Hindi Story: नया खिलौना – जब खेल बना श्रुति का प्यार

Hindi Story: आज श्रुति की खुशी का ठिकाना न था. स्कूल से आते समय उस लड़के ने मुसकरा कर उसे फ्लाइंग किस जो दी थी. 16 साल की श्रुति के दिल की धड़कनें बेकाबू हो उठी थीं. वह पल ठहर सा गया था. वैसे उस लड़के के साथ श्रुति की नजरें काफी दिनों पहले ही चार हो चुकी थीं. आतेजाते वह उसे निहारा करता. श्रुति को भी ऊंचे और मजबूत कदकाठी का करीब 18 साल का वह लड़का पहली नजर में भा गया था. लड़का श्रुति के घर से कुछ दूर मेन रोड पर बाइक सर्विसिंग सैंटर में काम करता था.

श्रुति की एक सहेली उस लड़के को जानती थी. उसी सहेली ने बताया था कि जतिन नाम का एक लड़का अपने घर का इकलौता बेटा है और 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद कुछ घरेलू परेशानियों के कारण काम करने लग गया है.

घर में सब के होने के बावजूद श्रुति बारबार बरामदे में आ कर खड़ी हो जाती ताकि उस लड़के को एक नजर फिर से देख सके. श्रुति के दिल की यह हालत करीब 2 महीने से थी पर  आज इस प्रेम की गाड़ी को रफ्तार मिली जब उस लड़के ने उस से साफ तौर पर अपनी चाहत जाहिर की.

अब श्रुति का ध्यान पढ़ाई में जरा सा भी नहीं लग रहा था. उस की नजरों के आगे बारबार वही चेहरा घूम जाता. हाथ में मोबाइल थामे वह लगातार यही सोच रही थी कि उस लड़के का मोबाइल नंबर कैसे हासिल करे.

बहन की उलझन भाई ने तुरंत भांप ली. श्रुति को भी तो कोई राजदार चाहिए ही था. उस ने अपने मन की हर बात खुद से 2 साल छोटे भाई गुड्डू से कह दी. भाई ने भी अपना फर्ज अच्छी तरह निभाते हुए झट श्रुति का फोन नंबर एक कागज पर लिखा और उस लड़के के पास पहुंच गया.

‘यह क्या है?’ उस के सवाल पूछने पर गुड्डू ने बड़ी तेजी से जवाब दिया, ‘खुद समझ जाओ.’

कागज थमा कर वह घर चला आया और श्रुति मोबाइल हाथ में ले कर बड़ी बेचैनी से कौल का इंतजार करने लगी. मोबाइल की घंटी बजते ही वह दौड़ कर छत पर चली जाती ताकि अकेले में उस से बातें कर सके. मगर नंबर दिए हुए 3 घंटे बीत गए, पर उस लड़के की कोई कौल नहीं आई.

उदास सी श्रुति छत पर टहलती रही. उस की निगाहें लगातार उस लड़के पर टिकी थीं जो अपने काम में मशगूल था. थक कर वह किचन में मम्मी का हाथ बंटाने लगी कि मोबाइल पर छोटी सी रिंग हुई. श्रुति फोन के पास तक पहुंचती तब तक मोबाइल खामोश हो चुका था. गुस्से में  वह फोन पटकने ही वाली थी कि फिर उसी नंबर से कौल आई. पक्का वही होगा, सोचती हुई वह कूदती हुई छत पर पहुंच गई. अपनी बढ़ी धड़कनों पर काबू करते हुए हौले से ‘हैलो’ कहा तो उधर से ‘आई लव यू’ सुन कर उस का चेहरा एकदम से खिल उठा.

‘‘मैं भी आप को बहुत पसंद करती हूं. मुझे आप की हाइट बहुत अच्छी लगती है,’’ श्रुति ने चहक कर कहा.

‘‘बस हाइट और कुछ नहीं,’’ कह कर जतिन हंसने लगा. श्रुति शरमा गई फिर तुनक कर बोली, ‘‘फोन करने में इतनी देर क्यों लगाई?’’

‘‘अच्छा, इतना इंतजार था मेरी कौल का?’’ वह भी मजे ले कर बातें करने लगा.

श्रुति और जतिन देर तक बातें करते रहे. रात में श्रुति ने फिर से उसे कौल लगा दी. अब तो यह रोज की कहानी हो गई. श्रुति जब तक दिन में 10 बार उस से बातें नहीं कर लेती, उस का दिल नहीं भरता. एग्जाम आने वाले थे पर श्रुति का ध्यान पढ़ाई में कहां लग रहा था. वह तो खयालों की दुनिया में उड़ रही थी.

अकसर वह जतिन से मिलने जाती. जतिन श्रुति को चौकलेट्स और शृंगार का सामान ला कर देता तो वह फूली नहीं समाती. उस से बातें करते समय वह सबकुछ भूल जाती. ठीक उसी प्रकार जैसे बचपन में अपने खिलौने से खेलते हुए दुनिया भूल जाती थी.

उस लड़के का प्यार एक तरह से श्रुति के लिए खिलौने जैसा लुभावना था जिसे वह दुनिया से छिपा कर रखना चाहती थी. उसे डर था कि कहीं किसी को पता लग गया तो वह प्यार उस से छीन लिया जाएगा. पापा से वह खासतौर पर डरती थी. पापा ने एक बार गुस्से में उस का सब से पहला खिलौना तोड़ दिया था. तब से वह उन से खौफजदा रहने लगी थी. अपनी जिंदगी में जतिन की मौजूदगी की भनक तक नहीं लगने देना चाहती थी.

और फिर वही हुआ जिस का डर था. उस का 9वीं कक्षा का फाइनल रिजल्ट अच्छा नहीं आया. पापा ने रिजल्ट देखा तो बौखला गए. चिल्ला कर बोले, ‘‘बंद करो इस की पढ़ाईलिखाई. बहुत पढ़ लिया इस ने. अब शादी कर देंगे.’’

श्रुति सहम गई. कहीं यह खिलौना भी पापा छीन न लें. यह सोच कर रोने लगी. अब वह 10वीं कक्षा में आ गई थी. फाइनल एग्जाम में किसी भी तरह उसे अच्छे नंबर लाने थे. वह मन लगा कर पढ़ने लगी ताकि एग्जाम तक उस की परफौर्मैंस सुधर जाए. इधर जतिन भी दूसरी जौब करने लगा था. अब वह श्रुति को हर समय नजर नहीं आ सकता था. वह कभीकभार ही मिलने आ पाता. श्रुति भी उस से कम से कम बातें करती. एग्जाम में वह अच्छे नंबर ले कर पास हो गई. समय धीरेधीरे बीतता गया और अब श्रुति उस लड़के से बातचीत भी बंद कर चुकी थी. देखतेदेखते वह 12वीं की भी परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर गई. अच्छे अंकों से पास करने से उसे अच्छे कालेज में दाखिला भी मिल गया.

कालेज के पहले दिन वह बहुत अच्छे से तैयार हुई. कुछ दिनों पहले ही बालों में रिबौंडिंग भी करा चुकी थी. जींस और टीशर्ट के साथ डैनिम की जैकेट और खुले बालों में काफी स्मार्ट लग रही थी. उस ने खुद को मिरर में निहारा और इतराती हुई सहेली के साथ निकल पड़ी.

कालेज गेट के पास अचानक वह सामने से आते एक लड़के से टकरा गई. सौरी कहते हुए उस लड़के ने श्रुति के हाथ से गिरा हैंडबैग उसे थमाया और एकटक उसे निहारने लगा. श्रुति का दिल तेजी से धड़कने लगा. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला वह लड़का श्रुति को पहली नजर में भा गया था. वह दूर तक पलटपलट कर उस लड़के को देखती रही.

कालेज में पूरे दिन श्रुति की नजरें उसी लड़के को ढूंढ़ती रहीं. लंच में वह कैंटीन में दिखा तो श्रुति मुसकरा उठी. वह लड़का भी हैलो कहता हुआ उस के पास आ गया. दोनों ने देर तक बातें कीं और एकदूसरे का फोन नंबर भी ले लिया. घर जा कर भी उन के बीच बातें होती रहीं. कालेज के पहले दिन हुई दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई.

श्रुति के पास जब से आकाश नाम का यह नया खिलौना आया वह पुराना खिलौना यानी जतिन को भूल गई. अब कभी जतिन उसे फोन कर बात करने की कोशिश भी करता तो वह उसे इग्नोर कर देती, क्योंकि वह अपना सारा समय अब अपने बिलकुल नए और आकर्षक खिलौने यानी आकाश के साथ जो बिताना चाहती थी. Hindi Story

Story In Hindi: पानी चोर – क्या हुआ जब पकड़ी गई कल्पना

Story In Hindi: रात के तकरीबन 2 बजे थे. कल्पना ने अपना कई दिनों से खाली पड़ा घड़ा उठाया और उसे साड़ी के पल्लू से ढक कर दबे पैर घर से चल पड़ी. करीब 15 मकानों के बाद वह एक कोठी के सामने रुक गई.

कल्पना को कोठी की एक खिड़की अधखुली नजर आई. उस ने धीरे से पल्ला धकेला, तो खिड़की खुल गई. उस की आंखें खुशी से चमक उठीं. वह उस खिड़की को फांद कर कोठी में घुस गई. कोठी के अंदर पंखों व कूलरों की आवाजों के अलावा एकदम खामोशी थी. लोग गहरी नींद में सो रहे थे.

कल्पना एक कमरा पार कर के दूसरे कमरे में पहुंची. वहां अलमारी अधखुली थी, जिस में से नोटों की गड्डियां व सोने के गहने साफ दिखाई दे रहे थे. कल्पना उन्हें नजरअंदाज करती हुई आगे बढ़ गई और तीसरे कमरे में पहुंची. वहां कई टंकियों में पानी भरा हुआ था.

कल्पना ने अपना घड़ा एक टंकी में डुबोया और पानी भर कर जिस तरह से कोठी में दाखिल हुई थी, उसी तरह से पानी ले कर अपने घर लौट आई.

‘‘पानी ले आई कल्पना. जब मैं ने देखा कि घड़ा घर पर नहीं है, तो सोचा कि तू पानी लेने ही गई होगी,’’ कल्पना के अधेड़ पति शंकर ने कहा, जो 2 महीने से मलेरिया से पीडि़त हो कर चारपाई पर पड़ा था.

‘‘जी, पानी मिल गया. आप पानी पी कर अपनी प्यास बुझाएं. मैं दूसरा घड़ा भर कर लाती हूं. अजीत उठे, तो उसे भी पानी पिला दीजिएगा,’’ कल्पना ने पानी से भरा गिलास देते हुए कहा.

शंकर ने पानी पी कर अपनी प्यास बुझाई. 2 दिनों से इस घर के तीनों लोगों ने एक बूंद पानी भी नहीं पीया था. अजीत तो कल्पना का दूध पी लेता था, मगर कल्पना और शंकर प्यास से बेचैन हो गए थे.

कल्पना ने पानी से भरा हुआ दूसरा घड़ा भी ला कर रख दिया. जब वह तीसरा घड़ा उठा कर बाहर जाने लगी, तब शंकर ने पूछा, ‘‘आज भीड़ नहीं है क्या? तू ने पानी पीया? टैंकर कहां खड़ा है? क्या आज सरपंच ने टैंकर अपने घर में खाली नहीं किया?’’

‘‘आप आराम कीजिए, मैं अभी यह घड़ा भी भर कर लाती हूं,’’ कह कर कल्पना तीसरा घड़ा उठा कर चली गई.

इस बार भी कल्पना उसी तरह कोठी में दाखिल हुई और घड़ा टंकी में डुबोया. घड़े में पानी भरने की आवाज से अब की बार कोठी का कुत्ता जाग कर भूंकने लगा.

तभी कल्पना को बासी रोटी के टुकड़े एक थाली में पड़े दिखाई दिए. कल्पना ने रोटी का टुकड़ा उठा कर कुत्ते की ओर फेंका और घड़ा उठा कर तीर की मानिंद कोठी के बाहर हो गई.

तभी एक काले से आदमी ने वहां आ कर तेज आवाज में कल्पना से पूछा, ‘‘कौन हो?’’

कल्पना बिना कुछ कहे आगे बढ़ती गई. वह आवाज पहचान गई थी. वह सरपंच राम सिंह ठाकुर की आवाज थी.

सरपंच ने कल्पना का पीछा करते हुए कहा, ‘‘चोर कहीं की, पानी चोर. शर्म नहीं आती पानी चुराते हुए.’’

इतना कह कर सरपंच ने कल्पना को दबोच लिया. उस ने खुद को छुड़ाना चाहा, तो सरपंच बोला, ‘‘मैं अभी ‘पानी चोर’ कह कर शोर मचा कर सारे गांव वालों को जमा कर दूंगा. भलाई इसी में है कि तू वापस कोठी चल और मुझे खुश कर दे. मैं तेरी हर मुराद पूरी करूंगा.’’

‘‘चल हट,’’ हाथ छुड़ाते हुए कल्पना ने कहा.

सरपंच ने जब देखा कि कल्पना नहीं मान रही है, तो उस ने ‘चोरचोर, पानी चोर’ कह कर जोरजोर से आवाजें लगानी शुरू कर दीं.

आवाज सुन कर गांव वाले लाठी व फरसा ले कर कोठी के पास जमा हो गए. कुछ लोग लालटेनें ले कर आए.

मामला जानने के बाद कुछ लोग कल्पना से हमदर्दी जताते हुए कह रहे थे कि बेचारी क्या करती, 2 दिनों से उसे पानी नहीं मिला था. दूसरी ओर सरपंच के चमचे कह रहे थे कि इस पानी चोर को पुलिस के हवाले करो.

‘‘ऐसा मत करो, बेचारी गरीब है. छोड़ दो बेचारी को,’’ एक बूढ़ी औरत ने हमदर्दी जताते हुए कहा.

किसी ने कल्पना के पति शंकर को जा कर बताया कि कल्पना सरपंच के घर से पानी चुराते हुए पकड़ ली गई है और उसे थाना ले जा रहे हैं.

बीमार शंकर भागाभागा आया और सरपंच के पैरों पर गिर कर कल्पना की ओर से माफी मांगने लगा. मगर ठाकुर ने उसे पैरों की ठोकर मार दी और कल्पना को ले कर थाने की ओर चल पड़ा. बेचारा शंकर यह सदमा बरदाश्त न कर सका और वहीं हमेशा के लिए सो गया.

कल्पना को ले कर जब सरपंच और उस के चमचे थाने पहुंचे, तो थानेदार ने पूछा, ‘‘क्या हो गया? यह लड़की कौन है? इसे बांध कर क्यों लाए हो?’’

सरपंच ने थानेदार को नमस्ते करते हुए कहा, ‘‘जी, मैं गांव डोगरपुर का सरपंच ठाकुर राम सिंह हूं. इस औरत ने मेरी हवेली में घुस कर चोरी की है. मैं ने इसे रंगे हाथों पकड़ा है और आप के पास शिकायत करने आया हूं,’’ सरपंच ने कहा.

‘‘कितना माल यानी मेरा मतलब है कि कितना सोनाचांदी व रुपए चोरी किए हैं इस ने?’’ थानेदार ने पूछा.

‘‘जी, रुपए या सोनाचांदी नहीं, इस ने तो एक घड़ा पानी मेरे घर में घुस कर चुराया है.

‘‘समूचे इलाके के लोग बूंदबूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, वे 15 किलोमीटर पैदल चल कर मुश्किल से एक घड़ा पानी ले कर लौटते हैं.

‘‘इस की हिम्मत तो देखिए साहब, खिड़की फांद कर पानी चुरा कर ले जा रही थी,’’ सरपंच ने बताया.

‘‘क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘आप रिपोर्ट लिख कर इस औरत को जेल भेज दो,’’ सरपंच ने कहा.

‘‘जाओ मुंशीजी के पास रिपोर्ट लिखवा दो.’’

‘‘मुंशीजी, रिपोर्ट लिखाने से पहले सरपंच को अच्छी तरह समझा देना,’’ थानेदार ने मुंशीजी को आवाज लगा कर कहा.

मुंशीजी ने सरपंच को एक ओर ले जा कर उस के कान में कुछ कहा.

‘‘अरे हैड साहब, मैं कई सालों से सरपंच हूं. मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि बिना लिएदिए आजकल कोई काम नहीं होता है,’’ सरपंच ने जेब से नोटों की 2 गड्डियां निकाल कर मुंशीजी के हवाले कर दीं.

मुंशीजी ने सरपंच की एफआईआर दर्ज कर ली. कल्पना को थानेदार के सामने पेश किया, ‘‘श्रीमानजी, यह वही लड़की है, जिस ने मेरे घर से एक घड़ा पानी चुराया है.’’

थानेदार ने कल्पना को नीचे से ऊपर तक घूरा और बोला, ‘‘क्या तू ने चोरी की? चोरी करते वक्त तुझे शर्म नहीं आई?’’

कल्पना पत्ते की तरह कांप रही थी. उस के रोने से मुरझाए हुए चेहरे पर आंसुओं की लाइनें नजर आ रही थीं.

दूसरे दिन कल्पना को अदालत में पेश किया गया. वहां सरपंच के साथ उस के चमचे कल्पना के खिलाफ गवाही देने के लिए आए हुए थे.

पुलिस ने पानी से भरा हुआ वह घड़ा अदालत में पेश किया, जो कल्पना के पास से जब्त किया गया था.

जज ने सब से पहले कल्पना की ओर देखा, जो कठघरे में सिर नीचा किए खड़ी थी.

अदालत ने गवाहों के लिए पुकार लगवाई. सरपंच के चमचों ने अदालत को बताया कि कल्पना ने पानी चुराया, जिसे सरपंच ने रंग हाथों पकड़ लिया. मगर मौके पर कोई गवाह नहीं था. सभी गवाहों ने यही बताया कि सरपंच ने उन्हें बताया.

जज ने कल्पना से पूछा, ‘‘क्यों, क्या तुम ने एक घड़ा पानी सरपंच के घर से चुराया?’’

‘‘जी, एक घड़ा नहीं, बल्कि 3 घड़े पानी मैं सरपंच के घर से लाई. पर उसे चुराया नहीं, बल्कि अपने हिस्से का ले कर आई,’’ कल्पना ने बेधड़क हो कर बताया.

‘‘अपने हिस्से का… चुराया नहीं, लाई का क्या मतलब है?’’ जज ने पूछा.

‘‘इस भयंकर गरमी में गांव के सारे कुएं, हैंडपंप व तालाब सूख गए हैं. एकएक बूंद पानी के लिए गांव वाले तरस रहे हैं. प्यास से मर रहे हैं.

‘‘पंचायत ने गांव में पानी का इंतजाम किया है. हमारे गांव में पानी के लिए सिर्फ 2 टैंकरों का इंतजाम है, जिस में से एक टैंकर सरपंच अपने घर खाली करा लेता है, जिसे वह चोरी से बेचता है. दूसरे टैंकर का पानी गांव वाले छीनाझपटी कर के लेते हैं.

‘‘मैं वह अभागी औरत हूं, जिसे कई दिनों से एक बूंद पानी नहीं मिला. बीमार पति घर में हैं. मैं सरपंच के घर से अपने हिस्से का पानी ही लाई हूं.

‘‘मेरी बातों पर यकीन न हो, तो इन गांव वालों से पूछ लीजिए. मैं अदालत से गुजारिश करती हूं कि मैं पानी चोर नहीं हूं, बल्कि असली पानी चोर तो सरपंच है. सरपंच के घर की टंकियां पानी से भरी पड़ी हैं.’’

अदालत में गांव वालों ने भी कहा कि यह बात सच है. कल्पना सही कह रही है.

वह 50 रुपए प्रति घड़े की दर से पानी बेचता है. अभी इस वक्त भी सरपंच के घर पानी के लिए ग्राहकों की लंबी कतार लगी है.

सरपंच बगलें झांकने लगा. जज को सरपंच व पुलिस की जालसाजी की बू इस मुकदमे में आने लगी. कल्पना को अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया और असली चोर को पकड़ने के लिए जांच के आदेश जारी कर दिए गए.

कल्पना जब अपने गांव पहुंची, तो उसे पता चला कि किसी ने रात में ही उस के पति शंकर, जो सदमे से उसी दिन चल बसा था, की लाश फूंक दी थी.

जब कल्पना अपने घर पहुंची, तो उस का अबोध लड़का अजीत भी हमेशा के लिए सोया हुआ मिला. कल्पना ने जैसे ही अपने बेटे की लाश को देखा, तो उस की जोर से चीख निकल पड़ी.

‘‘अजीत… अजीत…’’ कह कर वह बेहोश हो गई. गांव वाले जो कल्पना के खिलाफ थे, अब सरपंच के खिलाफ नारेबाजी करने लगे, ‘पानी चोर… सरपंच पानी चोर… असली चोर सरपंच…’

कल्पना पागल हो चुकी थी. वह अपने बेटे की लाश को बता रही थी, ‘‘बेटे, मैं पानी चोर नहीं हूं, असली पानी चोर सरपंच है.’’

इतना कह कर कल्पना कभी हंसती, तो कभी रोने लगती थी.

पुलिस ने सरपंच के घर से लबालब भरी पानी की कई टंकियों को जब्त किया. जो पानी खरीदने आए थे, उन्हें गवाह बना कर ठाकुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. Story In Hindi

Best Hindi Story: सपनों का सफर – परिणीता के सपनों में जीता रवि

Best Hindi Story: उस ने आज फिर शाम होते ही खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया. मुझे उलझन होने लगी. मैं खुद को रोक नहीं पाया और अब मैं उस के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.

थोड़ी देर में उस ने दरवाजा खोला, ‘‘क्या है अजय, मैं कुछ देर अकेले रहना चाहता हूं. प्लीज, मुझे छोड़ दो…’’ वह अजीब सी दर्दभरी सूरत बना कर एक तरह से मुझ से गुजारिश करने लगा.

मुझे यह देख कर घबराहट होने लगी. मैं ने उस के कमरे में तकरीबन दाखिल होते हुए पूछा, ‘‘क्यों इतनी परेशानी हो रही है? मैं दोस्त हूं तुम्हारा. मुझे अपना दर्द बताओ. कहने से दर्द कम हो जाता है.

‘‘अकेले घुटघुट कर सहने से अच्छा है कि दर्द को कह दिया जाए,’’ मैं देख रहा था कि उस की आंखें भर आई थीं और लग रहा था कि अभी वह रो देगा.

मैं ने उस की बांह पकड़ कर सोफे पर बैठा दिया और खुद उस के पास ही बैठ गया, ‘‘रवि, मुझे बताओ कि ऐसा क्या है, जिस ने तुम्हें इतना अकेला बना दिया है? ऐसी कौन सी बात है, जो तुम अपने बचपन के दोस्त से भी नहीं बताना चाहते? इस तरह से घुटते रहोगे, तो बीमार पड़ जाओगे. मुझे अपना सारा दर्द बताओ,’’ मैं ने उसे समझाया.

रवि इतना सुनते ही बच्चों की तरह फूटफूट कर रोते हुए लिपट गया, ‘‘अजय, मैं जीना नहीं चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा है. मेरे जीने का मकसद ही खत्म हो गया है.’’

‘‘मुझे बताओ कि आखिर बात क्या है?’’ मैं ने उसे सहलाते हुए कहा.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद रवि कुछ संभलते हुए बोला, ‘‘अजय, मेरी जिंदगी में तूफान है और मैं एक ऐसी जगह खड़ा हूं, जहां से न तो पीछे जा सकता हूं और न आगे…’’

थोड़ी देर की खामोशी के बाद रवि ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘अजय,  पहली बार मुझे जिंदगी में परिणीता से मिलने के बाद ऐसा लगा था कि कोई अनजानी सी ताकत है, जो हमें करीब लाने की कोशिश कर रही है. यह सही था कि मुझे उस से प्यार हो गया था, लेकिन धीरेधीरे हम कब एकदूसरे के होते चले गए, हमें खुद ही पता न चला.

‘‘परिणीता मेरी जिंदगी में एक खूबसूरत सपने की तरह थी और हम दोनों इस सपने को जीना चाहते थे, लेकिन जैसा कि हमेशा होता रहा है, परिणीता के घर वालों को हमारे बारे में पता चला और परिणीता पर पहरा लगा दिया गया. शादी के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी गई. फिर एक दिन मैं शाम को घर लौट रहा था कि गली के मोड़ पर परिणीता की आवाज सुनाई दी.

‘‘मैं ठिठक गया. वह बोली, ‘रवि, मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है. मेरे साथ चलो.’

‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘ऐसी क्या बात है, जो तुम यहां नहीं कह सकतीं?’

‘‘वह बोली, ‘मेरे साथ चलो, मैं यहां नहीं कह सकती.’

‘‘यह बात उस ने मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए कही. मैं चल पड़ा.

‘‘नवीन पार्क पहुंच कर उस ने कहना शुरू किया, ‘रवि, मैं यहां से कहीं दूर जाना चाहती हूं…’

‘‘मैं ने घबरा कर कहा, ‘क्यों परी, किसी ने कुछ कहा क्या?’

‘‘वह बोली, ‘रवि, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले न तुम्हें पसंद करते हैं और न ही मेरा आगे पढ़ना पसंद करते हैं. आज ही पता चला है कि किसी गांव में बहुत रूढि़वादी परिवार में मेरी शादी तय हो रही है. मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी…’

‘‘मैं ने उसे समझाया, ‘परी, तुम परेशान मत हो. कोई न कोई उपाय निकल जाएगा.’

‘‘वह बोली, ‘नहीं रवि, कोई मदद नहीं करेगा. तुम तैयारी कर लो. हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे और यहां से बहुत दूर चले जाएंगे.’

‘‘परिणीता एक बहुत ही होनहार लड़की है. उस का सपना एक कामयाब मैनेजर बनने का है. पर मुझे डर लग रहा है कि उस के घर वाले जबरदस्ती उस की शादी कहीं भी करा देंगे और उस के सपने पूरे नहीं हो पाएंगे. मेरे लिए इस से बड़ी हार और कुछ नहीं हो सकती…

‘‘अजय, तुम उस के पिता से मिलो और उन्हें समझाओ. वे परी के सपनों के साथ इस तरह की नाइंसाफी न

करें. मैं खुद को रोक लूंगा. वे कहेंगे तो मैं कहीं दूर चला जाऊंगा, लेकिन परिणीता को उसे अपना सपना पूरा करने दें…’’ इतना कह कर रवि चुप

हो गया. उस की आंखें भर आई थीं.

मैं ने उसे तसल्ली दी और कहा कि मैं कोशिश करूंगा परिणीता के पिता से मिलने की, लेकिन दिक्कत यह थी कि मैं इस के पहले कभी परिणीता के पिता से मिला नहीं था और मेरा उन से पहले से कोई ज्यादा परिचय भी नहीं था.

बहरहाल, मैं ने रवि से वादा तो कर ही लिया था और उस की घबराहट देखने के बाद इस के अलावा और कोई चारा भी नहीं था. उसे उस के घर छोड़ कर मैं लौट आया और सोचने लगा कि कैसे परिणीता के पिता से मिला जाए और इस मसले पर किस तरह बात की जाए कि परिणीता की पढ़ाई न रुके और वह अपने सपने को पूरा कर सके.

अगले दिन मैं अपने औफिस जाने के लिए निकला और सोचा कि आज शाम को लौटते हुए परिणीता के पिता से मिलने जाऊंगा.

औफिस पहुंच कर मैं अपने काम में बिजी हो गया था और लौटने के समय एक डिपार्टमैंटल स्टोर में कुछ जरूरी सामान खरीदने लगा.

इसी बीच मुझे लगा कि कोई बहुत गौर से मुझे देख रहा है. मैं ने ध्यान दिया तो मुझे लगा कि कुछ दूरी पर शायद परिणीता ही खड़ी थी और उस के साथ उस की मां भी थीं.

मैं ने बिना समय गंवाए उस की मां के पास पहुंच कर कहा, ‘‘नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं आंटी.’’

‘‘परी, तुम कैसी हो?’’ मैं ने धीरे से परिणीता से पूछा.

‘‘ठीक हूं,’’ उस ने उदास लहजे में जवाब दिया.

मैं ने जानबूझ कर पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई ठीक से चल रही है या नहीं? देखो, अगले महीने यूनिवर्सिटी के मैनेजमैंट कोर्स का इम्तिहान है, फार्म भर देना और तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.’’

‘‘जी, ठीक है,’’ वह औपचारिक रूप से बोली.

‘‘आंटी, आप की तबीयत ठीक है न?’’ मैं ने बात को बढ़ाने के लिए उस की मां

से पूछा.

‘‘अब क्या तबीयत ठीक रहेगी बेटा, उम्र भी हो गई है बस. परी की चिंता लगी है, इस

के हाथ पीले हो जाएं तो मन को

आराम मिले.’’

‘‘अरे आंटी, ऐसी भी क्या जल्दी है. परी एक बहुत ही होनहार लड़की है. उसे आगे पढ़ाइए. शादी तो हो ही जाएगी,’’ मैं ने उस की मां को अपने मतलब की तरफ ले जाने की कोशिश की.

‘‘मैं तो चाहती ही हूं, क्योंकि शादी में भी आजकल लड़के वाले नौकरी वाली लड़की की मांग करते हैं, पर इस के पापा जिद किए हुए हैं और जल्दी शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘आंटी, ऐसी क्या बात है कि अंकल जैसे समझदार आदमी भी इस तरह जिद कर बैठे हैं?’’

‘‘असल में इस के पापा रवि को पसंद नहीं करते और परी को यहां से दूर भेजना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन आंटी, रवि की वजह से परी की जिंदगी, उस का भविष्य बरबाद करना क्या सही है? रवि से ज्यादा अहम परी की पढ़ाई, उस का भविष्य है, उस के सपने हैं और हर मांबाप की सब से बड़ी जिम्मेदारी अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने में मदद करना है, न कि किसी छोटी समस्या को ले कर बच्चों के भविष्य को निराशा में धकेल देना,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं समझ सकती हूं और लड़के वाले भी हर जगह नौकरी वाली लड़की की मांग करते हैं, इसलिए भी मैं नहीं चाहती कि परी की पढ़ाई रुके.’’

‘‘आंटी, आप कहें तो मैं अंकल से बात करूं?’’

‘‘कोशिश कर लो, मगर मुझे नहीं लगता कि वे मानेंगे,’’ परी की मां की आवाज में निराशा झलक रही थी.

‘‘ठीक है आंटी, मैं बात करूंगा. लेकिन जब मैं बात करूं तो आप भी मौजूद रहेंगी. मैं कल सुबह ही आऊंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा,’’ इतना कह कर मां आगे बढ़ गईं और परिणीता थोड़ा पीछे रही. मैं ने उसे देख कर कहा, ‘‘बिलकुल परेशान मत होना. सब ठीक हो जाएगा.’’

मेरी बातें सुन कर परिणीता को थोड़ी तसल्ली हुई.

अगले दिन मैं परिणीता के पिता से मिलने उस के घर पहुंचा तो देखा कि वे कहीं बाहर जा रहे थे.

‘‘नमस्ते अंकल,’’ मैं उन के सामने पहुंच कर बोला.

‘‘नमस्ते बेटा, क्या हाल है? अब तो कम ही दिखाई देते हो,’’ वे बोले.

‘‘अंकल, काम बहुत बढ़ गया है. औफिस में जल्दी जाना होता है और लौटने में भी देर हो जाती है, इसलिए कहीं भी चाह कर नहीं जा पाता,’’ मैं ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘देखो बेटा, अकेले रहोगे तो ऐसे ही परेशान रहोगे. या तो घर से किसी को बुला लो और नहीं तो बेहतर होगा कि शादी कर लो, सब सही हो जाएगा.’’

‘‘अंकल, मेरी सगाई हो चुकी है और शादी अगले साल होगी. तब तक मेरी होने वाली वाइफ की भी बीएड पूरी हो जाएगी. हालांकि मेरे मातापिता चाहते थे कि इसी साल शादी हो जाए, लेकिन ऋचा यानी मेरी होने वाली पत्नी से पता चला कि वह बीएड करना चाहती है, तो मेरे मातापिता और मैं ने इसे मान लिया,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों बेटा, शादी के बाद भी वह बीएड कर सकती है?’’ अंकल ने अपना नजरिया बताया.

‘‘अंकल, शादी हो जाने के बाद हर लड़की के हालात बदल जाते हैं और मानसिकता में बदलाव आ जाता है. लड़की ससुराल में रह कर पढ़ाई कर सकती है, लेकिन उसे बहुतकुछ खोने का डर भी रहता है और अपने मातापिता के यहां रह कर वह अपनी पढ़ाई अच्छी

तरह से बिना किसी दबाव के आसानी

से पूरी कर सकती है,’’ मैं ने अंकल

को प्रैक्टिकल तरीके से समझाने की कोशिश की.

‘‘हां, तुम्हारी बात कुछ सही है. चलो, ठीक है, बीएड कर लेने के बाद वह तुम्हारे लिए भी मददगार साबित होगी,’’ हम लोग बात करते हुए थोड़ी दूर बाजार तक आ गए थे.

‘‘अंकल, बुरा मत मानना, पर आप परी को आगे पढ़ने से क्यों मना कर रहे हैं? जब वह एमबीए करना चाहती है, तो उसे करने दीजिए. शादी तो बाद में भी हो जाएगी,’’ अपने मुद्दे पर आते हुए मैं ने कहा.

‘‘देखो अजय, परी का मामला कुछ अलग है. मेरी भी इच्छा थी कि परी एमबीए करने के बाद ही अपने घर से विदा हो, लेकिन कुछ हालात बदल गए हैं.’’

‘‘शायद रवि के बारे में आप कुछ कहना चाहते हैं. मेरे विचार से इस मसले पर भी समझदारी से काम लेना ही मुनासिब होगा. जहां तक परी की पढ़ाई की बात है, तो मुझे पूरा यकीन है कि रवि का मसला कोई बाधा नहीं बनेगा,’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, रवि एक समझदार लड़का है, लेकिन उस ने परी के साथ रिश्ता बनाया, यह सोच कर मुझे बहुत झटका लगा.’’

‘‘अंकल, आप की चिंता जायज है. लेकिन परी मेरे लिए बहन की तरह है और इस आधार पर मैं कह सकता हूं कि सिर्फ रवि ही नहीं, बल्कि परी भी बहुत समझदार है और ये दोनों ही बहुत भावुक हैं, इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, जिस से दोनों के परिवारों को कोई चिंता हो,’’ हम बात करते हुए एक पार्क में बैंच पर बैठ गए थे.

‘‘अजय, यह कैसे मुमकिन है कि परी इन हालात में पढ़ाई को एकाग्रता से पूरी कर पाएगी?’’ अंकल ने काफी सावधानी के साथ कहा.

‘‘इसलिए कि रवि खुद चाहता है कि परी को आगे एमबीए करने में कोई बाधा नहीं आए. वह तो जब तक परी की पढ़ाई पूरी न हो जाए, अपना ट्रांसफर कहीं दूर करा लेना चाहता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों… रवि इतनी परेशानी किसलिए उठाएगा? उसे ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अंकल, इसलिए कि ऐसा करना जरूरी है. सच तो यह है कि जब 2 लोग आपस में सच्चा प्यार करते हैं, तो वे सिर्फ और सिर्फ एकदूसरे को खुश देखना चाहते हैं, चाहे इस के लिए उन्हें अपनी खुशी, अपनी भावनाओं को आहत ही क्यों न करना पड़े और इस में कोई शक नहीं है कि उन दोनों का प्यार एक हकीकत है…’’

‘‘अजय, यह प्यार नहीं है. यह इस उम्र की भावनाओं का उभार है. यह अकसर होता है.’’

‘‘मैं आप को अपनी समझ से कह रहा हूं. आप को मानने के लिए कोई दबाव नहीं दे रहा हूं. अगर आप को बुरा लगा तो मुझे माफ कर दें.’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे बुरा नहीं लगा. तुम इसे गलत मत समझना,’’ अंकल की आवाज में भर्राहट सुनाई दे रही थी.

‘‘अंकल, आप भी मेरे पिता समान हैं. मैं आप की किसी बात का बुरा नहीं मान सकता और मैं परी को भी अपनी बहन समझता हूं, इसलिए इस हक से ही कुछ कहने की हिम्मत कर सका,’’ मैं ने अंकल को संभालने की कोशिश की.

अचानक ही अंकल ने मुझे अपने गले से लगा लिया और बुरी तरह से फूटफूट कर रोने लगे, ‘‘बेटा, मैं क्या करूं. परी मेरी एकलौती बेटी है और कभी भी मैं ने उसे किसी बात के लिए मना नहीं किया, उस की हर इच्छा पूरी की, पर आजकल मुझे क्या हुआ… मैं कैसे इतना कठोर हो गया…’’

मैं अंकल को समझाने और संभालने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर में मैं अंकल को घर छोड़ कर चला गया. हालांकि देर हो गई थी. औफिस में बौस को भी देरी की वजह समझानी पड़ी, पर मन में एक संतोष हो रहा था कि सबकुछ अच्छे तरीके से मैं ने उन लोगों को समझा दिया.

शाम को घर आने के बाद फोन बजने लगा, ‘‘हैलो…’’

‘अजय, मैं परी का पापा बोल रहा हूं. तुम घर आ गए?’

‘‘जी अंकल, मैं घर आ गया हूं.’’

‘बेटा, कुछ बात करनी थी. मैं तुम से मिलना चाहता हूं. क्या मैं इस समय तुम से मिलने आ सकता हूं?’

‘‘जी, बिलकुल आ सकते हैं, लेकिन आप परेशान न हों, मैं खुद आ रहा हूं.’’

‘नहीं बेटा, मैं आ रहा हूं,’ अंकल ने फोन रख दिया. थोड़ी देर में वे मेरे घर आए और अंदर आ कर बैठ गए.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है अंकल? कुछ परेशानी है?’’

‘‘नहीं अजय, मैं ने काफी सोचा और परी की मम्मी से भी बात की. परी की पढ़ाई पूरी कराने के बाद ही हम उस की शादी करेंगे, यह हम लोगों ने तय कर लिया है.’’

‘‘अंकल, यह तो बहुत ही अच्छी बात है. आजकल लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाने में मांबाप को पूरा सहयोग देना चाहिए. बहुत ही होनहार लड़की है परी. मुझे बहुत खुशी हुई कि अब परी अपने सपनों को पूरा कर पाएगी,’’ मैं बहुत खुश हुआ. मुझे लगा कि मेरी कोशिश और रवि का पवित्र प्यार सफल हो गया.

‘‘बेटा, तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने परी को काफी टैंशन दी है. मैं

उस से माफी मांगूंगा. पर बेटा, तुम्हें

परी को एडमिशन दिलाने में मदद करनी होगी.’’

‘‘जरूर अंकल, मैं पूरी तरह से मदद करूंगा. आखिर वह मेरी भी बहन ही तो है. आप चिंता न करें.’’

‘‘अगर बहन मानते हो, तो एक जिम्मेदारी और निभानी पड़ेगी. कर सकोगे?’’

‘‘आप बोलिए तो सही, मैं हर जगह परी के भाई होने की जिम्मेदारी निभाऊंगा और मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘तो तुम्हें रवि को बताना होगा कि भले हम परी की शादी उस के एमबीए पूरा करने पर करेंगे, लेकिन सगाई हम इस महीने में ही कर देना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है अंकल, लेकिन क्या किसी लड़के को देखा है और बातचीत पक्की हुई है?’’

‘‘हां देखा और समझा भी है. परी को पसंद भी है, इसलिए रवि से कहना कि अपने मातापिता को मुझ से मिलवा दे, ताकि सगाई की तारीख जल्द ही तय कर ली जाए,’’ अंकल मुसकरा रहे थे और उन के चेहरे पर सुकून नजर आ रहा था. Best Hindi Story

Hindi Family Story: फिर सुहागन हो गई – विधवा रूमी का दर्द

Hindi Family Story: 10 मिनटों में नितिन की कहानी खत्म हो गई. वह जमशेदपुर में एक कर्तव्यनिष्ठ और होनहार बैंक अधिकारी था. मध्यरात्रि के अंधेरे में टाटारांची हाइवे पर उस की मोटरसाइकिल की सामने से आती हुई स्कौर्पियो से टक्कर हो गई. वह गिर पड़ा, लुढ़कते हुए उस का सिर माइलपोस्ट से जा टकराया और ब्रेन हैमरेज हो गया. रक्त अधिक बहने के कारण 10 मिनटों में ही उस के प्राण पखेरू उड़ गए. स्कौर्पियो वाला वहां से सरपट भाग गया. 38 वर्षीय नितिन की 25 वर्षीया पत्नी रूमी विवाह के 2 वर्षों के भीतर पति खो बैठी.

ऐक्सिडैंट और मौत की खबर रात को जमशेदपुर पहुंचते ही घर के सभी सदस्य दहाड़ें मारमार कर रोने लगे. किसी को भी सुध नहीं थी. नितिन की मां और रूमी की तो रोरो कर हालत खराब हो गई.

सुबह हो चुकी थी. महल्ले वालों ने शोक समाचार सुना और वे मातमपुरसी के लिए आने लगे. नितिन के पिता विरेंद्र बाबू अपनी पत्नी को सांत्वना दे रहे थे, गले लगा रहे थे. लेकिन रूमी अकेली पड़ गई थी, किसी को उसे सम?ाने की सुध नहीं रही. आने वाले कईर् पड़ोसी फुसफुसाहट में बातें कर रहे थे, उन के हावभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रूमी ही नितिन की मृत्यु का कारण हो.

समय बीता, वर्ष बीते, विरेंद्र बाबू और उन की पत्नी रूमी का खयाल बेटी जैसा रख रहे थे.एक दिन दोनों ने रूमी को जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराया. विरेंद्र बाबू रूमी से बोले, ‘‘बेटे, तुम स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लो, जो होना था हो गया, तुम अपने पैरों पर खड़ी होने का प्रयास करो.’’

‘‘पापाजी, मैं प्राइवेट से बीए करने को तैयार हूं. आप किताबें और कुछ जरूरी सामान मंगवा दें.’’

इंटैलिजैंट तो थी ही, रूमी ने 3 वर्षों में ग्रैजुएशन कर लिया, नंबर अच्छे आए. उस ने 18 महीनों का कंप्यूटर डिप्लोमा कोर्स भी कर लिया. उसे फिर अच्छा रैंक मिला. प्लेसमैंट सेल ने कई आईटी  कंपनियों को रूमी के लिए अनुमोदन भी किया.

एक आईटी कंपनी से वौक इन इंटरव्यू का कौल आया. रूमी स्मार्ट थी, उस में दृढ़ आत्मविश्वास भी था. उस का चयन एनालिस्ट के लिए हो गया.

कंपनी के इंजीनियरों के बीच उस के काम की प्रशंसा होने लगी. सहकर्मीगण उसे आ कर बधाई भी देते. रूमी चुपचाप उन के अभिवादन को स्वीकार करती और मौनिटर में लग जाती. वह अपने काम से वास्ता रखती, किसी से ज्यादा बातें या हंसीमजाक से अपने को दूर ही रखती.

औफिस में अब तक उम्रदराज सीनियर मैनेजर हुआ करते थे, लेकिन एक नए इंजीनियर ग्रैजुएट ने सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर जौइन किया. औफिस में एक नौजवान बौस के रूप में आए अंकित ने पदभार ग्रहण के बाद औफिस के सभाकक्ष में सभी कर्मचारियों को संबोधित किया और समय की पाबंदी व कार्यलक्ष्य का दृढ़ता से पालन करने का आग्रह किया.

सभी को खबर हो गई कि 27 वर्षीय अंकित श्रेष्ठ कुंआरा है. बारीबारी से अंकित ने सभी को अपने कक्ष में बुला कर परिचय किया, रूमी से भी.

राउंड के दौरान अंकित कभीकभी रूमी के पास आ कर कुछ सवालजवाब करता. ऐसा सिलसिला चलता रहा. अंकित राउंड में कर्मचारियों से मिल कर उन की कार्यप्रगति के बारे में जानकारी लेता रहता था.

इस बीच कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला. अंकित को एक टीम बनानी पड़ी और टीम लीडर के लिए रूमी का चयन किया गया. अंकित ने रूमी को अपने कक्ष में बुलाया और कहा, ‘‘आप के काम को देख कर मैं ने आप को टीम लीडर बनाया है. मैसेज कर रहा हूं, टीम मैंबर की लिस्ट भी भेज रहा हूं. आप काम संभाल लीजिए. कभी कठिनाई हो तो मु?ा से संपर्क करें.’’

‘‘जी, सर.’’

रूमी को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि अंकित पहली नजर में उसे दिल दे बैठा था.

प्रोजैक्ट का काम जोरशोर से शुरू हो चुका था. इस सिलसिले में रूमी की अंकित के कक्ष में जाने की तीव्रता भी बढ़ चुकी थी. ऐसे ही एक दिन रूमी ने कक्ष में प्रवेश किया तो अंकित फोन पर बातें कर रहा था. रूमी वापस लौटने लगी तो अंकित ने हाथ से कक्ष में बैठने का इशारा किया. रूमी बैठ गई.

बातें खत्म होते ही अंकित भी सीट पर बैठ गया और बोला, ‘‘रूमी, काम की बातें तो रोज होती हैं, अब यह बताओ कि कहां रहती हो, पेरैंट्स कहां रहते हैं, इस कंपनी में कब, कैसे आईर्ं?’’ रूमी को थोड़ा अटपटा लगा पर इतने दिनों में रूमी भी अंकित को थोड़ाबहुत जान चुकी थी. इसलिए उस ने अपनी कहानी सुना दी. सुन कर अंकित थोड़ा गंभीर हो गया. बाद में मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रोजैक्ट जल्द तैयार हो जाना चाहिए, अभी तक प्रोग्रैस संतोषजनक है.’’ रूमी जितनी देर बैठी रही, अंकित की आंखें कुछ कहती नजर आईं.

ऐसा सिलसिला चलता रहा. रूमी महसूस कर चुकी थी कि अंकित उस में काफी दिलचस्पी ले रहा है और रूमी ने पाया कि वह भी अंकित की ओर आकर्षित हो रही है. एक अन्य मुलाकात में अंकित ने आखिर कह ही डाला, ‘‘रूमी, आज लंच हम लोग साथ करेंगे, यदि आप को कोई आपत्ति न हो तो.’’रूमी मना नहीं कर पाई. रैस्तरां पास ही था.

लंच में बातें चलती रहीं. रैस्तरां में हलका संगीत भी चलता रहा. डिम लाइट में दोनों की एकदूसरे से आंखें मिल जातीं और लंच के बाद तो अंकित ने रूमी का हाथ पकड़ लिया. रूमी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, लेकिन बोली, ‘‘देखिए, मैं विडो हूं. आप की जौइनिंग रिपोर्ट देखी है, आप से उम्र में 3 साल बड़ी भी हूं.’’

‘‘मैं सब जानता हूं. मैं ने तुम्हारा बायोडाटा देखा है. मु?ो मालूम है, मैं तुम से 3 वर्ष छोटा हूं. फिर भी मैं तुम्हें अपनाना चाहता हूं.’’

‘‘आप के घरवाले राजी होंगे?’’

इस प्रश्न का उत्तर अंकित के पास नहीं था, लेकिन वह खुश था कि रूमी की स्वीकृति मिल गई है.

प्रोजैक्ट रिपोर्ट बन गई थी. रूमी का अंकित के चैंबर में जाना नहीं के बराबर हो गया था. लेकिन राउंड के दौरान अंकित रूमी के कियोस्क में कुछ ज्यादा समय दे रहा था.

औफिस में कानाफूसी होने लगी थी. लोग समझ चुके थे कि अंकित और रूमी के बीच कुछ चल रहा है.रूमी ने अपनी जेठानी को अंकित के बारे में बताया.

‘‘देखो, रूमी, मु?ो इस में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कुछ बातें ठीक से सम?ा लेना. कहीं अंकित तुम्हारे साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहा है, उस के पेरैंट्स की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है, यहां पापाजी, मम्मीजी के क्या विचार हैं, यह सब तुम्हें पहले ही जान लेना चाहिए. वैसे, मैं तुम्हारे साथ हूं, मैं जानती हूं कि तुम गलत फैसला नहीं ले सकती हो.’’

कंपनी कार्यालय की स्थापना के 5 वर्ष पूरे होने पर कौर्पोरेट औफिस से सभी कर्मचारियों को पार्टी देने का निर्देश आया, मुनाफा भी हुआ था. तय हुआ, शहर से दूर ‘डाउन टाउन रिजौर्ट’ में लंच होगा. रविवार का दिन चुना गया. लग्जरी बस किराए पर की गई और निर्धारित समय पर एक अच्छी पार्टी हुई. पार्टी के बाद सभी बस से वापस चल पड़े. अंकित अपनी गाड़ी से गया था.

‘‘रूमी, तुम रुक जाओ, मैं गाड़ी से तुम्हें छोड़ दूंगा. चलो, कौफी पी लेते हैं,’’ अंकित ने सु?ाव दिया.

दोनों वापस रिजौर्ट से रैस्तरां में आ गए और कौफी पीने लगे. अंकित इस बार फैसला कर चुका था कि फाइनल बात करेगा. रूमी के हाथों को अपने हाथों में ले कर उस ने दोहराया, ‘‘मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. मैं शादी करना चाहता हूं.’’

रूमी ने सिर झाका लिया और शरमा सी गई. उस में एक आत्मविश्वास भी था, वह जानती थी अपने बारे में उसे स्वयं फैसला लेना है लेकिन पारिवारिक बंधनों का खयाल भी था.

रूमी तुरंत कुछ बोल नहीं पाई. बस, मुसकरा भर दिया. दोनों वापस चल पड़े.रूमी जिस प्रोजैक्ट की टीम लीडर थी, उसे क्लाइंट के बोर्ड औफ डायरैक्टर्स के सामने प्रेजैंटेशन देने का कार्यक्रम बना. क्लाइंट का कार्यालय पटना में था.

‘‘तुम टीम लीडर हो, प्रोजैक्ट रिपोर्ट प्रेजैंटेशन देने के लिए तुम्हें पटना चलना होगा,’’ अंकित ने कहा.

‘‘पापाजी से पूछना होगा, मैं कल बताऊंगी.’’

‘‘एयर टिकट बुक हो चुका है, मैं भी साथ चल रहा हूं. तुम अपने पेपर्स और लैपटौप अपडेट कर लो. परसों जाना है, जाना तो होगा ही,’’ अंकित ने जोर देते हुए कहा.

विरेंद्र बाबू, रूमी के पटना टूर के बारे में सुन कर चिंतित हो गए.

‘‘बड़ी बहू को साथ ले जाना, वह भी थोड़ा बाहर घूम आएगी,’’ उन्होंने कहा.

‘‘ऐसा नहीं हो सकता, पापाजी, मेरी यात्रा प्लेन से फिक्स है. आप को चिंता नहीं करनी चाहिए. यह सब तो चलता रहेगा.’’

पटना की यात्रा सफल रही, रूमी ने बहुत सुंदर ढंग से प्रोजैक्ट रिपोर्ट का प्रेजैंटेशन दिया. बोर्ड औफ डायरैक्टर्स ने रिपोर्ट को पास कर दिया.

पटना के मौर्य होटल में रात्रिविश्राम था. रूमी और अंकित थोड़ी शौपिंग कर के होटल आ गए. दोनों के अलग कमरे थे.

‘‘रात का खाना कमरे में ही साथ खाएंगे, मैं ने और्डर कर दिया है. खाना तुम्हारे कमरे में आ रहा है,’’ अंकित ने कहा.

दोनों ने साथ खाना खाया. रात देर तक बातें होती रहीं. दोनों की समीपता बढ़ती गई और वह हो गया जो एकांत में रात के पहर बंद कमरे में हो सकता था.

तड़के सुबह अंकित अपने कमरे में चला गया. वापसी की तैयारी होने लगी. रास्तेभर दोनों एक तरह से खामोश रहे लेकिन विदा लेते समय अंकित ने कहा, ‘‘रूमी, अब हमें शादी की तैयारी करनी चाहिए.’’

रूमी यह सुनने को बेताब थी. उस ने भी शादी का मन बना लिया था. अपने बारे में तो वह आश्वस्त थी कि वह अपना फैसला खुद ले सकती थी लेकिन अंकित के पेरैंट्स का क्या रुख हो सकता है, सोच कर चिंतित थी.

अगले दिन लंच के लिए औफिस से बाहर जाना हुआ. ‘‘अंकित, यदि तुम्हारे पेरैंट्स तैयार नहीं हुए तो क्या होगा, तुम उन से बात करो,’’ रूमी ने कहा, ‘‘अगर नहीं माने तो भी क्या तुम मु?ा से शादी करोगे?’’

यह अगरमगर दोनों के दिमाग में चलती रही और इस बीच दीवाली की छुट्टियां आईं.4 दिनों की छुट्टियों में अंकित अपने घर दुर्गापुर चला गया.बहुत हिम्मत कर के उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं और अपना फैसला भी बता दिया.

‘‘शादी मैं रूमी से ही करूंगा. आप लोगों की ‘हां’ चाहिए.’’

मां यह सुन कर सन्न रह गईं, पापा ने सुना तो स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘रूमी से विवाह की मंजूरी नहीं दी जा सकती, तुम नौकरी छोड़ दो और पारिवारिक बिजनैस में लग जाओ, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’

यहां भी अगरमगर होती रही.

दीवाली के दूसरे दिन भी अंकित की छुट्टी थी लेकिन सुबह मौर्निंगवौक के लिए निकला और टैक्सी से जमशेदपुर ड्यूटी जौइन करने चल पड़ा. हां, उस ने मां के नाम एक पत्र लिख छोड़ा था. मां ने कई बार फोन किया. एक बार पापा ने भी फोन किया लेकिन अंकित ने कोईर् जवाब नहीं दिया.

अगले दिन औफिस जाते ही उस ने रूमी को बुलवाया और साफ शब्दों में कहा, ‘‘हमें कोर्टमैरिज करनी है.’’

‘‘मुझे एक बार पापाजी को बताना होगा. वे राजी हों या नहीं, मैं शादी के लिए तैयार हूं. लेकिन एक बार बताना जरूरी है.’’

शाम को घर लौट कर रूमी ने पापाजी और जेठानी को कोर्टमैरिज की बात बताई. दोनों ने प्रोत्साहित किया, लेकिन मम्मीजी और 3 देवरों ने इस का घोर विरोध किया.

फिर एक अड़चन. लेकिन पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ता से रूमी डटी रही. उस के तेवर को देखते हुए पापाजी ने अपनी पत्नी और बेटों को समझाया, ‘‘विरोध करने का कुछ लाभ नहीं होगा, घर में ड्रामा होना अच्छा नहीं.’’

पापाजी के हस्तक्षेप से सभी मान गए. पापाजी ने अंकित से एक बार खुद बात करने की इच्छा जताई. रूमी ने हामी भर दी.

पापाजी ने अंकित से कहा, ‘‘तुम लोगों की शादी से हमें कोई आपत्ति नहीं है. तुम्हारी? कोर्टमैरिज से भी हम सहमत हैं. अपने परिवार वालों से बात करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है. मुझे सिर्फ 2 बातें करनी हैं, एक, रूमी के सुख और सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए, दूसरे, इसे हम ने बेटी की तरह माना है और बेटी का पूरा प्यार दिया है, कोर्टमैरिज के बाद हम इसे अपने घर ले जाएंगे और एक दिन बाद इसे बेटी की तरह अपने घर से विदा करेंगे.’’

‘‘मुझे दोनों शर्तें मंजूर हैं,’’ अंकित ने विनम्रता से कहा.

पापाजी ने घर वापस आ कर बड़ी बहू को रूमी की शादी का जोड़ा, चूडि़यां, सिंदूर और आवश्यक कपड़े अंकित के लिए गिफ्ट और सूट के कपड़े बाजार से लाने को कहा.

वैधानिक औपचारिकता के बाद दोनों की शादी हो गई. पापाजी, बड़ी बहू और अंकित का एक दोस्त शादी के गवाह बने, मिठाइयां बांटी गईं.

विदाई का दिन आ गया. समयानुसार अंकित और उस के 4 दोस्त 3 गाडि़यों में आ गए. रूमी को लाल लहंगा, लाल चोली और लाल दुपट्टे के साथ पूरी दुलहन की तरह सजाया गया और विदाई गीत शुरू हो गए.

विदाई गीत शुरू होते ही पापाजी बहुत सैंटीमैंटल हो गए और फफकफफक कर रोने लगे. रूमी ने भीगी पलकों से पापाजी को प्रणाम किया और सीने से लग कर कहा, ‘‘पापाजी, आप क्यों रोते हैं? मैं आप लोगों से मिलती रहूंगी. आप ने मुझे बेटी माना है, मुझे आते रहने का हक देते रहिए. आप लोग अपना खयाल रखें. आप आंसू मत बहाइए, मैं तो फिर सुहागन हो गई.’’

अंकित और रूमी को मम्मीजी और बड़ी बहू ने नम आंखों से गाड़ी तक पहुंचाया. गाड़ी में बैठते ही अंकित ने ड्राइवर से कहा, ‘‘दुर्गापुर चलो.’’ और सड़क के रास्ते गाड़ी दुर्गापुर के लिए चल पड़ी. Hindi Family Story

Hindi Kahani: इमामुद्दीन – जिंदगी का मुश्किल सफर

Hindi Kahani: इमामुद्दीन काफी देर तक पार्क में टहलता रहा और फिर कोने की एक बैंच पर बैठ गया. वह बीचबीच में गहरी सांस लेता और ‘उफ’ कहता हुआ छोड़ देता. उस के भीतर चिंताओं के काले बादल उमड़घुमड़ रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे यही बादल इमामुद्दीन की आंखों से आंसू बन कर बरस पड़ेंगे.

इधर इमामुद्दीन की बीवी आयशा बानो घर पर अपने शौहर का इंतजार कर रही थी, उधर इमामुद्दीन कुछ सोच रहा था. पार्क में जब थोड़ी चहलपहल बढ़ने लगी, तो वह और ज्यादा बेचैन हो उठा. अब भूख से उस का पेट भी कुलबुलाने लगा था और जब प्यास लगने लगी तो वह अपने घर की तरफ लौटने लगा.

आयशा बानो दरवाजे पर ही खड़ी थी, बोली, ‘‘कहां चले गए थे तुम?’’

‘‘कहीं नहीं… बस, ऐसे ही पार्क तक. कुछ खाने को हो तो दे दो, प्यास भी लगी है.’’

आयशा बानो पानी ले आई और फिर रोटी बनाने लगी. इमामुद्दीन का सोचना अभी जारी था. वह खाना खातेखाते कई बार रुक जाता. आयशा उसे देख रही थी, लेकिन कुछ बोली नहीं थी. उसे मालूम था कि इमामुद्दीन के मन में क्या चल रहा है.

इमामुद्दीन ने आयशा से पूछा, ‘‘गंगाजी को होश आया कि नहीं?’’

‘‘नहीं,’’ आयशा ने छोटा सा जवाब दिया और रोटी इमामुद्दीन के आगे रख दी.

इमामुद्दीन और आयशा चंद्रभान तिवारी के घर में पिछले 24 साल से किराए पर रह रहे थे. चंद्रभान की कोई औलाद नहीं थी. वे अपनी पत्नी गंगा के साथ अकेले ही रहते थे. उन के घर से लगा हुआ 2 कमरे का एक और मिट्टी का कच्चा घर था, जिस में इमामुद्दीन किराए पर रहता था.

एक दिन चंद्रभान तिवारी की अचानक मौत हो गई और उन की पत्नी गंगा देवी बेसहारा हो गईं. इतना ही नहीं, एक दिन गंगा देवी को लकवा मार गया. अब तो उन की जिंदगी एक चारपाई पर सिमट गई थी.

कुछ दिनों तक नातेरिश्तेदार, पासपड़ोस के लोग गंगा देवी को देखने आते रहे, कुछ समय बाद उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

इमामुद्दीन जब चंद्रभान तिवारी के घर में किराए पर रहने आया था, उस के पहले वह ईदगाह महल्ले में रहता था. उस के सिर से बचपन में ही उस की अम्मी नसरीन का साया उठ गया था. उस की खाला भी तब ईदगाह के पास ही रहती थीं.

इमामुद्दीन के अब्बू फैजान अली के इंतकाल के बाद इमामुद्दीन शहर आ गया और मजदूरी करने लगा. उस समय उस की उम्र रही होगी 20-22 साल. जब से ही वह चंद्रभान तिवारी के मकान में रह रहा था.

इमामुद्दीन को गंगा देवी में अपनी मां दिखाई देती थीं. इमामुद्दीन और आयशा दोनों मजदूर थे, पर उन के दिल में दूसरों के प्रति करुणा और इज्जत का अटूट भाव था. वे दोनों अनपढ़ थे. खास बात तो यह थी कि वे अनुभवी और समझदार थे. दोनों के दिल में दूसरों के लिए खूब जगह थी.

गंगा देवी जब लकवे के चलते खाट पर पड़ी थीं, तब इमामुद्दीन और आयशा ने ही उन की खूब सेवा की थी. गंगा देवी के इलाज में इमामुद्दीन ने अपनी थोड़ीबहुत जमापूंजी भी खर्च कर दी थी. आयशा गंगा देवी को नहलाती, उन के कपड़े बदलती और इमामुद्दीन दवा खत्म होने पर दवा लाता और उन्हें समय पर खिलाता.

धीरेधीरे यह रिश्ता और गाढ़ा होता चला गया. आयशा बहू की तरह बाकायदा गंगा देवी का खयाल रखती, उन के पैर दबाती, इमामुद्दीन उन्हें ह्वीलचेयर में बिठा कर थोड़ाबहुत बाहर घुमा कर ले आता.

समय बीतता गया. इमामुद्दीन पास में ही अपना छोटा सा घर बनवा रहा था. चंद्रभान तिवारी का घर धीरेधीरे खंडहर होता जा रहा था. आखिर घर की मरम्मत कराए तो कौन कराए? धीरेधीरे इमामुद्दीन का नया घर तैयार हो गया.

इमामुद्दीन और आयशा गंगा देवी को अपने नए घर में ले आए. भले ही इमामुद्दीन ने नया घर बनवा लिया था, लेकिन चंद्रभान तिवारी के खंडहर घर से उस का भावनात्मक रिश्ता हो गया था.

चंद्रभान तिवारी के घर को देख कर वह सोचा करता था, ‘भले ही यह घर अब खंडहर होता जा रहा है, लेकिन इसी घर ने ही मुझे छत्रछाया दी, पनाह दी.’

पड़ोस के कुछ लोगों ने तो इमामुद्दीन से कहा भी कि तेरी अक्ल मारी गई है, जो एक बीमार अपाहिज औरत को भी अपने नए घर में ले आया है. जितने मुंह उतनी बातें. जो आता इमामुद्दीन को अपनीअपनी समझ के हिसाब से पट्टी पढ़ाने लगता.

इमामुद्दीन सब लोगों की बातें सुनता और कहता कि बात मकान मालिक और किराएदार की नहीं है भाई, इन 23 सालों में जितना अपनापन चंद्रभान तिवारी और गंगा देवी ने मुझे दिया है, वह मैं कभी भूल नहीं सकता. मैं अब गंगा देवी की सूरत में अपनी मां नसरीन को देखता हूं.

इमामुद्दीन पुरानी यादों से लौट आया. उसी रात गंगा देवी की मौत हो गई. इमामुद्दीन ने हिंदू धर्म के हिसाब से गंगा देवी का क्रियाकर्म किया.

गंगा देवी अब शून्य में विलीन हो चुकी थीं, पर इमामुद्दीन और आयशा भी उन के बिना अजीब सा खालीपन महसूस कर रहे थे. Hindi Kahani

Hindi Family Story: दरार – जब हुई शायना और शौहर के बीच तकरार

Hindi Family Story: शायना के अम्मीअब्बू ने उस की शादी में कई लाख रुपए खर्च किए थे. खूब दहेज, जेवर और कैश दे कर उन्होंने सोचा था कि शायना की जिंदगी बेहतर हो जाएगी, ससुराल में इज्जत मिलेगी, इतना दहेज और कैश देने से उस का सुसराल में राज रहेगा, वह अपनी मनमानी करेगी और सब को उस की बात माननी पड़ेगी, क्योंकि वह एक बड़े घर के बेटी है, जो दहेज के साथ लाखों रुपए नकद लाई है…

शायना के अम्मीअब्बू की इस सोच ने शायना और उस के शौहर के बीच ऐसी दरार डाल दी, जो कभी नहीं भरी जा सकी और दोनों एक महीने के अंदर ही अलगअलग रह कर जीने के लिए मजबूर हो गए. शायना के जाने के बाद उस के शौहर शाहिद ने कई बार उसे फोन भी किया, पर उस के अम्मीअब्बू ने न तो शायना से शाहिद की बात होने दी और न ही शाहिद को शायना को अपने साथ ले जाने दिया.

वे इसी घमंड में रहे कि शाहिद उन की सारी बातें मानेगा और शायना वहां पर राज करेगी, पर उन का यह भरम उस वक्त टूट गया, जब शाहिद ने दूसरी शादी कर ली. शायना की शादी की बात शाहिद से तय हो गई थी. शाहिद के अब्बा का कपड़ों का कारोबार था.

शाहिद अपने अब्बा के साथ ही काम करता था. शाहिद के अलावा उस का एक और भाई था, जो कैंसर से पीडि़त होने की वजह से हर वक्त बीमार रहता था. सारे कारोबार की बागडोर शाहिद के हाथों में ही थी.  शाहिद ऊंची कदकाठी का एक खूबसूरत नौजवान था.

यही वजह थी कि शाहिद को पहली ही नजर में देख कर शायना के अम्मीअब्बू ने शाहिद के रिश्ते के लिए हां कर दी थी. शायना भी खूबसूरती की मलिका थी. ऊंचा कद, गदराए बदन के साथसाथ वह खूबसूरती की बेमिसाल मूर्ति थी.

गुलाबी होंठ और सुर्ख गाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे. जो भी शाहिद और शायना की जोड़ी को देखता था, बस देखता ही रह जाता था. उन दोनों की तारीफ करने के लिए लोगों के पास अल्फाज कम पड़ जाते थे.

शायना की शादी के अभी 4 महीने बाकी थे. उस के अम्मीअब्बू ने उस के दहेज का सामान खरीदना शुरू कर दिया था. हर सामान ब्रांडेड खरीदा जा रहा था. अगर कोई सामान उन के शहर में न मिलता तो वह दूसरे शहर से मंगाया जाता था.

शायना के लिए लाखों रुपए का सोना खरीदा गया था. सोना सिर्फ सायना के लिए ही नहीं, बल्कि सायना की सास के लिए भी खरीदा गया था. इस तरह महीनों तक शायना की शादी की तैयारी चलती रही, फिर वह दिन भी आ गया जब शायना का निकाह शाहिद से होना था.

शाहिद बरात ले कर शायना के घर आ गया. बरातियों का स्वागत बड़ी धूमधाम से किया गया. कई तरह के खानों का इंतजाम किया गया. निकाह के बाद विदाई के समय भी लाखों रुपया नकद दिया गया और इस तरह लाखों रुपया खर्च होने के बाद शायना और शाहिद की शादी हो गई. शायना बड़ी धूमधाम के साथ अपनी ससुराल पहुंच गई. शायना और शाहिद एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे.

अभी शादी को कुछ दिन ही गुजरे थे कि शायना ने शाहिद से महंगे मोबाइल फोन की मांग की.  शाहिद बोला, ‘‘अभी रुक जाओ. तुम्हें जिस से भी बात करनी है, मेरे मोबाइल फोन से बात कर लिया करो. कुछ दिनों में मैं अब्बा से बात कर के तुम्हें नया मोबाइल फोन दिला दूंगा.’’

शायना को शाहिद की यह बात पसंद नहीं आई. अभी शायना की मोबाइल फोन की बात तो कबूल हुई नहीं थी कि शायना ने शाहिद से बोला, ‘‘अगले हफ्ते मैं अपने मायके जाऊंगी. लेकिन मुझे इस पुरानी कार से नहीं जाना.

तुम मेरी पसंद की नई कार ले लो, उसी से मैं अपने मायके जाऊंगी.’’ शाहिद ने शायना को समझाते हुए कहा, ‘‘यह कार भी तो सही है. इस में क्या खराबी है? क्यों फालतू की जिद कर रही हो…’’ शायना को शाहिद की यह बात बहुत नागवार गुजरी.

उस ने अगले ही दिन फोन पर अपनी अम्मी से शाहिद की शिकायत कर दी और बोला, ‘‘मुझे तुम से बात करने को दिल करता है, तो मैं तुम से बात भी नहीं कर सकती, क्योंकि इन्होंने अभी तक मुझे मोबाइल फोन  नहीं दिलाया.

‘‘मैं तुम से मिलने भी नहीं आ सकती, क्योंकि इन्होंने अभी तक नई कार भी नहीं खरीदी. कैसे फटीचर लोगों से तुम ने मेरी शादी करा दी.’’ अगले दिन शायना की अम्मी का फोन शाहिद के पास आ गया. वे छूटते ही बोलीं, ‘‘हमारे लेनदेन में कौन सी कमी रह गई थी, जो तुम मेरी बेटी शायना की ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकते? तुम्हारी जगह किसी और को इतना सबकुछ देते तो मेरी बेटी के पैर धो कर पीता.’’

शाहिद को शायना की एक तो यह बात बुरी लगी कि शायना ने घर की बात अपनी अम्मी को बताई और उन से अपनी सुसराल की बुराई की, दूसरे शायना की अम्मी ने अपनी दौलत का रुआब दिखाते हुए उसे जलील किया. शाहिद ने शायना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें अपनी अम्मी से घर की बात नहीं करनी चाहिए थी.’’

शायना फौरन तड़क कर बोली, ‘‘मैं अपनी परेशानी अपने अम्मीअब्बा को नहीं बताऊंगी, तो किसे कहूंगी…’’ और वह ऐंठ कर अपने बिस्तर पर  पड़ गई. शाहिद ने शायना को काफी समझाने की कोशिश की, पर वह न खाना खाने को तैयार हुई और न अपने कमरे से बाहर निकली.

शाम को फिर शाहिद के मोबाइल फोन पर शायना की अम्मी का फोन आया, तो शाहिद ने शायना को मोबाइल फोन देते हुए कहा, ‘‘लो, आप की अम्मी का फोन आया है.’’ शायना ने फोन लेते ही रोना शुरू कर दिया और शाहिद के सामने  ही अपनी अम्मी से शाहिद की बुराई करने लगी.

उस की अम्मी ने शायना को कहा, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं आज ही तुम्हारे भाई को भेजती हूं. तुम उस के साथ घर आ जाओ. जब तक ये तेरी बात नहीं मानेंगे, तुम हमारे पास ही रहना.’’ कुछ ही देर में शायना का भाई उस की ससुराल पहुंच गया और शाहिद के मना करने पर भी शायना को अपने साथ ले आया. शाहिद को शायना की यह बात बहुत बुरी लगी.

जब इस झगड़े का पता  शाहिद के अम्मीअब्बू को पता चला तो अब्बू ने शाहिद को डांटा, ‘‘हमें क्यों नहीं बताया. हम उसे समझाते. तुम कल ही अपनी सुसराल जाओ और शायना को  ले कर आओ. घर की बात घर में ही रहनी चाहिए.’’ उधर जब शायना घर पहुंची, तो उस ने अपनी सुसराल की तमाम बुराइयां की और कहा, ‘‘शाहिद तो अपने अब्बा के ही कहने पर चलता है.

छोटीछोटी चीज के लिए अपने अब्बा के सामने हाथ फैलाता है. मैं ने जब उस से मोबाइल फोन खरीदने को कहा तो बोला कि अब्बा से बोलता हूं. जब  वे पैसे देंगे, तब मोबाइल फोन दिला दूंगा. कार के लिए कहा, तो बहाने बनाने लगा.’’ शायना की अम्मी बोलीं, ‘‘तू फिक्र मत कर. जब तक शाहिद और उस के अब्बू तेरी बात नहीं मानेंगे, मैं तुझे वहां नहीं भेजूंगी.’’ अगले दिन शाहिद ने शायना की अम्मी को फोन किया, ‘‘मैं शायना को लेने आ रहा हूं…’’ इस पर शायना की अम्मी बोलीं, ‘‘अपने अब्बा को साथ ले कर आना. जब तक वह सायना की बात नहीं मानेंगे, हम उसे नहीं भेजेंगे.

जब उन्हें फुरसत मिल जाए, तब दोनों साथ आना. हमारी बेटी की जिंदगी का मामला है. हमें  क्या पता था कि हमें तुम जैसे घटिया रिश्तेदार मिलेंगे.’’ शाहिद ने अपने अब्बा को बताया,  तो उन्हें बहुत बुरा लगा. उन्होंने भी फैसला कर लिया था कि वे उसे लेने वहां नहीं जाएंगे.

शाहिद ने अगले दिन फिर फोन किया और शायना से बात करने की कोशिश की, मगर शायना की अम्मी ने ऐसा नहीं होने दिया.  शायना की अम्मी को यह घमंड था कि ससुराल वालों को शायना जैसी खूबसूरत और पैसे वाली लड़की मिली है, वे जरूर हाथ जोड़ कर आएंगे और शायना की सारी बातें मानेंगे. इधर शाहिद के छोटे भाई की अचानक तबीयत खराब हो गई.

घर के सब लोग उस की फिक्र करने लगे, क्योंकि उस का कैंसर लास्ट स्टेज पर पहुंच गया था. वह कुछ हफ्ते का ही मेहमान था. शाहिद ने शायना से बात करने की कोशिश की, पर उस ने उस से बात नहीं की. शाहिद ने उस की अम्मी को बताया, ‘‘भाई की तबीयत बहुत खराब है.

मैं शायना को लेने आ रहा हूं. अब्बा के पास अभी टाइम नहीं है. वे बहुत ज्यादा परेशान हैं.’’ शायना की अम्मी ने साफ मना कर दिया, ‘‘हम तब तक शायना को नहीं भेजेंगे, जब तक तुम्हारे अब्बू नहीं आएंगे.’’ शाहिद यह सुन कर दंग रह गया, फिर भी वह हिम्मत कर के शायना को लेने अपनी सुसराल पहुंच ही गया.

उस ने शायना से बात करनी चाही, मगर उस की सास ने उसे बात करने से मना कर दिया और उसे शाहिद के साथ भी भेजने से इनकार कर दिया. शाहिद निराश हो कर खाली हाथ वहां से वापस आ गया. जब शाहिद के अम्मीअब्बू को इस बात का पता चला, तो उन्हें बहुत बुरा लगा.

इधर वह दिन भी आ गया, जब शाहिद का छोटा भाई यह दुनिया छोड़ कर चला गया, जिस से पूरे घर वालों  को काफी दुख हुआ. घर में मातम  पसर गया. इतना सबकुछ होने के बाद भी शायना के घर वालों को जब इस बात की खबर मिली, तो उन में से कोई भी इस गमगीन माहौल में शाहिद के घर वालों को दिलासा देने नहीं गया. वक्त गुजरता गया.

कुछ रिश्तेदारों ने शायना के अम्मीअब्बू को यह दिलासा दी थी कि शाहिद जरूर अपने अब्बा के साथ शायना को लेने आएगा. शायना की अम्मी ने भी उसे यह कह रखा था कि तुम अपनी जिद पर डटी रहना. अभी वह वक्त है, जब शौहर को अपने इशारों पर नचाया जा सकता है.

अगर तुम हिम्मत हार गई, तो जिंदगीभर उस के और उस के घर वालों के इशारों पर तुम्हें नाचना पड़ेगा. इस तरह उन दोनों के रिश्ते में दरार बढ़ती गई. वक्त तेजी से गुजर रहा था.

शायना को अकेलापन अब खाने को दौड़ रहा था, लेकिन अपनी मां की जिद की वजह से वह सही फैसला नहीं ले पा रही थी. उसे लग रहा था कि पता नहीं कब  तक यों अकेले जिंदगी बितानी पड़ेगी? क्या शाहिद उसे लेने वापस आएगा भी या नहीं? उधर शाहिद ने मुसलिम पर्सनल ला के तहत दूसरी शादी कर ली और अपनी जिंदगी खुशीखुशी गुजारने लगा.

जब शायना और उस के अम्मीअब्बू को शाहिद की दूसरी शादी का पता चला, तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि शाहिद ऐसा भी कर सकता है. गुस्से में आ कर उन्होंने शाहिद से फैसला करने के बजाय उस पर दहेज लेने के अलावा और भी कई केस कर दिए, पर इस से कोई हल नहीं निकला. केस चल रहा है.

शायना घर पर बैठी है. जब तक उस का तलाक या कोई और फैसला नहीं होता, उसे यों ही बिना निकाह के घर पर ही रहना पड़ रहा है. इस केस को एक साल हो गया है, पर अभी तक शायना के अम्मीअब्बू कोई रास्ता नहीं निकाल पाए हैं. उन्होंने अपनी जिद के चक्कर में शायना की जिंदगी बरबाद कर दी और उन दोनों के रिश्ते में एक ऐसी दरार डाल दी जो कभी नहीं भरी जा सकती.

शायना आज अपने घर पर एक जीतीजागती मूर्ति बन कर रह गई थी और सोच रही थी कि काश, मैं अपने घर को खुद ही संभाल कर चलती तो आज यह दिन न देखना पड़ता. उस की उम्र ढलने लगी, पर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है.  शायना कर भी क्या सकती है, वह खुद एक जिंदा लाश बन कर रह गई है. उन के रिश्तों की इस दरार की वजह उस की मां और खुद शायना है. अगर वक्त रहते वह सही फैसला ले लेती, तो उसे आज यह दिन न देखना पड़ता. Hindi Family Story

Religion and Love: प्रेम विवाह करें तो घर और धर्म छोड़ें

Religion and Love: ‘‘हमारी बिटिया अब पापा किस को कहेगी…’’

22-23 साल की एक औरत अपनी गोद में डेढ़ महीने की बेटी को देखदेख कर रोते हुए बारबार यही कह रही थी. उस के पास एक और बूढ़ी औरत भी बैठी थी. वह भी रो रही थी. उन्हें देख कर लग रहा था कि वे दोनों शायद सासबहू हैं, क्योंकि जवान औरत बारबार घूंघट कर रही थी. मरने वाला उस डेढ़ महीने की बेटी का पिता होगा. उन के साथ कुछ दूरी पर एक बूढ़ा, एक लड़का और कुछ उन के साथी खड़े थे.

लखनऊ का पोस्टमार्टम हाउस अंदर से बंद था. बाहर खाली जगह पड़ी थी. वहां इंटरलौकिंग वाली ईंटों से बना फर्श था. पास में सीमेंट से बनी बैंच और एक प्लेटफार्म था. बैंच पर लोग बैठ कर किसी अपने की डैड बौडी का इंतजार करते थे.

सीमेंट से बना प्लेटफार्म डैड बौडी रखने के काम आता था. पूरे शहर से पोस्टमार्टम के लिए वहां वे डैड बौडी आती थीं, जिन में पुलिस केस दर्ज हो. पुलिस पोस्टमार्टम के जरीए यह जानने की कोशिश करती है कि डैड बौडी के साथ क्या हुआ होगा? उस को किस तरह से मारा गया होगा? मरने का क्या समय रहा होगा? पोस्टमार्टम के बाद जब सारी खानापूरी हो जाती है, तभी डैड बौडी घर वालों को सौंपी जाती है.

कुछ देर में एक आदमी हाथ में चाबी का गुच्छा ले कर आता है और पोस्टमार्टम हाउस के एक कमरे को खोलता है. दरवाजा खुलते ही एक अजीब सी गंध 12-15 फुट दूर तक बैठे लोगों तक आती है. वहां आसपास कुछ और लोग भी होते हैं. शायद उन के भी घरपरिवार का कोई वहां रहा हो. वे लोग भी किसी अपने की डैड बौडी का इंतजार कर रहे होंगे.

‘सनी रावत… थाना निगोहां…’ पोस्टमार्टम हाउस के कमरे में गए आदमी ने अंदर से ही आवाज लगाई.

यह सुनते ही उस रोतीबिलखती औरत की आवाज तेज हो गई. साथ वाली औरत भी रो रही थी. उन के पास खड़ा एक नौजवान तेजी से पोस्टमार्टम हाउस की तरफ बढ़ गया. उस के साथ 2 और लड़के भी गए और एक बूढ़ा आदमी लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ रहा था.

अब तक तेजी से अंदर गए लड़के वापस आ रहे थे. उन के हाथ में काले रंग की पौलीथिन में बंधी एक डैड बौडी थी, जिसे उन लोगों ने उस सीमेंट से बने प्लेटफार्म पर रख दिया था.

पूरे परिवार के लोग रो रहे थे. एक लड़का अपने दुख को सहन करता हुए बाहर गेट की तरफ आया और वहां पहले से खड़ी गाड़ी को अंदर बुलाने लगा. ड्राइवर गाड़ी को मोड़ कर अंदर लाया.

एक बार लड़कों ने फिर डैड बौडी को उठाया और गाड़ी में रख दिया. उसी गाड़ी में घरपरिवार के सारे लोग बैठ गए. गाड़ी चल पड़ी.

यह डैड बौडी थाना मोहनलालगंज के शंकर बक्श खेड़ा गांव के मजरा रायभान खेड़ा के रहने वाले रामनरेश रावत के 24 साल के बेटे सनी रावत की थी. जिस औरत की गोद में 2 महीने की बेटी थी उस का नाम साधना था, जो मरने वाली की पत्नी थी. बूढ़ी औरत मरने वाली की मां इद्रानी और नौजवान का नाम राज बहादुर था, जो मरने वाले का भाई था.

सनी रावत 8 सितंबर, 2025 की शाम को 7 बजे घर से बाहर निकला था. इस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा था. तब पिता ने उस के फोन नंबर पर बात की.

तब सनी ने बताया कि वह गोसाईंगंज के देवी खेड़ा के संतोष यादव के साथ है. कुछ देर में घर पहुंच जाएगा, पर देर रात तक जब वह घर नहीं पहुंचा तो पिता ने फिर से फोन किया, तो फोन उठा नहीं. इस के बाद घर वाले सोने चले गए.

अगली सुबह 5 बजे जब सब लोग उठे और सनी को वापस आया नहीं देखा, तो उसे फिर से फोन किया. इस बार फोन बंद था.

घर वाले सनी रावत की गुमशुदगी लिखाने थाना मोहनलालगंज पहुंचे. वहां पर सोशल मीडिया पर यह पता चला कि थाना निगोहां के गौतम खेड़ा गांव के पास बांका नाले में किसी नौजवान की लाश पड़ी है. परिवार के सभी लोग आननफानन में वहां के लिए निकल पड़े.

रामनरेश रावत ने लाश की शिनाख्त अपने बेटे सनी रावत के रूप में की. परिवार वालों का आरोप था कि सनी रावत की हत्या कर के लाश को नाले में फेंक दिया गया.

रामनरेश रावत की तहरीर पर निगोहां थाने में अपराध संख्या 174/2025 धारा – 103(1), 351(3) बीएनएस के तहत संतोष यादव निवासी देवी खेड़ा गोसाईंगंज, जीतू यादव और देवेश यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया. फिर एक के बाद एक आरोपियों को पकड़ लिया गया.

इस के बाद जो खुलासा हुआ, वह एक दर्दनाक कहानी है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मे सनी रावत की मौत सिर पर लगी चोट और पानी में डूबने से हुई थी. सनी के घर से जहां उस की डैड बौडी मिली, वह जगह 15 किलोमीटर दूर थी. बांका नाले किनारे सनी कैसे पहुंचा? यह बड़ा सवाल था. जो उसे यहां लाया है, वही इस का जवाब दे सकता था. सनी के घर वालों के मुताबिक हत्या की वजह उस का साधना से प्रेम विवाह करना था.

3-4 साल पहले की बात है. सनी निगोहां थाना के मस्तीपुर गांव में अपनी ननिहाल में रहता था. उस के नाना के घर से कुछ दूरी पर ही जीतू यादव नामक नौजवान का घर था. सनी और जीतू यादव की आपस में दोस्ती हो गई. दोनों का एकदूसरे के घर आना भी हो गया. जीतू की बहन साधना से भी सनी की मुलाकात होने लगी. इस के बाद उन दोनों के बीच प्यार हो गया.

जब उन के प्यार की चर्चा गांव में फैलने लगी, तो जनवरी, 2004 में एक दिन दोनों ने घर से भाग कर लव मैरिज कर ली. इस से गुस्से में आए जीतू, उस के भाई देवेश और परिवार के दूसरे लोगों ने सनी के पिता रामनरेश और मां इद्रानी को मारपीट कर घर से भगा दिया. इन के घर में आग लगा दी.

राम नरेश अपनी पत्नी समेत अपने पुश्तैनी गांव शंकर बक्श खेड़ा में आ कर रहने लगे. सनी अपनी पत्नी साधना को ले कर मुंबई भाग गया. जब साधना पेट से हुई तो सनी उस को लेकर गोसाईंगंज आ गया, जो मोहनलालगंज कसबे के ही पास है.

2 साल बीत जाने के बाद भी साधना के भाई उस के पति को धमकी दे रहे थे. ऐसे में साधना और सनी छिपछिप कर रह रहे थे. डेढ़ महीना पहले ही साधना को बेटी हुई थी.

गांव के लोगों ने जीतू और उस के परिवार को ताना मारने के अंदाज में बधाई दी. इस से जीतू और उस के परिवार के लोगों के मन में लगे घाव हरे हो गए. अब जीतू ने तय कर लिया कि सनी को मार देना ही आखिरी इलाज है.

8 सितंबर, 2025 की शाम को जब सनी रावत जेल रोड के पास देशी शराब के ठेके के पास बैठा था, तो साधना के भाई जीतू यादव ने उस को अपनी स्कार्पियो गाड़ी में बैठा लिया. गाड़ी में उस का भाई देवेश यादव, साला संतोष यादव और दोस्त राज कपूर पहले से बैठे थे. गाड़ी सुनसान रास्तों में आगे बढ़ रही थी.

देवेश और जीतू ने सनी पर लोहे की रौड से वार कर के उसे मार दिया.

इस के बाद सनी की लाश को छिपाने के मकसद से वे लोग सिसेंडी रोड पर गौतमखेड़ा के पास बांका नाला के पास गए. सनी कहीं जिंदा न बच जाए, इस के लिए वहां रोड पर एक बार फिर लोहे की रौड से उसे मारा गया, फिर उस की लाश को नाले में फेंक दिया. इस के बाद वे सब अपनेअपने घर चले गए.

जब दूसरे दिन सनी रावत की लाश बरामद हुई और नामजद मुकदमा लिखा गया, तब पुलिस ने इन की धरपकड़ का अभियान चलाया. 11 सितंबर, 2025 को देवेश और संतोष को सिसेंडी रोड पर जंगल तिराहा के पास से पकड़ा गया.

उन की निशानदेही पर स्कार्पियो गाड़ी नंबर यूपी32 पीडब्ल्यू 6758, लोहे की रौड और खून से सना अंगोछा भी बरामद किया गया. पुलिस ने बरामद सामान जब्त कर पकड़े गए दोनों आरोपियों देवेश और संतोष को जेल भेज दिया.

पुलिस को अभी भी जीतू और राज कपूर की तलाश थी. 13 सितंबर, 2025 की शाम पुलिस को सूचना मिली कि जय सिंह और राज कपूर जबरौली के पास जंगल में छिपे हैं. पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया.

आरोपी जेल पहुंच गए. डेढ़ महीने की बच्ची अनाथ हो गई. उस की 24 साल की मां साधना विधवा हो गई. पिता सनी बदले की भेंट चढ़ गया.

लाख कानून बन जाएं, लेकिन समाज अभी भी अपने हिसाब से चल रहा है. बेटी अभी भी पिता की जायदाद में हिस्सा नहीं ले पाती है. क्या साधना को अपने पिता की जायदाद में उस के भाइयों के बराबर हिस्सा मिलेगा? यह बड़ा सवाल है, जिस का जवाब अमूमन ‘न’ ही होता है. ऐसे में साधना अपनी बाकी जिंदगी कैसे काटेगी? अपनी छोटी बेटी का पालनपोषण कैसे करेगी? इस की वजह केवल इतनी थी कि साधना और सनी ने गैरजाति में प्रेम विवाह किया, जो उन के घर वालों को मंजूर नहीं था.

क्यों नहीं स्वीकारे जाते प्रेम विवाह

हमारे समाज में जाति और धर्म के रीतिरिवाजों की जड़ें इतने गहरे तक धंसी हैं कि उन से उबर पाना आसान नहीं है. जिंदगी के हर मोड़ पर कुछ न कुछ रीतिरिवाज होते हैं, जो धर्म से जुड़े होते हैं. अगर कहीं जन्मदिन भी मनाया जा रहा है, जिस में केक कटना है, जिस को हिंदू धर्म मानता नहीं है, वहां भी अब पूजापाठ होने लगी है. एक तरफ केक कटेगा, तो दूसरी तरफ पूजापाठ होगी.

धर्म को मानने वाले केवल हिंदू ही नहीं हैं, बल्कि जो ईसाई, मुसलिम यहां तक कि बौद्ध धर्म को मानते हैं, वे भी धार्मिक पाखंड का शिकार होते हैं. धर्म चलाने वालों को पता है कि जिस दिन जाति खत्म हो जाएगी, उस दिन धर्म और उस का पाखंड भी खत्म हो जाएगा.

धर्म और जाति की बात होती है, तो यह माना जाता है कि विवाद केवल जनरल, ओबीसी और एससी के होते हैं. असल में ऐसा नहीं है. जब भी प्रेम विवाह की बात होती है, तो जनरल में भी जातीय विभेद है. एससी और ओबीसी में भी अलगअलग जाति को ले कर भेदभाव है.

आजादी के बाद से 1980 तक जब तक राममंदिर आंदोलन का असर नहीं था, जाति के भेद मिटाने के कानून भी बने ठगे, जिन में स्पैशल मैरिज ऐक्ट सब से बड़ा उदाहरण है. उस समय ‘जाति तोड़ो’ का नारा भी दिया गया था और धर्म को ले कर विरोध हो रहा था.

पर बाद में धीरेधीरे यह विरोध खत्म हो गया. उस की वजह यह रही कि धर्म का प्रचार करने वाले को तो पैसा मिलता है, लेकिन उस के पाखंड का विरोध करने वाले को पैसा नहीं मिलता. उलटा धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में कई मुकदमे कायम होने लगे. ऐसे में धर्म के पाखंड और जातीयता का विरोध करने वाले कमजोर होते गए. समाज का यह असर घरपरिवार के भीतर रसोईघर और बैडरूम तक पहुंच गया.

1980 के धार्मिक काल के बाद समाज में गैरजाति और गैरधर्म में प्रेम विवाह का विरोध होने लगा. संविधान, कानून और कोर्ट के आदेशों के बाद भी प्रेम विवाह करने वालों की जिंदगी महफूज नहीं है.

ऐसे में एक ही उपाय है कि अगर प्रेम विवाह करना है, तो हर तरह का धर्म छोड़ना होगा. इस के अलावा अपना घर छोड़ कर अलग रहना पड़ेगा, तभी जिंदगी महफूज हो सकेगी. अगर इतना करने की ताकत या हिम्मत नहीं है, तो प्रेम और विवाह दोनों करने का हक नहीं है, क्योंकि प्रेम जाति और धर्म देख कर नहीं होता है. जहां इस तरह का काम होगा, वहां समाज और घरपरिवार विरोध में खड़ा होगा.

सनी रावत के बेटी होने पर जीतू यादव को मामा बनने की बधाई देते समय समाज के लोग अगर उसे ताने नहीं मारते, तो सनी रावत की हत्या होने से बच सकती थी. दोनों परिवार तहसनहस नहीं होते. सनी और साधना मुंबई से वापस नहीं आते, तो भी यह वारदात टल सकती थी.

ऐसे में अगर प्रेम विवाह करने का फैसला लिया है, तो घरपरिवार और धर्म छोड़ कर जिंदगी गुजारनी होगी. Religion and Love

Editorial: भारत को ट्रंप की सजा – उद्योग जगत में मचा हाहाकार

Editorial: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अपने देश में आने वाले भारत के सामान पर 50 फीसदी के टैक्स से देश का कपड़ा, चमड़ा और डायमंड उद्योग बेहद खतरे में है. चमड़े के कारखानों में तकरीबन 50 लाख लोग काम करते हैं और 4,000 करोड़ रुपए का सामान बनाते हैं. इस में से एकचौथाई अमेरिका के व्यापारी खरीदते थे जिन्होंने अब और्डर देने बंद कर दिए हैं क्योंकि 50 फीसदी टैक्स भारतीय सामान पर देने की जगह वे वियतनाम, कंबोडिया, बंगलादेश से सस्ते में खरीदेंगे. डोनाल्ड ट्र्रंप ने यह सजा भारत को भारत सरकार के फैसलों पर दी है.

कानपुर, नोएडा, आगरा, तमिलनाडु ही नहीं, दूसरे छोटे राज्यों से भी चमड़े का जो सामान बनता था वह रुक गया है और 2,000 से ज्यादा कंपनियों में से कितनों का दिवाला इस चक्कर में पिट जाए पता नहीं.

दिल्ली में बैठे ऊंची जातियों के सवर्ण नेताओं को फर्क नहीं पड़ता कि जिस काम में ज्यादातर दलित कारीगर लगे हों वे ठप हो गए. उन्हें चिंता इस बात की है कि उन का अपना टैक्स न कम हो जाए जो वे ऐक्सपोर्ट में भी बीच की चीजों पर लगाते थे.

अमेरिका के और्डर अचानक बंद हो जाने से सैकड़ों कंपनियों के पास आज पैसे की तंगी हो गई है. वे न कर्मचारियों को बकाया पैसा दे पा रही हैं, न कर्ज पर ब्याज का भुगतान कर पा रही हैं. भारत सरकार को अपने गुरूर की फिक्र है कि विश्वगुरु देश को डोनाल्ड ट्रंप कैसे धमका सकता है और जिस तरह का व्यवहार नरेंद्र मोदी नोटबंदी, वोटबंदी, जीएसटी, घरबंदी, बुलडोजरी में करते रहे हैं, वैसा ही डोनाल्ड ट्रंप के साथ करने कीकोशिश कर रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप को शिकायत चमड़े के सामान से नहीं या भारत के व्यापारियों से नहीं है, उन्हें शिकायत इस बात पर है कि भारत रूस से पैट्रोल क्यों खरीद रहा है, अमेरिका से आने वाले सामान पर टैक्स ज्यादा क्यों लगा रहा है, बजाय अपने बड़े खरीदार को सुनने के मोदी सरकार उस मंदिर के पुजारी की तरह बरताव कर रही है जो सोचता है कि वह किसी भगवान की मूर्ति का पुजारी नहीं, खुद भगवान है. अछूतों, चमड़े का काम करने वाले दलितों को तो सरकार वैसे भी पिछले जन्मों के कर्मों के फल भोगने वाला मानती है. कुछ और दिन वे भूखे रह गए तो क्या हो जाएगा?

अमेरिका सिर्फ एक चौथाई चमड़े का बना सामान खरीद रहा है पर यह न भूलें कि जब धंधा अचानक एकचौथाई कम हो जाए तो वह पूरे धंधे को ले डूबता है. पानी में तैरती किश्ती को डुबोने के लिए एक छोटा सा छेद ही काफी होता है.

अफसोस इस बात का है कि सरकार ने अपना घमंड ऊपर रखा है, 50 लाख मजदूरों की रोजीरोटी का खयाल नहीं रखा. दूसरे सामानों में और कितने बेरोजगार हुए हैं, यह तो अभी न पूछें.

॥॥॥

बिना जनगणना कराए अमित शाह का कहना कि भारत में मुसलिमों की गिनती बढ़ रही है, एकदम गैरजिम्मेदाराना बयान है जिस का मकसद सिर्फ हिंदूमुसलिम झगड़ा बढ़ाना है. यह हो सकता है कि आज भी एक औसत मुसलिम औरत के बच्चे ज्यादा हो रहे हैं पर जो आंकड़े मिलते हैं उन के हिसाब से अगर हिंदू औरतों के 2.1 बच्चे हो रहे हैं तो मुसलिम औरतों के 2.3.

20 करोड़ की आबादी वाले मुसलिमों के 2024 के अनुमानों के हिसाब से तकरीबन 66 लाख बच्चे पैदा हुए और हिंदुओं के 2 करोड़. मुसलिम बच्चों के पैदा होने की गिनती भी लगातार गिर रही है क्योंकि मुसलिम औरतें भी अब घरों में बंद रह कर बच्चे पालना नहीं चाहतीं, वे आजाद हो कर घूमना चाहती हैं.

नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के हिसाब से 2015 में हिंदुओं की गिनती 105 करोड़ थी और मुसलिमों की 18 करोड़, 60 लाख. 2021 तक हिंदुओं की गिनती 7 करोड़ बढ़ कर 112 करोड़ हो गईर् और मुसलिमों की गिनती 1 करोड़, 40 लाख बढ़ कर 20 करोड़ हो गई यानी हिंदुओं की गिनती मुसलिमों से 3-4 गुना तेजी से बढ़ रही है पर आंकड़ों को घुमाफिरा कर अमित शाह फालतू का डर फैला रहे हैं. सरकार इसीलिए जनगणना को टाल रही है कि कहीं उस की पोल न खुल जाए.

एक तरह से मुसलिम औरत बुरके के अलावा हिंदू औरत से ज्यादा आजाद है क्योंकि उसे हर दूसरेतीसरे दिन व्रत, पूजापाठ, मंदिर में लाइनों में नहीं खड़ा होना पड़ता. उसे घंटों घर में कीर्तन, भजन में समय नहीं लगाना पड़ता. उसे बुरके का जहर तो पीना पड़ता है पर नंगे पांव सिर पर कलश रख कर मंदिरों से मंदिरों पैदल तो नहीं जाना पड़ता. वह सब के साथ बैठ कर खाने का हक रखती है, हिंदू औरतों की तरह पति को खिला कर ही खाने को मजबूर नहीं है.

मुसलिम आबादी बढ़ रही है इस के लिए दूसरे देशों से आने वाले घुसपैठियों को दोष देना देश के साथ एकदम बेईमानी है. पाकिस्तान के साथ देश की सीमा पर चप्पेचप्पे पर पहरेदारी है और वहां से लोग नहीं आ सकते, जबकि पाकिस्तान धर्म के चलते हर साल बदहाली की ओर बढ़ रहा है. और फिर पाकिस्तान से आने वाले वैसे भी अपने साथ औरतों को तो नहीं ला सकते और आबादी तो औरतों से ही बढ़ती है, आदमियों से नहीं.

बंगलादेश में अब भी कामधंधा भारत से ज्यादा है जबकि एक साल से वहां सरकार की अलटापलटी हुई है. मोहम्मद यूनुस, जो नोबेल पुरस्कार पाने वाला अर्थशास्त्री है, जानता है कि देश को कैसे चलाया जाता है.

वहां के लोग यूरोपअमेरिका जा रहे हैं, खाली हाथ वे भारत नहीं आ रहे क्योंकि भारत में तो खुद भुखमरी का हाल यह है कि 85 करोड़ को 5 किलो अनाज मुफ्त देना पड़ता है ताकि वे मरे नहीं. ऐसे भारत में छिपछिपा कर कौन आना चाहेगा.

अमित शाह अगर कह रहे हैं कि देश में घुसपैठिए आ रहे हैं तो यह गृह मंत्रालय पर एक बड़ा आरोप है निकम्मेपन का. भारत की बौर्डर सिक्योरिटी क्या कर रही है कि वह बाहर वालों को आने दे रही है. अब नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार से तो मुसलिम आने वाले नहीं हैं क्योंकि इन देशों में या तो हिंदू जनता है या बौद्ध.

वोटों की खातिर हिंदूमुसलिम झगड़ों में जनता को उल झाने का मतलब है उन से काम के मौके छीनना. सरकार बेरोजगारी, गंदगी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, ठगी पर ध्यान दे, फालतू में धर्म का एजेंडा न बेचे. यह काम पंडों, मुल्लाओं को करने दें. Editorial

Social Inequality: पूरन कुमार की मौत: ऊंचे ओहदे पर भारी जाति के सवाल

Social Inequality, लेखक – शकील प्रेम

एससी तबके को सताने की खबरें आएदिन अखबारों में छपती रहती हैं. कहीं दूल्हे को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाता है, तो कहीं किसी एससी को बेरहमी से पीटा जाता है. यह आम एससी समाज के हालात हैं.

कहते हैं कि आम और खास में फर्क होता है, लेकिन दुख तो इस बात का है कि इस तबके को सताने के मामले में आम और खास में कोई फर्क नहीं दिखता. एससी अगर आईपीएस अफसर भी बन जाए, तो वहां भी उस का शोषण होता है. एससी अगर राष्ट्रपति भी हो तो भी दबाया जाता है. सेना, पुलिस, यूनिवर्सिटी या देश का कोई भी इंस्टिट्यूटशन हो, हर जगह एससी तबके के साथ भेदभाव और शोषण होता ही है. बस, सताने के तरीके बदल जाते हैं.

7 अक्तूबर, 2025 को हरियाणा के सीनियर आईपीएस अफसर वाई. पूरन कुमार ने चंडीगढ़ के सैक्टर 11 के अपने सरकारी आवास के बेसमैंट में अपनी सर्विस रिवौल्वर से खुद को गोली मार कर खुदकुशी कर ली थी.

वाई. पूरन कुमार 2001 बैच के एडीजीपी रैंक के अफसर थे. 8 पन्नों के सुसाइड नोट में उन्होंने 8 आईपीएस और 2 आईएएस अफसरों के नाम लिए थे. इस नोट के मुताबिक इन तमाम बड़े अफसरों ने उन्हें लगातार सताया था.

सुसाइड नोट में वाई. पूरन कुमार ने कैरियर में भेदभाव और अपने सीनियरों के द्वारा जातिवादी बरताव का जिक्र किया था. उन की पत्नी आईएएस अमनीत पी. कुमार ने भी अपनी शिकायत में कहा था कि उन के पति की खुदकुशी ‘सिस्टमैटिक उत्पीड़न’ का नतीजा है.

वाई. पूरन कुमार की खुदकुशी से 24 घंटे पहले उन के गनमैन हैड कांस्टेबल सुशील कुमार को रोहतक में शराब कारोबारी से ढाई लाख रुपए रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. पूछताछ में गनमैन ने
वाई. पूरन कुमार का नाम लिया था.

गनमैन सुशील कुमार के इसी बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज हुई.

वाई. पूरन कुमार की पत्नी अमनीत पी. कुमार ने इस एफआईआर को एक साजिश बताया और उन्होंने कहा, ‘पूरन कुमार पहले से ही सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाते रहे थे. उन्होंने कोर्ट में कई याचिकाएं और शिकायतें लगाई हुई थीं, जिस से वे बड़े अफसरों के लिए मुसीबत बने हुए थे, इसलिए उन्हें रिश्वतखोरी की झूठी साजिश में फंसाया गया.’

वाई. पूरन कुमार ने अपने सुसाइड नोट में आला अफसरों पर जो गंभीर आरोप लगाए हैं, वे बेहद चिंताजनक हैं. एससी समाज के अफसरों को प्रशासनिक तौर पर किस तरह का उत्पीड़न झेलना पड़ता है, वाई. पूरन कुमार इस बात का उदाहरण हैं.

वाई. पूरन कुमार की खुदकुशी के कुछ ही दिनों के अंदर रोहतक में हरियाणा पुलिस के एएसआई संदीप कुमार लाठर ने सर्विस रिवौल्वर से खुद को गोली मार कर खुदकुशी कर ली. संदीप कुमार ने 6 मिनट का वीडियो और 4 पन्नों का सुसाइड नोट छोड़ा. इन में उन्होंने वाई. पूरन कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. इस घटना से एडीजीपी वाई. पूरन कुमार की खुदकुशी का मामला और पेचीदा हो गया है.

एससी समाज से निकले आईपीएस वाई. पूरन कुमार भ्रष्टाचार में शामिल थे या नहीं यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा, पर अगर वे भ्रष्ट अफसर थे तो भी उन के साथ हुए जातीय भेदभाव से इनकार नहीं किया जा सकता.

अगर वाई. पूरन कुमार जैसे बड़े सरकारी अफसर ही जातिवाद की सोच का शिकार हो सकते हैं, तो निचले लैवल पर एससी मुलाजिमों के हालात का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. एससी तबके को कार्पोरेट सैक्टर में भी कोई राहत नहीं है. वहां भी हर लैवल पर भेदभाव होता है.

विवेक राज जो बैंगलुरु में एक कार्पोरेट अफसर थे. वे लाइफस्टाइल इंटरनैशनल प्राइवेट लिमिटेड में पोस्टेड थे. विवेक राज को उन के अपर कास्ट सीनियरों द्वारा इतना उत्पीड़न झेलना पड़ा कि उन्होंने साल 2023 में खुदकुशी कर ली थी. पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई थी, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई.

पिछले 10 सालों में आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में 20 से ज्यादा एससी छात्रों ने जातिवाद के चलते खुदखुशी की. वैसे भी एससी छात्रों के साथ जाति आधारित भेदभाव तो प्राथमिक कक्षाओं से शुरू हो जाता है. यही वजह है कि देश की बड़ी यूनिवर्सिटियों तक एससी तबके के छात्रों का पहुंचना भी मुश्किल होता है.

एससी तबके के छात्रों का प्राइमरी लैवल से ऊंची पढ़ाई तक पहुंचने का फीसदी काफी कम है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2023-24 में एससी छात्रों का ग्रौस इनरोलमैंट रेशियो प्राइमरी लैवल (कक्षा 1-5) पर 96.8 फीसदी, सैकंडरी लैवल (कक्षा 9-10) पर 80.6 फीसदी और हायर सैकंडरी लैवल (कक्षा
11-12) पर 57.9 फीसदी है. इस के बाद ऊंची पढ़ाईलिखाई (18-23 साल) में एससी छात्रों का ग्रौस इनरोलमैंट रेशियो महज 25.9 फीसदी है.

इस का मतलब है कि प्राइमरी लैवल से शुरू करने वाले एससी छात्रों में से तकरीबन 26 फीसदी ही देश की बड़ी यूनिवर्सिटियों या उच्च शिक्षा संस्थानों तक पहुंच पाते हैं, जबकि बाकी स्टूडैंट्स इस से आगे नहीं बढ़ पाते.

देश के टौप संस्थानों जैसे आईआईटी या आईआईएम में पहुंचने वाले स्टूडैंट्स का फीसदी तो 0.1 फीसदी से भी कम है, क्योंकि इन टौप की यूनिवर्सिटियों में सीटें सीमित होती हैं और रिजर्वेशन के बावजूद कंपीटिशन ज्यादा होता है.

इतनी जद्दोजेहद के बाद कुछ छात्र इन यूनिवर्सिटियों तक पहुंच भी गए तो उन्हें हर कदम पर जातिवाद झेलना पड़ता है या उन की संस्थागत हत्याएं कर दी जाती हैं. साल 2016 में रोहित वेमुला और साल 2023 में दर्शन सोलंकी इस बात के उदाहरण हैं.

घोड़ी चढ़ने का हक नहीं

गुजरात के सांदीपाडा गांव में आकाश कोटडिया नाम के एससी नौजवान की शादी थी. गांव के ही कुछ ऊंची जाति के लोगों ने आकाश को शादी के दौरान घोड़ी पर चढ़ने से मना कर दिया. मामला इतना बढ़ा कि पुलिस को अतिरिक्त बल बुलाना पड़ा.

हालांकि, यह मामला फरवरी, 2020 का है, लेकिन इस मामले में खास बात यह है कि आकाश आर्मी का जवान था और जम्मूकश्मीर में तैनात था. वह कुछ दिन पहले छुट्टी ले कर शादी के लिए गांव आया था.

16 दिसंबर, 2024 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक दलित पुलिस कांस्टेबल के बेटे नंदराम सिंह की बरात के दौरान ऊपरी जाति के तकरीबन 40 लोगों ने हमला किया. उन्होंने दूल्हे को घोड़ी से जबरन उतार दिया. जातिवादी गालियां दीं. डीजे सिस्टम तोड़ा. औरतों से छेड़छाड़ की और बरातियों पर पथराव किया. इस मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और 5 लोगों को गिरफ्तार किया.

फरवरी, 2022 को मध्य प्रदेश के छतरपुर में 24 साल के दलित पुलिस कांस्टेबल दयाचंद अहिरवार की बरात में ऊपरी जातियों ने जम कर हंगामा किया और दूल्हे को घोड़ी से उतार दिया. अगले दिन प्रशासन ने भारी पुलिस सुरक्षा में उन्हें घोड़ी पर चढ़ाया.

इन तीनों मामलों में दूल्हे आर्मी या पुलिस में थे, इसलिए इन तीनों मामलों में पुलिस ने सक्रिय भूमिका निभाई और मामला सुर्खियों में आया. आम एससी तबके के ऐसे अनेक मामले तो खबरों में ही नहीं आ पाते या इन मामलों में कोई मुकदमा ही दर्ज नहीं होता.

इन वारदात को रोकने के लिए कई जिलों में ‘समानता समितियां’ बनाई गई हैं और एससी दूल्हों को पुलिस सुरक्षा दी जाती है फिर भी हर साल दर्जनों ऐसे मामले दर्ज किए जाते हैं.

संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को गैरकानूनी घोषित किया गया है, लेकिन एनसीआरबी डाटा के मुताबिक हर 20 मिनट में एससी तबके के खिलाफ ऐसे अपराध दर्ज होते हैं.

राष्ट्रपति होते हुए जातीय भेदभाव

रामनाथ कोविंद, जो 2017 से साल 2022 तक भारत के 14वें राष्ट्रपति रहे, केआर नारायणन के बाद वे भारत के दूसरे ऐसे राष्ट्रपति थे जो एससी तबके से आते थे. वे भाजपा द्वारा समर्थित राष्ट्रपति थे. यही वजह थी कि रामनाथ कोविंद की नियुक्ति को भाजपा ने ‘दलित उत्थान’ के प्रतीक के रूप में पेश किया था.

साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जगन्नाथ पुरी मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करना चाहते थे, लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उन्हें रोक दिया था. मंदिर के परंपरागत नियमों के अनुसार गैरहिंदू या निचली जाति के लोगों को गर्भगृह में जाने की इजाजत नहीं है.

इसी तरह वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जो संथाल जनजाति से आती हैं, भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं, जो 2022 में राष्ट्रपति चुनी गईं.

जून, 2023 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली के श्री जगन्नाथ मंदिर में पूजा की. एक तसवीर वायरल हुई, जिस में वे मंदिर के गर्भगृह के बाहर पूजा करती दिखीं, जबकि केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और धर्मेंद्र प्रधान गर्भगृह के अंदर पूजा करते दिखे. आदिवासी होने के कारण उन्हें गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया गया.

हालांकि, विवाद बढ़ने पर मंदिर के पुजारियों ने साफ किया कि राष्ट्रपति के साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने ऐसा करते हुए सामान्य प्रोटोकौल का पालन किया.

सितंबर, 2023 में नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को न्योता ही नहीं दिया गया, जबकि देश का राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है. इस हिसाब से नए बने संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए.

तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ हुए इस भेदभाव को ‘सनातन धर्म आधारित जातीय भेदभाव’ कहा और दावा किया कि आदिवासी महिला होने के चलते उन्हें इस समारोह से दूर रखा गया.

इस राष्ट्रपति के साथ जातीय भेदभाव

केआर नारायणन भारत के 10वें राष्ट्रपति (1997से 2002) थे, जो एससी बैकग्राउंड से आए थे. वे केरल के उ झावूर गांव में एक अछूत परिवार में जनमे थे. उन की पूरी जिंदगी भारत की जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष की मिसाल है. उन्होंने प्राइमरी ऐजूकेशन से ले कर हायर ऐजूकेशन और फिर लैक्चरर की नौकरी तक में सताया जाना और भेदभाव झेला और राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे जातीय तानों का शिकार बने रहे.

साल 1943 में ट्रावणकोर यूनिवर्सिटी (अब केरल यूनिवर्सिटी) से एमए करने के बाद केआर नारायणन को उन की जाति के चलते लैक्चरर की नौकरी से निकाल दिया गया था. डिगरी समारोह में भी उन्हें बेइज्जत किया गया था. अपने आत्मसम्मान के लिए उन्होंने डिगरी लेने से ही इनकार कर दिया था.

बाद में, राष्ट्रपति बनने पर केआर नारारणयन उसी यूनिवर्सिटी में लौटे और अपने भाषण में उन्होंने कहा था, ‘‘मैं उन जातिवादियों को यहां नहीं देख पा रहा हूं, जिन्होंने मु झे अछूत होने के चलते नौकरी से निकाल दिया था.’’

साल 1948 में लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स से अपनी पढ़ाई पूरी कर के केआर नारायणन आईएफएस के लिए चुने गए थे, लेकिन यहां भी वे सताए जाने का शिकार हुए थे. भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में प्रवेश के लिए उन्हें ऊपरी जातियों के अफसरों का विरोध झेलना पड़ा था. तब डाक्टर बीआर अंबेडकर की मदद से वे आईएफएस में शामिल हुए.

साल 1997 में भारत के 10वें राष्ट्रपति के चुनाव में केआर नारायणन को 95 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन तब उन पर आरोप लगे थे कि उन का चुनाव एससी कोटे के चलते हुआ न कि उन की काबिलीयत से. एक विदेशी यात्रा के दौरान उन्हें जहर देने की साजिश रची गई थी. इस साजिश के लिए दक्षिणपंथी ताकतों की भूमिका नजर आई थी.

गुजरात दंगों को रोकने के लिए राष्ट्रपति केआर नारायणन ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सेना भेजने की मांग की थी, लेकिन उन की बात पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी. यही वजह थी कि साल 2002 में दूसरे कार्यकाल के लिए उन का नाम प्रस्तावित हुआ, लेकिन भाजपा ने उन्हें दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनने दिया था. केआर नारायणन ने बाद में इसे साजिश बताया था.

ओहदे पर जाति भारी

एससीएसटी तबका सदियों से अछूत रहा है. भारत के गांव अछूतों के लिए यातना केंद्र रहे हैं. यही वजह थी कि डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने अछूतों को शहरों में बस जाने पर जोर दिया. शहरों में बस जाने से अछूतपन खत्म नहीं होता, लेकिन गांवों की बजाय रोजगार के मौके ज्यादा थे.

आजादी के बाद एससी तबके ने बड़ी तादात में शहरों की ओर पलायन किया. राहत जरूर मिली, लेकिन शहरों में भी सताया जाना खत्म नहीं हुआ.

लोकतांत्रिक नियमों के मुताबिक पढ़ाईलिखाई के दरवाजे सब के लिए खुले थे, लेकिन अछूतों के लिए सामाजिक नियम इतने कठोर थे कि उन के लिए स्कूल तक पहुंचना आसान नहीं था. गांव हो या शहर एससी तबके की पढ़ाईलिखाई के मामले में दोनों जगह जातिवादी सोच कायम रही.

इस सब के बावजूद एससी तबके के लोग ऊंची तालीम की दहलीज तक पहुंचे और सिस्टम का हिस्सा बने, लेकिन उन्हें सताए जाने का दर्द भी झेलना पड़ा.

आज भी एससीएसटी तबके के लिए मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. शुरुआती पढ़ाईलिखाई तक पहुंच आसान हुई है, लेकिन इस से आगे का रास्ता बेहद मुश्किल है. इन मुश्किल रास्तों पर चलते हुए कुछ लोग सिस्टम का हिस्सा बन भी रहे हैं, तो वहां भी जातिवाद उन का पीछा नहीं छोड़ रहा है. सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या इस जातिवाद को खत्म करने का कोई समाधान है?

समाधान यही है की एससीएसटी तबके को पढ़ाईलिखाई की अहमियत को सम झना होगा. प्राइमरी लैवल की पढ़ाईलिखाई में 97 फीसदी एससी बच्चे पहुंच रहे हैं, लेकिन ऊंची पढ़ाईलिखाई में यही रेशियो महज 26 फीसदी रह जाता है.

एससी तबके को सब से पहले प्राइमरी से ऊंची पढ़ाईलिखाई के बीच के इस ड्रौपआउट रेशियो को कम करना होगा. जो समाज जितना कमजोर होता है, उस के लिए संघर्ष उतना ही बड़ा होता है.

यूनिवर्सिटी की पढ़ाई तक जितने ज्यादा एससी छात्र पहुंचेंगे, उन को सताया जाना उतना ही कम होगा. नौकरियों में भी ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी हासिल करनी होगी. हर लैवल पर संगठन को मजबूत करना होगा, ताकि भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई जा सके.

एससी तबके के सांसदों और विधायकों पर लगातार दबाव बनाए रखना होगा, ताकि वे सिर्फ सत्ता सुख न भोगें, बल्कि समाज के हित में काम करें. समय लगेगा, लेकिन हालात जरूर बदलेंगे.

रहनसहन में बदलाव जरूरी

एससीएसटी और मुसलिम तबके मुख्यधारा से कटे हुए नजर आते हैं, तो इस में किस का दोष है? भारत के कल्चर का हिस्सा होते हुए भी कल्चर से अलग दिखने की नौटंकी क्यों? यहीं से समस्याएं शुरू होती हैं.

एससीएसटी और मुसलिम तबका खुलेपन और नएपन से परहेज करता है. मुसलिम अपने अकीदों के आगे किसी तरह का सम झौता नहीं कर पाते तो एससी तबका भी इसी रास्ते पर निकल पड़ा है.

एससीएसटी और मुसलिम तबके को शहरों में घर किराए पर लेना मुश्किल होता है, तो इस की वजह सिर्फ मकान मालिकों के अंदर भेदभाव भरी सोच ही नहीं है. ये लोग खुद ही मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाते.

खानपान, पहनावा और रहनसहन की आदतें नहीं बदल पाते. साफसफाई के तौरतरीके नहीं सीख पाते. घर में लड़ाई झगड़े, घर की औरतों को पीटना, घर में हमेशा शोरशराबा होना और ज्यादा बच्चे होना यह आम बात होती है, इसीलिए इन्हें कोई किराए पर नहीं रखता.

वर्ग संघर्ष कितना जरूरी

दुनिया के किसी भी समाज में इनसानों की कीमत उस की प्रोडक्टिविटी से तय होती है. परिवार भी ऐसे ही चलते हैं. आज के समय परिवार में जो जितना प्रोडक्टिव होता है उस की इज्जत भी उसी हिसाब से होती है.

परिवार का जो सदस्य प्रोडक्टिव नहीं तो वह अपने परिवार में ही हाशिए पर चला जाएगा. कोई समाज अगर प्रोडक्टिव नहीं है, तो वह भी बाकी समाजों के बीच हाशिए पर चला जाएगा.

जो जाति या समाज टौप पर है, तो उस ने अपनी जायज या नाजायज प्रोडक्टिविटी को साबित किया है और जो जाति या समाज हाशिए पर है, वह अपनी प्रोडक्टिविटी को साबित नहीं कर पाया. यही लोग वर्ग संघर्ष की बात करते हैं. किसी भी संघर्ष की कीमत होती है. जिन के पास बहुतकुछ है वे आसानी से अपना दबदबा नहीं छोड़ेंगे और जिन के पास कुछ नहीं वे किसी भी संघर्ष के लायक भी नहीं हैं, इसलिए वर्ग संघर्ष की बात ही बेमानी है.

इज्जत और सा झेदारी के लिए अपने भीतर का संघर्ष जरूरी है. प्रोडक्टिविटी में भागीदार बनना जरूरी है. इस के लिए प्रोडक्टिव होना जरूरी है. आज जमाना बदल गया है. क्रांतियां किताबों में ही अच्छी लगती हैं. धरातल पर तो जू झना होता है. एससीएसटी और मुसलिम समाज को यह बात सम झनी होगी. बराबरी के हकदार बराबरी के लोग ही होते हैं. यह कड़वी हकीकत है.

‘घेटो’ की घुटन से बाहर निकलना जरूरी

16वीं सदी में इटली के वेनिस शहर में यहूदियों को अलगथलग इलाकों, जिन्हें ‘घेटो नुओवो’ (यहूदियों की नई बस्ती) कहा जाता था, में रहने के लिए मजबूर किया गया था. ये इलाके दूर से पहचाने जा सकते थे.

इटली से ही ‘घेटो शब्द इतना मशहूर हुआ कि यह अमेरिका के नीग्रो गुलामों की अलगथलग बस्तियों के लिए भी इस्तेमाल होने लगा. ब्रिटिश, डच और फ्रांसीसी उपनिवेशों में किसी कबीलाई समुदाय या धार्मिक अल्पसंख्यक को जबरन साथ रहने के लिए मजबूर किया जाता, तो यही इलाके घेटो बन जाते थे.

घेटो की घुटनभरी गलियों में कोई भी बाहरी नहीं घुसना चाहता था. अमेरिका में घेटो गुलामों की फैक्टरियां थीं, तो यूरोप के घेटो यहूदियों को अलगथलग रखने के डिटैंशन कैंप थे. यहां केवल एकजैसे लोग रहते थे, जो घेटो में पैदा होते और यहीं मर जाते थे.

आज भी शहरोंकसबों के आसपास ऐसे इलाके मौजूद होते हैं, जो अनपढ़ता, गरीबी और अपराध के लिए बदनाम होते हैं. ये इलाके आज के घेटो हैं. अमेरिका में अफ्रीकीअमेरिकी या हिस्पैनिक समुदाय के लोग जिन इलाकों में रहते हैं, उन्हें आज भी घेटो कहा जाता है.

भारत में भी ऐसे ‘घेटो’ की कमी नहीं है. यहां तो सदियों से घेटो मौजूद रहे हैं. गांव हो या शहर एससी तबके के लिए हर लैवल पर घेटो बनाए गए थे. शहरों के घेटो आगे चल कर झुग्गी झोंपडि़यों में बदल गए. हर गांव में एक घेटो नजर आ जाएगा.

शहरों में मुसलिम बहुल इलाकों को ही देख लीजिए. ये भी घेटो ही हैं. कई दलित बहुल महल्ले भी ऐसे ही हैं, जहां घुसने में भी घुटन होती है, जबकि वहां ये लोग आराम से जीते हैं. आज के इन घेटो की पहचान खराब बुनियादी ढांचे, अनपढ़ता, सेहत से जुड़ी सेवाओं की कमी और अपराध दर में बढ़ोतरी से होती है.

भारत के घेटो एससीएसटी और मुसलिमों के लिए किसी डिटैंशन कैंप से कम नहीं हैं. आखिर मजबूरी क्या है? घेटो की दीवारों को तोड़ कर मुख्यधारा तक पहुंचना मुश्किल तो नहीं है, लेकिन घेटो में जीने की आदत पड़ गई है. यहां से निकलने का एकमात्र जरीया पढ़ाईलिखाई है, लेकिन इन समाजों को तालीम की सम झ ही नहीं है.

समस्या आप की, हल भी आप ही निकालें

एससीएसटी तबके के साथ इतिहास में गलत हुआ या आज भी गलत हो रहा है, इस बात का रोना रोते रहने से कुछ नहीं बदलेगा. मुसलिम बादशाहों ने हजार साल तक इस देश पर हुकूमत की, इस बात पर इतराने से मुसलिमों के आज के हालात नहीं बदल जाएंगे. एससीएसटी तबके और मुसलिमों को यह तय करना होगा कि वर्तमान में उन के समाज की परफौर्मैंस और प्रोडक्टिविटी क्या है?

यह इस बात से तय होगा कि आप के समाज में पढ़ाईलिखाई और सम झदारी का लैवल क्या है?

पढ़ाईलिखाई और सम झदारी का रास्ता मुश्किल है, लेकिन इस के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है. हालात का रोना रोते रहने से हालात नहीं बदलते. नेता आते हैं और अपना उल्लू सीधा कर गायब हो जाते हैं. समाज इन नेताओं का पिछलग्गू बना रहता है. समस्या आप की है, तो बदलाव भी खुद से शुरू करना होगा. Social Inequality

Latest Bollywood Updates: अमृता राव का अंधविश्वास

Latest Bollywood Updates: ‘इश्कविश्क’ और ‘विवाह’ के अलावा और भी अच्छी फिल्में करने वाली खूबसूरत हीरोइन अमृता राव का फिल्म कैरियर ज्यादा हिट नहीं रहा है. पर हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने यह कहते हुए सब को चौंका दिया कि उन पर किसी ने काला जादू किया था. जब उन्होंने यह सुना था तो वे भी दंग रह गई थीं. ऐक्ट्रैस ने कहा कि उन की 3 फिल्में भी बंद हो गई थीं.

अमृता राव ने उस इंटरव्यू में आगे दावा किया कि एक बार वे अपने गुरुजी से मिली थीं. उन्होंने उस समय तो आर्शीवाद दिया, लेकिन 1-2 दिन बाद उन की मां से कहा कि उन की बेटी पर किसी ने काला जादू और वशीकरण किया है.

अमृता राव यह बात सुन कर चौंक गई थीं और उन्होंने कहा, ‘मैं वशीकरण जैसी बात पर अपनी लाइफ में कभी भरोसा नहीं करती, अगर यह बात मेरे गुरु के अलावा किसी और ने बोली होती.’

मानुषी छिल्लर पर साधा निशाना

मानुषी छिल्लर ने ‘मिस वर्ल्ड 2017’ का खिताब जीता था. इस के बाद उन्होंने साल 2022 में अक्षय कुमार की फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ से हिंदी फिल्मों में डैब्यू किया था. फिर उन की 2 और फिल्में ‘मालिक’ और ‘तेहरान’ भी रिलीज हुई थीं, जबकि इस से पहले वे ‘बड़े मियां छोटे मियां’ और ‘द ग्रेट इंडियन फैमिली’ जैसी फिल्मों में नजर आ चुकी थीं. पर इन में से एक भी फिल्म नहीं चल पाई, तो उन पर फ्लौप हीरोइन का ठप्पा लग गया.

अब मानुषी छिल्लर ने दलजीत दोसांझ के एक म्यूजिक वीडियो ‘कुफर’ में काम किया है, जिस के बाद सोशल मीडिया पर यह कहा जा रहा है कि अब वे इन्हीं के लायक रह गई हैं. इस में सचाई भी है, क्योंकि मानुषी छिल्लर को अब ज्यादा फिल्में नहीं मिल रही हैं और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जमे रहने के लिए ऐसे छोटेमोटे प्रोजैक्ट करने से कोई बात नहीं बनेगी.

एपी ढिल्लों का खुलासा

पंजाबी गायक एपी ढिल्लों का गाना ‘ब्राउन मुंडे’ जेनजी में काफी मशहूर हुआ था और आज भी डीजे पर खूब बजता है. अभी हाल ही में एपी ढिल्लों ने खुलासा किया कि वे एक बार अपने बौलीवुड डैब्यू के करीब आ गए थे. एक फिल्म के लिए वे गाना गाने के लिए फाइनल हो चुके थे. इस गाने की डील में इंडस्ट्री के 2 सब से बड़े लोग थे. हालांकि, यह डील आखिरी समय पर टूट गई, क्योंकि एपी ढिल्लों ने इस गाने के औनरशिप राइट मांगे थे, जिसे मेकर्स ने नहीं माना.

इस के बाद अपने एक इंटरव्यू में एपी ढिल्लों ने बताया, ‘मैं एक ऐसी इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं बनना चाहता, जो कलाकारों और उन की कला का पैसों के फायदे के लिए शोषण करती है.’

शरवरी वाघ को मिला सूरज बड़जात्या का साथ

महाराष्ट्र की लड़की शरवरी वाघ वैसे तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काफी समय से हैं, पर उन्हें ज्यादातर परदे के पीछे ही काम करते देखा गया है. पर अब वे जल्द ही सूरज बड़जात्या की नई फिल्म में आयुष्मान खुराना के साथ रोमांस करती दिखाई देंगी.

इस फिल्म का नाम अभी फाइनल नहीं हुआ है, पर यह एकदम सूरज बड़जात्या स्टाइल फिल्म होगी, जिसे पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर देख सकेगा. वैसे, शरवरी वाघ बहुत जल्द फिल्म ‘अल्फा’ में भी दिखाई देंगी, जिस में वे आलिया भट्ट और बौबी देओल के साथ स्क्रीन शेयर करेंगी. Latest Bollywood Updates

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें