पिता के रिकशा से आईएएस तक का सफर

लेखक- डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

दुकान जब बंद हो जाती तो वे रात में बनारस की सड़कों पर रिकशा चलाते थे. उन के 4 बच्चे थे, 3 बेटियां और सब से छोटा बेटा, जिस का नाम गोविंद रखा गया था.

पिता ने कुछ पैसे जोड़ कर धीरेधीरे एक रिकशे से 4 रिकशे बना लिए. समय बीतता रहा. पिता ने तीनों बेटियों को बीए तक पढ़ाया और उन की शादी कर दी.

इस परिवार का सब से छोटा सदस्य गोविंद बहुत मेधावी था. वे लोग जिस महल्ले में रहते थे, उस के बगल में ही एक पौश कालोनी थी. 12 साल का गोविंद चूंकि मेधावी था, इसलिए पौश कालोनी के एक बच्चे से उस की दोस्ती हो गई.

एक दिन गोविंद उस के घर गया, जहां दोस्त के पिताजी उस से मिले.

दोस्त के पिताजी ने अपने बेटे से पूछा, ‘‘यह बच्चा कौन है?’’

दोस्त ने कहा, ‘‘मेरा दोस्त है.’’

उन्होंने गोविंद से पूछा, ‘‘किस क्लास में पढ़ते हो?’’

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गोविंद ने बताया, ‘‘7वीं क्लास में.’’

‘‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं?’’

‘‘जी, वे रिकशा चलाते हैं.’’

इतना सुनते ही दोस्त के पिताजी आगबबूला हो गए. उन्होंने अपने बेटे को फटकारा, ‘‘अब यही बचा है… रिकशे वालों से दोस्ती करोगे.’’

दोस्त चुप हो कर रह गया और दोस्त के अमीर पिता ने गोविंद को वहां से बेइज्जत कर के निकाल दिया.

मासूम गोविंद को यह समझ ही नहीं आया कि उस के साथ ऐसा क्यों हुआ? उस ने अपने एक रिश्तेदार को यह बात बताई. रिश्तेदार ने कहा कि इन हालात से बाहर निकलने का बस एक ही रास्ता है कि तुम आईएएस बन जाओ.

लेकिन 12 साल के बच्चे को यह जानकारी न थी कि आईएएस क्या होता है? पर उस ने यह ठान लिया था कि उसे आईएएस ही बनना है. उस ने बनारस से ही पहले इंटर किया, फिर गणित से बीए. साथसाथ वह यूपीएससी की तैयारी करने लगा.

उधर पिता रिकशा चला कर परिवार पाल रहे थे और एक के बाद एक बेटियों की शादियां भी कर रहे थे, साथ ही, वे बेटे को पढ़ा भी रहे थे.

यह वह समय था, जब बनारस में 14 घंटे के पावर कट लगते थे और उस दौरान सब लोग जनरेटर चलाया करते थे. किराए के जिस छोटे से कमरे में उन का परिवार रहता था, उस के इर्दगिर्द चारों तरफ जनरेटर चलते थे और उन का भयंकर शोर और धुआं होता था. ऐसे में गोविंद सभी खिड़कियांदरवाजे बंद कर अपने कानों में रुई ठूंस कर पढ़ा करता था.

ग्रेजुएशन करने के बाद गोविंद को यूपीएसएसी की तैयारी के लिए दिल्ली जाना था. लेकिन उस के पिता को एक दिन पैर में हलकी सी चोट लग गई. उन का कायदे से इलाज नहीं हुआ और न ही उन्हें आराम मिला, जिस के चलते घाव बढ़ने लगा, जो बाद में सैप्टिक की हालत तक पहुंच गया.

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उधर गोविंद दिल्ली के मुखर्जी नगर में यूपीएससी की तैयारी के लिए रहने लगा. वह घर से पैसे मंगाता नहीं था. वह दिल्ली में बच्चों को ट्यूशन के रूप में गणित पढ़ाता था और फिर उस के बाद अपनी यूपीएससी की तैयारी करता था.

गोविंद के पास कोचिंग में पढ़ने तक के पैसे नहीं थे. पिता का पैर खराब होता जा रहा था. ट्यूशन भी साल में सिर्फ 8 महीने ही मिलती थी. इस माली मुसीबत के चलते धीरेधीरे सभी रिकशे बिक गए. एकमात्र जमीन का टुकड़ा बचा था, वह पिताजी ने मजबूरी में सिर्फ 4,000 रुपए में बेच दिया. घर में फाका होने लगा था. ऐसे में बहनों ने अपने पति व परिवार से छिपा कर भाई की मदद की.

गोविंद इतिहास और मनोविज्ञान पढ़ रहा था. मनोविज्ञान की कोचिंग में उस की दोतिहाई फीस माफ हो गई. इतिहास की कोचिंग के लिए पैसे न थे, इसलिए उस की तैयारी खुद की. वह अनगिनत रातें भूखे पेट सोया होगा, तब जा कर कड़ी मेहनत से पहली ही कोशिश में गोविंद को यूपीएससी के इम्तिहान में 48वां रैंक मिला और अब वह अरुणाचल प्रदेश में बतौर आईएएस तैनात है.

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अंधविश्वास: समाधि ने ले ली बलि!

एक समुदाय विशेष के शख्स चमन लाल जोगी  ने यह ऐलान किया कि मैं समाधि लूंगा यह खबर सुर्खियों में रही. शासन प्रशासन अर्ध निंद्रा में उंघता रहा. हालात यह हो गए कि सार्वजनिक रूप से भीड़ की उपस्थिति मे उसने समाधि ले ली. और उसे रोका भी नहीं जा सका.

दरअसल, छत्तीसगढ़ की छवि वैसे भी देश दुनिया में अंधविश्वास रूढ़िवादिता और भोले भाले लोगों की स्वर्ण भूमि के रूप में जाना जाता रहा है. अक्सर यहां अंधविश्वास की घटनाएं घटती रहती हैं शासन सिर्फ औपचारिकता निभाता है, कुछ विज्ञापन जारी कर देता है. कुछ आंसू बहा देता है और फिर सब कुछ वही ढाक के तीन पात होने लगता है. महासमुंद के पचरी गांव में बाजे-गाजे और धूम धाम के साथ समाधि लेने वाले बाबा को जब लोग निर्धारित तिथि पर पांच  दिवस पश्चात  समाधि से निकालने पहुँचे तो सभी की आँखे फटी की फटी रह गयी….!!

समाधि, ढोंग और अंधविश्वास

सबसे त्रासद  स्थिति यह है कि छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला में एक श्वेत कपड़ा धारी शख्स  ने जब यह घोषणा की कि वे समाधि लेगा और दो चार घंटे नहीं, बल्कि 5 दिन की समाधि लेगा.तब  यह घोषणा  आग की तरह फैल गई . पक्ष में लोग खड़े हो गए . धार्मिक मामला होने के कारण  पुलिस प्रशासन के हाथ बंधे हुए थे,  उसमें इतना साहस नहीं था कि  लोगों को समझा सके  कि ऐसा कतई संभव नहीं है.

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परिणाम स्वरूप समुदाय विशेष की धार्मिक गतिविधि सार्वजनिक रूप से घटित होती चली गई.

पांच दिन होने पर जब समाधि स्थल  पर लोग पहुंचे और सच देखा तो हतप्रभ रह गए.क्योंकि समाधि से बाहर निकलने से पूर्व  का समाधि के अंदर उस शख़्स  का दम घूंट चुका था . सच तो यह है कि समाधि साधना के जूनून ने आखिर एक युवक की जान ले ली… पांच दिनों तक समाधि लेने के बाद जब उसे निकाला गया तो वह मृत था.

जिला प्रशासन ने आत्महत्या रोकने यहां नाम मात्र का ‘नवजीवन’ कार्यक्रम चला रखा है…वहीं अंधविश्वास की आंधी के प्रवाह में  बहकर  ग्राम पचरी का रहवासी  चम्मन लाल जोगी ने समाधि के दौरान दम तोड़ दिया. कुल जमा यह की तपोबल से समाधि लगाना महासमुंद जिले के ग्राम पचरी के एक युवक के लिए जानलेवा साबित हो गया.

दम घुटने से हो गई मौत

दरअसल, 30 वर्षिय चमनदास  ग्राम पचरी के निवासी पिछले पांच सालों से अलग  अलग  अवधि की  खतरनाक समाधि लिया  करता  रहा था. इस समाधि में उसने पहले साल 24 घंटे, दूसरे साल 48 घंटे, तीसरे साल 72 घंटे, चौथे साल 96 घंटे की समाधि ली थी. समाधि लेने के बाद हर साल किसी तरह जान बच जाने की वजह से इस दफे 16 दिसंबर 2019 को 108 घंटों की समाधि के लिए 4 फिट गड्ढे में भुमिगत समाधि के लिए उतरा था.

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पर उसको और उसके भक्तों को क्या मालूम था कि अंधविश्वास की ये समाधि चमनदास को मौत के बाद ही बाहर निकालेगी. पांच दिन बाद जब चमनदास को जब गड्ढे से बाहर निकाला गया तब वह बेहोश था…जहाँ उसे आनन  फानन मे जिला चिकित्सालय ले जाया गया. महासमुंद जिला अस्पताल में जांच  के बाद चिकित्सकों नें उसे मृत घोषित कर दिया.मृतक के रिश्तेदार का कहना है कि  हमने लंबे समय तक समाधि लेने को मना किया था लेकिन  वह नही माना और जान गवा दी. चिकित्सक जी. आर. पंजवानी ने इस संदर्भ में बताया कि  जमीन के अंदर ऑक्सीजन की कमी के वजह से दम घुटने से उसकी मौत हुई है.

क्या करें जब पड़ोस की लड़की भाने लगे

खैर, मसला यह है कि क्या करें जब पड़ोस की लड़की भाने लगे, उस के लिए दिल में कुछकुछ होने लगे और उसे देखने भर से मन न भरे. पहली बात जो इस मसले में जान लेना बहुत जरूरी है, यह है कि पड़ोस के प्यार के बारे में शायद आप को अब भी कुछ दुविधा हो कि यह प्यार है या नहीं, लेकिन, पूरे महल्ले के लिए तो आप का उसे एक नजर देखना भर ही “पक्का इन का चक्कर चल रहा है” कहने के लिए काफी होगा. तो, जरा संभल कर.

प्रोपोज करने से पहले सोच लें यदि आप यह सोचें की आप को अपने सामने वाले घर में रहने वाली लड़की अच्छी लगती है और आप के दिमाग में उसे देखते ही ‘मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद सा टुकड़ा रहता है’ गीत गुनगुनाने लगता है, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप जा कर सीधा प्रोपोज कर दें.

पहले अपनी फीलिंग्स को ले कर क्लियर हो जाएं कि सच में आप उसे चाहने लगे हैं या यह छोटा मोटा क्रश है. इस के बाद उस लड़की के हावभाव नोटिस करें. अगर वह भी आप को उस नजर से देखती है जिस से आप देखते हैं, अगर वह भी आप को नोटिस करती है, अगर उस ने सच में कोई हिंट दिया है तो आप उसे प्रोपोज करने के बारे में सोच सकते हैं, नहीं तो नहीं.

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हां, परंतु उस का अपनी खिड़की पर आ कर बाल सुखाना और खिड़की का पर्दा खुला रखना आप के लिए कोई संकेत नहीं है, यह भी ध्यान रखें. उस की सामान्य क्रियाओं को प्रतिकिर्याओं के रूप में लेने की कोशिश न करें.

शब्दों का चुनाव सही हो

अगर आप को उस लड़की को प्रोपोज करना है तो अपने शब्दों का चुनाव सही रखना बेहद जरूरी है. उसे दो दिन पहले देखा और तीसरे दिन जा कर यह कह देना कि मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना मर जाऊंगा, बेतुका है. फिल्म रांझना के कुंदन बनने से कुछ होने वाला नहीं है, थोड़े समझदार व्यक्ति की तरह सोचें. यदि आप उसे पसंद करते हैं तो उसे यह कहें कि आप को वह पसंद है. आप को उसे देखना अच्छा लगता है तो उसे यह कहें कि वह खूबसूरत है और आप की नजरें उस पर रुक जाती हैं. जवानी के जोश में और अपने खुद के भ्रम में उस लड़की को उलझाने की कोशिश न करें. प्यार को चलता फिरता शब्द न बनाएं.

गति धीमी रखें

यदि आप की पड़ोस की लड़की भी आप को उतना ही पसंद करती है जितना आप करते हैं तो खुशी के मारे हर चीज़ हबड़तबड़ में न करें. आज उसे खत भेजना तो कल बाजार में हाथ पकड़े घूमना और परसो उसे कहना कि किस करे या सेक्स करे, गलत है. चीज़ें शुरू के दिनों में जितनी अच्छी लगेंगी ब्रेकअप होने के बाद उतनी ही खलेंगी भी. वैसे भी जल्बाजी करने पर चीज़े बिगड़ती ही हैं, फल अपना समय ले कर ही उगते हैं, जल्बाजी करने पर पेट में रसायन ही जाता है जो जानलेवा होता है.

आसपड़ोस का रखे ध्यान

अपने प्यार में इतना भी न खो जाएं कि आप आसपास देखना ही भूल जाएं. पड़ोस की लवस्टोरी में परिवार और पड़ोस की भी बड़ी भूमिका होती है. यदि जाने-अनजाने किसी को आप दोनों के प्रेमप्रसंग के बारे में पता चलता है तो यह आप दोनों के रिश्ते का अंत भी हो सकता है. यह न भूलें कि भारतीय परंपरा और प्रतिष्ठा से लिप्त परिवारों के लिए लड़के लड़की का शादी से पहले ‘प्यार’ का नाम लेना भी “थूथू” से कम नहीं. तो, बाजार में हाथ पकड़े न घूमें, हमेशा उसे ही ताकते न रहें, इशारों इशारों में इतनी भी बातें न करें कि पूरा महल्ला ही इस का दर्शक बन जाए.

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दोस्तों को हर बात न बताएं

माना दोस्तों से कुछ छुपाना नहीं चाहिए हम ने बचपन से सीखा है लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप इस बात को अपने अंदर इतना घुसा लें कि आप अपने प्रेमप्रसंग की बातें हर किसी को ही बताने लगें. आप का दोस्त यदि आप को जानता है तो उस लड़की को भी जानता ही होगा. एक ही महल्ले में रहने के कारण आप का दोस्त भी उस लड़की को हमेशा ‘भाभी’ की नजर से ही देखेगा जोकि सही नहीं है, क्योंकि इस से उस लड़की को अटपटा लग सकता है.

आप यदि अपने दोस्तों को अपने और उस लड़की के शारीरिक संबंधों के बारे में बताते फिरेंगे तो यकीन मानिए वे उस लड़की को वासना की नजर से देखने लगेंगे. कितनी ही बार तो ऐसी घटनाएं भी सामने आई हैं जब दोस्तों ने अपनी ही दोस्त की गर्लफ्रेंड को छेड़ा या उस के साथ बलात्कार की कोशिश की है. तो, जरा संभल कर.

पारिवारिक अस्मिता का ध्यान रखें

पड़ोस के प्यार में अकसर लड़के-लड़कियां पारिवारिक अस्मिता का ध्यान रखना भूल जाते हैं. एकदूसरे से छत पर छुपछुप कर मिलना, एकदूसरे के घर में घुस जाना, फंक्शन का फायदा उठा कर एकदूसरे को भरी महफिल में छूने की कोशिश करना, गलत है. कुछ भी करने से पहले अच्छी तरह सोच लें. इस पड़ोस के प्यार के पकड़े जाने पर आप और आप का परिवार तो आहत होते ही हैं, साथ ही लड़ाई झगड़ा होता है जिस का मनोरंजन पूरा महल्ला उठाता है और मजे लेता है. अपनी मोहब्बत को अपने परिवार की इज्जत उछालने का जरिया न बनने दें.

ब्रेकअप को सर पर न चढ़ने दें

हो सकता है आप को लग रहा हो कि अभी तो आप की लवस्टोरी शुरू भी नहीं हुई और मैं ब्रेकअप की बातें करने लगी. लेकिन, यह समझना भी बेहद जरूरी है. पड़ोस के प्यार में प्राइवेसी बहुत कम होती है, एकदूसरे का घर भी आसापास ही होता है इसलिए. ऐसे में यदि आप का ब्रेकअप हो जाए तो दो चीज़ें हो सकती हैं. पहला, आप इस ब्रेकअप से इतना टूट गए हैं कि उस लड़की की हंसी भी आप को अंगारों जैसी जला रही है.

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दूसरा, आप उस लड़की को अपनी खुशी दिखा कर जलाना चाहते हैं. दोनों ही मामलों में कुछ भी करने से पहले सोच लें. यह वही लड़की है जिस की चाहत में आप कुछ दिन पहले तक पागल हो गए थे, इसलिए अब उस के लिए कुछ बुरा सोचना या उस को नुक्सान पहुंचाने जैसी चीजें न सोचें. जो हो गया, सो हो गया. बातों को पकड़ कर न बैठे रहें बल्कि आगे बढें.

कुछ ऐसे भी लोग करते हैं टिक-टौक से अपनें सपनों को पूरा

आजकल तो वैसे भी टिक-टौक पर तमाम तरह के ऐसे गाने फेमस हो रहे हैं जिन्हें कई लोगों ने सुना भी नहीं होगा. लेकिन जैसे ही वो टिक-टौक पर आए वो अपने आप ही फेमस हो गए. अब तो बहुत से ऐसे टिक-टौक स्टार हैं जो इससे काफी पैसे भी कमा रहे हैं.

हालांकि कुछ लोगों का तो ये काम है और कुछ लोग अपने शौख के लिए बनाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें एक्टिंग आती तो नहीं है पर वो भी फिल्मी सपने देखते हैं और उन सपनों को वो टिक-टौक से पूरा कर रहें हैं. यहां पर वैसे तो टिक-टौक से फिल्मी सितारे भी अछूते नहीं रहें हैं. आजकल तो सिंगर हो या एक्टर हर कोई टिक-टौक पर छाया हुआ है. लेकिन ज़रा सोचिए उन लोगों के बारे में जो ज्यादा अमीर नहीं हैं उनके पास ना पैसा है और ना ही एक्टिंग का हुनर है लेकिन फिर भी वो वीडियोज़ बनाते हैं. बिना इस बात की परवाह किए कि उनके वो वीडियोज़ कितने फनी होते हैं.

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लोग उसे देखकर हंसते हैं मज़े लेते हैं. वो ये नहीं जानते कि उन गरीबों के भी कुछ सपने हैं जिन्हें वो सच में ना सही तो ऐसे ही पूरा कर रहें हैं. एक्सप्रेशन तो ऐसे-ऐसे देंगे की पूछो ही मत, लेकिन उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है वो तो बस अपना शौक पूरा कर रहें हैं. बीच में एक समय ऐसा आया था जब मद्रास हाई कोर्ट में टिक-टौक के खिलाफ केस चल रहा था क्योंकि की लोगों की इसकी वजह से जान भी चली गई थी.

टिक-टौक पर कुछ बेहुदा कंटेट आ गए थे जिससे कई बकवास वीडियो लोग बनाने लगे थे और कई लोगों ने वीडियो बनाने के चक्कर में अपनी जान दे दी. कोई गाने में अपनी हथेली काट रहा था तो कोई सच में फिनायल पी रहा था. इसको देखते हुए टिक-टौक एप के खिलाफ केस दर्ज कर दिया गया. कई लोगों को इस एप से आपत्ति थी और आज भी है. मद्रास हाई कोर्ट ने इस एप पर बैन लगाने का फरमान तक दे दिया था. 17 अप्रैल को टिक-टौक को भारत में गूगल प्ले स्टोर और एपल ऐप स्टोर से हटा दिया गया था. ये बैन भी हो गया था लेकिन कुछ समय बाद ये फिर से चालू कर दिया गया.

मद्रास के हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने ये फैसला टिक-टौक के पौजिटिव बयान आने के बाद लिया जब कंपनी ने कहा हम इसका गलत इस्तेमाल होने से रोकेंगे. शायद एक ऐसा ऐप है जिसके माध्यम से काफी लोग अपने फिल्मी सपने पूरे कर रहें हैं. लोग अपने अंदर की जितनी भी भरी हुइ क्रिएटिविटी है सब टिक-टौक पर निकल कर आ रही है. युवा आज के समय में इसके पीछे सबसे ज्यादा पागल हैं और साथ में कुछ माता- पिता भी ऐसे हैं जो साथ में लगे हुए हैं.

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कुछ बच्चे भी इस वक्त बहुत फेमस हैं क्योंकि उनके माता-पिता खुद उन्हें इस बात की छूट दे रहें हैं. टिक-टौक बहुत बुरा नहीं हैं लेकिन तब तक जब तक आप इससे अपना मनोंरंजन कर  रहें हैं लेकिन अगर आपको इसकी लत है तो ये आपके लिए बुरा है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि कुछ लोगों को टिक-टौक की बीमारी है और एक रिर्पोट के मुताबिक भारत में ऐसे बिमारों की संख्या करीब 25 करोड़ है. हालांकि इस ऐप पर अब थोड़ी लगाम तो लग गई है लेकिन बीमारी अभी खतम नहीं हुई है क्योंकि जो लोग इसके बिना रह नहीं सकते हैं उनको बीमार ही कहेंगे.

चाइनीज कंपनी वाला ये एप इस वक्त पूरे भारत में पौपुलर है और इसके जरिए लोगों की एक्टिंग, सिंगिंग, डासिंग सब निकल कर बाहर आ रही हैं. लेकिन दोस्तों ये एप तभी तक अच्छा है जब तक आप इससे थोड़ा मनोरंजन कर रहे हैं क्योंकि अगर इसकी लत लगी तो फिर आपके लिए ये एप खतरनाक भी साबित हो सकता है.

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CAA PROTEST: यूपी में हिंसा के बाद 15 लोगों की मौत, 705 गिरफ्तारियां

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. बिल पास होने तक ये विद्रोह पूर्वोत्तर के राज्यों तक ही सीमित था लेकिन अब ये देश के ज्यादातर हिस्सों तक फैल चुका है. यूपी में प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई. फिलहाल अभी तक यूपी के कई हिस्सों में रह रहकर प्रदर्शनकारी सड़कों पर आ रहे हैं और पत्थरबाजी और आगजनी कर रहे हैं. पुलिस प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस, वाटर कैनन जैसे प्रसाधनों से उन पर काबू पाने की कोशिश कर रही है.

शनिवार को कानपुर और रामपुर में प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई. रामपुर में एक की मौत हो गई. अन्य जिलों में छिटपुट घटनाएं हुई हैं. पुलिस के मुताबिक, विरोध प्रदर्शनों के दौरान 11 दिनों के भीतर 15 लोगों की मौत हो चुकी है और 705 गिरफ्तारियां हुई हैं. 4500 लोगों को हिरासत में लिया गया है.

आईजी (कानून व्यवस्था) प्रवीण कुमार के मुताबिक, “पूरे प्रदेश में 10 दिसंबर से लेकर अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है. हिंसक प्रदर्शनों में 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू कर दी गई है. पुलिस हिंसाग्रस्त इलाकों में गश्त कर लोगों से शांति की अपील कर रही है.”

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अब लखनऊ समेत 15 जिलों में सोमवार को दोपहर 12 बजे तक इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद रहेंगी. मोबाइल ऑपरेटरों को गृहमंत्रालय द्वारा आदेश भेजे गए हैं. लखनऊ, सहारनपुर, मेरठ, शामली, मुजफरनगर, गाजियाबाद, बरेली, मऊ, संभल, आजमगढ़, आगरा, कानपुर, उन्नाव, मुरादाबाद, प्रयागराज शामिल हैं. अन्य जिलों में भी इंटरनेट सेवाओं को बंद रखने का फैसला वहां के डीएम पर छोड़ा गया है. स्थितियों के अनुरूप वे इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित कर सकते हैं.

शनिवार को लखनऊ की एसएसपी कलानिधि नैथानी ने बताया कि 250 लोगों को वीडियो फुटेज और फोटो के आधार पर चिन्हित कर गिरफ्तार किया गया है. फिलहाल बाकी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी जारी है. प्रशासन इन आरोपियों पर रासुका और संपत्ति कुर्क की कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है. उधर, गोरखपुर में भी प्रदर्शन करने वालों के पुलिस ने स्केच जारी किए हैं.

शनिवार को कानपुर के यतीमखाना में जुलूस निकाला गया. इस दौरान बड़ी संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसूगैस के गोले भी छोड़े. इसमें 12 से अधिक लोगों के घायल होने की जानकारी है. सपा के विधायक अमिताभ बाजपेयी और हाजी इरफान सोलंकी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है.

दूसरी ओर, रामपुर में प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के बावजूद उलेमाओं ने बंद बुलाया. इस दौरान हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए. ईदगाह के पास इकट्ठा होकर लोगों ने जमकर नारेबाजी की. इस दौरान पुलिस और भीड़ बिल्कुल आमने-सामने हो गई. प्रदर्शन के दौरान भीड़ इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने एक पुलिस जीप के अलावा अन्य आठ वाहनों को भी फूंक दिया. इस हिंसक प्रदर्शन के दौरान एक शख्स की मौत हो गई. हालांकि पुलिस ने कहा कि उसकी ओर से कोई फायरिंग नहीं की गई है.

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मुजफ्फरनगर के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में कच्ची सड़क के पास केवलपुरी में शनिवार को दो पक्षों के बीच पथराव हो गया. इस दौरान दोनों पक्षों की ओर से पथराव किया गया. मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकारकर भीड़ को वहां से खदेड़ दिया. तनाव को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है.

झांसी में सोशल मीडिया की निगरानी कर रही पुलिस ने भड़काऊ पोस्ट वाली 300 फेसबुक आईडी ब्लॉक कर दी हैं. इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की तैयारी हो रही है. शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने बढ़ती हिंसा के बीच कहा कि मुस्लिम समुदाय से शांति बनाए रखने की अपील की. पुलिस महानिदेशक सिंह ने कहा, “हिंसा करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा. हिंसा में बाहरी लोगों का हाथ है। उन्होंने आशंका जताई कि हिंसा में एनजीओ और राजनीतिक लोग भी शामिल हो सकते हैं. हम किसी निर्दोष को गिरफ्तार नहीं करेंगे.”

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रवीण कुमार ने बताया कि सीएए को लेकर लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों में अब तक 124 एफआईआर दर्ज की गई हैं. 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वहीं 4500 लोगों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें हिरासत में लिया गया है. आईजी के अनुसार, पथराव व आगजनी में 263 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, जिनमें से 57 पुलिसकर्मियों को गोली लगी है.

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उन्होंने बताया कि हिंसा में 15 लोगों की मौत हुई है. पुलिस ने 405 खोखे बरामद किए हैं. आईजी ने बताया कि सोशल मीडिया के 14,101 आपत्तिजनक पोस्टों से संबंधित लोगों पर कार्रवाई की गई है. इनमें ट्विटर की 5965, फेसबुक की 7995 और यूट्यूब की 142 आपत्तिजनक पोस्टों पर कार्रवाई की गई है. इनमें 63 एफआईआर दर्ज की गई हैं, वहीं 102 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, इनके अलावा 442 पाबंद किए गए हैं.

दिल्ली-लखनऊ में हिंसा आर या पार, नागरिकता बिल पर बवाल

19 दिसंबर की दिल्ली की ये हिंसा इस कदर हावी हो गई की लोगों के मन में डर बैठ गया है. लोग सहम रहे हैं. इस हिंसा को देख तो यही लगता है कि अब तो दिल्ली की ये हिंसा आर या पार. इस बढ़ती हिंसा के चलते राजधानी दिल्ली के कई मेट्रो स्टेशनों को बंद कर दिया गया, जिसमें भगवान दास, राजीव चौक, जनपथ, वसंत विहार, कल्याण मार्ग, मंडी हाउस, खान मार्केट, जामा मस्जिद, लालकिला, जामिया विश्वनिद्याल, मुनेरका, केंदीय सचिवालय, चांदनी चौक, शाहीन बाग ये सभी मेट्रो स्टेशन शामिल हैं.

लालकिला, मंडीहाउस समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं दिल्ली के जहां पर गुरुवार को उग्र प्रदर्शनकारियों ने जमकर प्रदर्शन किया और जगह-जगह पर आगजनी, तोड़-फोड़, पथराव किया. पुलिस को लाठीचार्ज करनी पड़ी, आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. ऐसा नहीं है कि इस प्रदर्शन में केवल विद्यार्थी ही शामिल हैं बल्कि इस प्रदर्शन में कुछ नेता भी शामिल हैं. एक खबर के मुताबिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा और बेंगलुरु में लेखक को तो हिरासत में लिया गया साथ ही योगेंद्र यादब, उमर खालिद, संदीप दीक्षित, प्रशांत भूषण जैसे नेताओं को भी हिरासत में लिया गया है.

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ये सभी नेता नागरिकता बिल को लेकर प्रदर्शन में शामिल है. मेंट्रो के बंद हो जाने के कारण आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि लोगों को आवाजाही में दिक्कत हो रही है. तो वहीं राजधानी दिल्ली में कई इलाकों में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया है. कालिंग सुविधा बंद कर दी गई है. एसएमएस तक पर रोक लगा दी गई है. ताकि हिंसा को बढ़ावा देने वाले कुछ अवांछनीय तत्व जो अफवाह फैला रहे हैं वो ना कर पाए. लेकिन ऐसे में उन क्षेत्रों में रहने वाले आम नागरिक परेशानी उठा रहे हैं.

इधर जामिया हिंसा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस पर सुनवाई अब चार फरवरी को होगी. एक तरफ दिल्ली में हिंसा उग्र होती जा रही है तो वहीं गुरुवार को लखनऊ में भी हिंसा अपने चरम पर पहुंचता हुआ नजर आया. वहां पर प्रदर्शनकारी उग्र हो उठे. कई जगहों पर आगजनी, तोड़फोड़ की और इतना ही नहीं बल्कि एक ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. कई गाड़ियां धू-धू कर जल रहीं थीं. रोडवेज बसों को भी आग के हवाले कर दिया.

हालांकि जहां पर भी सार्वजनिक संपत्ति को प्रदर्शनकारियों ने नुकसान पहुंचाया है वहां पर सरकार कड़ा रुख अपनाते हुए सख्त कार्रवाई करेगी. लखनऊ के डालीगंज इलाके में हिंसा इतनी तेज हो गई कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़ें. लखनऊ के इस बढ़ती हिंसा में दो पुलिस बूथ भी बुरी तरह से स्वाहा हो गए. वहां पर इस हिंसा को देखते हुए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. हिंसा का ये रूप देखकर कोई भी सहम जाए. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच में झड़प हो रही है. प्रदर्शनकारी पुलिस पर उल्टा पथराव करने पर उतारू हैं.

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खबरों के मुताबिक सीएम योगी इन सब को देख कर काफी नाराज हैं और उन्होंने कहा है कि जो भी उपद्रवी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं उन सबको भरपाई करनी पड़ेगी. उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने इस इस पर चर्चा के लिए बैठक भी बुलाई है. शायद ये कड़ा रुख अपनाना जरूरी भी था. उपद्रवीयों ने लखनऊ में 20 बाइक, 10 कार व 3 बसों को जला डाला. इतना ही नहीं कवर करने के लिए गई चार मीडियो ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. ना जाने ये प्रदर्शन कब तक चलेगा और देश को कब तक इसमें जलना पड़ेगा, क्योंकि ये हिंसा बहुत ही खतरनाक रूप लेती जा रही है और सरकार को जल्द ही इस पर कोई कड़ा रूख अपनाना होगा.

खजाने के चक्कर में खोदे जा रहे किले

लेखक- रामकिशोर पंवार

गोंड राजाओं, मुगलों और मराठों के राज के इन किलों में सब से ज्यादा मशहूर खेड़ला राजवंश का किला है, जिस के बारे में पारस पत्थर से जुड़ी हुई कई कहानियां भी सुनाई जाती हैं.

मध्य प्रदेश के बनने से पहले बैतूल सीपी ऐंड बरार स्टेट का हिस्सा था. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा की निशानदेही करती सतपुड़ा की हरीभरी वादियों व महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र से लगा सतपुड़ामेलघाट टाइगर का रिजर्व्ड कौरिडोर इस में शामिल है. धारूल की अंबा देवी की पहाडि़यों में मौजूद गुफाओं के राज की खोजबीन व उन को बचाए रखने की आ पड़ी जरूरत ने सब को चौंका दिया है.

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आदिमानव की कला

धारूल की इन पहाडि़यों में अनेक राज दबे होने के बारे में कहा जाता है कि अंबा देवी क्षेत्र में अजंता, एलोरा, भीमबेठिका की तरह पाषाणकालीन आदिमानव द्वारा बनाए गए शैलचित्र, भित्तिचित्र और अजीबोगरीब आकृतियां देखने को मिलती हैं. इस पूरी पहाड़ी में साल 2007 से 2012 में 100 से ज्यादा प्राचीन गुफाओं की खोज की गई. अब तक की खोज में पाया गया है कि 35 गुफाओं में पेड़पौधों के रंगों से अनेक तरह की आकृति बनाई गई हैं.

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बनी इन गुफाओं पर बाकायदा लघु फिल्में बनी हैं और कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं. बैतूल जिले में इस समय 5 किले होने के सुबूत मिलते हैं. 4 किले पहाड़ी पर बने हैं, जिन में सब से प्राचीन खेड़ला राजवंश का खेड़ला किला है. उस के बाद असीरगढ़, भंवरगढ़, सांवलीगढ़ के किले हैं, जो गवासेन के पास एक पहाड़ी पर मौजूद हैं. खेड़ला किले में 35 परगना शामिल थे.

खेड़ला राज्य की राजधानी वर्तमान महाराष्ट्र का शहर अचलपुर है, जो उस समय राजा ईल-एल के नाम पर एलिजपुर के रूप में पहचाना जाता था. इस राजा के बारे में यहां पर यह किस्सा मशहूर है कि राजा के पास सोने का इतना भंडार था कि वह खेड़ला से एलिजपुर तक सोने की सड़क बनवा सकता था.

खेड़ला राज्य का सोने का भंडार और राजा के पास पारस पत्थर का होना ही खेड़ला राजवंश के खत्म होने की वजह बना. मुगल शासक ने अपने सेनापति रहमान शाह दुल्हा को उसी पारस पत्थर को हासिल करने के लिए हजारों सैनिकों के साथ इस किले पर हमला करने के लिए भेजा था. उस के बाद यह किला मुगलों के कब्जे में आ गया और खेड़ला महमूदाबाद के रूप में अपनी पहचान को सामने लाया. मराठों ने इस किले को मुगलों से छीन कर एक बार फिर यहां पर राजा जैतपाल को राजा बना कर भेजा.

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खेड़ला के राज खजाने की खोज में खेड़ला से एलिजपुर तक बनी सुरंगों को अनेक बार खोदा जा चुका है. पूरा किला बेइंतिहा खुदाई के चलते खंडहर बन चुका है. पारस पत्थर को किले से रावण बाड़ी के तालाब में फेंके जाने की कहानी के बाद हाथियों के पैरों में लोहे की चेन बांध कर उन्हें तालाब के चारों ओर घुमाया गया. आज भी पारस पत्थर की तलाश में तालाब के पानी के सूखते ही उस की खुदाई शुरू हो जाती है.

मुलताई नगर से 8 किलोमीटर दूर गांव शेरगढ़ के पास वर्धा नदी के तट पर शेरगढ़ किला बना हुआ है. यह बैतूल जिले का एकमात्र मैदानी किला है, जिस का वजूद पूरी तरह खत्म होने की कगार पर आ गया है. समय के साथ इस किले की दीवारें ढहने लगी हैं. पूरे किले में झाडि़यां उग आई हैं. यहां पर भी खजाने की खोज में सोने के सिक्कों की अफवाह के चलते चोरों द्वारा की गई जगहजगह खुदाई से किले की बुनियाद को नुकसान हो रहा है.

बेरहम वक्त की मार ने भले ही इस किले को आज खंडहर में बदल दिया हो, पर किले का भीमकाय दरवाजा आज भी आसमान को चुनौतियां देता लगता है. बहुत ही सुंदर क्षेत्र में बने इस किले का मेन दरवाजा व परकोटा पत्थरों को काट कर बनाया गया है.

किले के भीतर पानी की एक बावड़ी भी बनी हुई है, जो ठीकठाक हालात में दिखाई देती है. इस के साथ ही इस की लंबी सुरंग का मुहाना भी दिखाई देता है. माना जाता है कि इस सुरंग का इस्तेमाल बाहर निकलने के लिए भी किया जाता था.

खस्ताहाल होने के बावजूद भी इस किले की बनावट और कुदरती छटा मन को मोह लेती है. एक ही पत्थर को काट कर मेहराब की शक्ल में बनाए गए दरवाजे कारीगरी के बेहतरीन नमूने से रूबरू कराते हैं. हालांकि दीवारें टूटने के बाद ये पत्थरों की बनी चौखट जैसे ही दिखाई देते हैं, पर फिर भी इस की खूबसूरती देखते ही बनती है.

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अंधविश्वास: भक्ति या हुड़दंग

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

11 नवंबर, 2019 को लखनऊ से तकरीबन 110 किलोमीटर दूर सीतापुर रोड पर सीतापुर जिले के हरगांव नामक कसबे में एक वाकिआ देखने को मिला. यह मौका था कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले ‘दीपदान महोत्सव’ का, जो वहां के सूर्य कुंड तीर्थ में दीप जला कर मनाया जाता है.

आसपास के गांवों से सैकड़ों की तादाद में लोग वहां पहुंचे हुए थे और दीपदान कर रहे थे. वहीं पर शिव के मंदिर के ही पास एक मंच भी बनाया गया था. यहां तक तो सब अच्छा लग रहा था, पर हद तो तब हो गई, जब 2-3 किशोर लड़के राधाकृष्ण के वेश में आए और एक लड़का मोर के पंख लगा कर आ गया. वह लड़का एक अलग अंदाज में अपने पंखों को फैला रहा था और सब लोग उस के साथ सैल्फी लेने के लिए टूट पड़ रहे थे.

राधाकृष्ण और मोर बने लड़के मंच पर पहुंच गए और नाचना शुरू कर दिया. जनता तो जैसे इसी के लिए इंतजार में ही थी. तमाम नौजवान उन के वीडियो बनाते रहे, क्योंकि लोगों को उस समय धर्म से मतलब न हो कर उन लड़कों के नाच में ज्यादा मजा आ रहा था. जनता खुश हो कर पैसे लुटा रही थी और इस का मजा वहां की आयोजक समिति के लोग, जो मंदिर के पंडे ही थे, उठा रहे थे, जबकि इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा इन लोक कलाकारों और नर्तकों को दिया जाना चाहिए था, पर ऐसा होता नहीं दिखा, पैसे पर तो हक पंडे-पुजारियों का ही होता दिख रहा था. नतीजतन, लोगों के लिए वह एक डांस पार्टी जैसा कार्यक्रम हो गया था.

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उन्हीं लोगों में एक लड़का शिव के रूप में भी वहां पर आया था. अपने रौद्र रूप के चलते वह भी लोगों के कौतूहल और सैल्फी का केंद्र नजर आ रहा था और उस ने भी नाचनागाना शुरू किया. लोगों ने आस्था के नाम पर पैसे भी चढ़ाए.

माइक पर बोलता आदमी इस डांस को झांकी बोल रहा था, पर इस नाच में कलाकारों का अच्छा मेकअप था, उन के कपड़े अच्छे थे, उन की अच्छी भाव-भंगिमा थी, पर धार्मिकता कहीं नहीं थी. शायद सारी जनता इसे बस इस मनोरंजन का साधन मान कर देख रही थी और जी भर कर पैसा लुटा रही थी.

इस दीपदान नामक महोत्सव में ही थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर मौत के कुएं में मोटरसाइकिल चलाने का खेल चल रहा था, जिस में एक लड़का अपनी जान की बाजी लगा कर अपनी रोजीरोटी जुटाने की कोशिश कर रहा था.

कितना फर्क था एक ही जगह के 2 कार्यक्रमों और उन के पैसे कमाने के तरीके में.

इसी तरह का नजारा कांवड़ यात्रा में देखने को मिलता है. कुछ समय पहले सच्चे कांवड़ श्रद्धालु चुपचाप कांवड़ ले कर चलते जाते थे, फिर धीरेधीरे वे अपने साथ डीजे वगैरह ले जाने लगे और फिर इस तरह की झांकियां आने लगीं. झांकी वाले ये लड़के पूरे रास्ते डांस करते हुए जाते हैं. इन में न कोई श्रद्धा होती है और न ही कोई भक्ति, बल्कि जो हरकतें कांवडि़ए करते हैं, वे नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं लगती हैं. पर धार्मिक लोगों को धर्म और आस्था से बढ़ कर तो इन लोगों के डांस में मजा आता है और जितना ज्यादा मजा, उतना ज्यादा चढ़ावा. जितना ज्यादा चढ़ावा आता है, अगले साल कांवडि़यों की तादाद में उतना इजाफा होता जाता है. आज की कांवड़ यात्रा भक्ति कम और हुड़दंग व दिखावा ज्यादा हो गई है.

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हुड़दंगी कांवडि़ए न ही ट्रैफिक की परवाह करते हैं, न ही किसी नियम और कायदेकानून की. कांवड़ के बहाने उन के अंदर जो हिंसा छिपी होती है, वह इस दौरान खूब बाहर आती है. हालांकि, इन में बड़ी उम्र के कुछ सुलझे हुए कांवडि़ए भी होते हैं, जो इन को काबू में करने की कोशिश करते हैं, पर वे नाकाम ही रहते हैं.

आम जनता को लूटने का यह दोतरफा तरीका है. एक तो उसे कामधाम से हटा कर धर्म में लगाया कि उस की आमदनी कम हो जाए. दूसरा यह कि उस की जेब में जो भी रुपएपैसे हैं, वे नाचगाने, सैरसपाटे, चाटपकौड़ी और भगवान की भक्ति के नाम पर लूट लेना. इस माहौल में गरीबी कैसे  दूर होगी और नगर पार्षद व पंच से ले कर प्रधानमंत्री व अदालतें तक इसी का गुणगान कर रही हैं.

केंद्र के खजाने की बरबादी

यह तो ठीक है कि 1911 से बनने शुरू हुए दिल्ली के ये भवन जो 1935 तक बने थे, अब पुराने पड़ गए और काम के नहीं रह गए हैं पर इस तरह की धरोहर वाली इमारतों को तो कई पीढि़यों तक रखा जाता है. जिस तरह लालकिला 400 वर्षों बाद आज भी अपना वजूद रखता है वैसे ही संसद भवन और उस के आसपास के धौलपुर स्टोन के विशाल भवन एक युग के परिचायक हैं.

नया युवा नए की उम्मीद करता है पर वह आनंद पुराने में ही लेता है. आज देशभर में सैकड़ों साल पुराने किलों, महलों में होटल खुल रहे हैं. दुनियाभर में पुरानी गुफाओं को पर्यटन स्थलों में तबदील किए जाने के साथ उन्हें रहने लायक बनाया जा रहा है.

संसद भवन चाहे छोटा हो, थोड़ा तकलीफ वाला हो, लेकिन उसे बदला जाना ठीक नहीं है. उस के बरामदों में बरामदे बना कर उन्हें एयरकंडीशंड किया जा सकता है. गुंबदों में हेरफेर कर के उन्हें आधुनिक बनाया जा सकता है. लेकिन अगर भाजपा का इरादा इसे पूरी तरह बदलना है, तो यह बेमतलब में सरकारी पैसा बरबाद करना है. एक तरफ तो भाजपा मंदिर के लिए लड़मर रही है जिस का न अता है न पता है, गाय के लिए लोगों का गला काट रही है, भारतमाता के मंदिर बनवा रही है, अयोध्या में दीयों को लगा कर विश्व रिकौर्ड बनाने के दावे ठोंक रही है जबकि दूसरी ओर महज 100 साल पुराने संसद क्षेत्र से ऊबना जता रही है.

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शायद उस का इरादा ऐसा भवन बनाना है जिस में मूर्तियों की जगह हो, घंटेघडि़याल दिखें, नयापन नहीं बल्कि पुरातन का ढोल पीटा जाए. जैसे भाजपा मंडली हर पढ़ेलिखे के हाथ में मैला सा लाल धागा बंधवाने में सफल हो गई है और नयों को पुराना बना सकी है, वैसे ही वह ससंद क्षेत्र को नए की जगह पुराना ही बनाएगी और इसीलिए अहमदाबाद की ही फर्म को ठेका दिया गया है जो शायद पुरातनपंथी डिजाइन बना दे. वैसे, यह कंपनी अब तक आधुनिक डिजाइन के साथ विश्वनाथ धाम, वाराणसी  डिजाइन कर चुकी है.

संसद भवन कहीं पार्लियामैंट हाउस की जगह परमानंद हाउस न बन जाए, ऐसी आशंका भी उठती है. हाल के सालों में अहमदाबाद की उक्त फर्म को ऐसे कामोंकी वजह से पुरस्कार मिले हैं.

संसद भवन आज भी पुराना नहीं लगता. भारतीय पत्थर से बना यह एंग्लोमुगल राजपूती स्टाइल अभिनव है और इसे थोड़ाबहुत ठीक करना ज्यादा अच्छा है, बजाय दूसरा बनाने के.

सरकार की ठेकेदारी प्रथा

देशभरमें अधिकांश युवाओं का मुख्य काम सरकारी नौकरियों की तलाश ही रहता है. जब उन्हें मोबाइल पर टिकटौक या फेसबुक से फुरसत होती है तो नौकरी की फिक्र सताती है, पर नौकरी सरकारी ही हो. कुछ नौकरियां, जैसे मैक्डोनल्ड, स्विगी और जमैटो भी चल सकती हैं, क्योंकि उन में एक चमक है, इंग्लिश में बोलने का मौका है. लेकिन ये नौकरियां थोड़ी ही हैं और थकाऊ हैं.

सरकारी नौकरियों में काम कम, वेतन ठीक और रोब की पूरी गुंजाइश होती है लेकिन अब यह सब है कहां, सरकारों ने हर तरह के काम ठेकों पर देने जो शुरू कर दिए हैं. रेलवे का एक विज्ञापन था कि उस की सीएनसी लेथ मशीनों के ऐनुअल मैंटेनैंस के लिए कौंटै्रक्टर चाहिए. यानी कि जो काम नौकरी पर रखे गए कामगारों को करना होता था, वह अब ठेकेदार के जरिए कराया जाएगा.

ठेकेदार अपने निरीक्षण में दिहाड़ी मजदूरों से काम कराएगा. वह उन्हें मेहनताना कम देगा, न दे तो भी चलेगा. ठेकदार सरकारी अधिकारियों को खिलानेपिलाने वाला हो, अपने हाथ गंदे न करे, ऐसा होगा. ईटैंडर से ठेका मिलेगा, तो यही होगा न.

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कर्नाटक में बेंगलुरु का मैट्रो विभाग मैट्रो के नीचे बागबगीचे डैवलप करने के लिए कौंट्रैक्टर रख रहा है. यानी जो माली, सुपरवाइजर पक्की नौकरी पर रखे जाते थे, अब वार्षिक ठेके पर रखे जाएंगे. कौंट्रैक्टर खुद कच्ची नौकरी पर और उस के कारीगर भी. ऐक्सपीरियंस और इनोवेशन की अब कोई गुंजाइश ही नहीं. काम अच्छा हो, करने वालों को सैटिस्फैक्शन हो, इस की भी गुंजाइश नहीं.

किसी भी अखबार को खोल कर देख लें, किसी भी ईटैंडर साइट पर चले जाएं, ऐसे विज्ञापन भरे हैं जिन में कौंट्रैक्टरों की जरूरत है. सरकारी नौकरियों के विज्ञापन नहीं दिखेंगे. सरकारी नौकरियां जिन्हें मिलेंगी वे तो टैंडर पास करेंगे, रिश्वत लेंगे. सरकारी नौकरियां कम हैं पर हैं बहुत वजनदार.

अब अगर आप सरकारी नौकरी में आ गए, तो काम न करने के भी बहाने ही बहाने. जिस कौंटै्रक्टर के लेबर भाग गए उस का दिवाला निकल गया. वह गायब हो गया. वह निकम्मा है. टैंडर कैंसिल हो गया. नया जारी कर रहे हैं. काम न हो, तो चिंता नहीं. मुश्किल यह है कि सरकारी नौकरी मिले, तो कैसे मिले?

लगता है देश में 2 जातियां रह जाएंगी. एक सरकारी नौकरी वालों की और दूसरी कौंट्रैक्टर के लेबर वालों की. सम झ सकते हैं कि कौन ऊंचा होगा, कौन अछूत. ऐसे में देश का हाल बेहाल न हो, कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. जब धर्म के इशारों पर देश चलाया जाएगा, तो ऐसा ही होगा.

डैमोक्रेसी और भारतीय युवा

हौंगकौंग और मास्को में डैमोक्रेसी के लिए हजारों नहीं, लाखों युवा सड़कों पर उतरने लगे हैं. मास्को पर तानाशाह जैसे नेता व्लादिमीर पुतिन का राज है जबकि हौंगकौंग पर कम्युनिस्ट चीन का. वहां डैमोक्रेमी की लड़ाई केवल सत्ता बदलने के लिए नहीं है बल्कि सत्ता को यह जताने के लिए भी है कि आम आदमी के अधिकारों को सरकारें गिरवी नहीं रख सकतीं.

अफसोस है कि भारत में ऐसा डैमोक्रेसी बचाव आंदोलन कहीं नहीं है, न सड़कों पर, न स्कूलोंकालेजों में और न ही सोशल मीडिया में. उलटे, यहां तो युवा हिंसा को बढ़ावा देते नजर आ रहे हैं. वे सरकार से असहमत लोगों से मारपीट कर उन्हें डराने में लगे हैं. यहां का युवा मुसलिम देशों के युवाओं जैसा दिखता है जिन्होंने पिछले 50 सालों में मिडिल ईस्ट को बरबाद करने में पूरी भूमिका निभाई है.

डैमोक्रेसी आज के युवाओं के लिए जरूरी है क्योंकि उन्हें वह स्पेस चाहिए जो पुराने लोग उन्हें देने को तैयार नहीं. जैसेजैसे इंसानों की उम्र की लौंगेविटी बढ़ रही है, नेता ज्यादा दिनों तक सक्रिय रह रहे हैं. वे अपनी जमीजमाई हैसियत को बिखरने से बचाने के लिए, स्टेटस बनाए रखने का माहौल बना रहे हैं. वे कल को अपने से चिपकाए रखना चाह रहे हैं, वे अपने दौर का गुणगान कर रहे हैं. जो थोड़ीबहुत चमक दिख रही है उस की वजह केवल यह है कि देश के काफी युवाओं को विदेशी खुले माहौल में जीने का अवसर मिल रहा है जहां से वे कुछ नयापन भारत वापस ला रहे हैं. हमारी होमग्रोन पौध तो छोटी और संकरी होती जा रही है. देश पुरातन सोच में ढल रहा है. हौंगकौंग और मास्को की डैमोक्रेसी मूवमैंट भारत को छू भी नहीं रही है.

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नतीजा यह है कि हमारे यहां के युवा तीर्थों में समय बिताते नजर आ रहे हैं. वे पढ़ने की जगह कोचिंग सैंटरों में बिना पढ़ाई किए परीक्षा कैसे पास करने के गुर सीखने में लगे हैं. वे टिकटौक पर वीडियो बना रहे हैं, डैमोक्रेसी की रक्षा नहीं कर रहे.

उन्हें यह नहीं मालूम कि बिना डैमोक्रेसी के उन के पास टिकटौक की आजादी भी नहीं रहेगी, ट्विटर का हक छीन लिया जाएगा, व्हाट्सऐप पर जंजीरे लग जाएंगी. हैरानी है कि देशभर में सोशल मीडिया पोस्टों पर गिरफ्तारियां हो रही हैं और देश का युवा चुप बैठना पसंद कर रहा है. वह सड़कों पर उतर कर अपना स्पेस नहीं मांग रहा, यह अफसोस की बात है. देश का भविष्य अच्छा नहीं है, ऐसा साफ दिख रहा है.

निजता के अधिकार पर हमला

भाजपा सरकार ने नैशनल इंटैलीजैंस ग्रिड तैयार किया है जिस में एक आम नागरिक की हर गतिविधि को एक साथ ला कर देखा जा सकता है. बिग ब्रदर इज वाचिंग वाली बात आज तकनीक के सहारे पूरी हो रही है. आज के कंप्यूटर इतने सक्षम हैं कि करोड़ों फाइलों और लेनदेनों में से एक नागरिक का पूरा ब्यौरा निकालने में कुछ घंटे ही लगेंगे, दिन महीने नहीं. अब एक नागरिक के घर के सामने गुप्तचर बैठाना जरूरी नहीं है. हर नागरिक हर समय फिर भी नजर में रहेगा.

इसे कपोलकल्पित न सम झें, एक व्यक्ति आज मोबाइल पर कितना निर्भर है, यह बताना जरूरी नहीं है. मोबाइलों का वार्तालाप हर समय रिकौर्ड करा जा सकता है क्योंकि जो भी बात हो रही है वह पहले डिजिटली कन्वर्ट हो रही है, फिर सैल टावर से सैटेलाइटों से होती दूसरे के मोबाइल पर पहुंच रही है. इसे प्राप्त करना कठिन नहीं है. सरकार इसलिए डेटा कंपनियों को कह रही है कि डेटा स्टोरेज सैंटर भारत में बनाए ताकि वह जब चाहे उस पर कब्जा कर सके.

नागरिक की बागडोर बैंकों से भी बंधी है. हर बैंक एक मेन सर्वर से जुड़ा है, नागरिक ने जितना जिस से लियादिया वह गुप्त नहीं है. अगर सैलरी, इंट्रस्ट, डिविडैंड मिल रहा है तो वह भी एक जगह जमा हो रहा है. सरकार नागरिक के कई घरों का ब्यौरा भी जमा कर रही है ताकि कोई कहीं रहे वहां से जोड़ा जा सके.

सरकार डौक्यूमैंट्स पर नंबर डलवा रही है. हर तरह का कानूनी कागज एक तरह से जुड़ा होगा. बाजार में नागरिक ने नकद में कुछ खरीदा तो भी उसे लगभग हर दुकानदार को मोबाइल नंबर देना होता है, यानी वह भी दर्ज.

सर्विलैंस कैमरों की रिकौर्डिंग अब बरसों रखी जा सकती है. 7 जुलाई, 2005 में जब लंदन की ट्यूब में आतंकी आत्मघाती हमला हुआ था तो लावारिस लाशें किसमिस की थी, यह स्टेशन पर लगे सैकड़ों कैमरों की सहायता से पता चल गया था. आदमी को कद के अनुसार बांट कर ढूंढ़ना आसान हो सकता है. अगर कोई यह कह कर जाए कि वह मुंबई जा रहा है पर पहुंच जाए जम्मू तो ये कंप्यूटर ढूंढ़ निकालेगा कि वह कहां किस कैमरे की पकड़ में आया. सारे कैमरे धीरेधीरे एकदूसरे से जुड़ रहे हैं.

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यह भयावह तसवीर निजता के अधिकार पर हो रहे हमले के लिए चेतावनी देने के लिए काफी है. देश की सुरक्षा के नाम पर अब शासक अपनी मनमानी कर सकते हैं, किसी के भी गुप्त संबंध को ट्रेस कर के ब्लैकमेल कर सकते हैं. इन कंप्यूटरों को चलाने वालों के गैंग बन सकते हैं जो किसी तीसरे जने को डेटा दे कर पैसा वसूलने की धमकी दे सकते हैं. हैकर, निजी लोग, सरकारी कंप्यूटर में घुस कर नागरिक की जानकारी जमा कर के ब्लैकमेल कर सकते हैं.

शायद इन सब से बचने के लिए लोगों को काले चश्मे पहनने होंगे, सारा काम नकद करना होगा, चेहरे पर नकली दाढ़ीमूंछ लगा कर चलने की आदत डालनी होगी. सरकार के शिकंजे से बचना आसान न होगा. यह कहना गलत है कि केवल अपराधियों को डर होना चाहिए, एक नागरिक का हक है कि वह बहुत से काम कानून की परिधि में रह कर बिना बताए करें. यह मौलिक अधिकार है. यह लोकतंत्र का नहीं जीवन का आधार है. हम सब खुली जेल में नहीं रहना चाहते ना.

 देहधंधे में मोबाइल की भूमिका

देहधंधा आजकल सड़क पर खड़े दलालों के जरिए नहीं बल्कि फेसबुक, ट्विटर आदि से चल रहा है. इन पर डायरैक्ट मैसेज की सुविधा है. कोई भी किसी भी लड़की को मैसेज भेज कर अपना इंटरैस्ट दिखा सकता है. एक बार आप ने किसी लड़की का अकाउंट खोल कर देखा नहीं कि ये सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स अपनेआप आप को ढूंढ़ कर बताने लगेंगे कि इस तरह के और अकाउंट कौनकौन से हैं जिन्हें फौलो किया जा सकता है.

दिखने में यह बड़ा सेफ लगता है पर अब चालाकों ने इसे लूट का जरिया बना लिया है. इस को इस्तेमाल कर के हनीट्रैप करना आसान हो गया है. डायरैक्ट मैसेज दिया तो हो सकता है कि कोई सुरीली, मदमाती, खनकती आवाज में फोन कर दे और फिर वह अपने शहर की किसी बताई जगह पर मिलने का इनविटेशन दे दे. सैक्स के भूखे हिंदुस्तानी बड़ी जल्दी फंस जाते हैं चाहे वे तिलकधारी और हाथ पर 4 रंगों के धागे बांधे क्यों न हों.

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अगर मुरगा फंस गया तो हजार तरीके हैं लूटने के. कई बार धमकियों से पैसे वसूले जाते हैं तो कई बार सैक्स सीन के फोटो खींच कर लंबे समय तक ब्लैकमेल किया जाता है. कोचीन में कतर के एक हिंदुस्तानी बिजनैसमैन की सैक्स करने के दौरान की वीडियो बना ली गई और उस के जरिए उस से 50 लाख रुपए मांगे गए. बिजनैसमैन ने हिम्मत दिखा कर पुलिस से शिकायत तो कर दी है पर यह पक्का है कि दलाल प्लेटफौर्म्स पकड़े नहीं जाएंगे. बस, लड़की को पकड़ लो, उस के कुछ साथी हों तो उन्हें पकड़ लो.

सोशल मीडिया की ये साइटें, जो लोकतंत्र की नई आवाज की तरह लगी थीं, अब प्रौस्टिट्यूशन मार्केट और नाइटक्लबों की कतार लगने लगी हैं जहां लड़कियों की भरमार है. अब चूंकि ग्राहक मौजूद हैं, लोग फंसने को तैयार हैं तो फंसाने वालों को भी तैयार किया ही जाएगा. लड़कियों को कभी पैसे का लालच दे कर तो कभी ब्लैकमेल कर के इस धंधे में उतार दिया जाता है. पहले लड़कियों को मारपीट का डर दिखाया जाता था, अब उन की नंगी तसवीरें या उन के रेप करते वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर मजबूर किया जाता है.

लड़कियों के लिए मोबाइल और सारे ऐप्स स्वतंत्रता की चाबी नहीं हैं, ये गुलामी की नई जंजीरें हैं जिन में जरा सी असावधानी या चूक उन्हें बेहद महंगी पड़ सकती है.

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जाति की राजनीति में किस को फायदा

इस देश में शादीब्याह में जिस तरह जाति का बोलबाला है वैसा ही राजनीति में भी है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ मिल यादवोंपिछड़ों को दलितों के साथ जोड़ने की कोशिश की थी पर चल नहीं पाई. दूल्हे को शायद दुलहन पसंद नहीं आई और वह भाजपा के घर जा कर बैठ गया. अब दोनों समधी तूतू मैंमैं कर रहे हैं कि तुम ने अपनी संतान को काबू में नहीं रखा.

इस की एक बड़ी वजह यह रही कि दोनों समधियों ने शादी तय कर के मेहनत नहीं की कि दूल्हेदुलहन को समझाना और पटाना भी जरूरी है. दूसरी तरफ गली के दूसरी ओर रह रही भाजपा ने अपनी संतान को दूल्हे के घर के आगे जमा दिया और आतेजाते उस के आगे फूल बरसाने का इंतजाम कर दिया, रोज प्रेम पत्र लिखे जाने लगे, बड़ेबड़े वायदे करे जाने लगे कि चांदतारे तोड़ कर कदमों में बिछा दिए जाएंगे. वे दोनों समधी अपने घर को तो लीपनेपोतने में लगे थे और होने वाले दूल्हेदुलहन पर उन का खयाल ही न था कि ये तो हमारे बच्चे हैं, कहना क्यों नहीं मानेंगे?

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अब दूल्हा भाग गया तो दोष एकदूसरे पर मढ़ा जा रहा है. यह सांप के गुजर जाने पर लकीर पीटना है. मायावती बेवकूफी के बाद महाबेवकूफी कर रही हैं. यह हो सकता है कि पिछड़ों ने दलितों को वोट देने की जगह भाजपा को वोट दे दिया जो पिछड़ों को दलितों पर हावी बने रहने का संदेश दे रही थी.

इस देश की राजनीति में जाति अहम है और रहेगी. यह कहना कि अचानक देशभक्ति का उबाल उबलने लगा, गलत है. जाति के कारण हमारे घरों, पड़ोसियों, दफ्तरों, स्कूलों में हर समय लकीरें खिंचती रहती हैं. देश का जर्राजर्रा अलगअलग है. ब्राह्मण व बनियों में भी ऊंचनीच है. कुंडलियों को देख कर जो शादियां होती हैं उन में न जाने कौन सी जाति और गोत्र टपकने लगते हैं.

जाति का कहर इतना है कि पड़ोसिनें एकदूसरे से मेलजोल करने से पहले 10 बार सोचती हैं. प्रेम करने से पहले अगर साथी का इतिहास न खंगाला गया हो तो आधे प्रेम प्रसंग अपनेआप समाप्त हो जाते हैं. अगर जाति की दीवारें युवकयुवती लांघ लें तो घर वाले विरोध में खड़े हो जाते हैं. घरघर में फैला यह महारोग है जिस का महागठबंधन एक छोटा सा इलाज था पर यह नहीं चल पाया. इसका मतलब यह नहीं कि उसे छोड़ दिया जाए.

देश को जाति की दलदल से निकालने के लिए जरूरी है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपना अहंकार छोड़ें और पिछड़े और दलित अपनी हीनभावना को. अखिलेश यादव और मायावती ने प्रयोग किया था जो अभी निशाने पर नहीं बैठा पर उन्होंने बहुत देर से और आधाअधूरा कदम उठाया. इस के विपरीत जाति को हवा देते हुए भाजपा पिछले 100 सालों से इसे हिंदू धर्म की मूल भावना मान कर अपना ही नहीं रही, हर वर्ग को सहर्ष अपनाने को तैयार भी कर पा रही है.

अखिलेश यादव और मायावती ने एक सही कदम उठाया था पर दोनों के सलाहकार और आसपास के नेता यह बदलाव लाने को तैयार नहीं हैं.

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भीड़ को नहीं है किसी का डर

मामला परशुराम के पिता का पुत्रों को मां का वध करने का हो, अहिल्या का इंद्र के धोखे के कारण अपने पति को छलने का या शंबूक नाम के एक शूद्र द्वारा तपस्या करने पर राम के हाथों वध करने का, हमारे धर्म ग्रंथों में तुरंत न्याय को सही माना गया है और उस पर धार्मिक मुहर लगाई गई है. यह मुहर इतनी गहरी स्याही लिए है कि आज भी मौबलिंचिंग की शक्ल में दिखती है. असम में तिनसुकिया जिले में भीड़ ने पीटपीट कर एक पति व उस की मां को मार डाला, क्योंकि शक था कि उस ने अपनी 2 साल की बीवी और 2 महीने की बेटी को मार डाला.

मजे की बात तो यह है कि जब पड़ोसी और मृतक बीवी के घर वाले मांबेटे की छड़ों से पिटाई कर रहे थे, लोग वीडियो बना कर इस पुण्य काम में अपना साथ दे रहे थे.

देशभर में इस तरह भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेने और भीड़ में खड़े लोगों का वीडियो बनाना अब और ज्यादा बढ़ रहा है, क्योंकि शासन उस तुरंत न्याय पर नाकभौं नहीं चढ़ाता. गौरक्षकों की भीड़ों की तो सरकारी तंत्र खास मेहमानी करते हैं. उन्हें लोग समाज और धर्म का रक्षक मानते हैं.

तुरंत न्याय कहनेसुनने में अच्छा लगता है पर यह असल में अहंकारी और ताकतवर लोगों का औरतों, कमजोरों और गरीबों पर अपना शासन चलाने का सब से अच्छा और आसान तरीका है. यह पूरा संदेश देता है कि दबंगों की भीड़ देश के कानूनों और पुलिस से ऊपर है और खुद फैसले कर सकती है. यह घरघर में दहशत फैलाने का काम करता है और इसी दहशत के बल पर औरतों, गरीबों, पिछड़ों और दलितों पर सदियों राज किया गया है और आज फिर चालू हो गया है.

जब नई पत्नी की मृत्यु पर शक की निगाह पति पर जाने का कानून बना हुआ है तो भीड़ का कोई काम नहीं था कि वह तिनसुकिया में जवान औरत की लाश एक टैंक से मिलने पर उस के पति व उस की मां को मारना शुरू कर दे. यह हक किसी को नहीं. पड़ोसी इस मांबेटे के साथ क्यों नहीं आए, यह सवाल है.

लगता है हमारा समाज अब सहीगलत की सोच और समझ खो बैठा है. यहां किसी लड़केलड़की को साथ देख कर पीटने और लड़के के सामने ही लड़की का बलात्कार करने और उसी समय उस का वीडियो बनाने का हक मिल गया है.

यहां अब कानून पुलिस और अदालतों के हाथों से फिसल कर समाज में अंगोछा डाले लोगों के हाथों में पहुंच गया है, जो अपनी मनमानी कर सकते हैं. पिछले 100-150 साल के समाज सुधार और कानून के सहारे समाज चलाने की सही समझ का अंतिम संस्कार जगहजगह भीड़भड़क्के में किया जाने लगा है. यह उलटा पड़ेगा पर किसे चिंता है आज. आज तो पुण्य कमा लो.

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सतर्क रहना युवती का पहला काम

शराब बलात्कारों का दरवाजा खोलती है, क्योंकि शराब के नशे में न तो लड़कियों को सुध रहती है कि उन के साथ क्या हो रहा है न बलात्कारियों को. देशी एयरलाइनों में काम करने वाली एअरहोस्टेसें अपनेआप में खासी मजबूत होती हैं और यात्रियों से डील करतेकरते उन्हें दिलफेंक लोगों को झिड़कना आता है. उन की ट्रेनिंग ऐसी होती है कि वे छुईमुई नहीं होतीं और उन के मसल्स मजबूत होते हैं.

ऐसे में कोई एअरहोस्टेस पुलिस में शिकायत करे कि उस के साथ बलात्कार हुआ तो यह काफी जोरजबरदस्ती और शराब के साथ नशीली दवा के कारण ही हुआ होगा. हैदराबाद में रहने वाली इस युवती की शिकायत है कि वह कुछ ड्रिंक्स लेने अपने सहयोगी के साथ गई थी और फिर उस के साथ उस के घर चली गई. वहां सहयोगी और 2 अन्य ने उसे बेहोश कर के उस के साथ बलात्कार किया.

इस दौरान उस का मंगेतर और पिता लगातार फोन से संपर्क करने की कोशिश करते रहे और जब सुबह उस के होश आने पर उस ने फोन उठाया और पिता व मंगेतर से बात की तो पुलिस कंप्लेंट फाइल की.

बलात्कार के बारे में अकसर यह कह दिया जाता है कि उस में लड़की की सहमति होगी जो बाद में मुकर गई पर इस पर प्रतिप्रश्न यही है कि यदि उस ने पहले सहमति से अपने सुख के लिए संबंध बनाया तो वह आगे भी संबंध बनाएगी न कि शिकायतें करेगी. वह शिकायत तो तभी करेगी जब उस से जबरदस्ती करी जाए.

यह कुछ ऐसा ही है कि यदि दोनों में से एक दोस्त दूसरे की लंबे दिनों तक आर्थिक सहायता करता रहे पर एक दिन जब वह मना कर दे तो क्या सहायता मांगने वाले के पास देने वाले का पर्स चोरी करने का अधिकार है? हां, शराब के नशे में दोस्त दोस्त का पर्स साफ कर जाए तो संभव है पर यह भी अपराध ही है. पैसे का अपराध छोटा है, शारीरिक अपराध बड़ा है. एक घूंसा मारने पर लोग बदले में दूसरे पर गोली तक चला देते हैं. यह अपने अधिकारों का इस्तेमाल है.

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अपने बारे में सतर्क रहना हर युवती का पहला काम है. यदि उसे किसी से सैक्स संबंध बनाने पर एतराज नहीं है तो उसे खुली छूट है कि वह रात उस के घर जाए, उस के साथ नशा करे. पर यदि किसी कारण उसे किसी युवक दोस्त के साथ रहना पड़े तो शराब का रिस्क तो वह ले ही नहीं सकती. अपनी सुरक्षा पहले अपने हाथ में है. छुईमुई न बनें, पर बेमतलब रिस्क भी न लें. रात अंधेरे में आदमी भी जेब में पर्स और मोबाइल लिए चलने में घबराते हैं, यह न भूलें.

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