धीरज कुमार

प्रदेश की राजधानी पटना में तकरीबन सभी जिलों के लड़केलड़कियां अलगअलग शहर के कोचिंग सैंटरों में अपना भविष्य बेहतर करने की उम्मीद में भागदौड़ करते देखे जा सकते हैं. उन की एक ही ख्वाहिश होती है कि किसी तरह से प्रतियोगिता परीक्षा में पास कर सरकारी नौकरी हासिल करना.

बहुत से लड़केलड़कियां अपना भविष्य बनाने की चाह में पटना जैसे शहरों में कई सालों से टिके होते हैं, फिर भले ही उन के मातापिता किसान हैं, रेहड़ी चलाने वाले हैं, छोटेमोटे धंधा करने वाले हैं. उन की थोड़ी आमदनी भी होगी, लेकिन वे अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं, चाहे इस के लिए खेत बेच कर, कर्ज ले कर, गहने गिरवी रख कर कोचिंग सैंटरों में लाखों रुपए क्यों न बरबाद करना पड़े.

कोचिंग सैंटर वाले भी इस का भरपूर फायदा उठा रहे हैं. ज्यादातर कोचिंग सैंटर सौ फीसदी कामयाबी का दावा कर लाखों का कारोबार करते हैं, भले ही उन की कामयाबी की फीसदी जीरो के बराबर हो.

अब सवाल यह कि किसी सरकार के पास इतने इंतजाम हैं, जो सभी नौजवानों को नौकरी मुहैया करा देगी? इस सवाल के जवाब के लिए पिछले तकरीबन 10 सालों की  प्रमुख रिक्तियों और बहालियों का विश्लेषण किया गया. राज्य सरकार ने साल 2010 में बिहार में पहली बार शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) का आयोजन किया था. इस परीक्षा में 26.79 लाख लोगों ने आवेदन किया था, जिन में से मात्र 1.47 लाख अभ्यर्थियों को पास किया गया. इस में कामयाबी का फीसदी मात्र साढ़े 5 फीसदी था. राज्य सरकार ने उन सफल अभ्यर्थियों में से तकरीबन एक से सवा लाख लोगों को नियोजन किया.

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