बलात्कारी की हार: भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘बधाई हो आप को, बेटी का जन्म हुआ है,’’ नर्स ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रीति से कहा.

प्रीति ने उनींदी आंखों से अपनी बेटी की तरफ देखा, उस के होंठों पर मुसकराहट तैर आई और आंखों से चांदी के दो छोटे गोले कपोलों पर ढुलक गए.

प्रीति ने एक लंबी सांस छोड़ी और आंखों को कमरे के एक कोने में टिका दिया. ‘‘नहीं सिस्टर नहीं, यह मेरी बेटी नहीं है. यह तो मेरी जीत है, मेरी जित्ती.’’ अचानक से कह उठी थी प्रीति. कमरे के एक कोने में टिकी आंखों ने यादों की परतों की पड़ताल करनी शुरू कर दी थी.

प्रीति का तबादला आगरा की ब्रांच में हुआ था. बैंक में उस का पहला दिन था और इसी उत्साह में उस ने एक घंटे पहले ही कैब मंगवा ली थी और नियत समय से 15 मिनट पहले ही अपने बैंक जा पहुंची.

10 बजतेबजते ही लगभग सारा स्टाफ आ गया था. आज इस बैंक में प्रीति एक नया चेहरा थी, इसलिए सब ने उस का स्वागत किया.

प्रीति की उम्र 25 वर्ष थी और इस ब्रांच का स्टाफ भी युवा ही था, इसलिए वह बहुत ही जल्दी सब में घुलमिल गई थी.

लंचब्रेक होने पर वह कैंटीन जाने के लिए उठने ही जा रही थी कि तभी एक आवाज ने उस का ध्यान भंग किया.

‘‘प्रीतिजी, मेरा नाम अमित है. अगर आप बुरा न मानें तो मेरे साथ लंच शेयर कर सकती हैं. मां के बनाए हुए ढोकले लाया हूं. साथ देंगी तो अच्छा लगेगा,’’ अमित ने कहा.

प्रीति ने चौंक कर देखा तो वह उस का सहकर्मी था जो कैश मैनेजर की पोस्ट पर था. एक अच्छा शरीर, चेहरे पर घनी मूंछ और आंखों पर हलके लैंस वाला चश्मा और उस की आयु 30 वर्ष के आसपास. कुल मिला कर प्रीति भी अपनेआप को अमित के प्रति आकर्षित होने से न रोक पाई थी.

अमित ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया तो सकुचाते हुए प्रीति ने एक ढोकला ले लिया और अमित को थैंक्स कहा.

‘‘जी मैं पिछले एक साल से इसी ब्रांच में काम कर रहा हूं. मैं ने देखा है इस ब्रांच में जो भी लोग आते हैं वे बहुत ही खूबसूरत होते हैं,’’ अमित ने प्रीति की आंखों में ?ांकते हुए कहा.

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अपने आखिरी के शब्द अमित ने कुछ इस तरह कहे थे कि प्रीति कुछ शरमा सी गई थी. अमित का बात करने का अंदाज कुछ ऐसा था कि उस ने पहली ही मुलाकात में प्रीति के बारे में काफीकुछ जान लिया और लोकल घर का पता भी पूछ लिया था.

‘‘अमितजी, मैं यहां पर सिविल लाइंस में एक घर में पेइंगगैस्ट के तौर पर रहती हूं,’’ प्रीति ने बताया.

‘‘ओह, सिविल लाइंस वह तो मेरे घर जाने के रास्ते में ही पड़ता है. अगर आप बुरा न मानें तो मैं कल आते समय आप को पिक कर लूं?’’

अमित ने कुछ ऐसे कहा कि प्रीति को इस में कोई बुराई नहीं नजर आई और उस ने हामी भर दी.

अब तो अमित रोज सुबह प्रीति को पिक करता और शाम को घर जाते समय उसे उस के कमरे पर छोड़ देता.

अमित अपनी बातों में बड़ा बेतकल्लुफ और बेपरवाह सा था. उस की यही बात प्रीति को सब से ज्यादा पसंद भी थी क्योंकि उसे गंभीरता ओढ़े, जिंदगी को गणित के ढंग से जीने वाले लोग पसंद नहीं थे.

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यही वजह थी कि कहीं न कहीं वह अमित में एक आदर्श जीवनसाथी देख चुकी थी.

अमित एक दिन प्रीति को उस के घर छोड़ने जा रहा था कि रास्ते में तेज आंधी और बारिश शुरू हो गई. बहुत मुश्किल से प्रीति का घर आया. बारिश और उग्र हो रही थी, इसलिए प्रीति ने अमित को थोड़ा ठहर कर जाने को कहा जिसे अमित ने सहर्ष मान लिया.

दोनों भीगे हुए थे.  प्रीति चाय बना लाई और दोनों चाय की चुस्कियां लेने लगे. अचानक से बिजली चली गई. प्रीति ने मोबाइल की लाइट जलाई तो महसूस किया कि अमित तो उस के पीछे खड़ा है.

‘‘प्रीति, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ उस के हाथ प्रीति के जिस्म पर फिसल रहे थे.

पता नहीं क्यों अमित की इस हरकत का जवाब कुछ भी नहीं दे पाई प्रीति. उस के मौन को अमित ने उस की स्वीकृति सम?ा और अपने हाथों की गति को तेज कर दिया.

इंद्रधनुष के दो रंग आपस में घुल गए. प्रीति की आंखों में चांदनी उतर आई थी. दो दिलों के मिलने की खुशबू पूरे कमरे में फैल गई. अंदर का तूफान जब शांत हुआ तो दोनों ने देखा कि बाहर का तूफान भी शांत हो चुका था.

प्रीति जो अमित को अपने जीवनसाथी के रूप में मान चुकी थी, इसलिए वह अपने इस नए अनुभव पर शर्मिंदा न हो कर रोमांचित थी और यह रोमांच उस ने अपने तक नहीं रखा बल्कि अपने घर के लोगों के साथ भी बांटा. घर के लोग भी खुश हुए कि चलो अच्छा हुआ जो प्रीति को मनचाहा वर मिल गया.

जब इस रिश्ते को घर वालों से हरी ?ांडी मिल गई तो प्रीति और अमित ने कई बार अपने अंदर के तूफान को अनुभव किया जिस का परिणाम यह हुआ कि प्रीति को गर्भ ठहर गया.

‘‘अमित, सुनो, अब हमें जल्दी शादी कर लेनी चाहिए,’’ कौफीहाउस में अमित के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए प्रीति ने कहा.

‘‘क्या… पागल तो नहीं हो गई हो तुम. अरे हम दोनों साथ में काम करते हैं, अगर तुम्हारे साथ थोड़ा एंजौय कर लिया तो तुम तो गले ही पड़ने लगीं,’’ अमित बौखला सा गया था.

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‘‘पर तुम ने तो कहा था कि प्यार करते हो मु?ा से, शादी करना चाहते हो,’’ प्रीति हकला सी गई.

‘‘अरे यार, ऐसे वादे तो खूबसूरत लड़कियों से करने के लिए ही तो होते हैं वरना वे हाथ ही कहां रखने देंगी,’’ अमित ने बेशर्मी दिखाई.

‘‘पर तुम ने तो गलत किया मेरे साथ. यह तो सरासर धोखा है,’’ प्रीति की आवाज डूब रही थी.

बलात्कारी की हार: भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे, कैसा धोखा? अगर मैं ने कोई साधन नहीं अपनाया था, तो तुम तो किसी मैडिकल हौल से कोई टैबलेट ले कर खा लेतीं और यह बच्चे का किस्सा ही खत्म हो जाता,’’ अमित के स्वर में बेरुखी थी.

‘‘पर तुम ऐसा कैसे कर सकते हो, अमित,’’ प्रीति का स्वर अस्फुट हो चला.

‘‘अरे प्रीति, शायद तुम मु?ो सम?ा नहीं. मैं जो तुम को रोज लेने आता था, रोज छोड़ने जाता था, वह सब यों ही नहीं था. और फिर, जवानी में तो यह सब होना आम बात है.’’

‘‘मैं तुम्हारे खाते में 20 हजार रुपए भेज रहा हूं, किसी अच्छे डाक्टर से जा कर बच्चे का एबौर्शन करवा लो और यह ?ां?ाट खत्म करो. खुद भी जियो और मु?ो भी जीने दो,’’ अमित यह कह कर टेबल से उठ गया.

प्रीति को लगा कि उस के जीवन में सुनामी आ गई है. उस की जबान उस के तालू से चिपक गई. आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.  कौफीहाउस में सब की निगाहें प्रीति पर थीं. जब प्रीति को कुछ सम?ा नहीं आया तो वह वहां से उठी और कमरे में जा कर बिस्तर पर गिर गई.

कितने दिन और कितनी रात प्रीति अपने कमरे में बंद रही, रोती रही, कुछ पता नहीं था उसे.

उस के कान में अमित के निर्मम शब्द गूंज रहे थे, ‘‘बच्चे का एबौर्शन करवा लो और ?ां?ाट खत्म करो.’’ नश्तरों की तरह धार थी इन शब्दों में. घायल हो चुकी थी प्रीति.

हर दर्द की एक सीमा होती है और उस के बाद वह दर्द ही खुद दवा बन जाता है. प्रीति के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उस ने भारी मन से ही सही पर, औफिस जाना शुरू किया.

अमित से भी मिलना हुआ. उस ने बच्चे और एबौर्शन के बारे में जानने की कोशिश की पर उस के सामने प्रीति ने कोई कमजोरी नहीं दिखाई बल्कि सामान्य बात करती रही. शायद वह बहुतकुछ सोच चुकी थी.

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समय बीता तो प्रीति के घर वालों ने प्रीति और अमित की शादी के बारे में पूछताछ की. आश्चर्यजनक रूप से हिम्मत दिखाते हुए प्रीति ने अपने घरवालों को सब सच बता दिया. उस की बिन ब्याहे ही गर्भवती होने की खबर सुन घरवाले भी परेशान हो उठे और अगले ही दिन मां और उस की बहन उस के पास आ गईं और उन्होंने भी प्रीति से इस बच्चे को गिरा देने की ही बात कही. पर अब तो प्रीति का नया रूप देखने को मिला.

‘‘मां, इस बच्चे को मैं तब खत्म करती जब इस बच्चे को किसी गलत नीयत के साथ इस दुनिया में लाया गया होता. उस ने मु?ा से शादी का वादा किया, मेरा विश्वास जीता और मु?ा से संबंध बनाया. एक तरह से अमित ने मेरा बलात्कार किया है मां, बलात्कार,’’ प्रीति कहे जा रही थी.

‘‘बलात्कार सिर्फ वह ही नहीं होता जिस में जबरन संबंध बनाया जाए. यह मानसिक भी होता है. मर्दों की लालची आंखें जब किसी औरत के अंगों को टटोलती हैं तो भी वे उन का बलात्कार कर रही होती हैं. मां जो मेरे साथ हुआ उस में मेरी कोई गलती नहीं, मैं ने तो अमित से प्यार किया था. जीना चाहती थी मैं उस के साथ. पर मु?ो क्या पता था कि वह सिर्फ मांस का भूखा एक भेडि़या है जो मु?ो शादी का ?ांसा दे कर मु?ो नोचेगा. तुम बिलकुल मत घबराओ मां, मैं आत्महत्या जैसी कोई चीज नहीं करूंगी और मैं ने तय कर लिया है कि इस बच्चे को भी जन्म दूंगी मैं.’’

‘‘कुछ ज्यादा ही पढ़लिख गई है तू.  अरे लोग थूकेंगे हमारे मुंह पर. एक बिनब्याही मां बनना क्या होता है, जानती है तू? यह समाज हमें जीने नहीं देगा,’’ मां लगभग चीख रही थी.

‘‘कौन सा समाज मां? कैसा समाज, वे महल्ले के 4 लोग, वे कुछ रिश्तेदार जो लगातार हम से जलन रखते हैं. उन से डर कर मैं अपनी जिंदगी को नरक कर दूं, जबकि मैं ने कुछ गलत किया ही नहीं मां. शर्म तो अमित को आनी चाहिए क्योंकि उस ने मेरे साथ संबंध ही नहीं बनाया बल्कि बलात्कार किया है मेरा. अमित को इस की सजा भी भुगतनी होगी.,’’ प्रीति का यह नया रूप था जो एक अग्नि में जल रहा था.

‘‘अरे, उस मर्द जात से कहां तक लड़ेगी तू? और क्या कर लेगी उस का?’’ मां ने तेजी से कहा.

‘‘मां…मां, अपने बच्चे और अपने हक के लिए किसी भी हद तक जाऊंगी और न्याय ले कर रहूंगी,’’ प्रीति ने कहा.

‘‘तो फिर तू ही लड़ अपनी लड़ाई. हम को इन ?ामेलों से अलग ही रख,’’ मां ?ाल्ला उठी.

और इस तरह प्रीति के घरवालों ने उस से मुंह मोड़ लिया. पर सिर्फ घरवालों के साथ न देने से प्रीति टूटी नहीं, बल्कि उन दिनों सोशल मीडिया पर ‘मी टू’ नामक अभियान में अपना उत्पीड़न भी सब के साथ शेयर किया और सब को बताया कि कैसे उस के साथ घात हुआ है.

सब ने उस की कहानी बड़े चाव से सुनी और कुछ लोग उस का साथ देने वाले भी मिले पर सोशल मीडिया पर लाइक और कमैंट चाहे जितने अच्छे मिल जाएं,  वास्तविकता का जीवन तो कुछ और ही होता है.

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वास्तविकता यह भी थी कि प्रीति अब बिलकुल अकेली थी और आगे की लड़ाई लड़ने के लिए वह वकील से मिली.

‘‘हां प्रीति, तुम अमित पर केस तो कर सकती हो पर क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा सुबूत है जिसे हम मजबूती से अदालत में अमित के खिलाफ अपना हथियार बना सकते हैं?’’ प्रीति की वकील मिसेज मेहता ने पूछा.

‘‘जी… वह बस मेरे मोबाइल में कुछ हमारे साथ की फोटोज हैं और व्हाट्सऐप पर की हुई चैटिंग के अलावा और कुछ भी नहीं है,’’ प्रीति ने पेशानी पर बल डालते हुए कहा.

‘‘हां, तो कोई बात नहीं है. वह सब मु?ो दे दो, देखती हूं कि और इस केस में क्याक्या किया जा सकता है,’’ मिसेज मेहता ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

पता नहीं क्यों मिसेज मेहता की बातें घाव पर मलहम की तरह काम कर रही थीं.

अगले दिन जब प्रीति बैंक में पहुंची तो उसे बौस ने अपने केबिन में बुला कर उस के तबादले का पत्र पकड़ा दिया. प्रीति को सम?ाते देर न लगी कि अमित ने अपनी पहुंच का फायदा उठा कर उस का तबादला करा दिया है. सरकारी फरमान पर बहस करने से फायदा नहीं था, इसलिए प्रीति ने चुपचाप उसे स्वीकार कर लिया.

प्रीति घर पहुंच कर अपना सामान पैक ही कर रही थी कि अचानक उसे याद आया कि एक बार अमित ने उस से जिक्र किया था कि उस के मम्मी और पापा बहुत उदार और आदर्शों वाले हैं. प्रीति को घनघोर अंधेरे में कुछ टिमटिमाहट सी दिखाई दी और उस ने अमित के मांपापा से मिल कर सब बात बताने की सोची.

‘‘बेटे प्रीति, हमें तुम से सहानुभूति है पर तुम भी तो बालिग हो. घर से दूर नौकरी करने आई हो, तुम्हें भी तो कुछ सम?ा होनी चाहिए, सहीगलत तो तुम भी सम?ाती हो. इसलिए मैं अमित को दोष नहीं देता,’’ अमित के पिताजी कह रहे थे.

‘‘बुरा मत मानना प्रीति, पर मैं ने ऐसी लड़कियां भी देखी हैं जो पहले तो जवानी का मजा लेने के लिए हमबिस्तर हो जाती हैं और जब देखती हैं कि लड़का अच्छे घर का है तो उस को पैसे उगाहने के लिए ब्लैकमैल करने लगती हैं,’’ अमित के पिताजी कुछ ज्यादा ही प्रैक्टिकल बातें कर रहे थे.

‘‘और फिर अगर तुम्हें हमारा बेटा अच्छा लग गया था और तुम उस के साथ संबंध बनाना चाहती ही थीं तो कम से कम कोई साधन अपनाना चाहिए था और अगर वह भी नहीं हुआ था तो आजकल तो 24 से 72 घंटों बाद भी खाई जा सकने वाली दवाई मौजूद है, उस को ले सकती थीं तुम,’’ अमित की मां की आवाज में एकदम सूखापन था.

‘‘और हम तुम्हारी इतनी मदद कर सकते हैं कि अमित की मां की एक सहेली डाक्टर है. तुम्हें हम वहां ले कर तुम्हारे इस बच्चे को गिरवाने में मदद कर सकते हैं.  अगर तुम अमित जैसे सुदर्शन व्यक्तित्व वाले लड़के से शादी करना चाहती हो तो भूल जाओ, ऐसा नहीं हो सकता,’’ अमित के पिता ने फैसला सुनाते हुए कहा.

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प्रीति को सम?ा आ गया था कि अमित के मां और पिता से मिलने आना उस की गलती है.

प्रीति किसी तीर की तरह निकल आई थी. अपने कमरे पर आ कर बाकी का सामान भी रखने लगी. आखिरी आशा भी टूट चुकी थी और आशा टूटने की आवाज नहीं आती पर दर्द सब से ज्यादा होता है.

अगले दिन ही उस ने आगरा को अलविदा कह दिया था और मन में एक निश्चय लिए उसे लखनऊ की ब्रांच में जौइन करना था. अपनी ड्यूटी संभालने के बाद सब से पहला काम बैंक के जितना नजदीक हो सके, एक कमरा ढूंढ़ना था.

शहरों में एक अकेली लड़की की राह कभी आसान नहीं होती, यह बात प्रीति को तब सम?ा में आई जब उस ने एक मकान की घंटी बजाई और किराए पर एक कमरे की जरूरत की बात बताई.

‘‘जी कमरा तो मिल जाएगा, पर क्या आप शादीशुदा हैं?’’ मकान के मालिक ने पूछा.

‘‘जी नहीं, अभी मैं सिंगल हूं,’’ प्रीति ने नजरें नीची करते हुए कहा.

बलात्कारी की हार: भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘सिंगल…’’ मकान के अधेड़ मालिक ने प्रीति के पेट पर उड़ती नजर डाल कर कहा और कुछ सोचते हुए अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद वह आया और बोला, ‘‘जी बात कुछ ऐसी है कि अभी हमारा कमरा खाली नहीं है और हम उसे किराए पर देने वाले भी नहीं हैं. अजी, हमारे भी बच्चे हैं, आप जैसी लड़कियों को देख कर उन पर गलत असर पड़ेगा,’’ मकान मालिक कहता जा रहा था.

यह सब सुनने से पहले वह बहरी क्यों नहीं हो गई थी. प्रीति उस के मकान से बाहर निकल आई थी.

यह किन लोगों के बीच रही है वह, क्या इन लोगों के मन में कोई संवेदना बाकी नहीं रह गई है या ये सिर्फ स्त्री जाति का मजाक बनाना जानते हैं, परेशान हो उठी थी प्रीति.

पर अजनबी शहर में रात गुजारने के लिए उसे कोई छत तो चाहिए ही थी. सो, उस ने हार कर एक होटल की शरण ली.

नई जगह, नए लोग और मानसिक प्रताड़ना से गुजरते हुए प्रीति से बैंक के कामों में भी गलतियां होने लगीं. उसे परेशान देख उस की एक सहकर्मी ने उस की परेशानी का कारण पूछा.

‘‘वो… अरे कुछ नहीं मालती, वो… जरा मकान नहीं मिल पा रहा है. फिलहाल एक होटल में रह रही हूं. होटल काफी महंगा तो पड़ता है ही, साथ ही साथ एक अलग माहौल भी रहता है होटलों का,’’ प्रीति ने बात बनाई.

‘‘अरे बस, इतनी सी बात. चल मेरे एक जानने वाले का यहीं पास में मकान है, मैं आज ही शाम को तेरी बात और मुलाकात करा देती हूं,’’ मालती ने कहा.

मालती की बातों ने प्रीति के लिए मलहम का काम किया और वे दोनों शाम को औफिस के बाद औटो कर के मालती के जानपहचान वाले के यहां चल दीं.

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‘‘प्रीति, तू बुरा न मान तो एक बात पूंछू?’’ औटो में बैठते हुए मालती ने कहा.

‘‘हां, हां, पूछ न,’’ प्रीति बोली.

‘‘तू ने आज अपने परिचय में बताया था कि तू अविवाहित है. पर यह तेरा उभरा हुआ पेट तो कुछ और ही कह रहा है,’’ मालती ने पूछा.

‘‘हां, वह किसी के धोखे की निशानी है,’’ प्रीति ने खिन्न हो कर उत्तर दिया.

‘‘ओह… सम?ा, पर तब तू इस को गिरा क्यों नहीं देती. सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा,’’ मालती ने अपनी राय बताई.

‘‘क्यों… क्यों खत्म करूं मैं अपने इस बच्चे को? आखिर इस का क्या कुसूर है जो मैं इसे दुनिया में आने से पहले ही खत्म कर दूं? मैं ने कोई पाप तो नहीं किया, प्रेम किया था. पर अफसोस वह शख्स ही मेरे प्रेम के लायक नहीं था,’’ कराह उठी थी प्रीति.

अभी दोनों के बीच बातें आगे बढ़तीं, इस से पहले ही वह मकान आ गया जहां मालती को प्रीति को ले जाना था.

वह एक गंजा अधेड़ था, जिस के कंधे चौड़े थे और जिस तरह से चाटुकार उस के चारों ओर थे, उस से वह किसी पार्टी का नेता लग रहा था.

ददाजी से मिलने के बाद तो प्रीति ने काफी हलका महसूस किया और अगले ही दिन सामान ले कर ददाजी के घर पहुंच गई और अपना सामान भी सैट कर लिया.

दरवाजे पर खटखट की आवाज सुन कर प्रीति ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक चंदनधारी सफेद साड़ी पहने एक स्त्री खड़ी थी, शायद वे ददाजी की मां थीं.

आदरवश प्रीति ने उन के पैर छुए और उन्हें अंदर आने को कहा, पर वे दरवाजे पर ही खड़ी रहीं और वहीं से उन्होंने एक सवाल दागा.

‘‘ब्याह हो गयो तेरो के नहीं?’’

‘‘अ… अभी नहीं,’’ प्रीति किसी आशंका से ग्रसित हो गई.

‘‘घोर कलजुग आ गयो है, खैर, हमें का करने, ‘‘कहती हुई वे बूढ़ी माता नीचे चली गईं.

आंसुओं में टूट चुकी थी प्रीति, निराश मन ने कई बार आत्महत्या के लिए उकसाया पर हर बार मन को यही सम?ाती रही कि वह सही रास्ते पर चल रही है और उसे कायरतापूर्ण कार्य करने की जरूरत नहीं है.

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रात में फिर से प्रीति के दरवाजे पर दस्तक हुई. अंदर तक सहम गई थी वह. भला इस समय कौन आ सकता है?

‘‘अरे प्रीति, जरा दरवाजा तो खोलो. अरे हमें भी तो इस ताजमहल का दीदार कर लेने दो भई.’’ यह आवाज ददाजी की थी जो शराब के नशे में प्रीति के कमरे के बाहर खड़ा दरवाजा पीट रहा था, ‘‘अरे खोल भी दो प्रीति, तुम तो बिन ब्याहे मां बन सकती हो तो मु?ा में कौन से कांटे लगे हैं? खोल दो प्रीति,’’ ददाजी नशे में चूर थे. नशे की अधिकता के कारण वहीं दरवाजे पर ही बेहोश हो गए थे दादाजी. प्रीति रातभर अपने कंबल को लपेट कर टौयलेट में बैठी रही. जब सुबह पेपर वाले ने पेपर की आवाज लगाई तब जा कर उस की जान में जान आई.

उस ने फौरन अपना सामान फिर से पैक किया और दबे पैर ही उस ने ददाजी का घर छोड़ दिया और फिर से दूसरे होटल में जा कर रहने लगी और उस दिन के कड़वे अनुभव के बाद उस ने मालती से भी दूरी बना ली.

प्रीति ने अमित के खिलाफ जो केस दायर कर रखा था उस की तारीख जब भी आती, प्रीति को छुट्टी लेगा कर आगरा जाना पड़ता. कभीकभी तो अमित पेशी पर पहुंचता ही नहीं, जिस के कारण प्रीति का पूरा दिन और पैसा बरबाद हो जाता.

अभी प्रीति को लखनऊ में आए कुछ ही दिन हुए थे कि उस का तबादला फिर से करा दिया गया. प्रीति को यह सम?ाते हुए देर न लगी कि इस में अमित का ही हाथ है.

लगातार हो रहे अपने तबादलों के कारण प्रीति ने सरकारी नौकरी से मजबूरी में त्यागपत्र दे दिया.

त्यागपत्र देने के बाद जीविका का प्रश्न प्रीति के सामने मुंह फाड़े खड़ा था. सोशल मीडिया पर ‘मी टू’ नामक आंदोलन से कुछ एनजीओ चलाने वाली महिलाओं से प्रीति का संपर्क बन गया था. संकट में होने पर प्रीति ने उन्हीं महिलाओं का सहारा लिया और बनारस के एक एनजीओ से जुड़ गई, जो विधवाओं, परित्यक्ताओं और बलात्कार पीडि़तों के लिए काम करती थी. इस काम में उसे साहस और आत्मिक संतोष दोनों मिलने लगा था. यहां उस से कोई सवाल नहीं किया गया और उसे यही लगा कि दुनिया में उस से भी ज्यादा दुखी लोग हैं और उन पहाड़ जैसे दुखों के आगे उस का दुख कुछ भी नहीं है.

पूरी दुनिया में अकेली थी प्रीति. दुनिया से भर कर उस के मांबाप ने उसे त्याग दिया था. प्रेमी ने धोखा दिया, जहां भी गई उसे तिरस्कार ही मिला, फिर भी कुछ ऐसा था जो उसे जीने पर मजबूर किए हुए था और वह था गर्भ में पल रहा उस का बच्चा. जमाने से लड़ते हुए, नदिया की धारा के खिलाफ चलते हुए वह दिन भी आ गया जब प्रीति ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया.

प्रीति के साथ जबरन बलात्कार तो नहीं हुआ पर उस को धोखा दे कर जो संबंध बनाया गया वह भी एक प्रकार से बलात्कार ही था. प्रीति साहसी थी, उस ने अदालत में अपील की कि उस के गर्भ में पल रहे बच्चे और अमित का डीएनए टैस्ट कराया जाए और अमित बाकायदा उसे हर्जाना दे और अपनी जायदाद में उस के बच्चे का भी हिस्सा हो.

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प्रीति, हमारे समाज में भी ऐसी औरतें बड़ी आसानी से मिल जाती हैं, जिन की मजबूरी का फायदा उठाया जाता है.

जरूरी नहीं कि बलात्कारी कुछ अलग सी दिखने वाली शक्ल का हो, वह तो समाज में किसी भी शक्ल में हो सकता है- आसपास, घर में, औफिस में.

‘‘बच्चे के माता और पिता का नाम बताइए,’’ नर्स ने फौर्म भरते हुए पूछा.

‘‘जी, दोनों ही कौलम में आप प्रीति ही भरिए. मैं ही इस की मां और मैं ही इस का पिता हूं,’’ प्रीति के चेहरे पर जीत की आभा थी.

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