प्रीत किए दुख होए : भाग 4

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:

काजल और सुंदर बचपन से एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर ऊंची जाति का था और काजल दलित थी. सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का शोषण हुआ. वह वापस आ गया. इसी बीच उस की मुलाकात मीनाक्षी से हुई. वह उसी की जाति की थी. काजल पढ़ाई में होशियार निकली और पढ़ने शहर जा पहुंची. मीनाक्षी सुंदर को चाहती थी.

अब पढ़िए आगे…

 यह बात सुंदर के भी कानों में पड़ी कि पूरे ही गांव का कायाकल्प हो रहा है और वह भी काजल की बदौलत. सुंदर पिंजरे में बंद पंछी की तरह तड़प उठा.

सुंदर की यह तड़प देख कर मीनाक्षी उस पर हंस पड़ती, ताने देती. एक बार तो सुंदर ने मीनाक्षी को पीट दिया क्योंकि उस ने काजल के लिए बेहूदा बात कही थी. लेकिन एक सच्ची प्रेमिका की तरह वह यह सब झेल गई और परिवार को इस की भनक तक न लगने दी.

‘‘सुंदर, तुम मेरी जान भी ले लोगे न तो भी मैं उफ न करूंगी,’’ रोने के बजाय मीनाक्षी ने बेबाक हो कर कहा था.

सुंदर घबराया और मीनाक्षी के पैर पकड़ लिए, ‘‘मुझे माफ कर दो. मेरे दिल को समझो. मैं अपना दिल काजल के नाम कर चुका हूं.’’

मीनाक्षी ने आंसू पोंछे, ‘‘अगर तेरा प्यारा सच्चा होगा तो तुझे मिल जाएगी काजल.’’ ‘‘नहीं मीनाक्षी, मैं इस जेल में बेकुसूर कैदी हूं. मुझे तुम आजाद कर दो. मीनाक्षी, तुम मेरी प्रेरणा हो तो मंजिल है काजल. मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमंद रहूंगा, अगर मुझे मंजिल तक पहुंचाने में मदद कर दी.’’

‘‘जब कुदरत तेरे साथ होगा तो कोई रोक सकता है क्या?’’

‘‘चलो, अपने कमरे में. मां शायद इधर ही आ रही हैं,’’ दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

कुछ दिन बाद सुंदर के कालेज में टूर का प्रोग्राम बना. सरकारी फंड से एकबस की गई. उस में पहले साल के सभी छात्रछात्राएं सवार हो शहर घूमने चले. गाइड के रूप में 2 टीचर साथ थे, जिन में एक मिश्राजी भी थे.

शहर घूमने के बाद तकरीबन 4 बजे बस जिले के राजकीय महाविद्यालय परिसर में रुक गई. सभी छात्रछात्राएं बाहर निकल कर घूमने लगे.

गाइड से सुंदर को पता चला कि वह जिले का सब से अच्छा कालेज है जहां टौपर छात्रछात्राएं ही पढ़ते हैं. उस ने अंदाजा लगाया कि हो सकता है कि काजल भी यहीं पढ़ती हो.

सुंदर काजल को ढूंढ़ने लगा. काजल अभीअभी क्लास में से बाहर निकली. सिक्योरिटी गार्ड भी पीछेपीछे था. सुंदर को गार्ड का पता नहीं था, सो उस ने धीरे से पुकारा, ‘‘काजल…’’

इतना सुनना था कि काजल दौड़ कर उस के गले लग गई.

‘‘तू ने मुझे भुला दिया काजल?’’

‘‘नहीं रे, कहां भूली हूं मैं? देख मेरी हालत. क्या ऐसी थी मैं?’’ और काजल ने सुंदर को जोर से भींच लिया.

सुरक्षा गार्ड ने देखा तो उस ने दौड़ कर सुंदर को पकड़ा और गेट के पास बने थाने में डीएसपी अंजन कुमार को सौंप दिया.

डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर की बेरहमी से पिटाई कर दी और थाने में बंद कर दिया. सारे छात्रछात्राएं धरने पर बैठ गए और नारेबाजी करने लगे.

मामला गंभीर होता देख कर डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर को छोड़ दिया और मिश्राजी ने राजकीय अस्पताल में उसे भरती करा दिया.

थाने में सुंदर की इतनी पिटाई की गई थी कि 3 महीने तक उसे अस्पताल में रहना पड़ा. मीनाक्षी कभीकभी अस्पताल आती तो उस पर ताना कसती, ‘‘दिल दिया, दर्द लिया. वही थी न तुम्हारी काजल…? अच्छी है तुम्हारी पसंद.’’

सुंदर कुछ नहीं बोला, बस सिसकता रहा. आखिर डाक्टरों के इलाज और मीनाक्षी की सेवा से वह घर जाने लायक हो गया. छुट्टी के दिन वह किसी की निगरानी न देख चुपके से अपने घर आ गया.

उधर मीनाक्षी अस्पताल पहुंची तो बिस्तर खाली देख बगल वाले से पूछा. पता चला कि सुंदर अभीअभी घर चला गया है. मीनाक्षी ने घर जा कर अपने पिता को बताया तो मिश्राजी के तनबदन में आग लग गई. उन्होंने प्रण किया कि चाहे जान चली जाए, सुंदर को मीनाक्षी से शादी करनी ही पड़ेगी.

उधर, डीएसपी अंजन कुमार भी काजल की चाहत में दीवाने हो गए थे.

कालेज में 15 दिन की छुट्टियां हुईं. काजल के मन में आया कि मां के साथ गांव घूम लिया जाए. दोनों मांबेटी गांव आ गईं. बदलाव देख कर वे दंग रह गईं.

काजल के कच्चे घर के बजाय वहां पक्का बड़ा घर बन गया था. ठेकेदार ने आ कर घर की चाबी देते हुए सारी बातें बताईं कि यह काजल का ही कमाल है.

बड़ा घर देख कर मांबेटी दोनों बड़ी खुश हुईं और ठेकेदार को चाय पिलाई. मां ने ठेकेदार से गांव का हालचाल पूछा, खासकर बाबू लोगों का.

‘‘गजब की खबर है. पंडित रमाकांत के बेटे सुंदर को 2 दिन पहले दूर गांव के कोई मिश्राजी मास्टर के हथियारबंद लोग अपहरण कर के ले गए. सभी बाबू लोगों ने मिश्राजी के यहां दबिश दे दी.

आखिरकार मिश्राजी ने हथियार डाल दिए और पंडित रमाकांत के बेटे सुंदर को मुखिया के हवाले कर दिया. चेतावनी देते हुए सभी लोग वापस गांव आ गए.

यह सुन कर काजल परेशान हो गई और छत पर टहलने लगी, तभी उस की नजर सड़क पर जाती अपनी सहेली ममता पर पड़ी, जो मुखियाजी की बेटी थी.

काजल ने ऊपर से ही अपनी सहेली ममता को अंदर आने का इशारा किया और दनदनाते हुए नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया. दोनों सहेलियां गले मिलीं.

‘‘शहर में कैसी पढ़ाई चल रही है तुम्हारी?’’ ममता ने पूछा.

‘‘अच्छी, लेकिन तू बता कि उंगली में चमक रही अंगूठी कब से है? कहीं टांका भिड़ गया क्या?’’ काजल ने ममता से पूछा और अपनी परेशानी भूल गई.

‘‘अब समझ ही गई है तो कहना क्या?

‘‘मुझे क्यों भूल गई?’’

‘‘नहीं भूली काजल, चाहे जिस की कसम दे दो. लेकिन तुम तो जान रही हो न हमारी बिरादरी को. पापा मुखिया हैं. भी बदनाम हो जाते.’’

‘‘खैर, तू बस जीजाजी से मिलवा दे, ताकि मैं देख सकूं कि मेरी चालाक सहेली ने कैसी बाजीगरी दिखाई है.’’

‘‘अभी तो वे कालेज में होंगे. क्या तू चलेगी वहां?’’

‘‘तू साथ चलेगी तब न? मैं कैसे पहचानूंगी?’’

‘‘अभी चल. घर जा कर आना मुमकिन नहीं.’’

‘‘तो चल.’’

काजल ने आननफानन कपड़े बदले और आटोरिकशा में सवार हो कर दोनों सहेलियां कालेज पहुंच गईं.

लंच की घंटी बजने में 10 मिनट की देरी थी, सो दोनों सहेलियां कालेज कैंपस में लगे नीम के घने पेड़ के नीचे इंतजार करने लगीं.

‘‘देख, जब घंटी बजेगी तब मैं क्लास के सामने जा कर खड़ी हो जाऊंगी. तब तक तुम मुझ पर ही नजर गड़ाए रखना. जैसे ही वे मिलेंगे, मैं उन्हें कालेज के पिछवाड़े में ले जाऊंगी. तुम तेजी से हमारे पीछे आना,’’ ऐसा कह कर ममता क्लास के सामने जा कर खड़ी हो गई.

घंटी बजी. वैसा ही हुआ. काजल ने तेजी से ममता का पीछा किया. वह ज्यों ही कालेज के पिछवाड़े की ओर मुड़ी कि उसे सांप सूंघ गया. ममता का वह मंगेतर कोई और नहीं, बल्कि काजल का सुंदर था.

‘‘रुक क्यों गई काजल, आओ न. मिलो तुम मेरे मंगेतर से,’’ यह कह कर ममता मुसकरा दी.

काजल की आंखों में खून उतर आया. वह बोली, ‘‘धोखेबाज, तो यही है तेरा असली रूप?’’

सुंदर कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन काजल अपनी रौ में थी, ‘‘मैं दलितों व कमजोर लोगों को समाज में इज्जत दिलाने की हसरत लिए चल रही थी और इस में तुम ने भी साथ देने की कसमें खाई थीं… कहां गया वह जज्बा?’’

ममता की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह हैरानी से दोनों को देख रही थी.

काजल बोले जा रही थी, ‘‘तुम ऐसे इनसान हो, जो खुद अशुद्ध रह कर यजमानों का शुद्धीकरण कराते हैं और पंडित होने का ढोंग रचते हैं. क्या किया है तुम लोगों ने? दलितों और कमजोरों की जायदाद हड़प कर उन्हें बेघर कर गांव निकाले जाने की सजा दे दी है.

‘‘झूठ, फरेब व वादाखिलाफी कर तू ने मेरे दिल के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मैं कैसे और कहां जीऊंगी सुंदर? तेरे लिए मैं ने अपनी बिरादरी के ही होनहार, स्मार्ट डीएसपी का औफर ठुकराया. तू ने मुझे तो कहीं का न रखा.

‘‘कान खोल कर सुन ले. मेरी जिंदगी को हराम कर के तुम भी नहीं जी सकोगे. मेरी जगह तो अब गंगा की गोद में हैं. मैं चली,’’ और काजल बेतहाशा भागी. पास ही में गंगा नदी बहती थी.

‘‘काजल सुनो तो… रुको तो,’’ कह कर जब तक सुंदर पीछा करते हुए उसे पकड़ता, तब तक वह गंगा में कूद पड़ी.

सुंदर ने भी छलांग लगा दी. अब ममता को पूरी बात समझ में आई. उस ने इस घटना को वहां नहा रहे लड़कों को बताया. जो तैरना जानते थे, वे कूद पड़े.

सुंदर और काजल बीच गंगा में डूबतेउतरा रहे थे. कुछ लड़कों ने हिम्मत दिखाई और दोनों को बाहर निकाल लिया. सुंदर रोए जा रहा था, वहीं काजल बेहोश थी. कुछ लड़के दौड़ कर डाक्टर को बुला लाए. उन्होंने काजल की सांस चैक की जो धीमेधीमे डूबती जा रही थी. दोनों को तुरंत गाड़ी में लाद कर नर्सिंगहोम ले आए. पेट का पानी निकालने के बाद औक्सिजन लगा दी गई.

2 घंटे के इलाज के बाद काजल होश में आई. यह सब देख ममता के भी आंसू नहीं सूख रहे थे.

‘‘काजल, तू ने जरा भी बताया होता कि तुम सुंदर से बचपन से प्यार करती हो तो मैं इस दबंग समाज से लड़ जाती और तेरा ब्याह सुंदर से ही करवाती. लेकिन तू ने कभी इस बारे में बात नहीं की. मुझे माफ कर दे काजल,’’ और ममता ने सगाई की अंगूठी निकाल सुंदर को देते हुए कहा, ‘‘सुंदर, पहना दे काजल को.’’

सुंदर झिझका, लेकिन लड़कों के हुजूम में से एक ने हिम्मत दी, ‘‘पहना दे काजल भाभी को अंगूठी. मरते दम तक हम सब तेरे साथ हैं. भाभी होश में आ गई हैं. तेरी शादी अभी होगी. हमारे कुछ साथी जरूरी सामान व पंडित को लाने चले गए हैं. बस, आने की देरी है.’’

सुंदर ने काजल को वह अंगूठी पहना दी. सब ने तालियां बजाईं, तभी पंडितजी व सारा सामान आ गया.

ममता ने काजल को सजाया. तभी उन्हें भनक मिली कि मिश्राजी के गुंडों ने घेराबंदी कर दी है. लड़कों ने भी नर्सिंगहोम घेरे रखा. कोई अनहोनी न हो जाए, इसलिए ममता ने कोतवाली और अपने पिता को फोन कर दिया.

मुखियाजी ने तुरंत आ कर अपनी दोनाली तान दी, ‘‘बच्चो, हट जाओ. नादानी मत करो. मारे जाओगे. अंदर क्या हो रहा है?’’ मुखियाजी ने घुसने की कोशिश की. अंदर से शादी कराने के मंत्र सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘सुन नहीं रहे हैं चाचा. अंदर सुंदर और काजल की शादी हो रही है,’’ एक लड़के ने बताया.

‘‘खबरदार मुखियाजी, एक भी गोली चली तो…’’ कोतवाली से डीएसपी अंजन कुमार ने आ कर अपनी रिवाल्वर मुखियाजी की कनपटी से सटा दी. तब तक एसटीएफ के जवानों ने भीड़ की कमान अपने हाथ में ले ली थी. मिश्राजी के गुरगे भाग चुके थे.

शोर सुन कर ममता बाहर आई और पिताजी को देख कर रो पड़ी, ‘‘अच्छे आए आप. कन्यादान तो आज आप को ही करना है. चलिए भीतर, कर दीजिए कन्यादान.’’

‘‘कन्यादान…? एक दलित लड़की का कन्यादान मैं करूं? दिमाग तो ठीक है तेरा,’’ मुखियाजी बोले.

‘‘हांहां, आप… आप दलित किसे कहते हैं? उसे जिस ने दलित घर में जन्म लिया है? लेकिन उस ने जन्म देते वक्त कहीं कोई निशान दिया कि मैं उसे दलित मान लूं? मैं और काजल दोनों बचपन की सहेलियां हैं. बताइए, क्या फर्क है हम दोनों में? यहां दलित के नाम पर नफरत के बीज बोने का हक किस ने किस को दिया?

‘‘सुंदर और काजल के बीच बचपन का प्यार है. हम सब जातिवाद के चक्कर में इसे नहीं पहचान सके. प्यार की कोई जाति नहीं होती. अब तो सरकार ने भी इसे मान लिया है,’’ इतना कह कर ममता ने उन के हाथ से बंदूक छीन ली और उसे दूर फेंक दिया.

मुखियाजी ने भी अपनी बेटी की सामने घुटने टेक दिए, ‘‘बेटी, आज तू ने बेटी की सही परिभाषा दे कर मुझे एहसानमंद कर दिया. तू ने मुझे आईना दिखा दिया है.’’

दोनों भीतर गए और पंडित ने मुखियाजी से कन्यादान कराया. सभी बाहर निकले. काजल की मांग में सिंदूर और सुंदर के सिर पर सेहरा देखते ही बनता था.

ममता काजल को संभाले खड़ी थी. मुखियाजी ठीक सुंदर के बगल में सीना ताने खड़े हुए थे. डीएसपी साहब भी सादा कपड़ों में काजल व ममता के बगल में खड़े थे.

मुखियाजी ने कहा, ‘‘बच्चो, इस समाज की बेहतरी का जिम्मा तुम्हारे ही कंधों पर है. ममता ने जो कहा, मैं तो उस से बड़ा प्रभावित हुआ और मान लिया.’’

पूरी भीड़ ने एक सुर में कहा, ‘हां.’

सरपंच ने कहा, ‘‘मुखियाजी, हम दलित बस्ती के हैं. इसे सही माने में दलित बस्ती बनाएंगे और सब को समान अधिकार दिलाएंगे. जिन बाबू लोगों के पास दलितों की जमीन, मकान वगैरह कब्जे में हैं, उसे कागज समेत वापस करवाएंगे और तमाम दलितों को भी वह सहूलियतें दिलाएंगे, जो बाबू लोगों को मिली हुई हैं.’’

तभी झाड़ी में से एक दनदनाती गोली मुखियाजी के सीने पर जा लगी. वे कटे पेड़ की तरह गिरे और मर गए. एसटीएफ के जवानों ने खदेड़ कर गोली चलाने वाले को पकड़ लिया और डीएसपी के सामने खड़ा कर दिया. उस ने तुरंत एक थप्पड़ में ही कबूल कर लिया कि उसे मारना था सुंदर को, धोखे से गोली लग गई मुखियाजी को.

सुंदर, काजल व ममता दहाड़ें मार कर मुखियाजी की लाश पर गिरे. ममता रोतेरोते बेहोश हो गई.

डीएसपी अंजन कुमार ने लाश को तत्काल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और खुद 4-5 जवानों के साथ भीड़ को काबू करने में लगे रहे. ममता जब होश में आई, तो रोरो कर कहने लगी, ‘‘आज मेरा कन्यादान होना था. अब कब होगा कन्यादान? कौन करेगा कन्यादान?’’

डाक्टर दिलासा देते हुए बोला, ‘‘बेटी, मैं करूंगा यह कन्यादान. मेरा आशीर्वाद है तुझे.’’

तभी लोगों ने देखा कि काजल ने डीएसपी के पैर पकड़ लिए.

‘‘काजल,’’ उन्हें हैरानी हुई और पैर हटा लिए, ‘‘कुछ कहना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो कहो, सब के सामने.’’

‘‘सर, आप भी मुझ से प्यार करते थे न?’’

‘‘बिलकुल, पर अब तुम मेरी बहन हो गई हो. बोलो, कौन सा बलिदान करूं मैं? मेरी बड़ी हसरत थी कि तुम कुछ कहो और मैं उस पर अमल करूं?’’

‘‘मेरी गुजारिश है कि आप ममता की मांग भर दें. एक डीएसपी भाई का यह नायाब तोहफा होगा एक गरीब बहन को.’’

काजल ने ममता को खड़ा कर के पूछा, ‘‘ममता, मेरी सहेली, डीएसपी वर पसंद हैं न तुझे? बोल बहन.’’

ममता ने बुझी आंखों से डीएसपी को देखा और उन के सीने से लग गई.

डीएसपी ने ममता की मांग भर दी. पंडितजी ने विधिविधान से मंत्र पढ़े और डाक्टर ने कन्यादान किया. भीड़ ने तालियां बजा कर जोड़े का स्वागत किया.

मुखिया मर्डर केस में अदालत ने मास्टर मिश्रा को 20 साल की कैद और हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई.

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लौकडाउन स्पेशल : शिकार

महेंद्र थाने में आ कर बैठा ही था कि एक सिपाही ने उसे खबर दी, ‘‘साहब, निजामुद्दीन से अहमदाबाद आने वाली ‘राजधानी ऐक्सप्रैस’ ट्रेन में एक आदमी बेहोशी की हालत में मिला है.’’

यह सुन कर महेंद्र को आज से एक साल पहले की घटना याद आ गई. तब उस की बेरावल रेलवे स्टेशन पर आरपीएफ के थानेदार के रूप में नईनई पोस्टिंग हुई थी.

एक दिन की बात है. सुबहसुबह थाने के एक सिपाही ने आ कर बताया, ‘साहब, राजकोट से सोमनाथ आने वाली पैसेंजर ट्रेन में एक लड़की बेहोश पड़ी मिली है.’

यह सुन कर महेंद्र तुरंत उस सिपाही के साथ चल पड़ा. उस ने देखा कि इंजन से पीछे वाले डब्बे में एक लड़की, जिस की उम्र 22-23 साल होगी, ऊपर वाली बर्थ पर बेहोशी की हालत में पड़ी थी.

महेंद्र के साथ गए सिपाही रामलाल ने कहा, ‘साहब, मुझे तो मामला जहरखुरानी का लगता है. इस के पास कोई सामान भी दिखाई नहीं दे रहा है.’

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महेंद्र ने रामलाल से कहा, ‘इसे तुरंत डाक्टर के पास ले जाओ और होश में आने पर मुझे बताना.’

दिन के तकरीबन 10 बजे रामलाल ने बताया, ‘साहब, उस लड़की को होश आ गया है और अब वह ठीक है.’

महेंद्र ने रामलाल से कहा, ‘उस लड़की को थाने ले आओ.’

जब वह लड़की थाने आई, तो बेहतर दिख रही थी.

महेंद्र ने पूछा, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’

उस लड़की ने बताया, ‘मेरा नाम राजबाला है और मैं राजस्थान के भरतपुर इलाके की रहने वाली हूं.’

यह पूछने पर कि यहां और इस हालत में वह कैसे पहुंची, तो उस ने बताया कि वह प्रेमी के साथ घर से भाग कर आई है, लेकिन उस के प्रेमी ने रास्ते में उसे नशीली दवा खिला दी और उस के जेवर व पैसे ले उड़ा.

महेंद्र ने उस लड़की के मातापिता का मोबाइल नंबर पूछा, तो उस ने कहा, ‘साहब, उन्हें मत बताइए. मैं खुद ही अपने घर चली जाऊंगी.’

पता नहीं उस की बातों में क्या जादू था कि महेंद्र उस की बात मान गया.

उस लड़की ने कहा, ‘मेरे सिर में अभी भी थोड़ा दर्द है. आराम कर के मैं अपने घर चली जाऊंगी.’

महेंद्र ने रामलाल से कहा, ‘इसे मेरे रैस्टहाउस में लिटा दो. बाद में किसी ट्रेन में बिठा देना.’

महेंद्र अपने काम में लग गया, लेकिन उस के मन में राजबाला के प्रति काम भावना जाग गई थी. रात को तकरीबन 8 बजे वह अपने रैस्टहाउस में पहुंचा, तो राजबाला पलंग पर बैठी थी.

महेंद्र ने पूछा, ‘कैसी तबीयत है?’

उस ने बताया, ‘पहले से ठीक है.’

महेंद्र ने कहा, ‘रुको, मैं तुम्हारे लिए खानेपीने का इंतजाम करता हूं.’

इस के बाद महेंद्र ने बाहर आ कर एक सिपाही को बुलाया और उस लड़की के लिए खाना और अपने लिए शराब मंगाई. महेंद्र ने एक सिपाही के घर पर बैठ कर पहले जम कर शराब पी और वहीं बैठ कर खाना खाया.

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रात के तकरीबन साढ़े 11 बजे महेंद्र अपने रैस्टहाउस में पहुंचा, तो देखा कि राजबाला खाना खा कर सो चुकी थी.

एक तो शराब का नशा, ऊपर से एक जवान लड़की का शबाब… महेंद्र ने आते ही दरवाजा बंद किया और राजबाला पर झपट पड़ा.

अचानक हुई इस हरकत से वह जाग गई, लेकिन महेंद्र उसे कहां छोड़ने वाला था. वह रोतीगिड़गिड़ाती रही, पर महेंद्र पर इस का कोई असर न हुआ. वह उस पर छाता गया और अपनी मंजिल पा कर ही उस से अलग हुआ.

वह बेचारी महेंद्र से अलग हो कर एक कोने में जा कर रोने लगी. महेंद्र अपनी हवस मिटाने के बाद सो गया.

सुबह तकरीबन 9 बजे एक सिपाही ने महेंद्र को जगाया. वह अधनंगी हालत में बिस्तर पर पड़ा था. महेंद्र ने जागते ही उस लड़की के बारे में पूछा, तो सिपाही ने कहा, ‘मुझे तो कुछ नहीं मालूम साहब. रात को वह इसी कमरे में ही तो सोई थी. जब आप सुबह से नहीं दिखे, तो मैं आप को देखने चला आया.’

अचानक महेंद्र का ध्यान हाथों पर गया, तो चौंक गया. उस की दोनों अंगूठियां और घड़ी गायब थी. पैंट में रखा पर्स भी नदारद था. अलमारी खुली पड़ी थी. वहां जा कर देखा, तो 50 हजार रुपए भी गायब थे.

महेंद्र ने अपना सिर पकड़ लिया. उसे समझ में आ गया कि उस ने उस लड़की का नहीं, बल्कि उस लड़की ने उस का शिकार किया था.

प्रीत किए दुख होए : भाग 3

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:

काजल और सुंदर स्कूल के दिनों से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर चूंकि ऊंची जाति का था और काजल दलित थी इसलिए सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का खूब शोषण हुआ. इधर काजल पढ़ाई में तेज होने के चलते आगे बढ़ती गई. इसी बीच सुंदर की जिंदगी में मीनाक्षी आई जिस के पिता उन दोनों का रिश्ता कराना चाहते थे.

अब पढि़ए आगे…

 ‘‘तेरी भलाई इसी में है कि तू मीनाक्षी के संग जोड़ी जमा और पढ़लिख. मैट्रिक पास करा दिया न? सैकंड डिवीजन ही सही.

‘‘कल कालेज चलना मेरे साथ. दाखिला करा दूंगा,’’ कह कर आंखें तरेरते हुए मिश्राजी वहां से चले गए.

उस दिन भी सुंदर ने खाना नहीं खाया. सब ने लाख कोशिश की, पर बेकार गया.

मीनाक्षी सुंदर को समझाती, ‘‘घोड़े हो गए हो पूरे 6 फुट के. मन के मुताबिक नतीजा नहीं लाया तू?’’

‘‘नहीं मीनाक्षी, इस बार या तो फर्स्ट आऊंगा या फिर जान दे दूंगा,’’ सुंदर ने पूरे भरोसे के साथ कहा.

‘‘बाप रे…’’ मीनाक्षी ने मुंह पर हाथ रख लिया, ‘‘तू इतना बुजदिल है… जब मैं साथ रहूंगी तो जान कैसे देगा? मैं क्या तमाशा देखूंगी? मैं भी…’’ सुंदर ने अपने हाथों से उस के मुंह को बंद कर दिया.

‘‘तुम्हारा तो सबकुछ है. तुम ऐसा क्यों करोगी?’’

‘‘जब तुम नहीं तो कौन है मेरा?’’ मीनाक्षी की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘मीनाक्षी, ऐसे सपने मत पालो. रास्ते का ठीकरा किसी का भविष्य नहीं हो सकता. मैं गरीब पूजापाठ कराने वाले बाबूजी का बेटा हूं. तेरी जैसी अमीरी मेरे पास नहीं है. तेरे लिए तो शहजादों की कतार लगी है.’’

मिश्राइन दूसरे कमरे से दोनों की बातें सुन रही थीं. वे बाहर निकल आईं, ‘‘तू ही तो एक सूरमा बचा है काजल के लिए? अरे पोथीपतरे वाले, तेरे मन में यह सब कैसे घुस गया है? दलित अछूत होते हैं, इतना भी नहीं पता?’’

‘‘पता है, लेकिन आप को भी पता होगा कि ये सब दीवारें कब की गिर चुकी हैं. पूरे देश में उदाहरण भरे पड़े हैं कि अच्छेअच्छों व बड़ेबड़ों ने भी इसे स्वीकारा है और दूसरी जाति में शादी कर इसे साबित भी कर दिया है.

‘‘मांजी, वह दिन दूर नहीं जब जातिवाद भूल कर सब आपस में मिल कर एक हो जाएंगे. समाज में बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, दहेज प्रथा के खात्मे के लिए यह जरूरी हो गया है कि 2 परिवार मिलें, शादी करें और एकदूसरे के बोझ को हलका करें. मास्टरजी तो जानते ही होंगे…’’ सुंदर बोला.

‘‘बस, भाषण बंद कर. मुझे तुम से बहस नहीं करनी,’’ मांजी पैर पटकते हुए वहां से चली गईं.

मीनाक्षी ने जोर से ताली बजाई, ‘‘मां को हरा दिया सुंदर, शाबाश. इस बार तू इम्तिहान को भी हरा दे.’’

‘‘ऐसा ही होगा मीनाक्षी, ऐसा ही होगा इस बार,’’ और सुंदर एकदम चुप हो गया.

मिश्राइन ने मिश्राजी को सारी बातें बताईं.

‘‘बोलो, मैं क्या करूं?’’ मिश्राजी ने पूछा.

‘‘करना क्या है… दोनों के पैरों में जल्दी ही बेडि़यां डाल दो.’’

‘‘यह मुमकिन है क्या? मीनाक्षी और सुंदर अभी नाबालिग हैं. सब्र करो. सब्र का फल मीठा होता है.’’

‘‘अगर चिडि़या पिंजरे से फुर्र हो गई तो?’’ मिश्राइन ने सवाल किया.

मिश्राजी कुछ नहीं बोले. वे कमरे में सोने चले गए. मिश्राराइन झुंझला गईं और पैर पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसा ही होगा एक दिन. तुम ख्वाब देखते रह जाओगे.’’

इधर काजल का मानना था कि सुंदर क्लास में उस से पीछे है. उसे पता नहीं था कि सुंदर ने भी मैट्रिक का इम्तिहान दिया था और सैकंड क्लास से पास भी हुआ था. बड़ी मुश्किल से मास्टरजी ने उस का दाखिला गांव के निकट के कालेज में करा दिया था और उस ने काजल के नतीजे के बराबर तो नहीं, उस के पास आने की कसम खाई थी.

काजल ने मुख्यमंत्री से 25 हजार रुपए का चैक ले तो लिया, लेकिन सुंदर से आगे रहना उसे गवारा नहीं था इसलिए उस ने कहीं दाखिला नहीं लिया.

खुद डीईओ साहब ने कोशिश की, तो काजल की मां ने कहा, ‘‘मैं अकेली रह लूंगी लेकिन साहब, शहर की कहानियां सुनसुन कर तो मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है. वहां गुंडे सरेआम लड़कियों को उठा लेते हैं. 5 साल की बच्ची से भी बलात्कार कर हत्या करने से नहीं हिचकते भेडि़ए. साहब, मेरी फूल सी बेटी इन सब का शिकार होने नहीं जाएगी शहर.’’

‘‘देखिए, माना कि शहर में यह सब होता है लेकिन जरूरी तो नहीं कि काजल के साथ भी हो. उस पर भी कलक्टर की देखरेख रहेगी. ऊपर से मुख्यमंत्री का दबाव पड़ रहा है. दाखिला तो कराना ही होगा.

‘‘रही बात सिक्योरिटी की तो एसपी से कह कर इसे सिक्योरिटी दी जाएगी. वहां रहने को होस्टल है. इस के लिए सबकुछ मुफ्त रहेगा. चाहे तो आप भी साथ में रह सकती हैं. मेरा भी घर बहुत बड़ा है.

‘‘मेरा एकलौता बेटा अंजन कुमार ट्रेनी डीएसपी है. उस की भी निगरानी रहेगी. काजल मेरे पास बेटी बन कर रहेगी. हम भी आप की ही बिरादरी के हैं.’’

‘‘आप का बेटा… कुंआरा है क्या अभी?’’ काजल की मां की उत्सुकता जागी.

‘‘हां, है तो… लेकिन अभी ट्रेनी है.

2 महीने बाद उस की पोस्टिंग कहीं भी डीएसपी की पोस्ट पर हो जाएगी.’’

‘‘तो ऐसा कीजिए न साहब, आप काजल को बेटी बना ही लीजिए.’’

मां का मकसद ट्रेनी डीएसपी से काजल की शादी कराना था.

‘‘देखिए, जमाना एडवांस चल रहा है. आजकल शहरों में पहले दोस्ती, फिर सगाई और फिर… समझ रही हैं न आप. मेरा भी लालच इतना ही है कि ऐसी सुघड़, सुंदर व मेधावी लड़की अपनी बिरादरी में खोजे नहीं मिलेगी.’’

‘‘मां…’’ यह सुन कर काजल चीख उठी, ‘‘कहा न कि मैं दाखिला नहीं लूंगी और न ही शादी ही करूंगी, बस.’’

‘‘मैं कैसे समझूं कि गांव की लड़कियां शहर की लड़कियों से कम होती हैं? सोच लीजिएगा. एक मौका तो दूंगा ही.

‘‘और हां, दाखिला तो लेना ही पड़ेगा. यह सरकारी आदेश है,’’ इतना कह कर वे चले गए.

उस रात काजल ने सपना देखा कि सुंदर की दूसरी जगह शादी हो गई है और वह सुहागरात में उस का नाम ले कर फूटफूट कर रो रहा है.

सपने में ही काजल की चीख निकल गई और नींद टूट गई. मां ने उसे बांहों में भर लिया.

काजल ने फफकते हुए कहा, ‘‘मां, सुंदर ने शादी कर ली है.’’

‘‘पगली, सपने भी कहीं सच होते हैं भला. सो जा. शादी होगी तो तेरा क्या? हम दलित हैं और वे लोग ऊंची जाति के हैं. वे लोग हमें अछूत मानते हैं.’’

इसी तरह 2 महीने बीत गए. डीएसपी अंजन कुमार की पोस्टिंग भी राजकीय महाविद्यालय गेट के पास बने थाने में थाना इंचार्ज के रूप में हुई.

डीएम की चिट्ठी का हवाला देते हुए डीईओ ने डीएसपी अंजन कुमार को लिखा कि नंदीग्राम की एकमात्र छात्रा काजल का दाखिला कल तक करा दिया जाए, क्योंकि उसी के लिए कालेज में सीट रिजर्व रखी गई है. उस के रहने, आनेजाने पर सिक्योरिटी गार्ड की तैनाती का भी आदेश दिया गया.

डीएसपी ने अपने डीईओ पिता से भी काजल की चर्चा सुनी थी, इसलिए वे खुद को रोक नहीं सके और शाम को  तकरीबन 4 बजे फोर्स ले कर नंदीग्राम पहुंच गए.

2 घरों के बाद ही काजल का घर था. अंजन कुमार ने सांकल बजाई. काजल ने दरवाजा खोला. अंजन कुमार समझ गए कि यही काजल है.

‘‘आप की मां कहां हैं?

‘‘पड़ोस में गई हैं. वे अभी आ जाएंगी,’’ इतना कह कर काजल ने एक कुरसी निकाली और अंजन कुमार को बिठा दिया.

अंजन कुमार ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हीं काजल हो?’’

काजल ने हां में सिर हिलाया और जेब पर लगी नेमप्लेट से समझ गई कि यही डीईओ साहब के बेटे हैं जिन से उस की शादी की बात उन्होंने मां से छेड़ी थी.

तभी काजल की मां भी आ गईं और हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

‘‘देखिए, काजल के दाखिले के लिए राजकीय महाविद्यालय में सीट खाली छोड़ी गई है. डीएम ने डीईओ को और डीईओ ने यह काम थाना इंचार्ज डीएसपी अंजन कुमार यानी मुझे सौंप दिया है.

‘‘कल हम सुबह साढ़े 9 बजे गाड़ी ले कर आएंगे और आप दोनों को महाविद्यालय चलना होगा. इस में आनाकानी की कोई गुंजाइश नहीं है. बस, मैं यही कहने आया था,’’ कह कर वे उठ खड़े हुए.

‘‘अगर मैं दाखिला न लूं तो?’’ काजल ने कहा.

‘‘तो कल मैं वारंट भी साथ ही ले कर आऊंगा. और… आप सोच लेना,’’ डीएसपी अंजन कुमार ने कहा.

डीएसपी अंजन कुमार की छाती को बेधते हुए काजल ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘थैंक यू सर.’’

डीएसपी अंजन कुमार दिल पर पड़े जख्म को सहलाते हुए अपने थाने लौट गए.

दूसरे दिन काजल का दाखिला हो गया और चल पड़ा नया सैशन. सभी प्रोफैसरों को गाइड किया गया था कि वे काजल पर खास नजर रखें.

काजल भी हर सब्जैक्ट को आसानी से समझ लेती थी. उस ने भी ठान लिया था कि सुंदर मास्टर मिश्राजी की बेटी के साथ मगन है तो वह क्यों उस के नाम की माला जपे? अगर वह दलित है तो ठीक है, कुदरत ने उसे किसी से कम भी नहीं बनाया है.

देखभाल के लिए सिक्योरिटी गार्ड मिलने से काजल को घर से कालेज आनेजाने में कोई डर नहीं था. उस की मां भी खुश थीं.

चूंकि काजल होस्टल में रहती थी, वह भूल गई अपने गांव को. उसे क्या पता था कि उस का पुराना घर तोड़ कर सरकार वहां नई इमारत बना रही है. पूरे गांव का कायाकल्प हो रहा है.

(क्रमश:)

 क्या सुंदर गांव में जा कर काजल से मिल पाया? क्या मिश्राजी सुंदर को अपना दामाद बनाना चाहते थे? पढ़िए अगले अंक में…

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प्रीत किए दुख होए (पहला भाग)

प्रीत किए दुख होए (दूसरा भाग)

तृष्णा: भाग-1

पार्टी पूरे जोरशोर से चल रही थी. दीप्ति और दीपक की शादी की आज 16वीं सालगिरह थी. दोनों के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. दोनों ही नोएडा में रहते हैं. वहां दीप्ति एक कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर नियुक्त है तो दीपक बहुराष्ट्रीय कंपनी में वाइस चेयरमैन.

दीप्ति की आसमानी रंग की झिलमिल साड़ी सब पर कहर बरपा रही थी. दोनों ने अपने करीबी दोस्तों को बुला रखा था. जहां दीपक के दोस्त दीप्ति की खूबसूरती को देख कर ठंडी आहें भर रहे थे, वहीं दीपक का दीप्ति के प्रति दीवानापन देख कर उस की सहेलिया भले हंस रही हों पर मन ही मन जलभुन रही थीं.

केक काटने के बाद कुछ कपल गेम्स का आयोजन किया गया. उन में भी दीप्ति और दीपक ही छाए रहे. पार्टी खत्म हो गई. सब दोस्तों को बिदा करने के बाद दीप्ति और दीपक भी अपनेअपने कमरे रूपी उन ग्रहों में छिप गए

जहां पर बस वे ही थे. वे आज के उन युगलों के लिए उदाहरण हैं जो साथ हो कर भी साथ नहीं हैं. दोनों ही, जिंदगी की दौड़ में इतना तेज भाग रहे हैं कि उन के हाथ कब छूट गए, पता ही नहीं चला.

आज रात को बैंगलुरु से दीपक की दीदी आ रही थीं. दीप्ति ने पूरे दिन की छुट्टी ले ली. नौकरों की मदद से घर की सज्जा में थोड़ा परिवर्तन कर दिया. दीपक भी सीधे दफ्तर से दीदी को लेने एअरपोर्ट चला गया. शाम 7 बजे दरवाजे की घंटी बजी, तो दीप्ति ने दौड़ कर दरवाजा खोला. अपनी ससुराल में वह सब से करीब शिखा दीदी के ही थी. शिखा एक बिंदास 46 वर्षीय स्मार्ट महिला थी, जो दूध को दूध और पानी को पानी ही बोलती है. शिखा के साथ ही वह दीपक, अपने सासससुर की भी बिना हिचक के बुराई कर सकती है. शिखा के साथ उस का ननद का नहीं, बल्कि बड़ी दीदी का रिश्ता था.

शिखा मैरून सूट में बेहद दिलकश लग रही थी. दीप्ति भी सफेद गाउन में बहुत सुंदर लग रही थी. दीप्ति को बांहों में भरते हुए शिखा बोली, ‘‘दीप्ति तुम कब अधेड़ लगोगी, अभी भी बस 16 साल की लग रही हो.’’

‘‘जिस दिन तेरा मोटापा थोड़ा कम होगा मोटी,’’ पीछे से दीपक की हंसी सुनाई दी. रात के खाने में सबकुछ शिखा की पसंद का था. चिल्ली पनीर, फ्राइड राइस, मंचूरियन, रूमाली रोटी और गाजर का हलवा.

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‘‘ऐसा लगता ही नहीं कि भाभी के घर आई हूं. ऐसा लगता है कि मम्मीपापा के घर में हूं,’’ शिखा भर्राई आवाज में बोली. सुबह शिखा जब 9 बजे सो कर उठी तो दीप्ति नाश्ते की तैयारी में लगी हुई थी.

‘‘घर मेरी भतीजियों के बिना कितना सुनसान लग रहा है,’’ शिखा ने कहा तो दीप्ति और दीपक एकदूसरे की तरफ सूनी आंखों से देख रहे हैं,यह दीदी की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं रहा.

जैसे एक आम शादी में होता है, ऐसी ही कुछ कहानी उन की शादी की भी थी. कुछ सालों तक वे भी एकदूसरे में प्यार के गोते लगाते रहे और समय बीततेबीतते उन का प्यार भी खत्म हो गया. फिर शुरू हुई एकदूसरे को अपने जैसा बनाने की खींचातानी. उस खींचातानी में रिश्ता कहां चला गया, किसी को नहीं पता चला. दोनों में फिर भी इतनी समझदारी थी कि अपने रिश्ते की कड़वाहट उन्होंने कभी अपने परिवार और बच्चों के आगे जाहिर नहीं करी. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को बोर्डिंग में डाल दिया था ताकि वे उन के रिश्ते के बीच बढ़ती खाई को महसूस न कर पाएं.

‘‘दीदी, दीपक का कुछ ठीक नहीं है. वे अकसर रात का डिनर बाहर कर के आते हैं,’’ दीप्ति सपाट स्वर में बोली और फिर मोबाइल में व्यस्त हो गई. शिखा पूरे 4 वर्ष बाद भाईभाभी के पास आई थी पर उसे ऐसा लग रहा था जैसे 4 दशक बाद आई हो. शिखा मन ही मन मनन कर रही थी कि कहीं न कहीं ऐसा भी होता है जब जीवन में बहुत कुछ और बहुत जल्दी मिल जाता है तो पता ही नहीं चलता कब एक बोरियत भी रिश्ते में आ गई है. यह संघर्ष ही तो है जो हमें जिंदगी को जिंदादिली से जीने की राह दिखाता है.

दीपक अपने ही औफिस में एक तलाकशुदा महिला निधि के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना पसंद करने लगा था, क्योंकि उस के साथ उसे ताजगी महसूस होती थी.

‘‘सुनो, आज रात बाहर डिनर करेंगे,’’ दीपक के बालों में हाथ फेरते हुए निधि ने कहा.

‘‘यार दीदी आई हुई हैं… बताया तो था मैं ने,’’ दीपक ने कहा.

निधि ने थोड़े तेज स्वर में कहा, ‘‘भूल गए, मंगलवार और शुक्रवार की शाम मेरी है,’’ और फिर झुक कर दीपक को चूम लिया.

दीपक का रोमरोम रोमांचित हो उठा. यही तो वह रोमांच है जिसे वह अपने विवाह में मिस करता है. उस रात आतेआते 12 बज गए. शिखा सोई नहीं थी, वह बाहर ड्राइंगरूम में ही बैठ कर काम कर रही थी. दीपक शिखा को देख कर ठिठक गया.

‘‘भाई, यह क्या समय है घर आने का? अभी तो मैं हूं पर वैसे दीप्ति क्या करती होगी,’’ शिखा ने चिंतित स्वर में कहा. दीपक सीधे अंदर बैडरूम में चला गया और दीप्ति को बांहों में उठा कर ले आया.

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‘‘मोटी प्यार तो मैं अब भी उतना ही करता हूं दीप्ति से, बस जिम्मेदारियां सिर उठाने ही नहीं देती,’’ दीपक बोला.

दीप्ति हंसते हुए दीपक के लिए कौफी बनाने चली गई, पर शिखा को इस प्यार में स्वांग अधिक और गरमाहट कम लग रही थी. पर उस ने अधिक तहकीकात करने की जरूरत इसलिए नहीं समझी, क्योंकि उसे खुद पता था कि वैवाहिक जीवन में ऐसे उतारचढ़ाव आते रहते हैं… उसे दोनों की समझदारी पर पूरा भरोसा था.

जब शिखा अपना सामान पैक कर रही थी तो अचानक दीप्ति उस के गले लग कर रोने लगी. उस रोने में एक खालीपन है, यह बात शिखा से छिपी न रह सकी.

‘‘क्या बात है दीप्ति, कुछ समस्या है तो बताओ… मैं उसे सुलझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘नहीं, आप जा रही हैं तो मन भर आया,’’ दीप्ति ने खुद को काबू करते हुए कहा.

ऐसी ही एक ठंडी रात दीप्ति फेसबुक पर कुछ देख रही थी कि अचानक उस ने एक मैसेज देखा जो किसी संदीप ने भेजा था, ‘‘क्या आप शादीशुदा हैं?’’

भला ऐसी कौन सी महिला होगी जो इस बात से खुश न होगी? लिखा, ‘‘मैं पिछले 15 सालों से शादीशुदा हूं और 2 बेटियों की मां हूं.’’

संदीप ‘‘झूठ मत बोलो,’’ और कुछ दिल के इमोजी…

दीप्ति, ‘‘दिल हथेली पर रख कर चलते हो क्या?’’

संदीप, ‘‘सौरी पर आप खूबसूरत ही इतनी हैं.’’

ऐसे ही इधरउधर की बात करतेकरते 1 घंटा बीत गया और दीप्ति को पता भी नहीं चला. बहुत दिनों बाद उसे हलका महसूस हो रहा था.

अब दीप्ति भी संदीप के साथ चैटिंग में एक अनोखा आनंद का अनुभव करने लगी. अब उतना खालीपन नहीं लगता था.

संदीप दीप्ति से 8 वर्ष छोटा था और देखने में बेहद आकर्षक था. संदीप जैसा आकर्षक युवक दीप्ति के प्यार में पड़ गया है, यह बात दीप्ति को एक अनोखे नशे से भर देती थी. दीप्ति अपने रखरखाव को ले कर काफी सहज हो गई थी… कभीकभी तो युवा और आकर्षक दिखने के चक्कर में वह हास्यास्पद भी लगने लगती.

आज दीप्ति को संदीप से मिलने जाना था. वह जैसे ही औफिस में पहुंची, लोग उसे आश्चर्य से देखने लगे. काली स्कर्ट और सफेद शर्ट में वह थोड़ी अजीब लग रही थी. उस के शरीर का थुलथुलापन साफ नजर आ रहा था. जब वह संदीप के पास पहुंची तो संदीप भी कुछ देर तक तो चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप बहुत सैक्सी लग रही हो, एकदम कालेजगर्ल.’’

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दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. कार में बैठ कर संदीप अपना संयम खोने लगा तो दीप्ति ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं करी. कब दीप्ति संदीप के साथ उस के फ्लैट पहुंच गई, उसे भी पता न चला. भावनाओं के ज्वारभाटा में सब बह गया. पर दीप्ति को कोई पछतावा न था, क्योंकि इस खुशी और शांति के लिए वह तरस गई थी.

कपड़े पहनती हुई दीप्ति से संदीप बोला, ‘‘अब सेवा का मौका कब मिलेगा.’’

दीप्ति मुसकराते हुए बोली, ‘‘तुम बहुत खराब हो.’’

शुरूशुरू में दीपक और दीप्ति दोनों ही आसमान में उड़ रहे थे पर उन के नए रिश्ते की नीव ही भ्रम पर थी. कुछ पल की खुशी फिर लंबी तनहाई और खामोशी.

आज संदीप का जन्मदिन था. दीप्ति उसे सरप्राइज देना चाहती थी. सुबह ही वह संदीप के फ्लैट की तरफ चल पड़ी. उपहार उस ने रात में ही ले लिया था.

5 मिनट तक घंटी बजती रही, फिर किसी अनजान युवक ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है आंटी?’’

दीप्ति बहुत बार आई थी पर संदीप ने कभी नहीं बताया था कि वह फ्लैट और लोगों के साथ शेयर कर रहा है. बोली, ‘‘जी, संदीप से मिलना है,’’

तभी संदीप भी आंखें मलते हुए आ गया और कुछ रूखे स्वर में बोला, ‘‘जी मैडम बोलिए. क्या काम है… पहले भी बोला था बिना फोन किए मत आया कीजिए.’’

दीप्ति कुछ न बोल पाई. जन्मदिन की शुभकामना तक न दे पाई, गिफ्ट भी वहीं छोड़ कर बाहर निकल गई. जातेजाते उस के कानों में यह स्वर टकरा गया, ‘‘यार ये आंटी क्या पागल हैं, जो तुझ से मिलने सुबहसुबह आ गईं.’’

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कहानी के दूसरे और आखिरी भाग में पढ़िए क्या अपनी तृष्णा से बाहर निकल पाए दीपक और दीप्ति…

इज्जत : भाभी ने दिए दोनों लड़कों को मजे

बात उन दिनों की है, जब मेरे बीटैक के फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान होने वाला था और मैं इसी की तैयारी में मसरूफ था. अपनी सुविधा और आजादी के लिए होस्टल में रहने के बजाय मैं ने शहर में एक कमरा किराए पर ले कर रहने का फैसला किया था. शहर में अकेला रहना बोरिंग हो सकता है. यही सोच कर मैं ने अपने साथी रंजीत को अपना रूममेट बना लिया था.

फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान सिर पर था, इसलिए मैं इसी में बिजी रहता था, पर रंजीत को इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पिछले हफ्ते अपने घर से आया था और अब उसे फिर वहां जाने की धुन सवार हो गई थी.

जब रंजीत अपने घर जाने के लिए निकल गया, तो मैं भी अपनी पढ़ाई में मस्त हो गया.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता होगा कि रंजीत लौट कर मुझ से बोला, ‘‘भाई, यह बता कि अगर किसी को मदद की जरूरत हो, तो उस की मदद करनी चाहिए या नहीं?’’

रंजीत और मदद… मुझे हैरत हो रही थी, क्योंकि किसी की मदद करना उस के स्वभाव के बिलकुल उलट था, पर पहली बार उस के मुंह से मदद शब्द सुन कर अच्छा लगा.

मैं ने कहा, ‘‘बिलकुल. इनसान ही इनसान के काम आता है. जरूरतमंद की मदद करने से बेहतर और क्या हो सकता है. पर आज तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो? तुम्हारे घर जाने का क्या हुआ?’’

‘‘यार, बात यह है कि मैं घर जाने के लिए टिकट खरीद कर जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो देखा कि एक औरत अपने 2 बच्चों के साथ बैठी रो रही थी. मुझ से रहा न गया और पूछ बैठा, ‘आप क्यों रो रही हैं?’

‘‘उस औरत ने जवाब दिया, ‘मुझे जहानाबाद जाना है. इस समय वहां जाने वाली कोई गाड़ी नहीं है. अगली गाड़ी के लिए मुझे कल सुबह तक यहां इंतजार करना होगा.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘तो इस में रोने वाली क्या बात थी?’’’

रंजीत ने उस औरत की बात को और आगे बढ़ाया. वह बोली थी, ‘रात के 8 बज चुके हैं. मैं जानती हूं कि 9 बजे के बाद यह स्टेशन सुनसान हो जाता है. मेरे साथ 2 बच्चे भी हैं. कोई अनहोनी न हो जाए, यही सोचसोच कर मुझे रोना आ रहा है. मैं इस स्टेशन पर रात कैसे गुजारूंगी?’

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‘‘मैं सोच में पड़ गया कि मुझे उस औरत की मदद करनी चाहिए या नहीं. यही सोच कर तुम से पूछने आ गया,’’ रंजीत मेरी ओर देखते हुए बोला.

‘‘देखो भाई रंजीत, हम लोग यहां बैचलर हैं. किसी की मदद करना तो ठीक है, पर किसी अनजान औरत को अपने कमरे पर लाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. मकान मालकिन पता नहीं हम लोगों के बारे में क्या सोचेगी?’’

मुझे उस समय पता नहीं क्यों उस अनजान औरत को कमरे पर लाने का खयाल अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए अपने मन की बात उसे बता दी.

‘‘मकान मालकिन पूछेगी, तो बता देंगे कि रामध्यान की भाभी है, यहां डाक्टर के पास आई है. वैसे भी हम लोगों के गांव से अकसर कोई न कोई मिलने तो आता ही रहता है,’’ रंजीत ने एक उपाय सुझाया.

आप को बताते चलें कि जिस बिल्डिंग में हम लोग रहते थे, उस की दूसरी मंजिल पर रामध्यान भी किराए पर रह रहा था. वह वैसे तो हमारे ही कालेज का एक शरीफ छात्र था, पर हम लोगों से जूनियर था, इसलिए न केवल हमारी बातें मानता था, बल्कि हमें इज्जत भी देता था.

‘‘ठीक है. अब अगर तुम उस औरत की मदद करना ही चाहते हो, तो मुझे क्या दिक्कत है. रामध्यान को सारी बातें समझा दो.’’

रंजीत तेजी से सीढि़यां चढ़ता हुआ रामध्यान के पास गया और उसे सारी बातें बता दीं. उसे कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उस औरत के रातभर रहने के लिए वह अपना कमरा देने को भी तैयार था. वह उसी समय अपनी कुछ किताबें ले कर हमारे कमरे में रहने चला आया.

‘‘अब तुम जाओ रंजीत. उसे ले आओ. और हां, उसे यह भी समझा देना कि अगर कोई पूछे, तो खुद को रामध्यान की भाभी बताए.’’

‘‘नहीं, तुम भी मेरे साथ चलो,’’ वह मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहता था.

‘‘मुझे पढ़ने दो यार, इम्तिहान सिर पर हैं. मैं अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता,’’ मैं बहाना करते हुए बोला.

‘‘अच्छा, किसी की मदद करना समय बरबाद करना होता है. तुम्हारा अगर नहीं जाने का मन है, तो साफसाफ कहो. वैसे भी एक दिन में तुम्हारी कितनी तैयारी हो जाएगी? एक दिन किसी की मदद के लिए तो कुरबान किया ही जा सकता है,’’ रंजीत किसी तरह मुझे ले ही जाना चाहता था.

‘‘ठीक है भाई, जैसी तुम्हारी मरजी. आज की शाम किसी की मदद के नाम,’’ मैं मजबूर हो कर बोला. थोड़ी देर में मैं भी तैयार हो कर उस के साथ निकल पड़ा.

रंजीत आगेआगे और मैं पीछेपीछे. वह मुझे स्टेशन के सब से आखिरी प्लेटफार्म के एक छोर पर ले गया, जहां वह औरत अपने दोनों बच्चों के साथ बैठी थी. वह हमें देख कर मुसकराने लगी. न जाने क्यों, उस का इस तरह मुसकराना मुझे अच्छा नहीं लगा.

मैं सोचने लगा कि न जाने कैसी औरत है, पर उस समय मुझ से कुछ बोलते नहीं बना.

स्टेशन से बाहर आ कर मैं ने 2 रिकशे वाले बुलाए. मुझे टोकते हुए वह औरत बोली, ‘‘2 रिकशों की क्या जरूरत है. एक ही में एडजस्ट कर चलेंगे न. बेकार में ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं.’’

‘‘पर हम एक ही रिकशे में कैसे चलेंगे?’’ मैं ने सवाल किया.

वह बोली, ‘‘देखिए, ऐसे चलेंगे…’’ कह कर वह रिकशे की सीट पर ठीक बीच में बैठ गई और दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठा लिया, ‘‘आप दोनों मेरे दोनों ओर बैठ जाइए,’’ वह हम दोनों को देख कर मुसकराते हुए बोली.

मुझे इस तरह बैठना अच्छा नहीं लग रहा था, पर उस दौर में पैसों की बड़ी किल्लत थी. अगर उस समय इस तरह से कुछ पैसे बच रहे थे, तो क्या बुरा था. आखिरकार हम दोनों उस के दोनों ओर बैठ गए.

हमारे बैठते ही अपने एकएक बच्चे को उस ने हम दोनों को थमा दिया. मैं अब भीतर ही भीतर कुढ़ने लगा था. हमारी अजीब हालत थी. हम उस की मदद कर रहे थे या वह हम से जबरदस्ती मदद ले रही थी.

रिकशे की रफ्तार तेज होती जा रही थी और मेरे सोचने की रफ्तार भी तेज होने लगी थी. मैं कहां हूं, किस हालत में हूं, यह भूल कर मैं अपनी सोच में ही डूबने लगा था. न जाने क्यों मुझे बारबार यह खयाल आ रहा था कि कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं.

कमरे पर पहुंचतेपहुंचते रात के 8 बज चुके थे. रंजीत ने उसे सारी बात समझा कर रामध्यान के कमरे में ठहरा दिया.

मैं ने रंजीत से कहा, ‘‘भाई, जब यह हमारे यहां आ गई है, तो इस के खानेपीने का इंतजाम भी तो हमें ही करना पड़ेगा. जाओ, होटल से कुछ ले आओ.’’

रंजीत खुशीखुशी होटल की ओर चल पड़ा. मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि रंजीत को आज क्या हो गया है, पर मैं चुप था. वह जितनी तेजी से गया था, उतनी ही तेजी से और बहुत जल्दी खानेपीने का सामान ले कर लौटा था.

‘‘जाओ, उसे खाना दे आओ. हम दोनों रामध्यान के साथ यहीं खा लेंगे,’’ मैं ने रंजीत से कहा.

रंजीत खाना देने ऊपर के कमरे  गया और तकरीबन आधा घंटे बाद लौटा. मुझे भूख लगी थी, लेकिन मैं उस का इंतजार कर रहा था. सोच रहा था कि उस के आने के बाद साथ बैठ कर खाएंगे.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने इतनी देर क्यों लगा दी?’’

‘‘भाई, उस के कहने पर मैं ने भी उसी के साथ खाना खा लिया,’’ रंजीत धीरे से बोला.

‘‘कोई बात नहीं… आओ रामध्यान, हम दोनों खाना खा लें. हम तो इसी का इंतजार कर रहे थे और यह तुम्हारी भाभी के साथ खाना खा आया,’’ मैं ने मजाक करते हुए कहा.

रामध्यान को भी हंसी आ गई. वह हंसते हुए खाने की थाली सजाने लगा.

रात को खाना खाने के बाद अकसर हम लोग बाहर टहलने के लिए निकला करते थे, इसलिए खाने के बाद मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो गया और रंजीत को भी तैयार होने के लिए कहा.

‘‘आज मेरा जाने का मन नहीं है,’’ रंजीत टालमटोल करने लगा.

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आखिरकार मैं और रामध्यान टहलने के लिए निकले. तकरीबन आधा घंटे के बाद लौटे. वापस आने पर देखा कि हमारे कमरे पर ताला लगा हुआ था.

रामध्यान ने हंसते हुए कहा, ‘‘भैया, हो सकता है रंजीत भैया भाभी के पास गए हों.’’

‘‘हो सकता है. जा कर दे,’’ मैं ने रामध्यान से कहा.

‘‘थोड़ी देर बाद रामध्यान और रंजीत हंसतेमुसकराते सीढि़यों से नीचे आ रहे थे.

‘‘भाभीजी तो बहुत मजाकिया हैं भाई. सच में मजा आ गया,’’ उतरते ही रंजीत ने कहा.

‘‘अब हंसना छोड़ो और जल्दी कमरा खोलो,’’ वे दोनों हंस रहे थे, पर मुझे गुस्सा आ रहा था.

मैं ने चुपचाप कमरे में जा कर अपने कपड़े बदले और बैड पर सोने चला गया. थोड़ी देर तक बैड पर लेटेलेटे मैं ने पढ़ाई की और उस के बाद मुझे नींद आ गई.

देर रात को रंजीत और रामध्यान की बातों से मेरी नींद टूटी. उन दोनों को देख कर लग रहा था कि वे दोनों अभीअभी कहीं से लौटे हैं.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘तुम दोनों कहां गए थे और अभी तक सोए क्यों नहीं?’’

‘कहीं… कहीं नहीं. बस अभी सोने ही वाले हैं,’ दोनों ने एकसुर में कहा.

थोड़ी देर बाद रंजीत ने मुझे जगाते हुए कहा, ‘‘भाई, तुम्हें एक बात कहनी है.’’

‘‘इतनी रात को… बोलो, क्या बात कहनी है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘अगर बुरा मानने वाली बात नहीं होगी, तो बुरा क्यों मानूंगा?’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम चाहो तो भाभीजी के मजे ले सकते हो,’’ रंजीत थोड़ा संकोच करते हुए बोला.

‘‘क्या बक रहे हो रंजीत? तुम्हें क्या हो गया है?’’ मैं ने हैरानी और गुस्से में उस से पूछा.

‘‘भाई, अच्छा मौका है. चाहो तो हाथ साफ कर लो,’’ रंजीत के चेहरे पर इस समय एक कुटिल मुसकान थी. वह अपनी इसी मुसकान से मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हम ने उसे सहारा दिया है. वह हमारी मेहमान है. तुम ऐसा कैसे

सोच सकते हो?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘इस तरह भी हम उस की मदद कर सकते हैं. मैं ने उस से बात कर ली है. एक बार के लिए 2 सौ रुपए में सौदा पक्का हुआ है,’’ वह मुझे ऐसे बता रहा था, जैसे कोई बड़ा उपहार भेंट करने जा रहा हो.

‘‘मुझे तुम्हारी सोच से घिन आती है रंजीत. आखिर तुम अपने असली रूप में आ ही गए. मुझे हैरत हो रही थी कि तुम भला किसी की मदद कैसे कर सकते हो. अब तुम्हारी असलियत सामने आई.

‘‘मुझे पहले से ही शक हो रहा था, पर मैं यह सोच कर चुप था कि चलो, एक अच्छा काम कर रहे हैं. अच्छा क्या खाक कर रहे हैं,’’ मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था, पर इस समय उसे समझाने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था.

रंजीत कुछ नहीं बोला. वह सिर झुकाए बैठा था.थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे. रामध्यान अब तक सो चुका था. थोड़ी देर बाद रंजीत बोला, ‘‘ठीक है भाई, सो जाओ. मैं भी सोता हूं.’’ सुबह जब मैं उठा, तब तक 7 बज चुके थे. रामध्यान की तथाकथित भाभी इस समय हमारे कमरे में बैठी थी. रामध्यान और रंजीत भी उस के पास ही बैठे थे.

‘‘मैं आप के ही उठने का इंतजार कर रही थी,’’ मुझे देखते हुए वह बोली.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हुआ कुछ नहीं. मैं जा रही हूं. कुछ बख्शीश तो दे दीजिए,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘बख्शीश किस बात की?’’ मुझे हैरानी हुई.

‘‘देखो मिस्टर, आप के इस दोस्त ने 2 सौ रुपए में एक बार की बात कर मेरी इज्जत का सौदा किया था. इन दोनों ने 2-2 बार मेरी इज्जत को तारतार किया. इस तरह पूरे 8 सौ रुपए बनते हैं. और ये हैं कि मुझे केवल 4 सौ रुपए दे कर टरकाना चाहते हैं. मैं भी अड़ चुकी हूं. बंद कमरे में मेरी इज्जत जाते हुए किसी ने नहीं देखा. अब अगर मैं यहां चिल्ला कर बताने लगी कि तुम लोग मुझे यहां क्यों लाए थे, तो तुम लोगों की इज्जत गई समझो,’’ वह बड़े ही तीखे अंदाज में बोले जा रही थी.

मैं ने रंजीत और रामध्यान की ओर देखा. वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप बैठे थे. मुझ से कोई भी नजरें नहीं मिला रहा था. मैं सारी बात समझ चुका था. यह भी जानता था कि रंजीत और रामध्यान के पास और पैसे नहीं होंगे. ऐसे में मुझे ही अपनी जेब ढीली करनी होगी. मैं ने अपना पर्स निकाला और उसे 4 सौ रुपए देते हुए बोला, ‘‘लीजिए अपने पैसे.’’

पैसे मिलते ही वह खुश हो गई और अपने रास्ते चल पड़ी. मैं सोच रहा था कि इज्जत आखिर है क्या? कल उस की इज्जत बचाने के लिए हम ने उसे सहारा दिया था और आज अपनी इज्जत बचाने के लिए हमें उसे पैसे देने पड़े.

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इस तरह कहने को तो दुनिया की नजरों में हम सभी की इज्जत जातेजाते बची है. वह औरत बाइज्जत अपने रास्ते गई और हम अपने घर में. आज भी जब मैं उस घटना को याद करता हूं, तो सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि क्या वाकई उस औरत के साथसाथ हम सभी ने अपनीअपनी इज्जत बचा ली थी? ‘इज्जत’ हमारे हैवानियत से भरे कामों के ऊपर पड़ा परदा है. इसी परदे को तारतार होने से बचाने के लिए हम ने उस औरत को पैसे दिए. यह परदा दुनिया से तो हमारी हिफाजत करता नजर आ रहा है, पर हम सभी ने एकदूसरे को बिना इस परदे के देख लिया है. दुनियाभर के लिए हम भले ही इज्जतदार हों, पर अपनी सचाई का हमें पता है.

तृष्णा: भाग 2

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संदीप ने पता नहीं क्या कहा पर एक सम्मिलित ठहाका उसे अवश्य सुनाई दे रहा था जो दूर तक उस का पीछा करता रहा. वह दफ्तर जाने के बजाय घर आ गई और बहुत देर तक अपने को आईने में देखती रही. हां, वह आंटी ही तो है पर सब से अधिक दुख उसे इस बात का था कि संदीप ने उसे अपने दोस्तों के आगे पूरी तरह नकार दिया था.

1 हफ्ते तक दीप्ति और संदीप के बीच मौन पसरा रहा पर फिर अचानक एक दिन एक मैसेज आया, ‘‘जान, आज मौसम बहुत बेईमान है. आ जाओ फ्लैट पर.’’

दीप्ति ने मैसेज अनदेखा कर दिया. चंद मुलाकातों के बाद ही अब संदीप उसे बस ऐसे ही याद करता था. औफिस पहुंची ही थी कि फिर से मैसेज आया, ‘‘जानू आई एम सौरी,

प्लीज एक बार आ जाओ. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’ दीप्ति जानती थी वह झूठ बोल रहा है पर फिर भी दफ्तर के बाद संदीप के फ्लैट पर चली गई. शायद सबकुछ हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पर फिर से वही कहानी दोहराई गई.

दीप्ति, ‘‘संदीप, तुम्हें मेरी याद बस इसीलिए आती है. उस रोज तो तुम मुझे मैडम बुला रहे थे.’’ ‘‘तुम क्या बुलाओगी दीपक के सामने मुझे और ये जो हम करते हैं उस में तुम्हें भी उतना ही मजा आता है दीप्ति. हम दोनों जरूरतों के लिए बंधे हुए हैं,’’ संदीप ने उसे आईना दिखाया.

दीप्ति को बुरा लगा पर यह वो कड़वी सचाई थी, जिसे वह सुनना नहीं चाहती थी. संदीप ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘ज्यादा सोचो मत. जो है उसे ऐसे ही रहने दो. भावनाओं को बीच में मत लाओ.’’ दीप्ति थके कदमों से अपने घररूपी सराय में चली गई. क्यों वह सबकुछ जान कर भी बारबार संदीप की तरफ खिंची जाती है, यह रहस्य उसे समझ नहीं आता.

काश, वह लौट पाए पुराने समय में, पर यह एक खालीपन था जिसे वह चाह कर भी नहीं भर पा रही थी. अपने को औरत महसूस करने के लिए उसे चाहेअनचाहे संदीप की जरूरत महसूस होती थी.

घर जा कर बैठी ही थी कि दीपक गुनगुनाता हुआ घर में घुसा. दीप्ति से बोला, ‘‘3 दिन की मीटिंग के लिए कोलकाता जा रहा हूं… पैकिंग कर देना.’’

‘‘तुम्हारी खुशी देख कर तो नहीं लग रहा तुम मीटिंग के लिए जा रहे हो.’’

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‘‘यार तो रोते हुए जाऊं क्या?’’

दीप्ति को खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसे ईर्ष्या क्यों हो रही है. वह खुद भी तो यही सब कर रही है.

दीपक के जाने के बाद एक बार मन करा कि संदीप को बुला ले पर फिर उस ने अपने को रोक लिया. संदीप को भावनाओं से ज्यादा शरीर की दरकार थी. आज उसे अपना मन बांटना था पर समझ नहीं आ रहा था क्या करे. मन किया दीपक को फोन कर ले और बोले लौट आओ उन्हीं राहों पर जहां सफर की शुरुआत करी थी पर अहम होता है न वह बड़ेबड़े रिश्तों को घुन की तरह खा जाता है.

न जाने क्या सोचते हुए उस ने शिखा को फोन लगा लिया और बिना रुके अपने मन की बात कह दी, पर संदीप की बात वह जानबूझ कर छिपा गई. शिखा ने शांति से सब सुना और बस कहा कि जो तुम्हें खुशी दे वह करो. मैं तुम्हारे साथ हूं.

उधर होटल में चैक इन करते हुए दीपक बहुत तरोताजा महसूस कर रहा था. निधि भी आई थी. दोनों ने अगलबगल के कमरे लिए थे. दीपक को काम और सुविधा का यह समागम बहुत अच्छा लगता था.

‘‘निधि, जल्दी से तैयार हो जाओ, थोड़ा कोलकाता को महसूस कर लें आज,’’ दीपक ने फोन पर कहा.

‘‘जी जनाब,’’ उधर से खनकती हंसी सुनाई दी निधि की.

केले के पत्ते के रंग की साड़ी, नारंगी प्रिंटेड ब्लाउज साथ में लाल बिंदी और चांदी के झुमके, दीपक उसे एकटक देखता रह गया. फिर बोला, ‘‘निधि यों ही नहीं तुम पर मरता हूं मैं… कुछ तो बात है जो तुम्हें औरों से जुदा कर देती है.’’

शौपिंग करते हुए दीपक ने दीप्ति के लिए 3 महंगी साडि़यां खरीदीं, यह बात निधि की आंखों से छिपी न रही. वह उदास हो गई.

‘‘निधि क्या बात है, तुम्हें भी तो मैं ने दिलाई हैं तुम्हारी पसंद की साडि़यां.’’

‘‘हां, दोयम दर्जे का स्थान है मेरा तुम्हारे जीवन में.’’

‘‘दिमाग खराब मत करो तुम पत्नियों की तरह,’’ दीपक चिढ़े स्वर में बोला.

‘‘हां, वह हक भी तो दीप्ति के पास ही है,’’ निधि ने संयत स्वर में हा.

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वह रात ऐसे ही बीत गई. जाने यह कैसा नशा है जो न चढ़ता है न ही उतरता है बस चंद लम्हों की खुशी के बदले तिलतिल तड़पना है.

सुबह की मीटिंग निबटाने के बाद जब दीपक निधि के रूम में गया तो उसे तैयार होते पाया.

‘‘क्या बात है, आज मेरे कहे बिना ही तैयार हो गई हो?’’ पीले कुरते और केसरी पाजामी में वह एकदम सुरमई शाम लग रही थी.

‘‘मैं आज की शाम संजय के साथ जा रही हूं. तुम्हें भी चलना है तो चलो. वह मेरा सहपाठी था, फिर पता नहीं कब मिले,’’ निधि बोली.

दीपक बोला, ‘‘जब बिना पूछे तय ही कर लिया तो अब यह नाटक क्यों कर रही हो?’’

निधि ने अपनी काजल भरी आंखों को और बड़ा करते हुए कहा, ‘‘क्यों पति की तरह बोर कर रहे हो,’’ और फिर मुसकराते हुए वह तीर की तरह निकल गई.

दीपक सारी शाम उदास बैठा रहा. मन करा दीप्ति को फोन लगाए और बोले कि दीप्ति मुझे वैसा ही ध्यान और प्यार चाहिए जैसा तुम पहले देती थी.

‘‘दीप्ति बहुत याद आ रही है तुम्हारी,’’ उस ने मैसेज किया.

‘‘क्यों क्या काम है, बिना किसी चापलूसी के भी कर दूंगी,’’ उधर से रूखा जवाब आया.

दीपक ने फोन ही बंद कर दिया.

जहां दीप्ति को संदीप के साथ जिस रिश्ते में पहले ताजगी महसूस होती थी वह भी अब बासी होने लगा था. उधर जब से निधि अपने सहपाठी संजय से मिली थी उस का मन उड़ा रहता था. संजय ने अब तक विवाह नहीं किया था और निधि को उस के साथ अपना भविष्य दिख रहा था जबकि दीपक के लिए वह बस एक समय काटने का जरीया थी. वह उस की प्राथमिकता कभी नहीं बन सकती थी.

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आज दीप्ति घर जल्दी आ गई थी. घर हमेशा की तरह सांयसांय कर रहा था. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और बालकनी में बैठ गई. 2 घंटे बीत गए, विचारों के जंगल में घूमते हुए. तभी उस ने देखा कि दीपक की कार आ रही है. उसे आश्चर्य हुआ कि दीपक आज इतनी जल्दी कैसे आ गया.

उस ने दीपक से पूछा, ‘‘आज इतनी जल्दी कैसे?’’

दीपक बोला, ‘‘कहो तो वापस चला जाऊं?’’

दीप्ति हंस कर बोली, ‘‘नहीं, ऐसे ही पूछ रही थी.’’

उस की बात का कोई जवाब दिए बिना दीपक सीधा अपने कमरे में चला गया और अपनी शादी की सीडी लगा कर बैठ गया. दीप्ति भी आ कर बैठ गई.

दोनों अकेले भावनाओं के बियाबान के जंगल में घूमने लगे. मन भीग रहे थे पर लौट कर आने का साहस कौन पहले करेगा.

बिस्तर पर करवट बदलते हुए दीप्ति पुराने दिनों की यादों में चली गई. जब वह और दीपक हंसों के जोड़े के रूप में मशहूर थे. दोनों हर टाइम एकदूसरे के साथ रहने का बहाना ढूंढ़ते थे. फिर एक के बाद एक जिम्मेदारियां बढ़ीं और न जाने कब और कैसे एक अजीब सी चिड़चिड़ाहट दोनों के स्वभाव में आ गई. फलस्वरूप दोनों की नजदीकियां शादी से बाहर बढ़ने लगीं. यही सोचते हुए कब सुबह हो गई दीप्ति को पता ही नहीं चला.

औफिस में जा कर दीप्ति अपने काम में डूब गई. उस ने अपनेआप को काम में पूरी तरह डुबो दिया. अब वह इस मृगतृष्णा से बाहर जाना चाहती थी और उस के लिए हौबी क्लासेज जौइन कर लीं ताकि उस का अकेलापन उसे संदीप की तरफ न ले जाए.

दीपक दफ्तर में मन ही मन कुढ़ रहा था. उस ने निधि को मैसेज भी किया था, पर निधि का मैसेज आया था कि वह बिजी है. दीपक भी अब निधि के नखरों और बेरुखी से परेशान आ चुका था.

उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह शिखा के कहे अनुसार अपनी बेटियों को वापस ले आएगा. पिछले 1 महीने से वह दफ्तर से घर समय पर आ रहा था. उधर दीप्ति भी धीरेधीरे आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी.

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वह सुबह भी आम सी ही थी जब दीपक ने जिम के जानेपहचाने चेहरों के बीच एक ताजा चेहरा देखा. प्रिया नाम था उस का. बेहद चंचल और खूबसूरत.

न जाने क्यों दीपक बारबार उस की ओर ही देखे जा रहा था. प्रिया भी कनखियों से उसे देख लेती थी. उधर दीप्ति के मोबाइल पर फिर से संदीप का मैसेज था जिसे दीप्ति पढ़ते हुए मुसकरा रही थी. फिर से दोनों के दिमाग और दिल पर एक बेलगाम नशा हावी हो रहा था. एक जाल, एक रहस्य ही तो हैं ये रिश्ते. ये तृष्णा अब उन्हें किस मोड़ पर ले कर जाएगी, यह शायद वे नहीं जानते थे.

सौतेली: भाग 3

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रवानगी से पहली रात को शेफाली के कमरे में वंदना आई तो वह बहुत गंभीर थी. उस की तरफ देख कर वंदना बोली, ‘‘जाने से पहले मैं तुम को कुछ समझाना चाहती हूं. मेरी बात पर अमल करना, न करना तुम्हारी मर्जी होगी. जीवन के सच से मुंह मोड़ना और हालात का सामना करने के बजाय उस से दूर भागना समझदारी नहीं. जिस को तुम ने देखा नहीं, जाना नहीं, उस के लिए नफरत क्यों? नफरत इसलिए क्योंकि उस के साथ ‘सौतेली’ शब्द जुड़ा है. प्यार और नफरत करने का तुम को हक है. किंतु तब तक नहीं जब तक तुम किसी को देख या जान न लो. अगर तुम्हारे पापा ने किसी दूसरी औरत से शादी कर के तुम्हारा दिल दुखाया है तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम अपने घर पर अपना हक छोड़ दो. तुम को परीक्षाएं देने के बाद अपने घर वापस जाना ही है. यह पक्का इरादा कर लो. अपनों पर नाराज हुआ जाता है, उन को छोड़ा नहीं जाता. रही बात तुम्हारे पापा के साथ शादी करने वाली दूसरी औरत, मेरा मतलब तुम्हारी सौतेली मां से है. एक बार उस को भी देख लेना. अगर वह सचमुच तुम्हारी सोच के मुताबिक बुरी हो तो उस को घर से बाहर का रास्ता दिखलाने का इंतजाम कर देना. इस के लिए तुम को अपने पापा से भी झगड़ना पडे़ तो कोई हर्ज नहीं.’’

जब वंदना अपनी बात कह रही थी तो शेफाली हैरानी से उस के चेहरे को देख रही थी. वंदना की बातों से उस को एक बल मिल रहा था.

शेफाली को लग रहा था वंदना ठीक कह रही है. वह अपना घर क्यों छोडे़. उस को हालात का सामना करना चाहिए था. फिर उस औरत से नफरत कैसी जिसे अभी उस ने देखा भी नहीं था.

अगले दिन सुबह वंदना चली गई.

कुछ भी नहीं होते हुए वंदना कुछ दिनों में ही अपनेपन का जो कोमल स्पर्श शेफाली को करवा गई थी उस को भूलना मुश्किल था. यही नहीं वह शेफाली की दिशाहीन जिंदगी को एक दिशा भी दे गई थी.

परीक्षाओं के शुरू होते ही शेफाली ने जानकी बूआ से घर जाने की बात कह दी और थोड़ाथोड़ा कर के अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

परीक्षाएं खत्म होते ही शेफाली अपने घर को रवाना हुई तो जानकी बूआ खुद उस को अमृतसर जाने वाली बस में बैठाने के लिए बस अड्डे पर आई थीं.

बस जब चल पड़ी तो शेफाली के मन में कई सवाल बुलबुले बन कर उभरने लगे कि पापा उस का सामना कैसे करेंगे, उस का सौतेली मां से सामना कैसे होगा? वह कैसा व्यवहार करेंगी?

शेफाली जानती थी कि उस को बस में बैठाने के बाद बूआ ने फोन पर इस की सूचना पापा को दे दी होगी. शायद घर में उस के आने के इंतजार में होंगे सभी…

सामान का बैग हाथ में लिए घर के दरवाजे के अंदर दाखिल होते एक बार तो शेफाली को ऐसा लगा था कि किसी बेगानी जगह पर आ गई है.

पापा उस के इंतजार में ड्राइंगरूम में ही बैठे थे. उन के साथ मानसी और अंकुर भी थे जोकि दौड़ कर उस से लिपट गए.

उन को प्यार करते हुए शेफाली की नजरें पापा से मिलीं. चाह कर भी शेफाली मुसकरा नहीं सकी. उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘हैलो पापा, कैसे हैं आप?’’

‘‘अच्छा हूं. अपनी सुनाओ. सफर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’

‘‘नहीं…और होती भी तो अब कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझ को कुछ समय से तकलीफें बरदाश्त करने की आदत पड़ चुकी है,’’ कोशिश करने पर भी अपने गुस्से और आक्रोश को छिपा नहीं सकी शेफाली.

इस पर पापा ने मानसी और अंकुर से कहा, ‘‘तुम दोनों जा कर जरा अपनी दीदी का कमरा ठीक करो, मैं तब तक इस से बातें करता हूं.’’

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पापा का इशारा समझ कर दोनों तुरंत वहां से चले गए.

‘‘मैं जानता हूं तुम मुझ से नाराज हो,’’ उन के जाने के बाद पापा ने कहा.

‘‘मुझ को बहाने के साथ घर से बाहर भेज कर मेरी ममी की जगह एक दूसरी ‘औरत’ को दे दी पापा और इस के बाद भी आप उम्मीद करते हैं कि मुझ को नाराज होने का भी हक नहीं?’’

‘‘यह मत भूलो कि वह ‘औरत’ अब तुम्हारी नई मां है,’’ पापा ने शेफाली को चेताया.

इस से शेफाली जैसे बिफर गई और बोली, ‘‘मैं इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करूंगी, पापा,’’

‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.

‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.

शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.

मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.

कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.

‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.

‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’

‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.

मानसी से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.

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सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.

मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.

भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.

मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.

शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.

फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.

चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.

आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.

थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’

दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.

‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.

‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.

‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.

‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.

‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.

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‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.

प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.

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