Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

बालकराम के घर आतेजाते संतराम कब सुशीला की तरफ आकर्षित हो गया, उसे पता ही नहीं चला. बात तब बढ़नी शुरू हुई, जब सुशीला ने उस के कुंआरेपन को ले कर 1-2 बार ऐसे मजाक कर डाले जो एक औरत की मर्यादा से बाहर के थे.

जाहिर है जब सुशीला खुली तो संतराम ने उसी खुलेपन से उस के साथ हंसीमजाक शुरू कर दिया. इस दौरान दोनों एकदूसरे की तरफ इस कदर आकर्षित हो गए कि बालकराम की गैरमौजूदगी में भी संतराम उस के घर आनेजाने लगा और सुशीला के साथ उस के नाजायज संबध बन गए.

गांवदेहात में ऐसी बातें किसी से छिपती नहीं हैं. लिहाजा जल्द ही गांव में दोनों के संबधों की चर्चा चौपाल तक पर होने लगी. बालकराम को इस की भनक लगी तो उस ने सुशीला के साथ मारपीट की और संतराम का अपने घर आनाजाना बंद करा दिया.

कहते हैं कुंआरे इंसान को एक बार औरत के शरीर की गंध लग जाए तो फिर वह बहुत दिनों तक उस का स्वाद चखे बिना रह नहीं पाता. संतराम ने अब चोरीछिपे सुशीला से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. लेकिन यह बात भी जल्द ही बालकराम को पता चल गई. इस के बाद तो उस के घर में आए दिन का क्लेश रहने लगा.

सुशीला चंचल स्वभाव ही नहीं, जिस्मानी रूप से एक मर्द से खुश रहने वाली औरत नहीं थी. 5 बच्चे पैदा करने के बाद उस ने ख्वाहिशों की उड़ान भरनी नहीं छोड़ी.

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संतराम भी अब उस के प्यार में बुरी तरह पागल हो चुका था. लिहाजा सुशीला व संतराम ने फैसला किया कि वह बालकराम को छोड़ कर बच्चों को ले कर संतराम के साथ शाहजहांपुर से चली जाएगी.

आए दिन के झगड़ों से तंग आ कर जब बालकराम ने सुशीला से इस झगड़े के समाधान का उपाय पूछा तो सुशीला ने साफ कह दिया कि अब वह संतराम के साथ रहना चाहती है. लिहाजा यह तय हुआ कि बालकराम का बड़ा बेटा उसी के पास रहेगा जबकि बाकी के 4 बच्चों को ले कर सुशीला गांव से संतराम के साथ चली जाएगी.

यह बात करीब 18 साल पहले की है. संतराम सुशीला व उस के 4 बच्चों को ले कर नोएडा आ गया. यहां आ कर उस ने राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया. संयोग से यहां उसे अच्छी आमदनी होने लगी. कुछ साल बाद उस ने सुशीला की बड़ी बेटी मंजू की शादी कर दी. जिस की उम्र इस वक्त करीब 32 साल है और वह 2 बच्चों की मां है.

बाद में संतराम ने सुशीला के बड़े बेटे राजू की भी शादी कर दी, जो शादी के बाद अपनी पत्नी व छोटे बहनभाई के साथ गाजियाबाद में रहने लगा. राजू भी राजमिस्त्री  का काम करता है. पिछले 5 साल से संतराम सुशीला के साथ ककराला गांव में किराए का मकान ले कर रहता था. अब वह राजमिस्त्री के काम के साथ मकानों को बनाने के लिए छोटेमोटे ठेके भी लेने लगा था.

संतराम व सुशीला की कुंडली खंगालने के बाद पुलिस को अब तक जो जानकारी मिली थी, उस से यह बात तो साफ थी कि सुशीला एक चंचल स्वभाव की महिला थी, जिस के चरित्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता था. वैसे भी पहले ही दिन से पुलिस की नजर में वह संदिग्ध थी.

गांव में सक्रिय मुखबिरों के जरिए 2 अहम जानकारी जांच अधिकारी उपाध्याय को लगीं. पहली यह कि संतराम के पड़ोस में रहने वाला मनोज, जो अपने भाई आकाश व राजेश के साथ किराए पर रहता था, संतराम की हत्या के अगले ही दिन अपना कमरा छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चला गया. वह कहां है, इस का किसी को कुछ नहीं पता.

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दूसरे यह कि मनोज का संतराम के घर जरूरत से ज्यादा आनाजाना था. उस के घर में आने को ले कर अकसर सुशीला व संतराम के बीच झगड़ा होता था. कई बार संतराम ने सुशीला के साथ मारपीट भी की थी.

दोनों ही जानकारियां बेहद काम की थीं. पुलिस ने सुशीला के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर जब उस की पड़ताल की तो उस में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सब से अधिक काल होती थी. उस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि वह मनोज का नंबर है. पुलिस ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

सर्विलांस की मदद से आखिरकार 27 मई, 2021 को पुलिस टीम ने दादरी कट के पास छापा मार कर मनोज, उस के भाई आकाश व उस के रिश्तेदार राजेश को हिरासत में ले लिया. वे तीनों शहर छोड़ कर भागने की तैयारी कर रहे थे. दादरी कट के पास उन्होंने किराए की एक कार मंगाई थी, लेकिन कार के आने से पहले ही पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

थाने ला कर जब पुलिसिया अंदाज में मनोज से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. मनोज कोई शातिर अपराधी तो था नहीं, इसलिए थोड़ी सख्ती के बाद ही उस ने संतराम की हत्या का गुनाह कबूल कर लिया और हत्याकांड की पूरी कहानी सुनाता चला गया.

मनोज मूलरूप से गुलाबगंज गनपाई थाना कादरचौक, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. 23 साल का मनोज अपने छोटे भाई आकाश व मौसेरे भाई राजेश के साथ पिछले 2 साल से गौतमबुद्ध नगर के ककराला गांव में रहता था.

अगले भाग में पढ़ें- क्या मनोज ने हत्याकांड की जानकारी दी?

Manohar Kahaniya: पूर्व उपमुख्यमंत्री के घर हुआ खूनी तांडव, रास न आई दौलत- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

ऐसे में कांग्रेस के इस खेमे से हरीश कंवर की दूरी बनती चली गई और हरीश कंवर खुल कर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रहे अजीत कुमार जोगी के स्थानीय झंडाबरदार बन गए. दूसरे खेमे ने हरीश कंवर को तवज्जो देनी बंद कर दी. आगे चल कर जब अजीत जोगी ने ‘जनता कांग्रेस जोगी’ पार्टी का गठन किया तो हरीश कंवर इस पार्टी में ग्रामीण अध्यक्ष, कोरबा बन कर शामिल हो गए और क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने लगे.

पूरे परिवार की धमक थी राजनीति में

दूसरी तरफ प्यारेलाल कंवर के अनुज श्यामलाल कंवर जो पुलिस में डीएसपी पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे, वह कांग्रेस नेता डा. चरणदास महंत के क्षेत्रीय खेमे से जुड़ गए थे. इस तरह परिवार में भी खेमेबाजी सामने आ चुकी थी.

श्यामलाल कंवर सन 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए थे. इधर हरीश कंवर अजीत जोगी के पक्ष में चले गए और उन्होंने उन का झंडा थाम लिया था.

सन 2018 के विधानसभा चुनाव में श्यामलाल कंवर को फिर विधानसभा का प्रत्याशी कांग्रेस पार्टी ने बनाया. दूसरी तरफ अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने भी अपना प्रत्याशी फूल सिंह राठिया को खड़ा कर दिया. कांग्रेस के इस झंझावात में श्यामलाल कंवर चारों खाने चित हो गए और तीसरे नंबर में आ कर ठहर गए.

प्यारेलाल कंवर का परिवार राजनीति से अब दूर हो चुका था और सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा था. अजीत कुमार जोगी की पार्टी के धराशाई होने के बाद हरीश कंवर राजनीति के हाशिए पर आ गए थे और अपने गांव भैंसमा में उन्होंने खाद, बीज की एक दुकान खोल ली थी.

मूलरूप से काश्तकार परिवार प्यारेलाल कंवर के वंशज अपना जीवनयापन शांतिपूर्वक कर रहे थे. इसी बीच भैंसमा में एक ऐसा नृशंस हत्याकांड हुआ, जिसे कोरबा के इतिहास में कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा.

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धनकंवर को थी धन की लालसा

दरअसल, हरभजन कंवर की पत्नी धनकंवर ने जब सुना कि हरीश कंवर ने पैतृक संपत्ति पर लगभग अपना कब्जा स्थापित कर लिया है तो उस ने पति हरभजन के कान भरने शुरू कर दिए.

एक दिन वह मौका देख कर बोली, ‘‘ऐसे कैसे चलेगा, तुम क्या सब कुछ छोटे (हरीश) को दे दोगे, क्या हमारा उस पर कोई हक नहीं है.’’

हरभजन ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात की कमी है, मैं तो किसान हूं. हमें चाहिए क्या, 2 वक्त की रोटी मिल ही जाती है. हमारे 2 बेटे हैं, फिर हमें क्या चिंता है.’’

पत्नी ने यह सुन कर कहा, ‘‘आप बहुत भोलेभाले हो. भोपाल की, यहां की करोड़ों रुपए की संपत्ति क्या अकेले हरीश की हो जाएगी, हमारा भी तो उस पर अधिकार है.’’

हरभजन ने समझाया, ‘‘अभी संपत्ति का कोई बंटवारा तो पिताजी ने किया नहीं था, सब कुछ हरीश की देखरेख में है, कहां कुछ कोई ले जाएगा.’’

पत्नी धनकंवर तड़प कर बोली, ‘‘ सचमुच आप बहुत ही भोले हो. वह सारी धान की  पैदावार को भी बेच देता है. लाखों रुपए का बोनस अपनी तिजोरी में भर रहा है और तुम भोलेभंडारी बन कर बैठे रहो. एक दिन हम लोगों को यह हरीश धक्के मार के घर से भी निकाल देगा, तब तुम पछताओगे.’’

यह सुन कर हरभजन ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘तो मैं क्या करूं, तुम ही बताओ, हम ने उसे गोद में खिलाया है, मेरा सगा भाई है वह. उसे मैं क्या बोलूं और कैसे बोलूं.’’

पत्नी धनकुंवर ने कहा, ‘‘पैसों और जमीन जायजाद के मामले में मैं ने देखा है कि कोई किसी का नहीं होता, बड़े भैया के निधन के बाद क्या उन के परिवार वालों को मानसम्मान की जिंदगी मिल रही है? तुम खुद देखो हरीश सिर्फ अपने बीवीबच्चों की खुशी में ही लगा रहता है.

अगर उसे अपने भाई के परिवार के प्रति जरा भी संवेदना होती तो क्या उस के परिवार की हालत इतनी खराब होती? अभी भी समय है बंटवारा कर लो…’’

‘‘मैं क्या छोटे को बंटवारे के बारे में कहूंगा. उस का रंगढंग तो तुम जानती ही हो, वह किसी की बात कहां सुनता है और सुन कर दूसरे कान से निकाल देता है.’’ हरभजन कंवर ने कहा.

‘‘मगर यह कैसे चल सकता है, मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ उफनती नदी की धारा की तरह कहती धनकुंवर अपने रोजाना के कामकाज में लग गई.

इधर रोजरोज के वादविवाद से त्रस्त  अंतत: हरभजन कंवर ने हथियार डाल दिए और कहा, ‘‘ठीक है, तुम्हें जैसा अच्छा लगे बताओ.’’

धनकंवर ने अपने भाई परमेश्वर कंवर, जोकि पास ही के गांव फत्तेगंज में रहता था और अकसर भैंसमा आया करता था, से धीरेधीरे बातचीत कर के उसे अपने मन मुताबिक बना लिया.

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भाई के साथ रची साजिश

धनकंवर ने एक दिन उस से कहा, ‘‘भाई, तुम बहन की कोई मदद नहीं कर रहे, ऐसा भाई भी किस काम का.’’

इस पर परमेश्वर ने कहा, ‘‘बहन आखिर तुम क्या चाहती हो, मुझे बताओ.’’

परमेश्वर की जानकारी में जमीनजायदाद का विवाद पहले ही आ चुका था. उसे लगता था कि जरूर यही कोई बात होगी जो बहन कहने वाली है.

…और हुआ भी यही. बहन धनकुंवर ने कहा, ‘‘छोटे (हरीश) ने सारी संपत्ति पर अधिकार जमा लिया है. क्या कुछ ऐसा करें कि बात बन जाए. तुम कोई ऐसा वकील देखो, जो हमें न्याय दिला सके.’’

परमेश्वर ने कहा, ‘‘वकील और कोर्ट कचहरी के चक्कर में तो न जाने कितना समय लग जाएगा. क्यों न हम…’’ कह कर परमेश्वर चुप हो गया. बहन धनकंवर ने परमेश्वर के मौन होने पर कहा, ‘‘चुप क्यों हो गए? क्या कहना चाहते हो?’’

अगले भाग में पढ़ें- बेरहमी से किए 3 कत्ल

Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पुलिस अफसरों ने मौकामुआयना किया. रूपा ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी. अफसरों ने कमरे की तलाशी ली. चीजों को उलटपुलट कर देखा, ताकि कुछ पता चल सके कि रूपा ने यह कदम क्यों उठाया, लेकिन न तो कोई सुसाइड नोट मिला और न ही ऐसी कोई बात पता चली, जिस से रूपा के आत्महत्या करने के कारणों पर कोई रोशनी पड़ती. पुलिस अफसर समझ नहीं पाए कि ऐसा क्या कारण रहा कि रूपा ने खुदकुशी कर ली? अविवाहित रूपा 2018 बैच की तेजतर्रार महिला सबइंसपेक्टर थी.

अफसरों ने रूपा के परिवार वालों को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. रूपा के परिजन झारखंड की राजधानी रांची के पास रातू गांव के कांटीटांड में रहते थे. रूपा के फांसी लगाने की बात सुन कर उस के मातापिता अवाक रह गए.

रात ज्यादा हो गई थी. पुलिस ने रूपा का शव फांसी के फंदे से उतरवा कर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भिजवा दिया.

दूसरे दिन 4 मई को रूपा के परिवार वाले साहिबगंज पहुंच गए. रूपा की मां पद्मावती उराइन ने पुलिस को बताया कि 3 मई को दोपहर करीब 3 बजे रूपा से उन की बात हुई थी. तब रूपा ने कहा था कि वह जो पानी पी रही है, वह दवा जैसा कड़वा लग रहा है. बेटी की इस बात पर मां ने उस से तबीयत के बारे में पूछा. रूपा ने मां को बताया कि उस की तबीयत ठीक है. इस पर मां ने उसे आराम करने की सलाह दी थी.

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महिला थानाप्रभारी बनने पर रूपा को जब पुलिस की सरकारी गाड़ी मिली तो दोनों उसे ज्यादा टार्चर करने लगी थीं. दोनों ने कुछ दिन पहले रूपा को किसी हाईप्रोफाइल केस को मैनेज करने के लिए एक नेता पंकज मिश्रा के पास भी भेजा था. पंकज मिश्रा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नजदीकी रहा है.

परिवार वालों ने कहा कि रूपा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. मां ने बेटी की हत्या का आरोप लगाते हुए साहिबगंज एसपी को तहरीर दी. उन्होंने इस मामले में कमेटी गठित कर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि उस की बेटी के क्वार्टर के सामने रहने वाली एसआई मनीषा कुमारी और ज्योत्सना महतो हमेशा रूपा को टार्चर करती थीं. वे उस से जलती थीं और हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश करती थीं.

एक तेजतर्रार पुलिस अफसर के तथाकथित रूप से आत्महत्या करने की बात रूपा के गांव में किसी के गले नहीं उतर रही थी. उस के पिता सीआईएसएफ जवान देवानंद उरांव और मां पद्मावती सहित सभी घर वालों का आरोप था कि रूपा की हत्या किसी साजिश के तहत की गई है और इसे आत्महत्या का नाम दिया जा रहा है.

रूपा 2018 में पुलिस एसआई बनने से पहले बैंक औफ इंडिया में काम करती थी. उस ने रांची के सेंट जेवियर कालेज से पढ़ाई पूरी की थी. उसे नवंबर 2020 में ही साहिबगंज में महिला थानाप्रभारी बनाया गया था. उस ने यह जिम्मेदारी संभालने के बाद महिला उत्पीड़न रोकने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे.

मामला गंभीर था. रूपा की 2 बैचमेट महिला सबइंसपेक्टरों और मुख्यमंत्री के करीबी नेता पंकज मिश्रा पर आरोप लग रहे थे. रूपा की मौत को हत्या मानते हुए लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘जस्टिस फौर रूपा’ शुरू कर दिया.

रूपा के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए झारखंड के कई प्रमुख नेता भी आगे आ गए. भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने रूपा की मौत को मर्डर मिस्ट्री बताते हुए इस की सीबीआई से जांच कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि रूपा के परिवार वालों के आरोप से यह मामला संदेहास्पद है. मरांडी ने कहा कि ऐसे राजनीतिक प्रभावशाली व्यक्ति पर आरोप लगे हैं, जो मौजूदा सरकार में कुख्यात रहा है.

प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा ने भी सीबीआई जांच की मांग करते हुए राज्यपाल को औनलाइन ज्ञापन भेजा. मांडर के विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कहा कि रूपा किसी बड़ी साजिश की शिकार हुई है. इसलिए इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए.

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बोरियो से सत्तारूढ़ गठबंधन के झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठाई. राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने कहा कि मामले में आरोपी पंकज मिश्रा पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का हाथ है. मिश्रा साहिबगंज में सब तरह के वैधअवैध काम करता है.

एसआईटी को सौंपी जांच

मामला तूल पकड़ता जा रहा था. जिस पंकज मिश्रा पर आरोप लगाए गए, वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साहिबगंज में प्रतिनिधि है. आरोपों से घिरने पर सफाई देते हुए मिश्रा ने कहा कि वह पिछले महीने मधुपुर चुनाव में व्यस्त था. इस के बाद कोरोना पौजिटिव होने पर रांची के मेदांता अस्पताल में भरती थे.

अगले भाग में पढ़ेंमां ने लगाया हत्या का आरोप

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 4

सौजन्य- सत्यकथा

डा. सीमा को जब यह बात पता चली तो उसे अपना वैवाहिक जीवन हिचकोले खाता नजर आया. उसे यह भी पता चला कि दीपा डा. सुदीप पर सूर्या विला वाला बंगला अपने नाम कराने और सुदीप से औपचारिक रूप से शादी करने का दबाव डाल रही है. कहीं डा. सुदीप दीपा की यह बात भी न मान जाए, इसलिए डा. सीमा ने अपनी सास सुरेखा को यह बात बताई. सुरेखा ने बेटे डा. सुदीप से बात की. सुदीप ने अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से मां को यह कह कर संतुष्ट कर दिया कि मां ऐसी कोई बात नहीं है.

सुरेखा ने बेटे से हुई बातें बहू डा. सीमा को बताईं तो उस ने दीपा के स्पा सेंटर का निमंत्रण पत्र उन के सामने रख दिया. सुरेखा क्या कर सकती थी, उसे अपने 44-45 साल के बेटे की करतूतों पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन बुढ़ापे और असाध्य बीमारी के कारण वह मजबूर थी. वह अपने बेटेबहू का गृहस्थ जीवन बचाए रखना चाहती थी.

डा. सीमा ने अपने तरीके से पता कराया, तो मालूम हुआ कि दीपा ने स्पा सेंटर की साजसज्जा और उपकरणों पर लाखों रुपए खर्च किए थे. यह तय था कि यह सारा पैसा डा. सुदीप की जेब से ही निकला था.

अपनी अय्याशी पर एक पराई औरत पर लाखों रुपए इस तरह उड़ाने पर सीमा को बहुत गुस्सा आया. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि उस के पति डा. सुदीप आसानी से मान जाएंगे और दीपा का पीछा छोड़ देंगे. इसलिए उस ने दीपा को ही सबक सिखाने का फैसला किया.

इसी योजना के तहत 7 नवंबर, 2019 को डा. सीमा अपनी सास सुरेखा के साथ दोपहर में दीपा के मकान पर पहुंची. उस समय दीपा का मकान बंद था. वे दोनों आसपास छिप कर इंतजार करती रहीं.

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इस बीच डा. सुदीप भी दीपा के मकान पर आया, लेकिन ताला बंद देख कर वापस चला गया. इस दौरान डा. सुदीप ने अपनी पत्नी और मां को नहीं देखा. इस से डा. सीमा को अपने पति की करतूतों पर पूरा यकीन हो गया.

बाद में दीपा का बेटा शौर्य भी स्कूल से आया. घर बंद मिलने पर वह पड़ोस में खेलने चला गया. शाम करीब 4 बजे दीपा मकान पर पहुंची. कुछ देर बाद शौर्य भी आ गया. इस के बाद डा. सीमा और सुरेखा उस मकान में गईं. वहां उन की दीपा से काफी गरमागरमी हुई.

इसी गरमागरमी के बीच डा. सीमा ने गुस्से में अपने पर्स में से स्प्रिट की बोतल निकाली और फरनीचर पर छिड़क कर आग लगा दी. इस के बाद यह कहते हुए बाहर निकल कर कुंडी लगा दी कि अब देखती हूं कि तुझे कौन बचाता है.

स्प्रिट के कारण तुरंत आग फैल गई. चारों तरफ आग की लपटों से घिरी दीपा ने डा. सुदीप और अपने भाई अनुज को बारीबारी से फोन कर बचाने की गुहार की. अनुज पहले पहुंच कर जलती लपटों के बीच मकान में घुस गया. बाद में डा. सुदीप भी पहुंच गया था, लेकिन वह अंदर नहीं घुसा. बदले की इस आग में दीपा और उस का 6 साल का बेटा शौर्य जिंदा जल गए थे.

दीपा की बहन राधा उर्फ राधिका ने इस मामले में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. बाद में पुलिस ने डा. सीमा, डा. सुदीप और उस की मां सुरेखा को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जांच पूरी कर अदालत में तीनों के खिलाफ आरोपपत्र पेश कर दिया. अभी यह मामला अदालत में विचाराधीन है.

इसी मामले में राजीनामे की बात चल रही थी. बात सिरे नहीं चढ़ी तो बदले की आग में जल रहे अनुज ने इंसाफ मिलने से पहले ही इस मामले का फैसला करने का निश्चय किया. उस ने खुद ही डा. सुदीप और डा. सीमा की खौफनाक मौत की साजिश रच डाली.

अनुज ने इस काम में अपने दोस्त धौलपुर के महेश को साथ लिया. दौलत के मकान पर साजिश रची. इस के बाद दौलत की बाइक ले कर महेश और अनुज भरतपुर आ गए. अनुज तो भरतपुर में ही रहता था. उसे डाक्टर दंपति की हर गतिविधि की एकएक बात पता थी. फिर भी उस ने अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए 2-4 दिन रैकी की.

जब उसे यकीन हो गया कि डाक्टर दंपति रोजाना शाम साढ़े 4-पौने 5 बजे के आसपास मंदिर के लिए जाते हैं तो उस ने 28 मई को अपने दोस्त महेश के साथ बाइक पर जा कर उन की कार रोक ली और पिस्तौल से दोनों को गोलियों से ठंडा कर अपनी बहन व भांजे की हत्या का बदला ले लिया. उस ने खून का बदला खून कर ले लिया.

पुलिस ने पहली जून को एक अभियुक्त महेश को करौली से गिरफ्तार कर लिया. महेश ही वह शख्स है जो घटना के समय मोटरसाइकिल चला रहा था. लेकिन गोली चलाने वाला अनुज कथा लिखे जाने तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया.

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बहरहाल, भरतपुर उस दिन गोलियों की आवाज से बदलापुर बन गया. बदले की आग ने 2 परिवारों को खत्म कर दिया. दीपा के हंसतेखेलते जीवन को डा. सीमा ने खत्म कर दिया. डेढ़ साल बाद अनुज ने डाक्टर दंपति का परिवार उजाड़ दिया.

अब डाक्टर दंपति के 18 साल के बेटे और 15 साल की बेटी के सिर से मांबाप का साया उठ गया. डा. सुदीप की मां सुरेखा की बुढ़ापे की दोनों लाठियां टूट गईं. डाक्टर दंपति का अस्पताल चलाने वाला भी अभी फिलहाल कोई नहीं है. उन के बेटे और बेटी पर भी खतरा मंडरा रहा है.

दीपा और उस के बेटे की मौत का जिम्मेदार कौन था, यह फैसला अदालत को करना था. इस से पहले ही अनुज ने खुद फैसला कर दिया. कानूनविदों का कहना है कि डा. सुदीप और डा. सीमा की मौत होने के कारण उन के खिलाफ अदालत में केस बंद हो जाएगा. सुरेखा के खिलाफ मुकदमा चलता रहेगा.

दूसरी ओर, डाक्टर दंपति की हत्या करने और सहयोग करने वालों पर पुलिस की जांच पूरी होने और अदालत में चालान पेश किए जाने के बाद नया मुकदमा चलेगा.

Manohar Kahaniya: बबिता का खूनी रोहन- भाग 1

10 मार्च, 2021 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. दक्षिणी दिल्ली के एंड्रयूजगंज इलाके में हर रोज की तरह उस वक्त भी चहलपहल काफी बढ़ गई थी.

उस दिन बुधवार होने के कारण वर्किंग डे था, इसलिए सरकारी और निजी औफिसों में काम करने वाले लोगों का आवागमन शुरू हो चुका था. धंधा करने वाले लोग भी अपने कारोबारी ठिकानों की तरफ निकल रहे थे.

सिलवर टेन कलर की एक वैगनआर कार सड़क पर भीड़ के कारण रेंगते हुए चल रही थी, जिस की ड्राइविंग सीट पर बैठा चालक गाड़ी में इकलौता सवार था. अचानक वैगनआर गाड़ी की ड्राइविंग सीट के बगल की तरफ एक बाइक पीछे से तेजी के साथ आ कर धीमी हो गई, उस पर भी हेलमेट लगाए इकलौता सवार था. वैगनआर के चालक ने अचानक बगल में आ कर धीमी हुई बाइक के सवार की तरफ देखा तो उस के मुंह से निकला, ‘अबे साले तू यहां?’

वैगनआर चालक के आगे के शब्द हलक में ही फंसे रह गए, क्योंकि तब तक बाइक सवार ने हाथ में लिए हुए पिस्तौल से उस के ऊपर बेहद नजदीक से फायर कर दिया था. गोली वैगनआर चालक की गरदन में लगी और अचानक उस के पैर खुदबखुद गाड़ी के ब्रेक पर जाम हो गए. गोली चलने की आवाज और अचानक वैगनआर का तेजी से ब्रेक लगना दोनों ऐसी घटनाएं थीं, जिन्होंने सड़क पर चल रहे हर राहगीर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया.

एक पल के लिए लोग हतप्रभ रह गए, लेकिन अगले ही पल लोग वैगनआर की तरफ दौड़ पड़े. लेकिन तब तक वैगनआर चालक पर फायर झोंकने वाला बाइक सवार हवा से बात करते हुए भीड़ के बावजूद बाइक लहराते हुए नौ दो ग्यारह हो चुका था.

वारदात दिल्ली के बेहद पौश इलाके में हुई थी. वक्त भी ऐसा था कि उस वक्त सड़कों पर भीड़भाड़ भी काफी रहती है. बाइक सवार ने वैगनआर चालक से किसी तरह की लूटपाट का प्रयास भी नहीं किया था, साफ था कि बाइक सवार हमलावर का मकसद केवल कार चालक की जान लेना था.

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राहगीरों में से किसी ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया. अगले 10 मिनट में पुलिस कंट्रोल की जिप्सी मौके पर पहुंच गई. पीसीआर के जवानों ने देखा कि वैगनआर में ड्राइविंग सीट पर गोली लगने के बाद खून से लथपथ अचेत पड़े चालक की सांसें अभी चल रही थीं.

लिहाजा उन जवानों ने चालक को वैगनआर से निकाल कर अपनी गाड़ी में डाला . पीसीआर के 2 जवान कागजी खानापूर्ति करने के लिए मौके पर ही रुक गए और बाकी स्टाफ वैगनआर के घायल चालक को ले कर एम्स अस्पताल की तरफ रवाना हो गया.

पीसीआर ने तत्काल इस घटना की सूचना डिफेंस कालोनी थाने को दी. क्योंकि गोली चलने की वारदात जिस जगह हुई थी, वह इलाका दक्षिणी दिल्ली के डिफेंस कालोनी थाना क्षेत्र में पड़ता है.

सुबह के 9 बजे का समय दिल्ली में पुलिस थानों में सब से अधिक व्यस्तता का समय होता है. क्योंकि उस समय नाइट ड्यूटी पर तैनात स्टाफ के रिलीव होने और डे ड्यूटी करने वालों के थाने में आगमन का समय होता है. थानों में तैनात वरिष्ठ अधिकारी भी उसी समय पहुंच कर स्टाफ की ब्रीफिंग लेने की तैयारी में जुटे होते हैं.

डिफेंस कालोनी थाने के ड्यूटी औफिसर को जैसे ही एंड्रयूजगंज में वैगनआर चालक को गोली मारे जाने की सूचना पीसीआर से मिली. ड्यूटी औफिसर ने तत्काल डिफेंस कालोनी थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक को उन के आरामकक्ष में जा कर सूचना से अवगत कराया.

मलिक वरदी पहन कर कुछ देर पहले ही तैयार हुए थे और अपनी डेली डायरी में पूरे दिन के शेड्यूल पर सरसरी नजर डाल रहे थे.

इलाके में सरेराह किसी को गोली मार देने की घटना किसी थानाप्रभारी के लिए गंभीर वारदात होती है. लिहाजा थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक अपने सहयोगी इंसपेक्टर पंकज पांडेय, एसआई वेद कौशिक, प्रमोद कुमार तथा दूसरे स्टाफ को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पीसीआर की दूसरी गाडि़यां भी पहुंच गई थीं. वैगनआर गाड़ी के इर्दगिर्द राहगीरों का जमघट लग चुका था. पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीद राहगीरों से पूछताछ और जानकारी एकत्र करने का काम शुरू कर दिया.

दूसरी तरफ इंसपेक्टर पंकज पांडेय पुलिस की एक टीम को ले कर तत्काल एम्स  अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. वहां जाने के बाद पता चला कि घायल वैगनआर चालक की गरदन में गोली लगी है और उस की हालत चिंताजनक है. डाक्टर इमरजेंसी आईसीयू में उस का औपरेशन कर गोली निकालने की कोशिश में जुटे थे. डाक्टरों ने वैगनआर चालक की जेब से जो पर्स तथा दूसरे दस्तावेज बरामद किए थे, वे सभी पुलिस को सौंप दिए.

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घायल व्यक्ति की हुई शिनाख्त

दस्तावेजों को देखने के बाद पता चला कि जिस शख्स को गोली लगी है, उस का नाम भीमराज (45) है और वह चिराग दिल्ली गांव का रहने वाला है. बीएसईएस में संविदा पर ड्राइवर की नौकरी करने वाला भीमराज कहां जा रहा था, उसे गोली किस ने और क्यों  मारी? इस का तो तत्काल पता नहीं चल सका, लेकिन पुलिस को यह पता चल चुका था कि वह कहां का रहने वाला है.

लिहाजा उस के परिवार वालों से संपर्क कर उन्हें सूचना देने का काम आसान हो गया था. दूसरी तरफ भीमराज का मोबाइल फोन पुलिस ने उस की गाड़ी से ही बरामद कर लिया था, जिस में उस की पत्नी का नंबर था. पुलिस ने उस नंबर पर काल कर के भीमराज की पत्नी  को सूचना दे दी.

थोड़ी ही देर में भीमराज की पत्नी बबीता अस्पताल पहुंच गई. सूचना पा कर उस के अन्य रिश्तेदारों व जानपहचान वालों का भी अस्पताल में हुजूम जमा हो गया.

इधर, थानाप्रभारी मलिक ने इस घटना के बारे में डीसीपी अतुल ठाकुर व डिफेंस कालोनी के एसीपी कुलबीर सिंह को सूचना दे दी थी. सूचना मिलने के बाद दोनों सीनियर अफसर भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. आसपास के थानों की पुलिस भी मौके पर पहुंच गई.

भीमराज का इलाज करने वाले डाक्टरों ने यह बात साफ कर दी थी कि उस के बचने की उम्मीद बेहद कम है क्योंकि गरदन में जो गोली लगी थी, उस से सांस की नली पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है, जिस कारण उसे सांस लेने में बेहद तकलीफ हो रही है, जिस से उसे वैंटीलेटर पर रखा गया है.

बहरहाल, पुलिस को तत्काल भीमराज से बयान ले कर उस के हमलावर तक पहुंचने की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो इंसपेक्टर पंकज पांडेय टीम के साथ वापस घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां डीसीपी अतुल ठाकुर ने आसपास के थानों की पुलिस के अलावा जिले के तेजतर्रार पुलिस अफसरों को भी बुलवा लिया था.

आसपास मौजूद चश्मदीद लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ हो गई कि भीमराज पर गोली चलाने वाला शख्स एक बाइक पर सवार था और उस ने हेलमेट लगा रखा था.

चश्मदीदों से पूछताछ और घटनास्थल के निरीक्षण से पुलिस को तत्काल ऐसा कोई सुराग नहीं मिल रहा था, जिस से पुलिस हमलावर तक पहुंच सके. लिहाजा डीसीपी अतुल ठाकुर ने डिफेंस कालोनी थाने पहुंच कर तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की 6 टीमों का गठन कर दिया. पहली टीम में डिफेंस कालोनी थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र मलिक तथा एसआई प्रमोद को रखा गया. जबकि दूसरी टीम में इंसपेक्टर पंकज पांडेय और एसआई वेद कौशिक को शामिल किया गया.

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6 टीमों ने शुरू की जांच

मैदान गढ़ी थाने के थानाप्रभारी जतन सिंह के नेतृत्व में तीसरी टीम बनाई गई. दक्षिणी जिले के स्पैशल स्टाफ इंसपेक्टर गिरीश भाटी को चौथी टीम का नेतृत्व सौंपा गया. एंटी नारकोटिक्स सेल के इंसपेक्टर प्रफुल्ल झा पांचवी टीम का नेतृत्व कर रहे थे और कोटला मुबारकपुर थाने के थानाप्रभारी विनय त्यागी के नेतृत्व में छठी टीम गठित कर के सभी टीमों को अलगअलग बिंदुओं पर जांच करते हुए काम बांट दिए गए.

भीमराज को गोली मारने वाला हमलावर बाइक पर सवार हो कर आया था. पुलिस को चश्मदीदों से इस बात की जानकारी तो मिल गई थी, लेकिन कोई भी बाइक का नंबर नहीं बता सका था. इसलिए पुलिस टीमों ने सब से पहले हमलावर की बाइक को ट्रेस करने का काम शुरू किया.

पुलिस की टीमों ने घटनास्थल के आसपास की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की तो अगले कुछ ही घंटों में पुलिस को सफलता मिलती दिखने लगी. जिस स्थान पर घटना हुई थी, वहां एक सीसीटीवी फुटेज में हमलावर बाइक सवार कैमरे में कैद हो गया था. लेकिन इस फुटेज में बाइक का नंबर स्पष्ट नहीं हो सका.

क्योंकि हमलावर ने बड़ी चालाकी से आगे और पीछे की दोनों नंबर प्लेटों को मोड़ रखा था. जिस कारण बाइक का नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ रहा था. पुलिस को जो नंबर दिखाई पड़ रहे थे, उसी के आधार पर अलगअलग सीरीज बना कर नंबरों को जोड़ कर यह पता लगाने का काम शुरू कर दिया कि उन बाइक नंबर के मालिक कौन लोग हैं.

पुलिस की एक दूसरी टीम ने सीसीटीवी खंगालने का काम जारी रखा. भीमराज का हमलावर जिस दिशा में बाइक ले कर भागा था, उसी दिशा में बढ़ते हुए पुलिस ने जितने भी रास्ते गए, वहां से करीब 5 किलोमीटर तक एकएक कर 200 सीसीटीवी फुटेज की जांचपड़ताल कर डाली.

अगले भाग में पढ़ें- जांच में आए नए तथ्य

MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इस बार सुप्रीम कोर्ट ने उन की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी. इस तरह वह जेल चले गए. जेल में रहते हुए भी वह जो चाहते वही करते थे. इस दौरान वह जेल में बीमारी का बहाना बना कर सरकारी अस्पताल के कैदी वार्ड में डेरा जमाए रहते और अपने समर्थकों को वहां बुला कर पार्टी करते रहते थे. वहां उन का दरबार भी लगता था.

पप्पू यादव भले ही सलाखों के पीछे थे, लेकिन जेल में भी उन का रुतबा कायम था. 26 सितंबर को उन्होंने जेल में ही अपने 50 साथियों के साथ पार्टी मनाई. पप्पू यादव द्वारा जेल में पार्टी करने की बात जब बाहर के लोगों को मालूम हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्ती करते हुए जेल वार्डन और 2 संतरियों को सस्पेंड कर दिया.

इस के करीब 3 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाइकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिस में पप्पू यादव को जमानत हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि पप्पू यादव जेल से बाहर रह कर अजीत सरकार हत्याकांड के गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं, जिस से न्याय प्रक्रिया में बाधा आ सकती है.

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बेउर जेल से भेजा तिहाड़

पटना के बेउर जेल में रहने के दौरान उन के पास मोबाइल बरामद हुआ था. साथ ही यह भी पता चला था पप्पू यादव ने कई महत्त्वपूर्ण लोगों से बातें की थीं. सीबीआई को शक था कि पप्पू यादव यहां रहते हुए केस को प्रभावित कर सकते हैं अत: सीबीआई ने अदालत से अपील की कि पप्पू यादव की असंवैधानिक गतिविधियों को देखते हुए उन्हें बेउर जेल से हटा कर किसी अन्य जेल में भेजा जाए.

तब कोर्ट के आदेश पर पप्पू यादव को बेउर जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया. 14 फरवरी, 2008 को पटना की स्पैशल सीबीआई कोर्ट ने अजीत सरकार हत्याकांड मामले में पप्पू यादव और राजन तिवारी को उम्रकैद की सजा सुनाई.

5 साल तक तिहाड़ जेल में सजा काटने के बाद 17 मई, 2013 को अजीत सरकार मामले में पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण पप्पू यादव और राजन तिवारी को बरी कर दिया. जेल से बरी होने के बाद पप्पू यादव को चुनाव लड़ने की इजाजत भी मिल गई.

सन 2014 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव और उन की पत्नी रंजीत रंजन दोनों ने बिहार के अलगअलग क्षेत्रों से चुनाव लड़ा और दोनों जीत कर लोकसभा पहुंच गए.

इसी साल नरेंद्र मोदी की सरकार अस्तित्व में आई थी और देश का चुनावी समीकरण बदल गया. बिहार में लालू यादव को कमजोर पड़ते देख पप्पू यादव उन का साथ देने के लिए आगे बढ़े, लेकिन लालू यादव इसलिए तैयार नहीं थे कि वह अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटों को सौंपना चाहते थे.

लालू यादव और पप्पू यादव के बीच फिर विवाद पैदा हो गया. इस पर पप्पू यादव ने लालू पर आरोप भी लगाया कि वह उन की हत्या करवाना चाहते हैं. इस के बाद राजद ने पप्पू यादव पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप लगा कर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

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अपनी पार्टी का किया गठन

राजद से निकाले जाने के बाद पप्पू यादव ने बिहार में होने पाले विधानसभा चुनाव से पहले जन अधिकार पार्टी का गठन किया और विधानसभा चुनाव में 243 में से 109 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, मगर उन के 108 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. 2019 में पप्पू यादव अपनी पार्टी के टिकट पर मधेपुरा की सीट से और उन की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस पार्टी के तौर पर सुपौल लोकसभा का चुनाव लड़ीं, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए.

इस के बाद सन 2019 में पप्पू यादव तब चर्चा में आए, जब पटना की सड़कों पर बाढ़ का सैलाब उमड़ा था. इस दौरान बिहार में सत्ता पर काबिज जेडीयू और बीजेपी के सुशील मोदी पटना के लोगों की सहायता करने में असमर्थ दिखाई पड़ रहे थे तो दूसरी तरफ पप्पू यादव ने बाढ़ पीडि़तों की काफी सहायता की तब लोगों ने उन्हें अपना मसीहा समझा.

इस बार जब पूरे देश में कोरोना मौत का कहर बरपा रहा था तो पप्पू यादव पटना के अस्पतालों के बाहर लोगों की जान बचाने के लिए कीमती रेमेडेसिविर और औक्सीजन सिलेंडर बांटते नजर आए. उन की मदद से अनेक लोग बेवक्त काल के गाल में समाने से बच गए.

इसी बीच पप्पू यादव को अपने लोगों से सारण में दरजनों एंबुलेंस के खड़ी रहने की बात पता चली तो वह बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूड़ी के रसूख की परवाह किए बिना वहां पहुंचे और इस का भंडाफोड़ कर दिया.

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कहानी लिखते समय पता चला है कि पप्पू यादव को वीरपुर जेल से उन के खराब स्वास्थ्य के आधार पर दरभंगा मैडिकल कालेज अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया है.

पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन और बेटे सार्थक रंजन ने पटना में नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है. रंजीत रंजन ने नीतीश कुमार को चुनौती दी है कि अगर उन के पति पप्पू यादव का बाल भी बांका हुआ तो वह नीतीश कुमार को खींच कर पटना के चौराहे पर खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी. बिहार में पप्पू यादव के मामले को ले कर तरहतरह की अफवाहों का बाजार गर्म है.

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

तीनों भाई संतराम के मकान के पास ही किराए का कमरा ले कर एक साथ रहते थे. मनोज जहां राजमिस्त्री का काम करता था तो उस के दोनों भाई दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे.

पड़ोस में रहने वाला संतराम चूंकि ठेकेदारी का काम करता था, इसलिए वह अकसर दिहाड़ी मजदूर या दूसरे राजमिस्त्री  की जरूरत पड़ने पर तीनों भाइयों को बुला लेता था. संतराम को पीनेखाने का शौक था.

तीनों भाई भी शराब पीने के आदी थे. इसलिए कुछ समय बाद संतराम के साथ उन की खानेपीने की बैठकें भी होने लगीं. कई बार मनोज संतराम के घर पर ही बैठा था. इसलिए जल्द ही संतराम की पत्नी सुशीला से भी उस की बोलचाल हो गई.

सुशीला की 20 साल पहले जो चंचल स्वभाव की आदत थी, आज भी वह बरकरार थी. सुशीला की नजर मनोज पर पड़ी तो उसे संतराम भी उस के सामने फीका लगने लगा.

मनोज ने पहली ही नजर में सुशीला की आखों से उस के मन की बात भांप ली. एक कुंआरे नौजवान को अगर कोई स्त्री आमंत्रण दे तो भला वह कैसे ठुकरा सकता है. सुशीला के जीवन में एक बार फिर वही कहानी दोहराई जाने लगी, जो उस ने 18 साल पहले दोहराई थी.

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जल्द ही मनोज से सुशीला के जिस्मानी संबंध बन गए. सुशीला की उम्र भले ही 55 साल हो चुकी थी, लेकिन उस के हसरतें आज भी उतनी ही जवान थीं जितनी जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाली एक लड़की के होती हैं.

इधर, पिछले कुछ सालों में संतराम के अंदर एक बुरी प्रवृत्ति ने जन्म ले लिया था. वह शराब पीने के बाद अकसर सुशीला के साथ किसी न किसी बात पर मारपीट कर देता था. इस कारण सुशीला और संतराम के संबंधों में एक दरार भी पैदा हो गई थी.

जब 6 महीने पहले मनोज सुशीला की जिदंगी में आया तो उसे जिंदगी में रोशनी की एक नई किरण दिखाई देने लगी. लेकिन इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.

कुछ दिन पहले संतराम को इस बात का शक हो गया कि सुशीला फिर से अपने पुराने ढर्रे पर चलने लगी है. उसे मनोज के साथ उस के संबध होने का शक हो गया था. वैसे भी सुशीला को संतराम से कोई बच्चा तो था नहीं, इसलिए उसे वैसे भी उस से बहुत लगाव नहीं था.

जब संतराम ने उस के साथ कई बार मारपीट की तो सुशीला ने एक दिन मनोज से कहा कि अगर वह उसे संतराम से छुटकारा दिला दे तो वह पूरी तरह उस की हो कर रहेगी. इतना ही नहीं, उस के घर में जो कुछ भी है और बैंक में जो पैसा या जेवर है, सब उस के हो जाएंगे.

मनोज भी उस के चक्कर में अविवेकी बन गया था. लिहाजा उस ने सुशीला से वादा कर लिया कि वह उसे संतराम से मुक्ति दिलाएगा.

मनोज ने अपनी माशूका से वादा तो कर लिया लेकिन इस काम को अकेले अंजाम देना उस के बस की बात नहीं थी. इसीलिए उस ने सगे भाई आकाश व मौसेरे भाई राजेश को संतराम की हत्या करने में मदद करने के लिए तैयार कर लिया.

आकाश व राजेश कम उम्र के जवान लड़के थे, वे बस इसी से खुश हो गए कि चलो मनोज घर बसा लेगा तो उन्हें पकापकाया खाना मिलना शुरू हो जाएगा. लिहाजा उन्होंने मनोज का साथ देने की हामी भर दी. जब तीनों ने इरादा बना लिया तो सुशीला के साथ मिल कर उन्होंने संतराम की हत्या को अंजाम देने के लिए योजना बनाई.

6 और 7 मई की रात को उन्होंने संतराम की हत्या के लिए चुना. योजना के मुताबिक रात करीब साढ़े 12 बजे मनोज ने जब दरवाजा खटखटाया तो पहले से उन के इंतजार में जाग रही सुशीला ने दरवाजा खोल दिया और वे कमरे के भीतर घुस आए.

संतराम शराब के नशे में बिस्तर पर पड़ा खर्राटे ले रहा था. इस के बाद उन्होंने कमरे में रखी एक ईंट से संतराम के चेहरे व सिर पर इतने वार किए कि बिस्तर पर ही उस की छटपटाते हुए मौत हो गई. घर में लूटपाट की वारदात को दर्शाया जा सके, इसलिए सब ने मिल कर घर का सामान भी इधरउधर बिखेर दिया.

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हालांकि मनोज वारदात के बाद संतराम की मोटरसाइकिल ले जाना चाहता था, लेकिन उस की चाबी उसे नहीं मिली. बाद में जब मनोज अपने भाइयों के साथ वहां से चला गया तो सुशीला ने अपने कपड़े अस्तव्यस्त कर थोड़े फाड़ लिए और घर से बाहर निकल कर शोर मचा दिया कि बदमाशों ने उस के पति की हत्या कर दी है.

मनोज से जब हत्याकांड की सारी जानकारी मिल गई तो पुलिस ने उसी दिन सुशीला को भी गिरफ्तार कर लिया. थोड़ी नानुकुर के बाद उस ने भी अपना अपराध कबूल कर लिया. जांच अधिकारी सुजीत उपाध्याय ने हत्या के मामले में आईपीसी की धारा 120बी व 34 जोड़ कर उन चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. सभी को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

—कहानी पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित है

Manohar Kahaniya: पूर्व उपमुख्यमंत्री के घर हुआ खूनी तांडव, रास न आई दौलत- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

परमेश्वर ने धीरे से कहा, ‘‘क्यों न हम हरीश को ही रास्ते से हटा दें.’’

‘‘क्या मतलब… क्या कहना चाहते हो?’’ वह बोली.

‘‘सीधी सी बात है, मैं कहना चाहता हूं हरीश का खात्मा.’’ उस ने बात स्पष्ट की.

सोच कर के धनकंवर ने कहा, ‘‘वाह, यह तो बहुत अच्छा होगा, मगर यह कैसे संभव होगा?’’

‘‘उस की फिक्र मत करो. हां, कुछ पैसा लगेगा, मैं अपने एक दोस्त को तैयार करता हूं, उसे मैं जैसे कहूंगा वह करेगा. तुम बस जीजाजी को संभाल लेना.’’

बहन ने कहा, ‘‘भाई, तुम उन की चिंता मत करो, मैं उन्हें समझाने की कोशिश करती हूं. मैं तो बारबार उन्हें कहती रहती हूं. मगर वह मेरी सुनते ही नहीं, अब मैं कोशिश करूंगी कि ठीक से उन्हें मना ही लूं.’’

इस चर्चा और घटनाक्रम के बाद परमेश्वर और बहन धनकंवर दोनों ने मिल कर हरीश कंवर की कहानी का पटाक्षेप करने की योजना बनानी शुरू कर दी.

हरीश कुंवर के परिवार को खत्म करने की जो योजना बनी, उसे 21 अप्रैल 2021  दिन बुधवार सुबहसवेरे 4 बजे अमलीजामा पहनाया गया.

हरीश (36 वर्ष), पत्नी सुमित्रा ( 32 ) अपनी 4 वर्षीय बेटी आशी के साथ अभी नींद में ही थे कि भाई हरभजन परिवार सहित सुबह हमेशा की तरह अपने कमरे से सुबह की सैर के लिए निकल गया.

पिता हरभजन के निकलते ही उस की 16 वर्षीय बेटी रंजना (काल्पनिक नाम) ने अपने मामा परमेश्वर कंवर को मोबाइल पर मैसेज किया कि पापा सैर पर निकल गए हैं. यह मैसेज मिलते ही परमेश्वर ने अपने दोस्त रामप्रसाद मन्नेवार को फोन किया और दोनों थोड़ी ही देर में भैंसमा स्थित हरीश कंवर के पैतृक आवास के पास आ गए.

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बेरहमी से किए 3 कत्ल

यहां उन्हें खबर नहीं थी कि चौराहे पर एक दुकान पर सीसीटीवी कैमरा लगा है, जिस में दोनों के आने का वीडियो फुटेज रिकौर्ड हो गया है. दोनों हरीश कंवर के कमरे में चले गए और बकरी को रेतने का हथियार (कत्ता) निकाल कर हरीश पर हमला कर दिया.

दोनों के एक साथ धारदार हथियार से हमला करने से हरीश कंवर हड़बड़ा कर खून से लथपथ उठ खड़े हुए. उन्होंने अपना बचाव करने की कोशिश की, मगर दोनों ने उन पर लगातार हमले किए.

हरीश ने साहस के साथ अपने आप को बचाने का खूब प्रयास किया और हमलावरों से हथियार छीनने की कोशिश की, मगर सफल नहीं हो पाए. अंतत: दोनों ने मिल कर हरीश को वहीं मौत की नींद सुला दिया.

होहल्ला सुन कर हरीश कंवर की पत्नी सुमित्रा उठ खड़ी हुई और पति का बचाव करने आगे बढ़ी कि उन्हें भी दोनों ने मिल कर धारदार हथियार से हमला कर मार डाला. 4 साल की आशी चिल्लाहट सुन कर के उठ कर रो रही थी. दोनों हत्यारों ने बच्ची आशी की भी वहीं नृशंस हत्या कर दी.

इस के बाद वे कमरे से बाहर निकले तो शोरगुल सुन कर हरीश की 82 वर्षीय मां जीवनबाई वहां पहुंचीं.

उन्हें बहुत कम दिखाई देता था. वह चिल्लाहट सुन कर ‘क्या है…क्या हो गया’ पूछने लगीं तो उन्हें कोई जवाब न दिया. दोनों ने उन्हें धक्का देते हुए नीचे गिरा दिया और वहां से भाग खड़े हुए.

हत्याकांड को अंजाम दे कर दोनों बाहर आए तो सुबह के लगभग साढ़े 4 बज रहे थे. अभी चारों ओर अंधेरा ही था.

परमेश्वर और रामप्रसाद घर के बाहर आए और दोनों ने यह योजना बनाई कि जब तक मामला शांत नहीं हो जाता, दोनों अलगअलग हो जाएं और जब स्थितियां ठीक होंगी तो मुलाकात की जाएगी.

परमेश्वर आगे बढ़ा तो उसे यह खयाल आया कि उस के कपड़े खून से सन गए हैं और उस के चेहरे पर चोट आई है, जहां से खून बह रहा है. मगर वह आगे गांव सलिहाभाठा की ओर बढ़ गया.

आगे सिंचाई विभाग के डैम के पास  उस ने अपने रक्तरंजित कपड़ों को जला दिया और डैम में नहाधो कर उस ने डायल 112 नंबर पर फोन कर के खुद का एक्सीडेंट होने की सूचना दे दी. फिर वह करतला अस्पताल में भरती हो गया.

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दूसरी तरफ रामप्रसाद कोरबा जिला के समीप जिला चांपा जांजगीर के एक गांव में अपने रिश्तेदार के यहां चला गया. जहां से नगरदा थाना पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उरगा पुलिस के हवाले कर दिया.

देर शाम को एसपी अभिषेक सिंह मीणा ने एसपी औफिस में एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर सभी आरोपियों को प्रैस के समक्ष उपस्थित कर सारे घटनाक्रम से परदा उठा दिया.

पुलिस ने हरीश कंवर, उन की सुमित्रा और बेटी आशी की हत्या के आरोप में आरोपियों हरभजन कंवर, पत्नी धनकंवर, बेटी रंजना, साले परमेश्वर कंवर और उस के दोस्त रामप्रसाद मन्नेवार और सुरेंद्र कंवर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत गिरफ्तार कर कोरबा के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया, जहां से रंजना के अलावा सभी आरोपियों को जेल भेज दिया गया. रंजना को बाल सुधार गृह भेजा गया. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: चाची का आशिक- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

शव की शिनाख्त होने के बाद कमल सिंह के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया गया. मृतक के भाई भीम सिंह की तरफ से जमना देवी उर्फ लक्ष्मी जादौन और मदनमोहन जादौन के खिलाफ भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

आरोपियों जमना देवी उर्फ लक्ष्मी और उस के प्रेमी भतीजे मदनमोहन से की गई पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार निकली—

कमल सिंह और भीम सिंह जादौन सगे भाई थे. कई साल पहले वह अपने गांव उमराया, थाना छाता, जिला मथुरा, उत्तरप्रदेश से राजस्थान के अलवर के भिवाड़ी शहर में आ बसे थे. दोनों भाई भिवाड़ी में किराए के मकान में रहते थे. दोनों भाई माश मेटल कंपनी चौक भिवाड़ी में नौकरी करते थे.

शादी के बाद दोनों भाई अलग हो गए थे. कमल सिंह अपनी पत्नी जमना देवी उर्फ लक्ष्मी के साथ प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में किराए के मकान में रहता था. वहीं भीम सिंह अपने बीवीबच्चों के साथ रामनिवास कालोनी, भिवाड़ी में रहता था. दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे. दोनों की तनख्वाह भी अच्छीखासी थी. जिस से घरपरिवार का खर्च आराम से चल रहा था.

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शादी में दे बैठे दिल

जमना करीब एक साल पहले कमल की बुआ के पोते की शादी में गांव सांखी, मथुरा गई थी. शादी में वैसे भी सब लोग अच्छे कपड़े और शृंगार कर के शामिल होते हैं. महिलाएं और युवतियां तो ऐसे मौके पर सजनेसंवरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं.

जमना ने भी मेकअप करा कर अच्छे कपड़े पहने. वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. शादी श्रीचंद जादौन के बड़े बेटे की थी. दूल्हे का छोटा भाई मदनमोहन भी उस समय खूब सजाधजा हुआ था. वह शक्लसूरत से भी ठीक ही था. दूल्हे के आसपास घूमते मदनमोहन और जमना की नजरें एकदूसरे से मिलीं तो दोनों एकदूसरे से नजरें नहीं हटा सके.

मदन को जहां जमना प्यारी लगी थी, वहीं जमना को भी मदन भा गया था. मदन उस समय 18 साल का गबरू जवान था. दोनों का रिश्ता वैसे तो चाचीभतीजे का था मगर उन की आंखों में एकदूजे के लिए अलग ही चाहत थी.

दोनों एकदूसरे को ऐसे देख रहे थे, मानो उन के अलावा उन के लिए वहां कोई और था ही नहीं. मदन ने जब भी इधरउधर देख कर जमना की तरफ देखा, वह उसे ही देखती मिली. मदनमोहन ने तब मौका पा कर जमना चाची से कहा, ‘‘चाची, क्या खूबसूरत लग रही हो. नयनों के तीर चुभो कर मेरा दिन घायल कर दिया.’’

सुन कर जमना हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारे नयनों ने मेरा भी दिल घायल कर दिया. अब इस की मरहमपट्टी तुम्हें ही करनी पड़ेगी.’’

‘‘बंदा अभी हाजिर है. आप हुक्म करें. मैं दिल का नया डाक्टर हूं.’’ वह बोला.

‘‘अच्छा, तो डाक्टर साहब से दिल घायल हुआ उस का इलाज आज जरूर कराएंगे.’’ जमना ने हंस कर कहा.

ये बातें हो तो मजाक में रही थीं मगर दोनों के मन में एकदूजे के लिए चाहत जाग उठी थी. दोनों शादी के दौरान एकदूसरे से मिलते रहे. एकदूसरे की खूबसूरती की तारीफों के पुल बांधते रहे.

मौका रात में मिला तो दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उन का चाचीभतीजे का रिश्ता वासना की आग में जल कर खाक हो गया. दोनों में एक नया रिश्ता कायम हो गया, जिस का अंत बहुत बुरा होने वाला था.

अगले दिन जमना जब गांव सांखी बुआ सास के घर से भिवानी आने की तैयारी कर रही थी तो मदनमोहन ने कहा, ‘‘चाची, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे जाने के बाद मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी.’’

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‘‘आज के बाद चाची नहीं जमना कहोगे.’’ जमना बोली.

तब मदनमोहन बोला, ‘‘जैसा आप का हुकम मेरी प्यारी डार्लिंग जमना. मुझे हर रोज फोन करना. मिलने भी बुलाना. क्योंकि मैं तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘जरूर मेरे राजा, मुझे भी तुम्हारी बहुत याद सताएगी. याद करूं तब दौड़े आना.’’ वह बोली.

‘‘जरूर आऊंगा.’’ मदन ने जमना की ओर देखते हुए रुआंसे स्वर में कहा.

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर लिया. जमना भिवाड़ी आ गई. वह भिवाड़ी आ जरूर गई थी, लेकिन अपना दिल तो भतीजे मदनमोहन के पास छोड़ आई थी. यही हाल मदनमोहन का भी था. उसे जमना के बगैर कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. मगर करते भी तो क्या. दोनों फोन पर बातें कर के दिल को तसल्ली देते रहते.

एकदो बार मदनमोहन भिवाड़ी भी आया और हसरतें पूरी कर वापस गांव मथुरा लौट आया. उन के बीच अवैध संबंध बने तो दोनों को दुनिया फीकी लगने लगी. मौका मिलने पर मदन भिवाड़ी आ कर जमना देवी से मिल जाता. दोनों कमल सिंह की गैरमौजूदगी में रास रचाते थे.

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दोनों एकदूसरे से कोसों दूर रहते थे. एक भिवाड़ी में तो दूसरा मथुरा में. ऐसे में हर रोज मिलना संभव नहीं था. ऐसे में वे दोनों फोन पर बातें कर जी हलका करते थे.

घटना से 6 महीने पहले एक दिन कमल ने अपनी पत्नी जमना को किसी से हंसहंस कर अश्लील बातें करते पकड़ लिया. तब कमल ने उस से पूछा कि किस से बातें कर रही थी. जमना ने बताया कि वह मदनमोहन से ही बात कर रही थी. तब उस ने कहा, ‘‘अरे शर्म नहीं आई तुझे उस से ऐसी बातें करते. अगर आज के बाद किसी से भी इस तरह की बात की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

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सौजन्य-मनोहर कहानियां

रविवार 14 जुलाई, 2019 का दिन था. दोपहर का समय था. जालौर के एसपी हिम्मत अभिलाष टाक को फोन पर सूचना मिली कि बोरटा-लेदरमेर ग्रेवल सड़क के पास वन विभाग की जमीन पर एक व्यक्ति का नग्न अवस्था में शव पड़ा है.

एसपी टाक ने तत्काल भीनमाल के डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई को घटना से अवगत कराया और घटनास्थल पर जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए. एसपी के निर्देश पर डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए, साथ ही उन्होंने थाना रामसीन में भी सूचना दे दी. उस दिन थाना रामसीन के थानाप्रभारी छतरसिंह देवड़ा अवकाश पर थे. इसलिए सूचना मिलते ही मौजूदा थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर आसपास के गांव वालों की भीड़ जमा थी. वहां वन विभाग की खाई में एक आदमी का नग्न शव पड़ा था. आधा शव रेत में दफन था. उस का चेहरा कुचला हुआ था. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या शायद कई दिन पहले की गई है.

वहां पड़ा शव सब से पहले एक चरवाहे ने देखा था. वह वहां सड़क किनारे बकरियां चरा रहा था. उसी चरवाहे ने यह खबर आसपास के लोगों को दी थी. कुछ लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को खबर कर दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को खाई से बाहर निकाल कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, मगर जमा भीड़ में से कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर सका. शव से करीब 20 मीटर की दूरी पर किसी चारपहिया वाहन के टायरों के निशान मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे शव को किसी गाड़ी में ले कर आए और यहां डाल कर चले गए.

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पुलिस ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. शव के पास ही खून से सनी सीमेंट की टूटी हुई ईंट भी मिली. लग रहा था कि उसी ईंट से उस के चेहरे को कुचला गया था. कुचलते समय वह ईंट भी टूट गई थी.

मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने उस का पोस्टमार्टम किया.

जब तक शव की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मृतक के फोटो वाट्सऐप पर शेयर कर दिए. साथ ही लाश के फोटो भीनमाल, जालौर और बोरटा में तमाम लोगों को दिखाए. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

सोशल मीडिया पर मृतक का फोटो वायरल हो चुका था. जालौर के थाना सिटी कोतवाली में 2 दिन पहले कालेटी गांव के शैतानदान चारण नाम के एक शख्स ने अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

कोतवाली प्रभारी को जब थाना रामसीन क्षेत्र में एक अज्ञात लाश मिलने की जानकारी मिली तो उन्होंने लाश से संबंधित बातों पर गौर किया. उस लाश का हुलिया लापता डूंगरदान चारण के हुलिए से मिलताजुलता था. कोतवाली प्रभारी बाघ सिंह ने डीएसपी भीनमाल हुकमाराम को सारी बातें बताईं.

मारा गया व्यक्ति डूंगरदान चारण था

इस के बाद एसपी जालौर ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया, इन में एक टीम भीनमाल थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद के नेतृत्व में गठित की गई, जिस में एएसआई रघुनाथ राम, हैडकांस्टेबल शहजाद खान, तेजाराम, संग्राम सिंह, कांस्टेबल विक्रम नैण, मदनलाल, ओमप्रकाश, रामलाल, भागीरथ राम, महिला कांस्टेबल ब्रह्मा शामिल थी.

दूसरी पुलिस टीम में रामसीन थाने के एएसआई विरधाराम, हैडकांस्टेबल प्रेम सिंह, नरेंद्र, कांस्टेबल पारसाराम, राकेश कुमार, गिरधारी लाल, कुंपाराम, मायंगाराम, गोविंद राम और महिला कांस्टेबल धोली, ममता आदि को शामिल किया गया.

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डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई दोनों पुलिस टीमों का निर्देशन कर रहे थे. जालौर के कोतवाली निरीक्षक बाघ सिंह ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराने वाले उस के रिश्तेदार शैतानदान को राजदीप चिकित्सालय की मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण के रूप में कर दी.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उस के परिजनों से संपर्क किया तो इस मामले में अहम जानकारी मिली. मृतक की पत्नी रसाल कंवर ने पुलिस को बताया कि उस के पति डूंगरदान 12 जुलाई, 2019 को जालौर के सरकारी अस्पताल में दवा लेने गए थे.

वहां से घर लौटने के बाद पता नहीं वे कहां लापता हो गए, जिस की थाने में सूचना भी दर्ज करा दी थी. रसाल कंवर ने पुलिस को अस्पताल की परची भी दिखाई. पुलिस टीम ने अस्पताल की परची के आधार पर जांच की.

पुलिस ने राजकीय चिकित्सालय जालौर के 12 जुलाई, 2019 के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो पता चला कि डूंगरदान को काले रंग की बोलेरो आरजे14यू बी7612 में अस्पताल तक लाया गया था.

उस समय डूंगरदान के साथ उस की पत्नी रसाल कंवर के अलावा 2 व्यक्ति भी फुटेज में दिखे. उन दोनों की पहचान मोहन सिंह और मांगीलाल निवासी भीनमाल के रूप में हुई. पुलिस जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज जांच के बाद गांव के विभिन्न लोगों से पूछताछ की तो सामने आया कि मृतक डूंगरदान चारण की पत्नी रसाल कंवर से मोहन सिंह राव के अवैध संबंध थे. इस जानकारी के बाद पुलिस ने रसाल कंवर और मोहन सिंह को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

मांगीलाल फरार हो गया था. रसाल कंवर और मोहन सिंह राव ने आसानी से डूंगरदान की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

केस का खुलासा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी थाने पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के सामने आरोपियों से पूछताछ कर डूंगरदान हत्याकांड से परदा उठ गया.

पुलिस ने 16 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों मृतक की पत्नी रसाल कंवर एवं उस के प्रेमी मोहन सिंह राव को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो डूंगरदान चारण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

मृतक डूंगरदान चारण मूलरूप से राजस्थान के जालौर जिले के बागौड़ा थानान्तर्गत गांव कालेटी का निवासी था. उस के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. वह उस जमीन पर खेती के अलावा दूसरी जगह मेहनतमजदूरी करता था. उस की शादी करीब एक दशक पहले जालौर की ही रसाल कंवर से हुई थी.

करीब एक साल बाद रसाल कंवर एक बेटे की मां बनी तो परिवार में खुशियां बढ़ गईं. बाद में वह एक और बेटी की मां बन गई. जब डूंगरदान के बच्चे बड़े होने लगे तो वह उन के भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगा.

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गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा डूंगरदान अपने बीवीबच्चों के साथ गांव कालेटी छोड़ कर भीनमाल चला गया और वहां लक्ष्मीमाता मंदिर के पास किराए का कमरा ले कर रहने लगा. भीनमाल कस्बा है. वहां डूंगरदान को मजदूरी भी मिल जाती थी. जबकि गांव में हफ्तेहफ्ते तक उसे मजदूरी नहीं मिलती थी.

आशिकी के लिए दोस्ती

डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

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