Indian Constitution: भारत का सुप्रीम कोर्ट वह जगह है, जहां संविधान की आत्मा बसती है. जहां शब्द नहीं, व्यवस्था बोलती है. जहां न्याय की मर्यादा सब से ऊपर मानी जाती है. वहीं ऐसा सीन सामने आया, जिस ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया.

सुनवाई के दौरान, 71 साल के एक वकील राकेश किशोर ने चीफ जस्टिस बीआर गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की. यह न केवल एक अदालत की इज्जत को भंग करना था, बल्कि यह घोर पौराणिक और सनातन सोच का प्रदर्शन था, जो आज भी यह स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट की कुरसी पर एक एससी बैठा है और दूसरे एससीएसटी, पढ़ेलिखे लोगों की तरह पुराणवादियों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं है.

चीफ जस्टिस बीआर गवई ने इस घटना को शांत भाव से लिया. उन्होंने कहा, ‘इस से मैं विचलित नहीं हुआ, कृपया कार्यवाही जारी रखिए.’

सामाजिक सोच

सवाल सीधा है कि अगर वही जूता किसी एससीएसटी ने ऊंची जाति के चीफ जस्टिस की ओर फेंका होता, तो क्या वही सहिष्णुता दिखाई जाती? क्या तब यह मामला भी माफ कर देने जितना हलका होता? वह वकील है, 71 साल का है और यह किसी किशोर का गुस्सा नहीं था. उस की हरकत में अनुभव, शिक्षा और विचार का मिश्रण था और यही उसे भयावह बनाता है.

किसी एससी चीफ जस्टिस पर इस तरह का हमला यह दिखाता है कि भारतीय समाज का एक हिस्सा अब भी उस ‘मनुस्मृति’ को भीतर दबाए बैठा है, जो कहती है कि शूद्र ज्ञान या न्याय पाने का अधिकारी नहीं है और उस से भी नीचे का अछूत एससी तो कतई नहीं, चाहे संविधान कुछ भी कहता रहे.

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