देश में फैला है अंधविश्वास ही अंधविश्वास

चाहे कोई भी हो, यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि वह अंधविश्वासी है. किसी को गाली देने से जैसे कोई शख्स दुखी और गुस्सा हो जाता है, वैसे ही किसी को अंधविश्वासी कहने से भी वह गुस्सा हो जाता है. अंधविश्वासी कहलाना कोई भी नहीं चाहता, पर अंधविश्वास हैं क्याक्या, यही उन्हें पता नहीं होता. हालांकि यह सभी मानने को तैयार हैं कि अंधविश्वास और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक बुराइयां, परंपरा, रस्मोरिवाज हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट हैं.

देश में ‘अर्जक संघ’ समेत कई ऐसे संगठन हैं, जो अंधविश्वास के साथसाथ समाज में फैली बुराइयों को खत्म करने में जुटे हैं.

हम यहां कुछ अंधविश्वासों, परंपराओं व बुराइयों की ओर आप का ध्यान खींच रहे हैं:

* सुबह उठते ही अपनी दोनों हथेलियां देखना.

* अगर कोई काम नहीं हो सका, तो यह कहना कि न जाने हम किस का मुंह देख कर उठे थे.

* नहाधो कर सुबह एक लोटा पानी सूरज की ओर गिराना और कान ऐंठ कर प्रणाम करना.

* सुबहसवेरे नहाधो कर तुलसी के पौधे में पानी डालना.

* तथाकथित धर्मग्रंथ का पाठ कर के खुद और अपने परिवार का समय बरबाद करना.

* दिन के मुताबिक रंगीन कपड़ों को पहनना, भोजन करना वगैरह.

* घर के दरवाजे पर पुरानी चप्पल या जूता, सूप, नीबू, मिर्च वगैरह टांगना.

* बाहर निकलते समय घर के लोगों को दही, चीनी खाने को कहना और माथे पर टीका करना.

* बाहर निकलते समय अगर तेली जाति का शख्स दिख जाए, तो अशुभ मानना.

* अगर कोई छींक दे, तो अशुभ मान कर रुक जाना.

* रास्ते में अगर आगे से कोई बिल्ली चली जाए, तो वहीं रुक जाना.

* अगर बच्चा या कोई शख्स बीमार पड़ जाए, तो झाड़फूंक कराना.

* किसी को सांपबिच्छू काट ले, तो झाड़फूंक कराना.

* हाथ में गंडातावीज बांधना और काला टीका करना.

* बच्चे के जन्म के बाद उस के पास लोहे की चीज रखना.

* नवजात बच्चे को किसी को इसलिए नहीं दिखाना कि कहीं नजर न लग जाए.

* बच्चे के हाथपैर, कमर में काला धागा बांधना या काला टीका लगाना.

* जन्म के बाद किसी ब्राह्मण को बुला कर पत्री दिखाना और उस के कहने पर कर्मकांड करना.

* नाम रखने के लिए ब्राह्मण पर आश्रित रहना.

* पढ़ने की शुरुआत किसी खास दिन से करना और पुरोहित से पूछ कर स्कूल भेजना.

* कहीं बाहर जाने से पहले ब्राह्मण से पत्री दिखाना और उसी के मुताबिक चलना.

* नए घर जाने से पहले ब्राह्मण से पूछ कर तारीख तय करना.

* शादी के पहले ब्राह्मण से दिन दिखाना और उसी से शादी या श्राद्ध कराना.

* कोई भी कर्मकांड करने या त्योहार के बाद ब्राह्मण को दान देना.

* त्योहार के नाम पर पत्थर, मिट्टी की मूर्ति के सामने गिड़गिड़ाना.

* किसी चमत्कार के बाद उस की वजह को ढूंढ़ने के बजाय ईश्वरीय शक्ति मान बैठना.

* अपनी गरीबी, जोरजुल्म से लड़ने के बजाय तकदीर में लिखा है कह कर चुप बैठ जाना.

* शरीर से ठीकठाक होने के बावजूद घरघर घूमते साधुमहात्मा के नाम पर लोगों को दान देना.

* शादी के समय काला कपड़ा नहीं पहनना.

* शादी के समय किसी विधवा को नहीं रहने देना.

* मरने के बाद कर्मकांड करना, सिर मुंड़वाना, ब्रह्मभोज करना, दान देना.

* सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण लगने पर भोजन नहीं करना और ब्राह्मण को दान देना.

* वास्तुशास्त्र के मुताबिक ही मकान बनवाना.

* ज्योतिष से हाथ दिखाना, भविष्यफल देखना और उस के बताए उपाय करना.

* रविवार को हल नहीं चलाना.

* देवीदेवता की पूजा किए बगैर धान नहीं रोपना.

और भी ऐसी कई बातें हैं, जो अंधविश्वास मानी जाती हैं. लेकिन हैं बिलकुल अधार्मिक बातें.

हमें वैज्ञानिक सोच पैदा करने की जरूरत है, ताकि जिंदगी में तरक्की के रास्ते पर चल सकें. इस से एक फायदा यह भी होगा कि जो बगैर मेहनत किए अपना पेट पाल रहा है, वह मेहनत की अहमियत समझ कर और ज्यादा मेहनत करने लगेगा. देश और समाज तरक्की की ओर बढ़ सकेगा.

इन सब प्रपंचों से धर्म के दुकानदारों को पैसा मिलता है, जो चाहे मंदिरों, चर्चों, मसजिदों में इस्तेमाल हो या दूसरों का सिर फोड़ने के काम आए. अंधविश्वास सीधे पंडों की जेबों से जुड़े हैं.

प्लंबर बनें और कमाई करें

प्लंबिंग के काम का इतिहास बहुत पुराना है. सिंधु घाटी की सभ्यता में ऐसे सुबूत मिले हैं जब पानी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए इस तरह की तकनीक को अपनाया जाता था.

प्लंबिंग का काम कम पढ़ेलिखे लोगों के लिए रोजगार का अच्छा जरीया है और आज के दौर में तो प्लंबर की अकसर जरूरत पड़ती है. खेतखलिहानों से ले कर घर, औफिस या फैक्टरी सभी जगह प्लंबर की काफी मांग बनी रहती है.

प्लंबिंग का काम किसी कुशल प्लंबर के साथ रह कर सीखा जा सकता है. इस के अलावा इस काम को सिखाने के लिए अनेक संस्थाएं हैं जैसे आईटीआई, पौलीटैक्निक जो इस काम की ट्रेनिंग देती हैं.

इस कोर्स को करने के बाद डिप्लोमा या सर्टिफिकेट मिलता है. प्राइवेट संस्थानों में ट्रेनिंग की फीस ज्यादा हो सकती है लेकिन सरकारी संस्थानों में फीस काफी कम होती है.

आईटीआई और पौलीटैक्निक से प्लंबिंग में डिप्लोमा लेने के लिए कम से कम 10वीं पास होना जरूरी है. आईटीआई में एक साल का डिप्लोमा कोर्स होता है. इस के अलावा 8वीं जमात पास लोगों के लिए भी 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स है, जिसे सोसाइटी फोर सैल्फ एंप्लौयमैंट (स्वरोजगार समिति) दिल्ली सरकार के तहत कराया जाता है.

स्वरोजगार समिति में प्लंबिंग के मास्टर सुरेंद्र सिंह ने बताया कि 8वीं जमात पास नौजवान भी इस कोर्स को कर सकते हैं. ट्रेनिंग पूरी होने पर एक सर्टिफिकेट दिया जाता है. अगर छात्र 10वीं पास है तो वह दिल्ली जल बोर्ड में लाइसैंस के लिए भी अप्लाई कर सकता है. लाइसैंस मिलने पर वह सरकारी व प्राइवेट काम के ठेके भी ले सकता है.

मास्टर सुरेंद्र सिंह ने आगे बताया कि प्लंबिंग में 3 तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. सब से पुरानी तकनीक है जीआई पाइप (ग्लैवनाइज्ड आयरन पाइप) की फिटिंग. इस में लोहे के पाइपों की फिटिंग की जाती है. दूसरी सीपीवीसी तकनीक है जिस में पीवीसी पाइपों को सोल्वैंट सीमेंट (एक तरह का तरल पदार्थ) के जरीए फिटिंग की जाती है. तीसरी है पीपीआर तकनीक. इस के तहत पीपीआर मशीन से पाइपों के किनारों को गरम कर के फिटिंग की जाती है.

प्लंबिंग में घरेलू फिटिंग, फैक्टरी की फिटिंग, बिजली मोटर पंप लगाना, गीजर लगाना, सिंक, वाशवेसिन वगैरह लगाने के अलावा सीवर लाइन की फिटिंग जैसे काम भी आते हैं और आज तरक्की के इस दौर में खाना बनाने वाली घरेलू गैस भी बड़े शहरों में पाइपों के जरीए घरों में सप्लाई की जा रही है. मतलब, नौब खोलो और गैस का इस्तेमाल कर खाना बनाओ. यानी अब गैस के सिलैंडर की जरूरत ही नहीं. इस दिशा में भी रोजगार के अच्छे मौके मिल सकते हैं.

आज के समय में लोहे के पाइपों की फिटिंग की जगह दूसरी नई तकनीकों ने ले ली है. इन तकनीकों में लोहे के पाइपों की फिटिंग के मुकाबले खर्च भी कम होता है और इस में मेहनत भी कम लगती है लेकिन मजदूरी पूरी मिलती है.

6 महीने की ट्रेनिंग लेने के बाद कोई भी बहुत ही कम खर्च में अपना धंधा शुरू कर सकता है. अपनी दुकान खोल सकता है या घर पर रह कर भी अपना कामधंधा शुरू कर सकता है.

2,000 से 5,000 रुपए तक में औजार खरीद कर अपना काम शुरू किया जा सकता है. कुछ औजार सैनेटरी हाईवेयर वालों से किराए पर भी मिल जाते हैं. औसतन हर महीने कम से कम 15 से 20,000 रुपए की कमाई आसानी से हो सकती है. कई दफा ठेके पर काम ले कर ज्यादा कमाई भी हो जाती है. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत लोन ले कर भी अपने रोजगार को बढ़ाया जा सकता है.

अगर आप प्लंबिंग का कोर्स करना चाहते हैं या इस बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो प्लंबिंग मास्टर सुरेंद्र सिंह के मोबाइल फोन नंबर 9899102589 पर सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक फोन कर सकते हैं या सोसाइटी फोर सैल्फ एंप्लौयमैंट के दिल्ली दफ्तर ई-3, फ्लैटेड फैक्टरीज, झंडेवाला कांप्लैक्स, नई दिल्ली-110055 से भी फोन नंबर 011-23673098 जानकारी ले सकते हैं.

मासूम की बलि, जिसकी कहानी हैरान कर देगी

अशोक कुमार पंजाब के जिला जालंधर के गांव मलको में पत्नी रजनी और 2 बच्चों 7 वर्षीय गुरप्रीत चुंबर उर्फ गोपी एवं 4 वर्षीय मनप्रीत के साथ रहता था. वह कौंप्लेक्स स्थित एक फैक्ट्री में खराद मशीन का मिस्त्री था. फैक्ट्री के लिए वह सुबह 8 बजे घर से निकलता तो रात को लगभग 8 बजे ही घर आता था. उस का बड़ा बेटा गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ता था. उसे स्कूल तक पहुंचाने और छुट्टी के बाद घर लाने की जिम्मेदारी रजनी की थी. गुरप्रीत बड़ा ही खूबसूरत, मासूम दिखने वाला हंसमुख स्वभाव का था, इसलिए मोहल्ले के सभी लोग उस से स्नेह रखते थे.

अशोक कुमार के पड़ोस में 2-4 मकान छोड़ कर जीतराम और उस के बेटे राजकुमार का मकान था. जुलाई 2016 के अंतिम सप्ताह में राजकुमार के मकान में मंगतराम पत्नी के साथ किराए पर रहने आया. वह मूलरूप से  फाजलवाल का रहने वाला था.  वह मकान बनाने के ठेके लेता था, इसीलिए गांव के लोग उसे मंगत ठेकेदार कहते थे.

मंगत के बगल वाले कमरे में इंद्रजीत रहता था. वह मंगतराम के साथ ही काम करता था. दोनों साथ ही काम पर जाते थे और साथ ही रात को घर लौटते थे. मंगतराम की पत्नी जानकी हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की थी, इसलिए पड़ोस की औरतों से उस की खूब पटती थी.

जानकी शाम को मोहल्ले के बच्चों को घर बुला कर नि:शुल्क ट्यूशन पढ़ाती थी. इस से उस का समय भी कट ही जाता था और बच्चों को भी फायदा होता था. अशोक कुमार का बेटा गुरप्रीत चुंबर भी रोजाना शाम को जानकी के घर ट्यूशन पढ़ने जाने लगा था.

जानकी ने 8 अगस्त, 2016 को मोहल्ले में सब से कह दिया कि वह अपने पति के साथ माता चिंतपूर्णी मंदिर जा रही है. उस के लौटने तक उस का देवर इंद्रजीत बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएगा. उस दिन शाम को तय समय पर ट्यूशन पढ़ने के बाद बच्चे घर नहीं पहुंचे तो उन के घर वाले मंगतराम के घर जा पहुंचे. सब ने देखा इंद्रजीत बच्चों को पढ़ा रहा था. उस ने कहा कि थोड़ी देर में वह बच्चों को घर भेज देगा.

15 मिनट बाद सभी बच्चे अपनेअपने घर पहुंच गए, पर गुरप्रीत नहीं आया. रजनी को जब पता चला कि उस के बेटे के अलावा सभी बच्चे ट्यूशन पढ़ कर घर आ गए हैं तो वह मंगतराम के घर गई.

मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा खटखटाने पर इंद्रजीत बाहर निकला तो पूछने पर उस ने बताया कि बस 2 प्रश्न रह गए हैं. उन्हें पूरा करने के बाद वह खुद गुरप्रीत को घर पर पहुंचा देगा. उस की बात से संतुष्ट हो कर रजनी घर लौट आई. पर आधे घंटे बाद भी जब गुरप्रीत नहीं आया तो रजनी को चिंता हुई.

वह उसे लेने के लिए बड़बड़ाती हुई घर से निकली कि ऐसी कौन सी पढ़ाई है, जो खत्म नहीं हो रही है. वह फिर से मंगतराम के घर पहुंची तो दरवाजे पर लगा ताला देख कर उस का माथा ठनक गया. उस के मुंह से निकला, ‘अरे ताला डाल कर ये कहां चले गए और मेरा गोपी कहां है?’

रजनी ने घबरा कर शोर मचा दिया तो मोहल्ले के तमाम लोग जमा हो गए. पूछने पर रजनी ने अपने बेटे और इंद्रजीत के गायब हो जाने की बात बता दी. मोहल्ले वाले भी सोच में पड़ गए कि इंद्रजीत बच्चे को ले कर पता नहीं कहां चला गया है? किसी अनहोनी की कल्पना से रजनी का दिल बैठा जा रहा था. उस समय शाम के साढ़े 7 बज रहे थे. मोहल्ले वाले गोपी को इधरउधर खोजने लगे.

एक दुकानदार ने बताया कि करीब सवा 6 बजे के करीब इंद्रजीत गुरप्रीत को ले कर उस की दुकान पर आया था. उस ने गुरप्रीत को 2 चौकलेट और 2 कुरकरे के पैकेट दिलाए थे.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ रजनी ने कहा, ‘‘सवा 6 बजे से 7 बजे तक मैं ने खुद गुरप्रीत को इंद्रजीत के यहां ट्यूशन पढ़ते देखा था.’’

दुकानदार ने विश्वास दिलाते हुए कहा कि सवा 6 बजे के करीब ही वह दुकान पर आया था. अब रजनी को मामला गड़बड़ नजर लगने लगा. वह सोचने लगी कि जब वह सवा 6 बजे के करीब इंद्रजीत के घर गई थी तो वहां घर में कौन था? लोगों ने कुछ ही देर में गांव का कोनाकोना छान मारा गया, पर गुरप्रीत और इंद्रजीत का कहीं पता नहीं चला. अब रजनी रोने लगी. गांव के एक आदमी ने मंगतराम और जानकी को फोन कर सारी बात बताई. मंगतराम ने कहा कि इस समय वह चिंतपूर्णी माता के मंदिर में है. इसलिए इस मामले में कुछ नहीं कर सकता. बात खत्म कर के उस ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया.

संयोग से उस समय अशोक घर पर नहीं था. उस की नाइट ड्यूटी थी. गुरप्रीत को ढूंढतेढूंढते रात के 11 बज गए थे. बेटे के गायब होने की सूचना रजनी ने फोन द्वारा पति को दी तो वह तुरंत घर आ गया और बेटे की खोज में लग गया. जब वह कहीं नहीं मिला तो रात करीब साढ़े 12 बजे मोहल्ले के कुछ लोग पड़ोसी की छत से मंगतराम के घर में पहुंचे.

मकान के अंदर कमरों के दरवाजे खुले हुए थे. एक कमरे का नजारा बड़ा ही रहस्यमयी था. कमरे के बीचोबीच एक हवनकुंड बना था, जिस में अधजली लकडि़यां और हवन सामग्री पड़ी थी. कुछ हवन सामग्री हवनकुंड के बाहर भी पड़ी थी. वहीं एक छुरी, कुछ कटे नींबू, लौंग, जायफल, सिंदूर और किसी जानवर के बाल और 7 हड्डियां पड़ी थीं.

यह सब देख कर सभी हैरान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या है और गुरप्रीत कहां है? इस के बाद सभी दूसरे कमरे में पहुंचे तो उस कमरे का ज्यादातर सामान गायब था. एक कमरे में एक तख्त पड़ा था और लोहे की एक पुरानी अलमारी रखी थी.

जब उस अलमारी को खोल कर देखा गया तो सभी के होश उड़ गए. अलमारी खुलते ही उस के अंदर रखी गुरप्रीत की लाश फर्श पर गिर पड़ी. अपने जिगर के टुकड़े की हालत देख कर अशोक की चीख निकल गई. लोगों ने लाश उठा कर तख्त पर लिटा दी. मकान का मेनगेट खुलने पर रजनी भी अंदर आ गई थी. बेटे की लाश देख कर वह भी दहाड़े मार कर रोने लगी. फौरन पुलिस को सूचना दी गई.

सूचना मिलते ही थाना लंबड़ा के थानाप्रभारी सरबजीत सिंह टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. घटनास्थल पर पूरा गांव जमा था. थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना डीसीपी और क्राइम इन्वैस्टिगेशन टीम को दे दी थी. गांव वाले बच्चे की हत्या पर उत्तेजित थे. कुछ ही देर में एडिशनल डीसीपी परमिंदर सिंह भंडाल सहित अन्य अधिकारी भी वहां आ गए थे.

एडिशनल डीसीपी भंडाल ने गांव वालों को समझा कर शांत किया और भरोसा दिया कि जल्द ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया. बरामद सामान और माहौल देख कर साफ लग रहा था कि कमरे में तांत्रिक क्रिया की गई थी. मृतक बच्चे के माथे पर काला तिलक लगा था. गले में फूलों की माला, हाथों पर सिंदूर और गरदन पर खून के निशान थे. लाश को गोटा लगी लाल सुर्ख रंग की चुनरी में लपेट कर अलमारी में रखा गया था. उस के हाथपैर लाल रंग के मौली धागे से बंधे थे. सिर पर किसी भारी चीज के मारने की चोट थी.

अब तक की जांच से स्पष्ट हो गया था कि इंद्रजीत या किसी तांत्रिक ने गुरप्रीत की बलि दी गई थी. बहरहाल मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज कर कमरे से जरूरी सबूत कब्जे में ले लिए गए. इस के बाद अशोक कुमार के बयानों के आधार पर पुलिस ने इंद्रजीत के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी.

एडिशनल डीसीपी परमिंदर सिंह भंडाल ने आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अतिरिक्त थानाप्रभारी विजय कुमार, एएसआई गुरमेज सिंह, हैडकांस्टेबल जोगिंदर सिंह, तलविंदर सिंह, कांस्टेबल बलजीत  कुमार, कुलदीप सिंह की एक टीम बनाई बनाई, जिस का निर्देशन थानाप्रभारी सरबजीत सिंह को सौंपा गया.

गांव के लोगों को ले कर ले कर टीम माता चिंतपूर्णी के लिए रवाना हो गई. इस के अलावा थानाप्रभारी ने पूरे शहर में इंद्रजीत की तलाश में मुखबिरों को भी लगा दिया था. सरबजीत सिंह ने क्षेत्र में प्रमुख स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी निकलवा कर देखी. एक फुटेज में इंद्रजीत गुरप्रीत को ले कर जाता दिखाई दिया. उस के हाथ में कुरकुरे के पैकेट थे, एक अन्य फुटेज में इंद्रजीत हैंडबैग ले कर कहीं जा रहा था. शायद यह उस के फरार होने के समय का था.

पुलिस दिनरात इंद्रजीत की तलाश में जुटी थी. माता चिंतपूर्णी गई टीम खाली हाथ लौट आई थी. 4 दिनों बाद मुखबिर ने इंद्रजीत के बारे में पुख्ता सूचना दी. सूचना के आधार पर बस्ती जोधेयाल में दबिश दे कर इंद्रजीत को गिरफ्तार कर लिया गया. वह थका हुआ सा दिखाई दे रहा था.

पूछताछ शुरू करने से पहले ही उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के कहा कि उस ने एक ऐसा पाप कर दिया है, जिस की माफी शायद ही उसे मिले. इस के बाद गुरप्रीत की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह कोई नई नहीं थी. चालाक और शातिर लोग सदियों से दूसरों की कमजोरी का फायदा उठा कर अपना मनचाहा काम करवाते रहे हैं, यह भी उसी का नतीजा थी.

मंगतराम जालंधर में पिछले कई सालों से काम कर रहा था. उस की लगभग 4-5 महीने पहले इंद्रजीत से मुलाकात हुई थी. वह राजमिस्त्री का काम करता था. दोनों की जल्दी ही अच्छी जानपहचान हो गई और उस ने उसे रहने के लिए अपने घर पर जगह दे दी. मंगतराम की पत्नी ने उसे अपना देवर मान लिया और उस का खाना भी वही बनाने लगी. इंद्रजीत को पतिपत्नी ने अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया.

इंद्रजीत कपूरथला के गांव रावलपिंडी के एक गरीब परिवार का लड़का था. उस की एक बहन थी जो शादी लायक थी और उस का रिश्ता भी तय हो गया था. 2 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी. इंद्रजीत के पिता वृद्ध और कमजोर थे, पर जैसेतैसे वह घर के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर लेते थे.

3-4 सौ रुपए रोज की मजदूरी में बहन की शादी करनी असंभव थी. शादी के लिए लाखों रुपए की जरूरत थी, इसलिए इंद्रजीत किसी ऐसे बड़े आदमी या बड़े ठेकेदार की तलाश में था, जो उसे लाखों का कर्ज ब्याज पर दे सके या कोई ठेकेदार उसे लाखों रुपए एडवांस दे सके. वह हर महीने एक मुश्त रकम चुकाता रहेगा. यही एक तरीका था बहन की शादी करने का.

इस बात का पता जब मंगतराम को चला तो एक दिन शाम को उस ने घर पर बोतल मंगवा कर इंद्रजीत के साथ पीते हुए पूछा, ‘‘तुम्हें 2 लाख रुपए की जरूरत है न?’’

‘‘हां,’’ इंद्रजीत बोला, ‘‘बहन की शादी के लिए 2 लाख रुपए जल्द चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे सकता हूं.’’ मंगतराम ने जाल फेंकते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ इंद्रजीत ने कुछ कहना चाहा तो मंगतराम ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘पहले मेरी पूरी बात सुन लो, मैं तुम्हें 2 लाख रुपए बिना ब्याज के दूंगा. मतलब 2 लाख रुपए दे कर वापस भी नहीं लूंगा, पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम?’’ इंद्रजीत ने पूछा तो मंगतराम ने कहा कि शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी उस की भाभी को औलाद नहीं हुई है. इस की कोख पर किसी जिन्न का साया है. वह खुद तांत्रिक है. उस ने अपनी तंत्र विद्या से जिन्न का साया हटा दिया है. अब उस से किसी ने कहा है कि वह एक 7 साल के बच्चे की बलि दे तो उस की आत्मा उस की पत्नी की कोख से जन्म ले लेगी.

मंगतराम ने बताया कि उस की पत्नी जानकी ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के चक्कर में पूरा माहौल तैयार कर लिया है. जिस बच्चे की बलि दी जानी है, उसे चुन लिया है. उसे बस उस के कहे अनुसार उस की बलि देनी है.

बच्चे की बलि की बात सुन कर इंद्रजीत एकबारगी घबरा गया. पर जब उस ने अपने घर में झांक कर देखा तो बच्चे की बलि से अधिक उसे अपनी जरूरत बड़ी लगी. काम कैसे करना है, यह सब मंगतराम ने उसे समझा दिया और सामान आदि के लिए 10 हजार रुपए भी दे दिए.

योजना के अनुसार, 7 अगस्त 2016 को जानकी ने मोहल्ले में कह दिया कि वह चिंतपूर्णी मंदिर जा रही है. उसी दिन मंगतराम पत्नी के साथ घर छोड़ कर चला गया. वे चिंतपूर्णी गए या कहीं और इस बात का अभी तक पता नहीं चला है.

बहरहाल अगले दिन योजना के अनुसार इंद्रजीत ने ट्यूशन पढ़ाने के बहाने सभी बच्चों घर बुला लिया. इस के पहले दोपहर को वह बाजार से पूजा की सामग्री ले आया था, जो उसे मंगतराम लिख कर दे गया था.

कुछ देर बाद उस ने सभी बच्चों की छुट्टी कर दी और गुरप्रीत को रोक लिया. गुरप्रीत से उस ने कहा कि वह सब से अच्छा बच्चा है, इसलिए वह उसे इनाम देगा. इनाम के लालच में गुरप्रीत वहीं रुक गया. वह गुरप्रीत को एक दुकान पर ले गया और वहां से उसे चौकलेट और कुरकुरे के पैकेट दिलवा दिए.

दुकान से सामान दिला कर वह गुरप्रीत को घर ले आया और उसे पीने के लिए पानी दिया, जिस में नशे की दवा मिली थी. पानी पीने के कुछ देर बाद गुरप्रीत बेहोश हो गया. इस के पहले कि वह अपना काम शुरू करता, गुरप्रीत को पूछने के लिए उस की मां आ गई.

रजनी को इंद्रजीत ने बहाना बना कर वापस भेज दिया और हवन कुंड में जल्दी से लकडि़यां जला कर मंगतराम द्वारा बताई गई क्रियाएं खत्म कर एक सूआ गुरप्रीत की सांस नली में घुसेड़ कर खून निकाला और बाद में सिर में ईंट मार कर जान ले ली. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए मंगतराम द्वारा बताए तरीके से उस की बलि चढ़ा हत्या कर के उस की लाश एक लाल रंग की चुनरी में लपेट कर अलमारी में रख दी और फरार हो गया.

पुलिस ने इंद्रजीत को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि के दौरान उस की निशानदेही पर सूआ और ईंट बरामद कर ली गई, रिमांड खत्म होने पर उसे फिर से 18 अगस्त, 2016 को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस इस बलिकांड के सूत्रधार मंगतराम और उस की पत्नी की सरगर्मी से तलाश कर रही है, पर उन के मिलने की संभावनाएं न के बराबर हैं. इस कांड से इंद्रजीत की बहन की शादी में तो समस्या आएगी, साथ ही रजनी को उस का बेटा गुरप्रीत कभी नहीं मिलेगा. तांत्रिक मंगतराम को औलाद होगी या नहीं? यह तो बाद की बात है, पर उस की इस घटिया सोच और अपराध ने एक मां से उस का बेटा जरूर छीन लिया है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित घटना का नाटकीय रूपांतरण किया गया है.

वह इंसान से बन गया कुत्ता

घटना हैरान करने वाली है. आखिर कोई आदमी कुत्ता कैसे बन सकता है और भला किसी का इंसान से कुत्ता बनने का सपना कैसे हो सकता है? लेकिन ऐसा हुआ है.

एक शख्स कुत्ता बन गया और उस की पूरी हरकतें भी बदल गईं. दरअसल, जापान के एक शख्स ने ₹18 लाख खर्च कर खुद को कुत्ते में बदल दिया है, जिसे देख लोग हैरानी जता रहे हैं.

आदमी से कुत्ता बने शख्स का कहना है कि यह उस का सपना था, इसलिए उस ने इतने रुपए बिना किसी की परवाह किए खर्च कर दिए.

यह दुनिया अजीबोगरीब लोगों से भरी पड़ी है. कोई भी शख्स हो, आजकल हरकोई कुछ नया करने के चक्कर में किसी भी हद तक जाने को तैयार है फिर चाहे उस के लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

जापान में कुत्ते में तबदील हुआ शख्स का नाम टोको बताया जा रहा है. इस के लिए टोको ने 22 हजार डौलर यानी करीब ₹18 लाख खर्च किए हैं. अब कुत्ते की तरह दिखने वाले शख्स को देख लोग हैरानी जता रहे हैं.

जेपपेट नाम की कंपनी ने मदद की

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जेपपेट नाम की एक कंपनी ने इस जापानी शख्स को कुत्ते के रूप को बनाने में मदद की है. कंपनी को ऐसा करने में करीब 40 दिन लगे. इस शख्स ने कोल्ली ब्रीड के कुत्ते का रूप लिया है, जिस को ले कर कंपनी के प्रवक्ता ने कहा है कि इस शख्स को कोल्ली कुत्ते की तर्ज पर बनाया गया है.

यह 4 पैरों पर चलने वाले असली कुत्ते जैसा दिखता है. कोल्ली एक मध्यम आकार का कुत्ता है. नर का वजन लगभग 30 से 45 पाउंड होता है और कंधों पर लगभग 20 इंच लंबा होता है. मादाएं थोड़ी छोटी होती हैं. इस शख्स को देख कर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि उस ने कौस्ट्यूम पहना है क्योंकि उसे हूबहू कुत्ते जैसा ही बनाया गया है.

पहली बार टोको कुत्ता बन कर सड़क पर टहलने निकला तो लोग हैरानी में पड़ गए. पहले तो किसी को कुछ समझ नहीं आया लेकिन जब पता चला तो लोग हैरान रह गए.

टोको का यह सपना था

खबरों के मुताबिक, आदमी से कुत्ता बने इस जापानी शख्स ने बताया है कि यह उस के जिंदगी का सपना था. इस शख्स ने अपने यूट्यूब चैनल पर ‘आई वांट टू बी एन ऐनिमल’ नाम से एक वीडियो अपलोड किया. इस चैनल पर करीब 31,000 सब्सक्राइबर हैं और वीडियो को 1 मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है.

वीडियो में टोको को गले में पट्टा डाल कर सैर के लिए ले जाते हुए देखा जा सकता है. मानव कुत्ता पार्क में अन्य कुत्तों को सूंघते हुए और जानवरों की तरह फर्श पर लोटता हुए देखा गया.

पहली बार बताया सपना

इस से पहले टोको ने मीडिया को बातचीत में बताया कि यह उस के बचपन का शौक था, लेकिन वह नहीं चाहता था कि इस शौक के बारे में उस के आसपास के लोगों को पता चले. अगर लोगों को पता चलता तो उन्हें लगता कि यह अजीब है कि मैं कुत्ता बनना चाहता हूं. इसी कारण से मैं अब अपना असली चेहरा नहीं दिखा सकता.

जागरूकता : पूजापाठी नहीं कामकाजी बनें

आमतौर पर लोगों को बचपन से एक ही बात सिखाई जाती है कि मंदिर जाओ, जोत जला कर धूपबत्ती करो और फिर भगवान से जो भी मांगो वह मिल जाएगा. सवाल उठता है कि अपने मतलब के लिए मंदिर जा कर फलफूल और प्रसाद चढ़ा कर भगवान से इस तरह मांगने वालों को हम क्या कहेंगे? रिश्वत के नाम पर कुछ फलफूल, अगरबत्ती, मिठाई और सिक्के दे कर क्या आप भगवान से अपनी बात मनवा लेंगे? कभी नहीं.

रिश्वत देना तो वैसे भी अपराध होता है. फिर यहां इसे अपराध क्यों न माना जाए? बिना किसी मतलब के कौन है जो मंदिरों के चक्कर लगाता है? यह तो एक तरह का कारोबार बन गया है. कुछ हासिल करना है तो पूजा करने पहुंच जाओ या घर में ही आंख बंद कर के भगवान की मूर्ति के आगे अपनी बात दोहराते रहो.

हमें बचपन से कर्म यानी काम करने की सीख क्यों नहीं दी जाती है? अपनी मेहनत, लगन और काबिलीयत से मनचाही चीज हासिल करने की सलाह क्यों नहीं दी जाती है? कर्म की अहमियत क्यों नहीं समझाई जाती है? कामकाजी बनने से बढ़ कर कामयाबी के लिए और क्या चाहिए? बचपन से बच्चों को कर्मप्रधान बनने के बारे में सिखाया क्यों नहीं जाता है?

कितने ही लोग दिनरात मंदिर में पूजापाठ में लगे रहते हैं. कभी सावन, कभी नरक चतुर्दशी, कभी पूर्णमासी, कभी नवरात्र, कभी मंगलवार, कभी शनिवार और इसी तरह कितने ही खास दिन आते रहते हैं यानी पूजा के लिए जरूरी दिनों की कोई कमी नहीं है. इन सब के पीछे चाहे काम का कुछ भी नुकसान क्यों न हो जाए, सब चलता है.

किराने की दुकान चलाने वाले 50 साल के आनंद दास बताते हैं, “मेरे एक दोस्त हैं जिन से कामकाज के लिए बात करने को मिलने के लिए बोलो तो कहेंगे कि अभी नहाधो कर मंदिर जाना है, वहां एक घंटे का समय पूजापाठ में लगेगा और फिर पंडित से मिल कर व्रतउपवास और कर्मकांड से जुड़ी कुछ जरूरी बात करनी है, कुछ दानदक्षिणा भी देनी है. वहां से निबट कर घर जाऊंगा और फिर नाश्ता करूंगा. इन सब में 2-3 घंटे तो लग ही जाएंगे.

“अपने दोस्त की ये बातें सुन कर मैं यही सोचता हूं कि इस इनसान के पास काम करने का समय कहां रह जाता होगा?”

काम से होता है सब हासिल

सच है कि इनसान जिंदगीभर तरक्की खोजता रहता है, पर शायद उसे यह नहीं मालूम कि आप अगर कर्मशील बनेंगे तो सब हासिल किया जा सकता है. इनसान को जिंदगी में अच्छा ज्ञान हासिल करना चाहिए, ताकि उस के बल पर वह हुनरमंद बन सके और अपनी गुजरबसर अच्छे तरीके से कर पाए. कामधंधे की तालीम ले कर, अपने हुनर में पक्का हो कर अगर इनसान मन लगा कर काम करेगा तो उसे मनचाहा फायदा जरूर मिलेगा.

हमारे काम या व्यापार को बढ़ाने के लिए दिमाग में अचानक आने वाले विचार को तुरंत अपने व्यवसाय पर लागू कर दें और फिर देखें कमाल. पैसों की बरसात होगी.

इस तरह से इनसान अपने ज्ञान और अपनी मेहनत के बल पर धन खूब कमा सकता है और मन की मुरादें पूरी कर सकता है. इस के उलट 3-4 घंटे मंत्रजाप, भजनकीर्तन, दिनरात धूपबत्ती कर के या पंडितों और बाबाओं के बताए उपाय आजमा कर वह कभी भी तरक्की के रास्ते पर आगे नहीं पहुंचता है.

मेहनत है असली दौलत

जो इनसान अपने घर से कमाई करने के लिए निकलेगा उस का धूप से तो वास्ता पड़ेगा, मगर जब वह मेहनत कर और धूलमिट्टी फांक कर घर आएगा तो भले ही उस का रंग सांवला हो जाए, मगर शरीर मजबूत और कारोबार में कामयाबी जरूर मिलेगी.

अकसर लोग ज्योतिषी से अपना भविष्य पूछने जाते हैं. वह बताता है कि आप के ग्रहनक्षत्र ठीक नहीं हैं और इन को साधारण उपायों द्वारा ठीक किया जा सकता है. ग्रहनक्षत्र ठीक होते ही आप का शरीर अच्छा काम करेगा, आप की योजनाएं सही रूप में कामयाब होंगी और आप खूब धन कमा सकेंगे. आप की इज्जत बढ़ेगी, आप का परिवार सुखी रहेगा और घर में खुशहाली आएगी.

याद रखिए कि ग्रहनक्षत्र खराब नहीं होते. यह तो ज्योतिषियों का धन ऐंठने का तरीका है. आप उन के बहकावे में आ कर उपाय करवाते हैं और अपने पास मौजूद रकम भी गंवा बैठते हैं. इस के उलट अपनी मेहनत पर यकीन रखिए और फिर देखिए नतीजा. कोई राहुकेतु आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा.

कर्म ही पूजा है

एक सैनिक जो महीनों तक सीमा की रक्षा करता है, वह किसी मंदिरमसजिद के चक्कर नहीं लगाता. उस का काम ही उसे इज्जत के काबिल बनाता है. इसी तरह किसी डाक्टर को कोई जरुरी सर्जरी करनी है, मगर वह उसे छोड़ कर यह कहे कि उस की पूजा का समय हो गया है या मंदिर जाए बिना वह सर्जरी नहीं करेगा, तो ऐसे डाक्टर को हम क्या कहेंगे?

याद रखें कि एक इनसान जो अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करता है, उसे किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है. नौकरी वाले दफ्तर जाते हैं, किसान और मजदूर खेतों में जाते हैं, सिपाही लड़ाई के मैदान में जाते हैं, डाक्टर अस्पताल जाते हैं और वकील कोर्ट जाते हैं.

हर कोई अपनेअपने क्षेत्र में काम करता है. काम, जैसा कि हम सभी जानते हैं, वह है जो हमें अपनी रोजीरोटी चलाने के लिए, अपने चहेतों की जरूरतों को पूरा करने के लिए करना जरूरी होता है.

जिंदगी की सच्ची सीख यह है कि हम क्या करते हैं और कितने बेहतर तरीके से करते हैं, लेकिन यह नहीं कि हम भगवान की पूजा करने में कितना समय देते हैं.

चंपारण में रहने वाले निकुंज कहते हैं, “हमारे गांव में 2 दोस्त रहते थे. एक गरीब मगर मेहनती लोहार था, जबकि दूसरा मंदिर का एक आलसी पुजारी था. उसे काम किए बिना खाने की आदत थी.

“पुजारी अकसर उस लोहार से मजाक में कहता था कि चाहे वह जितनी मेहनत कर ले भगवान सुख उसे ही देंगे, क्योंकि वह नियमित रूप से पूजा करता है.

“लोहार अपने रोजमर्रा के काम में इतना मस्त रहता था कि उसे कभी भी मंदिर जाने का समय नहीं मिल पाता था. इन दोनों की मुलाकात कभी किसी त्योहार के समय हो जाती थी. समय बीतने के साथ और सालों की कड़ी मेहनत के बाद लोहार गांव का सब से अमीर आदमी बन चुका था, जबकि पुजारी वैसे ही मांग कर या दान के रुपयों से गुजारा कर रहा था. वह बीमार भी रहने लगा था.

“इधर लोहार ने गांव में एक स्कूल खोला और इस के लिए एक छोटा सा समारोह रखा. वहां वह अपने पुराने दोस्त यानी उस पुजारी से मिला. जब लोहार से उस की कामयाबी के राज के बारे में पूछा गया तो उस ने सिर्फ चार शब्द कहे कि कर्म ही पूजा है.

“लोहार की बात सुन कर पहली दफा पुजारी को अपनी गलती का अहसास हुआ. उस की नजरों में लोहार का कद बहुत ऊंचा हो चुका था और अब उसे जिंदगी की हकीकत समझ में आ गई थी.

ज्यादा पूजापाठ समय की बरबादी

दरअसल, हम खुद को ही इस बात से भरम में रखते हैं कि हमारी असली समस्या क्या है. हम नहीं जानते हैं कि हमारी परेशानी क्या है और उस परेशानी का हल क्या है. हम इस के बजाय मंदिरमसजिद के चक्कर लगाते हैं और पाते हैं कि वे चीजें काम नहीं आ रही हैं और कोई नतीजा नहीं निकल रहा है.

उदाहरण के लिए किसी को लोगों से बातचीत करने में शर्म आती है या वह इंगलिश नहीं बोल पाता, उसे डर या झिझक होती है और ऐसे में वह सुबहशाम पूजापाठ करे तो क्या उस की इस समस्या का हल हो जाएगा? नहीं, बल्कि उस की समस्या तो तभी हल होगी न जब वह लोगों से बातचीत करने की हिम्मत करेगा, किसी इंगलिश स्पीकिंग कोर्स में दाखिला लेगा और बोलने का अभ्यास करेगा.

इस के उलट अगर वह दिन का बहुत सारा समय पूजापाठ या भजनकीर्तन में लगाएगा, मंदिर की भीड़ में एक लोटा जल ले कर घंटों लाइन में लगा रहेगा या व्रतउपवास करेगा, तो कोई फायदा नहीं मिलेगा.

जाहिर है कि सुबहशाम पूजा करने के बाद भी ज्यादातर लोगों की जिंदगी और मन में कुछ खास बदलाव नहीं आता, इसलिए पूजापाठ के बजाय मेहनत करें.

स्कैटिंग : रिस्क और रोमांच का मजा

दुनिया में ऐडवैंचर प्रेमियों की कमी नहीं है. कभी वे पर्वत की ऊंचाइयों को छूने की कोशिश करते हैं तो कभी लहरों के बीच जा कर भीगने का आनंद उठाते हैं. कभी बाइक पर खतरनाक स्टंट कर के देखने वालों का दिल दहला देते हैं. दरअसल, ऐडवैंचर का शौक ही ऐसा है.

इन्हीं ऐडवैंचर्स खेलों में स्कैटिंग भी काफी पौपुलर है, जिसे आप स्कूलकालेज के ग्राउंड से ले कर बर्फ पर भी कर सकते हैं. बस, आप को जरूरत है अपने कदमों को बैलेंस बनाते हुए हवा को चीरते हुए आगे बढ़ कर स्कैटिंग का लुत्फ उठाने की. इस में पांवों के दबाव से गति और घुमाव देखते ही बनता है.

स्कैट्स के आविष्कार का श्रेय

1760 में पहला रोलर स्कैट बनाने का श्रेय जौन जोसफ मर्लिन को जाता है, जिन के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न छोटे धातु के पहिए लगा कर स्कैट्स तैयार किए जाएं. उन का यह विचार सफल भी हुआ, लेकिन शुरुआती चरण में कुछ कमियां रहीं, जिन्हें बाद में सुधार कर बेहतरीन स्कैट्स तैयार किए गए. आज जो इनलाइन स्कैट्स से मिलतेजुलते हैं. अभी तक इनलाइन स्कैट्स का ही चलन था, लेकिन 1863 में क्वाड स्कैट्स आए, जो विकसित डिजाइन था. इस में हर पैर के लिए 2 आगे और 2 पीछे पहिए होते थे. इस स्कैट से टर्न लेने और तेजी से आगे बढ़ कर खुद को कंट्रोल करने में आसानी होती थी. इसे बनाने का श्रेय न्यूयौर्क के जेम्स लेनौर्ड प्लिंपटन को जाता है.

1990-93 में सेफ्टी के उद्देश्य से रोलर ब्लेड आधारित ब्रैंडेड स्कैट्स लौंच किए गए, जिन्हें काफी पसंद किया गया और इन की बढ़ती प्रसिद्धि को देखते हुए दूसरी कंपनियों ने भी इन से मिलतेजुलते स्कैट्स बना कर प्रतिस्पर्धा को और बढ़ाया.

आज तो ऐडवांस स्कैट्स दुनिया के सामने हैं, जिन्हें प्रयोग में ला कर स्कैट्स प्रेमी स्कैटिंग का लुत्फ उठाते हैं.

स्कैटिंग की श्रेणियां

रोलर स्कैटिंग

रोलर स्कैटिंग ऐसी स्कैटिंग है, जिस का मजा आप घर और बाहर दोनों जगह उठा सकते हैं. इस में आप किसी भी समतल सतह पर रोलर स्कैट्स की मदद से आनंद उठा सकते हैं. इस तरह के स्कैट्स में 2 पहिए आगे और 2 पीछे लगे होते हैं.

इनलाइन स्कैटिंग

इनलाइन स्कैटिंग में स्कैटर बहुत ही हलके बूट्स, जिन के नीचे 3 से 5 पहिए एक ही लाइन में अटैच होते हैं, पहन कर स्कैटिंग करते हैं. इन्हें बनाने का श्रेय अमेरिका के स्कौट ओल्सेन को जाता है. इन स्कैट्स में धातु के ब्रेक, यूरेथेन व्हील्स और हील ब्रेक लगे होते हैं. इन की मदद से स्कैटर को बैलेंस बनाने में आसानी होती है साथ ही जब उन्हें रोकना होता है, तो हील बे्रक का यूज करते हैं, जिस में रबड़ पैड स्कैट्स के पीछे अटैच होता है, जिस से चोट लगने का डर नहीं रहता.

आइस स्कैटिंग

आइस स्कैटिंग के खेल में जो स्कैटर्स होते हैं वे खास तरह के स्कैट्स पहन कर बर्फ पर इस खेल का आनंद उठाते हैं. यह खेल ज्यादातर उन देशों में खेला जाता है जहां ज्यादा ठंड पड़ती है.

बर्फ पर स्कैटिंग किस तरह की

  • आइस स्कैटिंग में आइस स्कैट्स की मदद से बर्फ पर स्कैटिंग की जाती है.
  • फिगर स्कैटिंग में अलग या आइस पर स्कैटिंग की जाती है. इसे 1908 में पहली बार ओलिंपिक में विंटर स्पोर्ट्स में शामिल किया गया.
  • स्पीड स्कैटिंग में कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच प्रतियोगी एकदूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते हैं.
  • टूर स्कैटिंग में बर्फ पर स्कैट्स की सहायता से लंबी सैर का लुत्फ उठाया जाता है.
  • ठोस सतह पर स्कैटिंग किस किस तरह की
  • रोलर और इनलाइन स्कैटिंग में समतल जगह पर घूमने का आनंद उठाया जाता है.
  • वर्ट स्कैटिंग में वर्ट रैंप पर राइड का लुत्फ उठाया जाता है.
  • जिस तरह हम सड़क पर साइकिल चला कर खुद को रोमांच प्रदान करते हैं, ठीक उसी तरह रोड स्कैटिंग में सड़क पर स्कैटिंग करते हैं.
  • स्कैट बोर्ड को प्रयोग कर के भी स्कैटिंग के मजे को कई गुना बढ़ाया जाता है.
  • आर्टिस्टिक रोलर स्कैटिंग भी फिगर स्कैटिंग से मिलताजुलता खेल ही है, लेकिन इस में भाग लेने वाले आइस स्कैट्स की जगह रोलर स्कैट्स पर दौड़ते हैं.

  • स्कैटिंग चैंपियनशिप
  • ‘द फ्रैंच फिगर स्कैटिंग चैंपियनशिप’ फ्रांस में प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है, जिस का उद्देश्य प्रतियोगिता के माध्यम से देश के बैस्ट स्कैटर्स की पहचान कर के उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है. इस में मैडल बैस्ट महिला व बैस्ट पुरुष स्कैटर के साथ पियर स्कैटिंग व आइस डांसिंग में बैस्ट प्रदर्शन करने वालों को दिया जाता है.
  • ‘द स्विस फिगर स्कैटिंग चैंपियनशिप’ जो स्विट्जरलैंड में आयोजित की जाती है, में विजेताओं को ताज पहना कर सम्मानित किया जाता है.
  • 2016 में दक्षिण कोरिया के सियोल में वर्ल्ड शौर्ट ट्रैक स्पीड स्कैटिंग चैंपियनशिप का आयोजन हुआ, जिसे काफी पसंद किया गया.
  • इसी तरह देशदुनिया में स्कैटिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है.
  • स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद
  • खुद को स्वस्थ रखने के लिए हमें नियमित ऐक्सरसाइज करना जरूरी होता है. वैसे तो यह आप पर निर्भर करता है कि आप खुद को स्वस्थ रखने के लिए जौगिंग, ब्रिस्क वौक, स्किपिंग वगैरा में से क्या करना पसंद करते हैं लेकिन चाहें तो रोलर स्कैटिंग से बहुत कम समय में ज्यादा कैलोरी बर्न कर सकते हैं. जैसे अगर एक सामान्य पुरुष का वजन 190 पाउंड के बराबर है, तो वह रोलर स्कैटिंग से हर मिनट में 10 कैलोरीज बर्न करता है जबकि 163 पाउंड वजन वाली महिला हर मिनट में 9 कैलोरीज बर्न करती है. साथ ही इस से हड्डियों को भी मजबूती मिलती है.
  • अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक शोध के अनुसार रोलर स्कैटिंग से हार्ट को भी मजबूती प्रदान होती है यानी इस से फायदे अनेक हैं.

बैलगाड़ी में बैठ शादी करने चला एनआरआई फर्जी दूल्हा!

अगर शादी ब्याह के मामले में आंख में मूंद कर रिश्ता करेंगे तो आप धोखा खा जाएंगे. विदेश में ऊंचे पद पर ऊंची कमाई का माया जाल फैलाकर किस तरह लोगों को उनकी भावनाओं को आहत करने से लोग बाज नहीं आते. इसका सच आपको दिखाने के लिए आज हम ले चलते हैं. छत्तीसगढ़ के जिला राजनांदगांव. जहां एक युवक ने बड़े ही तामझाम के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति के अनुरूप ग्यारह बैल गाड़ियों से बारात निकाली. मगर विवाह करने के बाद फर्जी पाया गया और अब जेल की हवा खा रहा है.

बैलगाड़ी पर बारात लेकर छत्तीसगढ़ में चर्चा का सबब बने दूल्हे शैलेंद्र साहू शादी के 72 घंटे बाद दुल्हन के परिवारवालों की शिकायत पर फर्जी दूल्हे के साथ उसके माता-पिता, भाई और भाभी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वैवाहिक मामले में लोगों की भावनाओं को आहत करने का अजीबो गरीब ठगी का यह मामला छत्तीसगढ़ के जिला राजनांदगांव के डोंगरगढ़ जंगलपुर का है.

यहां एक एन आर आई की शादी काफी चर्चा में थी‌. छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक शहीद की छोटी बहन से शादी करने वाला एन आर आई बैलगाड़ी से बारात निकालकर चर्चा का सबब बन गया था. अपनी विशेष बैल गाड़ियों की निकली बारात के कारण इस एन आर आई की विवाह की चर्चा सुर्ख़ियों में थी.

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अमेरिकी मूल की लड़की से की शादी

शैलेंद्र साहू लंबे समय से अमेरिका में बसा हुआ था. इसी दरमियान अमेरिकी मूल की लड़की से ब्याह रचा लिया. जानकार बताते हैं कि इस विवाह से उसके परिजन नाखुश थे. यही कारण है कि शैलेंद्र साहू को अपने गृह ग्राम आना पड़ा और यहां उसके दोबारा विवाह की तैयारी शुरू हो गई. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शैलेंद्र साहू का ब्याह बड़े ही शानदार तरीके से संपन्न हो गया. मगर कहते हैं की सच्चाई कभी न कभी सामने आ ही जाती है, शैलेंद्र साहू का सच भी अंततः सामने आ गया. तब तीन दिन पश्चात दुल्हन के परिजनों ने धोखेबाजी का आरोप लगाकर अमेरिका में रह रहे एन आर आई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई और उसे माता-पिता परिजनों सहित जेल भेज दिया गया.

और ऐसे खुला फर्जी दूल्हे का फर्जीवाड़ा

एन आर आई शैलेंद्र साहू पहले से ही शादी शुदा है. उसने अमेरिकी मूल की लड़की के साथ विवाह किया है, दो बच्चे भी है. मगर उसने उसके परिजनों ने लड़की और उसके परिजनों से यह सच छुपाया. 9 दिसंबर 2020 को शैलेंद्र अपने घर से 11 बैलगाड़ियों से अपनी बारात लेकर दुल्हन (रानी बदला हुआ) नाम के घर पहुंचा. और शैलेंद्र साहू ने बड़े ही शांति पूर्ण ढंग से रीति-रिवाजों के साथ विवाह कर लिया. 2 दिन पश्चात मामले का खुलासा कुछ इस तरह हुआ जो अपने आप में चौंकाने वाला है- जंगलपुर के रहने वाले सीआरपीएफ जवान पूर्णानंद साहू कुछ महीने पहले बीजापुर में नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए थे. 21 नवंबर को शहीद की बहन से शादी के लिए अर्जुनी निवासी शैलेंद्र साहू ने प्रस्ताव भेजा था. शैलेंद्र अमेरिका में रहता है.

शादी सामाजिक रस्मो रिवाज के साथ धूमधाम से हो गई लेकिन अंततः लड़की के घरवालों को पता चला कि शैलेंद्र पहले से शादीशुदा है और उसके दो बच्चे भी है.

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युवती शहीद जवान की बहन थी. ऐसे में सीआरपीएफ के नियमों के मुताबिक शहीद के परिजनों को फोर्स की तरफ से अनुदान राशि मिलती है. इसके तहत परिवार ने लड़की की शादी के बारे में अफसरों को बताया था, अफसरों ने लड़के की सारी जानकारी मांगी थी.

सीआरपीएफ ने जब युवक के पासपोर्ट की जांच अपने स्तर पर करवाई तो वो शादीशुदा निकला, और सारा सच सामने आ गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मगर लड़की के परिजनों ने शैलेंद्र साहू के साथ रानी के विवाह को तोड़ दिया और दूल्हे सहित उसके परिजनों को जेल की हवा खिलाई है.

जुड़वा स्टार बहनें ‘चिंकी-मिंकी’

जुड़वा बच्चों का जीवन हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है. इस को ले कर कई फिल्में भी बनीं और उपन्यास भी लिखे गए. कह सकते हैं यह विषय हमेशा से रोचक रहा है. दिल्ली की रहने वाली ‘चिंकी- मिंकी’ ने जब टिकटौक और इंस्टाग्राम पर अपने रोचक वीडियो पोस्ट करने शुरू किए तो रातोंरात वे मशहूर हो गईं.

अपनी इस खासियत को अपना हुनर बना कर ‘चिंकी-मिंकी’ ने खुद को टीवी की दुनिया में भी स्थापित कर लिया है. अब वे फैशन, टीवी और फिल्मों की दुनिया में अपना नाम कमाना चाहती हैं. कम उम्र में ही दोनों ने दौलत और शोहरत दोनों ही हासिल कर ली है. ‘चिंकी-मिंकी’ दोनों में ही भरपूर ग्लैमर है. जिस की वजह से वे लगातार हिट हो रही हैं.

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भारत और चीन के विवाद में भले ही टिकटौक को बंद कर दिया गया हो, पर टिकटौक पर वीडियो बना कर मशहूर होने वालों की संख्या कम नहीं है. छोटे शहरों और गांव के युवा अपने वीडियो बना कर खूब मशहूर हुए हैं. ‘चिंकी-मिंकी’ उन में सब से मशहूर हैं.

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दिल्ली की रहने वाली चिंकी मिंकी जुड़वा बहनों के असली नाम सुरभि मेहरा और समृद्धि मेहरा हैं. ये दोनों टिकटौक की पापुलर स्टार्स हैं. इन दोनों के टिकटौक पर करीब 10 लाख फालोअर्स हैं. 2019 के टौप 5 वायरल वीडियो में से एक वीडियो इन दोनों का भी था.

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खास बात यह है कि दोनों सिर्फ टिकटौक पर ही नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम पर भी बेहद मशहूर हैं. चिंकी और मिंकी का नाम इतना मशहूर हुआ कि दोनों के असली नाम सुरभि मेहरा और समृद्धि मेहरा को लोग भूल ही गए हैं.

दिल्ली की रहने वाली इन दोनों जुड़वा बहनों के जीवन में तमाम ऐसे पल मौजूद हैं, जो मुश्किल और हास्यपूर्ण भी रहे हैं. दोनों को देख कर अंदाज लगाना मुश्किल है कि किस का क्या नाम है.

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चिंकी और मिंकी दोनों केवल 60 सेकेंड के अंतर से छोटी और बड़ी बहनें हैं. चिंकी यानी सुरभि मेहरा बड़ी और मिंकी यानी समृद्धि मेहरा छोटी है. समृद्धि मेहरा की आवाज थोड़ी पतली है. इन का जन्म दिसंबर 1998 में हुआ था. चिंकी और मिंकी दोनों की पढ़ाई दिल्ली से हुई. 12वीं क्लास में चिंकी ने 92 फीसदी और मिंकी ने 89 फीसदी नंबर हासिल किए.

चिंकी और मिंकी ने स्नातक की पढ़ाई कालेज औफ वोकेशनल स्टडीज शेख सराय, नई दिल्ली से पूरी की. पढ़ाई के दौरान ही चिंकी और मिंकी टिकटोक पर वीडियो बनाने लगी. ये दोनों ही बहनें स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करना चाहती थीं. इन की तैयारी कनाडा जाने की थी. इसी बीच मशहूर हास्य टीवी सीरियल ‘द कपिल शर्मा शो’ में औडिशन के लिए इन्होंने अपना वीडियो भेजा तो उन को सिलेक्ट कर लिया गया.

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यह बात जब दोनों ने अपने पैरेंट्स को बताई तो उन्हें लगा कि दोनों मस्तीमजाक कर रही हैं. जब उन को पता चला कि यह सच बोल रही हैं तो इन को शूटिंग के लिए मुंबई बुलाया गया. वहां इन लोगों ने स्क्रिप्ट याद कर के मेहनत से अपना किरदार निभाया और इन के लिए सफलता का रास्ता खुल गया. अब चिंकी मिंकी ने जौब करने का फैसला दरकिनार कर दिया है. दोनों अलगअलग फैशन ब्रांड के लिए फोटो शूट और तमाम दूसरे तरह के काम करने लगी हैं.

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सुरभि और समृद्धि मेहरा में सब से खास बात यह है कि दोनों हुबहू एक जैसी हैं. दोनों अपने हेयरस्टाइल और गेटअप को भी एकदूसरे से पूरी तरह मैच रखती हैं. चिंकी मिंकी को देख कपिल शर्मा भी कंफ्यूज हो गए थे. चिंकी बताती है कि उन्हें खुद उन के पैरेंट्स नहीं पहचान पाते थे. ऐसे में कई बार बीमार एक होती थी और दवाई दूसरी को खिला दी जाती थी.

22 साल की उम्र में ही इन का फीगर 32-28-32 किसी अभिनेत्री को मात देता है. इस से साफ लगता है कि फिल्मों में भी ये बहुत आसानी से सफल हो सकती हैं. फैशन ब्रांड, फोटो शूट, वीडियोज और इवेंट के जरिए ये दोनों बहनें 1 से 2 लाख रुपए हर माह कमा लेती हैं. इन की अपनी सालाना कमाई 70 से 80 लाख के करीब होगी.

चिंकी मिंकी दोनों को ही घूमने का बेहद शौक  है. इन दोनों को अपने वीडियो बनाने, पबजी खेलने का भी शौक है. इन का पहला वीडियो ‘चिंकी मिंकी झाबुआ इंदौर ब्लौग’ था. इसे बहुत सफलता मिली. चिंकी मिंकी दोनों को ही अपना फीगर बनाए रखने का बेहद शौक  है.

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ऐसे में ये खानेपीने का बहुत ख्याल रखती हैं. इस के बाद भी कभीकभार चौकलेट और पिज्जा खाती हैं. टमाटर सूप इन को बेहद पसंद है. फलों में आम खाने का शौक है और पहनने में काला और पीला रंग बेहद पसंद है. चिंकी मिंकी दोनों को ही दूसरों को चौंकाने में मजा आता है. इस कारण दोनों एक जैसे कपड़े पहनती हैं और एक जैसे हावभाव प्रदर्शित करती हैं. उन की बातों से किसी को यह पता नहीं चलता कि कौन चिंकी है कौन मिंकी.

दोनों की आवाज में थोड़ा सा अंतर है. इस के अलावा हावभाव और बातचीत करने के अंदाज में अंतर है. यह अंतर वही पकड़ सकता है जो लगातार इन के साथ रहता हो, इन्हें पूरी तरह से समझता हो. सामान्य लोगों के लिए इस अंतर को पकड़ना सरल नहीं है. जिस से ये सभी को चौंकाती रहती हैं.

सोशल मीडिया से भड़कती “सेक्स की चिंगारी”

संपूर्ण देश दुनिया सहित छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया के माध्यम से सेक्स संबंध बनाए जाने और बाद में धोखा देने की घटनाएं हो रही है. आए दिन ऐसी घटनाएं हमारे आसपास घटित हो रही है कि फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म के माध्यम से युवक-युवतियों में बातचीत शुरु होती है, संबंध बनते हैं, मुलाकातें होती हैं, और धीरे धीरे स्थिति सेक्स संबंध स्थापित करने तक पहुंच जाती है. और फिर शुरू होता है लड़की का यह आग्रह की मुझे अपना लो, विवाह कर लो. मगर युवक अब आनाकानी करने लगते हैं. और लड़की को अहसास होता है कि मैं छलावे में आ गई, धोखा खा गयी और मेरा जीवन बर्बाद हो गया.

आज हम इस रिपोर्ट में इस प्रकार की कुछ घटनाओं को संकेतिक रूप से यहां प्रस्तुत करते हुए यह बताने का अथक प्रयास कर रहे हैं कि युवक हो या युवतियां फेसबुक की दोस्ती, संबंधों को लेकर एक सीमा के आगे चले जाएंगे तो यह आग से खेलना होगा. सोशल मीडिया की दोस्ती, सेक्स संबंध एक ऐसी चिंगारी है जो जीवन तबाह कर देती है.

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिला जशपुर जिले के बगीचा इलाके का रहने वाले एक युवक अमन तिवारी पीएससी की तैयारी करने के लिए बिलासपुर शहर आया था. यहां उसने फेसबुक के जरिए एक युवती को अपने जाल में फंसा लिया. इसके बाद करीब दो साल तक युवती से दुष्कर्म करता रहा.
युवती ने जब जब शादी के लिए कहा तो युवक ने इंकार कर दिया.

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युवती के मुताबिक युवक ने उससे कहा था -” वह उससे प्यार करता है और शादी भी उसी से करेगा.” इसी का भ्रम जाल बुनकर आरोपी युवक उससे शारीरिक संबंध बनाता रहा. इस दौरान युवती ने जब युवक से शादी करने की बात कही, तो युवक ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया.

युवक से मिले इस धोखे से आहत युवती ने आरोपी के खिलाफ बिलासपुर के कोतवाली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. युवती की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी युवक अमन तिवारी को मौके पर दबिश देकर गिरफ्तार कर लिया.

दोस्ती और प्रेम जाल

एक आदिवासी किशोरी की फेसबुक पर एक साल पहले पाली गांव निवासी रमन शर्मा (28) से दोस्ती हुई . बातचीत करते हुए युवक ने उसे प्रेमजाल में फंसा लिया. युवक उसे राजधानी रायपुर घूमने के बहाने घर से भगाकर अपने साथ ले गया. फिर अपने दोस्त पवन की मदद से किराए के मकान में रंजन ने किशोरी को रखा. वहां वह शादी करने का झांसा देते हुए किशोरी से दुष्कर्म करता रहा. बाद में उसे वापस शहर लाकर छोड़ दिया.किशोरी के परिजनों की रिपोर्ट पर पुलिस ने मामले में आरोपी के खिलाफ अपहरण समेत दुष्कर्म, पाक्सो एक्ट व एट्रोसिटी एक्ट का अपराध दर्ज कर लिया.आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीम संभावित स्थानों पर गई लेकिन वह हर बार भाग निकलता. आखिर साइबर सेल की मदद से पुलिस द्वारा उसके मोबाइल का लोकेशन खंगाला गया. जिसके बाद उसके बिलासपुर में होने की जानकारी मिली. पुलिस की एक टीम दिल्ली भेजी गई। टीम ने वहां जानकारी जुटाते हुए आरोपी रमन शर्मा को पकड़ लिया.

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और झांसा देकर बंधक बना लिया

एक प्राइवेट हास्पिटल में नर्सिंग का काम करने वाली युवती की सोशल मीडिया पर जिस युवक से पहचान हुई थी उसी युवक ने धोखे में उसे गांव ले जाकर बंधक बना लिया. इसके बाद युवक व उसके दोस्तों ने कई दिनों तक युवती के साथ रेप किया. युवती करीब हफ्तेभर बाद किसी तरह भागकर रविवार को जशपुर के लुडेर गांव से अंबिकापुर पहुंची तो मामला सामने आया. युवती के साथ आरोपियों ने मारपीट भी की है. पुलिस ने मामले में जशपुर जिले के ग्राम लुडेर निवासी कुलदीप लकड़ा नामक युवक व उसके तीन अन्य साथियों के खिलाफ केस दर्ज कर उनकी तलाश शुरू कर दी.
युवती मूलत: बलरामपुर जिले के राजपुर इलाके की रहने वाली है. वह अंबिकापुर के मिशन चौक इलाके में किराए के मकान में रहकर एक प्राइवेट हास्पिटल में काम कर रही थी. इस मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आरोपी कुलदीप लकड़ा, अजय और राजकुमार को गिरफ्तार कर लिया. सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. वहीं फरार आरोपी की पुलिस तलाश कर रही है.

पुलिस ने बताया कि युवती और आरोपी का परिचय फेसबुक पर हुई थी.पहले दोनों ने चैटिंग से बातचीत होती थी. इसके बाद मोबाइल पर बातचीत करने लगे और एक दूसरे के लिए जीने मरने की कसमें खाने लगे. युवक के झांसे में आकर युवती उसके ऊपर विश्वास करने लगी. युवक ने अंबिकापुर में आकर मुलाकात करने की बात की तो वह तैयार हो गई.

आरोपी युवक बाइक से अंबिकापुर आया था.यहां गांव गुदरी में युवती को मिलने के लिए बुलाया. इसके बाद घूमने की बात कहकर युवती को बाइक से प्रमुख पर्यटन स्थल मैनपाट ले गया. यहां से फिर परिजनों से मिलाने की बात कहकर उसे अपने घर ग्राम लुडेर ले गया. युवक के गांव में दो घर हैं. एक में घर में कोई नहीं रहता है. इसी घर में युवती को बंधक बनाकर रखा.

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