Best of Manohar Kahaniya: प्यार पर प्रहार

सौजन्य- मनोहर कहानियां

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

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‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

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उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’

मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

कृष्णा घर का बिगड़ैल लड़का था. आवारागर्दी और घरपरिवार से बेहतर संबंध नहीं होने के कारण पिता ने एक तरह से उसे घर से निकाल दिया था. कृष्णा किराए का मकान ले कर रहता था. उस मकान में पढ़ाई करने वाले और भी लड़के रहते थे. उस के पास एक बुलेट थी. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह पार्टटाइम कार वाशिंग का काम करता था.

काफी समय बाद भी प्रियंका कृष्णा के कमरे पर नहीं पहुंची तो वह परेशान हो गया. वह झल्ला कर कमरे से निकला और प्रियंका को फोन किया. प्रियंका ने उसे बताया कि वह अपनी फ्रैंड के साथ है और उस के पास पहुंचने में कुछ समय लगेगा.

कृष्णा उस से मिलने के लिए उतावला था. काफी देर बाद भी जब वह नहीं पहुंची तो उस ने प्रियंका को फिर फोन किया. प्रियंका बोली, ‘‘आ रही हूं यार. मैं अशोक नगर पहुंच चुकी हूं.’’

इस पर कृष्णा ने झल्ला कर कहा, ‘‘मैं वहीं आ रहा हूं. तुम रुको, मैं पास में ही हूं’’

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कृष्णा थोड़ी ही देर में अशोक नगर जा पहुंचा. प्रियंका वहां 2 सहेलियों के साथ खड़ी थी.

प्रियंका की बातों से कृष्णा को लगा कि आज उस का रंग कुछ बदलाबदला सा है. मगर उस ने धैर्य से काम लिया. प्रियंका को देख वह स्वाभाविक रूप से मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम मुझे मार डालोगी क्या? तुम से मिलने के लिए सुबह से बेताब हूं और तुम कह रही हो कि आ रही हूं…आ रही हूं.’’

‘‘तो क्या कालेज भी न जाऊं? पढ़ाई छोड़ दूं, जिस के लिए मैं गांव से यहां आई हूं?’’ प्रियंका ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘मैं ऐसा कहां कह रहा हूं, मगर कालेज से सीधे आना था. 2 घंटे हो गए तुम्हारा इंतजार करते हुए. कम से कम मेरी हालत पर तो तरस खाना चाहिए तुम्हें.’’

‘‘और तुम्हें मेरे घर जा कर हंगामा करना चाहिए. पापा से क्या कहा है तुम ने, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’’ प्रियंका ने रोष भरे स्वर में कहा.

प्रियंका को गुस्से में देख कर कृष्णा को भी गुस्सा आ गया. दोनों की अशोक नगर चौक पर ही नोकझोंक होने लगी, जिस से वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. तभी एक स्थानीय नेता प्रशांत तिवारी जो कृष्णा और प्रियंका से वाकिफ थे, वहां पहुंचे और उन्होंने दोनों को समझाबुझा कर शांत कराया.

कृष्णा प्रियंका को ले आया अपने कमरे पर

दोनों शांत हो गए. कृष्णा ने प्रियंका को बुलेट पर बिठाया और अपने कमरे की ओर चल दिया. रास्ते में दोनों ही सामान्य रहे. अपने कमरे पर पहुंच कर कृष्णा ने कहा, ‘‘प्रियंका, अब दिमाग शांत करो. मैं तुम्हारे लिए बढि़या चाय बनाता हूं.’’

यह सुन कर प्रियंका मुसकराई, ‘‘यार, मुझे भूख लग रही है और तुम बस चाय बना रहे हो.’’

इस के बाद कृष्णा पास के एक होटल से नाश्ता ले आया. दोनों प्रेम भाव से बातचीत करतेकरते कब फिर से तनाव में आ गए, पता ही नहीं चला. कृष्णा ने कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी करोगी कि नहीं, आज मुझे साफसाफ बता दो.’’

प्रियंका ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘नहीं, मैं शादी घर वालों की मरजी से ही करूंगी.’’

हत्या कर कृष्णा हो गया फरार

दोनों में बहस होने लगी. उसी दौरान बात बढ़ने पर कृष्णा ने चाकू निकाला और प्रियंका पर कई वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. खून से लथपथ प्रियंका को मरणासन्न छोड़ कर वह वहां से भाग खड़ा हुआ. घायल प्रियंका कराहती रही और वहीं बेहोश हो गई.

हौस्टल के राकेश वर्मा नाम के एक लड़के ने प्रियंका के कराहने की आवाज सुनी तो वह कमरे में आ गया. उस ने गंभीर रूप से घायल प्रियंका को बिस्तर पर पड़े देखा तो तुरंत स्थानीय सरकंडा थाने में फोन कर के यह जानकारी थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर राजस्व कालोनी के हौस्टल पहुंच गए. उन्होंने कमरे के बिस्तर पर खून से लथपथ एक युवती देखी, जिस की मौत हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एडीशनल एसपी ओ.पी. शर्मा एवं एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने के आदेश दिए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने प्रियंका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. हौस्टल के लड़कों से पता चला कि जिस कमरे में प्रियंका की हत्या हुई थी, वह कृष्णा का है. प्रियंका के फोन से पुलिस को उस की मौसी व पिता के फोन नंबर मिल गए थे, लिहाजा पुलिस ने फोन कर के उन्हें अस्पताल में बुला लिया.

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प्रियंका के मौसामौसी और मातापिता ने अस्पताल पहुंच कर लाश की शिनाख्त प्रियंका के रूप में कर दी. उन्होंने हत्या का आरोप बिलासपुर निवासी कृष्णा उर्फ डब्बू पर लगाया. पुलिस ने कृष्णा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उस की खोजबीन शुरू कर दी. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस को पता चला कि वह रायपुर से नागपुर भाग गया है.

पकड़ा गया कृष्णा

थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता व महिला एसआई गायत्री सिंह की टीम आरोपी को संभावित स्थानों पर तलाशने लगी. पुलिस ने कृष्णा के फोटो नजदीकी जिलों के सभी थानों में भी भेज दिए थे.

सरकंडा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंगेली जिले के थाना सरगांव के एक सिपाही को 23 अगस्त, 2019 को कृष्णा तिवारी सरगांव चौक पर दिख गया. उस सिपाही का गांव आरोपी कृष्णा तिवारी के गांव के नजदीक ही था. इसलिए सिपाही को यह जानकारी थी कि कृष्णा मर्डर का आरोपी है और पुलिस से छिपा घूम रहा है.

लिहाजा वह सिपाही कृष्णा तिवारी को हिरासत में ले कर थाना सरगांव ले आया. सरगांव पुलिस ने कृष्णा तिवारी को गिरफ्तार करने की जानकारी सरकंडा के थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

उसी शाम सरकंडा थानाप्रभारी कृष्णा तिवारी को सरगांव से सरकंडा ले आए. उस से पूछताछ की गई तो उस ने प्रियंका की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से एक चाकू भी बरामद किया, जो 3 टुकड़ों में था.

कृष्णा ने बताया कि हत्या करने के बाद वह बुलेट से सीधा रेलवे स्टेशन की तरफ गया. उस समय उस के कपड़ों पर खून के धब्बे लगे थे. उस के पास पैसे भी नहीं थे. स्टेशन के पास अनुराग मानिकपुरी नाम के दोस्त से उस ने 500 रुपए उधार लिए और रायपुर की तरफ निकल गया.

कृष्णा तिवारी उर्फ दब्बू से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 24 अगस्त, 2019 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: एकतरफा चाहत में प्यार की दीवानगी

रोहिणी के सैक्टर-5 में रहने वाले पीयूष मलिक रोजाना की तरह 4 फरवरी, 2017 को भी शाम का खाना खा कर सड़क पर टहल रहे थे. उस दिन उन के साथ उन का एक दोस्त भी था. दोनों लोग बातें करते हुए मेनरोड पर टहल रहे थे. उसी समय किसी ने उन पर गोली चलाई, जो उन के पैरों के पास से निकल कर सड़क पर जा लगी.

पीयूष और उन के दोस्त ने तुरंत पीछे पलट कर देखा तो एक युवक काले रंग की मोटरसाइकिल से तेजी से उन के बगल से निकल गया. वह इतनी तेजी से निकला कि वह उसे पहचान नहीं सके. इस के बाद वह तुरंत घर आए और यह बात अपने घर वालों को बताई.

पीयूष के पिता गुलशन मलिक परेशान हो गए कि रात को उन के बेटे पर हमला किस ने किया? उन की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. पीयूष प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. उन्होंने सोचा कि कहीं उस की किसी से कोई कहासुनी तो नहीं हो गई.

इस बारे में उन्होंने पीयूष से पूछा तो उन्होंने ऐसी किसी बात से मना कर दिया. गुलशन मलिक मूलरूप से हरियाणा के रहने वाले थे. वहां उन की अच्छीखासी जमीनजायदाद है. नारनौल में एक पैट्रोल पंप भी है. कहीं हरियाणा के ही किसी व्यक्ति ने तो यह हमला नहीं किया. इस बारे में वह गंभीरता से सोचने लगे.

पीयूष की पत्नी इरा मलिक और मां तो बहुत ज्यादा घबरा गईं. इरा की 2 महीने पहले ही पीयूष से शादी हुई थी. गुलशन मलिक बेटे को ले कर थाना विजय विहार पहुंचे, थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन को पीयूष ने अपने साथ घटी घटना के बारे में बताया. अभिनेंद्र जैन ने भी उन से यही पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी तो नहीं है.

मलिक परिवार शरीफ और शांतिप्रिय था, इसलिए उन की किसी से कोई दुश्मनी का सवाल ही नहीं था. पुलिस ने एक बार यह भी सोचा कि कहीं हमलावर का निशाना पीयूष का वह दोस्त तो नहीं था, जो साथ में टहल रहा था. हमलावर से हड़बड़ाहट में गोली पीयूष की तरफ चल गई हो. इसलिए पुलिस ने पीयूष के दोस्त से भी पूछताछ की. उस ने भी किसी से दुश्मनी होने की बात से इनकार कर दिया.

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crime

पुलिस से शिकायत कर के गुलशन मलिक घर लौट आए. घर आ कर सभी हमलावर के बारे में कयास लगाने लगे. उधर पुलिस ने मामला दर्ज तो नहीं किया था, पर थानाप्रभारी के निर्देश पर एसआई पवन कुमार मलिक मामले की जांच में जुट गए थे. इस घटना के बाद पीयूष सतर्क हो गए थे. अब रात को उन्होंने मेनरोड पर घूमना बंद कर दिया था. कुछ दिनों की सतर्कता के बाद वह सामान्य तरीके से रहने लगे.

पीयूष की पत्नी इरा मलिक नोएडा की एक निजी कंपनी में नौकरी करती थीं. वह मैट्रो से नोएडा आतीजाती थीं. सुबह पीयूष अपनी कार या स्कूटी से उन्हें रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन पर छोड़ आते थे और जब वह ड्यूटी पूरी कर के लौटती थीं तो पति को फोन कर देती थीं. तब पीयूष उन्हें लेने मैट्रो स्टेशन पहुंच जाते थे.

20 अप्रैल, 2017 को भी पत्नी के फोन करने पर पीयूष रात 8 बजे के करीब उन्हें लेने स्कूटी से रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन पर गए. उन के घर से मैट्रो स्टेशन यही कोई एक, डेढ़ किलोमीटर दूर था, इसलिए वहां आनेजाने में ज्यादा वक्त नहीं लगता था. पीयूष को इरा मैट्रो स्टेशन के गेट के बाहर तय जगह पर खड़ी मिल गईं.

सैक्टर-5, 6 के डिवाइडर के पास स्थित जूस की दुकान के पास उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह वहां रोजाना जूस पीते थे. जूस पी कर दोनों स्कूटी से घर के लिए चल पड़े. स्कूटी इरा चला रही थी और पीयूष पीछे बैठे थे. जैसे ही पीयूष अपने घर के पास वाली गली के चौराहे के नजदीक पहुंचे, पीयूष को अपने दाहिने कंधे पर पीछे की ओर कोई चीज चुभती महसूस हुई. इस के तुरंत बाद बम फटने जैसी आवाज हुई. इस के बाद उन के पास से एक मोटरसाइकिल सवार तेजी से गुजरा. उस की मोटरसाइकिल काले रंग की थी.

पीयूष को जिस जगह चुभन महसूस हुई थी, वहां अब दर्द होने लगा था. उन्होंने उस जगह हाथ रखा तो वहां से खून बह रहा था. खून देख कर वह घबरा गए. इरा ने उन का कंधा देखा तो रो पड़ीं, क्योंकि वहां गोली लगी थी. इरा के रोने की आवाज सुन कर उधर से गुजरने वाले लोग रुक गए. उन में से कुछ पीयूष को जानते थे. उसी बीच किसी ने पीयूष के घर जा कर इस बात की सूचना दे दी. पिता गुलशन मलिक जल्दी से मौके पर पहुंचे और बेटे को नजदीक के डा. अंबेडकर अस्पताल ले गए.

मौके पर मौजूद किसी व्यक्ति ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के पीयूष को गोली मारने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. चूंकि वह इलाका रोहिणी के थाना विजय विहार के अंतर्गत आता था, इसलिए थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन एसआई पवन कुमार मलिक के साथ मौके पर पहुंच गए.

वहां पहुंचने पर पता चला कि जिस युवक को गोली लगी थी, उसे डा. अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया था. वह डा. अंबेडकर अस्पताल पहुंचे तो वहां के डाक्टरों ने बताया कि पीयूष मलिक नाम के जिस युवक के कंधे में गोली लगी थी, उस के घर वाले उसे सरोज अस्पताल ले गए हैं.

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थानाप्रभारी ने जब अस्पताल में भरती पीयूष को देखा तो वह चौंके, क्योंकि यह वही पीयूष था, जिस पर किसी ने 4 फरवरी, 2017 को गोली चलाई थी. इलाज कर रहे डाक्टरों से बात कर के एसआई पवन कुमार मलिक ने पीयूष का बयान लिया. पीयूष ने पुलिस को जो बताया, उस से यही लगा कि कोई व्यक्ति है, जो उन्हें जान से मारने पर तुला है.

पुलिस ने पीयूष की तहरीर पर अज्ञात हमलावर के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर लिया. रोहिणी जिले के डीसीपी के निर्देश पर थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन के नेतृत्व में एक पुलिस टीम इस केस के खुलासे के लिए लग गई. टीम में एसआई पवन कुमार मलिक, विजय कुमार, ट्रेनी एसआई अनुज कुमार, हैडकांस्टेबल जितेंद्र, कांस्टेबल सूबाराम आदि शामिल थे.

पुलिस ने सरोज अस्पताल पहुंच कर पीयूष से बात की. पीयूष प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. कहीं ऐसा तो नहीं था कि पीयूष ने किसी विवादित प्रौपर्टी का सौदा किया हो? बातचीत में उन्होंने पुलिस को बताया कि वह विवादित प्रौपर्टी पर हाथ ही नहीं डालते. उन का किसी से कभी कोई झगड़ा भी नहीं हुआ.

पुलिस के लिए यह मामला एकदम ब्लाइंड था. कोई भी ऐसा क्लू नहीं मिल रहा था, जिस से केस की जांच शुरू की जा सके. पुलिस ने इस मामले पर गौर किया तो पता चला कि पीयूष पर की गई दोनों ही वारदातों में काले रंग की मोटरसाइकिल पर सवार युवक उन के सामने से निकला था. पर उस मोटरसाइकिल का नंबर पुलिस के पास नहीं था, जिस से उस की जांच की जा सकती.

अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पीयूष घर आ गए तो पुलिस ने उन्हें थोड़ा सतर्क रहने को कहा. वारदात के एक महीने बाद 4 मई की शाम को इरा की ससुराल के पास एक शख्स काले रंग की मोटरसाइकिल से आया और एक पत्र फेंक कर चला गया.

इरा ने जब वह पत्र पढ़ा तो पता चला वह किसी युवती की ओर से लिखा गया था. उस ने लिखा था कि पीयूष उस का प्रेमी है. उस ने किसी दूसरी लड़की से शादी कर के उस के साथ धोखा किया है. गुलशन मलिक ने उस पत्र की जानकारी पुलिस को दी. उस पत्र से यही लगा कि यह मामला प्रेमप्रसंग का है, पर जब इस बारे में पीयूष से बात की गई तो उन्होंने ऐसी किसी बात से इनकार कर दिया.

6 मई की शाम को काले रंग की मोटरसाइकिल से एक युवक पीयूष के घर के सामने वाली सड़क पर घूम रहा था. इत्तफाक से उस समय पीयूष के पिता गुलशन मलिक घर के सामने खड़े थे. चूंकि काले रंग की मोटरसाइकिल शक के दायरे में आ चुकी थी, इसलिए उन्होंने उस मोटरसाइकिल को रुकवा लिया.

उन्होंने उस का नंबर नोट कर के उस युवक से नातपता पूछा तो उस ने बताया कि उस का नाम विक्की है और वह बुद्धविहार में रहता है. उन्होंने उस का फोन नंबर पूछा तो उस ने अपना फोन नंबर भी बता दिया. उसी समय उन्होंने अपने फोन से उस का नंबर मिलाया तो उस के फोन की घंटी बज उठी. उन्हें लगा कि यह युवक गलत नहीं है. अगर यह गलत होता तो अपना फोन नंबर सही न बताता.

पीयूष के साथ घटी घटना को एक महीने से ज्यादा हो चुका था, पर काफी भागदौड़ के बावजूद पुलिस को हमलावर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. गुलशन मलिक बारबार थाने के चक्कर लगा रहे थे. एक दिन वह एसआई पवन कुमार मलिक से बात कर रहे थे, तभी उन्हें बुद्धविहार के रहने वाले विक्की के बारे में याद आ गई.

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काले रंग की मोटरसाइकिल के बारे में सुन कर एसआई पवन कुमार मलिक चौंके. क्योंकि घटना के समय काले रंग की ही मोटरसाइकिल नजर आई थी. विक्की नाम के उस युवक का फोन नंबर पवन कुमार मलिक ने अपने फोन के ट्रूकालर में डाल कर चैक किया तो उस में नाम विवेक अग्रवाल आया. उन्होंने उस का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. नंबर बंद मिलने पर उन्हें शक हुआ. विक्की को बुद्धविहार में बिना पते के ढूंढना आसान नहीं था.

इस के बाद पवन कुमार मलिक मोटरसाइकिल के नंबर डीएल4एस एनडी 1560 के आधार पर जांच में जुट गए. उन्होंने मोटरसाइकिल के उक्त नंबर की जांच कराई तो वह पश्चिमी दिल्ली के कीर्तिनगर के रहने वाले बबलू के नाम रजिस्टर्ड थी. पुलिस उस पते पर पहुंची तो वहां कोई और ही मिला. आसपास के लोगों ने बताया कि बबलू और उस का परिवार पहले यहीं रहता था. 2 साल पहले वह यहां से कहीं और चला गया है. पुलिस कीर्तिनगर से बैरंग लौट आई.

इस के बाद पुलिस की जांच एक बार फिर ठहर गई. ट्रूकालर में जो विवेक अग्रवाल का नाम आया था, उस के बारे में पीयूष से बात की गई तो उस ने साफ मना कर दिया कि वह किसी विवेक अग्रवाल को नहीं जानता.

एक दिन गुलशन मलिक के घर में विवेक अग्रवाल के बारे में बात चल रही थी, तभी पीयूष की पत्नी इरा कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘कहीं यह विवेक अग्रवाल वही तो नहीं, जो मुझे फोन पर तंग करता था?’’

इरा के मुंह से यह सुन कर घर के सभी लोग उस की तरफ देखने लगे. पीयूष ने कहा, ‘‘तुम ने इस बारे में कभी बताया नहीं.’’

‘‘आप को बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी, मैं ने फोन पर ही उसे ठीक कर दिया था. अब फोन में देखती हूं कि यह वही है या कोई और.’’ कह कर इरा अपने फोन के वाट्सऐप मैसेज देखने लगी. वाट्सऐप मैसेज भेजने वाले उस नंबर को इरा ने ब्लौक कर दिया था. जब उस ने उस नंबर को अनब्लौक कर पूर्व में भेजे गए मैसेज देखे तो एक मैसेज में उस युवक का नाम मिल गया. उस का नाम विवेक अग्रवाल ही था.

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पीयूष पत्नी के साथ पवन कुमार मलिक के पास पहुंचे. इरा ने पूरी बात पवन कुमार मलिक को बता दी. इस के बाद उस के नंबर पर भेजे गए वाट्सऐप मैसेज पढ़ कर पवन कुमार मलिक को पीयूष पर वारदात करने की वजह समझ में आने लगी.

उन्होंने विवेक अग्रवाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. वह अकसर जिन नंबरों पर बात करता था, वे उस के परिजनों और दोस्तों के निकले. पहले दोस्तों को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. दोस्तों से पुलिस को विवेक के घर का पता मिल गया. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

पुलिस विवेक के पिता जगदीश प्रसाद को थाने ले आई. विवेक घर से फरार जरूर था, पर उसे यह जानकारी मिल गई कि पुलिस उस के पिता को थाने ले गई है. यह खबर मिलते ही वह घर लौट आया और आत्महत्या करने के लिए ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं. कुछ ही देर में जब विवेक की हालत बिगड़ने लगी तो उसे डा. अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया. यह 8 मई, 2017 की बात है.

पुलिस को यह जानकारी मिली तो पवन कुमार मलिक हैडकांस्टेबल जितेंद्र के साथ डा. अंबेडकर अस्पताल पहुंचे. वहां डाक्टर विवेक का इलाज कर रहे थे. इलाज होने तक पुलिस विवेक की निगरानी करती रही. 11 मई को विवेक जैसे ही अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ, थाना विजय विहार पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

थाने में विवेक से पीयूष पर की गई फायरिंग के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस पर 2 बार जानलेवा हमला किया था. उस ने उस पर हमले की जो वजह बताई, वह एकतरफा प्यार की चाशनी में सराबोर थी—

वेक अग्रवाल पश्चिमी दिल्ली के मानसरोवर गार्डन में रहने वाले जगदीश प्रसाद का बेटा था. विवेक नजदीक ही रमेशनगर में ओम साईं प्रौपर्टी के नाम से अपना धंधा करता था. उस का काम ठीकठाक चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. उस के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस से कुछ ही दूरी पर कीर्तिनगर में डब्ल्यूएचएस (वेयरहाउस स्कीम) का औफिस था. यह कंपनी विभिन्न हाउसिंग डेवलपमेंट द्वारा बनवाए गए फ्लैटों की मार्केटिंग करती थी.

चूंकि विवेक का काम प्रौपर्टी डीलिंग का था, इसलिए वह भी इस औफिस में आताजाता रहता था. उसी औफिस में एक लड़की को देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा. बेहद खूबसूरत उस लड़की को देख कर अविवाहित विवेक पर ऐसा असर हुआ कि वह किसी न किसी बहाने उस के औफिस के चक्कर लगाने लगा.

उस के लिए उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. अपने स्तर से उस ने उस लड़की के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि उस का नाम इरा है और वह रोहिणी सेक्टर-1 में रहती है. इतना ही नहीं, उस ने किसी तरह उस का मोबाइल नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद विवेक ने इरा का पीछा करना शुरू किया. इरा को इस बात का अहसास भी नहीं हुआ कि कोई उसे चाहने लगा है. उसे देख लेने भर से विवेक को मानसिक संतुष्टि मिल जाती थी. यह बात सन 2014 की है.

कुछ दिनों बाद इरा का औफिस कीर्तिनगर से नोएडा शिफ्ट हो गया तो उसे भी नौकरी के लिए रोहिणी से नोएडा जाना पड़ा. विवेक को पता चला कि इरा मैट्रो द्वारा रोहिणी वेस्ट स्टेशन से नोएडा जाती है. तब वह सुबह उस के घर से रोहिणी मैट्रो तक उस का पीछा करता. उसी दौरान उस ने इरा को वाट्सऐप पर मैसेज भेजने शुरू कर दिए. इरा ने उस के मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस का नंबर ब्लौक कर दिया.

विवेक तो इरा का जैसे दीवाना हो चुका था. उस ने किसी तरह उस के औफिस का फोन नंबर हासिल कर लिया. वह उस के औफिस फोन करने लगा. इरा ने उसे लताड़ा ही नहीं, बल्कि पुलिस में शिकायत करने की धमकी दी तो उस ने उस के औफिस के लैंडलाइन पर फोन करना बंद कर दिया.

विवेक को लगा कि उस की दाल गलने वाली नहीं है तो उस ने किसी तरह खुद को कंट्रोल किया और इरा की तरफ से अपना ध्यान हटाने की कोशिश की. उस के दिल में इरा बसी हुई थी, पर उस की धमकी की वजह से वह उसे फोन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

सन 2015 की बात है. एक दिन विवेक मोतीनगर मैट्रो स्टेशन के बाहर खड़ा था, तभी उस की नजर कार से उतर रही इरा पर पड़ी. कार कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति चला रहा था. शायद वह उस का पिता था. चूंकि इरा उसे पहचानती नहीं थी, इसलिए वह इरा को तब तक देखता रहा, जब तक वह मैट्रो स्टेशन में नहीं चली गई.

इरा को देख कर विवेक का सोया प्यार फिर जाग उठा. उस ने अब तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करेगा. अब वह फिर से रोजाना उस का पीछा करने लगा. इतना ही नहीं, उस ने एक नया नंबर खरीदा और उसी नंबर से अपने प्यार का हवाला देते हुए उसे वाट्सऐप मैसेज भेजने लगा.

इरा ने उस के नंबर को ब्लौक कर दिया तो विवेक ने उसे फोन कर के अपने दिल के हालात से रूबरू कराने की कोशिश की. पर इरा ने उसे डपट दिया, साथ ही चेतावनी भी दी. पर विवेक तो जुनूनी प्रेमी बनता जा रहा था. एकतरफा प्यार में वह अपने बिजनैस तक पर ध्यान नहीं दे रहा था. इतना ही नहीं, वह नशा भी करने लगा था.

चूंकि इरा रोहिणी में रहती थी, इसलिए विवेक भी अपने परिवार के साथ रोहिणी के बुद्धविहार में आ कर रहने लगा. उस ने इरा का घर देख ही लिया था. उस के औफिस जाने के टाइम पर वह उस के घर के बाहर मेनरोड पर खड़ा हो जाता और रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन तक उस का पीछा करता. यही काम वह उस के औफिस से घर लौटते वक्त करता. वह उसे परेशान नहीं करता था. केवल चुपचाप पीछा करता था.

नवंबर, 2016 के अंतिम सप्ताह में इरा ने अचानक औफिस जाना बंद कर दिया. विवेक परेशान हो गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि इरा कहां चली गई? जब 2-3 दिन वह नहीं दिखी तो उसे लगा कि शायद उस की तबीयत खराब हो गई है. पर वह लंबे समय तक नहीं दिखी तो उसे यही लगा कि इरा ने शायद नौकरी छोड़ दी है.

विवेक की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. लिहाजा उस ने इरा के औफिस में संपर्क किया तो पता चला कि 10 दिसंबर, 2016 को उस की शादी है.

इस खबर ने विवेक के दिल पर हथौड़े की तरह वार किया. उसे लगा कि उस की प्रेमिका उस के हाथ से निकलने वाली है. उस ने यहां तक पता लगा लिया कि इरा की शादी सेक्टर-15 रोहिणी के रहने वाले पीयूष मलिक के साथ तय हुई है. उस की शादी को वह रोक सके, ऐसी विवेक की क्षमता नहीं थी. क्योंकि पीयूष का परिवार हर तरह से उस के परिवार से ज्यादा सामर्थ्यवान था, लिहाजा विवेक मन मसोस कर रह गया.

शादी के बाद इरा ने जनवरी, 2017 में फिर से औफिस जाना शुरू कर दिया तो विवेक ने फिर से उस का पीछा करना शुरू कर दिया. विवेक ने महसूस किया कि शादी के बाद इरा के रूपरंग में और ज्यादा निखार आ गया है. एकतरफा प्यार में सुलगते हुए विवेक को कई साल बीत गए थे.

इरा को उस का पति ही रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन अपनी कार या स्कूटी से छोड़ने आता और शाम को लेने जाता. इरा को जब अपने पति के साथ वह देखता तो उस के सीने पर सांप लोटने लगता. उसे इरा का पति दुश्मन दिखने लगता.

विवेक ने कई साल पहले शाहरुख खान और जूही चावला की फिल्म ‘डर’ देखी थी. इस फिल्म में शाहरुख खान जूही चावला को प्यार करता था. उसी दौरान जूही की शादी सनी देओल से हो गई थी. तब शाहरुख को सनी देओल दुश्मन दिखता था. जूही को पाने के लिए उस ने सनी देओल पर कई बार जानलेवा हमला किया था. ठीक यही स्थिति विवेक अग्रवाल की भी थी.

विवेक ने अब तय कर लिया कि अपने प्यार को पाने के लिए वह इरा के पति पीयूष को रास्ते से हटा देगा. विवेक ने अपने एक दोस्त से पहले कभी एक देसी तमंचा और कुछ कारतूस लिए थे. वह अपनी मोटरसाइकिल नंबर डीएल 4एसएन डी 1560 से पीयूष की रेकी करने लगा. पीयूष को गोली मारने का वह ऐसा मौका ढूंढने लगा कि अपना काम कर के आसानी से फरार हो सके.

पीयूष शाम को खाना खा कर अपने परिजन या किसी दोस्त के साथ घर के सामने वाली सड़क पर घूमने के लिए निकल जाते थे. यही समय विवेक को उपयुक्त लगा. 4 फरवरी, 2017 की रात करीब 10 बजे पीयूष अपने एक दोस्त के साथ घूम रहे थे. विवेक तो घात लगाए ही था. मौका देख कर उस ने पीयूष को निशाना बनाते हुए गोली चला दी.

इत्तफाक से गोली पीयूष के बराबर से निकलती हुई सड़क से टकरा गई. गोली चला कर विवेक मोटरसाइकिल से भाग गया. गोली की आवाज सुन कर पीयूष घबरा गए. वह सीधे अपने घर गए और पिता को जानकारी दी. बाद में पीयूष ने पुलिस को भी यह जानकारी दे दी.

अगले दिन विवेक ने पीयूष की कालोनी में जा कर पता लगाया तो उसे पता चला कि पीयूष को गोली लगी ही नहीं थी. इस के बाद विवेक उस एरिया में कुछ दिनों तक नहीं गया. पर उस ने इरा का दीदार करने के लिए मैट्रो स्टेशन जाना बंद नहीं किया.

पीयूष को मारने की उस ने ठान ही रखी थी. लिहाजा 2 महीने बाद वह फिर से पीयूष की रेकी करने लगा. पूरी योजना के बाद विवेक 20 अप्रैल, 2017 को रोहिणी सेक्टर-5 में एक डिवाइडर के पास खड़ा हो गया. इरा को रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन से ले कर लौटते समय पीयूष ने जूस की दुकान पर जूस पिया. जूस पीने के बाद वह जैसे ही स्कूटी से इरा के साथ घर की ओर चले, विवेक ने पीछे से पीयूष को निशाना बनाते हुए गोली चला दी.

गोली पीयूष के कंधे पर लगी. गोली चला कर विवेक अपनी मोटरसाइकिल से फरार हो गया. इस बार विवेक को उम्मीद थी कि पीयूष मर गया होगा. पर उस की सोच गलत साबित हुई. बाद में जब विवेक को पता चला कि पीयूष इस बार भी बच गया है तो उसे बड़ा दुख हुआ. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने वाली बात उसे पता चल गई थी. उस ने ऐसा कोई सबूत नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस उस तक पहुंच पाती.

पुलिस को गुमराह करने के लिए उस ने लड़की की ओर से एक चिट्ठी लिख कर इरा की ससुराल में डाल दी थी, जिस से पुलिस की जांच की दिशा बदल जाए. पर जब पीयूष ने कह दिया कि उस का किसी लड़की के साथ कोई चक्कर नहीं था तो पुलिस ने उस ओर ध्यान नहीं दिया.

काले रंग की मोटरसाइकिल ही शक के घेरे में थी और फिर एक दिन पीयूष के पिता ने उसे अपने घर के सामने काले रंग की मोटरसाइकिल पर घूमते देखा तो रोक लिया. उस समय विवेक ने जल्दबाजी में अपना फोन नंबर सही बता दिया था. उसी फोन नंबर की वजह से वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने विवेक अग्रवाल को भादंवि की धारा 307, 27/54/59 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस मामले की तफ्तीश एसआई पवन कुमार मलिक कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: 10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अभी तक की पूछताछ में हर अधिकारी के सामने इस मामले के 3 मुख्य संदिग्ध कमल सिंगला, शकुंतला, उस का भाई राजू एक ही कहानी सुना रहे थे. अगर वे झूठ बोल रहे थे तो सच्चाई बाहर लाने का अब एक ही रास्ता बचा था कि उन का लाई डिटेक्टर टेस्ट करा लिया जाए.

वैसे भी रजनीकांत को लगा कि इस मामले में शकुंतला और कमल की मिलीभगत की आशंका ज्यादा हो सकती है. इसलिए तीनों संदिग्धों से लंबी पूछताछ के बाद रजनीकांत ने अदालत से आदेश ले कर 2 मार्च, 2012 को शकुंतला, उस के भाई राजू और कमल का पौलीग्राफ टेस्ट कराया.

लेकिन पौलीग्राफ परीक्षण की रिपोर्ट आने के बाद जांच अधिकारी रजनीकांत की उम्मीदों पर पानी फिर गया, क्योंकि तीनों ही संदिग्ध परीक्षण में खरे उतरे थे.

लेकिन न जाने क्यों रजनीकांत इन नतीजों से संतुष्ट नहीं थे. पर उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और दूसरे पहलुओं को टटोलते हुए जांच को आगे बढ़ाते रहे.

रवि के परिवार की तरफ से शकुंतला और उस के परिवार पर आरोप लगाए जाने के बाद उन्होंने जयभगवान के घर आना भी बंद कर दिया.

संयोग से जांच अधिकारी रजनीकांत का भी तबादला हो गया तो उस के बाद एसआई सूरजभान आए. कुछ महीनों के बाद उन का भी तबादला हो गया तो एसआई धीरज के हाथ में जांच आई,

कुछ महीनों तक जांच उन के हाथ में रही फिर उन के तबादले के बाद एसआई पलविंदर को जांच का काम सौंपा गया. फिर 2017 के शुरू होते ही उन का भी तबादला हो गया. इस के बाद जांच की जिम्मेदारी मिली एसआई जोगेंद्र सिंह को.

इस दौरान मार्च, 2017 में इस केस की स्टेटस रिपोर्ट देख कर हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि तीनों संदिग्धों की ब्रेनमैपिंग (नारको टेस्ट) कराया जाए.

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टीम ने अलवर में डाला डेरा

एसआई जोगेंद्र ऐसे ही किसी मौके का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तीनों के इस टेस्ट  की प्रक्रिया शुरू कर दी. अदालत में तीनों आरोपियों को पेश कर जोगेंद्र सिंह ने ब्रेनमैपिंग के लिए उन की हामी भी हासिल कर ली.

जिस के बाद तीनों का 2 नवंबर, 2017 से 6 नवंबर, 2017 के बीच गुजरात के गांधी नगर में ब्रेनमैपिंग टेस्ट कराया. वहां जा कर कमल और राजू ने तो टेस्ट करा लिया, मगर शकुंतला ने तबीयत बिगड़ने की बात कह कर ब्रेन मैपिंग कराने से इनकार कर दिया.

लेकिन बे्रनमैंपिग के जो परिणाम पुलिस के सामने आए, उस ने जोगेंद्र सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया. हालांकि राजू ब्रेनमैपिंग टेस्ट में सत्य पाया गया. लेकिन ऐसे कई सवाल थे, जिन के कारण कमल सिंगला पर अब इस मामले में शामिल होने का शक शुरू हो गया था.

एसआई जोगेंद्र सिंह समझ गए कि इस जांच को आगे ले जाने के लिए उन्हें अलवर में डेरा डालना पड़ेगा.

वे आगे की काररवाई कर ही रहे थे कि मार्च 2018 में अचानक उन का भी तबादला हो गया. जोगेंद्र सिंह की जांच से कम से कम अनुसंधान का काम एक कदम आगे तो बढ़ गया था और जांच के लिए एक टारगेट भी तय हो गया था.

इसी बीच जांच के नए अधिकारी के रूप में एसआई करमवीर मलिक को रवि के अपहरण केस की फाइल सौंपी गई. उन्होंने जांच का काम हाथ में लेते ही पहले पूरी फाइल का अध्ययन किया.

केस की बारीकियों को गौर से समझने के बाद उन्होंने अपने 2 सब से खास एएसआई जयवीर और नरेश के साथ कांस्टेबल हरेंद्र की टीम बनाई. इस के बाद टीम को उन तीनों संदिग्धों को लाने के लिए अलवर रवाना किया, जिन का नाम बारबार इस केस में सामने आ रहा था.

जयवीर और नरेश जब अलवर के टपूकड़ा गए तो वहां संयोग से उन्हें राजू मिल गया. राजू ने पूछताछ में जो कुछ बताया, उस के बाद एक अलग ही कहानी सामने आई.

पता चला कि ब्रेन मैपिंग टेस्ट होने के बाद जब शकुंतला और कमल गुजरात से वापस लौटे तो कुछ रोज बाद ही अचानक शकुंतला घर से भाग गई.

पिछले कुछ समय से कमल जिस तरह शकुंतला के करीब आ रहा था और शकुंतला भी ज्यादा वक्त उस के ही साथ बिताने लगी थी, उसे देख कर घर वालों को लगा कि शकुंतला के भागने में कमल का हाथ है.  इसीलिए उन्होंने कमल से शकुंतला के बारे में पूछा. लेकिन वह साफ मुकर गया कि उसे शकुंतला के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

लिहाजा परिवार वालों ने कमल सिंगला के खिलाफ शकुंतला के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. लेकिन कमल पुलिस के हाथ आने से पहले ही फरार हो गया.

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अलवर पुलिस कमल को तलाश कर ही रही थी कि इसी बीच कमल के एक ड्राइवर बबली ने राजस्थान हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र दिया कि उस ने शकुंतला से शादी कर ली है और पुलिस बिना वजह उस के मालिक को परेशान कर रही है.

जांच में आया नया मोड़

बबली ने साथ में आर्यसमाज मंदिर में हुई शकुंतला से अपनी शादी का प्रमाण पत्र भी दिया था. उसी के साथ में शकुंतला की तरफ से भी एक शपथ पत्र संलग्न था, जिस में उस ने बबली से शादी करने की पुष्टि की थी.

हाईकोर्ट ने अलवर पुलिस को कमल के खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले को खत्म करने का आदेश दे दिया. जिस के बाद उस के खिलाफ एफआईआर रद्द हो गई.

शकुंतला के भाई राजू ने जो कुछ बताया था, उसे जानने के बाद एएसआई जयवीर की मामले में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई.

कमल से मिलने की उन की बेताबी बढ़ गई. लेकिन इस से पहले बबली से मिलना जरूरी था. क्योंकि उस ने शकुंतला से शादी की थी, जिस कारण अब संदेह के  दायरे में सब से पहले वही आ रहा था.

पुलिस टीम ने टपूकड़ा थाने जा कर जब कमल के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर के बारे में जानकारी हासिल की तो उस केस की फाइल में बबली नाम के उस के ड्राइवर के घर का पता मिल गया.

एएसआई जयवीर ने बबली के घर का पता हासिल किया और उस के गांव बाघोर पहुंच गए.

बबली के घर उस के मातापिता के अलावा पत्नी और 3 बच्चे भी मिले. बबली की पत्नी से मिलने के बाद तो एएसआई जयवीर का सिर ही चकरा गया. क्योंकि उस की पत्नी शकुंतला नहीं बल्कि कोई अन्य महिला थी और वह भी 3 बच्चों की मां.

कहानी में अब दिलचस्प मोड़ आ गया था. पुलिस टीम ने जब परिजनों से बबली के बारे में पूछा तो पता चला कि लूटपाट के एक मामले में बबली कोटा जेल में बंद है. अब तो बबली से मिलना क्राइम ब्रांच के लिए बेहद जरूरी हो गया था.

जयवीर और नरेश ने परिजनों से बबली के बारे में तमाम जानकारी ले कर कोटा की अदालत में उस से जेल में मुलाकात कर के पूछताछ करने की अनुमति मांगी.

पुलिस टीम को पूछताछ की इजाजत मिल गई और जयवीर सिंह अपनी टीम के साथ कोटा जेल में जब बबली से मिले तो रवि के अपहरण केस की तसवीर पूरी तरह साफ हो गई.

बबली ने बताया कि वह तो पहले से ही शादीशुदा है. उस के 3 बच्चे भी हैं. वह डेढ़ साल से कमल सिंगला के पास ड्राइवर की नौकरी कर रहा है.

कुछ महीने पहले अचानक जब शकुंतला के घर से भागने के बाद उस के घर वालों ने कमल के खिलाफ शकुंतला के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई तो कमल ने बबली को कुछ रुपए दे कर दबाव डाला कि वह हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र दाखिल कर दे कि उस ने शकुंतला से शादी कर ली है.

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बबली ने खुलासा किया कि वकील कराने से ले कर शकुंतला का शपथ पत्र और शकुंतला से उस की शादी का आर्यसमाज मंदिर का प्रमाण पत्र कमल ने ही उसे उपलब्ध कराया था.

चूंकि वह नौकरी और पैसे के लालच में मजबूर था, इसलिए उस ने कमल के कहने पर ये काम कर दिया था. इसी के कारण कमल के खिलाफ दर्ज शकुंतला के अपहरण का मामला खत्म हो गया था.

पुलिस जिस कमल को मासूम मान रही थी, उस का शातिर चेहरा सामने आ चुका था. पुलिस को यकीन हो गया कि रवि के अपहरण और उस की हत्या में भी कमल का ही हाथ होगा.

अगले भाग में पढ़ें- इश्क में अंधा हुआ कमल

Best of Manohar Kahaniya: प्रेम या अभिशाप

यह कहानी है एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की सीमा की. सीमा एक साधारण परिवार में पली बढ़ी और आगे अपने जीवन संघर्ष को पुरजोर किया. जब सीमा 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी तब उसके पिता की मृत्यु बीमारी के कारण हो जाती है . उसके पिता के अकस्मात् मृत्यु के कारण पारिवारिक और अर्थिक स्तिथि पूरी तरह डावाडोल हो जाती है . घर में कोई कमाने वाला नही. बड़ी मुश्किल से उसके पिता के पेंशन के पैसे से दो वक्त की रोटी का गुजारा हो रहा था . ऐसी स्थिति में सीमा अपने आगे की पढ़ाई जैसे-तैसे पूरी की और पारिवारिक स्तिथि को सुधारने के लिए स्वयं एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करने लगी. सीमा बाहर काम करने जाती तो उसकी माँ घर संभालती. सीमा को अपने पिता की कमी बहुत खलती थी और अपने पिता को याद करके अकेले में रोती थी . छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च भी और घर का खर्च स्वयं सीमा ही उठा रही थी . इन्हीं कारणों से उसकी शादी भी नहीं हो पाई थी . कहीं से अच्छे रिश्ते भी नहीं आ रहे थे उसके लिये. सीमा घर और काम में उलझ गई थी. सोचती की मै अगर शादी कर लूंगी तो घर में माँ और भाई का क्या होगा, कौन उनका ध्यान रखेगा, उनकी जरूरतों को पूरा करेगा. 30 वर्ष पार कर चुकी सीमा अब तो शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दी.

सीमा और उसके परिवार का जीवन जैसे-तैसे चल रहा रहा था लेकिन सीमा हार नहीं मानी . उसने अच्छे स्कूल में शिक्षिका पद के लिए आवेदन किया और वहाँ उसको काम मिल गया . तन्ख्वाह भी अच्छी मिलने लगी. परिवार की स्तिथि देखते-देखते सुधरने लगी. नये-नये कपड़े बर्तन खरीदा जाने लगे
घर का मरम्मत करवाई. पूरे परिवार में खुशहाली छा गई.

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तभी इसी बीच उसकी मुलाकत रमेश नामक युवक से हुई. रमेश सीमा के स्कूल में कंप्यूटर पर कार्य करता था और शहर में नया आया था . रमेश सीमा के घर के पास ही किराए में रहने लगा. उसे कुछ सहयता और सहयोग की आवश्यकता होती तो वह सीमा के घर पहुँच जाता . सीमा को मदद के लिए बोलता और सीमा झट से उसकी मदद कर देती. अब दोनो का मेलजोल बढ़ गया. घर आने-जाने का सिलसिला हो गया. रमेश मनही मन सीमा को पसंद करने लगा और सीमा भी रमेश को चाहने लगी. दोनों एक दूसरे से मन की बात नहीं कह पा रहे थे और समय बीत रहा था . फिर सीमा लगभग 1 माह के लिए अपने रिश्तेदार के यहां छुट्टियां मनाने चली गई और रमेश भी अपने घर चला गया . रमेश सीमा को बहुत याद करता . वह रोजाना उसे फोन करता और उसका हाल चाल पूछता . उसे अहसास हो गया की वह उसके बगैर नहीं रह पायेगा . सीमा भी रमेश से अपने मन की बात नहीं कह पाई. अब दोनों की छुट्टियां समाप्त हो गई और दोनो फिर स्कूल जाने लगे. दोनो का मिलना-जुलना पहले की तरह ही चलता रहा . लोग भी उनके बारे में तरह तरह की बातें करने लगे . रमेश ने एक दिन हिम्मत जुटाई और मौका देखकर सीमा से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रमेश उससे बोला कि वह उससे बहुत प्यार करता है और उसके बगैर नहीं रह सकता . रमेश ने सीमा से पूछा कि वह उससे शादी भी करना चाहता है . सीमा ने जवाब दिया कि वह भी रमेश को बहुत चाहती है लेकिन शादी नही कर सकती.

रमेश सीमा की जात-बिरादरी का नही था और सीमा ने समाज-परिवार को देखते हुये यह निर्णय लिया . लेकिन रमेश उसको हमेशा शादी के लिए मनुहार करते रहता लेकिन सीमा बात टाल जाती . देखते-देखते 5वर्ष बीत गया . अब रमेश की नौकरी बिलासपुर के वन विभाग मे कांस्टेबल पद पर हो गई. तब से वह बिलासपुर में रहने लगा . लेकिन छुट्टी में वह सीमा से मिलने आता और सब से मिलता, उनके लिए उपहार लाता और खुशी खुशी वापस चला जाता. सीमा की माँ भी रमेश के घर आने से बहुत खुश होती और सोचती कि काश मुझे भी ऐसा दामाद मिल जाए जो मेरी बेटी को बहुत खुश रखे.

सात साल हो गये दोनो के प्रेम प्रसंग को लेकिन विवाह की कोई राह नहीं दिखी . अब सीमा सोचने लगी कि आखिर एक दिन किसी न किसी से विवाह करनी ही है तो क्यों न रमेश को ही हां कर दूँ . फिर उसने रमेश को अपने घर बुलवाया और शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया . उसने अपना निर्णय अपनी मां को बताया . पहले उसकी माँ जात बिरादरी और समाज के डर से नहीं मानी फिर बेटी का भला सोच कर हामी भर दी . माँ का आशीर्वाद लेकर दोनो ने मन्दिर में विवाह कर लिया . सीमा की सहेलियां, पड़ोसी और रिश्तेदार इस शादी से बहुत खुश हुए . सभी यही कहते हैं कि देर से ही सही बेचारी का घर तो बस गया. उसको जीवन साथी तो मिला.

शादी को 4 माह हो गये. सीमा अपने ससुराल भी जाकर आ गई . उसके ससुराल वाले उसे पूरी तरह से नहीं अपनाये थे. वह अभी भी अपनी मायके मे थी और स्कूल मे ही पढ़ा रही थी . रमेश भी बिलासपुर से सीमा के मायके आते-जाते रहता था.

फिर एक दिन रमेश ने सीमा से कहा कि वह उसे बिलासपुर घुमाने ले जाना चाहता है . सीमा ने कहा कि वह अभी नहीं जा सकती, स्कूल से छुट्टी नहीं मिलेगी . रमेश ने कहा कि शाम तक कैसे भी करके वह उसे वापस घर छोड़ देगा . सीमा मान गई . दोनो बिलासपुर जाने के लिए तैयार हुए और माँ की अनुमति लेकर हँसी खुशी घर से निकले. माँ ने सीमा से कहा कि ध्यान से जाना और अपना ख्याल रखना . सीमा बोली कि हम लोग शाम तक वापस लौट आयेंगे तुम खाना बनाकर रखना . अब दोनो चले गये .
शाम को सीमा की माँ खाना बनाकर सीमा और रमेश का रास्ता देख रही थी लेकिन दोनो की कोई खबर नही थी. मां ने फोन किया पर उनका फोन भी बन्द था. मां बहुत परेशान हो गई. सोची कि ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था कि उसकी बेटी का मोबाईल बन्द हो.

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अगले दिन सुबह ऐसी खबर आई कि सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई . पता चला कि सड़क हादसे में सीमा की जान चली गई और रमेश बच गया था. फिर दुर्घटना स्थल से ही सीमा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया . कई पुलिस भी साथ में थे. इस दुखद घटना के बारे में सीमा की माँ को कुछ भी ज्ञात नहीं था . सीमा के छोटे भाई ने अपनी मां को बड़ी मुश्किल से बताया कि दीदी अब इस दुनिया में नहीं रही . मां ने जैसे ही सीमा की मौत की खबर सुनी तो होश खो बैठी और रो रो कर बुरा हाल हो गया. सीमा की मौत के दूसरे दिन लाश को घर लाया गया और उसके बाद मुक्तिधाम में उसका अन्तिम संस्कार कर दिया गया .

सीमा की मौत सच मे एक दुर्घटना थी या हत्या यह कह पाना मुश्किल है किन्तु लोगों की बातों को यदि गौर करें तो मामला हत्या का ही लग रहा था . क्योंकि उसकी माँ ने ही लोगों को बताया कि सीमा जब विवाह के लिए राजी हुई तब रमेश सीमा से विवाह नही करना चाहता था . रमेश के घरवाले उसे अपनी जाति की लड़की से विवाह करने के लिए दबाव डाल रहे थे और रमेश अपने परिवार की पसंद से शादी करना चाहता था . लेकिन सीमा ने रमेश को विवाह के लिए दबिश दी और रमेश ने हालात से घबराकर सीमा से विवाह किया था. शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनो के बीच मनमुटाव और झगड़े होने लगे. दोनो का वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं था . रमेश ने सीमा को स्पष्ट बोल दिया कि वह उसे तलाक़ दे दे या दुसरी शादी करने की अनुमति दे. सीमा इस बात के लिए कतई राजी नहीं हुई . अब रमेश उससे पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगा . और आखिरकार उसने इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया . उसने न केवल सीमा का बल्कि विश्वास और प्रेम का भी खून किया.

यह बात कितना सच है या मिथ्या यह तो सीमा को, रमेश को और इश्वर को ही पता होगा क्यौंकि आंखो देखा कोई साक्ष्य नहीं था . लेकिन सीमा की लाश उसके पति के झूठे प्रेम का हाल सुना रहे थे कि उसके ही पति ने किस तरह बेरहमी से उसे मौत के घाट उतारा था . सड़क दुर्घटना और लाश में एक भी चोट नहीं, रमेश भी बिल्कुल सही सलामत, उसके चेहरे पर न दुख न शिकन . तो कोई शक भी क्यो न करे . पुलिस और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार सीमा की मृत्यु को दुर्घटना घोषित किया .

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सीमा का प्रेम उसके लिए अभिशाप बन गया . उसकी जान ले के ही छोड़ा. काश वह समय रहते ही सम्भल गई होती, उसने रमेश से विवाह ही न किया होता. काश वह उस दिन अपने पति की बातों में आकर उसके साथ बाहर ही नहीं गई होती तो शायद आज सीमा सबके बीच जीवित होती. स्कूल में काम कर रही होती और जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रही होती . लेकिन किस्मत के लिखे को कौन टाल सकता है . सीमा के जाने के बाद उसकी माँ बिल्कुल अकेले हो गई. कही आना जाना भी छोड़ दी, घर मे ही चुपचाप पड़ी रहती और सीमा की याद में खोई रहती . आज रमेश दूसरी शादी कर खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहा है . यह भी उसके अपराधी होने का सबसे बड़ा साक्ष्य जान पड़ता है . सीमा, उसका प्यार, और उसकी यादें अब रमेश के जीवन से काफी ओझल हो चुका है. काश हर युवती और महिलायें अपने प्रेम के साथ वक्त और हालात की नजाकत को समझते हुए कुछ निर्णय लें तो इस दुनिया में ऐसे दुखद हादसे होना कुछ कम हो जायें .

Crime Story: शादी के बीच पहुंची दूल्हे की प्रेमिका तो लौटानी पड़ी बरात

एक लड़की, जिसकी शादी हो रही हो, हाथों में मेहंदी लगी हो, फेरे चल रहे हों, उस वक्त होने वाले पति की प्रेमिका आ जाए, तो उसका क्या हाल होगा, कहना सहज ही समझा जा सकता है. अगर किसी शादी के खूबसूरत माहौल में ऐसा मोड़ आता है तो लड़की व उस के परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग जाता है.

भले ही लड़की के परिवार वालों ने पुलिसिया कार्यवाही से मना कर दिया हो, पर उस घर में मातम पसरा रहता है. प्रेमिका को धोखा देकर शादी करना कितना भारी पड़ सकता है, यह इस वाकए से उजागर होता है.

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घटना 7 जुलाई की है. जालंधर जिले के गोराया में उस दिन शादी समारोह चल रहा था. माहौल खुशियों से भरा था. दूल्हा-दुलहन फेरे ले रहे थे. इसी बीच एक लड़की वहां पहुंचीं और जोर-जोर से अपनी बात कहनी शुरू कर दी. वह लड़की दूल्हे की बचकाना हरकत को ऐसे बखान कर रही थी जैसे उस ने शादी कर के आफत मोल ले ली हो. हालात ऐसे हो गए कि दूल्हे को भीगी बिल्ली बन वहां से रफूचक्कर हो जाना पड़ा.

दरअसल, वह लड़की दूल्हे की प्रेमिका थी. दूल्हा उसे धोखा दे कर शादी कर रहा था, वह भी चोरीछिपे. ऐसा कैसे हो सकता था. प्रेमिका की पैनी नजर से वह बच न सका. तभी तो ऐसे हालात हो गए कि दूल्हे को बरात के संग बिना शादी किए लौट जाना पड़ा.

शेरपुर गांव के जसकरन कुमार उर्फ जस्सी बरात ले कर गोराया गांव में एक लड़की से शादी करने पहुंचा था. गुरुद्वारा साहिब में फेरों की रस्म चल रही थी. तभी वहां एक लड़की अचानक ही पहुंच गई. उस लड़की ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि लोगों की नजरें उधर ही घूम गईं. उस लड़की ने खुद को जसकरन उर्फ जस्सी की प्रेमिका बताया. उस के ऐसा कहने पर समारोह में हड़कंप मच गया.

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इस सब के बीच लड़की ने दुल्हन के परिवार को दूल्हे जसकरन से अपने प्रेम संबंध की जानकारी दी. साथ ही, जसकरन के साथ की कुछ तस्वीरें दिखाईं. तस्वीरों की सचाई की बाबत जब पूछा गया तो जसकरन ने हामी भर दी. फिर क्या था, घड़ा तो फूटना ही था. गनीमत यह थी कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.

उस लड़की ने यह भी बताया कि उस का जसकरन कुमार उर्फ जस्सी के साथ तकरीबन डेढ़ साल से प्रेम प्रसंग चल रहा है. वह उस के साथ रहती थी और घूमने के लिए वे दोनों दुबई भी गए थे. वह लड़की गांव में उस के परिवार के साथ भी रह चुकी है.

जस्सी ने उसे गुमराह किया था कि उस के बड़े भाई की शादी है. उसे बीती रात ही यह पता चला कि शादी जसकरन की हो रही है. तुरंत ही वह उस के गांव शेरपुर पहुंची तो सारा मामला साफ हो गया.

दुल्हन के घर वालों ने दूल्हा जसकरन से पूछा तो उस ने बताया कि उसे दुबई से लौटे 8 महीने हुए हैं. 4 महीने पहले ही उस की दोस्ती इस लड़की से हुई थी. जब उस से लड़की द्वारा दिखाई गई तस्वीरों के बारे में पूछा गया, तो उस ने प्रेम प्रसंग को स्वीकारा. इस के बाद दुल्हन के परिवार ने शादी से मना कर दिया.

थाना गोराया के प्रभारी ने इस संबंध में कहा कि जस्सी के परिवार वाले लड़की के परिवार (जिस से शादी हो रही थी) से राजीनामा कर बारात वापस ले गए. दुल्हन के परिवार ने भी मामले में किसी तरह की पुलिसिया कार्यवाही से मना कर दिया.

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शादी से बैरंग लौटना भले ही दूल्हे जस्सी के लिए इज्जत का सवाल हो गया, पर दुल्हन के परिवार वालों पर क्या बीती होगी. शादी में खर्च तो हुआ ही साथ ही सामाजिक अपमान भी झेलना पड़ा होगा. ऐसी शादियां कितने दिन तक टिक पातीं, यह तो पता नहीं, पर ऐसी शादियां न हों, तो ही बेहतर है. इसीलिए तो कहा जाता है कि शादी भले ही देर मेंं हो, पर तहकीकात बहुत जरूरी है.

Satyakatha- सोनू पंजाबन: गोरी चमड़ी के धंधे की बड़ी खिलाड़ी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- सुनील वर्मा  सोनू

कुछ समय बाद गीता ने निक्कू से कुछ पैसा ले कर गीता कालोनी में ही अपना खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया और इस की आड़ में खुद तो जिस्मफरोशी का धंधा करती ही थी, साथ में उस ने नौकरी दे कर कुछ लड़कियों को भी पार्लर में जोड़ लिया.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक बार फिर उस की खुशियों को ग्रहण लग गया. साल 2000 में एक दिन ऐसा आया जब यूपी पुलिस ने निक्कू त्यागी को हापुड़ के पास मुठभेड़ में मार गिराया.

एक बार फिर गीता के सिर से उस के सरपरस्त का साया उठ गया और वह उदास हो गई. लेकिन तब तक वह जिस्मफरोशी की दुनिया के जिस धंधे में वह उतर चुकी थी, उस ने गम की परछाई को ज्यादा दिन गीता के ऊपर रहने नहीं दिया.

गीता धीरेधीरे यमुनापार के गरीब परिवार की खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ जोड़ कर उन से धंधा कराने लगी.

एक दिन गीता की मुलाकात दीपक जाट से हुई. दीपक उस के पास आया तो था अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए, लेकिन वह गीता की अदाओं और हुस्न के जाल में इस तरह उलझा कि तन ही नहीं, मन से भी उस से प्यार करने लगा. इस के बाद तो दीपक अकसर गीता से मिलनेजुलने लगा.

ऐसा लगता था कि तकदीर ने गीता की जिंदगी में आने वाले हर मर्द के हाथों में अपराध की लकीरें बना कर भेजी थीं. नजफगढ़ इलाके का रहने वाला दीपक भी विजय और निक्कू की तरह अपराधी ही था. उस की गिनती दिल्ली के नामी वाहन चोरों में होती थी.

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दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में दीपक और उस के छोटे भाई हेमंत उर्फ सोनू का जबरदस्त खौफ था. गीता जीवन में आई तो दीपक को लगने लगा कि जैसे भटकती जिंदगी को किनारा मिल गया हो. कुछ समय बाद दीपक ने बिना सात फेरे लिए ही गीता के साथ पतिपत्नी की तरह रहना शुरू कर दिया.

लेकिन 2003 में असम पुलिस ने दीपक को स्कौर्पियो कार चुराने के आरोप में मुठभेड़ में मार गिराया. गीता फिर तन्हा हो गई. लेकिन इस बार उस का ये तन्हापन ज्यादा दिन नहीं रहा क्योंकि इस बार उसे सहारा देने वाला कोई और नहीं वरन दीपक का छोटा भाई हेमंत उर्फ सोनू था.

दीपक के भाई हेमंत उर्फ सोनू ने भाई की मौत के बाद गीता से अपनी इकरारे मोहब्बत बयान कर उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

सोनू भी दिल्ली से ले कर हरियाणा और यूपी के कई गैंगस्टरों के साथ मिल कर लूट, डकैती, अपहरण, जबरन वसूली और ठेके पर हत्या करने की वारदातों को अंजाम देता था.

लेकिन 6 मार्च, 2006 को स्पैशल सेल के एसीपी संजीव यादव की टीम ने गुड़गांव के सागर अपार्टमेंट में हेमंत को उस के 2 साथियों जसवंत और जयप्रकाश के साथ मुठभेड़ में मार गिराया.

हेमंत की मौत के बाद गीता एक बार फिर अकेली हो गई. लेकिन अब तक गीता का नाम बदल चुका था. सोनू की पत्नी होने के कारण लोग उसे गीता की जगह सोनू और जाति से पंजाबी होने के कारण पंजाबन ज्यादा कहने लगे थे.

एक बार सोनू नाम क्या पड़ा कि जल्द ही गीता अरोड़़ा सोनू पंजाबन के नए नाम से विख्यात हो गई. अपने अतीत की वजह से सोनू पंजाबन का अपराध से करीब का रिश्ता बन चुका था.

सोनू पंजाबन हेमंत के एक दोस्त गैंगस्टर अशोक बंटी से पहले से परिचित थी. इस के बाद उस ने बुलंदशहर के अशोक उर्फ बंटी के साथ दिलशाद गार्डन में रखैल की तरह रहना शुरू कर दिया. लेकिन सोनू को शायद पता नहीं था कि अपराध से उस ने जो नाता जोड़ा है, उस से अभी उस का पीछा छूटा नहीं है.

उसे शायद ये भी नहीं पता था कि उस की किस्मत में स्थायी रूप से किसी मर्द का साथ लिखा ही नहीं था.

बंटी को अप्रैल 2006 में एक दिन दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मुठभेड़ में मारा गिराया.

सोनू के जीवन में जो भी मर्द आया वह पुलिस के हाथों मारा गया. इसलिए अब उस ने किसी का आसरा लेने की जगह जिस्मफरोशी के अपने धंधे को ही चमकाने और बढ़ाने का काम शुरू किया. वह अपने धंधे को संगठित रूप से बढ़ाने व चलाने लगी.

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सोनू गीता कालोनी इलाके में बदनामी के कारण अपने बेटे को अपनी मां और भाइयों के पास छोड़ कर साकेत के पर्यावरण कौंप्लैक्स में रहने चली गई और वहीं से धंधा औपरेट करने लगी.

सोनू पंजाबन को जिस्मफरोशी के आरोप में पहली बार 31 अगस्त, 2007 को प्रीत विहार पुलिस ने 7 लड़कियों के साथ गिरफ्तार किया था. इस के बाद सोनू पूरी तरह एक कालगर्ल सरगना के रूप में बदनाम हो गई.

उस ने प्रीत विहार छोड़ कर साकेत में नया ठिकाना बना लिया. लेकिन वहां भी 21 नवंबर, 2008 को साकेत पुलिस ने सोनू को सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

सोनू ने फिर ठिकाना बदला और प्रीत विहार में एक दूसरा बंगला किराए पर ले लिया. लेकिन 22 नवंबर, 2009 को वहां भी प्रीत विहार पुलिस ने छापा मार दिया. सोनू को फिर से 4 लड़कियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद तो सोनू के दिमाग से पुलिस का खौफ पूरी तरह निकल गया. अब वह खुल कर बड़े पैमाने पर धंधा करने लगी.

उस ने अपराध की दुनिया से जुड़े प्रेमियों और जिस्मफरोशी के कारोबार से जुटाई गई दौलत से दिल्ली के महरौली इलाके के सैदुल्लाजाब के अनुपम एनक्लेव में एक आलीशान फ्लैट खरीद लिया और वहीं से अंडरग्राउंड रह कर धंधे का संचालन करने लगी.

सोनू अब लड़कियों को खुद ले कर नहीं जाती थी उस ने एजेंट रख लिए. सोनू ने अपने सभी फोन नंबर भी बदल लिए थे. वह आमतौर पर अंजान लोगों से फोन पर बात नहीं करती बल्कि किसी पुराने ग्राहकों का रैफरेंस देने पर ही नए ग्राहकों को लड़की उपलब्ध कराती थी.

5 अप्रैल, 2011 को सोनू को महरौली पुलिस ने 5 लड़कियों और साथ धर दबोचा. इस बार पुलिस ने उस के ऊपर मकोका कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया.

इस बार उस के साथ पकड़ी गई लडकियों में ज्यादातर लड़कियां मौडल या टेलीविजन कार्यक्रमों में काम करने वाली अभिनेत्रियां थीं.

इस बार यह खुलासा हुआ कि सोनू का धंधा कई राज्यों तक फैल चुका था. उस का पूरा कारोबार संगठित तरीके से चलता था.

हालांकि पुलिस सोनू पंजाबन पर मकोका कानून के आरोप सिद्ध नहीं कर सकी, इसीलिए 2013 में वह मकोका के आरोप से बरी हो कर जेल से रिहा हो गई.

3 साल जेल में रहने के बाद सोनू पंजाबन अदालत से बरी हुई तो उस ने बेहद सावधानी से अपने धंधे को आगे बढ़ाना शुरू किया. अब वह खुद सामने नहीं आती थी बल्कि अपने लोगों को सामने रख कर इस काम को करती थी.

सोनू पंजाबन ने अब लड़कियों को अपने यहां काम पर रख लिया है. इन लड़कियों को वह ग्राहक के पैसों में हिस्सा नहीं देती थी, बल्कि उन्हें एकमुश्त सैलरी देती थी.

यूं कहें तो गलत न होगा कि उस ने अपने काम करने के तरीके को एकदम कारपोरेट शैली में बदल दिया था.

उस के सिंडीकेट से जुड़े हर शख्स का काम बंटा हुआ था. कोई लड़कियों को एस्कार्ट करता था तो कोई उन का ड्राइवर बन कर उन्हें बड़ेबड़े ग्राहकों के पास छोड़ कर आता था.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2011 में प्रीति नाम की एक लड़की को खरीदने के आरोप में उसे 24 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहने की सजा मिलेगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था.

दरअसल, उन दिनों प्रीति 13 साल की थी. जब वह कोंडली में स्थित दिल्ली सरकार के स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. गरीब परिवार में जन्मी प्रीति के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे.

अभावों में पलीबढ़ी लेकिन सूरत व शरीर से बेहद खूबसूरत प्रीति की दोस्ती स्कूल आतेजाते संदीप बेलवाल से हो गई, जो उस से 4-5 साल बड़ा था.

संदीप कभी उसे कार तो कभी मोटरसाइकिल से घुमाने लगा. संदीप से प्रभावित होने के बाद प्रीति उस के प्यार में कुछ ऐसी दीवानी हो गई कि वह उस पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी.

एक दिन इसी विश्वास में प्रीति संदीप के साथ उस के जन्मदिन की पार्टी मनाने नजफगढ़ में उस की किसी सीमा आंटी के पास चली गई. बस यही उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी.

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संदीप ने उस दिन कोल्डड्रिंक में उसे कोई मदहोश करने वाली दवा पिला कर उस की इज्जत को तारतार कर दिया. इतना ही नहीं वह उसे सीमा आंटी के पास एक लाख रुपए में बेच कर चला गया. बाद में उसे पता चला कि सीमा आंटी देहव्यापार करने वाली औरत थी और संदीप उस के साथ जुड़ा था.

इस के बाद शुरू हुआ प्रीति की जिंदगी में हर रोज होने वाले यौनशोषण का ऐसा सिलसिला जो कई साल तक चला.

अगले भाग में पढ़ें- लुधियाना के होटल में बिकता जिस्म

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

खैर, अगली सुबह शिवेंद्र बेटी की खोज में निकल गए तो उन के व्यवहार के कायल रिश्तेदार भी गुडि़या की तलाश में शिमला के जंगलों की खाक छानते फिरते रहे लेकिन गुडि़या का कहीं पता नहीं चला. रहस्यमय तरीके से गुडि़या को लापता हुए 24 घंटे से ऊपर बीत चुके थे. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

6 जुलाई की सुबह कोई पौने 8 बजे कोटखाई थाना स्थित हलाइला गांव के पास तांदी के जंगल के एक गड्ढे के भीतर एक लड़की की नग्नावस्था में लाश मिली. उस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी.

लाश मिलते ही वन अधिकारी ने इस की सूचना कोटखाई थाने के इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को दे दी थी. सूचना मिलते ही वह एसआई दीपचंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक अली, महिला कांस्टेबल नेहा को साथ ले कर घटनास्थल पहुंच गए थे.

घटनास्थल पहुंच कर उन्होंने मुआयना किया और गुडि़या के पिता शिवेंद्र को भी मौके पर बुलवा लिया था. उन्हें आशंका थी कि यह लाश कहीं 2 दिनों से लापता गुडि़या की तो नहीं है. उन के यहां होने से लाश की शिनाख्त करने में आसानी होगी.

हलाइला गांव के निकट स्थित तांदी के जंगल में लड़की की लाश मिलने की सूचना मिलते ही शिवेंद्र के हाथपांव फूल गए और वह तुरंत मौकाएवारदात पर चल दिए. रास्ते भर वह यही प्रार्थना करते रहे कि बेटी जहां भी हो, सुरक्षित रहे.

खैर, थोड़ी देर बाद बेटे अमन के साथ वह मौके पर पहुंच गए. वहां भारी भीड़ जमा थी और जंगल बीच एक गड्ढे के भीतर लाश के ऊपर सफेद चादर डाल दी गई थी.

चादर से ढकी लाश देख कर शिवेंद्र का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. मानो अभी हलक के रास्ते मुंह के बाहर आ जाएगा.

पिता को एक किनारे खड़ा कर अमन ने हिम्मत जुटा कर लाश के ऊपर से चादर उठाई. चेहरा देखते ही अमन का कलेजा मुंह को आ गया और वह दहाड़ मार कर रोने लगा. पुलिस अधिकारी भी पहुंचे मौके पर अमन को रोता देख इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को समझते देर न लगी कि 2 दिनों से रहस्य बनी लाश की शिनाख्त हो गई है. बेटे को रोता देख कर पिता की आंखें भी नम हो गई थीं. तब तक घटना की सूचना पा कर एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और डीएसपी मनोज जोशी मौके पर पहुंच चुके थे.

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लाश की स्थिति देख कर पुलिस अधिकारियों की रूह कांप गई थी. गुडि़या के शरीर पर कई जगह चोट और वक्षस्थल पर दांत काटने के निशान पाए गए थे. ये देख कर लगता था कातिलों ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं.

घटना चीखचीख कर कह रही थी हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए मासूम गुडि़या को मार डाला था.

खैर, काफी खोजबीन के बाद मौके पर लाश के अलावा कुछ नहीं मिला था. गुडि़या के स्कूल की ड्रेस, जूतेमोजे और स्कूल का बैग नहीं मिला था. हत्यारों ने कहां छिपा रखा था, किसी को कुछ पता नहीं था.

जंगल में आग की तरह गुडि़या की हत्या की खबर शिमला में चारों ओर फैल गई थी. खबर मिलते ही शिवेंद्र की जानपहचान वाले मौके पर पहुंचने लगे थे. ये देख कर पुलिस के पसीने छूटने लगे थे. एसपी नेगी ने जल्द लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम भेजने का आदेश दिया.

आननफानन में इंसपेक्टर राजिंदर सिंह ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय शिमला भेज दी और गुमशुदगी की धारा को धारा 302, 376 आईपीसी एवं पोक्सो एक्ट की धारा 4 में तरमीम कर अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

विद्रोह और जन आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

7 जुलाई की सुबह गुडि़या रेपमर्डर केस ने शिमला की सड़कों पर विद्रोह और जनआंदोलन की जो रफ्तार पकड़ी, उस से पुलिस प्रशासन हिल गया था. शिमला प्रशासन के हाथों से यह मामला निकल कर डीजीपी के दफ्तर तक पहुंच चुका था.

मामले की गंभीरता को समझते हुए डीजीपी ने कड़ा रुख अपनाया और 10 जुलाई को स्पेशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन करने का आदेश दिया. जिस में आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और इंसपेक्टर कोटखाई राजिंदर सिंह शामिल हुए.

अपने मातहतों को कड़े शब्दों में डीजीपी ने कह दिया था कि मासूम बेटी के कातिल हर हाल में सलाखों के पीछे कैद होने चाहिए.

इस बीच गुडि़या के कातिलों को सलाखों तक पहुंचाने के लिए शिमला की जानीमानी एनजीओ मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और उन की सहयोगी तनुजा थाप्टा जन आंदोलन में कूद पड़े थे.

पुलिस की नाकामी की पोल स्थानीय समाचारपत्रों ने खोल कर रख दी थी. पुलिस के ऊपर कातिलों को गिरफ्तार करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री और डीजीपी का भारी दबाव था. वह पलपल जांच की काररवाई की रिपोर्ट तलब करा रहे थे.

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पुलिस की 3 दिनों की कड़ी मेहनत ने अपना रंग दिखाया. शक के आधार पर पुलिस ने 13 जुलाई की शाम को 5 लोगों को धर दबोचा. जिन के नाम सूरज सिंह, राजेंद्र सिंह उर्फ राजू निवासी हलाइला, सुभाष बिष्ट निवासी गढ़वाल, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक निवासी पौड़ी गढ़वाल थे.

एसआईटी ने निर्दोषों को बनाया आरोपी

सभी आरोपी शिमला में ही रह रहे थे और आपस में गहरे दोस्त थे. पुलिस ने उक्त पांचों को फर्द पर नामजद करते हुए रेप और मर्डर केस का आरोपी बना दिया था. पांचों आरोपियों से लगातार 5 दिनों तक थाने में कड़ाई से पूछताछ चलती रही. पुलिस ने सूरज सिंह को गैंगरेप का सरगना मानते हुए उसे खूब प्रताडि़त किया.

पुलिस के बेइंतहा जुल्म से हिरासत में सूरज सिंह ने दम तोड़ दिया था. पुलिस हिरासत में गैंगरेप आरोपी सूरज सिंह की मौत होते ही शिमला की ठंडी वादियों में अचानक ज्वालामुखी फट गया, जिस की तपिश से पुलिस महकमा धूधू कर जलने लगा था. ये 18 जुलाई, 2021 की बात है.

आरोपी सूरज सिंह की मौत के बाद सियासी मामला गरमा गया. कांग्रेस के वीरभद्र सिंह की सरकार के खिलाफ भाजपा ने मोरचा खोल दिया और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने पर अड़ गई.

आखिरकार सरकार को उन के आगे झुकना पड़ा और 19 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई की झोली में आ गिरी.

जांच की कमान सीबीआई के तेजतर्रार एसपी एस.एस. गुरम ने संभाली और उन का साथ दिया था डीएसपी सीमा पाहूजा ने. जांच की कमान संभालते ही एसपी गुरम ने दिल्ली मुख्यालय सीबीआई के दफ्तर में अपने तरीके से 2 अलगअलग मामले दर्ज किए.

पहला मुकदमा गुडि़या रेप और मर्डर केस में आरोपी सूरज सिंह की पुलिस हिरासत में हुई मौत का था. यह मुकदमा संख्या 101/2017 भादंवि की धारा 120बी, 302, 330, 331, 348, 323, 326, 218, 195, 196 और 201 भादंसं के तहत 22 जुलाई 2017 को दर्ज किया गया था. इस मुकदमे के आरोपी बनाए गए थे- आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी, इंसपेक्टर (कोटखाई) राजिंदर सिंह, एएसआई दीप चंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक मोहम्मद और रंजीत.

पुलिस अधिकारियों पर आरोप था कि आरोपी सूरज सिंह को हिरासत में ले कर बेरहमी से पिटाई की गई थी. जिस से हिरासत में उस की मौत हो गई थी.

वहीं आईजी जैदी ने सूरज की मौत पुलिस हिरासत की बजाय आरोपी राजेंद्र सिंह उर्फ राजू के सिर पर मढ़ कर नया बवाल खड़ा कर दिया था. लेकिन जांचपड़ताल में यह बात झूठी साबित हुई थी.

खैर, सीबीआई एसपी एस.एस. गुरम ने हिमाचल पुलिस द्वारा शक के बिना पर आरोपी बनाए गए चारों लोगों राजेंद्र सिंह उर्फ राजू, सुभाष बिष्ट, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक को जमानत पर छोड़ दिया और गुडि़या रेपमर्डर केस की जांच नए सिरे से शुरू कर दी.

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उन्होंने जांच की काररवाई जहां से गुडि़या की लाश पाई गई थी, वहीं से शुरू की. सब से पहले उन्होंने जंगल की भौगोलिक परिस्थितियों को जांचापरखा. फिर उस के आनेजाने वाले रास्ते का अवलोकन किया.

सीबीआई के हाथ लगा चश्मदीद

इधर सीबीआई के द्वारा पकड़े गए चारों आरोपियों को छोड़े जाने पर मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और तनुजा थाप्टा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मिले और सीबीआई के क्रियाकलापों पर नाराजगी जताई.

अगले भाग में पढ़ें- अनिल उर्फ नीलू की हो गई नीयत खराब

Best of Manohar Kahaniya: जीजा साली के खेल में

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.न लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करनेकी खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोतेबिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.  पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

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डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा. संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

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सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा. इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग. इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

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पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अधिकारियों के निर्देश पर जश्न व हरन की गुमशुदगी के मामले को गलत नीयत से हुए अपहरण की धारा में दर्ज कर लिया गया. मामले का खुलासा करने के लिए थाना खेड़ी गंडियां इंचार्ज कुलविंदर सिंह के नेतृत्व में थाने के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की टीम गठित कर दी गई.

जिस के बाद पुलिस ने दीदार सिंह के आसपड़ोस के दुकानदारों से पूछताछ तेज कर दी. पड़ोसियों से भी पूछताछ कर ली गई. लेकिन किसी ने भी इस बात की तस्दीक नहीं की कि दोनों बच्चे उन के यहां कोल्डड्रिंक लेने आए थे.

एक बच्चे की मिली लाश

पुलिस ने दीदार सिंह के परिवार की कुंडली भी खंगालनी शुरू कर दी. दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह के3 बच्चे हैं. सब से बड़ी बेटी है गुरमेज कौर जिस की शादी हो चुकी है. छोटा भाई जसंवत सिंह भी शादीशुदा है. जिस घर में दीदार अपनी पत्नी मंजीत कौर व दोनों बेटों हरन व जश्न के साथ रहता है वह उस का पैतृक मकान है.

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दोनों बेटों की शादी के बाद दर्शन सिंह ने मकान 2 हिस्सों में बांट दिया. दोनों भाई अपने परिवारों के साथ अपनेअपने हिस्सों में रहने लगे. दीदार सिंह और जसवंत सिंह दोनों ही पेशे से ड्राइवर थे.

दीदार पटियाला की एक बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर था और ज्यादा समय घर के बाहर ही रहता था. वैसे दोनों भाइयों और उन के परिवार अलग जरूर रहते थे, लेकिन उन के बीच भाईचारे और प्यार की कोई कमी नहीं थी.

पुलिस को दुश्मनी के बिंदु पर जांच करने के बाद कोई सुराग नहीं मिला. जांच चल ही रही थी कि 27 जुलाई, 2019 को भाखड़ा नहर नरवाना ब्रांच में करीब 6-7 साल के एक बच्चे का शव सड़ीगली अवस्था में तैरते हुए पुलिस ने बरामद किया.

पुलिस ने जब आसपास के इलाकों में इस उम्र के लापता बच्चों के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि दीदार सिंह के छोटा बेटा हरनदीप सिंह भी इसी उम्र का था.

थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह ने परिवार वालों को बुलवा कर जब शव की शिनाख्त का प्रयास किया तो उन्होंने शव को पहचानने से ही इनकार कर दिया.

दरअसल शव इतनी बुरी तरह सड़गल गया था कि उस में पहचान करने के लिए कोई चिह्न ही नहीं बचा था. बहरहाल पुलिस ने शव को बिना पहचान के ही डीएनए टेस्ट के लिए उस का सैंपल ले कर मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया.

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दरअसल, दीदार सिंह को यकीन ही नहीं था कि उस के बच्चे की कोई हत्या भी कर सकता है. इसीलिए उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि भाखड़ा नहर के नरवाना इलाके में जो शव बरामद हुआ है वह उन के बेटे का हो सकता है.

इधर खेड़ी प्रभारी कुलविंदर सिंह को लगने लगा कि अगर नहर से एक बच्चे का शव बरामद हो गया है तो निश्चित ही दूसरा शव भी नहर में ही मिलेगा.

लिहाजा उन्होंने उच्चाधिकारियों से अनुमति ले कर तैराक व गोताखोरों को बुला कर भाखड़ा नहर के खेड़ी गंडिया से लगे 5 किलोमीटर इलाके में दूसरे शव की तलाश शुरू कर दी.

आखिरकार 4 अगस्त, 2019 को भाखड़ा नहर से करीब 10 साल के एक और बच्चे  का सड़ागला शव बरामद हुआ. उस की उम्र दीदार सिंह के बडे़ बेटे जशनदीप सिंह जितनी थी. लेकिन इस बार बच्चे के हेयरस्टाइल, काला धागा व कपड़ों को देख कर दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह ने उसकी पहचान अपने बडे़ पोते जश्न के रूप में कर दी.

अब दीदार सिंह की समझ में भी यह बात आ गई थी कि अगर बड़े बेटे का शव नहर में मिला है तो जाहिर है पहले जो शव मिला था वह छोटे बेटे का ही होगा.

आखिरकार 5 अगस्त को दीदार सिंह के परिवार ने दोनों बच्चों की लाश पहचानने व उन के शव अपनी सुपुर्दगी में लेने की काररवाई पूरी कर दी. उसी दिन दोनों बच्चों के शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सवाल था कि दीदार के दोनों बच्चों की मौत नहर में डूबने से हुई थी या उन्हें  किसी ने नहर में ले जा कर धकेल दिया था. दीदार का तो कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था जो ऐसा कर सके. आखिर कौन ऐसा शख्स हो सकता है.

बच्चों का अंतिम संस्कार होने के बाद पुलिस ने दीदार सिंह से एक बार फिर पूछताछ की और उस से ऐसे लोगों के बारे में जानकारी ली जो उस के बच्चों को अपहरण कर हत्या कर सकते थे.

लेकिन दिमाग पर पूरा जोर डालने के बाद भी दीदार सिंह या उन का परिवार किसी ऐसे शख्स के बारे में नहीं बता सका, जिस पर शक किया जा सके.

धीरेधीरे वक्त तेजी से गुजरने लगा. 17 अगस्त, 2019 को पटियाला के एसएसपी विक्रमजीत दुग्गल ने हत्या की आशंका को देखते हुए एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम गठित कर दी, जिस में डीएसपी (घनौर) जसविंदर सिंह टिवाणा, डीएसपी (हैडक्वार्टर) गुरदेव सिंह धालीवाल तथा थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह को शामिल किया गया.

इस बीच अक्तूबर, 2019 को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से साफ हो गया कि बच्चों की मौत डूबने से हुई थी.

इस मामले में दर्ज अपहरण के केस को दोनों बच्चों के शव मिलने के बाद अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया गया था. चूंकि इस मामले में कोई खास जानकारी मिल नहीं रही थी, लिहाजा पुलिस केवल धूल में लट्ठ मारती रही.

वक्त तेजी से गुजरता चला गया. पहले दिन बीते, फिर महीने बीतने लगे. दीदार सिंह थाने से ले कर एसआईटी के अफसरों और उच्चाधिकारियों के सामने अपने बच्चों के कातिलों का सुराग जल्द लगाने के लिए धक्के खाता रहा.

इधर इलाके के विधायक व सांसद भी पुलिस पर दबाव देते रहे. पुलिस अपने काम में कुछ कदम आगे बढ़ती, इस से पहले ही मार्च 2020 में कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लौकडाउन लग गया.

5 महीने तक लौकडाउन लगा रहा, जिस कारण पुलिस की जांच जहां की तहां फाइलों में कैद हो कर रह गई. इस दौरान एक साल का वक्त गुजर चुका था. दिसंबर, 2020 में एसएसपी दुग्गल ने हरन व जश्न की जांच के मामले में गठित हुई एसआईटी के इंचार्ज डीएसपी घनौर जसविंदर सिंह टिवाणा को बुला कर जांच को तेजी से आगे बढ़ाने के निर्देश दिए.

अगले भाग में पढ़ें- घटनास्थल से पलटी हत्याकांड की थ्यौरी

Satyakatha: स्पा सेंटर की ‘एक्स्ट्रा सर्विस’- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजेश ने खुश हो कर अपने बटुए से रीटा को उस की एक्स्ट्रा सर्विस के पैसे दिए और नीचे रिसैप्शन पर आ कर पूनम को स्पैशल मसाज के लिए शुक्रिया कहा और दुकान के बाहर से आटो पकड़ा और घर आ गया. राजेश शारीरिक थकावट और दर्द के मारे अगले 2 दिनों तक औफिस नहीं जा पाया.

स्पा सेंटर की अनोखी दुकानें, जिस का बोर्ड देख कर ही लोगों के मन में अनोखे खयाल पैदा हो जाते हैं, आजकल बढ़ते ‘गुलाबी धंधे’ का अड्डा बन रहे हैं. बौडी मसाज के नाम पर लोग आजकल स्पा सेंटरों में जाते हैं और अपने दिलों में दबी इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं.

स्पा सेंटरों में मसाज कराने का मेनू कार्ड बेशक लंबाचौड़ा क्यों न हो, लेकिन लोग कीमत की परवाह किए बगैर स्पा व मसाज सेंटरों में जा कर अपनी पसंद की महिला से मनचाहा मसाज करवाते हैं.

चाहे वह स्वीडिश मसाज हो, डीप टिश्यू मसाज हो, हौट स्टोन मसाज हो या फिर ट्रिगर पौइंट मसाज हो. मसाज कराने के ग्राहक के पास दरजनभर औप्शन होते हैं, जिस में से वह कोई एक चुनता है और उस के दिल में एक ही तरह के मसाज की तमन्ना होती है.

दिल्ली के बड़ेबड़े और हर रिहाइशी इलाकों में स्पा सेंटर खुले हैं. पहाड़गंज, करोलबाग, ग्रीन पार्क, महिपालपुर, द्वारका, रमेश नगर, लाजपत नगर वगैरह जैसे कई इलाकों में स्पा सेंटरों की दुकानों की भरमार है.

पहले के समय देह व्यापार के लिए खास जगह मौजूद होते थे. लेकिन जैसेजैसे प्रशासन का शिकंजा इस तरह के गैरकानूनी धंधों को रोकने के लिए मजबूत हुए हैं, वैसेवैसे देह व्यापार से जुड़े लोगों ने खुद को बनाए रखने के लिए अपना रूप भी बदला है.

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बड़े शहरों में मौजूद रेलवे स्टेशनों के आस पास मौजूद होटल आज कल स्पा सेंटरों में तब्दील होने लगे हैं. यही नहीं बड़ेबड़े होटलों के भीतर भी स्पा सेंटर जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं, जो चौबीसों घंटे काम करती हैं.

इन स्पा सेंटरों में देह व्यापार से जुड़े कई लोग जुड़े हुए होते हैं. स्पा सेंटरों में मौजूद मसाज करने वाले कई ऐसे हैं जिन्हें मसाज करना आता भी नहीं है, बस, वो देह व्यापार के चलते इन स्पा सेंटरों से जुड़ जाते हैं और अपना धंधा चला रहे हैं.

ऐसे सेंटरों से कई विदेशी कालगर्ल्स भी जुड़ी होती हैं. ग्राहकों की मांग पर विशेष रूप से मसाज करने के बहाने उन्हें बुलाया जाता है.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने साल 2018 में दिल्ली पुलिस, श्रम विभाग और सिविक एजेंसियों से उन के इलाके में चलने वाले स्पा सेंटरों की एक सूची मांगी थी. इस में मुख्यरूप से, कितनों के पास लाइसेंस हैं, कितनों के खिलाफ काररवाई हुई, स्पा सेंटरों का निरीक्षण इत्यादि जानकारी देने के लिए कहा गया था. 28 नवंबर, 2018 तक इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई थी.

स्पा सेंटर वाले कहते हैं कि उन के स्पा सेंटर सुरक्षित और सही हैं, रेड पड़ने का कोई चांस ही नहीं है. लेकिन अखबारों में बेहद कम ही ऐसी खबरें देखने को मिलती हैं जिस में स्पा सेंटरों पर काररवाई होती हुई कोई खबर दिखाई देती हो.

इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्पा सेंटरों की हर किसी से सेटिंग हैं और इन सेंटरों में होने वाला ‘गुलाबी धंधा’ धड़ल्ले से चल रहा है.  द्य

दिल्ली सरकार के सख्त कदम

हाल ही में 2 अगस्त को दिल्ली सरकार ने शहर में स्पा और मालिश केंद्रों के संचालन पर नजर रखने और विनियमित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश दिए. जिस में ग्राहकों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य रूप से पुलिस मंजूरी हासिल करना और परिचालन घंटे को सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सीमित करना शामिल है.

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दिल्ली सरकार ने यौन शोषण, तसकरी और क्रौस जेंडर मालिश को रोकने के लिए भी इन दिशानिर्देशों को जारी किया है. इसी के साथ ही दिल्ली सरकार कई गाइडलाइंस जारी कर के इन स्पा सेंटरों पर पैनी नजर गड़ाने का काम कर रही है.

नए दिशानिर्देशों में कई प्रावधानों को शामिल किया गया हैं. जैसे केंद्रों के कमरों में केवल स्वत: बंद होने वाले दरवाजे लगाने होंगे, कोई कुंडी या बोल्ट की अनुमति नहीं होगी. और सभी बाहरी दरवाजे काम के घंटों के दौरान खुले रहने के आदेश दिए हैं.

इसी के साथ ही इन स्पा सेंटरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलगअलग मालिश के कमरे, शौचालय, चेंजिंग रूम और स्नानघर के होने की बातें कही हैं.

अब देखना यह है कि क्या सरकार के इन कठोर दिशानिर्देशों और नियमों का स्पा सेंटरों में चलने वाले देह व्यापार पर कोई असर पड़ता है या नहीं.

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