ने अपना मजबूत हाथ लक्की के मुंह पर रख दिया ताकि वह चिल्ला न सके. उस के हाथों के दबाव से लक्की की आवाज गले में घुट कर रह गई.

तब तक दोनों ने उसे जमीन पर पटक दिया. अरमान ने लक्की के दोनों पैर पकड़ लिए. अजहर ने कमर में खोंसा धारदार चाकू निकाला और लक्की का गला रेत दिया. थोड़ी देर में लक्की की मौत हो गई. इतने पर भी उसे यकीन नहीं हुआ तो उस के सीने पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए. फिर दोनों वहां से फरार हो गए और साथ में उस का फोन भी ले गए.

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भागते हुए उन्होंने खून से सना चाकू झाड़ी में फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक कभी न पहुंच पाए. लेकिन कातिल कितना ही चालाक क्यों न हो, कानून की गिरफ्त से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकता.

मृतक की मां आरती देवी की नामजद तहरीर पर लक्की की हत्या के आरोप में पुलिस ने खुशबू, अरमान मलिक और अजहर को गिरफ्तार कर लिया. आरती देवी ने अरमान के पिता फिरोज मलिक को भी नामजद किया था, लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद वह घर से फरार हो गया था.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर लक्की की हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. कथा लिखे जाने तक 3 आरोपी जेल में बंद थे.

काश! लक्की ने अपनी मां का कहना मान लिया होता तो आज वह जिंदा रहता.

—कथा में खुशबू परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime- नाजायज शराब: ‘कंजर व्हिस्की’ पीना है रिस्की

आखिरकार 4 फरवरी  2021 को पुलिस यह उजागर करने में कामयाब हुई कि मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से 13 गांवों के 28 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन इसके जिम्मेदार कौन-कौन लोग हैं?

गौरतलब है कि जनवरी, 2021 के तीसरे हफ्ते में मुरैना में जहरीली शराब पीने से सिलसिलेवार हुई इन मौतों पर खासा हाहाकार मचा था. नतीजतन, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 20 जनवरी, 2021 को सख्त तेवर दिखाते हुए सरकारी अफसरों के कान एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरीए उमेठते हुए हिदायत दी थी कि नाजायज शराब के इस कारोबार को जैसे भी हो खत्म किया जाए और आइंदा अगर नाजायज शराब से राज्य में मौतें हुईं, तो सीधे तौर पर कलक्टर समेत पुलिस और आबकारी महकमों के अफसर इसके जिम्मेदार होंगे.

इस फटकार के बाद राज्य में हड़कंप मच गया और जगह-जगह मारे गए छापों में नशे के कारोबार में लगे कई लोग गिरफ्तार किए गए. रायसेन जिले के सुलतानपुर थाना इलाके के गांव सेमरा कलां में पुलिस टीम पहुंची, तो वहां सन्नाटा पसरा था, क्योंकि छापेमारी की खबर नाजायज शराब बनाने और बेचने वालों को पहले ही न जाने कौन से जादू के जोर से लग चुकी थी. पुलिस के हाथ तकरीबन 5,500 लिटर लहान यानी गुड़ का घोल लगा जो शराब बनाने में इफरात से इस्तेमाल होता है.

2 फरवरी 2021 को भोपाल से महज 30 किलोमीटर दूर तरावली और करारिया गांवों से रिकौर्ड 21,000 लिटर महुए का घोल पुलिस वालों ने जब्त किया था, जिसे ड्रमों में भर कर जमीन में गाड़ कर रखा गया था. एक दूसरी बड़ी कार्यवाही में पुलिस ने इंदौर के तकरीबन आधा दर्जन ढाबे ढहा दिए जहां नाजायज शराब बिकती थी.

इसके पहले मुरैना के ही सेंवढ़ा कसबे से सटे गांव मुबराकपुरा में भी पुलिस ने छापा मार कर हजारों लिटर कच्ची शराब नष्ट की थी. यह गांव मुरैना से तकरीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर है. 2 फरवरी, 2021 को ही निमाड़ इलाके के धार जिले के नाजायज शराब बनाने के लिए बदनाम 2 गांवों छोटी बूटी और बड़ी बूटी के छापेमारी में पुलिस ने 40,000 लिटर से भी ज्यादा महुआ का घोल बरामद किया था. इन गांवों में लगी शराब की 200 भट्ठियां तोड़ते हुए पुलिस ने 550 लिटर शराब भी जब्त की थी. ये दोनों गांव इंदौर मुंबई हाईवे पर 10 किलोमीटर में बसे हुए हैं.

निमाड़ इलाके के ही शहरों सनावद, बड़वाह, महेश्वर और कसरावद के कई गांवों में छापा मार कर पुलिस और आबकारी महकमे ने 4,000 लिटर महुए का घोल नष्ट किया था और 60 लिटर भट्ठी की बनी नाजायज शराब भी जब्त की थी.

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ग्वालियर के नजदीक डबरा के एक छापेमारी में 50 लाख रुपए की कीमत की कच्ची शराब और गुड़ का घोल जब्त किया गया था. महाकौशल इलाके के जबलपुर में भी 100 लिटर कच्ची शराब और उस से दोगुनी तादाद में घोल जब्त किया गया था. विंध्य इलाके के रीवा जिले के डिहिया गांव में 650 लिटर महुए का घोल, 50 किलोग्राम यूरिया और भारी तादाद में कच्ची शराब बरामद की गई थी. यहां तो शराब माफिया के हौसले इतने बुलंद थे कि उस ने पुलिस टीम पर हमला कर के 5 पुलिस वाले घायल कर दिए थे.

छापे हैं छापों का क्या

ऐसे कई छापे मुरैना के हादसे के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बिगड़े मूड के चलते राज्य के हर इलाके में पड़े, लेकिन इन से नाजायज शराब की समस्या हल हो गई या हल हो जाएगी, ऐसा कहने की कोई ठोस वजह नहीं है, क्योंकि नकली शराब का कारोबार असली शराब के मुकाबले कहीं ज्यादा और बड़ा है. फर्क इतना भर है कि असली यानी लाइसेंसी शराब फैक्टरियों और कारखानों में बनती है, जबकि नाजायज शराब कोने-कोने में खासतौर से देहाती और उस में भी आदिवासी इलाकों में ज्यादा बन रही होती है. ऐसा भी नहीं है कि इन छापों से नाजायज शराब के कारोबार पर बहुत ज्यादा फर्क पड़ा हो.

भोपाल के शिवाजी नगर में बने आबकारी महकमे के एक मुलाजिम की मानें तो यह चंद दिनों का तमाशा है जो अभी कुछ दिनों तक और चलेगा, क्योंकि होली का त्योहार नजदीक है और उन दिनों में शराब की मांग और खपत ज्यादा रहती है. मुरैना जैसे कोई किरकिरी कराने वाले हादसे का दोहराव न हो, इसलिए ये छापे जारी रहेंगे.

इस मुलाजिम के मुताबिक नाजायज शराब, जो ‘कंजर व्हिस्की’ के नाम से मशहूर हो गई है, का बाजार जायज शराब से कमतर नहीं आंका जा सकता.

क्या है ‘कंजर व्हिस्की’

कंजर एक घुमक्कड़ जाति है जो सुनसान इलाकों में बस जाती है.  आजादी के पहले इस जाति के लोग आमतौर पर लुटेरे माने जाते थे. अंगरेजी हुकूमत में तो इसे बाकायदा अपराधी जाति घोषित कर दिया गया था.

कंजर शराब के धंधे में कैसे आए, इस के लिए इस जाति के गुजरे कल पर नजर डालें तो कई दिलचस्प बातें उजागर होती हैं. चूंकि ये लोग जंगलों में रहते थे, इसलिए कभी इन्हें समाज ने अपनाया नहीं, उलटे इन की हर लैवल पर अनदेखी हुई. इस जाति की औरतें ही घर की मुखिया होती हैं और गुजरबसर करने के लिए वे देह धंधा भी करती थीं, जिसे कंजर बुरा या गलत नहीं मानते. शादी के पहले लड़कियों को अपनी मरजी से कहीं भी किसी से भी सैक्स ताल्लुकात बनाने की आजादी है, लेकिन शादी के बाद नहीं होती, क्योंकि पति तयशुदा रकम दे कर शादी करता है.

बदलते वक्त के साथसाथ कंजर समाज के तौरतरीकों और रहनसहन में भी बदलाव आए, लेकिन इन्हें सभ्य समाज ने कभी बराबरी का दर्जा नहीं दिया. आजादी के बाद इस जाति के लोग यहांवहां भटकते हुए जैसेतैसे गुजरबसर करने लगे, लेकिन लूटपाट और जिस्मफरोशी से पूरी तरह किनारा नहीं कर पाए, लिहाजा आज भी ये बदनाम हैं. इन के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते और जो थोड़ेबहुत जाते भी हैं, वे 5वीं या 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. इन के भले के लिए वक्त-वक्त पर सरकारी योजनाएं बनीं, लेकिन सरकारी अफसरों के निकम्मेपन, लापरवाही और अनदेखी के चलते वे भी इन का कोई भला नहीं कर पाईं.

लिहाजा, 30 साल पहले इस समाज के बहुत से लोग पूरी तरह शराब के धंधे में आ गए, क्योंकि खुद पियक्कड़ होने के चलते ये देशी शराब बनाने में माहिर होते हैं. शुरू-शुरू में ये नकली या नाजायज शराब नहीं बनाते थे, लेकिन बाद में मुनाफे के लालच में बनाने लगे. यह वह दौर था जब शराब लगातार महंगी हो रही थी और गांव-देहात के बाशिंदों की पहुंच से बाहर होने लगी थी. इनकी बनाई शराब लाइसेंस वाले ठेकों और दुकानों पर मिलने वाली शराब से बहुत सस्ती होती है, इसलिए उसकी मांग बढ़ने लगी, देखते ही देखते इन की और दूसरों की भी बनाई गई नाजायज शराब ‘कंजर व्हिस्की’ के नाम से मशहूर हो गई. यह नाम पियक्कड़ों और आबकारी महकमे ने ही दिया. देशी शराब का जो क्वार्टर या पौआ सरकारी ठेके पर 80 रुपए में मिलता है उसे ये 40 रुपए में मुहैया कराते हैं.

ऐसे बनती है कंजर व्हिस्की

नाजायज शराब बनाना कोई मुश्किल या टैक्निकल काम नहीं है, इसलिए इसे आसानी से बना लिया जाता है. पूरे देश के आदिवासी कच्ची शराब खुद बनाते हैं और इस बाबत उन्हें कानूनन छूट भी मिली हुई है. यह शराब महुए और गुड़ के लहन यानी घोल से भट्ठी पर बनाई जाती है. इस तरीके से बनाई गई शराब के एक पौआ यानी 180 मिलीलिटर शराब बाजार में 40 रुपए से 60 रुपए में बिकती है, जो सरकारी शराब से काफी सस्ती होती है.

भट्ठी में यह घोल गरम होता है तो एक नली के जरीए निकली भाप को बरतन में इकट्ठा कर लिया जाता है. इसे शराब उतारना कहा जाता है. यह देशी या कच्ची शराब जहरीली नहीं होती, लेकिन एल्कोहल की मात्रा ज्यादा होने से इस से नशा अंगरेजी शराब से ज्यादा होता है. आदिवासी और गैरआदिवासी इलाकों में हर कहीं ये भट्ठियां दिखना आम बात है.

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गड़बड़ तब शुरू होती है जब इस घोल में जानलेवा और खतरनाक कैमिकल मिलाए जाने लगते हैं. इन में यूरिया, नौसादर और आक्सीटोसिन खास हैं. इस के अलावा कच्ची शराब को और नशीला बनाने इस में धतूरा, बेशरम पेड़ की पत्तियां, सड़े संतरे व अंगूर और कुत्ते का शौच यानी मल भी मिलाया जाता है.

यह तो हर कोई जानता है कि शराब कोई सी भी हो उस में इथाइल एल्कोहल होता है. अंगरेजी शराब यानी व्हिस्की में इस की मौजूदगी 40 से 68 फीसदी तक होती है. यह तादाद जानलेवा नहीं होती और 2-3 पैग यानी 180 मिलीलिटर में पीने वाला मानो नशे में उड़ने लगता है.

कच्ची शराब में भी यही होता है लेकिन जब इस में ऊपर बताए कैमिकल मिला दिए जाते हैं, तो यह जहर हो जाती है, क्योंकि इस में रासायनिक क्रियाओं से जहर बन जाता है जो बेहद घातक साबित होता है. मिथाइल एल्कोहल के पेट में पहुंचते ही नुकसानदेह रासायनिक क्रियाएं तेज होने लगती हैं और चंद मिनटों में ही शरीर के अंदरूनी हिस्से काम करना बंद कर देते हैं.  फेफड़ों, जिगर, गुरदे और आंतों को मिथाइल अल्कोहल एक तरह से जला डालता है. इसका सीधा असर दिमाग और नर्वस सिस्टम पर भी होता है, जिससे लोग अंधे तक हो जाते हैं. जब भी जहरीली शराब से लोग मरते हैं तो कइयों के अंधे होने की खबर भी जरूर आती है.

मध्य प्रदेश में जहां-जहां बड़े छापे पड़े वहां-वहां भारी तादाद में आक्सीटोसिन और यूरिया भी मिला. इन केमिकलों को कच्ची शराब में मिलाने से शराब सस्ती भी पड़ती है और नशा भी ज्यादा होता है, लेकिन शामत पीने वालों की होती है.

कंजरों को आक्सीटोसिन, यूरिया और बाकी दूसरे आइटम तो आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन मिथाइल एल्कोहल मिलने में मुश्किल होती है. मुरैना के आरोपियों के पकड़े जाने के बाद यह खुलासा हुआ था कि उन्होंने ज्यादा मुनाफे के लालच में कच्ची शराब में मिथाइल एल्कोहल मिलाया था. इस का 200 लिटर का ड्रम 25,000 रुपए में मिलता है, लेकिन आगरा के एक कारोबारी अंतराम शर्मा ने मिलावटियों को 5 ड्रम महज 30,000 रुपए में मुहैया कराए थे जिस से उन के 95,000 रुपए बच गए थे. इस लिहाज से देखें तो जहरीली शराब से मरने वाले 28 लोगों की जिंदगी की कीमत 3,392 रुपए एक आदमी की बैठती है. यह जहर कास्मेटिक आइटम बनाने के नाम पर खरीदा गया था.

मुख्य आरोपियों मुकेश किरार, राहुल शर्मा और खुशीराम ने इस जहरीली शराब को चखा भी नहीं था. जाहिर है कि इस का अंजाम उन्हें मालूम था. अब यह कह पाना मुश्किल है कि न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर के नाजायज शराब बनाने वालों को यह मिथाइल एल्कोहल मिलता कहां से है, पर यह साफ दिख रहा है कि इस की खुदरा सप्लाई गांव-गांव तक है.

और ऐसे बिकती है

डबरा के छापों से यह उजागर हुआ था कि नाजायज यानी ‘कंजर व्हिस्की’ बनाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन इसे बेचना उस से ज्यादा आसान काम है. कंजर बाहुल्य इलाकों में औरतें और बच्चें व्हिस्की के पाउच और बोतलें हर कहीं बेचते दिख जाते हैं. मध्य प्रदेश के भिंड, मुरैना, गुना, शिवपुरी और डबरा सहित दतिया जिले में तो औसतन हर 10 किलोमीटर पर टोकनियों में औरतें सड़क किनारे भाजीतरकारी की तरह इस की बिक्री करते दिख जाती हैं. इस के अलावा छोटे होटल और ढाबों पर भी ‘कंजर व्हिस्की’ की सप्लाई होती है.

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लौकडाउन के दिनों में जब पियक्कड़ों को शराब के लाले पड़े थे तब नाजायज शराब इफरात से बिकी थी. पीने वाले अपनी गाड़ियां ले कर गांवदेहातों की तरफ दौड़ते नजर आए थे.

ट्रक ड्राइवर, गरीब मजदूर और किसान सस्ते के चक्कर में बिना जान की परवाह किए यह जहरीली शराब खरीदते हैं और पीते भी जम कर हैं, लेकिन जब जहर अपना असर दिखाता है तो  इन के बचने की गुंजाइश न के बराबर रह जाती है और जो बच जाते हैं, वे जिंदगीभर देख नहीं पाते हैं.

नाजायज शराब बेचने वाली एक औरत दिनभर में 3,000 से 4,000 रुपए कमा लेती है, जब कि इस की लागत 300 से 400 रुपए ही बैठती है. इन के मर्द सुबह 8 से ले कर दोपहर कर 12 बजे तक शराब बनाते हैं और उस की पैकिंग कर औरतों को सड़कों पर मोटरसाइकिल से छोड़ देते हैं और फिर चारों तरफ घूम-घूम कर निगरानी करते रहते हैं. इन्हें जरा सा भी खतरा दिखता है तो ये मोबाइल के जरिए औरतों को आगाह कर देते हैं जिससे वे छिप जाती हैं.

इंदौर के एक सब इंस्पेक्टर की मानें तो इन कंजरों का मुखबिर सिस्टम पुलिस से कहीं ज्यादा पुख्ता और मजबूत होता है. इन के लोग गांव के बाहर 15-20 किलोमीटर तक तैनात रहते हैं.  छापों की खबर इन्हें पहले ही लग जाती है, लिहाजा ये गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं और पुलिस के हत्थे भट्ठी और घोल ही आता है.

कंजरों के उन गांवों में जहां पूरे घर शराब बनाने का धंधा करते हैं वहां 2-4 की तादाद में पैर रखने की हिम्मत पुलिस वाले नहीं करते हैं, क्योंकि ये लोग हमला कर उन्हें खदेड़ देते हैं, इसलिए हालिया छापों की मुहिम में 40 से ले कर 100 पुलिस वालों की टीमें बनाई गई थीं, पर इस के बाद भी धंधा बदस्तूर और बेखौफ जारी है. पुलिस के जाते ही जंगलों में छिपे आरोपी फिर से आ कर शराब बनाना शुरू कर देते हैं.

तो फिर हल क्या

भारी मुनाफे का धंधा नाजायज शराब के कारोबारी कुछ छापों के खौफ से छोड़ेंगे, ऐसा लग नहीं रहा, क्योंकि ऐसी कई मुहिम पहले भी जोरशोर से परवान चढ़ दम तोड़ चुकीं हैं, तो फिर इस समस्या का हल क्या है जिस से देशभर में हजारों लोग हर साल बेमौत मारे जाते हैं. इस सवाल का जवाब किसी मुख्यमंत्री या अफसर के पास नही है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में भी ‘कंजर व्हिस्की’ इसी या किसी और नाम से मध्य प्रदेश की तरह ही धड़ल्ले से बिक रही है. पकड़-धकड़ की मुहिम भी हर राज्य में चल रही है, लेकिन नतीजा हमेशा ढाक के तीन पात ही निकलता है.

नाम न छापने की शर्त पर भोपाल के एक आबकारी अफसर का कहना है कि सस्ती शराब जब ज्यादा बिकने लगती है, तो नुकसान बड़े शराब निर्माताओं का होता है, इसलिए वे हम और पुलिस महकमे पर सियासी दबाव डलवाते हैं, जिस से हम लोग छापे मारने लगते हैं. लेकिन अमला कम होने से बारह महीने ऐसी मुहिम नहीं चलाई जा सकती, इसलिए फिर से नाजायज और जहरीली शराब का कारोबार जोर पकड़ने लगता है. मुरैना जैसा कोई हादसा होता है तो हल्ला और मचता है जिस से कुछ छोटी मछलियां पकड़ में आ जाती हैं.

यह भी हकीकत है कि शराब का महंगा होते रहना सस्ती शराब के चलन को बढ़ावा देता है. सरकार अगर शराब सस्ती करे तो उस का ही नुकसान होता है. ऐसे में बेहतर तो यही लगता है कि वह नाजायज शराब के कारोबार को जायज बनाने के रास्तों पर गौर करे. अगर बड़े शराब निर्माता कच्ची शराब वाजिब दाम पर खरीद कर उसे अपने प्लांट में वैज्ञानिक तरीके से बनाएं तो एक हद तक समस्या हल हो सकती है नहीं तो ‘कंजर व्हिस्की’ जानलेवा होने के बाद भी बिकती रहेगी, क्योंकि इसे बनाने वालों को कोई और काम आता और भाता ही नहीं.

शराब पीने के आदी हो गए लोगों को भी हादसों से सबक लेते हुए नाजायज शराब खरीदने और पीने से बचना चाहिए. यह सस्ती जरूर है, लेकिन रिस्की भी कम नहीं.

Crime- चैनलों की चकमक: करोड़ों की अनोखी ठगी

चैनलों के डिसटीब्यूशन से करोड़ों रुपए की कमाई का मायाजाल दिखाकर, दूर नोएडा में बैठ छत्तीसगढ़ की एक महिला के साथ बड़े ही आसानी से करोड़ों की ठगी हो गई.
ठगी की यह अपने आप में एक बेमिसाल कहानी है जो आपको बताती है कि ठग और ठगी का स्वरूप कितना विस्तार लिए हुए होता है. थोड़ी सी भी नादानी और लापरवाही आपको आपके बेशकीमती धन से महरूम कर सकती है.
आज छत्तीसगढ़ की राजधानी में घटित ऐसी ही एक घटना सुर्ख़ियों का सबब बनी हुई है. दरअसल हुआ यह कि रिलायंस बिग टीवी और टेक्नोलॉजी इंडिपेंट टीवी के डायरेक्टर विवेक प्रकाश को राजधानी की पुलिस ने गिरफ्तार किया है. रायपुर गुढ़ियारी की रहने वाली प्रीति मुंदड़ा पुलिस के पास पहुंची और शिकायत बताया कि किस तरह उसके साथ 1-2 करोड़ नहीं बल्कि 16 करोड़ों रुपए की ठगी हुई है.

पुलिस ने इस पर मामला दर्ज किया और जांच-पड़ताल प्रारंभ हो गई  पुलिस ने कथित रूप से आरोपी नोएडा से पकड़ा है. प्रीति ने अपनी शिकायत में कहा कि आरोपी ने उन्हें छत्तीसगढ़ जोनल डिस्ट्रीब्यूटर बनाने का झांसा देकर 16 करोड़ की ठगी की है.

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प्रीति ने पेंटल टेक्नोलॉजी इंडिपेन्टेड टीवी कंपनी के हेड अतुल मिश्रा, विवेक प्रकाश और अजय राठौर सहित कई डायरेक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई . प्रीति के अनुसार  उनको प्रलोभन दिया गया था कि 500 चैनलों का प्रकाशन और पूरे प्रदेश में रिटेलर रूप में लाखों रुपए कमीशन मिलेगा. आरोपियों ने अलग-अलग बैंक खातों में 16 करोड़ रूपये जमा करा लिए बाद में उन्हें अहसास हुआ  की उसके साथ ठगी हो गयी है. पुलिस के अनुसार ऐसे ही देश भर के हजारों लोगों को ठगा  गया है.

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घटना के बाद रायपुर पुलिस से उपनिरीक्षक सेराज खान के नेतृत्व में 4 सदस्यीय टीम बनाकर नोएडा भेजी गई जहां विवेक प्रकाश को गिरफ्तार कर ट्रांजिट रिमाण्ड पर रायपुर कार्रवाई की जा रही है.

कैसे “फांसा” गया प्रीति को

इस संपूर्ण प्रकरण में चकित करने वाली बात यह सामने आई है कि ठगी करने वाला बेहद नफासत और शान से अपना जीवन नोएडा जैसी भव्यतम सिटी में व्यतीत कर रहा था.

नोएडा के एक पॉश इलाके से एक रईस कारोबारी को रायपुर पुलिस ने ठगी के मामले में गिरफ्तार किया और छत्तीसगढ़ ले आई. विवेक प्रकाश नाम के इस शख्स पर आरोप है कि इसने “बिजनेस पार्टनर” बनाने के नाम पर रायपुर की एक महिला से लगभग 16 करोड़ रुपए ले लिए. इसके बाद डील के मुताबिक महिला को कंपनी   मे ना कोई पोजिशन मिली और ना ही कोई जवाबदेही इस कारोबारी और इसके साथियों ने दी.

 प्रीति मूंदड़ा ने कुछ महीने पहले चारों तरफ से थक हार और निराश होकर  रायपुर के गुढ़ियारी थाना में अपनी फरियाद को शिकायत के रूप में शिकायत दर्ज करवाई .

 “करोड़ों रुपए” देकर क्या अच्छे समय का इंतजार

प्रीति मुंदड़ा और उसके परिवार को यह प्रतीत हो रहा था की करोड़ों रुपए  इन्वेस्ट करके आने वाले समय में उनका भविष्य सुखद और सुखमय बन जाएगा. ऐसा कुछ नहीं हुआ और ठगे जाने के बाद प्रीति मुद्रा की रिपोर्ट दर्ज होने के साथ  ही पुलिस सक्रिय हुई  छानबीन विवेचना प्रारंभ हुई. विवेक प्रकाश पेंटल टेक्नोलाजी इंडिपेन्टेड टी.वी. नाम की कंपनी चलाता है. यह एक जिस तरह से डिश और टाटा स्काय अपनी सेवाएं देते हैं, विवेक की कथित कंपनी भी ऐसी ही सर्विस देने का दावा करती रही. इनके सेट टॉप बॉक्स और डिश एंटिना भी बाजार में मिल रहे थे.

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इनके संपर्क में आई रायपुर की प्रीति सिंघल मुंदडा ने पुलिस कहा कि जोनल डिस्ट्रीब्यूटरशीप देने के नाम पर विवेक के साथी अतुल मिश्रा, अजय राठौर ने मार्च 2019 तक लगभग 16 करोड़ रुपए ले लिए. महिला से कहा गया कि लाखों की कमाई होगी, पूरे छत्तीसगढ़ में आपका बिजनेस साम्राज्य फैलेगा.  मगर रुपए लेने के बाद कोई सर्विस कंपनी ने नहीं दी . राजधानी पुलिस  ने एक  जांच टीम बना कर मामला उसके सुपुर्द कर दिया.

इतनी बड़ी राशि की हेराफेरी की वजह से पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार करने का एक्शन प्लान बनाया. एक साल से भी अधिक वक्त से आरोपी विवेक को तलाशने का काम जारी था. पुलिस टीम को पता चला कि विवेक नोएडा में रह रहा है. सब इंस्पेक्टर सेराज खान के साथ 4 लोगों की टीम जिला गौतम बुद्ध नगर (उ.प्र.) के नोएडा चली गई. टीम ने आरोपी विवेक का पता ढूंढ लिया और अंततः उसे गिरफ्तार करके छत्तीसगढ़ ले आई.

Crime Story: रान्ग नंबर भाग 3

ताजमहल वाली फोटो का राज: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा 

9 दिसंबर को पूनम के भाई की शादी थी. इस में शिवकुमार अपनी पत्नी के साथ गया था. 3 दिन तक वह वहीं रहा. उसी दौरान पूनम को संदीप के साथ कई बार मिलने का मौका मिला. संदीप ने उस से कहा कि शिवकुमार से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि उस की हत्या कर दी जाए.

जब वह विधवा हो जाएगी तो परिवार वाले एक गांव का होने के बावजूद उन की शादी करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.

बात पूनम की समझ में आ गई. उस ने शिवकुमार की हत्या करने के लिए हामी भर दी. लेकिन शिवकुमार को कैसे मारा जाए कि उन पर कोई अंगुली भी न उठे. इस के लिए 2-3 मुलाकातों में पूनम ने संदीप से मिल कर हत्या की पूरी साजिश तैयार कर ली.

शादी के बाद पूनम पति शिवकुमार के साथ वापस आ गई. पूनम व संदीप के पास मोबाइल फोन थे, जिस के माध्यम से वे शादी के बाद से एकदूसरे से बातचीत करते थे. साथ ही वाट्सऐप कालिंग भी करते रहते थे.

लेकिन भाई की शादी से लौटने के बाद पूनम का संदीप से फोन पर बातचीत करने का सिलसिला ज्यादा बढ़ गया. क्योंकि शिवकुमार को रास्ते से हटाने के लिए उन्हें अपनी उस योजना को अंजाम देना था.

संदीप ने पूनम से कहा था कि अगले एकदो दिन में वह अपने पति को आगरा घूमने के लिए राजी कर ले और उसे अपने साथ आगरा ले आए.

अतीक अहमद खूंखार डौन की बेबसी: भाग 2

पूनम ने ऐसा ही किया. उस ने शिवकुमार से कहा कि शादी के बाद वह उसे कहीं घुमाने नहीं ले गया. कम से कम आगरा में प्यार की निशानी ताजमहल तो दिखा दें. फरमाइश कोई ज्यादा बड़ी और नाजायज नहीं थी, लिहाजा शिवकुमार परिवार वालों से इजाजत ले कर 14 दिसंबर को पूनम को ताजमहल दिखाने के लिए बस से आगरा ले आया.

14 दिसंबर को पूनम और शिवकुमार आगरा ताजमहल घूमते रहे. रात को एक होटल में रुके. अगले दिन सुबह यानी 15 दिसंबर को उन्होंने ताजमहल देखा और शाम को वहीं रुके.

अगली सुबह 6 बजे दोनों आगरा से बस द्वारा घर के लिए निकले. हालांकि शिवकुमार का प्लान यह था कि पहले मथुरा जा कर कृष्ण जन्मभूमि व प्रेम मंदिर देखेंगे उस के बाद मथुरा में अपने मामा से मिलेगा और बाद में घर जाएगा.

लेकिन बस में बैठते समय पूनम ने अनुरोध कर के उस का प्लान बदलवा दिया. दरअसल, पूनम ने उस से कहा कि राया के पास उस के रिश्ते के एक मौसा रहते हैं. उन्होंने कई बार उस से पति के साथ घर आने के लिए कहा है. थोड़ी देर के लिए उन से मिलने के बहाने वह शिवकुमार को ले कर राया के पास एक्सप्रेसवे के यमुना कट पर ही उतर गई.

दरअसल, शिवकुमार पत्नी से इतना प्यार करता था और भले स्वभाव का था कि उसे पता ही नहीं था कि पूनम साजिश के तहत उसे राया लाई है. हकीकत यह थी कि वहां उस का कोई मौसा नहीं रहता था.

इस दौरान संदीप से लगातार उस की बात चल रही थी. उस वक्त सुबह के करीब 7 बजे थे. एक्सप्रेसवे पर बस से उतरने के बाद पूनम ने चाय पीने की इच्छा जताई तो दोनों ने एक स्टाल पर रुक कर चाय पी.

इस के बाद पूनम ने साजिश के तहत शिवकुमार से टौयलेट जाने की बात कही तो वह असमंजस में पड़ गया. क्योंकि एक्सप्रेसवे पर सब जगह टायलेट नहीं होते. लेकिन पत्नी को इमरजेंसी थी, लिहाजा सब से उचित जगह सड़क के नीचे दिख रहा जंगल ही था.

शिवकुमार पूनम को ले कर नीचे जंगल की ओर उसे टौयलेट कराने के लिए ले गया. लेकिन उसे क्या पता था कि मौत पहले से वहां उस का इंतजार कर रही है. संदीप वहां पहले ही झाडि़यों में छिपा था.

जैसे ही शिवकुमार उस की तरफ पीठ कर के खड़ा हुआ, संदीप ने दबेपांव पीछे से जा कर शिवकुमार के सिर पर भारीभरकम पत्थर दे मारा. इस के बाद संदीप और पूनम ने शिवकुमार के सिर पर पत्थर से कई प्रहार किए.

शिवकुमार वहीं निढाल हो कर गिर पड़ा. शिवकुमार के पास 2 बैग थे. एक बैग में पूनम के कपडे़ थे, दूसरे में शिवकुमार के कपड़े. शिवकुमार के बैग से पूनम ने सारा सामान निकाल कर अपने बैग में रख लिया ताकि बैग में ऐसी कोई चीज न मिले, जिस से शिवकुमार की पहचान हो सके. लेकिन गलती से शिवकुमार और पूनम का ताजमहल पर खिंचवाया गया फोटो वाला लिफाफा थैले में ही रह गया था. इसी आधार पर पुलिस ने मृतक की शिनाख्त की थी.

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दरअसल, हत्या का ये पूरा प्लान संदीप ने तैयार किया था. शिवकुमार की हत्या करने के बाद वे दोनों वहां से टैंपो ले कर मथुरा की ओर भाग आए थे. इस के बाद वे इधर से उधर भागते रहे.

पूनम एक दिन बाद ससुराल जाने का मन बना रही थी. उस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूनम की हालत ऐसी हो गई न तो सनम मिला ना विसाले सनम.

पुलिस ने पूनम व संदीप से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर सक्षम न्यायालय में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों तथा पीडि़त परिवार के बयान पर आधारित

ताजमहल वाली फोटो का राज: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा 

छानबीन करने के दौरान पुलिस टीम को आखिर एक ऐसा टिकट मिल गया, जो 2 लोगों के लिए बना था. उस में जो आईडी प्रूफ लगा था, वह हरियाणा के पलवल जिले के थाना होडल क्षेत्र के गांव सेवली में रहने वाले शिवकुमार का था. साथ में उस की पत्नी पूनम का नाम लिखा था.

पुलिस टीम ने ताजमहल प्रशासन की मदद से सीसीटीवी फुटेज और एंट्री टिकट का रिकौर्ड वहां से अपने कब्जे में ले लिया. इंसपेक्टर शर्मा अपनी टीम के साथ 16 दिसंबर की रात को ही मथुरा वापस लौट आए.

इंसपेक्टर शर्मा ने एक सिपाही को पलवल के सेवली गांव भेजा. जहां से वह अगली सुबह शिवकुमार के चाचा लक्ष्मण सिंह व अन्य परिजनों को अपने साथ राया थाने ले आया.

सब से पहले लक्ष्मण व अन्य परिजनों को पोस्टमार्टम हाउस में प्रिजर्व कर के रखा गया शव दिखाया तो उन्होंने देखते ही उस की पहचान शिवकुमार के रूप में कर दी.

लक्ष्मण सिंह ने कपड़ों को देख कर भी साफ कर दिया कि उस ने जो कपड़े पहने थे, वह घर से पहन कर गया था. साथ ही उन्होंने मृतक शिवकुमार के शव के पास मिली फोटो को देख कर स्पष्ट कर दिया कि वह फोटो शिवकुमार तथा उस की पत्नी पूनम की है.

पूछताछ करने पर लक्ष्मण ने बताया कि 14 दिसंबर को शिवकुमार अपनी पत्नी पूनम के साथ ताजमहल जाने की बात कह कर बस से गया था. वह दोपहर में अपने मामा ओंकार सिंह से मुलाकात करने के लिए भरतपुर गेट मथुरा जाने की बात कह रहा था.

उन्होंने बताया कि शिवकुमार की शादी इसी साल 29 जून को अलीगढ़ जिले के गांव गोरोला निवासी पूनम से हुई थी. लक्ष्मण ने बताया कि उन के बेटे सूरज की शादी भी इसी गांव में हुई थी और उस के सुझाव पर उन के भाई भरत सिंह ने बेटे शिवकुमार का विवाह पूनम से किया था.

चूंकि शादी के बाद से कोरोना की महामारी के कारण शिवकुमार अपनी पत्नी को कहीं भी घुमाने के लिए ले कर नहीं गया था, इसीलिए उस ने पहली बार पत्नी को घुमाने का प्लान बनाया था और ताजमहल घुमाने के लिए ले गया था.

शिवकुमार की हत्या और उस की पत्नी पूनम के लापता होने की गुत्थी को लक्ष्मण सिंह भी नहीं समझ पा रहे थे. इंसपेक्टर शर्मा को लग रहा था कि हो न हो शिवकुमार की हत्या और उस की पत्नी के लापता होने में कोई संबंध हो.

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शिवकुमार तथा उस की पत्नी पूनम के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई. शिवकुमार की काल डिटेल्स से तो पुलिस को कुछ खास मदद नहीं मिली. लेकिन पूनम की काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि पिछले कुछ महीनों से उस की एक खास नंबर पर दिन में कई बार लंबीलंबी बातें होती थीं.

16 दिसंबर की सुबह जब पुलिस ने शिवकुमार का शव बरामद किया था, उस दिन तथा उस से पहले 3-4 दिन में उसी नंबर पर पूनम की कई बार लंबी बातचीत हुई थी.

पुलिस ने जब उस नंबर की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि वह पूनम के ही गांव गोरोला में रहने वाले किसी संदीप के नाम है.

जांच जैसेजैसे आगे बढ़ रही थी, धीरेधीरे पूरा माजरा पुलिस की समझ में आ रहा था. क्योंकि जब पूनम व संदीप के फोन की लोकेशन ट्रेस की गई तो 15 दिसंबर की शाम से ले कर अभी तक दोनों के फोन की लोकेशन अलीगढ़ व मथुरा के बौर्डर एरिया में एक साथ मिल रही थी. साफ था कि पूनम व संदीप एक साथ थे.

पुलिस की एक टीम पूनम की तलाश में उस के मायके पहुंची, लेकिन वहां उस का कोई पता नहीं चल सका.

पुलिस ने लोकेशन के आधार पर कई टीमें बना कर अलीगढ़ में अलगअलग छापेमारी शुरू कर दी. आखिरकार पुलिस ने पूनम व संदीप को मथुरा व अलीगढ़ बौर्डर के गांव नगला गंजू से उस के एक दोस्त के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों को राया थाने ला कर पूछताछ शुरू की गई तो पुलिस को शिवकुमार की हत्या का राज खुलवाने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. पूनम पति से बेवफाई और अपनी निजी जिंदगी का एकएक राज खोलती चली गई.

24 साल की पूनम ने जब से जवानी की दहलीज पर कदम रखा था, तब से संदीप को ही अपना सब कुछ मान लिया था. दोनों एक ही बिरादरी के थे, इसलिए पूनम ने कभी सोचा ही नहीं था कि संदीप को पति के रूप में देखने का उस का सपना कभी पूरा नहीं होगा.

अलीगढ़ जिले के गोरोला गांव के रहने वाले चंद्रपाल सिंह के 4 बच्चों में पूनम सब से बड़ी थी. उस से छोटी एक बहन व 2 भाई थे. गांव में खेतीकिसानी करने वाले पिता को जब एक साल पहले पता चला कि बड़ी बेटी पूनम गांव में ही रहने वाले महावीर के छोटे बेटे

संदीप से प्यार करती है तो उन का गुस्सा फूट पडा.

दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी एक ही गांव में रहने वाले युवकयुवतियों को आपस में भाईबहन मानने की प्रथा है. इसलिए चंद्रपाल सिंह ने पूनम से साफ कह दिया कि वे मर जाएंगे, लेकिन संदीप से उस की शादी नहीं करेंगे.

पूनम ने पिता से साफ कहा कि वह संदीप से 3 सालों से प्यार करती है और उस के बिना जीने की उस ने कल्पना भी नहीं की है. अगर उन्होंने उस की शादी कहीं कर भी दी तो वह खुश नहीं रह पाएगी. क्योंकि वह तन मन से संदीप को ही अपना पति मान चुकी है.

चंद्रपाल सिंह ने बेटी को ऊंचनीच और समाज का वास्ता दे कर उस वक्त शांत तो कर दिया लेकिन उन्हें लगा कि अगर जल्द ही बेटी के हाथ पीले नहीं किए तो वह समाज में उसे बदनाम कर सकती है.

गांव में बिरादरी के ही एक दोस्त की बेटी की शादी पलवल के सूरज से हुई थी. सूरज के परिवार और खानदान के बारे में उन्हें पता था कि निहायत शरीफ और अच्छे परिवार का लड़का है. चंद्रपाल ने दोस्त से कह कर पूनम के लिए अपने घरपरिवार में कोई लड़का देखने की बात कही तो सूरज ने उसे बताया कि उस के चाचा का लड़का शिवकुमार भी शादी के लायक है.

Crime: अंधविश्वास, झाड़-फूंक और ‘औलाद का सुख’

शिवकुमार भाइयों में सब से बड़ा था. हालांकि घर में थोड़ीबहुत जमीन थी, जिस पर परिवार के लोग खेती करते थे. लेकिन इस के अलावा भी शिवकुमार पलवल में एक कारखाने में नौकरी करता था. जब खेती का काम ज्यादा होता तो वह नौकरी छोड़ देता था. कुल मिला कर जिंदगी की गुजरबसर ठीक तरह से हो रही थी.

सूरज ने जब अपने चाचा और पिता को अपनी ससुराल में रहने वाले चंद्रपाल की लड़की पूनम का जिक्र किया तो परिवार को लगा कि देखाभाला परिवार है दोनों भाइयों की ससुराल एक ही गांव में होगी तो अच्छा रहेगा.

एक दिन सूरज ने शिवकुमार को अपनी ससुराल ले जा कर चोरी से पूनम को दिखा भी दिया. शिवकुमार को पूनम पहली ही नजर में भा गई. गांव की सीधीसादी और मासूम सी पूनम को देख कर शिवकुमार ने घर वालों से शादी की हां कर दी. इस के बाद दोनों परिवारों में बात हुई और कोरोना के कारण दोनों परिवारों ने सादगी के साथ शादी संपन्न करा दी.

शादी के बाद पूनम शिवकुमार की दुलहन बन कर उस के गांव सेवली आ गई. दोनों का वक्त धीरेधीरे प्यार के बीच गुजरने लगा. लेकिन शादी के बाद पूनम अपने दिल से संदीप का प्यार व उस की यादों को निकाल नहीं सकी.

वक्त जैसेजैसे गुजर रहा था, संदीप के लिए उस की तड़प और ज्यादा बढ़ती जा रही थी. वह जब भी मायके जाती तो चोरीछिपे संदीप से जरूर मिलती तो उस पर किसी तरह शिवकुमार से छुटकारा दिला कर अपनी बनाने का दबाव डालती.

संदीप भी पूनम के बिना खुद को अधूरा समझता था. उस ने पूनम को भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह उस के लिए कुछ करेगा.

अगले भाग में पढ़ें- दरअसल, हत्या का ये पूरा प्लान संदीप ने तैयार किया था

ताजमहल वाली फोटो का राज: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा 

16दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. यमुना एक्सप्रेसवे से मथुरा के राया कस्बे में उतरने वाले रास्ते के किनारे लोगों ने झाडि़यों में खून से लथपथ एक युवक का शव पड़ा देखा.

कुछ ही देर में वहां राहगीर जुटने लगे. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि यह क्षेत्र थाना राया क्षेत्र में आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा वायरलैस मैसेज दे कर घटना से अवगत करा दिया गया.

राया थाने के प्रभारी निरीक्षक सूरज प्रकाश शर्मा को उन के मुंशी ने हत्या के बारे में बताया तो थानाप्रभारी एस.पी. शर्मा तत्काल तैयार हो गए. एसआई मोहनलाल यादव, राजकुमार, कांस्टेबल यशपाल, आशुतोष कुमार व प्रदीप कुमार को साथ ले कर वह उस स्थान पर पहुंच गए, जहां खून से लथपथ शव पड़े होने की सूचना मिली थी.

लाश को देखते ही इंसपेक्टर शर्मा समझ गए कि मामला दुर्घटना का नहीं बल्कि हत्या का है. क्योंकि पास में ही एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था, जिस पर लगा खून इस बात की गवाही दे रहा था कि उसी पत्थर से मृतक के सिर पर प्रहार किया गया था. इसी से मृतक का सिर व चेहरा खून से सराबोर थे. उस के चेहरे पर ताजा खून बह रहा था. मतलब हत्या हुए ज्यादा वक्त नहीं बीता था. मृतक के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी जो खून से लथपथ थी.

थानाप्रभारी ने एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर तथा सीओ आरती सिंह को राया मोड़ पर मिले शव के बारे में सूचना दे दी. एसएसपी व सीओ सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का दस्ता भी मौके पर आ गया.

मृतक की उम्र 26 साल के आसपास रही होगी. शरीर पर जींस और जैकेट के साथ पैरों के जूतों से लग रहा था कि वह कोई राहगीर था, जिस से या तो लूटपाट के लिए उस की हत्या की गई थी या किसी ने रंजिशन यहां ला कर मार डाला था.

मृतक के जेबों की तलाशी में ऐसी कोई चीज बरामद नहीं हो सकी, जिस से उस की पहचान की जा सकती. इंसपेक्टर शर्मा शव का मुआयना कर रहे थे, तभी उन की नजर लाश से कुछ दूरी पर पड़े एक बैग पर पड़ी. लेकिन बैग खाली था. तलाशी लेने पर उस में कागज का एक लिफाफा पड़ा मिला, जिस में एक फोटो थी.

फोटो ताजमहल के सामने खिंचवाई गई थी. फोटो में मृतक के साथ एक महिला भी खड़ी थी. फोटो इस तरह खिंचाई गई थी जिस तरह नवदंपति खिंचवाते हैं. फोटो बहुत पुरानी नहीं थी, क्योंकि मृतक के शरीर पर जो कपड़े थे, फोटो में भी उस ने वही कपड़े पहने हुए थे. मतलब मृतक ताजमहल घूम कर लौटा था.

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लेकिन सवाल यह था कि अगर फोटो में उस के साथ खड़ी महिला उस की पत्नी थी तो वह कहां है? अचानक इंसपेक्टर एस.पी. शर्मा के मन में सवाल कौंधा कि कहीं पत्नी ने ही तो उस का काम तमाम नहीं कर दिया.

लेकिन ये तमाम सवाल तब तक कयास थे, जब तक मृतक की शिनाख्त नहीं होती. ताजमहल देख कर राया के इस रास्ते पर उतरने से इस बात की भी संभावना थी कि मृतक आसपास के ही किसी गांव का रहने वाला हो सकता है.

इसी उम्मीद में इंसपेक्टर सूरज प्रकाश शर्मा ने उस इलाके में 5 किलोमीटर तक पड़ने वाले सभी गांवों में अपनी पुलिस टीम से कह कर ऐसे जिम्मेदार लोगों को मौके पर बुलवाया, जो अपने गांव के अधिकांश लोगों को जानते हों.

कई घंटे मशक्कत की गई, लेकिन काफी लोगों को दिखाने के बाद भी मृतक की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पुलिस अधिकारी घटनास्थल से थाने लौट आए. पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने जांच की जिम्मेदारी राया थाने के प्रभारी निरीक्षक सूरज प्रकाश शर्मा को ही सौंप दी. साथ ही उन्होंने सीओ आरती सिंह के नेतृत्व में एक टीम भी गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी के अलावा एसआई मोहनलाल यादव, राजकुमार, कांस्टेबल यशपाल, आशुतोष कुमार, प्रदीप, इंसपेक्टर (सर्विलांस) जसवीर सिंह तथा उन की टीम के कांस्टेबल राघवेंद्र सिंह, समुनेश, योगेश कुमार और गोपाल सिंह को शामिल किया गया. एसएसपी ने इस हत्याकांड का जल्द से जल्द खुलासा कर आरोपियों को पकड़ने के निर्देश दिए.

पुलिस के पास मृतक की पहचान करने व वारदात का खुलासा करने के लिए केवल एक ही लीड थी और वह था बरामद हुआ फोटो.

थानाप्रभारी एस.पी. शर्मा खुद पुलिस टीम ले कर आगरा पहुंच गए. उन्होंने आगरा पहुंच कर वहां ताजमहल के आसपास फोटो खींचने वाले फोटोग्राफरों को मृतक के पास से मिले फोटो दिखा कर जानकारी हासिल करनी चाही. लेकिन इस प्रयास में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली.

क्योंकि वहां सैकड़ों फोटोग्राफर थे और सभी से संपर्क होना बेहद मुश्किल था. अचानक उन्होंने उस साइट का निरीक्षण किया, जहां खड़े हो कर मृतक ने फोटो खिंचवाई थी. इस से एक बात स्पष्ट हो गई कि मृतक ने ताजमहल के भीतर जा कर फोटो खिंचवाई थी.

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इंसपेक्टर शर्मा ने ताजमहल प्रशासन की मदद से ताजमहल के भीतर प्रवेश करने वाले गेट की पिछले 2 दिनों की सीसीटीवी फुटेज देखी तो 15 दिसंबर को मृतक एक महिला के साथ ताजमहल में प्रवेश करते हुए दिखाई पड़ गया. इस से यह साफ हो गई कि मृतक आगरा से घूम कर ही मथुरा गया था, जहां उस की हत्या हो गई.

आगे का काम पुलिस के लिए बेहद आसान हो गया. पुलिस ने ताजमहल प्रशासन की मदद से 15 दिसंबर को ताजमहल देखने वालों के टिकट की छानबीन शुरू कर दी. दरअसल ताजमहल देखने जाने वालों को अपना नाम, पता और मोबाइल नंबर की जानकारी देनी होती है.

अगले भाग में पढ़ें- शिवकुमार की हत्या और उस की पत्नी के लापता होने में कोई संबंध हो

Crime: भूत प्रेत, अंधविश्वास और हत्या!

भूत प्रेत और अंधविश्वास का संजाल कुछ ऐसा तारी होता है कि आदमी को भय के जाल में फंस कर कुछ भी सुनाई नहीं देता, दिखाई नहीं देता.

यह भूत प्रेत का मायाजाल अशिक्षित अपढ़ और दुरस्थ ग्रामीण अंचल में हो तो यह समझा जा सकता है कि इसका मूल कारण अशिक्षा है. मगर यही भूत प्रेत का खेल अगर शहर और महानगर में होने लगे तो और ज्यादा भयावह और चिंता का सबब होना चाहिए.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के स्थल गुढ़ियारी में एक महिला को कथित रूप से भूत प्रेत दिखाई देते थे. एक दिन महिला की लाश ओवर ब्रिज के पास मिली. पुलिस ने जांच की तो जो सनसनीखेज तथ्य सामने आए उसके आधार पर पुलिस मान रही है कि मामला भूत प्रेत अंधविश्वास के माया जाल में फंस कर पति द्वारा पत्नी की हत्या का है.

नए वर्ष जनवरी के द्वितीय पखवाड़े में राजधानी रायपुर के मंदिर हसौद क्षेत्र में एक महिला स्मिता बोपचे (लगभग 35 वर्ष) की हत्या मामले को पुलिस ने कथित रूप से सुलझा लिया है.मगर इस संपूर्ण प्रकरण में कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिनके जवाब मृतक महिला के परिवार के पास है और विवेचना करने वाली पुलिस के पास.

परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि आज हमारी पुलिस हमारा समाज हमारी कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था एक ऐसे अंधेरे में अपना काम कर रही है जिसमें सच्चाई संभवत छुप कर रह जाती है. लोगों को पता ही नहीं चलता. फलस्वरूप अंधविश्वास की बीमारी समाज को अनेक तरीके से एक भ्रम के मायाजाल में उलझा कर रख देती है और पता ही नहीं चलता कि सच्चाई आखिर है क्या? महिला की हत्या के इस सनसनीखेज मामले में कई ऐसे हैं जिनका जवाब पुलिस को देना चाहिए.

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पुलिस मानती है हत्यारा पति है!

महिला की लाश मिलने के बाद पुलिस ने जांच की और माना कि महिला का हत्यारा कोई और नहीं बल्की मृतका का पति है! सायबर सेल और पुलिस की टीम ने आरोपी पति राजेंद्र बोपचे को गिरफ्तार कर लिया है. इस मामले में खुलासा करते हुए इसकी जानकारी ग्रामीण अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक और क्राइम अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक माहेश्वरी ने दी.

घटना मंदिर हसौद थाना के छेरीखेड़ी ओवर ब्रिज के पास की है. यहां पर एक सुनसान प्लाट में महिला की लाश 18 जनवरी को मिली थी. महिला के शव पर जख्म के कई निशान भी पाये गये थे.साथ ही आरोपी ने महिला की पहचान छुपाने के लिए चेहरे को बुरी तरह से कुचल दिया था.इस घटना की सूचना के बाद मंदिर हसौद पुलिस और सायबर सेल की टीम मौके पर पहुंची हुई थी. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि मृतिका महिला का नाम स्मिता बोपचे, पति राजेन्द्र बोपचे है, जो गुढ़ियारी की रहने वाली थी. महिला की पहचान होने के बाद संदेह के आधार पर पुलिस ने मृतिका के पति राजेन्द्र बोपचे को हिरासत में लेकर उससे कढ़ाई से पूछताछ शुरू की.पूछताछ के दौरान आरोपी ने हत्या की बात कबूल करते हुये पुलिस की टीम को बताया कि,उसकी पत्नी मानसिक रूप से बीमार थी.

आरोपी पति ने पुलिस को आगे बताया कि उसकी पत्नी को लगता था कि उस पर भूत-प्रेत और आत्माओं का साया है और इसी बात लेकर दोनों में अक्सर विवाद भी होता रहता था. घटना वाले दिन भी उसकी पत्नी ने भूत देखने की बात कह कर उसे अपने साथ मंदिर हसौद के छेरीखेड़ी स्थित खाली प्लाट में लेकर आयी. यहां पर उसकी पत्नी ने अचानक से उसके उपर पत्थरों से हमला करना शुरू कर दिया.इस बीच विवाद के दौरान राजेन्द्र ने भी अपनी पत्नी से मारपीट करते उसके सिर को पत्थरों में कुचलकर उसकी हत्या कर दी. घटना के बाद वह फरार हो गया. आरोपी राजेंद्र बोपचे कुछ माह पहले ही बालाघाट ( मध्यप्रदेश ) से रायपुर के गुढ़ियारी आया था. यहाँ पर एक किराये के मकान में अपनी पत्नी के साथ रह रहा था.

कुछ अनसुलझे सवाल?

संपूर्ण घटनाक्रम को एक बारगी करने पर यह तथ्य स्पष्ट दिखाई देता है कि पति सफेद झूठ बोल रहा है की स्मिता को भूत प्रेत दिखाई देते थे. दूसरी सबसे बड़ी बात यह कि पत्नी ने कहा- चलो, मैं तुम्हें भूत प्रेत दिखाऊं और पति पर पत्थरों की वर्षा कर दी. ऐसा था तो पति महाशय वहां से भाग क्यों नहीं गया! वह अपनी जान भागकर बचा सकता था.

सवाल यह भी है कि क्या कोई महिला इतनी ताकतवर हो सकती है कि पति पर पत्थर बरसाने लगे? और आगे पुलिस कहती है कि अपने को बचाने के लिए पति ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. संपूर्ण बयानों में कई पेंच है जो बताते हैं कि यह पति द्वारा बताया गया कथित घटनाक्रम एक झूठ और कल्पना का पुलिंदा मात्र है. सवाल यह भी है कि अगर महिला को भूत प्रेत की व्याधि थी तो उसका इलाज क्यों नहीं कराया गया? उसका इलाज कहां कराया जा रहा था? यह भी स्पष्ट नहीं है.

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बालाघाट से रायपुर आ कर के रहना और पत्नी की हत्या यह सब एक अपराधिक मानसिक बनावट के संकेत देती है जो बताती है राजेंद्र ने बड़े ही चालाकी से पत्नी को मौत के घाट उतार दिया. इस संदर्भ में अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के मुताबिक आगे चलकर न्यायालय में जब इस प्रकरण की सुनवाई होगी तो पति यह कह कर की पत्नी को भूत प्रेत का साया था, आसानी से सजा से बच जाएगा. अथवा बहुत ही कम सजा पाकर एक बार फिर समाज में अपराध के लिए तैयार और कानून व्यवस्था पर हंसता हुआ मिलेगा.

Crime Story: रान्ग नंबर भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

मध्य प्रदेश के जबलपुर का उपनगरीय इलाका रांझी रक्षा मंत्रालय की फैक्ट्रियों के लिए जाना जाता है. यहां पर गन कैरेज, आर्डिनैंस, व्हीकल और ग्रे आयरन फाउंडी में सेना के उपयोग में आने वाले गोलाबारूद, टैंक और भारी वाहन बनाए जाते हैं.

ग्रे आयरन फाउंडी के गेट नंबर 2 के पास ही रांझी के रिछाई अखाड़ा मोहल्ले में 40 साल का सोनू ठाकुर अपनी 28 साल की पत्नी नीतू और 2 बेटियों के साथ रहता था. मूलरूप से दामोह जिले के हिनौता गांव का रहने वाला सोनू परिवार में 4 भाईबहनों में सब से बड़ा था.

शादी के बाद खर्चे बढ़े तो सोनू गांव में परेशान रहने लगा. वैसे भी गांव में उस का छोटा सा घर था, जिस में उस का पूरा परिवार रहता था. जहां पतिपत्नी एकदूसरे से ढंग से बात भी नहीं कर पाते थे. रात को दोनों एक छोटी सी कोठरी में सोते थे, जहां मन की बातें नहीं हो पाती थी. यह नीतू को बहुत अखरता था.

रात को जब घर के सभी लोग सो जाते, तब उन्हें एकदूसरे का साथ मिलता था. नीतू उलाहना दे कर अकसर सोनू से कहती थी कि वह कहीं अलग घर ले कर रहे. तब सोनू उसे समझा देता कि हमारी नईनई शादी हुई है. अभी परिवार से अलग रहेंगे तो घर वालों को अच्छा नहीं लगेगा. कुछ महीनों के बाद वह अपना कामधंधा जमा कर अलग  रहने लगेगा.

जब शादी को साल भर का समय बीत गया तो एक रात नीतू ने सोनू को सलाह देते हुए कहा, ‘‘क्यों न हम लोग गांव से दूर शहर जा कर कुछ कामधंधा कर लें.’’

सोनू को पत्नी की सलाह पसंद आई. जबलपुर शहर में हिनौता गांव के कुछ लड़के काम करते थे. सोनू ने उन के घर वालों से मोबाइल नंबर ले कर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उसे जबलपुर में आसानी से काम मिल जाएगा.

शादी के साल भर बाद सोनू बीवी के साथ काम की तलाश में जबलपुर आ गया था. दोनों रांझी के अखाड़ा मोहल्ले में वे किराए का कमरा ले कर रहने लगे. नीतू सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी और सोनू को बड़ा फुहारा में घमंडी चौक पर कपड़े की एक दुकान में सेल्समैन का काम मिल गया.

देखतेदेखते सोनू को जबलपुर आए करीब 5 साल हो गए थे. पतिपत्नी ने धीरेधीरे तिनकातिनका जोड़ कर एक छोटा सा घर बना लिया था. इन सालों में नीतू 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. सोनू और नीतू की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी, मगर एक रौंग नंबर की काल ने उन के जीवन में जहर घोल दिया.

2020 के जनवरी महीने की बात है. दोपहर का वक्त था. घर के कामकाज से फुरसत पा कर नीतू मोबाइल फोन में यूट्यूब पर वीडियो देख रही थी. तभी मोबाइल की रिंग बजी. नीतू ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हैलो, मैं राजू बोल रहा हूं.’’

‘‘कौन राजू? मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘जी, मैं गाजीपुर से राजू राजभर बोल रहा हूं. कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता हूं. क्या मेरी बात निशा वर्मा से हो रही है?’’

‘‘जी नहीं, आप ने गलत नंबर लगाया है.’’ नीतू ने जबाब दिया.

‘‘जी सौरी, मुझे निशा वर्मा के घर प्रिंटर भिजवाना था. गलती से आप का नंबर लग गया. वैसे आप कहां से बोल रही हैं?’’ राजू ने विनम्रता से पूछा.

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‘‘मैं तो जबलपुर से बोल रही हूं.’’

‘‘आप की आवाज बड़ी प्यारी है. क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ वह बोला.

‘‘मेरा नाम नीतू ठाकुर है.’’ नीतू ने कहा.

‘‘नीतूजी, आप से बात कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’ कह कर नीतू ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. नीतू को राजू का इस तरह से बात करना अच्छा लगा. इस के बाद राजू नीतू के मोबाइल पर काल करने लगा. रौंग नंबर से शुरू हुआ बातचीत का सिललिला धीरेधीरे दोस्ती में बदल गया. अब नीतू भी हर दिन राजू के फोन आने का इंतजार करने लगी. एकदूसरे को वीडियो काल कर के दोनों की बातचीत होने लगी.

तीखे नैननक्श वाली नीतू ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई की थी. उसे घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने का बड़ा शौक था. उस ने शादी के पहले जो रंगीन ख्वाब देखे थे, वे सोनू से शादी कर के बिखर चुके थे.

थोड़ी सी पगार में घरगृहस्थी चलाने वाला उस का पति सोनू दिन भर काम में लगा रहता और नीतू घर की चारदीवारी में कैद घर के काम में लगी रहती.

पति के काम पर जाने के बाद फुरसत मिलती तो वह मोबाइल पर सोशल मीडिया साइट पर व्यस्त हो जाती.

मोबाइल फोन के जरिए राजू और नीतू का संबंध जब परवान चढ़ने लगा तो दोनों एकदूसरे से मिलने को बेताब रहने लगे. नीतू राजू के प्रेम में इस कदर खो चुकी थी कि बारबार राजू से जबलपुर आ कर मिलने की बात करती.

आग राजू के सीने में भी धधक रही थी. राजू नीतू को भरोसा दिलाता कि वह जल्द ही जबलपुर आ कर उस से मिलेगा.

इसी बीच मार्च महीने में कोरोना महामारी के कारण 24 मार्च को लौकडाउन लग गया. लौकडाउन में भी नीतू और राजू की मोबाइल पर बातें होती रहीं. नीतू का पति सोनू घर के बाहर गली में जब भी टहलने जाता, नीतू राजू को काल कर लेती. जैसेजैसे लौकडाउन में ढील मिलने लगी, राजू जबलपुर जाने की प्लानिंग करने लगा.

राजू जिस कंपनी के लिए कंप्यूटर ट्रेडिंग का काम करता था, उस का कारोबार जबलपुर शहर में भी था. किसी तरह कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से बात कर के उस ने जबलपुर की कंपनी में काम करने का जुगाड़ कर लिया. कंपनी की तरफ से उसे जबलपुर में काम करने का मौका मिला तो उस के मन की मुराद पूरी हो गई.

इसी हसरत में 25 साल का कुंवारा राजू नीतू की चाहत में सितंबर 2020 में अपने गांव जफरपुर, गाजीपुर से जबलपुर आ गया .

जिस दिन राजू जबलपुर आ कर नीतू से मिला तो नीतू की खुशी का ठिकाना न रहा. राजू ने नीतू को करीब से देखा तो देखता ही रह गया.

‘‘वाकई तुम बहुत खूबसूरत हो,’’ राजू ने नीतू से कहा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘मेरी तारीफ बाद में करना. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

जब नीतू राजू के लिए चाय बनाने किचन में गई, राजू अपने आप को रोक नहीं सका. वह भी किचन में पहुंच गया और नीतू को अपनी बांहों में भर लिया. वह उस के गालों को चूमते हुए बोला, ‘‘तुम्हें पाने को कितना इंतजार करना पड़ा.’’

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नीतू ने अपने आप को छुड़ाते हुए नखरे दिखा कर कहा, ‘‘थोड़ा सब्र और करो, धीरज का फल मीठा होता है.’’

नीतू राजू को चाय का कप पकड़ा कर बाहर आ गई. उस ने बाहर आ कर देखा उस की दोनों बेटियां आंगन में खेल में मस्त थीं.

इसी मौके का फायदा उठा कर नीतू ने राजू के पास जा कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और राजू के सीने से लग गई. राजू ने नीतू की कमर में हाथ डाला और उसे बिस्तर पर ले गया. 8 महीने से मोबाइल पर चल रहे उन के संबंध के हसीन ख्वाब पूरे हो गए. उस दिन दोनों ने दिल खोल कर अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

राजू ने जब उसे बताया कि उस ने अपना ट्रांसफर जबलपुर करा लिया है, इसलिए अब यहीं रहेगा. नीतू बड़ी खुश हुई. इतना ही नहीं, उस ने राजू को अपना रिश्तेदार बताते हुए उसे अपने मोहल्ले में भाड़े पर खाली कमरा दिला दिया. उस के खानेपीने की जिम्मेदारी वह खुद उठाने लगी.

नीतू ने राजू से मिलने का एक तरीका खोज लिया था. उस ने पति सोनू से बात कर उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि ढाई हजार रुपए महीने में राजू को दोनों टाइम खाना बना कर देगी. सोनू ने यह सोच कर हामी भर दी कि थोड़ी सी मेहनत से बैठे ठाले ढाई हजार रुपए महीने की आमदनी बढ़ जाएगी, जो उस की बेटियों की पढ़ाईलिखाई के काम आएगी.

अगले भाग में पढ़ें-  जांच टीम को सोनू के घर में भी खून के धब्बे मिले

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