ग्रहण हट गया: भाग 1

लेखक- अभिजीत माथुर

मैं घर के कामों से फारिग हो कर सोने की सोच ही रही थी कि फोन की घंटी घनघना उठी. मैं ने बड़े बेमन से रिसीवर उठाया व थके स्वर से कहा, ‘‘हैलो.’’

उधर से अपनी सहेली अंजु की आवाज सुन कर मेरी खुशी की सीमा नहीं रही.

‘‘यह हैलोहैलो क्या कर रही है,’’ अंजु बोली, ‘‘मैं ने तो तुझे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया है. तेरे भैया शैलेंद्र की 24 जून की शादी पक्की हो गई है. कल ही शैलेंद्र भैया कार्ड दे कर गए हैं. तुझे भी शादी में आना है, तू आएगी न?’’

यह सुन कर मैं हड़बड़ा गई और झूठ ही कह दिया, ‘‘हां, क्यों नहीं आऊंगी, मैं जरूर आऊंगी. भाई की शादी में बहन नहीं आएगी तो कौन आएगा. मैं तेरे जीजाजी के साथ जरूर आऊंगी.’’

अंजु बोली, ‘‘ठीक है, तू जरूर आना, मैं तेरा इंतजार करूंगी,’’ यह कह कर अंजु ने फोन रख दिया.

फोन रखने के बाद मैं सोच में पड़ गई कि क्या मैं वाकई शादी में जा पाऊंगी? शायद नहीं. अगर मैं जाना भी चाहूं तो अखिल मुझे जाने नहीं देंगे. हमारी शादी के बाद अखिल ने जो कुछ झेला है वह उसे कैसे भूल सकते हैं.

मैं ने व अखिल ने 2 साल पहले घर वालों की इच्छा के खिलाफ कोर्ट में प्रेमविवाह किया था. मेरे घर वाले मेरे प्रेमविवाह करने पर काफी नाराज थे. उन्होंने मुझ से हमेशा के लिए रिश्ता ही तोड़ दिया था. वे अखिल को बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे. हम विवाह के बाद घर वालों का आशीर्वाद लेने गए थे, पर हमें वहां से बेइज्जत कर के निकाल दिया गया था. तब से ले कर आज तक मैं ने व अखिल ने उस घर की दहलीज पर पैर नहीं रखा है.

मैं धीरेधीरे अपने इस संसार में रमती गई और अखिल के प्यार में पुरानी कड़वी यादें भूलती गई पर आज अंजु के फोन ने मुझे फिर उन्हीं यादों के भंवर में ला कर खड़ा कर दिया, जहां से मैं हमेशा दूर भागना चाहती थी. मैं सोच रही थी कि आखिर मैं ने ऐसा क्या किया है जो मेरे घर वाले मुझ से इतने खफा हैं कि उन्होंने मुझे शैलेंद्र भैया की शादी की सूचना तक नहीं दी. क्या मैं ने अखिल से प्रेमविवाह कर इतनी भारी भूल की है कि मेरा उस घर से रिश्ता ही तोड़ दिया, जिस घर में मैं पली और बड़ी हुई. उस भाई से नाता ही टूट गया जिसे मैं सब से ज्यादा चाहती थी, जिस से मैं लड़ कर हक से चीज छीन लिया करती थी.

क्याक्या सपने संजोए थे मैं ने शैलेंद्र भैया की शादी के कि यह करूंगी, वह करूंगी, पर सारे सपने धराशायी हो गए. मैं भैया की शादी में जाना तो दूर, जाने की सोच भी नहीं सकती थी.

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मैं दिन भर इसी ऊहापोह में रही कि इस बारे में अखिल को कहूं या नहीं.

शाम को अखिल के आने के बाद मैं ने बड़ी हिम्मत जुटा कर उन से शैलेंद्र भैया की शादी के बारे में कहा तो अखिल ने आराम से मेरी बातें सुनीं फिर मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, वाह, मेरे साले की शादी है, तब तो हमें जरूर चलना चाहिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘अखिल, कोई कार्ड या कोई संदेश नहीं आया है. यह तो मुझे अंजु ने फोन पर बताया है.’’

यह सुन अखिल कुछ सोच कर बोले, ‘‘तब तो हमारा न जाना ही ठीक है.’’

मैं अखिल के मुंह से यह सुन कर उदास हो गई और पूरी रात गुमसुम सी रही. अखिल कुछ कहते तो मैं केवल हूंहां में जवाब दे देती.

अगले दिन अखिल के आफिस जाने के बाद मेरा किसी काम में मन नहीं लगा और मैं घुटघुट कर रोए जा रही थी. बाहर से घंटी की आवाज सुन कर मैं दौड़ती हुई फाटक तक जाती कि शायद पोस्टमैन आया हो और शैलेंद्र भैया की शादी का कार्ड आया हो. फोन की घंटी बजने पर मैं सोचती, शायद ताऊजी या पापा का हो पर ऐसा कुछ नहीं था. मैं 3-4 दिन तक ऐसे ही रही थी. अखिल मेरा यह हाल रोज देखते और शायद परेशान होते.

एक रात अखिल मेरी उदासी से परेशान हो कर बोले, ‘‘बीना, क्या तुम शैलेंद्र भैया की शादी में शरीक होना चाहती हो?’’

मैं तो जैसे यह सुनने को तरस रही थी. बोली, ‘‘हां, अखिल, मैं अपने शैलेंद्र भैया को दूल्हा बने देखना चाहती हूं. मेरी यह दिली इच्छा थी कि मैं अपने भाई की शादी में खूब मौजमस्ती करूं. प्लीज, अखिल, शादी में चलो न. मैं एक बार भैया को दूल्हे के रूप में देखना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, फिर हम तुम्हारे शैलेंद्र भैया की शादी में जरूर शरीक होंगे,’’ अखिल बोले, ‘‘मैं तुम्हारी यह ख्वाहिश जरूर पूरी करूंगा. लेकिन बीना, मेरी एक शर्त है.’’

‘‘शैलेंद्र भैया की शादी में जाने के लिए मुझे हर शर्त मंजूर है,’’ मैं खुशी से पागल होते हुए बोली.

‘‘बीना, हम तुम्हारे घर पर नहीं बल्कि वहां किसी होटल में रुकेंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है.’’

24 जून को मैं व अखिल जयपुर के लिए रवाना हो गए. मैं पूरे रास्ते सपने संजोती रही कि मैं वहां यह करूंगी, वह करूंगी. हमें देख सब खुश होंगे. खुशी के मारे मुझे पता ही नहीं चला कि रास्ता कैसे कटा.

जयपुर पहुंचते ही होटल के कमरे में सामान रखने के बाद मैं फटाफट तैयार होने लगी. अखिल मुझे यों उतावले हो कर तैयार होते पहली बार देख रहे थे. उन की आंखों में उस दिन पहली बार मैं ने दर्द देखा था. मैं इतनी जल्दी तैयार हो गई तो अखिल बोले, ‘‘हमेशा डेढ़ घंटे में तैयार होने वाली तुम आज पहली बार 10 मिनट में तैयार हुई हो, वाकई घर वालों से मिलने के लिए कितनी बेकरार हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘अब ज्यादा बातें मत करो, प्लीज, जल्दी टैक्सी ले आओ.’’

अखिल टैक्सी ले आए. मैं पूरे रास्ते घबराती रही कि पता नहीं वहां क्या होगा. मेरा दिल आने वाले हर पल के लिए घबरा रहा था.

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हम घर पहुंचे तो हमें आया देख कर सब आश्चर्यचकित हो गए. शायद किसी को हमारे आने का गुमान नहीं था. सब हमें किसी अजनबी की तरह देख रहे थे. मैं 2 साल बाद अपने घर आई थी, पर वहां मुझे कुछ भी बदलाव नजर नहीं आया. सबकुछ वैसा ही था जैसा मैं छोड़ कर गई थी. बस, बदले नजर आ रहे थे तो अपने लोग जो मुझे एक अजनबी की तरह देख रहे थे. हां, मेरे छोटे भाईबहन मुझे व अखिल को घेर कर खड़े थे. कोई कह रहा था, ‘‘दीदी, आप कहां चली गई थीं? आप व जीजाजी अब कहीं मत जाना.’’

मैं बच्चों से बातें करने में व्यस्त हो गई. अखिल मेरी तरफ देख चुपचाप एक कुरसी पर जा कर बैठ गए. मैं ने देखा वह डबडबाई आंखों से मुझे देखे जा रहे थे.

मैं ने बूआजी के लड़के राकेश को चुपचाप शैलेंद्र भैया को बुलाने भेजा. शैलेंद्र भैया 15-20 मिनट तक नहीं आए तो मैं ने सोचा शायद वह हम से मिलना नहीं चाहते हैं. मैं अपने को कोस रही थी कि क्यों मैं ने यहां आने की जिद की. मैं फालतू ही यहां अपनी व अखिल की बेइज्जती कराने आ गई. मैं तो कितना चाव ले कर यहां आई थी पर इन लोगों को हमारे आने की जरा भी खुशी नहीं है. मैं समझ गई कि यहां कोई हमारी इज्जत नहीं करेगा. मैं ने वहां से वापस जाने की सोची.

मैं हारी हुई लुटेपिटे कदमों से अखिल के पास जा ही रही थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘बीनू.’’

मैं ने पलट कर देखा तो राकेश के साथ शैलेंद्र भैया खड़े थे. मैं भैया के पांव छूने झुकी तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया. मैं रोने लगी. भैया भी रोने लगे और बोले, ‘‘कैसी है री, तू? मुझे अभीअभी पता चला कि तू आ चुकी है. मैं सब की नजर बचा कर दौड़ादौड़ा तेरे पास चला आया. अच्छा हुआ, अंजु ने तुझे सही समय पर सूचित कर दिया, नहीं तो मैं सोच रहा था कि पता नहीं अंजु तुझे कहेगी भी या नहीं.’’

मैं बोली, ‘‘तो क्या आप ने अंजु को कहा था मुझे कहने के लिए?’’

भैया बोले, ‘‘हां…तू क्या सोचती है, तेरा भाई इतना निष्ठुर है कि अपनी प्यारी बहन को भूल जाए और अकेला जा कर शादी कर आए. अंजु को मैं ने ही कहा था कि वह तुझे जरूरजरूर किसी भी हालत में आने को कहे.’’

मैं बोली, ‘‘पर मुझे अंजु ने यह तो नहीं कहा था कि उसे आप ने बोला है मुझे आने के लिए.’’

भैया बोले, ‘‘उसे मैं ने ही मना किया था कि मेरा नाम नहीं ले क्योंकि मैं तुझे कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. तेरे आने से मुझे तसल्ली है. तू मुझ से एक वादा कर, अब तुझे कोई कुछ भी कहे तू अपने भाई को छोड़ कर नहीं जाएगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है भैया, अब तो आप की खातिर सब सह लूंगी.’’

भैया बोले, ‘‘अखिल कहां हैं…मुझे उन से मिला तो सही.’’

भैया को मैं ने अखिल से मिलवाया तो भैया हाथ जोड़ कर अखिल से बोले, ‘‘अखिल, आप ने अच्छा किया जो मेरी बहन को आज के दिन ले आए. मैं आप का आभारी हूं. आप को शायद मैं अच्छी तरह अटेंड न कर पाऊं पर प्लीज, आप कहीं मत जाना, चाहे परिवार का कोई कुछ भी कहे.’’

अखिल बोले, ‘‘भाई साहब, आज तो हम आए ही आप की खातिर हैं, जैसा आप कहेंगे वैसा ही करेंगे.’’

भैया बोले, ‘‘अखिल, मैं अभी आता हूं. आप लोग यहीं रुकें.’’

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फिर मैं व अखिल एकांत में कुरसी पर बैठ गए. मैं अखिल को अपने घर के बारे में, अपनी बचपन में की गई शरारतों के बारे में बताने लगी.

हमारे यहां रस्म है कि दोपहर में दूल्हे की एक आरती उस की बड़ी बहन करती है. वह रस्म जब होने जा रही थी तो मैं व अखिल चुपचाप कुरसी पर बैठे उसे देख रहे थे. मेरे पापा ने उस रस्म के लिए मेरी छोटी बहन शालिनी को आवाज लगाई तो शैलेंद्र भैया बोले, ‘‘पापा, बीना के यहां होते शालिनी कैसे आरती करेगी? क्या कभी शादीशुदा बहन के होते छोटी बहन आरती करती है? आरती तो बीना ही करेगी,’’ ऐसा कह कर भैया ने मुझे आवाज दी, ‘‘बीनू, यहां आओ, तुम्हें कसम है.’’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

संबंधों की बैसाखी बनी बंदूक : भाग 2

संदीप कौशिक रेस्तरां चलाता था. उस के परिवार में पत्नी प्रीति कौशिक के अलावा एक बेटी थी, जो लगभग प्रणव जैन की उम्र की ही थी.

2014 में जब संदीप की बेटी और रिनी जैन का बेटा गाजियाबाद के राजेंद्रनगर स्थित डीएलएफ स्कूल में एक साथ पढते थे, तभी रिनी जैन और संदीप की एकदूसरे से जानपहचान हुई थी. दोनों ही अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते थे. बाद में वे टीचर पेरैंट्स मीटिंग में भी मिलने लगे.

रिनी ने संदीप में ढूंढा पति का प्यार

कुछ समय बाद दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. पति से तलाक के बाद अकेले रह गई रिनी जैन को किसी ऐसे मर्द की जरूरत थी, जो उस के तन की प्यास बुझाने के साथ उस की भावनाओं को भी समझता हो. संदीप में उसे वे सारे गुण दिखे. फलस्वरूप दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए. जल्द ही दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी शुरू हो गया. हालांकि संदीप ने अपनी पत्नी से रिनी जैन से अपने असली रिश्ते की बात छिपा ली थी.

रिनी जैन संदीप को बेपनाह प्यार करती थी. संदीप भी उस के हर दुखदर्द में बढ़चढ़ कर उस का साथ देता था. देखतेदेखते कई साल गुजर गए. दोनों के बच्चे भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे.

संदीप की बेटी और रिनी का बेटा प्रणव डीएलएफ स्कूल में ही कक्षा 12 में साथ पढ़ रहे थे. 2 साल पहले रिनी जैन ने भी संदीप जैन की ही गुलमोहर ग्रीन सोसायटी में फ्लैट ले लिया और वहां आ कर रहने लगी. इस दौरान दोनों के संबंध और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो गए.

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इधर रिनी जैन ने एक साल पहले संदीप के राजेंद्रनगर स्थित रेस्तरां अमिगो में कुछ पैसा भी इनवैस्ट किया था. एक तरह से वह रेस्तरां में उस क ी साइलेंट पार्टनर बन गई थी.

लेकिन एकदूसरे के साथ घूमनेफिरने और गाढ़ी दोस्ती के कारण अब लोग दोनों के संबंधों पर अंगुलियां उठाने लगे थे. रिनी जैन की कई महिला दोस्त तो उसे सलाह देने लगीं कि वह संदीप की इतनी मदद करती है, तो उस से शादी क्यों नहीं कर लेती. जब कई लोगों ने रिनी को ऐसी सलाह दी तो करीब 10 महीना पहले रिनी जैन ने संदीप पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह उस के साथ शादी कर लें.

शुरू में तो संदीप रिनी की बातों को हंसी में कही गई बात मान कर टालता रहा. लेकिन कुछ दिनों बाद जब उस ने ज्यादा दबाव बनाना शुरू किया तो संदीप को उस से कहना पड़ा, ‘‘यार, जब हम दोनों रिलेशनशिप में आए थे तो दोनों के बीच ऐसा कुछ तय नहीं हुआ था कि शादी करेंगे.’’

‘‘हां, तय नहीं हुआ था. लेकिन अब मैं कह रही हूं कि तुम्हें  मुझ से शादी करनी पडे़गी.’’ रिनी ने धमकी भरे लहजे में कहा.

‘‘चलो तुम्हारी बात मान भी लूं तो अपने परिवार का क्या करूंगा. मेरी पत्नी तो मुझे जेल भिजवा देगी.’’ संदीप ने रिनी को अपनी मजबूरी समझाते हुए कहा.

‘‘अगर तुम उसे नहीं मना सकते तो उस की हत्या कर दो, लेकिन तुम्हें हर हाल में मुझ से शादी करनी पड़ेगी.’’

उस दिन रिनी ने संदीप को अंतिम चेतावनी देने के साथ जब संदीप को उस की पत्नी की हत्या करने का सुझाव दिया तो वह कांप उठा.

संदीप को लगा कि रिनी बहुत जहरीली औरत है. आखिर 2 महीने पहले संदीप  कौशिक ने अपनी पत्नी प्रीति त्यागी को रिनी जैन के साथ अपने रिलेशन की बात बता दी और यह भी बता दिया कि रिनी जैन उस पर शादी का दबाव बना रही है. वह कह रही है कि अगर तुम इस के लिए तैयार नहीं हो तो मैं तुम्हारी हत्या कर दूं.

पति के मुंह से उस के अवैध संबधों की बात सुन कर प्रीति को गुस्सा भी आया और संदीप से जम कर झगड़ा भी हुआ. लेकिन जब प्रीति को इस बात का अहसास हुआ कि संदीप उस से इतना प्यार करता है कि उस की हत्या की बात आने पर उस ने रिनी से अपने संबधों तक की बात उसे बता दी.

इस के बाद संदीप और प्रीति योजना बनाने लगे कि उन्हें रिनी जैन से किस तरह निबटना है. दोनों ने रिनी पर यह जाहिर नहीं होने दिया कि उन्होंने एकदूसरे को सब कुछ बता दिया है.

लेकिन कुछ समय पहले से रिनी ने संदीप पर कुछ ज्यादा ही दबाव बनाना शुरू कर दिया. लिहाजा संदीप को कहना पड़ा कि वह अपने ही हाथों से अपनी पत्नी की हत्या नहीं कर सकता. अगर वह ऐसा करेगा तो वह पुलिस की पकड़ में आ जाएगा.

लेकिन रिनी पर तो किसी भी तरह संदीप को पाने का जुनून सवार था. लिहाजा उस ने संदीप को धमकी दी कि वह 17 मार्च से पहले अपनी पत्नी को मार दे, नहीं तो वह 17 मार्च को संदीप के घर पहुंच कर खुद उस की हत्या कर देगी.

उस ने संदीप से कहा कि वह उस दिन अपने घर के सारे सीसीटीवी कैमरे जरूर बंद कर दे ताकि उस के घर में जाने का कोई सबूत रिकौर्ड में ना आए. रिनी का इरादा था कि प्रीति की हत्या के कुछ दिन बाद दोनों शादी कर लेंगे.

रिनी की धमकी भारी पड़ी

रिनी जैन की ये धमकी सुन कर संदीप बुरी तरह डर गया और उस ने प्रीति को यह बात भी बता दी. दोनों ने योजना बनाई कि अगर रिनी की इस धमकी से बचना है तो उसे रास्ते से हटाना होगा. बस संदीप ने रिनी की हत्या की साजिश का तानाबाना बुन लिया.

संदीप ने कुछ दिन पहले से ही रिनी के दिलोदिमाग में यह बात बैठा दी थी कि वह 17 तारीख तक अपनी पत्नी प्रीति की हत्या कर देगा. लेकिन इस से पहले संदीप ने रिनी को रेस्टोटरेंट का काम बढ़ाने के लिए 3 लाख रुपए देने के लिए मना लिया. रिनी ने उस से कहा कि वह 11 मार्च को रकम का इंतजाम कर देगी.

रिनी जैन के पास इतनी बड़ी रकम नहीं थी, उस ने अपने एक दोस्त से 3 लाख रुपए उधार ले लिए. रकम का इंतजाम होने के बाद उस ने 11 मार्च की शाम को 5 बजे संदीप को फोन किया कि पैसे का इंतजाम हो गया है, वह रकम देने के लिए कहां मिले.

संदीप ने प्रीति को मिलने के लिए रेस्टोरेंट की जगह राजेंद्रनगर में एक क्लब के पास बुलाया. रिनी जब अपनी कार से वहां पहुंची तो संदीप पहले से उस का इंतजार कर रहा था. संदीप ने रिनी से घूमने चलने के लिए कहा. इस के बाद दोनों रिनी की कार से ही घूमते रहे.

लेकिन इस से पहले संदीप ने साजिश के तहत अपनी पत्नी प्रीति को अपना मोबाइल दे कर दिल्ली भेज दिया, ताकि उस की लोकेशन वहां की मिले. कुछ देर तक दोनों कार में ही ड्रिंक करते रहे.

रात करीब साढे़ 9 बजे संदीप ने रिनी से गाड़ी में ही सैक्स करने की फरमाइश की तो रिनी ने कार को किसी सुनसान इलाके में ले चलने को कहा. जिस के बाद संदीप रिनी की कार को ड्राइव करते हुए भट्ठा नंबर 5 पर सुनसान जगह ले आया.

वहां पूरा सन्नाटा देख कर संदीप ने बहाने से उसे कार से नीचे उतारा. इसी दौरान पीछे से छोटी रशियन पिस्टल से उस के सिर में 2 गोलियां मार दीं. इस के बाद संदीप ने रिनी  का मोबाइल बंद कर दिया और वहां से निकल गया.

संदीप ने कार के पेपर हिंडन पुल के पास नदी में फेंक दिए और रिनी की कार, हत्या में प्रयुक्त पिस्टल व रकम के साथ गुलमोहर गार्डन में अपने एक परिचित के पास छोड़ दिया. बाद में वह कैब से घर आ गया. अगले दिन रिनी के बेटे के साथ हमदर्दी जताते हुए वह साहिबाबाद थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने पहुंच गया.

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खुल गया पूरा राज

दरअसल, पुलिस को संदीप कौशिक पर शक इसलिए हुआ क्योंकि जब रिनी जैन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली गई तो दोनों के बीच हर रोज कई बार लंबीलंबी बातचीत के रिकौर्ड मिले. इन काल रिकौर्ड से साफ हो गया कि दोनों के बीच सिर्फ फैमिली फ्रैंड वाले रिश्ते नहीं हैं.

संदीप पर शक का एक कारण यह भी था कि उस ने पुलिस को यह बात नहीं बताई थी कि वारदात वाले दिन सुबह से ले कर शाम 5 बजे तक उस की रिनी जैन से छह बार बात हुई थी. इस के अलावा पुलिस को उन के बीच वाट्सऐप चैट के भी सबूत मिले.

हालांकि पुलिस की सामान्य पूछताछ में संदीप ने यही बताया था कि वारदात वाली रात को साढे़ 10 बजे तक वह अपने रेस्तरां पर था. लेकिन जब उस के मोबाइल की लोकेशन निकाली गई तो 6 बजे के बाद उस के मोबाइल की लोकेशन दिल्ली के कनाट प्लेस में मिली. बस इसी से पुलिस को उस पर शक हो गया.

इस के अलावा पुलिस ने शाम को 7 बजे से उस पूरी रात में गुलमोहर ग्रीन सोसाइटी के साथ आसपास की सोसाइटी के करीब 100 से 200 सीसीटीवी की जांच की थी.

इन्हीं कैमरों की फुटेज में संदीप गुलमोहर गार्डन अपार्टमेंट में रिनी जैन की कार को पार्किंग में ले जाते हुए और उसे पार्क करते दिखा था.

इस के बाद पुलिस ने संदीप कौशिक के मोबाइल को निगरानी में ले लिया और उस की हर गतिविधि को वाच किया जाने लगा. बस संदीप पर शक के पुख्ता होते ही पुलिस ने उसे पकड़ने का जाल बिछाया और उसे तब गिरफ्तार कर लिया जब वह अपनी पत्नी के साथ कार को ठिकाने लगाने के लिए ले जा रहा था.

विस्तृत पूछताछ के बाद संदीप ने अपने घर में रखे 3 लाख रुपए भी बरामद करवा दिए जो उस ने हत्या के बाद रिनी जैन से लूटे थे. पुलिस ने हत्या की साजिश में शामिल होने के आरोप में संदीप की पत्नी  प्रीति त्यागी को भी संदीप के साथ सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में डासना जेल भेज दिया गया.

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एसएसपी गाजियाबाद ने केवल 72 घंटे में ही ब्लाइंड मर्डर केस को सुलझाने वाली साहिबाबाद पुलिस को 15 हजार रुपए का पुरस्कार दिया है.

– कथा पुलिस की जांच व आरोपियों के बयान पर आधारित है

संबंधों की बैसाखी बनी बंदूक

ग्रहण हट गया: भाग 2

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लेखक- अभिजीत माथुर

यह सुन कर मेरी एकदम रुलाई फूट गई. मुझे यों अपमानित होते देख अखिल मेरे पास आए और बोले, ‘‘चलो, बीना, चलो यहां से. मैं तुम्हारी और बेइज्जती होते नहीं देख सकता.’’

यह सुन कर पापा बोले, ‘‘हां, हां…चले जाओ यहां से. वैसे भी यहां तुम्हें बुलाया किस ने है?’’

अखिल बोले, ‘‘आप ने हमें नहीं बुलाया लेकिन हम यहां इसलिए आए हैं क्योंकि बीना अपने भाई को दूल्हा बने देखना चाहती थी और मैं यहां इस की वह इच्छा पूरी करने आया था, पर मुझे क्या पता था कि यहां इस की इतनी बेइज्जती होगी.

‘‘अरे, आप को बेइज्जती करनी थी तो मेरी की होती. गुस्सा निकालना था तो मुझ पर निकाला होता, दोषी तो मैं हूं. इस मासूम का क्या कुसूर है? आप लोगों के लिए पराया तो मैं हूं, यह तो आप लोगों की अपनी है. आप के घर की बेटी है, आप का खून है. क्या खून का रिश्ता इतनी जल्दी मिट जाता है कि अपनी जाई बेटी पराई हो जाती है?

‘‘मैं इस के लिए पराया हो कर भी इसे अपना सकता हूं और आप लोग इस के अपने हो कर भी इसे दुत्कार रहे हैं. मैं पराया हो कर भी इस की खुशी, इस की इच्छा की खातिर अपनी बेइज्जती कराने यहां आ सकता हूं और आप लोग इस के अपने हो कर भी इस की बेइज्जती कर रहे हैं. इस की खुशी, इस की इच्छा की खातिर थोड़ा सा समझौता नहीं कर सकते. यह बेचारी तो कितने सपने संजो कर यहां आई है. कितने अरमान होंगे इस के दिल में अपने भाई की शादी के, पर आप लोगों को इस से क्या? आप लोग तो अपनी झूठी इज्जत, मानमर्यादा के लिए उन सब का गला घोटना चाहते हैं.

‘‘मैं पराया हो कर भी इसे 2 साल में इतना प्यार दे सकता हूं और आप जिन्होंने इसे बचपन से अपने पास रखा उसे जरा सा प्यार नहीं दे सकते. इस का गुनाह क्या है? यही न कि इस ने आप लोगों की इच्छा से, आप की जाति के लड़के से शादी न कर मुझ जैसे दूसरी जाति के लड़के से शादी की. इस का यह गुनाह इतना बड़ा तो नहीं है कि इसे हर पल, हर घड़ी बेइज्जत किया जाए. इस ने जो कुछ अपनी खुशी, अपनी जिंदगी के लिए किया वह इतना बुरा तो नहीं है कि जिस के लिए बेइज्जत किया जाए और रिश्ता तोड़ दिया जाए.’’

मैं आज अखिल को ऐसे बेबाक बोलते पहली बार देख रही थी. मैं अखिल को अपलक देखे जा रही थी.

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अखिल फिर बोले, ‘‘आप शायद नहीं जानते कि यह आप लोगों को कितना प्यार करती है? आप लोग सोचते हैं कि इस ने आप की इच्छा के खिलाफ शादी की है तो यह आप लोगों की भूल है. यह आप लोगों को उतना नहीं, उस से भी कहीं ज्यादा प्यार करती है, जितना हमारी शादी से पहले करती थी.

‘‘यह पिछले 2 साल से मेरे साथ रह रही है. मैं इसे भरपूर प्यार देता हूं, कभी किसी बात की तकलीफ नहीं होने देता, फिर भी कभीकभी यह आप लोगों की याद में इतनी बेचैन हो जाती है कि रोने लग जाती है और खानापीना छोड़ कर खुद अपने को आप का गुनाहगार मानती है. कहने को यह आप लोगों से दूर है, पर इस का दिल, इस का मन तो आप लोगों के पास ही है.

‘‘मैं आप सभी से माफी चाहता हूं कि गुस्से व भावना में आ कर मैं आप लोगों को न जाने क्याक्या कह गया. पर मैं क्या करूं…मैं मजबूर था. मैं बीना की बेइज्जती होते नहीं देख सकता क्योंकि मैं बहुत प्यार करता हूं इसे, बहुत ज्यादा. अच्छा, हम चलते हैं…बिन बुलाए आए और आप की खुशियों में खलल डाला इस के लिए माफी चाहते हैं,’’ अखिल बोले और मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘चलो, बीना.’’

हम दोनों चलने के लिए मुड़े ही थे कि शैलेंद्र भैया, जो इतनी देर से चुपचाप अखिल को बोलते देखे जा रहे थे, बोले, ‘‘ठहरो,’’ फिर घर वालों की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘पापा, ताऊजी, मैं जानता हूं कि यह बीना का दोष है कि इस ने हमारी इच्छा के खिलाफ जा कर हमारी जाति से अलग जाति के लड़के से शादी की है, पर इस का दोष इतना बड़ा तो नहीं कि हम इसे मरा समझ लें. आखिर इस ने जो भी किया, अपनी खुशी, अपनी जिंदगी के लिए किया. इस ने अपने लिए जो लड़का पसंद किया है वैसा तो शायद आपहम भी नहीं ढूंढ़ सकते थे.

‘‘यह अपने घर वालों का…हम लोगों का प्यार पाने के लिए कितना तड़प रही है. यह हमारा प्यार पाने के लिए पति के साथ अपने मानसम्मान की परवा न करते हुए यहां आई है ताकि यह अपने भाई को दूल्हा बना देख सके. यह हमारा प्यार पाने के लिए भटक रही है और हम इसे गले लगा कर प्यार देने के बजाय दुत्कार रहे हैं, बेइज्जत कर रहे हैं. क्या हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम इसे गले लगा कर अपने प्यार के आंचल में भींच लें. जब अखिल पराया हो कर इसे प्यार से रख सकता है, तो हम लोग इतने गएगुजरे तो नहीं हैं कि इस के अपने हो कर भी इसे प्यार नहीं दे सकते.

‘‘पापा, अगर इस ने नादानी में कोई भूल की है तो हम तो समझदार हैं, हमें इसे माफ कर के गले लगा लेना चाहिए. मैं ने तो इसे कभी का माफ कर दिया था. मैं शायद आप लोगों को यह सब कभी नहीं कह पाता, पर आज जब अखिल को बोलते देखा तो मैं ने सोचा कि जब यह आदमी अपनी पत्नी, जो मात्र 2 बरस से इस के साथ रह रही है, उस की बेइज्जती सहन नहीं कर पाया तो मैं अपनी बहन की बेइज्जती कैसे सहन कर रहा हूं, जो मेरे साथ 20 साल रही है. मैं चाहता हूं कि आप लोग भी बीना को माफ कर दें व इसे गले लगा लें.’’

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मैं ने देखा भैया की आंखें भर आई हैं. फिर मैं ने अपनी ताईताऊजी, मम्मीपापा की तरफ देखा, सभी के चेहरे बुझे हुए थे व सभी की आंखों में आंसू थे. शायद उन पर अखिल की बातों का असर हो गया था. ताईजी व मम्मी, ताऊजी व पापा की तरफ याचिकापूर्ण दृष्टि से देख रही थीं.

अचानक ताऊजी मेरे पास आए और हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘बेटी, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हें समझने में भूल की है. मैं तुम्हारी भावनाओं को नहीं समझ सका और अपनी ही शान में ऐंठा रहा, पर आज अखिल व शैलेंद्र की बातों ने मेरी आंखें खोल दी हैं. इन की बातों ने मेरी झूठी शान की अकड़ को मिटा दिया है. हमारा जीवन तुम्हारा गुनाहगार है, हमें माफ कर दो.’’

मैं ताऊजी को यों रोते देख हतप्रभ सी हो गई और मेरे मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे. अखिल ताऊजी और पापा के सामने आए और बोले, ‘‘ताऊजी व पापाजी, आप कैसी बातें करते हैं? बड़े क्या कभी बच्चों से माफी मांगते हैं. माफी तो हमें मांगनी चाहिए आप लोगों से कि हम ने आप को कष्ट दिया. गलती तो हम से हुई है कि हम ने आप लोगों की इच्छा के विरुद्ध कार्य किया. आप तो हम से बड़े हैं, आप का हाथ तो हमें आशीर्वाद देने के लिए है, हमारे सामने हाथ जोड़ने के लिए  नहीं.’’

ताऊजी बोले, ‘‘नहीं बेटे, मैं ने तुम्हें समझने में बड़ी भूल की है. शैलेंद्र ने सही कहा कि बीनू ने तुम्हारे रूप में जो पति पसंद किया है वैसा तो शायद हम सब मिल कर भी नहीं ढूंढ़ पाते. तुम हमारी बेटी की खुशी, उस की ख्वाहिश के लिए अपने मानसम्मान की परवा किए बगैर यहां आ गए और हम ने तुम दोनों का आदरसत्कार करने के बजाय बेइज्जत किया. तुम्हारी भावनाओं को, तुम्हारे प्रेम को नहीं समझा बल्कि अपनी रौ में बह कर तुम्हें तवज्जुह नहीं दी. हमारा परिवार वाकई तुम दोनों का गुनाहगार है. हमें माफ कर दो. मैं व हरि दोनों अपने घर वालों की तरफ से तुम दोनों से क्षमा चाहते हैं.’’

तभी पापा बोले, ‘‘हां, अखिल बेटे, मेरी गलती को माफ कर दो और यहीं रुक जाओ. यह हमारे घरपरिवार की तरफ से प्रार्थना है. मैं तुम से हाथ जोड़ कर विनती करता हूं.’’

फिर ताऊजी, पापा, ताईजी व मम्मी सभी मेरे व अखिल के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो कर क्षमा मांगते हुए हमें रोकने लगे. यह देख अखिल बोले, ‘‘अरे, यह आप सब लोग क्या कर रहे हैं? प्लीज, आप लोग अपने बच्चों के सामने हाथ जोड़ कर खड़े न हों. आप लोग हमारे बुजुर्ग हैं. आप लोगों के हाथ तो आशीर्वाद देने के लिए हैं. मैं और बीना कहीं नहीं जाएंगे बल्कि पूरी शादी में खूब मजे करने के लिए यहीं रुकेंगे. यह तो आप लोगों का बड़प्पन है कि आप हम से बिना किसी गलती के माफी मांग रहे हैं.’’

ताऊजी यह सुन कर मुझ से बोले, ‘‘बीनू, वाकई तू ने एक हीरा पसंद किया है. हम ने इसे पहचानने में भूल कर दी थी,’’ फिर वह मेरे पास आ कर बोले, ‘‘क्यों बीना, तू ने मुझे माफ कर दिया या कोई कसर रह गई है. अगर रह गई है तो बेटी, पूरी कर ले. मैं तेरे सामने ही खड़ा हूं.’’

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मैं ने हंस कर कहा, ‘‘क्या ताऊजी आप भी,’’ फिर मैं खुशी से ताऊजी के गले लग गई.

तभी पापा की आवाज आई, ‘‘अरे, बीना, जल्दी इधर आ और शैलेंद्र की आरती कर. देख, देर हो रही है. बाकी रस्में भी करनी हैं. फिर बरात ले कर तेरी भाभी को भी लेने जाना है.’’

मैं पापा की आवाज सुन कर खुशी से कूदती हुई शैलेंद्र भैया की आरती करने गई. मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे ग्रहण का हिस्सा जो मेरी जिंदगी पर लग गया.

सुसाइड: भाग 4

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लेखक- सुकेश कुमार श्रीवास्तव

‘‘जी…?’’ रजनी ने हैरानी से कहा. वह कुछ समझ न पाई.

‘‘शरद की हालत इतनी खराब नहीं है. उन की हालत ठीक भी नहीं है. समझ लीजिए कि कैंसर ने अभी दस्तक दी है. अंदर नहीं आया है.’’

‘‘यानी, उन्हें कैंसर नहीं है?’’

‘‘कहना मुश्किल है, पर दवाओं ने असर किया है. मानिए, 5 फीसदी सुधार हुआ है.’’

‘‘तो अभी इन का टैस्ट नहीं होना है?’’

‘‘टैस्टवैस्ट नहीं करना है. वह मैं ने इन्हें डराने के लिए कहा था. ये डर भी गए हैं, अच्छा हुआ. इन्हें पान मसाला या गुटखा खाने से डर लगने लगा है. इस डर ने ही इन्हें गुटखे से 5 दिन दूर रखा है. अब मैं ने इन्हें 5 दिन की दवा और दी है. अगर ये 10 दिन तक गुटखे से दूर रहे, तो गुटखा इन से छूट सकता है.

‘‘यह स्टडी है कि टोबैको ऐडिक्ट अगर 10 दिन तक टोबैको से दूर रहे, और उस की विल पावर स्ट्रौंग हो तो टोबैको की आदत छूट सकती है.’’

‘‘पर, इन का मुंह तो पूरा नहीं खुल पा रहा है.’’

‘‘देखिए मिसेज शरद, हर गंभीर बीमारी अपने आने का संकेत देती है और संभलने का मौका भी देती है. माउथ कैंसर का भी यही हाल है. पहली दस्तक मुंह का न खुलना या कम खुलना है. उन की यह हालत 2-3 महीने से होगी. यह फर्स्ट स्टेज है.

‘‘फिर आता है, मुंह का छाला. एक या 2 छाले. ये छाले होने के 5 या 6 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाते हैं. इन में कोई दर्द वगैरह भी नहीं होता. 10-15 दिनों के बाद एकाध छाला और होता है और ठीक हो जाता है. इसे आप सैकंड स्टेज समझिए. यहां तक लोग इस की सीरियसनैस नहीं समझते.

फिर आती है, थर्ड स्टेज. एकसाथ कई छाले होते हैं. ये सूखते नहीं हैं. इन में घाव हो जाते हैं और अंदर ही इन में पस पड़ जाती है.

‘‘इस के बाद आती है, लास्ट स्टेज. जब छाले का घाव गाल के दूसरी तरफ यानी बाहरी तरफ आ आता है. यह स्टेज बहुत तेजी से आती है और घाव व कैंसर सेल की ग्रोथ गाल से गले तक हो जाती है. यह लाइलाज है.’’

‘‘यानी, ये सैकंड स्टेज पर पहुंच गए थे.’’

‘‘कह सकते हैं. सैकंड स्टेज की प्राइमरी स्टेज पर.’’

‘‘इस का इलाज क्या है?’’

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‘‘सैकंड स्टेज तक ही इलाज किया जाता है. थर्ड स्टेज आने पर आपरेशन कभीकभी कामयाब होता है. फोर्थ स्टेज लाइलाज है. इस का एक ही इलाज है. पहली स्टेज होते ही तंबाकू से परहेज, खासकर पान मसाला या गुटखा से. 1, 2 या 5 रुपए के गुटखे में क्वालिटी की उम्मीद आप कैसे कर सकते हैं. यह सामान्य सी बात लोग क्यों नहीं समझते. फिर इस के बनाने वाले इसी 1-2 रुपए से करोड़पति हो जाते हैं और सरकारें हजारों करोड़ टैक्स से भी कमा लेती हैं. 2 रुपए के पाउच की क्वालिटी शायद 20 पैसे की भी नहीं होती.’’

‘‘जब ऐसा है, तो सरकार इसे रोक क्यों नहीं देती?’’

‘‘छोडि़ए. यह बड़ी बहस की बात है.’’

‘‘तो ये बच सकते हैं?’’

‘‘शरद बाबू बच जाएंगे, बशर्ते ये तंबाकू से दूर रहें.

रजनी से रहा न गया. उस ने सिर पर आंचल रख लिया और उठ कर डाक्टर साहब के पैर छू लिए.

‘‘अरे… यह आप क्या कर रही हैं. उठिए.’’

‘‘आप… आप डाक्टर नहीं हैं…’’ रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘बड़ी हत्यारी चीज है यह गुटखा मिसेज शरद…’’ डाक्टर साहब गमगीन हो गए. ‘‘मैं ने अपना बेटा खोया है. मैं… मैं उसे बचा नहीं पाया. उस का चेहरा देखने लायक नहीं रहा था.

‘‘हां बेटी, मेरा बेटा भी पान मसाला खाता था. एक दिन एकएक डब्बा खा जाता था. यह चीज ही ऐसी है, जो गरीबअमीर, ऊंचानीचा कुछ नहीं देखती है. बस इसलिए मैं अपने को रोक नहीं पाता हूं. आउट औफ द वे जा कर भी कोशिश करता हूं कि इस से किसी को बचा सकूं.’’

रजनी कुछ कह न सकी. बस एकटक डाक्टर को देखती रही, जो अब एक गमगीन पिता लग रहे थे.

‘‘अब तुम जाओ और वैसा ही करो, जैसा मैं ने कहा है. याद रखना, शरदजी को ठीक करने में जितनी मेरी कोशिश है, उतनी ही जिम्मेदारी तुम्हारी भी है. जाओ और अपनी गृहस्थी, अपने परिवार को बचाओ.’’

रजनी बाहर आ गई. शरद बेचैन हो रहा था.

‘‘क्या कह रहे थे डाक्टर साहब?’’ बाहर आते ही उस ने पूछा.

‘‘चलो, घर चल कर बात करते हैं,’’ रजनी ने गमगीन लहजे में कहा. वे रिकशा से ही आए थे, रिकशा से ही वापसी हुई.

‘‘अब तो बताओ. क्या डाक्टर साहब ने बता दिया है कि मेरे पास कितने दिन बचे हैं?’’

‘‘तुम कैंसर की सैकंड स्टेज पर पहुंच गए हो…’’ रजनी ने साफसाफ कह दिया, ‘‘अब अगर तुम गुटखा खाओगे, तो लास्ट स्टेज पर पहुंचोगे. फिर कोई इलाज नहीं होगा.’’

‘‘अरे, गुटखे का तो अब नाम न लो. अब तो मैं गुटखे की तरफ देखूंगा भी नहीं. अभी कोई इलाज है क्या?’’

‘‘अभी डाक्टर साहब ने साफसाफ नहीं बताया है. 10 दिन बाद बताएंगे. तुम्हें पूरा आराम करना होगा. तुम्हें छुट्टी बढ़ानी होगी.’’

‘‘मैं कल ही एक महीने की छुट्टी बढ़ा दूंगा.’’

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शरद ने एक महीने की छुट्टी बढ़ा दी, पर उसे 2 महीने लग गए.

शरद के औफिस जौइन करने से 2 दिन पहले औफिस के सभी कुलीग उस से मिलने घर आए. सभी खुश थे. तभी रजनी ने प्रस्ताव रखा कि शरद के ठीक होने की खुशी में कल यानी रविवार को सभी सपरिवार रात के खाने पर उन के यहां आएं. सभी ने तालियां बजा कर सहमति दी.

‘‘पर, भाभीजी हमारी एक शर्त है,’’ नीरज ने कहा.

‘‘बताइए नीरजजी?’’ रजनी ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हमारी भी एक शर्त है…’’ नीरज ने नाटकीयता से कहा, ‘‘कि सभी अतिथितियों का स्वागत पान मसाले से किया जाए.’’

यह सुन कर वहां सन्नाटा पसर गया.

‘‘भाड़ में जाओ…’’ तभी शरद ने मुंह बना कर कहा, ‘‘मेरे सामने कोई पान मसाले से स्वागत तो क्या कोई पान मसाले का नाम भी न ले. पार्टीवार्टी भी जाए भाड़ में.’’

‘‘अरे… अरे… गलती हो गई भाभीजी. पान मसाले से नहीं, बल्कि हमारी शर्त है कि अतिथियों का स्वागत शरबत के गिलासों से किया जाए.’’

‘‘मंजूर है,’’ रजनी ने कहा तो सभी की हंसी गूंज उठी. शरद की भी, क्योंकि अब उस का मुंह पूरा खुल रहा था.

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सुसाइड: भाग 1

बड़ी जिम्मेदारियां थीं शरद के ऊपर. अभी उस की उम्र ही क्या थी. महज 35 साल. रजनी सिर्फ 31 साल की थी और सोनू तो अभी 3 साल का ही था. उस ने जेब में हाथ डाल कर गुटखे के दोनों पाउच को सामने ही रखे बड़े से डस्टबिन में फेंक दिया.

‘देखिए, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता…’ शरद को लगा, जैसे डाक्टर का कहा उस के जेहन में गूंज रहा हो, ‘अगर दवाओं से आराम हो गया तो ठीक है, नहीं तो कुछ कहा नहीं जा सकता. मुंह पूरा नहीं खुल पा रहा है. अगर आराम नहीं हुआ तो कुछ टैस्ट कराने पड़ेंगे. 5 दिन की दवा दे रहा हूं, उस के बाद दिखाइएगा.’

तब सोनू पैदा नहीं हुआ था. रजनी के मामा के लड़के की शादी थी. शरद की खुद की शादी को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था. शादी के बाद ससुराल में पहली शादी थी. उन्हें बड़े मन से बुलाया गया था.

रजनी के मामाजी का घर बिहार के एक कसबेनुमा शहर में था. रजनी के पिताजी, मां, भाई व बहन भी आ ही रहे थे. दफ्तर में छुट्टी की कोई समस्या नहीं थी, इसलिए शरद ने भी जाना तय कर लिया था. ट्रेन सीधे उस शहर को जाती थी. रात में चल कर सुबहसुबह वहां पहुंच जाती थी, पर ट्रेन लेट हो कर 10 बजे पहुंची.

स्टेशन से ही आवभगत शुरू हो गई. उन्हें 4 लोग लेने आए थे. उन्हीं में थे विनय भैया. थे तो वे शरद के साले, पर उम्र थी उन की 42 साल. खुद ही बताया था उन्होंने. वे रजनी के मामाजी के दूर के रिश्ते के भाई के लड़के थे.

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वे खुलते गेहुंए रंग के जरा नाटे, पर मजबूत बदन के थे. सिर के बाल घने व एकदम काले थे. उन की आंखें बड़ीबड़ी व गोल थीं. वे बड़े हंसमुख थे और मामाजी के करीबी थे.

‘आइए… आइए बाबू…’ उन्होंने शरद को अपनी कौली में भर लिया, ‘पहली बार आप हमारे यहां आ रहे हैं. स्वागत है. आप बिहार पहली बार आ रहे हैं या पहले भी आ चुके हैं?’

‘जी, मैं तो पहली बार ही आया हूं साहब,’ शरद ने भी गर्मजोशी से गले मिलते हुए अपना हाथ छुड़ाया.

‘अरे, हम साहब नहीं हैं जमाई बाबू…’ उन के मुंह में पान भरा था, ‘हम आप के साले हैं. नातेरिश्तेदारी में सब से बड़े साले. नाम है हमारा विनय बाबू. उमर है 42 साल. सहरसा में अध्यापक हैं, पर रहते यहीं हैं. कभीकभार वहां जाते हैं.’

‘आप अध्यापक हैं और स्कूल नहीं जाते?’ शरद ने हैरानी से कहा.

‘अरे, स्कूल नहीं कालेज जमाई बाबू…’ उन्होंने जोर से पान की पीक थूकी, ‘हां, नहीं जाते. ससुरे वेतन ही नहीं देते. चलिए, अब तो आप से खूब बातें होंगी. आइए, अब चलें.’

तब तक साथ आए लोगों ने प्रणाम कर शरद का सामान उठा लिया था. वे स्टेशन से बाहर की ओर चले.

‘आप किस विषय के अध्यापक हैं?’ शरद ने चलतेचलते पूछा.

‘हम अंगरेजी के अध्यापक हैं…’ उन्होंने गर्व से बताया, ‘हाईस्कूल की कक्षाएं लेता हूं जमाई बाबू.’

स्टेशन के बाहर आ कर सभी तांगे से घर पहुंचे. शरद का सभी रिश्तेदारों से परिचय हुआ.

तब शरद को पता चला कि विनय भैया नातेरिश्ते में होने वाले शादीब्याह के अभिन्न अंग हैं. वे हलवाई के पास बैठते थे. विनय भैया सुबह से शाम तक हलवाइयों के साथ लगे रहते थे.

दूसरे दिन विनय भैया आए.

‘आइए जमाई बाबू…’ विनय भैया बोले, ‘आप बोर हो गए होंगे. आइए, जरा आप को बाहर की हवा खिलाएं.’

सुबह का नाश्ता हो चुका था. शरद अपने कमरे में अकेला बैठा था. वह तुरंत उठ खड़ा हुआ. घर से बाहर निकलते ही विनय भैया ने नाली में पान थूका.

‘आप पान बहुत खाते हैं विनय भैया,’ शरद से रहा नहीं गया.

‘बस यही पान का तो सहारा है…’ उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘खाना चाहे एक बखत न मिले, पर पान जरूर मिलना चाहिए. आइए, पान खाते हैं.’

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वे उसे आगे मोड़ पर बनी पान की दुकान की ओर ले चले.

‘मगही पान लगाओ. चूना कम, भीगी सुपारी, इलायची और सादा पत्ती. ऊपर से तंबाकू,’ उन्होंने पान वाले से कहा.

‘आप कैसा पान खाएंगे जमाई बाबू?’ उन्होंने उस से पूछा.

‘मैं पान नहीं खाता,’ शरद बोला.

‘अरे, ऐसा कहीं होता है. पान खाने वाली चीज है, न खाने वाली नहीं जमाई बाबू.’

‘सच में मैं पान नहीं खाता, पर चलिए, मैं मीठा पान खा लूंगा.’

‘मीठा पान तो औरतें खाती हैं, बल्कि वे भी जर्दा ले लेती हैं.’

‘नहीं, मैं जर्दातंबाकू बिलकुल नहीं खाता.’

‘अच्छा भाई, जमाई बाबू के लिए जनाना पान लगाओ.’

पान वाले ने पान में मीठा डाल कर दिया.

वे वापस आ कर हलवाई के पास पड़ी कुरसियों पर बैठ गए और हलवाई से बातें करने लगे. आधा घंटा बीत गया.

तभी विनय भैया ने एक लड़के से कहा, ‘अबे चिथरू, जा के 2 बीड़ा पान लगवा लाओ. बोलना विनय बाबू मंगवाए हैं.’

वह लड़का दौड़ कर गया और पान लगवा लाया.

‘लीजिए जमाई बाबू, पान खाइए. अबे, जमाई बाबू वाला पान कौन सा है?’

‘आप पान खाइए…’ शरद ने कहा, ‘मेरी आदत नहीं है.’

‘चलो तंबाकू अलग से दिए हैं…’ विनय बाबू ने पान चैक किए, ‘लीजिए. यह तो सादा चूनाकत्था है. जरा सी सादा पत्ती डाल देते हैं.’

‘नहीं विनय भैया, मु झे बरदाश्त नहीं होगी.’

‘अरे, क्या कहते हैं जमाई बाबू? सादा पत्ती भी कोई तंबाकू होती है क्या. वैसे जर्दातंबाकू खाना तो मर्दानगी की निशानी है. सिगरेट आप पीते नहीं, दारू वगैरह को तो सुना है, आप हाथ भी नहीं लगाते. जर्दातंबाकू की मर्दानगी तो यहां बच्चों में भी होती है.’

तब तक विनय बाबू पान में एक चुटकी सादा पत्ती वाला तंबाकू डाल कर उस की तरफ बढ़ा चुके थे. शरद ने उन से पान ले कर मुंह में रख लिया. कुछ नहीं हुआ. मर्दानगी के पैमाने को उस ने पार कर लिया था.

शादी से लौट कर शरद ने पान खाना शुरू कर दिया. बहुत संभाल कर बहुत थोड़ी सी सादा पत्ती व तंबाकू लेने लगा. फिर तो वह कायदे से पान खाने लगा. कुछ नहीं हुआ. बस यह हुआ कि उस के खूबसूरत दांत बदसूरत हो गए.

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एक बार शरद को दफ्तर के काम से एक छोटी सी तहसील में जाना पड़ा. गाड़ी से उतर कर उस ने एक दुकान से पान खाया. पान एकदम रद्दी था. कत्था तो एकदम ही बेकार था. तुरंत मुंह कट गया.

‘बड़ा रद्दी पान लगाया है,’ शरद ने पान वाले से कहा.

‘यहां तो यही मिलता है बाबूजी.’

‘पूरा मुंह खराब कर दिया यार.’

‘यह लो बाबूजी, इस को दबा लो,’ उस ने एक पाउच बढ़ाया.

‘यह क्या है?’

‘यह गुटखा है. नया चला है. इस से मुंह कभी नहीं कटेगा. इस में सुपारी, कत्था, चूना, इलायची सब मिला है. पान से ज्यादा किक देता है बाबूजी.’

शरद ने गुटखे का पाउच फाड़ कर मुंह में डाल लिया.

अपने शहर में आ कर अपनी दुकान से शरद ने पान खाया. आज मजा नहीं आया. उस ने 4 गुटखे ले कर जेब में डाल लिए.

सोतेसोते तक में शरद चारों गुटखे खा गया. सुबह उठते ही ब्रश करते ही गुटखा ले आया. धीरेधीरे उस की पान खाने की आदत छूट गई. खड़े हो कर पान लगवाने की जगह गुटखा तुरंत मिल जाता था. रखने में भी आसानी थी. खाने में भी आसानी थी. परेशानी थोड़ी ही थी. मुंह का स्वाद खत्म हो गया. खाने में टेस्ट कम आता था.

रजनी परेशान हो गई. शरद की सारी कमीजों पर दाग पड़ गए, जो छूटते ही नहीं थे. सारी पैंटों की जेबों में भी दाग थे. उसे कब्ज रहने लगी. पहले उठते ही प्रैशर रहता था, जाना पड़ता था. अब उठ कर ब्रश कर के, चाय पी कर व फिर जब तक एक गुटखा न दबा ले, हाजत नहीं होती थी.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

सुसाइड: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- सुसाइड: भाग 1

एक गुटखा थूकने के तुरंत बाद फिर गुटखा खाने की तलब लगती थी. यही गुटखे की खासीयत है.

मुसीबत की शुरुआत मसूढ़ों के दर्द से हुई. पहले हलकाहलका दर्द था. खाना खाते समय मुंह चलाते समय दर्द बढ़ जाता था. फिर ब्रश करते समय मुंह खोलने में दर्द होने लगा.

शरद ने कुनकुने पानी में नमक डाल कर खूब कुल्ले किए, पर कोई आराम न हुआ. धीरेधीरे औफिस के लोगों को पता चला. उन्होंने उसे डाक्टर को दिखाने को कहा. पर उसे लगा शायद यह दांतों का साधारण दर्द है, ठीक हो जाएगा. यह गुटखे के चलते है, यह मानने को उस का मन तैयार नहीं हुआ. कितने लोग तो खाते हैं, किसी को कुछ नहीं होता. उस के महकमे के इंजीनियर साहब महेशजी तो गुटखे की पूरी लड़ी ले कर आते थे. उन का मुंह तो कभी खाली नहीं रहता था. उन की तो उम्र भी 50 के पार है. जब उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो उसे क्या होगा. वह खाता रहा.

फिर शरद के मुंह में दाहिनी तरफ गाल में मसूढ़े के बगल में एक छाला हुआ. छाले में दर्द बिलकुल नहीं था, पर खाने में नमकमिर्च का तीखापन बहुत लगता था. छाला बड़ा हो गया. बारबार उस पर जबान जाती थी. फिर छाला फूट गया. अब तो उसे खानेपीने में और भी परेशानी होने लगी.

वह महल्ले के होमियोपैथिक डाक्टर से दवा ले आया. वे पढ़ेलिखे डाक्टर नहीं थे. रिटायरमैंट के बाद वे दवा देते थे. उन्होंने दवा दे दी, पर आराम नहीं हुआ. आखिरकार रजनी के जोर देने, पर वह डाक्टर को दिखाने के लिए राजी हुआ.

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‘क्या मु झे सच में कैंसर हो गया है,’ शरद ने स्कूटर में किक लगाते हुए सोचा, ‘अब क्या होगा?’

शरद ने तय किया कि अभी वह रजनी को कुछ नहीं बताएगा. डाक्टर ने भी 5 दिन की दवा तो दी ही है. वह 5-6 दिनों की छुट्टी लेगा. रजनी से कह देगा कि डाक्टर ने आराम करने को कहा है. अभी से उसे बेकार ही परेशान करने से क्या फायदा. यही ठीक रहेगा.

घर पहुंच कर उस ने स्कूटर खड़ा किया और घंटी बजाई. दरवाजा रजनी ने ही खोला. रजनी को देखते ही वह अपने को रोक न सका और फफक कर रो पड़ा.

रजनी एकदम से घबरा गई और शरद को पकड़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘क्या हुआ…? क्या हो गया? सब ठीक तो है?’’

‘‘मु झे कैंसर हो गया है…’’ कह कर शरद जोर से रजनी से लिपट गया, ‘‘यह क्या हो गया रजनी. अब क्या होगा?’’

‘‘क्या… कैंसर… यह आप क्या कह रहे हैं. किस ने कहा?’’

‘‘डाक्टर ने कहा है,’’ शरद से बोलते नहीं बन रहा था.

रजनी एकदम घबरा गई, ‘‘आप जरा यहां बैठिए.’’

उस ने शरद को जबरदस्ती सोफे पर बिठा दिया, ‘‘और अब मु झे ठीक से बताइए कि डाक्टर ने क्या कहा है.’’

‘‘वही,’’ अब शरद फिर रो पड़ा, ‘‘मुंह में इंफैक्शन हो चुका है. 5 दिन के लिए दवा दी है. कहा है, अगर आराम नहीं हुआ तो 5 दिन बाद टैस्ट करना पड़ेगा.’’

‘‘क्या डाक्टर ने कहा है कि आप को कैंसर है? साफसाफ बताइए.’’

‘‘अभी नहीं कहा है. टैस्ट वगैरह हो जाने के बाद कहेगा. तब तो आपरेशन भी होगा.’’

‘‘जबरदस्ती. आप जबरदस्ती सोचे जा रहे हैं. हो सकता है कि 5 दिन में आराम हो जाए और टैस्ट भी न कराना पड़े.’’

‘‘नहीं, मैं जानता हूं. यह गुटखा के चलते है. कैंसर ही होता है.’’

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‘‘गुटखा तो आप छोड़ेंगे नहीं,’’ रजनी ने दुख से कहा.

‘‘छोड़ूंगा. छोड़ दिया है. पान भी नहीं खाऊंगा. लोग कहते हैं कि यह आदत एकदम छोड़ने से ही छूटती है.’’

‘‘खाइए मेरी कसम.’’

‘‘तुम्हारी और सोनू की कसम तो मैं पहले ही कई बार खा चुका हूं, पर फिर खाता हूं कि नहीं खाऊंगा. पर अब क्या हो सकता है. नुकसान तो हो ही गया है रजनी. अब तुम्हारा क्या होगा? सोनू का क्या होगा?’’ शरद फिर मुंह छिपा कर रो पड़ा.

‘‘रोइए नहीं और घबराइए भी नहीं. हम लड़ेंगे. अभी तो आप को कन्फर्म भी नहीं है. कानपुर वाले चाचाजी का तो गाल और गले का आपरेशन भी हुआ था. देखिए, वे ठीकठाक हैं. आप को कुछ नहीं होगा. हम लड़ेंगे और जीतेंगे. आप को कुछ नहीं होगा,’’ रजनी की आवाज दृढ़ थी.

रजनी शरद को पकड़ कर बैडरूम में लाई. वह दिनभर घर में पड़ा रहा. नींद तो नहीं आई, पर टैलीविजन देखता रहा और सोचता रहा. कहते हैं, कैंसर का पता चलने के बाद आदमी ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक जिंदा रह सकता है. उस की सर्विस अभी 10 साल की हुई है. पीएफ में कोई ज्यादा पैसा जमा नहीं होगा. ग्रैच्यूटी तो खैर मिल ही जाएगी. आवास विकास का मकान कैंसिल कराना पड़ेगा. रजनी किस्त कहां से भर पाएगी. अरे, उस का एक बीमा भी तो है. एक लाख रुपए का बीमा था. किस्त सालाना थी.

तभी शरद को याद आया, इस साल तो उस ने किस्त जमा ही नहीं की थी. यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई. वह लपक कर उठ कर गया व अलमारी से फाइल निकाल लाया. बीमा की पौलिसी और रसीदें मिल गईं. सही में 2 किस्तें बकाया थीं. वह चिंतित हो गया. कल ही जा कर वह किस्तों का पैसा जमा कर देगा. उस ने बैग से चैकबुक निकाल कर चैक

भी बना डाला. फिर उस ने चैकबुक रख दी और तकिए पर सिर रख कर बीमा पौलिसी के नियम पढ़ने लगा.

‘‘मैं खाना लगाने जा रही हूं…’’ रजनी ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘यह आप क्या फैलाए बैठे हैं?’’

‘‘जरा बीमा पौलिसी देख रहा था.2 किस्तें बकाया हो गई हैं. कल ही किस्तें जमा कर दूंगा.’’

‘‘अरे, तो तुम वही सब सोच रहे हो. अच्छा चलो, पहले खाना खा लो.’’

रजनी ने बैड के पास ही स्टूल रख कर उस पर खाने की थाली रख दी. शरद खाना खाने लगा. तकलीफ तो हो रही थी, पर वह खाता रहा.

‘‘रजनी, एक बात बताओ?’’ शरद ने खाना खाते हुए पूछा.

‘‘क्या है…’’ रजनी ने पानी का गिलास रखते हुए कहा.

‘‘यह सुसाइड क्या होता है?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘मतलब यह कि गुटखा खाना सुसाइड में आता है या नहीं?’’

‘‘अब मु झ से बेकार की बातें मत करो. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’

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‘‘नहीं, असल में पौलिसी में एक क्लौज है कि अगर कोई आदमी जानबू झ कर अपनी जान लेता है तो वह क्लेम के योग्य नहीं माना जाएगा. गुटखा खाने से कैंसर होता है सभी जानते हैं और फिर भी खाते हैं. तो यह जानबू झ कर अपनी जान लेने की श्रेणी में आएगा कि नहीं?’’

अब रजनी अपने को रोक न सकी. उस ने मुंह घुमा कर अपना आंचल मुंह में ले लिया और एक सिसकी ली.

दूसरे दिन शरद तैयार हो कर औफिस गया. वह सीधे महेंद्रजी के पास गया. उस का बीमा उन्होंने ही किया था. उस ने उन्हें अपनी किस्त का चैक दिया.

‘‘अरे महेंद्रजी, आप ने तो याद भी नहीं दिलाया. 2 किस्तें पैंडिंग हैं.’’

‘‘बताया तो था,’’ महेंद्रजी ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप ही ने ध्यान नहीं दिया. थोड़ा ब्याज भी लगेगा. चाहिए तो मैं कैश जमा कर दूंगा. आप बाद में दे दीजिएगा.’’

‘‘महेंद्रजी एक बात पूछनी थी आप से?’’ शरद ने धीरे से कहा.

‘‘कहिए न.’’

‘‘वह क्या है कि… मतलब… गुटखा खाने वाले का क्लेम मिलता है न कि नहीं मिलता?’’

‘‘क्या…?’’ महेंद्रजी सम झ नहीं पाए.

‘‘नहीं. मतलब, जो लोग गुटखा वगैरह खाते हैं और उन को कैंसर हो जाता है, तो उन को क्लेम मिलता है कि नहीं?’’

‘‘आप को हुआ है क्या?’’

‘‘अरे नहीं… मु झे क्यों… मतलब, ऐसे ही पूछा.’’

‘‘अच्छा, अब मैं सम झा. आप तो जबरदस्त गुटखा खाते हैं, तभी तो पूछ रहे हैं. ऐसा कुछ नहीं है. दुनिया पानगुटखा खाती है. ऐसा होता तो बीमा बंद हो जाता.’’

‘‘पर… उस में एक क्लौज है न.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘वही सुसाइड वाला. बीमित इनसान का जानबू झ कर अपनी जान देना.’’

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महेंद्रजी कई पलों तक उसे हैरानी से घूरते रहे, फिर ठठा कर हंस पड़े, ‘‘बात तो बड़े काम की आई है आप के दिमाग में. सही में गुटखा खाने वाला अच्छी तरह से जानता है कि उसे कैंसर हो सकता है और वह मर सकता है. एक तरह से तो यह सुसाइड ही है. पर अभी तक कंपनी का दिमाग यहां तक नहीं पहुंचा है. बस, आप किसी को बताइएगा नहीं.’’

बाप का कातिल

लेखक- रघुनाथ सिंह

दक्षिण नागपुर के हुड़केश्वर रोड इलाके में साधारण आमदनी वाले परिवार रहते हैं. इसी इलाके के सन्मार्ग नगर बांते लेआउट शिव गौरी कौंवैस्ट के पास विजय गोविंदराव पिल्लेवार परिवार समेत रहते थे.

55 साला विजय पिल्लेवार प्रोपर्टी डीलिंग का काम करते थे. कुछ साल पहले तक तो हालात ठीक थे, लेकिन समय का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि विजय गोविंदराव पिल्लेवार की माली मामले में हिम्मत हारने लगी. विजय पिल्लेवार इस मामले में खुशनसीब थे कि ‘हम दो हमारे दो’ की तर्ज पर उन का छोटा परिवार था. पत्नी कांताबाई घरेलू औरत थीं. बेटा विक्रांत उर्फ रोहित 26 साल का हो चला था. बेटी अवंती 20 साल की थी.

नागपुर में प्रोपर्टी के धंधे में बरकत का यह आलम रहा कि एक समय में यहां कई लोगों की लौटरी सी लग गई. सामान्य घर वालों के बंगले बन गए. दोपहिया की जगह पर चारपहिया वाहन घर की शान बन गए.

लेकिन, साल 2016 में हवा का एक झोंका सा आया, जिस ने कइयों की खुशियों को झकझोर कर रख दिया. भारत सरकार ने नोटबंदी क्या कराई, कइयों की जिंदगी में पाबंदिया लग गईं. खर्चों के लिए खुले रहने वाले हाथ बंधने से लगे. रुपए का गणित गड़बड़ा गया. दौलत के साथ शोहरत का भी ग्राफ गिरने लगा.

विजय गोविंदराव पिल्लेवार भी उन कई लोगों की कतार में शामिल हो गए, जो मुफलिसी की आहट सुन दबेदबे से रहने लगे. उन की पत्नी कांताबाई की खुशियों पर तो मानो सांप लोट गया था. गर्दिश के दिन आने की चिंता का झटका दिमाग पर लगा, तो उन्होंने खाट पकड़ ली. वे बीमार रहने लगीं.

ऐसे में पिल्लेवार परिवार के लिए बेटा विक्रांत उर्फ रोहित आस का नया दीया जलाने लगा था. विक्रांत ने कम समय में तरक्की के नएनए पायदान छुए थे. घर के सामने खड़ी बेटे की कार पिल्लेवार परिवार की अमीरी की ओर बढ़ते कदम का परिचय देने लगी थी.

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विक्रांत न केवल बौडी बिल्डर था, बल्कि वह बौडी ट्रेनर भी था. कई रईसजादों से ले कर अफसरों को वह फिटनैस ट्रेनिंग दिया करता था.

बेचैन बाप बहका बेटा

25 अप्रैल, 2020 को विजय पिल्लेवार काफी बेचैन व घबराए हुए थे. कोरोना संकट को ले कर लौकडाउन का ऐलान हुए एक महीना हो गया था. घर में रहते हुए बेटे विक्रांत ने गुस्सैल स्वभाव के कई रंग दिखाए थे. 3-4 दिन पहले ही वह किसी दोस्त के साथ झगड़ा कर के आया था.

कर्फ्यू में घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत के बाद भी विक्रांत का अनियंत्रित सा रहना परिवार वालों के लिए परेशानी का सबब बनने लगा था. पहले वह दिन में कम समय ही घर पर रहता था, लेकिन अब वह घर में रहने को मजबूर तो था, लेकिन अपनी हरकतों से घर का माहौल डर वाला बना रखा था.

विक्रांत बातबात पर घर के लोगों पर भड़क उठता था. मांबाप कुछ कहते, तो उन्हें भलाबुरा कहते हुए वहशी तरीके से घूर कर देखता था. छोटी बहन स्नेह जताती, तो उसे भी चुप कर देता था.

पिता विजय पिल्लेवार बेटे के स्वभाव को ले कर सोचविचार में ही थे कि किसी बात को ले कर विक्रांत उपद्रवी हो गया. वह घर के बरतन फेंकने लगा. दीवारों पर हाथ व सिर पटकने लगा. हिंसक पशु की तरह वह गुर्राने भी लगा था.

पासपड़ोस के लोग भी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अच्छेखासे हैंडसम दिखते लड़के को हो क्या गया है.

पूरा पिल्लेवार परिवार घर में ही डरासहमा सा था. विक्रांत अजीब सी हरकतें करते हुए इधरउधर हाथ पटक रहा था. विजय पिल्लेवार ने छिप कर अपने दोस्त को फोन लगाया. विक्रांत की हरकतों के बारे में जानकारी दी. तब वह दोस्त मदद के लिए उन के घर आया.

कुछ समय बातचीत करने के बाद वे विक्रांत को घूम कर आने के बहाने मैडिकल अस्पताल क्षेत्र के एक डाक्टर के घर ले गए.

डाक्टर ने जांच के बाद कहा कि कभीकभी ऐसी हालत हो जाती है कि साधारण इनसान भी असाधारण हरकत करने लगता है. उस के साथ सामान्य बरताव होता है, तो वह भी सामान्य हो जाता है.

डाक्टर ने कुछ गोलियां खाने को दीं और यह कह कर घर लौटा दिया कि फिलहाल विक्रांत का लंबा चैकअप नहीं किया जा सकता है. लौकडाउन है, इसलिए किसी अस्पताल में भरती भी नहीं किया जा सकेगा. सो, बेहतर यही होगा कि उसे घर में ही रखा जाए. वह जो भी कहे, उस की बात की खिलाफत न की जाए.

जाग उठा शैतान

डाक्टर के यहां से लौटने के बाद विक्रांत घर पर अपने कमरे में जा कर सो गया. रात के 8 बजने वाले थे. वह जागा. रात 9 बजे बहन अवंती ने उसे बड़े लाड़ के साथ भोजन करने को कहा. वह थोड़ा मुसकराया. फिर टीवी वाले कमरे में सोफे पर जा कर बैठ गया. उस के मातापिता भी करीब में आ कर बैठ गए थे.

सभी टीवी देख रहे थे. उसी दौरान विक्रांत अपने कमरे में गया. उस ने एक इजैंक्शन अपने हाथ में लगाया. माना गया कि वह इंजैक्शन स्टेरौयड का था.

स्टेरौयड का इंजैक्शन लगा कर विक्रांत फिर से सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा. शायद उस पर स्टेरौयड का नशा चढ़ने लगा था.

कुछ मिनटों में ही पिता विजय पिल्लेवार सोफे से उठ कर मोबाइल फोन अपने हाथ में ले रहे थे, उसी दौरान विक्रांत चिल्ला उठा, ‘‘कोई मोबाइल फोन को हाथ नहीं लगाएगा. जो जहां बैठा है, वहीं बैठा रहे.’’

विक्रांत की बात पर उस के परिवार वाले पहले तो दंग रह गए, फिर सभी ने सोचा कि शायद विक्रांत मजाक कर रहा है.

पिता ने बगैर कुछ बोले फिर से मोबाइल फोन की ओर  हाथ बढ़ाया, तब विक्रांत ने पिता के गाल पर थप्पड़ मार दिया. मां कांताबाई से रहा नहीं गया. उन्होंने हिम्मत कर के विक्रांत को फटकारा, ‘‘होश में तो है पगले, अपने बाप पर हाथ उठाता है. तेरे को नरक में भी जगह नहीं मिलेगी.’’

विक्रांत और भी गुस्से से लाल हो गया. उस ने मां को भी थप्पड़ मारा. छोटी बहन कुछ बोलती, इस से पहले ही उसे भी एक तमाचा रसीद कर दिया.

क्रूर करतूत

थप्पड़ खा कर गिरे पिता ने उठ कर विक्रांत की खिलाफत करने की कोशिश की, तो घर में कुहराम मच गया. मां और बहन बीचबचाव करती रह गईं.

विक्रांत पिता पर टूट पड़ा. उस के सिर पर मानो खून सवार था. लोहे की छड़ से सिर पर वार कर उस ने पिता को फिर से गिरा दिया और जोरजोर से उन का सिर फर्श पर पटकता रहा.

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विक्रांत की हैवानियत यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने बड़ी बेरहमी से अपने दांतों से पिता का गला काट दिया, फिर उन का अंग काट कर चबा गया.

यह देख कर मांबेटी सिहर उठीं. वे दोनों अपनी जान बचाते हुए पड़ोसी के घर भाग गईं और शोर मचा कर लोगों से मदद की गुहार लगाती रहीं.

इधर विक्रांत का तांडव जारी था. वह रसोईघर से सब्जी काटने का चाकू ले आया. बेहोश से हुए पिता के गले पर चाकू से वार करने लगा. फिर पिता को घसीटते हुए दरवाजे तक ले आया. वहां भी वह नहीं रुका. पिता की छाती पर बैठ कर उन की गरदन मरोड़ने लगा.

इस हैवानियत की खबर महल्ले में फैली. कुछ लोग बचाव के लिए आए, लेकिन विक्रांत का खतरनाक रूप देखने के बाद कोई उस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे.

विक्रांत के वार से उस के पिता मरने जैसी हालत में थे. दरवाजे पर पड़े उन के शरीर में कोई हलचल नहीं थी.

इसी बीच विक्रांत को न जाने और क्या सूझा, वह फिर से अपने कमरे में गया. वहां से पेचकश ला कर पिता की आंख निकालने की कोशिश करने लगा. फिर अचानक पेचकश छोड़ कर कमरे के कोने में लहूलुहान हालत में बैठ गया.

तब किसी ने फोन पर हुड़केश्वर पुलिस स्टेशन में सूचना दी. लौकडाउन के चलते पुलिस स्टेशन में पुलिस कम थी. 2 सिपाही मोटरसाइकिल से घटनास्थल पर पहुंचे, लेकिन विक्रांत उन्हें भी दूर से ही मार डालने की धमकी देता रहा. तब वे दोनों सिपाही थाने में लौटे. बड़े अफसरों को इस घटना की सूचना दी. आननफानन कुछ अफसर जमा हुए. आसपास के इलाकों में सुरक्षा बंदोबस्त में लगे पुलिस जवानों को भी सूचना दी गई. तब 8 से 10 पुलिस जवानों का दल पुलिस थाने की गाड़ी ले कर विक्रांत को पकड़ने पहुंचा.

जवानों ने विक्रांत पर डंडे बरसाए, जैसेतैसे उस के पैरों में रस्सी बांधी, फिर उसे थाने में ले कर आए.

उधर पिता विजय पिल्लेवार को तत्काल उपचार के लिए मैडिकल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अस्पताल में डाक्टर ने विजय पिल्लेवार को मरा हुआ बता दिया.

हुड़केश्वर थाने की पुलिस ने विजय पिल्लेवार की बेटी अवंती की शिकायत पर अपराध क्रमांक 166-2020 भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया.

विक्रांत थाने में भी बेकाबू हो रहा था. काफी देर तक वह कपड़े उतार कर थाने में हंगामा मचाता रहा. वह कह रहा था कि चाहे उस से जितने भी रुपए ले लो, लेकिन उसे पावर डोज दिला दो.

पुलिस आयुक्त भूषण कुमार उपाध्याय, सहआयुक्त रवींद्र कदम, अपर आयुक्त डाक्टर नीलेश भरणे के मार्गदर्शन में हुड़केश्वर थाने की पुलिस ने विक्रांत के हाथपैर बांध कर कस्टडी में रखा.

दिमाग कैसे सरका

फिलहाल इस वारदात में यही माना जा रहा है कि विक्रांत को स्टेरौयड दवाओं के शौक ने हिंसक बना दिया. लौकडाउन में उस का शौक बाधित होने लगा, तो वह मानसिक तनाव में रहने लगा.

पुलिस ने उस के कमरे व कार से कुछ दवाओं के अलावा इंजैक्शन के सीरिंज बरामद किए. मनोचिकित्सकों से चर्चा के आधार पर पुलिस कह रही है कि शक्तिवर्धक दवा के असर में ही यह वारदात होने की ज्यादा संभावना है.

दरअसल, विक्रांत जिम ट्रेनर है. फिटनैस गुरु के तौर पर वह कई जानीमानी हस्तियों को भी ट्रेनिंग देता रहा है. आईपीएस लैवल के अफसर से ले कर बड़े कारोबारी व नेता भी उसे घर बुला कर उस से फिटनैस की टिप्स लेते रहे हैं.

12वीं क्लास में फेल होने के बाद उस ने कुछ समय तक मैडिकल स्टोर में काम किया. उसे पहले से ही जिम का शौक था. जिम ट्रेनर को कोर्स करने के बाद वह बतौर ट्रेनर काम करता था.

वह मौडल की तरह दिखता है. उस ने पार्टनरशिप में जिम शुरू किया. जिम के साथ ही वह स्टेरौयड दवाओं व इंजैक्शन की बिक्री का काम करता रहा है. उस ने बाकायदा वी चैंपियन नाम से एक मोटिवेशनल संस्था शुरू की. सिक्स पैक बौडी के लिए चर्चित विक्रांत के कई युवा नेताओं से भी संबंध हैं. वह बौडी बनाने के लिए अलगअलग दवाओं के इस्तेमाल व उन के लाभ के बारे में भी क्लास लेता रहा है. इस संबंध में वह औनलाइन टिप्स भी देता रहा है.

विक्रांत के नैटवर्क में कई हसीन युवायुवतियां हैं. कुछ महीने पहले ही उस ने एक बौडी डवलपमैंट इवैंट का आयोजन किया था. उस में बौडी फिटनैस से संबंधित स्टार्स को मुंबई से बुलवा कर शामिल किया था.

2-3 साल में ही उस की जिंदगी में काफी बदलाव आ गया था. उस का आपराधिक रिकौर्ड नहीं है, लेकिन उस के दोस्तों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ने लगी, जो विविध क्षेत्रों में दबदबा रखते हैं. हुक्का पार्लर्स से ले कर युवाओं के रोमांस स्थल माने जाने वाले कुछ रैस्टोरैंटों में भी उस का खास दबदबा था.

दक्षिण नागपुर में ही ड्रग्स तस्कर आबू रहता था. चर्चा है कि आबू से भी विक्रांत की करीबी जानकारी थी. फिलहाल आबू नागपुर सैंट्रल जेल में है.

विक्रांत ने अपने पिता की हत्या की, उस के 3 दिन बाद आबू ने जेल में खुदकुशी करने की कोशिश की. आबू की इस कोशिश को ले कर प्रशासन हड़बड़ाया है.

आबू ड्रग तस्कर है. उस के पास न केवल बेहिसाब दौलत पाई गई, बल्कि कई पुलिस वाले भी उस के सहयोगी पाए गए. ड्रग तस्करी के जिस मामले में उसे जेल में डाला गया है, उसी मामले में उस के सहयोगी के तौर पर 4 पुलिस वालों को महकमे ने निलंबित किया है.

घातक दवाओं का सेवन

इस मामले को ले कर डाक्टरों व मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सेहत बनाने के लिए युवा जानेअनजाने में घातक दवाओं का सेवन कर रहे हैं. आधुनिकता की दौड़ और उस की चमक के पीछे भाग रहा युवा वर्ग इस कदर अंधा हो गया है कि परफैक्ट बौडी बनाने के लिए प्रोटीन पाउडर और स्टेरौयड इंजैक्शन का सहारा ले रहा है.

इस से उस के शरीर की मांसपेशियां तो फूल जाती हैं, लेकिन बदले में मानसिक अस्थिरता, कमजोरी के साथ उसे हिंसक भी बना देती है.

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जानकार सलाह देते हैं कि प्रोटीन पाउडर और स्टेरौयड इंजैक्शन लेना बंद कर दें. मनोचिकित्सक डाक्टर अविनाश जोशी कहते हैं कि जिम में बौडी बनाने के लिए मिलने वाला प्रोटीन किसी दवा की दुकान में नहीं मिलता है. यह सिर्फ जिम में मिलता है. इसे खाने से दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है. इस का सेवन करने वाले की कई बार सोचनेसमझने की ताकत कमजोर हो जाती है.

महाराष्ट्र मैडिकल काउंसिल के सदस्य डाक्टर विंकी रुघवानी कहते हैं, ‘‘बौडी बिल्डिंग का चसका युवाओं को ऐसे गंभीर मोड़ की ओर ले जा रहा है, जिस से वे अपनी बुद्धिमता, मानसिक ताकत और शारीरिक ताकत को कमजोर कर रहे हैं.

‘‘उन्हें इस बात का तब पता चलता है, जब अपनी कमजोरी, उदासीनता, घबराहट, चिड़चिड़ापन और मानसिक विक्षिप्तता की हरकतों का उपचार कराने वे डाक्टर के पास जाते हैं. ऐसी अवस्था को साइकोसिस कहा जाता है.’’

मनोवैज्ञानिक डाक्टर अरूप मुखर्जी कहते हैं, ‘‘बाजार में जब भी कोई दवा खरीदो तो उस पर लिखा होता है कि अपने चिकित्सक से सलाह के बाद ही लें.

‘‘शक्तिवर्धक कैप्सूल पर भी यह बात लिखी होती है कि हर किसी के लिए यह फायदेमंद साबित नहीं हो सकता है, क्योंकि किसी को क्या बीमारी है, यह तय नहीं रहता है. यह भी मालूम नहीं रहता है कि संबंधित दवा से फायदा होगा या नहीं.’’

नागपुर पुलिस विभाग में अपराध शाखा के प्रमुख अपर आयुक्त डाक्टर नीलेश भरणे कहते हैं कि नागपुर में ड्रग्स सप्लायर की कड़ी को तोड़ने के लिए पुलिस को सदैव अलर्ट रहना पड़ता है. यहां मुंबई के मार्ग से नाइजीरियन ड्रग सप्लायरों की सक्रियता देखी गई है.

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