बात उन दिनों की है, जब मेरे बीटैक के फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान होने वाला था और मैं इसी की तैयारी में मसरूफ था. अपनी सुविधा और आजादी के लिए होस्टल में रहने के बजाय मैं ने शहर में एक कमरा किराए पर ले कर रहने का फैसला किया था. शहर में अकेला रहना बोरिंग हो सकता है. यही सोच कर मैं ने अपने साथी रंजीत को अपना रूममेट बना लिया था.
फाइनल सैमैस्टर का इम्तिहान सिर पर था, इसलिए मैं इसी में बिजी रहता था, पर रंजीत को इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पिछले हफ्ते अपने घर से आया था और अब उसे फिर वहां जाने की धुन सवार हो गई थी.
जब रंजीत अपने घर जाने के लिए निकल गया, तो मैं भी अपनी पढ़ाई में मस्त हो गया.
अभी आधा घंटा भी नहीं बीता होगा कि रंजीत लौट कर मुझ से बोला, ‘‘भाई, यह बता कि अगर किसी को मदद की जरूरत हो, तो उस की मदद करनी चाहिए या नहीं?’’
रंजीत और मदद… मुझे हैरत हो रही थी, क्योंकि किसी की मदद करना उस के स्वभाव के बिलकुल उलट था, पर पहली बार उस के मुंह से मदद शब्द सुन कर अच्छा लगा.
मैं ने कहा, ‘‘बिलकुल. इनसान ही इनसान के काम आता है. जरूरतमंद की मदद करने से बेहतर और क्या हो सकता है. पर आज तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो? तुम्हारे घर जाने का क्या हुआ?’’
‘‘यार, बात यह है कि मैं घर जाने के लिए टिकट खरीद कर जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो देखा कि एक औरत अपने 2 बच्चों के साथ बैठी रो रही थी. मुझ से रहा न गया और पूछ बैठा, ‘आप क्यों रो रही हैं?’
‘‘उस औरत ने जवाब दिया, ‘मुझे जहानाबाद जाना है. इस समय वहां जाने वाली कोई गाड़ी नहीं है. अगली गाड़ी के लिए मुझे कल सुबह तक यहां इंतजार करना होगा.’
‘‘मैं ने पूछा, ‘तो इस में रोने वाली क्या बात थी?’’’
रंजीत ने उस औरत की बात को और आगे बढ़ाया. वह बोली थी, ‘रात के 8 बज चुके हैं. मैं जानती हूं कि 9 बजे के बाद यह स्टेशन सुनसान हो जाता है. मेरे साथ 2 बच्चे भी हैं. कोई अनहोनी न हो जाए, यही सोचसोच कर मुझे रोना आ रहा है. मैं इस स्टेशन पर रात कैसे गुजारूंगी?’
‘‘मैं सोच में पड़ गया कि मुझे उस औरत की मदद करनी चाहिए या नहीं. यही सोच कर तुम से पूछने आ गया,’’ रंजीत मेरी ओर देखते हुए बोला.
‘‘देखो भाई रंजीत, हम लोग यहां बैचलर हैं. किसी की मदद करना तो ठीक है, पर किसी अनजान औरत को अपने कमरे पर लाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. मकान मालकिन पता नहीं हम लोगों के बारे में क्या सोचेगी?’’
मुझे उस समय पता नहीं क्यों उस अनजान औरत को कमरे पर लाने का खयाल अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए अपने मन की बात उसे बता दी.
‘‘मकान मालकिन पूछेगी, तो बता देंगे कि रामध्यान की भाभी है, यहां डाक्टर के पास आई है. वैसे भी हम लोगों के गांव से अकसर कोई न कोई मिलने तो आता ही रहता है,’’ रंजीत ने एक उपाय सुझाया.
आप को बताते चलें कि जिस बिल्डिंग में हम लोग रहते थे, उस की दूसरी मंजिल पर रामध्यान भी किराए पर रह रहा था. वह वैसे तो हमारे ही कालेज का एक शरीफ छात्र था, पर हम लोगों से जूनियर था, इसलिए न केवल हमारी बातें मानता था, बल्कि हमें इज्जत भी देता था.
‘‘ठीक है. अब अगर तुम उस औरत की मदद करना ही चाहते हो, तो मुझे क्या दिक्कत है. रामध्यान को सारी बातें समझा दो.’’
रंजीत तेजी से सीढि़यां चढ़ता हुआ रामध्यान के पास गया और उसे सारी बातें बता दीं. उसे कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उस औरत के रातभर रहने के लिए वह अपना कमरा देने को भी तैयार था. वह उसी समय अपनी कुछ किताबें ले कर हमारे कमरे में रहने चला आया.
‘‘अब तुम जाओ रंजीत. उसे ले आओ. और हां, उसे यह भी समझा देना कि अगर कोई पूछे, तो खुद को रामध्यान की भाभी बताए.’’
‘‘नहीं, तुम भी मेरे साथ चलो,’’ वह मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहता था.
‘‘मुझे पढ़ने दो यार, इम्तिहान सिर पर हैं. मैं अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता,’’ मैं बहाना करते हुए बोला.
‘‘अच्छा, किसी की मदद करना समय बरबाद करना होता है. तुम्हारा अगर नहीं जाने का मन है, तो साफसाफ कहो. वैसे भी एक दिन में तुम्हारी कितनी तैयारी हो जाएगी? एक दिन किसी की मदद के लिए तो कुरबान किया ही जा सकता है,’’ रंजीत किसी तरह मुझे ले ही जाना चाहता था.
‘‘ठीक है भाई, जैसी तुम्हारी मरजी. आज की शाम किसी की मदद के नाम,’’ मैं मजबूर हो कर बोला. थोड़ी देर में मैं भी तैयार हो कर उस के साथ निकल पड़ा.
रंजीत आगेआगे और मैं पीछेपीछे. वह मुझे स्टेशन के सब से आखिरी प्लेटफार्म के एक छोर पर ले गया, जहां वह औरत अपने दोनों बच्चों के साथ बैठी थी. वह हमें देख कर मुसकराने लगी. न जाने क्यों, उस का इस तरह मुसकराना मुझे अच्छा नहीं लगा.
मैं सोचने लगा कि न जाने कैसी औरत है, पर उस समय मुझ से कुछ बोलते नहीं बना.
स्टेशन से बाहर आ कर मैं ने 2 रिकशे वाले बुलाए. मुझे टोकते हुए वह औरत बोली, ‘‘2 रिकशों की क्या जरूरत है. एक ही में एडजस्ट कर चलेंगे न. बेकार में ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं.’’
‘‘पर हम एक ही रिकशे में कैसे चलेंगे?’’ मैं ने सवाल किया.
वह बोली, ‘‘देखिए, ऐसे चलेंगे…’’ कह कर वह रिकशे की सीट पर ठीक बीच में बैठ गई और दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठा लिया, ‘‘आप दोनों मेरे दोनों ओर बैठ जाइए,’’ वह हम दोनों को देख कर मुसकराते हुए बोली.
मुझे इस तरह बैठना अच्छा नहीं लग रहा था, पर उस दौर में पैसों की बड़ी किल्लत थी. अगर उस समय इस तरह से कुछ पैसे बच रहे थे, तो क्या बुरा था. आखिरकार हम दोनों उस के दोनों ओर बैठ गए.
हमारे बैठते ही अपने एकएक बच्चे को उस ने हम दोनों को थमा दिया. मैं अब भीतर ही भीतर कुढ़ने लगा था. हमारी अजीब हालत थी. हम उस की मदद कर रहे थे या वह हम से जबरदस्ती मदद ले रही थी.
रिकशे की रफ्तार तेज होती जा रही थी और मेरे सोचने की रफ्तार भी तेज होने लगी थी. मैं कहां हूं, किस हालत में हूं, यह भूल कर मैं अपनी सोच में ही डूबने लगा था. न जाने क्यों मुझे बारबार यह खयाल आ रहा था कि कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं.
कमरे पर पहुंचतेपहुंचते रात के 8 बज चुके थे. रंजीत ने उसे सारी बात समझा कर रामध्यान के कमरे में ठहरा दिया.
मैं ने रंजीत से कहा, ‘‘भाई, जब यह हमारे यहां आ गई है, तो इस के खानेपीने का इंतजाम भी तो हमें ही करना पड़ेगा. जाओ, होटल से कुछ ले आओ.’’
रंजीत खुशीखुशी होटल की ओर चल पड़ा. मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि रंजीत को आज क्या हो गया है, पर मैं चुप था. वह जितनी तेजी से गया था, उतनी ही तेजी से और बहुत जल्दी खानेपीने का सामान ले कर लौटा था.
‘‘जाओ, उसे खाना दे आओ. हम दोनों रामध्यान के साथ यहीं खा लेंगे,’’ मैं ने रंजीत से कहा.
रंजीत खाना देने ऊपर के कमरे गया और तकरीबन आधा घंटे बाद लौटा. मुझे भूख लगी थी, लेकिन मैं उस का इंतजार कर रहा था. सोच रहा था कि उस के आने के बाद साथ बैठ कर खाएंगे.
मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने इतनी देर क्यों लगा दी?’’
‘‘भाई, उस के कहने पर मैं ने भी उसी के साथ खाना खा लिया,’’ रंजीत धीरे से बोला.
‘‘कोई बात नहीं… आओ रामध्यान, हम दोनों खाना खा लें. हम तो इसी का इंतजार कर रहे थे और यह तुम्हारी भाभी के साथ खाना खा आया,’’ मैं ने मजाक करते हुए कहा.
रामध्यान को भी हंसी आ गई. वह हंसते हुए खाने की थाली सजाने लगा.
रात को खाना खाने के बाद अकसर हम लोग बाहर टहलने के लिए निकला करते थे, इसलिए खाने के बाद मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो गया और रंजीत को भी तैयार होने के लिए कहा.
‘‘आज मेरा जाने का मन नहीं है,’’ रंजीत टालमटोल करने लगा.
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आखिरकार मैं और रामध्यान टहलने के लिए निकले. तकरीबन आधा घंटे के बाद लौटे. वापस आने पर देखा कि हमारे कमरे पर ताला लगा हुआ था.
रामध्यान ने हंसते हुए कहा, ‘‘भैया, हो सकता है रंजीत भैया भाभी के पास गए हों.’’
‘‘हो सकता है. जा कर दे,’’ मैं ने रामध्यान से कहा.
‘‘थोड़ी देर बाद रामध्यान और रंजीत हंसतेमुसकराते सीढि़यों से नीचे आ रहे थे.
‘‘भाभीजी तो बहुत मजाकिया हैं भाई. सच में मजा आ गया,’’ उतरते ही रंजीत ने कहा.
‘‘अब हंसना छोड़ो और जल्दी कमरा खोलो,’’ वे दोनों हंस रहे थे, पर मुझे गुस्सा आ रहा था.
मैं ने चुपचाप कमरे में जा कर अपने कपड़े बदले और बैड पर सोने चला गया. थोड़ी देर तक बैड पर लेटेलेटे मैं ने पढ़ाई की और उस के बाद मुझे नींद आ गई.
देर रात को रंजीत और रामध्यान की बातों से मेरी नींद टूटी. उन दोनों को देख कर लग रहा था कि वे दोनों अभीअभी कहीं से लौटे हैं.
मैं ने उन से पूछा, ‘‘तुम दोनों कहां गए थे और अभी तक सोए क्यों नहीं?’’
‘कहीं… कहीं नहीं. बस अभी सोने ही वाले हैं,’ दोनों ने एकसुर में कहा.
थोड़ी देर बाद रंजीत ने मुझे जगाते हुए कहा, ‘‘भाई, तुम्हें एक बात कहनी है.’’
‘‘इतनी रात को… बोलो, क्या बात कहनी है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’’ उस ने पूछा.
‘‘अगर बुरा मानने वाली बात नहीं होगी, तो बुरा क्यों मानूंगा?’’ मैं ने कहा.
‘‘तुम चाहो तो भाभीजी के मजे ले सकते हो,’’ रंजीत थोड़ा संकोच करते हुए बोला.
‘‘क्या बक रहे हो रंजीत? तुम्हें क्या हो गया है?’’ मैं ने हैरानी और गुस्से में उस से पूछा.
‘‘भाई, अच्छा मौका है. चाहो तो हाथ साफ कर लो,’’ रंजीत के चेहरे पर इस समय एक कुटिल मुसकान थी. वह अपनी इसी मुसकान से मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था.
‘‘हम ने उसे सहारा दिया है. वह हमारी मेहमान है. तुम ऐसा कैसे
सोच सकते हो?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.
‘‘इस तरह भी हम उस की मदद कर सकते हैं. मैं ने उस से बात कर ली है. एक बार के लिए 2 सौ रुपए में सौदा पक्का हुआ है,’’ वह मुझे ऐसे बता रहा था, जैसे कोई बड़ा उपहार भेंट करने जा रहा हो.
‘‘मुझे तुम्हारी सोच से घिन आती है रंजीत. आखिर तुम अपने असली रूप में आ ही गए. मुझे हैरत हो रही थी कि तुम भला किसी की मदद कैसे कर सकते हो. अब तुम्हारी असलियत सामने आई.
‘‘मुझे पहले से ही शक हो रहा था, पर मैं यह सोच कर चुप था कि चलो, एक अच्छा काम कर रहे हैं. अच्छा क्या खाक कर रहे हैं,’’ मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था, पर इस समय उसे समझाने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था.
रंजीत कुछ नहीं बोला. वह सिर झुकाए बैठा था.थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चुपचाप बैठे रहे. रामध्यान अब तक सो चुका था. थोड़ी देर बाद रंजीत बोला, ‘‘ठीक है भाई, सो जाओ. मैं भी सोता हूं.’’ सुबह जब मैं उठा, तब तक 7 बज चुके थे. रामध्यान की तथाकथित भाभी इस समय हमारे कमरे में बैठी थी. रामध्यान और रंजीत भी उस के पास ही बैठे थे.
‘‘मैं आप के ही उठने का इंतजार कर रही थी,’’ मुझे देखते हुए वह बोली.
‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हुआ कुछ नहीं. मैं जा रही हूं. कुछ बख्शीश तो दे दीजिए,’’ उस ने हंसते हुए कहा.
‘‘बख्शीश किस बात की?’’ मुझे हैरानी हुई.
‘‘देखो मिस्टर, आप के इस दोस्त ने 2 सौ रुपए में एक बार की बात कर मेरी इज्जत का सौदा किया था. इन दोनों ने 2-2 बार मेरी इज्जत को तारतार किया. इस तरह पूरे 8 सौ रुपए बनते हैं. और ये हैं कि मुझे केवल 4 सौ रुपए दे कर टरकाना चाहते हैं. मैं भी अड़ चुकी हूं. बंद कमरे में मेरी इज्जत जाते हुए किसी ने नहीं देखा. अब अगर मैं यहां चिल्ला कर बताने लगी कि तुम लोग मुझे यहां क्यों लाए थे, तो तुम लोगों की इज्जत गई समझो,’’ वह बड़े ही तीखे अंदाज में बोले जा रही थी.
मैं ने रंजीत और रामध्यान की ओर देखा. वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप बैठे थे. मुझ से कोई भी नजरें नहीं मिला रहा था. मैं सारी बात समझ चुका था. यह भी जानता था कि रंजीत और रामध्यान के पास और पैसे नहीं होंगे. ऐसे में मुझे ही अपनी जेब ढीली करनी होगी. मैं ने अपना पर्स निकाला और उसे 4 सौ रुपए देते हुए बोला, ‘‘लीजिए अपने पैसे.’’
पैसे मिलते ही वह खुश हो गई और अपने रास्ते चल पड़ी. मैं सोच रहा था कि इज्जत आखिर है क्या? कल उस की इज्जत बचाने के लिए हम ने उसे सहारा दिया था और आज अपनी इज्जत बचाने के लिए हमें उसे पैसे देने पड़े.
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इस तरह कहने को तो दुनिया की नजरों में हम सभी की इज्जत जातेजाते बची है. वह औरत बाइज्जत अपने रास्ते गई और हम अपने घर में. आज भी जब मैं उस घटना को याद करता हूं, तो सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि क्या वाकई उस औरत के साथसाथ हम सभी ने अपनीअपनी इज्जत बचा ली थी? ‘इज्जत’ हमारे हैवानियत से भरे कामों के ऊपर पड़ा परदा है. इसी परदे को तारतार होने से बचाने के लिए हम ने उस औरत को पैसे दिए. यह परदा दुनिया से तो हमारी हिफाजत करता नजर आ रहा है, पर हम सभी ने एकदूसरे को बिना इस परदे के देख लिया है. दुनियाभर के लिए हम भले ही इज्जतदार हों, पर अपनी सचाई का हमें पता है.