Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

बात 28 मई की है. शाम के करीब पौने 5 बजे का वक्त रहा होगा. राजस्थान के भरतपुर शहर में डा. सुदीप गुप्ता अपनी पत्नी डा. सीमा गुप्ता के साथ कार से कुम्हेर गेट पर जाहरवीर मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे. रोजाना शाम को मंदिर में जा कर दर्शन करना उन की दिनचर्या में शुमार था.

गुप्ता दंपति का शहर में काली की बगीची पर श्रीराम गुप्ता मेमोरियल हौस्पिटल है. इसी हौस्पिटल के ऊपरी हिस्से में वह अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में डा. सुदीप की मां सुरेखा, पत्नी डा. सीमा और 18 साल का बेटा तथा 15 साल की बेटी थी.

डाक्टर दंपति 5 मिनट पहले ही अपने हौस्पिटल से मंदिर के लिए रवाना हुए थे. कार डा. सुदीप चला रहे थे. डा. सीमा उन के साथ आगे की सीट पर बैठी हुई थी. वह घर से करीब 750 मीटर दूर ही पहुंचे थे कि सरकुलर रोड पर नीम दा गेट के पास पीछे से आए एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवकों ने साइड से ओवरटेक कर अपनी बाइक उन की कार के आगे लगा दी.

सड़क के बीच बाइक रुकने से डा. सुदीप ने फुरती से कार के ब्रेक लगाए. सुदीप कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बाइक से उतर कर दोनों युवक कार की ड्राइविंग साइड में डा. सुदीप की तरफ आए. इन में एक युवक ने लाल कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था और दूसरे युवक ने न तो मास्क लगाया हुआ था और न ही हेलमेट पहना हुआ था.

ये भी पढ़ें- MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार

इन दोनों युवकों को डा. सुदीप पहचान नहीं सके. कार के सामने बाइक लगाने की वजह जानने के लिए डा. सुदीप ने अपनी कार के गेट का शीशा नीचे किया.

डा. सुदीप उन युवकों से सवाल पूछते, इस से पहले ही मुंह पर कपड़ा बांधे युवक ने अपनी पैंट में छिपी पिस्तौल निकाली. उस ने बिना कुछ कहेसुने डा. सुदीप की कनपटी के पास 2-3 गोलियां मार दीं. डा. सुदीप के पास आगे की सीट पर ही बैठी डा. सीमा कुछ समझती, इस से पहले ही उस युवक ने उसे भी गोलियों से भून दिया.

डाक्टर दंपति पर गोलियां चलाने के बाद उस युवक ने कुछ पल रुक कर यह तसल्ली की कि दोनों की मौत हुई या नहीं. इस के बाद डा. सुदीप को एक गोली और मारी. फिर सड़क के दोनों ओर से गुजर रहे लोगों को डराने के लिए पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाईं.

दोनों युवक बाइक पर सवार हो कर भागने लगे, लेकिन बाइक स्टार्ट नहीं हुई. इस पर गोलियां चलाने वाले युवक ने धक्का दिया. बाइक स्टार्ट होने पर दोनों उस पर सवार हो कर यूटर्न ले कर भाग गए. भागते हुए भी उन्होंने पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाईं.

गोलियां लगने से डा. सुदीप और सीमा अपनी कार में ही लुढ़क गए. शहर के सब से प्रमुख रोड पर दिनदहाड़े हुई इस वारदात के समय सड़क के दोनों ओर वाहन लगातार आजा रहे थे, लेकिन किसी ने भी न तो बदमाशों को रोकने की हिम्मत की और न ही उन का पीछा किया. इसीलिए दोनों युवक जिस तरफ से आए थे, बाइक से उसी तरफ भाग गए. यह वारदात वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हो गई.

खास बात यह हुई कि डाक्टर दंपति को सरेआम गोलियां मारने की वारदात लौकडाउन के दौरान हुई. कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए पूरे राजस्थान में अप्रैल महीने के तीसरे सप्ताह से ही लौकडाउन लगा हुआ था. लौकडाउन में हालांकि आम लोगों के घर से निकलने पर रोक लगी हुई थी, लेकिन फिर भी लोग किसी न किसी बहाने घर से बाहर निकलते ही थे. हरेक चौराहों के अलावा जगहजगह पुलिस तैनात रहती थी. इतनी सख्ती होने के बावजूद दोनों युवक पिस्तौल से गोलियां चलाते हुए भाग गए और पुलिस को पता भी नहीं चला.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: चाची का आशिक- भाग 1

दोनों युवकों के भागने के बाद आसपास के लोग मौके पर एकत्र हो गए. उन्होंने कार में लुढ़के पड़े डा. सुदीप और उस की पत्नी सीमा को पहचान लिया और पुलिस को सूचना दी. कुछ ही देर में पुलिस पहुंच गई. मौके पर एकत्र लोगों ने बताया कि ये डा. सुदीप और उस की पत्नी है. पुलिस ने लोगों की मदद से दोनों को कार से निकाला और तुरंत अस्पताल ले गए. अस्पताल में डाक्टर दंपति को मृत घोषित कर दिया.

दिनदहाड़े डाक्टर दंपति की हत्या की घटना से शहर में दहशत फैल गई. पुलिस के अफसर मौके पर पहुंच गए. शुरुआती जांचपड़ताल में ही साफ हो गया कि डाक्टर दंपति की हत्या बदला लेने के लिए की गई थी.

डाक्टर दंपति के खौफनाक अंत के पीछे की कहानी इस से भी ज्यादा खौफनाक है. उस कहानी तक ले चलने से पहले आप को बता दें कि डा. सुदीप की एक प्रेमिका थी. उस का नाम था दीपा गुर्जर. दीपा के 6 साल का बेटा शौर्य था.

अगले भाग में पढ़ें- क्या दीपा का भाई  फायरिंग की घटना में शामिल था?

Crime: अपराध अर्थात “खून” बोलता है!

कहते हैं जघन्य अपराध कभी छुपता नहीं है, खास तौर पर हत्या. यह एक ऐसा गंभीर अपराध है जो हत्यारे की जिंदगी को तबाह कर देता है हत्या का आरोपी जिंदगी भर तिल तिल कर पश्चाताप अथवा भय से मरता रहता है.

अगर कानून और पुलिस से बच भी जाए तो यह अपराध उसे माफ नहीं करता और एक न एक दिन उसे सजा अवश्य मिलती है. ऐसा ही एक सच्चा घटनाक्रम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर घटित हुआ है. पुलिस को युवक की हत्या की गुत्थी को सुलझाने में 10 साल लग गए. आखिरकार उसे 10 साल बाद अपने अपराध की सजा मिल ही गई. देखिए! क्या और कैसे घटनाक्रम बदला. दरअसल,  पुलिस हत्या की फाइल तक बंद कर चुकी थी. लेकिन आखिरकार अब नया सुराग मिलते ही पुलिस ने हत्या के आरोप में दो आरोपीयों को गिरफ्तार कर सजा दिलाई है. तथ्य सामने आया है कि आरोपी ने अपने “अवैध संबंध” को छुपाने के लिए युवक की हत्या की थी. लेकिन उसने बातों में आखिरकार दस साल बाद इसकी जानकारी अपने दोस्त को  दे दी और बात पुलिस तक पहुंच गई. इस तरह एक दोस्त ने ही कानून की मदद कर अपने अपराधी दोस्त को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

ये भी पढ़ें- MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार

सर कुचल कर हत्या

10 साल पहले जनवरी 2011 में राजधानी रायपुर के खरोरा थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की हत्या हुई थी.  ग्राम कोसरंगी  में पुलिस को लेखराम सेन नाम के व्यक्ति की खेत में लाश मिली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि उसकी हत्या बेल्ट से गला दबाकर और सिर कुचलकर की गई थी. पुलिस इस अंधे कत्ल को सुलझाने की भरसक कोशिश की मगर जब कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने केस को खत्म कर दिया . लेकिन एक दिन अचानक पुलिस को 10 साल बाद सुराग मिला और आरोपी का राज खुल गया.

मुख्य आरोपी संतोष यादव ने कुछ दिन पहले इसी हत्या की पूरी दास्तां बातों बातों में अपने दोस्त को बताई . उसी दोस्त का जमीर जाग उठा और यह सच्चाई पुलिस तक पहुंच तक पहुंचा दी. फिर क्या था, पुलिस ने दो आरोपीयों संतोष यादव और लोकेश यादव को धर दबोचा. पुलिस का भी मानना है यदि आरोपी इस हत्या के राज को राज ही रखता, तो उसका पकड़ा जाना नामुमकिन था. लेकिन हत्या का अपराध छुपता नहीं सो एक बार फिर सिद्ध हो गया कि खून सचमुच बोलता है!

ये भी पढ़ें- एक अदद “वधू चाहिए”, जरा ठहरिए !

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण तारकेश्वर पटेल ने हमारे संवाददाता को बताया दस साल पहले हत्या के मामले में पुलिस ने अज्ञात आरोपी के खिलाफ अपराध दर्ज किया था. सालों साल तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. रायपुर पुलिस ने पुराने गंभीर लंबित मामलों की समीक्षा की. जिसके बाद इस मामले को भी सुलझाने के निर्देश दिए गए थे. मामले की नए सिरे से जांच की गई. संदेह के आधार पर 2 युवक संतोष यादव और लोकेश यादव को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई.

पुलिस  पूछताछ में दोनों ने अंततः हत्या करना स्वीकार कर लिया. आरोपियों ने पुलिस को बताया कि मुख्य आरोपी संतोष यादव अपनी प्रेमिका को मिलने बुलाया था. जिस जगह पर वह मिल रहा था, वहां अचानक लेखराम सेन पहुंच गया और धमकाने लगा. अपने अवैध संबंध को छुपाने के लिए दोनों ने उसकी हत्या कर दी और शव को खेत में छोड़कर भाग गए. पुलिस ने दोनों आरोपी को प्रारंभिक साक्ष्य के आधार पर गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है.

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नोएडा के ककराला गांव की पुस्ता कालोनी में रात के ढाई बजे सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एक घर के बाहर जमा कालोनी के लोगों की भीड़ इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि वहां कोई अनहोनी हुई है. दरअसल, 7 मई 2021 की दरमियानी रात को पुस्ता कालोनी में रामचंद्र सिंह के मकान में किराए पर रहने वाले 52 वर्षीय संतराम की घर में घुस कर कुछ बदमाशों ने हत्या कर दी थी.

जिस वक्त ये वारदात हुई, रात के करीब एक बजे का वक्त था. पुलिस घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद करीब ढाई बजे पहुंची. ककराला गांव गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट के फेज-2 थानाक्षेत्र के अंर्तगत आता है.

फेज-2 थाने के प्रभारी सुजीत कुमार उपाध्याय उस समय कुछ सिपाहियों के साथ गश्त कर रहे थे. जब कंट्रोलरूम ने उन्हें ककराला में रहने वाले संतराम की उस के घर में हुई हत्या की खबर दी.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय अगले कुछ ही मिनटों में बताए गए घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर तब तक मकान में रहने वाले कुछ दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. संतराम की हत्या उस के सिर व चेहरे पर ईंटों के वार कर के की गई थी. पास ही खून से लथपथ एक ईंट इस बात की पुष्टि कर रही थी. कमरे का सारा सामान इधरउधर फैला पड़ा था.

मृतक की पत्नी सुशीला जिस की उम्र करीब 55 साल थी, पति के शव के साथ लिपटलिपट कर रो रही थी. किसी तरह पुलिस ने सुशीला को दिलासा दी तो उस ने सुबकते हुए बताया कि रात करीब साढे़ 12 बजे किसी ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया.

मैं ने जैसे ही दरवाजा खोला तो 3 लोग जबरदस्ती कमरे में घुस आए. कमरे में घुसते ही उन्होंने मुझे दबोच लिया और पूछा घर में कितने लोग हैं, जेवर और नकदी कहां रखे हैं. पूछताछ करते हुए उन्होंने मुझे एक के बाद एक साथ 3-4 थप्पड़ मारे और लातघूंसों की बारिश करते हुए मुझे जोर से जमीन पर धक्का दे दिया.

दीवार से सिर टकराने के कारण मैं उसी वक्त बेहोश हो गई. इस के बाद बदमाशों ने क्या किया, मुझे नहीं मालूम. जब कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैं ने अपने पति का शव इसी अवस्था में देखा जैसा इस समय आप देख रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Crime: शक की सुई और हत्या

इस के बाद मैं ने शोर मचा कर अपने मकान के दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों को एकत्र किया. बाद में अपने जेठ लालूराम को फोन किया. वह गौतमबुद्ध नगर के गांव धूममानिकपुर में रहता था. वह भी एक घंटे में सूचना पा कर आ गया.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को घटना का निरीक्षण करने और सुशीला के बयान से साफ लग रहा था कि संभवत: कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में घुसे होंगे.

घटना का जो खाका तैयार हुआ था उस की पुष्टि के लिए थानाप्रभारी उपाध्याय ने एकएक कर उस मकान में रहने वाले सभी किराएदारों, आसपड़ोस के लोगों और संतराम के बड़े भाई लालूराम से पूछताछ की तो पता चला कि संतराम घरों का निर्माण करने वाला छोटामोटा ठेकेदार था. ठेकेदारी में वह राजमिस्त्रियों की टीम ले कर निर्माण का काम करता था.

इस काम में वहीं आसपास रहने वाले उस के जानकार उस की टीम में शामिल होते थे. संतराम के बारे में एक अहम जानकारी यह मिली कि वह बेहद सरल स्वभाव का इंसान था. आज तक उस का किसी से झगड़ा या दुश्मनी की बात भी किसी को पता नहीं चली थी.

पुलिस को पूछताछ में किसी से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से हत्याकांड के बारे में तत्काल कोई सुराग मिल पाता.

सुशीला इस घटना की एकमात्र चश्मदीद थी, लेकिन उस ने पूछताछ में बताया कि उस ने आज से पहले कभी उन हमलावरों को नहीं देखा था, वह उन के चेहरे और हुलिए के बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं दे सकी. अलबत्ता उस ने यह जरूर कहा कि अगर वे लोग दोबारा उस के सामने आए तो वह उन्हें पहचान सकती है.

चूंकि जिस तरह बदमाशों ने घर में घुसते ही सुशीला के ऊपर हमला किया था, उस से जाहिर तौर पर कोई भी इंसान इतना घबरा जाता है कि वह किसी के चेहरेमोहरे को देखने की जगह पहले अपना बचाव और जान बचाने की कोशिश करता है.

लेकिन 2 ऐसी बातें थीं जो अब तक की जांच व पूछताछ में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को परेशान कर रही थीं. एक तो यह बात कि सुशीला के शरीर के सभी हिस्सों  का निरीक्षण करने के बाद भी उन्हें ऐसी कोई गुम या खुली हुई चोट नहीं मिली, जिस से साबित हो कि वह बेहोश हो गई थी. मतलब उस के शरीर पर खरोंच तक के निशान नहीं थे. दूसरे वह पुलिस को घर में लूटपाट होने वाले सामान की जानकारी नहीं दे सकी.

दरअसल, जिन बदमाशों ने घर में घुस कर एक आदमी की विरोध करने पर हत्या कर दी हो, क्या वह बिना कोई लूटपाट किए चले गए होंगे. दूसरे संतराम जिस हैसियत का इंसान था और किराए के मकान में जिस तरह का सामान मौजूद था, उसे देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस घर में लूटपाट करने के लिए बदमाश किसी की हत्या भी कर सकते हैं.

ऐसे तमाम सवाल थे जिन के कारण सुशीला पुलिस की निगाहों में संदिग्ध हो चुकी थी. लेकिन उस के पति की हत्या हुई थी इसलिए तत्काल उस से पूछताछ करना उपाध्याय ने उचित नहीं समझा.

इस वारदात की सूचना मध्य क्षेत्र के डीसीपी हरीश चंदर व एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल व इलाके के एसीपी योगेंद्र सिंह को भी लग चुकी थी. सूचना मिलने के बाद वे भी मौके पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन व फोरैंसिक टीम के अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे.

घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र किए गए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक संतराम के भाई लालूराम जो धूममानिकपुर थाना बादलपुर जिला गौतमबुद्ध नगर में रहता है, की शिकायत पर पुलिस ने 7 मई की सुबह भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया, जिस की जांच का जिम्मा खुद थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय ने अपने हाथों में ले लिया.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: चाची का आशिक- भाग 1

डीसीपी हरीश चंदर ने एसीपी योगेंद्र सिंह की निगरानी में हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय के साथ एसएसआई राजकुमार चौहान, एसआई रामचंद्र सिंह, नीरज शर्मा, हैडकांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल आकाश, जुबैर, विकुल तोमर, गौरव कुमार तथा महिला कांस्टेबल नीलम को शामिल किया गया. पूरे केस में पुलिस काररवाई पर नजर रखने के लिए एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी गई.

हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने सब से पहले संतराम के शव का पोस्टमार्टम कर शव को उस के परिजनों को सौंपा, जिन्होंने उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान दिल्ली व आसपास रहने वाले संतराम के काफी रिश्तेदार उस के घर पहुंच चुके थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो चुकी थी कि संतराम की मौत उस के सिर व चेहरे पर लगी चोटों के कारण हुई थी.

पुलिस टीम ने सभी बिंदुओं को ध्यान में रख क र अपनी  जांच शुरू कर दी. टीम ने सुशीला, उस के पति मृतक संतराम और उन के परिवार की कुंडली को खंगालना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात वाली रात को घटनास्थल के आसपास सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों का डंप डाटा भी उठा लिया और उन सभी मोबाइल नंबरों की जांचपड़ताल शुरू की जाने लगी, जो वहां सक्रिय थे.

पुलिस ने संतराम व सुशीला के फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली. इस के अलावा गांव में अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया.

संतराम पुत्र शंकर राम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के कस्बा व थाना रोजा का रहने वाला था. उस के परिवार में एक भाई लालू राम के अलावा 4 बहनें थी.

यह बात करीब 18-19 साल पहले की है. उन दिनों संतराम अपने गांव व आसपास के इलाकों में राजमिस्त्री का काम करता था. उम्र बढ़ रही थी और उस ने शादी की नहीं थी, इसलिए जो भी कमाता उसे अपने ऊपर खर्च करता था. इंसान के ऊपर जिम्मेदारियां न हों तो शराब ही अधिकांश लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है.

उसी के गांव में बालकराम भी रहता था, जो उसी की बिरादरी का होने के साथ पेशे से राजमिस्त्री का ही काम करता था. यही कारण था कि संतराम की बालकराम से खासी गहरी दोस्ती थी. संतराम का उस के घर भी आनाजाना था. बालकराम विवाहित था परिवार में पत्नी सुशीला और 5 बच्चे थे. 3 बेटे व 2 बेटियों में सब से बड़ा बेटा था.

ये भी पढ़ें- एक अदद “वधू चाहिए”, जरा ठहरिए !

संतराम बालकराम के साथ उस के घर में बैठ कर शराब भी पीता था. बालकराम की पत्नी सुशीला 5 बच्चे होने के बाद भी गेहुएं रंग और छरहरे बदन की इतनी आकर्षक महिला थी कि पहली ही नजर में कोई भी उस की तरफ आकर्षित हो जाता था. सुशीला थोड़ा चंचल स्वभाव की महिला थी.

अगले भाग में पढ़ें- संतराम व सुशीला की खुली पोल

MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

कोरोना काल में पप्पू यादव ने लोगों की मदद कर जान भी बचाई. बढ़ती महामारी कोरोना के बीच जिस समय देश में तमाम एंबुलेंस चालकरूपी गिद्ध पीडि़तों से मुंहमांगी

रकम वसूल रहे थे, सरकार भी जरूरतमंदों को जरूरी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में विफल थी, जिस की वजह से सैकड़ों मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. उसी दौरान पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने 7 मई को सारण जिले के अमनौर कस्बे के विश्वप्रभा सामुदायिक केंद्र परिसर में स्थित एक प्रशिक्षण केंद्र पर औचक छापा मार कर तहलका मचा दिया.

वहां नारंगी रंग के तिरपाल के अंदर दरजनों एंबुलेंस खड़ी मिलीं. यह सारण के भाजपा के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूड़ी का गांव है.

ये सभी एबुंलेंस सांसद राजीव प्रताप रूड़ी की देखरेख में वहां खड़ी थीं. पप्पू यादव ने सभी एंबुलेंस का वीडियो बनाया और अपने ट्वीट पर इसे पोस्ट करते हुए जोरदार सवाल उठाया कि सांसद निधि से खरीदी गई इतनी सारी एंबुलेंस यहां क्यों खड़ी हैं, इस की आधिकारिक जांच होनी चाहिए.

देखते ही देखते पप्पू यादव का यह ट्वीट बिहार सहित पूरे भारत में वायरल हो गया. देश के सभी बड़े टीवी चैनलों पर यह खबर प्रमुखता से चलने लगी. टीवी पर इसे ले कर डिबेट होने लगी. जिस ने भी यह खबर देखी, उस ने कोरोना महामारी की नाजुक घड़ी में राजीव प्रताप रूड़ी द्वारा इतने सारे एंबुलेंस को बेवजह खड़ी रखने के फैसले की निंदा की. इस के साथ ही बिहार में चल रही नीतीश कुमार की सरकार भी लोगों के निशाने पर आ गई.

ये भी पढ़ें- Crime: ओलिंपियन सुशील कुमार गले में मेडल, हाथ में मौत

इस के बाद बिहार की जनता नीतीश सरकार की नाकामियों पर तरहतरह के तीखे सवाल खड़े करने लगी. अभी कोरोना काल चल रहा था और सरकार लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने में पूरी तरह असफल साबित हो रही थी. पटना समेत पूरे बिहार में एंबुलेंस औपरेटर कोरोना मरीज के परिवार वालों से मनमाफिक किराया वसूल रहे थे.

ऐसे मुश्किल समय में बिहार की मौजूदा सरकार द्वारा सारण में खड़ी धूल फांक रही इन एंबुलेंसों का उपयोग कर हजारों मरीजों को समय रहते अस्पताल पहुंचा कर उन की जान बचा सकती थी. यह सभी एंबुलेंस कुछ साल पहले बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूड़ी द्वारा जनता की सेवा के लिए सांसद निधि से खरीदी गई थीं.

लेकिन कोरोना महामारी में लाचार लोगों को मरते हुए देखने के बावजूद बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव रूड़ी का खामोश रहना बिहार की जनता के प्रति उन के घोर नकारात्मक रवैए को दिखा रहा था.

एंबुलेंस के अभाव के कारण परिजनों द्वारा मरीजों को ठेलों पर लाद कर अस्पताल तक पहुंचाते देखा जा सकता था. ऐसी विकट परिस्थिति में अगर ये एंबुलेंस मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने के काम आ जातीं तो सैकड़ों गरीब असहाय लोगों की जानें बचाई जा सकती थीं.

ये भी पढ़ें- एक अदद “वधू चाहिए”, जरा ठहरिए !

वीडियो हुआ वायरल

पप्पू यादव द्वारा इस वीडियो को वायरल किए जाने के बाद सांसद राजीव प्रताप रूड़ी की तरफ से एक बेहद बचकाना सा बयान आया कि सभी एंबुलेंस ड्राइवरों के अभाव में यहां खड़ी हैं. जिस ने भी राजीव प्रताप रूड़ी का यह बयान सुना, सब ने इसे एक गैरजिम्मेदाराना बयान समझा.

बहरहाल, उन के इस बयान को सुन कर पप्पू यादव खामोश नहीं बैठे. उन्होंने जोरशोर से एंबुलेंस चालकों की तलाश शुरू की तो देखते ही देखते उन्होंने 40 कुशल चालकों की फौज खड़ी कर दी और राजीव प्रताप रूड़ी सहित नीतीश कुमार को इन्हें अपनी सेवा में लेने के लिए कहा. लेकिन सरकार ने इस मामले में एकदम चुप्पी साध ली.

बिहार सरकार का लोगों के प्रति ऐसा ढुलमुल रवैया देखने के बाद पप्पू यादव ने एक और ट्वीट करते हुए तंज कसा कि राजीव प्रताप रूड़ी इन एबुंलैंसों द्वारा नदी से बालू ढो रहे हैं. बालू ढोने के लिए उन के पास चालक हैं, लेकिन बीमारों की मदद करने के लिए उन के पास चालक नहीं हैं. प्रमाण के तौर पर उन्होंने नदी से बालू ढो रहे एंबुलेंस की फोटो भी पोस्ट की.

इस के बाद दोनों नेताओं के बीच एक तीखी बयानबाजी शुरू हुई. इस पर अमनौर थाने में पप्पू यादव के खिलाफ कोविड नियम भंग करने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया गया. पप्पू यादव ने सांसद राजीव प्रताप रूड़ी के पीए द्वारा फोन पर गालीगलौज करने का भी आरोप लगाया.

ये भी पढ़ें- Crime: शक की सुई और हत्या

पप्पू यादव को भेजा जेल

पप्पू यादव द्वारा बिहार की सुशासन की कुव्यवस्था उजागर किए जाने के बाद नीतीश सरकार तिलमिला कर रह गई. सरकार के शीर्ष नेताओं ने सोचा कि अगर पप्पू यादव बिहार की जनता को इसी तरह एक के बाद एक सरकार की नाकामियां गिनाते रहे तो उन का सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए पप्पू यादव को किसी तरह गिरफ्तार करने की योजना तैयार की गई.

अत: 10 मई, 2021 को पटना के 5 थानों की पुलिस ने लौकडाउन का उल्लंघन करने, बगैर पुलिस अनुमति के बाहर घूमने और सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में पप्पू यादव को बुद्धा कालोनी स्थित उन के आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें गिरफ्तार कर पहले पटना के गांधी मैदान थाने लाया गया. फिर 32 साल पुराने अपहरण के एक पुराने मामले की जांच के लिए मधेपुरा पुलिस को सौंप दिया गया.

अगले भाग में पढ़ें-जेल में ही हो गया था इश्क

Manohar Kahaniya- पाक का नया पैंतरा: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

गिरफ्तार तसकरों से मिली सूचनाओं पर एनसीबी ने पंजाब में औपरेशन इकाई को सतर्क कर दिया. तसकरों के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए एनसीबी ओर बीएसएफ सहित विभिन्न खुफिया एजेंसियों ने पंजाब में तसकरों की घेराबंदी शुरू कर दी.

पंजाब में तसकरों की हुई तलाश

एनसीबी ने 7 जून को फिरोजपुर जिले में किचले गांव में काला सिंह के घर पर छापा मारा. घर पर उस के पिता जोगेंद्र सिंह मिले. उन से पूछताछ की गई, लेकिन कोई खास जानकारी नहीं मिली. 4 दिन की कड़ी पूछताछ के बाद एनसीबी के डीडीजी ज्ञानेश्वर सिंह के नेतृत्व में एक दल बीकानेर में गिरफ्तार किए दोनों तसकरों रूपा और हरमेश को ले कर 8 जून को पंजाब गया.

बीएसएफ का दल भी एनसीबी अधिकारियों के साथ पंजाब गया. दोनों एजेंसियों ने गिरफ्तार दोनों तसकरों की निशानदेही पर कई तरह की जांचपड़ताल की. दोनों के आपराधिक रिकौर्ड खंगाले गए. काला सिंह और बौस के बारे में भी जानकारी जुटाई गई. कई संदिग्ध लोगों से भी पूछताछ की गई.

पंजाब से लौट कर एनसीबी ने बीकानेर की खाजूवाला कोर्ट में हेरोइन के सैंपल पेश किए. एनसीबी के जौइंट डायरेक्टर उगमदान सिंह दोनों गिरफ्तार तसकरों और बरामद हेरोइन के सैंपल ले कर अदालत पहुंचे. इस दौरान बीएसएफ का दल भी उन के साथ था.

तसकरों की काल डिटेल्स के आधार पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 12 जून को राजस्थान में सीमाई इलाकों में रहने वाले 3 युवकों को भी हेरोइन तसकरी के मामले में गिरफ्तार किया. इन युवकों ने पंजाब के तसकरों की मदद की थी.

तसकरों ने रावला स्थित 10 केएनडी के रहने वाले सुखप्रीत के सिमकार्ड का उपयोग बात करने में किया था. कड़ी पूछताछ के बाद सुखप्रीत और उस की निशानदेही पर उस के 2 साथियों को पकड़ा गया.

दूसरी ओर, एनसीबी ने पहले गिरफ्तार 2 तसकरों रूपा और हरमेश का 7 दिन का रिमांड पूरा होने पर 12 जून, 2021 को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया. इन दोनों से की गई पूछताछ और पंजाब में जा कर की गई पड़ताल में यह बात सामने आई कि पंजाब की जेल में बंद कुख्यात तसकर बलदेव और जोगेंद्र उर्फ समीर जेल से ही तसकरी का नेटवर्क औपरेट कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: प्यार की ये कैसी डोर

बीकानेर सीमा पर हेरोइन तसकरी की वारदात में शामिल रहे काला सिंह और बौस इन के गिरोह के ही सदस्य हैं. बलदेव और जोगेंद्र वाट्सऐप काल के जरिए इन से संपर्क में रहते थे.

बीएसएफ और एनसीबी की जांचपड़ताल में सामने आया कि भारत में नारको टेरेरिज्म फैलाने की साजिश में जुटे पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से भारत में बड़े पैमाने पर हेरोइन आती रही है. यह हेरोइन कई रास्तों से भारत में आती है.

ढाई साल पहले पुलवामा की घटना के बाद जम्मूकश्मीर सीमा पर सख्ती बढ़ने से तसकरी की गुंजाइश कम हो गई थी. इस के अलावा पंजाब से लगी पाकिस्तान सीमा के रास्ते भी तसकरी होती रही है. अब पंजाब सीमा पर भी सख्ती होने से तसकरों ने पिछले कुछ समय से राजस्थान से लगी सीमाओं को तसकरी के लिए सेफ पौइंट मान कर प्रयास शुरू किए हैं.

इस के लिए उन्होंने तारबंदी के बीच में से पीवीसी पाइप निकाल कर उस में से हेरोइन के पैकेट धकेलने का नया तरीका अपनाया है. यह सुखद रहा कि हेरोइन तसकरों को इस नए प्रयोग के दौरान सब से बड़ी मात खानी पड़ी. तारबंदी के बीच पीवीसी पाइप निकालने के दौरान खासी सावधानी भी रखनी पड़ती है, क्योंकि तारबंदी में एक कोबरा तार होता है, जिस में करंट प्रवाहित होता रहता है.

इसी साल फरवरी में राजस्थान के सीमांत इलाके में हिंदुमल कोट मदनलाल बीओपी क्षेत्र में पाकिस्तानी तसकरों ने 6 किलोग्राम हेरोइन सप्लाई की थी. इस में से केवल एक किलोग्राम हेरोइन बरामद हुई. बाकी 5 किलोग्राम हेरोइन भारतीय तसकर ले जाने में सफल हो गए थे. इस मामले में 5 तसकर पकड़े गए थे.

ये भी पढ़ें- Crime- लव वर्सेज क्राइम: प्रेमिका के लिए

नवंबर 2020 में गजसिंहपुर में 8 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी थी. इस दौरान बीएसएफ की फायरिंग में एक पाकिस्तानी तसकर मारा गया था. भारतीय तसकर भाग गए थे. अप्रैल 2019 में इंद्रजीत सीमा चौकी इलाके में 18 किलोग्राम हेरोइन की तसकरी हुई थी. इस मामले में पंजाब के अबोहर निवासी छिंदा सिंह का नाम सामने आया था. बीकानेर बौर्डर पर पिछले साल अक्तूबर में पंजाब के एक तसकर से सेटेलाइट फोन मिला था.

भारत में कई रास्तों से हेरोइन आती है. अफगानिस्तान से जमीनी स्तर पर पाकिस्तान के रास्ते विभिन्न बौर्डरों से आती है. हवाई मार्ग से भी हेरोइन आती है. समुद्री रास्तों के जरिए भी हेरोइन भारत में पहुंचती है. इस के अलावा नेपाल के रास्ते भी हमारे देश में हेरोइन लाई जाती है.

विभिन्न रास्तों से भारत में आने वाली हेरोइन की सब से ज्यादा खपत पंजाब, मुंबई और दिल्ली में होती है. वैसे तो हेरोइन की खपत पूरे देश में है. बौलीवुड में भी बड़ी मात्रा में हेरोइन की चोरीछिपे खपत होती है.

बहरहाल, पाकिस्तान से जुड़े राजस्थान बौर्डर पर बीएसएफ ने अब तक की सब से बड़ी हेरोइन तसकरी की खेप पकड़ कर पाकिस्तानी तसकरों के नए रास्ते का भंडाफोड़ कर दिया है, लेकिन तसकरों के नेटवर्क को नेस्तनाबूद करना बीएसएफ और एनसीबी के लिए चुनौती है.

Crime: ओलिंपियन सुशील कुमार गले में मेडल, हाथ में मौत

आज सुशील कुमार जिस मुकाम पर हैं, उन का नाम एक बड़े अपराध से जुड़ना वाकई दुखद है और सवाल खड़ा करता है कि क्यों किसी नामचीन पहलवान ने ऐसी वारदात को अंजाम दिया, जो उस की जिंदगी को पूरी तरह बरबाद कर सकती है?

यह सवाल उठने की एक वजह यह भी है कि सुशील कुमार ने कुश्ती में जो कारनामे किए हैं, वह कोई हंसीखेल नहीं है, वरना साल 2008 से पहले चंद खेल प्रेमियों को छोड़ दें तो बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता था कि सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, अखिल कुमार और विजेंदर सिंह में से कौन मुक्केबाज है और कौन पहलवान.

लेकिन भारत ने साल 2008 में चीन में हुए बीजिंग ओलिंपिक खेलों में जो ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था, उस में कुश्ती में सुशील कुमार और मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह ने कांसे का तमगा जीता था. तब से सुशील कुमार ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वे न केवल साल 2010 में वर्ल्ड चैंपियन बने, बल्कि साल 2012 में इंगलैंड के लंदन ओलिंपिक में कांसे के तमगे का रंग बदलते हुए उसे चांदी का कर दिया था.

देश की जनता और सरकार ने भी सुशील कुमार को प्यार और तोहफे देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खेल जगत का हर बड़ा अवार्ड तो मिला ही, उन्हें नौकरी भी ऐसी दी गई कि वे भविष्य के पहलवानों को अपनी निगरानी में तराश सकें. इतना ही नहीं, 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के गोल्ड मेडलिस्ट और सुशील कुमार के गुरु महाबली सतपाल ने उन्हें अपना दामाद बनाया.

एक मुलाकात में मैं ने महाबली सतपाल से पूछा था कि उन्होंने सुशील को ही अपनी बेटी सवी के लिए क्यों चुना? तब अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए उन्होंने मु झ से ही सवाल कर दिया था कि क्या आज की तारीख में मेरी बेटी के लिए सुशील से योग्य वर तुम्हें कोई दूसरा दिखता है?

सवी से शादी हुई और सुशील कुमार जुड़वां बेटों के पिता बने. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने छोटे भाइयों का भी खास खयाल रखा. नजफगढ़ में उन्होंने ‘सुशील इंटरनैशनल’ नाम से एक स्कूल खोला, जिसे उन के भाई संभालते हैं.

फिर ऐसा क्या हुआ कि एक गरीब ड्राइवर के बेटे सुशील कुमार को यह तरक्की और जनता का प्यार रास नहीं आया और उन के साथ धीरेधीरे ऐसे विवाद जुड़ते गए, जो उन्हें अर्श से फर्श तक ले आए?

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा

जितना मैं ने सुशील कुमार को जाना और सम झा है, साल 2008 उन की जिंदगी का टर्निंग पौइंट था. बीजिंग ओलिंपिक में मेडल जीतते ही दिल्ली देहात का एक लड़का अचानक सुर्खियों में आ गया था. तब उन की उम्र 25 साल थी और उन्होंने अपनी जिंदगी के तकरीबन 12 साल उस छत्रसाल स्टेडियम में गुजार दिए थे.

पर अब चूंकि सुशील कुमार ओलिंपिक मैडल विजेता थे, तो लोग उन्हें अपने कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि न्योता देने लगे थे. पर तब उन के सामने एक बड़ी समस्या यह आती थी कि वे अपनी बात को उतनी आसानी और रोचक ढंग से लोगों के सामने नहीं रख पाते थे. उन की यह  िझ झक बहुत दिनों के बाद दूर हो पाई थी, वरना बहुत सी बार तो उन के कोच ही मीडिया के सवालों के जवाब दे दिया करते थे.

ऐसे ही एक समारोह में मैं ने सुशील कुमार का पहली बार इंटरव्यू किया था और वह भी ठेठ हरियाणवी भाषा में. यह भाषा उन के लिए सहज थी, तो वे भी हरियाणवी में बोलना शुरू हो गए थे. मेरे सवालों का जवाब देते हुए उन के चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिखा था.

इस के बाद हम बहुत बार मिले. ज्यादातर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में या फिर सोनीपत के पास बहालगढ़ स्पोर्ट्स अथौरिटी औफ इंडिया के कौंप्लैक्स में, जहां वे एक अलग अंदाज में रहते थे. इन दोनों जगहों पर वे अपने साथियों के साथ जमीन पर गद्दे लगा कर सोते थे और अपना खाना खुद बनाते थे.

जहां तक मु झे याद है, साल 2008 में ओलिंपिक मैडल जीतने के बाद सुशील कुमार के बहालगढ़ वाले कमरे में पहला एयरकंडीशनर लगा था, वरना मैं ने उन्हें मई की चिलचिलाती गरमी में तंबू में बिना पंखे के घोड़े बेच कर सोते देखा है. तब वे इस कहावत को सच साबित कर देते थे कि किसी सोते हुए पहलवान को नहीं जगाना चाहिए, क्योंकि मेहनत करने के बाद जब वह सोता है तो मुरदे के समान बेसुध हो जाता है.

चूंकि दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ज्यादातर पहलवान हरियाणा या दिल्ली देहात के होते थे, तो उन का हंसीमजाक भी उसी देशीपन से भरा होता था. वे सब तूतड़ाक की भाषा बोलते थे और जो पहलवान कसरत कम कर के खाने पर ज्यादा जोर देता था, उसे दूसरे पहलवान ‘चून’ (आटा) कह कर चिढ़ाते थे.

वैसे भी कुश्ती या पहलवानी से ऐसे बच्चों का नाता ज्यादा रहता है, जो पढ़ाईलिखाई में फिसड्डी ही होते हैं. घर के लोग उन से परेशान हो कर अखाड़े में भेज देते हैं, जहां से बहुत कम ही आगे की ट्रेनिंग के लिए बड़े शहर जा पाते हैं. उन में से भी कोई विरला ही सुशील कुमार बन पाता है.

कहने का मतलब यह है कि सुशील कुमार साल 2008 के बाद अपनी कड़ी मेहनत और कुश्ती के दांवपेंच से देश की शान तो बनते जा रहे थे, पर जिस स्टेडियम वाली जिंदगी से वे प्यार करते थे, वहां खेल की बारीकियां तो सिखा दी जाती थीं, लेकिन शिष्टाचार सिखाने वाले की बेहद कमी थी.

वैसे तो आप किसी भी क्षेत्र में हों, आप का शिष्टाचारी होना अच्छे इनसान होने की निशानी है, लेकिन खिलाडि़यों से भी इसी गुण की डिमांड ज्यादा रहती है. पर अफसोस, बड़े से बड़े खिलाड़ी शिष्टाचार के मामले में मात खा जाते हैं.

दुनियाभर में बहुत से खिलाड़ी पैसे से भले ही मालामाल हुए, पर शिष्टाचार के मामले में फुस निकले. हर कोई सचिन तेंदुलकर और अभिनव बिंद्रा की तरह सौम्य और शिष्टाचारी नहीं  बन पाया.

किसी खिलाड़ी का शिष्टाचारी होना क्यों जरूरी है? क्या शिष्टाचार खिलाड़ी में संयम बनाए रखता है? सरकार और खेल फैडरेशन वाले इस तरफ ध्यान

क्यों नहीं देते हैं? क्या अब समय आ गया है कि फैडरेशन वाले खिलाडि़यों  को शिष्टाचार सिखाने के लिए टीचर बहाल करें?

इन सब सवालों के जवाब महिला फुटबाल की कप्तान रह चुकी सोना चौधरी ने दिए, जो अब मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं और कई सरकारी संस्थाओं के मुलाजिमों को जीवन जीने की कला के टिप्स देती हैं.

सोना चौधरी ने इस मुद्दे पर बताया, ‘‘हर खिलाड़ी में साहस होना चाहिए, पर साथ ही उसे होश भी नहीं खोना चाहिए. एक मुकाम पर पहुंच कर हर खिलाड़ी को यह फैसला करना होता है कि उसे समाज में कैसी इमेज बनानी है. उसी हिसाब से आप अपना रोल मौडल भी चुनते हैं, फिर जरूरी नहीं है कि वह रोल मौडल नामी खिलाड़ी ही हो.

‘‘जब मैं फुटबाल खेलती थी, तब मैं मदर टैरेसा की बहुत बड़ी फैन थी. एक बार कोलकाता में हम ने उन से मिलने का समय भी ले लिया था, पर किसी वजह से मिलना मुमकिन नहीं हो पाया था.

ये भी पढ़ें- एक अदद “वधू चाहिए”, जरा ठहरिए !

‘‘कहने का मतलब है कि आप जिन गुणों को आत्मसात करना चाहते हैं, उसी मिजाज के लोगों से मिलते हैं या मिलने की कोशिश करते हैं.

‘‘जब आप किसी बड़े मुकाम पर पहुंच जाते हैं, तो आप का निजीपन खो जाता है. आप की समाज और देश के प्रति जवाबदेही बढ़ जाती है. उस रुतबे को बरकरार रखने के लिए और भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

‘‘हर कदम सोचसोच कर रखना पड़ता है, हर शब्द सोचसोच कर बोलना पड़ता है, क्योंकि किसी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर आप जो भी बोलते हैं, उसे बहुत से लोग सुनते हैं और अपनी जिंदगी में ढालने की कोशिश करते हैं.

‘‘खिलाड़ी को अपने शिष्टाचार का बहुत ध्यान रखना चाहिए. इस से उस की इमेज बनती है. सरकार और खेल फैडरेशन को अलगअलग फील्ड के माहिर लोगों को बुला कर खिलाड़ी की हर तरह से इमेज डवलप करानी चाहिए. इस के लिए कौंट्रैक्ट पर भी लोगों को रखा जा सकता है.

‘‘लेकिन यह एक बार की ट्रेनिंग से मुमकिन नहीं है, बल्कि यह तो बारबार होना चाहिए, 15 दिन में या महीने में जरूर. तभी कोई खिलाड़ी अच्छा इनसान भी बनता है.

‘‘याद रखिए कि कोई खिलाड़ी बड़ी मुश्किल से ऊंचे मुकाम तक पहुंच पाता है, पर अच्छा इनसान उस से भी मुश्किल से बनता है.

‘‘मेरा मानना है कि शिष्टाचार किसी को डराने की प्रेरणा नहीं देता है, बल्कि यह तो दूसरों को भी गलत राह पर जाने से रोकता है.’’

जहां तक खिलाडि़यों और अपराध के संबंध की बात है, तो रोहतक, हरियाणा के एक वकील नीरज वशिष्ठ का कहना है, ‘‘सभ्य समाज में ऐसे अपराध की कोई जगह नहीं है और जब अपराध खेल जगत में अपने दबदबे के लिए दस्तक देने लगे तो हमें जरूर सोचना चाहिए. जिस खेलकूद से हम अपने बच्चों का भविष्य जोड़ कर देखते हैं, उस में अगर ‘‘मैं ही सबकुछ’’ की जिद हावी हो जाती है तो उस से न केवल खेल, बल्कि उस में शामिल सभी का नुकसान ही होता है.

‘‘हम सब को इस आपराधिक सोच को रोकना होगा, नहीं तो खेल जगत में जो नाम हमारे देश ने हासिल किया है, उसे धूल में मिलते देर नहीं लगेगी.’’

देशदुनिया में इतना नाम मिलने के बावजूद आज अगर सुशील कुमार इस हालत में हैं, तो कानून को भी बारीकी से उन सभी पहलुओं पर गौर करना होगा, जो उन के अपराधी बनने में मददगार साबित हुईं. सागर धनखड़ को तो वापस नहीं लाया जा सकता, पर सुशील कुमार जैसे बड़े खिलाड़ी को अपराध की राह पर जाने से रोका जा सकता है.

कानून का काम केवल सजा दिलाना ही नहीं है, बल्कि अपराधी को अच्छा इनसान बनने की प्रेरणा देना भी कानून का ही फर्ज है.

बात थोड़ी फिल्मी है, पर साल 1971 में आई राजेश खन्ना की फिल्म ‘दुश्मन’ में उन के निभाए गए किरदार से शराब के नशे में गाड़ी चलाते हुए एक आदमी रामदीन की मौत हो जाती है, जिस के बाद कानून उस किरदार को रामदीन के परिवार की देखभाल करने की अनोखी सजा देता है.

लेकिन रामदीन का परिवार उस के साथ दुश्मन जैसा बरताव करता है. लेकिन राजेश खन्ना का किरदार न केवल उस परिवार के पालनपोषण की जिम्मेदारी उठाता है, बल्कि दुश्मन से दोस्त बन जाता है.

ये भी पढ़ें- Crime: शक की सुई और हत्या

क्या गुनाह साबित होने के बाद सुशील कुमार को भी ऐसी कोई सजा मिल सकती है, जो भारतीय समाज को फिल्म ‘दुश्मन’ जैसा ही संदेश दे जाए? ऐसी सजा जिस में किसी अपराधी को अच्छा इनसान बनने का मौका मिले और अगर वह नामचीन खिलाड़ी है, तो फिर ऐसा करना ज्यादा जरूरी हो जाता है.

सुशील कुमार की इस पैरवी की एक बड़ी वजह यह भी है कि अगर उन्हें आदतन अपराधी मान कर कड़ी सजा दी जाती है, तो यह उन नए पहलवानों का मनोबल तोड़ देगी, जो सुशील कुमार को गुरु मान कर अखाड़े में उतरे हैं.

आज सुशील कुमार को दुनिया के सामने तौलिए के पीछे मुंह छिपाने पर उन की खिल्ली उड़ाने वालों या उन्हें ‘गैंगस्टर’, ‘डौन’ कहने वालों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इस पहलवान ने दुनिया के मंच पर तिरंगे को फख्र से लहराने का काम कई बार किया है. अब तक आगामी टोक्यो ओलिंपिक में भारत के 8 पहलवानों ने अपना टिकट पक्का कर लिया है, उन में से ज्यादातर के आदर्श सुशील कुमार ही हैं.       द्य

और भी कांड हुए हैं

* हरियाणा के रोहतक में शुक्रवार, 12 फरवरी की शाम हुए एक हत्याकांड में 5 लोगों की मौत हो गई थी. मरने वालों में 2 कोच और एक महिला पहलवान शामिल थी. इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप अखाड़े में ट्रेनर का काम करने वाले सुखविंदर पर लगा था.

* इसी तरह साल 2019 के नवंबर महीने में हरियाणा की रहने वाली नैशनल लैवल की ताइक्वांडो खिलाड़ी सरिता जाट को कुश्ती के एक खिलाड़ी सोमवीर जाट ने गोली मार दी थी.

सोमवीर जाट सरिता से प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था, पर सरिता के मना करने पर वह बहुत ज्यादा गुस्सा हो गया था और उस ने सरिता की मां के सामने ही उस की छाती में गोली ठोंक दी थी.

इस वारदात के तकरीबन एक साल बाद आरोपी सोमवीर जाट को पुलिस ने राजस्थान के दौसा इलाके से गिरफ्तार किया था.

* साल 2015 में रोहतक के कबड्डी खिलाड़ी रह चुके सन्नी देव उर्फ कुक्की के सिर भी एक खून का इलजाम लगा था. कुक्की नैशनल लैवल का कबड्डी खिलाड़ी था. विरोधी पक्ष के हत्थे जब कुक्की नहीं लगा तो उस ने कुक्की के छोटे भाई और नैशनल लैवल के कबड्डी खिलाड़ी सुखविंदर नरवाल को गोलियों से भून डाला था.

* हरियाणा के लिए क्रिकेट खेल चुका सुरजीत रंगदारी के मामले में पुलिस के हत्थे चढ़ा था. वह रंगदारी से पैसा इकट्ठा कर के फिर से क्रिकेट खेलना चाहता था, लेकिन पैसे कमाने का उस का यह तरीका उसे जुर्म की राह पर ले गया.

* दिल्ली का जितेंद्र उर्फ गोगी वौलीबाल का नैशनल लैवल का खिलाड़ी था. उस का उठनाबैठना बदमाशों के साथ हो गया और उस ने खेल छोड़ कर दिल्ली, सोनीपत, पानीपत व दूसरी कई जगहों पर वारदात करनी शुरू कर दी थी.

Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

धीरेधीरे समय बीतता रहा. पूजा गर्भवती हो गई. वह बच्चे को ले कर बेहद संजीदा थी. पूजा ने एक दिन रात में पति को फोन पर किसी औरत से बात करते सुन लिया. जब उस ने पति से पूछा कि इतनी देर रात को किस से बात कर रहे हो तो उस की बात सुन कर वह एकदम से हड़बड़ा गया और उस के माथे पर पसीने छूट गए थे. फिर वह बातें बनाते हुए औफिशियल बात कह कर टाल कर चुपचाप सो गया.

न जाने क्यों पूजा को जितेंद्र पर संदेह हो गया था कि वह उस से कुछ छिपा रहा है. उस दिन के बाद से पूजा पति पर नजर रखने लगी. आखिरकार पूजा के सामने जितेंद्र की सच्चाई खुल कर आ ही गई.

पूजा को पता चल गया कि जितेंद्र की जिंदगी में कोई दूसरी औरत है. वह औरत कोई और नहीं, उस की पहली बीवी है. यानी जितेंद्र पहले से शादीशुदा था और उस ने इतनी बड़ी बात उस से छिपा कर रखी थी.

उस के प्यार और विश्वास के साथ उस ने इतना बड़ा धोखा किया. पूजा को ऐसा लगा जैसे काटो तो खून नहीं. वह सिर पकड़ कर धम्म से गिर गई और कोख के ऊपर हाथ फेरते हुए सुबकने लगी थी.

उस की आंखों के सामने जैसे अंधेरा छा गया था. पलभर के लिए जैसे सोच नहीं पा रही थी कि वह करे तो क्या करे, कहां जाए, किस के कंधे पर सिर रख कर रो ले, ताकि उस का दुख थोड़ा कम हो जाए.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 1

पूजा इतनी आसानी से जितेंद्र को छोड़ने वाली नहीं थी. क्योंकि उस ने उसे धोखे में रख कर उस की जिंदगी बरबाद की थी. औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने सुहाग को हिस्सों में बंटता कभी नहीं देख सकती. पहली औरत यानी सौतन को ले कर पूजा और जितेंद्र के बीच खूब झगड़ा हुआ.

उस ने जितेंद्र से सवाल किया कि मेरी जिंदगी को क्यों बरबाद किया, जब पहले से शादीशुदा थे, तो धोखा क्यों दिया? बताया क्यों नहीं उस के बच्चे भी हैं, जो कहीं और रहते हैं.

पूजा चुप बैठने वालों में से नहीं थी. एक दिन उस ने पति की पहली पत्नी अन्नू को फोन कर के सारी असलियत बता दी. पति की सच्चाई जान कर अन्नू बिफर गई और सौतन को ले कर दोनों में खूब झगड़ा हुआ. अन्नू ने पति को धमकी दी कि अगर उस ने सौतन पूजा से संबंध नहीं तोड़ा तो वह बच्चों के साथ आत्महत्या कर लेगी.

पत्नी की आत्महत्या कर लेने की धमकी से जितेंद्र बुरी तरह डर गया और अगले दिन धार पत्नी के पास पहुंच गया. जितेंद्र ने जो गलती की थी, उस का तो परिणाम यही होना था.

2 नावों पर सवार जितेंद्र अस्के की जिंदगी अब डगमगाने लगी थी. वह किसे छोड़े और किसे अपनाए, इसी ऊहापोह में डूबा हुआ था. दोनों पत्नियों के बीच जितेंद्र पिस कर रह गया था. मंझधार में अटका जितेंद्र किनारे की तलाश में भटक रहा था, लेकिन उसे वह किनारा मिल नहीं रहा था.

बात 22 अप्रैल, 2021 की है. जितेंद्र धार में पहली पत्नी अन्नू के साथ था. दोनों पत्नियों को ले कर महीनों से घर में महाभारत छिड़ी थी. बात नातेरिश्तेदारों तक पहुंच गई थी. चारों ओर जितेंद्र की थूथू हो रही थी.

अब पानी सिर के ऊपर से बहने लगा था. 2 दिन पहले ही जितेंद्र का छोटा भाई राहुल अस्के, जो मध्य प्रदेश पुलिस में एसआई था. उस की तैनाती छिंदवाड़ा में थी. उस समय वह घर आया था. राहुल की मौसी का बेटा नवीन भी वहां आया था.

उसी दौरान दोपहर के समय अन्नू के मोबाइल पर पूजा का फोन आया. पति के सामने फोन पर दोनों सौतनों के बीच खूब झगड़ा हुआ. पूजा ने पति को भी खूब खरीखोटी सुनाई.

ये भी पढ़ें- एक अदद “वधू चाहिए”, जरा ठहरिए !

बड़े भाई का अपमान राहुल देख नहीं पाया. उस के तनबदन में आग लग गई थी. उसी वक्त राहुल और नवीन ने जितेंद्र के सामने उस की सहमति से पूजा की हत्या की बात कही तो जितेंद्र ने अपनी ओर से उसे हरी झंडी दे दी. क्योंकि पूजा के रोजरोज के झगड़े से वह ऊब चुका था.

भाई की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद 23 अप्रैल की शाम राहुल और नवीन इंदौर के लिए रवाना हो गए. 24 अप्रैल को दोपहर में दोनों इंदौर के मल्हारगंज स्थित रामदुलारी अपार्टमेंट पहुंच गए. देवरों को देख कर पूजा खुश हुई थी. उसे क्या पता था कि जिन्हें देख कर वह खुश हो रही है, वह मेहमान के रूप में साक्षात यमदूत हैं, राहुल और नवीन को आते पड़ोसन सीमा ने देख लिया था.

खैर, पूजा देवरों को अंदर लाई और उन्हें कमरे में बिठाया और खुद उन के लिए चाय बनाने किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद 3 प्याली में चाय और एक प्लेट में नमकीन ले कर आई. तीनों ने एक साथ बैठ कर चाय पी.

जैसे ही पूजा खाली प्याली समेट कर किचन की ओर बढ़ी, तभी पीछे से राहुल और नवीन उस पर टूट पड़े. नवीन ने भाभी पूजा के दोनों पैर पकड़ लिए और राहुल ने गला घोंट कर उसे मार डाला. उस के बाद दोनों ने उस की लाश ले जा कर ऐसे सुला दी, जैसे वह बिस्तर पर सो रही हो. फिर दोनों फरार हो गए. तीनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी के तीनों हत्यारोपी कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के, एसआई राहुल अस्के और नवीन अस्के जेल की सलाखों के पीछे कैद थे. पूजा की मौत का जितेंद्र को जरा भी गम नहीं था. द्य

—कथा में सीमा परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

Satyakatha: नफरत की विषबेल- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

साल 2003 से 2009 तक हैदराबाद के विभिन्न थानाक्षेत्रों तुरपान, रायदुर्गम, संगारेड्डी, डुंडीगल, नरसापुर, साइबराबाद और कोकाटपल्ली में करीब 7 औरतों की हत्या कर के पुलिस को उस ने सकते में डाल दिया था.

सातों महिलाओं की एक ही तरीके से साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर हत्या की गई थी. पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि हत्यारा कोई एक है और वह भी सिरफिरा, जो सिर्फ महिलाओं को ही अपना शिकार बनाता है.

पुलिस ने पहली बार नरसंगी और कोकटपल्ली इलाकों में सन 2009 में हुई अलगअलग जगहों पर हुई हत्याओं को गंभीरता से लिया था. कोकाटपल्ली के इंसपेक्टर राधाकृष्ण राव ने अपने 3 काबिल सिपाहियों की मदद से 20-25 दिनों की कड़ी मेहनत से हत्या की कड़ी सुलझा ली थी और आरोपी माइना रामुलु को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पुलिस ने पहली बार शातिर माइना रामुलु के खिलाफ न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की थी. 2 साल बाद 2011 के फरवरी में अदालत ने आरोपी माइना रामुलु को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. साथ ही 50 हजार रुपए का जुरमाना भी भरने के आदेश दिए थे. जुरमाना न भरने की दशा में 6 महीने की अतिरिक्त सजा भी सुनाई.

कुछ दिनों तक तो शातिर माइना रामुलु सलाखों के पीछे कैद रहा. इसी दौरान उस ने पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे बिताने से बचने के लिए फिल्मी अंदाज में एक बेहद शार्प योजना बनाई. उस ने मानसिक रोगी की तरह कैदियों से व्यवहार करना शुरू कर दिया. जुर्म की दुनिया के माहिर खिलाड़ी रामुलु ने ऐसा अभिनय किया कि लोगों को लगा कि वह वाकई में बीमार है. इस के बाद उसे जेल से निकाल कर एर्रागड्डा मेंटल हास्पिटल में भरती करा दिया गया. यह नवंबर, 2011 की बात है.

एक महीने तक वहां रहने के बाद माइना रामुलु 30 दिसंबर, 2011 की रात पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग गया. यही नहीं, अपने साथ वह 5 अन्य कैदियों को भी भगा ले गया, जो मानसिक बीमारी का इलाज करा रहे थे.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: चरित्रहीन कंचन

उस के दुस्साहसिक कारनामों से पुलिस महकमे के होश उड़ गए. इस सिलसिले में एसआर नगर पुलिस स्टेशन में माइना रामुलु के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

पुलिस कस्टडी से फरार रामुलु फिर अपने शिकार में जुट गया था. सन 2012 में चंदानगर में 2 और 2013 में बोवेनपल्ली के डुंडीगल में 3 महिलाओं की हत्याएं कीं. पांचों महिलाओं की हत्याएं एक ही तरीके साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर की गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिलाओं की हत्या से पहले दुष्कर्म किए जाने की बात भी सामने आई थी.

पुलिस जांच में महिलाओं की हत्या एक ही तरीके से की गई थी. यह तरीका शातिर किलर माइना रामुलु का था. पुलिस को समझते देर न लगी कि इन हत्याओं के पीछे माइना रामुलु का हाथ है. पुलिस ने इन हत्याआें पर फिर से ध्यान देना शुरू किया. आखिरकार 13 मई, 2013 में बोवेनपल्ली पुलिस रामुलु को गिरफ्तार करने में कामयाब हो गई.

जुर्म के साथसाथ सचमुच माइना रामुलु कानून का एक माहिर खिलाड़ी था. उस के पास एक अच्छा वकील था या फिर उस के सिर पर किसी और ताकतवर व्यक्ति का हाथ, यह बात पुलिस के लिए भी पहेली बनी हुई है.

5 साल बाद उस ने तेलंगाना हाईकोर्ट में अपनी सजा कम कराने के संबंध में अपील की. वह अपनी सजा को कम करवाने में कामयाब रहा. 2018 के अक्तूबर में माइना रामुलु के पक्ष में फैसला आया और उसे जेल से रिहा कर दिया गया. एक बार फिर उस ने कानून के मुंह पर तमाचा मार दिया था.

जेल से रिहा होने के बाद रामुलु कुछ दिन शांत रहा और पत्थर काटने का काम करने लगा, ताकि लोगों को यकीन हो जाए कि वह सुधर गया है. यह उस का एक छलावा था. काम करना तो एक बहाना था, इस के पीछे उस की मंशा शिकार की तलाश करना था.

यह शिकार उसे यूसुफगुडा की 50 वर्षीया कमला बैंकटम्मा के रूप में मिली. बैकटम्मा से रामुलु की मुलाकात दिसंबर, 2020 में एक शराब की भट्ठी पर हुई थी. सम्मोहन कला से उस ने बैंकटम्मा को अपनी ओर खींच लिया था. बस शिकार को अंतिम रूप देना शेष था.

30 दिसंबर, 2020 की शाम थी. यूसुफगुडा के अहाते में कुछ लोग ताड़ी पी रहे थे. बैंकटम्मा और रामुलु ने भी ताड़ी पी. दोनों पर जब हलका सुरूर चढ़ा तो रामुलु के जिस्म में वासना की आग धधक उठी और वह बैंकटम्मा को अपनी आगोश में लेने के लिए बेताब हो उठा. लेकिन वहां लोग थे, इसलिए वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ.

इस बीच सूरज डूबने लगा था और रात की काली चादर फैला चुकी थी. रामुलु बैंकटम्मा को ले कर कंपाउंड से बाहर निकल गया. वे दोनों शहर के बाहरी इलाके में किसी सुनसान जगह की तलाश में चल पड़े. यूसुफगुडा से ये दोनों घाटकेश्वर इलाके के अंकुशापुर पहुंचे.  यह एक सुनसान जगह थी. दोनों ने यहां पहुंच कर थोड़ी और ताड़ी पी.

ये भी पढ़ें- Crime: शक की सुई और हत्या

इस के बाद रामुलु पूरी तरह बहक गया और बैंकटम्मा को अपनी हवस का शिकार बना डाला. फिर उस की साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और लाश रेलवे लाइन के पास ठिकाने लगा कर फरार हो गया.

हैदराबाद की तेजतर्रार पुलिस शातिर माइना रामुलु को वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गिरफ्तार करने में कामयाब हो ही गई. शातिर दिमाग वाला माइना रामुलु शायद यह भूल गया था कि उसे जनम देने वाली भी तो एक औरत ही है.

अगर उस की पत्नी ने उस के साथ धोखा किया था, तो सजा उसे मिलनी चाहिए थी न कि बेकसूर उन 18 महिलाओं को, जिन का न तो कोई दोष था और न ही उन्होंने उस का कोई अहित किया था.

रामुलु ने जो किया उस के किए की सजा सलाखों के पीछे काट रहा है. समाज के ऐसे दरिंदों की यही सजा होनी चाहिए. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने उस के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: शैली का बिगड़ैल राजकुमार- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मोनिका का पति अमनदीप वासी अमेरिका में जौब करता था और वहां की उसे स्थाई नागरिकता मिली हुई थी. मोनिका कुछ समय के अंतराल पर पति से मिलने अमेरिका जाती रहती थी. मोनिका के 14 साल की एक बेटी और 9 साल का एक बेटा था, जोकि उस के साथ ही रहते थे.

शैली शहर में आ कर रही तो उस ने अपना और अपनी बेटी का खर्चा उठाने के लिए करनाल की मुगल मार्केट में सोलर एनर्जी से जुड़ी एक कंपनी के औफिस में नौकरी कर ली थी.

कुछ दिन में राज भी उस के पास वहां आ कर रहने लगा. राज काम करना चाहता था. उस के पास पैसे नहीं थे. वह शैली से पैसों का इंतजाम करने को कहता था. राज को पता था कि शैली के पास काफी पैसा है और दिल्ली में पहले पति का फ्लैट भी उस के नाम है. राज ने जब काफी जिद की तो शैली ने पिछले साल 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के उसे पैसा कमाने के लिए पुर्तगाल भेजा.

भारती के प्यार ने बदल दी सोच

पुर्तगाल में राज किसी कंपनी में लग गया. इसी दौरान फेसबुक पर राज की मुलाकात 21 वर्षीय भारती से हुई. भारती करनाल के कौल गांव की रहने वाली थी. उस के पिता एक ज्वैलर थे.

भारती से फेसबुक पर दोस्ती हुई तो उन में बातचीत होने लगी. दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. भारती और राज एकदूसरे के बारे में जानने को उत्सुक थे. राज ने भारती को बताया कि वह शादीशुदा है लेकिन वह अपनी पत्नी से तलाक लेने वाला है.

पत्नी उम्र में बड़ी है और उस की एक बेटी है जिस की उम्र 21 साल है, जितनी उस की (भारती) उम्र है. शैली ने साजिश के तहत उस पर दबाव बना कर उस से शादी की थी. अब वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता है.

वैसे भी ऐसे बेमेल रिश्ते का खत्म हो जाना अच्छा है.

राज की बात सुन कर भारती खुश हुई. उस ने राज से बिना सोचेसमझे अपने प्यार का इजहार कर दिया. राज उस की हिम्मत की दाद देने लगा. राज भी यही चाहता था. उसे लगा था कि भारती को लाइन पर लाने में काफी समय लगेगा, लेकिन यहां तो वह खुद ही बिना देर किए उस की गोद में आ गिरी. राज ने भी उस से अपने प्यार का इजहार किया. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: नफरत की विषबेल- भाग 1

12 मार्च, 2021 को राज पुर्तगाल से वापस करनाल आ गया. वह भारती से मिला. दोनों मिल कर बहुत खुश हुए. इस के बाद उन की बराबर मुलाकातें होने लगीं. पुर्तगाल से वापस आते ही राज ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए. वह शैली से दिल्ली वाला फ्लैट बेचने का दबाव बनाने लगा. फ्लैट बेच कर मिलने वाले पैसों से वह अमेरिका जाना चाहता था.

शैली को हटाने की बनाई योजना

शैली ने साफ मना कर दिया. भारती से शादी करने के लिए वह शैली से तलाक देने की बात करने लगा. तलाक की वजह उस ने शैली को बताई कि उस के कोई बच्चा नहीं हो रहा, इसलिए वह तलाक लेना चाहता है.

जबकि शैली ने शादी से पहले ही उस से कह दिया था कि वह बच्चा नहीं चाहती. फिर भी अब राज उस से बच्चा न होने का उलाहना दे कर तलाक चाहता था. राज को शैली से तलाक पाने का यही सही तरीका लगा था. लेकिन शैली तलाक देने को तैयार नहीं हुई.

राज ने भारती को बताया तो भारती ने उस से कहा कि कैसे भी कर के उसे रास्ते से हटाओ, उस की हत्या करनी पड़े तो वह भी करो. शैली ने राज के लिए सारे रास्ते बंद कर रखे थे. इसलिए उस ने भी निश्चय कर लिया कि शैली से हर हाल में छुटकारा पाना है. इस के लिए राज और भारती ने योजना बनाई. योजना ऐसी कि जिस से मामला हत्या का नहीं, हादसे का लगे.

19 मई, 2021 को राज शैली और तान्या को बठिंडा में रहने वाले दादा से मिलवाने के लिए बाइक पर बैठा कर करनाल से चला. किरमिच के पास भाखड़ा नदी में जानबूझ कर उस ने अपनी बाइक गिरा दी. बाइक के साथ ही तीनों नदी में गिर गए. शैली और तान्या को तैरना नहीं आता था. राज यह जानता था, इसीलिए यह योजना बनाई थी.

नदी में गिरने पर राज ने लात मार कर शैली व तान्या को नदी के बीच में कर दिया, जिस से वे डूब कर मर जाएं. जब डूबने से दोनों की मौत हो गई, तब वह तैर कर नदी से बाहर निकला. फिर जेब में पन्नी में लिपटा मोबाइल निकाला और भारती को काल कर के दोनों का काम हो जाने की बात बताई.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दो नावों की सवारी

योजना में हुए सफल

बात करने के बाद फोन को नदी में फेंक दिया. वह चिल्ला कर लोगों को हादसा बताने का ड्रामा करने लगा. वहां लोगों से पत्नी और सौतेली बेटी के नदी में गिरने की बात कहने लगा, दोनों को तैरना नहीं आता, ये भी बात बताई.

पास में ही ईंट भट्ठे पर मजदूर काम करते थे. वे दोनों को बचाने के लिए नदी में कूद गए. काफी तलाशने पर शैली मृत अवस्था में मिली, जिसे वे मजदूर नहर से बाहर निकाल लाए. तान्या का कुछ पता नहीं चला. राज ने अपने परिवार वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घटनास्थल कुरुक्षेत्र जिले के केयूके थाना क्षेत्र में आता था. पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई.

सूचना पा कर केयूके थाने के एसएचओ राकेश राणा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. राज वर्मा ने उन्हें घटना के बारे में बताया. थानाप्रभारी राणा ने गोताखोरों को नदी में उतार कर तान्या की खोजबीन की, लेकिन तान्या का कुछ पता नहीं चला. इस पर उन्होंने शैली की लाश का निरीक्षण करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

राज ने मोनिका को शाम 4 बज कर 20 मिनट पर फोन कर के हादसा होने की जानकारी दी थी. जबकि घटना अपराह्न 3 बजे की थी. राज ने जो बताया, उस से मोनिका समझ गई कि राज ने दोनों को मारने का प्लान बनाया था, जिसे हादसा होना बता रहा है.

मोनिका ने केयूके थाने जा कर एक तहरीर दी, जिस में उस ने राज की हरकतों का ब्यौरा देते हुए अपनी बहन और उस की बेटी की हत्या का आरोप उस पर लगाया था. उस साजिश में राज के मातापिता, भाई और 3 बहनों पर आरोप लगाया था.

थानाप्रभारी राकेश राणा को पहले ही राज वर्मा की बातों पर शक था. मोनिका की तहरीर के बाद वह शक और भी पुख्ता हो गया. उन्होंने मोनिका को वादी बना कर राज वर्मा और उस के 6 पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद थानाप्रभारी राणा ने राज वर्मा को गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की तो वह गुमराह करता रहा. 21 मई, 2021 को उसे कोर्ट में पेश कर के एक दिन की रिमांड पर लिया गया.

ये भी पढ़ें- Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

राज वर्मा के फोन नंबर की काल डिटेल्स की जांच करने के बाद 22 मई को भारती को भी उस के गांव कौल से गिरफ्तार कर लिया गया. 22 मई को नया ऐंगल सामने आने के बाद कोर्ट से राज वर्मा की एक दिन की रिमांड और ली गई.

राज और भारती का आमनासामना करा कर पूछताछ की गई तो सारा भेद खुल कर सामने आ गया. पुलिस ने गोताखोरों की मदद से नदी से राज की बाइक बरामद कर ली. 23 मई, 2021 को जांबा गांव के पास नदी से तान्या की लाश भी बरामद हो गई. 23 मई को राजकुमार वर्मा और भारती को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और मोनिका से पूछताछ पर आधार

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

दीपा और शौर्य की भरतपुर की सूर्या सिटी में 7 नवंबर, 2019 को मकान में स्प्रिट से आग लगा कर हत्या कर दी गई थी. दीपा और शौर्य की हत्या का आरोप डा. सुदीप, उस की पत्नी डा. सीमा और मां सुरेखा गुप्ता पर है. इस मामले में उस समय तीनों की ही गिरफ्तारी हुई थी. बाद में पिछले साल यानी 2020 में मई से अगस्त महीने के बीच अलगअलग समय पर जमानत होने पर ये तीनों जेल से बाहर आए थे.

बदला लेने की भावना से डाक्टर दंपति की हत्या किए जाने की आशंका का पता चलने पर पुलिस ने दीपा के भाईबहनों की तलाश शुरू की. इस बीच, पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज हासिल कर लिए. इन फुटेज से पता चला कि डाक्टर दंपति को गोलियां मारने वाला युवक अनुज था. अनुज दीपा का भाई था.

अनुज और उस के साथ बाइक पर आए दूसरे युवक का पता लगाने के लिए पुलिस ने दीपा की बहन राधा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. राधा ने ही डेढ़ साल पहले बहन दीपा और भांजे शौर्य की हत्या का मुकदमा पुलिस में दर्ज कराया था. राधा को फुटेज दिखाने पर पता चला कि दूसरा युवक उन का रिश्तेदार महेश है. महेश धौलपुर जिले का रहने वाला था.

दोनों हत्यारों की पहचान हो जाने पर पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. उन के भरतपुर या धौलपुर जिले के डांग इलाके में भाग जाने की संभावना थी. दोनों की तलाश में सर्च अभियान चला कर पुलिस की कई टीमें विभिन्न इलाकों में छापे मारने में जुट गईं.

भरतपुर रेंज के आईजी ने भरतपुर व धौलपुर सहित आसपास के जिलों में दोनों आरोपियों की फोटो भेज कर उन की तलाश करने के निर्देश पुलिस अधिकारियों को दिए. साइबर सेल को भी सक्रिय कर दिया गया.

भरतपुर शहर में विभिन्न मार्गों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की मौनिटरिंग वाले अभय कमांड सेंटर से तमाम कैमरों की फुटेज देखी गई, ताकि हत्यारों के भागने की सही दिशा का पता चल सके. लेकिन पुलिस को इस में कामयाबी नहीं मिली.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: चाची का आशिक

दीपा के भाई अनुज का नाम सामने आने पर पुलिस ने उस की कुंडली खंगाली. पता चला कि वह भरतपुर जिले के रुदावल कस्बे में इसी साल 16 मार्च को हुई फायरिंग की घटना में भी शामिल था.

इस वारदात में बदमाशों ने 15-20 राउंड गोलियां चला कर रुदावल कस्बे मे दहशत फैलाई थी. पुलिस ने इस मामले में कुछ बदमाशों को बाद में पकड़ा था, लेकिन अनुज नहीं पकड़ा गया था. पता चला कि वह राजेश उर्फ लल्लू शूटर की गैंग का बदमाश था. राजेश का गैंग लूट और रंगदारी वसूलने के अपराध करती है. अनुज के धौलपुर के कुछ डकैतों से भी संबंध होने का पता चला.

डाक्टर दंपति की हत्या हो गई थी और उन के निजी अस्पताल में उस समय कई मरीज भरती थे. इस बात का पता चलने पर अधिकारियों ने अस्पताल के कर्मचारियों की मदद से उन सभी मरीजों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट कराया. डा. सुदीप के बाहर रहने वाले एकदो नजदीकी रिश्तेदारों को फोन से सूचना दी गई.

लौकडाउन के दौरान सरेआम दिनदहाड़े डाक्टर दंपति की हत्या होने से पुलिस और सरकार पर सवाल उठने लगे. सवाल उठने का दूसरा कारण यह भी था कि डाक्टर दंपति की हत्या से करीब 17 घंटे पहले ही भरतपुर सांसद रंजीता कोली की गाड़ी पर आधी रात के समय भरतपुर जिले के हलैना इलाके में हमला किया गया था.

सरकार की किरकरी होने पर दूसरे दिन 29 मई को जयपुर से चिकित्सा राज्यमंत्री डा. सुभाष गर्ग और एडीजी (कानून व्यवस्था) सुनील दत्त भरतपुर पहुंच गए. उन्होंने अधिकारियों की बैठक ली. हालात की समीक्षा कर कानून व्यवस्था की जानकारी ली.

बाद में एसपी देवेंद्र विश्नोई ने डाक्टर दंपति की हत्या के मामले में लापरवाही मानते हुए बीट कांस्टेबल और बीट प्रभारी को लाइन हाजिर कर दिया. वहीं, चिकित्सा राज्यमंत्री सुभाष गर्ग ने सुदीप और सीमा की हत्या को ले कर विवादित बात कही कि हर गलती सजा मांगती है. डाक्टर दंपति ने जो किया, उन्हें उस की सजा मिली. अब इन आरोपियों को भी मिलेगी.

दोपहर बाद पुलिस ने डा. सुदीप और डा. सीमा के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह घर वालों को सौंप दिए. डा. सुदीप के दोनों बच्चे नाबालिग होने और मां के कैंसर रोगी होने के कारण बाहर से आई सुदीप की बहन को शव सुपुर्द किए गए. बाद में पुलिस की मौजूदगी में दोनों शवों का एक ही चिता पर सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया.

डाक्टर दंपति के परिवार पर मंडराते खतरे को देखते हुए पुलिस ने उन के मकान और कुछ रिश्तेदारों के आवास पर पहरा लगा दिया. इस बीच, लगातार छापे मारने के बावजूद पुलिस को दूसरे दिन भी दोनों हत्यारों का सुराग नहीं मिला. पुलिस इन के रिश्तेदारों और परिचितों से पूछताछ करती रही और उन के मोबाइल ट्रेस करती रही.

तीसरे दिन 30 मई, 2021 को पुलिस ने इस मामले में भरतपुर के रहने वाले दौलत और धौलपुर जिले के रहने वाले निर्भान सिंह को गिरफ्तार कर लिया. इन में दौलत महेश का जीजा है. उसी ने महेश को वह बाइक दी थी, जिससे डाक्टर दंपति की हत्या की वारदात की गई.

ये भी पढ़ें- Crime: फ्री का लॉलीपॉप, बड़ा लुभावना!

दौलत पहलवानी करता है और जमीनजायदाद या जेवर गिरवी रख कर ब्याज पर रुपए देने का काम करता है. उस के दोनों कान टूटे हुए हैं. दूसरा आरोपी निर्भान सिंह दौलत का दोस्त था.

इन से पूछताछ में पता चला कि डाक्टर दंपति की हत्या की साजिश दौलत के घर पर ही रची गई थी. इस के लिए दौलत ने महेश को कुछ दिन पहले एक बाइक दे दी थी. महेश ने यह बाइक अनुज को दे दी थी. वारदात के वक्त महेश ही बाइक चला रहा था और अनुज पीछे बैठा था.

पुलिस के लिए अनुज और महेश की गिरफ्तारी ज्यादा बड़ी बात नहीं थी. हालांकि वे दोनों बदमाश थे और अपराधियों के सारे दांवपेच के साथ पुलिस से बचने के रास्ते भी जानते थे. मुख्य बात डाक्टर दंपति की हत्या के कारण का पता लगाना था. यह बात तो सामने आ गई थी कि डा. सुदीप और डा. सीमा की हत्या बदला लेने के लिए की गई थी, लेकिन इस में तात्कालिक कारण क्या रहे?

जांचपड़ताल में डाक्टर दंपति की हत्या का कारण जनचर्चाओं के अनुसार यह उभर कर सामने आया कि डा. सुदीप की प्रेमिका दीपा और उस के बेटे शौर्य की हत्या के केस में गवाही नहीं देने या बयान से मुकरने की बात चल रही थी.

दीपा के परिवार वाले डाक्टर से एक करोड़ रुपए मांग रहे थे और डाक्टर करीब 50 लाख रुपए देने को तैयार था. इसी बात पर दोनों पक्षों में बात नहीं बन रही थी.

दीपा और उस के बेटे शौर्य की हत्या के मामले में डा. सुदीप गुप्ता की जमानत 8 मई, 2020 को और डा. सीमा गुप्ता की 5 अगस्त, 2020 को हो गई थी. डाक्टर की मां सुरेखा भी जून 2020 में जमानत होने के बाद जेल से बाहर आ गई थी. तीनों के जमानत पर छूटने के बाद इस मामले में राजीनामे की बात चल रही थी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 2

इस मामले में अदालत में ट्रायल चल रहा था. मृतका दीपा की मां ओमवती, बहन राधा उर्फ राधिका और एक कांस्टेबल की गवाही के लिए सब से पहले 8 दिसंबर, 2020 की तारीख तय थी. इस के बाद इस साल जनवरी, फिर फरवरी, मार्च और 12 मई की तारीख की तय हुई थी, लेकिन इन में से किसी भी तारीख पेशी पर तीनों में से किसी की गवाही नहीं हो सकी.

दीपा के परिवार की ओर से लगातार समझौते का दबाव बनाया जा रहा था. डाक्टर दंपति भी इस केस से किसी तरह अपना पीछा छुड़ाना चाहता था. राजीनामे की बात इस पर अटकी हुई थी कि दीपा का भाई एकमुश्त रकम मांग रहा था और डा. सुदीप हर गवाही पर रकम देना चाहता था, ताकि कोई गड़बड़ न हो.

अगले भाग में पढ़ें- डा. सीमा ने दीपा और उस के बेटे को क्यों जलाया?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें