एक पति ऐसा भी : भाग 2

पुलिस अधिकारियों के समक्ष जब प्रमोद से पूछताछ की गई तो पत्नी की हत्या कर शव ठिकाने लगाने की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी –

जालौन उत्तर प्रदेश राज्य का एक पिछड़ा जिला है. जहां आवागमन के साधन भी कम हैं और रेल सुविधा भी नहीं है. इस पिछड़ेपन के कारण जालौन जिले के सभी प्रशासनिक कार्य उरई कस्बे में होते हैं. उरई, जालौन जिले का उपजिला कहलाता है, यहां दवा बनाने वाली मशहूर कंपनी सन इंडिया फार्मेसी है, जहां सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं, जिस से वहां दिनभर चहलपहल बनी रहती है.

उरई कस्बे से 3 किलोमीटर दूर एक गांव है सरसौखी, जो थाना कोतवाली उरई के अंतर्गत आता है. इसी सरसौखी गांव में कालीचरण अहिरवार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 4 बेटियां वंदना, लाली, नौभी तथा विनीता थीं.

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मध्यमवर्गीय कालीचरण के घर का खानापीना व अन्य खर्च खेत में पैदा होने वाली फसलों से चलता था. इसी से बच्चों की परवरिश होती गई. जैसेजैसे बेटियां जवान होती गईं, कालीचरण ने उन की शादी कर दी. वह 3 बेटियों के हाथ पीले कर चुके थे. अब सब से छोटी बेटी विनीता ही शादी के लिए बची थी.

विनीता अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चारचांद लगाता था उस का स्वभाव. हाईस्कूल पास करने के बाद वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने यह कह कर उस की पढ़ाई पर विराम लगा दिया कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की के लिए वर खोजने में दिक्कत होती है और दहेज भी ज्यादा देना पड़ता है.

कालीचरण अपनी अन्य बेटियों की तरह विनीता को भी इज्जत के साथ उस के हाथ पीले कर देना चाहता था, किंतु इन्हीं दिनों विनीता के कदम बहक गए. जिस की वजह से गांव बिरादरी में उन की बदनामी होने लगी.

गरीबों की जमापूंजी उन की मानमर्यादा और इज्जत होती है. जब कालीचरण को इस बात का पता चला तो अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए वह विनीता के लिए वर की खोज में जुट गए. काफी प्रयास के बाद एक रिश्तेदार के माध्यम से वर के रूप में उन्हें प्रमोद कुमार मिल गए.

प्रमोद कुमार के पिता खेमराज अहिरवार उरई कस्बे के रामनगर मोहल्ले में रहते थे. खेमराज के परिवार में पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा प्रमोद कुमार था. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. प्रमोद कुमार ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था और रोजगार की तलाश में जुटा था. खेमराज, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भवन निर्माण विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था.

सरकारी कर्मचारी होने के साथसाथ उस की खेती की भी जमीन थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

रामनगर मोहल्ले में उस के 2 मकान थे. एक मकान में वह स्वयं परिवार साहित रहता था, जबकि दूसरा मकान अजनारी रोड पर रेलवे क्रासिंग के पास था, टिन शेड वाले इस मकान में किराएदार रहते थे.

हालांकि प्रमोद कुमार बेरोजगार था और उस का रंगरूप भी सामान्य था. लेकिन उस के पिता खेमराज की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कालीचरण ने उसे अपनी बेटी विनीता के लिए पसंद कर लिया. फिर सामाजिक रीतिरिवाज से 25 अप्रैल, 2011 को विनीता का प्रमोद कुमार के साथ विवाह कर दिया.

शादी के बाद विनीता जब अपनी ससुराल पहुंची तो ससुराल में सब खुश थे, लेकिन विनीता खुश नहीं थी. दरअसल शादी के पहले विनीता ने पति के रूप में जिस सजीले युवक के सपने संजोये थे, प्रमोद वैसा नहीं था.

एक तो वह सांवले रंग का था, दूसरे वह अक्खड़ स्वभाव का था. इस के अलावा वह बेरोजगार भी था. शुरू में तो विनीता ने पति के साथसाथ सासससुर की भी सेवा की लेकिन आगे चल कर धीरेधीरे उस के स्वभाव में बदलाव आने लगा.

अब विनीता का मन ससुराल में कम मायके में ज्यादा लगने लगा. इस से प्रमोद को शक होने लगा कि कहीं शादी से पहले विनीता के गांव के किसी युवक से अवैध संबंध तो नहीं थे. उस ने इस बाबत गुप्तरूप में पता किया तो जानकारी मिली कि शादी से पहले विनीता के कदम डगमगा गए थे.

विनीता के अपने ही अतीत ने उस के जीवन में कैक्टस उगा दिए थे, जिस में खुशियां कम कांटे ज्यादा थे. उन कांटों की चुभन से पतिपत्नी के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों के बीच लड़ाईझगड़ा व मारपीट होने लगी थी. तब तक दोनों की शादी को 5 साल बीत गए थे. इन 5 सालों में विनीता 3 बेटियों कनिका, गुंजन और परी की मां बन चुकी थी.

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एक के बाद एक 3 बेटियों के जन्म को ले कर भी घर में कलह होती थी. सास रामवती वंश बढ़ाने के लिए बेटा चाहती थी. इसलिए वह विनीता को ताने मारती रहती थी. हालांकि विनीता का ससुर खेमराज उस की बेटियों से प्यार करता था और हर तरह से खयाल रखता था. वह जब भी बाजार हाट से घर आता, बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था.

विनीता का पति प्रमोद बेरोजगार था. पति की बेरोजगारी से भी वह परेशान रहती थी. उसे अपने व बच्चों के पालनपोषण के लिए सासससुर का ही मुंह ताकना पड़ता था. जरूरत का सामान खरीदने को विनीता सास से पैसे मांगती तो कभी वह दे देती, कभी बुरी तरह झिड़क देती थी. तब विनीता मन मसोस कर रह जाती.

विनीता ने पति को कुछ कामधाम करने को कई बार कहा, परंतु प्रमोद ने एक नहीं सुनी. उल्टे वह विनीता से कहता कि घर में किस चीज की कमी है. सारा खर्च मांबाप कर तो रहे हैं.

एक रोज प्रमोद शराब पी कर घर आया तो विनीता ने उसे जलील करते हुए कहा, ‘‘एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा. कुछ काम करतेधरते नहीं और शराब भी पीते हो. कम से कम अपना नहीं तो अपने बाप की इज्जत का तो खयाल रखो.

विनीता की सच्चाई भरी कड़वी बात सुनकर प्रमोद कुमार के तनबदन में आग सुलग उठी. वह विनीता पर टूट पड़ा और लातघूंसों से उस की पिटाई करने लगा. उस के हाथ तभी थमे जब वह हांफने लगा. पति की पिटाई से विनीता इतनी आहत हुई कि वह तीनों बच्चों को ससुराल में छोड़ कर मायके चली गई. उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां अपनी मां उर्मिला को बताई. तब उर्मिला ने बेटी को ससुराल न भेजने का फैसला किया.

विनीता को मायके आए हुए अभी 2 महीने भी नहीं बीते थे कि प्रमोद उसे लेने आ गया. लेकिन उर्मिला ने बेटी को भेजने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा कि वह ऐसे निठल्ले के साथ बेटी को नहीं भेजेगी जो उसे प्रताडि़त करे. सास ने जलील किया तो प्रमोद मुंह लटका कर वापस लौट आया.

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बहू के चले जाने से खेमराज की भी मोहल्ले में बदनामी होने लगी थी. उस की पत्नी रामवती का भी गली से गुजरना दूभर हो गया था. पासपड़ोस की महिलाएं विनीता को ले कर तरहतरह की अफवाहें फैलाने लगी थीं. इन अफवाहों पर विराम लगाने के लिए खेमराज विनीता को लाने उस के मायके पहुंचा और कालीचरण से बच्चों की परवरिश की खातिर विनीता को भेजने का अनुरोध किया. काफी सोचविचार के बाद कालीचरण ने बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज दिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक पति ऐसा भी : भाग 1

उस दिन 3 जनवरी 2020 तारीख थी. सुबह के यही कोई 10 बज रहे थे. जालौन जिले की कोतवाली उरई के प्रभारी निरीक्षक शिवगोपाल वर्मा अपने कार्यालय में बैठे थे और बीती रात पकड़े गए मादक पदार्थ तस्करों से पूछताछ कर रहे थे, तभी एक बुजुर्ग दंपति उन के कार्यालय में आया.

दोनों आगंतुक घबराए हुए थे. उन के माथे पर चिंता की लकीरें थीं. वर्मा ने तस्करों से पूछताछ बंद कर उन्हें सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘बताइए, आप लोग कहां से आए हैं और क्या परेशानी है?’’

कुरसी पर बैठने के बाद उस शख्स ने कहा, ‘‘साहब, हम सरसौखी गांव से आए हैं, मेरा नाम कालीचरण है और साथ में आई मेरी पत्नी उर्मिला है. हम ने अपनी बेटी विनीता की शादी उरई कस्बे के रामनगर मोहल्ला निवासी खेमराज अहिरवार के बेटे प्रमोद कुमार के साथ की थी.

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‘‘प्रमोद कुमार ने हमारी बेटी विनीता को गायब कर दिया है, डेढ़ साल से बेटी से हमारा संपर्क नहीं हुआ. प्रमोद के पिता खेमराज से पूछा तो उस ने बताया कि विनीता प्रमोद के साथ दिल्ली में है. हम ने जब भी फोन कर प्रमोद से विनीता से बात कराने का आग्रह किया तो वह टालमटोल कर देता था.

वह दिल्ली में कहां रहता है. उस ने हमें कभी नहीं बताया. आज मुझे पता चला कि प्रमोद दिल्ली से गांव आया है और अपने घर में मौजूद है. साहब आप से मेरा अनुरोध है कि उस से पूछताछ कर हमारी बेटी विनीता का पता लगाएं.’’

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने कालीचरण की बात गौर से सुनी और उन की परेशानी को समझा. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि वह थाने में बैठ कर इंतजार करें. वह प्रमोद को थाने बुला कर उस से पूछताछ कर विनीता का पता लगवाते हैं. आश्वासन पा कर कालीचरण पत्नी उर्मिला के साथ थाने में इंतजार करने लगे.

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने एसआई विश्वनाथ सिंह तथा कांस्टेबल मानवेंद्र सिंह को सारी बात बता कर प्रमोद को थाने लाने का आदेश दिया. कुछ ही देर में दरोगा विश्ववनाथ सिंह, कांस्टेबल मानवेंद्र सिंह के साथ मोटरसाइकिल से प्रमोद के अजनारी रोड स्थित मकान पर जा पहुंचे. प्रमोद उस समय घर पर नहीं था.

उस के घर में किराए पर रहने वाले किराएदारों ने बताया कि प्रमोद रेलवे क्रासिंग की ओर गया है. पहचान के लिए पुलिस ने एक किराएदार को साथ लिया और रेलवे क्रासिंग पहुंच गई. प्रमोद रेलवे फाटक के पास मिल गया.

किराएदार के इशारे पर पुलिस ने उसे पकड़ लिया और कोतवाली ले आई. बेटे की गिरफ्तारी की जानकारी खेमराज को हुई तो वह भी कोतवाली आ गया.

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने प्रमोद कुमार के चेहरे पर तिरछी नजर डालते हुए पूछा, ‘‘प्रमोद, सचसच बताओ, तुम्हारी पत्नी विनीता कहां है? क्या तुम ने उसे गायब कर दिया है या…’’

‘‘साहब, यह सब अटपटी बातें आप मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’ प्रमोद जवाब देने के बजाय उलटे वर्मा से ही प्रश्न कर बैठा.

‘‘इसलिए कि विनीता के मातापिता ने शिकायत दर्ज कराई है कि तुम ने उन की बेटी को गायब कर दिया है. पिछले डेढ़ साल से तुम ने न तो उन की विनीता से बात कराई और न ही मिलवाया. न ही तुम ने उन्हें दिल्ली में रहने का अपना ठिकाना बताया.’’ कोतवाल ने कहा.

‘‘साहब, ससुराल वालों से हमारी पटती नहीं है, जिस से मैं ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी.’’ प्रमोद बोला.

‘‘तो अब बताओ कि विनीता कहां है?’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘वह दिल्ली में है.’’ प्रमोद ने बताया.

‘‘उस से मोबाइल फोन पर बात कराओ.’’ उन्होंने कहा.

‘‘साहब, विनीता के पास मोबाइल फोन नहीं है, इसलिए उस से बात नहीं हो सकती.’’ प्रमोद बोला.

‘‘देखो, प्रमोद तुम पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हो. मैं तुम से आखिरी बार पूछता हूं कि विनीता कहां है?’’ वर्मा तमतमा गए.

लेकिन प्रमोद ने जुबान नहीं खोली. तब वर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने दरोगा विश्वनाथ सिंह तथा सुशील कुमार पाराशर को प्रमोद से सच उगलवाने की जिम्मेदारी सौंपी.

वह दोनों प्रमोद कुमार को अलग कमरे में ले गए और उस से जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. इस के बाद उस ने विनीता का जो राज खोला उसे सुन कर पुलिस भी दंग रह गई.

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प्रमोद ने बताया कि उस ने अपनी पत्नी विनीता की हत्या 18 मई, 2018 को कर दी थी और शव को अपने कमरे में दफन कर उस के ऊपर पक्का फर्श बनवा दिया था. इस के बाद वह दिल्ली चला गया था. विनीता की हत्या की जानकारी न तो उस के मातापिता को थी और न ही उस के मकान में रहने वाले किराएदारों को. विनीता का शव अब भी कमरे में ही दफन है.

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने इस सनसनीखेज घटना की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी और एसआई साबिर अली, विश्वनाथ सिंह, सुशील कुमार पारासर, हैड कांस्टेबल संत किशोर तथा जगदीश हत्यारोपी प्रमोद कुमार को साथ ले कर प्रमोद के अजनारी रोड, रामनगर स्थित मकान पर पहुंच गए. वह टिन शेड वाला मकान था. जिस के आगे के भाग में किराएदार रहते थे. प्रमोद मकान के पिछले भाग में रहता था.

प्रमोद कुमार पुलिस को अपने टिन शेड वाले कमरे में ले गया और बताया कि विनीता का शव इसी कमरे में फर्श के नीचे दफन है. पुलिस अभी कमरे का निरीक्षण कर ही रही थी कि सूचना पा कर एसपी डा. सतीश कुमार तथा सीओ (सिटी) संतोष कुमार भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. चूंकि मामला महिला की हत्या कर शव जमीन में दफन होने का था. अत: घटनास्थल पर उरई सिटी मजिस्ट्रैट हरिशंकर शुक्ला को भी सूचना दे कर बुला लिया गया.

सिटी मजिस्ट्रैट हरिशंकर शुक्ला की मौजूदगी में पुलिस अधिकारियों ने हत्यारोपी प्रमोद कुमार की निशानदेही पर कमरे के अंदर खुदाई शुरू कराई. पुलिस के जवानों ने पहले कमरे की पक्की फर्श तोड़ी फिर कच्ची जमीन को फावड़े से खोदना शुरू किया. 4 फीट खुदाई करने के बाद महिला का कंकाल बरामद हो गया. सिटी मजिस्ट्रैट हरिशंकर शुक्ला ने कंकाल को गड्ढे से बाहर निकलवाया.

अब तक मौके पर विनीता के मातापिता तथा ससुर भी आ गए थे. कालीचरण तथा उन की पत्नी उर्मिला ने जब महिला के कंकाल को देखा तो वह फफक पड़े और उन्होंने कपड़ों से उस की पहचान अपनी बेटी विनीता के रूप में कर दी. प्रमोद के पिता खेमराज ने भी कंकाल की पहचान बहू विनीता के रूप में की.

विनीता की हत्या और कंकाल बरामद होने की खबर रामनगर मोहल्ले में फैली तो लोग अवाक रह गए. सैकड़ों की भीड़ घटनास्थल पर आ पहुंची. कालीचरण के परिवार में भी कोहराम मच गया. उस की अन्य बेटियां वंदना, लाली व नौथी भी सूचना  पा कर मौके पर आ गईं. विनीता का कंकाल देख कर सभी विलखविलख कर रो रही थीं. पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सांत्वना दी और समझाया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. इस के बाद मजिस्ट्रैट हरीशंकर शुक्ला की निगरानी में कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने कंकाल का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए उरई के सरकारी अस्पताल भेज दिया. डीएनए की जांच हेतु मृतका के बाल सुरक्षित रख लिए गए.

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चूंकि प्रमोद कुमार ने पत्नी विनीता की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया था और जमीन में दफन शव को भी बरामद करा दिया था, इसलिए कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने मृतका के पिता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत प्रमोद कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक पति ऐसा भी

‘वासना’ : परमो धर्म?

प्रथम घटना- जिला दुर्ग के थाना अंडा अंतर्गत दो लोगों ने अपने रिश्तेदार की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वह उन दोनों पर चारित्रिक संदेह करता था. और मजाक उड़ाता रहता था.

दूसरी घटना- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वीआईपी कॉलोनी के पास एक शख्स की  हत्या हो गई क्योंकि वह अपने  छोटे भाई की पत्नी से संबंध बनाते पकड़ा गया था.

तीसरी घटना- जिला कोरबा के कटघोरा थाना अंतर्गत घटित हुई है जिसमें एक युवती ने अपनी 12 साल की सगी  बहन की हत्या कर दी. क्योंकि वह उसके प्रेम संबंधों को देख चुकी थी और  कारगुज़ारी माता-पिता से बताने को कह रही थी.

वासना, काम, सेक्स, प्रेम प्यार यह ऐसे शब्द हैं जो हमें संवेदनशील  बनाते हैं और भटकने को मजबूर भी करते हैं. यह जीवन का आधार है तो यह अति हो जाने के बाद जीवन को समाप्त कर देने का भी बयास बन जाते हैं.

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यही समाज, देश का सत्य है. ऐसी घटनाएं हमारे आसपास अक्सर घटती होती हैं जो संदेश देती हैं कि मानवीय मर्यादा और हमारी  परंपराओं के अनुरूप अगर व्यवहार नहीं होगा तो उसका दुष्परिणाम विपरीत भी आ सकता है.

आज इस रिपोर्ट में हम ऐसे तथ्य का खुलासा करने का प्रयास कर रहे हैं. ताकि बहुतेरे लोग जो जीवन में भूल कर रहे हैं, गलत राह पर चल जाते हैं, सबक लें, और मर्यादा का रास्ता कभी भी न छोड़ें.

वासना में अंधी हो गई

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा में 22 अगस्त को घटित एक लोमहर्षक घटना ने संपूर्ण प्रदेश को कंपायमान  कर दिया .

25 साल के युवक  से 16 साल की नाबालिक लड़की ने प्रेम प्रसंग में इस कदर दीवानी हो गयी  की अपनी छोटी 12 साल की मासूम बहन को मौत की नींद सुलाने में उस वासना की  दीवानी के हाँथ नहीं कांपे. मासूम का दोष सिर्फ इतना था की  बहन ने बड़ी बहन को एक लड़के के  साथ रंगरेलियां मनाते आपत्तिजनक स्थित में देख लिया था. बस क्या था बड़ी बहन ने छोटी बहन को मौत की नींद सुला दिया.

मामला  कटघोरा थाना अंतर्गत ग्राम मालदा जिला कोरबा में घटित हुआ है जहां 22 अगस्त को कटघोरा पुलिस को सुचना मिली की ग्राम मालदा के एक नाबालिक बच्ची का शव खाट में पड़ा है पुलिस मौके पर पहुंच कर देखती है की मृतिका के सर से खून बहा हुआ है गंभीर चोट के निशान दिख रहे है. पुलिस को समझने में देर नहीं लगा की हत्या हुई है. बड़ी बहन से पूछताछ पुलिस ने शुरू की तो में उसने अंततः रोते हुए अपना अपराध कबूल कर लिया और बताया की जब वापस आयी तब मैंने अपनी छोटी बहन से अपना मोबाईल वापस माँगा उसने देने से इंकार कर दिया. तब मैंने ही उसकी हत्या कर दी.

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लेकिन पुलिस को उस लड़की के बयान में बनावटीपन दिखाई दिया तब जिस मोबाईल को वह हत्या का कारण बता रही थी उसका सिम निकाल कर सायबर सेल को दिया गया. आगे जांच में खुलासा हुआ कि  एक विशेष नंबर से 8-10 बार बात हुई है. पुलिस ने उस नंबर को इस्तेमाल करने वाले को हिरासत में लेकर पूछताछ की तब पता चला की विनय कुमार जगत नामक व्यक्ति जो की बंधन बैंक कटघोरा में  पदस्थ था  की लोन के सिलसिले में उक्त लड़की से जान पहचान हुई थी. आगे चलकर दोनों का प्रेम संबंध हो गया. और घटना के दिन मृतिका ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था घर में किसी को न बता दे इस आशंका के चलते दोनों ने मिलकर छोटी बहन की हत्या कर दी.

चूंकि परिवार के सभी सदस्य तीजा मनाने गांव गए हुए थे इसलिए घर में बच्चों के अलावा कोई नहीं था. पुलिस ने दोनों वासना के अंधे आरोपियों को गिरफ्तार कर धारा 302,34 के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया है.

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सनसनीखेज खुलासा

पुलिस को पूछताछ में बड़ी बहन ने बताया कि प्रेमी विनय ने मृतिका छोटी बहन के चेहरे को तकिए से जोरदार दबाए रखा. जब उसकी मौत हो गई तब बड़ी बहन ने टंगिये के पाशा से उसके सिर पर संघातिक वार कर दिया. प्रेमी ने खुद को बचाने के लिए प्रेमिका को पुलिस के सामने कहानी गढ़ने को कहा और खुद वहां से फरार हो गया.सुबह जब लोगो का हुजूम उमड़ा और तफ्तीश के लिए पुलिस  घटनास्थल पहुंची तो उसने यह कहानी उनके सामने सुनाई.

हालांकि लोगों को भी  इस बात के सन्देह था कि महज मोबाइल के लिए इतनी बड़ी वारदात को वह अंजाम नही दे सकती . पुलिस जांच में यह भी उजागर हुआ कि माँ-बाप के घर पर नही होने पर प्रेमिका बड़ी बहन की अपने प्रेमी विनय से मिलने की योजना थी. इसी योजना  के तहत देर रात विनय उससे मिलने पहुंचा था.दोनो उसी कमरे में मौजूद थे जहाँ बगल के बिस्तर पर नाबालिक छोटी बहन भी सोई हुई थी. वे जब आपत्तिजनक हालत में मिल रहे थे  तभी उसकी नींद उचट  गई. अपनी बहन और प्रेमी को रंगे हाथों देखना  उसे भारी पड़ा और फिर दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी. ऐसे ही सच्चे अपराधी घटनाक्रम को देखकर यह कहा जा सकता है कि जब कामवासना के फेर में पैर बहक  जाते हैं तो इंसान अंधा हो जाता है और रिश्ते भी तार-तार हो जाते हैं.

औरत सिर्फ एक देह नहीं : भाग 2

एक रोज सचिन ने अपनी चाहतों से ममता के जिस्म को पिघलाना चाहा, लेकिन ममता ने काबू बनाए रखा और सचिन को समझाते हुए बोली, ‘‘सचिन, यह सब अभी नहीं, यह सब शादी के बाद ही हो तभी अच्छा लगता है. अगर तुम चाहते हो कि हम जल्दी से एक हो जाएं तो अपने घरवालों से कह कर मेरे घरवालों से शादी की बात कर लो.’’

‘‘ममता, मैं शादी से कहां मना कर रहा हूं. जब हम प्यार करते हैं और हमारे दिल एक हो चुके हैं तो हमारे शरीर भी एक हो जाने चाहिए. जिस से हमारे बीच किसी प्रकार की दूरी न रहे.’’ सचिन ने समझाया.

‘‘लेकिन शादी से पहले यह पाप है, जोकि मेरे लिए कलंक का टीका बन सकता है. इसलिए मैं ऐसा कोई कदम नहीं उठाऊंगी जिस से मेरे व मेरे घर वालों की इज्जत पर आंच आए.’’ ममता ने साफ कह दिया.

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‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम्हें मेरे ऊपर बिलकुल भी विश्वास नहीं है.’’

‘‘अगर विश्वास न होता तो तुम्हारे प्यार में इतना आगे तक नहीं बढ़ती. लेकिन तुम जिस चाहत को पूरा करने की बात कह रहे हो, वह शादी से पहले मुमकिन नहीं है.’’

सचिन को क्रोध तो बहुत आया लेकिन उस ने ममता पर जाहिर नहीं होने दिया. फिर दोनों के बीच इधरउधर की बातें होती रहीं. उस के बाद दोनों विदा हो कर अपने घर चले गए.

असल में सचिन ममता से प्यार नहीं करता था, बल्कि वह उस की देह का पुजारी था और ममता की देह को अपनी बांहों में भर कर मसोसना चाहता था. जबकि ममता उस से सच्चा प्यार करती थी.

सचिन ने बारबार कोई न कोई बहाने से ममता को फुसलाना चाहा लेकिन वह सफल नहीं हो पाया. लेकिन सचिन भी जिद्दी था. उस ने ममता को एक दिन अपनी बातों के जाल में फांस ही लिया और वह सब कर गुजरा जो वह करना चाहता था.

उसे ममता के जिस्म का चस्का लगा तो वह बारबार उसे पाने के लिए बेचैन रहने लगा. ममता एक बार उस के लिए अपने जिस्म के द्वार खोल चुकी थी, इसलिए उस ने बारबार खोलने से इनकार नहीं किया. उसे भी इस में आनंद आने लगा था.

9 जनवरी, 2020 की शाम को सचिन अपने घर पर था. लगभग सवा 7 बजे किसी का फोन आया तो वह बाइक उठा कर जाने लगा. पिता रजनीकांत ने पूछा तो सचिन ने कहा कि वह काम से सुरसा जा रहा है. इतना कह कर सचिन अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया. जब वह देर रात तक नहीं लौटा तो रजनीकांत को चिंता हुई. उन्होंने सचिन का मोबाइल नंबर मिलाया तो वह बंद था.

10 जनवरी की सुबह 6 बजे इच्छनापुर गांव की सीमा से सटे गांव ओदरा के बाहर सड़क किनारे खाई में एक युवक का शव औंधे मुंह पड़ा मिला. किसी ने 112 नंबर पर काल कर के लाश पड़ी होने की सूचना दे दी.

घटनास्थल सुरसा थाना क्षेत्र में आता था, इसलिए कंट्रोल रूम से इस की सूचना सुरसा थाने को दे दी गई. सूचना पा कर सुरसा थाने के इंसपेक्टर राजकरन शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृत युवक की उम्र 21 से 25 साल के बीच रही होगी. युवक के गले व शरीर पर अनगिनत घाव के निशान थे, जो कि किसी तेज धारदार हथियार से किए गए थे.

कुछ ही दूरी पर एक टीवीएस स्पोर्ट्स बाइक नंबर यूपी30ए पी5804 भी लावारिस हालत में खड़ी मिली. संभवत: वह मृतक की ही होगी. बाइक से बैटरी, बाइक के कागज आरसी और अन्य पेपर गायब थे.

इसी बीच सूचना पा कर एसपी अमित कुमार गुप्ता और सीओ (सिटी) विजय राणा भी आ गए. दोनों अधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का मुआयना किया, फिर आवश्यक दिशानिर्देश दे कर वहां से चले गए. मृतक की शिनाख्त न होने पर इंसपेक्टर राजकरन शर्मा ने फोटो खिंचवा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

बाइक के नंबर के जरिए मृतक की शिनाख्त की कोशिश की गई तो सफलता मिल गई. लाश सचिन पांडेय की थी. उस की लाश मिलने की सूचना सचिन के घर भेज दी गई. सचिन के घर आने की बाट जोह रहे पिता रजनीकांत को उस की लाश मिलने की सूचना मिली तो उन्हें गहरा धक्का लगा. किसी तरह उन्होंने अपने आप को संभाला और फिर थाने पहुंच गए.

इंसपेक्टर राजकरन शर्मा ने उन को लाश का फोटो दिखाया तो उन्होंने उस की शिनाख्त सचिन के रूप में कर दी. शिनाख्त के बाद इंसपेक्टर शर्मा ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सचिन का किसी युवती से प्रेम प्रसंग था. वह मोबाइल पर उसी युवती से बात करता रहता था. 9 जनवरी की शाम को सवा 7 बजे किसी के फोन करने के बाद ही वह घर से निकल गया था.

इस के बाद रजनीकांत की लिखित तहरीर के आधार पर इंसपेक्टर राजकरन शर्मा ने अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

सर्वप्रथम इंसपेक्टर शर्मा ने सचिन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो जिस नंबर से आखिरी काल की गई थी, उस के बारे में पता किया गया. वह नंबर सुरसा कस्बे में शराब ठेके के पीछे रहने वाले हीरालाल का निकला. लेकिन उस नंबर की लोकेशन जो हमेशा रहती थी, वह सथरी गांव की थी.

इंसपेक्टर शर्मा ने 13 जनवरी को हीरालाल को सथरी गांव के पास से हिरासत में ले कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपनी प्रेमिका सोनिका और दोस्त पंकज निवासी गांव चमरौधा थाना सुरसा के साथ मिल कर सचिन की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने सचिन की हत्या के पीछे की पूरी कहानी सुना दी.

सचिन ममता के घर आताजाता था. इसी आनेजाने के दौरान देह के लोभी सचिन की नजरें ममता की छोटी बहन सोनिका की देह पर भी टिकने लगीं. सोनिका का कच्ची उम्र का यौवन सचिन को अपनी ओर खींचने लगा था.

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अब सचिन की आंखों में ममता के बजाए सोनिका की देह रचीबसी रहती थी, इसलिए ममता को वह कन्नौज उस की मां के पास छोड़ आया. ममता के न होने से घर पर सोनिका ही अकेली रह जाती थी. उस घर में अकेला पा कर एक दिन सचिन ने उसे दबोच लिया.

सचिन की इस हरकत से सोनिका भौचक्की रह गई. वह जानती थी कि सचिन उस की बड़ी बहन का प्रेमी है, इसलिए ऐसी हरकत के बारे में वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी, जैसी सचिन ने की थी.

उस ने सचिन को धमकाया कि वह वहां से चला जाए नहीं तो वह शोर मचा देगी. सोनिका के चिल्लाने की आवाज से आसपास के लोग आ सकते थे, इसलिए सचिन ने उस समय वहां से जाने में ही भलाई समझी. लेकिन वह उस दिन के बाद से सोनिका पर बारबार नाजायज संबंध बनाने के लिए दबाव बनाने लगा.

जुलाई, 2019 में सचिन लखनऊ गया तो वाहन चैकिंग के दौरान उस ने अपने 2 साथियों के साथ भागते समय पुलिस पर गोली चला दी, जिस पर इंटौजा थाने में मुकदमा दर्ज हुआ और इंटौजा पुलिस ने सचिन को उस के एक साथी के साथ गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. दिसंबर में वह जेल से छूटा और हरदोई में अपने गांव आ गया.

जेल से छूट कर आने के बाद वह फिर से सोनिका पर दबाव बनाने लगा. जब सोनिका ने देखा कि सचिन उस का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो उस ने यह बात अपने प्रेमी हीरालाल को बताई. 20 वर्षीय हीरालाल सुरसा कस्बे में शराब के ठेके के पीछे रहता था. वह 3 भाइयों में सब से छोटा था और अविवाहित था. उस के दोनों बड़े भाइयों अनिल और छोटू का विवाह हो चुका था.

हीरालाल ने सोनिका को एक मोबाइल और अपनी आईडी पर एक सिमकार्ड खरीद कर दिया था. सोनिका उसी फोन से हीरालाल से बातें करती थी.

उस ने जब बताया कि सचिन उस पर नाजायज संबंध बनाने का दबाव बना रहा है और समझाने से भी नहीं मान रहा तो हीरालाल ने उस को सबक सिखाने के लिए उस की हत्या करने का निर्णय कर लिया.

सोनिका से उस ने बताया तो वह उस का साथ देने को तैयार हो गई. सचिन की हत्या में साथ देने के लिए हीरालाल ने अपने हमउम्र दोस्त पंकज से बात की तो दोस्ती की खातिर वह हीरालाल का साथ देने के लिए तैयार हो गया. तीनों ने मिल कर सचिन की हत्या की योजना बनाई.

योजनानुसार, 9 जनवरी को शाम सवा 7 बजे सोनिका ने अपने मोबाइल से सचिन को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया. उस के बुलावे पर सचिन तुरंत बाइक उठा कर घर से चल दिया. गांव के बाहर निकलते ही उसे हीरालाल और पंकज मिल गए. हीरालाल ने सचिन से उन दोनों को सुरसा छोड़ देने को कहा तो सचिन तैयार हो गया. सचिन बाइक पर दोनों को बैठा कर चल दिया.

सुनसान जगह पा कर हीरालाल ने ओदरा गांव के पास बाइक रुकवा ली. हीरालाल ने उतरते ही साथ लाए चाकू से सचिन पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए. सचिन ने हाथपैर चलाने की कोशिश की तो पंकज ने उसे दबोच लिया. हीरालाल ने सचिन का गला चाकू से रेत दिया, जिस से सचिन की मौत हो गई.

दोनों ने उस की लाश सड़क किनारे खाई में डाल दी और उस की बाइक को एक पेड़ के पीछे खड़ा कर दिया. बाइक की बैटरी, हेलमेट, बाइक की आरसी और सचिन का पर्स पैंट से निकाल कर अपने साथ ले गए. एक जगह उन्होंने आरसी टुकड़ेटुकड़े कर के फेंक दी.

इंसपेक्टर राजकरन शर्मा ने अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, बाइक की बैटरी, हेलमेट, आरसी के टुकडे़ व सचिन का पर्स बरामद कर लिया. इस के साथ ही मुकदमे में धारा 120बी और बढ़ा दी गई.

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आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के पुलिस ने सोनिका, हीरालाल और पंकज को सीजेएम की अदालत में पेश करने के बाद न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में ममता और सोनिका नाम परिवर्तित हैं.

औरत सिर्फ एक देह नहीं : भाग 1

बहादुर सीधे सरल स्वभाव का था. वह सिर्फ अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. बहादुर जैसा था, उस की पत्नी शीला ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और महत्त्वाकांक्षी थी. लेकिन उस की शादी चूंकि बहादुर के साथ हुई थी, इसलिए वह मजबूरी में उस का साथ निभा रही थी.

लेकिन एक दिन शीला को मनमाफिक साथी मिला तो वह दोनों बेटियों को पति बहादुर के पास छोड़ कर उस के साथ चली गई और उस के साथ विवाह कर के कन्नौज में रहने लगी. यह करीब 10 साल पहले की बात है.

बहादुर शीला के जाने से काफी दुखी हुआ, लेकिन वह कुछ नहीं कर पाया. शीला अपनी दोनों बेटियों से भी बेहद प्यार करती थी, इसलिए दूसरा विवाह करने के बाद भी वह फोन पर दोनों बेटियों के संपर्क में रहती थी.

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बहादुर की दोनों बेटियों ममता और सोनिका ने गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी. इस के बाद गांव के पास ही एक कालेज में ममता इंटरमीडिएट में तो सोनिका हाईस्कूल में पढ़ रही थी. बिन मां के सीधे पिता के संरक्षण में पल रही दोनों बहनें अपनी मरजी से जिंदगी जी रही थीं. उन पर पिता का कोई अंकुश नहीं था. दोनों बहनें जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थीं.

सुरसा थाना क्षेत्र के ही इच्छनापुर गांव में रजनीकांत पांडेय रहते थे. उन के परिवार में भी उन की पत्नी विभा के अलावा 2 बेटियां और एकलौता बेटा सचिन था.

करीब 10 साल पहले विभा भी अपनी दोनों बेटियों के साथ पति का घर छोड़ कर लखनऊ रहने चली गई थी. बाद में रजनीकांत और विभा के बीच का विवाद कोर्ट तक पहुंच गया, जोकि अभी तक कोर्ट में लंबित है. सचिन जो अपने पिता के साथ ही रहता था, अपनी मां से मिलने लखनऊ जाता रहता था.

सचिन पांडेय ने हाईस्कूल पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. वह अपनी बाइक पर घूमते हुए आवारागर्दी करता था. एक दिन वह पड़ोस के गांव सथरी गया, जहां उस का दोस्त रहता था. उस समय हलकीहलकी बरसात हो रही थी, सड़क सुनसान पड़ी थी. तभी सचिन की नजर एक युवती पर पड़ी, जो पिट्ठू बैग लटकाए बारिश में भीगती हुई जा रही थी. उस ने कालेज की ड्रैस पहन रखी थी. सचिन समझ गया कि वह कालेज से छुट्टी के बाद घर लौट रही है.

सचिन ने उस लड़की को देख कर पलभर के लिए कुछ सोचा, फिर लंबेलंबे कदमों से उसी ओर बढ़ने लगा. वह उस लड़की के एकदम करीब पहुंच कर बोला, ‘‘तुम भीगते हुए क्यों जा रही हो? अगर चाहो तो छतरी के अंदर आ जाओ. मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूं.’’

लड़की ने पलभर के लिए उस की ओर देखा. फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘मैं तो पूरी तरह भीग चुकी हूं, देखो. अब छतरी में घुसने का क्या फायदा?’’

वास्तव में लड़की पूरी तरह भीग चुकी थी. कपड़े भीग कर उस के बदन से चिपक गए थे. सचिन ने जब उस का भीगा शारीरिक सौंदर्य देखा तो उसे पाने के लिए मचल उठा. वह उसे समझाते हुए बोला, ‘‘यह बरसात का पानी है, ज्यादा भीगोगी तो बीमार पड़ सकती हो.’’

युवती ने एक पल उसे देख कर सोचा, फिर झट से छतरी के नीचे आ गई.

वह युवती कोई और नहीं ममता थी. सचिन उसे जानता तो था लेकिन उसे उस का नाम नहीं पता था. कुछ दूरी तय करने के बाद ममता का घर आ गया. वह बोली, ‘‘धन्यवाद, मुझे यहीं छोड़ दीजिए.’’

सचिन उसे घर के चबूतरे पर छोड़ आया. वह चबूतरे पर खड़ी हो कर अपने बालों को झाड़ने लगी.

उस रात खाना खाने के बाद सचिन जब बिस्तर पर लेटा तो हजार कोशिशों के बाद भी उसे नींद नहीं आई. उस की आंखों के सामने ममता का भीगा हुआ शरीर घूमता रहा.

2-3 दिनों तक वह ममता की यादों में खोया रहा. ममता की एक झलक पाने का निश्चय कर के वह शाम को बाइक ले कर घर से निकल गया.

ममता उस की हालत से अनजान अपनी सहेली से हंसीमजाक करते हुए कालेज से घर की तरफ आ रही थी. सचिन की नजर उस पर पड़ी तो वह उन दोनों से थोड़ा आगे हो कर बाइक चलाते हुए बारबार पलट कर ममता की ओर देखने लगा.

ममता इस से अनजान अपनी बातों में मशगूल हो कर आगे बढ़ती रही थी. लेकिन उस की सहेली को उस की इस हरकत का अंदाजा हो चुका था. वह ममता से बोली, ‘‘ममता देखो, वह लड़का बारबार पलट कर हमारी ओर देख रहा है. क्या तुम उसे जानती हो?’’

सचिन बाइक पर बैठे पलटा तो ममता ने उसे पहचान लिया. ममता उसे देख कर मुसकराई तो वह हड़बड़ा गया. उस की बाइक का संतुलन बिगड़ गया और वह बाइक समेत नीचे गिर गया.

यह देख कर ममता की सहेली ठहाका मार कर हंसने लगी तो ममता ने उसे डांटा दिया.

‘‘तू बड़ी तरफदारी कर रही है उस की. उसे जानती है क्या?’’ सहेली ने कहा.

‘‘हां, उस का नाम सचिन है और पड़ोस के गांव इच्छनापुर में रहता है. 2 दिन पहले ही उस ने मुझे अपनी छतरी में ढक कर घर तक छोड़ा था.’’

‘‘फिर तो वह पक्का तुझे ही देख रहा था और इसी वजह से बेचारा चारों खाने चित गिर गया.’’ सहेली बोली.

‘‘तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह रही हो कि वह मुझे ही देख रहा था?’’

‘‘सीधी सी बात है, मैं तो उसे जानती तक नहीं.’’

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अपनी सहेली के इस तर्क से ममता पलभर के लिए कुछ सोचे बिना न रह सकी. तब तक उस की सहेली का घर आ चुका था. वह अपने घर चली गई. ममता अकेली घर पहुंचने तक यही सोचती रही कि सचिन उसे क्यों देख रहा था.

इसी तरह कुछ दिन बीत गए. दोनों के मन में खलबली मची हुई थी. एक प्रेमरोगी बन चुका था तो दूसरा मनोरोगी. एक अपने प्यार का इजहार करना चाह रहा था तो दूसरा अपने मन की उलझन को सुलझाना चाहता था. दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की चाह बढ़ती जा रही थी.

उस दिन शाम का वक्त था. ममता घर का कुछ सामान खरीद कर थैला हाथ में लिए घर की तरफ जा रही थी, तभी उस की नजर सामने से आ रहे सचिन पर पड़ गई. उसे देख कर ममता के शरीर में अजब सी हलचल होने लगी.

वह सचिन के एकदम करीब आ कर बोली, ‘‘मेरी सहेली बोल रही थी कि तुम उस दिन बारबार पलट कर मुझे देख रहे थे?’’

उस का यह अप्रत्याशित प्रश्न सुन कर सचिन एक पल के लिए हड़बड़ा गया. फिर हिम्मत जुटा कर उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी सहेली ठीक कह रही थी. मैं बारबार तुम्हें ही देख रहा था.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कर रहे थे?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करता हूं तो..?’’ ममता को सचिन से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. किंतु इन शब्दों ने उसे विस्मय में जरूर डाल दिया. वह एकाएक कुछ बोल नहीं पाई, बल्कि पलभर के लिए अपलक उस की तरफ देखती रही.

‘‘इस तरह की फालतू बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है.’’ वह बोली.

‘‘अगर मेरा प्यार सच्चा होगा तो तुम्हारे दिल में प्यार का फूल जरूर खिलेगा. मैं मेले में तुम्हारा इंतजार करूंगा. अगर तुम मुझ से मिलने आओगी तो मैं समझ जाऊंगा कि मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया है.’’ कह कर सचिन तेज कदमों से वहां से चल पड़ा.

ममता अपनी छोटी बहन सोनिका के साथ सोती थी. उस रात ममता को नींद नहीं आ रही थी. सचिन की मुसकान और बातें उस के सामने घूम रही थीं. सच्चाई यह थी कि ममता भी उसे चाहने लगी थी. उसे बेचैन देख कर सोनिका ने उस से पूछा भी था, ‘‘क्या बात है दीदी, नींद नहीं आ रही है?’’

‘‘मेरा मन नहीं लग रहा है.’’ कह कर उस ने करवट बदल ली. कुछ पल के लिए आंखें मूंदी तो सचिन के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे. उस का मासूम चेहरा आंखों के सामने घूमने के अलावा जेहन में कई तरह के सवाल पनपने लगे. उसी समय उस ने फैसला कर लिया कि वह सचिन से मिलने जरूर जाएगी.

अगले दिन सजधज कर ममता मेले में गई तो उस ने सचिन को नदी के किनारे इंतजार करते पाया. उसे देखते ही सचिन का चेहरा खिल उठा.

वह तुरंत उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘मुझे मालूम था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘तुम पर तरस खा कर आ गई. नहीं आती तो कहीं नदी में कूद कर जान दे देते तो बेकार में मेरे सिर पर पाप चढ़ जाता.’’ मंदमंद मुसकराते हुए ममता ने कहा तो सचिन ने उस का हाथ पकड़ कर चूम लिया.

‘‘क्या कर रहे हो, मेरी छोटी बहन भी साथ आई है. उस से बहाना कर के आई हूं. मुझे जल्दी जाना होगा.’’

‘‘थोड़ी देर तो बैठो.’’ सचिन ने उसे बिठाया.

कुछ पल की खामोशी के बाद ममता बोली, ‘‘हम दोनों का प्यार हमारे घर वाले कबूल नहीं करेंगे.’’

‘‘जब हम दोनों को कबूल है तो दुनिया की क्या परवाह करना.’’ सचिन बोला.

‘‘दुनिया की नहीं पर घर वालों की परवाह तो करनी ही पड़ेगी. अच्छा, अब मैं चलती हूं.’’ कह कर वह चली गई.

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इस के बाद अकसर दोनों का मिलनाजुलना शुरू हो गया.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

औरत सिर्फ एक देह नहीं

प्यार की परिभाषा : भाग 3

अगले दिन 14 फरवरी यानी वैलेंटाइंस डे था. उसे वह दिन याद आ गया, जिस वैलेंटाइन डे को हर्ष ने उसे गुलाब का फूल दे कर अपने दिल की बात कही थी. अपनी कही बात को याद कर के उस का दिल दुखी हो गया.

एकदम से अनुशा के हृदय में हर्ष के लिए प्रेम उमड़ आया. वह रितु की जगह खुद को हर्ष के साथ रख कर सोचने लगी और एकदम से व्यग्र हो उठी. कार्ड देख कर उस की आंखों में आंसू भर आए थे, जिन्हें उस ने रितु से बड़ी होशियारी से छिपा लिया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अगले दिन का सामना कैसे करेगी.

उस पूरी रात अनुशा हर्ष के बारे में सोचती रही. आंखों में बस हर्ष की यादें तैर रही थीं. वह पूरी रात उस ने नम आंखों में गुजारी. उस का मन हो रहा कि वह हर्ष से माफी मांग कर उसे ‘आई लव यू टू हर्ष’ कह कर उस के सीने पर सिर रख कर खूब रोए. पर अब यह संभव नहीं था. हर्ष तो अब किसी और की अमानत था.

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अनुशा ने रात में ही तय कर लिया कि शादी की तो छोड़ो, वह कल वैलेंटाइंस डे को भी यहां नहीं रहेगी. क्योंकि वह हर्ष को रितु को गुलाब का फूल देते नहीं देख पाएगी. इसलिए उस ने तय कर लिया कि सवेरा होते ही वह मामा के यहां वापस चली जाएगी. अगर वह मम्मीपापा के यहां रही तो उसे शादी में आना पड़ेगा. अब वह हर्ष को किसी और का होता नहीं देख सकती. उठते ही उस ने अपना बैग पैक करना शुरू कर दिया.

अनुशा को बैग पैक करते देख रितु ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अनुशा इस तरह अचानक, क्या हुआ? तुम बैग क्यों पैक कर रही हो? कहीं जा रही हो क्या?’’

‘‘मैं मामा के यहां वापस जा रही हूं. कारण मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी.’’ अनुशा ने नम आंखों को पोंछते हुए कहा.

‘‘पर कारण तो मैं अभी जानना चाहूंगी. जब तक कारण नहीं बताओगी, मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी. अब 4-5 दिनों की ही तो बात है.’’ रितु की बातों में अनुशा को रोकने की जिद थी.

‘‘रितु, मुझे माफ करना. मैं अब यहां बिलकुल नहीं रुक सकती.’’ अनुशा भी अपने निर्णय पर अडिग लग रही थी.

‘‘जब तक तुम सहीसही कारण नहीं बता देती, मैं तुम्हें यहां से जाने नहीं दे सकती. मैं कारण जानना चाहती हूं.’’ रितु भी इस तरह अचानक अनुशा द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में जानना चाहती थी.

रितु को जिद पर अड़ी देख कर अनुशा ने कहा, ‘‘तो सुनो, मैं भी हर्ष को उतना ही प्रेम करती हूं, जितना तुम. इसलिए मैं हर्ष की शादी तुम्हारे साथ होते देख नहीं सकती. आज वैलेंटाइंस डे है. वह तुम्हें गुलाब दे कर वैलेंटाइन डे मनाएगा, यह भी मुझ से देखा नहीं जाएगा. इसीलिए मैं जा रही हूं.’’

अनुशा की बातें सुन कर रितु जोर से हंसी. उस के बाद अपनी हंसी को रोकते हुए बोली, ‘‘अरे पगली, यही तो मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती थी.’’

‘‘मतलब?’’ अनुशा की भौंहें तन गईं.

‘‘अनुशा, मानव की सहज प्रवृत्ति ऐसी है कि जब अपना प्रेमी या प्रेमिका किसी अन्य से प्रेम न करने लगे, तब तक हम उस के प्रेम की कद्र नहीं करते.’’

रितु के होंठों पर अब खुशी उतर आई थी. उस ने अपनी बात को सरल बनाते हुए आगे कहा, ‘‘जैसे मंदगति से चल रहे हृदय को गति देने के लिए शौक देने की जरूरत पड़ती है, उसी तरह सुषुप्तावस्था में रहे तुम्हारे हर्ष के प्रति प्रेम को चेतना में लाने के लिए हमें यह हाई वोल्टेज ड्रामा करना पड़ा.’’

‘‘तो यह सब ड्रामा था?’’ अनुशा हैरानी से रितु को देखती रह गई.

रितु ने अनुशा को हकीकत बताते हुए कहा, ‘‘जब हर्ष ने तुम्हारे सामने प्यार का प्रस्ताव रखा तब शायद वह इस समय की तरह आकर्षक नहीं था. तुम ने उस के बाह्यरूप को देख कर उस के प्रेम को स्वीकार नहीं किया. तब तुम ने उस के सौम्य रूप और हृदय में अनहद प्रेम को नहीं देखा था.

क्या प्रणय की परिभाषा समझाने के लिए किसी का आकर्षक होना जरूरी है. इस पूरी घटना की मैं साक्षी हूं. तुम ने उस के प्रेम को अस्वीकार तो कर दिया, पर हर्ष ने तुम्हारे हृदय में प्रणय का बीज तो रोप ही दिया था, जो तुम्हारे बातव्यवहार से पता चल रहा था. अब मुझे उस बीज को बड़ा वृक्ष बनाना था और मैं उस में कामयाब भी रही.

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‘‘अरे वह पागल तो तुम्हारे मामा के यहां जाने के बाद जीवन से ही हार मान बैठा था. उस के लिए जिंदगी सिर्फ तुम थीं. मुझ से उस की दशा देखी नहीं गई इसलिए मेरे दिमाग में इस योजना ने आकार लिया. सब से पहले हर्ष को मनाया. अरे वह बेवकूफ तो इस नाटक में मेरा हाथ तक पकड़ने को तैयार नहीं था. किसी तरह उसे मनाया.

‘‘इस के बाद हम तुम्हारे मम्मीपापा से मिले. हर्ष उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने इस संबंध के लिए हामी भर दी. उस के बाद हम ने उन्हें अपनी योजना बताई तो उन्होंने पूरा सहयोग करने का वचन दिया. अब तुम पूरा घटनाक्रम याद करो. तुम एयरपोर्ट पर उतरीं तो मैं ने तुम्हें तुम्हारे घर नहीं जाने दिया, क्योंकि तुम्हारे घर भी शादी की तैयारी चल रही है.

‘‘अगर तुम अपने घर जाती तो मेरी योजना पर पानी फिर जाता. शादी का जोड़ा भी तुम्हारी पसंद का खरीदा, क्योंकि उसे तुम्हें ही पहनना था. रही बात निमंत्रण कार्ड की तो मात्र एक कार्ड में मेरा और हर्ष का नाम लिखा है. बाकी के कार्ड तुम्हारे और हर्ष के नाम छपे हैं.’’

इतना कह कर रितु ने निमंत्रण कार्ड का बंडल ला कर अनुशा के सामने रख दिया.

अनुशा ने जल्दी से बंडल खोल कर निमंत्रण कार्ड देखे, उन में लिखा था, ‘डा. अनुशा वेड्स डा. हर्ष’.

अनुशा की आंखें मारे खुशी के छलक उठीं.

‘‘और सुनो, तुम्हें बैग पैक करते देख मैं ने हर्ष को मैसेज कर दिया था. तुम्हारा वह फिल्मी हीरो तुम्हारे लिए गुलाब का बुके ले कर आ गया है. उसे हीरो बनाने में मेरा दिमाग है समझी.’’

अनुशा ने नम आंखों से रितु को बांहों में भर लिया. थैंक्स या इस तरह का कोई शब्द कहने की जरूरत नहीं थी. क्योंकि अनुशा की आंखों से ही सब व्यक्त हो रहा था.

अनुशा दौड़ती हुई हर्ष के पास पहुंची. वह गुलाब का बुके लिए कार से टेक लगाए खड़ा उसी की राह देख रहा था.

अनुशा ने उस के हाथ से बुके छीन कर उस के सीने से लगते हुए कहा, ‘‘हैप्पी वैलेंटाइंस डे हर्ष. हर्ष मैं ने एक सपना देखा है. शहर के पौश इलाके में नदी के किनारे एक फ्लैट है. उस फ्लैट की गैलरी में शाम को तुम खड़े हो और मैं तुम्हारे लिए कौफी बना रही हूं. क्या तुम रोज उस तरह अपने लिए कौफी बनाने का मौका दोगे? आई लव यू हर्ष.’’

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हर्ष के दोनों हाथों ने अनुशा को जकड़ लिया था. अब मुंह से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं रह गई थी.

प्यार की परिभाषा : भाग 2

एयरपोर्ट पर रितु को देखते ही अनुशा उस के गले लग गई. दोनों की आंखों में हर्ष और खुशी टपक रही थी. गले लगेलगे ही अनुशा ने पूछा, ‘‘अब तो बताओ, कौन है वह खुशनसीब, यह सब कब तय हुआ?’’

‘‘धीरज रखो, तुम्हारे जीजाजी यहीं हैं. कार लाने पार्किंग में गए हैं. तुम खुद ही देख लेना मेरी पसंद.’’ रितु ने कहा. उस समय उस की आंखों में एक अजीब चमक थी.

दोनों बातें कर रही थीं, तभी उन के पास एक होंडा सिटी कार आ कर रुकी. अंदर से ब्लैक गोगल्स लगाए एक आकर्षक युवक बाहर निकला. वह आकर्षक युवक दोनों के नजदीक आ कर काला चश्मा उतारते हुए अनुशा की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘कैसी हो मिस अनुशा, पहचाना या नहीं?’’

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अनुशा चौंकी. उस ने हैरानी से उस युवक को ताकते हुए कहा, ‘‘हर्ष तुम..? तुम कितने बदल गए हो? बहुत हैंडसम लग रहे हो, यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘थोड़ी एक्सरसाइज, जिम और थोड़ी स्किन ट्रीटमेंट, क्योंकि आजकल लोगों को किसी चीज की गुणवत्ता की अपेक्षा पैकिंग में ज्यादा रुचि होती है.’’ हर्ष ने कहा और खिलखिला कर हंसने लगा.

रितु ने भी हंसने में उस का साथ दिया. न चाहते हुए अनुशा को भी उन का साथ देना पड़ा क्योंकि वह समझ गई थी कि यह बात हर्ष ने उसी को लक्ष्य बना कर कही थी.

कार में रितु आगे की सीट पर हर्ष के साथ बैठ गई. हर्ष ने उस का सीट बेल्ट बांधा और उस का हाथ पकड़ कर ‘आई लव यू’ कहा तो रितु ने भी उन्हीं शब्दों में जवाब दिया. अनुशा को यह अच्छा नहीं लगा, क्योंकि वह उतनी दूर से उसी के लिए आई थी. वह सोच रही थी कि रितु उस के साथ बैठेगी तो दोनों बातें करेंगी. चूंकि अब उन दोनों की शादी होने जा रही थी, इसलिए अनुशा ने अपने मन को मना लिया.

कार एयरपोर्ट से निकल कर रितु के घर की ओर चल पड़ी. रास्ते में रितु ने अनुशा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘शादी तक तुझे मेरे घर पर ही रहना है. मैं ने अंकलआंटी से बात कर ली है.’’

‘‘ओके डियर रितु, जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा. मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.’’ इस तरह खुशीखुशी अनुशा ने रितु की मांग मान ली.

दोनों की बातचीत बंद करा कर हर्ष ने एक मैरिज हाल की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘देखो अनुशा, हमारी शादी यहीं होगी.’’

अनुशा ने उत्कंठा से खिड़की के बाहर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘वाव, कितनी सुंदर जगह है. एकदम स्वर्ग जैसी.’’

मैरिज हाल देख कर अनुशा ने तारीफ तो की पर मन में एक अजीब तरह का असमंजस महसूस किया, लेकिन वह समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों हुआ.

अनुशा के आते ही रितु शादी की तैयारी में मशगूल हो गई. अनुशा को साथ ले कर रितु शौपिंग के लिए निकल पड़ती. हर्ष भी उन के साथ होता. रितु के सभी शौपिंग बैग ले कर हर्ष उस के पीछेपीछे चलता. कुछ भी लेने से पहले रितु उस से पूछती और हर्ष सहर्ष उस की पसंद को सम्मान देता.

सभी शौपिंग करतेकरते थक जाते तो हर्ष सब के लिए नाश्तापानी की व्यवस्था करता.

हर्ष और रितु एक ही प्लेट में नाश्ता करते. तब अनुशा को कालेज के दिनों की याद आ जाती. यहां फर्क बस इतना था कि तब हर्ष की आंखों में उस के लिए प्रेम छलकता था, जबकि अब वही प्रेम रितु के लिए था.

शौपिंग कर के शाम को वापस आते तो अपने घर जाते समय हर्ष रितु का हाथ पकड़ कर उसे चूमते हुए ‘आई लव यू’ कहता. थोड़ा शरमाते हुए आंखें झुका कर रितु भी उन्हीं शब्दों को वापस करती. तब अनुशा कहती, ‘‘अरे ओ मेरे लैलामजनूं और रोमियो जूलियट, अब तुम्हारे विरह के कुछ ही दिन बचे हैं.’’

इस के बाद तीनों हंसने लगते. हंसते हुए हर्ष कार में बैठता और खुशीखुशी अपने घर चला जाता.

एक दिन सवेरेसवेरे रितु ने कहा, ‘‘अनुशा, आज जल्दी तैयार हो जाना, शादी का जोड़ा पसंद करने चलना है. मैं तुम्हारी पसंद का जोड़ा लूंगी. लहंगाचोली भी एकदम मस्त पहनूंगी. उसे भी तुम्हें ही पसंद करना है. चलो, आज ही खरीद लेते हैं, क्योंकि फिटिंग में भी तो समय लगेगा.’’

रितु के आदेश के बाद अनुशा समय से तैयार हो गई. अनुशा ने रितु के लिए एक बहुत ही सुंदर शादी का जोड़ा पसंद किया. उस के बाद उस जोड़े को खुद ओढ़ कर दुकान में लगे दर्पण में खुद को देखा तो खयालों में खो गई. तभी रितु उस के लिए एक लहंगा चोली ले कर आई, ‘‘देखो अनुशा, मैं ने तुम्हारे लिए इसे पसंद किया है. कैसा लग रही है?’’

रितु के पुकारने से अनुशा का ध्यान भंग हुआ. उस ने लहंगाचोली की ओर निहारते हुए कहा, ‘‘बहुत सुंदर है. और यह जो मैं ने तुम्हारे लिए पसंद किया है, कैसा है?’’

‘‘बहुत सुंदर है अनुशा, तुम न होती तो शौपिंग करना, मेरे लिए कितना मुश्किल होता.’’

रितु की शौपिंग में अनुशा ने काफी मदद की थी. अनुशा रितु की मदद तो पूरे मनोयोग से कर रही थी, पर सहेली की शादी में जिस तरह खुश होना चाहिए, उस तरह खुश नहीं थी. उस के मन में एक टीस सी उठती रहती थी, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है.

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शादी के कुछ ही दिन बाकी रह गए थे. हर्ष कभीकभी रात को रितु के घर आ जाता और दोनों बालकनी में देर रात तक शीतल चांदनी में बैठ कर बातें करते. अनुशा बिस्तर पर रितु का इंतजार करते हुए करवटें बदलती रहती, साथ ही किसी तरह मन को समझाती रहती.

13 फरवरी की शाम को रितु ने अचानक कहा, ‘‘अरे अनुशा, मैं ने तुम्हें अपनी शादी का कार्ड तो दिखाया ही नहीं. देखो, यह हर्ष की शादी का कार्ड, जिसे मैं ने पसंद किया है और यह देखो मेरी शादी का कार्ड, जिसे हर्ष ने पसंद किया है.’’

अनुशा दोनों कार्ड हाथ में ले कर देखने लगी. एक कार्ड पर लिखा था—डा. हर्ष वेड्स डा. रितु और दूसरे पर लिखा था डा. रितु वेड्स डा. हर्ष. अनुशा ने डा. हर्ष के नाम पर हाथ फेरा. उस दिन अनुशा को अपने मन में होने वाली टीस का पता चल गया था. रितु के प्रति हर्ष का अनहद प्यार अब उस से देखा नहीं जा रहा था, क्योंकि ऐसा प्यार उस ने अब तक के जीवन में देखा नहीं था.

अब शायद उसे अपनी उस बात पर अफसोस हो रहा था, जो उस दिन हर्ष से कही थी. अगर उस ने हर्ष का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो आज उस कार्ड में हर्ष के साथ रितु की जगह उस का नाम होता.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्यार की परिभाषा : भाग 1

एमबीबीएस की पढ़ाई का पहला साल. प्रवेश प्रक्रिया पूरी होते ही हौस्टल में रहने आए सभी छात्र अपनी नई जीवनशैली के अनुकूल ढलने की कोशिश कर रहे थे. सभी के मन में नए साथियों से मिलने का आनंद था, साथ ही घर से दूर आ कर घर की याद भी सता रही थी.

सभी स्टूडेंट घर और हौस्टल में संतुलन साधने का प्रयास कर रहे थे. इसी समिश्रित लगाव को मन में छिपाए हौस्टल से कालेज जा रहे गेट के पास तेजी से चली आ रही एक लड़की हर्ष से टकरा गई.

उस लड़की ने झिझकते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं जरा जल्दी में थी. मेरा एडमिशन आज ही हुआ है. क्या आप बता देंगे कि एमबीबीएस फर्स्ट ईयर का लेक्चर हाल कहां है?’’

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‘‘इट्स ओके. सेकेंड फ्लोर लेक्चर हाल नंबर 705.’’ हर्ष ने जवाब दिया.

‘‘थैंक्स.’’ कह कर लड़की पलभर में गायब हो गई. जैसेजैसे प्रवेश प्रक्रिया का काम पूरा हो रहा था, वैसेवैसे कालेज में नए चेहरे आते जा रहे थे. उस लड़की के कोमल मुलायम कंधे का स्पर्श और मधुर स्वर में हुआ संवाद हर्ष के हृदय को गति दे रहा था.

लेक्चर हाल में दाखिल होते ही हर्ष की निगाहें स्टूडेंट्स के बीच उसी चेहरे को खोज रही थीं. आखिर पहली ही लाइन में वह चेहरा दिखाई दे गया. उस पर नजर पड़ते ही उस के हृदय की गति तेज हो गई. उस दिन के बाद हर्ष रोजाना उस चेहरे को निहारता रहता और मन ही मन तेज गति से धड़कते दिल की धड़कन को काबू करने की कोशिश करता रहता. इस के पहले उस ने किसी के लिए इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

हर्ष किसी भी तरह उस लड़की से बात करना चाहता था. उस की इस चाहत को पूरा करने में मदद की रितु ने. रितु और हर्ष एक शहर के रहने वाले तो थे ही, एक ही कालेज में साथ पढ़े थे. हर्ष ने रितु को पूरी बात बताई तो उस ने खुश हो कर कहा, ‘‘अनुशा मेरी बेस्ट फ्रैंड है. मैं उस से तुम्हारी बात तो करा दूंगी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ हर्ष ने पूछा.

‘‘इस के बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘इस के लिए तुम जो कहो, मैं करने को तैयार हूं.’’ हर्ष ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘तुम्हें मेरी एनाटौमी का जर्नल लिखना होगा. इस के अलावा कैंटीन में रोज एक आइसक्रीम खिलानी पड़ेगी.’’

‘‘ओके डन.’’ हर्ष के हिसाब से सौदा बहुत सस्ते में पट गया था.

और रितु ने कैंटीन में हर्ष की मुलाकात अनुशा से करा दी, ‘‘इट इज नाइस टू मीट यू अगेन.’’ कहते हुए हर्ष की आंखों में अपार खुशी छलक रही थी.

‘‘हम दोनों अपने कालेज के पहले दिन मिले थे.’’ अनुशा ने जवाब दिया.

पता चला अनुशा भी उसी शहर की रहने वाली थी, जिस शहर के वे दोनों थे. थोड़ी बातचीत उस के बाद आइसक्रीम पार्टी कर के तीनों हौस्टल के लिए निकल गए.

हर्ष अपने हौस्टल के कमरे की ओर जा तो रहा था, लेकिन उस के मन में अनुशा ही बसी थी. बस, इसी तरह मुलाकातें बढ़ती गईं. कभी कैंटीन में हर्ष और अनुशा के साथ रितु भी होती तो कभी सिर्फ हर्ष और अनुशा ही होते.

हर्ष का मन अनुशा के साथ उत्कट प्रणय संबंध में बंध गया था, पर यह प्रणय एकतरफा था. सौदे के अनुसार हर्ष रितु का काम तो करता ही, अनुशा के भी उसे कई काम करने होते थे. कैंटीन में अनुशा और रितु के लिए नाश्ता और कौफी वही लाता था. पर वह चाह कर भी वह दिल की बात अनुशा से नहीं कह सका.

इसी तरह 3 साल बीत गए. चौथे साल के पहले सेमेस्टर की भी परीक्षा हो गई थी. सभी स्टूडेंट्स फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे. फाइनल एग्जाम अप्रैल-मई में होने थे. इसी बीच फरवरी का महीना आ गया.

प्रेम करने वालों के लिए इस महीने की 14 तारीख महत्त्वपूर्ण होती है. जिन के वैलेंटाइन होते हैं, वे अपनेअपने वैलेंटाइन को गुलाब का फूल और उपहार देते हैं. यानी एक तरह से प्रेम का इजहार करते हैं.

हर्ष ने अनुशा से अपने प्यार का इजहार करने के लिए इसी दिन को चुना, क्योंकि यह उस के लिए अंतिम चांस था. अगर इस बार वह चूक जाता तो फिर जल्दी मौका नहीं मिलता. क्योंकि एग्जाम के दौरान ऐसी बात नहीं की जा सकती थी. एग्जाम खत्म होते ही सब को अपनेअपने घर चले जाना था. हर्ष को पूरी उम्मीद थी कि अनुशा उस के प्यार को अस्वीकार नहीं करेगी.

आखिर 14 फरवरी यानी वैलेंटाइंस डे को कैंटीन में हर्ष ने अनुशा को गुलाब का फूल दे कर सहज रूप से हैप्पी वैलेंटाइंस डे कहा और अपने दिल की बात उस के सामने रखी, ‘‘अनुशा, मैं ने एक सपना देखा है कि शहर की पौश कालोनी में नदी के किनारे एक फ्लैट है. उस फ्लैट की गैलरी में तुम खड़ी हो और मैं शाम को तुम्हारे लिए कौफी बना कर लाता हूं. क्या तुम मुझे ऐसा मौका दोगी कि मैं तुम्हारे लिए रोज कौफी बनाऊं?’’

‘‘मतलब?’’ अनुशा की भौंहें तन गईं.

‘‘आई लव यू अनुशा. कालेज के पहले दिन ही तुम्हें देख कर मेरा दिल धड़कने लगा था. और अब यह हमेशाहमेशा के लिए सिर्फ तुम्हारी खातिर धड़कना चाहता है. तुम्हारे लिए इस में अनहद प्रेम है और सदा इसी तरह अनहद रहेगा.’’ कहते हुए हर्ष ने प्रेमभरी नजरों से अनुशा को देखा और उस के प्रत्युत्तर की राह तकने लगा.

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‘‘हर्ष, मैं जो कहने जा रही हूं, तुम उस का बुरा मत मानना. मैं ने कभी भी तुम्हें एक फ्रैंड से ज्यादा नहीं माना. जीवनसाथी को ले कर मेरे मन में बड़ी अपेक्षाएं हैं, जिस में तुम्हारा साधारण और सामान्य रूप फिट नहीं बैठता. मुझे अपनी सुंदरता पर अभिमान तो नहीं है पर चाहती हूं कि मेरा जोड़ीदार ऐसा हो, जिस के साथ मैं खड़ी होऊं तो लोग कहें कितनी सुंदर जोड़ी है.’’ अनुशा ने अपनी बात स्पष्ट कर दी.

अनुशा के इन शब्दों ने हर्ष के दिल की गति मंद कर दी थी. अनुशा संभवत: उस के प्रणय की परिभाषा नहीं समझ सकी थी. हर्ष को आघात तो लगा, पर वह दुखी होने का समय नहीं था. जिस के लिए वह अपना घरपरिवार छोड़ कर वहां आया था, वह काम जरूरी था. उसी दिन से हर्ष अपनी पढ़ाई में लग गया और उस ने पूरे मन से परीक्षा दी.

परीक्षा दे कर अनुशा अपने मामा के यहां चली गई, क्योंकि उन का अपना नर्सिंगहोम था. रितु और हर्ष अपने शहर लौट गए. क्योंकि उन के घर वालों की उन्हीं के शहर में जमीजमाई प्रैक्टिस थी.

सभी अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए. एक दिन अचानक रितु ने अनुशा को फोन किया, ‘‘हैलो अनुशा, कैसी हो?’’

‘‘हाय वैनवी, बहुत मजे में तो नहीं हूं, फिर भी चल रहा है. बस, वही रूटीन क्लिनिक वर्क. तुम बताओ, आज सवेरेसवेरे कैसे याद कर लिया. कोई गुड न्यूज है क्या? क्योंकि तुम्हारी बातों में ही खुशी झलक रही है.’’

‘‘बहुत होशियार हो गई हो दिल्ली जा कर. तुम्हें तो बातों से सब पता चल जाता है. सुनो, 16 फरवरी को मेरी शादी है. तुम्हें आज ही यहां आना है. अभी मेरी सारी की सारी शौपिंग बाकी है. तुम्हारे आने के बाद ही शौपिंग शुरू करूंगी.’’

‘‘वाव दैट्स ग्रेट न्यूज. कौन है भाई वह भाग्यशाली, जो मेरी रितु को ले जा रहा है?’’ अनुशा के मन में भी खुशी भर गई थी.

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‘‘तुम आ जाओ बस, सब बताऊंगी. तुम्हें लेने मैं एयरपोर्ट पर आऊंगी.’’ वर्षों बाद अनुशा से मिल कर सब कुछ बताने की उत्कंठा और खुशी रितु के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी.

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