बापू की 150वीं वर्षगांठ में खूब किए गए आयोजन, लेकिन क्या गांधी के सपनों का भारत बन पाया?

”नमस्कार मैं भारत कुमार. हां कभी मुझे सोने की चिड़िया कहा जाता था पर अब नहीं रहा. पहले मुझे गांधी, नेहरू, पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महान शक्सियतों से पहचान मिलती थी लेकिन कमबख्त अब मुझे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे से भी पहचान मिल गई है. 2 अक्टूबर को हिंदुस्तान की आजादी के नायक महात्मा गांधी का 150वां जन्मदिन बनाया गया है. इसी दिन सोशल मीडिया के रणबांकुरे गांधी के हत्यारे को अमर कर रहे थे.

इतना ही नहीं टौप ट्रेडिंग में गोडसे अमर रहे था. उस दिन मैं समझ गया कि अब मेरी पहचान बदल गई है. अब मेरी पहचान गोडसे अमर रहे से हो रही है जोकि कभी नहीं होना चाहिए था. मुझे अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद करने वाले नायक के हत्यारे से जाना जाए ऐसा नहीं होना चाहिए. आज मैं व्यथित हूं लेकिन कुछ कर नहीं सकता. बस इंतजार है और भरोसा है कि एक दिन ये सब कुछ जरूर बदलेगा…”

ये भी पढ़ें- चावल घोटाले की पकती खिचड़ी

गांधी जयंती के दिन देश भर में  बड़े-बड़े आयोजन किए गए. करोड़ों रूपये की आहूति दे दी गई वो भी ऐसे दौर में जब देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. हालांकि सरकार इस बात को सिरे से नकारती आई है कि इस देश में किसी भी प्रकार की मंदी है लेकिन ग्रोथ रेट तो यही दर्शाता है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल कर राजनीति चमकाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

2 अक्टूबर के दिन दो दोनों में जुबानी जंग भी छिड़ गई. कोई पदयात्रा निकाल रहा है तो कोई मंचों से भाषणबाजी कर रहा है लेकिन कोई भी बापू के सपनों का भारत नहीं बना रहा है. गांधी जी के भारत में हिंदू-मुसलमानों की बात नहीं होती थी. गांधी के भारत में मौब लिंचिंग शब्द नहीं होता था. लेकिन अब सब हो रहा है. भले ही भारी-भरकम आयोजन कर के गांधी जी की 150वीं वर्षगांठ बनाने की कवायद की जा रही हो लेकिन ये तब तक सार्थक नहीं होगी जब तक गांधी के सपनों का भारत नहीं बनेगा.

पीएम मोदी ने स्मारक टिकटों और 40 ग्राम शुद्ध चांदी के सिक्के को महात्मा गांधी को समर्पित किया. इस टिकट और सिक्के को 15वीं गांधी जयंती पर बापू को समर्पित किया गया है. इस दौरान पीएम मोदी ने भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने में योगदान देने वाले स्वच्छाग्रहियों को सम्मानित किया गया.पीएम मोदी ने कहा कि बापू की जयंती का उत्सव तो पूरी दुनिया मना रही है.

ये भी पढ़ें- भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने डाक टिकट जारी कर इस विशेष अवसर को यादगार बनाया और आज यहां भी डाक टिकट और सिक्का जारी किया गया है. मैं आज बापू की धरती से, उनकी प्रेरणा स्थली, संकल्प स्थली से पूरे विश्व को बधाई देता हूं, शुभकामनाएं देता हूं. यहां आने से पहले मैं साबरमती आश्रम गया था. अपने जीवन काल में मुझे वहां अनेक बार जाने का अवसर मिला है. हर बार मुझे वहां पूज्य बापू के सानिध्य का ऐहसास हुआ लेकिन आज मुझे वहां एक नई ऊर्जा भी मिली.

अब हम यहां पर कुछ बात कर लेते हैं अर्थव्यवस्था की जिसका कोई जिक्र नहीं हो रहा है…

साल 2019-20 की पहली तिमाही के आंकड़े जारी किये गए हैं. जिनके अनुसार आर्थिक विकास दर 5 फीसदी रह गई है. बीते वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही के दौरान विकास दर 8 प्रतिशत थी. वहीं पिछले वित्तीय साल की आखिरी तिमाही में ये विकास दर 5.8 प्रतिशत थी. अर्थशास्त्री विवेक कौल के अनुसार यह पिछली 25 तिमाहियों में सबसे धीमा तिमाही विकास रहा और ये मोदी सरकार के दौर के दौरान की सबसे कम वृद्धि है.

विशेषज्ञ कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में तरक्की की रफ्तार धीमी हो रही है. ऐसा पिछले तीन साल से हो रहा है.उनका कहना है कि उद्योगों के बहुत से सेक्टर में विकास की दर कई साल में सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है. देश मंदी की तरफ़ बढ़ रहा है. लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क है ही नहीं. तभी तो सरकार ने हाउडी मोदी कार्यक्रम में आंख बंद कर खूब पैचे खर्च किए.

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार जून में ख़त्म होने वाली साल की पहली तिमाही में विकास दर में गिरावट से ये मतलब नहीं निकलना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गयी है. वो कहते हैं, “भारत में धीमी गति से विकास के कई कारण हैं जिनमे दुनिया की सभी अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती एक बड़ा कारण है.” वो सरकार के हिस्सा हैं तो ऐसी बातें तो करेंगे ही. लेकिन सच छिपता नहीं है. आज हर सेक्टर में सुस्ती देखी जा रही है.

ये भी पढ़ें- 16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति

पश्चिमी देशों में इसे हल्की मंदी करार देते हैं. साल-दर-साल आधार पर आर्थिक विकास में पूर्ण गिरावट हो तो इसे गंभीर मंदी कहा जा सकता है. इससे भी बड़ी मंदी होती है डिप्रेशन, यानी सालों तक नकारात्मक विकास. अमरीकी अर्थव्यवस्था में 1930 के दशक में सबसे बड़ा संकट आया था जिसे आज डिप्रेशन के रूप में याद किया जाता है. डिप्रेशन में महंगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी अपने चरम सीमा पर होती है.

साल 2008-09 में वैश्विक मंदी आयी थी. उस समय भारत की अर्थव्यवस्था 3.1 प्रतिशत के दर से बढ़ी थी जो उसके पहले के सालों की तुलना में कम थी लेकिन विवेक कॉल के अनुसार भारत उस समय भी मंदी का शिकार नहीं हुआ था.

चावल घोटाले की पकती खिचड़ी

अब तक रामदास एग्रो इंडस्ट्री के पुरुषोत्तम जैन, प्रीति राइस मिल के पंकज कुमार, मौडर्न राइस मिल के राजेश लाल और पावापुरी राइस मिल के दिनेश गुप्ता की तकरीबन 8 करोड़ की जायदाद जब्त की जा चुकी है.

बिहार राज्य खाद्य आपूर्ति निगम हर साल चावल मिलों को चावल निकालने के लिए सरकारी धान देता है. निगम द्वारा दिए गए कुल धान से निकलने वाले चावल का 67 फीसदी चावल निगम को लौटाना होता है. आरोपी मिल मालिकों ने निगम को चावल नहीं लौटाया और खुले बाजार में उसे बेच दिया.

बिहार में चावल मिल मालिकों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार नाकाम रही है. पिछले 5 सालों से चावल मिल मालिकों के पास बिहार राज्य खाद्य निगम के 1,200 करोड़ रुपए बकाया हैं. राज्य में 1,300 चावल मिलें ऐसी हैं, जिन्होंने धान ले कर सरकार को चावल नहीं लौटाया, इस के बाद भी धान कुटाई के लिए उन मिलों को दोबारा धान दिया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार नहीं सिर्फ हाहाकार है!

गौरतलब है कि पटना की 64 चावल मिलों पर 55.61, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण की 153 मिलों पर 63, बक्सर की 152 मिलों पर 101, औरंगाबाद की 207 मिलों पर 62.15, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, गया की 49 मिलों पर 40, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78, नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए की रकम बकाया है.

इस के अलावा सिवान, अरवल, शेखपुरा, मधुबनी, सारण, समस्तीपुर, लखीसराय,  गोपालगंज वगैरह जिलों की सैकड़ों छोटीमोटी चावल मिलों पर तकरीबन 90 करोड़ रुपए बकाया हैं.

चावल घोटाले का यह खेल पिछले 8 सालों से चल रहा था. साल 2011-12 में राज्य खाद्य निगम ने 17 लाख, 6 हजार टन धान किसानों से खरीदा था. सारा धान चावल मिलों को दे दिया गया था. चावल मिलों से 14 लाख, 47 हजार टन चावल सरकार को मिलना था, पर उन्होंने केवल 8 लाख, 56 हजार टन चावल ही लौटाया है. बाकी चावल चावल मिलों ने आज तक नहीं लौटाया. उस चावल की कीमत 1,200 करोड़ रुपए है.

बिहार महालेखाकार ने पिछले साल की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि धान को ले कर मिलरों ने सरकार को 434 करोड़ रुपए का चूना लगाया है. इस के बाद भी राइस मिल मालिकों पर कानूनी नकेल कसने में सरकार पता नहीं क्यों सुस्त रही?

बिहार राज्य खाद्य निगम के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, केवल 50 हजार रुपए की गारंटी रकम पर ही 3 से 6 करोड़ रुपए के धान चावल मिलों को सौंप दिए जाते रहे.

ये भी पढ़ें- 16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति

चावल मिलों को धान देने के बारे में नियम यह है कि भारतीय खाद्य निगम मिलों से एग्रीमैंट करता है, जिस के तहत मिलर पहले निगम को 67 फीसदी चावल देते हैं, जिस के बदले में उन्हें रसीद मिलती है. उस रसीद को दिखाने के बाद ही निगम द्वारा मिलों को 100 फीसदी धान दिया जाता है. इस मामले में हेराफेरी के बाद भी राइस मिलों को सरकारी धान कुटाई के लिए मिलता रहा और वे घोटाले का खेल साल दर साल खेलते रहे

चावल घोटाले के मामले में 1,300 बड़े बकायादार मिल मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है. गौरतलब है कि पिछले 5 सालों से चावल मिलों के मालिक 1,342 करोड़ रुपए बकाया देने में टालमटोल करते रहे हैं.

भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार नहीं सिर्फ हाहाकार है!

सितंबर का महीना वास्तव में भर-भर के सितम लेकर आया. खासकर के बिहार वासियों के लिए. पहले तो बारिश हुई नहीं और जब हुई तो ऐसी हुई कि बिहार की राजधानी पटना का 90 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया. कौन मंत्री, कौन संत्री, कौन ब्यूरोक्रेट कोई नहीं बच पाया.

जिस वक्त बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी आधे पानी में डूबकर घर से बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे थे उसको देखकर लग गया कि सरकार भी आधी डूब गई. हालांकि वो ठहरे सियासतदान. उनके लिए आनन-फानन व्यवस्थाएं की गई. जल्द से जल्द उनको पानी से बाहर सुरक्षित स्थान ले जाया गया. अब यहां थोड़ा जिक्र कर लेते हैं सुशासन बाबू की.

जी हां बिहार के सीएम नीतीश कुमार जिनको जनता ने सुशासन बाबू का खिताब दिया हुआ है. लालू के कुशासन से त्रस्त जनता से नीतीश कुमार को प्रदेश की कमान सौंप दी. नीतीश कुमार ने जनता के भरोसे को टूटने भी नहीं दिया. उसी का नतीजा है नीतीश कुमार लगातार तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. सुशासन बाबू के प्रदेश में कानून व्यवस्था तो सुधरी लेकिन नहीं सुधरा तो बिहार का इंफ्रास्ट्रक्चर. उसी का परिणाम है कि सरकार के नंबर दो सुशील मोदी को पानी में डूबकर घर से बाहर निकलना पड़ा.

ये भी पढ़ें- 16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति ट्रंप से लेकर तमाम बड़े नेताओं को सुनाई खरी-खोटी

जरा अब बात कर लेते हैं कि आखिरकार बार-बार ऐसा क्यों होता है. क्यों राजधानी पटना का ये हाल बना हुआ है. सुशासन बाबू ग्रह-नक्षत्रों को क्यों दोष दे रहे हैं. क्यों नहीं सुशासन कुमार इस बात से ताल्लुक रखते कि उनसे गलती हुई. जब तक एक इंसान ये स्वीकार नहीं करेगा कि उससे गलती हुई, तब तक वो उसको कैसे सुधारेगा. आज भी पटना की आधी आबादी को साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है.

लोग पानी के लिए तसर रहे हैं. बच्चों को दूध नहीं मिल रहा. घरों का सामान सड़ रहा है लेकिन माननीय मुख्यमंत्री जी पहले तो हवाई दौरा किया. उसके बाद 19 लग्जरी गाड़ियों का काफिला लेकर बाढ़ के हालात देखने निकले. सीएम के काफिले को देखकर लगा नहीं कि सीएम साहब वाकई पीड़ितों का दर्द बांटने आए हैं. जो तस्वीरें हमने देखी उसमें तो ऐसा लगा कि मानों सीएम साहब शक्ति प्रदर्शन कर रहे हों.

फिलहाल बारिश थम गई है. सोमवार को कभी-कभी सिर्फ बूंदाबांदी ही हुई. कुछ ऊंचे इलाकों से पानी हटा भी है. मगर अभी भी निचले इलाकों राजेंद्र नगर, कदमकुआं, पटना सिटी, कंकड़बाग और इंद्रपुरी-शिवपुरी में लाखों की आबादी जलजमाव में फंसी है. लेकिन बुधवार को फिर से मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया. यानी फिर मूसलाधार बारिश का अनुमान लगाया जा रहा है.

सरकार, प्रशासन की भूमिका और “राहत तथा बचाव” कार्यों की है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे नेचर (प्रकृति) से उत्पन्न आपदा मान चुके हैं, प्रशासन की विफलता इस बात से भी स्पष्ट हो जाती है कि राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और बिहार कोकिला कही जाने वालीं पद्मश्री गायिका शारदा सिन्हा जैसी बड़ी हस्तियों को तीन दिन बाद पानी से निकाला जा सका. ऐसे में आम आदमी की बात ही करना बेमानी सा लगता है. क्योंकि लाखों की आबादी जो अपने घरों में फंसी है, उसके लिए एनडीआरएफ़ की महज़ 33 नौकाएं ही काम कर रहे हैं.

यहां पर बड़ा सवाल ये है कि आखिरकार महज चार या पांच दिन की बारिश में ही पूरा पटना कैसे जल मग्न हो गया. लोग इसकी तुलना 1967 में आई प्रलयंकारी बाढ़ से करने लगे हैं. हालांकि वो बाढ़ नदियों के बढ़े जलस्तर और बांधों के टूटने के कारण आई थी. लेकिन इस बार तो ना कहीं बांध टूटे, ना कहीं नदी के उफ़ान से बाढ़ आया. 72 घंटों के दौरान करीब 300 मिमी की बारिश हुई. और इतने में ही पूरा पटना शहर डूब गया. ऐसा भी नहीं कि पटना में पहले कभी इतनी बारिश नहीं हुई, मुहल्लों में जलभराव नहीं हुआ, पर पटना के रहने वाले कह रहे हैं कि उनके जीवनकाल में ऐसे हालात कभी नहीं पैदा हुए.

ये भी पढ़ें- ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’: गरीबों के लिए बनी मुसीबत

सिलसिलेवार तरीके से हम बताते हैं कि आखिरकार ऐसा हुआ कैसे. पटना में जलप्रलय का पहला कारण तो ये कि शहर की ड्रेनेज व्यवस्था पूरी तरह फेल हो गई है. इसके ज़िम्मेदार पटना नगर निगम और बुडको दोनों है. दोनों में कोई समन्वय ही नहीं है. पटना को स्मार्ट सिटी का रूप दिया जा रहा है जिसकी वजह से जगह-जगह पर सड़कें खुदी हुई पड़ी हैं. खुदी हुई मिट्टी और कूड़ा करकट के अंबार ने ड्रेनेज को ब्लौक कर दिया है. पाइपों में मिट्टी भर गई है और कई जगह तो वो डूब ही गए हैं.

दूसरा कारण ये कि जिन नदियों में बारिश का पानी छोड़ा जाता है वे पहले से खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं. पानी का प्रेशर इतना बढ़ गया था कि सारे ड्रेनेज पहले से बंद कर दिए गए था. इसलिए पानी कहीं जा नहीं सका. पटना से सटे दीघा में गंगा नदी अपने 44 साल के जलस्तर के रिकार्ड को पार कर 50.79 मीटर पर आ गया है जो अभी तक के रिकौर्ड स्तर से महज़ 1.07 मीटर ही कम है. इसका प्रमुख कारण है सहयोगी नदियों पुनपुन, सोन और गंडक का जलस्तर, जो ख़तरे के निशान को पार कर चुका है.

तीसरा कारण है राहत बचाव कार्यों के नाकाफी इंतजाम. सीएम नीतीश कुमार बिहार में पिछले 15 सालों से सरकार चला रहे हैं वो इस बात को बोलकर नहीं बच सकते कि ये हथिनी नक्षत्र की वजह से हो रहा है. आपको ये मानना पड़ेगा कि पहले से कोई तैयारी नहीं थी. पूरा सिस्टम सूखे से निपटने की योजना बनाने में लगा था. कल्पना की जा सकती है कि जब इतनी बड़ी आबादी पानी में घिरी है, तब केवल 33 बोट ही राहत और बचाव कार्य में लगे हैं.

राहत और बचाव कार्यों में सुस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के एक बड़े इलाके राजीव नगर, इंद्रपुरी, शिवपुरी, पाटलिपुत्र कौलोनी जहां करीब एक लाख की आबादी फंसी है वहां तीसरे दिन एक बोट उपलब्ध कराई जा सकी. बीबीसी की एक रिपोर्ट में पता चलता है कि प्रशासन की तरफ से जो राहत और क्विक रिस्पांस टीम के नंबर जारी किए गए हैं, उनपर फोन नहीं लग रहा. अगर कहीं लग भी रहा है तो कोई रिस्पांड नहीं कर रहा.

ये भी पढ़ें- धोनी मामले में बड़ा खुलासा, पीठ दर्द की समस्या के

चौथा और सबसे अहम कारण है कि सरकारी सिस्टम इस बारिश का आकलन करने में पूरी तरह विफल रहा. पहले तो सब सूखे के इंतजार में आंख मूंद कर सोए रहे. और जब बारिश शुरू हुई तो उसकी भयावहता का अंदाजा नहीं लगा सके. बारिश छूटने का इंतजार होता रहा.

पांचवा कारण वही है जो मुख्यमंत्री ने कहा है. इस हालात लेकर बोली गई उनकी बात से ऐसा लगता है जैसे सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए हो. पटना को स्मार्ट सिटी बनाने का ख्वाब देख रही सरकार 300 मिलीमीटर वर्षापात से जमा पानी भी निकाल पाने में अक्षम है.

बिहार में एक बात तो है. शासन और प्रशासन में एक समानता देखी जा रही है. दोनों के मुंह से एक ही बयान सामने आ रहा है कि ये प्राकृतिक आपदा है ये पहले से बताकर नहीं आती. ये बात सबको पता है कि प्राकृतिक आपदा पर किसी का जोर नहीं है लेकिन अगर महज बारिश के बाद जलभराव से ये नौबत आ जाए कि 40 से 50 लोगों की मौत हो जाए तो आपको जवाब देना पड़ेगा. अगर आपकी बात मान भी ली जाए तो क्या फानी तूफान आने के बाद भी हम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते और इंतजार करते कि आपदा का. फिर लाशें गिनते फिर उनकी कीमतें लगा देते.

चक्रवाती तूफान फानी से निपटने के भारत के प्रयासों की संयुक्त राष्ट्र ने सराहना की थी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि भारतीय मौसम विभाग की सटीक और अचूक भविष्यावाणी से फानी से कम से कम नुकसान हुआ. दुनिया भर की प्राकृतिक आपदाओं पर निगाह रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की ‘डिजास्टर रिडक्शन’ एजेंसी यूएन औफिस फौर डिजास्टर रिडक्शन (UNISDR) ने कहा कि भारत के मौसम विभाग ने लगभग अचूक सटीकता के साथ फानी चक्रवात के बारे में जानकारी दी, इसका नतीजा ये हुआ कि सरकारी विभागों को लोगों को फानी के प्रभाव में आने वाले इलाके से निकालने के लिए पूरा वक्त मिला. इसके तहत 10 लाख से ज्यादा लोगों को आपदा राहत केंद्रों में ले जाया गया.

ये भी पढ़ें- जेब ढ़ीली कर देगा पान

16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति ट्रंप से लेकर तमाम बड़े नेताओं को सुनाई खरी-खोटी

ग्रेटा ने बड़े तीखे शब्दों से विश्व के कई नेताओं पर इस त्रासदी से निपटने के लिए कुछ नहीं करने का भी आरोप लगाया. आपने हमें फेल कर दिया है. युवा पीढ़ी ये समझती है कि आपने हमसे धोका किया है. हम युवाओं की नजरें आप पर हैं और अगर आप लोगों ने हमें असफल किया तो हम आपको कभी भी माफ नहीं करेंगे.

आपको यहीं पर एक लाइन खींचनी होगी. दुनिया जाग चुकी है और चीजें अब बदल रही हैं..ये चाहे आपको पसंद हो या न हो.’ जानते  हैं ये भाषण किसका है. ये किसी देश के बड़े राजनेता का नहीं है न ही किसी मोटीवेशनल स्पीकर का है बल्कि ये कहना है 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग का. जोकि स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं.

यूएन में आयोजित क्लाइमेट एक्शन समिट में दुनिया भर के नेताओं को फटकार लगाई. यूएन महासचिव गुतारेस के सामने दी गई ग्रेटा की स्पीच अब वायरल हो रही है और उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. इस स्पीच के अलावा ग्रेटा थनबर्ग की एक तस्वीर भी वायरल हो रही है. क्लाइमेट एक्शन समिट में पहुंचे ट्रंप के पीछे खड़ी ग्रेटा जिस निगाह से ट्रंप को देख रही हैं वो लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. ग्रेटा की आंखों में नाराजगी साफ नजर आ रही है.

ये भी पढ़ें- ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’: गरीबों के लिए बनी मुसीबत

ग्रेटा ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और इस आंदोलन को ‘Friday for future’ नाम दिया है. ग्रेटा कौन हैं, स्कूल जाने की उम्र में धरती बचाने का जिम्मा उठाने की प्रेरणा कहां से मिली, आइए ये सब जानते हैं.

10वीं क्लास की छात्रा ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 2003 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था. मां मलेना अर्नमैन स्वीडन की मशहूर ओपेरा सिंगर और पिता स्वांते थनबर्ग एक्टर हैं.‘Charity begins at home’ वाली कहावत से प्रभावित ग्रेटा ने पर्यावरण बचाने की शुरुआत अपने घर से की.

इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने माता पिता को लाइफ स्टाइल बदलने के लिए मनाया. पूरे परिवार ने नॉनवेज खाना छोड़ दिया और जानवरों के अंगों से बनी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दिया. कार्बन उत्सर्जन जिन चीजों से होता है उन सब चीजों का इस्तेमाल सीमित कर दिया.

9 सितंबर 2018 को स्वीडन में आम चुनाव होने वाले थे. उससे पहले ही स्वीडन के जंगलों में आग लगी हुई थी और 262 सालों की सबसे भीषण गर्मी पड़ रही थी. ग्रेटा 9वीं क्लास में थीं और फैसला किया कि जब तक चुनाव नहीं निपट जाते, वो स्कूल नहीं जाएंगी.

ये भी पढ़ें- धोनी मामले में बड़ा खुलासा, पीठ दर्द की समस्या के

क्लाइमेट चेंज के खिलाफ ग्रेटा ने 20 अगस्त 2018 यानी आम चुनाव से पहले मोर्चा खोल दिया. सरकार के खिलाफ स्वीडन की संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. तीन हफ्ते तक प्रदर्शन करते हुए ग्रेटा ने पर्चियां बांटीं जिन पर लिखा होता था ‘मैं इसलिए ये कर रही हूं क्योंकि आप अडल्ट लोग मेरे भविष्य से खेल रहे हो.’ उस वक्त भी उनकी एक तस्वीर वायरल हुई थी.

ग्रेटा ने जमीन पर प्रदर्शन करते हुए सोशल मीडिया की ताकत को पहचाना और उसे अपना हथियार बनाया. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर अपने प्रोटेस्ट की तस्वीरें शेयर करके लोगों को इस मुहिम से जोड़ा. उन्हें कम समय में भारी समर्थन मिला.

फरवरी 2019 में ग्रेटा को वैश्विक पहचान तब मिली जब 224 शिक्षाविदों ने उनके समर्थन में एक ओपन लेटर पर साइन किए. पिछले महीने अमेरिका पहुंची ग्रेटा से एक रिपोर्टर ने पूछा कि क्या वो ट्रंप से मिलने वाली हैं? इस पर उन्होंने कहा कि जब ट्रंप मेरी बातों को सुनने वाले नहीं हैं तो उनसे मिलकर मैं अपना समय क्यों बरबाद करूंगी?डॉनल्ड ट्रंप ने ग्रेटा की स्पीच पर रिएक्शन दिया है. ट्वीट करते हुए ट्रंप ने लिखा ‘वह हैप्पी यंग गर्ल नजर आ रही है, जो उज्ज्वल और अद्भुत भविष्य की तलाश में है. देख कर अच्छा लगा.’ इस व्यंग्यात्मक कमेंट पर भी लोगों ने ट्रंप को आड़े हाथों लिया है.

Video Credit – Sky News

ये भी पढ़ें- जेब ढ़ीली कर देगा पान

जेब ढ़ीली कर देगा पान

लेखक- शंकर जालान

देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता शहर में पान की एक ऐसी दुकान है, जहां एक पान की कीमत 1,001 रुपए से ले कर 5,001 रुपए तक है.

कालेज स्ट्रीट के पास बंकिम चटर्जी स्ट्रीट पर तकरीबन 83 साल पुरानी कल्पतरु भंडार नामक एक दुकान है. यहां 5 रुपए से ले कर 5,001 रुपए तक की कीमत के पान बिकते हैं. इस दुकान की मशहूरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुकान से इधरउधर एक किलोमीटर दूर से पूछने पर कोई भी शख्स ग्राहकों को इस दुकान तक पहुंचने का रास्ता बता देता है.

वैसे तो पान की चर्चा होते ही आम लोगों को बनारस की याद आती है और हिंदी फिल्म ‘डौन’ का गीत ‘खइके पान बनारस वाला…’ जबान पर आता है, लेकिन पान के शौकीनों को साल 1935 में खोली गई कल्पतरु भंडार दुकान याद आती है. वहां कम से कम 5 रुपए से ले कर 5,001 रुपए तक का पान बिकता है.

ये भी पढ़ें- गरीबों के अजीब मंदिर

इस दुकान पर कल्पतरु स्पैशल पान (सोना वर्क) 5,001 रुपए, कल्पतरु स्पैशन पान (चांदी वर्क) 1,001 रुपए, बादशाही पान 501 रुपए, बनारस रुचि पान 101 रुपए, मन मतवारा पान 51 रुपए, दिलखुश पान 21 रुपए, मुख विलास पान 11 रुपए और मुखरंजन पान 5 रुपए में मिलता है.

इस के अलावा इस दुकान पर ग्राहक की जेब के हिसाब से परीक्षा उत्तीर्ण पान, नौकरी प्राप्त पान, सम्मान प्राप्त पान, चुनाव फतेह पान, सगाई पान, शादी पान, सुहागरात पान व हनीमून पान बिकते हैं.

एक सवाल के जवाब में दुकान के मालिक श्यामल दत्त ने बताया कि कल्पतरु भंडार में बिकने वाले पान में कई ऐसी खूबियां हैं, जो इसे दूसरी पान की दुकानों से अलग पहचान दिलाती है. यहां जिस क्वालिटी का मसाला और सुपारी इस्तेमाल की जाती है, वैसी कहीं दूसरी जगह नहीं मिलती है. पान में डाला जाने वाला मसाला घर में बनाया जाता है.

श्यामल दत्त का दावा है कि कल्पतरु भंडार के पान कई नामचीन हस्तियों ने खाए हैं, जिन में प्रमुख हैं पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर जाकिर हुसैन, पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर वीवी गिरि, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी. इन के अलावा पूर्व सेना प्रमुख सहित कई राज्यपाल, कई मुख्यमंत्री, बौलीवुडटौलीवुड के लोकप्रिय कलाकार, मशहूर संगीतकार, गीतकार से ले कर बड़ेबड़े साहित्यकारों तक ने न केवल कल्पतरु भंडार का पान खाया है, बल्कि तारीफ भी की है.

श्यामल दत्त ने आगे बताया कि उन के यहां का पान खाने से मुंह लाल नहीं होता और पीक थूकने की जरूरत नहीं पड़ती. और तो और बगैर फ्रिज में रखे कई दिनों तक पान के स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता. कल्पतरु स्पैशल पान में नेहरू पत्ती, डौलर सुपारी, कश्मीरी टैबलेट, मेवा सुपारी, दूध सुपारी, गुलाब सुपारी, लखनऊवी सौंफ, छुआरा सुपारी, मेगुनी इलायची, स्पैशल मावा, केसरानी, ड्राई कत्थाचूना का इस्तेमाल होता है. इस पान को सोने के वर्क में 5,001 रुपए और चांदी के वर्क में 1,001 रुपए में बेचा जाता है.

इस के अलावा दूसरी तरह के पान में इस्तेमाल होने वाले मसाले देश की अलगअलग जगहों से मंगवा कर घर पर ही तैयार किए जाते हैं.

आईसी सुपारी, चांदी सुपारी, लच्छा सुपारी, छुआरा सुपारी, बनारसी सौंफ, मिल्की, टाका सुपारी, कश्मीरी टैबलेट, लौंग, इलाइची वाले पान 11 से 101 रुपए तक में बेचे जाते हैं. अलगअलग दाम वाले पान में अलगअलग मसालों का इस्तेमाल होता है.

ये भी पढ़ें- बदहाल सरकारी अस्पताल

यह बिकने वाले पान में 15 से 20 रुपए की सिर्फ सुपारी और 30 से 35 तरह के मसालों का इस्तेमाल होता है. मीठा पत्ता वे ओडिशा के भुवनेश्वर से मंगाते हैं और उन के यहां के पान देश के कई राज्यों के अलावा विदेशों में भी जाते हैं.

श्यामल दत्त ने बताया कि आजादी के पहले साल 1935 में अंगरेजी हुकूमत के दौरान उन के पिता राधा विनोद दत्त ने यह दुकान खोली थी. उस दौरान आसपास एक भी पान की दुकान नहीं थी, देखते ही देखते उन का पान लोकप्रिय हो गया. उसी दौरान पिताजी ने सोच लिया था कि बिलकुल अलग स्वाद वाला पान लोगों को खिलाएंगे, सो घर पर कच्चे मसाले व सुपारी मंगा कर वे इसे खास तरीके से तैयार करते थे.

साल 2001 में दुकान के संस्थापक यानी श्यामल दत्त के पिता की मौत हो गई. तब पेशे से इंजीनियर श्यामल दत्त ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे कर पिता की विरासत संभाली.

58 साल के श्यामल दत्त कहते हैं कि उन्हें सरकारी नौकरी छोड़ने का कोई गम नहीं है, बल्कि पान बेच कर पिता का नाम रोशन करने की खुशी है. पिता ने उन से एक ही बात कही थी, ‘बेटा, सत्य पर रहना, गलत मत करना. अपनेआप आगे बढ़ोगे.’

ये भी पढ़ें- मां के गर्भ में ही टूट चुकी थी 35 हड्डियां, रोंगटे खड़े कर

श्यामल दत्त अपने पिता की इस सीख को मान रहे हैं और मिठास के इस धंधे में आगे बढ़ रहे हैं.

पान के नाम और कीमत

कल्पतरु स्पैशल पान (सोना वर्क) :        5,001 रुपए

कल्पतरु स्पैशल पान (चांदी वर्क) :        1,001 रुपए

बादशाही पान       :        501 रुपए

बनारस रुचि पान    :        101 रुपए

मन मतवारा पान    :        51 रुपए

दिलखुश पान       :        21 रुपए

मुखविलास पान     :        11 रुपए

मुखरंजन पान      :        5 रुपए

गरीबों के अजीब मंदिर

एक विधवा को सुबह देखने से हमारा दिन खराब हो जाता है. हम सारी दकियानूसी बातों, परंपराओं, कुप्रथाओं का समर्थन करते हुए विश्व गुरु बनने का जो सपना देख रहे हैं, शायद वह खयालीपुलाव है या फिर आसमान के चांदसितारे तोड़ लाने की बातें.

हम आप को भारत के कुछ अजीबोगरीब मंदिरों के बारे में बताना चाहेंगे. लाखों की तादाद में लोग इन मंदिरों में माथा टेकते हैं और मन्नतें मानते हैं, जबकि इन मंदिरों को बनाने में चालाक किस्म के पंडेपुजारियों का हाथ रहता है.

मंदिर का झूठा गुणगान करने में इन की ही जातबिरादरी के लोग होते हैं. उन को पता होता है कि इन मंदिरों से हमारी बिरादरी वालों को फायदा होगा, बाकी लोग तो बेवकूफ बनेंगे.

इन मंदिरों में पुजारी सवर्ण जाति के ब्राह्मण पंडे ही होते हैं और मंदिर की मूर्ति का झूठा यशोगान कर के वे आम लोगों से ठगी करते रहते हैं. सरकार भी इन मंदिरों को इसलिए बढ़ावा देती रहती है कि इस देश की आम जनता में वैज्ञानिक सोच का विकास नहीं हो और वह मंदिरमसजिद में उलझी रहे.

चूतड़ टेका मंदिर

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के तकरीबन बीच में हनुमान का एक मंदिर है, जिस का नाम है चूतड़ टेका मंदिर. यहां पर परिक्रमा करने वाले लोगों को चूतड़ टेकना अनिवार्य माना जाता है.

कितना हास्यास्पद लगता है इस मंदिर में चूतड़ टेकना. अगर कोई सभ्य देश का नागरिक इस तरह का मंजर देखे तो पहली नजर में वह चूतड़ टेकने वाले को पागल ही समझेगा. इस मंदिर में पढ़ेलिखे और अनपढ़ सभी लोग आते हैं.

ये भी पढ़ें- मां के गर्भ में ही टूट चुकी थी 35 हड्डियां, रोंगटे खड़े कर देती है स्पर्श शाह की स्टोरी

बीड़ी बाबा का मंदिर

बिहार के भभुआ जिले के तहत अघौरा जाने वाले रास्ते में मुख्य सड़क के किनारे बीड़ी वाले बाबा का मंदिर है, जहां लोग चढ़ावे के रूप में बीड़ी चढ़ाते हैं और बीड़ी पीते भी हैं.

पूछने पर पता चला कि यहां एक बाबा थे जो बीड़ी पीने के शौकीन थे. उन की मौत हो जाने के बाद लोगों ने खुद ही मंदिर बनवाया और बीड़ी चढ़ाना शुरू कर दिया.

भूतना मेला

बिहार के औरंगाबाद जिले के तहत अमजेर शरीफ, मनोरा शरीफ, शिहुली वगैरह जगहों पर भूतना मेला लगता है, जहां भूतप्रेत से तथाकथित ग्रसित लोग अंधभक्ति का शिकार हो कर लोग आते हैं. इन मेलों में ज्यादातर वैसे लोग आते हैं जिन के कोई औलाद नहीं होती है.

इन मेलों में ज्यादातर हिस्टीरिया रोग से पीडि़त लोग आते हैं. मुरगे और बकरे की यहां पर कुरबानी दी जाती है.

इस मजार पर जमीन से संबंधित विवाद है और स्थानीय जमीन मालिक और सरकार के बीच मुकदमा चल रहा है. सब से बड़ी बात यह है कि साल में यहां पर 2 बार भूतना मेला लगता है. लाखों रुपए की इस से आमदनी है. अभी सरकार के अधीन है. इस का फायदा सरकार भी उठा रही है.

सिगरेट वाले बाबा

इंदौर में एक ऐसा मंदिर है, जहां सिगरेट चढ़ाई जाती है. इस मंदिर में आने वाला हर श्रद्धालु हारफूल, प्रसाद और अगरबती के साथ सिगरेट भी लाता है.

सिगरेट के हर डब्बे पर लिखा हुआ रहता है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, वहीं इस मंदिर में लोग सिगरेट चढ़ा कर एक धार्मिक और सामाजिक मान्यता दे रहे हैं, जो गलत है.

लंबे अंग वाले इलोजी

राजस्थान में इलोजी का मंदिर है. यहां कोई मूंछ रखे हुए देवता हैं. लंबा अंग, नंगधड़ंग. औरतमर्दों दोनों में प्रिय. मर्द इन के जैसा अंग चाहते हैं, काम शक्ति चाहते हैं और बेशक औरतें भी. दूल्हा नईनवेली दुलहन को अपने साथ ले जा कर दर्शन करता है. दुलहन इस का आलिंगन करती है. ब्याहता औरतें भी उस के अंग को छूती हैं और बेटे की प्राप्ति की कामना करती हैं.

ये भी पढ़ें- यह पौलिथीन आपके लिए जहर है!

इस मंदिर में आने वाले लोगों को अंधविश्वासी कहा जाए या फिर और कुछ? समाज में कुछ इस तरह की परंपराएं चल पड़ती हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उन्हें मानते चले आ रहे हैं. लोग वैज्ञानिक आधार पर कोई बात समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं. लोग यही बोलते देखे जाते हैं कि बापदादा करते थे, हम लोग भी कर रहे हैं.

वीजा वाले हनुमानजी

अहमदाबाद के इस चमत्कारिक हनुमानजी के मंदिर में लोग विदेश जाने के लिए भगवान से वीजा दिलाने की प्रार्थना करते हैं. मान्यताओं में आस्था रखने वाले लोग बड़ी तादाद में यहां आते हैं और कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप जाने के लिए भगवान से वीजा मांगते हैं.

सोचने वाली बात है कि अगर हम पासपोर्ट नहीं बनवाएंगे, वीजा के लिए कोई कोशिश नहीं करेंगे तो क्या इस मंदिर में माथा टेकने से वीजा मिल जाएगा? सारी कोशिश करने के बाद यहां अर्जी लगाते हैं और वीजा मिल जाता है तो अपनी मेहनत पर विश्वास न कर के इस मंदिर पर विश्वास करते हैं और दूसरे को भी बता कर इस ढकोसले को बढ़ावा देते हैं.

कुतिया महारानी मां मंदिर

बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जनपद में रेवन और ककवारा गांवों के बीच लिंक रोड पर कुतिया महारानी मां का एक मंदिर है, जिस में काली कुतिया की मूर्ति है.

झांसी के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा के बीच 3 किलोमीटर का फासला है. इन दोनों गांवों को आपस में जोड़ने वाले लिंक रोड के बीच सड़क किनारे एक चबूतरा बना है. इस चबूतरे पर एक छोटा सा मंदिरनुमा मठ बना हुआ है. इस मंदिर में काली कुतिया की मूर्ति है. मूर्ति के बाहर लोहे की जालियां लगाई गई हैं, ताकि कोई इस मूर्ति को नुकसान न पहुंचा सके.

जिंदा कुतिया को तो दरवाजे पर से मार कर भगा देते हैं, लेकिन घोर अंधविश्वासी लोग कुतिया महारानी की पूजा करते हैं.

बुलेट बाबा का मंदिर

जयपुर, राजस्थान के पाली इलाके में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान नहीं बल्कि बुलेट की पूजा होती है. लड्डुओं की जगह शराब चढ़ाई जाती है. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से हादसा नहीं होता है और यहां के बाबा उन की हिफाजत करते हैं.

ये भी पढ़ें- पत्नी की डिलीवरी के पैसे नहीं चुकाए तो ससुराल

सती माता के चौरे

वैसे तो पूरे देश में, लेकिन खास राजस्थान में आप को बहुत से मंदिर मिल जाएंगे, सती माता के मंदिर पर बाकायदा मेले लगते हैं. सुना तो यही है कि बेचारी औरत को जबरदस्ती नशा पिलाया जाता था और फिर भीड़ उसे ठेलतीठालती पति की चिता तक ले जाती थी. उस की चीखें ढोलनगाड़ों के शोर में दबा दी जाती थीं और जिंदा जला दिया जाता था. फिर शुरू होती थी उस की पूजा.

राजस्थान में झुंझुनूं नामक जगह पर हर साल सती माता का बहुत बड़ा मंदिर है, मेला लगता है. इन सती मंदिरों का महिमामंडन करना घोर अनर्थ है. किसी न किसी रूप में इन मंदिरों में सती की पूजा कर हम सती प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं. इन मंदिरों पर सरकार को तत्काल रोक लगानी चाहिए.

डकैत ददुआ का मंदिर

पाठा की सरजमीं पर तकरीबन 40 साल से भी ज्यादा लंबे समय तक आतंक का दूसरा नाम रहे दस्यु सम्राट ददुआ की मूर्ति का अनावरण धाता, फतेहपुर में कर दिया गया. अब वे मरणोपरांत भगवान की श्रेणी में आ गए हैं, जबकि अपने संपूर्ण जीवनकाल में ददुआ का दूसरा मतलब दहशत ही था.

कितना हास्यास्पद लगता है एक डकैत की पूजा करना. क्या हमारे आदर्श यही डकैत थे?

ये भी पढ़ें- वैध पार्किंग में ही रखें अपना वाहन, नहीं तो होगा भारी

बदहाल सरकारी अस्पताल

गांवदेहात के तमाम इलाकों से राजधानी पटना तक के सरकारी अस्पतालों में इलाज का सही इंतजाम नहीं है. जिला अस्पताल या ब्लौक अस्पताल तो इन गरीबों को बड़े अस्पतालों में रैफर कर देते हैं, जबकि इन के पास राजधानी के अस्पतालों में जाने के लिए भाड़ा तक नहीं होता. मजबूर हो कर ऐसे लोग सूद पर या जेवर गिरवी रख कर इन सरकारी अस्पतालों में इलाज कराते हैं.

औरंगाबाद जिले के कंचननगर के बाशिंदे 25 साला जयप्रकाश का पूरा शरीर लुंज हो गया था. इलाज के लिए आसपड़ोस के लोगों ने चंदा जमा कर उसे एम्स अस्पताल, दिल्ली भिजवाया. एक महीने तक जांच होने पर भी बीमारी का पता नहीं चल सका और जयप्रकाश लौट कर अपने गांव चला आया.

अमीर तबके के लोग तो देशविदेश तक में अपना इलाज करा रहे हैं, पर गरीबों के लिए सरकारी इलाज भी मजाक बन कर रह गया है. सरकारी अस्पतालों में जचगी के लिए आई औरतों को कोई न कोई बहाना बना कर प्राइवेट अस्पतालों में आपरेशन से बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर किया जाता है.

सरकारी अस्पताल के बहुत से मुलाजिमों का इन प्राइवेट अस्पतालों से कमीशन बंधा हुआ है और यह खेल पूरे बिहार में बिना डर के खुलेआम चल रहा है.

गरीबों का इलाज

अगर अमीर लोग भी सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए जाते हैं तो उन का खासा खयाल रखा जाता है. पटना पीएमसीएच जैसे अस्पताल में भी जिन लोगों की पैरवी होती है, उन पर खासा ध्यान दिया जाता है. गरीबों की न तो कोई पैरवी होती है, न ही वे ज्यादा पैसा खर्च कर पाते हैं.

ये भी पढ़ें- मां के गर्भ में ही टूट चुकी थी 35 हड्डियां, रोंगटे खड़े कर देती है स्पर्श शाह की स्टोरी

जांच के नाम पर प्राइवेट और सरकारी अस्पताल के डाक्टरों का कमीशन बंधा हुआ है. जिस जांच का कोई मतलब नहीं होता है, वह भी कमीशन के फेर में कराई जाती है.

प्रदेश का सूरतेहाल

100 कुपोषित जिलों में से 18 जिले बिहार के हैं. इन जिलों में गोपालगंज, औरंगाबाद, मुंगेर, नवादा, बांका, जमुई, शेखपुरा, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, सारण, रोहतास, अररिया, सहरसा, नालंदा, सिवान, मधेपुरा, भागलपुर और पूर्वी चंपारण शामिल हैं.

11 जिलों में औसत से कम लंबाई के बच्चे हैं. उन जिलों में जमुई, मुंगेर, पटना, बक्सर, दरभंगा, खगडि़या, बेगूसराय, अररिया, रोहतास, मुजफ्फरपुर और सहरसा में ठिगनेपन की समस्या है.

सेहत का मतलब शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद होना है, लेकिन दोनों लैवलों पर बिहार की हालत ज्यादा चिंताजनक है. गरीबों की जबान पर एक नाम है पटना का पीएमसीएच सरकारी अस्पताल. बिहार के किसी कोने में भी गरीबों को अगर कोई गंभीर बीमारी होती है तो लोग सलाह देते हैं कि पटना पीएमसीएच में चले जाओ. लेकिन बहुत से मरीज यहां आ कर भी बुरी तरह फंस जाते हैं.

इस अस्पताल में बिहार के कोनेकोने से मरीज आते हैं. उन्हें यह यकीन होता है कि यहां अच्छा इलाज होगा, लेकिन यहां भी घोर बदइंतजामी है.

इस अस्पताल में 1,675 बिस्तर हैं लेकिन मरीजों की तादाद दोगुनी है. इमर्जैंसी में 100 से बढ़ा कर 200 बिस्तर किए गए हैं लेकिन स्टाफ की तादाद नहीं बढ़ाई गई है. ओपीडी में तकरीबन रोजाना 1,500 से ले कर 2,500 तक मरीज आते हैं.

इस अस्पताल में 1,258 नर्सों की जगह 1,018 नर्स बहाल हैं. 27 ओटी असिस्टैंट में से महज 19 ही बहाल हैं. 28 ड्रैसर में से महज 11 ही बहाल हैं. 37 फार्मासिस्ट की जगह 31 हैं. 21 लैब टैक्निशियन की जगह 14 हैं.

ये भी पढ़ें- यह पौलिथीन आपके लिए जहर है!

ब्लड बैंक में 6 मैडिकल अफसरों में से महज 2 ही बहाल हैं. सैंट्रल इमर्जैंसी के लिए 25 डाक्टरों का कैडर बनना था जो आज तक नहीं बना है.

मर्द डाक्टरों से जचगी

बिहार के गांवदेहात के क्षेत्रों से ले कर शहर तक के सरकारी अस्पतालों में महिला डाक्टरों की कमी है. इस राज्य में 68 फीसदी महिला डाक्टरों के पद खाली हैं. स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के 533 फीसदी पद स्वीकृत हैं. इन में से महज 167 पद ही भरे गए हैं और 366 पद खाली हैं. संविदा पर नियुक्ति के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति ने 88 महिला डाक्टरों की नियुक्ति की जिस में से महज 48 लोगों ने योगदान किया.

बेगूसराय, जहानाबाद, वैशाली, कैमूर, सारण वगैरह जगहों के पीएचसी में मर्द डाक्टरों द्वारा एएनएम का सहारा ले कर जचगी कराने का सिलसिला जारी है. ऐसे डाक्टरों से औरतों का शरमाना लाजिमी है, पर मजबूरी में वे उन्हीं से जचगी करा रही हैं.

बिहार प्रदेश छात्र राजद के प्रभारी राहुल यादव का कहना है कि स्वास्थ्य सूचकांक के सर्वे में बिहार सब से निचले पायदान पर है. स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ने के बजाय इस राज्य में उस की लगातार गिरावट जारी है.

भारत और राज्य सरकार का सेहत से जुड़ा खर्च दुनिया में सब से कम है. बिहार देश में सब से कम खर्च करने वाला राज्य है जो राष्ट्रीय औसत से भी एकतिहाई कम खर्च करता है.

पिछले 12 सालों से सत्ता पर काबिज नीतीश सरकार का ध्यान शायद इस ओर नहीं है. ऐसा लगता है कि हमारा देश और राज्य दुनिया में ताल ठोंक कर परचम लहरा रहा है, लेकिन सचाई कुछ और ही है.

बिहार की सरकार स्वास्थ्य पर खर्च 450 रुपए प्रति व्यक्ति सालाना करती है, जबकि एक बार की डाक्टर की फीस 500 रुपए है. बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है.

सरकार की उदासीनता की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं इस राज्य के गरीबों की जेब पर भारी पड़ती जा रही हैं और इलाज के लिए लोग घरखेत तक बेचने के लिए मजबूर हैं.

ये भी पढ़ें- पत्नी की डिलीवरी के पैसे नहीं चुकाए तो ससुराल

डाक्टर जब मरीज के परिवार वालों को बोलता है कि 4 लाख रुपए जमा करो या फिर मरीज को मरने के लिए अपने घर ले जाओ, उस समय उन पर क्या गुजरती है, यह सोच कर कलेजा मुंह को आ जाता है. कभीकभार ऐसा भी होता है कि जमीनजायदाद बेचने के बाद भी मरीज की मौत हो जाती है. उस के बाद उस का परिवार सड़क पर आ जाता है.

सच तो यह है कि तरक्की का जितना भी ढोल पीट लिया जाए लेकिन सेहत के मामले में बिहार पूरी तरह फिसड्डी साबित हो चुका है.

मां के गर्भ में ही टूट चुकी थी 35 हड्डियां, रोंगटे खड़े कर देती है स्पर्श शाह की स्टोरी

आप सोच सकते हैं कि आपके शरीर की हड्डियां टूटी हों फिर भी आप भी आपके हौंसले न टूटे हों. आम इंसान के शरीर की एक भी हड्डी टूट जाती है तो महीनों तक बेड रेस्ट हो जाता है लेकिन एक ऐसा बच्चा जिसको ऐसी बीमारी है जो उसके शरीर की हड्डियां तोड़ देती है लेकिन फिर इस बच्चे का हौंसला नहीं टूटा. आज ये बच्चा पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है. आपने मोदी-ट्रंप के ह्यूस्टन कार्यक्रम को देखा ही होगा. इस कार्यक्रम में सबसे अलग कोई बात थी तो वो ये थी कि 16 साल का बच्चा वहां पर भारत का राष्ट्रीय गीत जन-गन-मन गा रहा था.

मोदी-ट्रंप की इस मुलाकात के बीच एक सबसे रोचक जानकारी है उस बच्चे की जोकि इस कार्यक्रम को अगुवाई कर रहा है. जब दोनों नेता एनआरजी स्टेडियम पहुंच जाएंगे तो सबसे यही बच्चा कार्यक्रम की शुरुआत करेगा. बच्चे का नाम है स्पर्श शाह.

स्पर्श शाह की उम्र 16 साल है और वो भारतीय मूल का है. स्पर्श राष्ट्रीय गान गा गाकर कार्यक्रम की शुरुआत करेगा. ये बच्चा जन्म से ही ऑस्टियोजेन्सिस इम्परफेक्टा नाम की बीमारी से पीड़ित है. स्पर्श पीएम मोदी से मिलने के लिए काफी उत्साहित भी हैं. बता दें कि स्पर्श शाह रैपर, सिंगर, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर हैं, जो अमेरिका के न्यू जर्सी में रहते हैं.

ये भी पढ़ें- पत्नी की डिलीवरी के पैसे नहीं चुकाए तो ससुराल वालों ने बच्चे को रख लिया गिरवी

जानकारी के मुताबिक स्पर्श शाह की पिछले कुछ सालों में 130 से अधिक हड्डियां टूट चुकी हैं. बताया जाता है कि स्पर्श जब मां के पेट में थे, तभी उसकी 35 हड्डियां टूट चुकी थीं. बीमारी के कारण स्पर्श चल भी नहीं सकते. 16 साल के स्पर्श को कुल 100 से ज्यादा फ्रैक्चर हुए हैं.

शाह अगले एमिनेम बनना चाहते हैं और एक अरब लोगों के सामने परफॉर्म करना चाहते हैं. मार्च 2018 में रिलीज हुई ‘ब्रिटल बोन रैपर’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री में स्पर्श शाह की जीवन यात्रा को दिखाया गया. यह फिल्म उनकी बीमारी से लड़ने पर फोकस है. शाह का वीडियो देखने पर लगता है कि इतनी गंभीर बीमारी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई.

स्पर्श शाह हाउडी मोदी कार्यक्रम में राष्ट्रगान गोने को लेकर उत्साहित हैं. वह कहते हैं कि”मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि मैं इतने सारे लोगों के सामने गा रहा हूं. मैं राष्ट्रगान गण, जन गण मन गाने के लिए उत्साहित हूं. मैंने पहली बार मोदी जी को मैडिसन स्क्वायर गार्डन पर देखा था, मैं मिलना चाहता था, मगर मैं उन्हें केवल टीवी पर ही देख पाया.

आगे स्पर्श कहते हैं कि मगर भगवान की दुआ है जो मैं उनसे मिलने जा रहा हूं और मैं राष्ट्रगान गाने को लेकर भी काफी उत्साहित हूं. स्पर्श तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने एमिनेम गीत “नॉट अफ्रेड” को कवर करते हुए एक वीडियो रिकॉर्ड किया. जिसे ऑनलाइन 65 मिलियन से अधिक बार देखा गया.

ये भी पढ़ें- वैध पार्किंग में ही रखें अपना वाहन, नहीं तो होगा भारी

वैध पार्किंग में ही रखें अपना वाहन, नहीं तो होगा भारी नुकसान

देश में हाल ही में नए ट्रैफिक नियमों को इतना सख्त किया गया कि आम आदमी का चालान के नाम पर पसीना ही छूटने लगा. किसी शख्स का 35,000 रुपए का चालान कटा तो किसी का 52,000 रुपए का. एक शख्स ने तो चालान से बचने के लिए अपनी मोटरसाइकिल में ही आग लगा ली, भले ही बाद में इस करतूत का अंजाम भुगतना पड़ा हो.  वहीं दिल्ली में एक लड़की स्कूटी के पुख्ता कागजात न होने पर पुलिस वालों को आत्महत्या करने तक की धमकी देने लगी. अभी इस ट्रैफिक नियमों की समस्या से जूझ ही रहे थे कि राजधानी वालों को एक और नई परेशानी ने घेर लिया है.

जी हां, राजधानी नई दिल्ली में सड़कों पर अवैध रूप से वाहन खड़े करने पर अब भारी जुर्माना देना पड़ सकता है. इसके अलावा वाहन मालिक को चालान के अलावा अधिक टोइंग यानी वाहन को उठा कर ले जाने वाला शुल्क व उसे रखे जाने का शुल्क अलग से देना होगा.

नई पार्किंग नीति के तहत यह शुल्क वाहनों की अलगअलग कैटेगरी  के हिसाब से 200 रुपए से ले कर 2,000 रुपए तक होगा.

यदि मालिक अपने वाहन को छुड़ाने के लिए आगे नहीं आता है तो 90 दिन के बाद वाहन को नीलाम कर दिया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, नई पार्किंग नीति 30 सितंबर से पहले  लागू की जाएगी.

मतलब, दिल्ली सरकार दिल्ली मेंटेनेंस एंड मैनेजमेंट औफ पार्किंग रूल्स 2017 के नाम से तैयार की गई पार्किंग नीति को 30 सितंबर से पहले हर हाल में अधिसूचित कर देगी.

ये भी पढ़ें- जब पार्टनर टालने लगे शादी की बात

यह नीति जहां लोगों को जाम से छुटकारा दिलाएगी, वहीं सड़कों पर गलत तरीके से खड़े वाहनों से होने वाली समस्या को भी दूर करेगी.

इस नीति के अनुसार 60 फुट से अधिक चौड़ी सड़कों पर अवैध पार्किंग के मामले में यातायात पुलिस को वाहनों को उठाने का अधिकार होगा. वहीं इस से कम चौड़ी सड़कों पर वाहनों को उठाने और जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी संबंधित सिविक एजेंसी की होगी.

कोई भी खटारा वाहन जो 60 फुट से कम चौड़ी सड़क पर खड़ा मिलेगा,  उसे सिविक एजेंसी जब्त करेगी.

ऐसे वाहन 60 फुट या इस से अधिक चौड़ी सड़कों पर खड़े मिलेंगे तो उसे यातायात पुलिस और सिविक एजेंसी की टीम जब्त करेगी. वाहन को उठा कर ले जाने का शुल्क भी पहले से अधिक वसूला जाएगा.

कार का पहले टोइंग शुल्क 200 रुपए था, जोकि नई नीति के तहत 400 रुपए होगा. वाहन को रखे जाने का शुल्क उसे उठाए जाने के 48 घंटे बाद शुरू होगा और इस के बाद प्रतिदिन के हिसाब से शुल्क वसूला जाएगा.

ये भी पढ़ें- लिव इन रिलेशनशिप: कितना सही कितना गलत

यदि वाहन नो पार्किंग में खड़ा किया गया है तो संबंधित एजेंसी उसे उठा कर ले जाएगी. इस पर चालान के अलावा टोइंग शुल्क और वाहन को रखे जाने का शुल्क प्रतिदिन के हिसाब से देना होगा.

वहीं, एक सप्ताह से ज्यादा समय तक वाहन रखे जाने पर जुर्माना राशि दोगुनी हो जाएगी. यदि जब्त किया गया वाहन 90 दिन के अंदर नहीं छुड़ाया जाता है तो वाहन मालिक को नोटिस दिया जाएगा कि 15 दिन के अंदर वाहन छुड़ा लें.  यदि मालिक नियत समय पर वाहन को छुड़ाने में असफल रहता है तो वाहन की नीलामी कर दी जाएगी.

सचेत हो जाइए, नया नियम कमरतोड़ महंगाई में और ज्यादा कमर तोड़ देगा.

आप की जेब पर अब डाका डालने का दूसरा प्लान है. कितना बचोगे सरकार की पैनी नजरों से.

ये भी पढ़ें- भारतीय सेना में शामिल हुआ अपाचे हेलिकौप्टर और AK-

लोगों की जेबें ढीली करेंगे नए ट्रैफिक नियम

ट्रैफिक से संबंधित नया नियम कड़ा है ताकि लोग और ज्यादा संभल कर सड़क पर गाड़ी चलाएं. दुर्घटना के शिकार न हों या दूसरों के लिए परेशानी का सबब न बनें. सड़क पर हिफाजत से चलें,  मनमानी न करें.

‘धीरे चलिए सुरक्षित चलिए’ का नारा अब सब की समझ आ गया है, पर लोग भी तमाम बहाने बना कर अपनी आदत को बदलने का नाम ही नहीं ले रहे थे तभी तो ट्रैफिक का नया नियम  कान ऐंठने के लिए लागू किया गया है.

सड़क आप की बपौैती नहीं है, इस बात का खयाल रखें और अपनी लापरवाही किसी और पर न थोपें. कहीं ऐसा न हो कि आगे ट्रैफिक पुलिस वाले आप के गलत गाड़ी चलाने या तेज स्पीड में गाड़ी चलाने पर चालान काट कर थमा दे और आप भी कोर्टकचहरी के चक्कर लगाते रहें.

ये भी पढ़ें- जानें बल्लेबाजों के लिए जसप्रीत बुमराह क्यों बन चुके हैं अनसुलझी पहेली

लेकिन जो नए ट्रैफिक नियम आए हैं, वे अच्छेअच्छों की जेबें ढीली कर देंगे और आप भी सोचने पर मजबूर होंगे कि काश, गाड़ी गलत न चलाई होती या अपने बच्चे को चलाने के लिए न दी होती तो मैं चालान कटवाने या जेल जाने से तो बच जाता.

सड़क पर कतई जल्दबाजी न दिखाएं या ओवरस्पीड में गाड़ी न चलाएं. वहीं दोपहिया वाहन पर 2 सवारियां ही बैठें यानी अब आप को नए नियमों के मुताबिक ही चलना होगा.

वजह कुछ भी हो, पर आप अब बेतरतीब ढंग से गाड़ी नहीं चला सकते. गलती से अगर आप ने अनदेखी की तो नए नियमों के मुताबिक चालान कटना तय है.
मतलब यह कि सड़क पर कोई भी वाहन हो, नियंत्रित स्पीड में चलाएं.

बता दें कि संसद ने जुलाई में मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया है. इस नियम के तहत सड़क सुरक्षा से सम्बंधित नियम कड़ा किया गया है जैसे ड्राइविंग लाइसैंस जारी करने और सड़क सुरक्षा में सुधार के प्रयास में उल्लंघन के लिए कठोर दंड लगाना वगैरह.

ये भी पढ़ें- गन्ना रस का कारोबार किसानों को मिले फायदा

अब तक जो चल रहा था जैसा चल रहा था, पर अब ऐसा नहीं चलेगा. अपनी सोच बदलें और नए नियमों का सख्ती से पालन करें. नए जमाने के साथ चलना है तो अपनी आदत में सुधार लाना होगा. जुर्माने से बचना है तो सचेत रहें, सावधान रहें.

जानें नए ट्रैफिक के नियम 

1- बिना ड्राइविंग लाइसैंस के गाड़ी न चलाएं. पकड़े जाने पर 5,000 रुपए का जुर्माना होगा.
2- शराब पी कर गाड़ी चलाने पर 10,000  रुपए जुर्माना भरना पड़ सकता है या फिर 6 महीने की कैद. अगर ऐसा दूसरी बार पाया गया तो 2 साल की कैद या 15,000 रुपए तक जुर्माना.
3-अगर गाड़ी तय स्पीड से तेज चलाई तो 2,000 रुपए का चालान काटा जाएगा.
4- बिना सीट बेल्ट बांधे गाड़ी चलाने पर 1,000 रुपए का चालान कटेगा.
5- मोबाइल फोन पर बात करते हुए ड्राइविंग करने पर 5,000 रुपए का जुर्माना भरना होगा.
6- सड़क नियमों को तोडऩे पर अब 500 रुपए का चालान कटेगा.
7-बिना इंश्योरेंस के गाड़ी चलाने पर अब 2,000 रुपए का चालान कटेगा.
8-इमर्जैंसी व्हीकल यानी अंबुलैंस गाड़ी, दमकल गाड़ी या अति महत्त्वपूर्ण लोगों के वाहन को रास्ता न देने पर 10,000 रुपए का चालान कटेगा.
9- डिसक्वालीफाई किए जाने के बावजूद भी अगर कोई शख्स गाड़ी चलाता है तो उसे 10,000  रुपए का जुर्माना देना होगा.
10- उबेर,ओला अगर ड्राइविंग लाइसैंस के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो उन पर 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, वहीं जरूरत से ज्यादा सवारी बैठाने पर 20,000 रुपए का जुर्माना लगेगा.
11- हेलमेट न पहनने पर 1,000 रुपए देने होंगे. साथ ही, 3 महीने के लिए लाइसैंस रद्द कर दिया जाएगा.
12- नाबालिग अगर सड़क पर कोई दुर्घटना करता है तो उस के मातापिता कुसूरवार माने जाएंगे और उन पर 25,000 रुपए तक का जुर्माना लगेगा, वहीं गाड़ी के रजिस्ट्रेशन पेपर रद्द कर दिए जाएंगे और 3 साल तक की जेल हो सकती है.
13- ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर 500 रुपए का जुर्माना देना होगा.
14- गलत दिशा में ड्राइविंग करने पर 5,000 रुपए का चालान देना होगा.
15- दोपहिया वाहन पर 3 सवारी बैठाने पर 500 रुपए का चालान काटा जाएगा.
16-पौल्यूशन सर्टिफिकेट न होने पर  500 रुपए देने होंगे.
17- खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाने  पर 5,000 रुपए का चालान होगा.
18- रेड लाइट जंप करने पर  1,000 रुपए का जुर्माना लगेगा.

ये भी पढ़ें- टीम की चिंता या फिर तेंदुलकर जैसी विदाई की 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें